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अपठित गद्यांश Test 1

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अपठित गद्यांश Test 1
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Self Studies Self Studies
Weekly Quiz Competition
  • Question 1
    1 / -0
    निर्देश : निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर इस पर आधारित प्रश्नों के उत्तर दीजिये:

    जिनमें सहिष्णुता की भावना होती है, केवल ऐसे लोग ही अध्यापक होने योग्य होते हैं। जिनका बच्चों से प्यार भरा लगाव होता है, उनमें धैर्य स्वभावत: आ जाता है। अध्यापाकों को जिस अन्तर्निहित गम्भीर समस्या से जूझना पड़ता है, वह यह है कि उन्हें जिनको देखना है वे शक्ति और प्रभुता में उनकी बराबरी के नहीं होते। अध्यापक के लिए एकदम तुच्छ या बिना किसी कारण के या फिर वास्तविक की बजाय किसी काल्पनिक कारण के चलते अपने छात्रों के सामने धैर्य खो देना, उनकी खिल्ली उड़ाना, उन्हें अपमानित या दण्डित करना एकदम आसान और सम्भव है। जो एक निर्बल अधीन राष्ट्र पर शासन करते हैं, उनमें न चाहते हुए भी गलत काम करने की प्रवृत्ति पायी जाती है। उसी तरह ऐसे अध्यापक होते हैं जो बच्चों को के ऊपर अपने प्रभुत्व का शिकार हो जाते हैं। जो शासन के अयोग्य होते हैं, उन्हें न केवल कमजोर लोगों पर अन्याय करते हुए कोई अपराध-बोध नहीं होता, बल्कि ऐसा करने में उन्हें एक खास तरह का मजा मिलता है। बच्चे अपनी माँ की गोद में कमजोर, असहाय और अज्ञानी होते हैं। माता के हृदय में स्थित प्रचुर प्यार ही उनकी रक्षा की एकमात्र गारण्टी होता है। इसके बावजूद हमारे घरों में इस बात के उदाहरण कम नहीं कि कैसे हमारे स्वाभाविक प्यार पर धीरज का अभाव और उद्धत प्राधिकार विजय प्राप्त कर लेते हैं और बच्चों को अनुचित कारणों से दण्डित होना पड़ता है।


    बच्चे अपने माँ की गोद में ही स्वयं को सुरक्षित समझते हैं क्योंकि:
    Solution
    बच्चे अपना माँ का  गोद में ही स्वय  को सुरक्षित इसलिए समझते है क्योंकि माँ  के हृदय में स्नेह होता है।
  • Question 2
    1 / -0
    निर्देश : निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर इस पर आधारित प्रश्नों के उत्तर दीजिये:

    जिनमें सहिष्णुता की भावना होती है, केवल ऐसे लोग ही अध्यापक होने योग्य होते हैं। जिनका बच्चों से प्यार भरा लगाव होता है, उनमें धैर्य स्वभावत: आ जाता है। अध्यापाकों को जिस अन्तर्निहित गम्भीर समस्या से जूझना पड़ता है, वह यह है कि उन्हें जिनको देखना है वे शक्ति और प्रभुता में उनकी बराबरी के नहीं होते। अध्यापक के लिए एकदम तुच्छ या बिना किसी कारण के या फिर वास्तविक की बजाय किसी काल्पनिक कारण के चलते अपने छात्रों के सामने धैर्य खो देना, उनकी खिल्ली उड़ाना, उन्हें अपमानित या दण्डित करना एकदम आसान और सम्भव है। जो एक निर्बल अधीन राष्ट्र पर शासन करते हैं, उनमें न चाहते हुए भी गलत काम करने की प्रवृत्ति पायी जाती है। उसी तरह ऐसे अध्यापक होते हैं जो बच्चों को के ऊपर अपने प्रभुत्व का शिकार हो जाते हैं। जो शासन के अयोग्य होते हैं, उन्हें न केवल कमजोर लोगों पर अन्याय करते हुए कोई अपराध-बोध नहीं होता, बल्कि ऐसा करने में उन्हें एक खास तरह का मजा मिलता है। बच्चे अपनी माँ की गोद में कमजोर, असहाय और अज्ञानी होते हैं। माता के हृदय में स्थित प्रचुर प्यार ही उनकी रक्षा की एकमात्र गारण्टी होता है। इसके बावजूद हमारे घरों में इस बात के उदाहरण कम नहीं कि कैसे हमारे स्वाभाविक प्यार पर धीरज का अभाव और उद्धत प्राधिकार विजय प्राप्त कर लेते हैं और बच्चों को अनुचित कारणों से दण्डित होना पड़ता है।


