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बिहार बोर्ड 10वीं कक्षा 2022-23  : History - इतिहास महत्वपूर्ण सब्जेक्टिव  प्रश्‍न ( लघु उत्तरीय  और दीर्घ उत्तरीय प्रश्‍न उत्तर के साथ ) 

बिहार बोर्ड 10वीं कक्षा 2022-23  : History - इतिहास महत्वपूर्ण सब्जेक्टिव  प्रश्‍न ( लघु उत्तरीय  और दीर्घ उत्तरीय प्रश्‍न उत्तर के साथ ) 

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बिहार बोर्ड 10वीं कक्षा 2022-23  : History - इतिहास महत्वपूर्ण सब्जेक्टिव  प्रश्‍न ( लघु उत्तरीय  और दीर्घ उत्तरीय प्रश्‍न उत्तर के साथ ) 

बिहार बोर्ड मैट्रिक (कक्षा 10वीं) परीक्षा 2023 के लिए History - इतिहास के सब्जेक्टिव प्रश्न ( Class 10th History VVI Subjective Question ) इस पोस्ट मे दिये गए है,  जो कि सभी छात्रों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।

कक्षा 10वीं History - इतिहास के प्रत्येक अध्याय के महत्वपूर्ण सब्जेक्टिव प्रश्न, उत्तर के साथ दिये गए है। जो कि छात्रों के लिए बहुत समय बचाता है। यहां पर History - इतिहास के लघु उत्तरीय प्रश्न तथा दीर्घ उत्तरीय प्रश्न ( class 10th History Subjective Question ) पढ़ सकते हैं।

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लघु उतरीय प्रश्न

1. राष्ट्रवाद क्या है?

उत्तर- राष्ट्रवाद एक ऐसी भावना है जो किसी विशेष भौगोलिक, सांस्कृतिक, या सामाजिक परिवेश में रहने वाले लोगों में एकता का वाहक बनती है।

2. मेजिनी कौन था?

उत्तर- मेजिनी इटली का एक क्रांतिकारी राष्ट्रवादी व्यक्ति था, जिसका जन्म 22 जून 1805 ई. को जेनेवा में हुआ था। यह कार्बोनरी नामक एक गुप्त क्रांतिकारी संगठन से जुड़ा हुआ था तथा सन 1831 ई. में इन्होंने यंग इटली की स्थापना भी की थी।

3. जर्मनी के एकीकरण की बाधाए क्या थी?

उतर - जर्मनी के एकीकरण की अनेक बाधाए थी। 19वीं शताब्दी में जर्मनी 300 से ज्यादा टुकड़ो में बांटा हुआ था, जिसे एक करना बड़ी समस्या थी। सभी छोटे-बड़े सम्राट अपने स्वार्थवस अपनी गद्दी छोड़कर जर्मनी को एक करने को तैयार नहीं थे।

दूसरी ओर जर्मनी, ऑस्ट्रिया के अधीन एक होगा या फिर प्रशा के अधीन यह भी एक बहुत बड़ी समस्या थी।

4. मेटरनिख युग क्या है?

उत्तर- मेटरनिख ऑस्ट्रिया का चांसलर था जो घोर प्रतिक्रियावादी था। वह अपने राज्य में किसी भी प्रकार के सुधार के पक्ष में नहीं था, उसकी नीति थी कि शासन करो लेकिन कोई परिवर्तन नहीं होने दो। सन 1815 - 1848 तक का काल यूरोप के इतिहास में मेटरनिख युग के नाम से जाना जाता है

5. इटली एवं जर्मनी के एकीकरण में ऑस्ट्रिया की भूमिका क्या थी?

उत्तर- इटली और जर्मनी के एकीकरण में ऑस्ट्रिया की काफी महत्वपूर्ण भूमिका थी । इटली और जर्मनी के एकीकरण में सबसे बड़ा बाधक ऑस्ट्रिया ही था ऑस्ट्रिया कभी नहीं चाहता था कि इटली और जर्मनी का एकीकरण संभव हो। दूसरी ओर एकीकरण के पूर्व जर्मनी 300 से ज्यादा भागों में बांटा हुआ था जिसके दो सबसे बड़े भाग ऑस्ट्रिया और प्रशा था।

