Self Studies

Hindi Test - 23

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Hindi Test - 23
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Self Studies

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Self Studies Self Studies
Weekly Quiz Competition
  • Question 1
    5 / -1

    Directions For Questions

    निर्देश: नीचे लिखे गद्यांश को पढिये और पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये।

    मनोहर देवी के कंठ से तुलसीदास का छंद 'कंदर्प' अगणित अमित छवि नवनीलनीरज 'सुन्दरम' सुनकर सुर्जकुमार के न जाने कौन से सोते संस्कार जाग उठे। साहित्य इतना सुन्दर है, संगीत इतना आकर्षक है, उनकी आँखों ने जैसे नया संसार देखा, कानों ने ऐसा संगीत सुना जो मानो इस पृथ्वी पर दूर किसी लोक से आता है। अपनी इस विलक्षण अनुभूति पर वह स्वयं चकित रह गए। अपने सौंदर्य पर जो अभिमान था। वह चूर चूर हो गया।

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    सुर्जकुमार ने छंद किसके कंठ से सुना?
    Solution
    मनोहरा देवी के कंठ से सुर्जकुमार ने छंद सुना
    छन्द की परिभाषा वर्णो या मात्राओं के नियमित संख्या के विन्यास से यदि आहाद पैदा हो, तो उसे छंद कहा जाता है।
    दूसरे शब्दो में-अक्षरों की संख्या एवं क्रम, मात्रागणना तथा यति-गति से सम्बद्ध विशिष्ट नियमों से नियोजित पद्यरचना 'छन्द' कहलाती है 

    Key Points
    • गद्यांश में उल्लेख : मनोहर देवी के कंठ से तुलसीदास का छंद 'कंदर्प' अगणित अमित छवि नवनीलनीरज 'सुन्दरम' सुनकर सुर्जकुमार के न जाने कौन से सोते संस्कार जाग उठे।
    • सूरदास - वे अपनी कृति “सूरसागर” के लिये प्रसिद्ध है। ... सूरदास कृष्ण भक्ति के साथ ही अपनी प्रसिद्ध कृति सूरसागर के लिये भी जाने जाते है। इतना ही नहीं सूरसागर के साथ उन्होंने सुर-सारावली और सहित्य-लहरी की भी रचना की है। सूरदास की मधुर कविताये और भक्तिमय गीत लोगो को भगवान् की तरफ आकर्षित करते थे।
    • तुलसीदास - गोस्वामी तुलसीदास एक महान हिन्दू संत, समाजसुधारक के साथ ही दर्शनशास्त्र और                                     कई प्रसिद्ध किताबों के भी रचयिता थे। राम के प्रति अथाह प्रेम की वजह से ही वे महान महाकाव्य  रामचरित मानस के लेखक बने। तुलसीदास को हमेशा वाल्मिकी (संस्कृत में रामायण और हनुमान चालीसा के वास्वतिक रचयिता) के अवतरण के रुप में प्रशंसा मिली।
    • सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' का जन्म बंगाल की महिषादल रियासत (जिला मेदिनीपुर) में 21 फ़रवरी, सन् 1896 में हुआ था। वसंत पंचमी पर उनका जन्मदिन मनाने की परंपरा 1930 में प्रारंभ हुई। उनका जन्म मंगलवार को हुआ था। जन्म-कुण्डली बनाने वाले पंडित के कहने से उनका नाम सुर्जकुमार रखा गया। 
  • Question 2
    5 / -1

    Directions For Questions

    निर्देश: नीचे लिखे गद्यांश को पढिये और पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये।

    मनोहर देवी के कंठ से तुलसीदास का छंद 'कंदर्प' अगणित अमित छवि नवनीलनीरज 'सुन्दरम' सुनकर सुर्जकुमार के न जाने कौन से सोते संस्कार जाग उठे। साहित्य इतना सुन्दर है, संगीत इतना आकर्षक है, उनकी आँखों ने जैसे नया संसार देखा, कानों ने ऐसा संगीत सुना जो मानो इस पृथ्वी पर दूर किसी लोक से आता है। अपनी इस विलक्षण अनुभूति पर वह स्वयं चकित रह गए। अपने सौंदर्य पर जो अभिमान था। वह चूर चूर हो गया।