    कौन-सा शब्द समूह शेष शब्द समूहों से भिन्न है?
    Solution
    अयोग्य, अज्ञानी तथा अभाव तीनों शब्दों में उपसर्ग एक समान है अर्थात् (अ) का प्रयोग हुआ है जो अन्य विकल्पों के शब्दों से भिन्न हैं।
  • Question 3
    1 / -0
    निर्देश : निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर इस पर आधारित प्रश्नों के उत्तर दीजिये:

    जिनमें सहिष्णुता की भावना होती है, केवल ऐसे लोग ही अध्यापक होने योग्य होते हैं। जिनका बच्चों से प्यार भरा लगाव होता है, उनमें धैर्य स्वभावत: आ जाता है। अध्यापाकों को जिस अन्तर्निहित गम्भीर समस्या से जूझना पड़ता है, वह यह है कि उन्हें जिनको देखना है वे शक्ति और प्रभुता में उनकी बराबरी के नहीं होते। अध्यापक के लिए एकदम तुच्छ या बिना किसी कारण के या फिर वास्तविक की बजाय किसी काल्पनिक कारण के चलते अपने छात्रों के सामने धैर्य खो देना, उनकी खिल्ली उड़ाना, उन्हें अपमानित या दण्डित करना एकदम आसान और सम्भव है। जो एक निर्बल अधीन राष्ट्र पर शासन करते हैं, उनमें न चाहते हुए भी गलत काम करने की प्रवृत्ति पायी जाती है। उसी तरह ऐसे अध्यापक होते हैं जो बच्चों को के ऊपर अपने प्रभुत्व का शिकार हो जाते हैं। जो शासन के अयोग्य होते हैं, उन्हें न केवल कमजोर लोगों पर अन्याय करते हुए कोई अपराध-बोध नहीं होता, बल्कि ऐसा करने में उन्हें एक खास तरह का मजा मिलता है। बच्चे अपनी माँ की गोद में कमजोर, असहाय और अज्ञानी होते हैं। माता के हृदय में स्थित प्रचुर प्यार ही उनकी रक्षा की एकमात्र गारण्टी होता है। इसके बावजूद हमारे घरों में इस बात के उदाहरण कम नहीं कि कैसे हमारे स्वाभाविक प्यार पर धीरज का अभाव और उद्धत प्राधिकार विजय प्राप्त कर लेते हैं और बच्चों को अनुचित कारणों से दण्डित होना पड़ता है।


    ‘इत’ प्रत्यय से बनने वाला शब्द है-
    Solution
    इस प्रत्यय से बना शब्द है दण्ड + इत् = दण्डित। जबकि शेष सभी सब्द इत् प्रत्यय से मिलकर नहीं बने हुए हैं।  
  • Question 4
    1 / -0
    निर्देश : निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर इस पर आधारित प्रश्नों के उत्तर दीजिये:

    जिनमें सहिष्णुता की भावना होती है, केवल ऐसे लोग ही अध्यापक होने योग्य होते हैं। जिनका बच्चों से प्यार भरा लगाव होता है, उनमें धैर्य स्वभावत: आ जाता है। अध्यापाकों को जिस अन्तर्निहित गम्भीर समस्या से जूझना पड़ता है, वह यह है कि उन्हें जिनको देखना है वे शक्ति और प्रभुता में उनकी बराबरी के नहीं होते। अध्यापक के लिए एकदम तुच्छ या बिना किसी कारण के या फिर वास्तविक की बजाय किसी काल्पनिक कारण के चलते अपने छात्रों के सामने धैर्य खो देना, उनकी खिल्ली उड़ाना, उन्हें अपमानित या दण्डित करना एकदम आसान और सम्भव है। जो एक निर्बल अधीन राष्ट्र पर शासन करते हैं, उनमें न चाहते हुए भी गलत काम करने की प्रवृत्ति पायी जाती है। उसी तरह ऐसे अध्यापक होते हैं जो बच्चों को के ऊपर अपने प्रभुत्व का शिकार हो जाते हैं। जो शासन के अयोग्य होते हैं, उन्हें न केवल कमजोर लोगों पर अन्याय करते हुए कोई अपराध-बोध नहीं होता, बल्कि ऐसा करने में उन्हें एक खास तरह का मजा मिलता है। बच्चे अपनी माँ की गोद में कमजोर, असहाय और अज्ञानी होते हैं। माता के हृदय में स्थित प्रचुर प्यार ही उनकी रक्षा की एकमात्र गारण्टी होता है। इसके बावजूद हमारे घरों में इस बात के उदाहरण कम नहीं कि कैसे हमारे स्वाभाविक प्यार पर धीरज का अभाव और उद्धत प्राधिकार विजय प्राप्त कर लेते हैं और बच्चों को अनुचित कारणों से दण्डित होना पड़ता है।


    अध्यापक के लिए उचित विशेषण शब्द है-
    Solution
    अध्यापक के लिए उचित विशेषण है—सहिष्णु।
  • Question 5
    1 / -0
    निर्देश : निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर इस पर आधारित प्रश्नों के उत्तर दीजिये:

    जिनमें सहिष्णुता की भावना होती है, केवल ऐसे लोग ही अध्यापक होने योग्य होते हैं। जिनका बच्चों से प्यार भरा लगाव होता है, उनमें धैर्य स्वभावत: आ जाता है। अध्यापाकों को जिस अन्तर्निहित गम्भीर समस्या से जूझना पड़ता है, वह यह है कि उन्हें जिनको देखना है वे शक्ति और प्रभुता में उनकी बराबरी के नहीं होते। अध्यापक के लिए एकदम तुच्छ या बिना किसी कारण के या फिर वास्तविक की बजाय किसी काल्पनिक कारण के चलते अपने छात्रों के सामने धैर्य खो देना, उनकी खिल्ली उड़ाना, उन्हें अपमानित या दण्डित करना एकदम आसान और सम्भव है। जो एक निर्बल अधीन राष्ट्र पर शासन करते हैं, उनमें न चाहते हुए भी गलत काम करने की प्रवृत्ति पायी जाती है। उसी तरह ऐसे अध्यापक होते हैं जो बच्चों को के ऊपर अपने प्रभुत्व का शिकार हो जाते हैं। जो शासन के अयोग्य होते हैं, उन्हें न केवल कमजोर लोगों पर अन्याय करते हुए कोई अपराध-बोध नहीं होता, बल्कि ऐसा करने में उन्हें एक खास तरह का मजा मिलता है। बच्चे अपनी माँ की गोद में कमजोर, असहाय और अज्ञानी होते हैं। माता के हृदय में स्थित प्रचुर प्यार ही उनकी रक्षा की एकमात्र गारण्टी होता है। इसके बावजूद हमारे घरों में इस बात के उदाहरण कम नहीं कि कैसे हमारे स्वाभाविक प्यार पर धीरज का अभाव और उद्धत प्राधिकार विजय प्राप्त कर लेते हैं और बच्चों को अनुचित कारणों से दण्डित होना पड़ता है।


    लेखक के अनुसार अध्यापक बनने योग्य वही होते है, जो:
    Solution
    अध्यापक बनने योग्य वही हो सकते हैं, जो धैर्यवान होते हैं।
  • Question 6
    1 / -0
    निर्देश : निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर इस पर आधारित प्रश्नों के उत्तर दीजिये:

