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Sanskrit Language Test - 4

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Sanskrit Language Test - 4
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Self Studies Self Studies
Weekly Quiz Competition
  • Question 1
    5 / -1

    'वधूत्सवः' अस्य सन्धिविच्छेदः विद्यते-

    Solution

    प्रश्नानुवाद'वधूत्सवः' इसका सन्धि विच्छेद है -

    स्पष्टीकरण -

    • शब्द - वधूत्सवः
    • संधिविच्छेद - वधू + उत्सवः

    सूत्र - 'अकः सवर्णे दीर्घः' सूत्र के अनुसार यदि ह्रस्व या दीर्घ स्वर के बाद सवर्ण ह्रस्व या दीर्घ स्वर हो तो वहाँ दोनों के संयोग से दीर्घ स्वर आदेश होता है।

    नियम - 

    • अ/आ + अ/आ = आ, 
    • /ई + इ/ई = ई 
    • उ/ऊ + उ/ऊ = ऊ 
    • ऋ/ऋृ + ऋ/ऋृ = ॠृ

    उदाहरण - 

    • पुस्तक + आलय = पुस्तकालय
    • दैत्य + अरि = दैत्यारि
    • सु + उक्ति = सूक्ति 
    • वधू + उत्सवः = वधूत्सवः 

     

    स्पष्टीकरण - ‘वधू + उत्सवः’ में ‘वधू’ पद के ‘ऊ’ के पश्चाद् सवर्ण स्वर ‘ऊ’ आया है। अतः उसके स्थान पर ‘ऊ होकर वधूत्सवः पद बनता है।

    Additional Information

    सन्धि - दो वर्णों के संयोग से होने वाले परिवर्तन को सन्धि कहते हैं। जैसे-

    • विद्या + आलय = विद्यालय
    • रमा + ईश = रमेश
    • न + एकः = नैकः
    • सम्यक् + ज्ञानम् = सम्यग्ज्ञानम्

    सन्धि के प्रकार -

    सन्धि

     परिभाषा

    उदाहरण

    स्वरसन्धि

    स्वर वर्ण  का संयोग स्वर वर्ण से होने पर जो विकार उत्पन्न होता है।

    विद्या + आलय = विद्यालय

    महा + औषधि =  महौषधि

    व्यंजनसन्धि

    व्यंजन वर्ण का संयोग व्यंजन या स्वर वर्ण से होने पर जो विकार उत्पन्न होता है।

    उत् + लास = उल्लास

    तत् + लय = तल्लयः

    विसर्गसन्धि

    विसर्ग का सन्योग स्वर या व्यंजन वर्ण से होने पर जो विकार उत्पन्न होता है।

    दुः + आत्मा = दुरात्मा

    मनः + रथः = मनोरथः

  • Question 2
    5 / -1
    'साध्वपि' शब्दस्य सन्धिच्छेदः वर्तते-
    Solution

    प्रश्नानुवाद - 'साध्वपि' शब्द की सन्धिच्छेद है-

    शब्द - 'साध्वपि'

    सन्धिविच्छेद - साधु + अपि

    सन्धि - यण्‌ सन्धि

    सूत्र - 'इको यणचि' सूत्र से ‘इक्’ अर्थात ‘इ/ई’, ‘उ/ऊ’, ‘ऋ/ऋ’ और ‘लृ’ के आगे अगर कोइ भी स्वर(विजातीय) आता है तब वहा यण् अर्थात् य्, व्, र्, ल् होते हैं।

    नियम –

    1. इ/ई + स्वर = य् + स्वर
    2. उ/ऊ + स्वर = व् + स्वर
    3. ऋ/ॠ + स्वर = र् + स्वर
    4. लृ + स्वर = ल् + स्वर


    स्पष्टीकरण - ‘साधु + अपि में प्रथम पद के अन्त में ‘उ’ और दुसरे पद के प्रारम्भ में ‘अ’ होने से यहाँ 'यण् सन्धि' होगी।

    अतः स्पष्टीकरण के अनुसार साधु + अपि का सन्धि होकर 'साध्वपि' होता है और यहाँ 'यण् सन्धि' होता है।

