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  • Question 1
    1 / -0.25

    Directions For Questions

    दिए गए गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़िए तथा पूछे गए प्रश्नों के उत्तर के लिए सबसे उपयुक्त विकल्प का चयन कीजिए।

    कौओं के आश्रयदाता वृक्षों को ऋग्वेद में काकाम्बीर कहा गया है। ऐसे वृक्षों की मालिका में ही नीम को शुमार किया जाना चाहिए। हर साल कौओं के कितने ही घोंसले नीम के पेड़ पर पाये जाते हैं। वैशाख माह में कौए यदि इस पेड़ पर घोंसले बनाते हैं तो इसे समृद्धि का लक्षण माना जाता है। एक तरह से यह आगामी
    खुशहाली का संकेत होता है। वैसे कौए की आवाज़ कितनी भोंडी और कर्कश होती है! लेकिन काकाम्बीर के घोंसले में बैठे कौए की महीन और चुलबुली आवाज़ जो एक बार सुन ले वह अवश्य ही मोहित हो जाता है, क्योंकि उसके कंठ से चाशनी-पगे स्वर जो निकल रहे होते हैं...!

    निबौरी के बीज से तेल निकाला जाता है, जो 'मारगोसा' कहलाता है। कीटनाशक दवाइयाँ बनाने के लिए इसका प्रयोग किया जाता है। वात-विकार के मामले में मालिश करने के लिए भी यह तेल उपयुक्त पाया जाता है।

    नीम की लकड़ी ठोस और मज़बूत होने से पानी के जहाज़ बनाने के काम में यह प्रयुक्त होती है। खिलौने, कृषि के औज़ार तथा बैलगाड़ियाँ बनाने के लिए भी नीम की लकड़ी उपयुक्त होती है।

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    जिन पेड़ों पर कौए घोंसला बनाते हैं, ऋग्वेद में उन्हें किस नाम से संबेधित किया गया है?

  • Question 2
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    दिए गए गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़िए तथा पूछे गए प्रश्नों के उत्तर के लिए सबसे उपयुक्त विकल्प का चयन कीजिए।

    कौओं के आश्रयदाता वृक्षों को ऋग्वेद में काकाम्बीर कहा गया है। ऐसे वृक्षों की मालिका में ही नीम को शुमार किया जाना चाहिए। हर साल कौओं के कितने ही घोंसले नीम के पेड़ पर पाये जाते हैं। वैशाख माह में कौए यदि इस पेड़ पर घोंसले बनाते हैं तो इसे समृद्धि का लक्षण माना जाता है। एक तरह से यह आगामी
    खुशहाली का संकेत होता है। वैसे कौए की आवाज़ कितनी भोंडी और कर्कश होती है! लेकिन काकाम्बीर के घोंसले में बैठे कौए की महीन और चुलबुली आवाज़ जो एक बार सुन ले वह अवश्य ही मोहित हो जाता है, क्योंकि उसके कंठ से चाशनी-पगे स्वर जो निकल रहे होते हैं...!

    निबौरी के बीज से तेल निकाला जाता है, जो 'मारगोसा' कहलाता है। कीटनाशक दवाइयाँ बनाने के लिए इसका प्रयोग किया जाता है। वात-विकार के मामले में मालिश करने के लिए भी यह तेल उपयुक्त पाया जाता है।

    नीम की लकड़ी ठोस और मज़बूत होने से पानी के जहाज़ बनाने के काम में यह प्रयुक्त होती है। खिलौने, कृषि के औज़ार तथा बैलगाड़ियाँ बनाने के लिए भी नीम की लकड़ी उपयुक्त होती है।

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    कौए जिस महीने में अपने घोंसले बनाते हैं उसका हिन्दी नाम है-

  • Question 3
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    दिए गए गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़िए तथा पूछे गए प्रश्नों के उत्तर के लिए सबसे उपयुक्त विकल्प का चयन कीजिए।

