प्रश्नानुवाद - 'अपसारय घनसारं कुरु हारं दूर एव किं कमलैः। अलमलमाल मृणालैरिति वदति दिवानिशं बाला॥' यहाँ कौनसा अलङ्कार है?
स्पष्टीकरण - प्रस्तुत श्लोक में अनुप्रास अलंकार का भेद वृत्यानुप्रास है।
अनुप्रास अलंकार - "अनुप्रास: वर्णसाम्यं वैषम्येपि स्वरस्य यत्"
- काव्य में यदि स्वरों की विषमता होते हुए भी,
- समान व्यंजन वर्णों की आवृत्ति (दोहराया जाए) होती है।
अनुप्रास अलंकार के मुख्य तीन ही भेद माने जाते है - 1.छेकानुप्रास 2.वृत्यानुप्रास 3.लाटानुप्रास
1. छेकानुप्रास - काव्य में जब एक या अनेक वर्णों की एक बार ही आवृत्ति हो।
- उदाहरण - ततोरुणपरिस्पन्दमन्दीकृतवपु: शशी।
दध्नेकामपरिक्षामकामिनीगण्डपाण्डुताम्।।
- इस उदाहरण में स्पन्द-मन्द में( न्द-न्द का), काम -कामिनी में (काम का),
- गण्ड- पाण्डु में(ण्ड का) मात्र एक ही बार आवृत्ति हुई है।
2. वृत्यानुप्रास - काव्य में जब एक ही या अनेक वर्णों की आवृत्ति मात्र एक नहीं अपितु अनेक बार होती है।
- उदाहरण - अपसारय घनसारं कुरु हारं दूर एव किं कमलै:।
अलमलमालि मृणालैरिति वदति दिवानिशं बाला।।
- श्लोक के पूर्वार्द्ध में 'र' वर्ण की अनेक बार आवृत्ति हुई है।
- उत्तरार्द्ध में 'ल' व्यंजन वर्ण की अनेक बार आवृत्ति हुई है। अत: यहाँ वृत्त्यनुप्रास का प्रयोग हुआ है।
3. लाटानुप्रास - एक ही वाक्यांश/चरण/पदबंध का एक से अधिक ( प्राय: दो बार) प्रयोग होता है। लमालि मृणालैरिति वदति दिवानिशं बाला।।
किन्तु तात्पर्य भिन्न -भिन्न होता है| इसे पदानुप्रास भी कहते है।
- उदाहरण - यस्य सविधे दयिता, दवदहनस्तुहिनदीधितिस्तस्य।
यस्य च सविधे दयिता, दवदहनस्तुहिनदीधितिस्तस्य।।
- इस उदाहरण में एक ही प्रकार का भिन्न भिन्न अर्थ प्रकट होता है।
- पूर्वार्द्ध में 'तुहिनदीधितौ दवदहनत्व' का और उत्तरार्द्ध में 'दवदहने तुहिनदीधितित्व' का विधान किया गया है।
अतः स्पष्ट है कि उक्त श्लोक में अनुप्रास अलंकार है।
Key Pointsअन्य विकल्प -
1. श्लेषः -
- लक्षण - ‘‘श्लिष्टै: पदैरनेकार्थाभिधाने श्लेष इष्यते”
- अर्थात् जहाँ अर्थ भेद के द्वारा भिन्न शब्द भी एक रूप (युगपद) उच्चारण से समझे जाते है।
2. यमकम् -
- लक्षण - “सत्यर्थे पृथगर्थायाः स्वरव्यञ्जन संहतेः। क्रमेण तेनैवावृत्तिर्यमकं विनिगद्यते।”
- अर्थात् जहाँ अर्थयुक्त भिन्न-भिन्न अर्थों के शब्दों की पूर्वक्रम से आवृत्ति होती है।
- यहाँ एक वर्णसमूह का अर्थ दूसरे वर्णसमूह से अलग होगा।
3. रूपकम् -
- लक्षण - "तद्रूपकमभेदो यः उपमानोपमेययो:"
- अर्थात् उपमान और उपमेय (जिनका भेद प्रसिद्ध है) का जो (समानता के कारण) अभेद है, वह रूपक अलंकार है।