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Sanskrit Domain Test - 9

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Sanskrit Domain Test - 9
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Self Studies Self Studies
Weekly Quiz Competition
  • Question 1
    5 / -1

    'अपसारय घनसारं कुरु हारं दूर एव किं कमलैः।

    अलमलमाल मृणालैरिति वदति दिवानिशं बाला॥'

    इत्यत्र कः अलङ्कारः वर्तते?

    Solution

    प्रश्नानुवाद - 'अपसारय घनसारं कुरु हारं दूर एव किं कमलैः। अलमलमाल मृणालैरिति वदति दिवानिशं बाला॥' यहाँ कौनसा अलङ्कार है?

    स्पष्टीकरण - प्रस्तुत श्लोक में अनुप्रास अलंकार का भेद वृत्यानुप्रास है। 
    अनुप्रास अलंकार - "अनुप्रास: वर्णसाम्यं वैषम्येपि स्वरस्य यत्"

    • काव्य में यदि स्वरों की विषमता होते हुए भी,
    • समान व्यंजन वर्णों की आवृत्ति (दोहराया जाए) होती है। 
    अनुप्रास अलंकार के मुख्य तीन ही भेद माने जाते है - 1.छेकानुप्रास 2.वृत्यानुप्रास 3.लाटानुप्रास
    1. छेकानुप्रास - काव्य में जब एक या अनेक वर्णों की एक बार ही आवृत्ति हो।
    • उदाहरण - ततोरुणपरिस्पन्दमन्दीकृतवपु: शशी।
                             दध्नेकामपरिक्षामकामिनीगण्डपाण्डुताम्।।
    • इस उदाहरण में स्पन्द-मन्द में( न्द-न्द का), काम -कामिनी में (काम का),
    • गण्ड- पाण्डु में(ण्ड का) मात्र एक ही बार आवृत्ति हुई है।
    2. वृत्यानुप्रास - काव्य में जब एक ही या अनेक वर्णों की आवृत्ति मात्र एक नहीं अपितु अनेक बार होती है। 
    • उदाहरण - अपसारय घनसारं कुरु हारं दूर एव किं कमलै:।

                              अलमलमालि मृणालैरिति वदति दिवानिशं बाला।।

    • श्लोक के पूर्वार्द्ध में 'र' वर्ण की अनेक बार आवृत्ति हुई है।
    • उत्तरार्द्ध में 'ल' व्यंजन वर्ण की अनेक बार आवृत्ति हुई है अत: यहाँ वृत्त्यनुप्रास का प्रयोग हुआ है।
    3. लाटानुप्रास - एक ही वाक्यांश/चरण/पदबंध का एक से अधिक ( प्राय: दो बार) प्रयोग होता है। लमालि मृणालैरिति वदति दिवानिशं बाला।।
    किन्तु तात्पर्य भिन्न -भिन्न होता है| इसे पदानुप्रास भी कहते है।
    • उदाहरण - यस्य सविधे दयिता, दवदहनस्तुहिनदीधितिस्तस्य।
                             यस्य च सविधे दयिता, दवदहनस्तुहिनदीधितिस्तस्य।। 
    • इस उदाहरण में एक ही प्रकार का भिन्न भिन्न अर्थ प्रकट होता है।
    • पूर्वार्द्ध में 'तुहिनदीधितौ दवदहनत्व' का और उत्तरार्द्ध में 'दवदहने तुहिनदीधितित्व' का विधान किया गया है।

     

    अतः स्पष्ट है कि उक्त श्लोक में अनुप्रास अलंकार है।Key Pointsअन्य विकल्प - 
    1. श्लेषः -

    • लक्षण - ‘‘श्लिष्टै: पदैरनेकार्थाभिधाने श्लेष इष्यते”
    • अर्थात् जहाँ अर्थ भेद के द्वारा भिन्न शब्द भी एक रूप (युगपद) उच्चारण से समझे जाते है। 

    2. यमकम् -

    • लक्षण - “सत्यर्थे पृथगर्थायाः स्वरव्यञ्जन संहतेः। क्रमेण तेनैवावृत्तिर्यमकं विनिगद्यते।”
    • अर्थात् जहाँ अर्थयुक्त भिन्न-भिन्न अर्थों के शब्दों की पूर्वक्रम से आवृत्ति होती है। 
    • यहाँ एक वर्णसमूह का अर्थ दूसरे वर्णसमूह से अलग होगा। 

