Self Studies

MP Board 12th 2023 : इतिहास VVI Important Question with Solution

MP Board 12th 2023 : इतिहास  VVI Important Question with Solution

SHARING IS CARING

If our Website helped you a little, then kindly spread our voice using Social Networks. Spread our word to your readers, friends, teachers, students & all those close ones who deserve to know what you know now.

Self Studies Self Studies

MP Board 12th 2023 : इतिहास VVI Important Question with Solution

यहां इतिहास 12वी Exam 2023 के लिए New Blue Print पर आधारित Most Important Subjective Questions-Answer  दिए गए है. ये प्रश्न (Question ) Study Material के रूप में तैयार किये गए. जो आपके Paper के लिए बहुत महत्वपूर्ण है और ये Most Important Question तैयारी को और बेहतर बना सकते है I

Most Important Question

प्रश्न : 1. प्रागैतिहासिक काल से आप क्या समझते हैं ?

उत्तर- प्रागैतिहासिक युग (काल) का अर्थ- मानव जीवन की एक लंबी कहानी है जो लाखों वर्षों पूर्व से प्रारंभ होती है। कहानी का कुछ भाग हमें लिखित रूप से मिलता है इसी को हम इतिहास मानते हैं, किन्तु जब मानव ने लिखना, पढ़ना सीखा, उससे पूर्व लाखों वर्षों तक वह इस पृथ्वी पर विचरण कर चुका था। इस युग का मानव लिखना-पढ़ना नहीं जानता था। इसी कारण इस काल की जानकारी के लिए कोई लिखित सामग्री उपलब्ध नहीं है। पुरातत्ववेत्ताओं ने अथक परिश्रम करके इनकी जानकारी प्राप्त की है। उन्होंने अनेक स्थानों में खुदाई करवाकर इस काल के औजारों, हथियारों, जानवरों तथा मनुष्य के अस्थिपंजर प्राप्त किये हैं जिनसे इस काल के सम्बन्ध में जानकारी प्राप्त होती है। इसी काल को प्रागैतिहासिक काल कहते हैं अर्थात् इतिहास के काल से पूर्व का काल प्रागैतिहासिक युग कहलाता है।

प्रश्न : 2. प्राचीन भारतीय इतिहास की संरचना के स्रोतों का वर्णन कीजिए।

उत्तर-

(1) धार्मिक एवं अन्य ग्रन्थ- वेद, ब्राह्मण ग्रन्थ, उपनिषद, पुराण, रामायण, महाभारत, जैन तथा बौद्ध ग्रन्थ।।

(2) ऐतिहासिक ग्रन्थ- कौटिल्य का अर्थशास्त्र, बाण का हर्षचरित, कल्हण की राजतरंगिणी, विशाखदत्त का मुद्राराक्षस, चन्दबरदाई का पृथ्वीराजरासो, गार्गी संहिता आदि।

(3) विदेशी विवरण- विदेशी यात्री फाह्यान, ह्वेनसांग, अलबरूनी, हेरोडोटस, एरियन आदि।

(4) अभिलेख- अभिलेखों, स्तम्भों, शिलाओं, गुफाओं, मूर्तियों, पात्रों तथा तामपत्रों पर लिखे एवं उत्कीर्ण लेख।

प्रश्न : 3. महावीर स्वामी के त्रिरत्न क्या थे ?

उत्तर- महावीर स्वामी ने कर्म के बन्धनों के विनाश और कैवल्य ज्ञान की प्राप्ति के लिए तीन साधनों के अनुकरण का उपदेश दिया, जिसे जैन धर्म में त्रिरत्न कहते हैं। ये त्रिरत्न मनुष्य को निर्वाण की अवस्था तक पहुँचने में मदद दे सकते हैं।

(1) सम्यक् ज्ञान-सम्यक् ज्ञान से तात्पर्य है सच्चा और सम्पूर्ण ज्ञान, जो तीर्थंकरों के उपदेशों से प्राप्त होता है।

(2) सम्यक् दर्शन-सम्यक् दर्शन का अर्थ है, तीर्थंकरों में पूरी श्रद्धा और अखण्ड विश्वास तथा सत्य के प्रति श्रद्धा रखना।

(3) सम्यक् चरित्र-इसे सम्यक् व्यवहार भी कहते हैं। इसका अर्थ है सदाचार पूर्ण जीवन व्यतीत करना। जब मनुष्य अपनी इन्द्रियों तथा कर्मों पर पूरा नियंत्रण कर लेता है तथा इन्द्रियों की विषय वासना में नहीं फँसता तो उसका आचरण शुद्ध हो जाता है।

प्रश्न : 4. बौद्ध धर्म के चार आर्य सत्य के बारे में आप क्या जानते हैं?

