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Hindi Test - 13

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Hindi Test - 13
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Self Studies Self Studies
Weekly Quiz Competition
  • Question 1
    5 / -1

    Directions For Questions

    दिए गए गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़िए तथा पूछे गए प्रश्नों के उत्तर के लिए सबसे उपयुक्त विकल्प का चयन कीजिए।

    कौओं के आश्रयदाता वृक्षों को ऋग्वेद में काकाम्बीर कहा गया है। ऐसे वृक्षों की मालिका में ही नीम को शुमार किया जाना चाहिए। हर साल कौओं के कितने ही घोंसले नीम के पेड़ पर पाये जाते हैं। वैशाख माह में कौए यदि इस पेड़ पर घोंसले बनाते हैं तो इसे समृद्धि का लक्षण माना जाता है। एक तरह से यह आगामी
    खुशहाली का संकेत होता है। वैसे कौए की आवाज़ कितनी भोंडी और कर्कश होती है! लेकिन काकाम्बीर के घोंसले में बैठे कौए की महीन और चुलबुली आवाज़ जो एक बार सुन ले वह अवश्य ही मोहित हो जाता है, क्योंकि उसके कंठ से चाशनी-पगे स्वर जो निकल रहे होते हैं...!

    निबौरी के बीज से तेल निकाला जाता है, जो 'मारगोसा' कहलाता है। कीटनाशक दवाइयाँ बनाने के लिए इसका प्रयोग किया जाता है। वात-विकार के मामले में मालिश करने के लिए भी यह तेल उपयुक्त पाया जाता है।

    नीम की लकड़ी ठोस और मज़बूत होने से पानी के जहाज़ बनाने के काम में यह प्रयुक्त होती है। खिलौने, कृषि के औज़ार तथा बैलगाड़ियाँ बनाने के लिए भी नीम की लकड़ी उपयुक्त होती है।

    ...view full instructions

    जिन पेड़ों पर कौए घोंसला बनाते हैं, ऋग्वेद में उन्हें किस नाम से संबोधित किया गया है?
    Solution

    'काकाम्बीर' सही उत्तर है 

    Key Points

    • प्रस्तुत गद्यांश में नीम के पेड़ के महत्व बारे में बताया गया है 
    • प्रस्तुत गद्यांश के अनुसार काकाम्बीर ही सही उत्तर है l
    • कौओं के आश्रयदाता वृक्षों को ऋग्वेद में काकाम्बीर कहा गया है। ऐसे वृक्षों की मालिका में ही नीम को शुमार किया जाना चाहिए 

    Additional Information

    • नीम आंध्र प्रदेश का राजकीय वृक्ष है 
    • नीम को सिंथेटिक कीटनाशकों का विकल्प माना जाता है

    Important Points

    • नीम के पेड़ को भारत का आश्चर्य वृक्ष कहा जाता है।
  • Question 2
    5 / -1

    Directions For Questions

    दिए गए गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़िए तथा पूछे गए प्रश्नों के उत्तर के लिए सबसे उपयुक्त विकल्प का चयन कीजिए।

    कौओं के आश्रयदाता वृक्षों को ऋग्वेद में काकाम्बीर कहा गया है। ऐसे वृक्षों की मालिका में ही नीम को शुमार किया जाना चाहिए। हर साल कौओं के कितने ही घोंसले नीम के पेड़ पर पाये जाते हैं। वैशाख माह में कौए यदि इस पेड़ पर घोंसले बनाते हैं तो इसे समृद्धि का लक्षण माना जाता है। एक तरह से यह आगामी
    खुशहाली का संकेत होता है। वैसे कौए की आवाज़ कितनी भोंडी और कर्कश होती है! लेकिन काकाम्बीर के घोंसले में बैठे कौए की महीन और चुलबुली आवाज़ जो एक बार सुन ले वह अवश्य ही मोहित हो जाता है, क्योंकि उसके कंठ से चाशनी-पगे स्वर जो निकल रहे होते हैं...!

