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Sanskrit Language Test - 7

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Sanskrit Language Test - 7
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Weekly Quiz Competition
  • Question 1
    5 / -1
    "उत्थाय" इत्यत्र कः प्रत्ययः ?
    Solution

    प्रश्न अनुवाद - 'उत्थाय​' यहाँ कौन-सा प्रत्यय है?

    स्पष्टीकरण -

    1. समानकर्तृकयोः पूर्वकाले इस सूत्र से एक ही कर्ताद्वारा किये हुये अनेक क्रियाओं में मुख्य क्रिया से पूर्व किये गये क्रियाओं को सूचित करने के लिये क्त्वा प्रत्यय प्रयुक्त होता है।
    2. लेकिन समासेऽनञ्पूर्वे क्त्वो ल्यप् इस सूत्र से उपसर्गयुक्त धातूओं में क्त्वा के स्थान में ल्यप् प्रत्यय जुड़ता है।

    उदाहरण -

    धातवः

    क्त्वा

    ल्यप्

    दा

    दत्त्वा

    प्र + दा = प्रदाय

    ज्ञा

    ज्ञात्वा

    वि + ज्ञा= विज्ञाय

    श्रु

    श्रुत्वा

    उप + श्रु = उपश्रुत्य

    स्था

    स्थित्वा

    उत् + स्था = उत्थाप्य 

     

    अतः यह स्पष्ट होता है कि, उत्थाय यह पद ल्यप् प्रत्यययुक्त है।
  • Question 2
    5 / -1
    'नयनम्' इत्यत्र के प्रकृतिप्रत्ययोः?
    Solution

    प्रश्न का हिंदी अनुवाद - 'नयनम्' पद में कौन से प्रकृति-प्रत्यय है?

    स्पष्टीकरण -

    नयनम् प्रयुक्त प्रकृति 'नी' और प्रत्यय 'ल्युट्'  है।

    सूत्र - 'ल्युट् च' इस सूत्र से भाव अर्थ में धातुओं से ल्युट् प्रत्यय होता है। इस प्रत्यय के जुड़ने पर कुछ अपेक्षित परिवर्तन होते हैं-

    • भाववाचक शब्दों की रचना के लिए धातुओं में ल्युट् प्रत्यय जोड़ा जाता है।
    • रचना करते समय 'ट्' और 'ल्' लोप हो जाता है और 'यु' शेष रहता है।
    • 'यु' के स्थान पर 'युवाेरनाकौ' सूत्र से 'अन' हो जाता है और वह धातु के साथ जुड़ता है।
    • अन जुड़ने के बाद शब्द 'वन' अकारान्त नपुंसकलिङ्ग की तरह चलता है।

    Important Points

    विकल्पों का स्पष्टीकरण

    1. नम् + ल्युट् → नम् + अन → नमन
    2. नी + ल्युट् → नी + अन → नयन
    3. ने + ल्युट् → 'ने' धातु अस्तित्व में नहीं है और भाववाचक की रचना के लिए ल्युट् प्रत्यय धातु से जुड़ना चाहिए।
    4. नयन + ल्युट् → 'नयन' यह धातु नहीं प्रातिपदिक है इसलिए इससे ल्युट् जोड़कर भाववाचक शब्द नहीं बनते।

     

    इससे यह स्पष्ट होता है कि 'प्रकृति नी + प्रत्यय ल्युट्' से 'नयन' प्रातिपदिक बनता है और उससे नपुंसकलिंग प्रथमा विभक्ति-एकवचन में 'नयनम्' शब्द प्राप्त होता है।

  • Question 3
    5 / -1
    'चि + तव्यत्' संयोगे किं रूपं सिध्यति ?
    Solution

    प्रश्नानुवाद'चि + तव्यत्' संयोग में कौन-सा रूप सिद्ध होता है?

    स्पष्टीकरण -

    • चि + तव्यत् के संयोग से चेतव्यम् रूप बनेगा।

    सूत्र - तव्यत्तव्यानीयरः।

    • नियम - तव्यत् (तव्य), तव्य, अनीयर् ये तीनों प्रत्यय प्रायः सभी धातुओं के साथ लगाये जा सकते हैं। ये तीनों प्रत्यय चाहिए अर्थ में लगते हैं।

    उदाहरण -

    • पठ् + तव्यत् - पठितव्यम् (पढ़ना चाहिए)
    • गम् + तव्यत् - गन्तव्यम् (जाना चाहिए)
    • इस नियमानुसार चि + तव्यत् के संयोग से चेतव्यम् रूप बनेगा। जिसका अर्थ है - चुनना चाहिए