    कौओं के आश्रयदाता वृक्षों को ऋग्वेद में काकाम्बीर कहा गया है। ऐसे वृक्षों की मालिका में ही नीम को शुमार किया जाना चाहिए। हर साल कौओं के कितने ही घोंसले नीम के पेड़ पर पाये जाते हैं। वैशाख माह में कौए यदि इस पेड़ पर घोंसले बनाते हैं तो इसे समृद्धि का लक्षण माना जाता है। एक तरह से यह आगामी
    खुशहाली का संकेत होता है। वैसे कौए की आवाज़ कितनी भोंडी और कर्कश होती है! लेकिन काकाम्बीर के घोंसले में बैठे कौए की महीन और चुलबुली आवाज़ जो एक बार सुन ले वह अवश्य ही मोहित हो जाता है, क्योंकि उसके कंठ से चाशनी-पगे स्वर जो निकल रहे होते हैं...!

    निबौरी के बीज से तेल निकाला जाता है, जो 'मारगोसा' कहलाता है। कीटनाशक दवाइयाँ बनाने के लिए इसका प्रयोग किया जाता है। वात-विकार के मामले में मालिश करने के लिए भी यह तेल उपयुक्त पाया जाता है।

    नीम की लकड़ी ठोस और मज़बूत होने से पानी के जहाज़ बनाने के काम में यह प्रयुक्त होती है। खिलौने, कृषि के औज़ार तथा बैलगाड़ियाँ बनाने के लिए भी नीम की लकड़ी उपयुक्त होती है।

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    नीम के फल का नाम है-

  • Question 4
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    दिए गए गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़िए तथा पूछे गए प्रश्नों के उत्तर के लिए सबसे उपयुक्त विकल्प का चयन कीजिए।

    कौओं के आश्रयदाता वृक्षों को ऋग्वेद में काकाम्बीर कहा गया है। ऐसे वृक्षों की मालिका में ही नीम को शुमार किया जाना चाहिए। हर साल कौओं के कितने ही घोंसले नीम के पेड़ पर पाये जाते हैं। वैशाख माह में कौए यदि इस पेड़ पर घोंसले बनाते हैं तो इसे समृद्धि का लक्षण माना जाता है। एक तरह से यह आगामी
    खुशहाली का संकेत होता है। वैसे कौए की आवाज़ कितनी भोंडी और कर्कश होती है! लेकिन काकाम्बीर के घोंसले में बैठे कौए की महीन और चुलबुली आवाज़ जो एक बार सुन ले वह अवश्य ही मोहित हो जाता है, क्योंकि उसके कंठ से चाशनी-पगे स्वर जो निकल रहे होते हैं...!

    निबौरी के बीज से तेल निकाला जाता है, जो 'मारगोसा' कहलाता है। कीटनाशक दवाइयाँ बनाने के लिए इसका प्रयोग किया जाता है। वात-विकार के मामले में मालिश करने के लिए भी यह तेल उपयुक्त पाया जाता है।

    नीम की लकड़ी ठोस और मज़बूत होने से पानी के जहाज़ बनाने के काम में यह प्रयुक्त होती है। खिलौने, कृषि के औज़ार तथा बैलगाड़ियाँ बनाने के लिए भी नीम की लकड़ी उपयुक्त होती है।

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    पानी के जहाज बनाने में नीम की लकड़ी का प्रयोग होता है क्योंकि-

  • Question 5
    1 / -0.25

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    दिए गए गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़िए तथा पूछे गए प्रश्नों के उत्तर के लिए सबसे उपयुक्त विकल्प का चयन कीजिए।

    कौओं के आश्रयदाता वृक्षों को ऋग्वेद में काकाम्बीर कहा गया है। ऐसे वृक्षों की मालिका में ही नीम को शुमार किया जाना चाहिए। हर साल कौओं के कितने ही घोंसले नीम के पेड़ पर पाये जाते हैं। वैशाख माह में कौए यदि इस पेड़ पर घोंसले बनाते हैं तो इसे समृद्धि का लक्षण माना जाता है। एक तरह से यह आगामी
    खुशहाली का संकेत होता है। वैसे कौए की आवाज़ कितनी भोंडी और कर्कश होती है! लेकिन काकाम्बीर के घोंसले में बैठे कौए की महीन और चुलबुली आवाज़ जो एक बार सुन ले वह अवश्य ही मोहित हो जाता है, क्योंकि उसके कंठ से चाशनी-पगे स्वर जो निकल रहे होते हैं...!

