Self Studies

Hindi Test - 21

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Hindi Test - 21
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Self Studies Self Studies
Weekly Quiz Competition
  • Question 1
    5 / -1

    Directions For Questions

    निर्देश: निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़िए व प्रश्नों के उत्तर दीजिये-

    'गोदान' प्रेमचन्द जी की उन अमर कृतियों में से एक है, जिसमे ग्रामीण भारत की आत्मा का करुण चित्र साकार हो उठा है। इसी कारण कई मनीषी आलोचक इसे ग्रामीण भारतीय परिवेशगत समस्याओं का महाकाव्य मानते हैं, तो कई विद्वान इसे ग्रामीण - जीवन और कृषि संस्कृति का शोक गीत स्वीकारते हैं। कुछ विद्वान तो ऐसे भी हैं, जो इस उपन्यास को ग्रामीण भारत की आधुनिक 'गीता' तक स्वीकार करते हैं, जो कुछ भी हो, 'गोदान' वास्तव में मुंशी प्रेमचन्द का एक ऐसा उपन्यास है, जिसमे आचार - विचार, संस्कार और प्राकृतिक परिवेश, जो गहन करुणा से युक्त है, प्रतिबिंबित हो उठा है।
    डॉ. गोपाल रॉय का कहना है कि - 'गोदान' ग्राम जीवन और ग्राम संस्कृति को उसकी सम्पूर्णता में प्रस्तुत करने वाला अद्वितीय उपन्यास है, न केवल हिन्दी के वरन किसी भी भारतीय भाषा के किसी भी उपन्यास में ग्रामीण समाज का ऐसा व्यापक यथार्थ और सहानुभूतिपूर्ण चित्रण नहीं हुआ है। ग्रामीण जीवन और संस्कृति के अंकन की दृष्टि से इस उपन्यास का वही महत्त्व है, जो आधुनिक युग में युग जीवन की अभिव्यक्ति की दृष्टि से महाकाव्यों का हुआ करता था। इस प्रकार डॉ. रॉय गोदान को आधुनिक युग का महाकाव्य ही नहीं स्वीकारते वरन सर्वश्रेष्ठ महाकाव्य भी स्वीकारते हैं। उनके इस कथन का यही, आशय है कि प्रेमचन्द जी ने ग्राम जीवन से सम्बद्ध सभी पक्षों का न केवल अत्यंत विशदता से चित्रण किया है, वरन उनकी गहराइयों में जाकर उनके सच्चे चित्र प्रस्तुत कर दिए हैं।
    प्रेमचन्द जी ने जिस ग्राम जीवन का चित्र गोदान में प्रस्तुत किया है: उसका सम्बन्ध आज ग्राम - परिवेश से न होकर तत्कालीन ग्राम जीवन से है। ग्रामीण जीवन को वास्तविक आधार प्रदान करने के लिए प्रेमचन्द जी ने चित्र के अनुरूप ही कुछ ऐसे खाँचे अथवा चित्रफलक निर्मित किये हैं, जो चित्र को यथार्थ बनाने के लिए सहयोगी सिद्ध हुए हैं। ग्रामीण किसानो के घर - द्वार, खेत - खलिहान और प्राकृतिक दृश्यों का ऐसा वास्तविक चित्रण अन्यत्र दुर्लभ है।

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    'गोदान' है -
    Solution

    गोदान 'उपन्यास' है
    Key Points

    • गोदान ग्राम्य जीवन और आदि संस्कृति का महाकाव्य है सही नहीं है अपितु "गोदान ग्राम्य में जीवन और कृषि संस्कृति का महाकाव्य है।"
    • गोदान उपन्यास में कृषि जीवन को बताया गया है।
    • साथ ही इसमें कृषि में आने वाली समस्याएं जैसे सूदखोरी की समस्या, जमीन दारी शोषण का कृषकों पर प्रभाव, समकालीन समाज की समस्या आदि को बतलाया गया है।Additional Information
    • गोदान उपन्यास की विशेषताएं:-
    • गोदान, प्रेमचन्द का अंतिम और सबसे महत्वपूर्ण उपन्यास माना जाता है। 
    • इसमें प्रगतिवाद, गांधीवाद और मार्क्सवाद (साम्यवाद) का पूर्ण परिप्रेक्ष्य में चित्रण हुआ है।
    • ग्रामीण जीवन और कृषि संस्कृति का महाकाव्य है। 

    Important Points

    • काव्यग्रंथ - कविताओं से भरा ग्रन्थ
    • कथाकृति - कहानी संग्रह
    • महाकाव्य - बड़ा काव्य
    • अद्वितीय-बेजोड़।
  • Question 2
    5 / -1

