JAC Board 12th Geography Exam 2024 : Top 30 (4 Marks) Questions with Answers (दीर्घ उत्तरीय प्रश्न)

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झारखंड बोर्ड 12वीं की Geography (भूगोल) परीक्षा 12 फरवरी, 2024 को निर्धारित है। तो यह आर्टिकल आपके लिए काफी ज्यादा महत्वपूर्ण साबित होने वाला है क्योंकि इस आर्टिकल में आपको बोर्ड परीक्षा के लिए वो ही प्रश्न दिए गए है जो बोर्ड पेपर में आने जा रहे है।
JAC Jharkhand Board क्लास 12th के Geography (भूगोल) (Top 50 Long Answer Questions) से संबंधित महत्वपूर्ण दीर्घ उत्तरीय प्रश्न प्रश्न दिए गए है। महत्वपूर्ण प्रश्नों का एक संग्रह है जो बहुत ही अनुभवी शिक्षकों के द्वारा तैयार किये गए है। इसमें प्रत्येक महत्वपूर्ण प्रश्नों को छांट कर एकत्रित किया गया है, जो आपके पेपर के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है, जिससे कि विद्यार्थी कम समय में अच्छे अंक प्राप्त कर सके। सभी प्रश्नों के उत्तर साथ में दिए गए हैं।
झारखंड बोर्ड के सभी विद्यार्थिय अब आपकी Geography (भूगोल) परीक्षा में कुछ ही घंटे बचे है, विद्यार्थी यहां पर से अपने बोर्ड एग्जाम की तैयारी बहुत ही आसानी से कर सकते हैं।
भाग — 'अ' मानव भूगोल के मूलभूत सिद्धांत
प्रश्न 1 मानव के प्राकृतीकरण की व्याख्या कीजिए।
उत्तर- आदिम अवस्था में, जब प्रौद्योगिकी का स्तर अत्यंत निम्न था तब मानव प्रकृति के आदेशों के अनुसार अपने-आपको ढालने के लिए बाध्यं था। उस समय मानव के सामाजिक विकास की अवस्था भी आदिम ही थी। मानव की इस प्रकार की अन्योन्यक्रिया को पर्यावरणीय निश्चयवाद कहा गया। इस अवस्था में मानव प्रकृति की सुनता था, उसकी प्रचण्डता से भयभीत होता था और उसकी पूजा करता था। विश्व में आज भी ऐसे समाज हैं जो प्राकृतिक पर्यावरण के साथ पूर्णत: सामंजस्य बनाए हुए हैं और प्रकृति एक शक्तिशाली बल एवं पूज्य सत्कार योग्य बनी हुई है। अपने सतत् पोषण हेतु मनुष्य प्राकृतिक संसाधनों पर प्रत्यक्ष रूप से निर्भर करता है। ऐसे समाजों में भौतिक पर्यावरण माता- प्रकृति का रूप धारण किए हुए है। किंतु- समय के साथ लोग अपने पर्यावरण और प्राकृतिक बलों को समझने लगते हैं। अपने अर्जित ज्ञान के बल पर तकनीकी कौशल विकसित करने में समर्थ होते जाते हैं। इस तरह सामाजिक और सांस्कृतिक विकास के साथ लोग और अधिक सक्षम प्रौद्योगिकी का विकास करते हैं। वे अभाव की अवस्था से स्वतंत्रता की ओर अग्रसर होते हैं। वास्तव में, पर्यावरण से प्राप्त संसाधन ही संभावनाओं को जन्म देते हैं। मानवीय क्रियाएँ सांस्कृतिक भू-दृश्य की रचना करती हैं, जिनकी छाप प्राकृतिक वातावरण पर सर्वत्र दिखाई पड़ती है। इस तरह प्रकृति का मानवीकरण होने लगता है।
प्रश्न 2 विश्व में जनसंख्या के वितरण और घनत्व को प्रभावित करने वाले कारकों की विवेचना कीजिए ।
उत्तर- किसी भी देश का का वास्तविक धन, जन अर्थात लोग होते है। यह देश का महत्वपूर्ण संसाधन है तथा देश के अन्य संसाधनों का विवेकपूर्ण उपयोग कर राष्ट्र की अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ करता है। 21 वीं शताब्दी में विश्व की जनसंख्या 6 अरब से अधिक दर्ज की गई। इस विशाल जनसंख्या का विश्व में असमान वितरण पाया जाता है। असमान वितरण के संदर्भ में जार्ज बी. क्रेसी की टिप्पणी है। "एशिया में बहुत अधिक स्थान पर कम लोग और कम स्थान पर बहुत अधिक लोग रहते हैं।" मोटे तौर पर विश्व की 90% जनसंख्या, केवल 10% स्थल भाग में निवास करते हैं। विश्व का लगभग 33% भाग प्राय: मानव विहीन है। लोग ऐसे स्थानों पर बसना चाहते हैं, जहां उन्हें भोजन पानी घर बनाने के लिए समतल भूमि आदि मिले अधिक गर्म और अधिक ठंडे क्षेत्रों में जनसंख्या कम पाई जाती है।
प्रश्न 3 जनसंख्या के ग्रामीण नगरीय संघटन का वर्णन कीजिए।
उत्तर- जनसंख्या का ग्रामीण एवं नगरीय विभाजन उनके निवास / आवास के आधार पर होता है। ग्रामीण और नगरीय जीवन आजीविका एवं सामाजिक दशाओं में एक दूसरे से भिन्न होते हैं। ग्रामीण और नगरीय क्षेत्रों में आयु, लिंग, संघटन, व्यावसायिक संरचना, जनसंख्या का घनत्व तथा विकास के स्तर अलग-अलग होते हैं । सामान्य रूप से ग्रामीण क्षेत्र में लोग आर्थिक प्राथमिक क्रियाओं जैसे कृषि, पशुपालन, मत्स्य पालन, आखेट, वानिकी आदि में संलग्न होते हैं। नगरीय क्षेत्र में अधिकांश कार्यशील जनसंख्या के गैर - प्राथमिक क्रियाओं जैसे उद्योग, परिवहन, व्यापार, परिवहन एवं सेवाओं में संलग्न होते हैं। विकसित देशों में ग्रामीण क्षेत्रों में स्त्रियों की अपेक्षा पुरुषों की संख्या अधिक है, जबकि नगरीय क्षेत्रों में स्त्रियों की संख्या पुरुषों की अपेक्षा अधिक है। विकासशील देशों जैसे नेपाल पाकिस्तान और भारत जैसे देशों में स्थिति इसके विपरीत है | ग्रामीण क्षेत्रों स्त्रियों की संख्या अधिक है, जबकि नगरीय क्षेत्रों में पुरुषों की संख्या अधिक है। विकसित देशों के नगरीय क्षेत्रों में रोजगार के अवसरों की अधिक संभावनाओं के कारण ग्रामीण क्षेत्रों से महिलाओं का आगमन के परिणाम स्वरूप यूरोप कनाडा और संयुक्त राज्य अमेरिका के नगरीय क्षेत्रों में महिलाओं की अधिकता है। कृषि कार्य विकसित देशों में अत्यधिक मशीनीकृत है। यह लगभग पुरुष प्रधान व्यवसाय है, क्योंकि मशीनों को चलाना पुरुषों के द्वारा होता है। फलस्वरूप यहां ग्रामीण क्षेत्रों में पुरुषों की संख्या अधिक है। एशिया के नगरीय क्षेत्रों में पुरुष प्रधान प्रवास के कारण लिंगानुपात भी पुरुषों के अनुकूल है। भारत जैसे देशों में ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि कार्यों में महिलाओं की सहभागिता काफी ऊंची है। अतः महिलाओं की संख्या ग्रामीण क्षेत्र में अधिक देखी जाती है। नगरों में आवास की कमी रहन सहन की ऊंची लागत नगरों में रोजगार के अवसर की कमी और सुरक्षा की कमी महिलाओं के गांव से नगरीय क्षेत्रों में प्रवास को रोकती है, अतः नगरों में महिलाओं की संख्या कम पाई जाती है।
प्रश्न 4 मानव विकास अवधारणा के अंतर्गत क्षमता और सतत पोषणीयता से आप क्या समझते हैं?
