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Hindi Mock Test...

TIME LEFT -
  • Question 1
    5 / -1

    Directions For Questions

    निर्देश - निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर, दिए गए प्रश्नों के उत्तर के लिए सही विकल्प चुनकर लिखिए

    साहित्य का आधार जीवन है, इसी नींव पर साहित्य की दीवार खड़ी होती है। उसकी अटारियाँ, मीनार और गुंबद बनते हैं। लेकिन बुनियाद मिट्टी के नीचे दबी पड़ी है जीवन, परमात्मा की सृष्टि है, इसलिए सुबोध है, सुगम है और मर्यादाओं से परिमित है। मनुष्य अपने कार्यों के लिए परमात्मा के सामने जवाबदेह है या नहीं, हमें नहीं मालूम लेकिन साहित्य तो मनुष्य के सामने जवाबदेह है इसके लिए कानून है, जिनसे वह इधर-उधर नहीं जा सकता। मनुष्य जीवन पर्यंत आनंद की खोज में लगा रहता है। किसी को वह रत्न द्रव्य में मिलता है तो किसी को ऐश्वर्य में। लेकिन साहित्य का आनंद, इस आनंद से ऊँचा है। उसका आधार सुंदर और सत्य है। वास्तव में सच्चा आनंद सुंदर और सत्य से मिलता है, उसी आनंद को दर्शाना, वही आनंद उत्पन्न करना, साहित्य का उद्देश्य है।

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    जीवन को साहित्य का आधार क्‍यों कहा गया है?

  • Question 2
    5 / -1

    Directions For Questions

    निर्देश - निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर, दिए गए प्रश्नों के उत्तर के लिए सही विकल्प चुनकर लिखिए

    साहित्य का आधार जीवन है, इसी नींव पर साहित्य की दीवार खड़ी होती है। उसकी अटारियाँ, मीनार और गुंबद बनते हैं। लेकिन बुनियाद मिट्टी के नीचे दबी पड़ी है जीवन, परमात्मा की सृष्टि है, इसलिए सुबोध है, सुगम है और मर्यादाओं से परिमित है। मनुष्य अपने कार्यों के लिए परमात्मा के सामने जवाबदेह है या नहीं, हमें नहीं मालूम लेकिन साहित्य तो मनुष्य के सामने जवाबदेह है इसके लिए कानून है, जिनसे वह इधर-उधर नहीं जा सकता। मनुष्य जीवन पर्यंत आनंद की खोज में लगा रहता है। किसी को वह रत्न द्रव्य में मिलता है तो किसी को ऐश्वर्य में। लेकिन साहित्य का आनंद, इस आनंद से ऊँचा है। उसका आधार सुंदर और सत्य है। वास्तव में सच्चा आनंद सुंदर और सत्य से मिलता है, उसी आनंद को दर्शाना, वही आनंद उत्पन्न करना, साहित्य का उद्देश्य है।

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    साहित्य के आनन्द का आधार कहाँ है?

  • Question 3
    5 / -1

    Directions For Questions

    निर्देश - निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर, दिए गए प्रश्नों के उत्तर के लिए सही विकल्प चुनकर लिखिए

    साहित्य का आधार जीवन है, इसी नींव पर साहित्य की दीवार खड़ी होती है। उसकी अटारियाँ, मीनार और गुंबद बनते हैं। लेकिन बुनियाद मिट्टी के नीचे दबी पड़ी है जीवन, परमात्मा की सृष्टि है, इसलिए सुबोध है, सुगम है और मर्यादाओं से परिमित है। मनुष्य अपने कार्यों के लिए परमात्मा के सामने जवाबदेह है या नहीं, हमें नहीं मालूम लेकिन साहित्य तो मनुष्य के सामने जवाबदेह है इसके लिए कानून है, जिनसे वह इधर-उधर नहीं जा सकता। मनुष्य जीवन पर्यंत आनंद की खोज में लगा रहता है। किसी को वह रत्न द्रव्य में मिलता है तो किसी को ऐश्वर्य में। लेकिन साहित्य का आनंद, इस आनंद से ऊँचा है। उसका आधार सुंदर और सत्य है। वास्तव में सच्चा आनंद सुंदर और सत्य से मिलता है, उसी आनंद को दर्शाना, वही आनंद उत्पन्न करना, साहित्य का उद्देश्य है।

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    साहित्य का प्रमुख उद्देश्य क्या है?

  • Question 4
    5 / -1

    Directions For Questions

    निर्देश - निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर, दिए गए प्रश्नों के उत्तर के लिए सही विकल्प चुनकर लिखिए

    साहित्य का आधार जीवन है, इसी नींव पर साहित्य की दीवार खड़ी होती है। उसकी अटारियाँ, मीनार और गुंबद बनते हैं। लेकिन बुनियाद मिट्टी के नीचे दबी पड़ी है जीवन, परमात्मा की सृष्टि है, इसलिए सुबोध है, सुगम है और मर्यादाओं से परिमित है। मनुष्य अपने कार्यों के लिए परमात्मा के सामने जवाबदेह है या नहीं, हमें नहीं मालूम लेकिन साहित्य तो मनुष्य के सामने जवाबदेह है इसके लिए कानून है, जिनसे वह इधर-उधर नहीं जा सकता। मनुष्य जीवन पर्यंत आनंद की खोज में लगा रहता है। किसी को वह रत्न द्रव्य में मिलता है तो किसी को ऐश्वर्य में। लेकिन साहित्य का आनंद, इस आनंद से ऊँचा है। उसका आधार सुंदर और सत्य है। वास्तव में सच्चा आनंद सुंदर और सत्य से मिलता है, उसी आनंद को दर्शाना, वही आनंद उत्पन्न करना, साहित्य का उद्देश्य है।

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    “परिमित” का अर्थ है -

  • Question 5
    5 / -1

    Directions For Questions

    निर्देश - निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर, दिए गए प्रश्नों के उत्तर के लिए सही विकल्प चुनकर लिखिए

    साहित्य का आधार जीवन है, इसी नींव पर साहित्य की दीवार खड़ी होती है। उसकी अटारियाँ, मीनार और गुंबद बनते हैं। लेकिन बुनियाद मिट्टी के नीचे दबी पड़ी है जीवन, परमात्मा की सृष्टि है, इसलिए सुबोध है, सुगम है और मर्यादाओं से परिमित है। मनुष्य अपने कार्यों के लिए परमात्मा के सामने जवाबदेह है या नहीं, हमें नहीं मालूम लेकिन साहित्य तो मनुष्य के सामने जवाबदेह है इसके लिए कानून है, जिनसे वह इधर-उधर नहीं जा सकता। मनुष्य जीवन पर्यंत आनंद की खोज में लगा रहता है। किसी को वह रत्न द्रव्य में मिलता है तो किसी को ऐश्वर्य में। लेकिन साहित्य का आनंद, इस आनंद से ऊँचा है। उसका आधार सुंदर और सत्य है। वास्तव में सच्चा आनंद सुंदर और सत्य से मिलता है, उसी आनंद को दर्शाना, वही आनंद उत्पन्न करना, साहित्य का उद्देश्य है।

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    "लंबे चौड़े भवन” में रेखांकित शब्द व्याकरणिक दृष्टि से है -

  • Question 6
    5 / -1

    Directions For Questions

    निम्नलिखित परिच्छेद को पढ़िए और प्रश्नों के उत्तर दीजिए:

    साहित्य का संबंध व्यक्ति और राष्ट्रीय जीवन से है। जगत की परिस्थितियों से प्रभावित हुए बिना वह रह ही नहीं सकता, इसीलिए कि वह स्वयं जगत का ही एक अंग है। जीवन में जो क्रियाएं हो रही हैं साहित्यकार में उनकी प्रतिक्रिया होना स्वाभाविक और अनिवार्य है। समाज का प्रभाव साहित्यकार पर न पड़े, यह असंभव है। हां, साहित्यकार पलायन अवश्य कर सकता है, आंख बंद कर सकता है जैसा कि दरबारी कवियों ने किया। आज की परिस्थितियां बिल्कुल भिन्न हैं। पात्रों और परिस्थिति का ख्यात रखना जरुरी है, क्योंकि इनका ख्याल रखे बिना रस का उद्रेक नहीं हो सकता। कोरा शब्दांडबर टिकाऊ नहीं। साहित्यकार तो सामान्य व्यक्तियों की अपेक्षा कहीं अधिक सहृदय, संवेदनशील प्राणी होता है कि अपने देश और काल की ठीक-ठीक परिस्थितियों का निर्भीक चित्रण करे। यदि देश दुखी है और भूख, गुलामी और शोषण का शिकार है और साहित्यकार इन सब क्लेशों की उपेक्षा करके मौज का राग अलापता है तो वह राष्ट्रीय जीवन से कोसों दूर है, वह राष्ट्र के प्रति, साहित्य के प्रति विश्वासघात करता है। उसे साहित्यकार कहलाने का अधिकार नहीं है। साहित्यकार फोटोग्राफर मात्र नहीं है। यह उचित है कि साहित्यकार समाज का दोष जाने, परन्तु केवल उसी के यथार्थ - चित्रण से साहित्यकार का कर्तव्य पूरा नहीं हो जाता। पर साहित्यकार प्रचारक नहीं है, इसका अर्थ यह नहीं है कि उसकी रचना की सामाजिक उपादेयता नहीं होती। हमारे प्राचीन, संस्कृत के साहित्याचार्यों ने साहित्य को उपादेयता की आधार-भूमि पर प्रतिष्ठित किया है। अशिव की क्षति साहित्य का बड़ा पुनीत अनुष्ठान है। कोई साहित्यकार राष्ट्र के लिए उपयोगी साहित्य का सृजन कर रहा है, इस बात की अकेली पहचान यह है कि साहित्यकार सत्य तथा राष्ट्रीयता को अपनी श्रद्धानुसार जिस रूप में ग्रहण करे, उसी रूप में निर्भयतापूर्ण व्यक्त करे, भागे नहीं।

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    उपर्युक्‍त अनुच्‍छेद के आधार पर निम्‍नलिखित में से कौन सा कथन सहीं है ?

