Self Studies

Hindi Mock Test - 3

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Hindi Mock Test - 3
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Self Studies Self Studies
Weekly Quiz Competition
  • Question 1
    5 / -1

    Directions For Questions

    आज की दुनिया के संदर्भ में दो बातों का ध्यान रखना आवश्यक है- हम एक ऐसी दुनिया में रह रहे हैं, जहाँ परफेक्शन का बोलबाला है। इसमें से प्रत्येक किसी-न-किसी के प्रति किसी हद तक जवाबदेह है। ऐसे परिदृश्य में सबसे कठिन हो जाता है अपनी आलोचना को स्वीकार कर पाना। हालाँकि यह भी सच है कि कैसी भी आलोचना स्वीकारना मुश्किल ही होता है, भले ही वह हमारी भलाई के लिए ही क्यों न हो। आलोचना एक दोधारी तलवार की तरह होती है। एक ओर आप इसके आधार पर अपने झूठे अहं को दरकिनार कर गहरी समझ विकसित कर सकते हैं, तो एक ओर आलोचना को दिल पर लेकर संबंधित शख्स से अपने संबंध बिगाड़ सकते हैं। कह सकते हैं कि यह व्यक्ति विशेष पर निर्भर करता है कि वह आलोचना को किस तरह लेता है। उससे अपना विकास करता है या झूठे अहं में पड़ अपने को ही सही मानता रहता है। भले ही आलोचना कितनी ही चोट क्यों न पहुँचाए, लेकिन दूसरे को पूरे ध्यान व गंभीरता के साथ सुनें। आलोचना रूपी सलाह को सिरे से खारिज़ करने से बेहतर होगा कि जो सही हो, उसे आत्मसात् करें। उसे स्वीकार कर स्वयं का विकास करें। इस क्रम में अपनी निर्णायक क्षमता का बेहतर प्रयोग कर वही बातें स्वीकार करें, जो आप पर लागू होती हैं। ऐसा न हो कि आलोचना का वह हिस्सा भी मान लें, जो आप पर लागू ही न होता हो।

    भले ही आप कितने ही सफ़ल क्यों न हो जाएँ, लेकिन यह ध्यान रखें कि सुधार की संभावना हमेशा रहती है। इसे मान लेने से सकारात्मक आलोचना अपने हित में लेने की आदत हो जाती है। इसके लिए दिमाग हमेशा खुला रखने की आवश्यकता है। किसी ने कोई बात की, जो आलोचना है, तो तुरंत ही किसी निर्णय पर पहुँचने के बजाय उस बात पर गंभीरता से मनन करें। ईमानदारी से विचार करें कि कही गई बात में कहीं भी कोई रत्तीभर भी सच्चाई है। आलोचनात्मक टिप्पणी की सारगर्भिता का सही आकलन परिपक्वता और विकास की दिशा में उठा पहला कदम होता है। बात भले आचार-व्यवहार, जीवन-शैली में बदलाव की हो या फिर कार्यशैली में परिवर्तन की। हमें हमेशा जागरूक रहना होगा कि हम कैसे इन क्षेत्रों में अपनी शक्ति बढ़ा सकते हैं। आलोचना दो तरह की होती है। एक का मकसद आपकी कमियों को सामने लाकर उसे दूर करना होता है, जबकि एक महज ईर्ष्यावश या पूर्वाग्रह से ग्रसित होती है। आवश्यकता इसके अंतर को समझने की है। कमियों को इंगित करती यानी सकारात्मक आलोचना को अंगीकार करने की आवश्यकता है, जबकि नकारात्मक आलोचना और उसे करने वाले से दूरी बनाने में ही भलाई निहित है।

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    “आलोचना एक दोधारी तलवार की तरह होती है"- पंक्ति से क्या आशय है?
    Solution

    आलोचना एक दोधारी तलवार की तरह होती है"- पंक्ति का आशय है-(i) और (ii) दोनों आशय है।

    • “आलोचना दोधारी तलवार की तरह होती है”, पंक्ति का आशय यह है कि इसके माध्यम से एक ओर तो व्यक्ति अपने अहं को दरकिनार कर गहरी समझ विकसित कर सकते हैं।
    • साथ ही दूसरी ओर आलोचना को दिल पर ले, उस व्यक्ति से अपने संबंध बिगाड़ सकते हैं।
    • आलोचना के संबंध में लेखक का सुझाव यह है कि आलोचना रूपी सलाह को सिरे से खारिज़ करने से अच्छा यह होगा कि हम उसे आत्मसात् कर स्वयं का विकास करें। 

    Additional Information

    1. आलोचना के माध्यम से व्यक्ति अपने अहंकार को दूर कर गहरी समझ विकसित कर सकता है-हम की गयी ही आलोचना को सकरात्मक सोच में बदल कर आगे बढ़ सकते है। 
    2. आलोचना को दिल पर लेकर संबंधित व्यक्ति से अपने कि संबंध बिगाड़ सकता है-कभी कभी ऐसा होता है की कोई आलोचना हमको सुधरने के लिए बोलै हो ,पर वो बात हम सका रात्मक सोच में न जोड़ कर दिल में लगा लेते है और वो बात हमको बुरी लग जाती है। 
    3. आलोचना के द्वारा व्यक्ति अपना सर्वस्व अस्तित्व समाप्त कर लेता है - जो इंसान की गयी हुई आलोचना को दिल से लगा लेते है एवं बुरा मान जाते है उनका अस्तित्व समाप्त हो जाता है। 
  • Question 2
    5 / -1

    Directions For Questions

    आज की दुनिया के संदर्भ में दो बातों का ध्यान रखना आवश्यक है- हम एक ऐसी दुनिया में रह रहे हैं, जहाँ परफेक्शन का बोलबाला है। इसमें से प्रत्येक किसी-न-किसी के प्रति किसी हद तक जवाबदेह है। ऐसे परिदृश्य में सबसे कठिन हो जाता है अपनी आलोचना को स्वीकार कर पाना। हालाँकि यह भी सच है कि कैसी भी आलोचना स्वीकारना मुश्किल ही होता है, भले ही वह हमारी भलाई के लिए ही क्यों न हो। आलोचना एक दोधारी तलवार की तरह होती है। एक ओर आप इसके आधार पर अपने झूठे अहं को दरकिनार कर गहरी समझ विकसित कर सकते हैं, तो एक ओर आलोचना को दिल पर लेकर संबंधित शख्स से अपने संबंध बिगाड़ सकते हैं। कह सकते हैं कि यह व्यक्ति विशेष पर निर्भर करता है कि वह आलोचना को किस तरह लेता है। उससे अपना विकास करता है या झूठे अहं में पड़ अपने को ही सही मानता रहता है। भले ही आलोचना कितनी ही चोट क्यों न पहुँचाए, लेकिन दूसरे को पूरे ध्यान व गंभीरता के साथ सुनें। आलोचना रूपी सलाह को सिरे से खारिज़ करने से बेहतर होगा कि जो सही हो, उसे आत्मसात् करें। उसे स्वीकार कर स्वयं का विकास करें। इस क्रम में अपनी निर्णायक क्षमता का बेहतर प्रयोग कर वही बातें स्वीकार करें, जो आप पर लागू होती हैं। ऐसा न हो कि आलोचना का वह हिस्सा भी मान लें, जो आप पर लागू ही न होता हो।

    भले ही आप कितने ही सफ़ल क्यों न हो जाएँ, लेकिन यह ध्यान रखें कि सुधार की संभावना हमेशा रहती है। इसे मान लेने से सकारात्मक आलोचना अपने हित में लेने की आदत हो जाती है। इसके लिए दिमाग हमेशा खुला रखने की आवश्यकता है। किसी ने कोई बात की, जो आलोचना है, तो तुरंत ही किसी निर्णय पर पहुँचने के बजाय उस बात पर गंभीरता से मनन करें। ईमानदारी से विचार करें कि कही गई बात में कहीं भी कोई रत्तीभर भी सच्चाई है। आलोचनात्मक टिप्पणी की सारगर्भिता का सही आकलन परिपक्वता और विकास की दिशा में उठा पहला कदम होता है। बात भले आचार-व्यवहार, जीवन-शैली में बदलाव की हो या फिर कार्यशैली में परिवर्तन की। हमें हमेशा जागरूक रहना होगा कि हम कैसे इन क्षेत्रों में अपनी शक्ति बढ़ा सकते हैं। आलोचना दो तरह की होती है। एक का मकसद आपकी कमियों को सामने लाकर उसे दूर करना होता है, जबकि एक महज ईर्ष्यावश या पूर्वाग्रह से ग्रसित होती है। आवश्यकता इसके अंतर को समझने की है। कमियों को इंगित करती यानी सकारात्मक आलोचना को अंगीकार करने की आवश्यकता है, जबकि नकारात्मक आलोचना और उसे करने वाले से दूरी बनाने में ही भलाई निहित है।

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    अपने झूठे अहंकार को एक ओर रखकर गहरी समझ किसके माध्यम से विकसित कर सकते हैं?
    Solution

    अपने झूठे अहंकार को एक ओर रखकर गहरी समझ 'आलोचना के'  माध्यम से विकसित कर सकते हैं।

    • गद्यांश में ‘आलोचना के महत्त्व पर प्रकाश डाला गया है तथा यह बताने का प्रयास किया गया है कि इसके माध्यम से हम अपने झूठे अहं को दरकिनार कर अपने चरित्र का विकास कर सकते हैं।
    • तथा अपनी कमियों को दूर कर अपने व्यक्तित्व में निखार ला सकते हैं।
    • अतः गद्यांश के केंद्र में यही भाव निहित है। 

    Additional Information विशेष 

    • परिभाषा - जो सामान्य न हो
    • वाक्य में प्रयोग - अपने दोस्त की कोई विशेष बात बताओ।
    • समानार्थी शब्द - असाधारण , ग़ैरमामूली , असामान्य
    • विलोम शब्द - सामान्य

    परफेक्शन 

    • अर्थ -
    • निपुणता
    • उदाहरण : निपुणता महत्व बढा देती है।
    • परिभाषा - किसी बात या कार्य के गुण दोष आदि के संबंध में प्रकट किया जाने वाला विचार
    • वाक्य में प्रयोग - वे आलोचना सुनकर भी अप्रभावित रहे।
    • समानार्थी शब्द - टीका-टिप्पणी , आलोचन , खिंचाई
    • लिंग - स्त्रीलिंग

    आलोचना 

    • परिभाषा - किसी बात या कार्य के गुण दोष आदि के संबंध में प्रकट किया जाने वाला विचार
    • वाक्य में प्रयोग - वे आलोचना सुनकर भी अप्रभावित रहे।
    • समानार्थी शब्द - टीका-टिप्पणी , आलोचन , खिंचाई

    ध्यान

    • परिभाषा - अंतःकरण या मन की वह वृति या शक्ति जो उसे किसी चीज या बात का बोध कराती, उसमें कोई धारणा उत्पन्न करती अथवा कोई स्मृति जाग्रत करती है
      वाक्य में प्रयोग - मैंने उन्हें एक बार देखा तो है पर उनकी आकृति अभी ध्यान में नहीं आ रही है।
  • Question 3
    5 / -1

    Directions For Questions

    आज की दुनिया के संदर्भ में दो बातों का ध्यान रखना आवश्यक है- हम एक ऐसी दुनिया में रह रहे हैं, जहाँ परफेक्शन का बोलबाला है। इसमें से प्रत्येक किसी-न-किसी के प्रति किसी हद तक जवाबदेह है। ऐसे परिदृश्य में सबसे कठिन हो जाता है अपनी आलोचना को स्वीकार कर पाना। हालाँकि यह भी सच है कि कैसी भी आलोचना स्वीकारना मुश्किल ही होता है, भले ही वह हमारी भलाई के लिए ही क्यों न हो। आलोचना एक दोधारी तलवार की तरह होती है। एक ओर आप इसके आधार पर अपने झूठे अहं को दरकिनार कर गहरी समझ विकसित कर सकते हैं, तो एक ओर आलोचना को दिल पर लेकर संबंधित शख्स से अपने संबंध बिगाड़ सकते हैं। कह सकते हैं कि यह व्यक्ति विशेष पर निर्भर करता है कि वह आलोचना को किस तरह लेता है। उससे अपना विकास करता है या झूठे अहं में पड़ अपने को ही सही मानता रहता है। भले ही आलोचना कितनी ही चोट क्यों न पहुँचाए, लेकिन दूसरे को पूरे ध्यान व गंभीरता के साथ सुनें। आलोचना रूपी सलाह को सिरे से खारिज़ करने से बेहतर होगा कि जो सही हो, उसे आत्मसात् करें। उसे स्वीकार कर स्वयं का विकास करें। इस क्रम में अपनी निर्णायक क्षमता का बेहतर प्रयोग कर वही बातें स्वीकार करें, जो आप पर लागू होती हैं। ऐसा न हो कि आलोचना का वह हिस्सा भी मान लें, जो आप पर लागू ही न होता हो।

    भले ही आप कितने ही सफ़ल क्यों न हो जाएँ, लेकिन यह ध्यान रखें कि सुधार की संभावना हमेशा रहती है। इसे मान लेने से सकारात्मक आलोचना अपने हित में लेने की आदत हो जाती है। इसके लिए दिमाग हमेशा खुला रखने की आवश्यकता है। किसी ने कोई बात की, जो आलोचना है, तो तुरंत ही किसी निर्णय पर पहुँचने के बजाय उस बात पर गंभीरता से मनन करें। ईमानदारी से विचार करें कि कही गई बात में कहीं भी कोई रत्तीभर भी सच्चाई है। आलोचनात्मक टिप्पणी की सारगर्भिता का सही आकलन परिपक्वता और विकास की दिशा में उठा पहला कदम होता है। बात भले आचार-व्यवहार, जीवन-शैली में बदलाव की हो या फिर कार्यशैली में परिवर्तन की। हमें हमेशा जागरूक रहना होगा कि हम कैसे इन क्षेत्रों में अपनी शक्ति बढ़ा सकते हैं। आलोचना दो तरह की होती है। एक का मकसद आपकी कमियों को सामने लाकर उसे दूर करना होता है, जबकि एक महज ईर्ष्यावश या पूर्वाग्रह से ग्रसित होती है। आवश्यकता इसके अंतर को समझने की है। कमियों को इंगित करती यानी सकारात्मक आलोचना को अंगीकार करने की आवश्यकता है, जबकि नकारात्मक आलोचना और उसे करने वाले से दूरी बनाने में ही भलाई निहित है।

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    आलोचना को आत्मसात् करके क्या किया जा सकता है?
    Solution

    आलोचना को आत्मसात् करके 'स्वयं का विकास' किया जा सकता है। 

    • आलोचना को स्वीकारना मुश्किल इसलिए होता है, क्योंकि वर्तमान समय में आलोचना को बुराई का पर्याय माना जाता है।
    • जबकि यह सर्वथा गलत है, क्योंकि आलोचना से व्यक्ति के जीवन में सुधार आता है।
    • इसके माध्यम से व्यक्ति अपनी कमियों को दूर करता है। 

    Additional Information बुराई

    • परिभाषा - वह गुण जो बुरा हो
    • वाक्य में प्रयोग - बुराई से बचना चाहिए।
    • बहुवचन - बुराइयाँ
    • समानार्थी शब्द - खोट , विकार , दुर्गुण , अवगुण
    • विलोम शब्द - सद्गुण

     निंदा

    • परिभाषा - किसी की वास्तविक या कल्पित बुराई या दोष बतलाने की क्रिया
    • वाक्य में प्रयोग - हमें किसी की बुराई नहीँ करनी चाहिए।
    • समानार्थी शब्द - बुराई

    विकास

    • परिभाषा - पहले की अवस्था से अच्छी या ऊँची अवस्था की ओर बढ़ने या बढ़ाने की क्रिया
    • वाक्य में प्रयोग - हमें अपने देश के विकास के लिए काम करना चाहिए।
    • समानार्थी शब्द - तरक्की , उन्नति , उत्थान
    • विलोम शब्द - पतन
    • लिंग - पुल्लिंग

     खराब

    • परिभाषा - अच्छा का उल्टा या विपरीत
    • वाक्य में प्रयोग - बुरे लोगों की संगति अच्छी नहीं होती।
    • समानार्थी शब्द - बुरा , अनुचित , घटिया
    • विलोम शब्द - बढ़िया , अच्छा
  • Question 4
    5 / -1

    Directions For Questions

    आज की दुनिया के संदर्भ में दो बातों का ध्यान रखना आवश्यक है- हम एक ऐसी दुनिया में रह रहे हैं, जहाँ परफेक्शन का बोलबाला है। इसमें से प्रत्येक किसी-न-किसी के प्रति किसी हद तक जवाबदेह है। ऐसे परिदृश्य में सबसे कठिन हो जाता है अपनी आलोचना को स्वीकार कर पाना। हालाँकि यह भी सच है कि कैसी भी आलोचना स्वीकारना मुश्किल ही होता है, भले ही वह हमारी भलाई के लिए ही क्यों न हो। आलोचना एक दोधारी तलवार की तरह होती है। एक ओर आप इसके आधार पर अपने झूठे अहं को दरकिनार कर गहरी समझ विकसित कर सकते हैं, तो एक ओर आलोचना को दिल पर लेकर संबंधित शख्स से अपने संबंध बिगाड़ सकते हैं। कह सकते हैं कि यह व्यक्ति विशेष पर निर्भर करता है कि वह आलोचना को किस तरह लेता है। उससे अपना विकास करता है या झूठे अहं में पड़ अपने को ही सही मानता रहता है। भले ही आलोचना कितनी ही चोट क्यों न पहुँचाए, लेकिन दूसरे को पूरे ध्यान व गंभीरता के साथ सुनें। आलोचना रूपी सलाह को सिरे से खारिज़ करने से बेहतर होगा कि जो सही हो, उसे आत्मसात् करें। उसे स्वीकार कर स्वयं का विकास करें। इस क्रम में अपनी निर्णायक क्षमता का बेहतर प्रयोग कर वही बातें स्वीकार करें, जो आप पर लागू होती हैं। ऐसा न हो कि आलोचना का वह हिस्सा भी मान लें, जो आप पर लागू ही न होता हो।

    भले ही आप कितने ही सफ़ल क्यों न हो जाएँ, लेकिन यह ध्यान रखें कि सुधार की संभावना हमेशा रहती है। इसे मान लेने से सकारात्मक आलोचना अपने हित में लेने की आदत हो जाती है। इसके लिए दिमाग हमेशा खुला रखने की आवश्यकता है। किसी ने कोई बात की, जो आलोचना है, तो तुरंत ही किसी निर्णय पर पहुँचने के बजाय उस बात पर गंभीरता से मनन करें। ईमानदारी से विचार करें कि कही गई बात में कहीं भी कोई रत्तीभर भी सच्चाई है। आलोचनात्मक टिप्पणी की सारगर्भिता का सही आकलन परिपक्वता और विकास की दिशा में उठा पहला कदम होता है। बात भले आचार-व्यवहार, जीवन-शैली में बदलाव की हो या फिर कार्यशैली में परिवर्तन की। हमें हमेशा जागरूक रहना होगा कि हम कैसे इन क्षेत्रों में अपनी शक्ति बढ़ा सकते हैं। आलोचना दो तरह की होती है। एक का मकसद आपकी कमियों को सामने लाकर उसे दूर करना होता है, जबकि एक महज ईर्ष्यावश या पूर्वाग्रह से ग्रसित होती है। आवश्यकता इसके अंतर को समझने की है। कमियों को इंगित करती यानी सकारात्मक आलोचना को अंगीकार करने की आवश्यकता है, जबकि नकारात्मक आलोचना और उसे करने वाले से दूरी बनाने में ही भलाई निहित है।