    निबौरी के बीज से तेल निकाला जाता है, जो 'मारगोसा' कहलाता है। कीटनाशक दवाइयाँ बनाने के लिए इसका प्रयोग किया जाता है। वात-विकार के मामले में मालिश करने के लिए भी यह तेल उपयुक्त पाया जाता है।

    नीम की लकड़ी ठोस और मज़बूत होने से पानी के जहाज़ बनाने के काम में यह प्रयुक्त होती है। खिलौने, कृषि के औज़ार तथा बैलगाड़ियाँ बनाने के लिए भी नीम की लकड़ी उपयुक्त होती है।

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    कौए जिस महीने में अपने घोंसले बनाते हैं उसका हिन्दी नाम है-
    Solution

    वैशाख सही उत्तर है

    Key Points

    • कौआ जिस महीने में अपने घोंसले बनाते हैं उसका हिन्दी नाम बैसाख है l
    • हिंदी महीने के नाम इस प्रकार है-चैत्र, वैशाख,ज्येष्ठ, अषाढ़, सावन, भाद्र पद, आश्विन, कार्तिक,अगहन, पूस, माघ ,फाल्गुन l 
    • वैशाख माह में कौए यदि इस पेड़ पर घोंसले बनाते हैं तो इसे समृद्धि का लक्षण माना जाता है।  

    Additional Information

    • कौआ का पर्यायवाची शब्द है- काक, वायस, काग, करठ  आदि 
    • कौआ का विलोम  शब्द है- कोयल है
  • Question 3
    5 / -1

    Directions For Questions

    दिए गए गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़िए तथा पूछे गए प्रश्नों के उत्तर के लिए सबसे उपयुक्त विकल्प का चयन कीजिए।

    कौओं के आश्रयदाता वृक्षों को ऋग्वेद में काकाम्बीर कहा गया है। ऐसे वृक्षों की मालिका में ही नीम को शुमार किया जाना चाहिए। हर साल कौओं के कितने ही घोंसले नीम के पेड़ पर पाये जाते हैं। वैशाख माह में कौए यदि इस पेड़ पर घोंसले बनाते हैं तो इसे समृद्धि का लक्षण माना जाता है। एक तरह से यह आगामी
    खुशहाली का संकेत होता है। वैसे कौए की आवाज़ कितनी भोंडी और कर्कश होती है! लेकिन काकाम्बीर के घोंसले में बैठे कौए की महीन और चुलबुली आवाज़ जो एक बार सुन ले वह अवश्य ही मोहित हो जाता है, क्योंकि उसके कंठ से चाशनी-पगे स्वर जो निकल रहे होते हैं...!

    निबौरी के बीज से तेल निकाला जाता है, जो 'मारगोसा' कहलाता है। कीटनाशक दवाइयाँ बनाने के लिए इसका प्रयोग किया जाता है। वात-विकार के मामले में मालिश करने के लिए भी यह तेल उपयुक्त पाया जाता है।

    नीम की लकड़ी ठोस और मज़बूत होने से पानी के जहाज़ बनाने के काम में यह प्रयुक्त होती है। खिलौने, कृषि के औज़ार तथा बैलगाड़ियाँ बनाने के लिए भी नीम की लकड़ी उपयुक्त होती है।

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    नीम के फल का नाम है-
    Solution

    निबौरी सही उत्तर है 

    Key Points

    • गद्यांश के अनुसार:- निबौरी के बीज से तेल निकाला जाता है, जो 'मारगोसा' कहलाता है।
    • कीटनाशक दवाइयाँ बनाने के लिए इसका प्रयोग किया जाता है।
    • वात-विकार के मामले में मालिश करने के लिए भी यह तेल उपयुक्त पाया जाता है।

    Additional Information

    • नीम के फल का नाम निबौरी है 
    • निबौरी का पर्यायवाची है - निबकौरी, नौबौली, निबौली आदि है
  • Question 4
    5 / -1

    Directions For Questions

    दिए गए गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़िए तथा पूछे गए प्रश्नों के उत्तर के लिए सबसे उपयुक्त विकल्प का चयन कीजिए।