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    सूर्जकुमार की आँखों ने देखा क्या?
    Solution
    सूर्जकुमार की आँखों ने नया संसार देखा। 
    गद्यांश में आया हुआ उल्लेख : साहित्य इतना सुन्दर है, संगीत इतना आकर्षक है, उनकी आँखों ने जैसे नया संसार देखा, कानों ने ऐसा संगीत सुना जो मानो इस पृथ्वी पर दूर किसी लोक से आता है। 
    Key Points
    अन्य विकल्पों का विश्लेषण :
    • पुराण संसार - पौराणिक कथाएँ 
    • आकर्षक संगीत - धुन 
    • साहित्य - पढने जैसा वांग्मय 
  • Question 3
    5 / -1

    Directions For Questions

    निर्देश: नीचे लिखे गद्यांश को पढिये और पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये।

    मनोहर देवी के कंठ से तुलसीदास का छंद 'कंदर्प' अगणित अमित छवि नवनीलनीरज 'सुन्दरम' सुनकर सुर्जकुमार के न जाने कौन से सोते संस्कार जाग उठे। साहित्य इतना सुन्दर है, संगीत इतना आकर्षक है, उनकी आँखों ने जैसे नया संसार देखा, कानों ने ऐसा संगीत सुना जो मानो इस पृथ्वी पर दूर किसी लोक से आता है। अपनी इस विलक्षण अनुभूति पर वह स्वयं चकित रह गए। अपने सौंदर्य पर जो अभिमान था। वह चूर चूर हो गया।

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    सूर्जकुमार का संस्कार जाग उठने का कारण है:
    Solution
    सूर्जकुमार का संस्कार जाग उठने का कारण है: तुलसीदास का छंद।
    गद्यांश में उल्लेख : मनोहर देवी के कंठ से तुलसीदास का छंद 'कंदर्प' अगणित अमित छवि नवनीलनीरज 'सुन्दरम' सुनकर सुर्जकुमार के न जाने कौन से सोते संस्कार जाग उठे। 
    Key Points
    तुलसीदास की प्रसिद्ध कृति रामचरितमानस है।
  • Question 4
    5 / -1

    Directions For Questions

    निर्देश: नीचे लिखे गद्यांश को पढिये और पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये।

    मनोहर देवी के कंठ से तुलसीदास का छंद 'कंदर्प' अगणित अमित छवि नवनीलनीरज 'सुन्दरम' सुनकर सुर्जकुमार के न जाने कौन से सोते संस्कार जाग उठे। साहित्य इतना सुन्दर है, संगीत इतना आकर्षक है, उनकी आँखों ने जैसे नया संसार देखा, कानों ने ऐसा संगीत सुना जो मानो इस पृथ्वी पर दूर किसी लोक से आता है। अपनी इस विलक्षण अनुभूति पर वह स्वयं चकित रह गए। अपने सौंदर्य पर जो अभिमान था। वह चूर चूर हो गया।

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    सूर्जकुमार को किस पर अभिमान था?
    Solution
    सूर्जकुमार को अपने सौंदर्य पर अभिमान था। 
    गद्यांश में उल्लेख :  अपनी इस विलक्षण अनुभूति पर वह स्वयं चकित रह गए। अपने सौंदर्य पर जो अभिमान था। वह चूर चूर हो गया।
    Key Points
    •  सूर्जकुमार निराला जी के बचपन का नाम था।
      अन्य विकल्पों का विश्लेषण :
    • अत्युत्तम कार्य करने वाले को हम आदर्शवादी कहते है।
    • संस्कार बचपन से व्यक्ति को दिए जाते है।
    • गुण व्यक्ति की विशेषता को बतलाते है।
  • Question 5
    5 / -1

    Directions For Questions

    निर्देश: नीचे लिखे गद्यांश को पढिये और पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये।