  • Question 7
    5 / -1

    Directions For Questions

    निम्नलिखित परिच्छेद को पढ़िए और प्रश्नों के उत्तर दीजिए:

    साहित्य का संबंध व्यक्ति और राष्ट्रीय जीवन से है। जगत की परिस्थितियों से प्रभावित हुए बिना वह रह ही नहीं सकता, इसीलिए कि वह स्वयं जगत का ही एक अंग है। जीवन में जो क्रियाएं हो रही हैं साहित्यकार में उनकी प्रतिक्रिया होना स्वाभाविक और अनिवार्य है। समाज का प्रभाव साहित्यकार पर न पड़े, यह असंभव है। हां, साहित्यकार पलायन अवश्य कर सकता है, आंख बंद कर सकता है जैसा कि दरबारी कवियों ने किया। आज की परिस्थितियां बिल्कुल भिन्न हैं। पात्रों और परिस्थिति का ख्यात रखना जरुरी है, क्योंकि इनका ख्याल रखे बिना रस का उद्रेक नहीं हो सकता। कोरा शब्दांडबर टिकाऊ नहीं। साहित्यकार तो सामान्य व्यक्तियों की अपेक्षा कहीं अधिक सहृदय, संवेदनशील प्राणी होता है कि अपने देश और काल की ठीक-ठीक परिस्थितियों का निर्भीक चित्रण करे। यदि देश दुखी है और भूख, गुलामी और शोषण का शिकार है और साहित्यकार इन सब क्लेशों की उपेक्षा करके मौज का राग अलापता है तो वह राष्ट्रीय जीवन से कोसों दूर है, वह राष्ट्र के प्रति, साहित्य के प्रति विश्वासघात करता है। उसे साहित्यकार कहलाने का अधिकार नहीं है। साहित्यकार फोटोग्राफर मात्र नहीं है। यह उचित है कि साहित्यकार समाज का दोष जाने, परन्तु केवल उसी के यथार्थ - चित्रण से साहित्यकार का कर्तव्य पूरा नहीं हो जाता। पर साहित्यकार प्रचारक नहीं है, इसका अर्थ यह नहीं है कि उसकी रचना की सामाजिक उपादेयता नहीं होती। हमारे प्राचीन, संस्कृत के साहित्याचार्यों ने साहित्य को उपादेयता की आधार-भूमि पर प्रतिष्ठित किया है। अशिव की क्षति साहित्य का बड़ा पुनीत अनुष्ठान है। कोई साहित्यकार राष्ट्र के लिए उपयोगी साहित्य का सृजन कर रहा है, इस बात की अकेली पहचान यह है कि साहित्यकार सत्य तथा राष्ट्रीयता को अपनी श्रद्धानुसार जिस रूप में ग्रहण करे, उसी रूप में निर्भयतापूर्ण व्यक्त करे, भागे नहीं।

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    उपर्युक्‍त अनुच्‍छेद के आधार पर निम्‍नलिखित में से कौन सा कथन सही नही है ?

  • Question 8
    5 / -1

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    निम्नलिखित परिच्छेद को पढ़िए और प्रश्नों के उत्तर दीजिए:

    साहित्य का संबंध व्यक्ति और राष्ट्रीय जीवन से है। जगत की परिस्थितियों से प्रभावित हुए बिना वह रह ही नहीं सकता, इसीलिए कि वह स्वयं जगत का ही एक अंग है। जीवन में जो क्रियाएं हो रही हैं साहित्यकार में उनकी प्रतिक्रिया होना स्वाभाविक और अनिवार्य है। समाज का प्रभाव साहित्यकार पर न पड़े, यह असंभव है। हां, साहित्यकार पलायन अवश्य कर सकता है, आंख बंद कर सकता है जैसा कि दरबारी कवियों ने किया। आज की परिस्थितियां बिल्कुल भिन्न हैं। पात्रों और परिस्थिति का ख्यात रखना जरुरी है, क्योंकि इनका ख्याल रखे बिना रस का उद्रेक नहीं हो सकता। कोरा शब्दांडबर टिकाऊ नहीं। साहित्यकार तो सामान्य व्यक्तियों की अपेक्षा कहीं अधिक सहृदय, संवेदनशील प्राणी होता है कि अपने देश और काल की ठीक-ठीक परिस्थितियों का निर्भीक चित्रण करे। यदि देश दुखी है और भूख, गुलामी और शोषण का शिकार है और साहित्यकार इन सब क्लेशों की उपेक्षा करके मौज का राग अलापता है तो वह राष्ट्रीय जीवन से कोसों दूर है, वह राष्ट्र के प्रति, साहित्य के प्रति विश्वासघात करता है। उसे साहित्यकार कहलाने का अधिकार नहीं है। साहित्यकार फोटोग्राफर मात्र नहीं है। यह उचित है कि साहित्यकार समाज का दोष जाने, परन्तु केवल उसी के यथार्थ - चित्रण से साहित्यकार का कर्तव्य पूरा नहीं हो जाता। पर साहित्यकार प्रचारक नहीं है, इसका अर्थ यह नहीं है कि उसकी रचना की सामाजिक उपादेयता नहीं होती। हमारे प्राचीन, संस्कृत के साहित्याचार्यों ने साहित्य को उपादेयता की आधार-भूमि पर प्रतिष्ठित किया है। अशिव की क्षति साहित्य का बड़ा पुनीत अनुष्ठान है। कोई साहित्यकार राष्ट्र के लिए उपयोगी साहित्य का सृजन कर रहा है, इस बात की अकेली पहचान यह है कि साहित्यकार सत्य तथा राष्ट्रीयता को अपनी श्रद्धानुसार जिस रूप में ग्रहण करे, उसी रूप में निर्भयतापूर्ण व्यक्त करे, भागे नहीं।

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    उपर्युक्‍त अनुच्‍छेद के आधार पर राष्‍ट्र के लिए उपयोगी साहित्‍य - सर्जक की पहचान क्‍या है ? 

  • Question 9
    5 / -1

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    निम्नलिखित परिच्छेद को पढ़िए और प्रश्नों के उत्तर दीजिए:

    साहित्य का संबंध व्यक्ति और राष्ट्रीय जीवन से है। जगत की परिस्थितियों से प्रभावित हुए बिना वह रह ही नहीं सकता, इसीलिए कि वह स्वयं जगत का ही एक अंग है। जीवन में जो क्रियाएं हो रही हैं साहित्यकार में उनकी प्रतिक्रिया होना स्वाभाविक और अनिवार्य है। समाज का प्रभाव साहित्यकार पर न पड़े, यह असंभव है। हां, साहित्यकार पलायन अवश्य कर सकता है, आंख बंद कर सकता है जैसा कि दरबारी कवियों ने किया। आज की परिस्थितियां बिल्कुल भिन्न हैं। पात्रों और परिस्थिति का ख्यात रखना जरुरी है, क्योंकि इनका ख्याल रखे बिना रस का उद्रेक नहीं हो सकता। कोरा शब्दांडबर टिकाऊ नहीं। साहित्यकार तो सामान्य व्यक्तियों की अपेक्षा कहीं अधिक सहृदय, संवेदनशील प्राणी होता है कि अपने देश और काल की ठीक-ठीक परिस्थितियों का निर्भीक चित्रण करे। यदि देश दुखी है और भूख, गुलामी और शोषण का शिकार है और साहित्यकार इन सब क्लेशों की उपेक्षा करके मौज का राग अलापता है तो वह राष्ट्रीय जीवन से कोसों दूर है, वह राष्ट्र के प्रति, साहित्य के प्रति विश्वासघात करता है। उसे साहित्यकार कहलाने का अधिकार नहीं है। साहित्यकार फोटोग्राफर मात्र नहीं है। यह उचित है कि साहित्यकार समाज का दोष जाने, परन्तु केवल उसी के यथार्थ - चित्रण से साहित्यकार का कर्तव्य पूरा नहीं हो जाता। पर साहित्यकार प्रचारक नहीं है, इसका अर्थ यह नहीं है कि उसकी रचना की सामाजिक उपादेयता नहीं होती। हमारे प्राचीन, संस्कृत के साहित्याचार्यों ने साहित्य को उपादेयता की आधार-भूमि पर प्रतिष्ठित किया है। अशिव की क्षति साहित्य का बड़ा पुनीत अनुष्ठान है। कोई साहित्यकार राष्ट्र के लिए उपयोगी साहित्य का सृजन कर रहा है, इस बात की अकेली पहचान यह है कि साहित्यकार सत्य तथा राष्ट्रीयता को अपनी श्रद्धानुसार जिस रूप में ग्रहण करे, उसी रूप में निर्भयतापूर्ण व्यक्त करे, भागे नहीं।

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    उपर्युक्‍त अनुच्‍छेद के आधार पर साहित्‍य का पुनीत अनुष्‍ठान क्‍या है ?

