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Hindi Test - 23...

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  • Question 1
    5 / -1

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    निर्देश: नीचे लिखे गद्यांश को पढिये और पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये।

    मनोहर देवी के कंठ से तुलसीदास का छंद 'कंदर्प' अगणित अमित छवि नवनीलनीरज 'सुन्दरम' सुनकर सुर्जकुमार के न जाने कौन से सोते संस्कार जाग उठे। साहित्य इतना सुन्दर है, संगीत इतना आकर्षक है, उनकी आँखों ने जैसे नया संसार देखा, कानों ने ऐसा संगीत सुना जो मानो इस पृथ्वी पर दूर किसी लोक से आता है। अपनी इस विलक्षण अनुभूति पर वह स्वयं चकित रह गए। अपने सौंदर्य पर जो अभिमान था। वह चूर चूर हो गया।

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    सुर्जकुमार ने छंद किसके कंठ से सुना?

  • Question 2
    5 / -1

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    निर्देश: नीचे लिखे गद्यांश को पढिये और पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये।

    मनोहर देवी के कंठ से तुलसीदास का छंद 'कंदर्प' अगणित अमित छवि नवनीलनीरज 'सुन्दरम' सुनकर सुर्जकुमार के न जाने कौन से सोते संस्कार जाग उठे। साहित्य इतना सुन्दर है, संगीत इतना आकर्षक है, उनकी आँखों ने जैसे नया संसार देखा, कानों ने ऐसा संगीत सुना जो मानो इस पृथ्वी पर दूर किसी लोक से आता है। अपनी इस विलक्षण अनुभूति पर वह स्वयं चकित रह गए। अपने सौंदर्य पर जो अभिमान था। वह चूर चूर हो गया।

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    सूर्जकुमार की आँखों ने देखा क्या?

  • Question 3
    5 / -1

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    निर्देश: नीचे लिखे गद्यांश को पढिये और पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये।

    मनोहर देवी के कंठ से तुलसीदास का छंद 'कंदर्प' अगणित अमित छवि नवनीलनीरज 'सुन्दरम' सुनकर सुर्जकुमार के न जाने कौन से सोते संस्कार जाग उठे। साहित्य इतना सुन्दर है, संगीत इतना आकर्षक है, उनकी आँखों ने जैसे नया संसार देखा, कानों ने ऐसा संगीत सुना जो मानो इस पृथ्वी पर दूर किसी लोक से आता है। अपनी इस विलक्षण अनुभूति पर वह स्वयं चकित रह गए। अपने सौंदर्य पर जो अभिमान था। वह चूर चूर हो गया।

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    सूर्जकुमार का संस्कार जाग उठने का कारण है:

  • Question 4
    5 / -1

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    निर्देश: नीचे लिखे गद्यांश को पढिये और पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये।

    मनोहर देवी के कंठ से तुलसीदास का छंद 'कंदर्प' अगणित अमित छवि नवनीलनीरज 'सुन्दरम' सुनकर सुर्जकुमार के न जाने कौन से सोते संस्कार जाग उठे। साहित्य इतना सुन्दर है, संगीत इतना आकर्षक है, उनकी आँखों ने जैसे नया संसार देखा, कानों ने ऐसा संगीत सुना जो मानो इस पृथ्वी पर दूर किसी लोक से आता है। अपनी इस विलक्षण अनुभूति पर वह स्वयं चकित रह गए। अपने सौंदर्य पर जो अभिमान था। वह चूर चूर हो गया।

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    सूर्जकुमार को किस पर अभिमान था?

  • Question 5
    5 / -1

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    निर्देश: नीचे लिखे गद्यांश को पढिये और पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये।

    मनोहर देवी के कंठ से तुलसीदास का छंद 'कंदर्प' अगणित अमित छवि नवनीलनीरज 'सुन्दरम' सुनकर सुर्जकुमार के न जाने कौन से सोते संस्कार जाग उठे। साहित्य इतना सुन्दर है, संगीत इतना आकर्षक है, उनकी आँखों ने जैसे नया संसार देखा, कानों ने ऐसा संगीत सुना जो मानो इस पृथ्वी पर दूर किसी लोक से आता है। अपनी इस विलक्षण अनुभूति पर वह स्वयं चकित रह गए। अपने सौंदर्य पर जो अभिमान था। वह चूर चूर हो गया।

