Self Studies

Hindi Test - 22

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Hindi Test - 22
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Self Studies Self Studies
Weekly Quiz Competition
  • Question 1
    5 / -1

    Directions For Questions

    निर्देश: 'असाध्य वीणा' कविता में अज्ञेंय ने दो पक्षों को सामने रखा है। एक पक्ष जो दरबार और दरबारी संस्कृति का है और दूसरा जो अकेला प्रियंवद है। यह एक तरह से हमारे समय और समाज का ही चित्रण है। सत्ता जहाँ विरोधी को अकेला करने की साजिश दिन-रात करती है। यह समय जो कि अकृत ताकत और हिंसा से भरा है। ये राजसी वैभव जहाँ की संस्कृति भी दूषित है। यहाँ सब कुछ पहुँच और चाटुकारिता पर निर्भर है। सत्य और निष्ठा पर विश्वास करने वालों के लिए उस दरबार में कोई जगह नहीं है। वहाँ वही भरे हैं जो ज्ञानी और गुणी हैं। एकदम कलावंत। उनकी भाषा में शासन की भाषा बोलती है। जबकि कला के लिए यह एकदम विरोधी स्थिति है। जहाँ ताकत होगी वहाँ कला नहीं होगी। कल्ना और ताकत एक-दूसरे के दुश्मन हैं। यही कारण है कि वीणा को बजाने की सब कोशिश करते हैं पर वह बजती किसी से नहीं। राजा भी इस सच को देख रहा है, 'मेरे हार गए जाने माने सब कलावन्त / सबकी विद्या हो गई अकारथ, दर्प चूर / कोई ज्ञानी गुणी आज तक इसे न साध सका।' पर वह कुछ नहीं कर सकता। उसे भी ऐसे दरबारियों की आदत सी हो गई है। उसे वैसी ही भीड़ चाहिए जो उसका गुण गाए। उसकी तारीफ में कसीदे गढ़े। इस राजा में इतनी चेतना बची है कि वह वीणा के संगीत को सुनने की इच्छा भी रखता है। यह इच्छा संगीत के प्रति राजसी इच्छा प्रकृति से कुछ भिन्‍न है। प्रियंदद केशकंवली का आना ही इसी इच्छा को फलीभूत होते देखना है। उसे पता है कि “वीणा बोलेगी आवश्य, पर तभी/जब इसे सच्चा-स्वरसिद्ध गोद लेगा।' उसके भीतर भी ईर्ष्या, महत्वाकांक्षा, द्वेष, चाटुता भरा हुआ है जो शासन का अनिवार्य अंग बन गया है। पर उसमें मनुष्यता और करुणा का स्रोत अभी सूखा नहीं है। यही कारण है कि संगीत को सुनने के बाद ये सभी “पुराने लुगड़े से झर गए" और वह वैसे ही निखर गया जैसे तपने के बाद सोना निखर जाता है।

    उपर्युक्त गद्यांश को पढ़कर नीचे पूछे गए प्रश्न का उत्तर बताइये: 

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    वीणा अवश्य कब बोलेगी?
    Solution

    स्पष्टीकरण:

    प्रस्तुत सुसंगठित, सारगर्भित, सुललित पंक्तियों में श्री कवि शिरोमणि अज्ञेय ने यहाँ राजा का संकेत जीवन सार्थकता की ओर है।

    वीणा सृजन का प्रतीक बन कर आती है। ‘वीणा बोलेगी अवश्य ‘- मनुष्य की सृजन शक्ति में आस्था को अभिव्यक्ति मिलती है और इसमें राजा की आस्था वास्तव में अज्ञेय की आस्था है।

    यहाँ जो आस्था और विश्वास है , राम की शक्ति पूजा में यही विश्वास जामवंत को भी है।

    जापानी लोककथा के भारतीय संस्करण की पृष्ठभूमि में सर्जनात्मक रहस्यवाद की अभिव्यक्ति और इस क्रम में यहाँ पर सर्जना की अर्हता का संकेत।

    विजय देव नारायण साही और रमेश चंद्र साह ने अज्ञेय को प्रसाद के सांस्कृतिक भाव बोध के करीब माना है और यहाँ पर अज्ञेय अस्तित्ववादी अनास्था को भारतीय जीवन परक आस्था के जरिये प्रतिस्थापित करते हुए उनकी इस मान्यता की पूर्ति करते हैं। अतः स्पष्ट है कि विकल्प जब उसे सच्चा-स्वरसिद्ध गोद लेगा I सटीक है अन्य विकल्प असंगत हैं।

    विशेष :

    भाषायी अभिजत्यापन , परन्तु तदभव शब्दों के जरिये जीवन्तता प्रदान की है।
  • Question 2
    5 / -1

