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UP Board 12th Economics Exam 2024 : Most Important Question with Answers

UP Board 12th Economics Exam 2024 : Most Important Question with Answers

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UP बोर्ड 12वीं की अर्थशास्त्र परीक्षा 28 फरवरी, 2024 को निर्धारित है। तो यह आर्टिकल आपके लिए काफी ज्यादा महत्वपूर्ण साबित होने वाला है क्योंकि इस आर्टिकल में आपको बोर्ड परीक्षा के लिए वो ही प्रश्न दिए गए है जो बोर्ड पेपर में आने जा रहे है।

यहाँ पर UP Board क्लास 12th के अर्थशास्त्र (UP Board Economics Class 12th Exam 2024 VVI Most Important Question) से संबंधित महत्वपूर्ण प्रश्न दिए गए है। महत्वपूर्ण प्रश्नों का एक संग्रह है जो बहुत ही अनुभवी शिक्षकों के द्वारा तैयार किये गए है। इसमें प्रत्येक महत्वपूर्ण प्रश्नों को छांट कर एकत्रित किया गया है, जिससे कि विद्यार्थी कम समय में अच्छे अंक प्राप्त कर सके।

जिस में आपके लिए महत्वपूर्ण बहुविकल्पीय प्रश्न, अतिलघु उत्तरीय प्रश्न, लघु उत्तरीय प्रश्न, विस्तृत उत्तरीय प्रश्न, सभी प्रकार के प्रश्न सम्मिलित किये गए हैं.

UP Board Economics Class 12th Exam 2024 VVI Most Important Question

बहुविकल्पीय प्रश्न-

1- सीमान्त तुष्टिगुण ह्रास नियम की विस्तृत व्याख्या किसके द्वारा की गई ?
(क) गौसेन
(ख) फ्रेडरिक
(ग) मार्शल
(घ) फ्रेजर

Ans: (क) गौसेन

2- वस्तु एवं सेवा कर किस प्रकार की लागत का उदाहरण है?
(क) स्थिर लागत
(ख) सीमान्त लागत
(ग) अवसर लागत
(घ) परिवर्तनशील लागत

Ans: ----------------

3- पूर्ण प्रतिस्पर्द्धा बाजार के लिए निम्नलिखित में से कौन सी दशा है?
(क) औसत आय = सीमान्त आय
(ख) औसत आय > सीमान्त आय
(ग) औसत आय < सीमान्त आय
(घ) उपरोक्त में से कोई नहीं

Ans: (घ) उपरोक्त में से कोई नहीं

4- निम्न समीकरणों में से कौन - सा समीकरण गलत है।
(क) AP = TP x L
(ख) NP = TPN X TPN-1
(ग) AP = QTP ÷ L
(घ) TP = Ab x L

Ans: (ख) NP = TPN X TPN-1

5- यदि पूर्ति बेलोचदार है, तो
(क) Es = O
(ख) Es = 1
(ग) Es > O
(घ) Es < O

Ans: -----------

6- विश्वव्यापी आर्थिक मंदी का कालक्रम क्या था ?
(क) 1920-30
(ख) 1922-25
(ग) 1925-26
(घ) 1929-30

Ans: (घ) 1929-30

7- अर्द्ध-टिकाऊ वस्तुओं में शामिल होती है
(क) क्रॉकरी
(ख) रेफ्रिजरेटर
(ग) वातानुकूलित
(घ) उपर्युक्त सभी

Ans: (घ) उपर्युक्त सभी

8- शुद्ध घरेलू उत्पाद
(क)  सकल घरेलू उत्पाद - घिसावटें
(ख) सकल घरेलू उत्पाद + घिसावटें
(ग) सकल राष्ट्रीय उत्पाद - सब्सिडी
(घ) सकल राष्ट्रीय उत्पाद + सब्सिडी

Ans: (क)  सकल घरेलू उत्पाद - घिसावटें

9- चालू खाते में सम्मिलित विभिन्न अर्थिक सौदों में शामिल हैं ।
(क) सेवाओं का निर्यात
(ख) वस्तुओं का आयात
(ग) अनिष्ट हस्तान्तरण
(घ) ये सभी

Ans: (घ) ये सभी

10- गैर योजनागत व्यय में किसे शामिल किया जाता है।
(क) अपादान
(ख) रक्षा रेखाएँ
(ग) वेतन और पेंशन
(घ) ये सभी

Ans: (घ) ये सभी

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न-

11- औसत आय की गणना किस प्रकार की जाती है ?