उत्तर- गौतम बुद्ध ने अपनी शिक्षा और उपदेशों में कहा है कि संसार में दु:ख ही दुःख हैं जिनके बीच मनुष्य शोक अवस्था में जीवित रहता है। ये निम्नलिखित हैं-

(1) जीवन दु:खमय है

(2) दु:ख के मूल में लिप्सा है, तृष्णा है। मनुष्य तृष्णा के अधीन है।

(3) तृष्णा से मुक्ति ही दुःख का निवारण है, असीमित इच्छाओं से दूर रहकर ही दु:खों से छुटकारा पाया जा सकता है।

(4) अष्ट मार्ग का दृढ़ता से अनुसरण कर तृष्णा को मारा जा सकता है।

प्रश्न : 5. आर्यों की वर्ण व्यवस्था का संक्षेप में वर्णन कीजिये।

उत्तर- आर्यों के भारत में स्थापित होने से उनका द्रविड़ों से सम्पर्क हुआ। आर्य गोरे और द्रविड़ काले रंग के थे। अतः आर्यों ने वर्ण (रंग) के आधार पर समाज का विभाजन दो प्रकार से किया–आर्य (गोरे लोग) तथा अनार्य (काले लोग)। आगे चलकर आर्य समाज में वर्ण व्यवस्था का स्वरूप कर्म के आधार पर स्वीकार किया गया। वह वर्ग जो धार्मिक कर्मकाण्ड एवं अध्यापन करते थे, ब्राह्मण कहलाये। सैनिक कार्य करने वाले क्षत्रिय तथा कृषि, पशुपालन और व्यापार करने वाले लोगों को वैश्य कहा गया। उपर्युक्त वर्गों की सेवा करने वालों को शूद्र की श्रेणी में रखा गया।

प्रश्न : 6. सम्राट अशोक को महान् क्यों कहा जाता है?

उत्तर- अशोक की महानता के निम्नलिखित कारण थे -

(1) महान् व्यक्तित्व-सम्राट अशोक का व्यक्तित्व महान् था। उसमें अद्भुत शौर्य, पराक्रम एवं असाधारण कल्पना शक्ति थी। उसका व्यक्तित्व मानवीय गुणों से परिपूर्ण था। इन्हीं असाधारण गुणों के कारण अशोक महान् सम्राट था।

(2) महान् आदर्श-अशोक का आदर्श महान् था। उसके आदर्श मानव जगत को लाँघकर अखिल प्राणिमात्र तक पहुँचते थे। उसका आदर्श न केवल मनुष्यों के भौतिक एवं आध्यात्मिक सुखों की अभिवृद्धि करना था वरन् पशुओं एवं प्राणियों का भी कल्याण चाहता था। उसका आदर्श उसे महानता की पंक्ति में प्रथम स्थान प्रदान करता है।

(3) महान् राष्ट्र निर्माता-अशोक ने सम्पूर्ण भारत को राष्ट्रीयता के सूत्र में बाँधने का सफल प्रयास किया। पाली भाषा को राष्ट्रभाषा बनाकर सम्पूर्ण भारत को एकता के सूत्र में बाँध दिया।

(4) महान् विजेता-अशोक महान् विजेता था। उसने कलिंग युद्ध की विजय के द्वारा यह प्रमाणित कर दिया कि वह महान् विजेता है। वह विश्व विजय कर सकता था। सम्पूर्ण संसार पर अपना झण्डा फहरा सकता था।

प्रश्न : 7. सम्राट अशोक को महान् क्यों कहा जाता है?

उत्तर- अशोक की महानता के निम्नलिखित कारण थे -

(1) महान् व्यक्तित्व-सम्राट अशोक का व्यक्तित्व महान् था। उसमें अद्भुत शौर्य, पराक्रम एवं असाधारण कल्पना शक्ति थी। उसका व्यक्तित्व मानवीय गुणों से परिपूर्ण था। इन्हीं असाधारण गुणों के कारण अशोक महान् सम्राट था।

(2) महान् आदर्श-अशोक का आदर्श महान् था। उसके आदर्श मानव जगत को लाँघकर अखिल प्राणिमात्र तक पहुँचते थे। उसका आदर्श न केवल मनुष्यों के भौतिक एवं आध्यात्मिक सुखों की अभिवृद्धि करना था वरन् पशुओं एवं प्राणियों का भी कल्याण चाहता था। उसका आदर्श उसे महानता की पंक्ति में प्रथम स्थान प्रदान करता है।

