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Sanskrit Domain Test - 6

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Sanskrit Domain Test - 6
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Weekly Quiz Competition
  • Question 1
    5 / -1
    बालकः .......... बिभेति। रिक्तस्थानं पूरयत-
    Solution

    प्रश्न अनुवाद​ - बालकः ______ बिभेति। रिक्तस्थान की पूर्ति करें।

    स्पष्टीकरण -

    • बिभेति अर्थात् डरना, भय लगना। 
    • 'भीत्रार्थानां भयहेतुः' - इस सूत्र से भय या त्रस्त होने पर भय या त्रस्त के हेतु की अपादान संज्ञा होती है और अपादाने पञ्चमी सूत्र से उसकी पञ्चमी विभक्ति होती है।

    उदाहरण - 

    • देवदत्तः सिंहात् बिभेति।
    • अहं शुनकात् बिभेमि।
    • कृष्णः राक्षसात् न बिभेति।

    भय का हेतु होने के कारण सर्प की अपादान संज्ञा हुई और अपादान संज्ञा से पञ्चमी विभक्ति हुई। अतः यह स्पष्ट है कि यहाँ सर्पात् विकल्प उचित है।

    Additional Informationसर्प (साँप) शब्दरूप अकारान्त पुल्लिंग का प्रयोग निम्नलिखित है-

    विभक्ति

    एकवचन

    द्विवचन

    बहुवचन

    प्रथमा

    सर्पः

    सर्पौ

    सर्पाः

    द्वितीया

    सर्पम्

    सर्पौ

    सर्पान्

    तृतीया

    सर्पेन

    सर्पाभ्याम्

    सर्पैः

    चतुर्थी

    सर्पाय

    सर्पाभ्याम्

    सर्पेभ्यः

    पंचमी

    सर्पात्

    सर्पाभ्याम्

    सर्पेभ्यः

    षष्ठी

    सर्पस्य

    सर्पयोः

    सर्पानाम्

    सप्तमी

    सर्पे

    सर्पयोः

    सर्पेषु

    संबोधन

    हे सर्पः

    हे सर्पौ

    हे सर्पाः

  • Question 2
    5 / -1
    'आनेषु मञ्जरीं परितः भ्रमराः दृश्यन्ते।' वाक्येस्मिन् 'मञ्जरीम्' पदस्य कारकः वर्तते-
    Solution

    प्रश्नार्थ - 'आनेषु मञ्जरीम् परितः भ्रमराः दृश्यन्ते।' इस वाक्य में 'मञ्जरीम्' पद का कारक है-

    स्पष्टीकरण- यहाँ वाक्य में परितः का प्रयोग हुआ है, जिसके प्रयोग होने पर द्वितीया विभक्ति के प्रयोग का विधान है।

    Hint

    'उपान्वध्याङ्वसः' के वार्तिक ‘अभितःपरितःसमयानिकषाहाप्रतियोगेऽपि’ के अनुसार ‘अभितः’, ‘परितः’, ‘समया’, ‘निकषा’ और ‘हा’ इन अव्यय के योग में आने वाले पदों में द्वितीया विभक्ति होती है -

    जैसे –

    • कृष्णम् अभितः ग्वालाः सन्ति।
    • मीनं परितः मीनाः सन्ति।
    • गृहं परितः बालाः सन्ति।
    • शिक्षकं परितः छात्राः सन्ति​।
    • समुद्रं निकषा लङ्का अस्ति।
    • सः ग्रामं निकषा तिष्ठति।
    • मातरं परितः शिशुः भ्रमति।
    • हा कृष्णभक्तम्।
    • सः विद्यालयं प्रति गच्छति।
    • जनः सम्मर्दं प्रति गच्छति।


    Important Points

    'आनेषु मञ्जरीम् परितः भ्रमन्तः भ्रमराः दृश्यन्ते।' इस वाक्य में 'मञ्जरीम्' पद परितः के योग में है अर्थात इसमे द्वितीया विभक्ति और कर्म संज्ञा होती है।

  • Question 3
    5 / -1
    राक्षसाः .......... ईर्ष्यन्ति स्म । समुचित पदेन रिक्तस्थानं पूरयतः​
    Solution

    प्रश्न अनुवाद - राक्षसाः _____ ईर्ष्यन्ति स्म​। उचित पद से रिक्तस्थान की पूर्ति करे।

    स्पष्टीकरण - 'क्रुधद्रुहेर्ष्याऽसूयार्थानां यं प्रति कोपः' इस सूत्र से क्रोध​, द्रुह्, ईर्ष्या  असूयावाचक योग में जिन पर असूया की जाती है उनकी सम्प्रदान संज्ञा होती है और "चतुर्थी सम्प्रदाने" इस सूत्र से उसमें  चतुर्थी विभक्ती होती है।

