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Sanskrit Language Test - 8

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Sanskrit Language Test - 8
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Self Studies Self Studies
Weekly Quiz Competition
  • Question 1
    5 / -1
    पिता पुत्रं क्रुध्यति। रेखाङ्कितं पदं संशोधयत-
    Solution

    प्रश्नार्थ - पिता पुत्रं क्रुध्यति। रेखाङ्कित पद का संशोधन करे-

    स्पष्टीकरण - क्रुध्द्रुहेर्ष्यासूयार्थानां यं प्रति कोपः’ सूत्र से क्रुध्द्रुह्, ईर्ष्या, असूय आदि धातुओं के योग में जिस पर क्रोध आये उसकी सम्प्रदान संज्ञा होती है और ‘सम्प्रदाने चतुर्थी’ से उसमें चतुर्थी विभक्ति होती है।

    जैसे-

    • हरये क्रुध्यति
    • पिता पुत्राय क्रुध्यति
    • दुर्जनः सज्जनाय द्रुह्यति
    • बालकः बालिकायै ईर्ष्यति
    • सिता रामाय न असूयति


    अतः स्पष्ट है कि क्रुध् धातु के योग में 'पुत्रं' रूप होकर शुद्ध वाक्य बनेगा - पिता पुत्राय क्रुध्यति।

  • Question 2
    5 / -1

    वाक्यमिदं संशोधयत

    "बालकाः पुस्तकं रोचते।"

    Solution

    प्रश्नानुवाद - इस वाक्य को संशोधित करें - "बालकाः पुस्तकं रोचते।"

    स्पष्टीकरण -

    • बालकाः पुस्तकं रोचते। - यह अशुद्ध वाक्य है।
    • शुद्ध वाक्य होगा - बालकाय पुस्तकं रोचते। अर्थात् बालक को पुस्तक अच्छी लगती/पसन्द है। (अच्छा या पसन्द होने के अर्थ में चतुर्थी लगती है।)

    सूत्ररुच्यर्थानां प्रीयमाणः। इस सूत्र के अनुसार - रुच् और रुच् के अर्थवाली धातुओं के योग में प्रसन्न होने वाला सम्प्रदान होता है। जिसकी चतुर्थी विभक्ति होती है। यहाँ बालक को पुस्तक अच्छी लगती हैं। इसलिए बालकाय होगा।

    अतः स्पष्ट है कि यहाँ बालकाय पुस्तकं रोचते शुद्ध वाक्य है। (अन्य सभी वाक्य अशुद्ध है।)

  • Question 3
    5 / -1
    रामस्य पिता नाम दशरथः। रेखाङ्कितस्य पदस्य शुद्धरूपं वर्तते-
    Solution

    प्रश्नानुवाद - रामस्य पिता नाम दशरथः। रेखाङ्कित पद का शुद्धरूप है-

    स्पष्टीकरण - रामस्य पिता नाम दशरथः। - यह असंगत है क्योंकि राम के पिता का नाम दशरथ है। - ऐसा वाक्य है। जहाँ पिता के शब्द में सम्बन्ध का बोध हो रहा है।

    सम्बन्ध के अर्थ में षष्ठी विभक्ति होगी।  इस तरह पिता के स्थान पर पितुः पद होगा।

    इस तरह शुद्ध वाक्य होगा - रामस्य पितुः नाम दशरथः।

    अतः रेखांकित पद (पिता) के स्थान पर पितुः पद आयेगा।

    Additional Information

    पितृ (पिता) ऋकारान्त पुल्लिंग शब्दरूप का प्रयोग निम्नलिखित है-

    विभक्ति

    एकवचन

    द्विवचन

    बहुवचन

    प्रथमा

    पिता

    पितरौ

    पितरः

    द्वितीया

    पितरम्

    पितरौ

    पितॄन्

    तृतीया

    पित्रा

    पितृभ्याम्

    पितृभिः

    चर्तुथी

    पित्रेः

    पितृभ्याम्

    पितृभ्यः

    पन्चमी

    पितुः

    पितृभ्याम्

    पितृभ्यः

    षष्ठी

    पितुः

    पित्रोः

    पितॄणाम्

    सप्तमी

    पितरि

    पित्रोः

    पितृषु

    सम्बोधन

    हे पितः!

    हे पितरौ!

    हे पितरः!