    निबौरी के बीज से तेल निकाला जाता है, जो 'मारगोसा' कहलाता है। कीटनाशक दवाइयाँ बनाने के लिए इसका प्रयोग किया जाता है। वात-विकार के मामले में मालिश करने के लिए भी यह तेल उपयुक्त पाया जाता है।

    नीम की लकड़ी ठोस और मज़बूत होने से पानी के जहाज़ बनाने के काम में यह प्रयुक्त होती है। खिलौने, कृषि के औज़ार तथा बैलगाड़ियाँ बनाने के लिए भी नीम की लकड़ी उपयुक्त होती है।

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    'मारगोसा' है-

  • Question 6
    1 / -0.25

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    निर्देश: नीचे दिए गए गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों  के सही/सबसे उचित उत्तर वाले विकल्प को चुनिए।

    उत्तर भारत के संत कवि कबीर और दक्षिण भारत के संत कवि तिरुवल्लुवर के समय में लगभग दो हज़ार वर्ष का अंतराल है कितु इन दोनों महाकवियों के जीवन में अद्भुत साम्य पाया जाता है। दोनों के माता-पिता ने जन्म देकर इन्हें त्याग दिया था, दोनों का लालन-पालन निस्संतान दंपतियों ने बड़े स्नेह और जतन से किया था। व्यवसाय से दोनों जुलाहे थे। दोनों ने सात्विक गृहस्थ जीवन की साधना की थी।

    तिरुवल्लुवर का प्रामाणिक जीवन-वृत्तांत प्राप्त नहीं होता। प्रायः उन्हें चेन्नई के निकट मइलापुर गाँव का जुलाहा माना जाता है किंतु कुछ लोगों के अनुसार वे राजा एल्लाल के शासन में एक बड़े पदाधिकारी थे और उन्हें वैसा ही सम्मान प्राप्त था जैसा चंद्रगुप्त के शासनकाल में चाणक्य को। उनके बारे में अनेक दंतकथाएँ प्रचलित हैं। जैसे . कहा जाता है कि एक संन्यासी नारी जाति से घृणा करता था। उसका विश्वास था कि स्त्रियाँ बुराई की जड़ हैं और उनके साथ ईश्वर-भक्ति हो ही नहीं सकती। तिरुवल्लुवर ने बड़े आदर से उसे अपने घर बुलाया। दो दिन उनके परिवार में रहकर संन्यासी के विचार ही बदल गए। उसने कहा, “यदि तिरुवल्लुवर और उनकी पत्नी जैसी जोड़ी हो तो गृहस्थ जीवन ही श्रेष्ठ है।“

    कबीर के दोहों की भाँति तिरुवल्लुवर ने भी छोटे छंद में कविता रची जिसे ‘कुरल' कहा जाता है। कुरलों का संग्रह ‘तिरुक्कुरल' उनका एकमात्र ग्रंथ है। तिरुक्कुरल को तमिल भाषा का वेद माना जाता है। इसका प्रत्येक कुरल एक सूक्ति है और ये सूक्तियाँ सभी धर्मों का सार हैं। संपूर्ण मानवजाति को शुभ के लिए प्रेरित करना ही इसका उद्देश्य प्रतीत होता है। जैसे धर्म के बारे में दो कुरलों का आशय है:

    • भद्र पुरुषो! पवित्र मानव होना ही धर्म है। स्वच्छ मन वाले बनो और देखो तुम उन्नति के शिखर पर कहाँ-से-कहाँ पहुँच जाते हो।

    • झूठ न बोलने के गुण को ग्रहण करो तो किसी अन्य धर्म की आवश्यकता ही न रहेगी।

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    यदि कबीर का समय पंद्रहवीं शताब्दी ईसवी है तो तिरुवल्लुवर का समय होगा:

  • Question 7
    1 / -0.25

    Directions For Questions

    निर्देश: नीचे दिए गए गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों  के सही/सबसे उचित उत्तर वाले विकल्प को चुनिए।