(3) महान् राष्ट्र निर्माता-अशोक ने सम्पूर्ण भारत को राष्ट्रीयता के सूत्र में बाँधने का सफल प्रयास किया। पाली भाषा को राष्ट्रभाषा बनाकर सम्पूर्ण भारत को एकता के सूत्र में बाँध दिया।

(4) महान् विजेता-अशोक महान् विजेता था। उसने कलिंग युद्ध की विजय के द्वारा यह प्रमाणित कर दिया कि वह महान् विजेता है। वह विश्व विजय कर सकता था। सम्पूर्ण संसार पर अपना झण्डा फहरा सकता था।

प्रश्न : 8. राजपूतों की उत्पत्ति से संबंधित विभिन्न सिद्धान्तों का उल्लेख कीजिए।

उत्तर- हर्ष की मृत्यु के बाद से लेकर उत्तरी भारत की तुर्को द्वारा विजय के बीच का काल राजपूत राज्यों का काल था। कुछ इतिहासकारों का मत है कि राजपूत हूण आदि उन मध्य एशियाई जातियों के वंशज थे जो भारत में ही बस गए थे। राजपूत स्वयं अपना संबंध प्राचीन क्षत्रिय वंशों से बताते हैं और स्वयं को सूर्यवंशी और चन्द्रवंशी कहते हैं। दूसरी ओर चार प्रमुख राजपूत वंश अपने आपको अग्नि कुल राजपूत कहते हैं। यह सिद्धान्त चन्दबरदायी ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘पृथ्वीराज रासो' में प्रस्तुत किया है। उसके अनुसार भगवान परशुराम ने जब सभी क्षत्रियों का नाश कर दिया तो ब्राह्मणों ने आबू पर्वत पर एक विशाल यज्ञ किया इसी यज्ञाग्नि से चार योद्धा उपजे जिन्होंने चार राजपूत वंशों चौहान, प्रतिहार, परमार और चालुक्य की स्थापना की।
किन्तु सर्वसम्मत मत यह है कि राजपूत एक मिश्रित जाति है। उसमें हूण, कुषाण और शक आदि विदेशी जातियों के वंशज भी हैं और भारत के क्षत्रियों के वंशज भी। संक्षेप में राजपूत एक बलवान, वीर और योद्धा जाति थे।

प्रश्न : 9. चोल शासकों की स्थानीय स्वशासन की विशेषताएँ लिखिए।

उत्तर- ग्रामीण प्रशासन के लिए सक्षम तथा सक्रिय स्वशासी संस्थाओं को स्थापित करना चोल प्रशासन की मुख्य विशेषता थी। दो प्रकार की ग्राम समितियाँ होती थीं- (i) उर या सभा, (ii) महासभा। उर गाँव की सामान्य समिति थी। महासभा गाँवों में वृद्धों की सभा होती थी। महासभा के सदस्य अग्रहार कहलाते थे। गाँव की अधिकांश भूमि कर मुक्त थी। गाँव में प्राय: ब्राह्मण निवास करते थे, ये स्वशासी गाँव थे। प्रबंध समिति गाँव की देखरेख करती थी। गाँव के शिक्षित भू-स्वामियों के बीच से पर्ची के द्वारा सदस्यों को चुनाव होता था। सदस्यों का कार्यकाल 3 वर्ष का होता था। अन्य समितियाँ भी थीं, जो लगान वसूलने, निर्धारित करने, व्यवस्था करने और न्याय प्रदान करने का कार्य करती थीं। कुछ महत्वपूर्ण समितियाँ व्यवस्थित ढंग से पानी दिलाने का कार्य करती थीं । महासभा को नई भूमि प्राप्त करने, ऋण प्राप्त करने तथा वसूलने के अधिकार थे। ग्राम स्वशासन की व्यवस्था एक उत्तम व्यवस्था थी, पर सामन्तवाद के विकास के साथ ही साथ ग्रामों के अधिकार सीमित हो गए।

प्रश्न : 10. मुगलों की 'दहशाला बंदोबस्त' की तीन विशेषताएँ लिखिए।

उत्तर- दहशाला बंदोबस्त की विशेषताएँ-

(i) भूमि को नापने के लिए रस्सी के स्थान पर बॉस के टुकड़ों का इस्तेमाल किया गया।

(ii) भूमि के क्षेत्रफल की इकाई बीघा मानी गई

(iii) इस व्यवस्था के अन्तर्गत कृषि योग्य भूमि को चार भागों में विभाजित किया गया।

(iv) इस व्यवस्था के तहत पिछले 10 वर्षों की उपज के औसत के आधार पर लगान की राशि निर्धारित की गई।

