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UP Board 12th Business Studies Exam 2025 : VVI महत्वपूर्ण ऑब्जेक्टिव और सब्जेक्टिव प्रश्‍न उत्तर के साथ

UP Board 12th Business Studies Exam 2025 : VVI महत्वपूर्ण ऑब्जेक्टिव और सब्जेक्टिव प्रश्‍न उत्तर के साथ

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UP बोर्ड 12वीं बिजनेस स्टडीज परीक्षा 2025, 28 फरवरी को आयोजित होने वाली है। परीक्षा से पहले सही रणनीति के साथ रिवीजन करना बेहद जरूरी है। अंतिम समय में सही प्रश्नों का अभ्यास करके अच्छे अंक प्राप्त किए जा सकते हैं। यहां हम UP Board 12th Business Studies के सबसे महत्वपूर्ण ऑब्जेक्टिव और सब्जेक्टिव प्रश्नों की सूची दे रहे हैं, जो परीक्षा में पूछे जाने की संभावना है।

अगर आप UP Board 12th Business Studies 2025 के लिए VVI प्रश्न नीचे दिए गए है। इस गेस पेपर में सबसे संभावित ऑब्जेक्टिव और सब्जेक्टिव प्रश्नों का संग्रह है, जिससे आपको परीक्षा में उच्च अंक प्राप्त करने में मदद मिलेगी।

UP Board 12th Business Studies Exam 2025 : VVI Most Important Question

(बहुविकल्पीय प्रश्न)

1- एक बड़े संगठन में नियुक्तिकरण उत्तरदायी है-
अ- उच्च प्रबन्ध
ब- मध्यम प्रबन्ध
स- निम्न प्रबन्ध
द- इनमें से कोई नही

Ans:

2- निर्देशन के तत्व हैं-
अ- पर्यवेक्षण
ब- नेतृत्व
स- अभिप्रेरण
द- इनमें से सभी

Ans: द- इनमें से सभी

3- नियोजन आवश्यक हैं-
अ- लघु उपक्रम के लिए
ब- मध्यम श्रेणी के उपक्रम के लिए
स- बड़े आकार के उपक्रम के लिए
द- उपर्युक्त सभी के लिए

Ans: द- उपर्युक्त सभी के लिए

4- वित्तीय प्रबन्धन की परम्परागत विचारधारा को त्याग दिया गया था—
अ- 1910-20 में
ब- 1920-30 में
स- 1030-40 में
द- 1040-50 में

Ans: ब- 1920-30 में

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5- भारत में कुल स्टाक एक्सचेंज (शेयर बाजारों) की संख्या है—
अ- 21
ब- 22
स- 23
द- इनमें से कोई नही

Ans: स- 23

6- ए0एच0 मैस्लो निवासी थे-
अ- अमेरिका (संयुक्त राज्य अमेरिका)
ब- फ्रांस
स- जापान
द- इनमें से कोई नही

Ans: अ- अमेरिका (संयुक्त राज्य अमेरिका)

7- प्रबन्ध का सामाजिक उत्तरदायित्व है-
अ- सभी के प्रति
ब- केवल कर्मचारियों के प्रति
स- सरकार के प्रति
द- केवल उपभोक्ता के प्रति

Ans: अ- सभी के प्रति

8- वैज्ञानिक प्रबन्ध के जन्मदाता थे-
अ- एच०एस० पर्सन
ब- डाइमर
स- एफ0डब्ल्यू0 टेलर
द- इनमें से कोई नही

Ans: स- एफ0डब्ल्यू0 टेलर

9 – जार्ज आर0 टेरी के अनुसार नियोजन के प्रकार हैं-
अ- आठ
ब- छ:
स- चार
द- दो

Ans: स- चार

10- गलत संगठन संरचना व्यवसायिक निश्पादन को रोकती है तथा यहां तक कि उसे नष्ट कर देती है, यह कथन है-
अ- ड्रकर
ब- जार्ज आर0 टेरी
स- एलन
द- ब्रीच

Ans: अ- ड्रकर

(अति लघुउत्तरीय प्रश्न)

1 - नियोजन की परिभाषा दीजिए ।

Ans: प्रो० हैरिस के अनुसार, “नियोजन मुख्य रूप से उपलब्ध साधनों के संगठन और उपयोग की ऐसी पद्धति है, जिसके द्वारा पूर्व निर्धारित उद्देश्यों के आधार पर अधिकतम लाभ प्राप्त किया जा सके।”

2- प्रबन्ध के कोई दो उद्देश्य लिखिए ।

Ans: 1. आपदाओं के समय मानवी समाज में होने वाली हानि दूर करना और इन से लोगों को मुक्त करना।
2. जीवनाश्यक वस्तु आपदाग्रस्त लोगों तक उचित रुप से पहुँचाकर आपदाओं की तीव्रता और आपदा के पश्चात आनेवाले दुख को कम करना।

