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Sanskrit Language Test - 1

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Sanskrit Language Test - 1
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Self Studies Self Studies
Weekly Quiz Competition
  • Question 1
    5 / -1
    संस्कृतभाषायाम्‌ स्वराः सन्ति -
    Solution

    प्रश्न का हिन्दी अनुवाद - संस्कृत भाषा में स्वर हैं - 

    पाणिनी ने ‘अच्’ प्रत्याहार के अन्तर्गत संस्कृत स्वरों की गणना की है। जिसके अन्तर्गत चार माहेश्वर सूत्र आते हैं-

    1. अइउण्,
    2. लृक्,
    3. एओङ्,
    4. ऐऔच्।
    • इसमें प्रथम चार (अ, इ, उ और ऋ) के ह्रस्व, दीर्घ और प्लुत तीनों स्वर होते हैं।
    • लृ के केवल ह्रस्व और प्लुत कहीं कहीं मिल जाते हैं।
    • और अन्त्य चार (ए, ऐ, ओ, और औ) के केवल दीर्घ और प्लुत होते हैं ह्रस्व नहीं यतोहि ये चार संयुक्ताक्षर होने से पूर्व से ही दो मात्रा युक्त है। अतः इनके एक मात्रा कि कल्पना करना ही निरर्थक है।

     

    अतः 'अ इ उ ऋ' यह स्वर है स्पष्ट होता है।

    Additional Information

    संस्कृत वर्णमाला में भी अन्य भाषायिक वर्णमालाओं के समान अनेक विध् वर्ण है-

    स्वर वर्ण (अच्):- जिनको बोलने के लिए किन्ही अन्य ध्वनियों की आवश्यक्ता नहीं होती उन्हें स्वर वर्ण कहते हैं। ये तीन प्रकार के होते हैं-

    ह्रस्व स्वर

    एक मात्रा वाले वर्ण

    अ, इ, उ, ऋ, लृ

    दीर्घ स्वर

    दो मात्रा वाले वर्ण

     आ, ई, ऊ, ॠ।

    इसमें संयुक्त ए, ऐ, ओ, औ स्वर भी आते हैं।

    प्लुत स्वर

    तीन मात्रा वाले स्वर

    आऽ, ईऽ, ओउम्, एइ इत्यादि 


    व्यञ्जन (हल्) वर्ण:- जिनके उच्चारण में स्वर वर्णों की आवश्यकता होती है। ये तीन प्रकार के होते हैं-

    स्पर्श वर्ण

    जिनके उच्चारण में जिह्वा का स्पर्श हो

    कवर्ग- क्, ख्, ग्, घ्, ङ्

    चवर्ग- च्, छ्, ज्, झ्, ञ्

    टवर्ग- ट्, ठ्, ड्, ढ्, ण्

    तवर्ग- त्, थ्, द्, ध्, न्

    पवर्ग- प्, फ्, ब्, भ्, म्

    अन्तस्थ वर्ण

    पूर्णतः न तो स्वर होते है न व्यञ्जन।

    य्, र्, ल्, व्

    ऊष्म वर्ण

    जिनके उच्चारण में घर्षण के कारण ऊष्म वायु निकले

    श्, ष्, स्, ह्


    इसके अतिरिक्त अयोगवाह और यम वर्ण भी पाणिनी के द्वारा उल्लिखित हैं-

    अयोगवाह (4)

    इनका योग किसी भी वर्ण के साथ बिना स्वर की सहायता से नही किया जा सकता। यथा- अः, आः, कः(क् + अः)

    विसर्ग (1)

    अनुस्वार (1)

    अर्धविसर्ग (2)(जिह्वामूलीय, उपध्मानीय)

    यम (4)

    क्,ख्,ग्,घ् के पश्चात् किसी भी वर्ग के पञ्चम वर्ण हो तो ये 4 यम कहलाते हैं।

    क्, ख्, ग्, घ्,

  • Question 2
    5 / -1
    'म्' कारस्य उच्चारणस्थानम् अस्ति -
    Solution

    प्रश्न का हिंदी अनुवाद -  'म्' कार का उच्चारण स्थान होता है -

    • 'उपूपध्मानीयानां ओष्ठौ' इस सूत्र के अनुसार 'म्' का उच्चारण स्थान ओष्ठ होता है।

    Hint

    उच्चारण स्थान

    स्वर

    व्यञ्जन

    वर्गीय

    अन्तस्थ

    उष्म

    कण्ठ

    अ आ

    क् ख् ग् घ् ङ्

     

