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अपठित काव्यांश Test 1

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अपठित काव्यांश Test 1
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Self Studies Self Studies
Weekly Quiz Competition
  • Question 1
    1 / -0

    बात सभी ने यह है मानी।

    हवा सुबह की बड़ी सुहानी।

    सदा ताज़गी देती है यह।

    आलस को हर लेती है यह ॥

    यह रोगी न होने देती।

    तनिक न सेहत खोने देती।

    सुबह सैर पर जाकर देखो।

    हवा निराली पाकर देखो।

    अगर सैर पर नित जाओगे।

    अच्छी सेहत तुम पाओगे।

    सुबह की हवा के बारे में क्या बताया गया है?

    Solution

    सुबह की हवा के बारे में बताया गया है |
    (i) सुबह की हवा ताज़गी देती है।

    (ii) यह स्वस्थ रखती है।

    (iii) यह अच्छी सेहत देती है।

  • Question 2
    1 / -0

    एक जंगल में परिजात का एक पेड़ था। परिजात का कोई मुकाबला नहीं था। उसकी सुंदरता बेजोड़ थी। उसका रंग-रूप निराला था। परिजात को भी अपने गुणों का पूरा-पूरा पता था। नीले आसमान में सिर उठाए इस शान से खड़ा रहता, मानों पेड़ों का सरताज हो। जब बहार के दिन आते तो परिजात अनगिनत नन्हें-नन्हें फूलों से लद जाता, लगता मानों किसी ने आकाश से सारे तारे तोड़कर परिजात की शाखाओं पर टाँक दिए हो। नन्हें फूलों से झिलमिलाता परिजात जब सुगंध भरी पराग जंगल में बिखेरता तो जंगल नंदन बन जाता। चुंबक की तरह परिजात सबको अपनी तरफ़ खींचता, जिसे देखो, वही परिजात की तरफ़ भागता । सतरंगी शालें ओढ़े चटकीली तितलियाँ सहेलियों के साथ झुंड का झुंड बनाकर परिजात का श्रृंगार देखने आतीं तथा जाते-जाते फूलों को खींचकर ढेरों पराग अपने साथ ले जाती।

    वह अनगिनत फूलों से कब लद जाता था?

    Solution

    वह अनगिनत फूलों से बहार में लद जाता था |

  • Question 3
    1 / -0

    बात सभी ने यह है मानी।

    हवा सुबह की बड़ी सुहानी।

    सदा ताज़गी देती है यह।

    आलस को हर लेती है यह ॥

    यह रोगी न होने देती।

    तनिक न सेहत खोने देती।

    सुबह सैर पर जाकर देखो।

    हवा निराली पाकर देखो।

    अगर सैर पर नित जाओगे।

    अच्छी सेहत तुम पाओगे।

    इस कविता का सबसे उपयुक्त शीर्षक होगा

    Solution

    इस कविता का सबसे उपयुक्त शीर्षक  सुबह की सैर होगा |

  • Question 4
    1 / -0

    बात सभी ने यह है मानी।

    हवा सुबह की बड़ी सुहानी।

    सदा ताज़गी देती है यह।

    आलस को हर लेती है यह ॥

    यह रोगी न होने देती।

    तनिक न सेहत खोने देती।

    सुबह सैर पर जाकर देखो।

    हवा निराली पाकर देखो।

    अगर सैर पर नित जाओगे।

    अच्छी सेहत तुम पाओगे।

    इस कविता में किसका गुणगान किया गया है?

    Solution

    इस कविता में सुबह की ताज़गी भरी हवा का गुणगान किया गया है |

  • Question 5
    1 / -0

    एक जंगल में परिजात का एक पेड़ था। परिजात का कोई मुकाबला नहीं था। उसकी सुंदरता बेजोड़ थी। उसका रंग-रूप निराला था। परिजात को भी अपने गुणों का पूरा-पूरा पता था। नीले आसमान में सिर उठाए इस शान से खड़ा रहता, मानों पेड़ों का सरताज हो। जब बहार के दिन आते तो परिजात अनगिनत नन्हें-नन्हें फूलों से लद जाता, लगता मानों किसी ने आकाश से सारे तारे तोड़कर परिजात की शाखाओं पर टाँक दिए हो। नन्हें फूलों से झिलमिलाता परिजात जब सुगंध भरी पराग जंगल में बिखेरता तो जंगल नंदन बन जाता। चुंबक की तरह परिजात सबको अपनी तरफ़ खींचता, जिसे देखो, वही परिजात की तरफ़ भागता । सतरंगी शालें ओढ़े चटकीली तितलियाँ सहेलियों के साथ झुंड का झुंड बनाकर परिजात का श्रृंगार देखने आतीं तथा जाते-जाते फूलों को खींचकर ढेरों पराग अपने साथ ले जाती।

    जंगल में किसका पेड़ था?