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    अंततोगत्वा का अर्थ है:

  • Question 6
    5 / -1

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    भारतेंदु का बृहत् जीवन चरित लिखनेवाले बाबू शिवनंदन सहाय का 'सुदामा नाटक' भी उल्लेख योग्य है। इन मौलिक रूपकों की सूची देखने से यह लक्षित हो जाता है कि नाटक की कथावस्तु के लिए लोगों का ध्यान अधिकतर ऐतिहासिक और पौराणिक प्रसंगों की ओर ही गया है। वर्तमान सामाजिक और पारिवारिक जीवन के विविधा उलझे हुए पक्षों का सूक्ष्मता के साथ निरीक्षण करके उनके मार्मिक या अनूठे चित्र खड़ा करनेवाली उद्भावना उनमें नहीं पाई जाती। इस द्वितीय उत्थान के बीच कल्पित कथावस्तु लेकर लिखा जानेवाला बहुत बड़ा मौलिक नाटक कानपुर के प्रसिद्ध  कवि राय देवीप्रसाद 'पूर्ण' का 'चंद्रकलाभानुकुमार' है। पर वह भी इतिहास के मध्ययुग के राजकुमारों और राजकुमारियों का जीवन सामने लाता है। 
        'पूर्णजी' ब्रजभाषा के एक बड़े ही सिद्ध हस्त कवि थे, साहित्य के अच्छे ज्ञाता थे। उन्होंने इस नाटक को शुद्ध  साहित्यिक उद्देश्य से ही लिखा था, अभिनय के उद्देश्य से नहीं। वस्तुविन्यास में कुतूहल उत्पन्न करनेवाला जो वैचित्रय होता है उसके न रहने से कम ही लोगों के हाथ में यह नाटक पड़ा। ललित और अलंकृत भाषण के बीच बीच में मधुर पद्य पढ़ने की उत्कंठा रखनेवाले पाठकों ही ने अधिकतर इसे पढ़ा। 
    उपन्यास : अनूदित
    इस द्वितीय उत्थान में आलस्य का जैसा त्याग उपन्यासकारों में देखा गया वैसा और किसी वर्ग के हिन्दी लेखकों में नहीं। अनुवाद भी खूब हुए और मौलिक उपन्यास भी कुछ दिनों तक धाड़ाधाड़ निकले , किस प्रकार के, यह आगे प्रकट किया जाएगा। पहले अनुवादों की बात खत्म कर देनी चाहिए।
        अनुवाद , संवत् 1951 तक बाबू रामकृष्ण वर्मा उर्दू और अंग्रेजी के भी कुछ अनुवाद कर चुके थे, जैसे , 'ठगवृत्तांतमाला' (संवत् 1946), 'पुलिस वृत्तांतमाला' (1947), 'अकबर' (1948), 'अमलावृत्तांतमाला (1951)। 'चित्तौरचातकी' का बंगभाषा से अनुवाद उन्होंने संवत् 1952 में किया। यह पुस्तक चित्तौर के राजवंश की मर्यादा के विरुद्ध  समझी गई और इसके विरोध में यहाँ तक आंदोलन हुआ कि सब कॉपियाँ गंगा में फेंक दी गईं। फिर बाबू कार्तिक प्रसाद खत्री ने 'इला' (1952) और 'प्रमीला' (1953) का अनुवाद किया। 'जया' और 'मधुमालती' के अनुवाद दो-एक बरस पीछे निकले।

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    उक्त गद्यांश का सम्बन्ध किस विषय से है?