  • Question 4
    5 / -1

    'बालकः बालिका ईर्ष्यति।' इति वाक्यमिदं संशोधयत

    Solution

    प्रश्न का हिन्दी अनुवाद - 'बालकः बालिका ईर्ष्यति।' इस वाक्य को संशोधित करें -

    स्पष्टीकरण 

    ‘क्रुध्द्रुहेर्ष्यासूयार्थानां यं प्रति कोपः’ सूत्र से क्रुध्, द्रुह्, ईर्ष्या, असूय आदि धातुओं के योग में जिस पर क्रोध आये उसकी सम्प्रदान संज्ञा होती है और ‘सम्प्रदाने चतुर्थी’ से उसमें चतुर्थी विभक्ति होती है। जैसे-

    • हरये क्रुध्यति।
    • शिक्षकः छात्राय क्रुध्यति।
    • दुर्जनः सज्जनाय द्रुह्यति।
    • बालकः बालिकायै ईर्ष्यति।
    • सिता रामाय न असूयति।

    अतः स्पष्ट है कि 'बालकः बालिकायै ईर्ष्यति।' यह शुद्ध वाक्य है।

  • Question 5
    5 / -1

    गुरुः शिष्यात् प्रश्नं पृच्छति।

    वाक्यमिदं संशोधयत -

    Solution

    प्रश्नार्थ - वाक्य संशोधन करे 'गुरुः शिष्यात् प्रश्नं पृच्छति।'

    स्पष्टीकरण - 'अकथितं च' सूत्र के अनुसार अकथित को गौण कर्म की संज्ञा प्राप्त होती है तथा उसमें द्वितीया विभक्ति होती है। इस सूत्र में 16 धातुओं का उल्लेख है जिनके योग में ऐसा होता है और इन धातुओं को द्विकर्मक धातु कहा जाता है।

    वाक्य 'गुरुः शिष्यात् प्रश्नं पृच्छति।' में - 

    • कर्ता 'गुरुः' एकवचन में है।
    • 'पृच्छ्' धातु 'अकथितं च' सूत्र से द्विकर्मक है, अतः यहाँ 'शिष्य' को गौण कर्म होने से इसकी द्वितीया विभक्ति होती है
    • इससे ‘प्रश्न' मुख्य कर्म होने से द्वितीया ही रहता है।

    अतः 'अकथितं च' इस सूत्र के अनुसार 'गुरुः शिष्यात् प्रश्नं पृच्छति।' इस वाक्य का शुद्ध रूप  'गुरुः शिष्यं प्रश्नं पृच्छति।' होता।

  • Question 6
    5 / -1
    शुद्धं वाक्यं वर्तते-
    Solution

    प्रश्नानुवाद - शुद्ध वाक्य है-

    स्पष्टीकरण -

    • दिय गये विकल्पों में कृष्णं परितः मित्राणि सन्ति यह वाक्य शुद्ध वाक्य है।

    Important Points

    • ‘उपान्वध्याङ्वसः' इस सूत्र के वार्तिक ‘अभितः परितः समयानिकषाहाप्रतियोगेऽपि’ के अनुसार अभितः, परितः, समया, निकषा और हा इन अव्ययों के योग में द्वितीया विभक्ति होती है। 

    उदाहरण

    • कृष्णम् अभितः ग्वालाः सन्ति।
    • मीनं परितः मीनाः सन्ति।
    • गृहं परितः बालाः सन्ति।
    • समुद्रं निकषा लङ्का अस्ति।
    • हा कृष्णभक्तम्।

     

    अतः यहाँ कृष्णं परितः मित्राणि सन्ति (कृष्ण के चारों ओर मित्र हैं।) सही उत्तर होगा।

    Additional Information

    अन्य विकल्पों का स्पष्टीकरण -

    • नृपः विप्रं गां ददाति - यहाँ विप्राय शुद्ध शब्द है। कर्मणा यमभिप्रैति स सम्प्रदानम् इस सूत्र के अनुसार - दान के कर्म के द्वारा कर्ता जिसे सन्तुष्ट/प्रसन्न करता है। वह सम्प्रदान कारक होता है। सम्प्रदान की चतुर्थी विभक्ति होती है। अतः यहाँ विप्राय होगा।
    • बालकं मोदकं रोचते - यहाँ बालकाय शुद्ध शब्द होगा। रुच्यर्थानां प्रीयमाणः इस सूत्र के अनुसार - रुच् और रुच् के अर्थवाली धातुओं के योग में प्रसन्न होने वाला सम्प्रदान होता है। जिसकी चतुर्थी विभक्ति होती है। यहाँ बालक को लड्डू अच्छे लगते हैं। इसलिए बालकाय होगा।
    • सः दण्डाद् आरक्षकः अस्ति - यहाँ दण्डेन शुद्ध शब्द होगा। इत्थं भूतलक्षणे इस सूत्र के अनुसार जिस लक्षण (चिन्ह) से किसी व्यक्ति या वस्तु का ज्ञान होता है, उस लक्षणबोधक शब्द में तृतीया लगती है। अतः यहाँ दण्डेन होगा। (वह डण्डे से सुरक्षा कर्मी है।)
  • Question 7
    5 / -1