ऑस्ट्रिया चाहता था कि जर्मनी मेरे अधीन एक हो जबकी प्रशा चाहता था कि जर्मनी मेरे अधीन एक हो । जर्मनी की अधिकतर जनता प्रशा के अधीन एक होना चाहती थी, जिससे स्पष्ट है कि इटली और जर्मनी के एकीकरण में सबसे बड़ा बाधक ऑस्ट्रिया था ।

6. गैरीबाल्डी के कार्यो की चर्चा करें।

उत्तर- गैरीबाल्डी इटली का एक राष्ट्रवादी क्रांतिकारी व्यक्ति था, जो मुख्य रूप से एक नाविक था। वह सशस्त्र क्रांति का समर्थक था तथा इटली के टुकड़ों में बंटे हुए राज्य को एक कर वहां गणतंत्र स्थापित करना चाहता था। गैरीबाल्डी मेंजिनी के विचारों का समर्थक था तथा इटली के एकीकरण के लिए लाल कुर्ती (Red shirt) के नाम से एक सेना का गठन भी किया था।

इस प्रकार स्पष्ट है कि इटली के एकीकरण में गैरीबाल्डी का काफी अहम योगदान था ।

7. खूनी रविवार क्या है?

उत्तर- 9 जनवरी 1905 ई. को आम किसान, गरीब, मजदूर तथा असहाय लोगों का एक समूह "रोटी दो" के नारे के साथ रूस के राजमहल की ओर जा रहे था। रूस की जार सेना को लगा कि ये लोग राजमहल पर आक्रमण करने आ रहे हैं जार ने बिना कुछ सोचे समझे उन निहत्थे गरीब लोगों पर गोली चलाने का आदेश दे दिया, जिसमें सैकड़ों लोग मारे गए चूकी यह दिन रविवार का था इसलिए इतिहास में इसे खूनी रविवार के नाम से जाना जाता है।

8. सर्वहारा वर्ग किसे कहते हैं?

उत्तर- समाज का वैसा वर्ग जिसमें आम किसान, मजदूर तथा गरीब लोग शामिल होते हैं सर्वहारा वर्ग कहलाता है। रूसी क्रांति के दौरान बोल्शेविक सर्वहारा वर्ग के पक्षधर थे।

9. क्रांति से पूर्व रूसी किसानों की स्थिति कैसी थी ?

उत्तर- क्रांति से पूर्व रूसी किसानों की स्थिति अत्यंत दयनीय थी। उनके खेत बहुत छोटे-छोटे थे जिन पर वे पुराने ढंग से खेती करते थे। उनके पास पूंजी का भी अभाव था तथा करो (Taxes) के बोझ से वे दबे थे। हुए

10. रासायनिक हथियारों एवं एजेंट ऑरेंज का वर्णन करें।

उत्तर - रासायनिक हथियारों में सबसे महत्वपूर्ण नापाम था जो गैसोलीन के साथ मिलकर एक ऐसा मिश्रण तैयार करता था जो अग्नि बमो में इस्तेमाल किया जाता था और त्वचा से चिपक कर जलता रहता था।

जबकि एजेंट ऑरेंज एक ऐसा जहर था जिससे पेड़ों की पत्तियां तुरंत झुलस जाती थी एवं पेड़ मर जाते थे। जंगलों को खत्म करने के लिए किसका प्रयोग किया जाता था। ऑरेंज पटियों वाले ड्रमों में रखे जाने के कारण इसका नाम एजेंट ऑरेंज पड़ा। वियतनाम युद्ध के समय जंगलों के साथ-साथ खेतों और आबादी दोनों पर इसका प्रयोग अमेरिका ने किया था।

11. चंपारण सत्याग्रह का संक्षिप्त विवरण दें।

उत्तर- चंपारण सत्याग्रह सन 1917 ईस्वी में महात्मा गांधी द्वारा नील की खेती के विरोध शुरू किया गया था। भारत में गांधीजी का यह पहला सत्याग्रह था, जिसके आगे अंग्रेजों को झुकना पड़ा। बिहार के चंपारण में नीलहो द्वारा किसानों से जबरदस्ती नील की खेती कराई जाती थी जिसके लिए तीन कठिया प्रणाली ( 3 / 20) भी अपनाई गई थी।

12. दांडी यात्रा का क्या उद्देश्य था?