  • Question 7
    5 / -1

    Directions For Questions

    भारतेंदु का बृहत् जीवन चरित लिखनेवाले बाबू शिवनंदन सहाय का 'सुदामा नाटक' भी उल्लेख योग्य है। इन मौलिक रूपकों की सूची देखने से यह लक्षित हो जाता है कि नाटक की कथावस्तु के लिए लोगों का ध्यान अधिकतर ऐतिहासिक और पौराणिक प्रसंगों की ओर ही गया है। वर्तमान सामाजिक और पारिवारिक जीवन के विविधा उलझे हुए पक्षों का सूक्ष्मता के साथ निरीक्षण करके उनके मार्मिक या अनूठे चित्र खड़ा करनेवाली उद्भावना उनमें नहीं पाई जाती। इस द्वितीय उत्थान के बीच कल्पित कथावस्तु लेकर लिखा जानेवाला बहुत बड़ा मौलिक नाटक कानपुर के प्रसिद्ध  कवि राय देवीप्रसाद 'पूर्ण' का 'चंद्रकलाभानुकुमार' है। पर वह भी इतिहास के मध्ययुग के राजकुमारों और राजकुमारियों का जीवन सामने लाता है। 
        'पूर्णजी' ब्रजभाषा के एक बड़े ही सिद्ध हस्त कवि थे, साहित्य के अच्छे ज्ञाता थे। उन्होंने इस नाटक को शुद्ध  साहित्यिक उद्देश्य से ही लिखा था, अभिनय के उद्देश्य से नहीं। वस्तुविन्यास में कुतूहल उत्पन्न करनेवाला जो वैचित्रय होता है उसके न रहने से कम ही लोगों के हाथ में यह नाटक पड़ा। ललित और अलंकृत भाषण के बीच बीच में मधुर पद्य पढ़ने की उत्कंठा रखनेवाले पाठकों ही ने अधिकतर इसे पढ़ा। 
    उपन्यास : अनूदित
    इस द्वितीय उत्थान में आलस्य का जैसा त्याग उपन्यासकारों में देखा गया वैसा और किसी वर्ग के हिन्दी लेखकों में नहीं। अनुवाद भी खूब हुए और मौलिक उपन्यास भी कुछ दिनों तक धाड़ाधाड़ निकले , किस प्रकार के, यह आगे प्रकट किया जाएगा। पहले अनुवादों की बात खत्म कर देनी चाहिए।
        अनुवाद , संवत् 1951 तक बाबू रामकृष्ण वर्मा उर्दू और अंग्रेजी के भी कुछ अनुवाद कर चुके थे, जैसे , 'ठगवृत्तांतमाला' (संवत् 1946), 'पुलिस वृत्तांतमाला' (1947), 'अकबर' (1948), 'अमलावृत्तांतमाला (1951)। 'चित्तौरचातकी' का बंगभाषा से अनुवाद उन्होंने संवत् 1952 में किया। यह पुस्तक चित्तौर के राजवंश की मर्यादा के विरुद्ध  समझी गई और इसके विरोध में यहाँ तक आंदोलन हुआ कि सब कॉपियाँ गंगा में फेंक दी गईं। फिर बाबू कार्तिक प्रसाद खत्री ने 'इला' (1952) और 'प्रमीला' (1953) का अनुवाद किया। 'जया' और 'मधुमालती' के अनुवाद दो-एक बरस पीछे निकले।

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    उक्त गद्यांश की भाषा शैली कौनसी है? 

  • Question 8
    5 / -1

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    भारतेंदु का बृहत् जीवन चरित लिखनेवाले बाबू शिवनंदन सहाय का 'सुदामा नाटक' भी उल्लेख योग्य है। इन मौलिक रूपकों की सूची देखने से यह लक्षित हो जाता है कि नाटक की कथावस्तु के लिए लोगों का ध्यान अधिकतर ऐतिहासिक और पौराणिक प्रसंगों की ओर ही गया है। वर्तमान सामाजिक और पारिवारिक जीवन के विविधा उलझे हुए पक्षों का सूक्ष्मता के साथ निरीक्षण करके उनके मार्मिक या अनूठे चित्र खड़ा करनेवाली उद्भावना उनमें नहीं पाई जाती। इस द्वितीय उत्थान के बीच कल्पित कथावस्तु लेकर लिखा जानेवाला बहुत बड़ा मौलिक नाटक कानपुर के प्रसिद्ध  कवि राय देवीप्रसाद 'पूर्ण' का 'चंद्रकलाभानुकुमार' है। पर वह भी इतिहास के मध्ययुग के राजकुमारों और राजकुमारियों का जीवन सामने लाता है। 
        'पूर्णजी' ब्रजभाषा के एक बड़े ही सिद्ध हस्त कवि थे, साहित्य के अच्छे ज्ञाता थे। उन्होंने इस नाटक को शुद्ध  साहित्यिक उद्देश्य से ही लिखा था, अभिनय के उद्देश्य से नहीं। वस्तुविन्यास में कुतूहल उत्पन्न करनेवाला जो वैचित्रय होता है उसके न रहने से कम ही लोगों के हाथ में यह नाटक पड़ा। ललित और अलंकृत भाषण के बीच बीच में मधुर पद्य पढ़ने की उत्कंठा रखनेवाले पाठकों ही ने अधिकतर इसे पढ़ा। 
    उपन्यास : अनूदित
    इस द्वितीय उत्थान में आलस्य का जैसा त्याग उपन्यासकारों में देखा गया वैसा और किसी वर्ग के हिन्दी लेखकों में नहीं। अनुवाद भी खूब हुए और मौलिक उपन्यास भी कुछ दिनों तक धाड़ाधाड़ निकले , किस प्रकार के, यह आगे प्रकट किया जाएगा। पहले अनुवादों की बात खत्म कर देनी चाहिए।
        अनुवाद , संवत् 1951 तक बाबू रामकृष्ण वर्मा उर्दू और अंग्रेजी के भी कुछ अनुवाद कर चुके थे, जैसे , 'ठगवृत्तांतमाला' (संवत् 1946), 'पुलिस वृत्तांतमाला' (1947), 'अकबर' (1948), 'अमलावृत्तांतमाला (1951)। 'चित्तौरचातकी' का बंगभाषा से अनुवाद उन्होंने संवत् 1952 में किया। यह पुस्तक चित्तौर के राजवंश की मर्यादा के विरुद्ध  समझी गई और इसके विरोध में यहाँ तक आंदोलन हुआ कि सब कॉपियाँ गंगा में फेंक दी गईं। फिर बाबू कार्तिक प्रसाद खत्री ने 'इला' (1952) और 'प्रमीला' (1953) का अनुवाद किया। 'जया' और 'मधुमालती' के अनुवाद दो-एक बरस पीछे निकले।