    समूची स्वार्थी व अहं-प्रेरित प्रवृत्तियाँ नकारात्मक हैं, ऐसे कर्मों में ऊँचे उद्देश्य नहीं होते, उनमें लोक-संग्रह नहीं होता, भव्य आदर्श नहीं होते। दूसरे, भले ही आप अपने सामने एक ऊँचा आदर्श रखें, तो भी आपके कर्म यदि आपके मन के चाहे या अनचाहे से प्रेरित हैं तो वे ह्रासमान ही होंगे, क्योंकि पसंद-नापसंद से किए जाते कार्य वासनाओं को बढ़ाए बिना नहीं रहते। कोई काम आपको महज इस आधार पर नहीं करना चाहिए कि वह आपको पसंद है। उसी तरह कोई काम करने से आपको महज इस आधार पर नहीं कतराना चाहिए कि वह काम आपका मनचाहा नहीं है। कार्य का निर्णय बुद्धि-विवेक के आधार पर होना चाहिए, मनचली भावनाओं, तुनकमिजाजी के आधार पर कतई नहीं। इस एक बात को हमेशा याद रखिए कि पसंद और नापसंद आपके सबसे बड़े शत्रु हैं। आप इन्हें पहचानते तक नहीं। उल्टे आप इन्हें पाल-पोसकर दुलारते हैं। वे तो हर क्षण आपकी हानि व ह्रास करने पर ही तुले हैं। इनसे निबटने का व्यावहारिक मार्ग यह है कि अपनी रुचि और अरुचि का विश्लेषण करें।


    कैसी प्रवृत्तियाँ नकारात्मक हैं?
    Solution
    ऐसी प्रवृत्तियाँ जो स्वार्थी एवं अहं-प्रेरित होती हैं तथा जिनमें सदैव 'चाहा-अनचाहा' का भाव निहित होता है, नकारात्मक प्रवृत्तियाँ कहलाती हैं।
  • Question 7
    1 / -0
    निर्देश : निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर इस पर आधारित प्रश्नों के उत्तर दीजिये:

    समूची स्वार्थी व अहं-प्रेरित प्रवृत्तियाँ नकारात्मक हैं, ऐसे कर्मों में ऊँचे उद्देश्य नहीं होते, उनमें लोक-संग्रह नहीं होता, भव्य आदर्श नहीं होते। दूसरे, भले ही आप अपने सामने एक ऊँचा आदर्श रखें, तो भी आपके कर्म यदि आपके मन के चाहे या अनचाहे से प्रेरित हैं तो वे ह्रासमान ही होंगे, क्योंकि पसंद-नापसंद से किए जाते कार्य वासनाओं को बढ़ाए बिना नहीं रहते। कोई काम आपको महज इस आधार पर नहीं करना चाहिए कि वह आपको पसंद है। उसी तरह कोई काम करने से आपको महज इस आधार पर नहीं कतराना चाहिए कि वह काम आपका मनचाहा नहीं है। कार्य का निर्णय बुद्धि-विवेक के आधार पर होना चाहिए, मनचली भावनाओं, तुनकमिजाजी के आधार पर कतई नहीं। इस एक बात को हमेशा याद रखिए कि पसंद और नापसंद आपके सबसे बड़े शत्रु हैं। आप इन्हें पहचानते तक नहीं। उल्टे आप इन्हें पाल-पोसकर दुलारते हैं। वे तो हर क्षण आपकी हानि व ह्रास करने पर ही तुले हैं। इनसे निबटने का व्यावहारिक मार्ग यह है कि अपनी रुचि और अरुचि का विश्लेषण करें।


    कौन-से कार्य हानि की ओर ले जाते हैं?
    Solution
    ऐसे कार्य जो अपने मन की रुचि और अरुचि के आधार पर सम्पन्न किए जाते हैं, सदैव ह्रासमान अर्थात् हानि की ओर ले जाते हैं।
  • Question 8
    1 / -0
    निर्देश : निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर इस पर आधारित प्रश्नों के उत्तर दीजिये:

    समूची स्वार्थी व अहं-प्रेरित प्रवृत्तियाँ नकारात्मक हैं, ऐसे कर्मों में ऊँचे उद्देश्य नहीं होते, उनमें लोक-संग्रह नहीं होता, भव्य आदर्श नहीं होते। दूसरे, भले ही आप अपने सामने एक ऊँचा आदर्श रखें, तो भी आपके कर्म यदि आपके मन के चाहे या अनचाहे से प्रेरित हैं तो वे ह्रासमान ही होंगे, क्योंकि पसंद-नापसंद से किए जाते कार्य वासनाओं को बढ़ाए बिना नहीं रहते। कोई काम आपको महज इस आधार पर नहीं करना चाहिए कि वह आपको पसंद है। उसी तरह कोई काम करने से आपको महज इस आधार पर नहीं कतराना चाहिए कि वह काम आपका मनचाहा नहीं है। कार्य का निर्णय बुद्धि-विवेक के आधार पर होना चाहिए, मनचली भावनाओं, तुनकमिजाजी के आधार पर कतई नहीं। इस एक बात को हमेशा याद रखिए कि पसंद और नापसंद आपके सबसे बड़े शत्रु हैं। आप इन्हें पहचानते तक नहीं। उल्टे आप इन्हें पाल-पोसकर दुलारते हैं। वे तो हर क्षण आपकी हानि व ह्रास करने पर ही तुले हैं। इनसे निबटने का व्यावहारिक मार्ग यह है कि अपनी रुचि और अरुचि का विश्लेषण करें।


    इस गद्यांश में किस प्रकार के कार्यों का समर्थन किया गया है?
    Solution
    प्रस्तुत गद्यांश में ऐसे कार्यों को करने के लिए कहा गया है जो अपनी बुद्धि एवं विवेक के  निर्णय से किए जाते हैं न कि मन के चाहने या न चाहने के आधार पर।
  • Question 9
    1 / -0
    निर्देश : निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर इस पर आधारित प्रश्नों के उत्तर दीजिये:

    समूची स्वार्थी व अहं-प्रेरित प्रवृत्तियाँ नकारात्मक हैं, ऐसे कर्मों में ऊँचे उद्देश्य नहीं होते, उनमें लोक-संग्रह नहीं होता, भव्य आदर्श नहीं होते। दूसरे, भले ही आप अपने सामने एक ऊँचा आदर्श रखें, तो भी आपके कर्म यदि आपके मन के चाहे या अनचाहे से प्रेरित हैं तो वे ह्रासमान ही होंगे, क्योंकि पसंद-नापसंद से किए जाते कार्य वासनाओं को बढ़ाए बिना नहीं रहते। कोई काम आपको महज इस आधार पर नहीं करना चाहिए कि वह आपको पसंद है। उसी तरह कोई काम करने से आपको महज इस आधार पर नहीं कतराना चाहिए कि वह काम आपका मनचाहा नहीं है। कार्य का निर्णय बुद्धि-विवेक के आधार पर होना चाहिए, मनचली भावनाओं, तुनकमिजाजी के आधार पर कतई नहीं। इस एक बात को हमेशा याद रखिए कि पसंद और नापसंद आपके सबसे बड़े शत्रु हैं। आप इन्हें पहचानते तक नहीं। उल्टे आप इन्हें पाल-पोसकर दुलारते हैं। वे तो हर क्षण आपकी हानि व ह्रास करने पर ही तुले हैं। इनसे निबटने का व्यावहारिक मार्ग यह है कि अपनी रुचि और अरुचि का विश्लेषण करें।