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    अपनी निर्णायक क्षमता का बेहतर प्रयोग करके आलोचना में से किसे स्वीकार करना चाहिए?
    Solution

    अपनी निर्णायक क्षमता का बेहतर प्रयोग करके आलोचना में से वे बातें जो स्वयं पर लागू होती  हो उसे स्वीकार करना चाहिए।

    • लोग आलोचना व्यक्ति में सुधार लाने के उद्देश्य से करते हैं
    • किंतु कई बार ईर्ष्या भाव से ग्रसित होने के कारण भी लोग आलोचना करने में आत्मगौरव महसूस करते हैं।
    • आलोचना को दिल पर ले लेने से व्यक्तियों के आपसी संबंध बिगड़ जाते हैं।  

    Additional Information

    • वे बातें जो स्वयं पर लागू होती हो - जो चीज़े सिर्फ हम पर खुद पर बोली गयी है या सिर्फ खुद के लिए हो ना कि दूसरे के लिए। 
    • वे बातें जो दूसरों पर लागू हो - जो बातें हमारे लिए न हो पर हमारे अलावा औरो के लिए हो। 
    • वे बातें जो पीड़ा पहुँचाएँ - जिस बातो से दुःख हो दर्द हो या बुरा लगे। 
    • वे बातें जो दूसरों के हित में हो - वे बातें जो दूसरे की भलाई के बारे में हो। 
  • Question 5
    5 / -1

    Directions For Questions

    आज की दुनिया के संदर्भ में दो बातों का ध्यान रखना आवश्यक है- हम एक ऐसी दुनिया में रह रहे हैं, जहाँ परफेक्शन का बोलबाला है। इसमें से प्रत्येक किसी-न-किसी के प्रति किसी हद तक जवाबदेह है। ऐसे परिदृश्य में सबसे कठिन हो जाता है अपनी आलोचना को स्वीकार कर पाना। हालाँकि यह भी सच है कि कैसी भी आलोचना स्वीकारना मुश्किल ही होता है, भले ही वह हमारी भलाई के लिए ही क्यों न हो। आलोचना एक दोधारी तलवार की तरह होती है। एक ओर आप इसके आधार पर अपने झूठे अहं को दरकिनार कर गहरी समझ विकसित कर सकते हैं, तो एक ओर आलोचना को दिल पर लेकर संबंधित शख्स से अपने संबंध बिगाड़ सकते हैं। कह सकते हैं कि यह व्यक्ति विशेष पर निर्भर करता है कि वह आलोचना को किस तरह लेता है। उससे अपना विकास करता है या झूठे अहं में पड़ अपने को ही सही मानता रहता है। भले ही आलोचना कितनी ही चोट क्यों न पहुँचाए, लेकिन दूसरे को पूरे ध्यान व गंभीरता के साथ सुनें। आलोचना रूपी सलाह को सिरे से खारिज़ करने से बेहतर होगा कि जो सही हो, उसे आत्मसात् करें। उसे स्वीकार कर स्वयं का विकास करें। इस क्रम में अपनी निर्णायक क्षमता का बेहतर प्रयोग कर वही बातें स्वीकार करें, जो आप पर लागू होती हैं। ऐसा न हो कि आलोचना का वह हिस्सा भी मान लें, जो आप पर लागू ही न होता हो।

    भले ही आप कितने ही सफ़ल क्यों न हो जाएँ, लेकिन यह ध्यान रखें कि सुधार की संभावना हमेशा रहती है। इसे मान लेने से सकारात्मक आलोचना अपने हित में लेने की आदत हो जाती है। इसके लिए दिमाग हमेशा खुला रखने की आवश्यकता है। किसी ने कोई बात की, जो आलोचना है, तो तुरंत ही किसी निर्णय पर पहुँचने के बजाय उस बात पर गंभीरता से मनन करें। ईमानदारी से विचार करें कि कही गई बात में कहीं भी कोई रत्तीभर भी सच्चाई है। आलोचनात्मक टिप्पणी की सारगर्भिता का सही आकलन परिपक्वता और विकास की दिशा में उठा पहला कदम होता है। बात भले आचार-व्यवहार, जीवन-शैली में बदलाव की हो या फिर कार्यशैली में परिवर्तन की। हमें हमेशा जागरूक रहना होगा कि हम कैसे इन क्षेत्रों में अपनी शक्ति बढ़ा सकते हैं। आलोचना दो तरह की होती है। एक का मकसद आपकी कमियों को सामने लाकर उसे दूर करना होता है, जबकि एक महज ईर्ष्यावश या पूर्वाग्रह से ग्रसित होती है। आवश्यकता इसके अंतर को समझने की है। कमियों को इंगित करती यानी सकारात्मक आलोचना को अंगीकार करने की आवश्यकता है, जबकि नकारात्मक आलोचना और उसे करने वाले से दूरी बनाने में ही भलाई निहित है।

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    किस बात को मान लेने से सकारात्मक आलोचना अपने हित में लेने की आदत हो जाती है?
    Solution

    'सुधार की संभावना हमेशा रहती है' इस  बात को मान लेने से सकारात्मक आलोचना अपने हित में लेने की आदत हो जाती है

    • गद्यांश में स्पष्ट किया गया है कि आज की दुनिया के संदर्भ में यह ध्यान रखना आवश्यक है कि हम एक ऐसी दुनिया में रह रहे हैं, जहाँ परफेक्शन का बोलबाला है।
    • इसके साथ ही प्रत्येक व्यक्ति किसी-न-किसी के प्रति किसी हद तक ज़वाबदेह होता है।
    • आलोचनात्मक टिप्पणी की सारगर्भिता का सही आकलन परिपक्वता और विकास की दिशा में उठा पहला कदम है
    • तथा जो आलोचना कमियों को दूर कर व्यक्तित्व में निखार लाने तथा सुधार लाने के उद्देश्य से की जाती है, उसे सकारात्मक आलोचना कहते हैं।
    • आलोचना से व्यक्ति के जीवन में सुधार आता है।
    • इसके माध्यम से व्यक्ति अपनी कमियों को दूर करता है।  

    Additional Information

    1. दूसरों की कही प्रत्येक बात - दूसरे की कहीं बात हो या आलोचना हो उसको हमे सकरात्मक सोच बना कर चलना चाहिए। 
    2. मनुष्य गलतियों का पुतला है - कहा जाता है गलतियां होती है उनसे हुमें कुछ सीखना चाहिए, तो इंसान का जीवन है गलतियां होंगी और उन गलतियों से हमको चीज़े सीखनी चाहिए। 
    3. सुधार की संभावना हमेशा रहती है - गलतियां हो जाने पे चीज़े सुधरी जा सकती है , ऐसा नहीं है कि गलतियां होगी उसे इंसान सुधार न पाए। 
  • Question 6
    5 / -1

    Directions For Questions

    विज्ञान आज के मानव-जीवन का अविभाज्य एवं घनिष्ठ अंग बन गया है। मानव-जीवन का कोई भी क्षेत्र विज्ञान के अश्रुतपूर्व आविष्कारों से अछूता नहीं रहा। इसी से आधुनिक युग विज्ञान का युग कहलाता है। आज विज्ञान ने पुरुष और नारी, साहित्यकार और राजनीतिज्ञ, उद्योगपति और कृषक, पूँजीपति और श्रमिक, चिकित्सक और सैनिक, अभियन्ता और शिक्षक तथा धर्मज्ञ और तत्त्वज्ञ सभी को और सभी क्षेत्रों में किसी-न-किसी रूप में अपने अप्रतिम प्रदेय से अनुगृहीत किया है। आज समूचा परिवेश विज्ञानमय हो गया है। विज्ञान के चरण गृहिणी के रसोईघर से लेकर बड़ी-बड़ी प्राचीरों वाले भवनों और अट्टालिकाओं में ही दृष्टिगत नहीं होते, प्रत्युत वे स्थल और जल की सीमाओं को लाँघकर अंतरिक्ष में भी गतिशील हैं। वस्तुतः विज्ञान अद्यतन मानव की सबसे बड़ी शक्ति बन गया है। इसके बल से मनुष्य प्रकृति और प्राणिजगत् का शिरोमणि बन सका है। विज्ञान के अनुग्रह से वह सभी प्रकार की सुविधाओं और संपदाओं का स्वामित्व प्राप्त कर चुका है। अब वह ऋत-ऋतुओं के प्रकोप से भयाक्रांत एवं संत्रस्त नहीं है। विद्युत ने उसे आलोकित किया है, उष्णता और शीतलता दी है, बटन दबाकर किसी भी कार्य को संपन्न करने की ताकत भी दी है। मनोरंजन के विविध साधन उसे सुलभ हैं। यातायात एवं संचार के साधनों के विकास से समय और स्थान की दूरियाँ बहुत कम हो गई हैं और समूचा विश्व एक परिवार-सा लगने लगा है। कृषि और उद्योग के क्षेत्र में उत्पादन की तीव्र वृद्धि होने के कारण आज दुनिया पहले से अधिक धन-धान्य से संपन्न है। शिक्षा और चिकित्सा के क्षेत्र में विज्ञान की देन अभिनंदनीय है। विज्ञान के सहयोग से मनुष्य धरती और समुद्र के अनेक रहस्य हस्तामलक करके अब अंतरिक्ष लोक में प्रवेश कर चुका है। सर्वोपरि, विज्ञान ने मनुष्य को बौद्धिक विकास प्रदान किया है और वैज्ञानिक चिंतन-पद्धति दी है। वैज्ञानिक चिंतन-पद्धति से मनुष्य अंधविश्वासों और रूढ़ि-परंपराओं से मुक्त होकर स्वस्थ एवं संतुलित ढंग से सोच-विचार कर सकता है और यथार्थ एवं सम्यक् जीवन जी सकता है। इससे मनुष्य के मन को युगों के अंधविश्वासों, भ्रमपूर्ण और दकियानूसी विचारों, भय और अज्ञानता से मुक्ति मिली है। विज्ञान की यह देन स्तुत्य है। मानव को चाहिए कि वह विज्ञान की इस समग्र देन को रचनात्मक कार्यों में सुनियोजित करें।

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    आज विज्ञान को मनुष्य के जीवन का अभिन्न अंग क्यों माना जा सकता है?
    Solution
    • आज विज्ञान को मनुष्य के जीवन का अभिन्न अंग माना जा सकता है क्योकि विज्ञान ने सभी क्षेत्रों में मानव को प्रभावित किया है। 
    • आज का युग वैज्ञानिक चमत्कारों का युग है।
    • मानव-जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में आज विज्ञान ने आश्चर्यजनक क्रान्ति ला दी है।
    • मानव-समाज की सारी गतिविधियाँ आज विज्ञान से परिचालित हैं।
    • दुर्जेय प्रकृति पर विजय प्राप्त कर आज विज्ञान मानव का भाग्यविधाता बन बैठा है।  

    Additional Information

    1. विज्ञान के आविष्कार अभूतपूर्व हैं-मानव-जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में आज विज्ञान ने आश्चर्यजनक क्रान्ति ला दी है।
    2. विज्ञान ने सभी क्षेत्रों में मानव को प्रभावित किया है-जितने भी साधनों का हम अपने दैनिक जीवन में उपयोग करते हैं, वे सब विज्ञान के ही वरदान हैं।
    3. विज्ञान ने आर्थिक उन्नति प्रदान की है-विज्ञान का बहुत बड़ा हाथ है आर्थिक स्थिति को बढ़ाने में। विज्ञान ने बहुत सारे काम आसान किया है साथ ही साथ जिससे बहुत आर्थिक सुविधा का भी लाभ हुआ है। 
    4. आधुनिक युग विज्ञान का युग है- यातायात के क्षेत्र ,संचार के क्षेत्र में,दैनन्दिन जीवन में विद्युत् के आविष्कार ने मनुष्य की दैनन्दिन सुख,शिक्षा के क्षेत्र आदि सब जगह हम विज्ञान का उपयोग कर रहे है और करते रहेंगे। 
  • Question 7
    5 / -1

    Directions For Questions

    विज्ञान आज के मानव-जीवन का अविभाज्य एवं घनिष्ठ अंग बन गया है। मानव-जीवन का कोई भी क्षेत्र विज्ञान के अश्रुतपूर्व आविष्कारों से अछूता नहीं रहा। इसी से आधुनिक युग विज्ञान का युग कहलाता है। आज विज्ञान ने पुरुष और नारी, साहित्यकार और राजनीतिज्ञ, उद्योगपति और कृषक, पूँजीपति और श्रमिक, चिकित्सक और सैनिक, अभियन्ता और शिक्षक तथा धर्मज्ञ और तत्त्वज्ञ सभी को और सभी क्षेत्रों में किसी-न-किसी रूप में अपने अप्रतिम प्रदेय से अनुगृहीत किया है। आज समूचा परिवेश विज्ञानमय हो गया है। विज्ञान के चरण गृहिणी के रसोईघर से लेकर बड़ी-बड़ी प्राचीरों वाले भवनों और अट्टालिकाओं में ही दृष्टिगत नहीं होते, प्रत्युत वे स्थल और जल की सीमाओं को लाँघकर अंतरिक्ष में भी गतिशील हैं। वस्तुतः विज्ञान अद्यतन मानव की सबसे बड़ी शक्ति बन गया है। इसके बल से मनुष्य प्रकृति और प्राणिजगत् का शिरोमणि बन सका है। विज्ञान के अनुग्रह से वह सभी प्रकार की सुविधाओं और संपदाओं का स्वामित्व प्राप्त कर चुका है। अब वह ऋत-ऋतुओं के प्रकोप से भयाक्रांत एवं संत्रस्त नहीं है। विद्युत ने उसे आलोकित किया है, उष्णता और शीतलता दी है, बटन दबाकर किसी भी कार्य को संपन्न करने की ताकत भी दी है। मनोरंजन के विविध साधन उसे सुलभ हैं। यातायात एवं संचार के साधनों के विकास से समय और स्थान की दूरियाँ बहुत कम हो गई हैं और समूचा विश्व एक परिवार-सा लगने लगा है। कृषि और उद्योग के क्षेत्र में उत्पादन की तीव्र वृद्धि होने के कारण आज दुनिया पहले से अधिक धन-धान्य से संपन्न है। शिक्षा और चिकित्सा के क्षेत्र में विज्ञान की देन अभिनंदनीय है। विज्ञान के सहयोग से मनुष्य धरती और समुद्र के अनेक रहस्य हस्तामलक करके अब अंतरिक्ष लोक में प्रवेश कर चुका है। सर्वोपरि, विज्ञान ने मनुष्य को बौद्धिक विकास प्रदान किया है और वैज्ञानिक चिंतन-पद्धति दी है। वैज्ञानिक चिंतन-पद्धति से मनुष्य अंधविश्वासों और रूढ़ि-परंपराओं से मुक्त होकर स्वस्थ एवं संतुलित ढंग से सोच-विचार कर सकता है और यथार्थ एवं सम्यक् जीवन जी सकता है। इससे मनुष्य के मन को युगों के अंधविश्वासों, भ्रमपूर्ण और दकियानूसी विचारों, भय और अज्ञानता से मुक्ति मिली है। विज्ञान की यह देन स्तुत्य है। मानव को चाहिए कि वह विज्ञान की इस समग्र देन को रचनात्मक कार्यों में सुनियोजित करें।

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    किसके बल पर मनुष्य प्रकृति और प्राणिजगत् का शिरोमणि बन सका है?
    Solution

    'विज्ञान के' बल पर मनुष्य प्रकृति और प्राणीजगत् का शिरोमणि बन सका है।

    • विज्ञान के वरदानों के आलोक से आलोकित है।
    • प्रातः जागरण से लेकर रात के सोने तक के सभी क्रिया-कलाप विज्ञान द्वारा प्रदत्त साधनों के सहारे ही संचालित होते हैं।
    • प्रकाश, पंखा, पानी, साबुन, गैस स्टोव, फ्रिज, कूलर, हीटर और यहाँ तक कि शीशा, कंघी से लेकर रिक्शा, साइकिल, स्कूटर, बस, कार, रेल, हवाई जहाज, टी०वी०, सिनेमा, रेडियो आदि जितने भी साधनों का हम अपने दैनिक जीवन में उपयोग करते हैं, वे सब विज्ञान के ही वरदान हैं।
    • इसीलिए तो कहा जाता है कि विज्ञान के बल पर मनुष्य प्रकृति और प्राणिजगत् का शिरोमणि बन सका है 

    Additional Informationसाधन

    • परिभाषा - वह जिसके द्वारा या जिसकी सहायता से कोई कार्य आदि सिद्ध होता है
    • वाक्य में प्रयोग - समय के साथ संचार साधनों में बदलाव आया है।
    • बहुवचन - साधन
    • समानार्थी शब्द - माध्यम
    • लिंग - पुल्लिंग
    • संज्ञा के प्रकार - जातिवाचक

    विज्ञान

    • परिभाषा - शिक्षण की वह शाखा जिसके अंतर्गत भौतिक शास्त्र, रसायन शास्त्र, जीव विज्ञान तथा गणित आदि विषयों के अध्ययन एवं अध्यापन आते हैं
    • वाक्य में प्रयोग - मेरी बेटी विज्ञान पढ़ रही है।
    • लिंग - पुल्लिंग

    सत्ता

    • समानार्थी शब्द - हुकूमत , प्रभुत्व , स्वामित्व , शासन
    • लिंग - स्त्रीलिंग
    • संज्ञा के प्रकार - भाववाचक
  • Question 8
    5 / -1