    कौओं के आश्रयदाता वृक्षों को ऋग्वेद में काकाम्बीर कहा गया है। ऐसे वृक्षों की मालिका में ही नीम को शुमार किया जाना चाहिए। हर साल कौओं के कितने ही घोंसले नीम के पेड़ पर पाये जाते हैं। वैशाख माह में कौए यदि इस पेड़ पर घोंसले बनाते हैं तो इसे समृद्धि का लक्षण माना जाता है। एक तरह से यह आगामी
    खुशहाली का संकेत होता है। वैसे कौए की आवाज़ कितनी भोंडी और कर्कश होती है! लेकिन काकाम्बीर के घोंसले में बैठे कौए की महीन और चुलबुली आवाज़ जो एक बार सुन ले वह अवश्य ही मोहित हो जाता है, क्योंकि उसके कंठ से चाशनी-पगे स्वर जो निकल रहे होते हैं...!

    निबौरी के बीज से तेल निकाला जाता है, जो 'मारगोसा' कहलाता है। कीटनाशक दवाइयाँ बनाने के लिए इसका प्रयोग किया जाता है। वात-विकार के मामले में मालिश करने के लिए भी यह तेल उपयुक्त पाया जाता है।

    नीम की लकड़ी ठोस और मज़बूत होने से पानी के जहाज़ बनाने के काम में यह प्रयुक्त होती है। खिलौने, कृषि के औज़ार तथा बैलगाड़ियाँ बनाने के लिए भी नीम की लकड़ी उपयुक्त होती है।

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    पानी के जहाज बनाने में नीम की लकड़ी का प्रयोग होता है क्योंकि-
    Solution

    यह ठोस और मज़बूत होती है सही उत्तर है 

    Key Points

    • गद्यांश के अनुसार:- पानी के जहाज बनाने में नीम की लकड़ी का प्रयोग होता है क्योंकि यह ठोस और मज़बूत होती है
    • विदेशी या आगत उपसर्ग की श्रेणी में नीम उपसर्ग को रखा जाता है जैसे : नीमहकीम,नीमपागल

    Additional Information

    • उपसर्ग उस अव्यय या शब्दांश को कहते हैं, जो किसी शब्द के आरम्भ में जुड़कर उसके अर्थ में परिवर्तन कर विशेषता ला देता है। जैसे- ‘जय’ एक शब्द है। इसके आगे ‘पर’ उपसर्ग लगा दिया जाए तो एक नया शब्द बन जाएगा ‘पराजय’ जिसका अर्थ हार होगा
    • उपसर्ग के प्रकार:
      1. संस्कृत के उपसर्ग
      2. हिंदी के उपसर्ग
      3. उर्दू के उपसर्ग
      4. अंग्रेजी के उपसर्ग
  • Question 5
    5 / -1

    Directions For Questions

    दिए गए गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़िए तथा पूछे गए प्रश्नों के उत्तर के लिए सबसे उपयुक्त विकल्प का चयन कीजिए।

    कौओं के आश्रयदाता वृक्षों को ऋग्वेद में काकाम्बीर कहा गया है। ऐसे वृक्षों की मालिका में ही नीम को शुमार किया जाना चाहिए। हर साल कौओं के कितने ही घोंसले नीम के पेड़ पर पाये जाते हैं। वैशाख माह में कौए यदि इस पेड़ पर घोंसले बनाते हैं तो इसे समृद्धि का लक्षण माना जाता है। एक तरह से यह आगामी
    खुशहाली का संकेत होता है। वैसे कौए की आवाज़ कितनी भोंडी और कर्कश होती है! लेकिन काकाम्बीर के घोंसले में बैठे कौए की महीन और चुलबुली आवाज़ जो एक बार सुन ले वह अवश्य ही मोहित हो जाता है, क्योंकि उसके कंठ से चाशनी-पगे स्वर जो निकल रहे होते हैं...!