    ह्  :(विसर्ग)

    तालु

    इ ई

    च् छ् ज् झ् ञ्

    य्

    श्

    मूर्धा

    ऋ ॠ

    ट् ठ् ड् ढ् ण्

    र्

    ष्

    दन्त

    त् थ् द् ध् न्

    ल्

    स्

    ओष्ठ

    उ ऊ

    प् फ् ब् भ् म्

     

     

    कण्ठ और तालु

    ए ऐ

     

     

     

    कण्ठोष्ठ

    ओ औ

     

     

     

    दन्तोष्ठ

     

     

    व्

     

    नासिका

    अनुस्वार (स्वराश्रित)

     

     

     

    Additional Information

    उच्चारणस्थान

    स्थान

    सूत्र

    व्याख्या

    कण्ठ्य

    अकुहविसर्जनीयानां कण्ठः

    अ, आ, क वर्ग (क्, ख्, ग्, घ्, ङ्) ह् और विसर्ग का उच्चारणस्थान कण्ठ्य होता है।

    तालव्य

    इचुयशानां तालुः

    इ, ई, च वर्ग (च्, छ्, ज्, झ्, ञ्) य् और श् का उच्चारणस्थान तालव्य होता है।

    मूर्द्धन्य

    ऋटुरषाणां मूर्द्धा

    ऋ, ट वर्ग (ट्, ठ्, ड्, ढ्, ण्) र् और ष् का उच्चारणस्थान मूर्धा होता है।

    दन्त्य

    लृतुलसानां दन्ताः

    लृ, त वर्ग (त्, थ्, द्, ध्, न्) ल् और स् का उच्चारणस्थान दन्त्य होता है।

    ओष्ठ्य

    उपूपध्मानीयानां ओष्ठौ

    उ, ऊ, प वर्ग (प्, फ्, ब्, भ्, म्) उपधमानीय (ऍ, ऑ) का उच्चारणस्थान ओष्ठ्य है।

    नासिक्य

    ञमङणनानां नासिका च

    ञ्, म्, ङ्, ण्, न् और अनुनासिक का उच्चारणस्थान नासिका होता है।

     

    इसके अतिरिक्त अरबी फारसी में प्रयुक्त 'क़, ख़, ग़‌' वर्णों को जिह्वामूलीय कहा जाता है।

    दो स्थानों को मिलाकर भी कुछ वर्णों के उच्चारण स्थान होते हैं-

    स्थान

    सूत्र

    व्याख्या

    कण्ठतालव्य

    एदैतो कण्ठतालु

    ए और ऐ का उच्चारणस्थान कण्ठतालु होता है।

    दन्तोष्ठं

    वकारस्य दन्तोष्ठं

    व का उच्चारणस्थान दन्तोष्ठ होता है।

    कण्ठोष्ठंदौतो कण्ठोष्ठम्ओ तथा औ का उच्चारणस्थान कण्ठोष्ठ होता है।
  • Question 3
    5 / -1
    आभ्यन्तरप्रयत्नाः सन्ति -​
    Solution

    प्रश्न का हिन्दी अनुवाद - आभ्यन्तर प्रयत्न हैं -

    स्पष्टीकरण -

    • प्रयत्न - वर्णों के उच्चारण में जो यत्न लगता है, उसे प्रयत्न कहते हैं

    Important Points

    प्रयत्न दो प्रकार के होते हैं - 

    1. आभ्यन्तर प्रयत्न - पांच आभ्यन्तर प्रयत्न होते हैं - विवृत, स्पृष्ट, ईषत् विवृत, ईषत् स्पृष्ट और संवृत्
    2. बाह्य प्रयत्न - ग्यारह बाह्य प्रयत्न होते हैं - विवार, संवार, श्वास, नाद, घोष, अघोष, अल्पप्राण, महाप्राण, उदात्त, अनुदात्त और स्वरित।
  • Question 4
    5 / -1
    अन्तःस्थवर्णानां क्रमः कः ?
    Solution

    प्रश्नानुवाद - अन्तःस्थ वर्णों का क्रम क्या है?