    Directions For Questions

    निर्देश: निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़िए व प्रश्नों के उत्तर दीजिये-

    'गोदान' प्रेमचन्द जी की उन अमर कृतियों में से एक है, जिसमे ग्रामीण भारत की आत्मा का करुण चित्र साकार हो उठा है। इसी कारण कई मनीषी आलोचक इसे ग्रामीण भारतीय परिवेशगत समस्याओं का महाकाव्य मानते हैं, तो कई विद्वान इसे ग्रामीण - जीवन और कृषि संस्कृति का शोक गीत स्वीकारते हैं। कुछ विद्वान तो ऐसे भी हैं, जो इस उपन्यास को ग्रामीण भारत की आधुनिक 'गीता' तक स्वीकार करते हैं, जो कुछ भी हो, 'गोदान' वास्तव में मुंशी प्रेमचन्द का एक ऐसा उपन्यास है, जिसमे आचार - विचार, संस्कार और प्राकृतिक परिवेश, जो गहन करुणा से युक्त है, प्रतिबिंबित हो उठा है।
    डॉ. गोपाल रॉय का कहना है कि - 'गोदान' ग्राम जीवन और ग्राम संस्कृति को उसकी सम्पूर्णता में प्रस्तुत करने वाला अद्वितीय उपन्यास है, न केवल हिन्दी के वरन किसी भी भारतीय भाषा के किसी भी उपन्यास में ग्रामीण समाज का ऐसा व्यापक यथार्थ और सहानुभूतिपूर्ण चित्रण नहीं हुआ है। ग्रामीण जीवन और संस्कृति के अंकन की दृष्टि से इस उपन्यास का वही महत्त्व है, जो आधुनिक युग में युग जीवन की अभिव्यक्ति की दृष्टि से महाकाव्यों का हुआ करता था। इस प्रकार डॉ. रॉय गोदान को आधुनिक युग का महाकाव्य ही नहीं स्वीकारते वरन सर्वश्रेष्ठ महाकाव्य भी स्वीकारते हैं। उनके इस कथन का यही, आशय है कि प्रेमचन्द जी ने ग्राम जीवन से सम्बद्ध सभी पक्षों का न केवल अत्यंत विशदता से चित्रण किया है, वरन उनकी गहराइयों में जाकर उनके सच्चे चित्र प्रस्तुत कर दिए हैं।
    प्रेमचन्द जी ने जिस ग्राम जीवन का चित्र गोदान में प्रस्तुत किया है: उसका सम्बन्ध आज ग्राम - परिवेश से न होकर तत्कालीन ग्राम जीवन से है। ग्रामीण जीवन को वास्तविक आधार प्रदान करने के लिए प्रेमचन्द जी ने चित्र के अनुरूप ही कुछ ऐसे खाँचे अथवा चित्रफलक निर्मित किये हैं, जो चित्र को यथार्थ बनाने के लिए सहयोगी सिद्ध हुए हैं। ग्रामीण किसानो के घर - द्वार, खेत - खलिहान और प्राकृतिक दृश्यों का ऐसा वास्तविक चित्रण अन्यत्र दुर्लभ है।

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    'गोदान' को किसने महाकाव्य माना है?
    Solution
    'गोदान' को डॉ. गोपाल रॉय ने 'महाकाव्य' माना है
    Key Points 
    गद्यांश में आया हुआ उल्लेख:
    • डॉ. गोपाल रॉय का कहना है कि - 'गोदान' ग्राम जीवन और ग्राम संस्कृति को उसकी सम्पूर्णता में प्रस्तुत करने वाला अद्वितीय उपन्यास है, न केवल हिन्दी के वरन किसी भी भारतीय भाषा के किसी भी उपन्यास में ग्रामीण समाज का ऐसा व्यापक यथार्थ और सहानुभूतिपूर्ण चित्रण नही हुआ है।
    Additional Information 
    • रामविलास शर्मा आधुनिक हिंदी साहित्य के सुप्रसिद्ध आलोचक,निबंधकार,विचारक एवं कवि थे।
    • रामविलास शर्मा का प्रथम आलोचनात्मक लेख 'निरालाजी की कविता' है जो चर्चित पत्रिका 'चाँद' में प्रकाशित हुई।
    • गोदान प्रेमचंद की सर्वाधिक लोकप्रिय व कालजयी उपन्यास है
    • सभी आलोचकों ने प्रेमचंद को कृषक और सामाजिक जीवन का कथाकार कहा है।
  • Question 3
    5 / -1

    Directions For Questions

    निर्देश: निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़िए व प्रश्नों के उत्तर दीजिये-