(v) इस व्यवस्था के तहत पैदावार का 1/3 भाग लगान सिक्कों के रूप में लिया जाता था।

प्रश्न : 11. रामकृष्ण मिशन के प्रमुख सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए।

उत्तर-रामकृष्ण मिशन का प्रमुख उद्देश्य लोगों में आध्यात्मिक उन्नति के साथ-साथ दलित और पीड़ित मानवता की सेवा करना है। 

इस मिशन के प्रमुख सिद्धान्त निम्नलिखित हैं-

(1) विभिन्न धर्मों में एकता–रामकृष्ण मिशन का विश्वास है कि विभिन्न मत व संप्रदाय मानव को एक ही गन्तव्य पर ले जाते हैं। सभी धर्मों का उद्देश्य तथा लक्ष्य एक है, परन्तु ईश्वर तक पहुँचने के साधन विभिन्न हैं।

(2) हिन्दू धर्म की महानता-हिन्दू धर्म अत्यन्त प्राचीन है तथा आध्यात्मिकता पर आधारित है। अतः इसमें सभी धर्मावलम्बियों को समन्वित करने की शक्ति तथा उदारता है। उपासना पद्धति तथा सन्यास एवं समाधि द्वारा ईश्वर प्राप्ति संभव है।

(3) मूर्ति पूजा का समर्थन-रामकृष्ण मिशन ने मूर्ति पूजा का समर्थन किया है। मूर्ति पूजा से आध्यात्मिक शक्ति का सरलता से विकास संभव है। मूर्तिपूजा के द्वारा मनुष्य मन एवं चित्त को एकाग्र कर सकता है।

(4) ईश्वर की एकता पर विश्वास-परमपिता परमात्मा सृष्टि का रचनाकार है। ईश्वर सर्वव्याप्त तथा अन्तर्यामी भी है। निराकार तथा अज्ञेय है। अत: वह एक है। आध्यात्मवाद का सहारा लेकर मनुष्य मोक्ष अर्थात् परब्रह्म में तल्लीन हो सकता है।

(5) पश्चिमी भौतिकवादी सभ्यता से सावधान-स्वामी विवेकानन्द ने लोगों को पश्चिमी भौतिकवादी सभ्यता से सचेत किया।

प्रश्न 12. सिन्धु घाटी के लोगों के धार्मिक जीवन का वर्णन कीजिए।

अथवा

सिन्धु सभ्यता के निवासियों की धार्मिक विशेषताएँ लिखिए।

उत्तर-1. बहुदेववाद- इस सभ्यता के निवासी देवी-देवताओं की आराधना करते थे तथा परम पुरुष व परम नारी की पूजा की जाती थी। कुछ ऐसी भी मूर्तियाँ प्राप्त हुई हैं, जिन पर नारी का चित्र अंकित है। इससे प्रतीत होता है कि इस सभ्यता के लोग मातृदेवी की पूजा करते थे।

2. मूर्ति पूजा- यद्यपि खुदाई में किसी भी मन्दिर के अवशेष प्राप्त नहीं हुए, फिर भी ऐसा विश्वास किया जाता है कि ये लोग मर्ति पूजक थे। उत्खनन में अनेक लिंग मूर्तियाँ व योनि मूर्तियाँ प्राप्त हुई हैं। विद्वानों का मत है कि लोग सृष्टिकारिणी शक्ति के रूप में इनकी पूजा करते थे ।

3. शिवोपासना- हड़प्पा की खुदाई से प्राप्त एक मुहर पर शिव की मूर्ति का आभास होता है। यह मूर्ति सिंहासन पर योग मुद्रा में अंकित है। इसके दायें ओर एक हाथी व व्याघ्र तथा बायीं ओर एक बारहसिंगा व भैंस हैं। सिंहासन के नीचे दो हिरण हैं। मूर्ति के सिर पर दो सींग हैं।

4. पशु पूजा व जल पूजा- खुदाई से प्राप्त मुहरों पर पशुओं के चित्र अंकित हैं। इससे विद्वानों ने यह निष्कर्ष निकाला है कि ये लोग पशुओं की पूजा भी करते थे। सिन्धु प्रदेश की खुदाई में जो जल कुण्ड प्राप्त हुआ है, उससे यह अनुमान लगाया गया है कि इस सभ्यता के व्यक्ति जल पूजा करते थे।