  • Question 10
    5 / -1

    Directions For Questions

    निम्नलिखित परिच्छेद को पढ़िए और प्रश्नों के उत्तर दीजिए:

    साहित्य का संबंध व्यक्ति और राष्ट्रीय जीवन से है। जगत की परिस्थितियों से प्रभावित हुए बिना वह रह ही नहीं सकता, इसीलिए कि वह स्वयं जगत का ही एक अंग है। जीवन में जो क्रियाएं हो रही हैं साहित्यकार में उनकी प्रतिक्रिया होना स्वाभाविक और अनिवार्य है। समाज का प्रभाव साहित्यकार पर न पड़े, यह असंभव है। हां, साहित्यकार पलायन अवश्य कर सकता है, आंख बंद कर सकता है जैसा कि दरबारी कवियों ने किया। आज की परिस्थितियां बिल्कुल भिन्न हैं। पात्रों और परिस्थिति का ख्यात रखना जरुरी है, क्योंकि इनका ख्याल रखे बिना रस का उद्रेक नहीं हो सकता। कोरा शब्दांडबर टिकाऊ नहीं। साहित्यकार तो सामान्य व्यक्तियों की अपेक्षा कहीं अधिक सहृदय, संवेदनशील प्राणी होता है कि अपने देश और काल की ठीक-ठीक परिस्थितियों का निर्भीक चित्रण करे। यदि देश दुखी है और भूख, गुलामी और शोषण का शिकार है और साहित्यकार इन सब क्लेशों की उपेक्षा करके मौज का राग अलापता है तो वह राष्ट्रीय जीवन से कोसों दूर है, वह राष्ट्र के प्रति, साहित्य के प्रति विश्वासघात करता है। उसे साहित्यकार कहलाने का अधिकार नहीं है। साहित्यकार फोटोग्राफर मात्र नहीं है। यह उचित है कि साहित्यकार समाज का दोष जाने, परन्तु केवल उसी के यथार्थ - चित्रण से साहित्यकार का कर्तव्य पूरा नहीं हो जाता। पर साहित्यकार प्रचारक नहीं है, इसका अर्थ यह नहीं है कि उसकी रचना की सामाजिक उपादेयता नहीं होती। हमारे प्राचीन, संस्कृत के साहित्याचार्यों ने साहित्य को उपादेयता की आधार-भूमि पर प्रतिष्ठित किया है। अशिव की क्षति साहित्य का बड़ा पुनीत अनुष्ठान है। कोई साहित्यकार राष्ट्र के लिए उपयोगी साहित्य का सृजन कर रहा है, इस बात की अकेली पहचान यह है कि साहित्यकार सत्य तथा राष्ट्रीयता को अपनी श्रद्धानुसार जिस रूप में ग्रहण करे, उसी रूप में निर्भयतापूर्ण व्यक्त करे, भागे नहीं।

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    उपर्युक्‍त अनुच्‍छेद के आधार पर साहित्‍यकार के लिए पात्रों और परिस्थितियों का ख्‍याल रखना क्‍यों जरूरी है ?

  • Question 11
    5 / -1

    Directions For Questions

    नीचे दिए गए अनुच्छेद को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के सही/सबसे उपयुक्त उत्तर वाले विकल्प चुनिए  I

    चिनार में पर्यावरण के साथ अनुकूलन करने की विशिष्ट क्षमता होती है I यह पर्यावरण प्रदूषण को भी सरलता से सहन कर लेता है I यही कारण है कि एक विस्तृत क्षेत्र में फैलने वाला वृक्ष बन गया है I वर्तमान समय में इसे एशिया के अधिकांश देशों के साथ ही यूरोप और अमेरिका के बहुत से भागों में भी देखा जा सकता है I इंग्लैंड में, विशेष रूप से लंदन में एक बहुत बड़े क्षेत्र में चिनार से मिलते-जुलते वृक्ष पाए जाते हैं I इन वृक्षों में चिनार के सभी गुण देखने को मिलते हैं, किंतु कुछ भिन्‍नताएँ भी हैं I इनके संबंध में यह कहा जा सकता है कि इन्हें अंग्रेज़ी शासन काल में अंग्रेजों द्वारा भारत से ले जाया गया है अथवा यह भी हो सकता है कि ये चिनार की संकर प्रजातियाँ हों I

    30-40 मीटर ऊँचा और लगभग 1.2 मीटर घेरे वाला यह भव्य एवं शानदार वृक्ष कश्मीर की शोभा है I चिनार की गणना विश्व की सर्वाधिक तेजी से बढ़ने वाले वृक्षों में की जाती है I इसकी आयु भी बहुत लंबी होती है I यह वृक्ष 100 वर्षों में लगभग 30 मीटर की ऊँचाई प्राप्त कर लेता है एवं इसका तना 1 मीटर घेरे वाला हो जाता है I चिनार के वृक्षों को प्राकृतिक क्षति भी बहुत कम होती है I इसमें विभिन्‍न प्रकार की मिट्टी में अपना अस्तित्व बनाए रखने की क्षमता होती है तथा यह तेज हवाएँ भी सहन कर लेता है I इसकी जड़ों से यदि कोई छेड़छाड़ की जाए तो भी यह नष्ट नहीं होता I चिनार की एक प्रमुख विशेषता यह है कि इसके पाँच मीटर ऊँचे वृक्ष को भी एक स्थान से उखाड़ कर दूसरे स्थान पर लगा सकते हैं I

    उत्तर भारत का यह शानदार विशाल वृक्ष पूरे वर्ष भर बहुत सुंदर दिखता है, किंतु सर्दियों के मौसम में अपने तने और फूलों के कारण यह सर्वाधिक सुंदर दिखाई देता है I 

    आजकल चिनार को उत्तर भारत के कुछ अन्य स्थानों पर लगाने के प्रयास किए जा रहे हैं I इस कार्य में कुछ सफलता भी प्राप्त हुई है I अब हमें कश्मीर के साथ ही नई दिल्‍ली, मेरठ, देहरादून, चंडीगढ़ आदि स्थानों पर चिनार वृक्ष देखने को मिल जाएँगे, किंतु इन वृक्षों में कश्मीर के चिनार वृक्षों जैसी ऊँचाई और फैलाव नहीं है I

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    विश्व में सबसे तेजी से बढ़ने वाला वृक्ष है -

  • Question 12
    5 / -1

    Directions For Questions

    नीचे दिए गए अनुच्छेद को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के सही/सबसे उपयुक्त उत्तर वाले विकल्प चुनिए  I

    चिनार में पर्यावरण के साथ अनुकूलन करने की विशिष्ट क्षमता होती है I यह पर्यावरण प्रदूषण को भी सरलता से सहन कर लेता है I यही कारण है कि एक विस्तृत क्षेत्र में फैलने वाला वृक्ष बन गया है I वर्तमान समय में इसे एशिया के अधिकांश देशों के साथ ही यूरोप और अमेरिका के बहुत से भागों में भी देखा जा सकता है I इंग्लैंड में, विशेष रूप से लंदन में एक बहुत बड़े क्षेत्र में चिनार से मिलते-जुलते वृक्ष पाए जाते हैं I इन वृक्षों में चिनार के सभी गुण देखने को मिलते हैं, किंतु कुछ भिन्‍नताएँ भी हैं I इनके संबंध में यह कहा जा सकता है कि इन्हें अंग्रेज़ी शासन काल में अंग्रेजों द्वारा भारत से ले जाया गया है अथवा यह भी हो सकता है कि ये चिनार की संकर प्रजातियाँ हों I

    30-40 मीटर ऊँचा और लगभग 1.2 मीटर घेरे वाला यह भव्य एवं शानदार वृक्ष कश्मीर की शोभा है I चिनार की गणना विश्व की सर्वाधिक तेजी से बढ़ने वाले वृक्षों में की जाती है I इसकी आयु भी बहुत लंबी होती है I यह वृक्ष 100 वर्षों में लगभग 30 मीटर की ऊँचाई प्राप्त कर लेता है एवं इसका तना 1 मीटर घेरे वाला हो जाता है I चिनार के वृक्षों को प्राकृतिक क्षति भी बहुत कम होती है I इसमें विभिन्‍न प्रकार की मिट्टी में अपना अस्तित्व बनाए रखने की क्षमता होती है तथा यह तेज हवाएँ भी सहन कर लेता है I इसकी जड़ों से यदि कोई छेड़छाड़ की जाए तो भी यह नष्ट नहीं होता I चिनार की एक प्रमुख विशेषता यह है कि इसके पाँच मीटर ऊँचे वृक्ष को भी एक स्थान से उखाड़ कर दूसरे स्थान पर लगा सकते हैं I

    उत्तर भारत का यह शानदार विशाल वृक्ष पूरे वर्ष भर बहुत सुंदर दिखता है, किंतु सर्दियों के मौसम में अपने तने और फूलों के कारण यह सर्वाधिक सुंदर दिखाई देता है I 

    आजकल चिनार को उत्तर भारत के कुछ अन्य स्थानों पर लगाने के प्रयास किए जा रहे हैं I इस कार्य में कुछ सफलता भी प्राप्त हुई है I अब हमें कश्मीर के साथ ही नई दिल्‍ली, मेरठ, देहरादून, चंडीगढ़ आदि स्थानों पर चिनार वृक्ष देखने को मिल जाएँगे, किंतु इन वृक्षों में कश्मीर के चिनार वृक्षों जैसी ऊँचाई और फैलाव नहीं है I

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    'ऊँचाई' शब्द है -

  • Question 13
    5 / -1

    Directions For Questions

    नीचे दिए गए अनुच्छेद को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के सही/सबसे उपयुक्त उत्तर वाले विकल्प चुनिए  I

    चिनार में पर्यावरण के साथ अनुकूलन करने की विशिष्ट क्षमता होती है I यह पर्यावरण प्रदूषण को भी सरलता से सहन कर लेता है I यही कारण है कि एक विस्तृत क्षेत्र में फैलने वाला वृक्ष बन गया है I वर्तमान समय में इसे एशिया के अधिकांश देशों के साथ ही यूरोप और अमेरिका के बहुत से भागों में भी देखा जा सकता है I इंग्लैंड में, विशेष रूप से लंदन में एक बहुत बड़े क्षेत्र में चिनार से मिलते-जुलते वृक्ष पाए जाते हैं I इन वृक्षों में चिनार के सभी गुण देखने को मिलते हैं, किंतु कुछ भिन्‍नताएँ भी हैं I इनके संबंध में यह कहा जा सकता है कि इन्हें अंग्रेज़ी शासन काल में अंग्रेजों द्वारा भारत से ले जाया गया है अथवा यह भी हो सकता है कि ये चिनार की संकर प्रजातियाँ हों I