    'गोदान' प्रेमचन्द जी की उन अमर कृतियों में से एक है, जिसमे ग्रामीण भारत की आत्मा का करुण चित्र साकार हो उठा है। इसी कारण कई मनीषी आलोचक इसे ग्रामीण भारतीय परिवेशगत समस्याओं का महाकाव्य मानते हैं, तो कई विद्वान इसे ग्रामीण - जीवन और कृषि संस्कृति का शोक गीत स्वीकारते हैं। कुछ विद्वान तो ऐसे भी हैं, जो इस उपन्यास को ग्रामीण भारत की आधुनिक 'गीता' तक स्वीकार करते हैं, जो कुछ भी हो, 'गोदान' वास्तव में मुंशी प्रेमचन्द का एक ऐसा उपन्यास है, जिसमे आचार - विचार, संस्कार और प्राकृतिक परिवेश, जो गहन करुणा से युक्त है, प्रतिबिंबित हो उठा है।
    डॉ. गोपाल रॉय का कहना है कि - 'गोदान' ग्राम जीवन और ग्राम संस्कृति को उसकी सम्पूर्णता में प्रस्तुत करने वाला अद्वितीय उपन्यास है, न केवल हिन्दी के वरन किसी भी भारतीय भाषा के किसी भी उपन्यास में ग्रामीण समाज का ऐसा व्यापक यथार्थ और सहानुभूतिपूर्ण चित्रण नहीं हुआ है। ग्रामीण जीवन और संस्कृति के अंकन की दृष्टि से इस उपन्यास का वही महत्त्व है, जो आधुनिक युग में युग जीवन की अभिव्यक्ति की दृष्टि से महाकाव्यों का हुआ करता था। इस प्रकार डॉ. रॉय गोदान को आधुनिक युग का महाकाव्य ही नहीं स्वीकारते वरन सर्वश्रेष्ठ महाकाव्य भी स्वीकारते हैं। उनके इस कथन का यही, आशय है कि प्रेमचन्द जी ने ग्राम जीवन से सम्बद्ध सभी पक्षों का न केवल अत्यंत विशदता से चित्रण किया है, वरन उनकी गहराइयों में जाकर उनके सच्चे चित्र प्रस्तुत कर दिए हैं।
    प्रेमचन्द जी ने जिस ग्राम जीवन का चित्र गोदान में प्रस्तुत किया है: उसका सम्बन्ध आज ग्राम - परिवेश से न होकर तत्कालीन ग्राम जीवन से है। ग्रामीण जीवन को वास्तविक आधार प्रदान करने के लिए प्रेमचन्द जी ने चित्र के अनुरूप ही कुछ ऐसे खाँचे अथवा चित्रफलक निर्मित किये हैं, जो चित्र को यथार्थ बनाने के लिए सहयोगी सिद्ध हुए हैं। ग्रामीण किसानो के घर - द्वार, खेत - खलिहान और प्राकृतिक दृश्यों का ऐसा वास्तविक चित्रण अन्यत्र दुर्लभ है।

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    गोदान को ग्रामीण जीवन का महाकाव्य कहने का क्या तात्पर्य है?
    Solution
    गोदान में ग्रामीण जीवन के सभी पहलुओ का विस्तृत वर्णन हुआ है
    Key Points 
    • गोदानप्रेमचन्द का अंतिम और सबसे महत्वपूर्ण उपन्यास माना जाता है। कुछ लोग इसे उनकी सर्वोत्तम कृति भी मानते हैं। इसका प्रकाशन 1936 ई० में हिन्दी ग्रन्थ रत्नाकर कार्यालय, बम्बई द्वारा किया गया था। इसमें भारतीय ग्राम समाज एवं परिवेश का सजीव चित्रण है। गोदान ग्राम्य जीवन और कृषि संस्कृति का महाकाव्य है। इसमें प्रगतिवादगांधीवाद और मार्क्सवाद (साम्यवाद) का पूर्ण परिप्रेक्ष्य में चित्रण हुआ है।
    • गोदान हिंदी के उपन्यास-साहित्य के विकास का उज्वलतम प्रकाशस्तंभ है। गोदान के नायक और नायिका होरी और धनिया के परिवार के रूप में हम भारत की एक विशेष संस्कृति को सजीव और साकार पाते हैं, ऐसी संस्कृति जो अब समाप्त हो रही है या हो जाने को है, फिर भी जिसमें भारत की मिट्टी की सोंधी सुबास भरी है। प्रेमचंद ने इसे अमर बना दिया है। Additional Information