Ans: औसत आय की गणना के लिए निम्नलिखित सूत्र का प्रयोग किया जाता है:


यहां,

  • "कुल आय" एक समुदाय में सभी लोगों की कुल आय है,
  • "संख्या लोगों" उस समुदाय में कुल लोगों की संख्या है।

12- अर्थशास्त्र में बाजार की परिभाषा दीजिए ।

Ans: कून के शब्दों में, “अर्थशास्त्र में ‘बाजार’ शब्द का अर्थ किसी ऐसे विशिष्ट स्थान से नहीं लगाते हैं जहाँ पर वस्तुओं का क्रय-विक्रय होती है, बल्कि उस समस्त क्षेत्र से लगाते हैं जिसमें क्रेताओं और विक्रेताओं के मध्य आपस में इस प्रकार का सम्पर्क हो कि किसी वस्तु का मूल्य सरलता एवं शीघ्रता से समान हो जाए।”

13- वाणिज्यिक बैंक से क्या तात्पर्य है?

Ans: वाणिज्यिक या व्यापारिक बैंक से आशय व्यापारिक बैंक वे बैंक होते हैं, जो सामान्य बैंकिंग का कार्य करते हैं। भारत में सभी राष्ट्रीयकृत बैंक व्यापारिक बैंक होते हैं तथा ये बैंक अनुसूचित बैंक भी होते हैं। ये बैंक केन्द्रीय बैंक के निर्देशन में कार्य करते हैं एवं  जनता से निक्षेप स्वीकार करते हैं, अल्पकालीन ऋण प्रदान करते हैं तथा साख का निर्माण भी करते हैं।

14- अवस्फीति अन्तराल को परिभाषित करें ।

Ans: स्फीतिक अंतराल-किसी अर्थव्यवस्था में पूर्ण रोजगार संतुलन की स्थिति को बनाए रखने के लिए जितनी कुल माँग की आवश्यकता पड़ती है यदि कुल माँग उससे अधिक हो तो इनके अंतर को स्फीतिक अंतराल कहा जाता है। स्फीति अंतराल माँग के आधिक्य के कारण उत्पन्न होता है। अतिरिक्त मांग को पूर्ण करने में वर्तमान प्रवाह पर अतिरिक्त दबाव पड़ता है, जिससे कीमतों में वृद्धि होती है। इस स्थिति में उत्पादन में वृद्धि नहीं होती क्योंकि सभी संसाधन पूर्ण रोजगार उत्पादन स्तर पर कार्य कर रहे होते हैं। इस स्थिति में रोजगार में भी वृद्धि नहीं होती क्योंकि पूर्ण रोजगार की स्थिति प्राप्त कर ली गयी होती है। स्फीति अंतराला, मांग में आधिक्य की माप करता है। स्फीति अंतराल यह बतलाता है कि पूर्ण रोजगार संतुलन की स्थिति में उत्पादन आय के लिए जितनी, मांग होनी चाहिए, वास्तविक माँग उससे कितनी अधिक है। स्फीति अंतराल माँग आधिक्य तथा कीमत में वृद्धि को प्रदर्शित करता है।

15- बचत को निर्धारित करने वाले तत्वों के नाम लिखिए ।

Ans: बचत को निर्धारित करने वाले तत्व निम्नलिखित हैं –

  • बचत करने की इच्छा
  • बचत करने की शक्ति,
  • बचत करने की सुविधाएँ।

16- भारत की वर्तमान मुद्रा प्रणाली के किन्ही तीन बिन्दुओं का वर्णन करें ।

Ans: भारत की वर्तमान मुद्रा प्रणाली के तीन मुख्य बिंदु :

1. मुद्रा इकाई: भारत की मुद्रा इकाई 'रुपया' (₹) है। 1 रुपया 100 पैसों में विभाजित होता है।

2. जारीकर्ता: भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) भारत में मुद्रा जारी करने का एकमात्र अधिकृत संस्थान है।

3. मुद्रा का प्रकार: भारत में दो प्रकार की मुद्राएँ प्रचलित हैं:

17- केन्द्रीय बैंक से क्या तात्पर्य है? इसके मानात्मक उपकरण के नाम लिखिए |

Ans: केन्द्रीय बैंक एक ऐसा बैंक है जो किसी देश के मौद्रिक नीति को प्रबंधित करने के लिए जिम्मेदार होता है। यह देश की मुद्रा और बैंकिंग संबंधी नीतियों को संचालित करता है ताकि वित्तीय स्थिरता बनाए रखी जा सके।

  • नोटों के निर्गमन
  • वित्तीय समस्याओं का समाधान
  • मुद्रा का नियमन
  • बैंक निक्षेप का महत्व

18- वस्तु विनिमय प्रणाली के तीन दोषों का वर्णन कीजिए ।

Ans: 1. दोहरे संयोग का अभाव – वस्तु विनिमय प्रणाली की सबसे बड़ी कठिनाई दोहरे संयोग का अभाव है। इस प्रणाली के अन्तर्गत मनुष्य को अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु ऐसे व्यक्ति की खोज में भटकना पड़ता है जिसके पास उसकी आवश्यकता की वस्तु हो और वह व्यक्ति अपनी वस्तु देने के लिए तत्पर हो तथा वह बदले में स्वयं की उस मनुष्य की वस्तु लेने के लिए तत्पर हो। उदाहरण के लिए-योगेश के पास गेहूँ हैं और वह गेहूं के बदले चावल प्राप्त करना चाहता है, तो योगेश को ऐसा व्यक्ति खोजना पड़ेगा जिसके पास चावल हों और साथ-ही-साथ वह बदले में गेहूं लेने के लिए तैयार हो। इस प्रकार दो पक्षों का ऐसा पारस्परिक संयोग, जो एक-दूसरे की आवश्यकता की वस्तुएँ प्रदान कर सके, मिलना कठिन हो जाता है।