    मनोहर देवी के कंठ से तुलसीदास का छंद 'कंदर्प' अगणित अमित छवि नवनीलनीरज 'सुन्दरम' सुनकर सुर्जकुमार के न जाने कौन से सोते संस्कार जाग उठे। साहित्य इतना सुन्दर है, संगीत इतना आकर्षक है, उनकी आँखों ने जैसे नया संसार देखा, कानों ने ऐसा संगीत सुना जो मानो इस पृथ्वी पर दूर किसी लोक से आता है। अपनी इस विलक्षण अनुभूति पर वह स्वयं चकित रह गए। अपने सौंदर्य पर जो अभिमान था। वह चूर चूर हो गया।

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    अंततोगत्वा का अर्थ है:
    Solution
    अंततोगत्वा का अर्थ है: अंततः होता है।
    अंतिम यात्रा - आखरी यात्रा 
    अंतिम अवसर - आख़री मौका 
    Key Pointsअन्ततोगत्वा का अर्थ आख़री मुकाम होता है।
  • Question 6
    5 / -1

    Directions For Questions

    भारतेंदु का बृहत् जीवन चरित लिखनेवाले बाबू शिवनंदन सहाय का 'सुदामा नाटक' भी उल्लेख योग्य है। इन मौलिक रूपकों की सूची देखने से यह लक्षित हो जाता है कि नाटक की कथावस्तु के लिए लोगों का ध्यान अधिकतर ऐतिहासिक और पौराणिक प्रसंगों की ओर ही गया है। वर्तमान सामाजिक और पारिवारिक जीवन के विविधा उलझे हुए पक्षों का सूक्ष्मता के साथ निरीक्षण करके उनके मार्मिक या अनूठे चित्र खड़ा करनेवाली उद्भावना उनमें नहीं पाई जाती। इस द्वितीय उत्थान के बीच कल्पित कथावस्तु लेकर लिखा जानेवाला बहुत बड़ा मौलिक नाटक कानपुर के प्रसिद्ध  कवि राय देवीप्रसाद 'पूर्ण' का 'चंद्रकलाभानुकुमार' है। पर वह भी इतिहास के मध्ययुग के राजकुमारों और राजकुमारियों का जीवन सामने लाता है। 
        'पूर्णजी' ब्रजभाषा के एक बड़े ही सिद्ध हस्त कवि थे, साहित्य के अच्छे ज्ञाता थे। उन्होंने इस नाटक को शुद्ध  साहित्यिक उद्देश्य से ही लिखा था, अभिनय के उद्देश्य से नहीं। वस्तुविन्यास में कुतूहल उत्पन्न करनेवाला जो वैचित्रय होता है उसके न रहने से कम ही लोगों के हाथ में यह नाटक पड़ा। ललित और अलंकृत भाषण के बीच बीच में मधुर पद्य पढ़ने की उत्कंठा रखनेवाले पाठकों ही ने अधिकतर इसे पढ़ा। 
    उपन्यास : अनूदित
    इस द्वितीय उत्थान में आलस्य का जैसा त्याग उपन्यासकारों में देखा गया वैसा और किसी वर्ग के हिन्दी लेखकों में नहीं। अनुवाद भी खूब हुए और मौलिक उपन्यास भी कुछ दिनों तक धाड़ाधाड़ निकले , किस प्रकार के, यह आगे प्रकट किया जाएगा। पहले अनुवादों की बात खत्म कर देनी चाहिए।
        अनुवाद , संवत् 1951 तक बाबू रामकृष्ण वर्मा उर्दू और अंग्रेजी के भी कुछ अनुवाद कर चुके थे, जैसे , 'ठगवृत्तांतमाला' (संवत् 1946), 'पुलिस वृत्तांतमाला' (1947), 'अकबर' (1948), 'अमलावृत्तांतमाला (1951)। 'चित्तौरचातकी' का बंगभाषा से अनुवाद उन्होंने संवत् 1952 में किया। यह पुस्तक चित्तौर के राजवंश की मर्यादा के विरुद्ध  समझी गई और इसके विरोध में यहाँ तक आंदोलन हुआ कि सब कॉपियाँ गंगा में फेंक दी गईं। फिर बाबू कार्तिक प्रसाद खत्री ने 'इला' (1952) और 'प्रमीला' (1953) का अनुवाद किया। 'जया' और 'मधुमालती' के अनुवाद दो-एक बरस पीछे निकले।