    प्रेमचंद  का परिचय - 

    • धनपत राय श्रीवास्तव (31 जुलाई 1880 – 8 अक्टूबर 1936) जो नाम से जाने जाते हैं, वो हिन्दी और उर्दू के सर्वाधिक लोकप्रिय उपन्यासकारकहानीकार एवं विचारक थे।
    • उन्होंने सेवासदन, प्रेमाश्रम, रंगभूमि, निर्मला, गबन, कर्मभूमि, गोदान आदि लगभग डेढ़ दर्जन उपन्यास तथा कफन, पूस की रात, पंच परमेश्वर, बड़े घर की बेटी, बूढ़ी काकी, दो बैलों की कथा आदि तीन सौ से अधिक कहानियाँ लिखीं।
    • उन्होंने हिंदी समाचार पत्र जागरण  तथा साहित्यिक पत्रिका हंस का संपादन और प्रकाशन भी किया।
    •  हिंदी कहानी तथा उपन्यास के क्षेत्र में 1918 से 1936 तक के कालखंड (कालखण्ड) को 'प्रेमचंद युग' या 'प्रेमचन्द युग' कहा जाता है।
  • Question 4
    5 / -1

    Directions For Questions

    निर्देश: निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़िए व प्रश्नों के उत्तर दीजिये-

    'गोदान' प्रेमचन्द जी की उन अमर कृतियों में से एक है, जिसमे ग्रामीण भारत की आत्मा का करुण चित्र साकार हो उठा है। इसी कारण कई मनीषी आलोचक इसे ग्रामीण भारतीय परिवेशगत समस्याओं का महाकाव्य मानते हैं, तो कई विद्वान इसे ग्रामीण - जीवन और कृषि संस्कृति का शोक गीत स्वीकारते हैं। कुछ विद्वान तो ऐसे भी हैं, जो इस उपन्यास को ग्रामीण भारत की आधुनिक 'गीता' तक स्वीकार करते हैं, जो कुछ भी हो, 'गोदान' वास्तव में मुंशी प्रेमचन्द का एक ऐसा उपन्यास है, जिसमे आचार - विचार, संस्कार और प्राकृतिक परिवेश, जो गहन करुणा से युक्त है, प्रतिबिंबित हो उठा है।
    डॉ. गोपाल रॉय का कहना है कि - 'गोदान' ग्राम जीवन और ग्राम संस्कृति को उसकी सम्पूर्णता में प्रस्तुत करने वाला अद्वितीय उपन्यास है, न केवल हिन्दी के वरन किसी भी भारतीय भाषा के किसी भी उपन्यास में ग्रामीण समाज का ऐसा व्यापक यथार्थ और सहानुभूतिपूर्ण चित्रण नहीं हुआ है। ग्रामीण जीवन और संस्कृति के अंकन की दृष्टि से इस उपन्यास का वही महत्त्व है, जो आधुनिक युग में युग जीवन की अभिव्यक्ति की दृष्टि से महाकाव्यों का हुआ करता था। इस प्रकार डॉ. रॉय गोदान को आधुनिक युग का महाकाव्य ही नहीं स्वीकारते वरन सर्वश्रेष्ठ महाकाव्य भी स्वीकारते हैं। उनके इस कथन का यही, आशय है कि प्रेमचन्द जी ने ग्राम जीवन से सम्बद्ध सभी पक्षों का न केवल अत्यंत विशदता से चित्रण किया है, वरन उनकी गहराइयों में जाकर उनके सच्चे चित्र प्रस्तुत कर दिए हैं।
    प्रेमचन्द जी ने जिस ग्राम जीवन का चित्र गोदान में प्रस्तुत किया है: उसका सम्बन्ध आज ग्राम - परिवेश से न होकर तत्कालीन ग्राम जीवन से है। ग्रामीण जीवन को वास्तविक आधार प्रदान करने के लिए प्रेमचन्द जी ने चित्र के अनुरूप ही कुछ ऐसे खाँचे अथवा चित्रफलक निर्मित किये हैं, जो चित्र को यथार्थ बनाने के लिए सहयोगी सिद्ध हुए हैं। ग्रामीण किसानो के घर - द्वार, खेत - खलिहान और प्राकृतिक दृश्यों का ऐसा वास्तविक चित्रण अन्यत्र दुर्लभ है।