    Directions For Questions

    निर्देश: 'असाध्य वीणा' कविता में अज्ञेंय ने दो पक्षों को सामने रखा है। एक पक्ष जो दरबार और दरबारी संस्कृति का है और दूसरा जो अकेला प्रियंवद है। यह एक तरह से हमारे समय और समाज का ही चित्रण है। सत्ता जहाँ विरोधी को अकेला करने की साजिश दिन-रात करती है। यह समय जो कि अकृत ताकत और हिंसा से भरा है। ये राजसी वैभव जहाँ की संस्कृति भी दूषित है। यहाँ सब कुछ पहुँच और चाटुकारिता पर निर्भर है। सत्य और निष्ठा पर विश्वास करने वालों के लिए उस दरबार में कोई जगह नहीं है। वहाँ वही भरे हैं जो ज्ञानी और गुणी हैं। एकदम कलावंत। उनकी भाषा में शासन की भाषा बोलती है। जबकि कला के लिए यह एकदम विरोधी स्थिति है। जहाँ ताकत होगी वहाँ कला नहीं होगी। कल्ना और ताकत एक-दूसरे के दुश्मन हैं। यही कारण है कि वीणा को बजाने की सब कोशिश करते हैं पर वह बजती किसी से नहीं। राजा भी इस सच को देख रहा है, 'मेरे हार गए जाने माने सब कलावन्त / सबकी विद्या हो गई अकारथ, दर्प चूर / कोई ज्ञानी गुणी आज तक इसे न साध सका।' पर वह कुछ नहीं कर सकता। उसे भी ऐसे दरबारियों की आदत सी हो गई है। उसे वैसी ही भीड़ चाहिए जो उसका गुण गाए। उसकी तारीफ में कसीदे गढ़े। इस राजा में इतनी चेतना बची है कि वह वीणा के संगीत को सुनने की इच्छा भी रखता है। यह इच्छा संगीत के प्रति राजसी इच्छा प्रकृति से कुछ भिन्‍न है। प्रियंदद केशकंवली का आना ही इसी इच्छा को फलीभूत होते देखना है। उसे पता है कि “वीणा बोलेगी आवश्य, पर तभी/जब इसे सच्चा-स्वरसिद्ध गोद लेगा।' उसके भीतर भी ईर्ष्या, महत्वाकांक्षा, द्वेष, चाटुता भरा हुआ है जो शासन का अनिवार्य अंग बन गया है। पर उसमें मनुष्यता और करुणा का स्रोत अभी सूखा नहीं है। यही कारण है कि संगीत को सुनने के बाद ये सभी “पुराने लुगड़े से झर गए" और वह वैसे ही निखर गया जैसे तपने के बाद सोना निखर जाता है।

    उपर्युक्त गद्यांश को पढ़कर नीचे पूछे गए प्रश्न का उत्तर बताइये: 

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    कला के लिए एकदम विरोधी स्थिति कौन-सी है ? 
    Solution

    स्पष्टीकरण:

    प्रस्तुत सुसंगठित, सारगर्भित, सुललित पंक्तियों में श्री कवि शिरोमणि अज्ञेय ने यहाँ राजा का संकेत जीवन सार्थकता की ओर है।जहाँ ताकत होगी वहाँ कला नहीं होगी। कला और ताकत एक-दूसरे के दुश्मन हैं। यही कारण है कि वीणा को बजाने की सब कोशिश करते हैं पर वह बजती किसी से नहीं। राजा भी इस सच को देख रहा है, 'मेरे हार गए जाने माने सब कलावन्त सबकी विद्या हो गई अकारथ, दर्प चूर / कोई ज्ञानी गुणी आज तक इसे न साध सका।' पर वह कुछ नहीं कर सकता। उसे भी ऐसे दरबारियों की आदत सी हो गई है। उसे वैसी ही भीड़ चाहिए जो उसका गुण गाए। उसकी तारीफ में कसीदे गढ़े। अतः स्पष्ट है कि विकल्प कलाकार का शासन की भाषा बोलना सटीक है । अन्य विकल्प असंगत हैं।

    विशेष :

    भाषायी अभिजत्यापन , परन्तु तदभव शब्दों के जरिये जीवन्तता प्रदान की है।
  • Question 3
    5 / -1

