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Sanskrit Domain Test - 5

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Sanskrit Domain Test - 5
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Weekly Quiz Competition
  • Question 1
    5 / -1
    'नी' धातोः ल्युट् प्रत्यये रूपं भवति-
    Solution

    प्रश्न का हिंदी अनुवाद - 'नी' धातु से ल्युट् प्रत्यय में रूप बनता है?

    स्पष्टीकरण -

    नयनम् प्रयुक्त प्रकृति 'नी' और प्रत्यय 'ल्युट्'  है।

    सूत्र:- ल्युट् च:- से भाव अर्थ में धातुओं से ल्युट् प्रत्यय होता है। इस प्रत्यय के जुडने पर कुछ अपेक्षित परिवर्तन होते हैं-

    • भाववाचक शब्दोंकी रचना के लिए धातुओंको ल्युट् प्रत्यय जोड़ा जाता है।
    • रचना करते समय 'ट्' और 'ल्' लोप हो जाता है और 'यु' शेष रहता है।
    • 'यु' के स्थान पर 'अन' हो जाता है और वह धातु के साथ जुड़ता है।
    • अन जुड़नेके बाद शब्द 'वन' अकारान्त नपुंसकलिङ्ग की तरह चलता है।

    Important Points

    विकल्पों का स्पष्टीकरण-

    1. नम् + ल्युट् → नम् + अन → नमन
    2. नी + ल्युट् → नी + अन → नयन
    3. ने + ल्युट् → 'ने' धातु अस्तित्व में नहीं है और भाववाचक की रचना के लिए ल्युट् प्रत्यय धातु से जुड़ना चाहिए।
    4. नयन + ल्युट् → 'नयन' यह धातु नहीं प्रातिपदिक है इसलिए इससे ल्युट् जोड़कर भाववाचक शब्द नहीं बनते।

    इससे यह स्पष्ट होता है कि 'प्रकृति नी + प्रत्यय ल्युट्' से 'नयन' प्रातिपदिक बनता है और उससे प्रथमा एकवचन में 'नयनम्' शब्द प्राप्त होता है।

  • Question 2
    5 / -1
    'राज्ञा प्रजा प्रयत्नेन (पाल् + अनीयरः) अत्र कोष्ठकप्रदत्तपदस्य प्रकृतिप्रत्ययौ संयोज्य उचितमुत्तरं चिनुत।
    Solution

    अनुवाद  -  राजा के द्वारा प्रजा प्रयत्न से पालनीय है , यहां कोष्ठक में दिये गये प्रकृति-प्रत्यय का संयोजन करके उचित उत्तर चुनं।

    स्पष्टीकरण -   

    • पद  -   पालनीयः / पालनीयम् / पालनीया
    • पद विच्छेद  -   पाल्  +  अनीयर्

    Important Points

    • सूत्र  तव्यत्तव्यानीयरः
    • अर्थ - धातु से परे तव्यत् , तव्य और अनीयर् प्रत्यय होते हैं।

     

    • उदाहरण -
    1.   गम्  + अनीयर्  - गमनीयः ,  गमनीया,  गमनीयम्
    2.  लिख्  + अनीयर्  - लेखनीयः, लेखनीया, लेखनीयम्
    3.  पठ्  + अनीयर्  - पठनीयः,  पठनीया,  पठनीयम्

     

    • अनीयर् प्रत्यय में क्रियापद कर्ता के लिंग के अनुसार होता है।
  • Question 3
    5 / -1
    संस्कृते प्रत्ययस्य कति प्रकाराणि सन्ति?
    Solution

    प्रश्नानुवाद - संस्कृत में प्रत्यय के कितने प्रकार हैं?