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    उक्त गद्यांश का सम्बन्ध किस विषय से है?
    Solution

    आधुनिककाल, यहाँ सही विकल्प है। अन्य विकल्प असंगत है।

    Key Points

    • उपरोक्त गद्यांश आधुनिक काल से सम्बन्ध है|  
    • इसको हिंदी साहित्य का सर्वश्रेष्ठ युग माना जा सकता है, जिसमें पद्य के साथ-साथ गद्य, समालोचना, कहानी, नाटक व पत्रकारिता का भी विकास हुआ।

    Additional Information

    आधुनिक काल के प्रमुख रचनाकार निम्नलिखित हैं :-

    समालोचक

    उपन्यासकार

    नाटककार

    निबंध लेखक

    आचार्य द्विवेदी जी

    प्रेमचंद

    प्रसाद

    आचार्य द्विवेदी

    पद्म सिंह शर्मा

    प्रतापनारायण मिश्र

    सेठ गोविंद दास,

    माधव प्रसाद शुक्ल

    विश्वनाथ प्रसाद मिश्र

    प्रसाद

    गोविंद वल्लभ पंत

    रामचंद्र शुक्ल

    आचार्य रामचंद्र शुक्ल

    उग्र

    लक्ष्मीनारायण मिश्र

    बाबू श्यामसुंदर दास

    डॉ रामकुमार वर्मा

    हृदयेश

    उदयशंकर भट्ट

    पद्म सिंह

    श्यामसुंदर दास

    जैनेंद्र

    रामकुमार वर्मा

    अध्यापक पूर्णसिंह

    डॉ रामरतन भटनागर 

    भगवतीचरण वर्मा

    वृंदावन लाल वर्मा

    गुरुदत्त

  • Question 7
    5 / -1

    Directions For Questions

    भारतेंदु का बृहत् जीवन चरित लिखनेवाले बाबू शिवनंदन सहाय का 'सुदामा नाटक' भी उल्लेख योग्य है। इन मौलिक रूपकों की सूची देखने से यह लक्षित हो जाता है कि नाटक की कथावस्तु के लिए लोगों का ध्यान अधिकतर ऐतिहासिक और पौराणिक प्रसंगों की ओर ही गया है। वर्तमान सामाजिक और पारिवारिक जीवन के विविधा उलझे हुए पक्षों का सूक्ष्मता के साथ निरीक्षण करके उनके मार्मिक या अनूठे चित्र खड़ा करनेवाली उद्भावना उनमें नहीं पाई जाती। इस द्वितीय उत्थान के बीच कल्पित कथावस्तु लेकर लिखा जानेवाला बहुत बड़ा मौलिक नाटक कानपुर के प्रसिद्ध  कवि राय देवीप्रसाद 'पूर्ण' का 'चंद्रकलाभानुकुमार' है। पर वह भी इतिहास के मध्ययुग के राजकुमारों और राजकुमारियों का जीवन सामने लाता है। 
        'पूर्णजी' ब्रजभाषा के एक बड़े ही सिद्ध हस्त कवि थे, साहित्य के अच्छे ज्ञाता थे। उन्होंने इस नाटक को शुद्ध  साहित्यिक उद्देश्य से ही लिखा था, अभिनय के उद्देश्य से नहीं। वस्तुविन्यास में कुतूहल उत्पन्न करनेवाला जो वैचित्रय होता है उसके न रहने से कम ही लोगों के हाथ में यह नाटक पड़ा। ललित और अलंकृत भाषण के बीच बीच में मधुर पद्य पढ़ने की उत्कंठा रखनेवाले पाठकों ही ने अधिकतर इसे पढ़ा। 
    उपन्यास : अनूदित
    इस द्वितीय उत्थान में आलस्य का जैसा त्याग उपन्यासकारों में देखा गया वैसा और किसी वर्ग के हिन्दी लेखकों में नहीं। अनुवाद भी खूब हुए और मौलिक उपन्यास भी कुछ दिनों तक धाड़ाधाड़ निकले , किस प्रकार के, यह आगे प्रकट किया जाएगा। पहले अनुवादों की बात खत्म कर देनी चाहिए।
        अनुवाद , संवत् 1951 तक बाबू रामकृष्ण वर्मा उर्दू और अंग्रेजी के भी कुछ अनुवाद कर चुके थे, जैसे , 'ठगवृत्तांतमाला' (संवत् 1946), 'पुलिस वृत्तांतमाला' (1947), 'अकबर' (1948), 'अमलावृत्तांतमाला (1951)। 'चित्तौरचातकी' का बंगभाषा से अनुवाद उन्होंने संवत् 1952 में किया। यह पुस्तक चित्तौर के राजवंश की मर्यादा के विरुद्ध  समझी गई और इसके विरोध में यहाँ तक आंदोलन हुआ कि सब कॉपियाँ गंगा में फेंक दी गईं। फिर बाबू कार्तिक प्रसाद खत्री ने 'इला' (1952) और 'प्रमीला' (1953) का अनुवाद किया। 'जया' और 'मधुमालती' के अनुवाद दो-एक बरस पीछे निकले।