2. मूल्य के सर्वमान्य माप का अभाव – इस प्रणाली में मूल्य का कोई ऐसा सर्वमान्य माप नहीं होता जिसके द्वारा प्रत्येक वस्तु के मूल्य को विभिन्न वस्तुओं के सापेक्ष निश्चित किया जा सके। इस स्थिति में दो वस्तुओं के बीच विनिमय दर निर्धारित करना कठिन होता है। दोनों पक्ष अपनी-अपनी वस्तु को अधिक मूल्य ऑकते हैं तथा वस्तु विनिमय कार्य में कठिनाई होती है।

3. वस्तु के विभाजन की कठिनाई – कुछ वस्तुएँ ऐसी होती हैं जिनका विभाजन नहीं किया जा सकता; जैसे – गाय, बैल, भेड़, बकरी, कुर्सी, मेज आदि। वस्तु विनिमय प्रणाली में वस्तुओं की अविभाज्यता भी बहुधा कठिनाई का कारण बन जाती है। उदाहरण के लिए-यदि योगेश के पास एक गाय है और वह इसके बदले में खाद्यान्न, कपड़े तथा रेडियो चाहता है, तो इस स्थिति में योगेश को अपनी आवश्यकता की वस्तुएँ प्राप्त करना कठिन हो जाएगा। वह ऐसे व्यक्ति को शायद ही खोज पाएगा जो उससे गाय लेकर उसकी सभी आवश्यक वस्तुएँ दे सके। साथ ही योगेश के लिए गाय का विभाजन करना भी असम्भव है, क्योंकि विभाजन करने से गाय का मूल्य या तो बहुत ही कम हो जाएगा या कुछ भी नहीं रह जाएगा।

4. मूल्य संचय की असुविधा – वस्तु विनिमय प्रणाली में वस्तुओं को अधिक समय तक संचित करके नहीं रखा जा सकता, क्योंकि वस्तुएँ नाशवान् होती हैं। वस्तुओं के मूल्य भी स्थिर नहीं रहते हैं; अतः वस्तुओं को धन के रूप में संचित करना कठिन होता है।

लघु उत्तरीय प्रश्न-

19- माँग का अर्थ एवं परिभाषा लिखिए |

Ans: माँग का अर्थ एवं परिभाषा:

माँग किसी निश्चित समय अवधि में किसी वस्तु या सेवा की वह मात्रा है जिसे उपभोक्ता उस वस्तु या सेवा के विभिन्न मूल्यों पर खरीदने को तैयार और सक्षम होते हैं। दूसरे शब्दों में, यह दर्शाता है कि उपभोक्ता किसी वस्तु या सेवा को कितनी मात्रा में खरीदना चाहते हैं और कितना भुगतान करने को तैयार हैं।

माँग की परिभाषा: मांग किसी वस्तु या सेवा की वह मात्रा है जिसे उपभोक्ता एक निश्चित समय अवधि में विभिन्न मूल्यों पर खरीदने के लिए तैयार होते हैं। यह आमतौर पर एक वक्र के रूप में दर्शाया जाता है, जिसे मांग वक्र कहा जाता है।

20- कुल आय को उदाहरण द्वारा समझाइए।

Ans: कुल आय का उदाहरण:

व्यक्ति: रवि

 

कर निर्धारण वर्ष: 2024-25

विभिन्न आय स्रोतों से रवि की आय:

  • वेतन: ₹ 10 लाख
  • मकान किराया: ₹ 2 लाख
  • ब्याज आय: ₹ 50,000
  • पूंजीगत लाभ: ₹ 1 लाख

कुल आय की गणना:

1. सकल कुल आय:

वेतन + मकान किराया + ब्याज आय + पूंजीगत लाभ = ₹ 10 लाख + ₹ 2 लाख + ₹ 50,000 + ₹ 1 लाख = ₹ 13.5 लाख

2. कटौती:

  • धारा 80C के तहत निवेश: ₹ 1.5 लाख
  • अन्य कटौतियां (जैसे, चिकित्सा बीमा): ₹ 50,000
  • कुल कटौती = ₹ 1.5 लाख + ₹ 50,000 = ₹ 2 लाख

3. कुल आय:

  • सकल कुल आय - कटौती = ₹ 13.5 लाख - ₹ 2 लाख = ₹ 11.5 लाख

इस उदाहरण में, रवि की कुल आय ₹ 11.5 लाख है।

21- पूर्ण प्रतियोगिता एवं एकाधिकार के मध्य अन्तर स्पष्ट कीजिए।

Ans: पूर्ण प्रतियोगिता और एकाधिकार में अंतर स्पष्ट करते हैं:

1. पूर्ण प्रतियोगिता:

  • इसमें अनेक विक्रेता होते हैं, जिसके कारण पूर्ति पर उनका नियंत्रण नहीं होता है।
  • नई फर्मों को उद्योग में प्रवेश करने या उद्योग को छोड़कर जाने की पूर्ण स्वतंत्रता होती है।
  • अनेक फर्में होती हैं, जो उद्योग से क़ीमतें स्वीकार करती हैं।

2. एकाधिकार:

  • इसमें केवल एक विक्रेता होता है, जिसके पास वस्तु का पूरा नियंत्रण होता है।
  • नई फर्मों के प्रवेश पर पूर्ण प्रतिबंध होता है।
  • एकाधिकारी, वस्तुओं की मूल्य निर्धारक होता है।
विशेषता पूर्ण प्रतियोगिता एकाधिकार
विक्रेताओं की संख्या बड़ी संख्या केवल एक
प्रतियोगिता बहुत अधिक कोई नहीं
कीमत निर्धारण बाजार मूल्य स्वीकार करते हैं बाजार मूल्य निर्धारित करते हैं
प्रवेश और बहिर्गमन आसान बहुत कठिन
उदाहरण कृषि उत्पादों का बाजार बिजली, पानी, रेलवे सेवाएं

22- सरकारी बजट के कोई तीन उद्देश्य बताइए ।

Ans: सरकारी बजट सरकार के वार्षिक व्यय एवं आय का ब्यौरा तो प्रस्तुत करता ही है, साथ ही बजट सरकार की विकास की नीतियों एवं उद्देश्यों को भी इंगित करता है। सरकारी बजट के निम्नलिखित उद्देश्य हैं -

(i)आर्थिक विकास को प्रोत्साहन-बजट का मुख्य उद्देश्य अर्थव्यवस्था में आर्थिक विकास की गति को प्रोत्साहन देना होता है।

(ii)संतुलित क्षेत्रीय विकास-सरकार बजट के माध्यम से संतुलित क्षेत्रीय विकास को बढ़ावा देने हेतु पिछड़े हुए क्षेत्रों के विकास को प्रोत्साहित कर सकती है।

(iii)आर्थिक स्थिरता-अर्थव्यवस्था में तेजी और मंदी के चक्र चलते रहते हैं जिसे नियंत्रित करके अर्थव्यवस्था में स्थिरता प्राप्त करना भी बजट का उद्देश्य होता है।

(iv)रोजगार का सृजन-रोजगार का सृजन करना भी सरकार के बजट का एक महत्त्वपूर्ण उद्देश्य होता है।

(v) सार्वजनिक उपक्रमों का प्रबन्ध-सरकार सार्वजनिक उपक्रमों की स्थापना करती है क्योंकि इन उपक्रमों का उद्देश्य लाभ अर्जन न होकर सामाजिक कल्याण पर आधारित होता है।

(vi) आय एवं संपत्ति का पुनर्वितरण-अर्थव्यवस्था में आर्थिक विषमता में कमी करने में बजट एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

23- स्फीतिक अन्तराल और अवस्फीतिक अन्तराल के किन्हीं चार अन्तर को बताइए ।

Ans: स्फीतिक अन्तराल और अवस्फीतिक अन्तराल के चार अंतर:

1. मांग और आपूर्ति:

  • स्फीतिक अंतराल: मांग आपूर्ति से अधिक होती है, जिसके परिणामस्वरूप कीमतें बढ़ती हैं।
  • अवस्फीतिक अंतराल: आपूर्ति मांग से अधिक होती है, जिसके परिणामस्वरूप कीमतें घटती हैं।

2. रोजगार:

  • स्फीतिक अंतराल: पूर्ण रोजगार से अधिक रोजगार होता है, जिसके परिणामस्वरूप मुद्रास्फीति बढ़ सकती है।
  • अवस्फीतिक अंतराल: पूर्ण रोजगार से कम रोजगार होता है, जिसके परिणामस्वरूप मुद्रास्फीति कम हो सकती है।

3. आर्थिक विकास:

  • स्फीतिक अंतराल: अर्थव्यवस्था अपनी क्षमता से अधिक तेजी से बढ़ रही है, जिसके परिणामस्वरूप मुद्रास्फीति बढ़ सकती है।
  • अवस्फीतिक अंतराल: अर्थव्यवस्था अपनी क्षमता से कम तेजी से बढ़ रही है, जिसके परिणामस्वरूप मुद्रास्फीति कम हो सकती है।

4. सरकारी नीति:

  • स्फीतिक अंतराल: सरकार मुद्रास्फीति को कम करने के लिए नीतियां लागू करती है, जैसे कि ब्याज दरों में वृद्धि करना।
  • अवस्फीतिक अंतराल: सरकार मुद्रास्फीति को बढ़ाने के लिए नीतियां लागू करती है, जैसे कि ब्याज दरों में कमी करना।

