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Hindi Test - 22...

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  • Question 1
    5 / -1

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    निर्देश: 'असाध्य वीणा' कविता में अज्ञेंय ने दो पक्षों को सामने रखा है। एक पक्ष जो दरबार और दरबारी संस्कृति का है और दूसरा जो अकेला प्रियंवद है। यह एक तरह से हमारे समय और समाज का ही चित्रण है। सत्ता जहाँ विरोधी को अकेला करने की साजिश दिन-रात करती है। यह समय जो कि अकृत ताकत और हिंसा से भरा है। ये राजसी वैभव जहाँ की संस्कृति भी दूषित है। यहाँ सब कुछ पहुँच और चाटुकारिता पर निर्भर है। सत्य और निष्ठा पर विश्वास करने वालों के लिए उस दरबार में कोई जगह नहीं है। वहाँ वही भरे हैं जो ज्ञानी और गुणी हैं। एकदम कलावंत। उनकी भाषा में शासन की भाषा बोलती है। जबकि कला के लिए यह एकदम विरोधी स्थिति है। जहाँ ताकत होगी वहाँ कला नहीं होगी। कल्ना और ताकत एक-दूसरे के दुश्मन हैं। यही कारण है कि वीणा को बजाने की सब कोशिश करते हैं पर वह बजती किसी से नहीं। राजा भी इस सच को देख रहा है, 'मेरे हार गए जाने माने सब कलावन्त / सबकी विद्या हो गई अकारथ, दर्प चूर / कोई ज्ञानी गुणी आज तक इसे न साध सका।' पर वह कुछ नहीं कर सकता। उसे भी ऐसे दरबारियों की आदत सी हो गई है। उसे वैसी ही भीड़ चाहिए जो उसका गुण गाए। उसकी तारीफ में कसीदे गढ़े। इस राजा में इतनी चेतना बची है कि वह वीणा के संगीत को सुनने की इच्छा भी रखता है। यह इच्छा संगीत के प्रति राजसी इच्छा प्रकृति से कुछ भिन्‍न है। प्रियंदद केशकंवली का आना ही इसी इच्छा को फलीभूत होते देखना है। उसे पता है कि “वीणा बोलेगी आवश्य, पर तभी/जब इसे सच्चा-स्वरसिद्ध गोद लेगा।' उसके भीतर भी ईर्ष्या, महत्वाकांक्षा, द्वेष, चाटुता भरा हुआ है जो शासन का अनिवार्य अंग बन गया है। पर उसमें मनुष्यता और करुणा का स्रोत अभी सूखा नहीं है। यही कारण है कि संगीत को सुनने के बाद ये सभी “पुराने लुगड़े से झर गए" और वह वैसे ही निखर गया जैसे तपने के बाद सोना निखर जाता है।

    उपर्युक्त गद्यांश को पढ़कर नीचे पूछे गए प्रश्न का उत्तर बताइये: 

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    वीणा अवश्य कब बोलेगी?