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    'चंद्रकलाभानुकुमार' नाटक के लेखक है-

  • Question 9
    5 / -1

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    भारतेंदु का बृहत् जीवन चरित लिखनेवाले बाबू शिवनंदन सहाय का 'सुदामा नाटक' भी उल्लेख योग्य है। इन मौलिक रूपकों की सूची देखने से यह लक्षित हो जाता है कि नाटक की कथावस्तु के लिए लोगों का ध्यान अधिकतर ऐतिहासिक और पौराणिक प्रसंगों की ओर ही गया है। वर्तमान सामाजिक और पारिवारिक जीवन के विविधा उलझे हुए पक्षों का सूक्ष्मता के साथ निरीक्षण करके उनके मार्मिक या अनूठे चित्र खड़ा करनेवाली उद्भावना उनमें नहीं पाई जाती। इस द्वितीय उत्थान के बीच कल्पित कथावस्तु लेकर लिखा जानेवाला बहुत बड़ा मौलिक नाटक कानपुर के प्रसिद्ध  कवि राय देवीप्रसाद 'पूर्ण' का 'चंद्रकलाभानुकुमार' है। पर वह भी इतिहास के मध्ययुग के राजकुमारों और राजकुमारियों का जीवन सामने लाता है। 
        'पूर्णजी' ब्रजभाषा के एक बड़े ही सिद्ध हस्त कवि थे, साहित्य के अच्छे ज्ञाता थे। उन्होंने इस नाटक को शुद्ध  साहित्यिक उद्देश्य से ही लिखा था, अभिनय के उद्देश्य से नहीं। वस्तुविन्यास में कुतूहल उत्पन्न करनेवाला जो वैचित्रय होता है उसके न रहने से कम ही लोगों के हाथ में यह नाटक पड़ा। ललित और अलंकृत भाषण के बीच बीच में मधुर पद्य पढ़ने की उत्कंठा रखनेवाले पाठकों ही ने अधिकतर इसे पढ़ा। 
    उपन्यास : अनूदित
    इस द्वितीय उत्थान में आलस्य का जैसा त्याग उपन्यासकारों में देखा गया वैसा और किसी वर्ग के हिन्दी लेखकों में नहीं। अनुवाद भी खूब हुए और मौलिक उपन्यास भी कुछ दिनों तक धाड़ाधाड़ निकले , किस प्रकार के, यह आगे प्रकट किया जाएगा। पहले अनुवादों की बात खत्म कर देनी चाहिए।
        अनुवाद , संवत् 1951 तक बाबू रामकृष्ण वर्मा उर्दू और अंग्रेजी के भी कुछ अनुवाद कर चुके थे, जैसे , 'ठगवृत्तांतमाला' (संवत् 1946), 'पुलिस वृत्तांतमाला' (1947), 'अकबर' (1948), 'अमलावृत्तांतमाला (1951)। 'चित्तौरचातकी' का बंगभाषा से अनुवाद उन्होंने संवत् 1952 में किया। यह पुस्तक चित्तौर के राजवंश की मर्यादा के विरुद्ध  समझी गई और इसके विरोध में यहाँ तक आंदोलन हुआ कि सब कॉपियाँ गंगा में फेंक दी गईं। फिर बाबू कार्तिक प्रसाद खत्री ने 'इला' (1952) और 'प्रमीला' (1953) का अनुवाद किया। 'जया' और 'मधुमालती' के अनुवाद दो-एक बरस पीछे निकले।