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    उक्त गद्यांश की भाषा शैली कौनसी है? 
    Solution

    उक्त गद्यांश की शैली आलोचनात्मक है। अतः उपर्युक्त विकल्पों में से विकल्प (3) आलोचनात्मक सही है तथा अन्य विकल्प असंगत हैं।

    Key Points

    • हिंदी आलोचना की शुरुआत 19वीं सदी के उत्तरार्ध में भारतेन्दु युग से ही मानी जाती है।
    • 'समालोचना' का शाब्दिक अर्थ है - 'अच्छी तरह देखना'।

    Additional Information

    • सामान्यत: समीक्षा/आलोचना के चार प्रकारों को स्वीकार किया गया है:-
      • सैद्धान्तिक आलोचना
      • निर्णयात्मक आलोचना
      • प्रभावाभिव्यजंक आलोचना
      • व्याख्यात्मक आलोचना
  • Question 8
    5 / -1

    Directions For Questions

    भारतेंदु का बृहत् जीवन चरित लिखनेवाले बाबू शिवनंदन सहाय का 'सुदामा नाटक' भी उल्लेख योग्य है। इन मौलिक रूपकों की सूची देखने से यह लक्षित हो जाता है कि नाटक की कथावस्तु के लिए लोगों का ध्यान अधिकतर ऐतिहासिक और पौराणिक प्रसंगों की ओर ही गया है। वर्तमान सामाजिक और पारिवारिक जीवन के विविधा उलझे हुए पक्षों का सूक्ष्मता के साथ निरीक्षण करके उनके मार्मिक या अनूठे चित्र खड़ा करनेवाली उद्भावना उनमें नहीं पाई जाती। इस द्वितीय उत्थान के बीच कल्पित कथावस्तु लेकर लिखा जानेवाला बहुत बड़ा मौलिक नाटक कानपुर के प्रसिद्ध  कवि राय देवीप्रसाद 'पूर्ण' का 'चंद्रकलाभानुकुमार' है। पर वह भी इतिहास के मध्ययुग के राजकुमारों और राजकुमारियों का जीवन सामने लाता है। 
        'पूर्णजी' ब्रजभाषा के एक बड़े ही सिद्ध हस्त कवि थे, साहित्य के अच्छे ज्ञाता थे। उन्होंने इस नाटक को शुद्ध  साहित्यिक उद्देश्य से ही लिखा था, अभिनय के उद्देश्य से नहीं। वस्तुविन्यास में कुतूहल उत्पन्न करनेवाला जो वैचित्रय होता है उसके न रहने से कम ही लोगों के हाथ में यह नाटक पड़ा। ललित और अलंकृत भाषण के बीच बीच में मधुर पद्य पढ़ने की उत्कंठा रखनेवाले पाठकों ही ने अधिकतर इसे पढ़ा। 
    उपन्यास : अनूदित
    इस द्वितीय उत्थान में आलस्य का जैसा त्याग उपन्यासकारों में देखा गया वैसा और किसी वर्ग के हिन्दी लेखकों में नहीं। अनुवाद भी खूब हुए और मौलिक उपन्यास भी कुछ दिनों तक धाड़ाधाड़ निकले , किस प्रकार के, यह आगे प्रकट किया जाएगा। पहले अनुवादों की बात खत्म कर देनी चाहिए।
        अनुवाद , संवत् 1951 तक बाबू रामकृष्ण वर्मा उर्दू और अंग्रेजी के भी कुछ अनुवाद कर चुके थे, जैसे , 'ठगवृत्तांतमाला' (संवत् 1946), 'पुलिस वृत्तांतमाला' (1947), 'अकबर' (1948), 'अमलावृत्तांतमाला (1951)। 'चित्तौरचातकी' का बंगभाषा से अनुवाद उन्होंने संवत् 1952 में किया। यह पुस्तक चित्तौर के राजवंश की मर्यादा के विरुद्ध  समझी गई और इसके विरोध में यहाँ तक आंदोलन हुआ कि सब कॉपियाँ गंगा में फेंक दी गईं। फिर बाबू कार्तिक प्रसाद खत्री ने 'इला' (1952) और 'प्रमीला' (1953) का अनुवाद किया। 'जया' और 'मधुमालती' के अनुवाद दो-एक बरस पीछे निकले।