    निबौरी के बीज से तेल निकाला जाता है, जो 'मारगोसा' कहलाता है। कीटनाशक दवाइयाँ बनाने के लिए इसका प्रयोग किया जाता है। वात-विकार के मामले में मालिश करने के लिए भी यह तेल उपयुक्त पाया जाता है।

    नीम की लकड़ी ठोस और मज़बूत होने से पानी के जहाज़ बनाने के काम में यह प्रयुक्त होती है। खिलौने, कृषि के औज़ार तथा बैलगाड़ियाँ बनाने के लिए भी नीम की लकड़ी उपयुक्त होती है।

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    'मारगोसा' है-
    Solution

    नीम के बीज से बना तेल सही उत्तर है

    Key Points

    •  गद्यांश के अनुसार:- निबौरी के बीज से तेल निकाला जाता है, जो 'मारगोसा' कहलाता है।
    • कीटनाशक दवाइयाँ बनाने के लिए इसका प्रयोग किया जाता है।
    • वात-विकार के मामले में मालिश करने के लिए भी यह तेल उपयुक्त पाया जाता है।

    Additional Information

    • तिल का तेल का अर्थ - यह आपके नर्वस सिस्टम को बल देता है. यह कफ को भी खत्म करता है
    • सरसों का तेल का अर्थ -जोड़ों के दर्द में सरसों के तेल की मालिश करना बहुत फायदेमंद होता है
    • नीम का बीज का अर्थ -कीटनाशक दवाइयाँ बनाने के लिए इसका प्रयोग किया जाता है। 
  • Question 6
    5 / -1

    Directions For Questions

    निर्देश: नीचे दिए गए गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों  के सही/सबसे उचित उत्तर वाले विकल्प को चुनिए।

    उत्तर भारत के संत कवि कबीर और दक्षिण भारत के संत कवि तिरुवल्लुवर के समय में लगभग दो हज़ार वर्ष का अंतराल है कितु इन दोनों महाकवियों के जीवन में अद्भुत साम्य पाया जाता है। दोनों के माता-पिता ने जन्म देकर इन्हें त्याग दिया था, दोनों का लालन-पालन निस्संतान दंपतियों ने बड़े स्नेह और जतन से किया था। व्यवसाय से दोनों जुलाहे थे। दोनों ने सात्विक गृहस्थ जीवन की साधना की थी।

    तिरुवल्लुवर का प्रामाणिक जीवन-वृत्तांत प्राप्त नहीं होता। प्रायः उन्हें चेन्नई के निकट मइलापुर गाँव का जुलाहा माना जाता है किंतु कुछ लोगों के अनुसार वे राजा एल्लाल के शासन में एक बड़े पदाधिकारी थे और उन्हें वैसा ही सम्मान प्राप्त था जैसा चंद्रगुप्त के शासनकाल में चाणक्य को। उनके बारे में अनेक दंतकथाएँ प्रचलित हैं। जैसे . कहा जाता है कि एक संन्यासी नारी जाति से घृणा करता था। उसका विश्वास था कि स्त्रियाँ बुराई की जड़ हैं और उनके साथ ईश्वर-भक्ति हो ही नहीं सकती। तिरुवल्लुवर ने बड़े आदर से उसे अपने घर बुलाया। दो दिन उनके परिवार में रहकर संन्यासी के विचार ही बदल गए। उसने कहा, “यदि तिरुवल्लुवर और उनकी पत्नी जैसी जोड़ी हो तो गृहस्थ जीवन ही श्रेष्ठ है।“

    कबीर के दोहों की भाँति तिरुवल्लुवर ने भी छोटे छंद में कविता रची जिसे ‘कुरल' कहा जाता है। कुरलों का संग्रह ‘तिरुक्कुरल' उनका एकमात्र ग्रंथ है। तिरुक्कुरल को तमिल भाषा का वेद माना जाता है। इसका प्रत्येक कुरल एक सूक्ति है और ये सूक्तियाँ सभी धर्मों का सार हैं। संपूर्ण मानवजाति को शुभ के लिए प्रेरित करना ही इसका उद्देश्य प्रतीत होता है। जैसे धर्म के बारे में दो कुरलों का आशय है:

    • भद्र पुरुषो! पवित्र मानव होना ही धर्म है। स्वच्छ मन वाले बनो और देखो तुम उन्नति के शिखर पर कहाँ-से-कहाँ पहुँच जाते हो।