  • Question 3
    5 / -1
    'शार्ङ्गिन् + जयः' अस्य संधिकृत रूपमस्ति-
    Solution

    प्रश्नानुवाद - 'शार्ङ्गिन् + जयः' इसका संधिकृत रूप है-

    स्पष्टीकरण -

    • सन्धिविच्छेद -  शार्ङ्गिन्  +  जयः
    • सन्धि - शार्ङ्गिञ्जयः

    Important Points

     सूत्र  - स्तोः श्चुना श्चुः।

    • नियम -  जब त वर्ग से पहले या बाद में श् या च वर्ग आता है, तो स् को श् और वर्ग को च वर्ग आदेश होता है। यहाँ श्चुत्व सन्धि होती है।
      • त् को च् होता है
      • थ् को छ्
      • द् को ज्
      • ध् को झ्
      • न् को ञ्
      • को श्

    उदाहरण

    • रामश्शेते - रामस् + शेते
    • रामश्चिनोति - रामस् + चिनोति
    • सच्चित्  -  सत् + चित्
    • शार्ङ्गिञ्जयः - शार्ङ्गिन् + जयः

    इस प्रकार उपर्युक्त उदाहरण शार्ङ्गिञ्जयः में शार्ङ्गिन् के नकार का तवर्ग होने से तवर्ग के नकार को स्तोः श्चुना श्चुः सूत्र से चवर्ग के जकार का योग होने पर नकार को ञकार आदेश हुआ।

    अतः शार्ङ्गिन् + जयः का संधिकृत रूप शार्ङ्गिञ्जयः होगा।

  • Question 4
    5 / -1
    'देव + ऋषि' अस्य सन्धिः वर्तते-
    Solution

    प्रश्नानुवाद - 'देव + ऋषि' इसकी सन्धि है-

    स्पष्टीकरण-

    • देव + ऋषि = "देवर्षि"
    • "देवर्षि" शब्द में गुण सन्धि हैI 

    सूत्र = "आद् गुण:"
    नियम 

    • यदि पहले 'अ' वर्ण होI (अवर्ण मे ह्रस्व, दीर्घ, प्लुत आदि सभी अ आते हैंI)
    • अ से परे आने वाला स्वर असमान अर्थात् अ से भिन्न स्वर होना चाहियेI 
    • इन परे आने वाले असमान स्वर को गुण हो जाता हैI 
    • अ/आ + इ/ई = ए 
    • अ/आ + उ/ऊ = ओ 
    • अ/आ + ऋ = अर् 
    • अ/आ + लृ = अल् 
    उदाहरण 
    • देव + ऋषि
    • देव् अ + ऋषि (अ/आ + ऋ = अर्)
    • देवर्षि
    अन्य उदाहरण 
    • देव + इन्द्रः = देवेन्द्रः (अ/आ + इ/ई = ए)
    • गङ्गा + उदकम् = गङ्गोदकम् (अ/आ + उ/ऊ = ओ)
    • तव + लृकारः = तवल्कारः (अ/आ + लृ = अल्)
  • Question 5
    5 / -1
    'प्र + एजते' इत्यत्र संधिः वर्तते-
    Solution

    प्रश्नानुवाद - 'प्र + एजते' यहाँ संधि है-

    सन्धि - प्रेजते

    संधि विच्छेद - प्र + एजते

    सूत्र स्पष्टीकरण - 'एङ्गि पररूपम्' इस सूत्र के अनुसार जब उपसर्ग के 'अ' के पश्चात् यदि 'ए' या 'ओ' आए तो वहापर उनका पररूप एकादेश हो जाता है। 'प्रेजते' में 'प्र' इस उपसर्ग के पश्चात् 'एजते' है अतः यहाँ पररूप सन्धि है।

    इसे वृद्धि सन्धि का अपवाद भी कह सकते है।

    Confusion Points 

    वृद्धि सन्धि (वृद्धिरेचि) - इस सन्धि में, यदि 'अ/आ' के बाद 'ए/ऐ' आए तो दोनों के स्थान पर 'ऐ' का एकादेश होता है और यदि 'अ/आ' के बाद 'ओ/औ' आए तो दोनों के स्थान पर 'औ' का एकादेश होता है। 

