Question 1 5 / -1
Directions For Questions
परामर्श कार्यक्षेत्र से जुड़ी संस्थाओं के लिए लैपटॉप सुरक्षा एक प्राथमिक आवश्यकता है। वास्तव में, वर्तमान में लैपटॉप के नुकसान को ही संस्थाओं की सुरक्षा से जुड़ा सबसे बड़ा खतरा माना जाता है। तथापि, यह आश्चर्यजनक है कि 80% से अधिक परामर्श संस्थाओं के पास लैपटॉप सुरक्षा हेतु सशक्त नीति उपलब्ध नहीं है। वर्तमान में, लैपटॉपों में न केवल परामर्श संस्थाओं से सम्बंधित अपितु उनके ग्राहकों से भी संबंधित अत्यधिक संवेदनशील जानकारी संग्रहित की जाती है। लैपटॉप की चोरी हो जाने पर संवेदनशील जानकारी आसानी से प्रतिद्वन्द्वियों अथवा उपद्रवियों के हाथ लग सकती है, जो उक्त संस्था एवं उनके ग्राहकों को हानि पहुँचाने के लिए उसका प्रयोग कर सकते हैं । इसी कारणवश, लैपटॉप सम्बन्धी आंतरिक सुरक्षा नीति की उपलब्धता, परामर्श अनुबंधों के प्रदान की मुख्य शर्त है। लैपटॉप सुरक्षा नीति में कई पहलें शामिल हैं, जैसे लैपटॉप की चोरी के कारण डाटा की हानि की रोकथाम का कर्मचारियों को प्रशिक्षण। ऐसे प्रशिक्षणों में सामान्य अनुदेश शामिल किए जाते हैं जैसेः 1. लैपटॉप के प्रयोग न किए जाने पर उसे अन्य लोगों की नज़र से दूर रखना। 2. लैपटॉप को पार्किंग स्थल में खड़ी कार की सीट पर नहीं। 3. कार्यस्थल एवं ग्राहकों के स्थान दोनों पर लैपटॉप को चेन से बांध कर रखना। 4. यह सुनिश्चित करना कि लैपटॉप पासवर्ड द्वारा सुरक्षित है। 5. लैपटॉप की नियमित बैक-अप सुनिश्चित करना। सुरक्षात्मक उपायों के अलावा, लैपटॉप की चोरी हो जाने पर टीम द्वारा की जाने वाली कार्रवाई का भी प्रशिक्षण कर्मचारियोंको दिया जाता है जो निम्नलिखित हैः 1. केंद्रीय सूचना प्रौद्योगिकी कक्ष (Central IT Cell) को तत्काल सूचना प्रदान करना। 2. पुलिस को गुमशुदगी की सूचना देना। 3. केंद्रीय डाटा बेस में प्रविष्टि से जुड़े सभी संबंधित पासवर्ड एवं यूसर आईडी को ब्लॉक करना।
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लेखक आश्चर्यचकित क्यों है?
Solution
लेखक आश्चर्यचकित है- यद्यपि लैपटॉप सुरक्षा एक खतरा है, 80% परामर्श संस्थाओं में लैपटॉप सुरक्षा नीति उपलब्ध नहीं है।
Key Points उपरोक्त लेख के अनुसार:-
तथापि, यह आश्चर्यजनक है कि 80% से अधिक परामर्श संस्थाओं के पास लैपटॉप सुरक्षा हेतु सशक्त नीति उपलब्ध नहीं है। वर्तमान में, लैपटॉपों में न केवल परामर्श संस्थाओं से सम्बंधित अपितु उनके ग्राहकों से भी संबंधित अत्यधिक संवेदनशील जानकारी संग्रहित की जाती है। Additional Information लैपटॉप:-
Laptop का अर्थ होता है एक ऐसा Portable Device जो कि Computer की तरह ही काम करे और छोटा तथा आसानी से कही भी ले जाने वाला Device है। संस्था:-
अर्थ: ठहरने की क्रिया या भाव, सभा, समिति।प्रोटोकॉल:-
अर्थ: राजनयिक प्रतिनिधियों के साथ किए जाने वाले औपचारिक व्यवहार की रीतियाँ, शिष्टाचारसुरक्षा:-
अर्थ: समुचित तरीके से की जाने वाली रखवाली, हिफ़ाज़त।विलोम शब्द- 'असुरक्षा' उपस्थिति:-
'उप' (उपसर्ग) + 'स्थित' (मूल शब्द) + 'इ' (प्रत्यय)अर्थ: उपस्थित होने की अवस्था, क्रिया या भाव, मौजूदगी, हाज़िरी, विद्यमानता विलोम शब्द- 'अनुपस्थित' परामर्श:-
'परा' (विपरीत) उपसर्ग और 'मर्श' (राय) मूल शब्द अर्थ: विवेचन हेतु आपस में होनेवाली सलाह, सलाह, सुझाव।नीति:-
अर्थ: व्यवहार का ढंग, बर्ताव का तरीका।विलोम शब्द- 'अनीति' कर्मचारीगण:-
अर्थ: किसी संस्था, कार्यालय, विभाग के कर्मियों का वर्ग या समूहअनुसरण:-
अनु (पीछे, समान) उपसर्ग और ' सरण' (गमन) मूल शब्द अर्थ: पीछे चलना, अनुगमन, अनुकरण, अनुकूल आचरण।
Question 2 5 / -1
Directions For Questions
परामर्श कार्यक्षेत्र से जुड़ी संस्थाओं के लिए लैपटॉप सुरक्षा एक प्राथमिक आवश्यकता है। वास्तव में, वर्तमान में लैपटॉप के नुकसान को ही संस्थाओं की सुरक्षा से जुड़ा सबसे बड़ा खतरा माना जाता है। तथापि, यह आश्चर्यजनक है कि 80% से अधिक परामर्श संस्थाओं के पास लैपटॉप सुरक्षा हेतु सशक्त नीति उपलब्ध नहीं है। वर्तमान में, लैपटॉपों में न केवल परामर्श संस्थाओं से सम्बंधित अपितु उनके ग्राहकों से भी संबंधित अत्यधिक संवेदनशील जानकारी संग्रहित की जाती है। लैपटॉप की चोरी हो जाने पर संवेदनशील जानकारी आसानी से प्रतिद्वन्द्वियों अथवा उपद्रवियों के हाथ लग सकती है, जो उक्त संस्था एवं उनके ग्राहकों को हानि पहुँचाने के लिए उसका प्रयोग कर सकते हैं । इसी कारणवश, लैपटॉप सम्बन्धी आंतरिक सुरक्षा नीति की उपलब्धता, परामर्श अनुबंधों के प्रदान की मुख्य शर्त है। लैपटॉप सुरक्षा नीति में कई पहलें शामिल हैं, जैसे लैपटॉप की चोरी के कारण डाटा की हानि की रोकथाम का कर्मचारियों को प्रशिक्षण। ऐसे प्रशिक्षणों में सामान्य अनुदेश शामिल किए जाते हैं जैसेः 1. लैपटॉप के प्रयोग न किए जाने पर उसे अन्य लोगों की नज़र से दूर रखना। 2. लैपटॉप को पार्किंग स्थल में खड़ी कार की सीट पर नहीं। 3. कार्यस्थल एवं ग्राहकों के स्थान दोनों पर लैपटॉप को चेन से बांध कर रखना। 4. यह सुनिश्चित करना कि लैपटॉप पासवर्ड द्वारा सुरक्षित है। 5. लैपटॉप की नियमित बैक-अप सुनिश्चित करना। सुरक्षात्मक उपायों के अलावा, लैपटॉप की चोरी हो जाने पर टीम द्वारा की जाने वाली कार्रवाई का भी प्रशिक्षण कर्मचारियोंको दिया जाता है जो निम्नलिखित हैः 1. केंद्रीय सूचना प्रौद्योगिकी कक्ष (Central IT Cell) को तत्काल सूचना प्रदान करना। 2. पुलिस को गुमशुदगी की सूचना देना। 3. केंद्रीय डाटा बेस में प्रविष्टि से जुड़े सभी संबंधित पासवर्ड एवं यूसर आईडी को ब्लॉक करना।
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लेखक के अनुसार, परामर्श संस्थाओं में लैपटॉप सुरक्षा नीति क्यों होनी चाहिए?
Solution
लेखक के अनुसार, परामर्श संस्थाओं में लैपटॉप सुरक्षा नीति होनी चाहिए- लैपटॉप में न केवल संस्था अपितु ग्राहकों से भी संबंधित संवेदनशील जानकारी होती है, जिसका प्रयोग संस्था के अहित के लिए किया जा सकता है।
Key Points उपरोक्त लेख के अनुसार:-
यह आश्चर्यजनक है कि 80% से अधिक परामर्श संस्थाओं के पास लैपटॉप सुरक्षा हेतु सशक्त नीति उपलब्ध नहीं है। वर्तमान में, लैपटॉपों में न केवल परामर्श संस्थाओं से सम्बंधित अपितु उनके ग्राहकों से भी संबंधित अत्यधिक संवेदनशील जानकारी संग्रहित की जाती है। लैपटॉप की चोरी हो जाने पर संवेदनशील जानकारी आसानी से प्रतिद्वन्द्वियों अथवा उपद्रवियों के हाथ लग सकती है, जो उक्त संस्था एवं उनके ग्राहकों को हानि पहुँचाने के लिए उसका प्रयोग कर सकते हैं। Additional Information प्रशिक्षित:-
प्र + शिक्षित = प्रशिक्षित 'प्र' (आगे) उपसर्ग और 'शिक्षित' (साक्षर) मूल शब्दअर्थ: जिसे सिखाकर तैयार किया गया हो, प्रशिक्षण प्राप्त, ट्रेंड।विलोम शब्द- 'अप्रशिक्षित' विशेषण शब्द संवेदनशील:-
अर्थ: संवेदना से युक्त, भावुक, सहृदय, भावप्रधान। विलोम शब्द- 'असंवेदनशील' विशेषण शब्द अहित:-
अ + हित = अहित 'अ' (नही) उपसर्ग और ' हित' (कल्याण) मूल शब्द अर्थ: बुराई, अपकार, हानि, क्षति, नुक़सान।विलोम शब्द- 'हित' पुल्लिंग अनुबंध:-
अनु + बंध = अनुबंध 'अनु' (पीछे) उपसर्ग और ' बंध' (बंधन) मूल शब्द अर्थ: जोड़ी हुई वस्तु, संबंध।अनिवार्य:-
अर्थ: जो निवारण के योग्य न हो, अटल, ज़रूरी, आवश्यक।विलोम शब्द- 'वैकल्पिक' विशेषण शब्द
Question 3 5 / -1
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परामर्श कार्यक्षेत्र से जुड़ी संस्थाओं के लिए लैपटॉप सुरक्षा एक प्राथमिक आवश्यकता है। वास्तव में, वर्तमान में लैपटॉप के नुकसान को ही संस्थाओं की सुरक्षा से जुड़ा सबसे बड़ा खतरा माना जाता है। तथापि, यह आश्चर्यजनक है कि 80% से अधिक परामर्श संस्थाओं के पास लैपटॉप सुरक्षा हेतु सशक्त नीति उपलब्ध नहीं है। वर्तमान में, लैपटॉपों में न केवल परामर्श संस्थाओं से सम्बंधित अपितु उनके ग्राहकों से भी संबंधित अत्यधिक संवेदनशील जानकारी संग्रहित की जाती है। लैपटॉप की चोरी हो जाने पर संवेदनशील जानकारी आसानी से प्रतिद्वन्द्वियों अथवा उपद्रवियों के हाथ लग सकती है, जो उक्त संस्था एवं उनके ग्राहकों को हानि पहुँचाने के लिए उसका प्रयोग कर सकते हैं । इसी कारणवश, लैपटॉप सम्बन्धी आंतरिक सुरक्षा नीति की उपलब्धता, परामर्श अनुबंधों के प्रदान की मुख्य शर्त है। लैपटॉप सुरक्षा नीति में कई पहलें शामिल हैं, जैसे लैपटॉप की चोरी के कारण डाटा की हानि की रोकथाम का कर्मचारियों को प्रशिक्षण। ऐसे प्रशिक्षणों में सामान्य अनुदेश शामिल किए जाते हैं जैसेः 1. लैपटॉप के प्रयोग न किए जाने पर उसे अन्य लोगों की नज़र से दूर रखना। 2. लैपटॉप को पार्किंग स्थल में खड़ी कार की सीट पर नहीं। 3. कार्यस्थल एवं ग्राहकों के स्थान दोनों पर लैपटॉप को चेन से बांध कर रखना। 4. यह सुनिश्चित करना कि लैपटॉप पासवर्ड द्वारा सुरक्षित है। 5. लैपटॉप की नियमित बैक-अप सुनिश्चित करना। सुरक्षात्मक उपायों के अलावा, लैपटॉप की चोरी हो जाने पर टीम द्वारा की जाने वाली कार्रवाई का भी प्रशिक्षण कर्मचारियोंको दिया जाता है जो निम्नलिखित हैः 1. केंद्रीय सूचना प्रौद्योगिकी कक्ष (Central IT Cell) को तत्काल सूचना प्रदान करना। 2. पुलिस को गुमशुदगी की सूचना देना। 3. केंद्रीय डाटा बेस में प्रविष्टि से जुड़े सभी संबंधित पासवर्ड एवं यूसर आईडी को ब्लॉक करना।
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लैपटॉप चोरी के कारण डाटा के नुकसान को रोकने हेतु लेखक ने निम्नलिखित में से किस उपाय का उल्लेख नहीं किया है?
Solution
लैपटॉप चोरी के कारण डाटा के नुकसान को रोकने हेतु लेखक ने उपाय का उल्लेख नहीं किया है- संस्था अनुमोदित एंटी वाइरस रखना
Key Points उपरोक्त लेख के अनुसार:-
1. लैपटॉप के प्रयोग न किए जाने पर उसे अन्य लोगों की नज़र से दूर रखना। 2. लैपटॉप को पार्किंग स्थल में खड़ी कार की सीट पर नहीं। 3. कार्यस्थल एवं ग्राहकों के स्थान दोनों पर लैपटॉप को चेन से बांध कर रखना। 4. यह सुनिश्चित करना कि लैपटॉप पासवर्ड द्वारा सुरक्षित है। 5. लैपटॉप की नियमित बैक-अप सुनिश्चित करना। Additional Information स्थल:-
अर्थ: कठोर या सूखी भूमि, भूमि, ज़मीन।चेन:-
अनुमोदित:-
अर्थ: संस्तुत, समर्थित, सम्मति-प्राप्त, प्रसन्न किया हुआ।विलोम शब्द- 'अननुमोदित' विशेषण शब्द नियमित:-
नियम + इत = नियमित 'नियम' मूल शब्द और ' इत' प्रत्यय अर्थ: बराबर या ठीक समय पर होने वाला, नियमबद्ध, निश्चित, नियमानुकूल।विलोम शब्द- 'अनियमित' विशेषण शब्द सुनिश्चित:-
सु + निश्चित = सुनिश्चित 'सु' (अच्छी तरह) उपसर्ग और ' नि श्चित' (अटल)अर्थ: दृढ़ता से निश्चय किया हुआ, अपरिवर्तनीय, निर्धारित। विशेषण शब्द
Question 4 5 / -1
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परामर्श कार्यक्षेत्र से जुड़ी संस्थाओं के लिए लैपटॉप सुरक्षा एक प्राथमिक आवश्यकता है। वास्तव में, वर्तमान में लैपटॉप के नुकसान को ही संस्थाओं की सुरक्षा से जुड़ा सबसे बड़ा खतरा माना जाता है। तथापि, यह आश्चर्यजनक है कि 80% से अधिक परामर्श संस्थाओं के पास लैपटॉप सुरक्षा हेतु सशक्त नीति उपलब्ध नहीं है। वर्तमान में, लैपटॉपों में न केवल परामर्श संस्थाओं से सम्बंधित अपितु उनके ग्राहकों से भी संबंधित अत्यधिक संवेदनशील जानकारी संग्रहित की जाती है। लैपटॉप की चोरी हो जाने पर संवेदनशील जानकारी आसानी से प्रतिद्वन्द्वियों अथवा उपद्रवियों के हाथ लग सकती है, जो उक्त संस्था एवं उनके ग्राहकों को हानि पहुँचाने के लिए उसका प्रयोग कर सकते हैं । इसी कारणवश, लैपटॉप सम्बन्धी आंतरिक सुरक्षा नीति की उपलब्धता, परामर्श अनुबंधों के प्रदान की मुख्य शर्त है। लैपटॉप सुरक्षा नीति में कई पहलें शामिल हैं, जैसे लैपटॉप की चोरी के कारण डाटा की हानि की रोकथाम का कर्मचारियों को प्रशिक्षण। ऐसे प्रशिक्षणों में सामान्य अनुदेश शामिल किए जाते हैं जैसेः 1. लैपटॉप के प्रयोग न किए जाने पर उसे अन्य लोगों की नज़र से दूर रखना। 2. लैपटॉप को पार्किंग स्थल में खड़ी कार की सीट पर नहीं। 3. कार्यस्थल एवं ग्राहकों के स्थान दोनों पर लैपटॉप को चेन से बांध कर रखना। 4. यह सुनिश्चित करना कि लैपटॉप पासवर्ड द्वारा सुरक्षित है। 5. लैपटॉप की नियमित बैक-अप सुनिश्चित करना। सुरक्षात्मक उपायों के अलावा, लैपटॉप की चोरी हो जाने पर टीम द्वारा की जाने वाली कार्रवाई का भी प्रशिक्षण कर्मचारियोंको दिया जाता है जो निम्नलिखित हैः 1. केंद्रीय सूचना प्रौद्योगिकी कक्ष (Central IT Cell) को तत्काल सूचना प्रदान करना। 2. पुलिस को गुमशुदगी की सूचना देना। 3. केंद्रीय डाटा बेस में प्रविष्टि से जुड़े सभी संबंधित पासवर्ड एवं यूसर आईडी को ब्लॉक करना।
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लेखक के अनुसार, लैपटॉप की चोरी होने के बाद, संभव कार्रवाइयां क्या हो सकती हैं?