    • झूठ न बोलने के गुण को ग्रहण करो तो किसी अन्य धर्म की आवश्यकता ही न रहेगी।

    ...view full instructions

    यदि कबीर का समय पंद्रहवीं शताब्दी ईसवी है तो तिरुवल्लुवर का समय होगा:
    Solution
    • कबीर का समय पंद्रहवीं शताब्दी ईस्वी बताया गया है उनके और तिरुवल्लुवर के समय में दो हजार वर्ष का अन्तराल है। 
    • इस हिसाब से तिरुवल्लुवर का समय दो हजार वर्ष पूर्व का होगा। 
    • लगभग 500 ई. पू. तिरुवल्लुवर को दक्षिण का कबीर भी कहा जाता है। 
    • ईस्वी वर्ष का आरंभ ईशा मसीह के समय से माना जाता है, उससे पहले दिनांक को ई.पू. में माना जाता था। 

    Key Points

    • तिरुवल्लुवर एक प्रख्यात तमिल कवि हैं जिन्होंने तमिल साहित्य में नीति पर आधारित कृति थिरूकुरल का सृजन किया।
    • उन्हें थेवा पुलवर, वल्लुवर और पोयामोड़ी पुलवर जैसे अन्य नामों से भी जाना जाता है। 
  • Question 7
    5 / -1

    Directions For Questions

    निर्देश: नीचे दिए गए गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों  के सही/सबसे उचित उत्तर वाले विकल्प को चुनिए।

    उत्तर भारत के संत कवि कबीर और दक्षिण भारत के संत कवि तिरुवल्लुवर के समय में लगभग दो हज़ार वर्ष का अंतराल है कितु इन दोनों महाकवियों के जीवन में अद्भुत साम्य पाया जाता है। दोनों के माता-पिता ने जन्म देकर इन्हें त्याग दिया था, दोनों का लालन-पालन निस्संतान दंपतियों ने बड़े स्नेह और जतन से किया था। व्यवसाय से दोनों जुलाहे थे। दोनों ने सात्विक गृहस्थ जीवन की साधना की थी।

    तिरुवल्लुवर का प्रामाणिक जीवन-वृत्तांत प्राप्त नहीं होता। प्रायः उन्हें चेन्नई के निकट मइलापुर गाँव का जुलाहा माना जाता है किंतु कुछ लोगों के अनुसार वे राजा एल्लाल के शासन में एक बड़े पदाधिकारी थे और उन्हें वैसा ही सम्मान प्राप्त था जैसा चंद्रगुप्त के शासनकाल में चाणक्य को। उनके बारे में अनेक दंतकथाएँ प्रचलित हैं। जैसे . कहा जाता है कि एक संन्यासी नारी जाति से घृणा करता था। उसका विश्वास था कि स्त्रियाँ बुराई की जड़ हैं और उनके साथ ईश्वर-भक्ति हो ही नहीं सकती। तिरुवल्लुवर ने बड़े आदर से उसे अपने घर बुलाया। दो दिन उनके परिवार में रहकर संन्यासी के विचार ही बदल गए। उसने कहा, “यदि तिरुवल्लुवर और उनकी पत्नी जैसी जोड़ी हो तो गृहस्थ जीवन ही श्रेष्ठ है।“

    कबीर के दोहों की भाँति तिरुवल्लुवर ने भी छोटे छंद में कविता रची जिसे ‘कुरल' कहा जाता है। कुरलों का संग्रह ‘तिरुक्कुरल' उनका एकमात्र ग्रंथ है। तिरुक्कुरल को तमिल भाषा का वेद माना जाता है। इसका प्रत्येक कुरल एक सूक्ति है और ये सूक्तियाँ सभी धर्मों का सार हैं। संपूर्ण मानवजाति को शुभ के लिए प्रेरित करना ही इसका उद्देश्य प्रतीत होता है। जैसे धर्म के बारे में दो कुरलों का आशय है:

    • भद्र पुरुषो! पवित्र मानव होना ही धर्म है। स्वच्छ मन वाले बनो और देखो तुम उन्नति के शिखर पर कहाँ-से-कहाँ पहुँच जाते हो।

    • झूठ न बोलने के गुण को ग्रहण करो तो किसी अन्य धर्म की आवश्यकता ही न रहेगी।

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    तिरुवल्लुवर के अनुसार श्रेष्ठ धर्म है:
    Solution
    • तिरुवल्लुवर ने कहा है कि- मानव का पवित्र होना ही धर्म है।
    • उनके अनुसार मन से पवित्र होना ही श्रेष्ठ धर्म है।