    स्पष्टीकरण -

    • प्रत्यय - धातु अथवा प्रातिपदिक के बाद जिनका प्रयोग किया जाता है, उन्हें प्रत्यय कहते हैं। प्रत्यय वे होते हैं, जो किसी धातु के बाद जुड़कर नये एवं सार्थक शब्दों का निर्माण करते हैं।
    • उपसर्ग की तरह प्रत्यय भी नये शब्द के निर्माण में सहायक होते हैं। उपसर्ग और प्रत्यय में यह अन्तर है कि उपसर्ग धातु से पहले और प्रत्यय धातु के बाद में लगते हैं।
    • संस्कृत व्याकरण में 5 प्रकार के प्रत्ययों की गणना की गयी है। वे हैं - सुप्, तिङ्, कृत्, तद्धित, स्त्री
      • सुप प्रत्यय - ये प्रत्यय संज्ञा पदों के नाम, विभक्ति, वचन के विषय में बताते हैं। जैसे - राम + सु - रामः
      • तिङ् प्रत्यय - ये प्रत्यय धातुरूपों के साथ लगकर क्रिया/धातु के पुरुष, काल, वचन के विषय में बताते हैं। जैसे - भू + तिप् - भवति
      • कृत् प्रत्यय - धातु में जिन प्रत्ययों को जोड़ने से संज्ञा, विशेषण या अव्यय पद बनता है, उनको कृत् प्रत्यय कहते हैं। ये प्रत्यय धातुओं के साथ ही लगते हैं। जैसे - गम् + क्त - गतः (गया)
      • तद्धित प्रत्यय - संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण आदि में जिन प्रत्ययों को जोड़कर कुछ और अर्थ भी निकलता है, उन प्रत्ययों को तद्धित प्रत्यय कहते हैं।  जैसे - वर्षा + ठक् (इक्) - वार्षिकः
      • स्त्री प्रत्यय - इन प्रत्ययों के द्वारा पुरुषवाचक शब्दों को स्त्रीवाचक शब्द में परिवर्तित किया जाता है। इसलिए इन्हें स्त्री प्रत्यय कहा जाता है। जैसे - बालक + टाप् - बालिका

     

    अतः स्पष्ट है कि संस्कृत में प्रत्यय 5 प्रकार के होते हैं।

  • Question 4
    5 / -1

    अधोलिखितवाक्येषु रेखाङ्कितपदस्य प्रकृति-प्रत्ययौ विभज्य उचितम् उत्तरं विकल्पेभ्यः चिनुत-

    अन्योऽपि बुद्धिमान् लोके मुच्यते महतो भयात्।
    Solution

    प्रश्नार्थ - अधोलिखित वाक्य में रेखांकित पद के प्रकृति प्रत्यय का वियोग उचित उत्तर विकल्प में से लिखे-

    अन्योऽपि बुद्धिमान् लोके मुच्यते महतो भयात्।

    स्पष्टीकरण - 

    1. संज्ञा, सर्वनाम​, विशेषण इन सभी शब्दों के अन्त में जो प्रत्यय लगते है उन्हें तद्धितान्त प्रत्यय कहते है। मतुप् प्रत्यय यह तद्धितान्त प्रत्ययों में से एक है।
    2. मतुप् प्रत्यय से किसी एक वस्तु का दुसरी वस्तु में होना दिखाता है। इसके अतिरिक्त प्रयोग करने पर मतुप् प्रत्यय का केवल मत् ही शेष रहता है। अतः 'धनवान्' यह मतुप् प्रत्ययी पद धन की किसी व्यक्ति के समीप होनेवाली विपुलता को दर्शाता है।
    3. सामान्यतया, पुंल्लिंग शब्दों के अन्त में मान् / वान्, स्त्रीलिंग शब्दों के अन्त में मती / वती और नपुंसकलिंगों के अन्त में मत् / वत् इसतरह से प्रत्यय जुडते है।
    4. उदाहरण​ 
      रुप + मतुप्  रुपवान्, रुपवती, रुपवत्
      श्री + मतुप्  श्रीमान्, श्रीमती, श्रीमत्
      बुद्धि + मतुप्  बुद्धिमान्, बुद्धिमती, बुद्धिमत्
      यश + मतुप्  यशवान्, यशवती, यशवत्

