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JAC Board 12th History Exam 2024 : Top 30 (3 Marks) Questions with Answers (Short Answer Questions)

JAC Board 12th History Exam 2024 : Top 30 (3 Marks) Questions with Answers (Short Answer Questions)

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झारखंड बोर्ड 12वीं की History (इतिहास ) परीक्षा 13 फरवरी, 2024 को निर्धारित है। तो यह आर्टिकल आपके लिए काफी ज्यादा महत्वपूर्ण साबित होने वाला है क्योंकि इस आर्टिकल में आपको बोर्ड परीक्षा के लिए वो ही प्रश्न दिए गए है जो बोर्ड पेपर में आने जा रहे है।

JAC Jharkhand Board क्लास 12th के History (इतिहास ) (Top 30 Short Answer Questions) से संबंधित महत्वपूर्ण लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर प्रश्न दिए गए है। महत्वपूर्ण प्रश्नों का एक संग्रह है जो बहुत ही अनुभवी शिक्षकों के द्वारा तैयार किये गए है। इसमें प्रत्येक महत्वपूर्ण प्रश्नों को छांट कर एकत्रित किया गया है, जो आपके पेपर के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है, जिससे कि विद्यार्थी कम समय में अच्छे अंक प्राप्त कर सके। सभी प्रश्नों के उत्तर साथ में दिए गए हैं

झारखंड बोर्ड के सभी विद्यार्थिय अब आपकी History (इतिहास ) परीक्षा में कुछ ही घंटे बचे है, विद्यार्थी यहां पर से अपने बोर्ड एग्जाम की तैयारी बहुत ही आसानी से कर सकते हैं।

JAC 12th History Short Question - लघु उत्तरीय प्रश्न  

प्रश्न 1. हड़प्पा सभ्यता के धार्मिक जीवन का वर्णन करें ?

उत्तर - हड़प्पा सभ्यता या सिंधु घाटी सभ्यता का धार्मिक जीवन मुख्यतः मातृ देवी की पूजा पर आधारित था। खुदाई में बहुत अधिक संख्या में नारियों की मूर्तियां मिली हैं जिससे यह ज्ञात होता है कि सिंधु घाटी के निवासी मातृ देवी की उपासना किया करते थे। हड़प्पा वासी मातृ देवी के साथ ही देवताओं की भी पूजा किया करते थे। मातृ देवी और देवताओं को बलि भी दी जाती थी। धार्मिक अनुष्ठानों के लिए धार्मिक इमारते बनाई गई होंगी लेकिन मंदिर के प्रमाण नहीं प्राप्त होते हैं। मोहनजोदड़ो से एक मोहर प्राप्त हुई है जिस पर पद्मासन की मुद्रा में एक पुरुष ध्यान की मुद्रा मैं बैठा हुआ है इसे पशुपति महादेव का रूप माना गया है। पशुपतिनाथ वृक्ष, लिंग, योनि, और पशु आदि की भी पूजा थी। वृक्ष पूजा काफी प्रचलित थी। इस काल के लोग जादू टोना भूत प्रेत और अंधविश्वासों पर विश्वास किया करते थे। वे बुरी शक्तियों से बचने के लिए ताबीज धारण करते थे। हड़प्पा वासी कुबड़ वाला सांड की भी पूजा किया करते थे। ये लोग पक्षियों की भी पूजा किया करते थे। स्वास्तिक चिन्ह संभवत हड़प्पा वासियों की ही देन है।

प्रश्न 2. कलिंग युद्ध का अशोक पर क्या प्रभाव पड़ा ?

उत्तर - अशोक अपने शासन के आठवे वर्ष में कलिंग (उड़ीसा) पर आक्रमण किया जिसमे एक लाख व्यक्ति मारे गये, 1.5 लाख बंदी बनाए गए तथा कई गुणा घायल हुए। जिससे अशोक का हृदय परिवर्तन हुआ जिसके फलस्वरूप निम्नलिखित प्रभाव पड़े-

1. उसे युद्ध से घृणा हो गई तथा जीवन भर युद्ध न करने की प्रतिज्ञा की।

2. भीषण रक्तसंहार देखकर बौद्ध भिक्षु उपगुप्त के प्रभाव से बौद्ध धर्म स्वीकार कर लिया।

3. कलिंग युद्ध के बाद अशोक शांतिवादी हो गया तथा राज्य विस्तार की नीति का परित्याग कर दिया उसने दिग्विजय के स्थान पर धर्म विजय अपना लक्ष्य बनाया।

4. इस युद्ध के बाद मदिरापान, मांस, बलि आदि बिल्कुल बंद करा दिया गया। संयम, विचारों की पवित्रता, दया, दान, सत्य, सेवा, श्रद्धा आदि पर बल दिया गया।

5. अशोक 'देवनाम पियदस्सी की उपाधि धारण किया तथा राज्य में युद्धघोष के स्थान पर 'धम्मघोष प्रारंभ हो गया।

प्रश्न 3. गुप्त साम्राज्य के पतन के क्या कारण थै ?