    Key Points

    • श्रेष्ठ :- गुणवाचक विशेषण है।
    • श्रेष्ठता : भाववाचक संज्ञा है। 
  • Question 8
    5 / -1

    Directions For Questions

    निर्देश: नीचे दिए गए गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों  के सही/सबसे उचित उत्तर वाले विकल्प को चुनिए।

    उत्तर भारत के संत कवि कबीर और दक्षिण भारत के संत कवि तिरुवल्लुवर के समय में लगभग दो हज़ार वर्ष का अंतराल है कितु इन दोनों महाकवियों के जीवन में अद्भुत साम्य पाया जाता है। दोनों के माता-पिता ने जन्म देकर इन्हें त्याग दिया था, दोनों का लालन-पालन निस्संतान दंपतियों ने बड़े स्नेह और जतन से किया था। व्यवसाय से दोनों जुलाहे थे। दोनों ने सात्विक गृहस्थ जीवन की साधना की थी।

    तिरुवल्लुवर का प्रामाणिक जीवन-वृत्तांत प्राप्त नहीं होता। प्रायः उन्हें चेन्नई के निकट मइलापुर गाँव का जुलाहा माना जाता है किंतु कुछ लोगों के अनुसार वे राजा एल्लाल के शासन में एक बड़े पदाधिकारी थे और उन्हें वैसा ही सम्मान प्राप्त था जैसा चंद्रगुप्त के शासनकाल में चाणक्य को। उनके बारे में अनेक दंतकथाएँ प्रचलित हैं। जैसे . कहा जाता है कि एक संन्यासी नारी जाति से घृणा करता था। उसका विश्वास था कि स्त्रियाँ बुराई की जड़ हैं और उनके साथ ईश्वर-भक्ति हो ही नहीं सकती। तिरुवल्लुवर ने बड़े आदर से उसे अपने घर बुलाया। दो दिन उनके परिवार में रहकर संन्यासी के विचार ही बदल गए। उसने कहा, “यदि तिरुवल्लुवर और उनकी पत्नी जैसी जोड़ी हो तो गृहस्थ जीवन ही श्रेष्ठ है।“

    कबीर के दोहों की भाँति तिरुवल्लुवर ने भी छोटे छंद में कविता रची जिसे ‘कुरल' कहा जाता है। कुरलों का संग्रह ‘तिरुक्कुरल' उनका एकमात्र ग्रंथ है। तिरुक्कुरल को तमिल भाषा का वेद माना जाता है। इसका प्रत्येक कुरल एक सूक्ति है और ये सूक्तियाँ सभी धर्मों का सार हैं। संपूर्ण मानवजाति को शुभ के लिए प्रेरित करना ही इसका उद्देश्य प्रतीत होता है। जैसे धर्म के बारे में दो कुरलों का आशय है:

    • भद्र पुरुषो! पवित्र मानव होना ही धर्म है। स्वच्छ मन वाले बनो और देखो तुम उन्नति के शिखर पर कहाँ-से-कहाँ पहुँच जाते हो।

    • झूठ न बोलने के गुण को ग्रहण करो तो किसी अन्य धर्म की आवश्यकता ही न रहेगी।

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     ‘तमिल' किस देश-प्रदेश की भाषा है?
    Solution
    •  ‘तमिल' तमिलनाडु की भाषा है।

    Key Points

    • तमिल भारतीय संविधान वर्णित 22 राजभाषाओं में से एक है। 
    • भारत में यह दक्षिण प्रान्त में बोली जाने वाली भाषा है। 
    • तामिलनाडु तथा पुदुचेरी की राज भाषा है। 
    • केरल- कोंकणी तथा मलयालम । 
    • कर्नाटक – कोंकणी तथा कन्नड़ । 
    • बोली जाने वाली राजभाषा हैं।
  • Question 9
    5 / -1

    Directions For Questions

    निर्देश: नीचे दिए गए गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों  के सही/सबसे उचित उत्तर वाले विकल्प को चुनिए।