    यथा -

    • कौरवाः पाण्डवेभ्यः ईर्ष्यन्ति स्म​।
    • सः बिरबलाय ईर्ष्यति।
    • सज्जनः कस्मै अपि न ईर्ष्यति।

    अतः यह स्पष्ट होता है कि राक्षसों की ईर्ष्या के कारण देवों की सम्प्रदान संज्ञा हुई है और इस सम्प्रदान संज्ञा के वजह से देवों का देवेभ्यः यह चतुर्थी विभक्ति का रूप हुआ है।

    Additional Information

    विभक्ति

    एकवचन

    द्विवचन

    बहुवचन

    प्रथमा

    देवः

    देवौ

    देवाः

    द्वितीया

    देवम्

    देवौ

    देवान्

    तृतीया

    देवेन

    देवाभ्याम्

    देवैः

    चतुर्थी

    देवाय

    देवाभ्याम्

    देवेभ्यः

    पंचमी

    देवात्

    देवाभ्याम्

    देवेभ्यः

    षष्ठी

    देवस्य

    देवयोः

    देवानाम्

    सप्तमी

    देवे

    देवयोः

    देवेषु

    संबोधन

    हे देव

    हे देवौ

    हे देवाः

     

  • Question 4
    5 / -1

    वाक्यमिदं संशोधयत

    रामस्य प्रति लक्ष्मणः वदति

    Solution

    प्रश्नार्थ - इस वाक्य को संशोधित करें - रामस्य प्रति लक्ष्मणः वदति

    सूत्र- उपान्वध्याङ्वसः।

    स्पष्टीकरण- 'उपान्वध्याङ्वसः' के वार्तिक ‘अभितःपरितःसमयानिकषाहाप्रतियोगेऽपि’ के अनुसार ‘अभितः’, ‘परितः’, ‘समया’, ‘निकषा’ और ‘हा’ इन अव्यय के योग में आने वाले पदों में द्वितीया विभक्ति होती है -

    जैसे -

    • कृष्णम् अभितः ग्वालाः सन्ति।
    • मीनं परितः मीनाः सन्ति।
    • गृहं परितः बालाः सन्ति।
    • शिक्षकं परितः छात्राः सन्ति​।
    • समुद्रं निकषा लङ्का अस्ति।
    • सः ग्रामं निकषा तिष्ठति।
    • हा कृष्णभक्तम्।
    • रामम् प्रति लक्ष्मणः वदति
    • जनः सम्मर्दं प्रति गच्छति।

     

    इससे स्पष्ट होता है कि शुद्ध वाक्य 'रामम् प्रति लक्ष्मणः वदति।’ होता है।

  • Question 5
    5 / -1
    'मह्यं आमं रोचते।' स्थूलपदे का विभक्ति ?
    Solution

    प्रश्नानुवाद'मह्यं आमं रोचते।' स्थूल पद में कौन-सी विभक्ति है?

    स्पष्टीकरणमह्यं आमं रोचते अर्थात् मुझे आम अच्छा लगता है। यहाँ मह्यं पद में चतुर्थी विभक्ति है।

    • मह्यं पद अस्मद् सर्वनाम शब्दरूप के चतुर्थी विभक्ति-एकवचन में बनता है।
    • यहाँ मह्यं में चतुर्थी विभक्ति रुच् धातु के कारण हुयी है।
    • 'रुच्यर्थानां प्रीयमाणः' -  इस सूत्र के अनुसार - रुच् और रुच् के अर्थवाली धातुओं के योग में प्रसन्न होने वाला सम्प्रदान होता है। जिसकी चतुर्थी विभक्ति होती है। यहाँ मुझे आम अच्छा लगता है। इसलिए मह्यम् होगा।

     

    अतः स्पष्ट है कि यहाँ मह्यं पद में चतुर्थी विभक्ति है।

    Additional Information

    अस्मद् सर्वनाम शब्दरूप का प्रयोग निम्नलिखित है -

    विभक्ति

    एकवचन

    द्विवचन

    बहुवचन

    प्रथमा

    अहम्

    आवाम्

    वयम्

    द्वितीया

    माम्, मा

    आवाम्

    अस्मान्, नः

    तृतीया

    मया

    आवाभ्याम्

    अस्माभिः

    चतुर्थी

    मह्यम्, मे

    आवाभ्याम्

    अस्मभ्यम्, नः

    पंचमी

    मत्

    आवाभ्याम्

    अस्मत्

    षष्ठी

    मम, मे

    आवयोः, नौ

    अस्माकम्, नः

    सप्तमी

    मयि

    आवयोः

    अस्मासु

  • Question 6
    5 / -1
    'स्वधा' इति पदस्य योगे -
    Solution

    प्रश्नानुवाद - 'स्वधा' इस पद के योग में -

    स्पष्टीकरण - स्वधा पद के योग में चतुर्थी विभक्ति होती है।

    'नमः स्वस्तिस्वाहास्वधालंवषड्योगाच्च।' इस सूत्र के अनुसार नमः, स्वस्ति, स्वाहा, स्वधा, अलम्, वषट् इन शब्दों के योग में चतुर्थी होती है। यथा -