    Directions For Questions

    निर्देश: 'असाध्य वीणा' कविता में अज्ञेंय ने दो पक्षों को सामने रखा है। एक पक्ष जो दरबार और दरबारी संस्कृति का है और दूसरा जो अकेला प्रियंवद है। यह एक तरह से हमारे समय और समाज का ही चित्रण है। सत्ता जहाँ विरोधी को अकेला करने की साजिश दिन-रात करती है। यह समय जो कि अकृत ताकत और हिंसा से भरा है। ये राजसी वैभव जहाँ की संस्कृति भी दूषित है। यहाँ सब कुछ पहुँच और चाटुकारिता पर निर्भर है। सत्य और निष्ठा पर विश्वास करने वालों के लिए उस दरबार में कोई जगह नहीं है। वहाँ वही भरे हैं जो ज्ञानी और गुणी हैं। एकदम कलावंत। उनकी भाषा में शासन की भाषा बोलती है। जबकि कला के लिए यह एकदम विरोधी स्थिति है। जहाँ ताकत होगी वहाँ कला नहीं होगी। कल्ना और ताकत एक-दूसरे के दुश्मन हैं। यही कारण है कि वीणा को बजाने की सब कोशिश करते हैं पर वह बजती किसी से नहीं। राजा भी इस सच को देख रहा है, 'मेरे हार गए जाने माने सब कलावन्त / सबकी विद्या हो गई अकारथ, दर्प चूर / कोई ज्ञानी गुणी आज तक इसे न साध सका।' पर वह कुछ नहीं कर सकता। उसे भी ऐसे दरबारियों की आदत सी हो गई है। उसे वैसी ही भीड़ चाहिए जो उसका गुण गाए। उसकी तारीफ में कसीदे गढ़े। इस राजा में इतनी चेतना बची है कि वह वीणा के संगीत को सुनने की इच्छा भी रखता है। यह इच्छा संगीत के प्रति राजसी इच्छा प्रकृति से कुछ भिन्‍न है। प्रियंदद केशकंवली का आना ही इसी इच्छा को फलीभूत होते देखना है। उसे पता है कि “वीणा बोलेगी आवश्य, पर तभी/जब इसे सच्चा-स्वरसिद्ध गोद लेगा।' उसके भीतर भी ईर्ष्या, महत्वाकांक्षा, द्वेष, चाटुता भरा हुआ है जो शासन का अनिवार्य अंग बन गया है। पर उसमें मनुष्यता और करुणा का स्रोत अभी सूखा नहीं है। यही कारण है कि संगीत को सुनने के बाद ये सभी “पुराने लुगड़े से झर गए" और वह वैसे ही निखर गया जैसे तपने के बाद सोना निखर जाता है।

    उपर्युक्त गद्यांश को पढ़कर नीचे पूछे गए प्रश्न का उत्तर बताइये: 

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    'असाध्य वीणा' कविता के दुसरे पक्ष में कौन अकेला है ? 
    Solution

    स्पष्टीकरण:

    प्रस्तुत सुसंगठित, सारगर्भित, सुललित पंक्तियों में श्री कवि शिरोमणि अज्ञेय ने 'असाध्य वीणा' कविता में अज्ञेय ने दो पक्षों को सामने रखा है। एक पक्ष जो दरबार और दरबारी संस्कृति का है और दूसरा जो अकेला प्रियंवद है। यह एक तरह से हमारे समय और समाज का ही चित्रण है। सत्ता जहाँ विरोधी को अकेला करने की साजिश दिन-रात करती है। यह समय जो कि अकृत ताकत और हिंसा से भरा है। ये राजसी वैभव जहाँ की संस्कृति भी दूषित है। यहाँ सब कुछ पहुँच और चाटुकारिता पर निर्भर है। सत्य और निष्ठा पर विश्वास करने वालों के लिए उस दरबार में कोई जगह नहीं है। अतः स्पष्ट है कि विकल्प प्रियंवद सटीक है । अन्य विकल्प असंगत हैं।

    विशेष :

    भाषायी अभिजत्यापन , परन्तु तदभव शब्दों के जरिये जीवन्तता प्रदान की है।
  • Question 4
    5 / -1

    Directions For Questions

    निर्देश: 'असाध्य वीणा' कविता में अज्ञेंय ने दो पक्षों को सामने रखा है। एक पक्ष जो दरबार और दरबारी संस्कृति का है और दूसरा जो अकेला प्रियंवद है। यह एक तरह से हमारे समय और समाज का ही चित्रण है। सत्ता जहाँ विरोधी को अकेला करने की साजिश दिन-रात करती है। यह समय जो कि अकृत ताकत और हिंसा से भरा है। ये राजसी वैभव जहाँ की संस्कृति भी दूषित है। यहाँ सब कुछ पहुँच और चाटुकारिता पर निर्भर है। सत्य और निष्ठा पर विश्वास करने वालों के लिए उस दरबार में कोई जगह नहीं है। वहाँ वही भरे हैं जो ज्ञानी और गुणी हैं। एकदम कलावंत। उनकी भाषा में शासन की भाषा बोलती है। जबकि कला के लिए यह एकदम विरोधी स्थिति है। जहाँ ताकत होगी वहाँ कला नहीं होगी। कल्ना और ताकत एक-दूसरे के दुश्मन हैं। यही कारण है कि वीणा को बजाने की सब कोशिश करते हैं पर वह बजती किसी से नहीं। राजा भी इस सच को देख रहा है, 'मेरे हार गए जाने माने सब कलावन्त / सबकी विद्या हो गई अकारथ, दर्प चूर / कोई ज्ञानी गुणी आज तक इसे न साध सका।' पर वह कुछ नहीं कर सकता। उसे भी ऐसे दरबारियों की आदत सी हो गई है। उसे वैसी ही भीड़ चाहिए जो उसका गुण गाए। उसकी तारीफ में कसीदे गढ़े। इस राजा में इतनी चेतना बची है कि वह वीणा के संगीत को सुनने की इच्छा भी रखता है। यह इच्छा संगीत के प्रति राजसी इच्छा प्रकृति से कुछ भिन्‍न है। प्रियंदद केशकंवली का आना ही इसी इच्छा को फलीभूत होते देखना है। उसे पता है कि “वीणा बोलेगी आवश्य, पर तभी/जब इसे सच्चा-स्वरसिद्ध गोद लेगा।' उसके भीतर भी ईर्ष्या, महत्वाकांक्षा, द्वेष, चाटुता भरा हुआ है जो शासन का अनिवार्य अंग बन गया है। पर उसमें मनुष्यता और करुणा का स्रोत अभी सूखा नहीं है। यही कारण है कि संगीत को सुनने के बाद ये सभी “पुराने लुगड़े से झर गए" और वह वैसे ही निखर गया जैसे तपने के बाद सोना निखर जाता है।