  • Question 2
    5 / -1

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    निर्देश: 'असाध्य वीणा' कविता में अज्ञेंय ने दो पक्षों को सामने रखा है। एक पक्ष जो दरबार और दरबारी संस्कृति का है और दूसरा जो अकेला प्रियंवद है। यह एक तरह से हमारे समय और समाज का ही चित्रण है। सत्ता जहाँ विरोधी को अकेला करने की साजिश दिन-रात करती है। यह समय जो कि अकृत ताकत और हिंसा से भरा है। ये राजसी वैभव जहाँ की संस्कृति भी दूषित है। यहाँ सब कुछ पहुँच और चाटुकारिता पर निर्भर है। सत्य और निष्ठा पर विश्वास करने वालों के लिए उस दरबार में कोई जगह नहीं है। वहाँ वही भरे हैं जो ज्ञानी और गुणी हैं। एकदम कलावंत। उनकी भाषा में शासन की भाषा बोलती है। जबकि कला के लिए यह एकदम विरोधी स्थिति है। जहाँ ताकत होगी वहाँ कला नहीं होगी। कल्ना और ताकत एक-दूसरे के दुश्मन हैं। यही कारण है कि वीणा को बजाने की सब कोशिश करते हैं पर वह बजती किसी से नहीं। राजा भी इस सच को देख रहा है, 'मेरे हार गए जाने माने सब कलावन्त / सबकी विद्या हो गई अकारथ, दर्प चूर / कोई ज्ञानी गुणी आज तक इसे न साध सका।' पर वह कुछ नहीं कर सकता। उसे भी ऐसे दरबारियों की आदत सी हो गई है। उसे वैसी ही भीड़ चाहिए जो उसका गुण गाए। उसकी तारीफ में कसीदे गढ़े। इस राजा में इतनी चेतना बची है कि वह वीणा के संगीत को सुनने की इच्छा भी रखता है। यह इच्छा संगीत के प्रति राजसी इच्छा प्रकृति से कुछ भिन्‍न है। प्रियंदद केशकंवली का आना ही इसी इच्छा को फलीभूत होते देखना है। उसे पता है कि “वीणा बोलेगी आवश्य, पर तभी/जब इसे सच्चा-स्वरसिद्ध गोद लेगा।' उसके भीतर भी ईर्ष्या, महत्वाकांक्षा, द्वेष, चाटुता भरा हुआ है जो शासन का अनिवार्य अंग बन गया है। पर उसमें मनुष्यता और करुणा का स्रोत अभी सूखा नहीं है। यही कारण है कि संगीत को सुनने के बाद ये सभी “पुराने लुगड़े से झर गए" और वह वैसे ही निखर गया जैसे तपने के बाद सोना निखर जाता है।

    उपर्युक्त गद्यांश को पढ़कर नीचे पूछे गए प्रश्न का उत्तर बताइये: 

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    कला के लिए एकदम विरोधी स्थिति कौन-सी है ? 

  • Question 3
    5 / -1

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    निर्देश: 'असाध्य वीणा' कविता में अज्ञेंय ने दो पक्षों को सामने रखा है। एक पक्ष जो दरबार और दरबारी संस्कृति का है और दूसरा जो अकेला प्रियंवद है। यह एक तरह से हमारे समय और समाज का ही चित्रण है। सत्ता जहाँ विरोधी को अकेला करने की साजिश दिन-रात करती है। यह समय जो कि अकृत ताकत और हिंसा से भरा है। ये राजसी वैभव जहाँ की संस्कृति भी दूषित है। यहाँ सब कुछ पहुँच और चाटुकारिता पर निर्भर है। सत्य और निष्ठा पर विश्वास करने वालों के लिए उस दरबार में कोई जगह नहीं है। वहाँ वही भरे हैं जो ज्ञानी और गुणी हैं। एकदम कलावंत। उनकी भाषा में शासन की भाषा बोलती है। जबकि कला के लिए यह एकदम विरोधी स्थिति है। जहाँ ताकत होगी वहाँ कला नहीं होगी। कल्ना और ताकत एक-दूसरे के दुश्मन हैं। यही कारण है कि वीणा को बजाने की सब कोशिश करते हैं पर वह बजती किसी से नहीं। राजा भी इस सच को देख रहा है, 'मेरे हार गए जाने माने सब कलावन्त / सबकी विद्या हो गई अकारथ, दर्प चूर / कोई ज्ञानी गुणी आज तक इसे न साध सका।' पर वह कुछ नहीं कर सकता। उसे भी ऐसे दरबारियों की आदत सी हो गई है। उसे वैसी ही भीड़ चाहिए जो उसका गुण गाए। उसकी तारीफ में कसीदे गढ़े। इस राजा में इतनी चेतना बची है कि वह वीणा के संगीत को सुनने की इच्छा भी रखता है। यह इच्छा संगीत के प्रति राजसी इच्छा प्रकृति से कुछ भिन्‍न है। प्रियंदद केशकंवली का आना ही इसी इच्छा को फलीभूत होते देखना है। उसे पता है कि “वीणा बोलेगी आवश्य, पर तभी/जब इसे सच्चा-स्वरसिद्ध गोद लेगा।' उसके भीतर भी ईर्ष्या, महत्वाकांक्षा, द्वेष, चाटुता भरा हुआ है जो शासन का अनिवार्य अंग बन गया है। पर उसमें मनुष्यता और करुणा का स्रोत अभी सूखा नहीं है। यही कारण है कि संगीत को सुनने के बाद ये सभी “पुराने लुगड़े से झर गए" और वह वैसे ही निखर गया जैसे तपने के बाद सोना निखर जाता है।