उत्तर- दांडी यात्रा (12 मार्च 1930 से 6 अप्रैल 1930) महात्मा गांधी द्वारा शुरू किया गया था, जिसका उद्देश्य नमक कानून को भंग करना था। दांडी यात्रा के तहत गांधीजी ने साबरमती आश्रम से डांडी तक की यात्रा करके 24 दिनों में लगभग 372 किलोमीटर की दूरी तय की थी तथा दांडी पहुंचकर समुद्र के पानी से नमक बनाकर नमक कानून को भंग किया थे।

13. औधोगीकरण से आप क्या समझते हैं?

उत्तर- औधोगीकरण का तात्पर्य उत्पादन प्रक्रिया में बदलाव होता है। 18वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में उत्पादन प्रक्रिया में काफी परिवर्तन देखने को मिला उत्पादन मानव श्रम द्वारा हाथों से न होकर के मशीनों से भारी पैमाने पर होने लगा इसे ही औद्योगिकरण कहां गया। विश्व में सर्वप्रथम औद्योगिक क्रांति इंग्लैंड में शुरू हुई।

14. औद्योगिक क्रांति क्या है?

उत्तर- औद्योगिक क्रांति का अर्थ उत्पादन प्रक्रिया में बदलाव होता है। 18वीं शताब्दी में उत्पादन प्रक्रिया में एक बड़ा बदलाव देखने को मिला जहां उत्पादन मानव श्रम अथवा हाथों से न होकर मशीनों से भारी पैमाने पर होने लगा इसे ही औद्योगी क्रांति अथवा औद्योगिकरण कहा गया।

15. बहुराष्ट्रीय कंपनी क्या है?

उत्तर- कई देशों में एक ही साथ व्यापार करने वाले कंपनियों को बहुराष्ट्रीय कंपनी कहा जाता है। विश्व स्तर पर 1920 ईस्वी के बाद से इस तरह की कंपनियों का उत्कर्ष बढ़ा।

16. आर्थिक संकट से आप क्या समझते हैं?

उत्तर - अर्थतंत्र /अर्थव्यवस्था में आने वाली वैसी स्थिति जब उसके तीनों आधार कृषि, उद्योग और व्यापार का विकास अवरुद्ध (समाप्त) हो जाए। लाखों लोग बेरोजगार हो जाए, बैंकों और कंपनियों का दिवाला निकल जाए तथा वस्तु और मुद्रा दोनों की बाजार में कोई कीमत नहीं रहे, आर्थिक संकट कहलाता है।
 

दीर्घ उतरीय प्रश्न

1. इटली के एकीकरण में मोजिनी, काउंट कावूर और गैरीबाल्डी के योगदान को बतावे ?

उत्तर- 19 वीं शताब्दी में इटली में एक राजनैतिक, सामाजिक अभियान शुरू हुआ जिसमें इटालियन प्रायद्विपो के विभिन्न राज्यों को संगठित करके एक इटली राष्ट्र बना दिया गया जिसे इटली का एकीकरण कहा जाता है। इतालवी भाषा में इसे इल रिसोरजिमेंतो भी कहा जाता है।

इटली के एकीकरण की प्रक्रिया सन 1815 ईस्वी के बाद वियना सम्मेलन (कांग्रेस ऑफ़ वियना ) के बाद शुरू होकर सन् 1871 ईस्वी में रोम को इटली का राजधानी बनाने तक चला। इटली के एकीकरण में मेजिनी, काउंट कवूर तथा गैरीबाल्डी का अहम भूमिका रहा।
मोजिनी को इटली का जनक या दिल भी कहा जाता है। सन् 1831 ईस्वी में मोजिनी ने यंग इटली तथा 1834 ईस्वी में यंग यूरोप नामक संस्था की स्थापना की थी। एक समय इस संस्था में लगभग 60 हजार सदस्य थे। जिन्होंने इटली को संगठित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

काउंट कावूर पिडमांउट सार्डिनीया का सम्राट विक्टर इमैनुएल का चांसलर था। यह बहुत बुद्धिमान व्यक्ति था जिन्होंने अपनी बुद्धि एवं प्रतिभा के बदौलत इटली को संगठित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इन्हें इटली के एकीकरण का दिमाग कहा जाता है। इटली के एकीकरण में गैरीबाल्डी का भी काफी महत्वपूर्ण योगदान था । गैरीबाल्डी मेजिनी के विचारों से सहमत था तथा जनतंत्र का समर्थक था। इन्हें इटली के एकीकरण का तलवार भी कहा जाता है।

2. कार्ल मार्क्स की जीवनी एवं सिद्धांतों का वर्णन करें ?