उत्तर - गुप्त साम्राज्य के पतन के निम्नलिखित कारण है -

1. अयोग्य उत्तराधिकारी स्कन्दगुप्त के पश्चात् प्रायः सभी गुप्त शासक दुर्बल एवं अयोग्य हुए जिससे गुप्त साम्राज्य का पतन क्रमिक रूप से हुआ।

2. उत्तराधिकार के नियम का अभाव : उत्तराधिकार के निश्चित नियम नहीं होने के कारण सदैव गृह युद्ध की स्थिति बनी रही। इससे शासक की स्थिति कमजोर हुई।

3. नई शक्तियों का उदय केंद्रीय शक्ति के कमजोर होने से स्वतंत्र राज्यों का उदय हुआ जिन्होंने राजा के प्रभुत्व को चुनौती दिया जैसे मालवा का यशोधर्मन आदि।

4. हूण आक्रमण :- गुप्त काल में हूण आक्रमण इसके पतन का एक प्रमुख कारण माना जाता है।

5. धार्मिक कारण :- उत्तरवर्ती गुप्त सम्राट बौद्ध धर्म के प्रति झुके हुए थे जिससे इसकी सैन्य व्यवस्था दुर्बल हुई।

6. सामंती व्यवस्थाः गुप्त प्रशासन सामंती व्यवस्था पर आधारित था। प्रशासकीय पदों का वंशानुगत होना भी पतन का एक कारण बना।

7. आर्थिक कारण गुप्त काल में कृषि पर अत्यधिक दबाव हो गया, उद्योग, व्यापार और नगरों आदि के पतन होने से आर्थिक सम्पन्नता में कमी आई।

प्रश्न 4. महाभारत के महत्व पर प्रकाश डालिए ?

उत्तर - महाभारत भारतीय संस्कृति तथा हिन्दू धर्म के विकास का लेखा-जोखा है। यह एक बहुआयामी ग्रंथ है। इसमें समाज के सभी अंग जैसे राजनीति, धर्म, दर्शन तथा आदर्श की झलक मिलती है। इसमें युद्ध व शांति, सदगुण व दुर्गुण की व्याख्या की गई है। भारतीय इतिहास का महत्वपूर्ण स्त्रोत है। रूपक कथाएँ संभवतः काल्पनिक है। निश्चित रूप से सामाजिक मूल्यों के अध्ययन के लिए महाभारत एक अच्छा स्रोत है। इस प्रकार महाभारत की महत्ता को समझा जा सकता है।

प्रश्न 5. मनु स्मृति में वर्णित चाण्डालों का वर्णन कीजिए ?

उत्तर - चाण्डालों के बारे में मुख्य रूप से वर्णन मनुस्मृति में किया गया है।

a. इसके अनुसार चाण्डालों को गांव से बाहर रहना पड़ता था उन्हें रात में गांव में आने जाने की आज्ञा नहीं थी।

b. वह लोगों के फेंके हुए बर्तनों और चीजों का इस्तेमाल किया करते थे।

c. मृत शवों से उतार कर कपड़े पहना करते थे सभी शवों का अंतिम संस्कार उन्हीं के द्वारा किया जाता था।

d. समाज द्वारा उन्हें अस्पृश्य माना जाता था चाण्डालों को निंदनीय नजरों से देखा जाता था।

e. उन्हें देख लेना भी पाप समझा जाता था।

प्रश्न 6. चैत्य और विहार किया है ?

उत्तर - चैत्य बौद्ध भिक्छुओं के शवदाह के बाद शरीर के कुछ अवशेष टीलों पर सुरक्षित रख दिए जाते थे अंतिम संस्कार से जुड़े ये टीले चैत्य कहलाए। चैत्य अनेकानेक पायों पर खड़ा एक बड़ा होल जैसा होता था यह बौद्ध मंदिर भी कहलाता था।

विहार-विहार भिक्छु निवास होते थे। विहार में एक केंद्रीय शाला होती थी, जिसमें सामने के बरामदे की ओर एक द्वार रहता था। खुदाई में प्रायः विहार चैत्य के पास मिले हैं। विहारों का उपयोग वर्षा काल में भिक्छुओं के निवास हेतु होता था।

प्रश्न 7. किताब उल हिंद पर एक लेख लिखे ?

उत्तर - "किताब - उल - हिन्द" पुस्तक की रचना अलबरूनी ने सुल्तान महमूद गजनवी के शासकाल की थी। अलबरूनी - इस पुस्तक की रचना अरबी भाषा में की थी। यह पुस्तक 80 अध्यायो और अनेक उप अध्यायों में विभक्त है। इस पुस्तक से महमूद गजनवी के आक्रमण के समय के भारतीय समाज एवं संस्कृति की महत्वपूर्ण जानकारी मिलती है। अलबरूनी अपनी पुस्तक में भारतीय समाज रहन सहन, खान पान, वेश-भूषा सामाजिक प्रथाओं, त्योहार धर्म, दर्शन कानून, अपराध, दंड, ज्ञान विज्ञान, खगोलशास्त्र, गणित, चिकित्सा, रसायन दर्शन आदि का वर्णन करते हैं। वे भारत में प्रचलित विभिन्न संवतो, यहाँ की भौगोलिक स्थिति, महत्वपूर्ण नगरों और उनकी दूरी का भी उल्लेख करते है। चूँकि यह पुस्तक महमूद गजनवी के शासनकाल में लिखी गई, परंतु इसमें महमूद गजनवी के क्रियाकलापो का यदा-कदा ही उल्लेख मिलता है इस पुस्तक से तत्कालीन राजनीतिक इतिहास के अध्ययन में बहुत अधिक सहायता नहीं मिलती है, परंतु भारतीय समाज और संस्कृति के अध्ययन के लिए किताब - उल - हिन्द अत्यंत महत्वपूर्ण पुस्तक है।