    Directions For Questions

    विज्ञान आज के मानव-जीवन का अविभाज्य एवं घनिष्ठ अंग बन गया है। मानव-जीवन का कोई भी क्षेत्र विज्ञान के अश्रुतपूर्व आविष्कारों से अछूता नहीं रहा। इसी से आधुनिक युग विज्ञान का युग कहलाता है। आज विज्ञान ने पुरुष और नारी, साहित्यकार और राजनीतिज्ञ, उद्योगपति और कृषक, पूँजीपति और श्रमिक, चिकित्सक और सैनिक, अभियन्ता और शिक्षक तथा धर्मज्ञ और तत्त्वज्ञ सभी को और सभी क्षेत्रों में किसी-न-किसी रूप में अपने अप्रतिम प्रदेय से अनुगृहीत किया है। आज समूचा परिवेश विज्ञानमय हो गया है। विज्ञान के चरण गृहिणी के रसोईघर से लेकर बड़ी-बड़ी प्राचीरों वाले भवनों और अट्टालिकाओं में ही दृष्टिगत नहीं होते, प्रत्युत वे स्थल और जल की सीमाओं को लाँघकर अंतरिक्ष में भी गतिशील हैं। वस्तुतः विज्ञान अद्यतन मानव की सबसे बड़ी शक्ति बन गया है। इसके बल से मनुष्य प्रकृति और प्राणिजगत् का शिरोमणि बन सका है। विज्ञान के अनुग्रह से वह सभी प्रकार की सुविधाओं और संपदाओं का स्वामित्व प्राप्त कर चुका है। अब वह ऋत-ऋतुओं के प्रकोप से भयाक्रांत एवं संत्रस्त नहीं है। विद्युत ने उसे आलोकित किया है, उष्णता और शीतलता दी है, बटन दबाकर किसी भी कार्य को संपन्न करने की ताकत भी दी है। मनोरंजन के विविध साधन उसे सुलभ हैं। यातायात एवं संचार के साधनों के विकास से समय और स्थान की दूरियाँ बहुत कम हो गई हैं और समूचा विश्व एक परिवार-सा लगने लगा है। कृषि और उद्योग के क्षेत्र में उत्पादन की तीव्र वृद्धि होने के कारण आज दुनिया पहले से अधिक धन-धान्य से संपन्न है। शिक्षा और चिकित्सा के क्षेत्र में विज्ञान की देन अभिनंदनीय है। विज्ञान के सहयोग से मनुष्य धरती और समुद्र के अनेक रहस्य हस्तामलक करके अब अंतरिक्ष लोक में प्रवेश कर चुका है। सर्वोपरि, विज्ञान ने मनुष्य को बौद्धिक विकास प्रदान किया है और वैज्ञानिक चिंतन-पद्धति दी है। वैज्ञानिक चिंतन-पद्धति से मनुष्य अंधविश्वासों और रूढ़ि-परंपराओं से मुक्त होकर स्वस्थ एवं संतुलित ढंग से सोच-विचार कर सकता है और यथार्थ एवं सम्यक् जीवन जी सकता है। इससे मनुष्य के मन को युगों के अंधविश्वासों, भ्रमपूर्ण और दकियानूसी विचारों, भय और अज्ञानता से मुक्ति मिली है। विज्ञान की यह देन स्तुत्य है। मानव को चाहिए कि वह विज्ञान की इस समग्र देन को रचनात्मक कार्यों में सुनियोजित करें।

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    वैज्ञानिक चिंतन पद्धति ने मनुष्य को सबसे पहले किससे मुक्ति दिलाई?
    Solution

    वैज्ञानिक चिंतन पद्धति ने मनुष्य को सबसे पहले 'भ्रमपूर्ण रूढ़िवादी विचार' से मुक्ति दिलाई।

    • वैज्ञानिक चिंतन-पद्धति से मनुष्य अंधविश्वासों और रूढ़ि-परंपराओं से मुक्त होकर स्वस्थ एवं संतुलित ढंग से सोच-विचार कर सकता है
    • और यथार्थ एवं सम्यक् जीवन जी सकता है।
    • इससे मनुष्य के मन को युगों के अंधविश्वासों, भ्रमपूर्ण और दकियानूसी विचारों, भय और अज्ञानता से मुक्ति मिली है।
    • विज्ञान की यह देन स्तुति योग्य है।
    • मानव को चाहिए कि वह विज्ञान की इस समग्र देन को रचनात्मक कार्यों में सुनियोजित करें। 

    Additional Information

    • संतुलित परिभाषा - बराबर या उचित
    • प्राचीन सांस्कृतिक परंपराओं - जो चीज़े हमारी पुरानी संस्कृति है ,परम्परा है और जो आज भी चल रही हो। 
    • औपचारिकताओं - बँधे हुए सामाजिक नियमों, विधियों का ऐसा आचरण या पालन जिसमें अपनापा न हो और जो केवल दिखाने के लिए हो। औपचारिक होने की अवस्था ,गुण या भाव।
    • भ्रमपूर्ण रूढ़िवादी विचार - ऐसी विचारधारा है जो पारंपरिक मान्यताओं का अनुकरण तार्किकता या वैज्ञानिकता के स्थान पर केवल आस्था तथा प्रागनुभवों के आधार पर करती है।
  • Question 9
    5 / -1

    Directions For Questions

    विज्ञान आज के मानव-जीवन का अविभाज्य एवं घनिष्ठ अंग बन गया है। मानव-जीवन का कोई भी क्षेत्र विज्ञान के अश्रुतपूर्व आविष्कारों से अछूता नहीं रहा। इसी से आधुनिक युग विज्ञान का युग कहलाता है। आज विज्ञान ने पुरुष और नारी, साहित्यकार और राजनीतिज्ञ, उद्योगपति और कृषक, पूँजीपति और श्रमिक, चिकित्सक और सैनिक, अभियन्ता और शिक्षक तथा धर्मज्ञ और तत्त्वज्ञ सभी को और सभी क्षेत्रों में किसी-न-किसी रूप में अपने अप्रतिम प्रदेय से अनुगृहीत किया है। आज समूचा परिवेश विज्ञानमय हो गया है। विज्ञान के चरण गृहिणी के रसोईघर से लेकर बड़ी-बड़ी प्राचीरों वाले भवनों और अट्टालिकाओं में ही दृष्टिगत नहीं होते, प्रत्युत वे स्थल और जल की सीमाओं को लाँघकर अंतरिक्ष में भी गतिशील हैं। वस्तुतः विज्ञान अद्यतन मानव की सबसे बड़ी शक्ति बन गया है। इसके बल से मनुष्य प्रकृति और प्राणिजगत् का शिरोमणि बन सका है। विज्ञान के अनुग्रह से वह सभी प्रकार की सुविधाओं और संपदाओं का स्वामित्व प्राप्त कर चुका है। अब वह ऋत-ऋतुओं के प्रकोप से भयाक्रांत एवं संत्रस्त नहीं है। विद्युत ने उसे आलोकित किया है, उष्णता और शीतलता दी है, बटन दबाकर किसी भी कार्य को संपन्न करने की ताकत भी दी है। मनोरंजन के विविध साधन उसे सुलभ हैं। यातायात एवं संचार के साधनों के विकास से समय और स्थान की दूरियाँ बहुत कम हो गई हैं और समूचा विश्व एक परिवार-सा लगने लगा है। कृषि और उद्योग के क्षेत्र में उत्पादन की तीव्र वृद्धि होने के कारण आज दुनिया पहले से अधिक धन-धान्य से संपन्न है। शिक्षा और चिकित्सा के क्षेत्र में विज्ञान की देन अभिनंदनीय है। विज्ञान के सहयोग से मनुष्य धरती और समुद्र के अनेक रहस्य हस्तामलक करके अब अंतरिक्ष लोक में प्रवेश कर चुका है। सर्वोपरि, विज्ञान ने मनुष्य को बौद्धिक विकास प्रदान किया है और वैज्ञानिक चिंतन-पद्धति दी है। वैज्ञानिक चिंतन-पद्धति से मनुष्य अंधविश्वासों और रूढ़ि-परंपराओं से मुक्त होकर स्वस्थ एवं संतुलित ढंग से सोच-विचार कर सकता है और यथार्थ एवं सम्यक् जीवन जी सकता है। इससे मनुष्य के मन को युगों के अंधविश्वासों, भ्रमपूर्ण और दकियानूसी विचारों, भय और अज्ञानता से मुक्ति मिली है। विज्ञान की यह देन स्तुत्य है। मानव को चाहिए कि वह विज्ञान की इस समग्र देन को रचनात्मक कार्यों में सुनियोजित करें।

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    विज्ञान के चरण गतिशील क्यों कहे जा सकते हैं?
    Solution
    विज्ञान के चरण गतिशील 'विज्ञान के उत्तरोतर विभिन्न दिशाओं में उन्मुख होने के कारण' कहे जा सकते हैं। Additional Information
    1. विज्ञान की तीव्र गति के कारण - जितने भी साधनों का हम अपने दैनिक जीवन में उपयोग करते हैं, वे सब विज्ञान के ही वरदान हैं।
    2. यातायात के साधन आविष्कृत करने के कारण - यातायात के क्षेत्र में प्राचीन काल में मनुष्य को लम्बी यात्रा तय करने में बरसों लग जाते थे, किन्तु आज रेल, मोटर, जलपोत, वायुयान आदि के आविष्कार से दूर-से-दूर स्थानों पर बहुत शीघ्र पहुँचा जा सकता है। 
    3. विज्ञान के उत्तरोतर विभिन्न दिशाओं में उन्मुख होने के कारण -  प्रातः जागरण से लेकर रात के सोने तक के सभी क्रिया-कलाप विज्ञान द्वारा प्रदत्त साधनों के सहारे ही संचालित होते हैं।
    4. प्रगतिशील विचारधारा के कारण - नयी सोच नयी समय के हिसाब से लोग प्रगति करना चाहते है। 
  • Question 10
    5 / -1

    Directions For Questions

    विज्ञान आज के मानव-जीवन का अविभाज्य एवं घनिष्ठ अंग बन गया है। मानव-जीवन का कोई भी क्षेत्र विज्ञान के अश्रुतपूर्व आविष्कारों से अछूता नहीं रहा। इसी से आधुनिक युग विज्ञान का युग कहलाता है। आज विज्ञान ने पुरुष और नारी, साहित्यकार और राजनीतिज्ञ, उद्योगपति और कृषक, पूँजीपति और श्रमिक, चिकित्सक और सैनिक, अभियन्ता और शिक्षक तथा धर्मज्ञ और तत्त्वज्ञ सभी को और सभी क्षेत्रों में किसी-न-किसी रूप में अपने अप्रतिम प्रदेय से अनुगृहीत किया है। आज समूचा परिवेश विज्ञानमय हो गया है। विज्ञान के चरण गृहिणी के रसोईघर से लेकर बड़ी-बड़ी प्राचीरों वाले भवनों और अट्टालिकाओं में ही दृष्टिगत नहीं होते, प्रत्युत वे स्थल और जल की सीमाओं को लाँघकर अंतरिक्ष में भी गतिशील हैं। वस्तुतः विज्ञान अद्यतन मानव की सबसे बड़ी शक्ति बन गया है। इसके बल से मनुष्य प्रकृति और प्राणिजगत् का शिरोमणि बन सका है। विज्ञान के अनुग्रह से वह सभी प्रकार की सुविधाओं और संपदाओं का स्वामित्व प्राप्त कर चुका है। अब वह ऋत-ऋतुओं के प्रकोप से भयाक्रांत एवं संत्रस्त नहीं है। विद्युत ने उसे आलोकित किया है, उष्णता और शीतलता दी है, बटन दबाकर किसी भी कार्य को संपन्न करने की ताकत भी दी है। मनोरंजन के विविध साधन उसे सुलभ हैं। यातायात एवं संचार के साधनों के विकास से समय और स्थान की दूरियाँ बहुत कम हो गई हैं और समूचा विश्व एक परिवार-सा लगने लगा है। कृषि और उद्योग के क्षेत्र में उत्पादन की तीव्र वृद्धि होने के कारण आज दुनिया पहले से अधिक धन-धान्य से संपन्न है। शिक्षा और चिकित्सा के क्षेत्र में विज्ञान की देन अभिनंदनीय है। विज्ञान के सहयोग से मनुष्य धरती और समुद्र के अनेक रहस्य हस्तामलक करके अब अंतरिक्ष लोक में प्रवेश कर चुका है। सर्वोपरि, विज्ञान ने मनुष्य को बौद्धिक विकास प्रदान किया है और वैज्ञानिक चिंतन-पद्धति दी है। वैज्ञानिक चिंतन-पद्धति से मनुष्य अंधविश्वासों और रूढ़ि-परंपराओं से मुक्त होकर स्वस्थ एवं संतुलित ढंग से सोच-विचार कर सकता है और यथार्थ एवं सम्यक् जीवन जी सकता है। इससे मनुष्य के मन को युगों के अंधविश्वासों, भ्रमपूर्ण और दकियानूसी विचारों, भय और अज्ञानता से मुक्ति मिली है। विज्ञान की यह देन स्तुत्य है। मानव को चाहिए कि वह विज्ञान की इस समग्र देन को रचनात्मक कार्यों में सुनियोजित करें।

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    समूचा विश्व एक परिवार के समान लगने का क्या कारण है?
    Solution

    समूचा विश्व एक परिवार के समान लगने का 'यातायात एवं संचार के साधनों का विकास' का कारण है।

    •  यातायात के क्षेत्र में प्राचीन काल में मनुष्य को लम्बी यात्रा तय करने में बरसों लग जाते थे, किन्तु आज रेल, मोटर, जलपोत, वायुयान आदि के आविष्कार से दूर-से-दूर स्थानों पर बहुत शीघ्र पहुँचा जा सकता है।
    • यातायात और परिवहन की उन्नति से व्यापार की भी कायापलट हो गयी है।
    • मानव केवल धरती ही नहीं, अपितु चन्द्रमा और मंगल जैसे दूरस्थ ग्रहों तक भी पहुंच गया है।
    • अकाल, बाढ़, सूखी आदि प्राकृतिक विपत्तियों से पीड़ित व्यक्तियों की सहायता के लिए भी ये साधन बहुत उपयोगी सिद्ध हुए हैं।
    • इन्हीं के चलते आज सारा विश्व एक बाजार बन गया है। 

    Additional Information

    1. विज्ञान की गतिशील शक्ति-मानव-समाज की सारी गतिविधियाँ आज विज्ञान से परिचालित हैं।
    2. विज्ञान और जीवन में घनिष्ठता-अज्ञात रहस्यों की खोज में विज्ञान ने आकाश की ऊँचाइयों से लेकर पाताल की गहराइयाँ तक नाप दी हैं।
    3. यातायात एवं संचार के साधनों का विकास- यातायात के क्षेत्र में प्राचीन काल में मनुष्य को लम्बी यात्रा तय करने में बरसों लग जाते थे, किन्तु आज रेल, मोटर, जलपोत, वायुयान आदि के आविष्कार से दूर-से-दूर स्थानों पर बहुत शीघ्र पहुँचा जा सकता है।,संचार के क्षेत्र में-बेतार के तार ने संचार के क्षेत्र में क्रान्ति ला दी है।
  • Question 11
    5 / -1

    Directions For Questions

    वर्तमान सांप्रदायिक संकीर्णता के विषम वातावरण में संत-साहित्य की उपादेयता बहुत है। संतों में शिरोमणि कबीरदास भारतीय धर्म निरपेक्षता के आधार पुरुष हैं। संत कबीर एक सफल साधक, प्रभावशाली उपदेशक, महान् नेता और युग- द्रष्टा थे। उनका समस्त काव्य विचारों की भव्यता और हृदय की तन्मयता तथा औदार्य से परिपूर्ण है। उन्होंने कविता के सहारे अपने विचारों और भारतीय धर्म-निरपेक्षता के आधार को युग-युगांतर के लिए अमरता प्रदान की। कबीर ने धर्म को मानव धर्म के रूप में देखा था। सत्य के समर्थक कबीर हृदय में विचार-सागर और वाणी में अभूतपूर्व शक्ति लेकर अवतरित हुए थे। उन्होंने लोक-कल्याण की कामना से प्रेरित होकर स्वानुभूति के सहारे काव्य रचना की। वे पाठशाला या मकतब की ड्योढ़ी से दूर जीवन के विद्यालय में 'मसि कागद छुयो नहिं' की दशा में जी कर सत्य, ईश्वर पर विश्वास, प्रेम, अहिंसा, धर्म-निरपेक्षता और सहानुभूति का पाठ पढ़ाकर अनुभूतिमूलक ज्ञान का प्रसार कर रहे थे। कबीर ने समाज में फैले हुए मिथ्याचारों और कुत्सित भावनाओं की धज्जियाँ उड़ा दीं। स्वकीय भोगी हुई वेदनाओं के आक्रोश से भरकर समाज में फैले हुए ढोंग और पाखंडों, कुत्सित विचारधाराओं के प्रति दो टूक शब्दों में उन्होंने जो बातें कहीं, उनसे समाज की आँखें फटी-की-फटी रह गईं और साधारण जनता उनकी वाणियों से चेतना प्राप्त कर उनकी अनुगामिनी बनने को व्यग्र हो उठी। देश की सामाजिक, राजनीतिक, धार्मिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक आदि सभी प्रकार की समस्याओं का समाधान वैयक्तिक जीवन के माध्यम से प्रस्तुत करने का अनूठा प्रयत्न संत कबीर ने किया। उन्होंने बाँह उठाकर बलपूर्वक कहा
    कबीरा खड़ा बाज़ार में लिए लुकाठी हाथ ।
    जो घर जारे आपना, चले हमारे साथ II

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    वर्तमान युग में संत साहित्य को अधिक उपयोगी क्यों माना जाता है?
    Solution

    वर्तमान युग में संत साहित्य को अधिक उपयोगी 'प्रेम, भाइचारे एवं सद्भावना पर अत्यधिक बल देने के कारण' माना जाता है

    • आज संत साहित्य को इसलिए भी  उपयोगी माना जाता है क्योंकि संतों के साहित्य में विचारों की भव्यता, हृदय की तन्मयता और धार्मिक उदारता है।
    • जो आज के सांप्रदायिक संकीर्णता के विषम वातावरण में अत्यंत उपयोगी है। 

    Additional Information

    1. सांप्रदायिक भेदभाव के कारण - हिन्दू मुस्लिम, भेद भाव करना। 
    2. प्रेम, भाइचारे एवं सद्भावना पर अत्यधिक बल देने के कारण - कहा जाता है एकता में शक्ति है ,बिना भेद भाव किये साथ साथ चलना भाई -चारा रखना हिन्दू ,मुसलियम या दूसरे धर्म से भेद भाव नहीं करना। 
    3. कबीर के विचारों को महत्त्वपूर्ण न मानने के कारण - कबीर के विचार को कुछ लोग जरुरी नहीं समझते थे न उनकी चीज़ो को सीखना चाहते है। 
  • Question 12
    5 / -1

    Directions For Questions

    वर्तमान सांप्रदायिक संकीर्णता के विषम वातावरण में संत-साहित्य की उपादेयता बहुत है। संतों में शिरोमणि कबीरदास भारतीय धर्म निरपेक्षता के आधार पुरुष हैं। संत कबीर एक सफल साधक, प्रभावशाली उपदेशक, महान् नेता और युग- द्रष्टा थे। उनका समस्त काव्य विचारों की भव्यता और हृदय की तन्मयता तथा औदार्य से परिपूर्ण है। उन्होंने कविता के सहारे अपने विचारों और भारतीय धर्म-निरपेक्षता के आधार को युग-युगांतर के लिए अमरता प्रदान की। कबीर ने धर्म को मानव धर्म के रूप में देखा था। सत्य के समर्थक कबीर हृदय में विचार-सागर और वाणी में अभूतपूर्व शक्ति लेकर अवतरित हुए थे। उन्होंने लोक-कल्याण की कामना से प्रेरित होकर स्वानुभूति के सहारे काव्य रचना की। वे पाठशाला या मकतब की ड्योढ़ी से दूर जीवन के विद्यालय में 'मसि कागद छुयो नहिं' की दशा में जी कर सत्य, ईश्वर पर विश्वास, प्रेम, अहिंसा, धर्म-निरपेक्षता और सहानुभूति का पाठ पढ़ाकर अनुभूतिमूलक ज्ञान का प्रसार कर रहे थे। कबीर ने समाज में फैले हुए मिथ्याचारों और कुत्सित भावनाओं की धज्जियाँ उड़ा दीं। स्वकीय भोगी हुई वेदनाओं के आक्रोश से भरकर समाज में फैले हुए ढोंग और पाखंडों, कुत्सित विचारधाराओं के प्रति दो टूक शब्दों में उन्होंने जो बातें कहीं, उनसे समाज की आँखें फटी-की-फटी रह गईं और साधारण जनता उनकी वाणियों से चेतना प्राप्त कर उनकी अनुगामिनी बनने को व्यग्र हो उठी। देश की सामाजिक, राजनीतिक, धार्मिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक आदि सभी प्रकार की समस्याओं का समाधान वैयक्तिक जीवन के माध्यम से प्रस्तुत करने का अनूठा प्रयत्न संत कबीर ने किया। उन्होंने बाँह उठाकर बलपूर्वक कहा
    कबीरा खड़ा बाज़ार में लिए लुकाठी हाथ ।
    जो घर जारे आपना, चले हमारे साथ II