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    ‘पुलिस वृतांतमाला’ का प्रकाशन वर्ष है-

  • Question 10
    5 / -1

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    भारतेंदु का बृहत् जीवन चरित लिखनेवाले बाबू शिवनंदन सहाय का 'सुदामा नाटक' भी उल्लेख योग्य है। इन मौलिक रूपकों की सूची देखने से यह लक्षित हो जाता है कि नाटक की कथावस्तु के लिए लोगों का ध्यान अधिकतर ऐतिहासिक और पौराणिक प्रसंगों की ओर ही गया है। वर्तमान सामाजिक और पारिवारिक जीवन के विविधा उलझे हुए पक्षों का सूक्ष्मता के साथ निरीक्षण करके उनके मार्मिक या अनूठे चित्र खड़ा करनेवाली उद्भावना उनमें नहीं पाई जाती। इस द्वितीय उत्थान के बीच कल्पित कथावस्तु लेकर लिखा जानेवाला बहुत बड़ा मौलिक नाटक कानपुर के प्रसिद्ध  कवि राय देवीप्रसाद 'पूर्ण' का 'चंद्रकलाभानुकुमार' है। पर वह भी इतिहास के मध्ययुग के राजकुमारों और राजकुमारियों का जीवन सामने लाता है। 
        'पूर्णजी' ब्रजभाषा के एक बड़े ही सिद्ध हस्त कवि थे, साहित्य के अच्छे ज्ञाता थे। उन्होंने इस नाटक को शुद्ध  साहित्यिक उद्देश्य से ही लिखा था, अभिनय के उद्देश्य से नहीं। वस्तुविन्यास में कुतूहल उत्पन्न करनेवाला जो वैचित्रय होता है उसके न रहने से कम ही लोगों के हाथ में यह नाटक पड़ा। ललित और अलंकृत भाषण के बीच बीच में मधुर पद्य पढ़ने की उत्कंठा रखनेवाले पाठकों ही ने अधिकतर इसे पढ़ा। 
    उपन्यास : अनूदित
    इस द्वितीय उत्थान में आलस्य का जैसा त्याग उपन्यासकारों में देखा गया वैसा और किसी वर्ग के हिन्दी लेखकों में नहीं। अनुवाद भी खूब हुए और मौलिक उपन्यास भी कुछ दिनों तक धाड़ाधाड़ निकले , किस प्रकार के, यह आगे प्रकट किया जाएगा। पहले अनुवादों की बात खत्म कर देनी चाहिए।
        अनुवाद , संवत् 1951 तक बाबू रामकृष्ण वर्मा उर्दू और अंग्रेजी के भी कुछ अनुवाद कर चुके थे, जैसे , 'ठगवृत्तांतमाला' (संवत् 1946), 'पुलिस वृत्तांतमाला' (1947), 'अकबर' (1948), 'अमलावृत्तांतमाला (1951)। 'चित्तौरचातकी' का बंगभाषा से अनुवाद उन्होंने संवत् 1952 में किया। यह पुस्तक चित्तौर के राजवंश की मर्यादा के विरुद्ध  समझी गई और इसके विरोध में यहाँ तक आंदोलन हुआ कि सब कॉपियाँ गंगा में फेंक दी गईं। फिर बाबू कार्तिक प्रसाद खत्री ने 'इला' (1952) और 'प्रमीला' (1953) का अनुवाद किया। 'जया' और 'मधुमालती' के अनुवाद दो-एक बरस पीछे निकले।

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     इनमे से किस पुस्तक की प्रतियाँ गंगा में फेक दी गई?

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