    3. रूपकम् - 

    • लक्षण - "तद्रूपकमभेदो यः उपमानोपमेययो:"
    • अर्थात् उपमान और उपमेय (जिनका भेद प्रसिद्ध है) का जो (समानता के कारण) अभेद है, वह रूपक अलंकार है।
  • Question 2
    5 / -1
    'अयमेति मन्दमन्दं कावेरीवारिपावनः पवनः' इत्यत्र कः अलंकारः?
    Solution

    प्रश्न अनुवाद - 'अयमेति मन्दमन्दं कावेरीवारिपावनः पवनः' इसमें कौन सा अलंकार है ?
    स्पष्टीकरण -

    • 'अयमेति मन्दमन्दं कावेरीवारिपावनः पवनः' में अनुप्रास अलंकार है 

    अनुप्रास अलंकार -

    • यह शब्दालंकार है। रस, भाव आदि के अनुगत जो वर्ण - विन्यास है, वह अनुप्रास है।

     conclusion

    • लक्षण - 'शब्दसाम्यं वैषम्येऽपि स्वरस्य यत्'
    • यहाँ स्वरों की विषमता होने पर भी व्यञ्जनों की समानता से अनुप्रास अलंकार है।
    • 'वर्णसाम्यमनुप्रासः', काव्यप्रकाशकार मम्मट के अनुसार अर्थात् जहाँ वर्णों की समता (समानता) होती है, वहाँ अनुप्रास अलंकार होता है।

    उदाहरण -
    आदाय बकुलगन्‍धान्‍धीकुर्वन पदे पदे भ्रमरान् ।
    अयमेति मन्‍दमन्‍दं कावेरीवारिपावन: पवन: ।।

    • इस श्लोक में 'गन्‍धान्‍धी' शब्‍द में 'न' 'ध' वर्ण, 'कावेरीवारि' शब्‍द में 'व' 'र' वर्ण, 'पावन: पवन:' शब्‍द में 'प' 'व' 'न' वर्ण की बार-बार आवृत्ति है। वर्णों की समानता से श्लोक के सौन्दर्य में अभिवृद्धि हो रही है। अतः यहाँ अनुप्रास अलंकार है।

     

    अत: 'अनुप्रासः' विकल्प सही है 

  • Question 3
    5 / -1
    'नवपलाशपलाशवनं पुरः, स्फुटपरागपरागतपङ्कजम्।' इत्यत्र कः अलङ्कारः अस्ति?
    Solution

    प्रश्नानुवाद - 'नवपलाशपलाशवनं पुरः, स्फुटपरागपरागतपङ्कजम्।' यहाँ कौनसा अलङ्कार है?

    "नवपलाशपलाशवनं पुरः स्फुटपरागपरागतपङ्कजम्।
    मृदलतान्तलतान्तमलोकयत्स सुरभिं सुरभिं सुमनोभरैः।।"
    श्लोकार्थ: -

    • अर्थात् जिसमें पलाशों का वन नवीन पलाश के पत्तों से युक्त हो गया है,
    • और कमल परागकणों की अधिकता से सम्पन्न है,
    • लताओं की छोरें कोमल और विस्तृत होकर पुष्पों की बहुलता से झुक गई है,
    • और पुष्पों की सुगन्ध से युक्त वसन्त ऋतु को इस रूप में भगवान कृष्ण ने रैवतक पर्वत पर देखा।

    स्पष्टीकरण -

    • प्रस्त्तुत श्लोक में यमक अलङ्कार है। 
    • यह शब्दालंकार है। 'यमौ द्वौ समजातौ तत्प्रकृतिर्यमकम्
    • अर्थात् जहाँ समान रूप से दिखाई देने वाले दो शब्द अर्थ की दृष्टि से भिन्न होते है।

    लक्षण - “सत्यर्थे पृथगर्थायाः स्वरव्यञ्जन संहतेः।
                 क्रमेण तेनैवावृत्तिर्यमकं विनिगद्यते।।”