     

    अतः यहाँ चेतव्यम् सही उत्तर है।

    Additional Information

    अन्य विकल्प

    • चेत्यम् और चितव्याम् ये दोनों अशुद्ध है।
    • चयनीयम् में चि धातु + अनीयर् प्रत्यय लगा है।
  • Question 4
    5 / -1

    सीता स्नानं कृत्वा देवालयं गच्छति।

    रेखाङ्कितपदे धातुः प्रत्ययश्च स्तः

    Solution

    प्रश्न अनुवाद - सीता स्नानं कृत्वा देवालयं गच्छति। रेखाङ्कितपद में धातु और प्रत्यय है।

    स्पष्टीकरण

    • 'समानकर्तृकयोः पूर्वकाले' इस सूत्र से एक ही कर्ता द्वारा किये हुये अनेक क्रियाओं में मुख्य क्रिया से पूर्व की गयी क्रियाओं को सूचित करने के लिये क्त्वा प्रत्यय प्रयुक्त होता है।
    • प्रस्तुत वाक्य में कृ धातु और क्त्वा प्रत्यय प्रयुक्त हुआ है।
    • इस तरह 'सीता स्नान करके देवालय जाती है।' ऐसा वाक्य का अर्थ होता है।

    अन्य उदाहरण -

    • दा - दत्वा
    • श्रु - श्रुत्वा
    • स्था - स्थित्वा

     

    अतः यह स्पष्ट है कि, रेखाङ्कित पद में कृ धातु और क्त्वा प्रत्यय है।

  • Question 5
    5 / -1
    'कथयितुम्' अत्र धातुः प्रत्ययश्च स्तः-
    Solution

    प्रश्न अनुवाद - 'कथयितुम्' यहाँ धातु और प्रत्यय हैं-

    स्पष्टीकरण - तुमुन्ण्वुलौ क्रियायां क्रियार्थायाम् इस सूत्र से जब एक क्रिया दुसरे क्रिया का प्रयोजन अथवा निमित्त होती है तब उस निमित्तार्थक क्रियापद में तुमुन् प्रत्यय लगता है। यथा -

    • छात्रः पठितुम् विद्यालयं गच्छति।
    • कृष्णं द्रष्टुम् याति।
    • खगाः तडागे स्नातुम् आगच्छन्ति।

    अतः कथयितुम् पद में कथ धातु और तुमुन् प्रत्यय प्रयुक्त है यह सिद्ध होता है।

    Key Points

     कथयितुम् पद में 'कथ्' मूल धातु है। 'कथ्' यह दशम गण का धातु होने के कारण प्रथम 'य' विकरण जोडकर तुमुन् प्रत्यय प्रयुक्त हुआ है।

  • Question 6
    5 / -1
    धनवान् इत्यत्र कः प्रत्यय​?
    Solution

    प्रश्नानुवाद  'धनवान्' इस पद में कौनसा प्रत्यय है?

    स्पष्टीकरण  'धनवान्' इस पद में मतुप् प्रत्यय है।

    1. संज्ञा, सर्वनाम​, विशेषण इन सभी शब्दों के अन्त में जो प्रत्यय लगते है उन्हें तद्धितान्त प्रत्यय कहते है। मतुप् प्रत्यय यह तद्धितान्त प्रत्ययों में से एक है।
    2. मतुप् प्रत्यय से किसी एक वस्तु का दुसरी वस्तु में होना दिखाता है। इसके अतिरिक्त प्रयोग करने पर मतुप् प्रत्यय का केवल मत् ही शेष रहता है। अतः 'धनवान्' यह मतुप् प्रत्ययी पद धन की किसी व्यक्ति के समीप होनेवाली विपुलता को दर्शाता है।
    3. सामान्यतया, पुंल्लिंग शब्दों के अन्त में मान् / वान्, स्त्रीलिंग शब्दों के अन्त में मती / वती और नपुंसकलिंगों के अन्त में मत् / वत् इसतरह से प्रत्यय जुडते है।
    4. उदाहरण​ 
      रुप + मतुप्  रुपवान्, रुपवती, रुपवत्
      श्री + मतुप्  श्रीमान्, श्रीमती, श्रीमत्
      शक्ति + मतुप्  शक्तिमान्, शक्तिमती, शक्तिमत्
      यश + मतुप्  यशवान्, यशवती, यशवत्