    इस गद्यांश में किन्हें शत्रु कहा गया है?
    Solution
    इस गद्यांश में प्रमुख रूप से पसन्द-नापसन्द/रुचि-अरुचि/ स्वार्थ एवं अहं-प्रेरक को व्यक्ति का शत्रु कहा गया है 
  • Question 10
    1 / -0
    निर्देश : निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर इस पर आधारित प्रश्नों के उत्तर दीजिये:

    समूची स्वार्थी व अहं-प्रेरित प्रवृत्तियाँ नकारात्मक हैं, ऐसे कर्मों में ऊँचे उद्देश्य नहीं होते, उनमें लोक-संग्रह नहीं होता, भव्य आदर्श नहीं होते। दूसरे, भले ही आप अपने सामने एक ऊँचा आदर्श रखें, तो भी आपके कर्म यदि आपके मन के चाहे या अनचाहे से प्रेरित हैं तो वे ह्रासमान ही होंगे, क्योंकि पसंद-नापसंद से किए जाते कार्य वासनाओं को बढ़ाए बिना नहीं रहते। कोई काम आपको महज इस आधार पर नहीं करना चाहिए कि वह आपको पसंद है। उसी तरह कोई काम करने से आपको महज इस आधार पर नहीं कतराना चाहिए कि वह काम आपका मनचाहा नहीं है। कार्य का निर्णय बुद्धि-विवेक के आधार पर होना चाहिए, मनचली भावनाओं, तुनकमिजाजी के आधार पर कतई नहीं। इस एक बात को हमेशा याद रखिए कि पसंद और नापसंद आपके सबसे बड़े शत्रु हैं। आप इन्हें पहचानते तक नहीं। उल्टे आप इन्हें पाल-पोसकर दुलारते हैं। वे तो हर क्षण आपकी हानि व ह्रास करने पर ही तुले हैं। इनसे निबटने का व्यावहारिक मार्ग यह है कि अपनी रुचि और अरुचि का विश्लेषण करें।


    लेखक ने इन शत्रुओं से निपटने का कौन-सा मार्ग सुझाया है?
    Solution
    प्रस्तुत गद्यांश में लेखक ने पसन्द-नापसन्द जैसे शत्रुओं से निपटने के लिए इनके विश्लेषण पर गम्भीरता से विचार करने के लिए सुझाव दिया है।
  • Question 11
    1 / -0
    निर्देश : निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर इस पर आधारित प्रश्नों के उत्तर दीजिये:

    हैरानी की बात यह है कि मेरी दलील मित्रों के हलक से नहीं उतरती थी, तब मैं उनसे कहता था- साहित्य की हर विधा को, हर तरह की लेखनी को मैं बतौर चुनौती स्वीकार करता हूँ। आम आदमी से लेकर खास आदमी तक के हृदय को छूना कोई मामूली बात नहीं होती। यह तो आप भी स्वीकार करेंगें, क्योंकि यह काम सिर्फ रामायण और महाभारत जैसे ग्रन्थ ही कर पाते हैं। मेरी यह दलील रामबाण सिद्ध होती थी, वे सारे मित्र सोच में पड़ जाते थे, ‘मास’ के लिए या ‘क्लास’ के लिए। उनके दायरे सीमित थे लेकिन मैं दायरों के बाहर का शख्स हूँ।
    शायद इसी कारण मैं आपसे खुलकर अन्तरंग बातें भी कर सकता हूँ। बात कहानी की रचना-प्रक्रिया से आरम्भ की थी। तब मैं ‘ओ, हेनरी’ की एक कहानी पढ़ता था और भीतर दो नई कहानीयों के बीज अपने आप पड़ जाते थे। न कोई मशक्कत, ने कोई गहरी सोच। यह प्रोसेस मेरे लिए उतना ही आसान था जितना कि कैरम का खेल। फिर भी ये रचनाएँ कहानी के शिल्प में कहानी विधा के अन्तर्गत लिखी गई पुख्ता किस्सागोई हैं। पर यह किस्सागोई जिन्दगी से अलग नहीं हो सकती।