उत्तर- कार्ल मार्क्स का जन्म 5 मई 1818 को जर्मनी में राइन प्रांत के ट्रीयर नगर में एक यहूदी परिवार में हुआ कार्ल मार्क्स के पिता हेनरिक मार्क्स एक प्रसिद्ध वकील थे जिन्होंने बाद में चलकर ईसाई धर्म ग्रहण कर लिया था। मार्क्स ने बॉन विश्वविद्यालय में विधि की शिक्षा ग्रहण की परंतु 1836 में बर्लिन विश्वविद्यालय चले गए जहां उनेक जीवन को एक नया मोड़ मिला। मार्क्स हीगेल के विचारों से प्रभावित था। 1843 में उसने बचपन की मित्र जेनी से विवाह किया। उसने राजनीतिक एवं सामाजिक पटल पर मोंटेश्क्यूं और रूसो के विचारों का गहन अध्ययन किया ।

कार्ल मार्क्स की मुलाकात पेरिस में 1844 ई. में फ्रेडरिक एंजेल्स से हुई जिससे जीवन भर उसकी गहरी मित्रता बनी रही। एंजेल्स के विचारों एवं रचनाओं से प्रभावित होकर मार्क्स ने भी श्रमिक वर्ग के कष्टों एवं उसकी कार्य की दशाओ पर गहरा विचार करना आरंभ कर दिया। मार्क्स ने एंजेल्स के साथ मिलकर 1848 ई. में साम्यवादी घोषणा पत्र प्रकाशित किया जिसे आधुनिक समाजवाद का जनक कहा जाता है। मार्क्स ने 1867 में दास कैपिटल नामक पुस्तक की रचना की जिसे समाजवादियों की बाइबिल कहा जाता है।

कार्ल मार्क्स ने पांच सिद्धांत दिए जो निम्नलिखित है-

(I) द्वंद्वात्मक भौतिकवाद का सिद्धांत
(II) वर्ग संघर्ष का सिद्धांत
(III) इतिहास की भौतिकवादी व्याख्या
(IV) मूल्य एवं अतिरिक्त मूल्य का सिद्धांत
(V) राज्यहीन व वर्ग विहीन समाज की स्थापना

3. हिंद - चीन उपनिवेश स्थापना का उद्देश्य क्या था?

उत्तर- हिंद-चीन उपनिवेश स्थापना के एक नहीं बल्कि कई उद्देश्य थे। फ्रांस द्वारा हिंद-चीन को अपना उपनिवेश बनाने का प्रारंभिक उद्देश्य डच एवं ब्रिटिश कंपनियों के व्यापारिक प्रतिद्वंद्विता का सामना करना था। भारत में फ्रांसिसी कमजोर पर रहे थे और चीन में उनकी व्यापारिक प्रतिस्पर्धा मुख्य रूप से इंग्लैंड से था। अतः सुरक्षात्मक आधार के रूप में उन्हें हिंद-चीन क्षेत्र उचित लगा, जहां खड़े होकर वे दोनों तरफ भारत एवं चीन को कठिन परिस्थितियों में संभाल सकते थे। दूसरे औद्योगिकीकरण के लिए कच्चे माल की आपूर्ति उपनिवेशों से होती थी एवं उत्पादित वस्तुओं के लिए बाजार भी उपलब्ध होता था। तीसरे पिछड़े समाजों को सभ्य बनाना विकसित यूरोपियों राज्यों का स्वघोषित दायित्व था।

इन सबके अतिरिक्त हिंद-चीन उपनिवेश स्थापना का एक कारण यह भी था कि फ्रांसीसीयों के साथ-साथ यूरोपियों का मानना था कि असभ्य और पिछड़े समाज को सभ्य बनाना उनकी जिम्मेदारी है। इस प्रकार उपरोक्त कथनों से यह स्पष्ट है कि हिंद-चीन उपनिवेश स्थापना का एक नहीं बल्कि कई उद्देश्य था।