प्रश्न 8. इब्नबतूता द्वारा दास प्रथा के संबंध में दिए गए साक्ष्यो की विवेचन कीजिए।

उत्तर - इब्नबतूता के विवरण से पता चलता है कि चौदहवीं शताब्दी में भारत में दास प्रथा का प्रचलन व्यापक रूप से था। दासों की खुलेआम बिक्री होती थी। जगह- जगह पर दासो की बिक्री के लिए बाजार लगते थे। राजघराने और कुलीन परिवारों में दास बडी संख्या में रखे जाते थे। सामान्य लोग भी अपनी आर्थिक स्थिति के अनुसार एक-दो दास रख लेते थे। स्त्री- दास अर्थात् दासियाँ भी रखी जाती थी। दास- दासियो को हमलों और अभियानों के दौरान बलपूर्वक प्राप्त किया जाता था। दासों को भेट के रूप में देने की प्रथा का प्रचलन था। स्वयं इब्नबतूता ने सिंध पहुचने पर दिल्ली सुल्तान मुहम्मद बिन तुगलक को भेंट करने के लिए घोड़े, ऊँट और दास खरीदे थे। सुल्तान किसी व्यक्ति विशेष से प्रसन्न होन पर उसे इनाम के रूप में दास प्रदान करते थे। दास-दासी सामान्यता स्वामी के नौकर के रूप में कार्य करते थे एवं उनका मूल्य उनके काम और योग्यता के अनुसार निर्धारित किया जाता था। दासों से आर्थिक कार्यो में भी सहायता ली जाती थी। उनसे गुप्तचरी का काम भी लिया जाता था और विशेष अवसरो पर दासदासी मुक्त भी किए जाते थे ।

प्रश्न 9. चिश्ती सिलसिला का संक्षेप में उल्लेख करें ?

उत्तर - भारत में चिश्ती - सिलसिले का संस्थापक ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती को माना जाता है। उनके उत्तराधिकारियों ख्वाजा बख्तियार काकी, बाबा फरीद, हजरत निजामुद्दीन औलिया, हजरत अलाउद्दीन साबिर, नसरुद्दीन चिराग-ए- दिल्ली ने उत्तरी भारत में इस संप्रदाय को लोकप्रिय बनाया।

दक्षिण में शेख बुरहानुद्दीन गरीब और गेसूदराज ने इसका प्रचार किया । चिश्ती सूफियों से सादा जीवन एवं संगीत को बहुत अधिक महत्व दिया। सीधी-सादी हिंदी भाषा में संगीत - सभाओं द्वारा वे जनमानस को आकृष्ट करने में सफल हुए। चिश्ती संप्रदाय के सिद्धांत उसकी लोकप्रियता का प्रमुख कारण था। 

चिश्ती सूफी सिद्धांत- संयमपूर्ण जीवन व्यतीत करना, निर्धनता में विश्वास रखना, धन एवं संपत्ति से घृणा करना, अमीरों, सामंतो एवं राजाओं से संपर्क नहीं रखना, मानव सेवा करना, ईश्वर में विश्वास करना, खानकाओं की स्थापना करना और धार्मिक सहिष्णुता का पालन करना था।

प्रश्न 10. पिछली दो शताब्दियों में हंपी के भवनावशेषों के अध्ययन में कौन सी पद्धतियों का प्रयोग किया गया है ? आपके अनुसार यह पद्धति विरुपाक्ष मंदिर के पुरोहितों द्वारा प्रदान की गई जानकारी का किस प्रकार पूरक रहीं ?

उत्तर - आधुनिक कर्नाटक राज्य का एक प्रमुख पर्यटन स्थल हंपी है जिसे 1976 ईस्वी में राष्ट्रीय महत्व के रूप में मान्यता मिली। हंपी के भवनावशेष 1800 ईसवी में एक अभियंता तथा पुरातत्वविद कर्नल कालिन मैकेंजी द्वारा प्रकाश में लाए गए थे। जो ईस्ट इंडिया कंपनी में कार्यरत थे, हंपी का पहला सर्वेक्षण मानचित्र तैयार किया। उनके द्वारा प्राप्त शुरुआती जानकारियां विरुपाक्ष मंदिर तथा पंपा देवी के पूजा स्थल के पुरोहितों की स्मृतियों पर आधारित थी। कालांतर में 1856 ईसवी में एलेग्जेंडर ग्रनिलो ने हंपी के पुरातात्विक अवशेषों के विस्तृत चित्र लिए इसके परिणाम स्वरूप शोधकर्ता उनका अध्ययन कर पाए। 1836 ईस्वी से ही अभिलेख कर्ताओं ने यहां और हंपी के अन्य मंदिरों से कई दर्जन अभिलेखों को इकट्ठा करना प्रारंभ कर दिया। इतिहासकारों ने इन स्रोतों का विदेशी यात्रियों के बृत्तांतो और तेलगु, कन्नड़, तमिल एवं संस्कृत में लिखे गए साहित्य से मिलान किया, इनसे उन्हें साम्राज्य के इतिहास के पुनर्निर्माण में महत्वपूर्ण सहायता मिली। 1876 ईसवी में जे. एफ. फ्लीट ने पुरास्थल के मंदिर की दीवारों के अभिलेखों का प्रलेखन प्रारंभ किया। जो विरुपाक्ष मंदिर के पुरोहितों द्वारा प्रदत सूचनाओं की पुष्टि करता है। निसंदेह यह पद्धति विरुपाक्ष मंदिरों के पुरोहित द्वारा प्रदत सूचनाओं की पूरक थी।

प्रश्न 11. मुगल भारत में जमीदारों की भूमिका का वर्णन कीजिए ?