    उत्तर भारत के संत कवि कबीर और दक्षिण भारत के संत कवि तिरुवल्लुवर के समय में लगभग दो हज़ार वर्ष का अंतराल है कितु इन दोनों महाकवियों के जीवन में अद्भुत साम्य पाया जाता है। दोनों के माता-पिता ने जन्म देकर इन्हें त्याग दिया था, दोनों का लालन-पालन निस्संतान दंपतियों ने बड़े स्नेह और जतन से किया था। व्यवसाय से दोनों जुलाहे थे। दोनों ने सात्विक गृहस्थ जीवन की साधना की थी।

    तिरुवल्लुवर का प्रामाणिक जीवन-वृत्तांत प्राप्त नहीं होता। प्रायः उन्हें चेन्नई के निकट मइलापुर गाँव का जुलाहा माना जाता है किंतु कुछ लोगों के अनुसार वे राजा एल्लाल के शासन में एक बड़े पदाधिकारी थे और उन्हें वैसा ही सम्मान प्राप्त था जैसा चंद्रगुप्त के शासनकाल में चाणक्य को। उनके बारे में अनेक दंतकथाएँ प्रचलित हैं। जैसे . कहा जाता है कि एक संन्यासी नारी जाति से घृणा करता था। उसका विश्वास था कि स्त्रियाँ बुराई की जड़ हैं और उनके साथ ईश्वर-भक्ति हो ही नहीं सकती। तिरुवल्लुवर ने बड़े आदर से उसे अपने घर बुलाया। दो दिन उनके परिवार में रहकर संन्यासी के विचार ही बदल गए। उसने कहा, “यदि तिरुवल्लुवर और उनकी पत्नी जैसी जोड़ी हो तो गृहस्थ जीवन ही श्रेष्ठ है।“

    कबीर के दोहों की भाँति तिरुवल्लुवर ने भी छोटे छंद में कविता रची जिसे ‘कुरल' कहा जाता है। कुरलों का संग्रह ‘तिरुक्कुरल' उनका एकमात्र ग्रंथ है। तिरुक्कुरल को तमिल भाषा का वेद माना जाता है। इसका प्रत्येक कुरल एक सूक्ति है और ये सूक्तियाँ सभी धर्मों का सार हैं। संपूर्ण मानवजाति को शुभ के लिए प्रेरित करना ही इसका उद्देश्य प्रतीत होता है। जैसे धर्म के बारे में दो कुरलों का आशय है:

    • भद्र पुरुषो! पवित्र मानव होना ही धर्म है। स्वच्छ मन वाले बनो और देखो तुम उन्नति के शिखर पर कहाँ-से-कहाँ पहुँच जाते हो।

    • झूठ न बोलने के गुण को ग्रहण करो तो किसी अन्य धर्म की आवश्यकता ही न रहेगी।

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    तिरुवल्लुवर के अनुसार श्रेष्ठ धर्म है:

  • Question 8
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    निर्देश: नीचे दिए गए गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों  के सही/सबसे उचित उत्तर वाले विकल्प को चुनिए।

    उत्तर भारत के संत कवि कबीर और दक्षिण भारत के संत कवि तिरुवल्लुवर के समय में लगभग दो हज़ार वर्ष का अंतराल है कितु इन दोनों महाकवियों के जीवन में अद्भुत साम्य पाया जाता है। दोनों के माता-पिता ने जन्म देकर इन्हें त्याग दिया था, दोनों का लालन-पालन निस्संतान दंपतियों ने बड़े स्नेह और जतन से किया था। व्यवसाय से दोनों जुलाहे थे। दोनों ने सात्विक गृहस्थ जीवन की साधना की थी।