    अतः स्पष्ट होता है कि, 'धनवान्' इसमें मतुप् प्रत्यय है।

    Additional Informationअन्य विकल्प → 

    • क्तवतु प्रत्यय  यह भूतकालवाचक कृत् प्रत्यय है जो अधिकतर कर्तृवाच्य में प्रयुक्त होता है। यथा  गम् + क्तवतु = गतवान्।
    • क्त प्रत्यय  यह भूतकालवाचक कृत् प्रत्यय है जो अधिकतर कर्मवाच्य में प्रयुक्त होता है। यथा  गम् + क्तः = गतः।
    • शानच् प्रत्यय  एक कार्य को करते हुए जब साथ ही साथ अन्य कार्य भी किया जा रहा हो तो करता हुआ अथवा करती हुई इस अर्थ में आत्मनेपदी धातुओं में शानच् प्रत्यय का प्रयोग होता है। यथा  मुद् + शानच् (मान​) = मोदमानः, मोदमाना, मोदमानम्।
  • Question 7
    5 / -1
    दर्शनम् इति पदे प्रत्ययः अस्ति -
    Solution

    प्रश्न का हिंदी अनुवाद - 'दर्शनम्' पद में कौन-सा प्रत्यय है?

    स्पष्टीकरण -

    शब्द – दर्शनम्

    प्रत्यय – दृश् + ल्युट् 

    सूत्र:- 'ल्युट् च' से भाव अर्थ में धातुओं से ल्युट् प्रत्यय होता है। प्रत्यय के जुड़ने पर कुछ अपेक्षित परिवर्तन होते हैं-

    • भाववाचक शब्दों की रचना के लिए धातुओं को ल्युट् प्रत्यय जोड़ा जाता है।
    • रचना करते समय 'ट्' और 'ल्' लोप हो जाता है और 'यु' शेष रहता है।
    • 'यु' के स्थान पर 'अन' हो जाता है और वह धातु के साथ जुड़ता है।
    • अन जुड़ने के बाद शब्द 'वन' अकारान्त नपुंसकलिङ्ग की तरह चलता है।

    उदाहरण - 

    • नि + ल्युट् = नयनम्
    • दृश् + ल्युट् = दर्शनम्

    अतः स्पष्ट है कि 'दर्शनम्' पद में ल्युट् प्रत्यय का प्रयोग है।

    Additional Information

    प्रत्यय:- ‘प्रति’ उपसर्ग पूर्वक ‘इण्’ धातु से ‘अच्’ प्रत्यय होकर ‘प्रत्यय’ पद निष्पन्न होता है। जिसका अर्थ होता है वे शब्द या शब्दांश जो अन्य शब्द के अन्त में जुड़कर नये सार्थक शब्दों का निर्माण करते हैं, प्रत्यय कहलाते हैं।जैसे- गम् + क्त्वा = गत्वा। प्रत्यय पाँच प्रकार के होते हैं-

    नाम

    परिभाषा

    उदाहरण

    विभक्ति

    मूल धातु या प्रातिपदिक से पद बनाने के लिये जुड़ते है। सुप् और तिङ्ग इनके अन्तर्गत आते हैं।

    पठ् + तिप् = पठति

    राम + सु = रामः

    कृत् (कृदन्त प्रत्यय)

    धातु के अन्त में जुड़ते हैं।

    धृ + क्तिन् = धृति

    तद्धित

    शब्दों के अन्त में जुड़ते हैं।

    श्रेष्ठ + तमप् = श्रेष्ठतम्

    स्त्रीप्रत्यय

    पुं. स्त्री. में परिवर्तित करने के लिए जुड़ता है।

    बालक + टाप् = बालिका

    धातु-अवयव

    प्रत्यय से पूर्व जुड़ने वाला प्रत्यय होता है।

    पठ् + णिच् + तिप् = पाठयति

    पठ् + णिच् + शतृ = पाठयन्

  • Question 8
    5 / -1
    'गत्वा' पदे प्रत्ययं अस्ति -
    Solution

    प्रश्न का हिन्दी अनुवाद - 'गत्वा' पद में प्रत्यय है -

    स्पष्टीकरण - 

    ‘समानकर्तृकयोः पूर्वकाले’ इस सूत्र से वाक्य में मुख्य क्रिया के साथ पूर्वकालिक क्रिया का प्रयोग हो तो धातु से क्त्वा प्रत्यय का प्रयोग होता है। जैसे- ‘रमेश जाकर पढ़ता है।’ यहाँ जाकर पूर्वकालिक क्रिया है अतः क्त्वा प्रत्यय का प्रयोग गम् धातु के साथ होगा। ‘क्त्वा’ प्रत्यय में ‘लशक्वतद्धिते’ से ‘क्’ का लोप हो केवल ‘त्वा’ जुड़ता है-