उत्तर - मुगल भारत में जमीदार भूमि के मालिक होते थे। इन्हें ग्रामीण समाज में ऊंची हैसियत की वजह से कुछ खास सामाजिक और आर्थिक सुविधा मिली हुई थी। समाज में जमीदारों की उच्च स्थिति के दो कारण थे पहला उनकी जाति और दूसरा उनके द्वारा राज्य को दी जाने वाली विशेष सेवाएं। जमीदारों की समृद्धि की वजह थी उनकी विस्तृत व्यक्तिगत जमीन। इससे मिल्कियत यानी संपत्ति कहते थे। मिल्कियत जमीन पर जमींदार की निजी इस्तेमाल के लिए खेती होती थी। ज़मीदार अपनी इच्छा अनुसार इन जमीनों को बेच सकते थे, किसी और के नाम कर सकते थे और उन्हें गिरवी रख सकते थे। जमीदारों को राज्य की ओर से कर जमा करने का भी अधिकार प्राप्त था। इसके बदले उन्हें वित्तीय मुआवजा मिलता था। सैनिक संसाधन जमींदारों की शक्ति का एक अन्य स्रोत था। अधिकतर जमीदारों के पास अपने किले अपनी सैनिक टुकड़ी भी होती थी एवं उनके पास घुड़सवार तोपखाने और पैदल सिपाही भी रहते थे। यदि हम मुगलकालीन गांव में सामाजिक संबंधों को एक पिरामिड के रूप में देखें तो जमीदार इसके संकरे शीर्ष का भाग थे। जमीदारों में कृषि लायक जमीन को बसाने में अग्रणी भूमिका निभाई और किसानों को खेती के साजो- समान एवं उधार देकर उन्हें वहां बसने के लिए प्रेरित किया।

प्रश्न 12. 16 वीं और 17 वीं सदी में जंगल वासियों की जिंदगी किस तरह बदल गई ?

उत्तर - 16वीं और 17वीं सदी में जंगल वासियों की जिंदगी काफी हद तक बदल गई। जंगलों से प्राप्त उत्पाद जैसे शहद लाह तथा मधुमोम की बहुत अधिक मांग थी। लाख जैसे कुछ वस्तुएं तो 17 वीं सदी में भारत से समुद्री पार होने वाले नियत के मुख्य वस्तुएं थी। इस पार के तहत वस्तुओं का आदान प्रदान भी होता था। कुछ कबीले भारत और अफगानिस्तान के बीच होने वाले जमीनी व्यापार में लगे हुए थे जैसे कि पंजाब का लोहनी कबीला। इस कबीले के लोग गांव और शहर के बीच होने वाले व्यापार में लगे हुए थे। सामाजिक कारणों का असर एवं व्यवसायिक खेती का असर जंगल वासियों के जिंदगी पर भी पड़ता था। कबीला व्यवस्था से राज तांत्रिक प्रणाली की तरफ संक्रमण बहुत पहले ही प्रारंभ हो चुका था। परंतु ऐसा लगता है कि 16 वीं सदी में आकर ही यह प्रक्रिया पूरी तरह विकसित हुई। इन बातों की जानकारी हमें उत्तर पूर्वी क्षेत्र में कबीला राज्य के बारे में आईने अकबरी की बातों से मिलती है। जंगल में कई कबीले रहते थे। इनका एक सरदार होता था। कुछ राजा बन गए तथा उन्होंने सेना तैयार की। सिंध इलाके के कबीला सेना में 6000 घुड़सवार और 7000 पैदल सिपाही होते थे। 16 वी शताब्दी में भी राजतंत्र प्रणाली विकसित हुई। जैसे की अहोम राजा ।

प्रश्न 13. मुगल काल में मुद्रा व्यापार की महत्त्व की विवेचना कीजिए ?

उत्तर - मुगल काल में भारत के समुद्र व्यापार में अत्यधिक वृद्धि हुई और कई नए कार्यों की शुरुआत हुई। लगातार इस बढ़ते व्यापार के कारण भारत से दिखने वाले वस्तुओं के भुगतान के रूप में एशिया में भारी मात्रा में चांदी आई। इस चांदी का एक बड़ा हिस्सा भारत में पहुंच गया। यह भारत के लिए एक अच्छी बात थी क्योंकि यहां चांदी के प्राकृतिक भंडार नहीं थे 16 वीं 18वीं शताब्दी के बीच भारत में धातु मुद्रा विशेषकर चांदी के रुपयों की उपलब्धि में स्थितिरता बनी रही। इस प्रकार उद्योग जगत में इस काल में विशेष वृद्धि हुई। इटली का एक यात्री जोवानी कारेरि जो लगभग 1690ईस्वी में भारत से गुजरा था ने इस बात का सजीव चित्रण किया है कि किस प्रकार चांदी संसार से भारत में पहुंची थी। गांव में भी लेनदेन की व्यापार में वृद्धि हुई। गांव के शहरी रोजगार से जुड़े कारोबार में वृद्धि हुई और इस प्रकार गांव मुद्रा बाजार का अंग बन गए। लेनदेन के कारोबार के कारण उनका दैनिक भुगतान सरल हो गया।


प्रश्न 14. इतिवृत्त से आप क्या समझते हैं ? इनका मुख्य उद्देश्य क्या था ?