उत्तर- मानव विकास की अवधारणा के प्रमुख चार स्तंभ है। समता, सतत् पोषणीयता, उत्पादकता तथा सशक्तिकरण । समता का अर्थ एक ऐसे प्रदेश से है, जिसके अंतर्गत रहने वाले हर एक व्यक्ति को उपलब्ध अवसर के लिए समान पहुंच की व्यवस्था करना है जिससे समतामूलक समाज का सृजन हो सके तथा लोगों के उपलब्ध अवसर लिंग प्रजाति, आय तथा जाति के भेदभाव के विचार के बिना समान रूप से मिल सके। भारत जैसे देशों में महिलाओं तथा सामाजिक आर्थिक दृष्टि से पिछड़े हुए वर्गों तथा दूरस्थ क्षेत्रों में रहने वाले व्यक्तियों को विकास के मापन समान अवसर प्राप्त नहीं होते हैं, अतः मानव विकास में इस अभाव को दूर करने का उपाय समतामूलक विकास के माध्यम से किया जाए।
प्रश्न 5 मिश्रित कृषि की विशेषताएँ बताते हुये इसके प्रमुख क्षेत्रों के नाम लिखिए।
उत्तर- मिश्रित कृषि की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं -
(क) इस प्रकार की कृषि में फसल उत्पादन एवं पशुपालन दोनों को समान महत्व दिया जाता हैं। फसलों के साथ-साथ पशु जैसे मवेशी, भेड़, सुअर, कुक्कुट आय के प्रमुख स्रोत हैं।
(ख) चारें की फसलें मिश्रित कृषि के मुख्य घटक हैं।
(ग) इस कृषि में खेतों का आकार मध्यम होता है।
(घ) इसमें बोई जाने वाली अन्य फसलें गेहूँ, जौ, राई, जई, मक्का, कंदमूल प्रमुख है। शस्यावर्तन एवं अंतः फसली कृषि मृदा की उर्वरता को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। प्रमुख क्षेत्र : इस प्रकार की कृषि विश्व के अत्यधिक विकसित भागों में की जाती है, जैसे उत्तरी पश्चिमी यूरोप, उत्तरी अमेरिका का पूर्वी भाग, यूरेशिया के कुछ भाग एवं दक्षिणी महाद्वीपों के समशीतोष्ण अंक्षाश वाले भाग।
प्रश्न 6 गहन निर्वाह कृषि की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर- गहन निर्वाह कृषि (Intensive Subsistence Agriculture ) यह कृषि मुख्य रूप से एशिया के घनी जनसंख्या वाले देश भारत- पाकिस्तान, बांग्लादेश व जापान में की जाती है। यह कृषि मुख्यतः दो प्रकार की होती है-
(क) चावल प्रधान गहन निर्वाह कृषि - चावल सबसे महत्वपूर्ण फसल होता है। अधिक जनसंख्या घनत्व के कारण खेतों का आकार छोटा होता है एवं कृषि कार्य में कृषक का संपूर्ण परिवार लगा रहता है। भूमि का गहन उपयोग होता है। यंत्रों की अपेक्षा मानव श्रम का अधिक महत्त्व होता है। उर्वरता बनाए रखने के लिए पशुओं के गोबर की खाद एवं हरी खाद का उपयोग किया जाता है। इस कृषि में प्रति इकाई उत्पादन अधिक होता है, परंतु प्रति कृषक उत्पादन कम है।
(ख) चावल रहित गहन निर्वाह कृषि - चावल के स्थान पर गेहूं, सोयाबीन, जौ आदि फसलों का उत्पादन किया जाता है। गहन निर्वाह कृषि प्रमुख रूप से मानसूनी एशिया के उन भागों में की जाती है, जहाँ उच्चावचन, जलवायु, मिट्टी तथा अन्य भौगोलिक कारकों की भिन्नता के कारण चावल की कृषि सम्भव नहीं हो पाती।
प्रश्न 7 रोपण कृषि की मुख्य विशेषताएं बताएँ एवं विभिन्न देशों में गायी जाने वाली कुछ प्रमुख रोपण फसलों के नाम बताएँ ।
उत्तर- रोपण कृषि (Plantation Agriculture) विश्व के अनेक भागों में यूरोपियन द्वारा स्थापित किए गए उपनिवेशों में प्रारम्भ किया गया। यूरोपियन द्वारा विशेष रूप से अपने अधीन उष्णकटिबन्धीय क्षेत्रों में चाय, कॉफी, कोको, कपास, गन्ना, केला तथा अनानास के बागान लगाकर सफलतापूर्वक कृषि की गई। वर्तमान में इन बागानों से विदेशी स्वामित्व लगभग समाप्त हो चुका है तथा अधिकांश बागान स्वामित्व देशों की सरकार या वहाँ के नागरिकों के आधिपत्य में है। रोपण कृषि की विशेषताएँ-
(क) यह एक फसली व्यापारिक कृषि है जिसमें पौधे को एक बार रोपने के बाद कई वर्षों तक लगातार उत्पादन प्राप्त होता रहता है।
(ख) कृषि क्षेत्र अथवा बागानों का आकार बड़ा होता है।
(ग) इस कृषि में तकनीकी आधार, अधिक पूँजी निवेश, उच्च स्तरीय प्रबन्धन एवं वैज्ञानिक विधियों का प्रयोग किया जाता है।
(घ) बागानों को कारखानों तथा बाजार से जोड़ने के लिये सस्ते परिवहन का प्रयोग किया जाता है।
(ड.) सस्ता अकुशल श्रम स्थानीय लोगों से प्राप्त किया जाता है। इस कृषि के विकास के लिये यूरोपीय तथा अमेरिकी लोगों ने विशेष योगदान किया था।
प्रश्न 8 प्राथमिक एवं द्वितीयक गतिविधियों में क्या अंतर है?