    30-40 मीटर ऊँचा और लगभग 1.2 मीटर घेरे वाला यह भव्य एवं शानदार वृक्ष कश्मीर की शोभा है I चिनार की गणना विश्व की सर्वाधिक तेजी से बढ़ने वाले वृक्षों में की जाती है I इसकी आयु भी बहुत लंबी होती है I यह वृक्ष 100 वर्षों में लगभग 30 मीटर की ऊँचाई प्राप्त कर लेता है एवं इसका तना 1 मीटर घेरे वाला हो जाता है I चिनार के वृक्षों को प्राकृतिक क्षति भी बहुत कम होती है I इसमें विभिन्‍न प्रकार की मिट्टी में अपना अस्तित्व बनाए रखने की क्षमता होती है तथा यह तेज हवाएँ भी सहन कर लेता है I इसकी जड़ों से यदि कोई छेड़छाड़ की जाए तो भी यह नष्ट नहीं होता I चिनार की एक प्रमुख विशेषता यह है कि इसके पाँच मीटर ऊँचे वृक्ष को भी एक स्थान से उखाड़ कर दूसरे स्थान पर लगा सकते हैं I

    उत्तर भारत का यह शानदार विशाल वृक्ष पूरे वर्ष भर बहुत सुंदर दिखता है, किंतु सर्दियों के मौसम में अपने तने और फूलों के कारण यह सर्वाधिक सुंदर दिखाई देता है I 

    आजकल चिनार को उत्तर भारत के कुछ अन्य स्थानों पर लगाने के प्रयास किए जा रहे हैं I इस कार्य में कुछ सफलता भी प्राप्त हुई है I अब हमें कश्मीर के साथ ही नई दिल्‍ली, मेरठ, देहरादून, चंडीगढ़ आदि स्थानों पर चिनार वृक्ष देखने को मिल जाएँगे, किंतु इन वृक्षों में कश्मीर के चिनार वृक्षों जैसी ऊँचाई और फैलाव नहीं है I

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    उत्तर भारत में चिनार के वृक्ष कहाँ मिलेंगे?

  • Question 14
    5 / -1

    Directions For Questions

    नीचे दिए गए अनुच्छेद को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के सही/सबसे उपयुक्त उत्तर वाले विकल्प चुनिए  I

    चिनार में पर्यावरण के साथ अनुकूलन करने की विशिष्ट क्षमता होती है I यह पर्यावरण प्रदूषण को भी सरलता से सहन कर लेता है I यही कारण है कि एक विस्तृत क्षेत्र में फैलने वाला वृक्ष बन गया है I वर्तमान समय में इसे एशिया के अधिकांश देशों के साथ ही यूरोप और अमेरिका के बहुत से भागों में भी देखा जा सकता है I इंग्लैंड में, विशेष रूप से लंदन में एक बहुत बड़े क्षेत्र में चिनार से मिलते-जुलते वृक्ष पाए जाते हैं I इन वृक्षों में चिनार के सभी गुण देखने को मिलते हैं, किंतु कुछ भिन्‍नताएँ भी हैं I इनके संबंध में यह कहा जा सकता है कि इन्हें अंग्रेज़ी शासन काल में अंग्रेजों द्वारा भारत से ले जाया गया है अथवा यह भी हो सकता है कि ये चिनार की संकर प्रजातियाँ हों I

    30-40 मीटर ऊँचा और लगभग 1.2 मीटर घेरे वाला यह भव्य एवं शानदार वृक्ष कश्मीर की शोभा है I चिनार की गणना विश्व की सर्वाधिक तेजी से बढ़ने वाले वृक्षों में की जाती है I इसकी आयु भी बहुत लंबी होती है I यह वृक्ष 100 वर्षों में लगभग 30 मीटर की ऊँचाई प्राप्त कर लेता है एवं इसका तना 1 मीटर घेरे वाला हो जाता है I चिनार के वृक्षों को प्राकृतिक क्षति भी बहुत कम होती है I इसमें विभिन्‍न प्रकार की मिट्टी में अपना अस्तित्व बनाए रखने की क्षमता होती है तथा यह तेज हवाएँ भी सहन कर लेता है I इसकी जड़ों से यदि कोई छेड़छाड़ की जाए तो भी यह नष्ट नहीं होता I चिनार की एक प्रमुख विशेषता यह है कि इसके पाँच मीटर ऊँचे वृक्ष को भी एक स्थान से उखाड़ कर दूसरे स्थान पर लगा सकते हैं I

    उत्तर भारत का यह शानदार विशाल वृक्ष पूरे वर्ष भर बहुत सुंदर दिखता है, किंतु सर्दियों के मौसम में अपने तने और फूलों के कारण यह सर्वाधिक सुंदर दिखाई देता है I 

    आजकल चिनार को उत्तर भारत के कुछ अन्य स्थानों पर लगाने के प्रयास किए जा रहे हैं I इस कार्य में कुछ सफलता भी प्राप्त हुई है I अब हमें कश्मीर के साथ ही नई दिल्‍ली, मेरठ, देहरादून, चंडीगढ़ आदि स्थानों पर चिनार वृक्ष देखने को मिल जाएँगे, किंतु इन वृक्षों में कश्मीर के चिनार वृक्षों जैसी ऊँचाई और फैलाव नहीं है I

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    चिनार वृक्ष की विशेषता नहीं है -

  • Question 15
    5 / -1

    Directions For Questions

    नीचे दिए गए अनुच्छेद को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के सही/सबसे उपयुक्त उत्तर वाले विकल्प चुनिए  I

    चिनार में पर्यावरण के साथ अनुकूलन करने की विशिष्ट क्षमता होती है I यह पर्यावरण प्रदूषण को भी सरलता से सहन कर लेता है I यही कारण है कि एक विस्तृत क्षेत्र में फैलने वाला वृक्ष बन गया है I वर्तमान समय में इसे एशिया के अधिकांश देशों के साथ ही यूरोप और अमेरिका के बहुत से भागों में भी देखा जा सकता है I इंग्लैंड में, विशेष रूप से लंदन में एक बहुत बड़े क्षेत्र में चिनार से मिलते-जुलते वृक्ष पाए जाते हैं I इन वृक्षों में चिनार के सभी गुण देखने को मिलते हैं, किंतु कुछ भिन्‍नताएँ भी हैं I इनके संबंध में यह कहा जा सकता है कि इन्हें अंग्रेज़ी शासन काल में अंग्रेजों द्वारा भारत से ले जाया गया है अथवा यह भी हो सकता है कि ये चिनार की संकर प्रजातियाँ हों I

    30-40 मीटर ऊँचा और लगभग 1.2 मीटर घेरे वाला यह भव्य एवं शानदार वृक्ष कश्मीर की शोभा है I चिनार की गणना विश्व की सर्वाधिक तेजी से बढ़ने वाले वृक्षों में की जाती है I इसकी आयु भी बहुत लंबी होती है I यह वृक्ष 100 वर्षों में लगभग 30 मीटर की ऊँचाई प्राप्त कर लेता है एवं इसका तना 1 मीटर घेरे वाला हो जाता है I चिनार के वृक्षों को प्राकृतिक क्षति भी बहुत कम होती है I इसमें विभिन्‍न प्रकार की मिट्टी में अपना अस्तित्व बनाए रखने की क्षमता होती है तथा यह तेज हवाएँ भी सहन कर लेता है I इसकी जड़ों से यदि कोई छेड़छाड़ की जाए तो भी यह नष्ट नहीं होता I चिनार की एक प्रमुख विशेषता यह है कि इसके पाँच मीटर ऊँचे वृक्ष को भी एक स्थान से उखाड़ कर दूसरे स्थान पर लगा सकते हैं I

    उत्तर भारत का यह शानदार विशाल वृक्ष पूरे वर्ष भर बहुत सुंदर दिखता है, किंतु सर्दियों के मौसम में अपने तने और फूलों के कारण यह सर्वाधिक सुंदर दिखाई देता है I 

    आजकल चिनार को उत्तर भारत के कुछ अन्य स्थानों पर लगाने के प्रयास किए जा रहे हैं I इस कार्य में कुछ सफलता भी प्राप्त हुई है I अब हमें कश्मीर के साथ ही नई दिल्‍ली, मेरठ, देहरादून, चंडीगढ़ आदि स्थानों पर चिनार वृक्ष देखने को मिल जाएँगे, किंतु इन वृक्षों में कश्मीर के चिनार वृक्षों जैसी ऊँचाई और फैलाव नहीं है I

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    पर्यावरण के साथ अनुकूलन क्षमता के कारण चिनार -

  • Question 16
    5 / -1

    Directions For Questions

    दिये गए गद्यांश का ध्यानपूर्वक अध्ययन कर प्रश्नों का उत्तर दीजिए।

    कोई भी देश सामाजिक आर्थिक मोर्चे पर अग्रणी तभी दिख सकता है, जब वहां शिक्षा प्रणाली सभी वर्गों के लिए समान और सुलभकारी हो। अगर सामाजिक मसलों पर पिछड़ने के कारण तलाशें तो कहीं न कहीं विसंगतिपूर्ण शिक्षा प्रणाली महत्वपूर्ण कारण है।