उत्तर - इतिवृत्त मुख्य रूप से मुगल काल में लिखे गये दस्तावेज थे। ये दस्तावेज प्रमुख रूप से मुगल बादशाहों द्वारा लिखवाये जाते थे। मुगल बादशाहों द्वारा तैयार कराए गए इतिवृत्त साम्राज्य और उसके दरबार के अध्ययन के महत्वपूर्ण स्रोत हैं।

इतिवृत्तों की रचना के मुख्य उद्देश्य -

1. शासक की भावी पीढ़ी को शासन की सम्पूर्ण जानकारी उपलब्ध करवाना।

2. मुगल शासकों के विरोधियों को चेतावनी देना तथा यह बताना कि विद्रोह का परिणाम असफलता है।

3. इतिवृत्तों के लेखक मुख्यतः दरबारी होते थे |

4. इतिवृत्तों के मुख्य विषय थे- शासनकाल की घटनाएँ, शासक का परिवार, दरबार तथा अभिजात्यवर्ग, युद्ध आदि ।

प्रश्न 15. ईस्ट इंडिया कंपनी जमींदारों को नियंत्रित और विनयमित करने के लिए क्या कदम उठाये ?

उत्तर - कंपनी ज़मींदारों को पूरा महत्त्व तो देती थी पर वह उन्हें नियंत्रित तथा विनियमित करना, उनकी सत्ता को अपने वश में रखना और उनकी स्वायत्तता को सीमित करना भी चाहती थी। फलस्वरूप ईस्ट इंडिया कंपनी ने जमींदारों को नियंत्रित और विनयमित करने के लिए निम्नलिखित कदम उठाये।

a. ज़मींदारों की सैन्य टुकड़ियों को भंग कर दिया गया, सीमा शुल्क समाप्त कर दिया गया और उनकी कचहरियों को कंपनी द्वारा नियुक्त कलेक्टर की देखरेख में रख दिया गया।

b. ज़मींदारों से स्थानीय न्याय और स्थानीय पुलिस की व्यवस्था करने की शक्ति छीन ली गई।

c. समय के साथ-साथ, कलेक्टर का कार्यालय सत्ता के एक विकल्पी केंद्र के रूप में उभर आया और ज़मींदार के अधिकार को पूरी तरह सीमित एवं प्रतिबंधित कर दिया गया।

प्रश्न 16. साहूकारों जमींदारों और औपनिवेशिक राज्य के विरुद्ध संथाल विद्रोह के कारणों की व्याख्या कीजिय ।

उत्तर - साहूकारों ज़मींदारों और औपनिवेशिक राज्य के विरुद्ध संथाल विद्रोह (1855-56) के निम्नलिखित कारण थे।

1. संथालों के नियंत्रण वाली भूमि पर सरकार (राज्य) भारी कर लगा रही थी।

2. साहूकार ( दिकू) बहुत ऊंची दर पर ब्याज लगा रहे थे तथा कर्ज न अदा करने की स्थिति मे जमीन पर कब्जा कर लेते थे।

3. जमींदार लोग दामिन इलाके में अपने नियंत्रण कर उस पर दावा कर रहे थे।

4. संथाल लोग महसूस करने लगे कि एक आदर्श संसार का निर्माण, जहाँ उनका अपना शासन हो, जर्मीदार, साहूकार और औपनिवेशक राज्य के खिलाफ विद्रोह अनिवार्य है।

प्रश्न 17. 1857 की क्रांति का तत्कालीन कारण क्या था ?

उत्तर - गवर्नर जनरल हाडिंग ने सैनिकों के हथियारों में परिवर्तन लाने का प्रयास किया। 1856 ईसवी में उसने सैनिको की पुरानी बंदूक "ब्राउन बैस" के स्थान पर "एनफील्ड राइफल नामक नई बंदूकें देने का निश्चय किया। इन राइफलो का प्रयोग करने के लिए कारतूसो को राइफल में भरने से पूर्व मुंह से खोलना पड़ता था। जनवरी 1857 ई. में बंगाल के कपुर छावनी में यह समाचार फैल गई कि इन कारतूसों में गाय और सुअर की चर्बी लगी हुई थी जिससे हिंदू और मुस्लिम सैनिकों में आक्रोश उत्पन्न हो गया। 29 मार्च 1857 ईस्वी को मंगल पांडे नामक एक ब्राह्मण ने बैरकपुर छावनी में अपने अफसरों के विरुद्ध विद्रोह कर दिया। इस प्रकार चर्बी वाले कारतूस 1857 के विद्रोह का तात्कालिक कारण बना।

प्रश्न 18. 1857 के विद्रोह में अफवाहों की क्या भूमिका थी ?

उत्तर - 1857 के विद्रोह में अफवाहों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी जो इस प्रकार है-

(क) 1857 की सबसे महत्वपूर्ण अफवाह यह थी कि एनफील्ड राइफल की कारतूस में गाय और सुअर की चर्बी लगी हुई थी।

(ख) ऐसी अफवाह फैली की कंपनी सरकार हिंदू- मुसलमानों की जाति और धर्म को नष्ट करने का षड्यंत्र कर रही है और इसके लिए सरकार ने आटा में गाय और सुअर की हड्डियों का मिश्रण किया है |

(ग) यह अफवाह फैल चुकी थी कि 23 जून 1857 को कंपनी शासन के 100 वर्ष पूरे होते ही अंग्रेजों की सत्ता समाप्त हो जाएगी। और इसका जनमानस पर गहराप्रभाव पड़ा।

प्रश्न 19. औपनिवेशिक शहरों में रिकॉर्ड्स संभाल कर क्यों रखे जाते थे ?