उत्तर- प्राथमिक गतिविधियाँ- आर्थिक क्रियाओं में प्रमुख रूप से प्राकृतिक संसाधनों के उपयोग से उत्पादन किया जाता है तो उन क्रियाओं को प्राथमिक क्षेत्र के अंतर्गत रखा जाता है। मानव प्राथमिक क्रियाकलापों के द्वारा हर रूप में वस्तुएँ प्राप्त करता है। प्राथमिक गतिविधियों के उदाहरण- कृषि, संग्रहण तथा मछली पकड़ना, खनन, पशुचारण आदि। प्राथमिक गतिविधियों से उद्योगों को कच्चा माल मिलता है। ये वे क्षेत्र हैं, जहाँ अभी तक आधुनिक प्रौद्योगिकी तथा तकनीकी का विकास और हस्तक्षेप नहीं हुआ। प्राथमिक गतिविधि प्राकृतिक पर्यावरण से प्राप्त संसाधनों के विकास से संबंधित है।
द्वितीयक गतिविधियाँ- प्राकृतिक उत्पादों को विनिर्माण प्रणाली के द्वारा अन्य रूपों में परिवर्तित किया जाता है उसे द्वितीयक क्षेत्र कहते हैं। द्वितीयक क्रियाकलापों में उद्योगों को सम्मिलित किया जाता है जो विभिन्न वस्तुओं का निर्माण करते हैं। द्वितीयक गतिविधियों के उदाहरण- बीमा, बैंकिंग, विनिर्माण उद्योग, डेयरी उद्योग, कुटीर उद्योग, यातायात व्यापार आदि । द्वितीयक गतिविधियों से कच्चे माल का परिष्करण होता है तथा उसकी उपयोगिता बढ़ती है। विश्व के इन क्षेत्रों को आधुनिकी प्रौद्योगिकीकरण उच्च स्तर तक पहुँच चुका है। द्वितीयक गतिविधि मनुष्य द्वारा कच्चे माल को संशोधित करके उसे नई वस्तुओं में बदलने से है।
प्रश्न 9 अफ्रीका में अपरिमित प्राकृतिक संसाधन हैं फिर भी औद्योगिक दृष्टि से यह बहुत पिछड़ा महाद्वीप है। समीक्षा कीजिए |
उत्तर- भौगोलिक विस्तार और जनसंख्या की दृष्टि से विश्व का दूसरा सबसे बड़ा महाद्वीप अफ्रीका प्राकृतिक संसाधनों से परिपूर्ण है। परंतु संसाधनों की प्रचुरता के पश्चात भी यह महाद्वीप औद्योगिक दृष्टि अपेक्षाकृत कमज़ोर है। संसाधनों की दृष्टि से देखा जाए तो अफ्रीका में कोबाल्ट, हीरा, प्लेटिनम, क्रोमियम जैसी बहुमूल्य धातुओं का बड़ा भंडार पाया जाता है। उदाहरण- बोत्सवाना और कांगो गणराज्य हीरे के उत्पादन के लिए बहुत अहम है। इसकेअतिरिक्त दक्षिण अफ्रीका के किम्बरले ओर प्रिटोरिया विश्व के मुख्य हीरा उत्पादक क्षेत्रों में सम्मिलित हैं।आधुनिक समय में सर्वाधिक बहुमूल्य धातु में से एक माने जाने वाले सोना का सबसे अधिक उत्पादन दक्षिण अफ्रीका में होता है। यहाँ का जोहान्सबर्ग स्वर्ण खनन के लिए विश्व है। इसके अतिरिक्त ताँबा, मैंगनीज, एस्बेस्टस, यूरेनियम जैसे खनिज भी अफ्रीका में सबसे अधिक बॉक्साइट उत्खनन गिनी में, ताँबे का भंडार जायरे की कटंगा प्रदेश में और गाइट का निक्षेप मेडागास्कर देश में पाया जाता है। धातु के अतिरिक्त यहाँ जीवाश्म आधारित खनिज भी पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हैं। अफ्रीका के नाइजीरिया, अल्जीरिया, ट्यूनीशिया जैसे प्रदेश पेट्रोलियम की दृष्टि से अहम है। कृषि आधारित संसाधन भी अफ्रीका में पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है। केन्या चाय उत्पादन के लिए प्रसिद्ध है। वहीं दक्षिण अफ्रीका का डरबन रसदार फ़लों के उत्पादन हेतु प्रसिद्ध है । घाना के निकटवर्ती क्षेत्र कोको उत्पादन तथा निर्यात के लिए विश्व प्रसिद्ध है वहीं अफ्रीका के मरूस्थल पशुपालन की दृष्टि से महत्वपूर्ण है परंतु प्राकृतिक संसाधनों की प्रचुरता के पश्चात भी औद्योगिक दृष्टि से अफ्रीका महाद्वीप बहुत पिछड़ा है।
प्रश्न 10 आधुनिक आर्थिक विकास में सेवा सेक्टर की सार्थकता और वृद्धि की चर्चा कीजिए ।
उत्तर- सेवा सेक्टर व्यापार, परिवहन, संचार और निम्न व उच्च स्तरीय सेवाओं से संबंधित गतिविधियों को समाहित करता है। इन गतिविधियों को सामान्यता तृतीयक एवं चतुर्थक क्रियाकलापों के अंतर्गत रखा जाता है। सेवाएं वास्तव में वे क्रियाकलाप हैं जिनमें वस्तुओं का उत्पादन प्रत्यक्ष रूप से नहीं होता। इस प्रकार किसी प्रदेश के आर्थिक विकास में सेवा क्षेत्र की महत्ता और इस क्षेत्र में हो रही वृद्धि के आकलन हेतु सेवा क्षेत्र के प्रमुख घटकों की चर्चा अनिवार्य है । वाणिज्यिक सेवाएं - किसी देश की वाणिज्यिक सेवाओं में हो रही वृद्धि उस देश के आर्थिक विकास के स्तर को इंगित करती है. प्रदेश में बढ़ती आय के साथ विभिन्न सेवाओं के मांग में भी वृद्धि होती है। परिवहन सेवाएं किसी व्यक्ति या वस्तु का एक स्थान से दूसरे स्थान पर लाना ले जाना परिवहन के रूप में जाना जाता है वास्तव में देखा जाए तो वर्तमान युग में अधिकांश आर्थिक गतिविधियां परिवहन पर ही निर्भर करती हैं। यह सेवा क्षेत्र विभिन्न माध्यमों से रोजगार उपलब्ध कराने के अलावा आर्थिक गतिविधियों को गति प्रदान करने में भी सहायक होती है। स्पष्ट है परिवहन सेवा के क्षेत्र में प्रगतिशील देश आर्थिक विकास के क्षेत्र में भी आगे हैं। संचार सेवाएं - संचार सेवाओं के विभिन्न माध्यमों जैसे डाक मोबाइल दूरभाष रेडियो टेलीविजन उपग्रह संचार इंटरनेट संचार समाचार पत्र पत्रिकाओं की विकसित अवस्था एवं उपलब्धता किसी देश के आर्थिक विकास का सूचक होती है । वर्तमान समय में संचार सेवाओं में हो रही वृद्धि आर्थिक विकास के नए मार्ग खोल रही हैं। उच्च स्तरीय सेवाएं : जैसे- सूचना, प्रौद्योगिकी, शोध, प्रबंध, प्रशासन, नियोजन आदि उच्च आर्थिक विकास वाले देशों की पहचान बन चुकी हैं।
प्रश्न 11 परिवहन और संचार सेवाओं की सार्थकता को विस्तारपूर्वक स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- परिवहन एवं संचार सेवाओं का समुचित विकास क्षेत्र विशेष के आर्थिक विकास का सूचक होती है। यह सेवाओं की बेहतर उपलब्धता व्यापारिक एवं वाणिज्य कार्यों को गतिशीलता प्रदान करती है। परिवहन परिवहन एक ऐसी सेवा अथवा सुविधा है इसके व्यक्तियों विनिर्मित वस्तुओं तथा संपत्ति को भौतिक रूप से एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाया जाता है। यह मनुष्य की गतिशीलता संबंधी मूलभूत आवश्यकताओं को पूरा करता है। परिवहन के विभिन्न साधनों जैसे सड़क परिवहन रेल परिवहन वायु मार्ग परिवहन जल परिवहन पाइपलाइन परिवहन आदि की विकसित अवस्था आधुनिक समाज की मूलभूत आवश्यकता है। जनसंख्या में तीव्र वृद्धि के साथ ही विश्व में परिवहन व्यवस्था में भी विकास हुआ है।
संचार - सूचनाओं तथा विचारों को लिखित, शाब्दिक अथवा श्रव्य दृश्य रूप में प्राप्तकर्ता तक भेजने की प्रक्रिया संचार कहलाता है तथा इस प्रक्रिया में जिन साधनों का प्रयोग किया जाता है उन्हें संचार माध्यम कहा जाता है जैसे डाक समाचार पत्र पत्रिका मोबाइल दूरभाष फैक्स रेडियो इंटरनेट टेलीविजन आदि संचार के माध्यम है । विश्व में संचार माध्यमों के तीव्र विकास ने वाणिज्य और व्यापारिक क्षेत्रों की गतिशीलता और उत्पादकता को बढ़ा दिया है। संचार एवं परिवहन साधनों के विकास नहीं आज पूरे विश्व को एक वैश्विक ग्राम का रूप दे दिया है।
प्रश्न 12 एक सुप्रबंधित परिवहन प्रणाली में विभिन्न विधाएँ एक दूसरे की संपूरक होती हैं। इस कथन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- एक सुप्रबंधित परिवहन प्रणाली में विभिन्न विधाएँ एक दूसरे की संपूरक होती हैं। यह कथन निम्नलिखित बिन्दुओं से स्पष्ट होता हैं-
• जैसे-जैसे परिवहन व्यवस्था विकसित होती हैं विभिन्न स्थान आपस में जुड़कर जाल तंत्र की रचना करते हैं यह तंत्र विभिन्न नोडों और योजकों से मिलकर बनता है।
• आगे चलकर अनेक स्थान मार्गों की विभिन्न श्रेणियों द्वारा जुड़ जाते हैं और परिवहन जाल का निर्माण होता है।
• स्पष्ट तौर पर हम देख सकते हैं कि परिवहन की विभिन्न विधाएं आपस में जुड़ कर एक दूसरे के संपूरक का कार्य करती हैं।
• आज परिवहन की विभिन्न विधाओं का प्रयोग विशिष्टीकृत हो चुका है जैसे अंतरराष्ट्रीय व्यापार हेतु जल परिवहन का प्रयोग।
• कम दूरी की सेवाओं हेतु सड़क परिवहन उपयुक्त है, वहीं प्रदेश के आंतरिक भागों में वृहद स्तर पर वस्तुओं के निपटान एवं लंबी दूरी की यात्रा हेतु रेल परिवहन का इस्तेमाल सर्वाधिक होता है। जबकि तीव्रतम यातायात के साधन के रूप में वायु परिवहन सर्वश्रेष्ठ है। इस प्रकार विशाल मात्रा में वस्तुओं के अंतरराष्ट्रीय परिवहन व व्यापार हेतु भार वाही जानवरों का प्रयोग किया जाता है। वही तटीय भागों से आंतरिक भागों में भारी एवं विद्युत मात्रा में वस्तुओं के निपटान हेतु स्थल माध्यम के अंतर्गत रेल परिवहन का प्रयोग होता है। मुख्य वितरण केंद्रोंसे फिर इन्हें सड़क परिवहन द्वारा विभिन्न नोडों तक पहुंचाया जाता है।
• उच्च मूल्य तथा जल्द खराब होने वाली वस्तुओं का निपटान वायु परिवहन के माध्यम से किया जाता है, साथ ही वायु परिवहन का प्रयोग विपदा ग्रस्त क्षेत्रों में बचाव हेतु एवं अन्य विभिन्न कार्यों में होता है।
प्रश्न 13 अंतरराष्ट्रीय व्यापार कैसे लाभ पहुंचाते हैं?