    उदा.- मम + एक = ममैक, जल + ओघः = जलौघः

    वृद्धि सन्धि में पररूप सन्धि के तरह उपसर्ग के 'अ' के पश्चात् 'ए/ऐ' या 'ओ/औ' नहीं होता।

    Hint

    • गुण सन्धि (आद् गुणः) -  इस सन्धि में, यदि 'अ/आ' के बाद 'इ/ई' आए तो दोनों के स्थान पर 'ए' का एकादेश होता है और यदि 'अ/आ' के बाद 'उ/ऊ' आए तो दोनों के स्थान पर 'ओ' का एकादेश होता है। उदा.- उप + इन्द्र = उपेन्द्र, यथा + उचितम् = यथोचितम्
    • पूर्वरूप सन्धि (एङः पदान्तादति) - इसे अयादि सन्धि का अपवाद कह सकते है। इस सन्धि में 'ए/ओ' के बाद अगर ह्रस्व स्वर 'अ' आए तो दोनों के स्थान पर पूर्वरूप सन्धि 'ए' या 'ओ' एकादेश होता है। सन्धिरुप में 'अ' का (ऽ) अवग्रह हो जाता है।  उदा.- ते + अपि = तेऽपि
  • Question 6
    5 / -1
    'एचोऽयवायावः' सूत्र कस्य सन्धेः भवति
    Solution

    प्रश्नानुवाद - 'एचोऽयवायावः' सूत्र किस सन्धि का होता है?

    स्पष्टीकरण -

    • 'एचोऽयवायावः' सूत्र अयादि सन्धि का विधान करता है। जिसे एक उदाहरण द्वारा समझा जा सकता है।
    • शब्द - नायकः
    • संधिविच्छेद - नै + एकः

    सूत्र - एचोऽयवायावः ।

    • नियम - जब  के बाद कोई स्वर आता है, तो वहाँ क्रमशः ए को अय्, ऐ को आय्, ओ को अव्, औ को आव् आदेश होता है। इसे अयादि सन्धि कहते हैं।
      • ए + स्वर = अय्,
      • ओ + स्वर = अव्,
      • ऐ + स्वर = आय्,
      • औ + स्वर = आव्

    उदाहरण -

    • बालौ + इति = बाल् आव् + इति = बालाविति
    • मते + इति = मत् अय् + इति = मतयिति
    • नै + अकः = न्  आय् + अक = नायक

     

    इस तरह स्पष्ट है कि एचोऽयवायावः सूत्र अयादि सन्धि का विधान करता है।

  • Question 7
    5 / -1

    'निश्चय' शब्दे संधिः वर्तते-

    Solution

    प्रश्नानुवाद - 'निश्चय' शब्द में संधि है-

    शब्द - निश्चय

    सन्धि विच्छेद - निः + चय

    सूत्र - विसर्जनीयस्य सः

    सूत्र स्पष्टीकरण - जब 'खर्' वर्ण (वर्ग के पहले, दूसरे वर्ण और श, स, ष) आते हैं, तब विसर्ग का 'स' होता है।

    स्पष्टीकरण : 'निश्चय' का सन्धिविच्छेद 'निः + चय' होता है। जिससे स्पष्ट होता है कि 'निः' के पश्चात् आये विसर्ग का 'स' और बाद में 'श' मे परिवर्तन हुआ है। जो विसर्ग सन्धि के लक्षण से युक्त है। अतः यहाँ विसर्ग सन्धि होगी।

    Additional Information

    दो शब्दों के मेल से जो विकार (परिवर्तन) होता है उसे संधि कहते हैं।जैसे-

    • विद्या + आलय = विद्यालय।
    • रमा + ईश = रमेश
    • न + एकः = नैकः
    • सम्यक् + ज्ञानम् = सम्यग्ज्ञानम्