    आजादी के छह दशक बाद भी समान शिक्षा प्रणाली की अवधारणा भारतीय समाज के लिए सपना है। दुनिया के सर्वाधिक निरक्षर लोगों की आबादी में 35 फीसद भारत में है। एजूकेशन फॉर ऑल मॉनिटरिंग रिपोर्ट पर विश्वास करें तो दुनिया की सर्वाधिक निरक्षर आबादी के साथ भारत प्रगति कर रहा है। पर इस विद्रूप प्रगति का लाभ निरक्षरता हटाने में कितना लाभकारी सिद्ध होगा, यह आने वाला वक्त बताएगा।

    संविधान के 86 में संशोधन अधिनियम 2002 द्वारा 21(A) जोड़ा गया, जो यह प्रावधान करता है कि राज्य विधि बनाकर 6 से 14 वर्ष के सभी बालकों के लिए निशुल्क शिक्षा अनिवार्य के लिए अपबंद करेगा। इस अधिकार को व्यवहारिक रूप देने के लिए संसद में निशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा अधिनियम 2009 पारित किया गया। जो 1 अप्रैल 2010 से लागू हुआ। इस अधिनियम में 7 अध्याय तथा 38 खण्ड हैं। इस अधिनियम के अंतर्गत 6-14 वर्ष के लगभग 22 करोड़ बच्चों में से 92 लाख (4.6 percent) बच्चे विद्यालय नहीं जा पाते हैं, जिनकी शिक्षा के लिए 1.71 लाख करोड़ रुपये की 5 वर्षो में आवश्यकता होती है। जिसमें से कुछ राशि वित्त आयोग राज्यों को देता है।

    स्वर्गीय गोपाल कृष्ण गोखले ने 18 मार्च 1910 में ही भारत में "मुफ्त और अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा" के प्रावधान के लिए ब्रिटिश विधान परिषद्‌ के समक्ष प्रस्ताव रखा था, जो निहित स्वार्थों के विरोध के चलते अंततः ख़ारिज हो गया था।

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    उपरोक्त गद्यांश के अनुसार राज्य विधि बनाकर किस वर्ग के सभी बालकों के लिए निशुल्क शिक्षा अनिवार्य के लिए अपबंद करेगा।

  • Question 17
    5 / -1

    Directions For Questions

    दिये गए गद्यांश का ध्यानपूर्वक अध्ययन कर प्रश्नों का उत्तर दीजिए।

    कोई भी देश सामाजिक आर्थिक मोर्चे पर अग्रणी तभी दिख सकता है, जब वहां शिक्षा प्रणाली सभी वर्गों के लिए समान और सुलभकारी हो। अगर सामाजिक मसलों पर पिछड़ने के कारण तलाशें तो कहीं न कहीं विसंगतिपूर्ण शिक्षा प्रणाली महत्वपूर्ण कारण है।

    आजादी के छह दशक बाद भी समान शिक्षा प्रणाली की अवधारणा भारतीय समाज के लिए सपना है। दुनिया के सर्वाधिक निरक्षर लोगों की आबादी में 35 फीसद भारत में है। एजूकेशन फॉर ऑल मॉनिटरिंग रिपोर्ट पर विश्वास करें तो दुनिया की सर्वाधिक निरक्षर आबादी के साथ भारत प्रगति कर रहा है। पर इस विद्रूप प्रगति का लाभ निरक्षरता हटाने में कितना लाभकारी सिद्ध होगा, यह आने वाला वक्त बताएगा।

    संविधान के 86 में संशोधन अधिनियम 2002 द्वारा 21(A) जोड़ा गया, जो यह प्रावधान करता है कि राज्य विधि बनाकर 6 से 14 वर्ष के सभी बालकों के लिए निशुल्क शिक्षा अनिवार्य के लिए अपबंद करेगा। इस अधिकार को व्यवहारिक रूप देने के लिए संसद में निशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा अधिनियम 2009 पारित किया गया। जो 1 अप्रैल 2010 से लागू हुआ। इस अधिनियम में 7 अध्याय तथा 38 खण्ड हैं। इस अधिनियम के अंतर्गत 6-14 वर्ष के लगभग 22 करोड़ बच्चों में से 92 लाख (4.6 percent) बच्चे विद्यालय नहीं जा पाते हैं, जिनकी शिक्षा के लिए 1.71 लाख करोड़ रुपये की 5 वर्षो में आवश्यकता होती है। जिसमें से कुछ राशि वित्त आयोग राज्यों को देता है।

    स्वर्गीय गोपाल कृष्ण गोखले ने 18 मार्च 1910 में ही भारत में "मुफ्त और अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा" के प्रावधान के लिए ब्रिटिश विधान परिषद्‌ के समक्ष प्रस्ताव रखा था, जो निहित स्वार्थों के विरोध के चलते अंततः ख़ारिज हो गया था।

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    उपरोक्त गद्यांश का उचित शीर्षक है-

  • Question 18
    5 / -1

    Directions For Questions

    दिये गए गद्यांश का ध्यानपूर्वक अध्ययन कर प्रश्नों का उत्तर दीजिए।

    कोई भी देश सामाजिक आर्थिक मोर्चे पर अग्रणी तभी दिख सकता है, जब वहां शिक्षा प्रणाली सभी वर्गों के लिए समान और सुलभकारी हो। अगर सामाजिक मसलों पर पिछड़ने के कारण तलाशें तो कहीं न कहीं विसंगतिपूर्ण शिक्षा प्रणाली महत्वपूर्ण कारण है।

    आजादी के छह दशक बाद भी समान शिक्षा प्रणाली की अवधारणा भारतीय समाज के लिए सपना है। दुनिया के सर्वाधिक निरक्षर लोगों की आबादी में 35 फीसद भारत में है। एजूकेशन फॉर ऑल मॉनिटरिंग रिपोर्ट पर विश्वास करें तो दुनिया की सर्वाधिक निरक्षर आबादी के साथ भारत प्रगति कर रहा है। पर इस विद्रूप प्रगति का लाभ निरक्षरता हटाने में कितना लाभकारी सिद्ध होगा, यह आने वाला वक्त बताएगा।

    संविधान के 86 में संशोधन अधिनियम 2002 द्वारा 21(A) जोड़ा गया, जो यह प्रावधान करता है कि राज्य विधि बनाकर 6 से 14 वर्ष के सभी बालकों के लिए निशुल्क शिक्षा अनिवार्य के लिए अपबंद करेगा। इस अधिकार को व्यवहारिक रूप देने के लिए संसद में निशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा अधिनियम 2009 पारित किया गया। जो 1 अप्रैल 2010 से लागू हुआ। इस अधिनियम में 7 अध्याय तथा 38 खण्ड हैं। इस अधिनियम के अंतर्गत 6-14 वर्ष के लगभग 22 करोड़ बच्चों में से 92 लाख (4.6 percent) बच्चे विद्यालय नहीं जा पाते हैं, जिनकी शिक्षा के लिए 1.71 लाख करोड़ रुपये की 5 वर्षो में आवश्यकता होती है। जिसमें से कुछ राशि वित्त आयोग राज्यों को देता है।

    स्वर्गीय गोपाल कृष्ण गोखले ने 18 मार्च 1910 में ही भारत में "मुफ्त और अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा" के प्रावधान के लिए ब्रिटिश विधान परिषद्‌ के समक्ष प्रस्ताव रखा था, जो निहित स्वार्थों के विरोध के चलते अंततः ख़ारिज हो गया था।

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    उपरोक्त गद्यांश के अनुसार भारत में "मुफ्त और अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा" के प्रावधान के लिए ब्रिटिश विधान परिषद्‌ के समक्ष प्रस्ताव किसने रखा था?

  • Question 19
    5 / -1

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    दिये गए गद्यांश का ध्यानपूर्वक अध्ययन कर प्रश्नों का उत्तर दीजिए।

    कोई भी देश सामाजिक आर्थिक मोर्चे पर अग्रणी तभी दिख सकता है, जब वहां शिक्षा प्रणाली सभी वर्गों के लिए समान और सुलभकारी हो। अगर सामाजिक मसलों पर पिछड़ने के कारण तलाशें तो कहीं न कहीं विसंगतिपूर्ण शिक्षा प्रणाली महत्वपूर्ण कारण है।

    आजादी के छह दशक बाद भी समान शिक्षा प्रणाली की अवधारणा भारतीय समाज के लिए सपना है। दुनिया के सर्वाधिक निरक्षर लोगों की आबादी में 35 फीसद भारत में है। एजूकेशन फॉर ऑल मॉनिटरिंग रिपोर्ट पर विश्वास करें तो दुनिया की सर्वाधिक निरक्षर आबादी के साथ भारत प्रगति कर रहा है। पर इस विद्रूप प्रगति का लाभ निरक्षरता हटाने में कितना लाभकारी सिद्ध होगा, यह आने वाला वक्त बताएगा।

    संविधान के 86 में संशोधन अधिनियम 2002 द्वारा 21(A) जोड़ा गया, जो यह प्रावधान करता है कि राज्य विधि बनाकर 6 से 14 वर्ष के सभी बालकों के लिए निशुल्क शिक्षा अनिवार्य के लिए अपबंद करेगा। इस अधिकार को व्यवहारिक रूप देने के लिए संसद में निशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा अधिनियम 2009 पारित किया गया। जो 1 अप्रैल 2010 से लागू हुआ। इस अधिनियम में 7 अध्याय तथा 38 खण्ड हैं। इस अधिनियम के अंतर्गत 6-14 वर्ष के लगभग 22 करोड़ बच्चों में से 92 लाख (4.6 percent) बच्चे विद्यालय नहीं जा पाते हैं, जिनकी शिक्षा के लिए 1.71 लाख करोड़ रुपये की 5 वर्षो में आवश्यकता होती है। जिसमें से कुछ राशि वित्त आयोग राज्यों को देता है।

    स्वर्गीय गोपाल कृष्ण गोखले ने 18 मार्च 1910 में ही भारत में "मुफ्त और अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा" के प्रावधान के लिए ब्रिटिश विधान परिषद्‌ के समक्ष प्रस्ताव रखा था, जो निहित स्वार्थों के विरोध के चलते अंततः ख़ारिज हो गया था।

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    उपरोक्त गद्यांश के अनुसार शिक्षा अधिनियम 2009, जो 1 अप्रैल 2010 से लागू हुआ। इसमें कितने अधिनियम एवं खण्ड हैं?