    • गम् + क्त्वा = गत्वा।
    • कृ + क्त्वा = कृत्वा।
    • श्रु + क्त्वा = श्रृत्वा।
    • मिल् + क्त्वा = मिलित्वा।

     

    अतः स्पष्ट है कि 'गत्वा' में क्त्वा प्रत्यय का प्रयोग हुआ है।

  • Question 9
    5 / -1

    ‘छात्रेषु मोहनः पटूतमः।’

    रेखाङ्कितपदे प्रत्ययः अस्ति

    Solution

    प्रश्नानुवाद - ‘छात्रेषु मोहनः पटूतमः।’ रेखाङ्कित पद में प्रत्यय है-

    वाक्य - ‘छात्रेषु मोहनः पटूतमः।’ का अर्थ है - छात्रों में मोहन सबसे चतुर है

    जब दो या दो से अधिक वस्तु या व्यक्तियों में तुलना की जाती है, तब अनुक्रम से ‘तरप्’ और ‘तमप्’ प्रत्ययों का प्रयोग किया जाता है

    जैसे –

    • लघुतरः – दोनो में लघु,
    • लघुतमः – सब में लघु

    शब्द – पटुतमः

    विग्रह – पटु + तमप्

    प्रस्तुत वाक्य में मोहन कि तुलना 'सब'से कि है अर्थात् उसे ‘पटुतमः’ कहा है। अतः वहाँ ‘तमप्’ प्रत्यय का प्रयोग किया है

    Additional Information

    प्रत्यय:- ‘प्रति’ उपसर्ग पूर्वक ‘इण्’ धातु से ‘अच्’ प्रत्यय होकर ‘प्रत्यय’ पद निष्पन्न होता है। जिसका अर्थ होता है वे शब्द या शब्दांश जो अन्य शब्द के अन्त में जुड़कर नये सार्थक शब्दों का निर्माण करते हैं, प्रत्यय कहलाते हैं। जैसे- गम् + क्त्वा = गत्वा। प्रत्यय पाँच प्रकार के होते हैं-

    नाम

    परिभाषा

    उदाहरण

    विभक्ति

    मूल धातु या प्रातिपदिक से पद बनाने के लिये जुड़ते है। सुप् और तिङ्ग इनके अन्तर्गत आते हैं।

    पठ् + तिप् = पठति

    राम + सु = रामः

    कृत् (कृदन्त प्रत्यय)

    धातु के अन्त में जुड़ते हैं।

    धृ + क्तिन् = धृति

    तद्धित

    शब्दों के अन्त में जुड़ते हैं।

    श्रेष्ठ + तमप् = श्रेष्ठतम्

    स्त्रीप्रत्यय

    पुं. स्त्री. में परिवर्तित करने के लिए जुड़ता है।

    बालक + टाप् = बालिका

    धातु-अवयव

    प्रत्यय से पूर्व जुड़ने वाला प्रत्यय होता है।

    पठ् + णिच् + तिप् = पाठयति

    पठ् + णिच् + शतृ = पाठयन्

     

  • Question 10
    5 / -1
    "गम् + शतृ" इति प्रत्यये कृते कृदन्तरूपं स्यात्-
    Solution

    प्रश्न का अनुवाद: "गम् + शतृ" इसके प्रत्यय में कौनसा कृदंत रूप बनेगा?

    शब्द: गच्छत्
    विग्रह: गम् + शतृ = गच्छत् – गच्छन् – गच्छन्ती
    प्रत्यय: शतृ प्रत्यय
     
    प्रत्यय: प्रत्यय वह शब्दांश है जो किसी भी धातु या शब्द के अंत में जुड़कर उसके अर्थ में नवीनता एवं विशेषता लाते हैं, इनका स्वतंत्र रूप से प्रयोग नहीं होता।

    Important Points 
    शतृ प्रत्यय:

    • वर्तमान काल के अर्थ में अर्थात् परस्मैपद की धातुओं के साथ शतृ प्रत्यय लगता है।
    • इसका ‘अत्’ भाग शेष रहता है और ऋकार का लोप हो जाता है।
    • शतृ प्रत्ययान्त शब्द का प्रयोग विशेषण के समान होता है। 
    • लगातार कार्य होना इस अर्थ में यह प्रत्यय आते है उदाहरणार्थ राम लिखता है, राम पढता है आदि।
    • यह तीनो लिंगो में और सात विभक्तियो में यह चलते है।

     

    इस विवरण से स्पष्ट होता है की, "गम् + शतृ"  इस प्रकृति-प्रत्यय से मिलकर गच्छत् यह रूप बनेगा।

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