    संधि के तीन प्रकार हैं - 1. स्वर, 2. व्यंजन और 3. विसर्ग,

    संधि

    परिभाषा

    उदाहरण

    स्वर

    स्वर वर्ण के साथ स्वर वर्ण के 

    मेल से विकार उत्पन्न होता है।

    विद्या + अर्थी = विद्यार्थी 

    महा + ईशः = महेशः

    व्यंजन

    एक व्यंजन से दूसरे व्यंजन या 

    स्वर के मेल से विकार उत्पन्न होता है।

    अहम् + कार = अहंकार

    उत् + लासः = उल्लास

    विसर्ग

    विसर्ग के साथ स्वर या व्यंजन के 
    मेल से विकार उत्पन्न होता है।

    दुः + आत्मा = दुरात्मा

    निः + कपटः = निष्कपटः

  • Question 8
    5 / -1
    'देवेन्द्रः' इत्यत्र सन्धिः वर्तते-
    Solution

    प्रश्नानुवाद - 'देवेन्द्रः' यहाँ सन्धि है-

    देवेन्द्रः का सन्धिविच्छेद ‘देव + न्द्रः’ होगा।

    सूत्र:- ‘अदेङ् गुणः’ अर्थात् आत् (अ, आ) से परे इ, ई, उ, ऊ, ऋ हो तो दोनों के स्थान पर ‘गुण सन्धि’ होता है अर्थात् ए, ओ तथा अर् आदेश हो जाता है।

    नियम:-

    • अ, आ + इ, ई = ए
    • अ, आ + उ, ऊ = ओ
    • अ, आ + ऋ = अर्।

    उदाहरण:-

    • देव + इन्द्रः = देवेन्द्रः
    • सूर्य + उदयः =सूर्योदयः
    • गङ्गा + ऊर्मिः = गङ्गोर्मिः
    • महा + ऋषि = महर्षि

    → 'देव + इन्द्रः' इस उदाहरण में 'देव' पद के अन्त में 'अ' और उसके आगे 'इन्द्रः' के 'इ' के कारण यहाँ 'गुण संधि' होकर 'ए' आदेश होता है और सन्धि देवेन्द्रः होता है।

    अतः उचित पर्याय 'देव + इन्द्रः' होता है।

  • Question 9
    5 / -1

    'सच्चित्‌' अस्य सन्धिविच्छेदः वर्तते-

    Solution

    प्रश्नानुवाद - 'सच्चित्‌' इसका सन्धि विच्छेद है-

    स्पष्टीकरण -

    • शब्द - सच्चित्
    • संधिविच्छेद - सत्‌ + चित्‌

    सूत्र:- ‘स्तोः श्चुना श्चुः’ 

    नियम:- ‘स्’ या ‘तवर्ग’ से पूर्व या पश्चाद् ‘श्’ या ‘चवर्ग’ आये तो क्रमशः निम्नलिखित परिवर्तन हो जाता है-

    • ‘स्’ को ‘श्’
    • ‘त्’ को ‘च्’
    • ‘थ्’ को ‘छ्’
    • ‘द्’ को ‘ज्’
    • ‘ध्’ को ‘झ्’
    • ‘न्’ को ‘ञ्’

    उदाहरण:-

    • मनस् + चलति = मनश्चलति
    • तत् + चलचित्रम् = तच्चलचित्रम्
    • सद् + जनः = सज्जनः
    • सत्‌ + चित्‌ = सच्चित्

    यहाँ 'सत्‌ + चित्‌' में सत् के त् से परे चित् का च् होने से त् को च् होकर सच्चित् रूप बनता है।

    Additional Information

    सन्धि - दो वर्णों के संयोग से होने वाले परिवर्तन को सन्धि कहते हैं। जैसे-

    • विद्या + आलय = विद्यालय
    • रमा + ईश = रमेश
    • न + एकः = नैकः
    • सम्यक् + ज्ञानम् = सम्यग्ज्ञानम्

    सन्धि के प्रकार -

    सन्धि

     परिभाषा

    उदाहरण

    स्वरसन्धि

    स्वर वर्ण  का संयोग स्वर वर्ण से होने पर जो विकार उत्पन्न होता है।

    विद्या + आलय = विद्यालय

    महा + औषधि =  महौषधि

    व्यंजनसन्धि

    व्यंजन वर्ण का संयोग व्यंजन या स्वर वर्ण से होने पर जो विकार उत्पन्न होता है।

    उत् + लास = उल्लास

    तत् + लय = तल्लयः

    विसर्गसन्धि

    विसर्ग का संयोग स्वर या व्यंजन वर्ण से होने पर जो विकार उत्पन्न होता है।

    दुः + आत्मा = दुरात्मा

    मनः + रथः = मनोरथः

  • Question 10
    5 / -1

    ‘वनेऽपि’ पदे कः सन्धिः?