    उत्तर भारत के संत कवि कबीर और दक्षिण भारत के संत कवि तिरुवल्लुवर के समय में लगभग दो हज़ार वर्ष का अंतराल है कितु इन दोनों महाकवियों के जीवन में अद्भुत साम्य पाया जाता है। दोनों के माता-पिता ने जन्म देकर इन्हें त्याग दिया था, दोनों का लालन-पालन निस्संतान दंपतियों ने बड़े स्नेह और जतन से किया था। व्यवसाय से दोनों जुलाहे थे। दोनों ने सात्विक गृहस्थ जीवन की साधना की थी।

    तिरुवल्लुवर का प्रामाणिक जीवन-वृत्तांत प्राप्त नहीं होता। प्रायः उन्हें चेन्नई के निकट मइलापुर गाँव का जुलाहा माना जाता है किंतु कुछ लोगों के अनुसार वे राजा एल्लाल के शासन में एक बड़े पदाधिकारी थे और उन्हें वैसा ही सम्मान प्राप्त था जैसा चंद्रगुप्त के शासनकाल में चाणक्य को। उनके बारे में अनेक दंतकथाएँ प्रचलित हैं। जैसे . कहा जाता है कि एक संन्यासी नारी जाति से घृणा करता था। उसका विश्वास था कि स्त्रियाँ बुराई की जड़ हैं और उनके साथ ईश्वर-भक्ति हो ही नहीं सकती। तिरुवल्लुवर ने बड़े आदर से उसे अपने घर बुलाया। दो दिन उनके परिवार में रहकर संन्यासी के विचार ही बदल गए। उसने कहा, “यदि तिरुवल्लुवर और उनकी पत्नी जैसी जोड़ी हो तो गृहस्थ जीवन ही श्रेष्ठ है।“

    कबीर के दोहों की भाँति तिरुवल्लुवर ने भी छोटे छंद में कविता रची जिसे ‘कुरल' कहा जाता है। कुरलों का संग्रह ‘तिरुक्कुरल' उनका एकमात्र ग्रंथ है। तिरुक्कुरल को तमिल भाषा का वेद माना जाता है। इसका प्रत्येक कुरल एक सूक्ति है और ये सूक्तियाँ सभी धर्मों का सार हैं। संपूर्ण मानवजाति को शुभ के लिए प्रेरित करना ही इसका उद्देश्य प्रतीत होता है। जैसे धर्म के बारे में दो कुरलों का आशय है:

    • भद्र पुरुषो! पवित्र मानव होना ही धर्म है। स्वच्छ मन वाले बनो और देखो तुम उन्नति के शिखर पर कहाँ-से-कहाँ पहुँच जाते हो।

    • झूठ न बोलने के गुण को ग्रहण करो तो किसी अन्य धर्म की आवश्यकता ही न रहेगी।

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    जो संबंध चंद्रगुप्त का चाणक्य से था वही संबंध:
    Solution
    • चाणक्य चन्द्रगुप्त मौर्य के गुरु तथा महामंत्री थे। 
    • उसी प्रकार तिरुवल्लुवर भी राजा एल्लाल के दरबार में उच्च पद पर आसीन थे। 

    Key Points

    • राजा एल्लाल के शासन में एक बड़े पदाधिकारी थे और उन्हें वैसा ही सम्मान प्राप्त था जैसा चंद्रगुप्त के शासनकाल में चाणक्य को।
    • उनके बारे में अनेक दंतकथाएँ प्रचलित हैं। जैसे . कहा जाता है कि एक संन्यासी नारी जाति से घृणा करता था।
    • उसका विश्वास था कि स्त्रियाँ बुराई की जड़ हैं और उनके साथ ईश्वर-भक्ति हो ही नहीं सकती।
    • तिरुवल्लुवर ने बड़े आदर से उसे अपने घर बुलाया। दो दिन उनके परिवार में रहकर संन्यासी के विचार ही बदल गए।
    • उसने कहा, “यदि तिरुवल्लुवर और उनकी पत्नी जैसी जोड़ी हो तो गृहस्थ जीवन ही श्रेष्ठ है।"
  • Question 10
    5 / -1