    उपर्युक्त गद्यांश को पढ़कर नीचे पूछे गए प्रश्न का उत्तर बताइये: 

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    'असाध्य वीणा' कविता के दुसरे पक्ष में कौन अकेला है ? 

  • Question 4
    5 / -1

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    निर्देश: 'असाध्य वीणा' कविता में अज्ञेंय ने दो पक्षों को सामने रखा है। एक पक्ष जो दरबार और दरबारी संस्कृति का है और दूसरा जो अकेला प्रियंवद है। यह एक तरह से हमारे समय और समाज का ही चित्रण है। सत्ता जहाँ विरोधी को अकेला करने की साजिश दिन-रात करती है। यह समय जो कि अकृत ताकत और हिंसा से भरा है। ये राजसी वैभव जहाँ की संस्कृति भी दूषित है। यहाँ सब कुछ पहुँच और चाटुकारिता पर निर्भर है। सत्य और निष्ठा पर विश्वास करने वालों के लिए उस दरबार में कोई जगह नहीं है। वहाँ वही भरे हैं जो ज्ञानी और गुणी हैं। एकदम कलावंत। उनकी भाषा में शासन की भाषा बोलती है। जबकि कला के लिए यह एकदम विरोधी स्थिति है। जहाँ ताकत होगी वहाँ कला नहीं होगी। कल्ना और ताकत एक-दूसरे के दुश्मन हैं। यही कारण है कि वीणा को बजाने की सब कोशिश करते हैं पर वह बजती किसी से नहीं। राजा भी इस सच को देख रहा है, 'मेरे हार गए जाने माने सब कलावन्त / सबकी विद्या हो गई अकारथ, दर्प चूर / कोई ज्ञानी गुणी आज तक इसे न साध सका।' पर वह कुछ नहीं कर सकता। उसे भी ऐसे दरबारियों की आदत सी हो गई है। उसे वैसी ही भीड़ चाहिए जो उसका गुण गाए। उसकी तारीफ में कसीदे गढ़े। इस राजा में इतनी चेतना बची है कि वह वीणा के संगीत को सुनने की इच्छा भी रखता है। यह इच्छा संगीत के प्रति राजसी इच्छा प्रकृति से कुछ भिन्‍न है। प्रियंदद केशकंवली का आना ही इसी इच्छा को फलीभूत होते देखना है। उसे पता है कि “वीणा बोलेगी आवश्य, पर तभी/जब इसे सच्चा-स्वरसिद्ध गोद लेगा।' उसके भीतर भी ईर्ष्या, महत्वाकांक्षा, द्वेष, चाटुता भरा हुआ है जो शासन का अनिवार्य अंग बन गया है। पर उसमें मनुष्यता और करुणा का स्रोत अभी सूखा नहीं है। यही कारण है कि संगीत को सुनने के बाद ये सभी “पुराने लुगड़े से झर गए" और वह वैसे ही निखर गया जैसे तपने के बाद सोना निखर जाता है।

    उपर्युक्त गद्यांश को पढ़कर नीचे पूछे गए प्रश्न का उत्तर बताइये: 

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    'उसमें मनुष्यता और करुणा स्त्रोत अभी सुखा नहीं है I' यह वाक्य किसके लिए लिखा गया है ? 