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    गद्यांश में कबीर के लिए किस उपमान का प्रयोग किया गया है?
    Solution

    गद्यांश में कबीर के लिए 'ये सभी' उपमान का प्रयोग किया गया है।

    • कबीर के व्यक्तित्व की विशेषता थी सत्य का समर्थन, हृदय में अगाध विचार-सागर और वाणी में अभूतपूर्व शक्ति।
    • उनकी काव्य रचना की विशेषता थी- लोक कल्याण की कामना से प्रेरित होकर स्वानुभूति के सहारे काव्य-सृजन।
    • इससे कबीर को खूब प्रसिद्धि मिली। 

    Additional Information

    1. महान् नेता - जो अपने देश के लिया या अपना काम सही  से करे उसे महान  नेता कहते है। 
    2. युग-द्रष्टा - महान दार्शनिक, चिंतक, क्रांतिकारी समाज सुधारक। 
    3. सफल साधक - वह जो आध्यात्मिक या धार्मिक क्षेत्र में फल-प्राप्ति के उद्देश्य से किसी प्रकार की साधना में लगा हुआ हो। 
  • Question 13
    5 / -1

    Directions For Questions

    वर्तमान सांप्रदायिक संकीर्णता के विषम वातावरण में संत-साहित्य की उपादेयता बहुत है। संतों में शिरोमणि कबीरदास भारतीय धर्म निरपेक्षता के आधार पुरुष हैं। संत कबीर एक सफल साधक, प्रभावशाली उपदेशक, महान् नेता और युग- द्रष्टा थे। उनका समस्त काव्य विचारों की भव्यता और हृदय की तन्मयता तथा औदार्य से परिपूर्ण है। उन्होंने कविता के सहारे अपने विचारों और भारतीय धर्म-निरपेक्षता के आधार को युग-युगांतर के लिए अमरता प्रदान की। कबीर ने धर्म को मानव धर्म के रूप में देखा था। सत्य के समर्थक कबीर हृदय में विचार-सागर और वाणी में अभूतपूर्व शक्ति लेकर अवतरित हुए थे। उन्होंने लोक-कल्याण की कामना से प्रेरित होकर स्वानुभूति के सहारे काव्य रचना की। वे पाठशाला या मकतब की ड्योढ़ी से दूर जीवन के विद्यालय में 'मसि कागद छुयो नहिं' की दशा में जी कर सत्य, ईश्वर पर विश्वास, प्रेम, अहिंसा, धर्म-निरपेक्षता और सहानुभूति का पाठ पढ़ाकर अनुभूतिमूलक ज्ञान का प्रसार कर रहे थे। कबीर ने समाज में फैले हुए मिथ्याचारों और कुत्सित भावनाओं की धज्जियाँ उड़ा दीं। स्वकीय भोगी हुई वेदनाओं के आक्रोश से भरकर समाज में फैले हुए ढोंग और पाखंडों, कुत्सित विचारधाराओं के प्रति दो टूक शब्दों में उन्होंने जो बातें कहीं, उनसे समाज की आँखें फटी-की-फटी रह गईं और साधारण जनता उनकी वाणियों से चेतना प्राप्त कर उनकी अनुगामिनी बनने को व्यग्र हो उठी। देश की सामाजिक, राजनीतिक, धार्मिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक आदि सभी प्रकार की समस्याओं का समाधान वैयक्तिक जीवन के माध्यम से प्रस्तुत करने का अनूठा प्रयत्न संत कबीर ने किया। उन्होंने बाँह उठाकर बलपूर्वक कहा
    कबीरा खड़ा बाज़ार में लिए लुकाठी हाथ ।
    जो घर जारे आपना, चले हमारे साथ II

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    कबीर ने अपने विचारों और भारतीय धर्म-निरपेक्षता के आधार को किसके माध्यम से युगों-युगांतर के लिए अमरता प्रदान की?
    Solution

    कबीर ने अपने विचारों और भारतीय धर्म-निरपेक्षता के आधार को 'कविता' के माध्यम से युगों-युगांतर के लिए अमरता प्रदान की

    • कबीर की वाणी में अभूतपूर्व शक्ति थी।
    • वे सत्य, प्रेम, ईश्वर विश्वास, अहिंसा धर्मनिरपेक्षता और सहानुभूति का पाठ पढ़ा रहे थे।
    • वे समाज में फैले मिथ्याचारों और कुत्सित विचारों पर कड़ा प्रहार कर रहे थे।
    • यह देख सामान्य जनता उनकी वाणी मानने को बाध्य हो गई। 

    Additional Information

    1. धर्म - किसी जाति, वर्ग, पद आदि के लिए निश्चित किया हुआ कार्य या व्यवहार
    2. जाति - वंश-परम्परा के विचार से किया हुआ मानव समाज का विभाग।
    3. ज्ञान - वस्तुओं और विषयों की वह तथ्यपूर्ण, वास्तविक और संगत जानकारी जो अध्ययन, अनुभव, निरीक्षण, प्रयोग आदि के द्वारा मन या विवेक को होती है।
    4. कविता - वह रचना, विशेषतः पद्य की रचना, जिससे चित्त किसी रस या मनोवेग से पूर्ण हो जाए।
  • Question 14
    5 / -1

    Directions For Questions

    वर्तमान सांप्रदायिक संकीर्णता के विषम वातावरण में संत-साहित्य की उपादेयता बहुत है। संतों में शिरोमणि कबीरदास भारतीय धर्म निरपेक्षता के आधार पुरुष हैं। संत कबीर एक सफल साधक, प्रभावशाली उपदेशक, महान् नेता और युग- द्रष्टा थे। उनका समस्त काव्य विचारों की भव्यता और हृदय की तन्मयता तथा औदार्य से परिपूर्ण है। उन्होंने कविता के सहारे अपने विचारों और भारतीय धर्म-निरपेक्षता के आधार को युग-युगांतर के लिए अमरता प्रदान की। कबीर ने धर्म को मानव धर्म के रूप में देखा था। सत्य के समर्थक कबीर हृदय में विचार-सागर और वाणी में अभूतपूर्व शक्ति लेकर अवतरित हुए थे। उन्होंने लोक-कल्याण की कामना से प्रेरित होकर स्वानुभूति के सहारे काव्य रचना की। वे पाठशाला या मकतब की ड्योढ़ी से दूर जीवन के विद्यालय में 'मसि कागद छुयो नहिं' की दशा में जी कर सत्य, ईश्वर पर विश्वास, प्रेम, अहिंसा, धर्म-निरपेक्षता और सहानुभूति का पाठ पढ़ाकर अनुभूतिमूलक ज्ञान का प्रसार कर रहे थे। कबीर ने समाज में फैले हुए मिथ्याचारों और कुत्सित भावनाओं की धज्जियाँ उड़ा दीं। स्वकीय भोगी हुई वेदनाओं के आक्रोश से भरकर समाज में फैले हुए ढोंग और पाखंडों, कुत्सित विचारधाराओं के प्रति दो टूक शब्दों में उन्होंने जो बातें कहीं, उनसे समाज की आँखें फटी-की-फटी रह गईं और साधारण जनता उनकी वाणियों से चेतना प्राप्त कर उनकी अनुगामिनी बनने को व्यग्र हो उठी। देश की सामाजिक, राजनीतिक, धार्मिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक आदि सभी प्रकार की समस्याओं का समाधान वैयक्तिक जीवन के माध्यम से प्रस्तुत करने का अनूठा प्रयत्न संत कबीर ने किया। उन्होंने बाँह उठाकर बलपूर्वक कहा
    कबीरा खड़ा बाज़ार में लिए लुकाठी हाथ ।
    जो घर जारे आपना, चले हमारे साथ II

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    कबीर ने अनुभूतिमूलक ज्ञान का प्रसार किसके द्वारा किया था?
    Solution

    कबीर ने अनुभूतिमूलक ज्ञान का प्रसार 'ये सभी' द्वारा किया था।

    • कबीर ने अपने जीवन के माध्यम से समाज में फैली कुरीतियाँ, धार्मिक कट्टरता मिथ्याचार, वाह्याडंबर, ढकोसलों के अलावा देश की धार्मिक, सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक सभी समस्याओं का समाधान प्रस्तुत किया।
    • कबीर के व्यक्तित्व की विशेषता थी सत्य का समर्थन, हृदय में अगाध विचार-सागर और वाणी में अभूतपूर्व शक्ति।
    • उनकी काव्य रचना की विशेषता थी- लोक कल्याण की कामना से प्रेरित होकर स्वानुभूति के सहारे काव्य-सृजन।
    • इससे कबीर को खूब प्रसिद्धि मिली। 

    Additional Information

    • ईश्वर पर विश्वास के द्वारा - सब कुछ ईश्वर के भरोसे सोचना या चलना। 
    • अहिंसा के द्वारा - बिना हिंसा के चले जाना या अपनी बात बोलना। 
    • धर्म निरपेक्षता के द्वारा - धर्मनिरपेक्षता का अर्थ है कि राज्य राजनीति या किसी गैर-धार्मिक मामले से धर्म को दूर रखे तथा सरकार धर्म के आधार पर किसी से भी कोई भेदभाव न करे।
  • Question 15
    5 / -1

    Directions For Questions

    वर्तमान सांप्रदायिक संकीर्णता के विषम वातावरण में संत-साहित्य की उपादेयता बहुत है। संतों में शिरोमणि कबीरदास भारतीय धर्म निरपेक्षता के आधार पुरुष हैं। संत कबीर एक सफल साधक, प्रभावशाली उपदेशक, महान् नेता और युग- द्रष्टा थे। उनका समस्त काव्य विचारों की भव्यता और हृदय की तन्मयता तथा औदार्य से परिपूर्ण है। उन्होंने कविता के सहारे अपने विचारों और भारतीय धर्म-निरपेक्षता के आधार को युग-युगांतर के लिए अमरता प्रदान की। कबीर ने धर्म को मानव धर्म के रूप में देखा था। सत्य के समर्थक कबीर हृदय में विचार-सागर और वाणी में अभूतपूर्व शक्ति लेकर अवतरित हुए थे। उन्होंने लोक-कल्याण की कामना से प्रेरित होकर स्वानुभूति के सहारे काव्य रचना की। वे पाठशाला या मकतब की ड्योढ़ी से दूर जीवन के विद्यालय में 'मसि कागद छुयो नहिं' की दशा में जी कर सत्य, ईश्वर पर विश्वास, प्रेम, अहिंसा, धर्म-निरपेक्षता और सहानुभूति का पाठ पढ़ाकर अनुभूतिमूलक ज्ञान का प्रसार कर रहे थे। कबीर ने समाज में फैले हुए मिथ्याचारों और कुत्सित भावनाओं की धज्जियाँ उड़ा दीं। स्वकीय भोगी हुई वेदनाओं के आक्रोश से भरकर समाज में फैले हुए ढोंग और पाखंडों, कुत्सित विचारधाराओं के प्रति दो टूक शब्दों में उन्होंने जो बातें कहीं, उनसे समाज की आँखें फटी-की-फटी रह गईं और साधारण जनता उनकी वाणियों से चेतना प्राप्त कर उनकी अनुगामिनी बनने को व्यग्र हो उठी। देश की सामाजिक, राजनीतिक, धार्मिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक आदि सभी प्रकार की समस्याओं का समाधान वैयक्तिक जीवन के माध्यम से प्रस्तुत करने का अनूठा प्रयत्न संत कबीर ने किया। उन्होंने बाँह उठाकर बलपूर्वक कहा
    कबीरा खड़ा बाज़ार में लिए लुकाठी हाथ ।
    जो घर जारे आपना, चले हमारे साथ II

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    प्रस्तुत गद्यांश के अनुसार कबीर ने धर्म को किस रूप में देखा?
    Solution

    प्रस्तुत गद्यांश के अनुसार कबीर ने धर्म को 'मानव धर्म' रूप में देखा।

    • संत शिरोमणि कबीर को माना गया है क्योंकि वे किसी धर्म के कट्टर समर्थक न होकर सभी धर्मों के प्रति समान आदर भाव रखते थे।
    • वे भारतीय धर्म-निरपेक्षता के आधार पुरुष थे जो धार्मिक भेदभाव से कोसों दूर रहते थे।

    Additional Information

    • मानव धर्म - जिसमे धर्म भेद भाव जातिभेद भाव नहीं हो। 
    • ईश्वर धर्म - ईश्वर धर्म या किसी एक धर्म के लिए  लिए निश्चित किया हुआ कार्य या व्यवहार।
    • सामाजिक धर्म - समाज के लिए  लिए निश्चित किया हुआ कार्य या व्यवहार।
  • Question 16
    5 / -1

    Directions For Questions

    भारतीय मनीषा ने कला, धर्म, दर्शन और साहित्य के क्षेत्र में नाना भाव से महत्त्वपूर्ण फल पाए हैं और भविष्य में भी महत्त्वपूर्ण फल पाने की योग्यता का परिचय वह दे चुकी है, परंतु नाना कारणों से समूची जनता एक ही धरातल पर नहीं है और सबकी चिंतन-दृष्टि भी एक नहीं है। जल्दी ही कोई फल पा लेने की आशा में अटकलपच्चू सिद्धांत कायम कर लेना और उसके आधार पर कार्यक्रम बनाना अभीष्ट सिद्धि में सब समय सहायक नहीं होगा। विकास की नाना सीढ़ियों पर खड़ी जनता के लिए नाना प्रकार के कार्यक्रम आवश्यक होंगे। उद्देश्य की एकता ही विविध कार्यक्रमों में एकता ला सकती है, परंतु इतना निश्चित है कि जब तक हमारे सामने उद्देश्य स्पष्ट नहीं हो जाता, तब तक कोई भी कार्य, कितनी ही व्यापक शुभेच्छा के साथ क्यों न आरम्भ किया जाए, वह फलदायक नहीं होगा। बहुत से लोग हिंदू-मुस्लिम एकता को या हिंदू संगठन को ही लक्ष्य मानकर उपाय सोचने लगते हैं। वस्तुतः हिंदू-मुस्लिम एकता भी साधन है, साध्य नहीं। साध्य है मनुष्य को पशु समान स्वार्थी धरातल से ऊपर उठाकर 'मनुष्यता' के आसन पर बैठाना। हिंदू और मुस्लिम यदि मिलकर संसार में लूट-खसोट मचाने के लिए साम्राज्य स्थापित करने निकल पड़े तो उस हिंदू-मुस्लिम मिलन से मनुष्यता काँप उठेगी। परंतु हिंदू-मुस्लिम मिलन का उद्देश्य है मनुष्य को दासता, जड़िमा मोह, कुसंस्कार और परमुखापेक्षिता से बचाना, मनुष्य को क्षुद्र स्वार्थ और अहमिका की दुनिया से ऊपर उठाकर सत्य, न्याय और औदार्य की दुनिया में ले जाना, मनुष्य द्वारा मनुष्य के शोषण को हटाकर परस्पर सहयोगिता के पवित्र बंधन में बाँधना। मनुष्य का सामूहिक कल्याण ही हमारा लक्ष्य हो सकता है। वही मनुष्य का सर्वोत्तम प्राप्य है। आर्य, द्रविड़, शक, नाग, आभीर आदि जातियों के सैकड़ों वर्षों के संघर्ष के बाद हिंदू दृष्टिकोण बना है। नए सिरे से भारतीय दृष्टिकोण बनाने के लिए इतने ही लंबे अरसे की जरूरत नहीं है। आज हम इतिहास को अधिक यथार्थ ढंग से समझ सकते हैं और तद्नुकूल अपने विकास की योजना बना सकते हैं। धैर्य हमें कभी नहीं छोड़ना चाहिए। इतिहास विधाता के इंगित को समझकर ही हम अपनी योजना बनाएँ, तो सफलता की आशा कर सकते हैं।

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    प्रस्तुत गद्यांश किस विषयवस्तु पर आधारित है?
    Solution

    प्रस्तुत गद्यांश 'हिंदू-मुस्लिम एकता' पर आधारित है।

    • हिंदू-मुस्लिम एकता का उद्देश्य होना चाहिए-मनुष्य को दासता, जड़ता, मोह, कुसंस्कार और परमुखापेक्षिता से बचाना।
    • मनुष्य को क्षुद्र स्वार्थ से ऊपर उठाकर सत्य, न्याय और औदार्य की दुनिया में ले जाना।
    • मनुष्य को शोषण से बचाना और सहयोगभाव उत्पन्न करना।  

    Additional Information

    • भारत का नव-निर्माण - भारत को नया रूप  देना। 
    • हिंदू-मुस्लिम एकता - आपसी भेद भाव हटा कर उनमे एकता लाना। 
    • मानव हित - किसी भी धर्म के पहले मानव के लिए क्या अच्छा या बुरा है उसको सोचना एवम समझना। 
  • Question 17
    5 / -1