Solution
लेखक के अनुसार, लैपटॉप की चोरी होने के बाद, संभव कार्रवाइयां हो सकती हैं- केंद्रीय सूचना प्रौद्योगिकी कक्ष को सूचित करना
Key Points उपरोक्त लेख के अनुसार:-
1. केंद्रीय सूचना प्रौद्योगिकी कक्ष (Central IT Cell) को तत्काल सूचना प्रदान करना। 2. पुलिस को गुमशुदगी की सूचना देना। 3. केंद्रीय डाटा बेस में प्रविष्टि से जुड़े सभी संबंधित पासवर्ड एवं यूसर आईडी को ब्लॉक करना। Additional Information केंद्रीय:-
केंद्र + ईय = केंद्रीय 'केंद्र' मूल शब्द और 'ईय' प्रत्ययअर्थ: केंद्र संबंधी, मध्यभाग का।विशेषण शब्द नियमित:-
नियम + इत = नियमित 'नियम' मूल शब्द और ' इत' प्रत्यय अर्थ: बराबर या ठीक समय पर होने वाला, नियमबद्ध, निश्चित, नियमानुकूल।विलोम शब्द- 'अनियमित' विशेषण शब्द सुरक्षित:-
सुरक्षा + इत = सुरक्षित 'सुरक्षा' मूल शब्दऔर ' इत' प्रत्यय अर्थ: अच्छी तरह रखा हुआ, सुरक्षा की गई।विलोम शब्द- 'असुरक्षित' विशेषण शब्द सूचित:-
अर्थ: जिसकी सूचना दी गई हो, जताया हुआ, बताया हुआ, कहा हुआ। प्रौद्योगिकी:-
अर्थ: व्यावहारिक और औद्योगिक कलाओं और प्रयुक्त विज्ञानों से संबंधित अध्ययन या विज्ञान का समूह है।
Question 5 5 / -1
Directions For Questions
परामर्श कार्यक्षेत्र से जुड़ी संस्थाओं के लिए लैपटॉप सुरक्षा एक प्राथमिक आवश्यकता है। वास्तव में, वर्तमान में लैपटॉप के नुकसान को ही संस्थाओं की सुरक्षा से जुड़ा सबसे बड़ा खतरा माना जाता है। तथापि, यह आश्चर्यजनक है कि 80% से अधिक परामर्श संस्थाओं के पास लैपटॉप सुरक्षा हेतु सशक्त नीति उपलब्ध नहीं है। वर्तमान में, लैपटॉपों में न केवल परामर्श संस्थाओं से सम्बंधित अपितु उनके ग्राहकों से भी संबंधित अत्यधिक संवेदनशील जानकारी संग्रहित की जाती है। लैपटॉप की चोरी हो जाने पर संवेदनशील जानकारी आसानी से प्रतिद्वन्द्वियों अथवा उपद्रवियों के हाथ लग सकती है, जो उक्त संस्था एवं उनके ग्राहकों को हानि पहुँचाने के लिए उसका प्रयोग कर सकते हैं । इसी कारणवश, लैपटॉप सम्बन्धी आंतरिक सुरक्षा नीति की उपलब्धता, परामर्श अनुबंधों के प्रदान की मुख्य शर्त है। लैपटॉप सुरक्षा नीति में कई पहलें शामिल हैं, जैसे लैपटॉप की चोरी के कारण डाटा की हानि की रोकथाम का कर्मचारियों को प्रशिक्षण। ऐसे प्रशिक्षणों में सामान्य अनुदेश शामिल किए जाते हैं जैसेः 1. लैपटॉप के प्रयोग न किए जाने पर उसे अन्य लोगों की नज़र से दूर रखना। 2. लैपटॉप को पार्किंग स्थल में खड़ी कार की सीट पर नहीं। 3. कार्यस्थल एवं ग्राहकों के स्थान दोनों पर लैपटॉप को चेन से बांध कर रखना। 4. यह सुनिश्चित करना कि लैपटॉप पासवर्ड द्वारा सुरक्षित है। 5. लैपटॉप की नियमित बैक-अप सुनिश्चित करना। सुरक्षात्मक उपायों के अलावा, लैपटॉप की चोरी हो जाने पर टीम द्वारा की जाने वाली कार्रवाई का भी प्रशिक्षण कर्मचारियोंको दिया जाता है जो निम्नलिखित हैः 1. केंद्रीय सूचना प्रौद्योगिकी कक्ष (Central IT Cell) को तत्काल सूचना प्रदान करना। 2. पुलिस को गुमशुदगी की सूचना देना। 3. केंद्रीय डाटा बेस में प्रविष्टि से जुड़े सभी संबंधित पासवर्ड एवं यूसर आईडी को ब्लॉक करना।
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आपके अनुसार उक्त लेख का उद्देश्य क्या है?
Solution
आपके अनुसार उक्त लेख का उद्देश्य है- लैपटॉप एवं डाटा सुरक्षा के साथ - साथ आम प्रयोगों के महत्व पर प्रकाश डालना
Key Points उपरोक्त लेख के अनुसार:-
लैपटॉप एवं डाटा सुरक्षा, उसके प्रयोग तथा चोरी होने पर उचित कार्रवाई का उल्लेख किया गया है। Additional Information प्रकाश:-
अर्थ: ज्योति, चमक, प्रभा, छवि, दीप्ति, रोशनी, उजाला। विलोम शब्द- 'अन्धकार' साबित:-
अर्थ: दृढ़, पक्का, प्रमाणित, समग्र, पूरा, समूचा, मज़बूत, सिद्ध।सुरक्षा:-
अर्थ: समुचित तरीके से की जाने वाली रखवाली, हिफ़ाज़त।विलोम शब्द- 'असुरक्षा' सामान्य:-
अर्थ: मामूली, साधारण, सार्वजनिक, आम। विलोम शब्द- 'अ सामान्य, विशिष्ट ' विशेषण शब्द अनुसरण:-
अनु + सरण = अनुसरण अनु (पीछे, समान) उपसर्ग और ' सरण' (गमन) मूल शब्दअर्थ: पीछे चलना, अनुगमन, अनुकरण, अनुकूल आचरण।साझा:-
अर्थ: हिस्सेदारी, भागीदारी, भाग, हिस्सा।
Question 6 5 / -1
Directions For Questions
कवियों, शायरों तथा आम आदमी को सम्मोहित करने वाला 'पलाश' आज संकट में है। वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि यदि इसी प्रकार पलाश का विनाश जारी रहा, तो यह 'ढाक के तीन पात' वाली कहावत में ही बचेगा। अरावली और सतपुड़ा पर्वत श्रृंखलाओं में जब पलाश वृक्ष चैत (वसंत) में फूलता था, तो लगता था कि वन में आग लग गई हो अथवा अग्नि देव फूलों के रूप में खिल उठे हों। पलाश पर एक-दो दिन में ही संकट नहीं आ गया है। पिछले तीस-चालीस वर्षों में दोना-पत्तल बनाने वाले कारखाने बढ़ने, गाँव-गाँव में चकबंदी होने तथा वन माफियाओं द्वारा अंधाधुंध कटान करने के कारण उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, कर्नाटक, महाराष्ट्र आदि प्रांतों में पलाश के वन घटकर 10% से भी कम रह गए हैं। वैज्ञानिकों ने पलाश वनों को बचाने के लिए ऊतक संवर्द्धन (टिशू कल्चर) द्वारा परखनली में पलाश के पौधों को विकसित कर एक अभियान चलाकर पलाश वन रोपने की योजना प्रस्तुत की है। हरियाणा तथा पुणे में ऐसी दो प्रयोगशालाएँ भी खोली गई हैं। एक समय था, जब बंगाल का पलाशी का मैदान तथा अरावली की पर्वत-मालाएँ टेसू के फूलों के लिए दुनियाभर में मशहूर थीं। विदेशों से लोग पलाश के रक्तिम वर्ण के फूल देखने आते थे।
महाकवि पद्माकर ने छंद-“कहैं पद्माकर परागन में, पौन हूँ में, पानन में, पिक में, पलासन पगंत है।" लिखकर पलाश की महिमा का वर्णन किया था। ब्रज, अवधी, बुंदेलखंडी, राजस्थानी, हरियाणवी, पंजाबी लोक गीतों में पलाश के गुण गाए गए हैं। कबीर ने तो 'खांखर भया पलाश' कहकर पलाश की तुलना एक ऐसे संदर-सजीले नवयुवक से की है, जो अपनी जवानी में तो सबको आकर्षित कर लेता है, किंतु बुढ़ापे में अकेला रह जाता है। वसंत व ग्रीष्म ऋतु में जब तक टेसू में फूल व हरे-भरे पत्ते रहते हैं, उसे सभी निहारते हैं, किंतु शेष आठ महीने वह पतझड़ का शिकार होकर झाड़-झंखाड़ की तरह रह जाता है। पर्यावरण के लिए प्लास्टिक-पॉलीथीन पर रोक लगने के बाद पलाश की उपयोगिता महसूस की गई, जिसके पत्ते दोने, थैले, पत्तल, थाली, गिलास सहित न जाने कितने उपयोग में आ सकते हैं। पिछले तीस-चालीस वर्षों में 90% वन नष्ट कर डाले गए। बिना पानी के बंजर, ऊसर तक में उग आने वाले इस पेड़ की नई पीढ़ी तैयार नहीं हुई। यदि यही स्थिति रही और समाज जागरूक न हुआ, तो पलाश विलुप्त वृक्ष हो जाएगा।
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गद्यांश में लेखक की चिंता का क्या कारण है?
Solution
गद्यांश में लेखक की चिंता का
'पलाश के वृक्षों का घटता स्तर' कारण है
। Key Points कवियों, शायरों तथा आम आदमी को सम्मोहित करने वाला 'पलाश' आज संकट में है। वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि यदि इसी प्रकार पलाश का विनाश जारी रहा, तो यह 'ढाक के तीन पात' वाली कहावत में ही बचेगा। अरावली और सतपुड़ा पर्वत श्रृंखलाओं में जब पलाश वृक्ष चैत (वसंत) में फूलता था, तो लगता था कि वन में आग लग गई हो अथवा अग्नि देव फूलों के रूप में खिल उठे हों। पलाश पर एक-दो दिन में ही संकट नहीं आ गया है।
Question 7 5 / -1
Directions For Questions
कवियों, शायरों तथा आम आदमी को सम्मोहित करने वाला 'पलाश' आज संकट में है। वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि यदि इसी प्रकार पलाश का विनाश जारी रहा, तो यह 'ढाक के तीन पात' वाली कहावत में ही बचेगा। अरावली और सतपुड़ा पर्वत श्रृंखलाओं में जब पलाश वृक्ष चैत (वसंत) में फूलता था, तो लगता था कि वन में आग लग गई हो अथवा अग्नि देव फूलों के रूप में खिल उठे हों। पलाश पर एक-दो दिन में ही संकट नहीं आ गया है। पिछले तीस-चालीस वर्षों में दोना-पत्तल बनाने वाले कारखाने बढ़ने, गाँव-गाँव में चकबंदी होने तथा वन माफियाओं द्वारा अंधाधुंध कटान करने के कारण उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, कर्नाटक, महाराष्ट्र आदि प्रांतों में पलाश के वन घटकर 10% से भी कम रह गए हैं। वैज्ञानिकों ने पलाश वनों को बचाने के लिए ऊतक संवर्द्धन (टिशू कल्चर) द्वारा परखनली में पलाश के पौधों को विकसित कर एक अभियान चलाकर पलाश वन रोपने की योजना प्रस्तुत की है। हरियाणा तथा पुणे में ऐसी दो प्रयोगशालाएँ भी खोली गई हैं। एक समय था, जब बंगाल का पलाशी का मैदान तथा अरावली की पर्वत-मालाएँ टेसू के फूलों के लिए दुनियाभर में मशहूर थीं। विदेशों से लोग पलाश के रक्तिम वर्ण के फूल देखने आते थे।
महाकवि पद्माकर ने छंद-“कहैं पद्माकर परागन में, पौन हूँ में, पानन में, पिक में, पलासन पगंत है।" लिखकर पलाश की महिमा का वर्णन किया था। ब्रज, अवधी, बुंदेलखंडी, राजस्थानी, हरियाणवी, पंजाबी लोक गीतों में पलाश के गुण गाए गए हैं। कबीर ने तो 'खांखर भया पलाश' कहकर पलाश की तुलना एक ऐसे संदर-सजीले नवयुवक से की है, जो अपनी जवानी में तो सबको आकर्षित कर लेता है, किंतु बुढ़ापे में अकेला रह जाता है। वसंत व ग्रीष्म ऋतु में जब तक टेसू में फूल व हरे-भरे पत्ते रहते हैं, उसे सभी निहारते हैं, किंतु शेष आठ महीने वह पतझड़ का शिकार होकर झाड़-झंखाड़ की तरह रह जाता है। पर्यावरण के लिए प्लास्टिक-पॉलीथीन पर रोक लगने के बाद पलाश की उपयोगिता महसूस की गई, जिसके पत्ते दोने, थैले, पत्तल, थाली, गिलास सहित न जाने कितने उपयोग में आ सकते हैं। पिछले तीस-चालीस वर्षों में 90% वन नष्ट कर डाले गए। बिना पानी के बंजर, ऊसर तक में उग आने वाले इस पेड़ की नई पीढ़ी तैयार नहीं हुई। यदि यही स्थिति रही और समाज जागरूक न हुआ, तो पलाश विलुप्त वृक्ष हो जाएगा।
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अरावली और सतपुड़ा में पलाश के वृक्ष कैसे लगते थे?
Solution
अरावली और सतपुड़ा में पलाश के वृक्ष
'वन में लगी आग के समान' थे
। Key Points अरावली और सतपुड़ा पर्वत श्रृंखलाओं में जब पलाश वृक्ष चैत (वसंत) में फूलता था। तो लगता था कि वन में आग लग गई हो अथवा अग्नि देव फूलों के रूप में खिल उठे हों। पलाश पर एक-दो दिन में ही संकट नहीं आ गया है।
Question 8 5 / -1
Directions For Questions
कवियों, शायरों तथा आम आदमी को सम्मोहित करने वाला 'पलाश' आज संकट में है। वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि यदि इसी प्रकार पलाश का विनाश जारी रहा, तो यह 'ढाक के तीन पात' वाली कहावत में ही बचेगा। अरावली और सतपुड़ा पर्वत श्रृंखलाओं में जब पलाश वृक्ष चैत (वसंत) में फूलता था, तो लगता था कि वन में आग लग गई हो अथवा अग्नि देव फूलों के रूप में खिल उठे हों। पलाश पर एक-दो दिन में ही संकट नहीं आ गया है। पिछले तीस-चालीस वर्षों में दोना-पत्तल बनाने वाले कारखाने बढ़ने, गाँव-गाँव में चकबंदी होने तथा वन माफियाओं द्वारा अंधाधुंध कटान करने के कारण उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, कर्नाटक, महाराष्ट्र आदि प्रांतों में पलाश के वन घटकर 10% से भी कम रह गए हैं। वैज्ञानिकों ने पलाश वनों को बचाने के लिए ऊतक संवर्द्धन (टिशू कल्चर) द्वारा परखनली में पलाश के पौधों को विकसित कर एक अभियान चलाकर पलाश वन रोपने की योजना प्रस्तुत की है। हरियाणा तथा पुणे में ऐसी दो प्रयोगशालाएँ भी खोली गई हैं। एक समय था, जब बंगाल का पलाशी का मैदान तथा अरावली की पर्वत-मालाएँ टेसू के फूलों के लिए दुनियाभर में मशहूर थीं। विदेशों से लोग पलाश के रक्तिम वर्ण के फूल देखने आते थे।
महाकवि पद्माकर ने छंद-“कहैं पद्माकर परागन में, पौन हूँ में, पानन में, पिक में, पलासन पगंत है।" लिखकर पलाश की महिमा का वर्णन किया था। ब्रज, अवधी, बुंदेलखंडी, राजस्थानी, हरियाणवी, पंजाबी लोक गीतों में पलाश के गुण गाए गए हैं। कबीर ने तो 'खांखर भया पलाश' कहकर पलाश की तुलना एक ऐसे संदर-सजीले नवयुवक से की है, जो अपनी जवानी में तो सबको आकर्षित कर लेता है, किंतु बुढ़ापे में अकेला रह जाता है। वसंत व ग्रीष्म ऋतु में जब तक टेसू में फूल व हरे-भरे पत्ते रहते हैं, उसे सभी निहारते हैं, किंतु शेष आठ महीने वह पतझड़ का शिकार होकर झाड़-झंखाड़ की तरह रह जाता है। पर्यावरण के लिए प्लास्टिक-पॉलीथीन पर रोक लगने के बाद पलाश की उपयोगिता महसूस की गई, जिसके पत्ते दोने, थैले, पत्तल, थाली, गिलास सहित न जाने कितने उपयोग में आ सकते हैं। पिछले तीस-चालीस वर्षों में 90% वन नष्ट कर डाले गए। बिना पानी के बंजर, ऊसर तक में उग आने वाले इस पेड़ की नई पीढ़ी तैयार नहीं हुई। यदि यही स्थिति रही और समाज जागरूक न हुआ, तो पलाश विलुप्त वृक्ष हो जाएगा।
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पलाश के वनों की सं ख्या कम होने का क्या कारण है?
Solution
पलाश के वनों की संख्या कम होने का
कारण ' गाँव में चकबंदी तथा माफियाओं द्वारा इनका अंधाधुंध काटा जाना' है।Key Points पिछले तीस-चालीस वर्षों में दोना-पत्तल बनाने वाले कारखाने बढ़ने, गाँव-गाँव में चकबंदी होने तथा वन माफियाओं द्वारा अंधाधुंध कटान करने के कारण उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, कर्नाटक, महाराष्ट्र आदि प्रांतों में पलाश के वन घटकर 10% से भी कम रह गए हैं। एक समय था, जब बंगाल का पलाशी का मैदान तथा अरावली की पर्वत-मालाएँ टेसू के फूलों के लिए दुनियाभर में मशहूर थीं। विदेशों से लोग पलाश के रक्तिम वर्ण के फूल देखने आते थे। पर्यावरण के लिए प्लास्टिक-पॉलीथीन पर रोक लगने के बाद पलाश की उपयोगिता महसूस की गई, जिसके पत्ते दोने, थैले, पत्तल, थाली, गिलास सहित न जाने कितने उपयोग में आ सकते हैं। पिछले तीस-चालीस वर्षों में 90% वन नष्ट कर डाले गए। बिना पानी के बंजर, ऊसर तक में उग आने वाले इस पेड़ की नई पीढ़ी तैयार नहीं हुई। यदि यही स्थिति रही और समाज जागरूक न हुआ, तो पलाश विलुप्त वृक्ष हो जाएगा।
Question 9 5 / -1
Directions For Questions
कवियों, शायरों तथा आम आदमी को सम्मोहित करने वाला 'पलाश' आज संकट में है। वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि यदि इसी प्रकार पलाश का विनाश जारी रहा, तो यह 'ढाक के तीन पात' वाली कहावत में ही बचेगा। अरावली और सतपुड़ा पर्वत श्रृंखलाओं में जब पलाश वृक्ष चैत (वसंत) में फूलता था, तो लगता था कि वन में आग लग गई हो अथवा अग्नि देव फूलों के रूप में खिल उठे हों। पलाश पर एक-दो दिन में ही संकट नहीं आ गया है। पिछले तीस-चालीस वर्षों में दोना-पत्तल बनाने वाले कारखाने बढ़ने, गाँव-गाँव में चकबंदी होने तथा वन माफियाओं द्वारा अंधाधुंध कटान करने के कारण उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, कर्नाटक, महाराष्ट्र आदि प्रांतों में पलाश के वन घटकर 10% से भी कम रह गए हैं। वैज्ञानिकों ने पलाश वनों को बचाने के लिए ऊतक संवर्द्धन (टिशू कल्चर) द्वारा परखनली में पलाश के पौधों को विकसित कर एक अभियान चलाकर पलाश वन रोपने की योजना प्रस्तुत की है। हरियाणा तथा पुणे में ऐसी दो प्रयोगशालाएँ भी खोली गई हैं। एक समय था, जब बंगाल का पलाशी का मैदान तथा अरावली की पर्वत-मालाएँ टेसू के फूलों के लिए दुनियाभर में मशहूर थीं। विदेशों से लोग पलाश के रक्तिम वर्ण के फूल देखने आते थे।
महाकवि पद्माकर ने छंद-“कहैं पद्माकर परागन में, पौन हूँ में, पानन में, पिक में, पलासन पगंत है।" लिखकर पलाश की महिमा का वर्णन किया था। ब्रज, अवधी, बुंदेलखंडी, राजस्थानी, हरियाणवी, पंजाबी लोक गीतों में पलाश के गुण गाए गए हैं। कबीर ने तो 'खांखर भया पलाश' कहकर पलाश की तुलना एक ऐसे संदर-सजीले नवयुवक से की है, जो अपनी जवानी में तो सबको आकर्षित कर लेता है, किंतु बुढ़ापे में अकेला रह जाता है। वसंत व ग्रीष्म ऋतु में जब तक टेसू में फूल व हरे-भरे पत्ते रहते हैं, उसे सभी निहारते हैं, किंतु शेष आठ महीने वह पतझड़ का शिकार होकर झाड़-झंखाड़ की तरह रह जाता है। पर्यावरण के लिए प्लास्टिक-पॉलीथीन पर रोक लगने के बाद पलाश की उपयोगिता महसूस की गई, जिसके पत्ते दोने, थैले, पत्तल, थाली, गिलास सहित न जाने कितने उपयोग में आ सकते हैं। पिछले तीस-चालीस वर्षों में 90% वन नष्ट कर डाले गए। बिना पानी के बंजर, ऊसर तक में उग आने वाले इस पेड़ की नई पीढ़ी तैयार नहीं हुई। यदि यही स्थिति रही और समाज जागरूक न हुआ, तो पलाश विलुप्त वृक्ष हो जाएगा।
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पलाश के वृक्षों को बचाने के लिए क्या किया जा रहा है?