3 - प्रबन्ध की परिभाषा लिखिए ।

Ans: 1. एफ. डब्ल्यू. टेलर के अनुसार— "प्रबंध यह‌ ज्ञान करने की कला है कि आप क्या करना चाहते हैं तत्पश्चात यहां देखना की सर्वश्रेष्ठ एवं मितव्ययिता पूर्ण ढंग से कैसे किया जाता है।"

2. हेनरी फयोल के अनुसार— "प्रबंध का आशय पूर्व अनुमान लगाना या योजना बनाना आदेश देना समन्वय करना तथा नियंत्रण करना है।"

4 - संगठन की कोई दो विशेषताएं लिखिए ।

Ans: (i) संगठनशीलता (Organization): संगठन की पहचान इसी में है कि वह किस प्रकार से अपने उद्देश्यों तक पहुंचने के लिए अपनी संसाधनों का उपयोग करता है। एक अच्छे संगठन में संगठनशीलता की भावना होती है जिससे कर्मचारियों के काम को सुचारु रूप से व्यवस्थित किया जा सकता है।

(ii) पुनरावृत्ति (Repetition): संगठनों के लिए महत्वपूर्ण है कि वे अपनी प्रक्रियाओं और गतिविधियों को स्थिरता के साथ दोहराएं। यह मानव संसाधनों, संसाधनों के उपयोग, निर्माण की प्रक्रिया, उत्पादन और सेवा प्रदान के लिए लागू हो सकता है।

5- नियुक्तिकरण का अर्थ लिखिए ।

Ans: नियुक्तिकरण एक प्रक्रिया है जो मानवीय तत्त्वों से संबंधित है। यह कार्यबल नियोजन से प्रारंभ होता है एवं संगठन द्वारा नियुक्त किए गए प्रत्येक व्यक्ति को व्यक्तिगत रूप से मान्यता प्रदान करता है, जो कि अंततः कार्य निष्पादित करता है।

6- अभिप्रेरण की क्या अवधारणा है लिखिए ।

Ans: अभिप्रेरणा एक ऐसी शक्ति या प्रेरणा है जो हमें किसी कार्य को करने के लिए प्रेरित करती है। यह उस ऊर्जा को कहते हैं जो हमें किसी उद्देश्य की ओर आगे बढ़ने के लिए मजबूर करती है। अभिप्रेरणा हमें काम में निरंतरता और प्रेरित करने में मदद करती है। यह हमें उस सोच और कार्य की दिशा में ले जाती है जो हमें सफलता की ओर ले जाता है।

7 - वित्तीय प्रबंधन की परिभाषा लिखिए ।

Ans: वित्तीय प्रबंधन एक प्रक्रिया है जिसमें एक संगठन या व्यक्ति द्वारा वित्तीय संसाधनों का प्रबंधन किया जाता है ताकि संगठन या व्यक्ति के लक्ष्य और उद्देश्यों को पूरा करने में सहायता मिले। इसमें वित्तीय संसाधनों का निर्धारण, प्राप्ति, उपयोग, नियंत्रण और प्रबंधन शामिल होता है। वित्तीय प्रबंधन का उद्देश्य संगठन या व्यक्ति की वित्तीय स्थिति को सुधारना और सुनिश्चित करना होता है कि संगठन या व्यक्ति के वित्तीय संसाधनों का उपयोग सही और प्रभावी ढंग से किया जा रहा है।

8 - व्यावसायिक वित्त के दो महत्व लिखिए ।

Ans: (i)अच्छी मात्रा में व्यावसायिक वित्त वाली फर्म को व्यवसाय उद्यम शुरू करने के लिए कम समय और परेशानियों की आवश्यकता होगी।

(ii) व्यावसायिक वित्त हाथ में होने से, मालिक उत्पादन के लिए आवश्यकतानुसार कच्चा माल खरीद सकते हैं।

(iii) बिजनेस फाइनेंस की मदद से बिजनेस फर्म आसानी से अपना बकाया और अन्य भुगतान कर सकती है।

9- कार्यशील पूंजी का क्या अर्थ है । लिखिए ।

Ans: "कार्यशील पूंजी" एक वित्तीय मापदंड है जो किसी कंपनी या व्यावसायिक संगठन की कार्यक्षमता और व्यापारिक सफलता की मापदंडिता को दर्शाता है। इसका मुख्य उद्देश्य यह दिखाना है कि कंपनी कैसे अपने पूंजी का प्रयोग करके अच्छे प्रदर्शन कर सकती है और निवेशकों को अच्छे रिटर्न प्रदान कर सकती है।