    Directions For Questions

    भारतीय मनीषा ने कला, धर्म, दर्शन और साहित्य के क्षेत्र में नाना भाव से महत्त्वपूर्ण फल पाए हैं और भविष्य में भी महत्त्वपूर्ण फल पाने की योग्यता का परिचय वह दे चुकी है, परंतु नाना कारणों से समूची जनता एक ही धरातल पर नहीं है और सबकी चिंतन-दृष्टि भी एक नहीं है। जल्दी ही कोई फल पा लेने की आशा में अटकलपच्चू सिद्धांत कायम कर लेना और उसके आधार पर कार्यक्रम बनाना अभीष्ट सिद्धि में सब समय सहायक नहीं होगा। विकास की नाना सीढ़ियों पर खड़ी जनता के लिए नाना प्रकार के कार्यक्रम आवश्यक होंगे। उद्देश्य की एकता ही विविध कार्यक्रमों में एकता ला सकती है, परंतु इतना निश्चित है कि जब तक हमारे सामने उद्देश्य स्पष्ट नहीं हो जाता, तब तक कोई भी कार्य, कितनी ही व्यापक शुभेच्छा के साथ क्यों न आरम्भ किया जाए, वह फलदायक नहीं होगा। बहुत से लोग हिंदू-मुस्लिम एकता को या हिंदू संगठन को ही लक्ष्य मानकर उपाय सोचने लगते हैं। वस्तुतः हिंदू-मुस्लिम एकता भी साधन है, साध्य नहीं। साध्य है मनुष्य को पशु समान स्वार्थी धरातल से ऊपर उठाकर 'मनुष्यता' के आसन पर बैठाना। हिंदू और मुस्लिम यदि मिलकर संसार में लूट-खसोट मचाने के लिए साम्राज्य स्थापित करने निकल पड़े तो उस हिंदू-मुस्लिम मिलन से मनुष्यता काँप उठेगी। परंतु हिंदू-मुस्लिम मिलन का उद्देश्य है मनुष्य को दासता, जड़िमा मोह, कुसंस्कार और परमुखापेक्षिता से बचाना, मनुष्य को क्षुद्र स्वार्थ और अहमिका की दुनिया से ऊपर उठाकर सत्य, न्याय और औदार्य की दुनिया में ले जाना, मनुष्य द्वारा मनुष्य के शोषण को हटाकर परस्पर सहयोगिता के पवित्र बंधन में बाँधना। मनुष्य का सामूहिक कल्याण ही हमारा लक्ष्य हो सकता है। वही मनुष्य का सर्वोत्तम प्राप्य है। आर्य, द्रविड़, शक, नाग, आभीर आदि जातियों के सैकड़ों वर्षों के संघर्ष के बाद हिंदू दृष्टिकोण बना है। नए सिरे से भारतीय दृष्टिकोण बनाने के लिए इतने ही लंबे अरसे की जरूरत नहीं है। आज हम इतिहास को अधिक यथार्थ ढंग से समझ सकते हैं और तद्नुकूल अपने विकास की योजना बना सकते हैं। धैर्य हमें कभी नहीं छोड़ना चाहिए। इतिहास विधाता के इंगित को समझकर ही हम अपनी योजना बनाएँ, तो सफलता की आशा कर सकते हैं।

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    भविष्य में महत्त्वपूर्ण फल पाने की योग्यता का परिचय किसने दिया?
    Solution
    भविष्य में महत्त्वपूर्ण फल पाने की योग्यता का परिचय 'भारतीय मनीषा' ने दिया मानव  एकता से बढ़ कर इस संसार में कुछ भी नहीं है। 
    Key Points 
    • हम हिन्दू -मुस्लिम भेद खत्म कर के इन संसार और देश के लिए एक हो कर कुछ कर सकते है । 
    • अपने देश को आगे बढ़ा सकते है। 

    धर्म 

    • परिभाषा - परलोक, ईश्वर आदि के संबंध में विशेष प्रकार का विश्वास और उपासना की विशेष प्रणाली
    • वाक्य में प्रयोग - हिंदू धर्म की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि उसमें अन्य सभी धर्मों के प्रति सहनशीलता है ।
    • लिंग - पुल्लिंग

    इतिहास

    • परिभाषा - बीती हुई प्रसिद्ध घटनाओं और उनसे संबंध रखनेवाले जीवों का कालक्रम से वर्णन
    • वाक्य में प्रयोग - वह प्राचीन इतिहास पढ़ रहा है ।
    • समानार्थी शब्द - इतिवृत्त , इति-वृत्त

    साहित्य

    • परिभाषा - किसी भाषा अथवा देश के सभी ग्रन्थों,लेखों आदि का समूह
    • वाक्य में प्रयोग - साहित्य समाज का दर्पण होता है ।
    • लिंग - पुल्लिंग
    • संज्ञा के प्रकार - जातिवाचक
  • Question 18
    5 / -1

    Directions For Questions

    भारतीय मनीषा ने कला, धर्म, दर्शन और साहित्य के क्षेत्र में नाना भाव से महत्त्वपूर्ण फल पाए हैं और भविष्य में भी महत्त्वपूर्ण फल पाने की योग्यता का परिचय वह दे चुकी है, परंतु नाना कारणों से समूची जनता एक ही धरातल पर नहीं है और सबकी चिंतन-दृष्टि भी एक नहीं है। जल्दी ही कोई फल पा लेने की आशा में अटकलपच्चू सिद्धांत कायम कर लेना और उसके आधार पर कार्यक्रम बनाना अभीष्ट सिद्धि में सब समय सहायक नहीं होगा। विकास की नाना सीढ़ियों पर खड़ी जनता के लिए नाना प्रकार के कार्यक्रम आवश्यक होंगे। उद्देश्य की एकता ही विविध कार्यक्रमों में एकता ला सकती है, परंतु इतना निश्चित है कि जब तक हमारे सामने उद्देश्य स्पष्ट नहीं हो जाता, तब तक कोई भी कार्य, कितनी ही व्यापक शुभेच्छा के साथ क्यों न आरम्भ किया जाए, वह फलदायक नहीं होगा। बहुत से लोग हिंदू-मुस्लिम एकता को या हिंदू संगठन को ही लक्ष्य मानकर उपाय सोचने लगते हैं। वस्तुतः हिंदू-मुस्लिम एकता भी साधन है, साध्य नहीं। साध्य है मनुष्य को पशु समान स्वार्थी धरातल से ऊपर उठाकर 'मनुष्यता' के आसन पर बैठाना। हिंदू और मुस्लिम यदि मिलकर संसार में लूट-खसोट मचाने के लिए साम्राज्य स्थापित करने निकल पड़े तो उस हिंदू-मुस्लिम मिलन से मनुष्यता काँप उठेगी। परंतु हिंदू-मुस्लिम मिलन का उद्देश्य है मनुष्य को दासता, जड़िमा मोह, कुसंस्कार और परमुखापेक्षिता से बचाना, मनुष्य को क्षुद्र स्वार्थ और अहमिका की दुनिया से ऊपर उठाकर सत्य, न्याय और औदार्य की दुनिया में ले जाना, मनुष्य द्वारा मनुष्य के शोषण को हटाकर परस्पर सहयोगिता के पवित्र बंधन में बाँधना। मनुष्य का सामूहिक कल्याण ही हमारा लक्ष्य हो सकता है। वही मनुष्य का सर्वोत्तम प्राप्य है। आर्य, द्रविड़, शक, नाग, आभीर आदि जातियों के सैकड़ों वर्षों के संघर्ष के बाद हिंदू दृष्टिकोण बना है। नए सिरे से भारतीय दृष्टिकोण बनाने के लिए इतने ही लंबे अरसे की जरूरत नहीं है। आज हम इतिहास को अधिक यथार्थ ढंग से समझ सकते हैं और तद्नुकूल अपने विकास की योजना बना सकते हैं। धैर्य हमें कभी नहीं छोड़ना चाहिए। इतिहास विधाता के इंगित को समझकर ही हम अपनी योजना बनाएँ, तो सफलता की आशा कर सकते हैं।

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    अटकलपच्चू सिद्धांत के आधार पर कार्यक्रम बनाने से क्या होगा?
    Solution

    अटकलपच्चू सिद्धांत के आधार पर कार्यक्रम बनाने से 'यह अभीष्ट फल की प्राप्ति में सदैव सहायक नहीं होगा।'
    Key Points 

    • भारतीय जनता के समुचित विकास के लिए अलग-अलग कार्यक्रम बनाने की आवश्यकता इसलिए है।
    • क्योंकि ऐसे अनेकानेक कारण हैं, जिनसे भारतीय जनता की आवश्यकताएँ और स्तर अलग-अलग हैं।
    • वे एक धरातल पर नहीं हैं।
    • उनकी चिंतन दृष्टि में भी एकता नहीं है।
    • उस कारण जल्दबाजी में सभी के लिए कोई एक कार्यक्रम बना लेने से अभीष्ट लक्ष्य की प्राप्ति नहीं हो सकती है।
  • Question 19
    5 / -1

    Directions For Questions

    भारतीय मनीषा ने कला, धर्म, दर्शन और साहित्य के क्षेत्र में नाना भाव से महत्त्वपूर्ण फल पाए हैं और भविष्य में भी महत्त्वपूर्ण फल पाने की योग्यता का परिचय वह दे चुकी है, परंतु नाना कारणों से समूची जनता एक ही धरातल पर नहीं है और सबकी चिंतन-दृष्टि भी एक नहीं है। जल्दी ही कोई फल पा लेने की आशा में अटकलपच्चू सिद्धांत कायम कर लेना और उसके आधार पर कार्यक्रम बनाना अभीष्ट सिद्धि में सब समय सहायक नहीं होगा। विकास की नाना सीढ़ियों पर खड़ी जनता के लिए नाना प्रकार के कार्यक्रम आवश्यक होंगे। उद्देश्य की एकता ही विविध कार्यक्रमों में एकता ला सकती है, परंतु इतना निश्चित है कि जब तक हमारे सामने उद्देश्य स्पष्ट नहीं हो जाता, तब तक कोई भी कार्य, कितनी ही व्यापक शुभेच्छा के साथ क्यों न आरम्भ किया जाए, वह फलदायक नहीं होगा। बहुत से लोग हिंदू-मुस्लिम एकता को या हिंदू संगठन को ही लक्ष्य मानकर उपाय सोचने लगते हैं। वस्तुतः हिंदू-मुस्लिम एकता भी साधन है, साध्य नहीं। साध्य है मनुष्य को पशु समान स्वार्थी धरातल से ऊपर उठाकर 'मनुष्यता' के आसन पर बैठाना। हिंदू और मुस्लिम यदि मिलकर संसार में लूट-खसोट मचाने के लिए साम्राज्य स्थापित करने निकल पड़े तो उस हिंदू-मुस्लिम मिलन से मनुष्यता काँप उठेगी। परंतु हिंदू-मुस्लिम मिलन का उद्देश्य है मनुष्य को दासता, जड़िमा मोह, कुसंस्कार और परमुखापेक्षिता से बचाना, मनुष्य को क्षुद्र स्वार्थ और अहमिका की दुनिया से ऊपर उठाकर सत्य, न्याय और औदार्य की दुनिया में ले जाना, मनुष्य द्वारा मनुष्य के शोषण को हटाकर परस्पर सहयोगिता के पवित्र बंधन में बाँधना। मनुष्य का सामूहिक कल्याण ही हमारा लक्ष्य हो सकता है। वही मनुष्य का सर्वोत्तम प्राप्य है। आर्य, द्रविड़, शक, नाग, आभीर आदि जातियों के सैकड़ों वर्षों के संघर्ष के बाद हिंदू दृष्टिकोण बना है। नए सिरे से भारतीय दृष्टिकोण बनाने के लिए इतने ही लंबे अरसे की जरूरत नहीं है। आज हम इतिहास को अधिक यथार्थ ढंग से समझ सकते हैं और तद्नुकूल अपने विकास की योजना बना सकते हैं। धैर्य हमें कभी नहीं छोड़ना चाहिए। इतिहास विधाता के इंगित को समझकर ही हम अपनी योजना बनाएँ, तो सफलता की आशा कर सकते हैं।

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    शुभेच्छा के साथ प्रारंभ किया गया कार्य भी तब तक अभीष्ट फल नहीं दे सकता, जब तक कि
    Solution

    शुभेच्छा के साथ प्रारंभ किया गया कार्य भी तब तक अभीष्ट फल नहीं दे सकता, जब तक कि 'निश्चित लक्ष्य हमारे सम्मुख स्पष्ट न हो'
    Key Points 

    • सफलता पाने के लिए हमें नए भारतीय दृष्टिकोण बनाने चाहिए।
    • यह कार्य आसानी से किया जा सकता है क्योंकि अब भारतीयों में इतिहास को समझने की दृष्टि विकसित हो गई है।
    • इतिहास की इसी समझ के साथ हम नई योजनाएँ बना सकते हैं।
    • इसके अलावा इतिहास-निर्माताओं के संकेतों को समझकर योजनाएँ बनाने से सफलता पाई जा सकती है।
  • Question 20
    5 / -1

    Directions For Questions

    भारतीय मनीषा ने कला, धर्म, दर्शन और साहित्य के क्षेत्र में नाना भाव से महत्त्वपूर्ण फल पाए हैं और भविष्य में भी महत्त्वपूर्ण फल पाने की योग्यता का परिचय वह दे चुकी है, परंतु नाना कारणों से समूची जनता एक ही धरातल पर नहीं है और सबकी चिंतन-दृष्टि भी एक नहीं है। जल्दी ही कोई फल पा लेने की आशा में अटकलपच्चू सिद्धांत कायम कर लेना और उसके आधार पर कार्यक्रम बनाना अभीष्ट सिद्धि में सब समय सहायक नहीं होगा। विकास की नाना सीढ़ियों पर खड़ी जनता के लिए नाना प्रकार के कार्यक्रम आवश्यक होंगे। उद्देश्य की एकता ही विविध कार्यक्रमों में एकता ला सकती है, परंतु इतना निश्चित है कि जब तक हमारे सामने उद्देश्य स्पष्ट नहीं हो जाता, तब तक कोई भी कार्य, कितनी ही व्यापक शुभेच्छा के साथ क्यों न आरम्भ किया जाए, वह फलदायक नहीं होगा। बहुत से लोग हिंदू-मुस्लिम एकता को या हिंदू संगठन को ही लक्ष्य मानकर उपाय सोचने लगते हैं। वस्तुतः हिंदू-मुस्लिम एकता भी साधन है, साध्य नहीं। साध्य है मनुष्य को पशु समान स्वार्थी धरातल से ऊपर उठाकर 'मनुष्यता' के आसन पर बैठाना। हिंदू और मुस्लिम यदि मिलकर संसार में लूट-खसोट मचाने के लिए साम्राज्य स्थापित करने निकल पड़े तो उस हिंदू-मुस्लिम मिलन से मनुष्यता काँप उठेगी। परंतु हिंदू-मुस्लिम मिलन का उद्देश्य है मनुष्य को दासता, जड़िमा मोह, कुसंस्कार और परमुखापेक्षिता से बचाना, मनुष्य को क्षुद्र स्वार्थ और अहमिका की दुनिया से ऊपर उठाकर सत्य, न्याय और औदार्य की दुनिया में ले जाना, मनुष्य द्वारा मनुष्य के शोषण को हटाकर परस्पर सहयोगिता के पवित्र बंधन में बाँधना। मनुष्य का सामूहिक कल्याण ही हमारा लक्ष्य हो सकता है। वही मनुष्य का सर्वोत्तम प्राप्य है। आर्य, द्रविड़, शक, नाग, आभीर आदि जातियों के सैकड़ों वर्षों के संघर्ष के बाद हिंदू दृष्टिकोण बना है। नए सिरे से भारतीय दृष्टिकोण बनाने के लिए इतने ही लंबे अरसे की जरूरत नहीं है। आज हम इतिहास को अधिक यथार्थ ढंग से समझ सकते हैं और तद्नुकूल अपने विकास की योजना बना सकते हैं। धैर्य हमें कभी नहीं छोड़ना चाहिए। इतिहास विधाता के इंगित को समझकर ही हम अपनी योजना बनाएँ, तो सफलता की आशा कर सकते हैं।

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    'हिंदू-मुस्लिम एकता साधन है साध्य नहीं', इसके माध्यम से लेखक क्या कहना चाहते हैं?
    Solution

    'हिंदू-मुस्लिम एकता साधन है साध्य नहीं', इसके माध्यम से लेखक 'मानवता की भावना को बढ़ाना  चाहते हैं।'

    • हिंदू-मुस्लिम एकता भी साधन है, साध्य नहीं” लेखक ने ऐसा इसलिए कहा है, क्योंकि बहुत से लोग हिंदू-मुस्लिम एकता या हिंदू संगठन को लक्ष्य मान बैठते हैं।
    • और इस एकीकरण का उपाय सोचने लगते हैं।
    • जबकि यह एकता साधन मात्र है साध्य नहीं।
    • वास्तव में मनुष्य में पशुओं जैसी स्वार्थी सोच समाप्त कर, परोपकार की भावना जगाते हुए मनुष्यता के आसन पर प्रतिष्ठित करना ही साध्य है। 

    Additional Information

    1. मानव को मानव से वियुक्त करना - मानव के अंदर भेद भाव उत्पन करके उन्हें अलग करना। 
    2. संसार को शोषण से मुक्त करना - संसार में जो शोषण हिंसा हो रही उनके लिए अपने कदम आगे बढ़ा कर उन्हें खत्म करना। 
    3. मानवता की भावना को बढ़ाना - इंसान के बीचो के भेद भाव हटा कर  बताना की सबसे बड़ा धर्म मानव धर्म है। 
  • Question 21
    5 / -1

    Directions For Questions

    शिक्षा जीवन के सर्वांगीण विकास हेतु अनिवार्य है। शिक्षा के बिना मनुष्य विवेकशील और शिष्ट नहीं बन सकता। विवेक से मनुष्य में सही और गलत का चयन करने की क्षमता उत्पन्न होती है। विवेक से ही मनुष्य के भीतर उसके चारों ओर घटते घटनाक्रमों के प्रति एक उचित दृष्टिकोण उत्पन्न होता है। शिक्षा ही मानव-को-मानव के प्रति मानवीय भावनाओं से पोषित करती है। शिक्षा से मनुष्य अपने परिवेश के प्रति जाग्रत होकर कर्त्तव्याभिमुख हो जाता है। 'स्व' से 'पर' की ओर अग्रसर होने लगता है। निर्बल की सहायता करना, दुखियों के दुःख दूर करने का प्रयास करना, दूसरों के दुःख से दुःखी हो जाना और दूसरों के सुख से स्वयं सुख का अनुभव करना जैसी बातें एक शिक्षित मानव में सरलता से देखने को मिल जाती हैं। इतिहास, साहित्य, राजनीतिशास्त्र, समाजशास्त्र, दर्शनशास्त्र इत्यादि पढ़कर विद्यार्थी विद्वान् ही नहीं बनता, वरन् उसमें एक विशिष्ट जीवन दृष्टि, रचनात्मकता और परिपक्वता का सृजन भी होता है। शिक्षित सामाजिक परिवेश में व्यक्ति अशिक्षित सामाजिक परिवेश की तुलना में सदैव ही उच्च स्तर पर जीवन-यापन करता है। आज के आधुनिक युग में शिक्षा का अर्थ बदल रहा है। शिक्षा भौतिक आकांक्षा की पूर्ति का साधन बनती जा रही है। व्यावसायिक शिक्षा के अंधानुकरण से छात्र सैद्धांतिक शिक्षा से दूर होते जा रहे हैं, जिसके कारण रूस की क्रांति, फ्रांस की क्रांति, अमेरिकी क्रांति, समाजवाद, पूँजीवाद, राजनीतिक व्यवस्था सांस्कृतिक मूल्यों आदि की सामान्य जानकारी भी व्यावसायिक शिक्षा ग्रहण करने वाले छात्रों को नहीं है। यह शिक्षा का विशुद्ध रोज़गारोन्मुखी रूप है। शिक्षा के प्रति इस प्रकार का संकुचित दृष्टिकोण अपनाकर विवेकशील नागरिकों का निर्माण नहीं किया जा सकता। भारत जैसे विकासशील देश में शिक्षा रोज़गार का साधन न होकर साध्य हो गई है। इस कुप्रवृत्ति पर अंकुश लगाना आवश्यक है। जहाँ मानविकी के छात्रों को पत्रकारिता, साहित्य-सृजन, विज्ञापन, जनसंपर्क इत्यादि कोर्स भी कराए जाने चाहिए, ताकि उन्हें रोज़गार के लिए भटकना न पड़े, वहीं व्यावसायिक कोर्स करने वाले छात्रों को मानविकी के विषय; जैसे - इतिहास, साहित्य, राजनीतिशास्त्र, दर्शन आदि का थोड़ा-बहुत अध्ययन अवश्य करना चाहिए, ताकि समाज को विवेकशील नागरिक प्राप्त होते रहें, तभी समाज में संतुलन बना रह सकेगा।