Solution
पलाश के वृक्षों को बचाने के लिए
'अभियान चलाकर पलाश वन रोपने की योजना प्रस्तुत करना' है
। Key Points वैज्ञानिकों ने पलाश वनों को बचाने के लिए ऊतक संवर्द्धन (टिशू कल्चर) द्वारा परखनली में पलाश के पौधों को विकसित कर एक अभियान चलाकर पलाश वन रोपने की योजना प्रस्तुत की है। हरियाणा तथा पुणे में ऐसी दो प्रयोगशालाएँ भी खोली गई हैं। एक समय था, जब बंगाल का पलाशी का मैदान तथा अरावली की पर्वत-मालाएँ टेसू के फूलों के लिए दुनियाभर में मशहूर थीं। विदेशों से लोग पलाश के रक्तिम वर्ण के फूल देखने आते थे।
Question 10 5 / -1
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कवियों, शायरों तथा आम आदमी को सम्मोहित करने वाला 'पलाश' आज संकट में है। वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि यदि इसी प्रकार पलाश का विनाश जारी रहा, तो यह 'ढाक के तीन पात' वाली कहावत में ही बचेगा। अरावली और सतपुड़ा पर्वत श्रृंखलाओं में जब पलाश वृक्ष चैत (वसंत) में फूलता था, तो लगता था कि वन में आग लग गई हो अथवा अग्नि देव फूलों के रूप में खिल उठे हों। पलाश पर एक-दो दिन में ही संकट नहीं आ गया है। पिछले तीस-चालीस वर्षों में दोना-पत्तल बनाने वाले कारखाने बढ़ने, गाँव-गाँव में चकबंदी होने तथा वन माफियाओं द्वारा अंधाधुंध कटान करने के कारण उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, कर्नाटक, महाराष्ट्र आदि प्रांतों में पलाश के वन घटकर 10% से भी कम रह गए हैं। वैज्ञानिकों ने पलाश वनों को बचाने के लिए ऊतक संवर्द्धन (टिशू कल्चर) द्वारा परखनली में पलाश के पौधों को विकसित कर एक अभियान चलाकर पलाश वन रोपने की योजना प्रस्तुत की है। हरियाणा तथा पुणे में ऐसी दो प्रयोगशालाएँ भी खोली गई हैं। एक समय था, जब बंगाल का पलाशी का मैदान तथा अरावली की पर्वत-मालाएँ टेसू के फूलों के लिए दुनियाभर में मशहूर थीं। विदेशों से लोग पलाश के रक्तिम वर्ण के फूल देखने आते थे।
महाकवि पद्माकर ने छंद-“कहैं पद्माकर परागन में, पौन हूँ में, पानन में, पिक में, पलासन पगंत है।" लिखकर पलाश की महिमा का वर्णन किया था। ब्रज, अवधी, बुंदेलखंडी, राजस्थानी, हरियाणवी, पंजाबी लोक गीतों में पलाश के गुण गाए गए हैं। कबीर ने तो 'खांखर भया पलाश' कहकर पलाश की तुलना एक ऐसे संदर-सजीले नवयुवक से की है, जो अपनी जवानी में तो सबको आकर्षित कर लेता है, किंतु बुढ़ापे में अकेला रह जाता है। वसंत व ग्रीष्म ऋतु में जब तक टेसू में फूल व हरे-भरे पत्ते रहते हैं, उसे सभी निहारते हैं, किंतु शेष आठ महीने वह पतझड़ का शिकार होकर झाड़-झंखाड़ की तरह रह जाता है। पर्यावरण के लिए प्लास्टिक-पॉलीथीन पर रोक लगने के बाद पलाश की उपयोगिता महसूस की गई, जिसके पत्ते दोने, थैले, पत्तल, थाली, गिलास सहित न जाने कितने उपयोग में आ सकते हैं। पिछले तीस-चालीस वर्षों में 90% वन नष्ट कर डाले गए। बिना पानी के बंजर, ऊसर तक में उग आने वाले इस पेड़ की नई पीढ़ी तैयार नहीं हुई। यदि यही स्थिति रही और समाज जागरूक न हुआ, तो पलाश विलुप्त वृक्ष हो जाएगा।
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कबीर ने पलाश की तुलना किससे की है?
Solution
कबीर ने पलाश की तुलना
'सुंदर-सजीले नवयुवक से' की है
। Key Points महाकवि पद्माकर ने छंद-“कहैं पद्माकर परागन में, पौन हूँ में, पानन में, पिक में, पलासन पगंत है।" लिखकर पलाश की महिमा का वर्णन किया था। ब्रज, अवधी, बुंदेलखंडी, राजस्थानी, हरियाणवी, पंजाबी लोक गीतों में पलाश के गुण गाए गए हैं। कबीर ने तो 'खांखर भया पलाश' कहकर पलाश की तुलना एक ऐसे संदर-सजीले नवयुवक से की है, जो अपनी जवानी में तो सबको आकर्षित कर लेता है, किंतु बुढ़ापे में अकेला रह जाता है।
Question 11 5 / -1
Directions For Questions
तत्त्ववेत्ता शिक्षाविदों के अनुसार विद्या दो प्रकार की होती है। प्रथम वह, जो हमें जीवन-यापन के लिए अर्जन करना सिखाती है और द्वितीय वह, जो हमें जीना सिखलाती है। इनमें से एक का भी अभाव जीवन को निरर्थक बना देता है। बिना कमाए जीवन-निर्वाह संभव नहीं। कोई भी नहीं चाहेगा कि वह माता-पिता, परिवार के किसी सदस्य, जाति या समाज पर परावलंबी हो। ऐसी विद्या से विहीन व्यक्ति का जीवन दूभर हो जाता है, वह दूसरों के लिए भार बन जाता है। साथ ही, दूसरी विद्या के बिना सार्थक जीवन नहीं जिया जा सकता। बहुत अर्जित कर लेने वाले व्यक्ति का जीवन यदि सुचारु रूप से नहीं चल रहा है, उसमें यदि वह जीवंत-शक्ति नहीं है, जो उसके अपने जीवन को तो सत्पथ पर अग्रसर करती ही है, साथ ही वह अपने समाज, जाति एवं राष्ट्र के लिए भी मार्गदर्शन करती है, तो उसका जीवन भी मानव-जीवन का अभिधान नहीं पा सकता। वह
भारवाही गर्दभ बन जाता है या पूँछ-सींग-विहीन पशु कहा जाता है। वर्तमान भारत में पहली विद्या का प्रायः अभाव दिखाई देता है, परंतु दूसरी विद्या का रूप भी विकृत ही है, क्योंकि न तो स्कूल-कॉलेजों से शिक्षा प्राप्त करके निकला छात्र जीविकार्जन के योग्य बन पाता है और न ही वह उन संस्कारों से युक्त हो पाता है, जिनसे व्यक्ति 'कु' से 'सु' बनता है, सुशिक्षित, सुसभ्य और सुसंस्कृत कहलाने का अधिकारी होता है। वर्तमान शिक्षा-पद्धति के अंतर्गत हम जो विद्या प्राप्त कर रहे हैं, उसकी विशेषताओं को सर्वथा नकारा भी नहीं जा सकता। यह शिक्षा कुछ सीमा तक हमारे दृष्टिकोण को विकसित भी करती है, हमारी मनीषा को प्रबुद्ध बनाती है तथा भावनाओं को चेतन करती है, किंतु कला, शिल्प, प्रौद्योगिकी आदि की शिक्षा नाममात्र की होने के फलस्वरूप इस देश के स्नातक के लिए जीविकार्जन टेढ़ी खीर बन जाता है और बृहस्पति बना युवक नौकरी की तलाश में अर्जियाँ लिखने में ही अपने जीवन का बहुमूल्य समय बर्बाद कर लेता है। जीवन के सर्वांगीण विकास को ध्यान में रखते हुए यदि शिक्षा के क्रमिक सोपानों पर विचार किया जाए, तो भारतीय विद्यार्थी को सर्वप्रथम इस प्रकार की शिक्षा दी जानी चाहिए जो आवश्यक हो, दूसरी जो उपयोगी हो और तीसरी जो हमारे जीवन को परिष्कृत एवं अलंकृत करती हो। ये तीनों सीढ़ियाँ एक के बाद एक आती हैं, इनमें व्यतिक्रम नहीं होना चाहिए। इस क्रम में व्याघात आ जाने से मानव-जीवन का चारु प्रासाद खड़ा करना असंभव है। यह तो भवन की छत बनाकर नींव बनाने के सदृश है। वर्तमान भारत में शिक्षा की अवस्था देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि प्राचीन भारतीय दार्शनिकों ने 'अन्न' से 'आनंद' की ओर बढ़ने को जो 'विद्या का सार' कहा था, वह सर्वथा समीचीन ही था।
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वर्तमान युवक अपना बहुमूल्य समय किसमें बर्बाद कर देते हैं?
Solution
वर्तमान युवक अपना बहुमूल्य समय '
नौकरी की तलाश' में बर्बाद कर देते हैं।
Key Points वर्तमान भारत में, अक्सर सीखने की कमी दिखाई देती है। लेकिन दूसरी शिक्षा का रूप भी विकृत है। क्योंकि न तो वह छात्र जिसने स्कूल-कॉलेजों से शिक्षा प्राप्त की है, वह जीविका अर्जित करने में सक्षम हो पाता है। न ही वह उन संस्कारों के साथ रहने में सक्षम हो पाता है । जिनसे वह व्यक्ति 'कू' से 'सु' बन जाता है। और उसकी सारी ज़िन्दगी नौकरी तलाशने में चली जाती है। Additional Information मनोरंजन
परिभाषा - मन को प्रसन्न करने वाली बात या काम। वाक्य में प्रयोग - टेलीविजन मनोरंजन का एक अच्छा साधन है। समानार्थी शब्द - मनबहलाव , मनोविनोद , आमोद-प्रमोद लिंग - पुल्लिंग संज्ञा के प्रकार - भाववाचक नौकरी
परिभाषा - वह पद या काम जिसके लिए वेतन मिलता हो। वाक्य में प्रयोग - बहुत से लोग सिर्फ़ सरकारी नौकरी चाहते हैं। समानार्थी शब्द - जॉब लिंग - स्त्रीलिंग प्रतिस्पर्धा
परिभाषा - किसी काम में औरों से आगे बढ़ने का प्रयत्न। वाक्य में प्रयोग - आजकल कंपनियों के बीच चल रही प्रतियोगिता के कारण बाजार में नित नये उत्पाद आ रहे हैं। समानार्थी शब्द - प्रतियोगिता , प्रतिस्पर्द्धा लिंग - स्त्रीलिंग मूल शब्द - स्पर्धा उपसर्ग - प्रति
Question 12 5 / -1
Directions For Questions
तत्त्ववेत्ता शिक्षाविदों के अनुसार विद्या दो प्रकार की होती है। प्रथम वह, जो हमें जीवन-यापन के लिए अर्जन करना सिखाती है और द्वितीय वह, जो हमें जीना सिखलाती है। इनमें से एक का भी अभाव जीवन को निरर्थक बना देता है। बिना कमाए जीवन-निर्वाह संभव नहीं। कोई भी नहीं चाहेगा कि वह माता-पिता, परिवार के किसी सदस्य, जाति या समाज पर परावलंबी हो। ऐसी विद्या से विहीन व्यक्ति का जीवन दूभर हो जाता है, वह दूसरों के लिए भार बन जाता है। साथ ही, दूसरी विद्या के बिना सार्थक जीवन नहीं जिया जा सकता। बहुत अर्जित कर लेने वाले व्यक्ति का जीवन यदि सुचारु रूप से नहीं चल रहा है, उसमें यदि वह जीवंत-शक्ति नहीं है, जो उसके अपने जीवन को तो सत्पथ पर अग्रसर करती ही है, साथ ही वह अपने समाज, जाति एवं राष्ट्र के लिए भी मार्गदर्शन करती है, तो उसका जीवन भी मानव-जीवन का अभिधान नहीं पा सकता। वह
भारवाही गर्दभ बन जाता है या पूँछ-सींग-विहीन पशु कहा जाता है। वर्तमान भारत में पहली विद्या का प्रायः अभाव दिखाई देता है, परंतु दूसरी विद्या का रूप भी विकृत ही है, क्योंकि न तो स्कूल-कॉलेजों से शिक्षा प्राप्त करके निकला छात्र जीविकार्जन के योग्य बन पाता है और न ही वह उन संस्कारों से युक्त हो पाता है, जिनसे व्यक्ति 'कु' से 'सु' बनता है, सुशिक्षित, सुसभ्य और सुसंस्कृत कहलाने का अधिकारी होता है। वर्तमान शिक्षा-पद्धति के अंतर्गत हम जो विद्या प्राप्त कर रहे हैं, उसकी विशेषताओं को सर्वथा नकारा भी नहीं जा सकता। यह शिक्षा कुछ सीमा तक हमारे दृष्टिकोण को विकसित भी करती है, हमारी मनीषा को प्रबुद्ध बनाती है तथा भावनाओं को चेतन करती है, किंतु कला, शिल्प, प्रौद्योगिकी आदि की शिक्षा नाममात्र की होने के फलस्वरूप इस देश के स्नातक के लिए जीविकार्जन टेढ़ी खीर बन जाता है और बृहस्पति बना युवक नौकरी की तलाश में अर्जियाँ लिखने में ही अपने जीवन का बहुमूल्य समय बर्बाद कर लेता है। जीवन के सर्वांगीण विकास को ध्यान में रखते हुए यदि शिक्षा के क्रमिक सोपानों पर विचार किया जाए, तो भारतीय विद्यार्थी को सर्वप्रथम इस प्रकार की शिक्षा दी जानी चाहिए जो आवश्यक हो, दूसरी जो उपयोगी हो और तीसरी जो हमारे जीवन को परिष्कृत एवं अलंकृत करती हो। ये तीनों सीढ़ियाँ एक के बाद एक आती हैं, इनमें व्यतिक्रम नहीं होना चाहिए। इस क्रम में व्याघात आ जाने से मानव-जीवन का चारु प्रासाद खड़ा करना असंभव है। यह तो भवन की छत बनाकर नींव बनाने के सदृश है। वर्तमान भारत में शिक्षा की अवस्था देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि प्राचीन भारतीय दार्शनिकों ने 'अन्न' से 'आनंद' की ओर बढ़ने को जो 'विद्या का सार' कहा था, वह सर्वथा समीचीन ही था।
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गद्यांश के अनुसार जीवन-यापन के लिए अर्जन करना कौन सिखाता है?
Solution
गद्यांश के अनुसार जीवन-यापन के लिए अर्जन करना '
प्रथम प्रकार की विद्या' सिखाता है।
Key Points तत्त्ववेत्ता शिक्षाविदों के अनुसार विद्या दो प्रकार की होती है। प्रथम वह, जो हमें जीवन-यापन के लिए अर्जन करना सिखाती है। और द्वितीय वह, जो हमें जीना सिखलाती है। इनमें से एक का भी अभाव जीवन को निरर्थक बना देता है। बिना कमाए जीवन-निर्वाह संभव नहीं। कोई भी नहीं चाहेगा कि वह माता-पिता, परिवार के किसी सदस्य, जाति या समाज पर परावलंबी हो। ऐसी विद्या से विहीन व्यक्ति का जीवन दूभर हो जाता है, वह दूसरों के लिए भार बन जाता है। Additional Information
परिवार
परिभाषा - एक घर के लोग या एक ही कर्ता के अधीन या संरक्षण में रहने वाले लोग। वाक्य में प्रयोग - मेरे घरवाले एक साथ बैठकर खाना खाते हैं । बहुवचन - परिवार समानार्थी शब्द - घरवाले , कुटुम्ब लिंग - पुल्लिंग संज्ञा के प्रकार - जातिवाचक प्रथम प्रकार की विद्या
प्रथम वह, जो हमें जीवन-यापन के लिए अर्जन करना सिखाती है। द्वितीय प्रकार की विद्या
द्वितीय वह, जो हमें जीना सिखलाती है।
Question 13 5 / -1
Directions For Questions
तत्त्ववेत्ता शिक्षाविदों के अनुसार विद्या दो प्रकार की होती है। प्रथम वह, जो हमें जीवन-यापन के लिए अर्जन करना सिखाती है और द्वितीय वह, जो हमें जीना सिखलाती है। इनमें से एक का भी अभाव जीवन को निरर्थक बना देता है। बिना कमाए जीवन-निर्वाह संभव नहीं। कोई भी नहीं चाहेगा कि वह माता-पिता, परिवार के किसी सदस्य, जाति या समाज पर परावलंबी हो। ऐसी विद्या से विहीन व्यक्ति का जीवन दूभर हो जाता है, वह दूसरों के लिए भार बन जाता है। साथ ही, दूसरी विद्या के बिना सार्थक जीवन नहीं जिया जा सकता। बहुत अर्जित कर लेने वाले व्यक्ति का जीवन यदि सुचारु रूप से नहीं चल रहा है, उसमें यदि वह जीवंत-शक्ति नहीं है, जो उसके अपने जीवन को तो सत्पथ पर अग्रसर करती ही है, साथ ही वह अपने समाज, जाति एवं राष्ट्र के लिए भी मार्गदर्शन करती है, तो उसका जीवन भी मानव-जीवन का अभिधान नहीं पा सकता। वह
भारवाही गर्दभ बन जाता है या पूँछ-सींग-विहीन पशु कहा जाता है। वर्तमान भारत में पहली विद्या का प्रायः अभाव दिखाई देता है, परंतु दूसरी विद्या का रूप भी विकृत ही है, क्योंकि न तो स्कूल-कॉलेजों से शिक्षा प्राप्त करके निकला छात्र जीविकार्जन के योग्य बन पाता है और न ही वह उन संस्कारों से युक्त हो पाता है, जिनसे व्यक्ति 'कु' से 'सु' बनता है, सुशिक्षित, सुसभ्य और सुसंस्कृत कहलाने का अधिकारी होता है। वर्तमान शिक्षा-पद्धति के अंतर्गत हम जो विद्या प्राप्त कर रहे हैं, उसकी विशेषताओं को सर्वथा नकारा भी नहीं जा सकता। यह शिक्षा कुछ सीमा तक हमारे दृष्टिकोण को विकसित भी करती है, हमारी मनीषा को प्रबुद्ध बनाती है तथा भावनाओं को चेतन करती है, किंतु कला, शिल्प, प्रौद्योगिकी आदि की शिक्षा नाममात्र की होने के फलस्वरूप इस देश के स्नातक के लिए जीविकार्जन टेढ़ी खीर बन जाता है और बृहस्पति बना युवक नौकरी की तलाश में अर्जियाँ लिखने में ही अपने जीवन का बहुमूल्य समय बर्बाद कर लेता है। जीवन के सर्वांगीण विकास को ध्यान में रखते हुए यदि शिक्षा के क्रमिक सोपानों पर विचार किया जाए, तो भारतीय विद्यार्थी को सर्वप्रथम इस प्रकार की शिक्षा दी जानी चाहिए जो आवश्यक हो, दूसरी जो उपयोगी हो और तीसरी जो हमारे जीवन को परिष्कृत एवं अलंकृत करती हो। ये तीनों सीढ़ियाँ एक के बाद एक आती हैं, इनमें व्यतिक्रम नहीं होना चाहिए। इस क्रम में व्याघात आ जाने से मानव-जीवन का चारु प्रासाद खड़ा करना असंभव है। यह तो भवन की छत बनाकर नींव बनाने के सदृश है। वर्तमान भारत में शिक्षा की अवस्था देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि प्राचीन भारतीय दार्शनिकों ने 'अन्न' से 'आनंद' की ओर बढ़ने को जो 'विद्या का सार' कहा था, वह सर्वथा समीचीन ही था।
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गद्यांश के अनुसार किसका अभाव जीवन को निरर्थक बना देता है?