    तिरुवल्लुवर का प्रामाणिक जीवन-वृत्तांत प्राप्त नहीं होता। प्रायः उन्हें चेन्नई के निकट मइलापुर गाँव का जुलाहा माना जाता है किंतु कुछ लोगों के अनुसार वे राजा एल्लाल के शासन में एक बड़े पदाधिकारी थे और उन्हें वैसा ही सम्मान प्राप्त था जैसा चंद्रगुप्त के शासनकाल में चाणक्य को। उनके बारे में अनेक दंतकथाएँ प्रचलित हैं। जैसे . कहा जाता है कि एक संन्यासी नारी जाति से घृणा करता था। उसका विश्वास था कि स्त्रियाँ बुराई की जड़ हैं और उनके साथ ईश्वर-भक्ति हो ही नहीं सकती। तिरुवल्लुवर ने बड़े आदर से उसे अपने घर बुलाया। दो दिन उनके परिवार में रहकर संन्यासी के विचार ही बदल गए। उसने कहा, “यदि तिरुवल्लुवर और उनकी पत्नी जैसी जोड़ी हो तो गृहस्थ जीवन ही श्रेष्ठ है।“

    कबीर के दोहों की भाँति तिरुवल्लुवर ने भी छोटे छंद में कविता रची जिसे ‘कुरल' कहा जाता है। कुरलों का संग्रह ‘तिरुक्कुरल' उनका एकमात्र ग्रंथ है। तिरुक्कुरल को तमिल भाषा का वेद माना जाता है। इसका प्रत्येक कुरल एक सूक्ति है और ये सूक्तियाँ सभी धर्मों का सार हैं। संपूर्ण मानवजाति को शुभ के लिए प्रेरित करना ही इसका उद्देश्य प्रतीत होता है। जैसे धर्म के बारे में दो कुरलों का आशय है:

    • भद्र पुरुषो! पवित्र मानव होना ही धर्म है। स्वच्छ मन वाले बनो और देखो तुम उन्नति के शिखर पर कहाँ-से-कहाँ पहुँच जाते हो।

    • झूठ न बोलने के गुण को ग्रहण करो तो किसी अन्य धर्म की आवश्यकता ही न रहेगी।

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     ‘तमिल' किस देश-प्रदेश की भाषा है?

  • Question 9
    1 / -0.25

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    निर्देश: नीचे दिए गए गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों  के सही/सबसे उचित उत्तर वाले विकल्प को चुनिए।

    उत्तर भारत के संत कवि कबीर और दक्षिण भारत के संत कवि तिरुवल्लुवर के समय में लगभग दो हज़ार वर्ष का अंतराल है कितु इन दोनों महाकवियों के जीवन में अद्भुत साम्य पाया जाता है। दोनों के माता-पिता ने जन्म देकर इन्हें त्याग दिया था, दोनों का लालन-पालन निस्संतान दंपतियों ने बड़े स्नेह और जतन से किया था। व्यवसाय से दोनों जुलाहे थे। दोनों ने सात्विक गृहस्थ जीवन की साधना की थी।

    तिरुवल्लुवर का प्रामाणिक जीवन-वृत्तांत प्राप्त नहीं होता। प्रायः उन्हें चेन्नई के निकट मइलापुर गाँव का जुलाहा माना जाता है किंतु कुछ लोगों के अनुसार वे राजा एल्लाल के शासन में एक बड़े पदाधिकारी थे और उन्हें वैसा ही सम्मान प्राप्त था जैसा चंद्रगुप्त के शासनकाल में चाणक्य को। उनके बारे में अनेक दंतकथाएँ प्रचलित हैं। जैसे . कहा जाता है कि एक संन्यासी नारी जाति से घृणा करता था। उसका विश्वास था कि स्त्रियाँ बुराई की जड़ हैं और उनके साथ ईश्वर-भक्ति हो ही नहीं सकती। तिरुवल्लुवर ने बड़े आदर से उसे अपने घर बुलाया। दो दिन उनके परिवार में रहकर संन्यासी के विचार ही बदल गए। उसने कहा, “यदि तिरुवल्लुवर और उनकी पत्नी जैसी जोड़ी हो तो गृहस्थ जीवन ही श्रेष्ठ है।“