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    मनुष्य में सही और गलत का चयन करने की क्षमता किससे उत्पन्न होती है?
    Solution

    मनुष्य में सही और गलत का चयन करने की क्षमता 'विवेक' से उत्पन्न होती है।

    •  शिक्षा के बिना मनुष्य विवेकशील और शिष्ट नहीं बन सकता।
    • विवेक से मनुष्य में सही और गलत का चयन करने की क्षमता उत्पन्न होती है।
    • विवेक से ही मनुष्य के भीतर उसके चारों ओर घटते घटनाक्रमों के प्रति एक उचित दृष्टिकोण उत्पन्न होता है।
    • शिक्षा ही मानव-को-मानव के प्रति मानवीय भावनाओं से पोषित करती है।
    • शिक्षा से मनुष्य अपने परिवेश के प्रति जाग्रत होकर कर्त्तव्याभिमुख हो जाता है।  

    Additional Informationशिक्षा

    • परिभाषा - विद्या, संगीत आदि पढ़ाने या सिखाने की क्रिया
    • वाक्य में प्रयोग - पाठशाला में कई विषयों की शिक्षा दी जाती है ।
    • समानार्थी शब्द - शिक्षण , तालीम , एजुकेशन
    • लिंग - स्त्रीलिंग

    शिष्टाचार

    • परिभाषा - शिष्ट या सभ्य आचरण
    • वाक्य में प्रयोग - शिष्टाचार से मनुष्य समाज में सम्मान पाता है।
    • समानार्थी शब्द - अख़लाक़
    • विलोम शब्द - अशिष्टाचार
    • लिंग - पुल्लिंग
    • संज्ञा के प्रकार - भाववाचक
    • मूल शब्द - शिष्ट
    • प्रत्यय - आचार

    विवेक 

    • परिभाषा - भली-बुरी बातें सोचने-समझने की शक्ति या ज्ञान
    • वाक्य में प्रयोग - विपत्ति के समय विवेक से काम लेना चाहिए ।
    • समानार्थी शब्द - समझदारी
    • लिंग - पुल्लिंग
    • संज्ञा के प्रकार - भाववाचक

    सतर्कता

    • परिभाषा - सावधान या सतर्क रहने की अवस्था या भाव
    • वाक्य में प्रयोग - सड़क पार करते समय सावधानी रखनी चाहिए।
    • समानार्थी शब्द - सावधानी , एहतियात
    • विलोम शब्द - असावधानी
  • Question 22
    5 / -1

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    शिक्षा जीवन के सर्वांगीण विकास हेतु अनिवार्य है। शिक्षा के बिना मनुष्य विवेकशील और शिष्ट नहीं बन सकता। विवेक से मनुष्य में सही और गलत का चयन करने की क्षमता उत्पन्न होती है। विवेक से ही मनुष्य के भीतर उसके चारों ओर घटते घटनाक्रमों के प्रति एक उचित दृष्टिकोण उत्पन्न होता है। शिक्षा ही मानव-को-मानव के प्रति मानवीय भावनाओं से पोषित करती है। शिक्षा से मनुष्य अपने परिवेश के प्रति जाग्रत होकर कर्त्तव्याभिमुख हो जाता है। 'स्व' से 'पर' की ओर अग्रसर होने लगता है। निर्बल की सहायता करना, दुखियों के दुःख दूर करने का प्रयास करना, दूसरों के दुःख से दुःखी हो जाना और दूसरों के सुख से स्वयं सुख का अनुभव करना जैसी बातें एक शिक्षित मानव में सरलता से देखने को मिल जाती हैं। इतिहास, साहित्य, राजनीतिशास्त्र, समाजशास्त्र, दर्शनशास्त्र इत्यादि पढ़कर विद्यार्थी विद्वान् ही नहीं बनता, वरन् उसमें एक विशिष्ट जीवन दृष्टि, रचनात्मकता और परिपक्वता का सृजन भी होता है। शिक्षित सामाजिक परिवेश में व्यक्ति अशिक्षित सामाजिक परिवेश की तुलना में सदैव ही उच्च स्तर पर जीवन-यापन करता है। आज के आधुनिक युग में शिक्षा का अर्थ बदल रहा है। शिक्षा भौतिक आकांक्षा की पूर्ति का साधन बनती जा रही है। व्यावसायिक शिक्षा के अंधानुकरण से छात्र सैद्धांतिक शिक्षा से दूर होते जा रहे हैं, जिसके कारण रूस की क्रांति, फ्रांस की क्रांति, अमेरिकी क्रांति, समाजवाद, पूँजीवाद, राजनीतिक व्यवस्था सांस्कृतिक मूल्यों आदि की सामान्य जानकारी भी व्यावसायिक शिक्षा ग्रहण करने वाले छात्रों को नहीं है। यह शिक्षा का विशुद्ध रोज़गारोन्मुखी रूप है। शिक्षा के प्रति इस प्रकार का संकुचित दृष्टिकोण अपनाकर विवेकशील नागरिकों का निर्माण नहीं किया जा सकता। भारत जैसे विकासशील देश में शिक्षा रोज़गार का साधन न होकर साध्य हो गई है। इस कुप्रवृत्ति पर अंकुश लगाना आवश्यक है। जहाँ मानविकी के छात्रों को पत्रकारिता, साहित्य-सृजन, विज्ञापन, जनसंपर्क इत्यादि कोर्स भी कराए जाने चाहिए, ताकि उन्हें रोज़गार के लिए भटकना न पड़े, वहीं व्यावसायिक कोर्स करने वाले छात्रों को मानविकी के विषय; जैसे - इतिहास, साहित्य, राजनीतिशास्त्र, दर्शन आदि का थोड़ा-बहुत अध्ययन अवश्य करना चाहिए, ताकि समाज को विवेकशील नागरिक प्राप्त होते रहें, तभी समाज में संतुलन बना रह सकेगा।

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    'स्व' से 'पर' की ओर अग्रसर होने से क्या तात्पर्य है?
    Solution

    स्व' से 'पर' की ओर अग्रसर होने से तात्पर्य है 'परोपकार करना'

    •  'स्व'' से 'पर' की ओर अग्रसर होने लगता है।
    • निर्बल की सहायता करना, दुखियों के दुःख दूर करने का प्रयास करना, दूसरों के दुःख से दुःखी हो जाना और दूसरों के सुख से स्वयं सुख का अनुभव करना जैसी बातें एक शिक्षित मानव में सरलता से देखने को मिल जाती हैं।
    • लेकिन वर्तमान स्थिति में ,व्यक्ति व्यावसायिक शिक्षा ग्रहण कर रोज़गार प्राप्त करने के योग्य तो हो जाता है।
    • लेकिन मानविकी विषयों का अध्ययन न करने से उसमें सैद्धांतिक एवं मानवीय गुणों का अभाव हो जाता है।
    • व्यावसायीकरण से मुनाफ़ाखोरी एवं धनार्जन की प्रवृत्ति में वृद्धि होती है।
    • जिससे गरीब एवं प्रतिभावान छात्र उच्च शिक्षा ग्रहण नहीं कर पाते। 

    Additional Information

    परोपकार

    • परिभाषा - वह उपकार या भलाई जो स्वजनों के लिए न होकर दूसरों के लिए हो
    • वाक्य में प्रयोग - परोपकार के समान कोई धर्म नहीं है ।
    • समानार्थी शब्द - परमार्थ , परमार्थ , परहित

    स्वार्थी 

    • परिभाषा - जो स्वार्थ से भरा हुआ हो या अपना मतलब निकालनेवाला हो
    • वाक्य में प्रयोग - स्वार्थी लोगों से दूर रहो ।
    • समानार्थी शब्द - मतलबी , मतलबी , खुदगर्ज
    • विलोम शब्द - स्वार्थहीन , निःस्वार्थी
    • स्वयं को भूल जाना-किसी कार्य  को इतना  मन लगा के करना की खुद के बारे में भूल जाना। 
    • स्वयं से पराया हो जाना-अपने बारे में पता नहीं होना। 
  • Question 23
    5 / -1

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    शिक्षा जीवन के सर्वांगीण विकास हेतु अनिवार्य है। शिक्षा के बिना मनुष्य विवेकशील और शिष्ट नहीं बन सकता। विवेक से मनुष्य में सही और गलत का चयन करने की क्षमता उत्पन्न होती है। विवेक से ही मनुष्य के भीतर उसके चारों ओर घटते घटनाक्रमों के प्रति एक उचित दृष्टिकोण उत्पन्न होता है। शिक्षा ही मानव-को-मानव के प्रति मानवीय भावनाओं से पोषित करती है। शिक्षा से मनुष्य अपने परिवेश के प्रति जाग्रत होकर कर्त्तव्याभिमुख हो जाता है। 'स्व' से 'पर' की ओर अग्रसर होने लगता है। निर्बल की सहायता करना, दुखियों के दुःख दूर करने का प्रयास करना, दूसरों के दुःख से दुःखी हो जाना और दूसरों के सुख से स्वयं सुख का अनुभव करना जैसी बातें एक शिक्षित मानव में सरलता से देखने को मिल जाती हैं। इतिहास, साहित्य, राजनीतिशास्त्र, समाजशास्त्र, दर्शनशास्त्र इत्यादि पढ़कर विद्यार्थी विद्वान् ही नहीं बनता, वरन् उसमें एक विशिष्ट जीवन दृष्टि, रचनात्मकता और परिपक्वता का सृजन भी होता है। शिक्षित सामाजिक परिवेश में व्यक्ति अशिक्षित सामाजिक परिवेश की तुलना में सदैव ही उच्च स्तर पर जीवन-यापन करता है। आज के आधुनिक युग में शिक्षा का अर्थ बदल रहा है। शिक्षा भौतिक आकांक्षा की पूर्ति का साधन बनती जा रही है। व्यावसायिक शिक्षा के अंधानुकरण से छात्र सैद्धांतिक शिक्षा से दूर होते जा रहे हैं, जिसके कारण रूस की क्रांति, फ्रांस की क्रांति, अमेरिकी क्रांति, समाजवाद, पूँजीवाद, राजनीतिक व्यवस्था सांस्कृतिक मूल्यों आदि की सामान्य जानकारी भी व्यावसायिक शिक्षा ग्रहण करने वाले छात्रों को नहीं है। यह शिक्षा का विशुद्ध रोज़गारोन्मुखी रूप है। शिक्षा के प्रति इस प्रकार का संकुचित दृष्टिकोण अपनाकर विवेकशील नागरिकों का निर्माण नहीं किया जा सकता। भारत जैसे विकासशील देश में शिक्षा रोज़गार का साधन न होकर साध्य हो गई है। इस कुप्रवृत्ति पर अंकुश लगाना आवश्यक है। जहाँ मानविकी के छात्रों को पत्रकारिता, साहित्य-सृजन, विज्ञापन, जनसंपर्क इत्यादि कोर्स भी कराए जाने चाहिए, ताकि उन्हें रोज़गार के लिए भटकना न पड़े, वहीं व्यावसायिक कोर्स करने वाले छात्रों को मानविकी के विषय; जैसे - इतिहास, साहित्य, राजनीतिशास्त्र, दर्शन आदि का थोड़ा-बहुत अध्ययन अवश्य करना चाहिए, ताकि समाज को विवेकशील नागरिक प्राप्त होते रहें, तभी समाज में संतुलन बना रह सकेगा।

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    एक शिक्षित व्यक्ति में समाज कल्याण हेतु किन बातों का होना आवश्यक है?
    Solution

    एक शिक्षित व्यक्ति में समाज कल्याण हेतु 'उपरोक्त सभी' बातों का होना आवश्यक है।

    • एक शिक्षित व्यक्ति का अपने समाज के प्रति दृष्टिकोण एवं व्यवहार बदल जाता है।
    • दूसरों की सहायता करना। 
    • सभी के प्रति स्नेह-दया का भाव रखना। 
    • देश के प्रति कर्तव्यपरायण होना, शिक्षा के द्वारा ही संभव है।
    • शिक्षा से मनुष्य में ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ की भावना उत्पन्न हो जाती है।
    • एक शिक्षित व्यक्ति अपने अनुभवों को बेहतर तरीके से समाज के अन्य व्यक्तियों के साथ साझा करता है। 

    Additional Informationनिर्बल

    • परिभाषा - जिसमें बल या शक्ति न हो। 
    • वाक्य में प्रयोग - कमजोर व्यक्ति पर अत्याचार नहीं करना चाहिए ।
    • समानार्थी शब्द - दुर्बल , शक्तिहीन। 

    दुःख

    • परिभाषा - मन की वह अप्रिय और कष्ट देने वाली अवस्था या बात जिससे छुटकारा पाने की स्वाभाविक प्रवृत्ति होती है। 
      वाक्य में प्रयोग - दुख में ही अपनों की याद आती है। / परेशानी में ही अपनों की याद आती है।
      समानार्थी शब्द - परेशानी , दुख , तक़लीफ़ , कष्ट। 
      विलोम शब्द - सुख , सुख , आराम , आराम , चैन। 
    • निर्बल की सहायता करना-अपने से कमजोर की मदद करना।
    • दूसरों के दुःख से दुःखी हो जाना-अगर कोई दर्द में या दुःख में हो और उसको देख के हमको भी बुरा लगे या दुःख हो।  
    • दुःखियों के दुःख दूर करने का प्रयास करना-दूसरे के दुःख दूर करने के लिए कोशिश करना या उनकी मदद करना। 
  • Question 24
    5 / -1

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    शिक्षा जीवन के सर्वांगीण विकास हेतु अनिवार्य है। शिक्षा के बिना मनुष्य विवेकशील और शिष्ट नहीं बन सकता। विवेक से मनुष्य में सही और गलत का चयन करने की क्षमता उत्पन्न होती है। विवेक से ही मनुष्य के भीतर उसके चारों ओर घटते घटनाक्रमों के प्रति एक उचित दृष्टिकोण उत्पन्न होता है। शिक्षा ही मानव-को-मानव के प्रति मानवीय भावनाओं से पोषित करती है। शिक्षा से मनुष्य अपने परिवेश के प्रति जाग्रत होकर कर्त्तव्याभिमुख हो जाता है। 'स्व' से 'पर' की ओर अग्रसर होने लगता है। निर्बल की सहायता करना, दुखियों के दुःख दूर करने का प्रयास करना, दूसरों के दुःख से दुःखी हो जाना और दूसरों के सुख से स्वयं सुख का अनुभव करना जैसी बातें एक शिक्षित मानव में सरलता से देखने को मिल जाती हैं। इतिहास, साहित्य, राजनीतिशास्त्र, समाजशास्त्र, दर्शनशास्त्र इत्यादि पढ़कर विद्यार्थी विद्वान् ही नहीं बनता, वरन् उसमें एक विशिष्ट जीवन दृष्टि, रचनात्मकता और परिपक्वता का सृजन भी होता है। शिक्षित सामाजिक परिवेश में व्यक्ति अशिक्षित सामाजिक परिवेश की तुलना में सदैव ही उच्च स्तर पर जीवन-यापन करता है। आज के आधुनिक युग में शिक्षा का अर्थ बदल रहा है। शिक्षा भौतिक आकांक्षा की पूर्ति का साधन बनती जा रही है। व्यावसायिक शिक्षा के अंधानुकरण से छात्र सैद्धांतिक शिक्षा से दूर होते जा रहे हैं, जिसके कारण रूस की क्रांति, फ्रांस की क्रांति, अमेरिकी क्रांति, समाजवाद, पूँजीवाद, राजनीतिक व्यवस्था सांस्कृतिक मूल्यों आदि की सामान्य जानकारी भी व्यावसायिक शिक्षा ग्रहण करने वाले छात्रों को नहीं है। यह शिक्षा का विशुद्ध रोज़गारोन्मुखी रूप है। शिक्षा के प्रति इस प्रकार का संकुचित दृष्टिकोण अपनाकर विवेकशील नागरिकों का निर्माण नहीं किया जा सकता। भारत जैसे विकासशील देश में शिक्षा रोज़गार का साधन न होकर साध्य हो गई है। इस कुप्रवृत्ति पर अंकुश लगाना आवश्यक है। जहाँ मानविकी के छात्रों को पत्रकारिता, साहित्य-सृजन, विज्ञापन, जनसंपर्क इत्यादि कोर्स भी कराए जाने चाहिए, ताकि उन्हें रोज़गार के लिए भटकना न पड़े, वहीं व्यावसायिक कोर्स करने वाले छात्रों को मानविकी के विषय; जैसे - इतिहास, साहित्य, राजनीतिशास्त्र, दर्शन आदि का थोड़ा-बहुत अध्ययन अवश्य करना चाहिए, ताकि समाज को विवेकशील नागरिक प्राप्त होते रहें, तभी समाज में संतुलन बना रह सकेगा।

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    शिक्षा के द्वारा मनुष्य में कैसी भावना उत्पन्न होती है?
    Solution

    शिक्षा के द्वारा मनुष्य में 'वसुधैव कुटुंबकम् की' भावना उत्पन्न होती है।

    • शिक्षा से मनुष्य में ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ की भावना उत्पन्न हो जाती है।
    • एक शिक्षित व्यक्ति अपने अनुभवों को बेहतर तरीके से समाज के अन्य व्यक्तियों के साथ साझा करता है।
    •  लेकिन वर्तमान स्थिति में भारत में शिक्षा रोज़गार का साध्य बन रही है।
    • शिक्षा का दृष्टिकोण संकुचित होता जा रहा है।
    • शिक्षा का यह रूप रोज़गारोन्मुखी होता जा रहा है।
    • इस प्रकार शिक्षा का साध्य होना मनुष्य के जीवन, दृष्टि व रचनात्मकता को प्रभावित करता है।
    • अतः इस कुप्रवृत्ति पर अंकुश लगाना अति आवश्यक है। 

    Additional Information उन्नति

    • परिभाषा - पहले की अवस्था से अच्छी या ऊँची अवस्था की ओर बढ़ने या बढ़ाने की क्रिया। 
    • वाक्य में प्रयोग - वह दिन-दिन तरक्की करता गया । / हमें अपने देश के विकास के लिए काम करना चाहिए।
    • समानार्थी शब्द - तरक्की , विकास , उत्थान
    • विलोम शब्द - अवनति

    वसुधैव कुटुम्बकम् 

    • वसुधैव कुटुम्बकम् सनातन धर्म का मूल संस्कार तथा विचारधारा है जो महा उपनिषद सहित कई ग्रन्थों में लिपिबद्ध है।
    • इसका अर्थ है- धरती ही परिवार है (वसुधा एव कुटुम्बकम्)। यह वाक्य भारतीय संसद के प्रवेश कक्ष में भी अंकित है।

    स्वार्थ

    • परिभाषा - अपना उद्देश्य या प्रयोजन। 
    • वाक्य में प्रयोग - यहाँ आने के पीछे श्याम का कुछ स्वार्थ है ।
    • समानार्थी शब्द - ग़रज़ , गरज , अपरती। 
    • लिंग - पुल्लिंग। 