    Solution

    जंगल में परिजात पेड़ था |

  • Question 6
    1 / -0

    आज करना है जिसे, करते उसे हैं आज ही।

    सोचते कहते हैं जो कुछ कर दिखाते हैं वही ।।

    मानते जी की हैं सुनते हैं, सदा सबकी कही।

    जो मदद करते हैं अपनी इस जगत में आप ही ॥

    भूलकर भी दूसरों का मुँह कभी तकते नहीं।

    कौन ऐसा काम है, वे कर जिसे सकते नहीं॥

    ‘भूलकर भी दूसरों का मुँह कभी तकते नहीं’ पंक्ति का भावार्थ है

    Solution

    वे दूसरों की मदद के लिए हाथ पर हाथ रखकर नहीं बैठते

  • Question 7
    1 / -0

    बात सभी ने यह है मानी।

    हवा सुबह की बड़ी सुहानी।

    सदा ताज़गी देती है यह।

    आलस को हर लेती है यह ॥

    यह रोगी न होने देती।

    तनिक न सेहत खोने देती।

    सुबह सैर पर जाकर देखो।

    हवा निराली पाकर देखो।

    अगर सैर पर नित जाओगे।

    अच्छी सेहत तुम पाओगे।

    सुबह सैर पर जाने से क्या लाभ मिलेगा?

    Solution

    सुबह सैर पर जाने से अच्छा स्वास्थ्य का लाभ मिलेगा |

  • Question 8
    1 / -0

    भारत माता का मंदिर यह, समता को संवाद जहाँ।

    सबका शिव कल्याण यहाँ पाएँ सभी प्रसाद यहाँ।

    जाति-धर्म या संप्रदाय का, नहीं भेद व्यवधान यहाँ।

    सबका स्वागत, सबका आदर, सबका सम्मान यहाँ।

    राम-रहीम, बुद्ध ईसा का, सुलभ एक-सा ध्यान यहाँ।

    भिन्न-भिन्न भव संस्कृतियों के, गुण-गौरव का ज्ञान यहाँ।

    नहीं चाहिए बुद्धि वैर की, भला प्रेम उन्माद यहाँ।

    सब तीर्थों का एक तीर्थ यह, हृदय पवित्र बना लें हम।

    रेखाएँ प्रस्तुत हैं, अपने मन के चित्र बना लें हम।

    सौ-सौ आदर्शों को लेकर, एक चरित्र बना लें हम।

    कोटि-कोटि कंठों से मिलकर, उठे एक जयनाद यहाँ।

    सबका शिव कल्याण यहाँ है, पाएँ सभी प्रसाद यहाँ।

    सबको आदर सम्मान कहाँ होता है?

    Solution

    सबको आदर सम्मान भारत देश में होता है |

  • Question 9
    1 / -0

    भारत माता का मंदिर यह, समता को संवाद जहाँ।

    सबका शिव कल्याण यहाँ पाएँ सभी प्रसाद यहाँ।

    जाति-धर्म या संप्रदाय का, नहीं भेद व्यवधान यहाँ।

    सबका स्वागत, सबका आदर, सबका सम्मान यहाँ।

    राम-रहीम, बुद्ध ईसा का, सुलभ एक-सा ध्यान यहाँ।

    भिन्न-भिन्न भव संस्कृतियों के, गुण-गौरव का ज्ञान यहाँ।

    नहीं चाहिए बुद्धि वैर की, भला प्रेम उन्माद यहाँ।

    सब तीर्थों का एक तीर्थ यह, हृदय पवित्र बना लें हम।

    रेखाएँ प्रस्तुत हैं, अपने मन के चित्र बना लें हम।

    सौ-सौ आदर्शों को लेकर, एक चरित्र बना लें हम।

    कोटि-कोटि कंठों से मिलकर, उठे एक जयनाद यहाँ।

    सबका शिव कल्याण यहाँ है, पाएँ सभी प्रसाद यहाँ।

    कवि किस मंदिर की बात कर रहा है?

    Solution

    कवि भारत माता मंदिर की बात कर रहा है |

  • Question 10
    1 / -0

    एक जंगल में परिजात का एक पेड़ था। परिजात का कोई मुकाबला नहीं था। उसकी सुंदरता बेजोड़ थी। उसका रंग-रूप निराला था। परिजात को भी अपने गुणों का पूरा-पूरा पता था। नीले आसमान में सिर उठाए इस शान से खड़ा रहता, मानों पेड़ों का सरताज हो। जब बहार के दिन आते तो परिजात अनगिनत नन्हें-नन्हें फूलों से लद जाता, लगता मानों किसी ने आकाश से सारे तारे तोड़कर परिजात की शाखाओं पर टाँक दिए हो। नन्हें फूलों से झिलमिलाता परिजात जब सुगंध भरी पराग जंगल में बिखेरता तो जंगल नंदन बन जाता। चुंबक की तरह परिजात सबको अपनी तरफ़ खींचता, जिसे देखो, वही परिजात की तरफ़ भागता । सतरंगी शालें ओढ़े चटकीली तितलियाँ सहेलियों के साथ झुंड का झुंड बनाकर परिजात का श्रृंगार देखने आतीं तथा जाते-जाते फूलों को खींचकर ढेरों पराग अपने साथ ले जाती।

    परिजात अपने आप को स्वयं क्या समझता था?