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    'गोदान' के पक्ष में कौन सा कथन असत्य है?
    Solution
    गोदान में शहर की चकाचौंध से विमुख मनुष्यता का चित्रण किया गया है। यह वर्णनं हमें गोदान में नही देखने को मिलता है।
    Key Points 
    • गोदान (1936 ई.)
      • गोदान, प्रेमचन्द का अंतिम और सबसे महत्वपूर्ण उपन्यास माना जाता है। 
      • इसका प्रकाशन 1936 ई० में हिन्दी ग्रन्थ रत्नाकर कार्यालय, बम्बई द्वारा किया गया था।
      • गोदान में भारतीय किसान का संपूर्ण जीवन - उसकी आकांक्षा और निराशा, उसकी धर्मभीरुता और भारतपरायणता के साथ स्वार्थपरता ओर बैठकबाजी, उसकी बेबसी और निरीहता- का जीता जागता चित्र उपस्थित किया गया है।
      • प्रमुख पात्र 
        • ग्रामीण पात्र :- होरी, झिंगुरी सिंह, सिलिया, गोबर, धनिया, झुनिया, दातादीन, मातादीन, नोखे राम
        • नगरीय पात्र :-  दुलारी, सहूआइन, राय साहब, अमरपाल सिंह, ओंकारनाथ, श्याम बिहारी तन्खा, खन्ना, मेहता, मिर्जाखुर्शीद,मालतीAdditional Information
          प्रेमचंद की कहानियाँ और उपन्यास
        • उपन्यास
          गोदान · ग़बन · कर्मभूमि · कायाकल्प · निर्मला · प्रतिज्ञा · प्रेमाश्रम · मंगलसूत्र (अपूर्ण) · अलंकार
        • प्रेमाश्रम,रूठी रानी,शेख़ सादी 
  • Question 5
    5 / -1

    Directions For Questions

    निर्देश: निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़िए व प्रश्नों के उत्तर दीजिये-

    'गोदान' प्रेमचन्द जी की उन अमर कृतियों में से एक है, जिसमे ग्रामीण भारत की आत्मा का करुण चित्र साकार हो उठा है। इसी कारण कई मनीषी आलोचक इसे ग्रामीण भारतीय परिवेशगत समस्याओं का महाकाव्य मानते हैं, तो कई विद्वान इसे ग्रामीण - जीवन और कृषि संस्कृति का शोक गीत स्वीकारते हैं। कुछ विद्वान तो ऐसे भी हैं, जो इस उपन्यास को ग्रामीण भारत की आधुनिक 'गीता' तक स्वीकार करते हैं, जो कुछ भी हो, 'गोदान' वास्तव में मुंशी प्रेमचन्द का एक ऐसा उपन्यास है, जिसमे आचार - विचार, संस्कार और प्राकृतिक परिवेश, जो गहन करुणा से युक्त है, प्रतिबिंबित हो उठा है।
    डॉ. गोपाल रॉय का कहना है कि - 'गोदान' ग्राम जीवन और ग्राम संस्कृति को उसकी सम्पूर्णता में प्रस्तुत करने वाला अद्वितीय उपन्यास है, न केवल हिन्दी के वरन किसी भी भारतीय भाषा के किसी भी उपन्यास में ग्रामीण समाज का ऐसा व्यापक यथार्थ और सहानुभूतिपूर्ण चित्रण नहीं हुआ है। ग्रामीण जीवन और संस्कृति के अंकन की दृष्टि से इस उपन्यास का वही महत्त्व है, जो आधुनिक युग में युग जीवन की अभिव्यक्ति की दृष्टि से महाकाव्यों का हुआ करता था। इस प्रकार डॉ. रॉय गोदान को आधुनिक युग का महाकाव्य ही नहीं स्वीकारते वरन सर्वश्रेष्ठ महाकाव्य भी स्वीकारते हैं। उनके इस कथन का यही, आशय है कि प्रेमचन्द जी ने ग्राम जीवन से सम्बद्ध सभी पक्षों का न केवल अत्यंत विशदता से चित्रण किया है, वरन उनकी गहराइयों में जाकर उनके सच्चे चित्र प्रस्तुत कर दिए हैं।
    प्रेमचन्द जी ने जिस ग्राम जीवन का चित्र गोदान में प्रस्तुत किया है: उसका सम्बन्ध आज ग्राम - परिवेश से न होकर तत्कालीन ग्राम जीवन से है। ग्रामीण जीवन को वास्तविक आधार प्रदान करने के लिए प्रेमचन्द जी ने चित्र के अनुरूप ही कुछ ऐसे खाँचे अथवा चित्रफलक निर्मित किये हैं, जो चित्र को यथार्थ बनाने के लिए सहयोगी सिद्ध हुए हैं। ग्रामीण किसानो के घर - द्वार, खेत - खलिहान और प्राकृतिक दृश्यों का ऐसा वास्तविक चित्रण अन्यत्र दुर्लभ है।

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    'उपन्यास' में कौन सा उपसर्ग है?
    Solution

    दिए गए विकल्पों में से ‘उपन्यास’ शब्द ‘उप’ उपसर्ग से बना है। अन्य विकल्प इसके उचित उत्तर नहीं हैं। अत: इसका सही उत्तर विकल्प  'उप' है।