  • Question 20
    5 / -1

    Directions For Questions

    दिये गए गद्यांश का ध्यानपूर्वक अध्ययन कर प्रश्नों का उत्तर दीजिए।

    कोई भी देश सामाजिक आर्थिक मोर्चे पर अग्रणी तभी दिख सकता है, जब वहां शिक्षा प्रणाली सभी वर्गों के लिए समान और सुलभकारी हो। अगर सामाजिक मसलों पर पिछड़ने के कारण तलाशें तो कहीं न कहीं विसंगतिपूर्ण शिक्षा प्रणाली महत्वपूर्ण कारण है।

    आजादी के छह दशक बाद भी समान शिक्षा प्रणाली की अवधारणा भारतीय समाज के लिए सपना है। दुनिया के सर्वाधिक निरक्षर लोगों की आबादी में 35 फीसद भारत में है। एजूकेशन फॉर ऑल मॉनिटरिंग रिपोर्ट पर विश्वास करें तो दुनिया की सर्वाधिक निरक्षर आबादी के साथ भारत प्रगति कर रहा है। पर इस विद्रूप प्रगति का लाभ निरक्षरता हटाने में कितना लाभकारी सिद्ध होगा, यह आने वाला वक्त बताएगा।

    संविधान के 86 में संशोधन अधिनियम 2002 द्वारा 21(A) जोड़ा गया, जो यह प्रावधान करता है कि राज्य विधि बनाकर 6 से 14 वर्ष के सभी बालकों के लिए निशुल्क शिक्षा अनिवार्य के लिए अपबंद करेगा। इस अधिकार को व्यवहारिक रूप देने के लिए संसद में निशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा अधिनियम 2009 पारित किया गया। जो 1 अप्रैल 2010 से लागू हुआ। इस अधिनियम में 7 अध्याय तथा 38 खण्ड हैं। इस अधिनियम के अंतर्गत 6-14 वर्ष के लगभग 22 करोड़ बच्चों में से 92 लाख (4.6 percent) बच्चे विद्यालय नहीं जा पाते हैं, जिनकी शिक्षा के लिए 1.71 लाख करोड़ रुपये की 5 वर्षो में आवश्यकता होती है। जिसमें से कुछ राशि वित्त आयोग राज्यों को देता है।

    स्वर्गीय गोपाल कृष्ण गोखले ने 18 मार्च 1910 में ही भारत में "मुफ्त और अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा" के प्रावधान के लिए ब्रिटिश विधान परिषद्‌ के समक्ष प्रस्ताव रखा था, जो निहित स्वार्थों के विरोध के चलते अंततः ख़ारिज हो गया था।

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    उपरोक्त गद्यांश के अनुसार विश्व के सर्वाधिक निरक्षर लोगों की आबादी में 35 फीसद किस देश में है?

  • Question 21
    5 / -1

    Directions For Questions

    दिए गए गद्यांश को पढ़िए और उसके बाद आने वाले प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
    एक समय की बात है, एक बार एक घने जंगल में एक खूँखार बाघ रहता था, जिसे जानवरों को मारने में खुशी मिलती थी, भले ही वह भूखा न हो। सभी पक्षी और जानवर उससे डरते थे और उससे बचने का प्रयास करते थे। एक दिन बाघ ने एक जानवर को मार डाला, और उसे खाने के दौरान, उसके गले में एक छोटी हड्डी फंस गई। बाघ बहुत दर्द में था। उसने रोना शुरू कर दिया और जंगल में प्रत्येक पक्षी और जानवर से हड्डी निकालने का अनुरोध किया। लेकिन कोई भी उसकी मदद करने नहीं आया। अंत में उसने जो भी उसकी मदद करेगा उसके लिए इनाम की घोषणा की। फिर भी कोई भी उसके पास आने की हिम्मत नहीं करता क्योंकि कोई भी उस पर भरोसा नहीं करता था। वे जानते थे कि जैसे ही हड्डी बाहर निकाली जाएगी, वैसे ही खूखार बाघ सहायक को मार देगा। बाघ खुद को दुखी महसूस कर रहा था और मदद के लिए अनुरोध कर रहा था। आखिरकार, बाघ की दुखी स्थिति को देखकर, एक दयालु सारस ने उस पर दया की और कहा, "देखो, आपकी प्रतिष्ठा खराब है। कोई भी आप पर भरोसा नहीं करता है। लेकिन, अगर आप मुझे इनाम देने का वादा करें और यह वादा करें कि आपकी हड्डी निकालने के बाद आप मुझे मारोगे नहीं, तो मैं आपकी मदद करने के लिए तैयार हूं।" बाघ ने कहा, "मैं एक दयालु दोस्त को कैसे मार सकता हूं जो मुझे इस दर्द से राहत दिलाने में मदद करेगा? मैं आपको नहीं मारने का वादा करता हूं, और आपकी इच्छा के अनुसार आपको बहुत सारे इनाम देने का वादा करता हूं।"
    इस पर, सारस ने अपनी लंबी गर्दन बाघ के मुंह में डाली और उसके तेज चोंच ने हड्डी को आसानी से खींच लिया। आराम मिलते ही तुरंत कृतघ्न बाघ ने जवाब दिया, "मूर्ख सारस, बाघ से इनाम पूछने की हिम्मत कैसे कर सकते हो? अपने सितारों का शुक्रिया अदा करो कि तुम मारे नहीं गए। अगर मैं दयालु नहीं होता, तो आप जीवित नहीं रहते: जब आपने मेरे व्यापक मुंह में अपना सिर डाला था तो मैं तुम्हारे सिर को चबा सकता था। इसे ही अपना बड़ा इनाम समझो।"

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    गद्यांश के अनुसार किसकी प्रतिष्ठा अच्छी नहीं थी?

  • Question 22
    5 / -1

    Directions For Questions

    दिए गए गद्यांश को पढ़िए और उसके बाद आने वाले प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
    एक समय की बात है, एक बार एक घने जंगल में एक खूँखार बाघ रहता था, जिसे जानवरों को मारने में खुशी मिलती थी, भले ही वह भूखा न हो। सभी पक्षी और जानवर उससे डरते थे और उससे बचने का प्रयास करते थे। एक दिन बाघ ने एक जानवर को मार डाला, और उसे खाने के दौरान, उसके गले में एक छोटी हड्डी फंस गई। बाघ बहुत दर्द में था। उसने रोना शुरू कर दिया और जंगल में प्रत्येक पक्षी और जानवर से हड्डी निकालने का अनुरोध किया। लेकिन कोई भी उसकी मदद करने नहीं आया। अंत में उसने जो भी उसकी मदद करेगा उसके लिए इनाम की घोषणा की। फिर भी कोई भी उसके पास आने की हिम्मत नहीं करता क्योंकि कोई भी उस पर भरोसा नहीं करता था। वे जानते थे कि जैसे ही हड्डी बाहर निकाली जाएगी, वैसे ही खूखार बाघ सहायक को मार देगा। बाघ खुद को दुखी महसूस कर रहा था और मदद के लिए अनुरोध कर रहा था। आखिरकार, बाघ की दुखी स्थिति को देखकर, एक दयालु सारस ने उस पर दया की और कहा, "देखो, आपकी प्रतिष्ठा खराब है। कोई भी आप पर भरोसा नहीं करता है। लेकिन, अगर आप मुझे इनाम देने का वादा करें और यह वादा करें कि आपकी हड्डी निकालने के बाद आप मुझे मारोगे नहीं, तो मैं आपकी मदद करने के लिए तैयार हूं।" बाघ ने कहा, "मैं एक दयालु दोस्त को कैसे मार सकता हूं जो मुझे इस दर्द से राहत दिलाने में मदद करेगा? मैं आपको नहीं मारने का वादा करता हूं, और आपकी इच्छा के अनुसार आपको बहुत सारे इनाम देने का वादा करता हूं।"
    इस पर, सारस ने अपनी लंबी गर्दन बाघ के मुंह में डाली और उसके तेज चोंच ने हड्डी को आसानी से खींच लिया। आराम मिलते ही तुरंत कृतघ्न बाघ ने जवाब दिया, "मूर्ख सारस, बाघ से इनाम पूछने की हिम्मत कैसे कर सकते हो? अपने सितारों का शुक्रिया अदा करो कि तुम मारे नहीं गए। अगर मैं दयालु नहीं होता, तो आप जीवित नहीं रहते: जब आपने मेरे व्यापक मुंह में अपना सिर डाला था तो मैं तुम्हारे सिर को चबा सकता था। इसे ही अपना बड़ा इनाम समझो।"

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    बाघ मदद के लिए अनुरोध कर रहा था क्योंकि...........