प्रश्न 13. “गुप्तकाल को प्राचीन भारतीय इतिहास का स्वर्णयुग कहा जाता है।” तर्क व उदाहरण सहित समझाइए।

उत्तर- गुप्तकाल को निम्न कारणों से भारतीय इतिहास का स्वर्णयुग कहा गया है –

1. यह महान् सम्राटों का युग रहा है- गुप्तकाल में अनेक महान् सम्राट हुए हैं। इनमें चन्द्रगुप्त, समुद्रगुप्त आदि प्रमुख थे। समुद्रगुप्त की तुलना नेपोलियन से की जाती है। ये सभी राजा प्रतापी व योग्य थे। भारतीय इतिहास में इनका महत्वपूर्ण स्थान रहा है।

2. इस काल में राजनैतिक एकता थी- गुप्तकाल में राजनैतिक एकता थी। राजा का पद पैतृक था। राजा अपनी सलाह के लिए मंत्रियों की परिषद् रखता था। देश में एकता होने से स्थिरता पायी गई थी।

3. शान्ति व सुव्यवस्था- गुप्तकाल में शान्ति व सुव्यवस्था थी। इसी कारण कला व साहित्य का बहुत अधिक विकास हुआ। अपराधियों को कठोर दण्ड दिया जाता था। समाज व राज्य में शान्ति थी।

4. कला व साहित्य का विकास- कला व साहित्य का विकास इस युग में बहुत हुआ । चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य के दरबार में नवरत्न थे। कालिदास संस्कृत का प्रसिद्ध विद्वान था, जो उसी के कार्यकाल में हुआ। आर्यभट्ट गणित का विद्वान था। दशमलव पद्धति का आरम्भ उसी के कार्यकाल में हुआ। वराहमिहिर विद्वान था। ज्योतिष का विकास भी इस काल में हुआ। विष्णुपुराण, मुद्राराक्षस इसी युग की देन है। अनेक ऐतिहासिक मन्दिरों का निर्माण हुआ ।

प्रश्न 14. विजयनगर साम्राज्य के पतन के कारणों का वर्णन कीजिए।

उत्तर- विजयनगर साम्राज्य के पतन के निम्नलिखित कारण थे-

1. पुर्तगालियों का आगमन- पुर्तगालियों का आगमन भी विजयनगर के लिए घातक सिद्ध हुआ। ये लोग व्यापारियों के रूप में आये थे पर समुद्रीय तटों पर अधिकार जमा कर उन्होंने विजयनगर पर अपना प्रभाव जमा लिया।

2. दक्षिण मुस्लिम राज्यों में हस्तक्षेप- कृष्णदेवराय की मृत्यु के साथ विजयनगर का विवेक भी जाता रहा था, क्योंकि रामराय जैसे शासकों ने दक्कनी राज्य की आन्तरिक राजनीति में हस्तक्षेप आरम्भ कर दिया था, जिसके फलस्वरूप दक्कनी महासंघ की स्थापना हुई और तालिकोट का युद्ध विजयनगर के लिए अन्तिम प्रहार साबित हुआ।

3. उत्तराधिकारियों की अयोग्यता- विजयनगर साम्राज्य के अयोग्य उत्तराधिकारी विजयनगर साम्राज्य के पतन का एक प्रमुख कारण थे। कृष्णदेव राय की मृत्यु के पश्चात् विजयनगर साम्राज्य में कोई भी शासक कृष्णदेव राय के समान कुशल व योग्य नहीं था। कृष्णदेव राय के पश्तचात् उनका भाई अतच्युत राय एवं उसकी मृत्यु के बाद उसका भतीजा सदाशिव राय विजयनगर के अयोग्य उत्तराधिकारी थे, जिनके कारण विजयनगर साम्राज्य का पतन हो गया।

4. सेना का सामन्तवादी स्वरूप- विजयनगर साम्राज्य की सेना सामन्तशाही स्वरूप की थी। सेना अपने सामन्त के प्रति वफादार होती थी। सामन्त का सम्राट से अवसहयोग सेना के असहयोग को जन्म देता था। सामन्तों की महत्वाकांक्षा के कारण विजयनगर साम्राज्य के सैनिक सम्राट के प्रति पूर्णतः वफादार नहीं थे।

प्रश्न 15. अकबर द्वारा राजपूतों के प्रति मित्रता की नीति अपनाने के क्या कारण थे ?

