स्पष्टीकरण:
प्रस्तुत सुसंगठित, सारगर्भित, सुललित पंक्तियों में श्री कवि शिरोमणि अज्ञेय ने यहाँ राजा का संकेत जीवन सार्थकता की ओर है।
वीणा सृजन का प्रतीक बन कर आती है। ‘वीणा बोलेगी अवश्य ‘- मनुष्य की सृजन शक्ति में आस्था को अभिव्यक्ति मिलती है और इसमें राजा की आस्था वास्तव में अज्ञेय की आस्था है।
यहाँ जो आस्था और विश्वास है , राम की शक्ति पूजा में यही विश्वास जामवंत को भी है।
जापानी लोककथा के भारतीय संस्करण की पृष्ठभूमि में सर्जनात्मक रहस्यवाद की अभिव्यक्ति और इस क्रम में यहाँ पर सर्जना की अर्हता का संकेत।
विजय देव नारायण साही और रमेश चंद्र साह ने अज्ञेय को प्रसाद के सांस्कृतिक भाव बोध के करीब माना है और यहाँ पर अज्ञेय अस्तित्ववादी अनास्था को भारतीय जीवन परक आस्था के जरिये प्रतिस्थापित करते हुए उनकी इस मान्यता की पूर्ति करते हैं। अतः स्पष्ट है कि विकल्प जब उसे सच्चा-स्वरसिद्ध गोद लेगा I सटीक है अन्य विकल्प असंगत हैं।
विशेष :
भाषायी अभिजत्यापन , परन्तु तदभव शब्दों के जरिये जीवन्तता प्रदान की है।