    स्पष्टीकरण :- 

    • नियम - यणोऽन्तस्थाः
    • अर्थ - इस नियम के अनुसार चार अन्तःस्थ वर्ण हैं, जो यण् प्रत्याहार के अन्तर्गत आते हैं। 
    • यण् प्रत्याहार - य, व, र, ल।
    • यण प्रत्याहार को 14 महेश्वर सूत्रों में से लिया गया है, जिसमें हयवरट् और लण् सूत्र से क्रमशः य, व, र, ल को ग्रहण किया गया है।

     

    इस नियम से स्पष्ट होता है कि य, व, र्, ल् सही उत्तर होगा।

    Additional Information

    माहेश्वर सूत्र 14 हैं।

    1. अइउण्
    2. ऋलृक्
    3. एओङ्
    4. ऐऔच्
    5. हयवरट्
    6. लण्
    7. ञमङ्णनम्
    8. झभञ्
    9. घढधष्
    10. जबगडदश्
    11. खफछठथचटतव्
    12. कपय्
    13. शषसर्
    14. हल्
  • Question 5
    5 / -1
    'मूर्धा' उच्चारणस्थानम् अस्ति
    Solution

    प्रश्न का हिन्दी अनुवाद - 'मूर्धा' का उच्चारणस्थानम् है-

    स्पष्टीकरण - 'ऋटुरषाणां मूर्धा' इस सूत्र के अनुसार 'ष' कार का उच्चारण स्थान ‘मूर्धा’ होता है-

    Hint

    उच्चारण स्थान

    स्वर

    व्यञ्जन

    वर्गीय

    अन्तस्थ

    उष्म

    कण्ठ

     आ

    क् ख् ग् घ् ङ्

     

    ह्  :(विसर्ग)

    तालु

    इ ई

    च् छ् ज् झ् ञ्

    य्

    श्

    मूर्धा

    ऋ ॠ

    ट् ठ् ड् ढ् ण्

    र्

    ष्

    दन्त

    त् थ् द् ध् न्

    ल्

    स्

    ओष्ठ

    उ ऊ

    प् फ् ब् भ् म्

     

     

    कण्ठ और तालु

    ए ऐ

     

     

     

    कण्ठोष्ठ

    ओ औ

     

     

     

    दन्तोष्ठ

     

     

     

    नासिका

    अनुस्वार (स्वराश्रित)

     

     

     

     

    Additional Information

    उच्चारणस्थान

    स्थान

    सूत्र

    व्याख्या

    कण्ठ्य

    अकुहविसर्जनीयानां कण्ठः

    , आ, क वर्ग (क्, ख्, ग्, घ्, ङ्) ह् और विसर्ग का उच्चारणस्थान कण्ठ्य होता है।

    तालव्य

    इचुयशानां तालुः

    इ, ई, च वर्ग (च्, छ्, ज्, झ्, ञ्) य् और श् का उच्चारणस्थान तालव्य होता है।

    मूर्द्धन्य

    ऋटुरषाणां मूर्द्धा

    ऋ, ट वर्ग (ट्, ठ्, ड्, ढ्, ण्) र् और ष् का उच्चारणस्थान मूर्धा होता है।

    दन्त्य

    लृतुलसानां दन्ताः

    लृ, त वर्ग (त्, थ्, द्, ध्, न्) ल् और स् का उच्चारणस्थान दन्त्य होता है।

    ओष्ठ्य

    उपूपध्मानीयानां ओष्ठौ

    उ, ऊ, प वर्ग (प्, फ्, ब्, भ्, म्) उपधमानीय ( ऍ, ऑ) का उच्चारणस्थान ओष्ठ्य है।

    नासिक्य

    ञमङणनानां नासिका च

    ञ्, म्, ङ्, ण्, न् और अनुनासिक का उच्चारणस्थान नासिका होता है।

     

    इसके अतिरिक्त अरबी फारसी में प्रयुक्त 'क़, ख़, ग़‌' वर्णों को जिह्वामूलीय कहा जाता है। 

    दो स्थानों को मिलाकर भी कुछ वर्णों के उच्चारण स्थान होते हैं-

    स्थान

    सूत्र

    व्याख्या

    कण्ठतालव्य

    एदैतो कण्ठतालु

    ए और ऐ का उच्चारणस्थान कण्ठतालु होता है।

    दन्तोष्ठं

    वकारस्य दन्तोष्ठं

    व का उच्चारणस्थान दन्तोष्ठ होता है।

    कण्ठोष्ठंओदौतो कण्ठोष्ठ्म्ओ तथा औ का उच्चारणस्थान कण्ठोष्ठ होता है।
  • Question 6
    5 / -1
    संस्कृतभाषायां‌ व्यञ्जनावर्णाः सन्ति -
    Solution