4. हिंद - चीन में राष्ट्रवाद के विकास का वर्णन करें।

उत्तर- हिंद-चीन में आज के वियतनाम, लाओस और कंबोडिया के क्षेत्र आते हैं। इन क्षेत्रों पर एक समय फ्रांसिसियो का आधिपत्य था। फ्रांसीसी शोषण के साथ-साथ कई तरह के सकारात्मक कार्य भी करते थे। परंतु जब फ्रांसीसी ने हिंद चीन के किसानों एवं मजदूरों का अत्यंत शोषण करना शुरू किया तब हिन्द- चीन के लोगों में जागृति की भावना आई और राष्ट्रवाद का विकास हुआ।

हिंद चीन में फ्रांसीसी उपनिवेशवाद को समय-समय पर विद्रोह का सामना तो प्रारंभिक दिनों से ही करना पड़ रहा था परंतु बीसवीं शताब्दी के शुरू में यह और मुखर होने लगा । अब छोटे-छोटे मामलों में भी लोग अपना असंतोष प्रकट करने लगे उसी परिपेक्ष में 1903 ईस्वी में फान बोई चाउ ने दुइ तान होई नामक एक क्रांतिकारी संगठन की स्थापना की जिसके नेता कुआंग दे थे। फान बोई चाऊ ने द हिस्ट्री ऑफ द लॉस ऑफ वियतनाम लिखकर हलचल पैदा कर दी।

1905 ई. में जब छोटे से एशियाई देश जापान द्वारा रूस को पराजित किया गया तो इससे हिंद चीनियों को प्रेरणा मिली। इस प्रकार उपरोक्त कथनों से यह स्पष्ट है कि हिंद-चीन में राष्ट्रवाद के विकास का एक नहीं बल्कि अनेक कारण था।

5. असहयोग आंदोलन के कारण एवं परिणाम का वर्णन करें।

उत्तर- असहयोग आंदोलन महात्मा गांधी के नेतृत्व में प्रारंभ किया गया प्रथम जन आंदोलन था जो 1920-22 तक चला। इसके मुख्य तीन कारण थे-

(I) खिलाफत का मुद्दा
(II) पंजाब में सरकार की बराबर कारवाइयो के विरुद्ध न्याय प्राप्त करना।
(III) स्वराज की प्राप्ति करना- इस आंदोलन में दो तरह के

कार्यक्रमों को अपनाया गया। प्रथम अंग्रेजी सरकार को कमजोर करने एवं नैतिक रूप से पराजित करने के लिए विध्वंसात्मक कार्य किया गया, जिसके तहत पद छोड़ना और उपाधियों को लौटाना था। दूसरे कार्यक्रम के अंतर्गत रचनात्मक कार्यों को किया गया। इसके तहत न्यायालय की स्थापना पर पंचो का फैसला मानना, राष्ट्रीय विद्यालय एवं कॉलेज की स्थापना, स्वदेशी को अपनाना इत्यादि शामिल किया गया था।

असहयोग आंदोलन अपने समय का सबसे बड़ा जन आंदोलन था। जो काफी तेजी से संपूर्ण देश में फैल रहा था। 5 फरवरी 1922 की चौरी-चौरा की घटना के कारण महात्मा गांधी ने 12 फरवरी 1922 को असहयोग आंदोलन वापस लेने का घोषणा किया। इस घटना के लिए अंग्रेजी सरकार ने पूर्ण रूप से महात्मा गांधी को जिम्मेदार ठहराया तथा उन को 6 साल की सजा सुनाई गई। इस प्रकार असहयोग आंदोलन भी समाप्त हो गया।

6. सविनय अवज्ञा आंदोलन के कारणों की विवेचना करें।

उत्तर- सविनय अवज्ञा आंदोलन महात्मा गांधी द्वारा सन् 1930 ईस्वी में शुरू किया गया था। इस आंदोलन की शुरुआत महात्मा गांधी ने दांडी यात्रा ( 12 मार्च 1930-6 अप्रैल 1930 तक) से शुरू किया था। इस आंदोलन के कई कारण थे। जिनमें से कुछ प्रमुख निम्नलिखित है-