    दलील का हलक से नहीं उतरने का आशय है:
    Solution
    दलील का हलक से नहीं उतरने’ का अर्थ है दलील को स्वीकार न कर पाना।
  • Question 12
    1 / -0
    निर्देश : निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर इस पर आधारित प्रश्नों के उत्तर दीजिये:

    हैरानी की बात यह है कि मेरी दलील मित्रों के हलक से नहीं उतरती थी, तब मैं उनसे कहता था- साहित्य की हर विधा को, हर तरह की लेखनी को मैं बतौर चुनौती स्वीकार करता हूँ। आम आदमी से लेकर खास आदमी तक के हृदय को छूना कोई मामूली बात नहीं होती। यह तो आप भी स्वीकार करेंगें, क्योंकि यह काम सिर्फ रामायण और महाभारत जैसे ग्रन्थ ही कर पाते हैं। मेरी यह दलील रामबाण सिद्ध होती थी, वे सारे मित्र सोच में पड़ जाते थे, ‘मास’ के लिए या ‘क्लास’ के लिए। उनके दायरे सीमित थे लेकिन मैं दायरों के बाहर का शख्स हूँ।
    शायद इसी कारण मैं आपसे खुलकर अन्तरंग बातें भी कर सकता हूँ। बात कहानी की रचना-प्रक्रिया से आरम्भ की थी। तब मैं ‘ओ, हेनरी’ की एक कहानी पढ़ता था और भीतर दो नई कहानीयों के बीज अपने आप पड़ जाते थे। न कोई मशक्कत, ने कोई गहरी सोच। यह प्रोसेस मेरे लिए उतना ही आसान था जितना कि कैरम का खेल। फिर भी ये रचनाएँ कहानी के शिल्प में कहानी विधा के अन्तर्गत लिखी गई पुख्ता किस्सागोई हैं। पर यह किस्सागोई जिन्दगी से अलग नहीं हो सकती।


    लेखक के अनुसार लेखन की क्या खास बात है?
    Solution
    लेखक का लेखन इस प्रकार है कि वह अपनी कलम से इस प्रकार लिखता है जो सभी के दिल को छू सके।
  • Question 13
    1 / -0
    निर्देश : निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर इस पर आधारित प्रश्नों के उत्तर दीजिये:

    हैरानी की बात यह है कि मेरी दलील मित्रों के हलक से नहीं उतरती थी, तब मैं उनसे कहता था- साहित्य की हर विधा को, हर तरह की लेखनी को मैं बतौर चुनौती स्वीकार करता हूँ। आम आदमी से लेकर खास आदमी तक के हृदय को छूना कोई मामूली बात नहीं होती। यह तो आप भी स्वीकार करेंगें, क्योंकि यह काम सिर्फ रामायण और महाभारत जैसे ग्रन्थ ही कर पाते हैं। मेरी यह दलील रामबाण सिद्ध होती थी, वे सारे मित्र सोच में पड़ जाते थे, ‘मास’ के लिए या ‘क्लास’ के लिए। उनके दायरे सीमित थे लेकिन मैं दायरों के बाहर का शख्स हूँ।
    शायद इसी कारण मैं आपसे खुलकर अन्तरंग बातें भी कर सकता हूँ। बात कहानी की रचना-प्रक्रिया से आरम्भ की थी। तब मैं ‘ओ, हेनरी’ की एक कहानी पढ़ता था और भीतर दो नई कहानीयों के बीज अपने आप पड़ जाते थे। न कोई मशक्कत, ने कोई गहरी सोच। यह प्रोसेस मेरे लिए उतना ही आसान था जितना कि कैरम का खेल। फिर भी ये रचनाएँ कहानी के शिल्प में कहानी विधा के अन्तर्गत लिखी गई पुख्ता किस्सागोई हैं। पर यह किस्सागोई जिन्दगी से अलग नहीं हो सकती।


    गद्यांश के आधार पर कहा जा सकता है कि:
    Solution
    गद्यांश के अनुसार स्पष्टत: यह कहा जा सकता है कि लेखक बेहद सृजनशील एवं कल्पनाशील है।
  • Question 14
    1 / -0
    निर्देश : निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर इस पर आधारित प्रश्नों के उत्तर दीजिये:

    हैरानी की बात यह है कि मेरी दलील मित्रों के हलक से नहीं उतरती थी, तब मैं उनसे कहता था- साहित्य की हर विधा को, हर तरह की लेखनी को मैं बतौर चुनौती स्वीकार करता हूँ। आम आदमी से लेकर खास आदमी तक के हृदय को छूना कोई मामूली बात नहीं होती। यह तो आप भी स्वीकार करेंगें, क्योंकि यह काम सिर्फ रामायण और महाभारत जैसे ग्रन्थ ही कर पाते हैं। मेरी यह दलील रामबाण सिद्ध होती थी, वे सारे मित्र सोच में पड़ जाते थे, ‘मास’ के लिए या ‘क्लास’ के लिए। उनके दायरे सीमित थे लेकिन मैं दायरों के बाहर का शख्स हूँ।
    शायद इसी कारण मैं आपसे खुलकर अन्तरंग बातें भी कर सकता हूँ। बात कहानी की रचना-प्रक्रिया से आरम्भ की थी। तब मैं ‘ओ, हेनरी’ की एक कहानी पढ़ता था और भीतर दो नई कहानीयों के बीज अपने आप पड़ जाते थे। न कोई मशक्कत, ने कोई गहरी सोच। यह प्रोसेस मेरे लिए उतना ही आसान था जितना कि कैरम का खेल। फिर भी ये रचनाएँ कहानी के शिल्प में कहानी विधा के अन्तर्गत लिखी गई पुख्ता किस्सागोई हैं। पर यह किस्सागोई जिन्दगी से अलग नहीं हो सकती।


    लेखक को कहानी लिखने में:
    Solution
    लेखक को कहानी में अधिक मेहनत नहीं करनी पड़ती क्योंकि किसी एक कहानी के पढ़ने से उसके मस्तिष्क में दो नई कहानियों का विचार प्राप्त हो जाता है
  • Question 15
    1 / -0
    निर्देश : निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर इस पर आधारित प्रश्नों के उत्तर दीजिये:

    हैरानी की बात यह है कि मेरी दलील मित्रों के हलक से नहीं उतरती थी, तब मैं उनसे कहता था- साहित्य की हर विधा को, हर तरह की लेखनी को मैं बतौर चुनौती स्वीकार करता हूँ। आम आदमी से लेकर खास आदमी तक के हृदय को छूना कोई मामूली बात नहीं होती। यह तो आप भी स्वीकार करेंगें, क्योंकि यह काम सिर्फ रामायण और महाभारत जैसे ग्रन्थ ही कर पाते हैं। मेरी यह दलील रामबाण सिद्ध होती थी, वे सारे मित्र सोच में पड़ जाते थे, ‘मास’ के लिए या ‘क्लास’ के लिए। उनके दायरे सीमित थे लेकिन मैं दायरों के बाहर का शख्स हूँ।
    शायद इसी कारण मैं आपसे खुलकर अन्तरंग बातें भी कर सकता हूँ। बात कहानी की रचना-प्रक्रिया से आरम्भ की थी। तब मैं ‘ओ, हेनरी’ की एक कहानी पढ़ता था और भीतर दो नई कहानीयों के बीज अपने आप पड़ जाते थे। न कोई मशक्कत, ने कोई गहरी सोच। यह प्रोसेस मेरे लिए उतना ही आसान था जितना कि कैरम का खेल। फिर भी ये रचनाएँ कहानी के शिल्प में कहानी विधा के अन्तर्गत लिखी गई पुख्ता किस्सागोई हैं। पर यह किस्सागोई जिन्दगी से अलग नहीं हो सकती।


    ‘क्लास’ का अर्थ है:
    Solution
    क्लास का अर्थ गद्यांश के अनुसार, एक प्रकार या वर्ग-विशेष है।
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