Solution
गद्यांश के अनुसार
'शिक्षा का' अभाव जीवन को निरर्थक बना देता है।
Key Points तत्त्ववेत्ता शिक्षाविदों के अनुसार, दो प्रकार के सीखने हैं।पहला, जो हमें जीने के लिए कमाना सिखाता है और दूसरा जो हमें जीना सिखाता है। उनमें से एक की कमी भी जीवन को व्यर्थ बना देती है। Additional Information धन
समानार्थी शब्द - धन-दौलत , दौलत , रुपया-पैसा , पैसा लिंग - पुल्लिंग संज्ञा के प्रकार - समूहवाचक शिक्षा
परिभाषा - विद्या, संगीत आदि पढ़ाने या सिखाने की क्रिया। वाक्य में प्रयोग - पाठशाला में कई विषयों की शिक्षा दी जाती है। समानार्थी शब्द - शिक्षण , तालीम , एजुकेशन। परिवार
परिभाषा - एक घर के लोग या एक ही कर्ता के अधीन या संरक्षण में रहने वाले लोग। वाक्य में प्रयोग - मेरे घरवाले एक साथ बैठकर खाना खाते हैं । बहुवचन - परिवार। समानार्थी शब्द - घरवाले , कुटुम्ब। जाति
परिभाषा - वंश-परम्परा के विचार से किया हुआ मानव समाज का विभाग। वाक्य में प्रयोग - भारत में अनेक जातियों के लोग रहते हैं। बहुवचन - जातियाँ। समानार्थी शब्द - क़ौम , बिरादरी।
Question 14 5 / -1
Directions For Questions
तत्त्ववेत्ता शिक्षाविदों के अनुसार विद्या दो प्रकार की होती है। प्रथम वह, जो हमें जीवन-यापन के लिए अर्जन करना सिखाती है और द्वितीय वह, जो हमें जीना सिखलाती है। इनमें से एक का भी अभाव जीवन को निरर्थक बना देता है। बिना कमाए जीवन-निर्वाह संभव नहीं। कोई भी नहीं चाहेगा कि वह माता-पिता, परिवार के किसी सदस्य, जाति या समाज पर परावलंबी हो। ऐसी विद्या से विहीन व्यक्ति का जीवन दूभर हो जाता है, वह दूसरों के लिए भार बन जाता है। साथ ही, दूसरी विद्या के बिना सार्थक जीवन नहीं जिया जा सकता। बहुत अर्जित कर लेने वाले व्यक्ति का जीवन यदि सुचारु रूप से नहीं चल रहा है, उसमें यदि वह जीवंत-शक्ति नहीं है, जो उसके अपने जीवन को तो सत्पथ पर अग्रसर करती ही है, साथ ही वह अपने समाज, जाति एवं राष्ट्र के लिए भी मार्गदर्शन करती है, तो उसका जीवन भी मानव-जीवन का अभिधान नहीं पा सकता। वह
भारवाही गर्दभ बन जाता है या पूँछ-सींग-विहीन पशु कहा जाता है। वर्तमान भारत में पहली विद्या का प्रायः अभाव दिखाई देता है, परंतु दूसरी विद्या का रूप भी विकृत ही है, क्योंकि न तो स्कूल-कॉलेजों से शिक्षा प्राप्त करके निकला छात्र जीविकार्जन के योग्य बन पाता है और न ही वह उन संस्कारों से युक्त हो पाता है, जिनसे व्यक्ति 'कु' से 'सु' बनता है, सुशिक्षित, सुसभ्य और सुसंस्कृत कहलाने का अधिकारी होता है। वर्तमान शिक्षा-पद्धति के अंतर्गत हम जो विद्या प्राप्त कर रहे हैं, उसकी विशेषताओं को सर्वथा नकारा भी नहीं जा सकता। यह शिक्षा कुछ सीमा तक हमारे दृष्टिकोण को विकसित भी करती है, हमारी मनीषा को प्रबुद्ध बनाती है तथा भावनाओं को चेतन करती है, किंतु कला, शिल्प, प्रौद्योगिकी आदि की शिक्षा नाममात्र की होने के फलस्वरूप इस देश के स्नातक के लिए जीविकार्जन टेढ़ी खीर बन जाता है और बृहस्पति बना युवक नौकरी की तलाश में अर्जियाँ लिखने में ही अपने जीवन का बहुमूल्य समय बर्बाद कर लेता है। जीवन के सर्वांगीण विकास को ध्यान में रखते हुए यदि शिक्षा के क्रमिक सोपानों पर विचार किया जाए, तो भारतीय विद्यार्थी को सर्वप्रथम इस प्रकार की शिक्षा दी जानी चाहिए जो आवश्यक हो, दूसरी जो उपयोगी हो और तीसरी जो हमारे जीवन को परिष्कृत एवं अलंकृत करती हो। ये तीनों सीढ़ियाँ एक के बाद एक आती हैं, इनमें व्यतिक्रम नहीं होना चाहिए। इस क्रम में व्याघात आ जाने से मानव-जीवन का चारु प्रासाद खड़ा करना असंभव है। यह तो भवन की छत बनाकर नींव बनाने के सदृश है। वर्तमान भारत में शिक्षा की अवस्था देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि प्राचीन भारतीय दार्शनिकों ने 'अन्न' से 'आनंद' की ओर बढ़ने को जो 'विद्या का सार' कहा था, वह सर्वथा समीचीन ही था।
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दूसरों पर किस प्रकार का व्यक्ति भार बन जाता है?
Solution
दूसरों पर ' विद्याहीन' व्यक्ति भार बन जाता है।
Key Points
कमाई के बिना जीवन संभव नहीं है। और सही जीवन जीने के लिए विद्या बहुत ही जरुरी है। विद्या की तुलना हम किसी भी चीज़ से नहीं कर सकते है। कोई भी यह नहीं चाहेगा कि उसे माता -पिता, किसी भी परिवार के सदस्य, जाति या समाज पर बोझ बनाया जाए। साथ ही, दूसरी विद्या के बिना सार्थक जीवन नहीं जिया जा सकता। Additional Information लालची
परिभाषा - जिसे लालच हो या लालच से भरा हुआ। वाक्य में प्रयोग - वह एक लालची व्यक्ति है। समानार्थी शब्द - लोभी। विशेषण के प्रकार - गुणवाचक। विद्या
परिभाषा - शिक्षा आदि के द्वारा प्राप्त किया हुआ ज्ञान। वाक्य में प्रयोग - अपनी विद्या और बुद्धि पर घमंड नहीं करना चाहिए। समानार्थी शब्द - इल्म , हिकमत। लिंग - स्त्रीलिंग। संज्ञा के प्रकार - जातिवाचक। स्वावलंबी
परिभाषा - अपने ही सहारे पर रहनेवाला। वाक्य में प्रयोग - स्वावलंबी व्यक्ति जीवन में सफल होते हैं । विलोम शब्द - स्वावलंबिनी , परावलंबी। विद्याहीन
विद्या+हीनः अर्थात विद्या से हीन।
Question 15 5 / -1
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तत्त्ववेत्ता शिक्षाविदों के अनुसार विद्या दो प्रकार की होती है। प्रथम वह, जो हमें जीवन-यापन के लिए अर्जन करना सिखाती है और द्वितीय वह, जो हमें जीना सिखलाती है। इनमें से एक का भी अभाव जीवन को निरर्थक बना देता है। बिना कमाए जीवन-निर्वाह संभव नहीं। कोई भी नहीं चाहेगा कि वह माता-पिता, परिवार के किसी सदस्य, जाति या समाज पर परावलंबी हो। ऐसी विद्या से विहीन व्यक्ति का जीवन दूभर हो जाता है, वह दूसरों के लिए भार बन जाता है। साथ ही, दूसरी विद्या के बिना सार्थक जीवन नहीं जिया जा सकता। बहुत अर्जित कर लेने वाले व्यक्ति का जीवन यदि सुचारु रूप से नहीं चल रहा है, उसमें यदि वह जीवंत-शक्ति नहीं है, जो उसके अपने जीवन को तो सत्पथ पर अग्रसर करती ही है, साथ ही वह अपने समाज, जाति एवं राष्ट्र के लिए भी मार्गदर्शन करती है, तो उसका जीवन भी मानव-जीवन का अभिधान नहीं पा सकता। वह
भारवाही गर्दभ बन जाता है या पूँछ-सींग-विहीन पशु कहा जाता है। वर्तमान भारत में पहली विद्या का प्रायः अभाव दिखाई देता है, परंतु दूसरी विद्या का रूप भी विकृत ही है, क्योंकि न तो स्कूल-कॉलेजों से शिक्षा प्राप्त करके निकला छात्र जीविकार्जन के योग्य बन पाता है और न ही वह उन संस्कारों से युक्त हो पाता है, जिनसे व्यक्ति 'कु' से 'सु' बनता है, सुशिक्षित, सुसभ्य और सुसंस्कृत कहलाने का अधिकारी होता है। वर्तमान शिक्षा-पद्धति के अंतर्गत हम जो विद्या प्राप्त कर रहे हैं, उसकी विशेषताओं को सर्वथा नकारा भी नहीं जा सकता। यह शिक्षा कुछ सीमा तक हमारे दृष्टिकोण को विकसित भी करती है, हमारी मनीषा को प्रबुद्ध बनाती है तथा भावनाओं को चेतन करती है, किंतु कला, शिल्प, प्रौद्योगिकी आदि की शिक्षा नाममात्र की होने के फलस्वरूप इस देश के स्नातक के लिए जीविकार्जन टेढ़ी खीर बन जाता है और बृहस्पति बना युवक नौकरी की तलाश में अर्जियाँ लिखने में ही अपने जीवन का बहुमूल्य समय बर्बाद कर लेता है। जीवन के सर्वांगीण विकास को ध्यान में रखते हुए यदि शिक्षा के क्रमिक सोपानों पर विचार किया जाए, तो भारतीय विद्यार्थी को सर्वप्रथम इस प्रकार की शिक्षा दी जानी चाहिए जो आवश्यक हो, दूसरी जो उपयोगी हो और तीसरी जो हमारे जीवन को परिष्कृत एवं अलंकृत करती हो। ये तीनों सीढ़ियाँ एक के बाद एक आती हैं, इनमें व्यतिक्रम नहीं होना चाहिए। इस क्रम में व्याघात आ जाने से मानव-जीवन का चारु प्रासाद खड़ा करना असंभव है। यह तो भवन की छत बनाकर नींव बनाने के सदृश है। वर्तमान भारत में शिक्षा की अवस्था देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि प्राचीन भारतीय दार्शनिकों ने 'अन्न' से 'आनंद' की ओर बढ़ने को जो 'विद्या का सार' कहा था, वह सर्वथा समीचीन ही था।
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'क' से 'सु' बनाने में क्या आशय सन्निहित है?
Solution
'क' से 'सु' बनाने में
'दुर्जन से सुजन बनाना' आशय सन्निहित है।
Key Points वर्तमान भारत में पहली विद्या का प्रायः अभाव दिखाई देता है। परंतु दूसरी विद्या का रूप भी विकृत ही है। क्योंकि न तो स्कूल-कॉलेजों से शिक्षा प्राप्त करके निकला छात्र जीविकार्जन के योग्य बन पाता है। और न ही वह उन संस्कारों से युक्त हो पाता है। जिनसे व्यक्ति 'कु' से 'सु' बनता है, सुशिक्षित, सुसभ्य और सुसंस्कृत कहलाने का अधिकारी होता है। वर्तमान शिक्षा-पद्धति के अंतर्गत हम जो विद्या प्राप्त कर रहे हैं, उसकी विशेषताओं को सर्वथा नकारा भी नहीं जा सकता। Additional Information दुर्लभ
परिभाषा - इक्का-दुक्का या कोई-कोई। वाक्य में प्रयोग - वहाँ कई दुर्लभ पेड़ दिखते हैं। समानार्थी शब्द - बिरला , विरला , कोई-कोई , इक्का-दुक्का। विशेषण के प्रकार - गुणवाचक। सुलभ
परिभाषा - सहज में प्राप्त होने या मिलनेवाला। वाक्य में प्रयोग - प्रत्येक कृषि केन्द्र पर किसानों के लिए कृषि संबंधी वस्तुएँ सुलभ हैं । समानार्थी शब्द - सुप्राप्य , सुलब्ध , सहज प्राप्य। विलोम शब्द - दुर्लभ , दुष्प्राप्य , अप्राप्य। सुगम
परिभाषा - सरलता से जाने या पहुँचने योग्य। वाक्य में प्रयोग - हिमालय की ऊँची -ऊँची चोटियाँ सुगम्य नहीं हैं । समानार्थी शब्द - सुगम्य। सुजन
परिभाषा - वह व्यक्ति जो सबके साथ अच्छा,प्रिय और उचित व्यवहार करता है। वाक्य में प्रयोग - सज्जनों का आदर करो। समानार्थी शब्द - सज्जन , भला आदमी , शरीफ , सत्पुरुष। विलोम शब्द - दुर्जन।
Question 16 5 / -1
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ईश्वर सच्चिदानंद स्वरूप है तथा उसकी सर्वोत्कृष्ट रचना है - मानव। कण-कण में व्याप्त होने के साथ ही वह सर्वाधिक निकट हमारे अंदर स्थित है, फिर भी मानव हताश, निराश, दुःखी तथा अशांत है। इसका कारण है ईश्वरीय ज्ञान का अभाव। प्रश्न है उसे कैसे जाना जाए? ईश्वर से मिलन का सीधा-सरल तरीका है - ध्यान। ध्यान है देखना, पर इन बाहरी आँखों से नहीं, अंतर्दृष्टि से देखना। ध्यान के द्वारा मन को एकाग्र कर प्राण में, आत्मा में स्थिर किया जाता है। जैसे सूर्य की बिखरी किरणों को सूक्ष्मदर्शी यंत्र द्वारा एक बिंदु पर केंद्रित करने से अग्नि उत्पन्न होती है, वैसे ही ध्यान द्वारा चित्त की वृत्तियों के घनीभूत होने पर चैतन्य शक्ति का दिव्य प्रकाश, अमृतरस तथा अनहद संगीत के रूप में प्रकटीकरण होता है, जिसे आत्म-साक्षात्कार कहते हैं। ध्यान आत्मा का भोजन तथा मुक्ति का मार्ग है, जिससे परम कच परमात्मा के रहस्यों का उद्घाटन अंतरात्मा में होता है। ध्यान सभी धर्मों का सार तथा सभी संतों एवं महापुरुषों द्वारा अपनाया गया मार्ग है। ध्यान के महत्त्व को समझे तथा किए बिना कोई भी व्यक्ति धार्मिक तथा अध्यात्मवादी नहीं हो सकता, क्योंकि ध्यान से चित्त का रूपांतरण होता है। पारलौकिक के साथ-साथ लौकिक रूप से भी ध्यान मानवोपयोगी है। मन के विकार शारीरिक व्याधियों के मूल हैं। इस साधना से श्वासों की गति नियमित होती है, जिससे व्याधिकारक चंचल मन शांत होता है और अनेक प्रकार की व्याधियों का शमन होता है। ध्यान से मस्तिष्क की क्रियाशीलता बढ़ती है, बुद्धि कुशाग्र होती है तथा समय-समय पर आने वाले प्रश्नों की समस्याओं का समाधान आंतरिक शक्ति से होता है। साधना से निष्क्रिय दायाँ मस्तिष्क सक्रिय हो जाता है तथा मस्तिष्क की कार्यकुशलता और शक्ति दस गुना बढ़ जाती है। ध्यान परमानंद का झरना है। इस प्रक्रिया में आनंद की रिमझिम वर्षा होती है, क्योंकि साधक के ध्यानस्थ होने पर मस्तिष्क में तरंगें उत्पन्न होती हैं, जो शांति तथा आनंद का कारण होती हैं, किंतु इस हेतु मन का शांत होना आवश्यक है। प्रसन्नता की प्राप्ति हेतु आनंद केंद्र पर ध्यान कर उसे जाग्रत किया जाता है, जिससे व्यक्ति कठिन से कठिन परिस्थिति में भी खिन्न व विचलित नहीं होता तथा सदैव प्रसन्न व तनावमुक्त जीवन व्यतीत करता है। ध्यान की प्रक्रिया सरल है, किंतु आवश्यकता है इसे जानने की। तत्त्वदृष्टा सद्गुरु से इसको जानकर इसका नित्य प्रति अभ्यास करना चाहिए। यह साधना शारीरिक, मानसिक एवं बौद्धिक विकारों को दूर कर सुख, समृद्धि, दीर्घायु तथा आनंद प्रदायक है। स्वयं के अतिरिक्त परिवार एवं विश्व में शांति व मंगल-भावना हेतु भी साधना आवश्यक है।
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गद्यांश के अनुसार शारीरिक व्याधियों का मूल किसे कहा गया है ?
Solution
गद्यांश के अनुसार शारीरिक व्याधियों का मूल मन के विकार को कहा गया है।
गद्यांश के अनुसार:- पारलौकिक के साथ-साथ लौकिक रूप से भी ध्यान मानवोपयोगी है। मन के विकार शारीरिक व्याधियों के मूल हैं। इस साधना से श्वासों की गति नियमित होती है, जिससे व्याधिकारक चंचल मन शांत होता है और अनेक प्रकार की व्याधियों का शमन होता है। Key Points
मन- मानस, मत, दिल, इच्छा, इरादा, विचार, तबीयत। विलोम शब्द- 'अमन या जो मन रहित हो' विकार- रूप, धर्म आदि का स्वाभाविक परिवर्तन, दोष, बुराई, बिगाड़, खराबी, त्रुटि, कमी।Additional Information
ध्यान:-
अर्थ: एकाग्रता, तन्मयता, तल्लीनता, स्मृति, समझ, विचार, चिंतन, सावधानी, जागरुकता।शांति:-
अर्थ: मन की स्थिरता, धीरज या संयम से, निःशब्दता, सूनापन।चंचल:-
अर्थ: जो बराबर गतिशील हो, हिलने-डुलनेवाला, अस्थिर।विलोम शब्द- 'अचंचल, स्थिर'
Question 17 5 / -1
Directions For Questions
ईश्वर सच्चिदानंद स्वरूप है तथा उसकी सर्वोत्कृष्ट रचना है - मानव। कण-कण में व्याप्त होने के साथ ही वह सर्वाधिक निकट हमारे अंदर स्थित है, फिर भी मानव हताश, निराश, दुःखी तथा अशांत है। इसका कारण है ईश्वरीय ज्ञान का अभाव। प्रश्न है उसे कैसे जाना जाए? ईश्वर से मिलन का सीधा-सरल तरीका है - ध्यान। ध्यान है देखना, पर इन बाहरी आँखों से नहीं, अंतर्दृष्टि से देखना। ध्यान के द्वारा मन को एकाग्र कर प्राण में, आत्मा में स्थिर किया जाता है। जैसे सूर्य की बिखरी किरणों को सूक्ष्मदर्शी यंत्र द्वारा एक बिंदु पर केंद्रित करने से अग्नि उत्पन्न होती है, वैसे ही ध्यान द्वारा चित्त की वृत्तियों के घनीभूत होने पर चैतन्य शक्ति का दिव्य प्रकाश, अमृतरस तथा अनहद संगीत के रूप में प्रकटीकरण होता है, जिसे आत्म-साक्षात्कार कहते हैं। ध्यान आत्मा का भोजन तथा मुक्ति का मार्ग है, जिससे परम कच परमात्मा के रहस्यों का उद्घाटन अंतरात्मा में होता है। ध्यान सभी धर्मों का सार तथा सभी संतों एवं महापुरुषों द्वारा अपनाया गया मार्ग है। ध्यान के महत्त्व को समझे तथा किए बिना कोई भी व्यक्ति धार्मिक तथा अध्यात्मवादी नहीं हो सकता, क्योंकि ध्यान से चित्त का रूपांतरण होता है। पारलौकिक के साथ-साथ लौकिक रूप से भी ध्यान मानवोपयोगी है। मन के विकार शारीरिक व्याधियों के मूल हैं। इस साधना से श्वासों की गति नियमित होती है, जिससे व्याधिकारक चंचल मन शांत होता है और अनेक प्रकार की व्याधियों का शमन होता है। ध्यान से मस्तिष्क की क्रियाशीलता बढ़ती है, बुद्धि कुशाग्र होती है तथा समय-समय पर आने वाले प्रश्नों की समस्याओं का समाधान आंतरिक शक्ति से होता है। साधना से निष्क्रिय दायाँ मस्तिष्क सक्रिय हो जाता है तथा मस्तिष्क की कार्यकुशलता और शक्ति दस गुना बढ़ जाती है। ध्यान परमानंद का झरना है। इस प्रक्रिया में आनंद की रिमझिम वर्षा होती है, क्योंकि साधक के ध्यानस्थ होने पर मस्तिष्क में तरंगें उत्पन्न होती हैं, जो शांति तथा आनंद का कारण होती हैं, किंतु इस हेतु मन का शांत होना आवश्यक है। प्रसन्नता की प्राप्ति हेतु आनंद केंद्र पर ध्यान कर उसे जाग्रत किया जाता है, जिससे व्यक्ति कठिन से कठिन परिस्थिति में भी खिन्न व विचलित नहीं होता तथा सदैव प्रसन्न व तनावमुक्त जीवन व्यतीत करता है। ध्यान की प्रक्रिया सरल है, किंतु आवश्यकता है इसे जानने की। तत्त्वदृष्टा सद्गुरु से इसको जानकर इसका नित्य प्रति अभ्यास करना चाहिए। यह साधना शारीरिक, मानसिक एवं बौद्धिक विकारों को दूर कर सुख, समृद्धि, दीर्घायु तथा आनंद प्रदायक है। स्वयं के अतिरिक्त परिवार एवं विश्व में शांति व मंगल-भावना हेतु भी साधना आवश्यक है।
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मानव हताश, निराश और दुःखी क्यों रहता है?