  • Question 5
    5 / -1

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    निर्देश: 'असाध्य वीणा' कविता में अज्ञेंय ने दो पक्षों को सामने रखा है। एक पक्ष जो दरबार और दरबारी संस्कृति का है और दूसरा जो अकेला प्रियंवद है। यह एक तरह से हमारे समय और समाज का ही चित्रण है। सत्ता जहाँ विरोधी को अकेला करने की साजिश दिन-रात करती है। यह समय जो कि अकृत ताकत और हिंसा से भरा है। ये राजसी वैभव जहाँ की संस्कृति भी दूषित है। यहाँ सब कुछ पहुँच और चाटुकारिता पर निर्भर है। सत्य और निष्ठा पर विश्वास करने वालों के लिए उस दरबार में कोई जगह नहीं है। वहाँ वही भरे हैं जो ज्ञानी और गुणी हैं। एकदम कलावंत। उनकी भाषा में शासन की भाषा बोलती है। जबकि कला के लिए यह एकदम विरोधी स्थिति है। जहाँ ताकत होगी वहाँ कला नहीं होगी। कल्ना और ताकत एक-दूसरे के दुश्मन हैं। यही कारण है कि वीणा को बजाने की सब कोशिश करते हैं पर वह बजती किसी से नहीं। राजा भी इस सच को देख रहा है, 'मेरे हार गए जाने माने सब कलावन्त / सबकी विद्या हो गई अकारथ, दर्प चूर / कोई ज्ञानी गुणी आज तक इसे न साध सका।' पर वह कुछ नहीं कर सकता। उसे भी ऐसे दरबारियों की आदत सी हो गई है। उसे वैसी ही भीड़ चाहिए जो उसका गुण गाए। उसकी तारीफ में कसीदे गढ़े। इस राजा में इतनी चेतना बची है कि वह वीणा के संगीत को सुनने की इच्छा भी रखता है। यह इच्छा संगीत के प्रति राजसी इच्छा प्रकृति से कुछ भिन्‍न है। प्रियंदद केशकंवली का आना ही इसी इच्छा को फलीभूत होते देखना है। उसे पता है कि “वीणा बोलेगी आवश्य, पर तभी/जब इसे सच्चा-स्वरसिद्ध गोद लेगा।' उसके भीतर भी ईर्ष्या, महत्वाकांक्षा, द्वेष, चाटुता भरा हुआ है जो शासन का अनिवार्य अंग बन गया है। पर उसमें मनुष्यता और करुणा का स्रोत अभी सूखा नहीं है। यही कारण है कि संगीत को सुनने के बाद ये सभी “पुराने लुगड़े से झर गए" और वह वैसे ही निखर गया जैसे तपने के बाद सोना निखर जाता है।

    उपर्युक्त गद्यांश को पढ़कर नीचे पूछे गए प्रश्न का उत्तर बताइये: 

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    'दर्प' से तात्पर्य है ? 

  • Question 6
    5 / -1

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    निर्देश: दिए गए गद्यांश के आधार पर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए ।

    संस्मरण का माध्यम आत्मकथा से प्रेरित होने पर भी शिल्प में उससे भिन्न है। वस्तुत: अकाल्पनिक गद्य-वृत्तों की धारणा सबसे पहले संस्मरण को ही देखकर बनती है । जीवनी और आत्मकथा के साथ इतिहास का संबंध कुछ इस तरह जुड़ा रहा कि उनका साहित्यिक रूप बहुत बाद में विकसित हो पाया, पर संस्मरण आरंभ से ही सर्जनात्मक गद्य का उपयोग करता दिखाई पड़ता है और अपनी व्यापक प्रकृति के कारण विविध गद्य रूपों के बीच केन्द्रीय स्थिति में है । तीव्र भावात्मक गठन और गहरी सर्जनात्मक भाषा के परंपरित काव्य रूप जैसे - उपन्यास, नाटक, कविता आधुनिक त्वरित संचार से उत्पन्न तनावों के युग में सब समय पाठक के लिए रुचिकर नहीं हो पाते | वैसी स्थिति में वह पत्रकारिता के विविध रूपों की ओर उन्मुख होता है जो अपनी प्रकृति से मूलतः सूचनात्मक और वस्तुपरक होते हैं । संस्मरण, रेखाचित्र, रिपोर्ताज जैसे नये गद्य रूप इन दोनों स्थितियों के बीच के अन्तराल में विकसित हुए हैं, और जैसा पहले संकेत किया गया, आधुनिक कला वृत्ति के अनुकूल स्वचेतनता और निर्वैयक्तिकता के विरोधी ध्रुवों के बीच समतुलित क्षेत्र का विस्तार करते हैं |

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    सूचनात्मक और वस्तुपरक प्रकृति किसकी होती है?