  • Question 23
    5 / -1

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    दिए गए गद्यांश को पढ़िए और उसके बाद आने वाले प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
    एक समय की बात है, एक बार एक घने जंगल में एक खूँखार बाघ रहता था, जिसे जानवरों को मारने में खुशी मिलती थी, भले ही वह भूखा न हो। सभी पक्षी और जानवर उससे डरते थे और उससे बचने का प्रयास करते थे। एक दिन बाघ ने एक जानवर को मार डाला, और उसे खाने के दौरान, उसके गले में एक छोटी हड्डी फंस गई। बाघ बहुत दर्द में था। उसने रोना शुरू कर दिया और जंगल में प्रत्येक पक्षी और जानवर से हड्डी निकालने का अनुरोध किया। लेकिन कोई भी उसकी मदद करने नहीं आया। अंत में उसने जो भी उसकी मदद करेगा उसके लिए इनाम की घोषणा की। फिर भी कोई भी उसके पास आने की हिम्मत नहीं करता क्योंकि कोई भी उस पर भरोसा नहीं करता था। वे जानते थे कि जैसे ही हड्डी बाहर निकाली जाएगी, वैसे ही खूखार बाघ सहायक को मार देगा। बाघ खुद को दुखी महसूस कर रहा था और मदद के लिए अनुरोध कर रहा था। आखिरकार, बाघ की दुखी स्थिति को देखकर, एक दयालु सारस ने उस पर दया की और कहा, "देखो, आपकी प्रतिष्ठा खराब है। कोई भी आप पर भरोसा नहीं करता है। लेकिन, अगर आप मुझे इनाम देने का वादा करें और यह वादा करें कि आपकी हड्डी निकालने के बाद आप मुझे मारोगे नहीं, तो मैं आपकी मदद करने के लिए तैयार हूं।" बाघ ने कहा, "मैं एक दयालु दोस्त को कैसे मार सकता हूं जो मुझे इस दर्द से राहत दिलाने में मदद करेगा? मैं आपको नहीं मारने का वादा करता हूं, और आपकी इच्छा के अनुसार आपको बहुत सारे इनाम देने का वादा करता हूं।"
    इस पर, सारस ने अपनी लंबी गर्दन बाघ के मुंह में डाली और उसके तेज चोंच ने हड्डी को आसानी से खींच लिया। आराम मिलते ही तुरंत कृतघ्न बाघ ने जवाब दिया, "मूर्ख सारस, बाघ से इनाम पूछने की हिम्मत कैसे कर सकते हो? अपने सितारों का शुक्रिया अदा करो कि तुम मारे नहीं गए। अगर मैं दयालु नहीं होता, तो आप जीवित नहीं रहते: जब आपने मेरे व्यापक मुंह में अपना सिर डाला था तो मैं तुम्हारे सिर को चबा सकता था। इसे ही अपना बड़ा इनाम समझो।"

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    कहानी पढ़ने के बाद हम कह सकते हैं कि बाघ ........था।

  • Question 24
    5 / -1

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    दिए गए गद्यांश को पढ़िए और उसके बाद आने वाले प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
    एक समय की बात है, एक बार एक घने जंगल में एक खूँखार बाघ रहता था, जिसे जानवरों को मारने में खुशी मिलती थी, भले ही वह भूखा न हो। सभी पक्षी और जानवर उससे डरते थे और उससे बचने का प्रयास करते थे। एक दिन बाघ ने एक जानवर को मार डाला, और उसे खाने के दौरान, उसके गले में एक छोटी हड्डी फंस गई। बाघ बहुत दर्द में था। उसने रोना शुरू कर दिया और जंगल में प्रत्येक पक्षी और जानवर से हड्डी निकालने का अनुरोध किया। लेकिन कोई भी उसकी मदद करने नहीं आया। अंत में उसने जो भी उसकी मदद करेगा उसके लिए इनाम की घोषणा की। फिर भी कोई भी उसके पास आने की हिम्मत नहीं करता क्योंकि कोई भी उस पर भरोसा नहीं करता था। वे जानते थे कि जैसे ही हड्डी बाहर निकाली जाएगी, वैसे ही खूखार बाघ सहायक को मार देगा। बाघ खुद को दुखी महसूस कर रहा था और मदद के लिए अनुरोध कर रहा था। आखिरकार, बाघ की दुखी स्थिति को देखकर, एक दयालु सारस ने उस पर दया की और कहा, "देखो, आपकी प्रतिष्ठा खराब है। कोई भी आप पर भरोसा नहीं करता है। लेकिन, अगर आप मुझे इनाम देने का वादा करें और यह वादा करें कि आपकी हड्डी निकालने के बाद आप मुझे मारोगे नहीं, तो मैं आपकी मदद करने के लिए तैयार हूं।" बाघ ने कहा, "मैं एक दयालु दोस्त को कैसे मार सकता हूं जो मुझे इस दर्द से राहत दिलाने में मदद करेगा? मैं आपको नहीं मारने का वादा करता हूं, और आपकी इच्छा के अनुसार आपको बहुत सारे इनाम देने का वादा करता हूं।"
    इस पर, सारस ने अपनी लंबी गर्दन बाघ के मुंह में डाली और उसके तेज चोंच ने हड्डी को आसानी से खींच लिया। आराम मिलते ही तुरंत कृतघ्न बाघ ने जवाब दिया, "मूर्ख सारस, बाघ से इनाम पूछने की हिम्मत कैसे कर सकते हो? अपने सितारों का शुक्रिया अदा करो कि तुम मारे नहीं गए। अगर मैं दयालु नहीं होता, तो आप जीवित नहीं रहते: जब आपने मेरे व्यापक मुंह में अपना सिर डाला था तो मैं तुम्हारे सिर को चबा सकता था। इसे ही अपना बड़ा इनाम समझो।"

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    पक्षी शब्द का सही बहुवचन है:

  • Question 25
    5 / -1

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    दिए गए गद्यांश को पढ़िए और उसके बाद आने वाले प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
    एक समय की बात है, एक बार एक घने जंगल में एक खूँखार बाघ रहता था, जिसे जानवरों को मारने में खुशी मिलती थी, भले ही वह भूखा न हो। सभी पक्षी और जानवर उससे डरते थे और उससे बचने का प्रयास करते थे। एक दिन बाघ ने एक जानवर को मार डाला, और उसे खाने के दौरान, उसके गले में एक छोटी हड्डी फंस गई। बाघ बहुत दर्द में था। उसने रोना शुरू कर दिया और जंगल में प्रत्येक पक्षी और जानवर से हड्डी निकालने का अनुरोध किया। लेकिन कोई भी उसकी मदद करने नहीं आया। अंत में उसने जो भी उसकी मदद करेगा उसके लिए इनाम की घोषणा की। फिर भी कोई भी उसके पास आने की हिम्मत नहीं करता क्योंकि कोई भी उस पर भरोसा नहीं करता था। वे जानते थे कि जैसे ही हड्डी बाहर निकाली जाएगी, वैसे ही खूखार बाघ सहायक को मार देगा। बाघ खुद को दुखी महसूस कर रहा था और मदद के लिए अनुरोध कर रहा था। आखिरकार, बाघ की दुखी स्थिति को देखकर, एक दयालु सारस ने उस पर दया की और कहा, "देखो, आपकी प्रतिष्ठा खराब है। कोई भी आप पर भरोसा नहीं करता है। लेकिन, अगर आप मुझे इनाम देने का वादा करें और यह वादा करें कि आपकी हड्डी निकालने के बाद आप मुझे मारोगे नहीं, तो मैं आपकी मदद करने के लिए तैयार हूं।" बाघ ने कहा, "मैं एक दयालु दोस्त को कैसे मार सकता हूं जो मुझे इस दर्द से राहत दिलाने में मदद करेगा? मैं आपको नहीं मारने का वादा करता हूं, और आपकी इच्छा के अनुसार आपको बहुत सारे इनाम देने का वादा करता हूं।"
    इस पर, सारस ने अपनी लंबी गर्दन बाघ के मुंह में डाली और उसके तेज चोंच ने हड्डी को आसानी से खींच लिया। आराम मिलते ही तुरंत कृतघ्न बाघ ने जवाब दिया, "मूर्ख सारस, बाघ से इनाम पूछने की हिम्मत कैसे कर सकते हो? अपने सितारों का शुक्रिया अदा करो कि तुम मारे नहीं गए। अगर मैं दयालु नहीं होता, तो आप जीवित नहीं रहते: जब आपने मेरे व्यापक मुंह में अपना सिर डाला था तो मैं तुम्हारे सिर को चबा सकता था। इसे ही अपना बड़ा इनाम समझो।"

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    'दयालु' शब्द में कौन सा प्रत्यय है?

  • Question 26
    5 / -1

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    एक गद्यांश दिया गया है गद्यांश के आधार पर पाँच प्रश्न दिए गए हैं गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़ें तथा प्रत्येक प्रश्न में चार विकल्पों में से सही विकल्प चुने

    रात्रि के अंधकार को चीरकर सूर्य पूर्व दिशा से उदय होकर चारों ओर प्रकाश फैला देता है सूर्य की किरणें वृक्षों की हरियाली को ताजगी प्रदान करती हैं पुष्पों को खिलाकर चारों ओर सुगंध फैला देती है अंधकार में डूबे नीले आकाश को रंगों से भर देती है सूर्य जब पूर्व दिशा में क्षितिज से ऊपर उठता है तो लगता है लाल रंग की बड़ी सी गेंद आकाश में उठती चली आ रही है सारा आकाश लाल, पीले, सफ़ेद रंग से नहा जाता है नीले आकाश पर रंगों की बौछार-सी हो जाती है सारी प्रकृति नए रूप में सज जाती है। पक्षी चहचहाने लगते हैं तितलियां पुष्पों पर मंडराने लगती हैं | भौंरों की गूंज से उपवन संगीतमय हो जाते हैं सभी अपने-अपने कार्य में निमग्न हो जाते हैं रात्रि लोरियों से सबको मीठी नींद में सुला देती है सूर्य उदय होकर सब को उनके कर्तव्यों का बोध कराता है प्रातः कालीन दृश्य आलौकिक लगता है सूर्य का कोमल शांत रूप हृदयों में नई ऊर्जा जागृत कर देता है

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    सूर्य उदय होकर सब को क्या याद दिलाता है?