    वाक्यमिदं संशोधयत

    आश्रमस्य अभितः वनम् अस्ति'

    Solution

    प्रश्न का हिन्दी अनुवाद - 'आश्रमस्य अभितः वनम् अस्ति'' इस वाक्य को संशोधित करें -

    स्पष्टीकरण- यहाँ वाक्य में अभितः का प्रयोग हुआ है, जिसके प्रयोग होने पर द्वितीया विभक्ति के प्रयोग का विधान है। इस वाक्य में द्वितीया के स्थान पर षष्ठी विभक्ति का प्रयोग हुआ है। अतः वाक्य अशुद्ध है।

    Hint  

    'उपान्वध्याङ्वसः' के वार्तिक ‘अभितःपरितःसमयानिकषाहाप्रतियोगेऽपि’ के अनुसार ‘अभितः’, ‘परितः’, ‘समया’, ‘निकषा’ और ‘हा’ इन अव्यय के योग में आने वाले पदों में द्वितीया विभक्ति होती है -

    जैसे –

    • आश्रमम् अभितः वनम् अस्ति।
    • मीनं परितः मीनाः सन्ति।
    • गृहं परितः बालाः सन्ति।
    • शिक्षकं परितः छात्राः सन्ति​।
    • समुद्रं निकषा लङ्का अस्ति।
    • सः ग्रामं निकषा तिष्ठति।
    • पुष्पं परितः भ्रमराः गुञ्जन्ति।
    • हा कृष्णभक्तम्।
    • सः विद्यालयं प्रति गच्छति।
    • जनः सम्मर्दं प्रति गच्छति।

    अतः स्पष्ट है कि अभितः के योग में आश्रमस्य न होकर आश्रमम् होगा, और शुद्ध वाक्य होगा - 'आश्रमम् अभितः वनम् अस्ति।'

  • Question 8
    5 / -1

    वाक्यमिदं संशोधयत -

    नृपः नगराय जयति।

    Solution

    प्रश्न का हिन्दी अनुवाद - इस वाक्य को शुद्ध कीजिये -

    'नृपः नगरं जयति।'

    स्पष्टीकरण -

    वाक्य को ध्यान से देखने पर स्पष्ट होता है कि -

    • यहाँ जय धातु है।
    • अकथितं च सूत्र के अनुसार जय धातु के योग मे 'द्वितीया विभक्ति कि योजना होती है। 
    • अतः स्पष्ट है कि 'नृपः नगराय जयति।' का शुद्ध रूप होगा - नृपः नरं जयति।

    Hint

    'अकथितं च'  सूत्र के अनुसार अपादन आदि कारकों के होने पर भी कर्ता द्वारा उसका प्रयोग न किया जाये तो उसे अकथित कहा जाता है। दुह्, याच् आदि 16 धातुओं और उनके समानार्थी धातुओं के योग में अपादान आदि के अकथित होने पर उनकी कर्मसंज्ञा होती है और इन 16 धातुओं को द्विकर्मक धातु कहा जाता है - 

    'दुह्याच्पच्दण्‍डरुधिप्रच्छिचिब्रूशासुजिमथ् मुषाम्।
    कर्मयुक् स्‍यादकथितं तथा स्‍यान्‍नीहृकृष्‍वहाम्।। 

    Additional Information

    इन सोलह धातुओं का प्रयोग इसप्रकार है -

    1. दुह् (दुहना) -
      • गां दोग्धि पय:।

    यहाँ अपादानकारक का अर्थ प्रकट होने पर भी उक्‍त सूत्र से कर्मकारक हुआ है।

    1. याच् (माँगना)
      • बलिं याचते वसुधाम्।
      • बलिं भिक्षते वसुधाम्।
      • निर्धनः राजानम् धनं याचते

    याच् धातु के समानार्थी 'भिक्ष्' धातु के प्रयोग पर भी द्वितीया विभक्ति ही होती है।

    1. पच् (पकाना)
      • तण्‍डुलान् ओदनं पचति
    2. दण्‍ड् (दण्‍ड देना)
      • गर्गान् शतं दण्‍‍डयति
    3. रुधि (रोकना)
      • व्रजं गां अवरुणद्धि।
    4. पृच्‍छ् (पूछना)
      • माणवकं पन्‍थानं पृच्‍छति।
    5. चि (चुनना)
      • लतां पुष्‍पं चिनोति। 
    6. ब्रू, शास् (बोलना, उपदेश करना)
      • माणवकं धर्मं ब्रूते।
      • गुरुः शिष्यं शास्त्रं शास्ति।
      • अध्यापकं शास्त्रं शास्ति। 
    7. जि (जीतना)
      • देवदत्‍तं शतं जयति।
    8. मथ् (मथना)
      • अमृतं क्षीरनिधिं मथ्‍नाति। 
    9. मुष् (चुराना)
      • शतं मुष्‍णाति देवदत्‍तं।
    10. नी, हृ, कृष्, वह् (ले जाना)
      • ग्रामं अजां नयति।
      • गृहं गावं हरति। 
      • ग्रामं अजां वहति। 
      • ग्रामं अजां क‍र्षति।
  • Question 9
    5 / -1
    शुद्धं वाक्यं नास्ति-
    Solution