(I) साइमन कमीशन- सन् 1919 ईस्वी को एक एक्ट पारित करते हुए ब्रिटिश सरकार ने यह घोषणा किया था कि 10 वर्षों के पश्चात पुनः इन सुधारों की समीक्षा होगी। परंतु समय से पहले ही नवंबर 1927 में ब्रिटिश सरकार ने साइमन कमीशन की नियुक्ति कर दी, जो 1928 में भारत आया । साइमन कमीशन के सभी सदस्य अंग्रेज थे। इस कारण पूरे भारत में इसका विरोध किया गया। यह आगे चलकर सविनय अवज्ञा आंदोलन का कारण बना।

(II) नेहरू रिपोर्ट - तत्कालीन भारत सचिव लॉर्ड हैंड ने व्यंगय कसा की भारतीयों को आजादी तो चाहिए, परंतु ये लोग अपने लिए ऐसे संविधान का निर्माण नहीं कर सकते हैं, जो सभी लोगों को मान्य हो। इस घटना को मोतीलाल नेहरू ने चुनौती के रूप में लिया और समय के पूर्व संविधान तैयार कर प्रस्तुत किया जिसे नेहरू रिपोर्ट के नाम से जाना जाता है।

(III) विश्वव्यापी आर्थिक मंदी - सन 1929-30 की विश्वव्यापी आर्थिक मंदी का असर भारत की अर्थव्यवस्था पर बहुत बुरा पड़ा। मूल्यों में बेतहाशा वृद्धि हुई। भारत का निर्यात कम हो गया लेकिन अंग्रेजों ने भारत से धन का निष्कासन बंद नहीं किया। इससे भारतीयों में अंग्रेजों के प्रति गुस्से का माहौल बना जिससे गांधी जी को शांतिपूर्ण ढंग से सविनय अवज्ञा आंदोलन चलाना पड़ा।

इस प्रकार उपरोक्त कथनों से स्पष्ट है कि सन् 1930 ईस्वी का सविनय अवज्ञा आंदोलन के एक नहीं बल्कि कई कारण थे। साम्राज्यवाद का बढ़ता प्रभाव, क्रांतिकारी आंदोलनो का उभार, पूर्ण स्वराज्य की मांग तथा गांधीजी का समझौतावादी रुख सविनय अवज्ञा आंदोलन के कारणों में शामिल था।

7. भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में गांधीजी के योगदान की विवेचना करें।

उत्तर- भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में महात्मा गांधी जी का योगदान अतुलनीय है। उन्होंने अपने जीवन में सत्य, अहिंसा और सच्चाई के रास्ते पर चलकर एक ऐसा आंदोलन खड़ा कर दिया जिसके आगे अंग्रेज भाग खड़े हुए। आज उन्हीं के प्रयासों से हम स्वतंत्र जीवन जी रहे हैं। महात्मा गांधी ने अपना संपूर्ण जीवन भारत एवं भारत वासियों के लिए न्योछावर कर दिया। राष्ट्रीय आन्दोलन में उनकी भूमिका अत्यंत सशक्त एवं महत्वपूर्ण रही। गांधी जी को हर विचारधारा व हर वर्ग की आलोचना मिलने के बावजूद उन्होंने जननायक बन राष्ट्रीय आंदोलन को जन-जन तक पहुंचाया और महात्मा बन कर उभरे।

भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में गांधीजी का काफी महत्वपूर्ण योगदान रहा। चंपारण सत्याग्रह (1917) से लेकर 1918 के अहमदाबाद मिल मजदूर आंदोलन, 1920 ई. के असहयोग आंदोलन से लेकर सन् 1930 ईस्वी के सविनय अवज्ञा आंदोलन तक, 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन से लेकर देश को आजादी दिलाने तक में गांधीजी का काफी महत्वपूर्ण योगदान रहा।

इस प्रकार स्पष्ट है कि महात्मा गांधी जी के नाम से मशहूर मोहनदास करमचंद गांधी भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन की एक प्रमुख राजनैतिक नेता थे। सत्याग्रह और अहिंसा के सिद्धांतों पर चलकर उन्होंने भारत को आजादी दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनके इन सिद्धांतों ने पूरी दुनिया में लोगों को नागरिक अधिकारों एवं स्वतंत्रता आंदोलन के लिए प्रेरित किया।

8. असहयोग आंदोलन प्रथम जन आंदोलन था। कैसे?