    अनुशासनहीनता

    • परिभाषा - अनुशासनहीन होने की अवस्था या भाव। 
      वाक्य में प्रयोग - आजकल अनुशासनहीनता और अराजकता अपने चरम पर हैं।
      लिंग - स्त्रीलिंग। 
  • Question 25
    5 / -1

    Directions For Questions

    शिक्षा जीवन के सर्वांगीण विकास हेतु अनिवार्य है। शिक्षा के बिना मनुष्य विवेकशील और शिष्ट नहीं बन सकता। विवेक से मनुष्य में सही और गलत का चयन करने की क्षमता उत्पन्न होती है। विवेक से ही मनुष्य के भीतर उसके चारों ओर घटते घटनाक्रमों के प्रति एक उचित दृष्टिकोण उत्पन्न होता है। शिक्षा ही मानव-को-मानव के प्रति मानवीय भावनाओं से पोषित करती है। शिक्षा से मनुष्य अपने परिवेश के प्रति जाग्रत होकर कर्त्तव्याभिमुख हो जाता है। 'स्व' से 'पर' की ओर अग्रसर होने लगता है। निर्बल की सहायता करना, दुखियों के दुःख दूर करने का प्रयास करना, दूसरों के दुःख से दुःखी हो जाना और दूसरों के सुख से स्वयं सुख का अनुभव करना जैसी बातें एक शिक्षित मानव में सरलता से देखने को मिल जाती हैं। इतिहास, साहित्य, राजनीतिशास्त्र, समाजशास्त्र, दर्शनशास्त्र इत्यादि पढ़कर विद्यार्थी विद्वान् ही नहीं बनता, वरन् उसमें एक विशिष्ट जीवन दृष्टि, रचनात्मकता और परिपक्वता का सृजन भी होता है। शिक्षित सामाजिक परिवेश में व्यक्ति अशिक्षित सामाजिक परिवेश की तुलना में सदैव ही उच्च स्तर पर जीवन-यापन करता है। आज के आधुनिक युग में शिक्षा का अर्थ बदल रहा है। शिक्षा भौतिक आकांक्षा की पूर्ति का साधन बनती जा रही है। व्यावसायिक शिक्षा के अंधानुकरण से छात्र सैद्धांतिक शिक्षा से दूर होते जा रहे हैं, जिसके कारण रूस की क्रांति, फ्रांस की क्रांति, अमेरिकी क्रांति, समाजवाद, पूँजीवाद, राजनीतिक व्यवस्था सांस्कृतिक मूल्यों आदि की सामान्य जानकारी भी व्यावसायिक शिक्षा ग्रहण करने वाले छात्रों को नहीं है। यह शिक्षा का विशुद्ध रोज़गारोन्मुखी रूप है। शिक्षा के प्रति इस प्रकार का संकुचित दृष्टिकोण अपनाकर विवेकशील नागरिकों का निर्माण नहीं किया जा सकता। भारत जैसे विकासशील देश में शिक्षा रोज़गार का साधन न होकर साध्य हो गई है। इस कुप्रवृत्ति पर अंकुश लगाना आवश्यक है। जहाँ मानविकी के छात्रों को पत्रकारिता, साहित्य-सृजन, विज्ञापन, जनसंपर्क इत्यादि कोर्स भी कराए जाने चाहिए, ताकि उन्हें रोज़गार के लिए भटकना न पड़े, वहीं व्यावसायिक कोर्स करने वाले छात्रों को मानविकी के विषय; जैसे - इतिहास, साहित्य, राजनीतिशास्त्र, दर्शन आदि का थोड़ा-बहुत अध्ययन अवश्य करना चाहिए, ताकि समाज को विवेकशील नागरिक प्राप्त होते रहें, तभी समाज में संतुलन बना रह सकेगा।

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    “शिक्षा भौतिक आकांक्षा की पूर्ति का साधन बनती जा है', पंक्ति का क्या आशय है?
    Solution

    “शिक्षा भौतिक आकांक्षा की पूर्ति का साधन बनती जा है', पंक्ति का आशय है 'व्यावसायिक शिक्षा वर्तमान में मात्र धन कमाने का साधन बनती जा रही 'है
    Key Points

    • व्यावसायिक शिक्षा वर्तमान में मात्र धन कमाने का साधन बनती जा रही है।
    • भौतिक आकांक्षाओं की पूर्ति के लिए शिक्षा ने व्यावसायिक स्तर पर शोषण कर मनुष्य-मनुष्य के बीच आपसी मतभेद उत्पन्न कर दिए हैं।
    • व्यावसायिक शिक्षा के कारण व्यक्ति में सैद्धांतिक शिक्षा का अभाव होने से मानवीय मूल्यों का अभाव हुआ है।
    • इससे जीवन में विशिष्ट एवं व्यापक दृष्टिकोण का ह्रास होता जा रहा है।
  • Question 26
    5 / -1
    'विधि' का विलोम शब्द क्या है?
    Solution

    दिया गया विधि’ शब्द का विलोम शब्द सही विकल्प 'निषेध' होगा।Key Points

    • विधि शब्द का अर्थ किसी काम को करने की व्यवस्था आदि का तरीका या प्रणाली 
    • निषेध का अर्थ  किसी काम को करने की व्यवस्था आदि का तरीका या प्रणाली मे बाधा डालना/मना करना इसलिए विधि का विलोम निषेध होगा।     

    अन्य विकल्प:

    विलोम

    शब्द

    विकास

    ह्रास, पतन

    विधान (रचना करना)

    अविधान

    संक्षेप

    विस्तार

  • Question 27
    5 / -1

    नीचे एक शब्द दिया गया है। दिए गए विकल्पों में से पर्यायवाची शब्द को चिन्हित करें-

    तोय

    Solution

    उपरोक्त में से 'तोय' का पर्यायवाची शब्द है- 'जल'

    • 'जल' का अन्य पर्यायवाची शब्द- वारि, पानी, नीर, सलिल, उदक, अंबु, जीवन, पय, मेघपुष्प।
      • पुल्लिंग शब्द 

    Key Points

    • एक ही शब्द के एक से ज्यादा अर्थ निकले उसे पर्यायवाची शब्द कहते है। 
    • जैसे-
      • वाणी- बात, वचन, शब्द, जबान, भाषा।
      • वायु- हवा, पवन, समीर, अनिल, वात, मारुत।
      • अग्रि- आग, दहन, अनल, पावक, ज्वलन, धूमकेतु, हुताशन, वैश्वानर, ज्वाला।

    Additional Informationकुछ महत्वपूर्ण पर्यायवाची शब्द:-  

    • आकाश- व्योम, शून्य, गगन, अम्बर, आसमान, अंतरिक्ष, नभ, अनंत।
    • साँप- सर्प, नाग, विषधर, व्याल, भुजंग, उरग, अहि पन्नग।
    • जंगल- वन, कानन, बीहड़, विटप, विपिन।
    • घर- गृह, सदन, आवास, आलय, गेह, निवास, निलय, मंदिर।
    • आँख- नेत्र, दृग, नयन, लोचन, चक्षु, अक्षि, अंबक, दृष्टि, विलोचन।
    • कमल- जलज, पंकज, सरोज, राजीव, अरविन्द, नीरज।
    • पृथ्वी- धरा, धरती, वसुधा, भूमि, वसुंधरा, भू, इला, धरा, धरत्री, धरणी।
    • तालाब- सर, सरोवर, तड़ाग, हृद, पुष्कर, जलाशय, पद्माकर
    • वृक्ष- तरु, द्रुम, पादप, विटप, अगम, पेड़, गाछ
  • Question 28
    5 / -1
    'नाग' शब्द का एक अर्थ होता है - 'सर्प'। इस शब्द का दूसरा अर्थ क्या होता है?
    Solution

    इसका सही उत्तर 'हाथी​है।

    Key Points

    • 'नाग' शब्द का एक अर्थ होता है - 'हाथी'। 
    • 'नाग' शब्द के अन्य अर्थ हैं - 'रांगा, मोथा, पान, बादल आदि।

    Additional Information

    अनेकार्थक शब्द

    • ऐसे शब्द, जिनके अनेक अर्थ होते है, अनेकार्थी शब्द कहलाते है।
    • अनेकार्थी का अर्थ है – एक से अधिक अर्थ देने वाला।
    • जैसे - पानी = आभा (चमक), इज्जत, योग्यता, लज्जित। 
  • Question 29
    5 / -1
    'आँख में धूल झोंकना' मुहावरे का सही अर्थ है -
    Solution

     सही उत्तर-  धोखा देना होगा।

    Key Points

    • 'आँख में धूल झोंकना' का सम्यक अर्थ- धोखा देना है।
    • वाक्य प्रयोग- महेंद्र ने शिबू की आँख में धूल झोंक कर जमीन खरीद ली।

    अन्य विकल्प:

    • रास थामना- मार्गदर्शन करना
    • वाक्य प्रयोग- बुजुर्ग हमेशा नई पीढ़ी का रास ही थामते हैं।
    • ईद का चाँद होना- कई दिनों तक दिखाई न देना
    • वाक्य प्रयोग- नौकरी लगते ही लोग अक्सर ईद का चाँद हो जाते हैं।
    • अंधा होना- विवेकहीन होना
    • वाक्य प्रयोग- धन के मद में अंधा नहीं होना चाहिए।

    Hinglish

    • धूल- Dust
    • अंधा- Blind
    • धोखा- deception
  • Question 30
    5 / -1
    'खुद श्रीमान बैंगन खाए, औरों को परहेज बताएँ' लोकोक्ति का सही अर्थ है
    Solution
    खुद श्रीमान बैंगन खाए, औरों को परहेज बताएँ' लोकोक्ति का सही अर्थ है - केवल दूसरों को सलाह देना लेकिन उसे व्यवहार में न लाना। 
    Key Points 
    • लोकोक्ति- खुद श्रीमान बैंगन खाए, औरों को परहेज बताएँ अर्थ- केवल दूसरों को सलाह देना लेकिन उसे व्यवहार में न लाना। 
    • वाक्य- रमेश हमेशा दूसरों को सलाह देते फिरता है, अमल में कुछ नही लाता यह तो खुद श्रीमान बैंगन खाए, औरों को परहेज बताएँ वाली स्थिति हो गयी। 

    Additional Information

    लोकोक्ति परिभाषा

    उदाहरण

    किसी विशेष स्थान पर प्रसिद्ध हो जाने वाले कथन को 'लोकोक्ति' कहते हैं। जब कोई पूरा कथन किसी प्रसंग विशेष में उद्धत किया जाता है तो लोकोक्ति कहलाता है। इसी को कहावत कहते है।

    अकेला चना भाद नहीं फोड़ता अर्थात एक व्यक्ति के करने से कोई कठिन काम पूरा नहीं होता

    वाक्य- उस दिन बात-ही-बात में राम ने कहा, हाँ, मैं अकेला ही कुँआ खोद लूँगा। इन पर सबों ने हँसकर कहा, व्यर्थ बकबक करते हो, अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ता’ । 

  • Question 31
    5 / -1
    पिता ने समझाया कि सदा सत्य बोलना चाहिए। यह वाक्य उदाहरण है
    Solution
    पिता ने समझाया कि सदा सत्य बोलना चाहिए। यह वाक्य मिश्र वाक्य का उदाहरण हैImportant Points 

    रचना के आधार पर वाक्य के दो प्रकार होते है।

    सरल वाक्यमिश्र वाक्य
    जिस वाक्य में एक ही विधेय होता है, उसे सरल वाक्य या साधारण वाक्य कहते हैं, इन वाक्यों में एक ही क्रिया होती है।जिन वाक्यों में एक मुख्य या प्रधान वाक्य हो और अन्य आश्रित उपवाक्य हों, उन्हें मिश्रित वाक्य कहते हैं।
    रानी गाती हैवह राम है जो हंसकर बोला
    Additional Information
    आज्ञावाचक वाक्यइच्छावाचक वाक्य
    जिस वाक्य  से आदेश या आज्ञा या अनुमति का बोध हो, उसे आज्ञावाचक वाक्य कहते है।जिस वाक्य से किसी इच्छा, आशा, आशीर्वाद या शुभकामना का बोध होता है, उसे इच्छावाचक वाक्य कहते हैं।
    राम तुम पढ़ने जाओ।भगवान् तुम्हे खुश रखे।
  • Question 32
    5 / -1

    नीचे दिए गए वाक्यों  में a, b, c, d को  सही क्रम में व्यवस्थित कीजिए

    1. दर्द और परिश्रम का

    a. लक्ष्य तक पंहुचाता है

    b. और उसे एक

    c. मार्ग

    d. इंसान को

    2. सफल व्यक्ति बनाता है।

    Solution

    इसका सही क्रम विकल्प 3 'c, d, a, b' है। अन्य विकल्प असंगत हैं।

    वाक्य का सही क्रम -

    1. दर्द और परिश्रम का
      1. मार्ग
      2. इंसान को
      3. लक्ष्य तक पंहुचाता है
      4. और उसे एक
    2. सफल व्यक्ति बनाता है।


    Additional Information

    • वाक्य रचना व्याकरण के नियमों के आधार पर होनी चाहिए। 
    • उचित  पदक्रम होना चाहिए। 
    • वाक्यों का सार्थक अनुच्छेद बनना चाहिए। 
    • वाक्य व्यवस्था के लिए भाषा बोध अनिवार्य है। 
    • उचित वाक्य संरचना होनी चाहिए।
  • Question 33
    5 / -1
    'तालाब' का पर्यायवाची निम्नलिखित में से कौन सा नहीं है?
    Solution

    पद्माकर, तड़ाग, पुष्कर सभी 'तालाब’ के पर्यायवाची हैं।रत्नाकरतालाब का पर्यायवाची नहीं है। 

    Key Points

    • 'तालाब के अन्य पर्यायवाची हैं- सरोवर, जलाशय, सर, पुष्कर, पोखरा, जलवान, सरसी, ताल। 
    • तालाब का अर्थ 'छोटा जलाशय' होता है।

    अन्य विकल्प:

    शब्द

    पर्यायवाची

    रत्नाकर

    समुद्र, सागर, अर्णव, वारिध।

    Additional Information 

    शब्द

    परिभाषा

    उदाहरण

    पर्यायवाची

    जो विभिन्न शब्द एक ही अर्थ का बोध कराएं, उन्हें पर्यायवाची शब्द कहते हैं। सामान्य भाषा में इनको समानार्थक शब्द भी कहते हैं।

    अक्षर- वर्ण, हर्फ़

    आज्ञा- आदेश, हुक्म, निर्देश

  • Question 34
    5 / -1
    "जंगम' का विलोम शब्द क्या है-
    Solution

     सही उत्तर-  स्थावर होगा।

    Key Points

    • 'जंगम' का अर्थ- जो चल सकता हो
    • 'स्थावर' का अर्थ- स्थिर
    • जंगम का पर्यायवाची- गमनशील, चल, चलायमान
    • स्थावर का पर्यायवाची- अचल, स्थिर

    अन्य विकल्प 

    • मरण का विलोम- जीवन
    • ग्राह्य का विलोम- अग्राह्य
    • महल का विलोम- झोपड़ी

    Hinglish

    • मरण- Death
    • महल- Palace
  • Question 35
    5 / -1

    निम्नलिखित शब्दों में से उपसर्ग के लगाने से बनने वाले सही विकल्प चुनें-

    सत् + जन

    Solution

    'सत् + जन' शब्दों में से उपसर्ग के लगाने से बनने वाला सही शब्द है- 'सज्जन' 

    • सत् + जन = सज्जन
    • 'सत्' (सच) उपसर्ग और 'जन' (लोग) मूल शब्द है 
    • सज्जन में व्यंजन संधि है 
    • अर्थ: जो सबके साथ अच्छा;उचित एवं प्रिय व्यवहार करता, भला आदमी, शरीफ़।
    • विलोम शब्द- 'दुर्जन'
      • अर्थ: दुष्ट व्यक्ति​

    Key Points

    • उपसर्ग शब्द के शुरू में जुड़ता है।

    Additional Informationकुछ महत्वपूर्ण उपसर्ग शब्द:-

    • सत् (सच)- सत्चरित्र, ,सत्कर्म, सदाचार, सत्कार्य।
    • अति (अधिक)- अतिशय, अतिक्रमण, अतिवृष्टि, अतिशीघ्र
    • उत् (श्रेष्ठ)- उत्पत्ति, उत्कंठा, उत्पीड़न, उत्कृष्ट, उन्नत, उल्लेख
    • दुर् (कठिन/गलत)- दुर्दशा, दुराग्रह, दुर्गुण, दुराचार, दुरवस्था
    • सम् (अच्छी तरह)- सन्तोष, संगठन,संलग्न, संकल्प, संशय
    • अन् (नही/बुरा)- अनन्त, अनुपयोगी, अनुपयुक्त, अनागत, अनिष्ट
  • Question 36
    5 / -1
    'सफाई' में कौन-सा प्रत्यय है?
    Solution

    'सफाई' में 'आई' प्रत्यय लगा है।अतः 'आई' विकल्प सही है।अन्य सभी विकल्प असंगत है।

    • संज्ञा - स्त्रीलिंग शब्द - साफ़ होने का भाव 
    Additional Information
    • प्रत्यय की परिभाषा: जो शब्द पीछे लगकर उसके अर्थ में विशेष बदलाव लाते है।उन्हें प्रत्यय कहा जाता है।
    • पढ़+आई=पढाई।
    • भला+आई=भलाई।
    •  ऊँट+नी=ऊँटनी।
    Important Points
    • प्रत्यय के दो प्रकार:
    • वे प्रत्यय जो क्रिया के मूल रूप यानी धातु में जोड़े जाते है।'कृत प्रत्यय' कहे जाते है।
    • जैसे:लिख+अक=लेखक।
    •  यहाँ 'अक' कृत प्रत्यय है।तथा लेखक कृदंत शब्द है।
    • वे प्रत्यय जो क्रिया के मूल रूप यानी धातु को छोडकर अन्य शब्दों -संज्ञा,सर्वनाम,विशेषण,अव्यय में जुड़ते है।'तद्धित प्रत्यय'कहलाते है।
    • जैसे:सेठ+आनी=सेठानी।यहाँ आनी तद्धित प्रत्यय है।तथा सेठानी तद्धितांत शब्द है।
  • Question 37
    5 / -1
    किसी के कहे गये कथन को व्यक्त करने के लिए निम्नलिखित में से कौन से चिह्न का प्रयोग किया जाता है?
    Solution

    किसी के कहे गये कथन को व्यक्त करने के लिए चिह्न का प्रयोग किया जाता है- 'उद्धरण चिह्न'

    Key Pointsआदेश चिह्न:-

    • किसी विषय को क्रम से लिखना हो तो विषय-क्रम व्यक्त करने से पूर्व आदेश चिह्न ( :- ) का प्रयोग किया जाता है।
      • जैसे- वचन के दो भेद है :- 1. एकवचन, 2. बहुवचन।

    Additional Informationयोजक चिह्न:-

    • दो शब्दों में परस्पर संबंध स्पष्ट करने के लिए तथा उन्हें जोड़कर लिखने के लिए योजक-चिह्न (–) का प्रयोग किया जाता है।
      • जैसे- जीवन में सुख-दुःख तो चलता ही रहता है।