    उपर्युक्त गद्यांश को पढ़कर नीचे पूछे गए प्रश्न का उत्तर बताइये: 

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    'उसमें मनुष्यता और करुणा स्त्रोत अभी सुखा नहीं है I' यह वाक्य किसके लिए लिखा गया है ? 
    Solution

    स्पष्टीकरण:

    प्रस्तुत सुसंगठित, सारगर्भित, सुललित पंक्तियों में श्री कवि शिरोमणि अज्ञेय ने यहाँ राजा का संकेत जीवन सार्थकता की ओर है। 'उसमें मनुष्यता और करुणा स्त्रोत अभी सुखा नहीं है I' यह वाक्य राजा के लिए लिखा गया है। यह इच्छा संगीत के प्रति राजसी इच्छा प्रकृति से कुछ भिन्‍न है। प्रियंदद केशकंवली का आना ही इसी इच्छा को फलीभूत होते देखना है। उसे पता है कि “वीणा बोलेगी आवश्य, पर तभी/जब इसे सच्चा-स्वरसिद्ध गोद लेगा।' उसके भीतर भी ईर्ष्या, महत्वाकांक्षा, दवेष, चाटुता भरा हुआ है जो शासन का अनिवार्य अंग बन गया है। पर उसमें मनुष्यता और करुणा का स्रोत अभी सूखा नहीं है। यही कारण है कि संगीत को सुनने के बाद ये सभी “पुराने लुगड़े से झर गए" और वह वैसे ही निखर गया जैसे तपने के बाद सोना निखर जाता है। अतः स्पष्ट है कि विकल्प राजा सटीक है । अन्य विकल्प असंगत हैं।

    विशेष :

    भाषायी अभिजत्यापन , परन्तु तदभव शब्दों के जरिये जीवन्तता प्रदान की है।
  • Question 5
    5 / -1

    Directions For Questions

    निर्देश: 'असाध्य वीणा' कविता में अज्ञेंय ने दो पक्षों को सामने रखा है। एक पक्ष जो दरबार और दरबारी संस्कृति का है और दूसरा जो अकेला प्रियंवद है। यह एक तरह से हमारे समय और समाज का ही चित्रण है। सत्ता जहाँ विरोधी को अकेला करने की साजिश दिन-रात करती है। यह समय जो कि अकृत ताकत और हिंसा से भरा है। ये राजसी वैभव जहाँ की संस्कृति भी दूषित है। यहाँ सब कुछ पहुँच और चाटुकारिता पर निर्भर है। सत्य और निष्ठा पर विश्वास करने वालों के लिए उस दरबार में कोई जगह नहीं है। वहाँ वही भरे हैं जो ज्ञानी और गुणी हैं। एकदम कलावंत। उनकी भाषा में शासन की भाषा बोलती है। जबकि कला के लिए यह एकदम विरोधी स्थिति है। जहाँ ताकत होगी वहाँ कला नहीं होगी। कल्ना और ताकत एक-दूसरे के दुश्मन हैं। यही कारण है कि वीणा को बजाने की सब कोशिश करते हैं पर वह बजती किसी से नहीं। राजा भी इस सच को देख रहा है, 'मेरे हार गए जाने माने सब कलावन्त / सबकी विद्या हो गई अकारथ, दर्प चूर / कोई ज्ञानी गुणी आज तक इसे न साध सका।' पर वह कुछ नहीं कर सकता। उसे भी ऐसे दरबारियों की आदत सी हो गई है। उसे वैसी ही भीड़ चाहिए जो उसका गुण गाए। उसकी तारीफ में कसीदे गढ़े। इस राजा में इतनी चेतना बची है कि वह वीणा के संगीत को सुनने की इच्छा भी रखता है। यह इच्छा संगीत के प्रति राजसी इच्छा प्रकृति से कुछ भिन्‍न है। प्रियंदद केशकंवली का आना ही इसी इच्छा को फलीभूत होते देखना है। उसे पता है कि “वीणा बोलेगी आवश्य, पर तभी/जब इसे सच्चा-स्वरसिद्ध गोद लेगा।' उसके भीतर भी ईर्ष्या, महत्वाकांक्षा, द्वेष, चाटुता भरा हुआ है जो शासन का अनिवार्य अंग बन गया है। पर उसमें मनुष्यता और करुणा का स्रोत अभी सूखा नहीं है। यही कारण है कि संगीत को सुनने के बाद ये सभी “पुराने लुगड़े से झर गए" और वह वैसे ही निखर गया जैसे तपने के बाद सोना निखर जाता है।