  • Question 27
    5 / -1

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    एक गद्यांश दिया गया है गद्यांश के आधार पर पाँच प्रश्न दिए गए हैं गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़ें तथा प्रत्येक प्रश्न में चार विकल्पों में से सही विकल्प चुने

    रात्रि के अंधकार को चीरकर सूर्य पूर्व दिशा से उदय होकर चारों ओर प्रकाश फैला देता है सूर्य की किरणें वृक्षों की हरियाली को ताजगी प्रदान करती हैं पुष्पों को खिलाकर चारों ओर सुगंध फैला देती है अंधकार में डूबे नीले आकाश को रंगों से भर देती है सूर्य जब पूर्व दिशा में क्षितिज से ऊपर उठता है तो लगता है लाल रंग की बड़ी सी गेंद आकाश में उठती चली आ रही है सारा आकाश लाल, पीले, सफ़ेद रंग से नहा जाता है नीले आकाश पर रंगों की बौछार-सी हो जाती है सारी प्रकृति नए रूप में सज जाती है। पक्षी चहचहाने लगते हैं तितलियां पुष्पों पर मंडराने लगती हैं | भौंरों की गूंज से उपवन संगीतमय हो जाते हैं सभी अपने-अपने कार्य में निमग्न हो जाते हैं रात्रि लोरियों से सबको मीठी नींद में सुला देती है सूर्य उदय होकर सब को उनके कर्तव्यों का बोध कराता है प्रातः कालीन दृश्य आलौकिक लगता है सूर्य का कोमल शांत रूप हृदयों में नई ऊर्जा जागृत कर देता है

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    किसकी गूंज से उपवन संगीतमय हो जाते हैं?

  • Question 28
    5 / -1

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    एक गद्यांश दिया गया है गद्यांश के आधार पर पाँच प्रश्न दिए गए हैं गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़ें तथा प्रत्येक प्रश्न में चार विकल्पों में से सही विकल्प चुने

    रात्रि के अंधकार को चीरकर सूर्य पूर्व दिशा से उदय होकर चारों ओर प्रकाश फैला देता है सूर्य की किरणें वृक्षों की हरियाली को ताजगी प्रदान करती हैं पुष्पों को खिलाकर चारों ओर सुगंध फैला देती है अंधकार में डूबे नीले आकाश को रंगों से भर देती है सूर्य जब पूर्व दिशा में क्षितिज से ऊपर उठता है तो लगता है लाल रंग की बड़ी सी गेंद आकाश में उठती चली आ रही है सारा आकाश लाल, पीले, सफ़ेद रंग से नहा जाता है नीले आकाश पर रंगों की बौछार-सी हो जाती है सारी प्रकृति नए रूप में सज जाती है। पक्षी चहचहाने लगते हैं तितलियां पुष्पों पर मंडराने लगती हैं | भौंरों की गूंज से उपवन संगीतमय हो जाते हैं सभी अपने-अपने कार्य में निमग्न हो जाते हैं रात्रि लोरियों से सबको मीठी नींद में सुला देती है सूर्य उदय होकर सब को उनके कर्तव्यों का बोध कराता है प्रातः कालीन दृश्य आलौकिक लगता है सूर्य का कोमल शांत रूप हृदयों में नई ऊर्जा जागृत कर देता है

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    सूर्य की किरणें आकाश में क्या भर देती हैं?

  • Question 29
    5 / -1

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    एक गद्यांश दिया गया है गद्यांश के आधार पर पाँच प्रश्न दिए गए हैं गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़ें तथा प्रत्येक प्रश्न में चार विकल्पों में से सही विकल्प चुने

    रात्रि के अंधकार को चीरकर सूर्य पूर्व दिशा से उदय होकर चारों ओर प्रकाश फैला देता है सूर्य की किरणें वृक्षों की हरियाली को ताजगी प्रदान करती हैं पुष्पों को खिलाकर चारों ओर सुगंध फैला देती है अंधकार में डूबे नीले आकाश को रंगों से भर देती है सूर्य जब पूर्व दिशा में क्षितिज से ऊपर उठता है तो लगता है लाल रंग की बड़ी सी गेंद आकाश में उठती चली आ रही है सारा आकाश लाल, पीले, सफ़ेद रंग से नहा जाता है नीले आकाश पर रंगों की बौछार-सी हो जाती है सारी प्रकृति नए रूप में सज जाती है। पक्षी चहचहाने लगते हैं तितलियां पुष्पों पर मंडराने लगती हैं | भौंरों की गूंज से उपवन संगीतमय हो जाते हैं सभी अपने-अपने कार्य में निमग्न हो जाते हैं रात्रि लोरियों से सबको मीठी नींद में सुला देती है सूर्य उदय होकर सब को उनके कर्तव्यों का बोध कराता है प्रातः कालीन दृश्य आलौकिक लगता है सूर्य का कोमल शांत रूप हृदयों में नई ऊर्जा जागृत कर देता है

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    उपर्युक्त गद्यांश का शीर्षक क्या है?

  • Question 30
    5 / -1

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    एक गद्यांश दिया गया है गद्यांश के आधार पर पाँच प्रश्न दिए गए हैं गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़ें तथा प्रत्येक प्रश्न में चार विकल्पों में से सही विकल्प चुने

    रात्रि के अंधकार को चीरकर सूर्य पूर्व दिशा से उदय होकर चारों ओर प्रकाश फैला देता है सूर्य की किरणें वृक्षों की हरियाली को ताजगी प्रदान करती हैं पुष्पों को खिलाकर चारों ओर सुगंध फैला देती है अंधकार में डूबे नीले आकाश को रंगों से भर देती है सूर्य जब पूर्व दिशा में क्षितिज से ऊपर उठता है तो लगता है लाल रंग की बड़ी सी गेंद आकाश में उठती चली आ रही है सारा आकाश लाल, पीले, सफ़ेद रंग से नहा जाता है नीले आकाश पर रंगों की बौछार-सी हो जाती है सारी प्रकृति नए रूप में सज जाती है। पक्षी चहचहाने लगते हैं तितलियां पुष्पों पर मंडराने लगती हैं | भौंरों की गूंज से उपवन संगीतमय हो जाते हैं सभी अपने-अपने कार्य में निमग्न हो जाते हैं रात्रि लोरियों से सबको मीठी नींद में सुला देती है सूर्य उदय होकर सब को उनके कर्तव्यों का बोध कराता है प्रातः कालीन दृश्य आलौकिक लगता है सूर्य का कोमल शांत रूप हृदयों में नई ऊर्जा जागृत कर देता है

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    सूर्य के शांत रूप से क्या मिलती है?

  • Question 31
    5 / -1

    सही विकल्प से रिक्त स्थान की पूर्ति कीजिये।

    'केन्द्रीय हिन्दी संस्थान, आगरा ने उत्तराखंड के लिए पृथक से हिन्दी शिक्षण-योजना के अंतर्गत उच्चाणाभ्यास कराने के लिए बारह _____ का निर्माण किया है।'

  • Question 32
    5 / -1

    रूस में एक बार _______ हुई।

  • Question 33
    5 / -1

    'दूध' शब्द के निम्न मे से पर्यायवाची है-

  • Question 34
    5 / -1

    दिए गए वाक्‍य में उपयुक्‍त शब्‍द का चयन करके रिक्‍त स्‍थान की पूर्ति कीजिए।

    समुद्र के पास जाते ही _______ थकान गायब हो जाती है। 

  • Question 35
    5 / -1

    निर्देश: निम्न वाक्य में रिक्त स्थान की पूर्ति कीजिये।

    राष्ट्र की ___________ के लिए शहीदों ने अपना बलिदान दिया।

  • Question 36
    5 / -1

    कौन सा शब्द 'घर' का पर्यायवाची नहीं है?

  • Question 37
    5 / -1

    निर्देश: रिक्त स्थान को सही विकल्प से भरिए। 

    एक वर्ष में बारह ______ होते है। 

  • Question 38
    5 / -1

    'जगत' का पर्यायवाची है__________।

  • Question 39
    5 / -1

    इस वाक्याशं में 'निर्मम' अर्थ समाहित है

  • Question 40
    5 / -1

    निम्न विकल्पों में से उस विकल्प का चयन कीजिए जो दिए गए शब्द का पर्यायवाची शब्द नहीं है।

    सिंह

  • Question 41
    5 / -1

    'कीर' शब्द का अर्थ है:

  • Question 42
    5 / -1

    'प्रत्यक्ष' शब्द का विलोम है-

  • Question 43
    5 / -1

    सीता (1) / चलती (2) / धीरे-धीरे (3) / है (4) वाक्य संरचना का सही क्रम क्या होगा?

  • Question 44
    5 / -1

    'निर्वाह' शब्द में उपसर्ग है। 

  • Question 45
    5 / -1

    'एक पंथ दो काज' मुहावरे का अर्थ हैः

  • Question 46
    5 / -1

    'मित्र' का अर्थ नहीं है:

  • Question 47
    5 / -1

    'बहती गंगा में हाथ धोना' - मुहावरे का सही अर्थ है

  • Question 48
    5 / -1

    दिए गए वाक्य क्रम सही नहीं है। उनके सही क्रम के चार विकल्प दिए गए हैं। उनमें से सही विकल्प चुनिए।

    1) कहाँ है

    2) जो कल छ़त से

    3) आपका वह लड़का

    4) गिर पडा था

  • Question 49
    5 / -1

    "अक्ल बड़ी की भैंस" कहावत का अर्थ है___________।

  • Question 50
    5 / -1

    दिए गए वाक्य क्रम सही नहीं हैं। उनके सही क्रम के चार विकल्प दिए गए हैं। उनमें से सही विकल्प चुनिए।

    1) प्रतीत होती है

    2) प्रात:काल पूर्वी क्षितिज पर

    3) बहुत ही सुन्दर

    4) सूर्य की लाली

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