    Directions For Questions

    निर्देश: नीचे दिए गए गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों  के सही/सबसे उचित उत्तर वाले विकल्प को चुनिए।

    उत्तर भारत के संत कवि कबीर और दक्षिण भारत के संत कवि तिरुवल्लुवर के समय में लगभग दो हज़ार वर्ष का अंतराल है कितु इन दोनों महाकवियों के जीवन में अद्भुत साम्य पाया जाता है। दोनों के माता-पिता ने जन्म देकर इन्हें त्याग दिया था, दोनों का लालन-पालन निस्संतान दंपतियों ने बड़े स्नेह और जतन से किया था। व्यवसाय से दोनों जुलाहे थे। दोनों ने सात्विक गृहस्थ जीवन की साधना की थी।

    तिरुवल्लुवर का प्रामाणिक जीवन-वृत्तांत प्राप्त नहीं होता। प्रायः उन्हें चेन्नई के निकट मइलापुर गाँव का जुलाहा माना जाता है किंतु कुछ लोगों के अनुसार वे राजा एल्लाल के शासन में एक बड़े पदाधिकारी थे और उन्हें वैसा ही सम्मान प्राप्त था जैसा चंद्रगुप्त के शासनकाल में चाणक्य को। उनके बारे में अनेक दंतकथाएँ प्रचलित हैं। जैसे . कहा जाता है कि एक संन्यासी नारी जाति से घृणा करता था। उसका विश्वास था कि स्त्रियाँ बुराई की जड़ हैं और उनके साथ ईश्वर-भक्ति हो ही नहीं सकती। तिरुवल्लुवर ने बड़े आदर से उसे अपने घर बुलाया। दो दिन उनके परिवार में रहकर संन्यासी के विचार ही बदल गए। उसने कहा, “यदि तिरुवल्लुवर और उनकी पत्नी जैसी जोड़ी हो तो गृहस्थ जीवन ही श्रेष्ठ है।“

    कबीर के दोहों की भाँति तिरुवल्लुवर ने भी छोटे छंद में कविता रची जिसे ‘कुरल' कहा जाता है। कुरलों का संग्रह ‘तिरुक्कुरल' उनका एकमात्र ग्रंथ है। तिरुक्कुरल को तमिल भाषा का वेद माना जाता है। इसका प्रत्येक कुरल एक सूक्ति है और ये सूक्तियाँ सभी धर्मों का सार हैं। संपूर्ण मानवजाति को शुभ के लिए प्रेरित करना ही इसका उद्देश्य प्रतीत होता है। जैसे धर्म के बारे में दो कुरलों का आशय है:

    • भद्र पुरुषो! पवित्र मानव होना ही धर्म है। स्वच्छ मन वाले बनो और देखो तुम उन्नति के शिखर पर कहाँ-से-कहाँ पहुँच जाते हो।

    • झूठ न बोलने के गुण को ग्रहण करो तो किसी अन्य धर्म की आवश्यकता ही न रहेगी।

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    तिरुवल्लुवर और कबीर में साम्य के बिंदु हैं:

    (क) जन्म के बाद माता-पिता के द्वारा त्याग देना

    (ख) एक-से छंद में कविता करना

    (ग) जुलाहे का व्यवसाय करना

    (घ) नारी जाति से घृणा करना

    सही विकल्प को चुनिए।

    Solution

    तिरुवल्लुवर और कबीर में बहुत सारे साम्य बिंदु माने जाते हैं:-

    • जन्म के बाद दोनों को माता पिता द्वारा त्याग दिया गया था।
    • दोनों का व्यवसाय कपड़े बुनने(जुलाहे) का था।
    • दोनों ने छोटे छोटे छन्दों में दोहे लिखे।
    • दोनों ने सात्त्विक गृहस्थ जीवन को अपनाया।
      • इस प्रकार गद्यांश के अनुसार (क),(ख) तथा (ग) उचित उत्तर है।

    Key Points

    • सात्विक : सत्वगुण सम्पन्न
    • गृहस्थ : ब्रह्मचर्य का पालन समाप्त करके विवाहित होकर अन्य आश्रम में प्रवेश करनेवाला व्यक्ति, गृही। 
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