    उपर्युक्त गद्यांश को पढ़कर नीचे पूछे गए प्रश्न का उत्तर बताइये: 

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    'दर्प' से तात्पर्य है ? 
    Solution

    स्पष्टीकरण:

    प्रस्तुत सुसंगठित, सारगर्भित, सुललित पंक्तियों में श्री कवि शिरोमणि अज्ञेय ने 'दर्प' से तात्पर्य यहाँ अहंकार से है। क्योंकि वीणा को बजाने की सब कोशिश करते हैं पर वह बजती किसी से नहीं। राजा भी इस सच को देख रहा है, 'मेरे हार गए जाने माने सब कलावन्त / सबकी विद्या हो गई अकारथ, दर्प चूर / कोई ज्ञानी गुणी आज तक इसे न साध सका।' पर वह कुछ नहीं कर सकता। उसे भी ऐसे दरबारियों की आदत सी हो गई है। अतः स्पष्ट है कि विकल्प अहंकार सटीक है अन्य विकल्प असंगत हैं।

    विशेष :

    यहाँ जो आस्था और विश्वास है , राम की शक्ति पूजा में यही विश्वास जामवंत को भी है।

    जापानी लोककथा के भारतीय संस्करण की पृष्ठभूमि में सर्जनात्मक रहस्यवाद की अभिव्यक्ति और इस क्रम में यहाँ पर सर्जना की अर्हता का संकेत।

    विजय देव नारायण साही और रमेश चंद्र साह ने अज्ञेय को प्रसाद के सांस्कृतिक भाव बोध के करीब माना है और यहाँ पर अज्ञेय अस्तित्ववादी अनास्था को भारतीय जीवन परक आस्था के जरिये प्रतिस्थापित करते हुए उनकी इस मान्यता की पूर्ति करते हैं।

    भाषायी अभिजत्यापन , परन्तु तदभव शब्दों के जरिये जीवन्तता प्रदान की है।
  • Question 6
    5 / -1

    Directions For Questions

    निर्देश: दिए गए गद्यांश के आधार पर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए ।

    संस्मरण का माध्यम आत्मकथा से प्रेरित होने पर भी शिल्प में उससे भिन्न है। वस्तुत: अकाल्पनिक गद्य-वृत्तों की धारणा सबसे पहले संस्मरण को ही देखकर बनती है । जीवनी और आत्मकथा के साथ इतिहास का संबंध कुछ इस तरह जुड़ा रहा कि उनका साहित्यिक रूप बहुत बाद में विकसित हो पाया, पर संस्मरण आरंभ से ही सर्जनात्मक गद्य का उपयोग करता दिखाई पड़ता है और अपनी व्यापक प्रकृति के कारण विविध गद्य रूपों के बीच केन्द्रीय स्थिति में है । तीव्र भावात्मक गठन और गहरी सर्जनात्मक भाषा के परंपरित काव्य रूप जैसे - उपन्यास, नाटक, कविता आधुनिक त्वरित संचार से उत्पन्न तनावों के युग में सब समय पाठक के लिए रुचिकर नहीं हो पाते | वैसी स्थिति में वह पत्रकारिता के विविध रूपों की ओर उन्मुख होता है जो अपनी प्रकृति से मूलतः सूचनात्मक और वस्तुपरक होते हैं । संस्मरण, रेखाचित्र, रिपोर्ताज जैसे नये गद्य रूप इन दोनों स्थितियों के बीच के अन्तराल में विकसित हुए हैं, और जैसा पहले संकेत किया गया, आधुनिक कला वृत्ति के अनुकूल स्वचेतनता और निर्वैयक्तिकता के विरोधी ध्रुवों के बीच समतुलित क्षेत्र का विस्तार करते हैं |

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    सूचनात्मक और वस्तुपरक प्रकृति किसकी होती है?
    Solution

    दिए गए विकल्पों में से सही उत्तर विकल्प 4 'पत्रकारिता के विविध रूपों की' है। अन्य विकल्प इसके अनुचित उत्तर होंगे। 

    Key Points

    • दिए गए विकल्पों में से 'पत्रकारिता के विविध रूपों की स्थिति सूचनात्मक और वस्तुपरक' होती है। 
    • तीव्र भावात्मक गठन और गहरी सर्जनात्मक भाषा के परंपरित काव्य रूप जैसे - उपन्यास, नाटक, कविता आधुनिक त्वरित संचार से उत्पन्न तनावों के युग में सब समय पाठक के लिए रुचिकर नहीं हो पाते |
    • वैसी स्थिति में वह पत्रकारिता के विविध रूपों की ओर उन्मुख होता है जो अपनी प्रकृति से मूलतः सूचनात्मक और वस्तुपरक होते हैं ।