    • ईश्वराय नमः।
    • नृपाय स्वस्ति।
    • अग्नये स्वाहा।
    • पितृभ्यः स्वधा
    • इन्द्राय वषट्।
    • अलं मल्लो मल्लाय

     

    अतः स्पष्ट है कि यहाँ चतुर्थी उचित विकल्प है।

     

  • Question 7
    5 / -1
    ‘अभितः परितः' योगे विभक्तिः भवति-
    Solution

    प्रश्नानुवाद - ‘अभितः परितः' के योग में विभक्ति होती है-

    स्पष्टीकरण -

    • 'उपान्वध्याङ्वसः' के वार्तिक ‘अभितः परितः समयानिकषाहाप्रतियोगेऽपि’ के अनुसार ‘अभितः’, ‘परितः’, ‘समया’, ‘निकषा’ और ‘हा’ इन अव्ययों के योग में आने वाले पदों की द्वितीया विभक्ति होती है।

    जैसे –

    • अभितः कृष्णम्
    • परितः कृष्णम्
    • निकषा लङ्काम्
    • हा कृष्णभक्तम्

     

    अतः स्पष्ट है कि उचित पर्याय द्वितीया होगा।

  • Question 8
    5 / -1
    'नमः' इति योगे विभक्तिः भवति। 'नमः' इति पदस्य योगे -
    Solution

    प्रश्नानुवाद - 'नमः' इसके योग में विभक्ति होती है। 'नमः' इस पद के योग में -

    स्पष्टीकरण - नमः पद के योग में चतुर्थी विभक्ति होती है।

    'नमः स्वस्तिस्वाहास्वधालंवषड्योगाच्च।' इस सूत्र के अनुसार नमः, स्वस्ति, स्वाहा, स्वधा, अलम्, वषट् इन शब्दों के योग में चतुर्थी होती है। यथा -

    • ईश्वराय नमः
    • नृपाय स्वस्ति।
    • अग्नये स्वाहा।
    • पितृभ्यः स्वधा।
    • इन्द्राय वषट्।
    • अलं मल्लो मल्लाय

     

    अतः स्पष्ट है कि यहाँ चतुर्थी विभक्ति उचित विकल्प है।

  • Question 9
    5 / -1
    ‘_________ सह बालकः गच्छति।’ अत्र रिक्तस्थाने शुद्धरूपं भविष्यति
    Solution

    प्रश्न का अनुवाद - ‘_________ सह बालकः गच्छति।’ यहाँ रिक्तस्थान में शुद्धरूप होगा -

    स्पष्टीकरण -

    'सहयुक्तेऽप्रधाने' सूत्र के बारे में काशिका में 'सहार्थेन युक्ते अप्रधाने तृतीया विभक्तिर् भवति।' और सिद्धान्तकौमुदी में 'सहार्थेन युक्ते अप्रधाने तृतीया स्यात्।' लिखा है। इसके अनुसार 'सह' के यो­ग में अप्रधान शब्दों में तृतीया विभक्ति होती है। 

    अतः निम्नलिखित वाक्य में सह के योग में ‘पित्रा’ यह तृतीया विभक्ति का रूप होगा। 

  • Question 10
    5 / -1
    'हरये क्रुध्यति' इति वाक्ये 'क्रुध्' धातोः योगे किं कारकं भवति?
    Solution

    प्रश्न का हिन्दी अनुवाद - 'हरये क्रुध्यति' इस वाक्य में 'क्रुध्' धातु के योग में कौनसा कारक होता है?

    ‘क्रुध्द्रुहेर्ष्यासूयार्थानां यं प्रति कोपः’ सूत्र से क्रुध्, द्रुह्, ईर्ष्या, असूय आदि धातुओं के योग में जिस पर क्रोध आये उसकी सम्प्रदान संज्ञा होती है और ‘सम्प्रदाने चतुर्थी’ से उसमें चतुर्थी विभक्ति होती है। जैसे-

    • हरये क्रुध्यति।
    • शिक्षकः छात्राय क्रुध्यति।
    • दुर्जनः सज्जनाय द्रुह्यति।
    • बालकः बालिकायै ईर्ष्यति।
    • सिता रामाय न असूयति।

    अतः स्पष्ट है कि 'हरये क्रुध्यति' में 'हरये' में क्रुध् धातु के योग में 'सम्प्रदान' कारक है।

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