उत्तर- विभिन्न देशों के बीच वस्तुओं और सेवाओं का लेनदेन अंतरराष्ट्रीय व्यापार कहलाता है। इससे विश्व को निम्नलिखित लाभ प्राप्त होते
• ऐसा विश्वास किया जाता है कि अंतरराष्ट्रीय व्यापार द्वारा दोनों ही देश लाभ प्राप्त करते हैं।
• प्राचीन समय से ही अंतरराष्ट्रीय व्यापार देशों के बीच वस्तुओं और सेवाओं के लेन-देन का माध्यम बना हुआ है।
• अंतरराष्ट्रीय व्यापार उत्पादन में विशिष्टीकरण करण को बढ़ावा देता है जिसके फलस्वरूप उस देश में वस्तुओं के मूल्य में गिरावट तथा गुणवत्ता में वृद्धि होती है।
• आज विश्व के कई देश कुछ खास वस्तुओं के निर्माण में विशेषता हासिल कर लिए हैं।
• अंतरराष्ट्रीय व्यापार के माध्यम से आयातक देश को वे वस्तुएं उपभोग हेतु प्राप्त हो जाती हैं, जो वहां उपलब्ध नहीं होती और निर्यातक देश को अतिरिक्त वस्तुओं का निर्यात कर आर्थिक लाभ प्राप्त होता है।
• भारत में आने वाली कुछ फसलें जैसे तंबाकू, आलू, टमाटर आदि अंतरराष्ट्रीय व्यापार की ही देन है।
•आज अंतरराष्ट्रीय व्यापार राष्ट्रों की विदेश नीति का प्रमुख अंग है।
• आज कोई भी देश अंतरराष्ट्रीय व्यापार से मिलने वाले लाभों से वंचित नहीं रहना चाहता।
प्रश्न 14 बस्तियों के वर्गीकरण के क्या आधार है? किसी बस्ती को ग्रामीण कहे जाने के क्या आधार होते हैं?
उत्तर- व्यवसाय तथा जनसंख्या के आधार पर बस्तियों को ग्रामीण तथा नगरी बस्तियों में वर्गीकृत किया जाता है। ग्रामीण बस्तियों का वर्गीकरण उनकी स्थिति, कार्य तथा आकृति के आधार पर किया जाता है। नगरीय बस्तियों का वर्गीकरण उनकी जनसंख्या, व्यवसायिक सरंचना प्रशासनिक व्यवस्था, अवस्थिति एवं आकृति के आधार पर किया जाता है। ग्रामीण बस्ती उसे कहते हैं जहाँ के निवासियों का मुख्य व्यवसाय प्राथमिक आर्थिक क्रियाओं से संबंधित होता है जैसे कृषि, पशुपालन, खनन आदि। इसके अतिरिक्त नगरीय बस्तियों की अपेक्षा यहाँ जनसंख्या कम होती है ग्रामीण क्षेत्र निर्धारित करने के लिए विश्व के विभिन्न देशों में जनसंख्या की सीमा अलग-अलग है।
प्रश्न 15 विकासशील देशों की अधिकतर आबादी ग्रामीण है। फिर भी यहाँ की ग्रामीण बस्तियाँ कई समस्याओं से जूझ रही है। स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर- भारत, पाकिस्तान, बांग्ला देश जैसे कई विकासशील देशों में ग्रामीण जनसंख्या कुल जनसंख्या के 50 प्रतिशत से भी अधिक है। यही स्थिति विश्व के अन्य कई विकासशील देशों की है किन्तु इन देशों की ग्रामीण बस्तियाँ कई समस्याओं से जूझ रही हैं। ग्रामीण बस्तियों की समस्याएँ विकासशील देशों में ग्रामीण बस्तियों में जल की आपूर्ति पर्याप्त नहीं होती है। पर्वतीय एवं शुष्क क्षेत्रों में निवासियों को पेयजल हेतु लम्बी दूरियाँ तय करनी पड़ती है। जल जनित बीमारियाँ, जैसे हैजा, पीलिया आदि सामान्य समस्या है। दक्षिणी एशिया के देश प्रायः बाढ़ एवं सूखे से ग्रस्त रहते है। सिंचाई सुविधाओं का अभाव होने से कृषि कार्य प्रभावित होता है। कच्ची सड़के एवं आधुनिक संचार के साधनों का अभाव उनके विकास मार्ग में बाधा डालता है। विशाल ग्रामीण जनसंख्या के लिए स्वास्थ्य एवं शिक्षा सम्बन्धी पर्याप्त सुविधाओं का अभाव है। (शौच घर एवं कूड़ा-कचरा निस्तारण, विद्यालयों का अभाव। विकास के लिए आपेक्षित आधारभूत अवसरंचना का सदैव अभाव रहता है।
भाग - 'ब' भारत: लोग और अर्थव्यवस्था
प्रश्न 1 भारत में अंतरराष्ट्रीय प्रवास के कारणों की विवेचना कीजिए?
उत्तर- एक देश से दूसरे देश में होने वाले प्रवास को अंतरराष्ट्रीय प्रवास कहा जाता है। भारत में अंतरराष्ट्रीय प्रवास के निम्नलिखित कारण है:
(क) आर्थिक कारण भारत एक बड़ा देश है । जनसंख्या में यह विश्व का दूसरा बड़ा देश है, इतनी बड़ी जनसंख्या को रोजगार उपलब्ध कराना एक चुनौती है। यहां रोजगार की उचित व्यवस्था पर्याप्त नहीं है। अतः भारतीय क्षेत्र में व्याप्त बेरोजगारी, गरीबी एवं उच्च स्तरीय शिक्षण संस्थानों के अभाव के कारण भारतीयों का दूसरे देशों में उत्प्रवास होता है। दूसरी ओर पड़ोसी राष्ट्रों जैसे बांग्लादेश, तिब्बत, भूटान, श्रीलंका के निवासी भारत में अपने व्यापारिक गतिविधियों एवं रोजगार हेतु भारत में आप्रवासन करते हैं।
(ख) राजनीतिक कारण : भारत का संविधान व्यापक है। इसकी राजनीतिक व्यवस्था लचीली है। भारत वसुधैव कुटुंबकम में विश्वास रखता है, अतः लाखों लोग पड़ोसी देशों से अवैध रूप से भारत में घुसपैठ कर बस गए हैं। भारत के पड़ोसी देश बांग्लादेश, भूटान, नेपाल आदि देशों के प्रवासियों की संख्या बहुत अधिक है। भारत के लाखों लोग अच्छा विकल्प या अवसरों की सुविधाओं के कारण प्रतिवर्ष संयुक्त राज्य अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड आदि देशों में जाते हैं।
(ग) धार्मिक एवं सामाजिक कारक: भारत में लाखों व्यक्ति भारत-पाकिस्तान बंटवारा के बाद, हिंदू धर्म वाले भारत में आ गए तथा मुस्लिम संप्रदाय के लोग इस्लामिक देशों में उत्प्रवास कर गए। जहां उन्हें धार्मिक व सामाजिक कारणों पूर्ण सुरक्षा की अनुभूति होती है। फलस्वरूप बहुत संख्या में लोग उत्प्रवास किए।
(घ)अन्य कारण : विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के विकास के बाद लाखों युवाओं ने तकनीकी एवं उच्च शिक्षा प्राप्त की। बेहतर अवसर के लिए वे पश्चिमी विकसित देशों की ओर उत्प्रवास करने लगे। संयुक्त राज्य अमेरिका, खाड़ी देशों और यूरोपीय देशों में तकनीकी क्षेत्रों में रोजगार के बेहतर विकल्प प्रवास के लिए आकर्षित किए।
प्रश्न 2 प्रवास के सामाजिक जनांकिकीय परिणाम क्या क्या है?