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    'चंद्रकलाभानुकुमार' नाटक के लेखक है-
    Solution

    "चंद्रकला भान कुमार", "देवी प्रसाद" का नाटक है। अतः उपर्युक्त विकल्पों में से विकल्प (2) देवी प्रसाद सही है तथा अन्य विकल्प असंगत हैं।

    Key Points

    • नाटक काव्य और गध्य का एक रूप है। जो रचना श्रवण द्वारा ही नहीं अपितु दृष्टि द्वारा भी दर्शकों के हृदय में रसानुभूति कराती है उसे नाटक या दृश्य-काव्य कहते हैं।
    • साहित्यदर्पण में नाटक के लक्षण, भेद आदि अधिक स्पष्ट रूप से दिए हैं।
    • भरतमुनि का नाट्यशास्त्र इस विषय का सबसे प्राचीन ग्रंथ मिलता है।

    Additional Information

    मोहन राकेश के नाटक:-

    नाटक

    रचना वर्ष

    आषाढ़ का 1 दिन

    1958

    लहरों के राजहंस

    1963

    भारतेंदु हरिश्चंद्र के मौलिक नाटक निम्नलिखित हैं:-

    नाटक

    रचना वर्ष

    नाटक का प्रकार

    वैदिकी हिंसा हिंसा न भवति

    1873

    प्रहसन

    सत्य हरिश्चन्द्र

    1875

    नाटक

    श्री चंद्रावली

    1876

    नाटिका

    विषस्य विषमौषधम्

    1876

    भाण

    भारत दुर्दशा

    1880

    नाट्य रासक

    नीलदेवी

    1881

    ऐतिहासिक गीति रूपक

    अंधेर नगरी

    1881

    प्रहसन

    प्रेमजोगिनी

    1875

    नाटिका

    सती प्रताप

    1883

    गीतिरूपक

  • Question 9
    5 / -1

    Directions For Questions

    भारतेंदु का बृहत् जीवन चरित लिखनेवाले बाबू शिवनंदन सहाय का 'सुदामा नाटक' भी उल्लेख योग्य है। इन मौलिक रूपकों की सूची देखने से यह लक्षित हो जाता है कि नाटक की कथावस्तु के लिए लोगों का ध्यान अधिकतर ऐतिहासिक और पौराणिक प्रसंगों की ओर ही गया है। वर्तमान सामाजिक और पारिवारिक जीवन के विविधा उलझे हुए पक्षों का सूक्ष्मता के साथ निरीक्षण करके उनके मार्मिक या अनूठे चित्र खड़ा करनेवाली उद्भावना उनमें नहीं पाई जाती। इस द्वितीय उत्थान के बीच कल्पित कथावस्तु लेकर लिखा जानेवाला बहुत बड़ा मौलिक नाटक कानपुर के प्रसिद्ध  कवि राय देवीप्रसाद 'पूर्ण' का 'चंद्रकलाभानुकुमार' है। पर वह भी इतिहास के मध्ययुग के राजकुमारों और राजकुमारियों का जीवन सामने लाता है। 