Solution
मानव हताश, निराश और दुःखी ईश्वर का ज्ञान न होने के कारण रहता है।
गद्यांश के अनुसार:- ईश्वर सच्चिदानंद स्वरूप है तथा उसकी सर्वोत्कृष्ट रचना है - मानव। कण-कण में व्याप्त होने के साथ ही वह सर्वाधिक निकट हमारे अंदर स्थित है, फिर भी मानव हताश, निराश, दुःखी तथा अशांत है। इसका कारण है ईश्वरीय ज्ञान का अभाव। Key Points
ईश्वर- परमपिता, परमात्मा, प्रभु, ईश, जगदीश, भगवान, परमेश्वर, जगदीश्वर, विधाता। ज्ञान- बोध, इल्म, जानकारी, परिचय, विवेक, आत्मज्ञान। Additional Information
कर्म:-
अर्थ: क्रिया, करतब, करतूत, करनी, काम, कारनामा, कार्य। बुद्धि:-
अर्थ: अक्ल, समझ, दिमाग, विवेक, सूझबूझ, ज्ञान, प्रतिभा। सुख:-
अर्थ: शांति, अमन, सुकून, चैन।अभाव:-
अ + भाव = अभाव 'अ' (नही) उपसर्ग और 'भाव' मूल शब्द अर्थ: अस्तित्व में न होने की अवस्था, असत, कमी। विलोम शब्द- 'भाव, प्रचुरता'
Question 18 5 / -1
Directions For Questions
ईश्वर सच्चिदानंद स्वरूप है तथा उसकी सर्वोत्कृष्ट रचना है - मानव। कण-कण में व्याप्त होने के साथ ही वह सर्वाधिक निकट हमारे अंदर स्थित है, फिर भी मानव हताश, निराश, दुःखी तथा अशांत है। इसका कारण है ईश्वरीय ज्ञान का अभाव। प्रश्न है उसे कैसे जाना जाए? ईश्वर से मिलन का सीधा-सरल तरीका है - ध्यान। ध्यान है देखना, पर इन बाहरी आँखों से नहीं, अंतर्दृष्टि से देखना। ध्यान के द्वारा मन को एकाग्र कर प्राण में, आत्मा में स्थिर किया जाता है। जैसे सूर्य की बिखरी किरणों को सूक्ष्मदर्शी यंत्र द्वारा एक बिंदु पर केंद्रित करने से अग्नि उत्पन्न होती है, वैसे ही ध्यान द्वारा चित्त की वृत्तियों के घनीभूत होने पर चैतन्य शक्ति का दिव्य प्रकाश, अमृतरस तथा अनहद संगीत के रूप में प्रकटीकरण होता है, जिसे आत्म-साक्षात्कार कहते हैं। ध्यान आत्मा का भोजन तथा मुक्ति का मार्ग है, जिससे परम कच परमात्मा के रहस्यों का उद्घाटन अंतरात्मा में होता है। ध्यान सभी धर्मों का सार तथा सभी संतों एवं महापुरुषों द्वारा अपनाया गया मार्ग है। ध्यान के महत्त्व को समझे तथा किए बिना कोई भी व्यक्ति धार्मिक तथा अध्यात्मवादी नहीं हो सकता, क्योंकि ध्यान से चित्त का रूपांतरण होता है। पारलौकिक के साथ-साथ लौकिक रूप से भी ध्यान मानवोपयोगी है। मन के विकार शारीरिक व्याधियों के मूल हैं। इस साधना से श्वासों की गति नियमित होती है, जिससे व्याधिकारक चंचल मन शांत होता है और अनेक प्रकार की व्याधियों का शमन होता है। ध्यान से मस्तिष्क की क्रियाशीलता बढ़ती है, बुद्धि कुशाग्र होती है तथा समय-समय पर आने वाले प्रश्नों की समस्याओं का समाधान आंतरिक शक्ति से होता है। साधना से निष्क्रिय दायाँ मस्तिष्क सक्रिय हो जाता है तथा मस्तिष्क की कार्यकुशलता और शक्ति दस गुना बढ़ जाती है। ध्यान परमानंद का झरना है। इस प्रक्रिया में आनंद की रिमझिम वर्षा होती है, क्योंकि साधक के ध्यानस्थ होने पर मस्तिष्क में तरंगें उत्पन्न होती हैं, जो शांति तथा आनंद का कारण होती हैं, किंतु इस हेतु मन का शांत होना आवश्यक है। प्रसन्नता की प्राप्ति हेतु आनंद केंद्र पर ध्यान कर उसे जाग्रत किया जाता है, जिससे व्यक्ति कठिन से कठिन परिस्थिति में भी खिन्न व विचलित नहीं होता तथा सदैव प्रसन्न व तनावमुक्त जीवन व्यतीत करता है। ध्यान की प्रक्रिया सरल है, किंतु आवश्यकता है इसे जानने की। तत्त्वदृष्टा सद्गुरु से इसको जानकर इसका नित्य प्रति अभ्यास करना चाहिए। यह साधना शारीरिक, मानसिक एवं बौद्धिक विकारों को दूर कर सुख, समृद्धि, दीर्घायु तथा आनंद प्रदायक है। स्वयं के अतिरिक्त परिवार एवं विश्व में शांति व मंगल-भावना हेतु भी साधना आवश्यक है।
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किसके माध्यम से मन को एकाग्र कर प्राण व आत्मा में स्थिर किया जाता है?
Solution
ध्यान के माध्यम से मन को एकाग्र कर प्राण व आत्मा में स्थिर किया जाता है।
गद्यांश के अनुसार:- ईश्वर से मिलन का सीधा-सरल तरीका है - ध्यान।ध्यान है देखना, पर इन बाहरी आँखों से नहीं, अंतर्दृष्टि से देखना। ध्यान के द्वारा मन को एकाग्र कर प्राण में, आत्मा में स्थिर किया जाता है। Key Points ध्यान:-
अर्थ: एकाग्रता, तन्मयता, तल्लीनता, स्मृति, समझ, विचार, चिंतन, सावधानी, जागरुकता।Additional Information
ईश्वर:-
अर्थ: परमपिता, परमात्मा, प्रभु, ईश, जगदीश, भगवान, परमेश्वर, जगदीश्वर, विधाता।गुरु:-
अर्थ: शिक्षक, आचार्य, उपाध्याय, मुदर्रिस, अध्यापक, उस्ताद , व्याख्याता, बुध।'गुरु' का स्त्रीलिंग शब्द 'गुरुआइन' शक्ति:-
अर्थ: पराक्रम, बल, ताकत, योग्यता, सामर्थ्य, क्षमता, जोर
Question 19 5 / -1
Directions For Questions
ईश्वर सच्चिदानंद स्वरूप है तथा उसकी सर्वोत्कृष्ट रचना है - मानव। कण-कण में व्याप्त होने के साथ ही वह सर्वाधिक निकट हमारे अंदर स्थित है, फिर भी मानव हताश, निराश, दुःखी तथा अशांत है। इसका कारण है ईश्वरीय ज्ञान का अभाव। प्रश्न है उसे कैसे जाना जाए? ईश्वर से मिलन का सीधा-सरल तरीका है - ध्यान। ध्यान है देखना, पर इन बाहरी आँखों से नहीं, अंतर्दृष्टि से देखना। ध्यान के द्वारा मन को एकाग्र कर प्राण में, आत्मा में स्थिर किया जाता है। जैसे सूर्य की बिखरी किरणों को सूक्ष्मदर्शी यंत्र द्वारा एक बिंदु पर केंद्रित करने से अग्नि उत्पन्न होती है, वैसे ही ध्यान द्वारा चित्त की वृत्तियों के घनीभूत होने पर चैतन्य शक्ति का दिव्य प्रकाश, अमृतरस तथा अनहद संगीत के रूप में प्रकटीकरण होता है, जिसे आत्म-साक्षात्कार कहते हैं। ध्यान आत्मा का भोजन तथा मुक्ति का मार्ग है, जिससे परम कच परमात्मा के रहस्यों का उद्घाटन अंतरात्मा में होता है। ध्यान सभी धर्मों का सार तथा सभी संतों एवं महापुरुषों द्वारा अपनाया गया मार्ग है। ध्यान के महत्त्व को समझे तथा किए बिना कोई भी व्यक्ति धार्मिक तथा अध्यात्मवादी नहीं हो सकता, क्योंकि ध्यान से चित्त का रूपांतरण होता है। पारलौकिक के साथ-साथ लौकिक रूप से भी ध्यान मानवोपयोगी है। मन के विकार शारीरिक व्याधियों के मूल हैं। इस साधना से श्वासों की गति नियमित होती है, जिससे व्याधिकारक चंचल मन शांत होता है और अनेक प्रकार की व्याधियों का शमन होता है। ध्यान से मस्तिष्क की क्रियाशीलता बढ़ती है, बुद्धि कुशाग्र होती है तथा समय-समय पर आने वाले प्रश्नों की समस्याओं का समाधान आंतरिक शक्ति से होता है। साधना से निष्क्रिय दायाँ मस्तिष्क सक्रिय हो जाता है तथा मस्तिष्क की कार्यकुशलता और शक्ति दस गुना बढ़ जाती है। ध्यान परमानंद का झरना है। इस प्रक्रिया में आनंद की रिमझिम वर्षा होती है, क्योंकि साधक के ध्यानस्थ होने पर मस्तिष्क में तरंगें उत्पन्न होती हैं, जो शांति तथा आनंद का कारण होती हैं, किंतु इस हेतु मन का शांत होना आवश्यक है। प्रसन्नता की प्राप्ति हेतु आनंद केंद्र पर ध्यान कर उसे जाग्रत किया जाता है, जिससे व्यक्ति कठिन से कठिन परिस्थिति में भी खिन्न व विचलित नहीं होता तथा सदैव प्रसन्न व तनावमुक्त जीवन व्यतीत करता है। ध्यान की प्रक्रिया सरल है, किंतु आवश्यकता है इसे जानने की। तत्त्वदृष्टा सद्गुरु से इसको जानकर इसका नित्य प्रति अभ्यास करना चाहिए। यह साधना शारीरिक, मानसिक एवं बौद्धिक विकारों को दूर कर सुख, समृद्धि, दीर्घायु तथा आनंद प्रदायक है। स्वयं के अतिरिक्त परिवार एवं विश्व में शांति व मंगल-भावना हेतु भी साधना आवश्यक है।
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गद्यांश के अनुसार आत्म साक्षात्कार से क्या तात्पर्य है?
Solution
गद्यांश के अनुसार आत्म साक्षात्कार से तात्पर्य है- स्वयं से परिचित होना
गद्यांश के अनुसार:- ध्यान के द्वारा मन को एकाग्र कर प्राण में, आत्मा में स्थिर किया जाता है। जैसे सूर्य की बिखरी किरणों को सूक्ष्मदर्शी यंत्र द्वारा एक बिंदु पर केंद्रित करने से अग्नि उत्पन्न होती है, वैसे ही ध्यान द्वारा चित्त की वृत्तियों के घनीभूत होने पर चैतन्य शक्ति का दिव्य प्रकाश,अमृतरस तथा अनहद संगीत के रूप में प्रकटीकरण होता है, जिसे आत्म-साक्षात्कार कहते हैं। Key Points परिचित:-
परि + चित = परिचित 'परि' (चारो ओर) उपसर्ग और 'चित' मूल शब्दअर्थ: जो जाना पहचाना हो या जिसको जाना गया हो, जानकार, वाकिफ़।विलोम शब्द- 'अपरिचित' विशेषण शब्द Additional Information
तनावमुक्त:-
अर्थ: जिसमें तनाव न हो, तनावरहित, चिंतामुक्त,सुखी, आनंदित।अंतर्द्वंद्व:-
अर्थ: आंतरिक संघर्ष, कशमकश दुविधा, परस्पर विरोधी भावो का संघर्ष। विलोम शब्द- 'बहिर्द्वंद्व' प्रेरित:-
अर्थ: उत्तेजित, उत्साहित, प्रोत्साहित, जोश, प्रेषित।
Question 20 5 / -1
Directions For Questions
ईश्वर सच्चिदानंद स्वरूप है तथा उसकी सर्वोत्कृष्ट रचना है - मानव। कण-कण में व्याप्त होने के साथ ही वह सर्वाधिक निकट हमारे अंदर स्थित है, फिर भी मानव हताश, निराश, दुःखी तथा अशांत है। इसका कारण है ईश्वरीय ज्ञान का अभाव। प्रश्न है उसे कैसे जाना जाए? ईश्वर से मिलन का सीधा-सरल तरीका है - ध्यान। ध्यान है देखना, पर इन बाहरी आँखों से नहीं, अंतर्दृष्टि से देखना। ध्यान के द्वारा मन को एकाग्र कर प्राण में, आत्मा में स्थिर किया जाता है। जैसे सूर्य की बिखरी किरणों को सूक्ष्मदर्शी यंत्र द्वारा एक बिंदु पर केंद्रित करने से अग्नि उत्पन्न होती है, वैसे ही ध्यान द्वारा चित्त की वृत्तियों के घनीभूत होने पर चैतन्य शक्ति का दिव्य प्रकाश, अमृतरस तथा अनहद संगीत के रूप में प्रकटीकरण होता है, जिसे आत्म-साक्षात्कार कहते हैं। ध्यान आत्मा का भोजन तथा मुक्ति का मार्ग है, जिससे परम कच परमात्मा के रहस्यों का उद्घाटन अंतरात्मा में होता है। ध्यान सभी धर्मों का सार तथा सभी संतों एवं महापुरुषों द्वारा अपनाया गया मार्ग है। ध्यान के महत्त्व को समझे तथा किए बिना कोई भी व्यक्ति धार्मिक तथा अध्यात्मवादी नहीं हो सकता, क्योंकि ध्यान से चित्त का रूपांतरण होता है। पारलौकिक के साथ-साथ लौकिक रूप से भी ध्यान मानवोपयोगी है। मन के विकार शारीरिक व्याधियों के मूल हैं। इस साधना से श्वासों की गति नियमित होती है, जिससे व्याधिकारक चंचल मन शांत होता है और अनेक प्रकार की व्याधियों का शमन होता है। ध्यान से मस्तिष्क की क्रियाशीलता बढ़ती है, बुद्धि कुशाग्र होती है तथा समय-समय पर आने वाले प्रश्नों की समस्याओं का समाधान आंतरिक शक्ति से होता है। साधना से निष्क्रिय दायाँ मस्तिष्क सक्रिय हो जाता है तथा मस्तिष्क की कार्यकुशलता और शक्ति दस गुना बढ़ जाती है। ध्यान परमानंद का झरना है। इस प्रक्रिया में आनंद की रिमझिम वर्षा होती है, क्योंकि साधक के ध्यानस्थ होने पर मस्तिष्क में तरंगें उत्पन्न होती हैं, जो शांति तथा आनंद का कारण होती हैं, किंतु इस हेतु मन का शांत होना आवश्यक है। प्रसन्नता की प्राप्ति हेतु आनंद केंद्र पर ध्यान कर उसे जाग्रत किया जाता है, जिससे व्यक्ति कठिन से कठिन परिस्थिति में भी खिन्न व विचलित नहीं होता तथा सदैव प्रसन्न व तनावमुक्त जीवन व्यतीत करता है। ध्यान की प्रक्रिया सरल है, किंतु आवश्यकता है इसे जानने की। तत्त्वदृष्टा सद्गुरु से इसको जानकर इसका नित्य प्रति अभ्यास करना चाहिए। यह साधना शारीरिक, मानसिक एवं बौद्धिक विकारों को दूर कर सुख, समृद्धि, दीर्घायु तथा आनंद प्रदायक है। स्वयं के अतिरिक्त परिवार एवं विश्व में शांति व मंगल-भावना हेतु भी साधना आवश्यक है।
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ध्यान करने से मनुष्य को क्या लाभ होता है?