    उप’ उपसर्ग से बनने वाले अन्य शब्द - उपवन, उपकूल, उपकार

    उप’ का अर्थ है – सहायता

    अन्य विकल्प :
    न्यास का अर्थ -स्थापित करना      

    Additional Information

    शब्द

    परिभाषा

    उदाहरण

    उपसर्ग

    ऐसे शब्दांश जो किसी शब्द के पूर्व जुड़कर उसके अर्थ में परिवर्तन कर देते हैं।

    प्रति + क्षण = प्रतिक्षण

    सम् + गम = संगम

  • Question 6
    5 / -1

    Directions For Questions

    सूरदास के 'भ्रमरगीत” का तथा “जायसी ग्रन्थावली' का सम्पादन करने के साथ-साथ राम चन्द्र जी शुक्ल ने “हिन्दी साहित्य का इतिहास' भी लिखा जो नागरी सभा द्वारा प्रकाशित 'हिन्दी शब्द सागर” की भूमिका के रूप में लिखा गया था। यह भूमिका 'हिन्दी साहित्य का विकास' नाम से छपी थी। आपके द्वारा लिखा गया यह इतिहास हिन्दी साहित्य के इतिहास लेखन में मील का पत्थर सिद्ध हुआ जिसकी मान्यता आज भी है। शुक्ल जी की भाषा शुद्ध परिष्कृत मानक हिन्दी है। भाषा पर उनका विलक्षण अधिकार है। उनका वाक्य गठन बैजोड़ है, जिसमें से एक शब्द को भी इधर कर पाना सम्भव नहीं है उनकी निबन्ध शैली विषय के अनुरूप बदलती है। शुक्ल जी के निबन्ध हिन्दी निबन्ध कला के निकष हैं। उनमें हृदय और बुद्धि का संतुलित समन्वय है। चिन्तामणि में संकलित निबन्ध दो प्रकार के हैं--भाव या मनोविकार सम्बन्धी तथा समीक्षा सम्बन्धी। शुक्ल जी अपने विचारों को इतनी कुशलता से व्यक्त करते हैं कि पाठकों को उनके निष्कर्षों से सहमत होना ही पड़ता है परिष्कृत प्रांजल भाषा के साथ-साथ उनका शब्द चयन वाक्य विन्यास एवं सादृश्य विधान अनुपम है। उनके निबन्ध 'शैली ही व्यक्तित्व है' के उदाहरण माने जा सकते हैं। इन निबन्धों में शुक्ल जी के व्यक्तित्व की पूरी छाप विद्यमान है।

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    गद्यांश के अनुसार भ्रमर गीत के रचनाकार कौन है?
    Solution
    • गद्यांश के अनुसार भ्रमर गीत के रचनाकार "सूरदास" है। अत: सही विकल्प 3 "सूरदास" है।

    Key Points

    • सूरदास की अन्य रचनाएँ:- साहित्य सागर, साहित्य लहरी
    • भ्रमरगीत और जायसी ग्रन्थावली का सम्पादन आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने किया। 
    • जायसी ने- पद्मावत नामक प्रसिद्ध महाकाव्य लिखा था। 
  • Question 7
    5 / -1

    Directions For Questions

    सूरदास के 'भ्रमरगीत” का तथा “जायसी ग्रन्थावली' का सम्पादन करने के साथ-साथ राम चन्द्र जी शुक्ल ने “हिन्दी साहित्य का इतिहास' भी लिखा जो नागरी सभा द्वारा प्रकाशित 'हिन्दी शब्द सागर” की भूमिका के रूप में लिखा गया था। यह भूमिका 'हिन्दी साहित्य का विकास' नाम से छपी थी। आपके द्वारा लिखा गया यह इतिहास हिन्दी साहित्य के इतिहास लेखन में मील का पत्थर सिद्ध हुआ जिसकी मान्यता आज भी है। शुक्ल जी की भाषा शुद्ध परिष्कृत मानक हिन्दी है। भाषा पर उनका विलक्षण अधिकार है। उनका वाक्य गठन बैजोड़ है, जिसमें से एक शब्द को भी इधर कर पाना सम्भव नहीं है उनकी निबन्ध शैली विषय के अनुरूप बदलती है। शुक्ल जी के निबन्ध हिन्दी निबन्ध कला के निकष हैं। उनमें हृदय और बुद्धि का संतुलित समन्वय है। चिन्तामणि में संकलित निबन्ध दो प्रकार के हैं--भाव या मनोविकार सम्बन्धी तथा समीक्षा सम्बन्धी। शुक्ल जी अपने विचारों को इतनी कुशलता से व्यक्त करते हैं कि पाठकों को उनके निष्कर्षों से सहमत होना ही पड़ता है परिष्कृत प्रांजल भाषा के साथ-साथ उनका शब्द चयन वाक्य विन्यास एवं सादृश्य विधान अनुपम है। उनके निबन्ध 'शैली ही व्यक्तित्व है' के उदाहरण माने जा सकते हैं। इन निबन्धों में शुक्ल जी के व्यक्तित्व की पूरी छाप विद्यमान है।