उत्तर - औपनिवेशिक शहरों में रिकॉर्ड शहरीकरण के विकास की गति को जानने के लिए संभाल कर रखे जाते थे। इनसे निम्नलिखित बातों का पता चलता था -

(a) शहरों की जनसंख्या के उतार-चढ़ाव का पता लगाया जा सकता था।

(b) शहरों में हो रही व्यापारिक गतिविधियों का पता चलता था।

(c) सामाजिक जीवन का पता लगाया जा सकता था।

(d) शहरों के विकास के लिए और क्या किया जाना चाहिए, का पता लगाया जाता था।

(e) बढ़ते हुए शहरों में जीवन की गति और दिशा को नियंत्रण किया जा सकता था।

प्रश्न 20. 1940 के प्रस्ताव के जरिए मुस्लिम लीग ने क्या मांग की ?

उत्तर - 1940 में मुस्लिम लीग ने उपमहाद्वीप के मुस्लिम बहुल इलाकों के लिए सीमित स्वायत्तता की माँग की इस प्रस्ताव में कहीं भी विभाजन या पाकिस्तान का उल्लेख नहीं था। इस प्रस्ताव को लिखने वाले पंजाब के प्रधानमंत्री और यूनियनिस्ट पार्टी के नेता सिकंदर हयात खान ने 1 मार्च, 1941 को पंजाब असेंबली को संबोधित करते हुए यह कहा था कि वह ऐसे पाकिस्तान की अवधारणा के विरुद्ध हैं जिसमें "यहाँ मुस्लिम राज और बाकी जगहों पर हिंदू राज होगा..." यदि पाकिस्तान का अर्थ यह है कि पंजाब में विशुद्ध मुस्लिम राज स्थापित होने वाला है तो मेरा उससे कोई संबंध नहीं है।" उन्होंने अपने विचारों को संघीय इकाइयों के लिए उल्लेखनीय स्वायत्तता के आधार पर एक ढीले-ढाले (संयुक्त) महासंघ की स्थापना के समर्थन में फिर से दोहराया।

प्रश्न 21. आम लोग विभाजन को किस तरह देखते थे ?

उत्तर - आम लोग विभाजन को भिन्न-भिन्न नजरों से देख रहे थे। जैसे -

1. कुछ लोगों को लगता था कि शांति के स्थापित होते ही वे अपने-अपने घरों को लौट जाएँगे। वे इसे कोई स्थायी प्रक्रिया नहीं मान रहे थे।

2. विभाजन के दंगों से बचे कुछ लोग इसे मारा मारी, मार्शल लॉ, रौला, हुल्लड़ आदि शब्दों से संबोधित कर रहे थे।

3. कुछ लोग इसे एक प्रकार का गृहयुद्ध मान रहे थे।

4. कुछ ऐसे भी लोग थे जो स्वयं को उजड़ा हुआ और असहाय अनुभव कर रहे थे। उनके लिए यह विभाजन उनसे बचपन की यादें छीनने वाला तथा मित्रों तथा रिश्तेदारों से तोड़ने वाला मान रहे थे।

प्रश्न 22. कुछ लोगों को ऐसा क्यों लगता था कि बँटवारा बहुत ही अचानक हुआ ?

उत्तर - मुस्लिम लीग द्वारा पाकिस्तान की माँग पूरी तरह स्पष्ट नहीं थी। उपमहाद्वीप के मुस्लिम बहुल प्रदेशों के लिए सीमित स्वायत्तता की माँग से लेकर विभाजन होने के बीच बहुत ही कम समय लगा केवल सात साल कोई नहीं जानता था कि पाकिस्तान के गठन का क्या अर्थ होगा और उससे भविष्य में लोगों का जीवन कैसा होगा। 1947 में अपने मूल प्रदेश को छोड़कर नयी जगह जाने वाले अनेक लोगों को यही लगता था कि जैसे ही शांति स्थापित होगी, वे लौट आएँगे। आरंभ में मुस्लिम नेताओं ने भी एक संप्रभु राज्य के रूप में पाकिस्तान की माँग पर कोई विशेष बल नहीं दिया था। स्वयं जिन्ना भी पाकिस्तान की सोच को सौदेबाजी में एक पैंतरे के रूप में ही प्रयोग कर रहे थे। इसका उद्देश्य सरकार द्वारा कांग्रेस की मिलने वाली रियायतों पर रोक लगाना तथा मुसलमानों के लिए और अधिक रियायतें प्राप्त करना था। दूसरे विश्व युद्ध के कारण अंग्रेज विश्व राजनीति में कमजोर पड़ गए। इधर 1942 में आरंभ हुए विशाल भारत छोड़ो आंदोलन के परिणामस्वरूप अंग्रेजों को झुकना पड़ा और संभावित सत्ता हस्तांतरण के लिए भारतीय पक्षों के साथ बातचीत के लिए तैयार हो गए। और 15 अगस्त 1947 ई को भारत आजाद हो गया।

प्रश्न 23. विभाजन के खिलाफ़ महात्मा गाँधी की दलील क्या थी ?