    प्रश्न का हिन्दी अनुवाद - संस्कृत भाषा में व्यञ्जन हैं - 

    पाणिनी ने ‘हल्’ प्रत्याहार के अन्तर्गत संस्कृत व्यञ्जनों की गणना की है। जिसके अन्तर्गत दस माहेश्वर सूत्र आते हैं-

    १. हयवरट्। २. लण्। ३. ञमङणनम्। ४. झभञ्। ५. घढधष्। ६. जबगडदश्। ७. खफछठथचटतव्। ८. कपय्। ९. शषसर्। १०. हल्।

    Important Points

    'शल उष्माणः' इस प्रत्याहार के अन्तर्गत 'श् ष् स् ह्' यह उष्म व्यञ्जन होते हैं।

    अतः 'श् ष् स् ह्' यह व्यञ्जन है स्पष्ट होता है।

    Additional Information

    संस्कृत वर्णमाला में भी अन्य भाषायिक वर्णमालाओं के समान अनेक विध् वर्ण है-

    स्वर वर्ण (अच्):- जिनको बोलने के लिए किन्ही अन्य ध्वनियों की आवश्यक्ता नहीं होती उन्हें स्वर वर्ण कहते हैं। ये तीन प्रकार के होते हैं-

    ह्रस्व स्वर

    एक मात्रा वाले वर्ण

    अ, इ, उ, ऋ, लृ

    दीर्घ स्वर

    दो मात्रा वाले वर्ण

     आ, ई, ऊ, ॠ।

    इसमें संयुक्त ए, ऐ, ओ, औ स्वर भी आते हैं।

    प्लुत स्वर

    तीन मात्रा वाले स्वर

    आऽ, ईऽ, ओउम्, एइ इत्यादि 


    व्यञ्जन (हल्) वर्ण:- जिनके उच्चारण में स्वर वर्णों की आवश्यकता होती है। ये तीन प्रकार के होते हैं-

    स्पर्श वर्ण

    जिनके उच्चारण में जिह्वा का स्पर्श हो

    कवर्ग- क्, ख्, ग्, घ्, ङ्

    चवर्ग- च्, छ्, ज्, झ्, ञ्

    टवर्ग- ट्, ठ्, ड्, ढ्, ण्

    तवर्ग- त्, थ्, द्, ध्, न्

    पवर्ग- प्, फ्, ब्, भ्, म्

    अन्तस्थ वर्ण

    पूर्णतः न तो स्वर होते है न व्यञ्जन।

    य्, र्, ल्, व्

    ऊष्म वर्ण

    जिनके उच्चारण में घर्षण के कारण ऊष्म वायु निकले

    श्, ष्, स्, ह्


    इसके अतिरिक्त अयोगवाह और यम वर्ण भी पाणिनी के द्वारा उल्लिखित हैं-

    अयोगवाह (4)

    इनका योग किसी भी वर्ण के साथ बिना स्वर की सहायता से नही किया जा सकता। यथा- अः, आः, कः(क् + अः)

    विसर्ग (1)

    अनुस्वार (1)

    अर्धविसर्ग (2)(जिह्वामूलीय, उपध्मानीय)

    यम (4)

    क्,ख्,ग्,घ् के पश्चात् किसी भी वर्ग के पञ्चम वर्ण हो तो ये 4 यम कहलाते हैं।

    क्, ख्, ग्, घ्,

  • Question 7
    5 / -1
    'अकुहविसर्जनीयानां कण्ठः' इत्यत्र 'कु' नाम-
    Solution

    प्रश्नानुवाद'अकुहविसर्जनीयानां कण्ठः' यहाँ 'कु' है -

    • वर्णों का उच्चारण करते समय जिह्वा जिस स्थान को स्पर्श करती है अथवा जिस स्थान से ध्वनि निकलती है उसे उच्चारण स्थान कहते हैं। मुख्य रूप से 6 उच्चारण स्थान होते हैं -