उत्तर- रौलट एक्ट (काला कानून) एवं जलियांवाला बाग नरसंहार के बाद महात्मा गांधी ने 1920 में कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में असहयोग आंदोलन चलाने का प्रस्ताव पारित किया।

असहयोग आंदोलन में महात्मा गांधी ने आम लोगों से अपील किया की वे आन्दोलन में भारी संख्या में हिस्सा लें। गांधी जी के आह्वान पर लोग सरकारी पदों का बहिष्कार करने लगे। विद्यार्थी स्कूल, कॉलेज छोड़ने लगा तथा शिक्षक अंग्रेजी सरकार के शिक्षण संस्थानों में जाना बंद कर दिये। इस आंदोलन में विदेशी वस्तुओं का भी बहिष्कार किया गया। यह पहला आंदोलन था जिसमें आम लोग इतनी भारी संख्या में भाग लिया। अतः या कहना गलत नहीं होगा कि असहयोग आंदोलन प्रथम जन आंदोलन था।

9. भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में वामपंथियों की भूमिका को रेखांकित करें।

उत्तर- वामपंथी शब्द का प्रथम प्रयोग फ्रांसीसी क्रांति में हुआ था। बीसवीं शताब्दी के प्रारंभ से ही भारत में साम्यवादी और समाजवादी विचारधाराएं फैलने लगी। इन विचारों से जुड़े लोगों में श्रीपद अमृत डांगे, मुजफ्फर अहमद, गुलाम हुसैन, मौलवी बरकतउल्ला प्रमुख थे। इन्होंने अपने पत्रों के द्वारा साम्यवादी विचारों का प्रसार किया। असहयोग आंदोलन के समय भी पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से ये लोग अपने विचारों का प्रसार करते रहे। इन लोगों ने उग्रवादी राष्ट्रवादी आंदोलनों से भी अपना संबंध स्थापित किया। यही कारण था
की असहयोग आंदोलन के बाद सरकार ने इन लोगों का दमन करना शुरू किया।

दिसम्बर 1925 में सत्यभक्त ने भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना की। मजदूर संघों के गठन के बाद 1920 में ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस की स्थापना की गई। इस तरह वामपंथ का प्रभाव मजदूर संघों पर बढ़ने लगा। इन सब में जवाहरलाल नेहरू, नरेंद्र देव, जयप्रकाश नारायण, इत्यादि लोगों का महत्वपूर्ण योगदान था। इस प्रकार स्पष्ट है कि भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में वामपंथियों की काफी महत्वपूर्ण भूमिका थी ।

10. राष्ट्रीय आंदोलन को भारतीय प्रेस ने कैसे प्रभावित किया?

उत्तर- राष्ट्रीय आंदोलन को भारतीय प्रेस द्वारा अनेक तरीकों से बल प्रदान किया गया। राष्ट्रीय आंदोलन को उग्र रूप देने में भारतीय प्रेस ने अहम भूमिका अदा की। प्रेस के अविष्कार के बाद ही भारतीय राष्ट्रवादी और क्रांतिकारियों के भाषणों, उनके विचारों तथा महत्वपूर्ण राष्ट्रीय मुद्दों को आम लोगों तक पहुंचाने में काफी मदद मिला। देश के ज्वलंत मुद्दों को प्रेस के द्वारा ही जनता तक पहुंचाया गया और बुद्धिजीवियों के विचारों को क्रांतिकारी नव युवकों के समक्ष प्रस्तुत किया गया जिससे राष्ट्रीय आंदोलन को गति मिला।

प्रेस में छपे लेखों को पढ़कर लोगों के दिल में राष्ट्रवादी विचारों का प्रसार हुआ और भारतीय भारत को अंग्रेजों की गुलामी की जंजीरों से मुक्त कराने के लिए अपना हर संभव प्रयास करने लगे। यूं कहें कि राष्ट्रवादी आंदोलन को भारतीय प्रेस द्वारा एक बेहतर प्लेटफार्म देने का कार्य किया गया तो यह बिल्कुल भी गलत नहीं होगा। इसलिए कहा जाता है कि राष्ट्रीय आंदोलन को भारतीय प्रेस ने सजग और निर्णायक दृष्टि से प्रभावित किया।

 

 

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