Solution
ध्यान करने से मनुष्य को लाभ होता है- उपरोक्त सभी
गद्यांश के अनुसार:- इस साधना से श्वासों की गति नियमित होती है, जिससे व्याधिकारक चंचल मन शांत होता है और अनेक प्रकार की व्याधियों का शमन होता है। ध्यान से मस्तिष्क की क्रियाशीलता बढ़ती है, बुद्धि कुशाग्र होती है तथा समय-समय पर आने वाले प्रश्नों की समस्याओं का समाधान आंतरिक शक्ति से होता है। Key Points
कुशाग्र:-
अर्थ: कुश की नोक के समान, अति तीक्ष्ण, नुकीला।विलोम शब्द- 'कुंद' विशेषण शब्द क्रियाशीलता:-
क्रियाशील + ता = क्रियाशीलता 'क्रियाशील' मूल शब्द और 'ता' प्रत्यय अर्थ: सक्रिय होने की अवस्था, सक्रियता। विलोम शब्द- 'निष्क्रियता' समाधान:-
सम् + आधान = समाधान 'सम्' (अच्छी तरह) उपसर्ग और ' आधान' (स्थापन) मूलशब्दअर्थ: किसी समस्या का हल निकालने की क्रिया समझौता ,निर्णय, फ़ैसला, निष्कर्ष। आंतरिक:-
अर्थ: भीतर, अंदर, अंदरूनी, अभ्यंतर। विलोम शब्द- 'बाह्य' विशेषण शब्द
Question 21 5 / -1
Directions For Questions
समय वह सम्पत्ति है, जो प्रत्येक मनुष्य को ईश्वर की ओर से मिली है। जो लोग इस धन को संचित रीति से बरतते हैं, वे शारीरिक सुख तथा आत्मिक आनंद प्राप्त करते हैं। इसी समय - सम्पत्ति के सदुपयोग से एक जंगली मनुष्य सभ्य और देवता स्वरूप बन जाता है। इसी के द्वारा 'मूर्ख' विद्वान्, 'निर्धन’ धनवान और 'अज्ञ' अनुभवी बन सकता है। संतोष, हर्ष तथा सुख मनुष्य को तब तक प्राप्त नहीं होता, जब तक वह उचित रीति से समय का सदुपयोग नहीं करता है। समय निःसंदेह एक रत्न-राशि है। जो कोई उसे अपरिमित और अगणित रूप से अंधाधुंध व्यय करता है, वह दिन-प्रतिदिन अकिंचन, रिक्त-हस्त और दरिद्र होता है। वह आजीवन खिन्न रहता है और अपने भाग्य को कोसता रहता है, मृत्यु भी उसे इस जंजाल और दुःख से छुड़ा नहीं सकती है।
प्रत्युत, उसके लिए मृत्यु का आगमन मानो अपराधी के लिए गिरफ़्तारी का वारंट है। सच तो यह है कि समय नष्ट करना एक प्रकार की आत्महत्या है। अंतर केवल इतना ही है कि आत्मघात सर्वदा के लिए जीवन-जंजाल से छुड़ा देता है और समय के दुरुपयोग से एक निर्दिष्ट काल तक जीवन-मृत्यु की दशा में बना रहता है। ऐसे ही मिनट, घंटे और दिन प्रमाद और अकर्मण्यता से बीतते जाते हैं। यदि मनुष्य विचार करे, गणना करे, तो उसकी संख्या महीनों तथा वर्षों तक पहुँचती है। यदि उससे कहा जाता है कि तेरी आयु के दस-पाँच वर्ष घटा दिए गए, तो निःसंदेह उसके हृदय पर भारी आघात पहुँचता है, परंतु वह स्वयं निश्चेष्ठ बैठे अपने मूल्य जीवन को नष्ट कर रहा है और क्षय एवं विनाश पर कुछ भी शक नहीं करता है। संसार में सबको दीर्घायु प्राप्त नहीं होती है, परंतु सबसे बड़ी हानि जो समय की दुरुपयोगिता एवं अकर्मण्यता से होती है, वह यह कि पुरुषार्थहीन और निरीह पुरुष के विचार अपवित्र और दूषित हो जाते हैं। वास्तव में, बात तो यह है कि मनुष्य कुछ-न-कुछ करने के लिए ही बनाया गया है। जब चित्त और मन लाभदायक कर्म में नहीं लगते, तब उनका झुकाव बुराई और पाप की ओर अवश्य हो जाता है। इस हेतु यदि मनुष्य सचमुच ही मनुष्य बनना चाहता है, तो सब कर्मों से बढ़कर श्रेष्ठ कार्य उसके लिए यह है कि वह एक पल भी व्यर्थ न गँवाए। प्रत्येक कार्य के लिए पृथक् समय और प्रत्येक समय के लिए पृथक् कार्य निश्चित करें।
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मनुष्य को वास्तविक अर्थ में मनुष्य बनने के लिए क्या करना चाहिए?
Solution
मनुष्य को वास्तविक अर्थ में मनुष्य बनने के लिए एक क्षण भी व्यर्थ न गँवाना करना चाहिए।
गद्यांश के अनुसार:-
इस हेतु यदि मनुष्य सचमुच ही मनुष्य बनना चाहता है, तो सब कर्मों से बढ़कर श्रेष्ठ कार्य उसके लिए यह है कि वह एक पल भी व्यर्थ न गँवाए। प्रत्येक कार्य के लिए पृथक् समय और प्रत्येक समय के लिए पृथक् कार्य निश्चित करें। Key Points
क्षण का अर्थ- काल का अत्यल्प परिमाण, पल, निमेष, लमहा। क्षण का तद्भव रूप छिन है। व्यर्थ का अर्थ - बेकार, फ़ालतू, निरर्थक, अनुपयोगी, निष्फल। विलोम शब्द- 'अव्यर्थ' संधि विच्छेद- वि + अर्थ = व्यर्थ (इ + अ = य) यण स्वर संधि विशेषण शब्द गँवाना का अर्थ - खोना, नष्ट करना Additional Information
श्रेष्ठ:-
अर्थ: अद्वितीय, उत्कृष्ट, उत्तम, सर्वोत्तम, अनुपम।विलोम शब्द- 'निम्न' विशेषण शब्द कर्म:-
अर्थ: क्रिया, करतब, करतूत, करनी, काम, कारनामा, कार्य, कृत्य।विलोम शब्द- 'अकर्म, कर्महीन' पुल्लिंग ईश्वर:-
अर्थ: परमपिता, परमात्मा, प्रभु, ईश, जगदीश, भगवान, परमेश्वर, जगदीश्वर, विधाता।मन:-
अर्थ: मानस, मत, दिल, इच्छा, इरादा, विचार। विलोम शब्द- 'अमन' लाभदायक:-
अर्थ: जो लाभ देने वाला हो, फ़ायदेमंद।विलोम शब्द- 'हानिकारक' विशेषण शब्द
Question 22 5 / -1
Directions For Questions
समय वह सम्पत्ति है, जो प्रत्येक मनुष्य को ईश्वर की ओर से मिली है। जो लोग इस धन को संचित रीति से बरतते हैं, वे शारीरिक सुख तथा आत्मिक आनंद प्राप्त करते हैं। इसी समय - सम्पत्ति के सदुपयोग से एक जंगली मनुष्य सभ्य और देवता स्वरूप बन जाता है। इसी के द्वारा 'मूर्ख' विद्वान्, 'निर्धन’ धनवान और 'अज्ञ' अनुभवी बन सकता है। संतोष, हर्ष तथा सुख मनुष्य को तब तक प्राप्त नहीं होता, जब तक वह उचित रीति से समय का सदुपयोग नहीं करता है। समय निःसंदेह एक रत्न-राशि है। जो कोई उसे अपरिमित और अगणित रूप से अंधाधुंध व्यय करता है, वह दिन-प्रतिदिन अकिंचन, रिक्त-हस्त और दरिद्र होता है। वह आजीवन खिन्न रहता है और अपने भाग्य को कोसता रहता है, मृत्यु भी उसे इस जंजाल और दुःख से छुड़ा नहीं सकती है।
प्रत्युत, उसके लिए मृत्यु का आगमन मानो अपराधी के लिए गिरफ़्तारी का वारंट है। सच तो यह है कि समय नष्ट करना एक प्रकार की आत्महत्या है। अंतर केवल इतना ही है कि आत्मघात सर्वदा के लिए जीवन-जंजाल से छुड़ा देता है और समय के दुरुपयोग से एक निर्दिष्ट काल तक जीवन-मृत्यु की दशा में बना रहता है। ऐसे ही मिनट, घंटे और दिन प्रमाद और अकर्मण्यता से बीतते जाते हैं। यदि मनुष्य विचार करे, गणना करे, तो उसकी संख्या महीनों तथा वर्षों तक पहुँचती है। यदि उससे कहा जाता है कि तेरी आयु के दस-पाँच वर्ष घटा दिए गए, तो निःसंदेह उसके हृदय पर भारी आघात पहुँचता है, परंतु वह स्वयं निश्चेष्ठ बैठे अपने मूल्य जीवन को नष्ट कर रहा है और क्षय एवं विनाश पर कुछ भी शक नहीं करता है। संसार में सबको दीर्घायु प्राप्त नहीं होती है, परंतु सबसे बड़ी हानि जो समय की दुरुपयोगिता एवं अकर्मण्यता से होती है, वह यह कि पुरुषार्थहीन और निरीह पुरुष के विचार अपवित्र और दूषित हो जाते हैं। वास्तव में, बात तो यह है कि मनुष्य कुछ-न-कुछ करने के लिए ही बनाया गया है। जब चित्त और मन लाभदायक कर्म में नहीं लगते, तब उनका झुकाव बुराई और पाप की ओर अवश्य हो जाता है। इस हेतु यदि मनुष्य सचमुच ही मनुष्य बनना चाहता है, तो सब कर्मों से बढ़कर श्रेष्ठ कार्य उसके लिए यह है कि वह एक पल भी व्यर्थ न गँवाए। प्रत्येक कार्य के लिए पृथक् समय और प्रत्येक समय के लिए पृथक् कार्य निश्चित करें।
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समय के सदुपयोग से क्या लाभ होता है?
Solution
समय के सदुपयोग से लाभ होता है- जंगली मनुष्य सभ्य और देवता स्वरूप बन जाता है ।
गद्यांश के अनुसार:-
इसी समय-संपति के सदुपयोग से एक जंगली मनुष्य सभ्य और देवता स्वरूप बन जाता है। इसी के द्वारा 'मूर्ख' विद्वान्, 'निर्धन’ धनवान और 'अज्ञ' अनुभवी बन सकता है। Key Points
मनुष्य- इंसान, आदमी, नर, मानव, मानुष, मनुज।देवता- सुर, देव, अमर, आदितेय, वसु, निर्जर, त्रिदश, गीर्वाणसभ्य- शिष्ट, सिविल, सज्जन, साधु, भद्र, कुलीन।विलोम शब्द- 'असभ्य' विशेषण शब्द जंगली- असभ्य, अशिष्ट व्यक्ति।Additional Information
उन्नति:-
उत् + नति = उन्नति 'उत्' (श्रेष्ठ) उपसर्ग और 'नति' (नम्रता) मूल शब्दअर्थ: प्रगति, तरक्की, विकास, उत्थान, बढ़ती, अभिवृद्धि। निर्बल:-
निर् + बल = निर्बल 'निर्' (बिना) उपसर्ग और ' बल' (ताक़त) मूल शब्द संधि विच्छेद- "नि : + बल" (विसर्ग संधि) अर्थ: बिना बल का, कमज़ोरी, दुर्बलता, अशक्ति विशेषण शब्द अकर्मण्य:-
अ + कर्मण्य = अकर्मण्य 'अ' (नही) उपसर्ग और 'कर्मण्य' (कर्म कुशल) मूल शब्दअर्थ: जो कोई काम न करता हो, निठल्ला, निकम्मा, आलसी विशेषण शब्द अमानवीय:-
मानव + ईय = अ मानवीय 'अ' (नही) उपसर्ग, 'मानव' मूल शब्द और 'ईय' प्रत्ययअर्थ: जो मनुष्य के योग्य न हो, क्रूर, पशुवत।
Question 23 5 / -1
Directions For Questions
समय वह सम्पत्ति है, जो प्रत्येक मनुष्य को ईश्वर की ओर से मिली है। जो लोग इस धन को संचित रीति से बरतते हैं, वे शारीरिक सुख तथा आत्मिक आनंद प्राप्त करते हैं। इसी समय - सम्पत्ति के सदुपयोग से एक जंगली मनुष्य सभ्य और देवता स्वरूप बन जाता है। इसी के द्वारा 'मूर्ख' विद्वान्, 'निर्धन’ धनवान और 'अज्ञ' अनुभवी बन सकता है। संतोष, हर्ष तथा सुख मनुष्य को तब तक प्राप्त नहीं होता, जब तक वह उचित रीति से समय का सदुपयोग नहीं करता है। समय निःसंदेह एक रत्न-राशि है। जो कोई उसे अपरिमित और अगणित रूप से अंधाधुंध व्यय करता है, वह दिन-प्रतिदिन अकिंचन, रिक्त-हस्त और दरिद्र होता है। वह आजीवन खिन्न रहता है और अपने भाग्य को कोसता रहता है, मृत्यु भी उसे इस जंजाल और दुःख से छुड़ा नहीं सकती है।
प्रत्युत, उसके लिए मृत्यु का आगमन मानो अपराधी के लिए गिरफ़्तारी का वारंट है। सच तो यह है कि समय नष्ट करना एक प्रकार की आत्महत्या है। अंतर केवल इतना ही है कि आत्मघात सर्वदा के लिए जीवन-जंजाल से छुड़ा देता है और समय के दुरुपयोग से एक निर्दिष्ट काल तक जीवन-मृत्यु की दशा में बना रहता है। ऐसे ही मिनट, घंटे और दिन प्रमाद और अकर्मण्यता से बीतते जाते हैं। यदि मनुष्य विचार करे, गणना करे, तो उसकी संख्या महीनों तथा वर्षों तक पहुँचती है। यदि उससे कहा जाता है कि तेरी आयु के दस-पाँच वर्ष घटा दिए गए, तो निःसंदेह उसके हृदय पर भारी आघात पहुँचता है, परंतु वह स्वयं निश्चेष्ठ बैठे अपने मूल्य जीवन को नष्ट कर रहा है और क्षय एवं विनाश पर कुछ भी शक नहीं करता है। संसार में सबको दीर्घायु प्राप्त नहीं होती है, परंतु सबसे बड़ी हानि जो समय की दुरुपयोगिता एवं अकर्मण्यता से होती है, वह यह कि पुरुषार्थहीन और निरीह पुरुष के विचार अपवित्र और दूषित हो जाते हैं। वास्तव में, बात तो यह है कि मनुष्य कुछ-न-कुछ करने के लिए ही बनाया गया है। जब चित्त और मन लाभदायक कर्म में नहीं लगते, तब उनका झुकाव बुराई और पाप की ओर अवश्य हो जाता है। इस हेतु यदि मनुष्य सचमुच ही मनुष्य बनना चाहता है, तो सब कर्मों से बढ़कर श्रेष्ठ कार्य उसके लिए यह है कि वह एक पल भी व्यर्थ न गँवाए। प्रत्येक कार्य के लिए पृथक् समय और प्रत्येक समय के लिए पृथक् कार्य निश्चित करें।
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संतोष, हर्ष और सुख मनुष्य को कैसे प्राप्त होते हैं?
Solution
संतोष, हर्ष और सुख मनुष्य को प्राप्त होते हैं- समय का सदुपयोग करने से
गद्यांश के अनुसार:-
संतोष, हर्ष तथा सुख मनुष्य को तब तक प्राप्त नहीं होता, जब तक वह उचित रीति से समय का सदुपयोग नहीं करता है। समय निःसंदेह एक रत्न-राशि है। जो कोई उसे अपरिमित और अगणित रूप से अंधाधुंध व्यय करता है, वह दिन-प्रतिदिन अकिंचन, रिक्त-हस्त और दरिद्र होता है। Key Points सदुपयोग:-
सत् + उपयोग = सदुपयोग 'सत्' उपसर्ग और 'उपयोग' मूल शब्दसंधि विच्छेद- सत् + उपयोग (त् + उ = दु) 'व्यंजन संधि' सदुपयोग- किसी चीज़ का उचित इस्तेमाल, सत्यकार्य में लगाना।Additional Information
ईश्वर:-
अर्थ: परमपिता, परमात्मा, प्रभु, ईश, जगदीश, भगवान, परमेश्वर, जगदीश्वर, विधाता।ध्यान:-
अर्थ: एकाग्रता, तन्मयता, तल्लीनता, स्मृति, समझ, विचार, चिंतन, सावधानी, जागरुकता।स्मरण:-
अर्थ: शक्ति, याद, स्मृति, स्मरण, याद्दाश्त। व्यस्त:-
अर्थ: काम लगे रहने की अवस्था या भाव । विशेषण शब्द
Question 24 5 / -1
Directions For Questions
समय वह सम्पत्ति है, जो प्रत्येक मनुष्य को ईश्वर की ओर से मिली है। जो लोग इस धन को संचित रीति से बरतते हैं, वे शारीरिक सुख तथा आत्मिक आनंद प्राप्त करते हैं। इसी समय - सम्पत्ति के सदुपयोग से एक जंगली मनुष्य सभ्य और देवता स्वरूप बन जाता है। इसी के द्वारा 'मूर्ख' विद्वान्, 'निर्धन’ धनवान और 'अज्ञ' अनुभवी बन सकता है। संतोष, हर्ष तथा सुख मनुष्य को तब तक प्राप्त नहीं होता, जब तक वह उचित रीति से समय का सदुपयोग नहीं करता है। समय निःसंदेह एक रत्न-राशि है। जो कोई उसे अपरिमित और अगणित रूप से अंधाधुंध व्यय करता है, वह दिन-प्रतिदिन अकिंचन, रिक्त-हस्त और दरिद्र होता है। वह आजीवन खिन्न रहता है और अपने भाग्य को कोसता रहता है, मृत्यु भी उसे इस जंजाल और दुःख से छुड़ा नहीं सकती है।
प्रत्युत, उसके लिए मृत्यु का आगमन मानो अपराधी के लिए गिरफ़्तारी का वारंट है। सच तो यह है कि समय नष्ट करना एक प्रकार की आत्महत्या है। अंतर केवल इतना ही है कि आत्मघात सर्वदा के लिए जीवन-जंजाल से छुड़ा देता है और समय के दुरुपयोग से एक निर्दिष्ट काल तक जीवन-मृत्यु की दशा में बना रहता है। ऐसे ही मिनट, घंटे और दिन प्रमाद और अकर्मण्यता से बीतते जाते हैं। यदि मनुष्य विचार करे, गणना करे, तो उसकी संख्या महीनों तथा वर्षों तक पहुँचती है। यदि उससे कहा जाता है कि तेरी आयु के दस-पाँच वर्ष घटा दिए गए, तो निःसंदेह उसके हृदय पर भारी आघात पहुँचता है, परंतु वह स्वयं निश्चेष्ठ बैठे अपने मूल्य जीवन को नष्ट कर रहा है और क्षय एवं विनाश पर कुछ भी शक नहीं करता है। संसार में सबको दीर्घायु प्राप्त नहीं होती है, परंतु सबसे बड़ी हानि जो समय की दुरुपयोगिता एवं अकर्मण्यता से होती है, वह यह कि पुरुषार्थहीन और निरीह पुरुष के विचार अपवित्र और दूषित हो जाते हैं। वास्तव में, बात तो यह है कि मनुष्य कुछ-न-कुछ करने के लिए ही बनाया गया है। जब चित्त और मन लाभदायक कर्म में नहीं लगते, तब उनका झुकाव बुराई और पाप की ओर अवश्य हो जाता है। इस हेतु यदि मनुष्य सचमुच ही मनुष्य बनना चाहता है, तो सब कर्मों से बढ़कर श्रेष्ठ कार्य उसके लिए यह है कि वह एक पल भी व्यर्थ न गँवाए। प्रत्येक कार्य के लिए पृथक् समय और प्रत्येक समय के लिए पृथक् कार्य निश्चित करें।
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मनुष्य निर्दिष्ट काल तक जीवन-मृत्यु की दशा में कब बना रहता है?