24- मुद्रा के कार्यों को समझाइए ।

Ans: मुद्रा के कार्यों को निम्न शीर्षकों में बाँटकर देखा जा सकता है –

(अ) मुद्रा के प्रमुख या प्रधान कार्य (Primary functions)

(ब) मुद्रा के सहायक या गौण कार्य (Secondary functions)

(स) मुद्रा के आकस्मिक कार्य (Contingent functions)

(द) मुद्रा के अन्य कार्य (Other functions)

(अ) मुद्रा के प्रमुख या प्रधान कार्य (Primary Functions of Money) – मुद्रा के प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं। इन कार्यों को मुद्रा प्रत्येक प्रकार की अर्थव्यवस्था में आवश्यक रूप से सम्पन्न करती है –

(i) विनिमय का माध्यम (Medium of Exchange) – मुद्रा विनिमय के माध्यम का कार्य करती है। आजकल सभी लेन-देन मुद्रा के माध्यम से किए जाते हैं। यह मुद्रा का महत्वपूर्ण कार्य है। उत्पादक, विक्रेता अपनी वस्तुओं के मूल्य स्वरूप मुद्रा प्राप्त करते हैं तथा क्रेता मुद्रा के रूप में खरीदी गई वस्तु अथवा सेवा का मूल्य चुकाते हैं।

(ii) मूल्य का मापक (Measure of Value) – मुद्रा का यह दूसरा महत्वपूर्ण कार्य हैं। मुद्रा के चलन के बाद सभी वस्तुओं एवं सेवाओं का मूल्य मुद्रा में ही निर्धारित होता है। इस कारण वस्तुओं का लेन-देन बहुत सरल हो गया है।

(ब) मुद्रा के सहायक या गौण कार्य (Secondary Functions of Money) – मुद्रा के सहायक कार्यों से आशय ऐसे कार्यों से लगाया जाता है जिन्हें मुद्रा प्राथमिक कार्यों को सम्पन्न करने में सहायता प्रदान करने के लिए करती है। ये कार्य निम्नलिखित हैं –

(i) मूल्य संचय का साधन (Means of Store of Value) – वस्तु विनिमय प्रणाली में वस्तुएँ नाशवान होने के कारण मूल्य का संचय सम्भव नहीं था लेकिन मुद्रा के चलन ने इस कार्य को सरल बना दिया है। मुद्रा में टिकाऊपन होता है। अतः मुद्रा के रूप में मूल्य का संचय आसानी से किया जा सकता है।

(ii) भावी भुगतान का आधार (Basis of deferred Payment) – मुद्रा ने भुगतान भविष्य में करना सम्भव बना दिया है क्योंकि मुद्रा के मूल्य में ज्यादा उतार-चढ़ाव नहीं होते हैं। वर्तमान समय में अधिकांश व्यापारिक लेन-देन उधार पर आधारित होते हैं। मुद्रा के माध्यम से भविष्य में उधारी की रकम को आसानी से प्राप्त किया जा सकता है।

(iii) क्रय शक्ति हस्तांतरण (Transfer of purchasing Power) – मुद्रा के द्वारा क्रय शक्ति को एक स्थान से दूसरे स्थान पर तथा एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को आसानी से हस्तांतरित किया जा सकता है। ऐसा करने से कोई आर्थिक नुकसान भी नहीं होता है। उदाहरण के लिए यदि कोई व्यक्ति भरतपुर से जयपुर जाकर बसना चाहता है तो वह आसानी से अपनी भरतपुर की सम्पत्तियों को बेचकर मुद्रा प्राप्त कर सकता है तथा उस मुद्रा से जयपुर में सम्पत्ति खरीद सकता है। मुद्रा एक तरल सम्पत्ति हैं। इसलिए इसे लाने ले जाने में कोई कठिनाई नहीं होती है।

(स) मुद्रा के आकस्मिक कार्य (Contingent functions of Money) – मुद्रा कुछ आकस्मिक कार्य भी सम्पादित करती है। इन कार्यों से मुद्रा और भी सुविधाजनक व उपयोगी माध्यम बन जाती है। ये कार्य निम्नलिखित हैं –

(i) सामाजिक आय का वितरण (Distribution of Social Income) – मुद्रा सामाजिक आय के न्यायपूर्ण वितरण को सरल बनाती है। आजकल उत्पादन कार्य बड़े पैमाने पर किया जाता है जिसमें उत्पत्ति के विभिन्न साधनों का महत्वपूर्ण योगदान होता है। इन सभी साधनों में उत्पादन से प्राप्त आय को न्यायपूर्ण ढंग से वितरित करने में मुद्रा हमारी सहायता करती है।