    Additional Information 

    • पत्रकारिता आधुनिक सभ्यता का एक प्रमुख व्यवसाय है जिसमें समाचारों का एकत्रीकरण, लिखना, जानकारी एकत्रित करके पहुँचाना, सम्पादित करना और सम्यक प्रस्तुतीकरण आदि सम्मिलित हैं।
    • आज के युग में पत्रकारिता के भी अनेक माध्यम हो गये हैं, जैसे - अखबार, पत्रिकायें, रेडियो, दूरदर्शन, वेब-पत्रकारिता आदि।
  • Question 7
    5 / -1

    Directions For Questions

    निर्देश: दिए गए गद्यांश के आधार पर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए ।

    संस्मरण का माध्यम आत्मकथा से प्रेरित होने पर भी शिल्प में उससे भिन्न है। वस्तुत: अकाल्पनिक गद्य-वृत्तों की धारणा सबसे पहले संस्मरण को ही देखकर बनती है । जीवनी और आत्मकथा के साथ इतिहास का संबंध कुछ इस तरह जुड़ा रहा कि उनका साहित्यिक रूप बहुत बाद में विकसित हो पाया, पर संस्मरण आरंभ से ही सर्जनात्मक गद्य का उपयोग करता दिखाई पड़ता है और अपनी व्यापक प्रकृति के कारण विविध गद्य रूपों के बीच केन्द्रीय स्थिति में है । तीव्र भावात्मक गठन और गहरी सर्जनात्मक भाषा के परंपरित काव्य रूप जैसे - उपन्यास, नाटक, कविता आधुनिक त्वरित संचार से उत्पन्न तनावों के युग में सब समय पाठक के लिए रुचिकर नहीं हो पाते | वैसी स्थिति में वह पत्रकारिता के विविध रूपों की ओर उन्मुख होता है जो अपनी प्रकृति से मूलतः सूचनात्मक और वस्तुपरक होते हैं । संस्मरण, रेखाचित्र, रिपोर्ताज जैसे नये गद्य रूप इन दोनों स्थितियों के बीच के अन्तराल में विकसित हुए हैं, और जैसा पहले संकेत किया गया, आधुनिक कला वृत्ति के अनुकूल स्वचेतनता और निर्वैयक्तिकता के विरोधी ध्रुवों के बीच समतुलित क्षेत्र का विस्तार करते हैं |

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    आधुनिक त्वरित संचार से उत्पन्न तनावों के कारण पाठक किस ओर उन्मुख होता है?
    Solution

    दिए गए विकल्पों में से सही उत्तर विकल्प 4 'पत्रकारिता के विविध रूपों की ओर' है। अन्य विकल्प इसके अनुचित उत्तर होंगे। 

    Key Points

    • तीव्र भावात्मक गठन और गहरी सर्जनात्मक भाषा के परंपरित काव्य रूप जैसे - उपन्यास, नाटक, कविता आधुनिक त्वरित संचार से उत्पन्न तनावों के युग में सब समय पाठक के लिए रुचिकर नहीं हो पाते |
    • वैसी स्थिति में वह पत्रकारिता के विविध रूपों की ओर उन्मुख होता है  जो अपनी प्रकृति से मूलतः सूचनात्मक और वस्तुपरक होते हैं ।

    Additional Information

    • सर्जनात्मक भाषा - भाषा में होने वाला कोई भी परिवर्तन या नया प्रयोग सर्जनात्मक स्वरूप कहा जाता है।
    • सृजनात्मक भाषा एक परिनिष्ठित तथा संस्कारित भाषा होती है।
    • अत: उसका व्याकरण उच्चारण आदि सुनिश्चित होता है।
    • पर कभी-कभी- उस पर प्रादेशिक बोलियों का प्रभाव भी पड़ जाता है।
  • Question 8
    5 / -1

    Directions For Questions

    निर्देश: दिए गए गद्यांश के आधार पर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए ।