    अतः स्पष्ट होता है कि, 'बुद्धिमानः' इसमें मतुप् प्रत्यय है।

    Confusion Points

    शानच् प्रत्यय - 

    • 'लटः शतृशनचावप्रथमासमानाधिकरणे' इस सुत्र से शतृ और शानच् प्रत्यय होता है।
    • 'तौ सत्' सुत्र से शतृ और शानच् प्रत्ययों को सत सज्ञा मिलती है।
    • बादमे शतृ प्रत्यय मे 'अत्' और शानच् प्रत्यय मे 'आन' शेष बचता है।
    • 'लगातार कार्य होना' इस अर्थमे यह प्रत्यय होते है।
    • शतृ परस्मैपदी धातुओंसे एवं शानच् आत्मनेपदी धातुओंसे लगता है।
    • यह सर्व लिंग तथा सात विभक्तियों में चलते है।
  • Question 5
    5 / -1
    'लब्धुम्‌' इत्यत्र कः प्रत्ययः ?
    Solution

    प्रश्न की हिन्दी - 'लब्धुम्‌' में प्रत्यय है -

    स्पष्टीकरण -

    • लभ् धातु + तुमुन् प्रत्यय लब्धुम्‌ पद बनता है।
    • विग्रह - लभ् + तुमुन्

     

    सूत्र - तुमुन्ण्वुलौ क्रियायां क्रियार्थायाम्।

    • क्रियार्थ क्रिया अर्थात् चतुर्थी विभक्ति के अर्थ में प्रयुक्त क्रिया में 'तुमुन्' प्रत्यय होता है। तुमुन् प्रत्यय में ‘हलन्त्यम्’ से ‘न्’ और ‘उपदेशेऽजनुनासिक’ से ‘उ’ का लोप हो ‘तुम्’ पद शेष बचता है, जो धातु से जुड़ता है।
    • अतः 'लभ् + तुमुन् → 'द्रष्टुम्' होता है, जिसका अर्थ 'देखने के लिए' होता है।

     

    इस प्रकार लभ् धातु में तुमुन् प्रत्यय लगने से लब्धुम्‌ रूप बनता है।

  • Question 6
    5 / -1
    ‘बालिका’ इत्यस्मिन् पदे कः प्रत्ययः?
    Solution

    प्रश्न का हिन्दी अनुवाद - ‘बालिका’ इस पद में प्रत्यय है -

    स्पष्टीकरण -

    स्त्रीप्रत्यय: पुंल्लिङ्ग शब्दों को स्त्रीलिंग में परिवर्तित करने के लिये जिन प्रत्ययों का प्रयोग होता है उन्हें स्त्रीप्रत्यय कहते हैं।

    • इनकी संख्या पाणीनि ने आठ बताई है- टाप्, चाप्, डाप्, ङीप्, ङीष्, ङीन्, ऊङ् और ति।
    • यहाँ अकारान्त ‘बालक’ शब्द से ‘अजाद्यतष्टाप्’ सूत्र से ‘टाप्’ प्रत्यय होकर तथा ‘प्रत्ययस्यात्कात्पुर्वस्यात् इदाप्यसुपः’ सूत्र से ‘क’ के पुर्व के ‘अ’ को ‘इ’ आदेश होकर ‘बालिका’ शब्द बनता है।

    अतः स्पष्ठ है ‘बालिका’ में 'टाप्' प्रत्यय है।

    Key Points

    • चाप् का एकमात्र उदाहरण 'सूर्या' प्राप्त होता है।
    • याट् स्त्रीप्रत्यय नहीं है। 
    • डाप् उन शब्दों के साथ जुड़ता है जिनके अन्त में अन् अथवा मन् होते हैं।

    Additional Information

    प्रत्यय:- ‘प्रति’ उपसर्ग पूर्वक ‘इण्’ धातु से ‘अच्’ प्रत्यय होकर ‘प्रत्यय’ पद निष्पन्न होता है। जिसका अर्थ होता है वे शब्द या शब्दांश जो अन्य शब्द के अन्त में जुड़कर नये सार्थक शब्दों का निर्माण करते हैं प्रत्यय कहलाते है।जैसे- गम्+ क्त्वा = गत्वा। प्रत्यय पाँच प्रकार के होते हैं-