    उच्चारणस्थान

    स्थान

    सूत्र

    व्याख्या

    कण्ठ्य

    अकुहविसर्जनीयानां कण्ठः

    अ, क वर्ग (क्, ख्, ग्, घ्, ङ्) ह् और विसर्ग का उच्चारणस्थान कण्ठ्य होता है।

    तालव्य

    इचुयशानां तालुः

    इ, च वर्ग (च्, छ्, ज्, झ्, ञ्) य् और श् का उच्चारणस्थान तालव्य होता है।

    मूर्द्धन्य

    ऋटुरषाणां मूर्द्धा

    ऋ, ट वर्ग (ट्, ठ्, ड्, ढ्, ण्) र् और ष् का उच्चारणस्थान मूर्धा होता है।

    दन्त्य

    लृतुलसानां दन्ताः

    लृ, त वर्ग (त्, थ्, द्, ध्, न्) ल् और स् का उच्चारणस्थान दन्त्य होता है।

    ओष्ठ्य

    उपूपध्मानीयानां ओष्ठौ

    उ, प वर्ग (प्, फ्, ब्, भ्, म्) उपधमानीय ( ऍ, ऑ) का उच्चारणस्थान ओष्ठ्य है।

    नासिक्य

    ञमङणनानां नासिका च

    ञ्, म्, ङ्, ण्, न् और अनुनासिक का उच्चारणस्थान नासिका होता है।

    • अतः, उपर्युक्त पंक्तियों से स्पष्ट है कि ‘अकुहविसर्जनीयानां कण्ठः' से अ, क वर्ग (क्, ख्, ग्, घ्, ङ्) ह् और विसर्ग का उच्चारणस्थान कंठ होता है।' अर्थात् 'कु' का अर्थ 'ट वर्ग' होता है।
  • Question 8
    5 / -1
    'ञ् म् ङ् ण् न्' व्यञ्जनानां उच्चारणस्थानम् कः वर्तते ?
    Solution

    प्रश्नानुवाद - 'ञ् म् ङ् ण् न्' व्यञ्जनों का उच्चारणस्थान कौन-सा है ?

    वर्णों का उच्चारण करते समय जिह्वा जिस स्थान को स्पर्श करती है अथवा जिस स्थान से ध्वनि निकलती है उसे उच्चारण स्थान कहते हैं। मुख्य रूप से 6 उच्चारण स्थान होते हैं -

    उच्चारणस्थान

    स्थान

    सूत्र

    व्याख्या

    कण्ठ्य

    अकुहविसर्जनीयानां कण्ठः

    अ, आ, क वर्ग (क्, ख्, ग्, घ्, ङ्) ह् और विसर्ग का उच्चारणस्थान कण्ठ्य होता है।

    तालव्य

    इचुयशानां तालुः

    इ, ई, च वर्ग (च्, छ्, ज्, झ्, ञ्) य् और श् का उच्चारणस्थान तालव्य होता है।

    मूर्द्धन्य

    ऋटुरषाणां मूर्द्धा

    ऋ, ट वर्ग (ट्, ठ्, ड्, ढ्, ण्) र् और ष् का उच्चारणस्थान मूर्धा होता है।

    दन्त्य

    लृतुलसानां दन्ताः

    लृ, त वर्ग (त्, थ्, द्, ध्, न्) ल् और स् का उच्चारणस्थान दन्त्य होता है।

    ओष्ठ्य

    उपूपध्मानीयानां ओष्ठौ

    उ, ऊ, प वर्ग (प्, फ्, ब्, भ्, म्) उपधमानीय ( ऍ, ऑ) का उच्चारणस्थान ओष्ठ्य है।

    नासिक्य

    ञमङणनानां नासिका च

    ञ्, म्, ङ्, ण्, न् और अनुनासिक का उच्चारणस्थान नासिका होता है।

     

    इसके अतिरिक्त अरबी फारसी में प्रयुक्त 'क़, ख़, ग़‌' वर्णों को जिह्वामूलीय कहा जाता है। 

    अतः, उपर्युक्त पंक्तियों से स्पष्ट है कि 'ज् म् ङ् ण् न्' का उच्चारण स्थान ‘नासिकाहै।

    Additional Information

    दो स्थानों को मिलाकर भी कुछ वर्णों के उच्चारण स्थान होते हैं-

    स्थान

    सूत्र

    व्याख्या

    कण्ठतालव्य

    एदैतो कण्ठतालु

    ए और ऐ का उच्चारणस्थान कण्ठतालु होता है।

    दन्तोष्ठं

    वकारस्य दन्तोष्ठं

    व का उच्चारणस्थान दन्तोष्ठ होता है।

    कण्ठोष्ठंदौतो कण्ठोष्ठ्म्ओ तथा औ का उच्चारणस्थान कण्ठोष्ठ होता है।
  • Question 9
    5 / -1
    'य' वर्णस्य उच्चारणस्थानं विद्यते-  
    Solution