        'पूर्णजी' ब्रजभाषा के एक बड़े ही सिद्ध हस्त कवि थे, साहित्य के अच्छे ज्ञाता थे। उन्होंने इस नाटक को शुद्ध  साहित्यिक उद्देश्य से ही लिखा था, अभिनय के उद्देश्य से नहीं। वस्तुविन्यास में कुतूहल उत्पन्न करनेवाला जो वैचित्रय होता है उसके न रहने से कम ही लोगों के हाथ में यह नाटक पड़ा। ललित और अलंकृत भाषण के बीच बीच में मधुर पद्य पढ़ने की उत्कंठा रखनेवाले पाठकों ही ने अधिकतर इसे पढ़ा। 
    उपन्यास : अनूदित
    इस द्वितीय उत्थान में आलस्य का जैसा त्याग उपन्यासकारों में देखा गया वैसा और किसी वर्ग के हिन्दी लेखकों में नहीं। अनुवाद भी खूब हुए और मौलिक उपन्यास भी कुछ दिनों तक धाड़ाधाड़ निकले , किस प्रकार के, यह आगे प्रकट किया जाएगा। पहले अनुवादों की बात खत्म कर देनी चाहिए।
        अनुवाद , संवत् 1951 तक बाबू रामकृष्ण वर्मा उर्दू और अंग्रेजी के भी कुछ अनुवाद कर चुके थे, जैसे , 'ठगवृत्तांतमाला' (संवत् 1946), 'पुलिस वृत्तांतमाला' (1947), 'अकबर' (1948), 'अमलावृत्तांतमाला (1951)। 'चित्तौरचातकी' का बंगभाषा से अनुवाद उन्होंने संवत् 1952 में किया। यह पुस्तक चित्तौर के राजवंश की मर्यादा के विरुद्ध  समझी गई और इसके विरोध में यहाँ तक आंदोलन हुआ कि सब कॉपियाँ गंगा में फेंक दी गईं। फिर बाबू कार्तिक प्रसाद खत्री ने 'इला' (1952) और 'प्रमीला' (1953) का अनुवाद किया। 'जया' और 'मधुमालती' के अनुवाद दो-एक बरस पीछे निकले।

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    ‘पुलिस वृतांतमाला’ का प्रकाशन वर्ष है-
    Solution

    पुलिस वृतांत माला का प्रकाशन वर्ष 1947 ईस्वी है अतः उपर्युक्त विकल्पों में से विकल्प (1) 1947 सही है तथा अन्य विकल्प असंगत हैं।

    Key Points

    • ‘पुलिस वृतांतमाला’ का प्रकाशन वर्ष 1947 है। इस उपन्यास का हिंदी अनुवाद बाबू रामकृष्ण वर्मा ने किया है।
    • रामकृष्ण वर्मा बलवीर (1859 - 1906) हिन्दी साहित्यकार तथा भारत जीवन प्रेस के स्वामी थे। वे भारतेन्दु मण्डल के कवि थे जो पुराने ढर्रे की कविताएँ लिखा करते थे।
    • बाबू रामकृष्ण वर्मा जी ने बनारस से हिन्दी में 'भारत जीवन' नामक एक पत्रिका निकाली।

    Additional Information

    • इनकी रचनाएं निम्नलिखित हैं:-
      • गद्य : विरह, नायिका भेद
      • कविता : रुपगर्विता, प्रोषितपतिका, उत्कंठिता, रूपक
      • अनुवाद : कृष्णाकुमारी नाटक (माइकल मदुसूदन दत्त)
      • एकांकी : भारतोद्धार, पद्मावती, वीर नारी, कृष्णकुमार
  • Question 10
    5 / -1