उत्तर- प्रवास में एक जगह से दूसरी जगह के लोगों के साथ सामंजस्य स्थापित होता है। एक संस्कृति का दूसरे संस्कृति के साथ मेल होता है। अतः प्रवास के अच्छे और बुरे दोनों ही प्रभाव दिखाई पड़ते हैं।
(क) सामाजिक प्रभाव प्रवासियों द्वारा सामाजिक रूप से अनेक परिवर्तन होते हैं । प्रवासी सामाजिक परिवर्तन के अभिकर्ताओं के रूप में कार्य करते हैं। नवीन प्रौद्योगिकियों, परिवार नियोजन, बालिका शिक्षा इत्यादि से संबंधित नई विचारधाराओं का नगरीय क्षेत्रों से ग्रामीण क्षेत्रों की और प्रसार इन्हीं के माध्यम से होता है। प्रवास से विभिन्न संस्कृतियों के लोगों का अंतर मिश्रण होता है, जो समाज के संकीर्ण विचारों को हटाते हुए मिश्रित संस्कृति के उदविकास में सकारात्मक योगदान देता है। नए लोगों के संपर्क से उस स्थान के लोगों की मानसिक सोच विस्तृत होती है। दूसरी ओर निम्न आर्थिक स्तर के कुछ लोग हिंसा से ग्रसित होकर अपराध और नशीले पदार्थों के सेवन जैसा सामाजिक कार्यों में संलिप्त हो जाते हैं।
(ख) जनांकिकीय परिणाम प्रवास से देश के अंदर जनसंख्या का पुर्नवितरण होता है। ग्रामीण नगरीय प्रवास के द्वारा नगरों में क्रियाशील जनसंख्या 15 से 59 आयु वर्ग में वृद्धि होती है। यह प्रवास पुरुष प्रधान होता है, ग्रामीण क्षेत्रों की युवा, कुशल एवं दक्ष लोगों का बाह्य प्रवास जनांकिकीय संघटन पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है। फलस्वरूप वहां का लिंग अनुपात बढ़ जाता है अर्थात महिलाओं की संख्या बढ़ जाती है। दूसरी ओर जब नगरों में लोग जाकर प्रवास करने लगते हैं। तब उस क्षेत्र में पुरुषों की संख्या में वृद्धि हो जाती है, क्रियाशील जनसंख्या बढ़ जाती है तथा वहां का लिंग अनुपात घट जाता है। फलस्वरूप आयु एवं लिंग संरचना में गंभीर असंतुलन पैदा कर देता है, प्रवासियों के उद्गम और गंतव्य स्थानों में लिंग अनुपात असंतुलित हो जाता है।
प्रश्न 3 मानव विकास क्या है? क्या साक्षरता मानव विकास के स्तर को परिलक्षित करती है? विवेचना कीजिए।
उत्तर- मानव विकास मानव जाति के सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक उत्थान व विकास से जुड़ा हुआ होता है। संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) के द्वारा 1990 में प्रकाशित पहली मानव विकास रिपोर्ट के अनुसार, मानव विकास के प्रमुख तत्व - दीर्घ एवं स्वस्थ जीवन, शिक्षा तथा उच्च जीवन स्तर है राजनीतिक सामाजिक स्वतंत्रता मानव अधिकारों की गारंटी, निर्भरता तथा आत्मसम्मान इसके प्रमुख तत्व है।
साक्षरता मानव विकास के स्तर को परिलक्षित करती है-
साक्षरता मानव विकास को निर्धारित करने वाले सूचकांकों में महत्वपूर्ण है। शिक्षा मानव विकास की कुंजी है, शिक्षा के विकास से मानव का विकास करने का अवसर प्राप्त होता है। शिक्षा से गरीबी, अज्ञानता, बंधुआकरण आदि की बाधाओं से मुक्ति प्राप्त होता है। मानव सोच में सकारात्मक वृद्धि होती है, अपनी समस्याओं से लड़ने की शक्ति आती है तथा समाधान का मार्ग प्राप्त करने में प्रोत्साहन मिलता है। विश्व के विकसित देशों या भारत के विकसित राज्यों में जहां साक्षरता दर ऊंची है वहां के क्षेत्रों में विकास में साक्षरता अहम भूमिका निभा रही है हम भारत के उच्च एवं निम्न साक्षरता दर वाले राज्य और विकास के प्रादेशिक स्तर के अंतर को देख सकते हैं जैसे - भारत में मानव विकास कोटि में केरल उच्चतम स्थान रखता है यहां साक्षरता दर देश में सबसे अधिक हैं इसके विपरीत बिहार मानव विकास क्रम में सबसे निम्न स्तर रखता है, इसका मुख्य कारण यहां की साक्षरता दर सबसे निम्न है। इससे स्पष्ट होता है कि मानव विकास सूचकांक तथा साक्षरता दर में धनात्मक संबंध है । अतः साक्षरता मानव विकास स्तर को परिलक्षित करती है।
प्रश्न 4 भारत में ग्रामीण बस्तियों के प्रकारों का वर्णन करें?
उत्तर- भारत में मोटे तौर पर चार प्रकार के ग्रामीण बस्तियों पायी जाती है-
क. परिक्षिप्त या एकाकी बस्तियां - ये बस्तियां भारत के मेघालय, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश तथा केरल राज्य के अनेक भागों में पाई जाती है। इन बस्तियों का विकास मुख्य रूप से सुदूर वन क्षेत्रों या छोटी पहाड़ियों के ढालो में अवस्थित खेत पर या चरागाहों में एकाकी रूप से मिलता है। इन बस्तियों का विकास भूमि संसाधनों की अत्यधिक विखंडित प्रकृति के कारण होता है।
ख. पल्ली बस्तियां - यह बस्तियां भारत में मुख्य रूप से मध्य गंगा मैदान निम्न गंगा मैदान छत्तीसगढ़ एवं हिमालय की घाटियों में पाई जाती है। बस्तियों के निर्माण का मुख्य कारण इनकी जातीय व्यवस्था के द्वारा उत्पन्न सामाजिक अलगाव से होता है। भारत में इन बस्तियों को पुरवा, पान्ना, पाडा, पाली, नगला, आदि विभिन्न स्थानीय स्तर पर नामों से जाना जाता है।
ग. गुच्छित बस्तियां- भारत में इस प्रकार की बस्तियां मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड, नागालैंड, भारत के अत्यंत उपजाऊ जलोढ़ मैदानों तथा उत्तरी-पूर्वी राज्य में पायी जाती है। इन वस्तुओं की मुख्य विशेषता यह होती है कि ये बस्तियां सघन या घरो के संहत निर्मित क्षेत्र में पायी जाती है तथा उनके रहन-सहन से स्पष्ट होता है कि इसके समीपवर्ती भागों में कृषि भूमि तथा चरागाह भूमि मिलती है। बस्तियां मुख्य रूप से आयताकार तथा रेखिकै प्रतिरूप का निर्माण करते हैं। कई बार सुरक्षा के कारणों से भी गांव में गुच्छित बस्तियां पाई जाती है। जैसे भारत में बुंदेलखंड क्षेत्र नागालैंड आदि तथा राजस्थान में जल की कमी के कारण उपलब्ध संसाधनों के अधिकतम उपयोग के लिए बस्तियों का निर्माण अनिवार्य कर दिया है।
घ. अर्द्ध-गुच्छित या विखंडित बस्तियां इन वस्तुओं की मुख्य विशेषता एकांकी बस्ती या किसी बड़े गांव के विखंडन के फलस्वरूप होता है। भारत में यह बस्तियां गुजरात के मैदान एवं राजस्थान के कुछ विभागों में पाई जाती है।
प्रश्न 5 क्या एक प्रकार्य वाले नगर की कल्पना की जा सकती है? नगर बहु प्रकार्यात्मक क्यों हो जाते हैं?