  • Question 7
    5 / -1

    Directions For Questions

    निर्देश: दिए गए गद्यांश के आधार पर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए ।

    संस्मरण का माध्यम आत्मकथा से प्रेरित होने पर भी शिल्प में उससे भिन्न है। वस्तुत: अकाल्पनिक गद्य-वृत्तों की धारणा सबसे पहले संस्मरण को ही देखकर बनती है । जीवनी और आत्मकथा के साथ इतिहास का संबंध कुछ इस तरह जुड़ा रहा कि उनका साहित्यिक रूप बहुत बाद में विकसित हो पाया, पर संस्मरण आरंभ से ही सर्जनात्मक गद्य का उपयोग करता दिखाई पड़ता है और अपनी व्यापक प्रकृति के कारण विविध गद्य रूपों के बीच केन्द्रीय स्थिति में है । तीव्र भावात्मक गठन और गहरी सर्जनात्मक भाषा के परंपरित काव्य रूप जैसे - उपन्यास, नाटक, कविता आधुनिक त्वरित संचार से उत्पन्न तनावों के युग में सब समय पाठक के लिए रुचिकर नहीं हो पाते | वैसी स्थिति में वह पत्रकारिता के विविध रूपों की ओर उन्मुख होता है जो अपनी प्रकृति से मूलतः सूचनात्मक और वस्तुपरक होते हैं । संस्मरण, रेखाचित्र, रिपोर्ताज जैसे नये गद्य रूप इन दोनों स्थितियों के बीच के अन्तराल में विकसित हुए हैं, और जैसा पहले संकेत किया गया, आधुनिक कला वृत्ति के अनुकूल स्वचेतनता और निर्वैयक्तिकता के विरोधी ध्रुवों के बीच समतुलित क्षेत्र का विस्तार करते हैं |

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    आधुनिक त्वरित संचार से उत्पन्न तनावों के कारण पाठक किस ओर उन्मुख होता है?

  • Question 8
    5 / -1

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    निर्देश: दिए गए गद्यांश के आधार पर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए ।

    संस्मरण का माध्यम आत्मकथा से प्रेरित होने पर भी शिल्प में उससे भिन्न है। वस्तुत: अकाल्पनिक गद्य-वृत्तों की धारणा सबसे पहले संस्मरण को ही देखकर बनती है । जीवनी और आत्मकथा के साथ इतिहास का संबंध कुछ इस तरह जुड़ा रहा कि उनका साहित्यिक रूप बहुत बाद में विकसित हो पाया, पर संस्मरण आरंभ से ही सर्जनात्मक गद्य का उपयोग करता दिखाई पड़ता है और अपनी व्यापक प्रकृति के कारण विविध गद्य रूपों के बीच केन्द्रीय स्थिति में है । तीव्र भावात्मक गठन और गहरी सर्जनात्मक भाषा के परंपरित काव्य रूप जैसे - उपन्यास, नाटक, कविता आधुनिक त्वरित संचार से उत्पन्न तनावों के युग में सब समय पाठक के लिए रुचिकर नहीं हो पाते | वैसी स्थिति में वह पत्रकारिता के विविध रूपों की ओर उन्मुख होता है जो अपनी प्रकृति से मूलतः सूचनात्मक और वस्तुपरक होते हैं । संस्मरण, रेखाचित्र, रिपोर्ताज जैसे नये गद्य रूप इन दोनों स्थितियों के बीच के अन्तराल में विकसित हुए हैं, और जैसा पहले संकेत किया गया, आधुनिक कला वृत्ति के अनुकूल स्वचेतनता और निर्वैयक्तिकता के विरोधी ध्रुवों के बीच समतुलित क्षेत्र का विस्तार करते हैं |

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    संस्मरण का माध्यम शिल्प में किससे भिन्न है?