    Solution

    परिजात अपने आप को स्वयं पेड़ों का सरताज समझता था |

  • Question 11
    1 / -0

    एक जंगल में परिजात का एक पेड़ था। परिजात का कोई मुकाबला नहीं था। उसकी सुंदरता बेजोड़ थी। उसका रंग-रूप निराला था। परिजात को भी अपने गुणों का पूरा-पूरा पता था। नीले आसमान में सिर उठाए इस शान से खड़ा रहता, मानों पेड़ों का सरताज हो। जब बहार के दिन आते तो परिजात अनगिनत नन्हें-नन्हें फूलों से लद जाता, लगता मानों किसी ने आकाश से सारे तारे तोड़कर परिजात की शाखाओं पर टाँक दिए हो। नन्हें फूलों से झिलमिलाता परिजात जब सुगंध भरी पराग जंगल में बिखेरता तो जंगल नंदन बन जाता। चुंबक की तरह परिजात सबको अपनी तरफ़ खींचता, जिसे देखो, वही परिजात की तरफ़ भागता । सतरंगी शालें ओढ़े चटकीली तितलियाँ सहेलियों के साथ झुंड का झुंड बनाकर परिजात का श्रृंगार देखने आतीं तथा जाते-जाते फूलों को खींचकर ढेरों पराग अपने साथ ले जाती।

    तितलियाँ क्या करती थीं?

    Solution

    तितलियाँ उसके फूलों का पराग ले जाती थीं करती थीं |

  • Question 12
    1 / -0

    आज करना है जिसे, करते उसे हैं आज ही।

    सोचते कहते हैं जो कुछ कर दिखाते हैं वही ।।

    मानते जी की हैं सुनते हैं, सदा सबकी कही।

    जो मदद करते हैं अपनी इस जगत में आप ही ॥

    भूलकर भी दूसरों का मुँह कभी तकते नहीं।

    कौन ऐसा काम है, वे कर जिसे सकते नहीं॥

    कर्मवीर समय का सदुपयोग किस तरह करते हैं?

    Solution

    कर्मवीर समय का सदुपयोग आज का काम कल पर नहीं छोड़ते तरह करते हैं |

  • Question 13
    1 / -0

    आज करना है जिसे, करते उसे हैं आज ही।

    सोचते कहते हैं जो कुछ कर दिखाते हैं वही ।।

    मानते जी की हैं सुनते हैं, सदा सबकी कही।

    जो मदद करते हैं अपनी इस जगत में आप ही ॥

    भूलकर भी दूसरों का मुँह कभी तकते नहीं।

    कौन ऐसा काम है, वे कर जिसे सकते नहीं॥

    कर्मवीर की दो मुख्य विशेषताएँ हैं

    Solution

    कर्मवीर की दो मुख्य विशेषताएँ हैं
    वे किसी की मदद लेने की उम्मीद में बैठे नहीं रहते |

  • Question 14
    1 / -0

    भारत माता का मंदिर यह, समता को संवाद जहाँ।

    सबका शिव कल्याण यहाँ पाएँ सभी प्रसाद यहाँ।

    जाति-धर्म या संप्रदाय का, नहीं भेद व्यवधान यहाँ।

    सबका स्वागत, सबका आदर, सबका सम्मान यहाँ।

    राम-रहीम, बुद्ध ईसा का, सुलभ एक-सा ध्यान यहाँ।

    भिन्न-भिन्न भव संस्कृतियों के, गुण-गौरव का ज्ञान यहाँ।

    नहीं चाहिए बुद्धि वैर की, भला प्रेम उन्माद यहाँ।

    सब तीर्थों का एक तीर्थ यह, हृदय पवित्र बना लें हम।

    रेखाएँ प्रस्तुत हैं, अपने मन के चित्र बना लें हम।

    सौ-सौ आदर्शों को लेकर, एक चरित्र बना लें हम।

    कोटि-कोटि कंठों से मिलकर, उठे एक जयनाद यहाँ।

    सबका शिव कल्याण यहाँ है, पाएँ सभी प्रसाद यहाँ।

    जाति, धर्म, संप्रदाय का भेद कहाँ नहीं है?

    Solution

    जाति, धर्म, संप्रदाय का भेद भारत-माता मंदिर में नहीं है |

  • Question 15
    1 / -0

    आज करना है जिसे, करते उसे हैं आज ही।

    सोचते कहते हैं जो कुछ कर दिखाते हैं वही ।।

    मानते जी की हैं सुनते हैं, सदा सबकी कही।

    जो मदद करते हैं अपनी इस जगत में आप ही ॥

    भूलकर भी दूसरों का मुँह कभी तकते नहीं।

    कौन ऐसा काम है, वे कर जिसे सकते नहीं॥

    कर्मवीर के काम करने के तरीके की प्रमुख विशेषताएँ हैं

    Solution

    वे उचित काम को ही करते हैं।

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