(ii) साख का आधार (Basis of Credit) – मुद्रा ही साख का आधार है। आज बैंकिंग संस्थाएँ बड़े पैमाने पर अनेक प्रकार के ऋण उपलब्ध कराती है तथा साख पत्रों के प्रयोग की सुविधा प्रदान करती है। यह कार्य भी मुद्रा के द्वारा ही सम्भव हुआ है।

(iii) सम्पत्ति की तरलता (Liquidity of Property) – मुद्रा पूँजी एवं सम्पत्ति को तरलता प्रदान करती है। तरल रूप में मुद्रा का किसी भी कार्य में आसानी से प्रयोग किया जा सकता है।

(द) मुद्रा के अन्य कार्य (Other functions of Money) – मुद्रा द्वारा उपरोक्त कार्यों के अतिरिक्त और भी कुछ कार्य किए जाते हैं। इन कार्यों को अन्य कार्यों की श्रेणी में रखा जाता है। अन्य कार्य निम्न प्रकार हैं –

(i) शोधन क्षमता का सूचक (Basis of Solvency) – किसी भी व्यक्ति के पास मुद्रा की उपलब्धता के आधार पर ही उसकी शोधन क्षमता का मूल्यांकन किया जाता है। इससे ही उस व्यक्ति की ऋण चुकाने की क्षमता का अनुमान लगाया जाता है। किसी व्यक्ति के पास मुद्रा की मात्रा जितनी ज्यादा होती है उसकी ऋण चुकाने की क्षमता अर्थात् शोधन क्षमता भी उतनी ही ज्यादा होती है।

(ii) निर्णय की वाहक (Bearer of option) – मुद्रा व्यक्ति को अपने धन को विभिन्न कार्यों में विनियोजित करने के सम्बन्ध में निर्णय लेने में सहायता करती है। यह मनुष्य द्वारा आर्थिक निर्णय लेने में सहायता प्रदान करती है।

विस्तृत उत्तरीय प्रश्न-

25- उपभोक्ता सन्तुलन से क्या आशय है? तटस्थता वक्र विश्लेषण से उपभोक्ता का सन्तुलन समझाइए ।

Ans:  एक उपभोक्ता सन्तुलन की प्राप्ति करता है, जब वह दिए गए बजट समीकरण पर सबसे ऊँचे सम्भावित तटस्थता वक्र पर पहुँच जाता है। उपभोक्ता सन्तुलन बिन्दु बजट रेखा पर होना चाहिए तथा यह वस्तुओं एवं सेवाओं का सबसे अधिक प्राथमिक संयोग प्रदान करता हो। तटस्थता वक्र अवधारणा के अनुसार एक उपभोक्ता को सन्तुलन प्राप्त करने के लिए दो शर्तों को पूरा करना आवश्यक होता है।

1. उपभोक्ता के सन्तुलन का बिन्दु वह बिन्दु होता है जहाँ पर बजट रेखा एक तटस्थता वक्र को स्पर्श करती है। यह अधिकतम सन्तुष्टि का बिन्दु है।

2. उपभोक्ता के सन्तुलन का बिन्दु वह बिन्दु है जहाँ पर प्रतिस्थापन की सीमान्त दर कीमत अनुपातों के बराबर होती है।

यह उपभोक्ता के सन्तुलन की आवश्यक शर्त है।

3. उपभोक्ता के संतुलन की तीसरी आवश्यक शर्त यह है कि सन्तुलन के बिन्दु पर प्रतिस्थापन की सीमान्त दर (MRSxy) गिरती हुई होनी चाहिए अर्थात् तटस्थता वक्र मूल बिन्दु के उन्नतोदर (convex) होना चाहिए।

उपभोक्ता के सन्तुलन का चित्र द्वारा स्पष्टीकरण

उपभोक्ता के सन्तुलन का पता लगाने के लिए तटस्थता वक्र व बजट रेखा को साथ में ग्राफ में बनाया जाता है। जो तटस्थता वक्र मूल बिन्दु के जितना समीप पाया। जाता है वह सन्तुष्टि के अधिकतम स्तर को बताता है। बजट रेखा के दिए होने पर। उपभोक्ता सन्तुलन उपभोक्ता उच्चतम तटस्थता वक्र को प्राप्त करने का प्रयास करता है।

 

उपरोक्त चित्र में Ic1, Ic2, Ic3 अलग-अलग तटस्थता वक्र हैं तथा AB के बजट रेखा है। बजट रेखा के दिए हुए होने पर उपभोक्ता अधिकतम Ic2 वक्र को प्राप्त कर सकता है। P बिन्दु पर बजट रेखा तटस्थता वक्र Ic2 को स्पर्श करती है। अत: यह उपभोग के सन्तुलन को बताता है। इस बिन्दु पर उपभोक्ता X की OL मात्र व Y की OM मात्रा खरीदता है। बजट रेखा का कोई अन्य बिन्दु नीचे तटस्थता वक्र पर होगा और बिन्दु P (स्पर्श रेखा का बिन्दु) से कम संतुष्टि को बताएगा।