उत्तर- उत्तर- कुछ नगरों और शहरों को किसी विशेषीकृत प्रकार्य में विशिष्टता प्राप्त होती है तथा उसे उस विशिष्ट प्रकार्य के लिए जाना जाता है लेकिन नगर को जीवित रखने के लिए उस विशिष्ट प्रकार्य के साथ अन्य कुछ विशिष्ट प्रकार्यों को भी करना पड़ता है। उदाहरण के लिए, एक परिवहन नगर में परिवहन प्रकार्य सर्वाधिक महत्वपूर्ण हो सकता है लेकिन परिवहन नगर में परिवहन कार्य के साथ-साथ प्रशासनिक, औद्योगिक, वाणिज्यिक, शैक्षणिक तथा चिकित्सा कार्य भी गौण रूप में अनिवार्य रूप से देखने को मिलते हैं। वस्तुतः एक प्रकार्य वाले नगर की कल्पना नहीं की जा सकती है। नगर बहु प्रकार्यात्मक हो जाते हैं क्योंकि किसी विशिष्ट नगर के जन्म के लिए कोई एक प्रकार्य उत्तरदायी हो सकता है लेकिन जब एक बार नगर स्थापित हो जाता है, तो उसे अपना अस्तित्व कायम रखने के लिए सार्वजनिक प्रशासन, वित्तीय, चिकित्सा सम्बन्धी, परिवहन सम्बन्धी, शिक्षा सम्बन्धी, जनोपयोगी सेवा सम्बन्धी तथा बाजार व वाणिज्य सेवा सम्बन्धी अनेक प्रकार्यों का संचालन करना होता है। इसी कारण प्रत्येक नगर बहुप्रकार्यात्मक कार्यों का निष्पादन करने लगता है। वस्तुतः नगरों के विकास होते जाने पर उनके प्रकार्य इतने अन्तर्ग्रन्थित हो जाते हैं कि नगर को किसी विशेष प्रकार्य वर्ग में वर्गीकृत नहीं किया जा सकता है।
प्रश्न 6 भारत के भूसंसाधनों की विभिन्न प्रकार की पर्यावरणीय समस्याएँ कौन-सी हैं? उनका निदान कैसे किया जाए ?
उत्तर- भारत के भूसंसाधनों पर बढ़ते दबाव के कारण अनेक पर्यावरणीय समस्याएँ उत्पन्न हो रही हैं जिनमें निम्नलिखित पर्यावरणीय समस्याएँ उल्लेखनीय हैं-
(क) मृदा उर्वरकता में हास- कृषि भूमि पर तेजी से बढ़ते जनसंख्या बढ़ते दबाव से कृषि उत्पादकता बढ़ाने के उद्देश्य से जहाँ एक ओर दहलनों के कृषि क्षेत्र में कमी आ रही है, वहीं दूसरी ओर बहु- फसलीकरण में बढ़ोतरी होने से परती भूमि के क्षेत्र में उल्लेखनीय कमी आई है। इससे भूमि में पुनः उर्वरता पाने की प्राकृतिक प्रक्रिया अवरुद्ध हुई हैं जैसे नाइट्रोजनीकरण। साथ ही पर्याप्त मात्रा में रासायनिक उर्वरक तथा कीटनाशक रसायनों का प्रयोग भी भारतीय कृषकों द्वारा किया जा रहा है। उक्त कारणों के भारत विभिन्न क्षेत्रों की मृदा उत्पादकता में हास अनुभव किया जा रहा है। सिंचाई तथा कृषि विकास की दोषपूर्ण नीतियों के कारण यह समस्या और भी गंम्भीर हो गई है।
(ख) मृदा अपरदन - भारत में समुचित रख-रखाव व प्रबन्धन के अभाव मैं प्रतिवर्ष लाखों हेक्टेअर भूमि मृदा अपरदन की समस्या से ग्रस्त हो रही है। शुष्क क्षेत्रों, पर्याप्त वर्षा प्राप्त करने वाले वनस्पति विहीन क्षेत्रों, जलोढ़ मिट्टी वाले भागों, कटे-फटे पठारी भागों में तथा तीव्र ढाल रखने वाले धरातलीय भू-भागों में मृदा अपरदन में प्रमुख रूप से प्रभावी मिलता है।
(ग) लवणता, मृदा क्षारता तथा जलाक्रांतता - अभी तक भारत की लगभग 80 लाख हेक्टेअर भूमि लवणता व क्षारता से प्रभावित हो चुकी है।
प्रश्न 7 देश में जल संसाधनों की उपलब्धता की विवेचना कीजिए और इसके स्थानिक वितरण के लिए उत्तरदायी निर्धारित करने वाले कारक बताइए।
उत्तर- भारत में जल संसाधनों की उपलब्धता के चार मुख्य स्रोत हैं-
(i) नदियाँ (ii) झीलें (iii) तलैया (iv) तालाब । यह जलवर्षण के विविध रूपों से प्राप्त होता है। देश में एक वर्ष में वर्षण से प्राप्त कुल जलराशि की मात्रा लगभग 4,000 घन कि०मी० है । धरातलीय जल और पुनः पूर्तियोग्य भौमजल से 1,869 घन कि०मी० जल की उपलब्धता है। जिसका केवल 60% अर्थात 1,122 घन कि०मी० काही लाभदायक उपयोग किया जा सकता है। भारत में होने वाली वर्षा में अत्यधिक सामयिक व स्थानिक विभिन्नता पायी जाती है। कुल वर्षा का अधिकांश भाग मानसूनी मौसम तक संकेद्रित है। गंगा, ब्रह्मपुत्र व बराक नदियों के जल ग्रहण क्षेत्रों में अपेक्षाकृत अधिक वर्षा होती है जोकि भारत का एक-तिहाई क्षेत्रफल है। किंतु यहाँ । कुल धरातलीय जल-संसाधनों का 60% जल पाया जाता है। दक्षिण भारतीय नदियाँ जैसे- गोदावरी, कृष्णा व कावेरी में जल प्रवाह का अधिकतर भाग उपयोग में लाया जा रहा है जबकि गंगा व ब्रह्मपुत्र नदी घाटियों में यह अभी तक संभव नहीं हो पाया है। नदियों में जल प्रवाह उनके जल ग्रहण क्षेत्र के आकार तथा उनके जलग्रहण क्षेत्र में हुई वर्षा पर निर्भर करता है। भारत में नदियों व उनकी सहायक नदियों की कुल संख्या 10,360 है। इनमें 1,869 घन कि०मी० वार्षिक जल प्रवाह होने का अनुमान है जिसका केवल 32% अर्थात् 690 घन कि०मी० जल का उपयोग किया जा सकता है।
प्रश्न 8 जल-संभर प्रबंधन क्या है? क्या आप सोचते हैं कि यह सतत पोषणीय विकास में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकता है?