  • Question 9
    5 / -1

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    निर्देश: दिए गए गद्यांश के आधार पर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए ।

    संस्मरण का माध्यम आत्मकथा से प्रेरित होने पर भी शिल्प में उससे भिन्न है। वस्तुत: अकाल्पनिक गद्य-वृत्तों की धारणा सबसे पहले संस्मरण को ही देखकर बनती है । जीवनी और आत्मकथा के साथ इतिहास का संबंध कुछ इस तरह जुड़ा रहा कि उनका साहित्यिक रूप बहुत बाद में विकसित हो पाया, पर संस्मरण आरंभ से ही सर्जनात्मक गद्य का उपयोग करता दिखाई पड़ता है और अपनी व्यापक प्रकृति के कारण विविध गद्य रूपों के बीच केन्द्रीय स्थिति में है । तीव्र भावात्मक गठन और गहरी सर्जनात्मक भाषा के परंपरित काव्य रूप जैसे - उपन्यास, नाटक, कविता आधुनिक त्वरित संचार से उत्पन्न तनावों के युग में सब समय पाठक के लिए रुचिकर नहीं हो पाते | वैसी स्थिति में वह पत्रकारिता के विविध रूपों की ओर उन्मुख होता है जो अपनी प्रकृति से मूलतः सूचनात्मक और वस्तुपरक होते हैं । संस्मरण, रेखाचित्र, रिपोर्ताज जैसे नये गद्य रूप इन दोनों स्थितियों के बीच के अन्तराल में विकसित हुए हैं, और जैसा पहले संकेत किया गया, आधुनिक कला वृत्ति के अनुकूल स्वचेतनता और निर्वैयक्तिकता के विरोधी ध्रुवों के बीच समतुलित क्षेत्र का विस्तार करते हैं |

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    अकाल्पनिक गद्य-वृत्तों की धारणा सबसे पहले किसे देखकर बनती है?

  • Question 10
    5 / -1

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    निर्देश: दिए गए गद्यांश के आधार पर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए ।

    संस्मरण का माध्यम आत्मकथा से प्रेरित होने पर भी शिल्प में उससे भिन्न है। वस्तुत: अकाल्पनिक गद्य-वृत्तों की धारणा सबसे पहले संस्मरण को ही देखकर बनती है । जीवनी और आत्मकथा के साथ इतिहास का संबंध कुछ इस तरह जुड़ा रहा कि उनका साहित्यिक रूप बहुत बाद में विकसित हो पाया, पर संस्मरण आरंभ से ही सर्जनात्मक गद्य का उपयोग करता दिखाई पड़ता है और अपनी व्यापक प्रकृति के कारण विविध गद्य रूपों के बीच केन्द्रीय स्थिति में है । तीव्र भावात्मक गठन और गहरी सर्जनात्मक भाषा के परंपरित काव्य रूप जैसे - उपन्यास, नाटक, कविता आधुनिक त्वरित संचार से उत्पन्न तनावों के युग में सब समय पाठक के लिए रुचिकर नहीं हो पाते | वैसी स्थिति में वह पत्रकारिता के विविध रूपों की ओर उन्मुख होता है जो अपनी प्रकृति से मूलतः सूचनात्मक और वस्तुपरक होते हैं । संस्मरण, रेखाचित्र, रिपोर्ताज जैसे नये गद्य रूप इन दोनों स्थितियों के बीच के अन्तराल में विकसित हुए हैं, और जैसा पहले संकेत किया गया, आधुनिक कला वृत्ति के अनुकूल स्वचेतनता और निर्वैयक्तिकता के विरोधी ध्रुवों के बीच समतुलित क्षेत्र का विस्तार करते हैं |

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    गहरी सर्जनात्मक भाषा के परंपरित काव्य रूप में क्या सम्मिलित नहीं है?

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