    कबीर के दोहों की भाँति तिरुवल्लुवर ने भी छोटे छंद में कविता रची जिसे ‘कुरल' कहा जाता है। कुरलों का संग्रह ‘तिरुक्कुरल' उनका एकमात्र ग्रंथ है। तिरुक्कुरल को तमिल भाषा का वेद माना जाता है। इसका प्रत्येक कुरल एक सूक्ति है और ये सूक्तियाँ सभी धर्मों का सार हैं। संपूर्ण मानवजाति को शुभ के लिए प्रेरित करना ही इसका उद्देश्य प्रतीत होता है। जैसे धर्म के बारे में दो कुरलों का आशय है:

    • भद्र पुरुषो! पवित्र मानव होना ही धर्म है। स्वच्छ मन वाले बनो और देखो तुम उन्नति के शिखर पर कहाँ-से-कहाँ पहुँच जाते हो।

    • झूठ न बोलने के गुण को ग्रहण करो तो किसी अन्य धर्म की आवश्यकता ही न रहेगी।

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    जो संबंध चंद्रगुप्त का चाणक्य से था वही संबंध:

  • Question 10
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    उत्तर भारत के संत कवि कबीर और दक्षिण भारत के संत कवि तिरुवल्लुवर के समय में लगभग दो हज़ार वर्ष का अंतराल है कितु इन दोनों महाकवियों के जीवन में अद्भुत साम्य पाया जाता है। दोनों के माता-पिता ने जन्म देकर इन्हें त्याग दिया था, दोनों का लालन-पालन निस्संतान दंपतियों ने बड़े स्नेह और जतन से किया था। व्यवसाय से दोनों जुलाहे थे। दोनों ने सात्विक गृहस्थ जीवन की साधना की थी।

    तिरुवल्लुवर का प्रामाणिक जीवन-वृत्तांत प्राप्त नहीं होता। प्रायः उन्हें चेन्नई के निकट मइलापुर गाँव का जुलाहा माना जाता है किंतु कुछ लोगों के अनुसार वे राजा एल्लाल के शासन में एक बड़े पदाधिकारी थे और उन्हें वैसा ही सम्मान प्राप्त था जैसा चंद्रगुप्त के शासनकाल में चाणक्य को। उनके बारे में अनेक दंतकथाएँ प्रचलित हैं। जैसे . कहा जाता है कि एक संन्यासी नारी जाति से घृणा करता था। उसका विश्वास था कि स्त्रियाँ बुराई की जड़ हैं और उनके साथ ईश्वर-भक्ति हो ही नहीं सकती। तिरुवल्लुवर ने बड़े आदर से उसे अपने घर बुलाया। दो दिन उनके परिवार में रहकर संन्यासी के विचार ही बदल गए। उसने कहा, “यदि तिरुवल्लुवर और उनकी पत्नी जैसी जोड़ी हो तो गृहस्थ जीवन ही श्रेष्ठ है।“

    कबीर के दोहों की भाँति तिरुवल्लुवर ने भी छोटे छंद में कविता रची जिसे ‘कुरल' कहा जाता है। कुरलों का संग्रह ‘तिरुक्कुरल' उनका एकमात्र ग्रंथ है। तिरुक्कुरल को तमिल भाषा का वेद माना जाता है। इसका प्रत्येक कुरल एक सूक्ति है और ये सूक्तियाँ सभी धर्मों का सार हैं। संपूर्ण मानवजाति को शुभ के लिए प्रेरित करना ही इसका उद्देश्य प्रतीत होता है। जैसे धर्म के बारे में दो कुरलों का आशय है:

    • भद्र पुरुषो! पवित्र मानव होना ही धर्म है। स्वच्छ मन वाले बनो और देखो तुम उन्नति के शिखर पर कहाँ-से-कहाँ पहुँच जाते हो।

    • झूठ न बोलने के गुण को ग्रहण करो तो किसी अन्य धर्म की आवश्यकता ही न रहेगी।

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    तिरुवल्लुवर और कबीर में साम्य के बिंदु हैं:

    (क) जन्म के बाद माता-पिता के द्वारा त्याग देना

    (ख) एक-से छंद में कविता करना

    (ग) जुलाहे का व्यवसाय करना

    (घ) नारी जाति से घृणा करना

    सही विकल्प को चुनिए।

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