Solution
मनुष्य निर्दिष्ट काल तक जीवन-मृत्यु की दशा में समय के दुरुपयोग से बना रहता है।
गद्यांश के अनुसार:-
सच तो यह है कि समय नष्ट करना एक प्रकार की आत्महत्या है। अंतर केवल इतना ही है कि आत्मघात सर्वदा के लिए जीवन-जंजाल से छुड़ा देता है और समय के दुरुपयोग से एक निर्दिष्ट काल तक जीवन-मृत्यु की दशा में बना रहता है। Key Points सदुपयोग:-
सत् + उपयोग = सदुपयोग 'सत्' उपसर्ग और 'उपयोग' मूल शब्दसंधि विच्छेद- सत् + उपयोग (त् + उ = दु) 'व्यंजन संधि' सदुपयोग- किसी चीज़ का उचित इस्तेमाल, सत्यकार्य में लगाना।Additional Information
आत्मघात:-
अर्थ: अपने हाथों अपने को मार डालने काकाम, खुदकुशी, आत्महत्या।अमूल्य:-
अ + मूल्य = अमूल्य 'अ' (नही) उपसर्ग, 'मूल्य' (क़ीमत) मूल शब्द अर्थ: जिसका मूल्य न हो, अनमोल, बहुमूल्य, मूल्यवानविशेषण शब्द आघात:-
आ + घात = आघात 'आ' (तक/से) उपसर्ग, 'घात' (प्रहार) मूल शब्दअर्थ: ठोकर या धक्का, मार, प्रहार, चोट, आक्रमण।
Question 25 5 / -1
Directions For Questions
समय वह सम्पत्ति है, जो प्रत्येक मनुष्य को ईश्वर की ओर से मिली है। जो लोग इस धन को संचित रीति से बरतते हैं, वे शारीरिक सुख तथा आत्मिक आनंद प्राप्त करते हैं। इसी समय - सम्पत्ति के सदुपयोग से एक जंगली मनुष्य सभ्य और देवता स्वरूप बन जाता है। इसी के द्वारा 'मूर्ख' विद्वान्, 'निर्धन’ धनवान और 'अज्ञ' अनुभवी बन सकता है। संतोष, हर्ष तथा सुख मनुष्य को तब तक प्राप्त नहीं होता, जब तक वह उचित रीति से समय का सदुपयोग नहीं करता है। समय निःसंदेह एक रत्न-राशि है। जो कोई उसे अपरिमित और अगणित रूप से अंधाधुंध व्यय करता है, वह दिन-प्रतिदिन अकिंचन, रिक्त-हस्त और दरिद्र होता है। वह आजीवन खिन्न रहता है और अपने भाग्य को कोसता रहता है, मृत्यु भी उसे इस जंजाल और दुःख से छुड़ा नहीं सकती है।
प्रत्युत, उसके लिए मृत्यु का आगमन मानो अपराधी के लिए गिरफ़्तारी का वारंट है। सच तो यह है कि समय नष्ट करना एक प्रकार की आत्महत्या है। अंतर केवल इतना ही है कि आत्मघात सर्वदा के लिए जीवन-जंजाल से छुड़ा देता है और समय के दुरुपयोग से एक निर्दिष्ट काल तक जीवन-मृत्यु की दशा में बना रहता है। ऐसे ही मिनट, घंटे और दिन प्रमाद और अकर्मण्यता से बीतते जाते हैं। यदि मनुष्य विचार करे, गणना करे, तो उसकी संख्या महीनों तथा वर्षों तक पहुँचती है। यदि उससे कहा जाता है कि तेरी आयु के दस-पाँच वर्ष घटा दिए गए, तो निःसंदेह उसके हृदय पर भारी आघात पहुँचता है, परंतु वह स्वयं निश्चेष्ठ बैठे अपने मूल्य जीवन को नष्ट कर रहा है और क्षय एवं विनाश पर कुछ भी शक नहीं करता है। संसार में सबको दीर्घायु प्राप्त नहीं होती है, परंतु सबसे बड़ी हानि जो समय की दुरुपयोगिता एवं अकर्मण्यता से होती है, वह यह कि पुरुषार्थहीन और निरीह पुरुष के विचार अपवित्र और दूषित हो जाते हैं। वास्तव में, बात तो यह है कि मनुष्य कुछ-न-कुछ करने के लिए ही बनाया गया है। जब चित्त और मन लाभदायक कर्म में नहीं लगते, तब उनका झुकाव बुराई और पाप की ओर अवश्य हो जाता है। इस हेतु यदि मनुष्य सचमुच ही मनुष्य बनना चाहता है, तो सब कर्मों से बढ़कर श्रेष्ठ कार्य उसके लिए यह है कि वह एक पल भी व्यर्थ न गँवाए। प्रत्येक कार्य के लिए पृथक् समय और प्रत्येक समय के लिए पृथक् कार्य निश्चित करें।
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"यदि मनुष्य विचार करे, गणना करे, तो उसकी संख्या महीनों तथा वर्षों तक पहुँचती है", वाक्य में 'उसकी' शब्द किसके लिए प्रयुक्त हुआ है?
Solution
"यदि मनुष्य विचार करे, गणना करे, तो उसकी संख्या महीनों तथा वर्षों तक पहुँचती है", वाक्य में 'उसकी' शब्द लिए प्रयुक्त हुआ है- 'समय'
गद्यांश के अनुसार:-
समय के दुरुपयोग से एक निर्दिष्ट काल तक जीवन-मृत्यु की दशा में बना रहता है।ऐसे ही मिनट, घंटे और दिन प्रमाद और अकर्मण्यता से बीतते जाते हैं। यदि मनुष्य विचार करे, गणना करे, तो उसकी संख्या महीनों तथा वर्षों तक पहुँचती है। यदि उससे कहा जाता है, कि तेरी आयु के दस-पाँच वर्ष घटा दिए गए, तो निःसंदेह उसके हृदय पर भारी आघात पहुँचता है। Key Points
'समय' का अर्थ- बेला, काल, घड़ी, वक्त, अवसर, मौका, अवकाश, फुरसत।विलोम शब्द- 'असमय कुसमय' पुल्लिंग शब्द Additional Information
जीवन:-
अर्थ: जीवित दशा, ज़िंदगी, प्राण, जीविका, वायु, जल, जान।विलोम शब्द- 'मरण, मृत्यु' अकर्मण्य:-
अ + कर्मण्य = अकर्मण्य 'अ' (नही) उपसर्ग और 'कर्मण्य' (कर्म कुशल) मूल शब्दअर्थ: जो कोई काम न करता हो, निठल्ला, निकम्मा,आलसीविशेषण शब्द
Question 26 5 / -1
‘पीने की इच्छा’ को कहते हैं –
Solution
इसका सही विकल्प 2 ‘पिपासा’ होगा। अन्य विकल्प सही उत्तर नहीं हैं।
Confusion Points
पीने की इच्छा - पिपासा (भाववाचक संज्ञा) परन्तु जिसको हो वह: पिपासु (विशेषण) Key Points
‘पीने की इच्छा’ के लिए एक शब्द ‘पिपासा’ होगा।
अन्य विकल्प :
एक शब्द
वाक्यांश
पिपासु
जिसे पीने की इच्छा हो
प्यासा
जिसे पीने की इच्छा हो
पिच्छा
वर्तनी की अशुद्धि
Additional Information
वाक्यांश - भाषा को सुंदर, आकर्षक और प्रभावशाली बनाने के लिए अनेक शब्दों के स्थान पर एक शब्द का प्रयोग किया जाता है तो वह वाक्यांश के लिए एक शब्द कहलाता है।
Question 27 5 / -1
‘पवन’ का संधि विच्छेद है:
Solution
'पवन' का सही संधि विच्छेद है - पो + अन। शेष विकल्प त्रुटिपूर्ण हैं। अतः विकल्प 1 ‘ पो + अन’ सही है।
Key Points
'पवन' में अयादि संधि है। पो + अन = पवन (ओ + अ = अव), यहाँ 'ओ ' और 'अ ' के मेल से 'अव ' बना है। जब संधि करते समय ए , ऐ , ओ , औ के साथ कोई अन्य स्वर हो तो (ए का अय) , ( ऐ का आय) , ( ओ का अव) , ( औ – आव) बन जाता है। यही अयादि संधि कहलाती है। Additional Information
संधि - दो शब्दों के मेल से जो विकार (परिवर्तन) होता है उसे संधि कहते हैं।
संधि के तीन प्रकार हैं - 1. स्वर, 2. व्यंजन और 3. विसर्ग,
संधि
परिभाषा
उदाहरण
स्वर
स्वर वर्ण के साथ स्वर वर्ण के मेल से विकार उत्पन्न होता है।
विद्या + अर्थी = विद्यार्थी
महा + ईश = महेश
व्यंजन
एक व्यंजन से दूसरे व्यंजन या स्वर के मेल से विकार उत्पन्न होता है।
अहम् + कार = अहंकार
उत् + लास = उल्लास
विसर्ग
विसर्ग के साथ स्वर या व्यंजन के मेल से विकार उत्पन्न होता है।
दुः + आत्मा =दुरात्मा
निः + कपट =निष्कपट
Question 28 5 / -1
'तिल' का अर्थ है:
Solution
दिए गए विकल्पों में से सही उत्तर विकल्प 4 'तिलहन, शरीर में काला चिह्न, थोड़ा’ है। अन्य विकल्प इसके गलत उत्तर हैं।
दिए गए विकल्पों में से सही उत्तर विकल्प तिलहन, शरीर में काला चिह्न, थोड़ा है। अन्य विकल्पों में से कुछ शब्द 'तिल' के सही अर्थ को प्रस्तुत नहीं करते हैं इसलिए वे अनुचित उत्तर हैं।
जिन शब्दों के एक से अधिक अर्थ होते हैं, उन्हें 'अनेकार्थी शब्द' कहते है। अनेकार्थी का अर्थ है – एक से अधिक अर्थ देने वाला। भाषा में कुछ ऐसे शब्दों का प्रयोग होता है, जो अनेकार्थी होते हैं। खासकर यमक और श्लेष अलंकारों में इसके अधिकाधिक प्रयोग देखे जाते हैं।
Question 29 5 / -1
'प्रति' उपसर्ग से बना शब्द हैः
Solution
दिए गए विकल्पों में से ‘प्रतिपक्ष’ शब्द ‘प्रति’ उपसर्ग से बना है। अन्य विकल्प इसके उचित उत्तर नहीं हैं। अत: इसका सही उत्तर विकल्प 3 ‘प्रतिपक्ष ’ है।
Key Points
प्रतिपक्ष = प्रति + पक्ष ‘प्रति ’ उपसर्ग से बनने वाले अन्य शब्द - प्रतिपल, प्रतिक्षण, प्रत्युत्तर आदि। ‘प्रति ’ का अर्थ – विरोध, बराबरी, प्रत्येक, परिवर्तन
Additional Information
शब्द
परिभाषा
उदाहरण
उपसर्ग
ऐसे शब्दांश जो किसी शब्द के पूर्व जुड़कर उसके अर्थ में परिवर्तन कर देते हैं।
प्रति + क्षण = प्रतिक्षण
सम् + गम = संगम
Question 30 5 / -1
'पंचवटी' में कौन सा समास है?
Solution
'पंचवटी' शब्द में द्विगु समास है। शेष विकल्प असंगत हैं। अतः सही उत्तर विकल्प 4 ' द्विगु समास ' है।
Key Points
● 'पंचवटी' शब्द में द्विगु समास है।
● 'पंचवटी' का समास विग्रह होगा 'पांच वटों का समूह'।
● इसमें 'पांच' संख्यावाचक विशेषण प्रयोग हुआ है।
● अतः इसमें ' द्विगु समास' है।
द्विगु समास
जिस समास में पूर्वपद (पहला पद) संख्यावाचक विशेषण हो।
दो पहरों का समूह = दोपहर, तीनों लोकों का समाहार = त्रिलोक।
Additional Information
समास - समास उस प्रक्रिया को कहते हैं, जिसमें दो शब्द मिलाकर उनके बीच के संबंधसूचक आदि का लोप करके नया शब्द बनाया जाता है। समास से तात्पर्य 'संक्षिप्तीकरण' से है। समास के माध्यम से कम शब्दों में अधिक अर्थ प्रकट किया जाता है। जैसे - राजा का पुत्र – राजपुत्र, समास के छःप्रकार हैं -
समास का नाम
परिभाषा
उदाहरण
तत्पुरुष समास
जिस समास में उत्तरपद प्रधान हो तथा समास करने के उपरांत विभक्ति (कारक चिन्ह) का लोप हो।
धर्म का ग्रन्थ = धर्मग्रन्थ, तुलसीदास द्वारा कृत = तुलसीदासकृत।
बहुव्रीहि समास
जिस समास में दोनों पद प्रधान नहीं होते हैं और दोनों पद मिलकर किसी अन्य विशेष अर्थ की ओर संकेत कर रहे होते हैं।
जो महान वीर है = महावीर अर्थात हनुमान, तीन आँखों वाला = त्रिलोचन अर्थात शिव।
कर्मधारय समास
जिस समास के दोनों शब्दों के बीच विशेषण-विशेष्य अथवा उपमान-उपमेय का सम्बन्ध हो,
पहचान : विग्रह करने पर दोनों पद के मध्य में 'है जो', 'के समान' आदि आते हैं।
कमल के समान नयन = कमलनयन, महान है जो देव = महादेव।
द्विगु समास
जिस समास में पूर्वपद (पहला पद) संख्यावाचक विशेषण हो।
दो पहरों का समूह = दोपहर, तीनों लोकों का समाहार = त्रिलोक।
अव्यययीभाव समास
जिस समास में पहला पद प्रधान हो और समस्त शब्द अव्यय का काम करे।
प्रति + दिन = प्रतिदिन, एक + एक = एकाएक
द्वंद्व समास
द्वन्द्व समास में समस्तपद के दोनों पद प्रधान हों या दोनों पद सामान हों एवं दोंनों पदों को मिलाते समय "और, अथवा, या, एवं" आदि योजक लुप्त हो जाएँ, वह समास द्वंद्व समास कहलाता है।
माता- पिता = माता और पिता, हाँ- न = हाँ या न
Question 31 5 / -1
'सुधा' का पर्यायवाची शब्द क्या है?
Solution
उपरोक्त शब्दों में से 'सुधा' का पर्यायवाची शब्द- 'पी यूष'। 'सुधा' का अर्थ होता है - 'अमृत'। अतः सही उत्तर ( विकल्प 4) 'पी यूष ' होगा।
Key Points
'सुधा' का पर्यायवाची शब्द 'पीयूष' है। 'सुधा' के अन्य पर्यायवाची शब्द हैं - अमिय, सोम, अमी, जीवनोदक आदि। अन्य विकल्प -
शब्द
पर्यायवाची
दशन
दाँत, रदन, रद, द्विज, दन्त, मुखखुर आदि
तम
अंधकार, तिमिर, अँधेरा आदि
मोद
प्रसन्नता , आह्राद , प्रमोद , उल्लास आदि
Additional Information
शब्द
परिभाषा
उदाहरण
पर्यायवाची
जो विभिन्न शब्द एक ही अर्थ का बोध कराएं, उन्हें पर्यायवाची शब्द कहते हैं। सामान्य भाषा में इनको समानार्थक शब्द भी कहते हैं।
अक्षर- वर्ण, हर्फ़
आज्ञा- आदेश, हुक्म, निर्देश
Question 32 5 / -1
'निष्काम' का विलोम शब्द हैः
Solution
उपर्युक्त विकल्पों में से विकल्प 1 ‘सकाम’ इसका सही उत्तर है। अन्य विकल्प इसके सही उत्तर नहीं हैं।
Key Points
निष्काम का विलोम शब्द सकाम है। निष्काम का अर्थ – काम रहितसकाम का अर्थ – काम सहित
Additional Information
शब्द
परिभाषा
उदाहरण
विलोम / विपरीतार्थक
विपरीत (उल्टा) अर्थ बताने वाले शब्दों को विलोम शब्द कहते हैं।
रात-दिन धरती-आकाश
Question 33 5 / -1
इत्र और इतर का क्या अर्थ है ?
Solution
समाधान : इसका सही उत्तर विकल्प 2 सुगन्धित द्रव और दूसरा है। अन्य विकल्प इसके अनुचित हैं।
इत्र का अर्थ - सुगन्धित द्रव इतर का अर्थ - दूसरा
समश्रुत शब्द
कुछ शब्द ऐसे होते हैं जिनमें स्वर, मात्रा अथवा व्यंजन में थोड़ा-सा अन्तर होता है। वे बोलचाल में लगभग एक जैसे लगते हैं, परन्तु उनके अर्थ में भिन्नता होती है। ऐसे शब्द 'समश्रुत/श्रुतिसम भिन्नार्थक शब्द' कहलाते हैं।
उदाहरण
जैसे- घन और धन दोनों के उच्चारण में कोई खास अन्तर महसूस नहीं होता परन्तु अर्थ में भिन्नता है। घन-बादल, धन-सम्पत्ति
Question 34 5 / -1
शुद्ध वाक्य है:
Solution
दिए गए विकल्पों में से सही उत्तर विकल्प 4 ‘स्वस्थ रहने के लिए व्यायाम अवश्य करना चाहिए।’ है। अन्य विकल्प इसके गलत उत्तर हैं।
Key Points
दिए गए अन्य विकल्पों में क्रिया संबंधी अशुद्धि है। शुद्ध वाक्य है - स्वस्थ रहने के लिए व्यायाम अवश्य करना चाहिए। स्वस्थ के पर्यायवाची शब्द हैं- तंदुरुस्त, निरोग, चंगा, सेहतमंद, भला Additional Information
वाक्य शुद्धि
वाक्य भाषा की अत्यंत महत्वपूर्ण इकाई है। इसलिए लिखने या बोलने के समय यह ध्यान रखना चाहिए कि वह स्पष्ट और व्याकरणिक दृष्टि से शुद्ध हो। वाक्यों के विभिन्न अंग यथास्थान होने चाहिए।
Question 35 5 / -1
‘घर का शेर’ मुहावरे का क्या अर्थ है?