उत्तर- जल-संभर प्रबंधन का संबंध, मुख्य रूप से धरातलीय तथा भौमजल संसाधनों के कुशल व दक्ष प्रबंधन से है। इसके अंतर्गत बहते वर्षा जल को विभिन्न विधियों द्वारा रोककर अंत:स्रवण, तालाब, पुनर्भरण तथा कुओं आदि के द्वारा भौमजल का संचयनऔर पुनर्भरण करना शामिल है। जल संभर प्रबंधन का उद्देश्य प्राकृतिक जल संसाधनों और समाज की आवश्यकताओं के बीच संतुलन स्थापित करना है। कुछ क्षेत्रों में जल-संभर विकास परियोजनाएँ पर्यावरण और अर्थव्यवस्था का कायाकल्प करने में सफल हुई हैं। जैसे :-
क. हरियाली - केंद्र सरकार द्वारा प्रवर्तित जल-संभर विकास परियोजना है जिसका उद्देश्य ग्रामीण जनसंख्या को पीने, सिंचाई, मत्स्यपालन और वन रोपण के लिए जल- संभर विधि से जल का संरक्षण करना है। यह परियोजना लोगों के सहयोग से ग्राम पंचायतों द्वारा निष्पादित की जा रही है।
ख. नीरू- मीरू (जल और आप ) - यह कार्यक्रम आंध्रप्रदेश में तथा अरवारी पानी संसद (अलवर राजस्थान में) लोगों के सहयोग से चलाई जा रहे हैं जिनमें जल संग्रहण के लिए संरचनाएँ जैसे अंतःस्रवण, तालाब, ताल (जोहड़ ) की खुदाई की गई है तथा रोक बाँध बनाए गए हैं।
ग. तमिलनाडु में घरों में जल संग्रहण संरचना का निर्माणआवश्यक बना दिया गया है।
घ. महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले में स्थित रालेगन सिद्धि एक छोटा-सा गाँव है। यह पूरे देश में जल-संभर विकास का एक जीवंत उदाहरण है। देश में लोगों को जल-संभर विकास प्रबंधन के लाभों को बताकर उनमें जागरूकता पैदा करके जल की उपलब्धता को सतत पोषणीय विकास से जोड़ा जा सकता है।
प्रश्न 9 भारत में खनिजों का संरक्षण क्यों आवश्यक है? हम उनका संरक्षण किस प्रकार कर सकते हैं।
उत्तर- खनिज समय के साथ समाप्त हो जाते हैं। भूगर्मिक दृष्टि से इन्हें बनने में लम्बा समय लगता है और आवश्यकता के समय तुरन्त इनका पुनर्भरण नहीं किया जा सकता। इसलिए सतत् पोषणीय विकास तथा आर्थिक विकास के लिए खनिजों का संरक्षण करना आवश्यक हो जाता है
संरक्षण की विधियाँ:
क. इसके लिए ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोतों जैसे सौर ऊर्जा, पवन, तरंग व भूतापीय ऊर्जा के असमाप्य स्रोतों का प्रयोग करना चाहिए।
ख. धात्विक खनिजों में छाजन धातुओं के उपयोग तथा धातुओं के पुर्नचक्रण पर बल देना चाहिए।
ग. अत्यल्प खनिजों के लिए प्रतिस्थापनों का उपयोग भी खनिजों के संरक्षण में सहायक है।
घ. सामरिक व अति अल्प खनिजों के निर्यात को भी घटाना चाहिए।
ङ सबसे उचित तरीका है, खनिजों का सूझ-बूझ से तथा मितव्यतता से प्रयोग कराना है ताकि वर्तमान आरक्षित भण्डारों का लंबे समय तक प्रयोग किया जा सके।
प्रश्न10 भारत में खनिजों का संरक्षण क्यों आवश्यक है? हम उनका संरक्षण किस प्रकार कर सकते है? महत्वपूर्ण बिंदुओं में व्याख्या कीजिए ।
उत्तर- खनिज समय के साथ समाप्त हो जाते हैं। भूगर्भिक दृष्टि से इन्हें बनने में लम्बा समय लगता है और आवश्यकता के समय इसका तुरंत पुनर्भरण नहीं किया जा सकता है। इसलिए इनका संरक्षण अति आवश्यक है।
क. अति अल्प धात्विक खनिजों के स्थान पर प्रतिस्थापकों का उपयोग खनिजों की पूर्ति को घटा सकता है।
ख. धात्विक खनिजों का पुनर्चक्रण करके तथा छाजन धातुओं का उपयोग करके खनिज धातुओं को संरक्षित कर सकते हैं। सामरिक और अति अल्प खनिजों का निर्यात घटाकरउनके भंडारो को भविष्य के लिए सुरक्षित किया जा सकता है।
ग. सामरिक और अति अल्प खनिजों के निर्यात घटाकर उनके भण्डारो को भविष्य के लिए सुरक्षित किया जा सकता है।
प्रश्न 11 'स्वदेशी' आन्दोलन ने सूती वस्त्र उद्योग को किस प्रकार विशेष प्रोत्साहन दिया?
उत्तर- सूती वस्त्र उद्योग भारत का एक महत्त्वपूर्ण परम्परागत उद्योग रहा हैं। ब्रिटिश शासन काल की प्रारम्भिक अवधि में अंग्रेजों ने सूती वस्त्र उद्योग को प्रोत्साहित नहीं किया। अंग्रेज भारत में उत्पादित कच्ची कपास को ब्रिटेन में स्थित मानचेस्टर तथा लिवरपूल नगरों में कार्यरत सूती मिलों को निर्यात कर देते थे। उन मिल में तैयार सूती वस्त्र को भारत में विक्रय किया जाता था। ब्रिटेन का यह कपड़ा वृहद स्तर पर मिलों में निर्मित होने के कारण भारत के कुटीर उद्योगों में निर्मित सूती वस्त्रों की तुलना में सस्ता होता था। 19वीं शताब्दी के उत्तराद्र्ध में सर्वप्रथम मुम्बई और अहमदाबाद नगरों में सूती वस्त्र मिलों को स्थापना की गई तथा देश में सूती वस्त्र उद्योग का तेजी से विस्तार होने लगा। उसी समय ब्रिटेन में निर्मित सामान का बहिष्कार करने तथा भारत में निर्मित सामान को उपयोग में लाने के लिए भारत में एक देशव्यापी आन्दोलन चलाया गया। स्वदेशी नामक इस आन्दोलन में विदेशी सामान के बहिष्कार के आह्वान ने भारत के सूती वस्त्र उद्योग को प्रमुख रूप से प्रोत्साहित किया।देश में निर्मित सूती वस्त्र की तेजी से बढ़ती माँग के कारण देश भिन्न भागों में सूती मिलों की स्थापना की जाने लगी। भारत के मध्यवर्ती पश्चिमी भाग में कपास की स्थानीय रूप से पर्याप्त उपलब्धता होने के कारण इन्दौर, नागपुर, शोलापुर, बड़ोदरा तथा अहमदाबाद में सूती मिलों की सफल स्थापना हुई। कोलकाता में पत्तन की सुर्विधा, तमिलनाडु में जल-विद्युत के विकास तथा कानपुर में स्थानिक निवेश के कारण सूती मिलों की स्थापना की गई। इस प्रकार स्वदेशी आन्दोलन की भारत के सूती वस्त्र उद्योग के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका रही।
प्रश्न 12 सूखा संभावी क्षेत्र कार्यक्रम पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखें। यह कार्यक्रम देश में शुष्क भूमि भारत में सूखा संभावित क्षेत्र कार्यक्रम कृषि विकास में कैसे सहायक है?