    • अर्थात् जहाँ अर्थयुक्त भिन्न-भिन्न अर्थों के शब्दों की पूर्वक्रम से आवृत्ति होती है, वहाँ यमक अलंकार होता है।
    • यहाँ एक वर्णसमूह का अर्थ दूसरे वर्णसमूह से अलग होगा।
    • जैसे, उदाहरण में यहाँ ‘पलाश-पलाश’, ‘पराग-पराग’, ‘लतान्तु-लतान्त’, ‘सुरभिं-सुरभिम्’ इन पदों की आवृत्ति दिखाई देती है।
    • किन्तु वास्तविक रूप से इनके अर्थों में भिन्नता है।

    जैसे - 

    • पलाश - पत्रम्, पलाश - किंशुकम्। 
    • पराग - रजकणः, परागतम् - व्याप्तम्। 
    • मृदुलतान्त - कोमलातपेन क्लान्त:, लतान्तम् - लतायाः
    • सुरभिम् - सुगन्धूम्, सुरभिम् - वसन्त समयम्। 

     

    अतः स्पष्ट है कि प्रस्तुत श्लोक में "यमक अलङ्कार" का प्रयोग किया गया है। Key Pointsअन्य विकल्प - 
    1. अनुप्रासः - 

    • लक्षण - "वर्णसाम्यमनुप्रासः” 
    • अर्थात् जहाँ वर्गों की समता (समानता) होती है, वहाँ अनुप्रास अलंकार होता है।

    2. श्लेषः - 

    • लक्षण - ‘‘श्लिष्टै: पदैरनेकार्थाभिधाने श्लेष इष्यते”
    • जहाँ अर्थ भेद के द्वारा भिन्न शब्द भी एक रूप उच्चारण से समझे जाते है वहाँ श्लेषालंकार होता है। 

    3. रूपकम् - 

    • लक्षणम् - "तद्रूपकमभेदो यः उपमानोपमेययो:"
    • उपमान और उपमेय का जो (समानता के कारण) अभेद है, वह रूपक अलंकार है।
  • Question 4
    5 / -1

    "पृथुकार्तस्वरपात्रं भूषितनिःशेषपरिजनं देव।

    विलसत्करेणुगहनं सम्प्रति सममावयोः सदनम्।।"

    पद्येऽस्मिन् अलंकारः वर्तते-

    Solution

    प्रश्न का हिंदी भाषांतर : 

    "पृथुकार्तस्वरपात्रं भूषितनिःशेषपरिजनं देव।

    विलसत्करेणुगहनं सम्प्रति सममावयोः सदनम्।।"

    इस पद्य में कौन सा अलंकार है?

    स्पष्टीकरण : 

    • प्रस्तुत पद्य का अर्थ राजा और याचक इन दोनोंं के दृष्टि से हो सकता है
    शब्दराजा के पक्ष मेंयाचक के पक्ष में
    पृथुकार्तस्वरपात्रंराजा का घर सोने के बडे बडे बर्तनो से युक्त हैयाचक का घर बालकोंं के भूख से रोने का स्थान है
    भूषितनिःशेषपरिजनं सारे सेवक अलंकृत हैसारे सेवक भूमि पर पडे है
    विलसत्करेणुगहनं झूमती हुई हथिनियोंं से युक्त महल हैचूहोंं के खोडे हुए बिलोंं की धूल से भरा घर है
    • अतः याचक राजा से कहता है, सांप्रत हम दोनोंं का घर समान है
    • इस श्लोक का अर्थ दो पद्धति से होता है, अतः "श्लिष्टैः पदैरनेकार्थाभिधाने श्लेष इष्यते" अर्थात् चिपके हुए पदोंं से अनेक अर्थोंं का प्रतिपादन होता है, वह श्लेष अलंकार होता है, इस अर्थ से प्रस्तुत प्रश्न का उत्तर 'श्लेषः' यह है।

    Additional Information

    • आचार्य विश्वनाथ श्लेष के छह भेद मानते है - 
      • वर्णप्रत्‍ययलिंगानां प्रकृत्‍यो: पदयोरपि। श्‍लेषाद् विभक्तिवचनभाषाणामष्‍टधा च स:।।
        • अर्थ - 'वर्ण, प्रत्‍यय, लिंग, प्रकृति, पद, विभक्ति, वचन एवं भाषा' यह श्लेष के छह भेद है।
    • अन्य आचार्य श्लेष के 'शब्‍दश्‍लेष' और 'अर्थश्‍लेष' यह दो भेद मानते है।
    • कुछ आचार्य श्लेष के तीन भेद मानते है - 
      • सभंग श्‍लेष
      • अभंग श्‍लेष
      • सभंगाभंग श्‍लेष
  • Question 5
    5 / -1
    यमकम् इत्यलङ्कार: कदा भवति?
    Solution