Solution
'घर का शेर' मुहावरे का अर्थ क्या है - घर पर बल दिखाना।
Key Points
'घर का शेर' मुहावरे का अर्थ - घर पर बल दिखाना है । वाक्य प्रयोग - अरे मैं आपको खूब जानता हूं आप केवल घर के ही शेर है। अन्य विकल्प अनुचित हैं। Mistake Points
घर पर बल 'दिखना' घर पर बल 'दिखाना' यहाँ दोनों विकल्प भिन्न है। Additional Information
मुहावरा परिभाषा
उदाहरण
मुहावरा का शाब्दिक अर्थ ‘अभ्यास’ है। मुहावरा शब्द अरबी भाषा का शब्द है। हिन्दी में ऐसे वाक्यांशों को मुहावरा कहा जाता है, जो अपने साधारण अर्थ को छोड़कर विशेष अर्थ को व्यक्त करते हैं।
अंक भरना - स्नेह से लिपटा लेना
वाक्य - माँ ने स्नेह से अपने पुत्र को अंक में भर लिया।
Question 36 5 / -1
निम्न लिखित 6 वाक्याशों में से प्रथम व अंतिम निश्चित हैं, शेष को उचित क्रम में व्यवस्थित कीजिए।
(1) कबीर अकेले संत कवि हैं
(य) को सर्वोच्य मूल्य के
(र) जिन्होंने समस्त धार्मिक
(ल) नकार कर सहज जीवन-पद्धति
(व) आडम्बरों एवं बाह्याचारों को
(6) रूप में प्रतिष्ठित किया है
Solution
उचित क्रम र व ल य है। अन्य विकल्प असंगत है। अतः सही उत्तर विकल्प 1) र व ल य होगा ।
Key Points
सही वाक्य - कबीर अकेले संत कवि हैं जिन्होंने समस्त धार्मिक आडम्बरों एवं बाह्याचारों को नकार कर सहज जीवन-पद्धति को सर्वोच्य मूल्य के रूप में प्रतिष्ठित किया है। आडम्बर - वह आचरण, काम आदि जिसमें ऊपरी बनावट का भाव रहता है Additional Information
भाषा के चार मुख्य अंग हैं- वर्ण, शब्द , पद और वाक्य। इसलिए व्याकरण के मुख्यतः चार विभाग हैं- (1) वर्ण-विचार (2) शब्द-विचार (3) पद-विचार (4) वाक्य विचार
(1) वर्ण विचार या अक्षर:- भाषा की उस छोटी ध्वनि (इकाई) को वर्ण कहते है जिसके टुकड़े नही किये सकते है। जैसे- अ, ब
(2) शब्द-विचार:- वर्णो के उस मेल को शब्द कहते है जिसका कुछ अर्थ होता है। जैसे- कमल, राकेश
(3) पद-विचार:- इसमें पद-भेद, पद-रूपान्तर तथा उनके प्रयोग आदि पर विचार किया जाता है।
(4) वाक्य-विचार:- अनेक शब्दों को मिलाकर वाक्य बनता है। ये शब्द मिलकर किसी अर्थ का ज्ञान कराते है। जैसे- सब घूमने जाते है।
Question 37 5 / -1
निम्नलिखित शब्दों में 'तत्सम' शब्द को पहचानिए।
Solution
दिए गए विकल्पों में से सही उत्तर विकल्प 3 ‘गुहा’ है। अन्य विकल्प इसके गलत उत्तर हैं।
Key Points
दिए गए विकल्पों में 'गुहा' शब्द तत्सम है जिसका तद्भव रूप गुफा' होता है। अन्य सभी शब्द तद्भव हैं। गुफा के पर्यायवाची शब्द हैं - कंदरा, खोह, विवर। अन्य विकल्प :
तद्भव
तत्सम
काठ
काष्ठ
कपड़ा
कर्पट
खार
क्षार
Additional Information
शब्द
परिभाषा
उदाहरण
तत्सम
ऐसे शब्द जो संस्कृत से ज्यों के त्यों लिए गए, तत्सम होते हैं।
कूप, उष्ट्र, पंचम आदि
तद्भव
संस्कृत से हिंदी में आने पर जिन शब्दों का रूप बदल गया हो, तद्भव कहलाते हैं।
आग, काम, पाँच आदि।
Question 38 5 / -1
'उन्' उपसर्ग से बना शब्द हैः
Solution
दिए गए विकल्पों में से ‘उन्नीस’ शब्द ‘उन्’ उपसर्ग से बना है। अन्य विकल्प इसके उचित उत्तर नहीं हैं। अत: इसका सही उत्तर विकल्प 3 ‘ उन्नीस ’ है।
Key Points
उन्नीस = उन् + नीस ‘उन् ’ उपसर्ग से बनने वाले अन्य शब्द - उन्यासी, उन्नति, उन्सठ आदि। ‘उन् ’ का अर्थ – एक कम
Additional Information
शब्द
परिभाषा
उदाहरण
उपसर्ग
ऐसे शब्दांश जो किसी शब्द के पूर्व जुड़कर उसके अर्थ में परिवर्तन कर देते हैं।
प्रति + क्षण = प्रतिक्षण
सम् + गम = संगम
Question 39 5 / -1
तद्भव शब्द है:
Solution
दिए गए विकल्पों में से सही उत्तर विकल्प 4 ‘धीरज’ है। अन्य विकल्प इसके गलत उत्तर हैं।
Key Points
दिए गए विकल्पों में से 'धीरज' शब्द तद्भव है जिसका तत्सम रूप 'धैर्य' होगा। धैर्य का अर्थ चित्त की दृढ़ता या स्थिरता होता है। धैर्य के पर्यायवाची शब्द हैं - धीरज, सब्र, तसल्ली, दिलासा, संतोष। अन्य विकल्प :
तत्सम
तद्भव
नृत्य
नाच
स्नेह
नेह
नग्न
नंगा
Additional Information
शब्द
परिभाषा
उदाहरण
तत्सम
ऐसे शब्द जो संस्कृत से ज्यों के त्यों लिए गए, तत्सम होते हैं।
कूप, उष्ट्र, पंचम आदि
तद्भव
संस्कृत से हिंदी में आने पर जिन शब्दों का रूप बदल गया हो, तद्भव कहलाते हैं।
आग, काम, पाँच आदि।
Question 40 5 / -1
'नौ दिन चले अढ़ाई कोस' लोकोक्ति का भावार्थ हैः
Solution
उपर्युक्त विकल्पों में से विकल्प 1 ‘ काम करने की बहुत धीमी गति’ इसका सही उत्तर है। अन्य विकल्प इसके सही उत्तर नहीं हैं।
Key Points
लोकोक्ति – नौ दिन चले अढ़ाई कोस, लोकोक्ति का अर्थ – काम करने की बहुत धीमी गति। वाक्य- राजू ने दस महीने में मात्र एक पाठ याद किया है। यह तो वही बात हुई – ‘नौ दिन चले अढ़ाई कोस’। Additional Information
लोकोक्ति - जब कोई पूरा कथन किसी प्रसंग विशेष में उद्धत किया जाता है तो लोकोक्ति कहलाता है। इसी को कहावत कहते है। उदाहरण- 'उस दिन बात-ही-बात में राम ने कहा, हाँ, मैं अकेला ही कुँआ खोद लूँगा। इन पर सबों ने हँसकर कहा, व्यर्थ बकबक करते हो, अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ता'।
Question 41 5 / -1
निम्न लिखित 6 वाक्याशों में से प्रथम व अंतिम निश्चित हैं, शेष को उचित क्रम में व्यवस्थित कीजिए।
(1) विश्व की रंग संस्कृतियों में
(य) तथा अनुपम सौंदर्य दृष्टि
(र) अपनी प्राचीनता, अनोखी कल्पनाशीलता
(ल) भारतीय रंगमंच परम्परा
(व) के कारण आज भी
(6) अपना विशिष्ट स्थान रखता है
Solution
उचित क्रम ल र य व है। अन्य विकल्प असंगत है। अतः सही उत्तर विकल्प 3 ल र य व होगा ।
Key Points
सही वाक्य - विश्व की रंग संस्कृतियों में भारतीय रंगमंच परम्परा अपनी प्राचीनता, अनोखी कल्पनाशीलता तथा अनुपम सौंदर्य दृष्टि के कारण आज भी अपना विशिष्ट स्थान रखता है। रंगमंच - नाटक खेले जाने का स्थान ; नाट्यशाला अनुपम - जिसकी कोई उपमा न हो , अनूठा, बेजोड़ , अतुलनीय सौंदर्य - सुंदर होने की अवस्था या भाव , ख़ूबसूरती ; सुंदरता ; हुस्न Additional Information
भाषा के चार मुख्य अंग हैं- वर्ण, शब्द , पद और वाक्य। इसलिए व्याकरण के मुख्यतः चार विभाग हैं- (1) वर्ण-विचार (2) शब्द-विचार (3) पद-विचार (4) वाक्य विचार
(1) वर्ण विचार या अक्षर:- भाषा की उस छोटी ध्वनि (इकाई) को वर्ण कहते है जिसके टुकड़े नही किये सकते है। जैसे- अ, ब
(2) शब्द-विचार:- वर्णो के उस मेल को शब्द कहते है जिसका कुछ अर्थ होता है। जैसे- कमल, राकेश
(3) पद-विचार:- इसमें पद-भेद, पद-रूपान्तर तथा उनके प्रयोग आदि पर विचार किया जाता है।
(4) वाक्य-विचार:- अनेक शब्दों को मिलाकर वाक्य बनता है। ये शब्द मिलकर किसी अर्थ का ज्ञान कराते है। जैसे- सब घूमने जाते है।
Question 42 5 / -1
‘कलेजा ठंडा होना’ मुहावरे का अर्थ बताइए।
Solution
‘ कलेजा ठंडा होना’ मुहावरे का सही अर्थ है संतोष हो जाना। अन्य विकल्प असंगत हैं। अतः सही विकल्प ‘ संतोष हो जाना ’ है।
स्पष्टीकरण :-
मुहावरे
अर्थ
वाक्य प्रयोग
कलेजा ठंडा होना ।
संतोष हो जाना ।
डाकुओं को पकड़ा हुआ देखकर गाँव वालों का कलेजा ठंडा हो गया।
अन्य विकल्प :-
मुहावरे
अर्थ
वाक्य प्रयोग
आँखें नीची होना।
लज्जित होना ।
जब पुत्र चोरी के जुर्म में पकड़ा गया तो पिता की आँखें नीची हो गई।
गले पड़ना।
पीछे पड़ जाना
मैंने नीलम के एक प्रोजेक्ट में मदद क्या की वह तो मेरे गले ही पड़ गई अब हर प्रोजेक्ट बनाने के लिए घर आ जाती है।
कान खाना
शोर करना
स्कूल में छोटे बच्चे, हमेशा ही आचार्य जी के कान खाये रहते हैं।
Additional Information
मुहावरा परिभाषा
उदाहरण
मुहावरा का शाब्दिक अर्थ ‘अभ्यास’ है। मुहावरा शब्द अरबी भाषा का शब्द है। हिन्दी में ऐसे वाक्यांशों को मुहावरा कहा जाता है, जो अपने साधारण अर्थ को छोड़कर विशेष अर्थ को व्यक्त करते हैं।
अंक भरना- स्नेह से लिपटा लेना
वाक्य - माँ ने स्नेह से अपने पुत्र को अंक में भर लिया।
Question 43 5 / -1
इनमें से ‘इति’ किसका पर्यायवाची शब्द है ?
Solution
दिए गए विकल्पों में से ‘अंत’ शब्द इति का पर्यायवाची शब्द है। अत: विकल्प 1 ‘ अंत ’ इसका सही उत्तर है। अन्य विकल्प इसके सही उत्तर नहीं हैं।
Key Points
‘ इति ’ का पर्यायवाची ‘ अंत ’ है।अंत के अन्य पर्यायवाची शब्द – समाप्ति, अवसान, इतिश्री, समापन। अन्य विकल्प:
शब्द
पर्यायवाची
फर्क
भिन्नता, असमानता, भेद ।
खगोल
नभमंडल, गगनमंडल, आकाशमंडल।
अदृश्य
गायब, लुप्त, ओझल
Additional Information
शब्द
परिभाषा
उदाहरण
पर्यायवाची
एक ही अर्थ में प्रयुक्त होने वाले शब्द जो बनावट में भले ही अलग हों, पर्यायवाची या समानार्थी शब्द कहलाते हैं।
आग- अनल , पावक, दहन।
हवा- समीर , अनिल, वायु।
Question 44 5 / -1
निम्नलिखित प्रश्न में, चार विकल्पों में से, रिक्त स्थान के लिए निर्देशानुसार उचित विकल्प का चयन करें।
मंदिर _______ स्थित सोने का कलश उसकी सुन्दरता बढ़ा रहा था।
Solution
उपर्युक्त विकल्पों में से विकल्प "पर" सही है तथा अन्य विकल्प असंगत हैं।
Key Points "मंदिर पर स्थित सोने का कलश उसकी सुंदरता बढ़ा रहा था।" वाक्य सही है। वाक्य में अधिकरण कारक है। अधिकरण का मतलब आश्रय होता है, संज्ञा का वह स्वरूप जिसमें किया कि आधार का बोध होता हो, उसे अधिकरण कारक कहते हैं। अधिकरण कारक में विभक्ति चिन्ह में भीतर अंदर, ऊपर, बीच इत्यादि शब्दों का प्रयोग होता है। Additional Information कारक एवं चिन्ह कर्त्ता :- ने कर्म :- को करण :- से, के द्वारा, के जरिए, के कारण सम्प्रदान :- को, के लिए, के निमित्त अपादान :- से (अलग होने के अर्थ में) संबंध :- का, के, की, रा, रे, री अधिकरण :- में, पर सम्बोधन :- हे!, ओ!, अरे!, अजी!
Question 45 5 / -1
. कबूतर दाने चुगते हैं - वाक्य के रेखांकित शब्द के लिए उपयुक्त पर्यायवाची बताइए।
Solution
उपर्युक्त दिए गए विकल्पों में से विकल्प ‘ कपोत’ कबूतर का पर्यायवाची शब्द है अतः विकल्प 4 ‘कपोत’ इसका सही विकल्प है अन्य विकल्प इसके लिए उपयुक्त नही हैं।
Key Points
‘ कपोत ’ का पर्यायवाची - कबूतर ‘ कबूतर ’ के पर्यायवाची - रक्तलोचन , पारावत, कलरव, हारिल।अन्य विकल्प -
शब्द
पर्यायवाची
ऊँट
करभ, उष्ट्र, लंबोष्ठ, साँड़िया।
कर्ण
कान, श्रुति, श्रुतिपटल, श्रवण, श्रोत, श्रुतिपुट।
ओस
नीहार, तुषार, तुहिन, निशाजल, शीत,
Additional Information
शब्द
परिभाषा
उदहारण
पर्यायवाची
एक ही अर्थ में प्रयुक्त होने वाले शब्द जो बनावट में भले ही अलग हों, पर्यायवाची या समानार्थी शब्द कहलाते हैं।
आग- अनल , पावक, दहन।
हवा- समीर , अनिल, वायु।
Question 46 5 / -1
'सीता स्कूल गयी है' यह वाक्य निम्न में से किस काल को दर्शाता है?
Solution
दिए गए विकल्पों में से सही उत्तर विकल्प 1 ‘ आसन्न भूतकाल ’ है। अन्य विकल्प इसके असंगत उत्तर हैं।
Key Points
अन्य विकल्प:
भूतकाल
जिस क्रिया से कार्य की समाप्ति का बोध हो, उसे भूतकाल की क्रिया कहते हैं। भूतकाल के छह भेद होते है-
उदाहरण
सामान्य भूतकाल
जिससे भूतकाल की क्रिया के विशेष समय का ज्ञान न हो, उसे सामान्य भूतकाल कहते हैं।
राधा गयी।
आसन्न भूतकाल
क्रिया के जिस रूप से यह पता चले कि क्रिया अभी कुछ समय पहले ही पूर्ण हुई है, उसे आसन्न भूतकाल कहते हैं।
मैंने आम खाया है।
पूर्ण भूतकाल
क्रिया के जिस रूप से यह ज्ञात हो कि कार्य पहले ही पूरा हो चुका है, उसे पूर्ण भूतकाल कहते हैं।
उसने मोहन को मारा था।
अपूर्ण भूतकाल
जिस क्रिया से यह ज्ञात हो कि भूतकाल में कार्य सम्पन्न नहीं हुआ था, अभी चल रहा था, उसे अपूर्ण भूत कहते हैं।
मोहन सो रहा था।
संदिग्ध भूतकाल
इसमें यह सन्देह बना रहता है कि भूतकाल में कार्य पूरा हुआ या नही।
दुकानें बंद हो चुकी होंगी।
हेतुहेतुमद् भूतकाल
भूतकाल में एक क्रिया के होने या न होने पर दूसरी क्रिया का होना या न होना निर्भर करता है, तो वह हेतुहेतुमद् भूतकाल क्रिया कहलाती है।
यदि वर्षा होती, तो फसल अच्छी होती।
Additional Information
काल - क्रिया के जिस रूप से किसी कार्य के करने या होने का समय पता चले, वह काल कहलाता है। उदाहरण- हैं, थे, होंगी आदि। काल तीन प्रकार के होते है-
काल
परिभाषा
उदाहरण
वर्तमानकाल
क्रिया के जिस रूप से वर्तमान में चल रहे समय का पता चले, उसे वर्तमान काल कहते है। वर्तमान काल के पाँच भेद होते है- (i) सामान्य वर्तमानकाल (ii) अपूर्ण वर्तमानकाल (iii) पूर्ण वर्तमानकाल (iv) संदिग्ध वर्तमानकाल (v) तत्कालिक वर्तमानकाल (vi) संभाव्य वर्तमानकाल
वह तेज आवाज में गाना सुन रहा है।
मेरा मन चाय पीने का कर रहा है।
भूतकाल
क्रिया के जिस रूप से बीते हुए समय का पता चले, उसे भूतकाल कहते है। भूतकाल के छह भेद होते है- (i) सामान्य भूतकाल (ii) आसन भूतकाल (iii) पूर्ण भूतकाल (iv) अपूर्ण भूतकाल
(v) संदिग्ध भूतकाल (vi) हेतुहेतुमद् भूत
मैंने पूरा खाना खा लिया था।
हेमंत को घर छोड़ दिया था।
भविष्यतकाल
क्रिया के जिस रूप से भविष्य में होने वाली क्रिया का पता चले उसे भविष्यतकाल की क्रिया कहते है।
वह सब उठा ले जाएगा।
कल उसका बोरिया-बिस्तर यहाँ से उठ जाएगा।
Question 47 5 / -1
‘मूक' का विलोम शब्द होगा :
Solution
सही उत्तर 'वाचाल' है।
Key Points मूक शब्द का विलोम शब्द वाचाल होता है। मूक का अर्थ गूंगा होता है। वाचाल का अर्थ बहुत बात करने वाला होगा। Additional Information
किसी शब्द का विलोम शब्द उस शब्द के अर्थ से उल्टा अर्थ वाला होता है। जैसे - मोटा - पतला संशय - असंशय
Question 48 5 / -1
नीचे दिये गये विकल्पों में से सही विकल्प द्वारा रिक्त स्थान की पूर्ति कीजिये।
'संध्या होते ही पक्षी अपने ________ को लौट आते है।'
Solution
नीड़ यहाँ सही विकल्प है।
'संध्या होते ही पक्षी अपने नीड़ को लौट आते है।' Key Points
नीड़ : नशेमन, होंसला, आशियाना। घर : सदन, गेह, भवन, धाम, निकेतन, निवास, आलय, गृह नीर : तोय, अम्बु, उदक, पानी, सलिल, पय, मेघपुष्प, जल, वारि विवर : कंदरा, खोह, गुफ़ा, गुहा।
Question 49 5 / -1
नीचे दिए गए वाक्यों में a, b, c, d को सही क्रम में व्यवस्थित कीजिए
1. जीवन
a. प्रत्येक व्यक्ति को
b. मौके भी
c. कठिनाइयों के
d. साथ-साथ
2. प्रदान करता है।
Solution
इसका सही क्रम विकल्प 1 'a, c, d, b ' है। अन्य विकल्प असंगत हैं।
Key Points
वाक्य का सही क्रम-
1 जीवन
a .
प्रत्येक व्यक्ति को c. कठिनाइयों के d. साथ-साथ b. मौके भी 2. प्रदान करता है। Additional Information
वाक्य रचना व्याकरण के नियमों के आधार पर होनी चाहिए। उचित पदक्रम होना चाहिए। वाक्यों का सार्थक अनुच्छेद बनना चाहिए। वाक्य व्यवस्था के लिए भाषा बोध अनिवार्य है। उचित वाक्य संरचना होनी चाहिए।
Question 50 5 / -1
'पक्षी' शब्द का पर्यायवाची है-
Solution
उपर्युक्त विकल्पों में से विकल्प "विहग" सही है तथा अन्य विकल्प असंगत है।
Key Points विहग पक्षी का पर्याय है। विहग का मुख्य अर्थ होता है पक्षी। पक्षी के पर्यायवाची खेचर, दविज, पतंग, पंछी, खग, विहग, परिन्दा, शकुन्त, अण्डज, चिडिया, गगनचर, पखेरू, विहंग, नभचर। Confusion Points
प्रयोग के अनुसार विहग का अर्थ बाण, तीर, बादल, मेघ, चन्द्रमा और सूर्य भी होते हैं। Additional Information नभ के पर्याय आकाश, गगन, द्यौ, तारापथ, पुष्कर, अभ्र, अम्बर, व्योम, अनन्त, आसमान, अंतरिक्ष, शून्य, अर्श अंतरिक्ष, अधर, अभ्र, उर्ध्वलोक, गगनमंडल, छायापथ, तारापथ, दिव, द्यु, द्युलोक, नभमंडल, फलक, अनन्त। अज का पर्यायवाची अजन्मा, शिव, ब्रह्मा, चंद्रमा, बकरा, ईश्वर, कामदेव, भेड़, विष्णु, माया, जीवात्मा, पयस्वल, बकरा। घोटक का पर्यायवाची घोड़ा , बाजि , अश्व , तुरंग , तुरग , हय। Important Points प्रमुख पर्यायवाची शब्द अनुपम :- अनोखा, अनूठा, अपूर्व, अद्भुत, अद्वितीय, अतुल। अमृत :- मधु, सुधा, पीयूष ,अमी, सोम ,सुरभोग। आकाश :- नभ, अनन्तं, अभ्रं, पुष्कर, शून्य, तारापथ, अंतरिक्ष, आसमान, फलक, व्योम, दिव, खगोल, गगन, अम्बर। आत्मा :- प्राणी, प्राण, जान, जीवन, चैतन्य, ब्रह्म, क्षेत्रज्ञ, सर्वज्ञ, सर्वव्याप्त, विभु, जीव । इठलाना :- चोंचले करना, नखरे करना, इतराना, ऐंठना, हाव-भाव दिखाना, शान दिखाना, शेखी, मदांध मारना, तड़क-भड़क दिखाना, अकड़ना, मटकाना, चमकाना। इनाम :- पुरस्कार, पारितोषिक, पारितोषित करना, बख्शीश। कली :- कलिका, मुकुल, कुडमल, डोंडी, गुंचा, कोरक। कपूर :- घनसार, हिमवालुका।