उत्तर- भारत में सूखा संभावित क्षेत्र विकास कार्यक्रम का प्रारंभ चौथी पंचवर्षीय योजना के अंतर्गत हुआ जिसका, उद्देश्य सूखा संभावित क्षेत्र में रोजगार के अवसरों का सृजन करना तथा सूखे के प्रभाव से निपटने के लिए उत्पादन के साधनों को विकसित करना था।
. पांचवी पंचवर्षीय योजना में इस कार्यक्रम में कार्य क्षेत्र को और अधिक विस्तृत कर दिया गया इस कार्यक्रम में प्रारंभ में स्थानीय स्तर पर श्रमिकों को रोजगार के अवसर प्रदान करने पर बल प्रदान किया गया लेकिन बाद में इसमें सिंचाई परियोजनाओं, भूमि विकास कार्यक्रमों, वनीकरण, चारागाहविकास तथा आधारभूत संरचनाओं जैसे विद्युत, सड़क, बाजार व वित्तीय सुविधाएं के विकास को भी प्राथमिकता दी गई।
. सूखा संभावित क्षेत्र के विकास की अन्य रणनीतियों में सूक्ष्मस्तर पर समन्वित जल संभर विकास कार्यक्रम का विकास भी सम्मिलित है।
. भारत में सूखा संभावित क्षेत्र प्रमुख रूप से राजस्थान, गुजरात, पश्चिम मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र के मराठवाड़ा क्षेत्र,आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के रायलसीमा तेलंगाना पठार, कर्नाटक पठार और तमिलनाडु के शुष्क और अर्थशुष्क क्षेत्र में विस्तृत मिलते हैं।
सूखा संभावित क्षेत्र कार्यक्रम का शुष्क भूमि विकास में योगदान :
• सूखा संभावित क्षेत्र कार्यक्रम का शुष्क भूमि विकास में निम्नलिखित योगदान है:
• शुष्क भूमि क्षेत्रों में सूखे की समस्या के प्रभाव को कम किया गया जिससे कृषि उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि हुई।
• रोजगार के नवीन अवसरों का सृजन कर बेरोजगारी की समस्या को बहुत कम किया गया।
• जनता के पलायन को रोका गया।
• पर्यावरण असंतुलन से उत्पन्न समस्याओं को काफी हद तक कम किया गया क्षेत्र के समन्वित विकास में सहयोग मिला।
प्रश्न 13 भारत के आर्थिक विकास में सड़कों की भूमिका का वर्णन करें।
उत्तर- द्वितीय विश्व युद्ध से पहले तक आधुनिक प्रकार के सड़क परिवहन अत्यंत सीमित थे । इसके विकास का प्रयास 1943 ई. में नागपुर योजना बनाकर किया गया। स्वतंत्रता के पश्चात भारत में सड़कों के विकास के लिए एक विस्तृत 20 वर्षीय सड़क परियोजना 1961 में आरंभ की गई जिसका उद्देश्य सड़कों की दशा के सुधार के साथ-साथ इसकी लंबाई को विस्तृत करना था। भारत की सड़क प्रणाली विश्व का तीसरा विशालतम प्रणाली मे से एक है। इसकी कुल लंबाई 54 8 लाख किलोमीटर है। विश्व में सबसे बड़ा एवं लंबा सड़क जाल संयुक्त राज्य अमेरिका कालगभग 65.8 लाख किलोमीटर है। तत्पश्चात दूसरे स्थान पर यूरोप का विस्तृत सड़क जाल है।
आर्थिक विकास में सड़कों का महत्व
भारत के आर्थिक विकास में सड़कों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। सड़क मार्गों द्वारा भारत का प्रतिवर्ष लगभग 85 प्रतिशत यात्री तथा 70 प्रतिशत भार - यातायात का परिवहन किया जाता है। सड़क मार्ग सीधे उत्पादक एवं उपभोक्ता को जोड़ता है, यह दरवाजे से दरवाजे तक (Door to Door ) परिवहन सेवा उपलब्ध कराने वाला महत्वपूर्ण साधन है। इसके अतिरिक्त यह अन्य परिवहन प्रकारों का संयोजक भी होता है। रेलवेस्टेशन, हवाई अड्डों तथा बन्दरगाहों को उनके पृष्ठ प्रदेशों से जोड़ता है। भारत के आर्थिक विकास में सड़कों को भूमिका निम्नांकित हैं
क. भारत कृषि प्रधान देश है। यहां कृषि उत्पादकों को बाजारों तक पहुंचाने का काम सड़कों के द्वारा ही होता है। सड़कों के विकास ने गहन व विस्तृत कृषि को सम्भव बनाया है।
ख. भारत में खनिजों का भंडार है। खनिजों को उद्योगों में ले जाने के लिए तथा तैयार माल को बाजार तक पहुंचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। सड़कों के विकास से देश में औद्योगिक विकास को पर्याप्त प्रोत्साहन मिला है।
ग. सड़कों के विकास ने देशभर में विभिन्न वस्तुओं के मूल्यों में मिलने वाले अन्तर को कम किया है।
घ. समय व धन की बचत हुई है।
ङ. श्रम को गतिशील बनाकर बेरोजगारी की समस्या को कम किया है।
च. सड़कों के माध्यम से माल ढोने में समय तथा व्यय में बचत होती है।
छ. परिवहन के अन्य साधनों की सफलता सड़क पर निर्भर करती हैं।
ज. भारत जैसे विकासशील देशों में सड़क लोगों के लिए सुलभ साधन है, यह लोगों के लिए आसानी से पहुंच तक है।
प्रश्न 14 भारत में निर्यात और आयात व्यापार के संयोजन का वर्णन कीजिए।
उत्तर- भारत में निर्यात व्यापार का संयोजन - सन् 2016-17 में भारत से 1852340 करोड़ रुपये मूल्य की वस्तुओं का विदेशों को निर्यात किया गया । सन् 2016-17 में भारत से जिन महत्त्वपूर्ण मदों से सम्बन्धित वस्तुओं का निर्यात किया गया उनमें कृषि व समवर्गी उत्पाद, अयस्क एवं खनिज, विनिर्मित वस्तुएँ, पेट्रोलियम व अपरिष्कृत उत्पाद प्रमुख हैं। भारत द्वारा निर्यात मुख्यतः संयुक्त राज्य अमेरिका, ब्रिटेन, बेल्जियम, जर्मनी, जापान, स्विट्जरलैंड, हांगकांग, संयुक्त अरब अमीरात, चीन, सिंगापुर एवं मलेशिया आदि देशों को किया जाता है। इन देशों में से संयुक्त राज्य अमेरिका भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार देश है। भारत में आयात व्यापार का संयोजन - सन् 2016-17 में भारत में 2577422 करोड़ रुपये मूल्य की वस्तुओं का आयात किया गया जिनमें अपरिष्कृत पेट्रोलियम एवं अन्य उत्पाद सर्वाधिक महत्वपूर्ण थे। जिनका देश के कुल आयात मूल्य में योगदान 5,82,762 करोड़ का रहा। स्वर्ण-चाँदी, मशीनरी, व्यवसायिक उपस्कर, मोती, बहुमूल्य एवं अल्प मूल्य रत्न तथा गैर-धात्विक खनिज विनिर्माण आदि महत्वपूर्ण आयातित वस्तुएँ हैं। अन्य आयातित वस्तुओं में दालें, खाद्य तेल, लोहा व स्टील धातुमयी अयस्क तथा धातु छीजन, चिकित्सीय एवं फार्मा उत्पाद, उर्वरक, अलौह धातुएँ, लुगदी व अपशिष्ट कागज, गत्ता व विनिर्मितियों, न्यूज प्रिन्ट, वस्त्र, धागे व कपड़े तथा रासायनिक उत्पाद सम्मिलित हैं। भारत के आयात में एशिया व ओशेनिया की सर्वाधिक हिस्सेदारी है तत्पश्चात् यूरोप एवं उत्तरी अमेरिका का स्थान आता है।
प्रश्न 15 भूमि निम्नीकरण को रोकने / कम करने के उपाय बताओ ।
उत्तर- (क) किसान रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग उचित मात्रा में करें।
(ख) नगरीय / औद्योगिक गंदे पानी को उपचारित करके पुनः उपयोग में लाया जाये।
(ग) सड़ी-गली सब्जी व फल, पशु मल मूत्र को उचित प्रौद्योगिकी द्वारा बहुमूल्य खाद में परिवर्तित किया जाये।
(घ) बस्तियों के आस-पास खुले में शौच पर प्रतिबंध लगे
(ङ) प्लास्टिक से बनी वस्तुओं पर प्रतिबंध लगे ।
(च) कूड़ा-कचरा निश्चित स्थान पर ही डाला जाए ताकि उसका यथासंभव निपटारा हो सके।
(छ) वृक्षारोपण को बढ़ावा दिया जाये।
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