    नाम

    परिभाषा

    उदाहरण

    विभक्ति

    मूल धातु या प्रातिपदिक से पद बनाने के लिये जुड़ते है। सुप् और तिङ्ग इनके अन्तर्गत आते हैं।

    पठ् + तिप् = पठति

    राम + सु = रामः

    कृत्

    धातु के अन्त में जुड़ते हैं।

    धृ + क्तिन् = धृति

    तद्धित

    शब्दों के अन्त में जुड़ते हैं।

    श्रेष्ठ + तमप् = श्रेष्ठतम्

    स्त्रीप्रत्यय

    पुं. स्त्री. में परिवर्तित करने के लिए जुड़ता है।

    बालक + टाप् = बालिका

    धातु-अवयव

    प्रत्यय से पूर्व जुड़ने वाला प्रत्यय होता है।

    पठ् + णिच् + तिप् = पाठयति

    पठ् + णिच् + शतृ = पाठयन्

  • Question 7
    5 / -1
    अधि + इ + ल्यप् इत्यस्य संयोगः भवति-
    Solution
    प्रश्न अनुवाद - अधि + इ + ल्यप्, इसका संयोग होगा -
    स्पष्टीकरण -
    ल्यप् प्रत्यय -
    • पूर्वकालिक क्रिया के अर्थ में 'ल्‍यप' प्रत्यय का भी प्रयोग होता है।
    • जहां पर धातु से पूर्व कोई उपसर्ग लगा होता है।
    • वहां क्त्वा प्रत्यय के स्थान पर ल्यप् प्रत्यय का प्रयोग किया जाता है।
    • ल्यप् प्रत्ययान्त शब्द भी अव्यय के रूप में ही प्रयोग किये जाते है। 
    • “ल्यप्” का “य” शेष रहता है । ल् और प् हट जाते है।
    जैसे - अधि + इ + ल्यप्
    अधि + इ + यप् 
    अधीत्य
    अन्य उदाहरण -
    • वि + हस् + ल्यप् - विहस्य
    • वि + जि + ल्यप् - विजित्य 
    • अधि + इ + ल्यप् - अधीत्य
    • प्र + स्तु + ल्यप् - प्रस्तुत्य 
    अत: स्पष्ट है कि अधि + इ + ल्यप् का संयोग "अधीत्य" होगा। 
  • Question 8
    5 / -1
    'वर्त्तमानम्' पद में प्रत्यय होता है-
    Solution

    पद - वर्त्तमानम्

    स्पष्टीकरण - वर्त्तमानम् इस शब्द का विग्रह ‘वर्तृ + शानच्’ है।

    शानच् प्रत्यय - 

    • 'लटः शतृशनचावप्रथमासमानाधिकरणे' इस सुत्र से शतृ और शानच् प्रत्यय होता है।
    • 'तौ सत्' सुत्र से शतृ और शानच् प्रत्ययों को सत संज्ञा मिलती है।
    • बादमे शतृ प्रत्यय में 'अत्' और शानच् प्रत्यय मे 'आन' शेष बचता है।
    • 'लगातार कार्य होना' इस अर्थमे यह प्रत्यय होते है।
    • शतृ परस्मैपदी धातुओंसे एवं शानच् आत्मनेपदी धातुओंसे लगता है।
    • यह सर्व लिंग तथा सात विभक्तियों में चलते है।

    उदा.

    पठ + शतृ = पठन् (पुल्लिंग), पठन्ती (स्त्रीलिंग), पठत् (नपुंसकलिङ्ग)

    भाष + आन = भाषमाणः (पुल्लिंग), भाषमाणा (स्त्रीलिंग), भाषमाणम् (नपुंसकलिङ्ग)

    अतः स्पष्ट है कि वर्त्तमानम् इस शब्द में 'शानच् प्रत्यय है।

    Additional Information

    प्रत्यय:- ‘प्रति’ उपसर्ग पूर्वक ‘इण्’ धातु से ‘अच्’ प्रत्यय होकर ‘प्रत्यय’ पद निष्पन्न होता है। जिसका अर्थ होता है वे शब्द या शब्दांश जो अन्य शब्द के अन्त में जुड़कर नये सार्थक शब्दों का निर्माण करते हैं प्रत्यय कहलाते है। जैसे - गम् + क्त्वा = गत्वा।