    प्रश्नानुवाद - 'य' वर्ण का उच्चारण स्थान है-

    वर्णों का उच्चारण करते समय जिह्वा जिस स्थान को स्पर्श करती है अथवा जिस स्थान से ध्वनि निकलती है उसे उच्चारण स्थान कहते हैं। मुख्य रूप से 6 उच्चारण स्थान होते हैं -

    उच्चारणस्थान

    स्थान

    सूत्र

    व्याख्या

    कण्ठ्य

    अकुहविसर्जनीयानां कण्ठः

    अ, आ, क वर्ग (क्, ख्, ग्, घ्, ङ्) ह् और विसर्ग का उच्चारणस्थान कण्ठ्य होता है।

    तालव्य

    इचुयशानां तालुः

    इ, ई, च वर्ग (च्, छ्, ज्, झ्, ञ्) य् और श् का उच्चारणस्थान तालव्य होता है।

    मूर्द्धन्य

    ऋटुरषाणां मूर्द्धा

    ऋ, ट वर्ग (ट्, ठ्, ड्, ढ्, ण्) र् और ष् का उच्चारणस्थान मूर्धा होता है।

    दन्त्य

    लृतुलसानां दन्ताः

    लृ, त वर्ग (त्, थ्, द्, ध्, न्) ल् और स् का उच्चारणस्थान दन्त्य होता है।

    ओष्ठ्य

    उपूपध्मानीयानां ओष्ठौ

    उ, ऊ, प वर्ग (प्, फ्, ब्, भ्, म्) उपधमानीय ( ऍ, ऑ) का उच्चारणस्थान ओष्ठ्य है।

    नासिक्य

    ञमङणनानां नासिका च

    ञ्, म्, ङ्, ण्, न् और अनुनासिक का उच्चारणस्थान नासिका होता है।

     

    इसके अतिरिक्त अरबी फारसी में प्रयुक्त 'क़, ख़, ग़‌' वर्णों को जिह्वामूलीय कहा जाता है। 

    अतः, उपर्युक्त पंक्तियों से स्पष्ट है कि ‘’ का उच्चारण स्थान ‘तालुहै।

    Additional Information

    दो स्थानों को मिलाकर भी कुछ वर्णों के उच्चारण स्थान होते हैं-

    स्थान

    सूत्र

    व्याख्या

    कण्ठतालव्य

    एदैतो कण्ठतालु

    ए और ऐ का उच्चारणस्थान कण्ठतालु होता है।

    दन्तोष्ठं

    वकारस्य दन्तोष्ठं

    व का उच्चारणस्थान दन्तोष्ठ होता है।

    कण्ठोष्ठंओदौतो कण्ठोष्ठ्म्ओ तथा औ का उच्चारणस्थान कण्ठोष्ठ होता है।
     
  • Question 10
    5 / -1
    'प्लुत भेद अस्ति - 
    Solution

    प्रश्न का हिंदी अनुवाद - 'प्लुत' भेद है -

    स्पष्टीकरण - 'ऊकालोऽज्झ्रस्वदीर्घप्लुतः' इस सूत्र के अनुसार तीन प्रकार के स्वर बताये गए है। 

    • ह्रस्व- एक मात्रा वाले स्वर ह्रस्व होते हैं- अ, इ, उ, ऋ, ऌ
    • दीर्घ- दो मात्रा वाले स्वर दीर्घ होते हैं- आ, ई, ऊ, ॠ, ए, ऐ, ओ, औ
    • प्लुत- तीन मात्रा वाले स्वर प्लुत होते हैं- अ३, इ३, उ३, ऋ३, ऌ३, ए३, ऐ३, ओ३, औ३

    अतः 'प्लुत' स्वरों के तीन प्रकारों में से एक है यहाँ स्पष्ट होता है।

    Important Points

    पाणिनी ने ‘अच्’ प्रत्याहार के अन्तर्गत स्वरों की गणना की है। जिसके अन्तर्गत चार माहेश्वर सूत्र आते हैं-

    1. अइउण्,
    2. ऋलृक्,
    3. एओङ्,
    4. ऐऔच्।

    इन चार प्रत्याहारों में नव स्वर वर्णों का उल्लेख किया गया है, अतः स्पष्ट है कि संस्कृत में नव मूलस्वर होते हैं।

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