    संस्मरण का माध्यम आत्मकथा से प्रेरित होने पर भी शिल्प में उससे भिन्न है। वस्तुत: अकाल्पनिक गद्य-वृत्तों की धारणा सबसे पहले संस्मरण को ही देखकर बनती है । जीवनी और आत्मकथा के साथ इतिहास का संबंध कुछ इस तरह जुड़ा रहा कि उनका साहित्यिक रूप बहुत बाद में विकसित हो पाया, पर संस्मरण आरंभ से ही सर्जनात्मक गद्य का उपयोग करता दिखाई पड़ता है और अपनी व्यापक प्रकृति के कारण विविध गद्य रूपों के बीच केन्द्रीय स्थिति में है । तीव्र भावात्मक गठन और गहरी सर्जनात्मक भाषा के परंपरित काव्य रूप जैसे - उपन्यास, नाटक, कविता आधुनिक त्वरित संचार से उत्पन्न तनावों के युग में सब समय पाठक के लिए रुचिकर नहीं हो पाते | वैसी स्थिति में वह पत्रकारिता के विविध रूपों की ओर उन्मुख होता है जो अपनी प्रकृति से मूलतः सूचनात्मक और वस्तुपरक होते हैं । संस्मरण, रेखाचित्र, रिपोर्ताज जैसे नये गद्य रूप इन दोनों स्थितियों के बीच के अन्तराल में विकसित हुए हैं, और जैसा पहले संकेत किया गया, आधुनिक कला वृत्ति के अनुकूल स्वचेतनता और निर्वैयक्तिकता के विरोधी ध्रुवों के बीच समतुलित क्षेत्र का विस्तार करते हैं |

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    संस्मरण का माध्यम शिल्प में किससे भिन्न है?
    Solution

    दिए गए विकल्पों में से सही उत्तर विकल्प 2 'आत्मकथा' है। अन्य विकल्प इसके अनुचित उत्तर होंगे। 

    Key Points

    • संस्मरण का माध्यम आत्मकथा से प्रेरित होने पर भी शिल्प में उससे भिन्न है।
    • संस्मरण शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है, सम् + स्मरण।
    • इसका अर्थ सम्यक् स्मरण अर्थात् किसी घटना, किसी व्यक्ति अथवा वस्तु का स्मृति के आधार पर कलात्मक वर्णन करना संस्मरण कहलाता है।
    • इसमें स्वयं अपेक्षा उस वस्तु की घटना का अधिक महत्व होता है जिसके विषय मे लेखक संस्मरण लिख रहा होता हैं।
    • संस्मरण की सभी घटनाएं सत्यता पर ही आधारित होती हैं।
    • इसमें लेखक कल्पना का अधिक प्रयोग नही करता है। 

    Additional Information 

    • किसी लेखक द्वारा अपने ही जीवन का वर्णन करने वाली कथा को 'आत्मकथा' कहते हैं।
    • जहाँ 'संस्मरण' में लेखक अपने आसपास के समाज, परिस्थितियों व अन्य घटनाओं के बारे में लिखता हैं वहाँ 'आत्मकथा' में केन्द्र लेखक स्वयं होता है।
  • Question 9
    5 / -1

    Directions For Questions

    निर्देश: दिए गए गद्यांश के आधार पर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए ।

    संस्मरण का माध्यम आत्मकथा से प्रेरित होने पर भी शिल्प में उससे भिन्न है। वस्तुत: अकाल्पनिक गद्य-वृत्तों की धारणा सबसे पहले संस्मरण को ही देखकर बनती है । जीवनी और आत्मकथा के साथ इतिहास का संबंध कुछ इस तरह जुड़ा रहा कि उनका साहित्यिक रूप बहुत बाद में विकसित हो पाया, पर संस्मरण आरंभ से ही सर्जनात्मक गद्य का उपयोग करता दिखाई पड़ता है और अपनी व्यापक प्रकृति के कारण विविध गद्य रूपों के बीच केन्द्रीय स्थिति में है । तीव्र भावात्मक गठन और गहरी सर्जनात्मक भाषा के परंपरित काव्य रूप जैसे - उपन्यास, नाटक, कविता आधुनिक त्वरित संचार से उत्पन्न तनावों के युग में सब समय पाठक के लिए रुचिकर नहीं हो पाते | वैसी स्थिति में वह पत्रकारिता के विविध रूपों की ओर उन्मुख होता है जो अपनी प्रकृति से मूलतः सूचनात्मक और वस्तुपरक होते हैं । संस्मरण, रेखाचित्र, रिपोर्ताज जैसे नये गद्य रूप इन दोनों स्थितियों के बीच के अन्तराल में विकसित हुए हैं, और जैसा पहले संकेत किया गया, आधुनिक कला वृत्ति के अनुकूल स्वचेतनता और निर्वैयक्तिकता के विरोधी ध्रुवों के बीच समतुलित क्षेत्र का विस्तार करते हैं |

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    अकाल्पनिक गद्य-वृत्तों की धारणा सबसे पहले किसे देखकर बनती है?
    Solution

    दिए गए विकल्पों में से सही उत्तर विकल्प 1 'संस्मरण' है। अन्य विकल्प इसके अनुचित उत्तर होंगे। 

    Key Points

    • अकाल्पनिक गद्य-वृत्तों की धारणा सबसे पहले संस्मरण को ही देखकर बनती है ।
    • जीवनी और आत्मकथा के साथ इतिहास का संबंध कुछ इस तरह जुड़ा रहा कि उनका साहित्यिक रूप बहुत बाद में विकसित हो पाया, पर संस्मरण आरंभ से ही सर्जनात्मक गद्य का उपयोग करता दिखाई पड़ता है और अपनी व्यापक प्रकृति के कारण विविध गद्य रूपों के बीच केन्द्रीय स्थिति में है ।