    प्रश्न अनुवाद - यमकम्, यह अलंकार कब होता है ?
    स्पष्टीकरण -

    • स्वरव्यंजन (वर्ण) समूह की आवृत्ति (वर्णसमूहस्य आवृत्तौ) यमक अलंकार में होती है।
    • यह शब्दालंकार है। 'यमौ द्वौ समजातौ तत्प्रकृतिर्यमकम्’
    • अर्थात् जहाँ समान रूप से दिखाई देने वाले दो शब्द अर्थ की दृष्टि से (प्रकृति की दृष्टि से) भिन्न होते हैं, वहाँ यमक अलंकार होता है।
    • यमक का अर्थ होता है - जोड़ा। स्वर और व्यंजनों (वर्णों) के समूह का यहाँ जोड़ा बनता है।

    Additional Information

    लक्षण - 
    “सत्यर्थे पृथगर्थायाः स्वरव्यञ्जन संहतेः।
    क्रमेण तेनैवावृत्तिर्यमकं विनिगद्यते।”

    • अर्थात् जहाँ अर्थयुक्त भिन्न-भिन्न अर्थों के शब्दों की पूर्वक्रम से आवृत्ति होती है, वहाँ यमक अलंकार होता है।
    • यहाँ एक वर्णसमूह का अर्थ दूसरे वर्णसमूह से अलग होगा।
    • जैसे - ‘समरसमरसोऽयम्’, यहाँ पहले पद ‘समर’ का अर्थ - युद्ध है, द्वितीय पद ‘समरस’ का अर्थ - समानभावयुक्त है।

     

    अत: "वर्णसमूहस्य आवृत्तौ" विकल्प सही है।

  • Question 6
    5 / -1
    'कमलमिव मुखं मनोज्ञमेतत्' इत्यत्र कः अलङ्कारः?
    Solution

    प्रश्नानुवाद - 'कमलमिव मुखं मनोज्ञमेतत्' यहाँ कौनसा अलङ्कार है?

    उक्ति - 'कमलमिव मुखं मनोज्ञमेतत्'
    स्पष्टीकरण - यहाँ मुख की उपमा कमल से दी गई है।
    "साधर्म्यमुपमा भेदे" अर्थात् दो वस्तुओं में भेद रहने पर भी, जब उनकी समानता का प्रतिपादन किया जाता है।
    उपमा अलंकार में चार उपादान होते है -

    • (1) उपमान (जिससे उपमा दी जाय) जैसे - कमलम्
    • (2) उपमेय (जिसकी उपमा दी जाय) जैसे - मुखम्
    • (3) समान धर्म, जैसे - मनोज्ञं (मनोज्ञता, सुन्दरता)
    • (4) उपमानवाची शब्द, जैसे - इव (यथा, वत्, तुल्य, सम आदि)
    • जहाँ इन चारों का स्पष्ट उल्लेख हो, वह पूर्णोपमा अलंकार कहलाता है।
    • जहाँ इनमें से कुछ लुप्त रहते है, वह लुप्तोपमा अलंकार कहलाता है।

    अत: स्पष्ट है कि उक्त उक्ति में उपमा अलंकार है। Key Pointsअन्य विकल्प -
    1. अर्थान्तरन्यासः - 

    • "भवेदर्थान्तरन्यासोऽनुषक्तार्थान्तराभिधा"
    • मुख्य अर्थ का समर्थन करने वाले अर्थान्तर (दूसरे वाक्यार्थ) का प्रतिपादन (न्यास) अर्थान्तरन्यास अलंकार कहलाता है।

    2. उत्प्रेक्षा -

    • "भवेत् सम्भावनोत्प्रेक्षा प्रकृतस्य परात्मना"
    • उपमान के द्वारा प्रकृत (उपमेय) की सम्भावना ही उत्प्रेक्षा अलङ्कार है।

    3. रूपकम् -

    • "तद्रूपकमभेदो य उपमानोपमेययोः"
    • अतिशय समानता के कारण जहाँ उपमेय को उपमान का रूप दे दिया जाए,
    • अथवा उपमेय पर उपमान का आरोप कर दिया जाए, वहाँ रूपक अलंकार होता है।
  • Question 7
    5 / -1

    'दासे कृतागसि भवेदुचितः प्रभूणां

    पादप्रहार इति सुन्दरि नास्मि दूये।

    उदयतकठोरपुलकाङकुरकण्टकाग्रैर्यत्खिदयते

    मृदुपदं ननु सा व्यत मे।।

    इत्यत्र कः अलङ्कारः वर्तते?