    Directions For Questions

    भारतेंदु का बृहत् जीवन चरित लिखनेवाले बाबू शिवनंदन सहाय का 'सुदामा नाटक' भी उल्लेख योग्य है। इन मौलिक रूपकों की सूची देखने से यह लक्षित हो जाता है कि नाटक की कथावस्तु के लिए लोगों का ध्यान अधिकतर ऐतिहासिक और पौराणिक प्रसंगों की ओर ही गया है। वर्तमान सामाजिक और पारिवारिक जीवन के विविधा उलझे हुए पक्षों का सूक्ष्मता के साथ निरीक्षण करके उनके मार्मिक या अनूठे चित्र खड़ा करनेवाली उद्भावना उनमें नहीं पाई जाती। इस द्वितीय उत्थान के बीच कल्पित कथावस्तु लेकर लिखा जानेवाला बहुत बड़ा मौलिक नाटक कानपुर के प्रसिद्ध  कवि राय देवीप्रसाद 'पूर्ण' का 'चंद्रकलाभानुकुमार' है। पर वह भी इतिहास के मध्ययुग के राजकुमारों और राजकुमारियों का जीवन सामने लाता है। 
        'पूर्णजी' ब्रजभाषा के एक बड़े ही सिद्ध हस्त कवि थे, साहित्य के अच्छे ज्ञाता थे। उन्होंने इस नाटक को शुद्ध  साहित्यिक उद्देश्य से ही लिखा था, अभिनय के उद्देश्य से नहीं। वस्तुविन्यास में कुतूहल उत्पन्न करनेवाला जो वैचित्रय होता है उसके न रहने से कम ही लोगों के हाथ में यह नाटक पड़ा। ललित और अलंकृत भाषण के बीच बीच में मधुर पद्य पढ़ने की उत्कंठा रखनेवाले पाठकों ही ने अधिकतर इसे पढ़ा। 
    उपन्यास : अनूदित
    इस द्वितीय उत्थान में आलस्य का जैसा त्याग उपन्यासकारों में देखा गया वैसा और किसी वर्ग के हिन्दी लेखकों में नहीं। अनुवाद भी खूब हुए और मौलिक उपन्यास भी कुछ दिनों तक धाड़ाधाड़ निकले , किस प्रकार के, यह आगे प्रकट किया जाएगा। पहले अनुवादों की बात खत्म कर देनी चाहिए।
        अनुवाद , संवत् 1951 तक बाबू रामकृष्ण वर्मा उर्दू और अंग्रेजी के भी कुछ अनुवाद कर चुके थे, जैसे , 'ठगवृत्तांतमाला' (संवत् 1946), 'पुलिस वृत्तांतमाला' (1947), 'अकबर' (1948), 'अमलावृत्तांतमाला (1951)। 'चित्तौरचातकी' का बंगभाषा से अनुवाद उन्होंने संवत् 1952 में किया। यह पुस्तक चित्तौर के राजवंश की मर्यादा के विरुद्ध  समझी गई और इसके विरोध में यहाँ तक आंदोलन हुआ कि सब कॉपियाँ गंगा में फेंक दी गईं। फिर बाबू कार्तिक प्रसाद खत्री ने 'इला' (1952) और 'प्रमीला' (1953) का अनुवाद किया। 'जया' और 'मधुमालती' के अनुवाद दो-एक बरस पीछे निकले।

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     इनमे से किस पुस्तक की प्रतियाँ गंगा में फेक दी गई?
    Solution

    'चित्तौरचातकी' पुस्तक की प्रतियां गंगा में फेंक दी गईअतः उपर्युक्त विकल्पों में से विकल्प  (4) चित्तौरचातकी की सही है तथा अन्य विकल्प असंगत है।

    Key Points

    • चित्तौरचातकी' का बंगभाषा से अनुवाद उन्होंने संवत् 1952 में किया। यह पुस्तक चित्तौर के राजवंश की मर्यादा के विरुद्ध  समझी गई और इसके विरोध में यहाँ तक आंदोलन हुआ कि सब कॉपियाँ गंगा में फेंक दी गईं।
    • बाबू रामकृष्ण वर्मा ने ‘चित्तौरचातकी’ का बंगभाषा से अनुवाद किया।
    • रामकृष्ण वर्मा बलवीर (1859 - 1906)
    Additional Information
    • इनकी रचनाएं निम्नलिखित हैं:-
      • द्य : विरह, नायिका भेद
      • कविता : रुपगर्विता, प्रोषितपतिका, उत्कंठिता, रूपक
      • अनुवाद : कृष्णाकुमारी नाटक (माइकल मदुसूदन दत्त)
      • एकांकी : भारतोद्धार, पद्मावती, वीर नारी, कृष्णकुमार
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