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    चिंतामणि के प्रमुख भागो में संकलित निबन्धों के प्रकार है:-
    Solution

    चिंतामणि के प्रमुख भागो के नाम:- भाव, समीक्षा है। अत: सही विकल्प 1 "भाव, समीक्षा" है।

    Key Points

    • चिन्तामणि में संकलित निबन्ध दो प्रकार के हैं--भाव या मनोविकार सम्बन्धी तथा समीक्षा सम्बन्धी
    • समीक्षा सम्बन्धित निबन्धों का अर्थ है किसी भी विषय पर चर्चा ज्सिमे उसके गुण, दोष सभी संकलित हो समीक्षा कहलाती है।
  • Question 8
    5 / -1

    Directions For Questions

    सूरदास के 'भ्रमरगीत” का तथा “जायसी ग्रन्थावली' का सम्पादन करने के साथ-साथ राम चन्द्र जी शुक्ल ने “हिन्दी साहित्य का इतिहास' भी लिखा जो नागरी सभा द्वारा प्रकाशित 'हिन्दी शब्द सागर” की भूमिका के रूप में लिखा गया था। यह भूमिका 'हिन्दी साहित्य का विकास' नाम से छपी थी। आपके द्वारा लिखा गया यह इतिहास हिन्दी साहित्य के इतिहास लेखन में मील का पत्थर सिद्ध हुआ जिसकी मान्यता आज भी है। शुक्ल जी की भाषा शुद्ध परिष्कृत मानक हिन्दी है। भाषा पर उनका विलक्षण अधिकार है। उनका वाक्य गठन बैजोड़ है, जिसमें से एक शब्द को भी इधर कर पाना सम्भव नहीं है उनकी निबन्ध शैली विषय के अनुरूप बदलती है। शुक्ल जी के निबन्ध हिन्दी निबन्ध कला के निकष हैं। उनमें हृदय और बुद्धि का संतुलित समन्वय है। चिन्तामणि में संकलित निबन्ध दो प्रकार के हैं--भाव या मनोविकार सम्बन्धी तथा समीक्षा सम्बन्धी। शुक्ल जी अपने विचारों को इतनी कुशलता से व्यक्त करते हैं कि पाठकों को उनके निष्कर्षों से सहमत होना ही पड़ता है परिष्कृत प्रांजल भाषा के साथ-साथ उनका शब्द चयन वाक्य विन्यास एवं सादृश्य विधान अनुपम है। उनके निबन्ध 'शैली ही व्यक्तित्व है' के उदाहरण माने जा सकते हैं। इन निबन्धों में शुक्ल जी के व्यक्तित्व की पूरी छाप विद्यमान है।

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    हिन्दी निबन्ध कला में प्रमुख निबन्ध किन के द्वारा लिखे गए है।
    Solution
    • हिन्दी निबन्ध कला में प्रमुख निबन्ध :- रामचन्द्र शुक्ल द्वारा लिखे गए है। अत: सही विकल्प 3 "आचार्य रामचन्द्र शुक्ल" है।

    Key Points

    • हिन्दी निबन्ध कला में प्रमुख निबन्ध:- "शुक्ल जी के,  निबन्ध हिन्दी निबन्ध कला के निकष हैं।"
    • निकष का अर्थ:-  निचोड़
    • निकष के अन्य अर्थ:- कसौटी, हथियार की धार तेज़ करने के लिए उसे सान पर चढ़ाना
  • Question 9
    5 / -1