    Solution

    अनुवाद - 'दासे कृतागसि भवेदुचितः प्रभूणां पादप्रहार इति सुन्दरि नास्मि दूये।

    उदयतकठोरपुलकाङकुरकण्टकाग्रैर्यत्खिदयते मृदुपदं ननु सा व्यत मे।। - यहाँ कौन सा अलंकार है?

    स्पष्टीकरण -  

    • प्रस्तुत उदाहरण विश्वनाथ कृत काव्यशास्त्रीय ग्रंथ साहित्यदर्पण से है।
    • जो रूपक अलंकार का उदाहरण है।

    उदाहरण -   

    'दासे कृतागसि भवेदुचितः प्रभूणां

    पादप्रहार इति सुन्दरि नास्मि दूये।

    उदयतकठोरपुलकाङकुरकण्टकाग्रैर्यत्खिदयते

    मृदुपदं ननु सा व्यत मे।।

    • अनुवाद - दास यदि कोई अपराध करे तो प्रभु को लात मारना उचित है , अतः  हे सुन्दरि ! तुमने जो लात मारी है , इस बात का मुझे कोई दुख नहीं है। परन्तु तुम्हारे पादस्पर्श से मेरे  देह मे उत्पन्न  हुए रोमांचरूप कठोर कांटों से जो तुम्हारा कोमल चरण को कष्ट हो रहा है, इसका मुझे दुख है।

    अतः प्रस्तुत उदाहरण में रूपक अलंकार है।

    Additional Information 

     साहित्यदर्पणकार के अनुसार रूपक के दो प्रकार है - 

    • सांगरूपक और निरंग रूपक 
    • इन दोनों के भी दो-दो भेद से चार रूपक के चार प्रकार है।
    • सांगरूपक  -  
    1. समस्तवस्तुविषय
    2. एकदेशविवर्ति
  • Question 8
    5 / -1
    'शब्दसाम्यं वैषम्येऽपि स्वरस्य यत्' इति कस्य अलंकारस्य लक्षणम्?
    Solution

    प्रश्न अनुवाद - 'शब्दसाम्यं वैषम्येऽपि स्वरस्य यत्' यह किस अलंकार का लक्षण है ?
    स्पष्टीकरण -

    • 'शब्दसाम्यं वैषम्येऽपि स्वरस्य यत्' यह अनुप्रास अलंकार का लक्षण है 
    • यह शब्दालंकार है। रस, भाव आदि के अनुगत जो वर्ण - विन्यास है, वह अनुप्रास है।

     conclusion

    • लक्षण - 'शब्दसाम्यं वैषम्येऽपि स्वरस्य यत्'
    • यहाँ स्वरों की विषमता होने पर भी व्यञ्जनों की समानता से अनुप्रास अलंकार है।
    • 'वर्णसाम्यमनुप्रासः', काव्यप्रकाशकार मम्मट के अनुसार अर्थात् जहाँ वर्णों की समता (समानता) होती है, वहाँ अनुप्रास अलंकार होता है।

    उदाहरण -
    वहन्ति वर्षन्ति नदन्ति भान्ति, ध्यायन्ति नृत्यन्ति समाश्वसन्ति।
    नद्यो घनाः मत्तगजाः वनान्ताः, प्रियाविहीनाः शिखिन: प्लवङ्गाः।।

    • इस श्लोक में “वहन्ति, वर्षन्ति, नदन्ति, भान्ति, ध्यायन्ति, नृत्यन्ति, समाश्वसन्ति” इन शब्दों में ‘न’, ‘त’ इन दोनों की बार-बार आवृत्ति है। वर्णों की समानता से श्लोक के सौन्दर्य में अभिवृद्धि हो रही है। अतः यहाँ अनुप्रास अलंकार है।

     

    अत: 'अनुप्रासस्य' विकल्प सही है। 

    Additional Informationअनुप्रास अलंकार के पाँच प्रमुख भेद है -

    1. छेकानुप्रास
    2. वृत्यानुप्रास
    3. श्रुत्यनुप्रास
    4. अन्त्यानुप्रास
    5. लाटानुप्रास
  • Question 9
    5 / -1

    'पयः पानं भुजङ्गानां केवलं विषवर्धनम्।

    उपदेशो हि मूर्खाणां प्रकोपाय न शान्तये।।

    इत्यत्र कः अलङ्कारः वर्तते?