10- मुद्रा बाजार का क्या अर्थ है । लिखिए ।

Ans: (i) मुद्रा बाज़ार का तात्पर्य अल्पकालिक उधार लेने और धन उधार देने के मंच से है, आमतौर पर एक वर्ष तक की अवधि के लिए।

(ii) मुद्रा बाजार वित्तीय बाजार का एक हिस्सा है जहां ट्रेजरी बिल, वाणिज्यिक पत्र, जमा प्रमाणपत्र और पुनर्खरीद समझौते जैसे वित्तीय उपकरणों का कारोबार किया जाता है। मुद्रा बाजार निवेशकों को तरलता प्रदान करता है और अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों के बीच धन के कुशल आवंटन में मदद करता है।

(iii) यह वित्तीय प्रणाली का एक महत्वपूर्ण खंड है क्योंकि यह बैंकों, निगमों और सरकारों को अल्पकालिक वित्तपोषण प्रदान करता है।

(लघुउत्तरीय प्रश्न)

1- प्रबन्ध विज्ञान एवं कला दोनो है। व्याख्या कीजिए ।

Ans: कला वांछित लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए मौजूदा ज्ञान का कुशल और व्यक्तिगत अनुप्रयोग है। प्रबंधन को एक कला कहा जाता है क्योंकि, यह एक कला की निम्नलिखित विशेषताओं को संतुष्ट करता है:

(i) प्रबंधक अध्ययन, अवलोकन और अनुभव के आधार पर प्रबंधन और उद्यम के दैनिक कार्य में प्रबंधन की कला का अभ्यास करता है।
(ii) प्रबंधन के सैद्धांतिक ज्ञान की उपलब्धता के कारण, एक प्रबंधक इसे व्यक्तिगत तरीके से लागू करने में सक्षम है।
(iii) कला के लिए रचनात्मकता की आवश्यकता होती है, उसी प्रकार प्रबंधक को भी अर्जित ज्ञान को वास्तविक परिस्थितियों में व्यक्तिगत और कुशल तरीके से लागू करने के लिए रचनात्मकता की आवश्यकता होती है।

एक विज्ञान के रूप में प्रबंधन: ज्ञान का व्यवस्थित निकाय है जो कारणों और उनके प्रभावों के बीच संबंध स्थापित करता है।

प्रबंधन की निम्नलिखित विशेषताओं के कारण प्रबंधन को एक विज्ञान माना जाता है:
(i) ज्ञान के व्यवस्थित निकाय का अस्तित्व: विज्ञान की तरह, प्रबंधन के अपने सिद्धांत और सिद्धांत हैं जो समय के साथ विकसित हुए हैं। इस प्रकार, हम कह सकते हैं, प्रबंधन में ज्ञान का एक व्यवस्थित निकाय है।
(ii) अवलोकन के वैज्ञानिक तरीके: कुछ प्रबंधन सिद्धांत अवलोकन के वैज्ञानिक तरीकों से विकसित हुए हैं। कारण और प्रभाव संबंध विज्ञान की कला है लेकिन यह प्रबंधन में भी लागू होता है। इसलिए, प्रबंधन सिद्धांत सटीक और विश्वसनीय हैं।
(iii) सार्वभौमिक रूप से स्वीकृत सिद्धांत: कुछ प्रबंधन सिद्धांत सार्वभौमिक रूप से मान्य हैं। आधुनिक प्रबंधन के स्थापित सिद्धांत सार्वभौमिक प्रयोज्य हैं। श्रम विभाजन और विशेषज्ञता, आदेश की एकता आदि का सिद्धांत हर जगह स्वीकार किया जाता है।

2- नियोजन की सीमाएं लिखिए ।

Ans: (i) सामर्थ्य सीमा: यह नियोजन की सीमा है जिसमें किसी परियोजना या कार्य की क्षमता या सीमितता का निर्धारण किया जाता है।
(ii) समय सीमा: यह नियोजन की सीमा है जिसमें किसी कार्य को पूरा करने के लिए निर्धारित समय की अवधि का निर्धारण किया जाता है।
(iii) वित्तीय सीमा: यह नियोजन की सीमा है जिसमें किसी परियोजना या कार्य के लिए निर्धारित वित्तीय संसाधनों की सीमा का निर्धारण किया जाता है।
(iv) तकनीकी सीमा: यह नियोजन की सीमा है जिसमें किसी कार्य के लिए उपयोग की जा सकने वाली तकनीकों या साधनों की सीमा का निर्धारण किया जाता है।
(v) संगठनात्मक सीमा: यह नियोजन की सीमा है जिसमें किसी कार्य को प्राप्त करने या पूरा करने के लिए संगठनात्मक प्रणाली की सीमा का निर्धारण किया जाता है।

3- पूँजी एवं पूँजी संरचना में अन्तर लिखिए ।

Ans: पूँजी और पूँजी संरचना में अंतर:

पूँजी:

  • यह एक व्यापक शब्द है जो किसी व्यवसाय, परियोजना या व्यक्ति के स्वामित्व में मौजूद धन या संपत्ति को दर्शाता है।
  • यह व्यवसाय को चलाने, विकास करने और विस्तार करने के लिए आवश्यक वित्तीय संसाधनों को प्रदान करता है।
  • पूँजी विभिन्न रूपों में हो सकती है, जैसे कि नकदी, मशीनरी, उपकरण, भवन, आदि।
  •  

पूँजी संरचना:

  • यह ऋण और इक्विटी के विभिन्न स्रोतों के अनुपात को दर्शाता है जो किसी व्यवसाय द्वारा अपनी पूँजी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए उपयोग किए जाते हैं।
  • यह व्यवसाय के वित्तीय जोखिम और लाभप्रदता को प्रभावित करता है।
  • पूँजी संरचना में ऋण, इक्विटी, डिबेंचर, आदि जैसे स्रोत शामिल होते हैं।

अंतर:

विशेषता पूँजी पूँजी संरचना
परिभाषा धन या संपत्ति ऋण और इक्विटी का अनुपात
उद्देश्य व्यवसाय को चलाने और विकास करने के लिए वित्तीय जोखिम और लाभप्रदता को प्रबंधित करने के लिए
प्रभाव व्यवसाय के आकार और गतिविधियों पर प्रभाव डालता है व्यवसाय के मूल्य और शेयर की कीमत पर प्रभाव डालता है
प्रकार नकदी, मशीनरी, उपकरण, भवन ऋण, इक्विटी, डिबेंचर, आदि
उदाहरण ₹10 लाख की पूँजी 50% ऋण और 50% इक्विटी

4- चयन प्रक्रिया में साक्षात्कार के महत्व की व्याख्या कीजिए ।

Ans: चयन प्रक्रिया में साक्षात्कार एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह एक ऐसा औपचारिक तरीका है जिसके माध्यम से नियोक्ता किसी उम्मीदवार की योग्यता, अनुभव, और व्यक्तित्व का मूल्यांकन करते हैं।

साक्षात्कार के कुछ महत्वपूर्ण पहलू:

(i) योग्यता का मूल्यांकन: साक्षात्कार के माध्यम से नियोक्ता यह जान सकते हैं कि उम्मीदवार के पास आवश्यक ज्ञान, कौशल और अनुभव है या नहीं।
(ii) व्यक्तित्व का मूल्यांकन: साक्षात्कार नियोक्ता को उम्मीदवार के व्यक्तित्व, आत्मविश्वास, और संवाद कौशल को समझने में मदद करता है।
(iii) संगठनात्मक संस्कृति: साक्षात्कार उम्मीदवार को यह समझने का मौका देता है कि क्या संगठनात्मक संस्कृति उनके लिए उपयुक्त है या नहीं।
(iv) अंतिम निर्णय: साक्षात्कार नियोक्ता को यह निर्णय लेने में मदद करता है कि क्या उम्मीदवार को नौकरी के लिए चुना जाना चाहिए या नहीं।

5- प्रबन्ध के सिद्धान्तों की आवश्यकता किन कारणों से है व्याख्या कीजिए ।

Ans: प्रबन्ध के सिद्धांतों की आवश्यकता कई कारणों से होती है। ये कारण निम्नलिखित हो सकते हैं:

(i) संगठन की सुविधा: प्रबन्ध सिद्धांतों की मदद से लोगों को एक संरचित तरीके से काम करने में मदद मिलती है। ये सिद्धांत संगठन को अधिक अनुकूलता और उत्पादकता की दिशा में ले जाते हैं।

(ii) समय और उत्पादकता की बढ़ोतरी: सिद्धांतों के अनुसार काम करने से समय की बचत होती है और उत्पादकता में वृद्धि होती है। ये सिद्धांत असंगठितता और अनियमितता को कम करने में मदद करते हैं।

(iii) कार्य की योजना: प्रबन्ध सिद्धांतों के बिना कोई भी कार्य विफल हो सकता है। ये सिद्धांत कार्य की योजना बनाने में मदद करते हैं जिससे कि समस्याओं का समाधान सरल हो जाता है।

(iv) उचित संगठन: सिद्धांतों की मदद से किसी भी संगठन को उचित संगठन बनाए रखना संभव होता है। ये सिद्धांत संगठन के कार्यों को निरंतरता से चलाने में मदद करते हैं।

(v) समस्याओं का समाधान: प्रबन्ध सिद्धांतों की मदद से संगठन में आने वाली समस्याओं का समाधान आसान हो जाता है। ये सिद्धांत समस्याओं को पहचानने और समाधान करने में मदद करते हैं।

 

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