    Directions For Questions

    सूरदास के 'भ्रमरगीत” का तथा “जायसी ग्रन्थावली' का सम्पादन करने के साथ-साथ राम चन्द्र जी शुक्ल ने “हिन्दी साहित्य का इतिहास' भी लिखा जो नागरी सभा द्वारा प्रकाशित 'हिन्दी शब्द सागर” की भूमिका के रूप में लिखा गया था। यह भूमिका 'हिन्दी साहित्य का विकास' नाम से छपी थी। आपके द्वारा लिखा गया यह इतिहास हिन्दी साहित्य के इतिहास लेखन में मील का पत्थर सिद्ध हुआ जिसकी मान्यता आज भी है। शुक्ल जी की भाषा शुद्ध परिष्कृत मानक हिन्दी है। भाषा पर उनका विलक्षण अधिकार है। उनका वाक्य गठन बैजोड़ है, जिसमें से एक शब्द को भी इधर कर पाना सम्भव नहीं है उनकी निबन्ध शैली विषय के अनुरूप बदलती है। शुक्ल जी के निबन्ध हिन्दी निबन्ध कला के निकष हैं। उनमें हृदय और बुद्धि का संतुलित समन्वय है। चिन्तामणि में संकलित निबन्ध दो प्रकार के हैं--भाव या मनोविकार सम्बन्धी तथा समीक्षा सम्बन्धी। शुक्ल जी अपने विचारों को इतनी कुशलता से व्यक्त करते हैं कि पाठकों को उनके निष्कर्षों से सहमत होना ही पड़ता है परिष्कृत प्रांजल भाषा के साथ-साथ उनका शब्द चयन वाक्य विन्यास एवं सादृश्य विधान अनुपम है। उनके निबन्ध 'शैली ही व्यक्तित्व है' के उदाहरण माने जा सकते हैं। इन निबन्धों में शुक्ल जी के व्यक्तित्व की पूरी छाप विद्यमान है।

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    "भ्रमरगीत” का तथा “जायसी ग्रन्थावली" का सम्पादन किया:-
    Solution
    • "भ्रमरगीत” का तथा “जायसी ग्रन्थावली" का सम्पादन:- "आचार्य रामचन्द्र शुक्ल" ने किया।

    Key Points

    • आचार्य रामचन्द्र शुक्ल हिन्दी के महान विद्वान और इतिहास कार है।
    • आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने लिखा “हिन्दी साहित्य का इतिहास" भी लिखा जो नागरी सभा द्वारा प्रकाशित 'हिन्दी शब्द सागर” की भूमिका के रूप में लिखा गया था।
    • यह भूमिका 'हिन्दी साहित्य का विकास' नाम से छपी थी।  

    Additional Information 

    • भ्रमर गीत - सूरदास जी की रचना है।
    • जायसी की रचना :- पद्मावत है।
      • उक्त रचनाएँ सैकड़ो सालो पुरानी है जिनको खोज करके आचार्य रामचन्द्र जी ने सम्पादित किया।
  • Question 10
    5 / -1

    Directions For Questions

    सूरदास के 'भ्रमरगीत” का तथा “जायसी ग्रन्थावली' का सम्पादन करने के साथ-साथ राम चन्द्र जी शुक्ल ने “हिन्दी साहित्य का इतिहास' भी लिखा जो नागरी सभा द्वारा प्रकाशित 'हिन्दी शब्द सागर” की भूमिका के रूप में लिखा गया था। यह भूमिका 'हिन्दी साहित्य का विकास' नाम से छपी थी। आपके द्वारा लिखा गया यह इतिहास हिन्दी साहित्य के इतिहास लेखन में मील का पत्थर सिद्ध हुआ जिसकी मान्यता आज भी है। शुक्ल जी की भाषा शुद्ध परिष्कृत मानक हिन्दी है। भाषा पर उनका विलक्षण अधिकार है। उनका वाक्य गठन बैजोड़ है, जिसमें से एक शब्द को भी इधर कर पाना सम्भव नहीं है उनकी निबन्ध शैली विषय के अनुरूप बदलती है। शुक्ल जी के निबन्ध हिन्दी निबन्ध कला के निकष हैं। उनमें हृदय और बुद्धि का संतुलित समन्वय है। चिन्तामणि में संकलित निबन्ध दो प्रकार के हैं--भाव या मनोविकार सम्बन्धी तथा समीक्षा सम्बन्धी। शुक्ल जी अपने विचारों को इतनी कुशलता से व्यक्त करते हैं कि पाठकों को उनके निष्कर्षों से सहमत होना ही पड़ता है परिष्कृत प्रांजल भाषा के साथ-साथ उनका शब्द चयन वाक्य विन्यास एवं सादृश्य विधान अनुपम है। उनके निबन्ध 'शैली ही व्यक्तित्व है' के उदाहरण माने जा सकते हैं। इन निबन्धों में शुक्ल जी के व्यक्तित्व की पूरी छाप विद्यमान है।

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    भाव या मनोविकार सम्बन्धी तथा समीक्षा सम्बन्धी में........ मनोविकार का अर्थ:-
    Solution
    • भाव या मनोविकार सम्बन्धी तथा समीक्षा सम्बन्धी में........ मनोविकार का अर्थ:- मन के आवेग है।

    Key Points

    • मन के आवेग:- मन में उत्पन होने वाले सभी आवेग मनोविकार कहलाते है।
    • जैसे:- ख़ुशी, दुःख, उत्साह, करुणा सभी मन के आवेग है। 
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