उत्तर - गाँधी जी प्रारंभ से ही देश के विभाजन के विरुद्ध थे। वह किसी भी कीमत पर विभाजन को रोकना चाहते थे। अतः वह अंत तक विभाजन का विरोध करते रहे। विरोध स्वरूप उन्होंने कहा था कि विभाजन उनकी लाश पर होगी। उन्होंने एक प्रार्थना सभा में अपने भाषण में कहा था, कि मैं फिर वह दिन देखना चाहता हूँ जब हिंदू और मुसलमान आपसी सलाह के बिना कोई काम नहीं करेंगे। मैं दिन-रात इसी आग में जला जा रहा हूँ कि उस दिन को जल्दी से जल्दी साकार करने के लिए क्या करूँ। लीग से मेरी गुजारिश है कि वे किसी भी भारतीय को अपना शत्रु न मानें हिंदू एवंमुसलमान, दोनों एक ही मिट्टी से उपजे हैं, उनका खून एक है, वे एक जैसा भोजन करते हैं, एक ही पानी पीते हैं, और एक ही जबान बोलते हैं।

इसी प्रकार 26 सितम्बर 1946 ई० को महात्मा गाँधी ने 'हरिजन' में लिखा था, किन्तु मुझे विश्वास है कि मुस्लिम लीग ने पाकिस्तान की जो माँग उठायी है, वह पूरी तरह गैर- इस्लामिक है और मुझे इसको पापपूर्ण कृत्य कहने में कोई संकोच नहीं है। इस्लाम मानवता की एकता और भाईचारेका समर्थक है न कि मानव परिवार की एकजुटता को तोड़ने का। जो तत्व भारत को एक-दूसरे के खून के प्यासे टुकड़ों मैं बाँट देना चाहते हैं, वे भारत और इस्लाम दोनों के शत्रु हैं। भले ही वे मेरी देह के टुकड़े-टुकड़े कर दें, किन्तु मुझसे ऐसी बात नहीं मनवा सकते, जिसे मैं गलत मानता हूँ। उन्होंने प्रत्येक स्थान पर अल्पसंख्यक समुदाय को (वह हिंदू हो या मुसलमान) सांत्वना प्रदान की। उन्होंने भरसक प्रयास किया कि हिंदू-मुसलमान एक दूसरे का खून न बहाएँ बल्कि परस्पर मिल-जुलकर रहें।

प्रश्न 24. कैबिनेट मिशन योजना भारत क्यों आया था ?

उत्तर -

1. ब्रिटिश सरकार से भारतीय नेतृत्व को शक्तियों के हस्तांतरण पर चर्चा करने के उद्देश्य से कैबिनेट मिशन भारत आया था। इसका उद्देश्य भारत की एकता की रक्षा करना और उसकी स्वतंत्रता प्रदान करना था |

2. भारत का राजनीतिक रुप रेखा तय करने के लिए मार्च 1946 में ब्रिटेन के प्रधानमंत्री एटली ने भारत में एक तीन सदस्यीय उच्च स्तरीय शिष्टमंडल भेजा।

3. इस शिष्टमंडल में ब्रिटिश कैबिनेट के तीन सदस्य- लार्ड पैथिक लारेंस (अध्यक्ष), सर स्टेफर्ड क्रिप्स तथा ए.वी. अलेक्जेंडर थे। इस प्रतिनिधिमंडल को कैबिनेट मिशन के नाम से जाना जाता है।

4. कैबिनेट मिशन योजना के अनुसार 1946 में दोबारा प्रांतीय चुनाव हुआ। जिसमें कांग्रेस पार्टी को सामान्य सीटों पर एक तरफा सफलता मिली।

5. जबकि मुस्लिम लीग को उसके मुस्लिम आरक्षित सीटों पर ही जीत मिली वह भी पूर्ण सीटों पर नहीं।

6. अतः मुस्लिम लीग ने अलग पाकिस्तान राष्ट्र की मांग को मजबूत किया और प्रत्यक्ष कार्यवाही आंदोलन चलाया।

प्रश्न 25. प्रत्यक्ष कार्यवाही दिवस से क्या अभिप्राय है ?

उत्तर - कैबिनेट मिशन योजना की सिफारिशों को कुछ शर्तों के साथ कांग्रेसी एवं मुस्लिम लीग ने स्वीकार कर लिया और कैबिनेट मिशन योजना के तहत 1946 में चुनाव हुआ जिसमें मुस्लिम लीग को कांग्रेस पार्टी की तुलना में बहुत कम सीटें मिली जिससे मुस्लिम लीग बौखला गया। और अलग पाकिस्तान की मांग पर अड़ गया तथा पूरा नहीं होने पर सीधी कार्यवाही करने की धमकी दी। और 16 अगस्त 1946 को प्रत्यक्ष कार्यवाही दिवस के रुप में मनाया।

उसी दिन कोलकाता में दंगा भड़क उठा जो कई दिनों तक चलता रहा। जिससे कई हजार लोगों की जाने चली गई, खून की होली खेली जाने लगी | मार्च 1947 ई तक उत्तर भारत के अनेक भागों को हिंसा की आग ने अपनी चपेट में ले लिया। संपूर्ण देश गृहयुद्ध की आग में जलने लगी। इन सांप्रदायिक दंगों के कारण कानून व्यवस्था पूरी तरह समाप्त हो गई और शासन व्यवस्थाऐं बिखर गई। इसका मुख्य उद्देश्य हिंदू-मुस्लिम दंगे उत्पन्न करके यह सिद्ध करना था कि हिंदू और मुस्लिम समुदाय एक साथ नहीं रह सकते। अतः देश को भयंकर विनाश से बचाने के लिए कांग्रेस ने विभाजन को स्वीकार कर लेना ही श्रेयस्कर समझा।

प्रश्न 26. संविधान सभा के प्रमुख समितियों का वर्णन करें ?