    Solution

    प्रश्नानुवाद - ‘वनेऽपि’ पद में कौन-सी सन्धि है?

    स्पष्टीकरण -

    शब्द:- ‘वनेऽपि’

    सन्धिविच्छेद:- वने+ अपि

    सूत्र:- ‘एङ् पदान्तादति’ अर्थात् पदान्त एङ् (ए,ओ) से परे अत् (ह्रस्व अ) हो तो वहाँ पूर्वरूप सन्धि होता है।

    नियम:- ए + अ = एऽ जैसेकि वने + अपि = वनेऽपि में हुआ है।

    Important Points

    विकल्पानुशीलन:-

    सन्धि

    परिभाषा

    उदाहरण

    अयादि  सन्धि

    ए,ओ,ऐ,औ का संयोग असमान स्वर से होने पर क्रमशः ए को अय्, ओ को अव्, ऐ को आय् तथा औ को आव् हो जाता है।

    पौ + अकः = पावकः(औ + अ = आव)

    गै + अकः = गायकः(ऐ + अ = आय)

    पूर्वरूप सन्धि

    पदान्त ए,ओ के पश्चात् अ आये तो पूर्वरूपसन्धि होता है।

    हरे + अव = हरेऽव(ए + अ = एऽ)

    वने + अपि = वनेऽपि(ए + अ = एऽ)

    पररूप सन्धि

    पूर्वपद उपसर्ग हो उसके अ अथवा आ से परे  किसी धातु का ए अथवा ओ आए तो पररूप सन्धि होता है।

    प्र + एजते = प्रेजते(अ + ए = ए)

    उप + ओषति = उपोषति(अ + ओ = ओ)

    यण् सन्धि

    इक् ( इ,उ,ऋ,लृ) का संयोग किसी असमान स्वर से हो तो क्रमशः इ को य्, उ को व्, ऋ को र् तथा लृ को ल् आदेश हो जाता है।

    यदि + अपि = यद्यपि(इ + अ = य)

    मधु + अरि = मध्वरि(उ + अ = व)

     

    अतः स्पष्ट है कि वनेऽपि’ में ‘पूर्वरूपसन्धि’ है।

    Additional Information

    सन्धि:- दो शब्दों के संयोग से होने वाले परिवर्तन को सन्धि कहते हैं। जैसे- विद्या+ आलय= विद्यालय।

    सन्धि के प्रकार- 

    • स्वरसन्धि
    • व्यंजनसन्धि
    • विसर्गसन्धि

    सन्धि

     परिभाषा

    उदाहरण

    स्वरसन्धि

    स्वर वर्ण  का संयोग स्वर वर्ण से होने पर जो विकार उत्पन्न होता है।

    विद्या + आलय = विद्यालय

    महा + औषधि = महौषधि

    व्यंजनसन्धि

    व्यंजन वर्ण का संयोग व्यंजन या स्वर वर्ण से होने पर जो विकार उत्पन्न होता है।

    उत् + लास = उल्लास

    तत् + लय = तल्लयः

    विसर्गसन्धि

    विसर्ग का सन्योग स्वर या व्यंजन वर्ण से होने पर जो विकार उत्पन्न होता है।

    दुः + आत्मा = दुरात्मा

    नमः + ते = नमस्ते

     

    उपर्युक्त तीनों सन्धियों के अनेक उपभेद भी होते है।

    स्वर सन्धि के प्रायः 7 भेद बताये गये हैं-

    1. दीर्घ सन्धि
    2. गुण सन्धि
    3. यण सन्धि
    4. वृद्धि सन्धि
    5. अयादि सन्धि
    6. पररूप सन्धि
    7. पूर्वरूप सन्धि 
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