    प्रत्यय पाँच प्रकार के होते हैं-

    नाम

    परिभाषा

    उदाहरण

    विभक्ति

    मूल धातु या प्रातिपदिक से पद बनाने के लिये जुड़ते है। सुप् और तिङ्ग इनके अन्तर्गत आते हैं।

    पठ् + तिप् = पठति

    राम + सु = रामः

    कृत्

    धातु के अन्त में जुड़ते हैं।

    धृ + क्तिन् = धृति

    तद्धित

    शब्दों के अन्त में जुड़ते हैं।

    श्रेष्ठ + तमप् = श्रेष्ठतम्

    स्त्रीप्रत्यय

    पुं. स्त्री. में परिवर्तित करने के लिए जुड़ता है।

    बालक + टाप् = बालिका

    धातु-अवयव

    प्रत्यय से पूर्व जुड़ने वाला प्रत्यय होता है।

    पठ् + णिच् + तिप् = पाठयति

    पठ् + णिच् + शतृ = पाठयन्

     
  • Question 9
    5 / -1
    "कृ + तुमुन्" इति प्रत्यये कृते कृदन्तरूपं स्यात्-
    Solution

    प्रश्न का हिन्दी अनुवाद - "कृ + तुमुन्" इस प्रत्यय के लिये कृदन्त रूप है?

    स्पष्टीकरण - 

    प्रत्यय - तुमुन् 

    धातु - कृ

    सूत्र - ‘तुमुन्ण्वुलौ क्रियायां क्रियार्थायाम्’ सूत्र से क्रियार्थ क्रिया अर्थात् चतुर्थी विभक्ति के अर्थ में प्रयुक्त क्रिया में तुमुन् प्रत्यय होता है। ‘राम पीने के लिए पानी लाता है।’ यहाँ क्रियार्था क्रिया पीने के लिए है। अतः यहाँ ‘पा’ धातु से 'तुमुन्' प्रत्यय होगा। 'तुमुन्' प्रत्यय में ‘हलन्त्यम्’ से ‘न्’ और ‘उपदेशेऽजनुनासिक’ से ‘उ’ का लोप हो ‘तुम्’ पद शेष बचता है जो धातु से जुड़ता है। अतः 'पा + तुमुन् + पातुम्।' 

    उदाहरण -

    • स्थातुम् - स्था + तुमुन्
    • कर्तुम्  - कृ + तुमुन् 
    • रक्षितुम् - रक्ष् + तुमुन्
    • हन्तुम् - हन् + तुमुन्
    • जेतुम् - जि + तुमुन्

    अतः स्पष्ट है कि 'कर्तुम्’ में "कृ + तुमुन्" प्रत्यय है।

  • Question 10
    5 / -1
    'हसितः' पदे प्रत्ययः अस्ति-
    Solution

    प्रश्न का अनुवाद - 'हसित' पद में प्रत्यय है-

    स्पष्टीकरण -

    शब्द – 'हसितः'

    प्रकृति – 'हस्' धातु

    प्रत्यय – क्त

    • भूतकाल के अर्थ में धातु से क्त प्रत्यय होता है, 'क्तक्तवतू निष्ठासूत्र से निष्ठा संज्ञा होती है।
    • यह सकर्मक धातुओं से कर्म अर्थ में तथा अकर्मक धातुओं से भाव अर्थ में जुड़ता है। 
    • 'लशक्वतद्धिते' सूत्र से 'क्त' के 'क्' का लोप हो जाता है और केवल 'त' शेष बचता है। 

    'दृश् + क्त' यहाँ कृदन्त प्रत्यय जुड़ने पर तिनों लिङ्गों में रूप बनता है

    जैसे -  हसितः पुंल्लिङ्ग, हसिता - स्त्रीलिङ्ग, हसितम् - नपुंसकलिङ्ग

    अतः स्पष्ट है कि हसितः पद में क्त प्रत्यय है।

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