    प्रश्नानुवाद - शुद्ध वाक्य नहीं है-

    स्पष्टीकरण -

    • दिये गये विकल्पों में ग्रामस्य पूर्व वनम् अस्ति अशुद्ध वाक्य है। क्योंकि दिशासूचक शब्दों के योग में पंचमी विभक्ति होती है। इसलिए यहाँ ग्रामात् होना चाहिए था।
      • अन्यारादितरर्ते दिक्शब्दाञ्चूत्तरपदाजाहियुक्ते। इस सूत्र के अनुसार - अन्य, इतर, आरात्, ऋते, तथा दिग्वाचक प्रत्यक्, उदीच्, प्रभृति शब्दों तथा दक्षिणा, उत्तरा आदि शब्दों के योग में पंचमी विभक्ति होती है।
    • अतः स्पष्ट है कि ग्रामस्य पूर्वं वनम् अस्ति अशुद्ध वाक्य है।

    Additional Information

    अन्य विकल्पों का स्पष्टीकरण -

    ये तीनों वाक्य शुद्ध हैं -

    • पुत्रेण सह पिता गच्छति। - सहयुक्तेप्रधानम्। इस सूत्र के अनुसार - सह, साकम्, सार्धम्, समम् इन चारों शब्दों के साथ वाले शब्दों में तृतीया विभक्ति होती है।
    • मह्यं शयनं रोचते। - रुच्यर्थानां प्रीयमाणः।  इस सूत्र के अनुसार - रुच् और रुच् के अर्थवाली धातुओं के योग में प्रसन्न होने वाला सम्प्रदान होता है। जिसकी चतुर्थी विभक्ति होती है।
    • सः मोहनाय कुप्यति। - क्रुधद्रुहेर्ष्यार्थानां यं प्रति कोपः। इस सूत्र के अनुसार - क्रुध्, द्रुह्, ईर्ष्य, असूय् इन धातुओं के योग में, जिस पर क्रोध किया जाता है, उसमें चतुर्थी विभक्ति होती है।
  • Question 10
    5 / -1
    शुद्धमस्ति-
    Solution

    प्रश्नानुवाद - शुद्ध है-

    स्पष्टीकरण -

    • यहाँ तस्मै रामाय नमः (उस राम को नमस्कार करता है।) शुद्ध वाक्य है। यह उपपद विभक्ति का उदाहरण है।
    • उपपद विभक्ति - इसका उपयोग विशेष अर्थ या शब्दों के योग में किया जाता है। जहाँ सामान्य विभक्ति का उपयोग न होकर विशेष अर्थ या शब्द के योग में होने वाली विभक्ति का उपयोग होता है।

     

    सूत्र - नमः स्वस्तिस्वाहास्वधाSलंवषड्योगाच्च।

    • नियम - नमः, स्वस्ति, स्वाहा, स्वधा, अलम्, वषट् इन शब्दों के योग में चतुर्थी विभक्ति का उपयोग हो जाता है।

    उदाहरण -

    • ईश्वराय/कृष्णाय नमः। (ईश्वर के लिए नमस्कार)
    • नृपाय स्वस्ति। (राजा का कल्याण हो)
    • अग्नये स्वाहा। (अग्नि को यह आहुति)
    • पितृभ्यः स्वधा। (पितरों को यह आहुति)
    • इन्द्राय वषट्। (इन्द्र को आहुति)
    • रावणाय रामं अलम्। (रावण के लिए राम पर्याप्त है।)
     

    सूत्र से स्पष्ट है कि नमः के योग में चतुर्थी विभक्ति हुई है।

    तस्मै रामाय में विशेषण-विशेष्य सम्बन्ध होने से दोनों पदों में चतुर्थी विभक्ति-एकवचन है।

     

    अतः यहाँ तस्मै रामाय नमः सही उत्तर है।

    Additional Information अन्य विकल्प -
    • तं रामाय नमः - तं शब्द अशुद्ध है।
    • ताय रामाय नमः - ताय शब्द अशुद्ध है।
    • तस्यै रामाय नमः - तस्यै शब्द स्त्रीलिंग शब्द के साथ लगता है। (जैसे - तस्यै रमायै नमः)
    ये तीनों विकल्प अशुद्ध है।
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