अथवा

प्रतियोगिता के आधार पर बाजार के वर्गीकरण की विवेचना कीजिए ।

Ans: प्रतियोगिता की दृष्टि से बाजार तीन प्रकार का होता है –

(i) पूर्ण बाज़ार (Perfect Market) – पूर्ण बाजार ऐसे बाजार को कहते हैं जिसमें क्रेताओं एवं विक्रेताओं में पूर्ण प्रतियोगिता होती है जिसके कारण बाजार में वस्तु विशेष का एक ही मूल्य प्रचलित होता है।

इस बाजार की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –

(a) इस बाजार में वस्तु के क्रेताओं एवं विक्रेताओं की संख्या बहुत ज्यादा होती है।

(b) वस्तु रंग, रूप, गुण, आकार में एक समान होती है।

(c) सम्पूर्ण बाजार में प्रतिस्पर्धा के कारण वस्तु का एक ही मूल्य प्रचलित होता है।

(d) व्यक्तिगत क्रेता एवं विक्रेता वस्तु की कीमत को प्रभावित करने में समर्थ नहीं होते क्योंकि उनका कुल माँग एवं पूर्ति में हिस्सा नगण्य होता है।

(e) यातायात लागते शून्य होती है क्योंकि क्रेताओं व विक्रेताओं के बीच दूरी नहीं होती है।

(f) क्रेताओं एवं विक्रेताओं को बाजार का पूर्ण ज्ञान होता है।

(g) पूर्ण बाजार वास्तविक स्थिति न होकर कोरी कल्पना मात्र है।

(ii) अपूर्ण बाजार (Imperfect Market) – अपूर्ण बाजार एक वास्तविकता है जो कि वास्तविक जीवन में देखने को मिलता है। इस बाजार में कुछ कारणों से क्रेताओं तथा विक्रेताओं के मध्य स्वतन्त्र प्रतियोगिता नहीं हो पाती है जिसके कारण एक ही वस्तु के विभिन्न स्थानों पर अलग-अलग मूल्य देखने को मिलते हैं।

अपूर्ण बाजार की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –

(a) क्रेताओं एवं विक्रेताओं की संख्या सीमित होती है।

(b) क्रेताओं एवं विक्रेताओं में पूर्ण स्पर्धा नहीं होती है

(c) क्रेताओं एवं विक्रेताओं को बाजार का पूर्ण ज्ञान नहीं होता है।

(d) बाजार में अलग-अलग विक्रेताओं द्वारा अलग-अलग स्थानों पर भिन्न मूल्य वसूल किया जाता है।

(e) वस्तुओं में उत्पादकों द्वारा रंग, रूप, आकार, पैकिंग आदि में अन्तर कर दिया जाता है और वह उनके लिए अलग-अलग कीमत वसूलने में सफल हो जाते हैं।

(iii) एकाधिकार (Monopoly) – एकाधिकार बाजार की वह अवस्था है जिसमें वस्तु का केवल एक ही उत्पादक होता है। उसका कोई प्रतिस्पर्धी नहीं होता। यह पूर्ण बाजार का बिल्कुल उल्टा है। बाजार में प्रतिस्पर्धा न होने के कारण एकाधिकारी अपनी वस्तु का अलग-अलग स्थानों पर अलग-अलग मूल्य लेने में समर्थ हो जाता है। इस बाजार में एकाधिकारी का अपनी वस्तु की पूर्ति एवं कीमत पर पूर्ण नियन्त्रण रहता है। एकाधिकारी की वस्तु की बाजार में कोई निकट स्थानापन्न वस्तु भी नहीं होती है।

26- फ्लक्स की प्रतिशत अथवा आनुपातिक विधि को समझाइए |

Ans: ---------------

अथवा

उच्चतम कीमत सीमा और न्यूनतम कीमत सीमा के अर्थ और निहितार्थ समझाइए ।

Ans: उच्चतम कीमत सीमा और न्यूनतम कीमत सीमा: अर्थ और निहितार्थ

उच्चतम कीमत सीमा (Price Ceiling):

यह एक प्रकार का मूल्य नियंत्रण है जो किसी वस्तु या सेवा के लिए अधिकतम कीमत निर्धारित करता है। यह आमतौर पर सरकार द्वारा लगाया जाता है ताकि उपभोक्ताओं को अत्यधिक मूल्य निर्धारण से बचाया जा सके।

उदाहरण:

  • किराए की नियंत्रण
  • दवाओं की कीमतों पर नियंत्रण
  • कृषि उत्पादों की न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP)

निहितार्थ:

  • उच्चतम कीमत सीमा उपभोक्ताओं को कम मूल्य पर वस्तुएं और सेवाएं प्राप्त करने में मदद कर सकती है।
  • यह उत्पादकों को अत्यधिक मुनाफाखोरी से रोकता है।
  • यह कम आय वाले लोगों के लिए आवश्यक वस्तुओं को अधिक किफायती बनाता है।

नकारात्मक प्रभाव:

  • उच्चतम कीमत सीमा उत्पादकों को कम उत्पादन करने के लिए प्रोत्साहित कर सकती है।
  • यह कृत्रिम कमी पैदा कर सकती है, जिससे कालाबाजारी पनप सकती है।
  • यह गुणवत्ता में गिरावट का कारण बन सकती है, क्योंकि उत्पादक लागत कम करने के लिए मजबूर होते हैं।

न्यूनतम कीमत सीमा (Price Floor):

यह एक प्रकार का मूल्य नियंत्रण है जो किसी वस्तु या सेवा के लिए न्यूनतम कीमत निर्धारित करता है। यह आमतौर पर सरकार द्वारा लगाया जाता है ताकि उत्पादकों को कम कीमतों से बचाया जा सके और उन्हें अपनी लागत वसूलने में मदद मिल सके।

उदाहरण:

  • कृषि उत्पादों की न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP)
  • श्रमिकों के लिए न्यूनतम वेतन

निहितार्थ:

  • न्यूनतम कीमत सीमा उत्पादकों को उचित मूल्य प्राप्त करने में मदद करती है।
  • यह उन्हें अपनी लागत वसूलने और मुनाफा कमाने में मदद करता है।
  • यह कम आय वाले उत्पादकों को बाजार में बने रहने में मदद करता है।

27- औसत और सीमान्त लागत में सम्बन्ध रेखाचित्र के माध्यम से स्पष्ट कीजिए ।

Ans: 

 

अथवा

आय में परिवर्तन के कारण एक वस्तु की माँग पर पड़ने वाले प्रभाव समझाइए ।

 Ans: आय में परिवर्तन के कारण एक वस्तु की माँग पर पड़ने वाले प्रभाव
आय में परिवर्तन का एक वस्तु की माँग पर सीधा प्रभाव पड़ता है। यह प्रभाव वस्तु के प्रकार और उपभोक्ता की आय स्तर पर निर्भर करता है।

आमतौर पर, आय में वृद्धि से वस्तुओं की माँग में वृद्धि होती है, और आय में कमी से वस्तुओं की माँग में कमी होती है।

यह प्रभाव निम्नलिखित कारकों के कारण होता है:

1. क्रय शक्ति में परिवर्तन: जब आय बढ़ती है, तो उपभोक्ताओं के पास अधिक पैसा होता है, जिससे वे अधिक वस्तुएं खरीद सकते हैं। इसके विपरीत, जब आय कम होती है, तो उपभोक्ताओं के पास कम पैसा होता है, जिससे वे कम वस्तुएं खरीद सकते हैं।

2. जीवनशैली में परिवर्तन: आय बढ़ने के साथ, उपभोक्ता अपनी जीवनशैली में सुधार करना चाहते हैं। वे बेहतर गुणवत्ता वाले सामान और अधिक विलासिता वस्तुओं का खर्च उठा सकते हैं। इसके विपरीत, जब आय कम होती है, तो उपभोक्ताओं को अपनी जीवनशैली को सरल बनाना पड़ता है और वे कम खर्च करते हैं।

3. बचत और निवेश में परिवर्तन: जब आय बढ़ती है, तो उपभोक्ता अधिक बचत और निवेश करते हैं। वे भविष्य के लिए अधिक पैसा बचा सकते हैं और अधिक संपत्ति खरीद सकते हैं। इसके विपरीत, जब आय कम होती है, तो उपभोक्ताओं को अपनी बचत और निवेश कम करना पड़ता है।

विभिन्न प्रकार की वस्तुओं पर आय के प्रभाव भिन्न होते हैं:

1. सामान्य वस्तुएं: सामान्य वस्तुओं की माँग आय में परिवर्तन के साथ सकारात्मक रूप से संबंधित होती है। जब आय बढ़ती है, तो लोग इन वस्तुओं की अधिक मांग करते हैं, और जब आय कम होती है, तो लोग इन वस्तुओं की कम मांग करते हैं।

2. अवर वस्तुएं: अवर वस्तुओं की माँग आय में परिवर्तन के साथ नकारात्मक रूप से संबंधित होती है। जब आय बढ़ती है, तो लोग इन वस्तुओं की कम मांग करते हैं, और जब आय कम होती है, तो लोग इन वस्तुओं की अधिक मांग करते हैं।

3. गिफेन वस्तुएं: गिफेन वस्तुएं एक विशेष प्रकार की अवर वस्तु हैं। इन वस्तुओं की माँग आय में परिवर्तन के साथ सकारात्मक रूप से संबंधित होती है, भले ही वे अवर वस्तुएं हों। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि गिफेन वस्तुएं सस्ती होती हैं और जब आय कम होती है, तो लोग इन वस्तुओं को अधिक खरीदना पसंद करते हैं।

उदाहरण:

  • सामान्य वस्तु: भोजन, कपड़े, आवास
  • अवर वस्तु: सार्वजनिक परिवहन, सस्ते कपड़े
  • गिफेन वस्तु: सस्ता भोजन, सस्ते कपड़े

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