    Additional Information

    • संस्मरण शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है, सम् + स्मरण।
    • इसका अर्थ सम्यक् स्मरण अर्थात् किसी घटना, किसी व्यक्ति अथवा वस्तु का स्मृति के आधार पर कलात्मक वर्णन करना संस्मरण कहलाता है।
    • इसमें स्वयं अपेक्षा उस वस्तु की घटना का अधिक महत्व होता है जिसके विषय मे लेखक संस्मरण लिख रहा होता हैं।
    • संस्मरण की सभी घटनाएं सत्यता पर ही आधारित होती हैं।
    • इसमें लेखक कल्पना का अधिक प्रयोग नही करता है। 
  • Question 10
    5 / -1

    Directions For Questions

    निर्देश: दिए गए गद्यांश के आधार पर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए ।

    संस्मरण का माध्यम आत्मकथा से प्रेरित होने पर भी शिल्प में उससे भिन्न है। वस्तुत: अकाल्पनिक गद्य-वृत्तों की धारणा सबसे पहले संस्मरण को ही देखकर बनती है । जीवनी और आत्मकथा के साथ इतिहास का संबंध कुछ इस तरह जुड़ा रहा कि उनका साहित्यिक रूप बहुत बाद में विकसित हो पाया, पर संस्मरण आरंभ से ही सर्जनात्मक गद्य का उपयोग करता दिखाई पड़ता है और अपनी व्यापक प्रकृति के कारण विविध गद्य रूपों के बीच केन्द्रीय स्थिति में है । तीव्र भावात्मक गठन और गहरी सर्जनात्मक भाषा के परंपरित काव्य रूप जैसे - उपन्यास, नाटक, कविता आधुनिक त्वरित संचार से उत्पन्न तनावों के युग में सब समय पाठक के लिए रुचिकर नहीं हो पाते | वैसी स्थिति में वह पत्रकारिता के विविध रूपों की ओर उन्मुख होता है जो अपनी प्रकृति से मूलतः सूचनात्मक और वस्तुपरक होते हैं । संस्मरण, रेखाचित्र, रिपोर्ताज जैसे नये गद्य रूप इन दोनों स्थितियों के बीच के अन्तराल में विकसित हुए हैं, और जैसा पहले संकेत किया गया, आधुनिक कला वृत्ति के अनुकूल स्वचेतनता और निर्वैयक्तिकता के विरोधी ध्रुवों के बीच समतुलित क्षेत्र का विस्तार करते हैं |

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    गहरी सर्जनात्मक भाषा के परंपरित काव्य रूप में क्या सम्मिलित नहीं है?
    Solution

    दिए गए विकल्पों में से सही उत्तर विकल्प 3 'फीचर' है। अन्य विकल्प इसके अनुचित उत्तर होंगे। 

    Key Points

    • गहरी सर्जनात्मक भाषा के परंपरित काव्य रूप में फीचर' सम्मिलित नहीं हैं। 
    • तीव्र भावात्मक गठन और गहरी सर्जनात्मक भाषा के परंपरित काव्य रूप जैसे - उपन्यास, नाटक, कविता आधुनिक त्वरित संचार से उत्पन्न तनावों के युग में सब समय पाठक के लिए रुचिकर नहीं हो पाते |
    • फीचर - रोचक विषय का मनोरम और विशद प्रस्तुतिकरण ही फीचर है। इसमें दैनिक समाचार, सामयिक विषय और बहुसंख्यक पाठकों की रूचि वाले विषय की चर्चा होती है। इसका लक्ष्य मनोरंजन करना, सूचना देना और जानकारी को जन उपयोगी ढंग से प्रस्तुत करना है।

    Additional Information 

    • उपन्यास - उपन्यास शब्द 'उप' उपसर्ग और 'न्यास' पद के योग से बना है। जिसका अर्थ है उप = समीप, न्याय रखना स्थापित रखना (निकट रखी हुई वस्तु)। अर्थात् वह वस्तु या कृति जिसको पढ़कर पाठक को ऐसा लगे कि यह उसी की है, उसी के जीवन की कथा, उसी की भाषा मे कही गई हैं। उपन्यास मानव जीवन की काल्पनिक कथा है।
    • नाटक - नाटक "नट" शब्द से निर्मित है जिसका आशय हैं --- सात्त्विक भावों का अभिनय। नाटक दृश्य काव्य के अंतर्गत आता है। इसका प्रदर्शन रंगमंच पर होता हैं।
    • कविता - कविता का शाब्दिक अर्थ है काव्यात्मक रचना या कवि की कृति, जो छन्दों की शृंखलाओं में विधिवत बांधी जाती है। काव्य वह वाक्य रचना है जिससे चित्त किसी रस या मनोवेग से पूर्ण हो अर्थात् वहजिसमें चुने हुए शब्दों के द्वारा कल्पना और मनोवेगों का प्रभाव डाला जाता है।
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