    उद्धरण चिह्न:-

    • किसी महान पुरुष द्वारा कही गई बात को उद्धरण करने या किसी वाक्य के खास शब्द पर जोर देने के लिए उद्धरण चिह्न (”…”) का प्रयोग किया जाता है।
    • अर्थात हिन्दी भाषा में किसी और के वाक्य या शब्दों को ज्यों-का-त्यों रखने में इस चिह्न (" ") का प्रयोग किया जाता है 
      • जैसे- गाँधी ने कहा,हमेशा सत्य बोलो

    प्रश्नवाचक चिह्न:-

    • प्रश्नवाचक वाक्य के अंत में ‘प्रश्नसूचक चिन्ह’ (?) का प्रयोग किया जाता है
    • अर्थात् जब किसी वाक्य में सवाल पूछे जाने का भाव उत्पन्न हो तो उस वाक्य के अंत में प्रशनवाचक चिन्ह (?) का प्रयोग किया जाता है।
      • जैसे- वह क्या खा रहा है?
  • Question 38
    5 / -1

    निम्नलिखित प्रश्न में, चार विकल्पों में से, उस सही विकल्प का चयन करें जो रिक्त स्थान के लिए उपयुक्‍त शब्‍द का सही विकल्‍प है।

    जब जानवरों में साफ-सफाई के प्रति इतनी ______ है, फिर हम तो इन्सान है।

    Solution

    जब जानवरों में साफ-सफाई के प्रति इतनी जागरूकता है, फिर हम तो इन्सान है।

    Key Points

    • जागरुकता में : ता प्रत्यय है।
    • जागरुक : प्रबुद्ध, सावधान, सचेत, खबरदार, चेतन, होशियार, चौकन्ना। आदि हैं।

    Additional Information

    • हिंसा: अनिष्ट, हानि
    • खिन्नता: खिन्न होने का भाव; उदासी; चिंता; विकलता।
    • विरोध: बाधा, प्रतिरोध
  • Question 39
    5 / -1

    दिए गए वाक्य का वह भाग ज्ञात करें जिसमे कोई त्रुटि है।

    Solution

    इसका सही उत्तर विकल्प 4 है। अन्य विकल्प सही उत्तर नहीं हैं।

    Key Points

    • दिये गए वाक्य के भाग 4 में त्रुटि है।
    • इसमें लिंग संबंधी त्रुटि है।
    • यहाँ पर 'मिलेगा' शब्द के स्थान पर 'मिलेगी' उचित होगा।
    • क्योंकि करता और कर्म स्त्रीलिंग हैं, इसलिए क्रिया भी स्त्रीलिंग होगी। 
    • अन्य विकल्प सही उत्तर नहीं हैं।

    अशुद्ध वाक्य

    शुद्ध वाक्य

    प्रत्येक लड़की को स्नातक उत्तीर्ण करने पर साइकिल मिलेगा।

    प्रत्येक लड़की को स्नातक उत्तीर्ण करने पर साइकिल मिलेगी।


    Additional Information

    • वाक्य सम्प्रेषण की सबसे महत्वपूर्ण और सार्थक इकाई होती है।
    • अतः वाक्यगत अशुद्धियाँ को शुद्ध रूप में लिखना सम्प्रेषण को अधिक सरल बनाता है।
    • वाक्य में, संज्ञा, सर्वनाम, लिंग, वचन, क्रिया-विशेषण, क्रिया, विशेषण आदि संबंधी अशुद्धियाँ हो सकती हैं।
  • Question 40
    5 / -1
    'तुरंग' शब्द का अर्थ है-
    Solution

    'तुरंग' शब्द का अर्थ-3) घोड़ा है।

    Important Points

    • 'तुरंग' शब्द के अन्य अर्थ-घोड़ा,अश्व,चित्त,तेज़ चलने वाला
    • 'बिजली' शब्द के अन्य अर्थ-बहुत अधिक चमकीला,चंचल या चपल,बिजली गिरना,नष्ट होना
    • 'हाथी' शब्द के अन्य अर्थ-गज,शतरंज का एक मोहरा
    • 'शेर' शब्द के अन्य अर्थ- सिंह,व्याघ्र,निर्भीक और साहसी पुरुष
  • Question 41
    5 / -1
    हेम शब्द का अर्थ है-
    Solution
    हेम शब्द का अर्थ ‘सोना’ है। अतः सही विकल्प 'सोना' है 
  • Question 42
    5 / -1

    निम्नलिखित वाक्य के प्रथम और अंतिम भागों को क्रमशः 1 और 6 की संज्ञा दी गई है। उनके बीच आने वाले अंशों को चार भागों में बॉटकर य, र, ल, व की संज्ञा दी गई है। चारों भाग उचित क्रम में नहीं हैं। इन अंशों को उचित क्रमानुसार व्‍यवस्थित करना है। वाक्य को ध्यान से पढ़कर दिए गए विकल्पों में से इनका उचित क्रम चुनिए और निर्देशानुसार चिह्न लगाइए।

    1. इस दहेज-रूपी दानव ने कितने ही

    य. तो पूर्ण समाज कुछ

    र. ही दिनों में उसके मुँह

    ल. हरे-भरे घर वीरान कर दिए,

    व. यदि इसका अन्त नहीं किया गया,

    6. का ग्रास बन जाएगा।

    Solution

    इसका सही उत्तर विकल्प 2 है। अन्य विकल्प सही उत्तर नहीं हैं।

    Key Points

    • इसका सही उत्तर क्रम- ल व य र है।
    • अन्य विकल्प असंगत हैं।
    • व्यवस्थित वाक्य- इस दहेज-रूपी दानव ने कितने ही हरे-भरे घर वीरान कर दिए, यदि इसका अन्त नहीं किया गया, तो पूर्ण समाज कुछ ही दिनों में उसके मुँह का ग्रास बन जाएगा।
  • Question 43
    5 / -1
    'बातचीत बंद करो और काम करना शुरू करो।' यह कैसा वाक्य है? 
    Solution

    दिए गए विकल्पों में से सही उत्तर विकल्प 2 ‘आज्ञार्थक’ है। अन्य विकल्प इसके गलत उत्तर हैं। 

    Key Points

    • 'बातचीत बंद करो और काम करना शुरू करो।' यह आज्ञार्थक वाक्य है। 
    • वह वाक्य जिसके द्वारा किसी प्रकार की आज्ञा दी जाती है या प्रार्थना किया जाता है, वह आज्ञार्थक वाक्य है। 
    • शब्दों के सार्थक समूह को वाक्य अर्थात् वाक्य शब्द–समूह का वह सार्थक विन्यास होता है, जिससे उसके अर्थ एवं भाव की पूर्ण एवं सुस्पष्ट अभिव्यक्ति होती है।
    • वाक्य के भेद: क्रिया, अर्थ तथा रचना के आधार पर वाक्यों के निम्न भेद प्रभेद किये जाते हैं-  

     

    1. क्रिया की दृष्टि से: क्रिया के आधार पर वाक्य तीन प्रकार के होते हैं।
    2. अर्थ के आधार पर: अर्थ के आधार पर वाक्य 8 प्रकार के होते हैं।
    3. रचना के आधार पर: रचना के आधार पर वाक्य तीन प्रकार के होते हैं। 

    Additional Information

    • अर्थ के आधार पर आठ प्रकार के वाक्य होते हैं-

    1. विधानवाचक वाक्य - वह वाक्य जिससे किसी प्रकार की जानकारी प्राप्त होती है, वह विधानवाचक वाक्य कहलाता है।

    उदाहरण -भारत एक देश है।

    2. निषेधवाचक वाक्य : जिन वाक्यों से कार्य न होने का भाव प्रकट होता है, उन्हें निषेधवाचक वाक्य कहते हैं।

    उदाहरण - मैंने दूध नहीं पिया।

    3. प्रश्नवाचक वाक्य - वह वाक्य जिसके द्वारा किसी प्रकार प्रश्न किया जाता है, वह प्रश्नवाचक वाक्य कहलाता है।

    उदाहरण - भारत क्या है?

    4. आज्ञावाचक/आज्ञार्थक वाक्य - वह वाक्य जिसके द्वारा किसी प्रकार की आज्ञा दी जाती है या प्रार्थना किया जाता है, वह आज्ञावाचक वाक्य कहलाता हैं।

    उदाहरण - बैठो।

    5. विस्मयादिबोधक वाक्य - वह वाक्य जिससे किसी प्रकार की गहरी अनुभूति का प्रदर्शन किया जाता है, वह विस्मयादिबोधक वाक्य कहलाता हैं।

     उदाहरण - अहा! कितना सुन्दर उपवन है।

    6. इच्छावाचक वाक्य - जिन वाक्यों में किसी इच्छा, आकांक्षा या आशीर्वाद का बोध होता है, उन्हें इच्छावाचक वाक्य कहते हैं। उदाहरण- भगवान तुम्हे दीर्घायु करे।

    7. संकेतवाचक वाक्य- जिन वाक्यों में किसी संकेत का बोध होता है, उन्हें संकेतवाचक वाक्य कहते हैं।

    उदाहरण- राम का मकान उधर है।

    8. संदेहवाचक वाक्य - जिन वाक्यों में संदेह का बोध होता है, उन्हें संदेहवाचक वाक्य कहते हैं।

    उदाहरण- क्या वह यहाँ आ गया ?

  • Question 44
    5 / -1
    'आग में घी डालना' मुहावरे का सही अर्थ है।
    Solution

    'आग में घी डालना' मुहावरे का उचित अर्थ है - 'किसी के गुस्से को और अधिक भड़काना'। अन्य विकल्प असंगत हैं। अतः सही विकल्प है 4 -  'किसी के गुस्से को और अधिक भड़काना'।  

    Key Points

    • 'आग में घी डालना' मुहावरे का उचित अर्थ है - 'किसी के गुस्से को और अधिक भड़काना'। 
    • वाक्य प्रयोग - तुम उसे पुरानी बातें याद कराकर आग में घी डालने का काम कर रहे हो
    • इसके अन्य विकल्प किसी मुहावरे के अर्थ नहीं है बल्कि ऐसे ही साधारण वाक्य हैं।

    Additional Information  

    मुहावरा परिभाषा

    उदहारण

    वाक्य प्रयोग

    मुहावरा का शाब्दिक अर्थ‘ अभ्यास’ है। मुहावरा शब्द अरबी भाषा का शब्द है। हिन्दी में ऐसे वाक्यांशों को मुहावरा कहा जाता है, जो अपने साधारण अर्थ को छोड़कर विशेष अर्थ  को व्यक्त करते हैं।

    अंक में भरना स्नेह से लिपटा  लेना  

    माँ ने स्नेह से अपने पुत्र को अंक में भर लिया।

  • Question 45
    5 / -1
    ‘एक पंथ दो काज’ लोकोक्ति का सही अर्थ क्या है?
    Solution

    दिए गए विकल्पों में से विकल्प ‘एक कार्य से दोहरा लाभ’ सही है। अत: इसका सही उत्तर विकल्प 3 एक कार्य से दोहरा लाभहै। अन्य विकल्प अनुचित उत्तर हैं।

    स्पष्टीकरण:

    लोकोक्ति- एक पंथ दो काज। अर्थ- एक कार्य से दोहरा लाभ

    वाक्य प्रयोग- मुझे ऑफिस के कार्य से मुंबई जाना ही तो साथ में अपने घर वालों से भी मिल लूँगा। सच में इसे कहते हैं ‘एक पंथ दो काज’ होना।

    अन्य विकल्प:

    अर्थ

    लोकोक्ति

    एक वस्तु के बहुत सारे ग्राहक

    एक अनार सौ बीमार

    मुसीबत में और मुसीबत

    गरीबी में आटा गीला

    दो व्यक्तियों की स्थिति में अंतर

    कहाँ राजा भोज कहाँ गंगू तेली

    विशेष:

    लोकोक्ति की परिभाषा

    उदाहरण

    किसी विशेष स्थान पर प्रसिद्ध हो जाने वाले कथन को 'लोकोक्ति' कहते हैं। दूसरे शब्दों में जब कोई पूरा कथन किसी प्रसंग विशेष में उद्धत किया जाता है तो लोकोक्ति कहलाता है। इसी को कहावत भी कहते हैं।

    अपना रख, पराया चख अर्थात अपनी वस्तु की रक्षा और दूसरे कि वस्तु का उपभोग।

  • Question 46
    5 / -1
    'प्रयागराज' संज्ञा की दृष्टि से है
    Solution

    उपर्युक्त विकल्पों में से विकल्प "व्यक्तिवाचक संज्ञा" सही है तथा अन्य विकल्प असंगत है।

    Key Points
    • प्रयागराज शब्द व्यक्तिवाचक संज्ञा शब्द है।
    • व्यक्तिवाचक संज्ञा 
      • वह शब्द जो किसी एक व्यक्ति , वस्तु , स्थान आदि का बोध करवाता है उसे व्यक्तिवाचक संज्ञा कहते है।
      • जैसे-
        • राम - व्यक्ति का नाम है
        • श्याम - व्यक्ति का नाम है
        • टेबल - बैठक का एक साधन है किन्तु एक नाम को सूचित कर रहा है इसलिए यह व्यक्तिवाचक है।
    Additional Information
    • जातिवाचक संज्ञा 
      • जो शब्द संज्ञा किसी जाति , का बोध करवाता है वह जातिवाचक संज्ञा कहलाता है।
      • जैसे-
        • लड़का , लड़की , नदी , पर्वत आदि।
    • द्रव्यवाचक संज्ञा 
      • जिस संज्ञा शब्दों से किसी धातु , द्रव्य , सामग्री , पदार्थ आदि का बोध हो , उसे द्रव्यवाचक संज्ञा कहते है।
      • जैसे
        • गेहूं - भोजन की सामाग्री है।
        • चावल - भोजन की सामाग्री है।
    • भाववाचक संज्ञा
      • जिन संज्ञा शब्दों से पदार्थों की अवस्था , गुण – दोष , धर्म , दशा , आदि का बोध हो वह भाववाचक संज्ञा कहलाता है।
      • जैसे
        • बुढ़ापा - बुढ़ापा जीवन की एक अवस्था है।
        • मिठास - मिठास मिठाई का गुण है।
        • क्रोध - क्रोध एक भाव या दशा है।
        • हर्ष - हर्ष एक भाव या दशा है।
  • Question 47
    5 / -1

    नीचे एक शब्द दिया गया है। दिए गए विकल्पों में प्रस्तुत उपसर्ग ज्ञात कीजिए-

    विज्ञान

    Solution

    उपरोक्त 'विज्ञान' शब्द में उपसर्ग है- 'वि'

    • वि + ज्ञान = विज्ञान
    • 'वि' (विशेष) उपसर्ग और 'ज्ञान' (जानना) मूल शब्द
    • अर्थ: जानकारी ,दक्षता, योग्यता।

    Key Points

    • उपसर्ग शब्द के शुरू में जुड़ता है। 

    Additional Informationकुछ महत्वपूर्ण उपसर्ग शब्द:-

    • वि (विशेष)- विजय, विहार, विख्यात, व्याधि, व्यसन, व्यवहार
    • चिर (लम्बा)- चिरकुमार, चिरकाल, चिरंजीवी, चिरायु।
    • अन (नही)- अनबन, अनपढ़, अनजान, अनहोनी, अनमोल
    • सम् (अच्छी तरह)- सन्तोष, संगठन,संलग्न, संकल्प, संशय, संरक्षा
    • अति (अधिक)- अतिशय, अतिक्रमण, अतिवृष्टि, अतिशीघ्र, अत्यन्त
    • उत् (श्रेष्ठ)- उत्पत्ति, उत्कंठा, उत्पीड़न, उत्कृष्ट, उन्नत, उल्लेख
    • दुर् (कठिन/गलत)- दुर्दशा, दुराग्रह, दुर्गुण, दुराचार, दुरवस्था, दुरुपयोग
    • निस् (बिना/बाहर)- निश्चय, निश्छल, निष्काम, निष्कर्म, निष्पाप, निष्फल
  • Question 48
    5 / -1
    'चमकीला' शब्द में प्रत्यय है:    
    Solution

    ‘ईला’ प्रत्यय से बना शब्द ‘चमकीला’ है।

    • ‘ईला’ प्रत्यय से बने अन्य शब्द- जहरीला, रंगीला, भड़कीला आदि हैं।

    प्रत्यय

    वे शब्दांश, जो यौगिक शब्द बनाते समय बाद में लगते हैं। प्रत्यय कहलाते हैं।

    पढ़ाई, सुंदरता

  • Question 49
    5 / -1
    'सदा सच बोलना चाहिए' यह किस प्रकार का वाक्य-भेद है?
    Solution

    सही उत्तर इच्छावाचक' होगा।

    Key Points

    • सदा सच बोलना चाहिए - इच्छावाचक वाक्य है।
    • जिन वाक्यों से किसी इच्छा, आशा, आशीर्वाद या शुभकामना का बोध होता है, उन्हें इच्छावाचक वाक्य कहते हैं।

    अन्य विकल्प - 

    वाक्य

    परिभाषा

    उदाहरण

    संदेह वाचक 

    जिन वाक्य में किसी भी प्रकार की संभावना और सदेंह का बोध होता हो, उन वाक्य को संदेहवाचक वाक्य कहा जाता है।

    आज वर्षा हो सकती है।

    आज्ञावाचक 

    जिन वाक्यों से आज्ञा, उपदेश, प्रार्थना, अनुमति आदि का बोध हो, उन्हें आज्ञावाचक वाक्य कहते हैं। 

    तुम पढ़ने जाओ। 

    संकेतवाचक 

    जिन वाक्यों एक क्रिया का होना दूसरी क्रिया पर निर्भर करती है, उन्हें संकेतवाचक वाक्य कहते हैं।

    कार को धीरे चलाते, तो पेट्रोल खत्म नहीं होता। 

    Additional Information

    वाक्य

    शब्दों का दो या दो से अधिक पदों के सार्थक समूह जिसका पूरा अर्थ निकलता हो, उन्हें वाक्य कहा जाता है।

  • Question 50
    5 / -1
    'इतर' शब्द का अर्थ दिए गए विकल्पों में से कौन सा है?
    Solution

    दिए गए विकल्पों में से सही उत्तर विकल्प 1 'दूसरा है। अन्य विकल्प इसके गलत उत्तर हैं। 

    Key Points

    • दिए गए विकल्पों में 'इतर' शब्द का अर्थ 'दूसरा' होगा। 
    • अन्य विकल्प इसके अनुचित उत्तर हैं। 
    • यह विशेषण शब्द है जिसके अन्य अर्थ हैं - भिन्न, और। 


    अन्य विकल्प: 

    • ऐश्वर्य - वैभव 
    • पीड़ा - तकलीफ 
    • दुर्लभ - कठिनता से प्राप्त होने वाला। 


    Additional Information

    • शब्द और अर्थ सामान्य व्यवहार के लिए सहायक तो हैं ही, शास्त्रीय परम्परा में भी उनका महत्त्व सर्वस्वीकृत है।
    • शब्द और अर्थ अन्योन्याश्रित हैं।
    • दोनों को मिलाकर ही 'सार्थक शब्द' बनता है।
    • अर्थ के बिना शब्द निर्जीव है और शब्द के बिना अर्थ अग्राह्य या अप्रयोज्य।
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