प्रश्न का हिन्दी अनुवाद - इस वाक्य को शुद्ध कीजिये -
'नृपः नगरं जयति।'
स्पष्टीकरण -
वाक्य को ध्यान से देखने पर स्पष्ट होता है कि -
- यहाँ जय धातु है।
- अकथितं च सूत्र के अनुसार जय धातु के योग मे 'द्वितीया विभक्ति कि योजना होती है।
- अतः स्पष्ट है कि 'नृपः नगराय जयति।' का शुद्ध रूप होगा - नृपः नरं जयति।
Hint
'अकथितं च' सूत्र के अनुसार अपादन आदि कारकों के होने पर भी कर्ता द्वारा उसका प्रयोग न किया जाये तो उसे अकथित कहा जाता है। दुह्, याच् आदि 16 धातुओं और उनके समानार्थी धातुओं के योग में अपादान आदि के अकथित होने पर उनकी कर्मसंज्ञा होती है और इन 16 धातुओं को द्विकर्मक धातु कहा जाता है -
'दुह्याच्पच्दण्डरुधिप्रच्छिचिब्रूशासुजिमथ् मुषाम्।
कर्मयुक् स्यादकथितं तथा स्यान्नीहृकृष्वहाम्।।
Additional Information
इन सोलह धातुओं का प्रयोग इसप्रकार है -
- दुह् (दुहना) -
यहाँ अपादानकारक का अर्थ प्रकट होने पर भी उक्त सूत्र से कर्मकारक हुआ है।
- याच् (माँगना)
- बलिं याचते वसुधाम्।
- बलिं भिक्षते वसुधाम्।
- निर्धनः राजानम् धनं याचते।
याच् धातु के समानार्थी 'भिक्ष्' धातु के प्रयोग पर भी द्वितीया विभक्ति ही होती है।
- पच् (पकाना)
- दण्ड् (दण्ड देना)
- रुधि (रोकना)
- पृच्छ् (पूछना)
- माणवकं पन्थानं पृच्छति।
- चि (चुनना)
- ब्रू, शास् (बोलना, उपदेश करना)
- माणवकं धर्मं ब्रूते।
- गुरुः शिष्यं शास्त्रं शास्ति।
- अध्यापकं शास्त्रं शास्ति।
- जि (जीतना)
- मथ् (मथना)
- अमृतं क्षीरनिधिं मथ्नाति।
- मुष् (चुराना)
- नी, हृ, कृष्, वह् (ले जाना)
- ग्रामं अजां नयति।
- गृहं गावं हरति।
- ग्रामं अजां वहति।
- ग्रामं अजां कर्षति।