उत्तर - संविधान के निर्माण का कार्य करने के लिए अनेक समितियां बनाई गई जिनमें प्रमुख थी -

1. डॉ. राजेंद्र प्रसाद की अध्यक्षता में संचालन समिति।

2. पं. जवाहरलाल नेहरु की अध्यक्षता में संघ संविधान समिति।

3. सरदार वल्लभ भाई पटेल की अध्यक्षता में प्रांतीय संविधान समिति।

4. जे. बी. कृपलानी की अध्यक्षता में राष्ट्रीय ध्वज समिति।

5. भीमराव अंबेडकर की अध्यक्षता में 7 सदस्यों की प्रारूप समिति ।

प्रश्न 27. संघ सूची, राज्य सूची एवं समवर्ती सूचीओं का संक्षिप्त वर्णन कीजिए ?

उत्तर -

संघ सूची :- संघ सूची में वे विषय रखे गए जो राष्ट्रीय महत्व के हैं तथा जिनके बारे में देश भर में एक समान नीति होना आवश्यक है जैसे प्रतिरक्षा, विदेश नीति, डाक, तार एवं टेलीफोन, रेल, मुद्रा, बीमा एवं विदेशी व्यापार इत्यादि इस सूची में कुल 97 विषय हैं।

राज्य सूची :- राज्य सूची में प्रादेशिक महत्व के विषय सम्मिलित किए गए थे जिन पर कानून बनाने का अधिकार राज्य सरकारों को दिया गया। राज्य सूची के विषय में कृषि, पुलिस, जेल, चिकित्सा, स्वास्थ्य, सिंचाई एवं मालगुजारी आदि, इन विषयों की संख्या 66 थी।

समवर्ती सूची :- समवर्ती सूची में 47 विषय थे इस सूची के विषयों पर केंद्र तथा राज्य दोनों कानून बना सकते हैं, परंतु किसी विषय पर यदि संसद और राज्य के विधान मंडल द्वारा बनाए गए कानूनों में विरोध होता है तो संसद द्वारा बनाए गए कानून ही मान्य होंगे। समवर्ती सूची के विषय हैं बिजली, विवाह कानून, मूल्य नियंत्रण समाचार पत्र छापेखाने, दीवानी कानून, शिक्षा एवं जनसंख्या नियंत्रण और परिवार नियोजन आदि।

प्रश्न 28. उद्देश्य प्रस्ताव में किन आदर्शों पर जोर दिया गया ?

उत्तर - पंडित जवाहरलाल नेहरू द्वारा 13 दिसंबर 1946 ई. को संविधान सभा के सामने एक ऐतिहासिक प्रस्ताव प्रस्तुत किया गया जिसे उद्देश्य प्रस्ताव के नाम से जाना जाता है। इस ऐतिहासिक प्रस्ताव में भारतीय संविधान के मूल आदर्शों की व्याख्या प्रस्तुत की गई तथा संविधान सभा के कार्य को आगे बढ़ाने के लिए आवश्यक सुझाव दिए गए, इस प्रस्ताव में भारत को एक स्वतंत्र संप्रभु गणराज्य घोषित किया गया तथा नागरिकों को स्वतंत्रता, समानता और न्याय का आश्वासन दिया गया था।

प्रश्न 29. भारतीय संविधान के प्रारूप समिति के क्या कार्य थे ?

उत्तर - संविधान का प्रारूप तैयार करने के लिए 29 अगस्त 1947 को संविधान सभा द्वारा प्रारूप समिति का गठन किया गया, इस समिति के अध्यक्ष डॉ. भीमराव अंबेडकर थे। प्रारूप समिति का काम था कि वह संविधान सभा के परामर्श शाखा द्वारा तैयार की गई संविधान का परीक्षण करें और संविधान के प्रारूप को विचारार्थ संविधान सभा के सम्मुख प्रस्तुत करे प्रारूप समिति ने भारतीय संविधान का जो प्रारूप तैयार किया वह फरवरी 1948 में संविधान सभा के अध्यक्ष को सौंपा गया।

प्रश्न 30. भारतीय संविधान सभा ने भाषा के विवाद को कैसे हल किया ?

उत्तर - भारतीय संविधान सभा ने भाषा के विवाद को हल करने के लिए लगभग तीन वर्ष बाद अपनी रिपोर्ट पेश की, समिति ने सुझाव दिया कि देवनागरी लिपि में लिखी हिंदी भारत की राजकीय भाषा होगी, समिति का मानना था कि हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने के लिए धीरे-धीरे आगे बढ़ना चाहिए, पहले 15 वर्षों तक सरकारी कामों में अंग्रेजी का इस्तेमाल होना चाहिए । संविधान सभा ने प्रत्येक प्रांत को अपने कामों के लिए क्षेत्रीय भाषा चुनने का अधिकार प्रदान किया। संविधान की भाषा समिति ने हिंदी को राष्ट्रभाषा की बजाय राजभाषा कहकर हिंदी के समर्थकों और विरोधियों को शांत करने के उपाय और सर्वस्वीकृत समाधान पेश करने का प्रयास किया था।

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