    Solution

    प्रश्नानुवाद - 'पयः पानं भुजङ्गानां केवलं विषवर्धनम्। उपदेशो हि मूर्खाणां प्रकोपाय न शान्तये।। यहाँ कौनसा अलङ्कार है?

    स्पष्टीकरण -

    "उपदेशो हि मूर्खाणां, प्रकोपाय न शान्तये। 
    पयः पानं भुजडाग्नां केवल विषवर्धनम्।।"
    अनुवाद -

    • मूर्खों को दिया गया उपदेश, उसी प्रकार उनके क्रोध को बढ़ाने वाला होता है।
    • जिस प्रकार साँपों को दूध पिलाने से उनके विष में वृद्धि होती है।

    स्पष्टीकरण - प्रस्तुत श्लोक में 'अर्थान्तरन्यास अलङ्कार' है। 
    लक्षण -

    सामान्यं वा विशेषो वा तदन्येन समर्थ्यते।

    यत्र सोऽर्थान्तरन्यासः साधणेतरेण वा।।

    • अर्थात् जहाँ साधर्म्य से अथवा वैधय॑ से सामान्य का विशेष से,
    • अथवा विशेष का सामान्य से समर्थन किया जाता है, वहाँ अर्थान्तरन्यास अलंकार होता है।
    • अर्थात् समर्थ्य (जिसका समर्थन किया जाता है) वाक्य का दूसरे वाक्य से समर्थन किया जाता है। 
    • उक्त श्लोक में उत्तरार्द्ध विशेष से पूर्वार्द्ध सामान्य का समर्थन किया गया है।
    • उत्तरार्द्ध विशेष (सापों के कथन) से पूर्वार्द्ध सामान्य (मूर्खों को दिया गया उपदेश) का समर्थन किया गया है।

     

    अतः उक्त श्लोक में अर्थान्तरन्यास अलङ्कार है।Key Pointsअन्य विकल्प - 
    1. अनुप्रासः -

    • लक्षण - "वर्णसाम्यमनुप्रासः”
    • अर्थात् जहाँ वर्णों की समता (समानता) होती है, वहाँ अनुप्रास अलंकार होता है। 
    • यहाँ स्वरों की विषमता होने पर भी व्यञ्जनों की समानता से अनुप्रास अलंकार है।

    2. उपमा - 

    • लक्षण - “साधर्म्यमुपमा भेदे”
    • अर्थात् उपमान और उपमेय में भेद होने पर भी समानता का (साधर्म्य का) वर्णन ही उपमा है।

    3. रूपकम् - 

    • लक्षण - "तद्रूपकमभेदो यः उपमानोपमेययो:"
    • अर्थात् उपमान और उपमेय (जिनका भेद प्रसिद्ध है) का जो (समानता के कारण) अभेद है, वह रूपक अलंकार है।
  • Question 10
    5 / -1

    "प्रस्फुटं सुन्दरं साम्यं..." 

    इत्येतैः विशेषणैः कस्यालंकारस्य लक्षणं ज्ञायते?

    Solution

    प्रश्न का हिंदी भाषांतर : "प्रस्फुटं सुन्दरं साम्यं..." इन विशेषणोंं से किस अलंकार के लक्षण का बोध होता है?

    स्पष्टीकरण :

    प्रश्न में पूँँछी गई पूर्ण पंक्ति इस प्रकार है - 

    • प्रस्फुटं सुन्दरं साम्यमुपमेत्यभिधीयते साम्‍यं वाच्‍यमवैधर्म्‍यं वाक्‍यैक्‍य उपमा द्वयो:।
      • अर्थ - स्पष्ट एवं सुंदर समानता, जहाँँ दो वस्तुओं के परस्पर विधर्मी लक्षणों को छोडकर, एक ही वाक्य में उनकी समानता दिखाई जाती है, तो वह उपमा अलंकार होता है
    • अतः स्पष्ट है, उपमा यह इस प्रश्न का सही उत्तर है।
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