उत्तर- 1. राजपूतों का महत्व - अकबर ने राजपूतों के महत्व को भली प्रकार समझ लिया था। अतः इतनी दृढ़ और प्रतिभाशाली शक्ति से शत्रुता लेने के बजाय मित्रता के सम्बन्ध स्थापित करना कहीं उचित था ।

2. मुगलों के प्रति घृणा के भाव को समाप्त करना- मुगल अभी तक भारत में विदेशी और बर्बर समझे जाते थे। अकबर भारतीय जनता के हृदय को जीत कर भारत का वास्तविक सम्राट बनना चाहता था। वह यह महान् उद्देश्य राजपूतों को मित्र बनाकर ही प्राप्त कर सकता था ।

3. अकबर की उदार प्रवृत्ति- अकबर एक उदार हृदय सम्राट था। विद्वानों के सम्पर्क के कारण उसमें धार्मिक जातीय कट्टरता बहुत कम थी।

4. राजपूतों का पराक्रम- अकबर जानता था कि राजपूत रणक्षेत्र से भागने के स्थान पर मर जाना अधिक पसन्द करते हैं, अतः अकबर राजपूतों से प्रभावित था। अकबर यह भी जानता था कि राजपूत वचन के पक्के होते हैं, अतः उनसे मधुर सम्बन्ध रखकर अकबर अपने साम्राज्य को दृढ़ता प्रदान करना चाहता था।

प्रश्न 16. मुगल साम्राज्य के पतन के कोई चार कारण लिखिए।

उत्तर-

1. औरंगजेब का साम्राज्य, नीतियाँ व युद्ध -
 मुगल साम्राज्य के पतन में औरंगजेब की धार्मिक कट्टरता और हिन्दू विरोधी नीति प्रमुख कारणों में से एक थी। उसने अपनी उत्पीड़न की नीतियों के कारण जाटों, राजपूतों, मराठों, सिक्खों आदि को शत्रु बना लिया। जिसके कारण मुगल साम्राज्य छिन्न-भिन्न होने लगा।

2. करों की अधिकता- मुगल शासकों ने अपनी सुखसुविधाओं तथा वृद्धों के लिए प्रजा पर भारी-भारी कर लगाए, जिनको चुकाना बहुत कठिन हो गया था। किसानों और आम जनता में विद्रोह के स्वर गूंजने लगे थे।

3. साम्राज्य की विशालता- भारत एवं भारत के बाहर मुगल साम्राज्य की विशालता भी पतन का कारण बनी। कमजोर केन्द्र के कारण मुगल साम्राज्य भी टूटना आरम्भ हो गया।

4. सरदारों एवं राजकुमारों के विद्रोह- मुगल साम्राज्य के पतन में निष्ठावान सरदारों एवं राजकुमारों के विद्रोह ने भी सहायता की। सलीम, खुसरो, शाहजहाँ, औरंगजेब जैसे राज्य सरदारों के विद्रोहों ने साम्राज्य की एकता पर कुठाराघात किया।

Q.17: निम्नलिखित वाक्यों में सत्य असत्य लिखिए।

(i) बिन्दुसार के पिता का नाम अशोक था।

(ii) हर्ष ने पुलकेशिन द्वितीय को परास्त किया था।

(iii) गुप्तकाल के अधिकांश शासक वैष्णवधर्म के अनुयायी थे।।

(iv) पल्लवों की राजधानी कांची थी।

(v) पृथ्वीराज चौहान तराइन के प्रथम युद्ध में पराजित हुआ था।

Answer:

(i) असत्य

(ii) सत्य

(iii) सत्य

(iv) सत्य

(v) असत्य

Q.18: निम्नलिखित प्रश्नों का उत्तर एक शब्द अथवा एक वाक्य में लिखिए।

(i) शिवाजी की राजधानी का नाम क्या था?

(ii) इस्ट इण्डिया कम्पनी की स्थापना कब हुई?

(iii) डचों ने भारत में अपना प्रथम कारखाना कहाँ स्थापित किया ?

(iv) भारत में प्रथम पुर्तगाली गवर्नर कौन था?

(v) भारत में आने वाले सर्व प्रथम व्यापारी कौन थे?

Answer:

(i) रामगढ़

(ii) २१ दिसम्बर १६००

(ii) कोचीन

(iv) फ्रांसिस्को दे अल्मीडा

(v) पुर्तगाली

Q.19: पुरापाषाणकाल में प्रमुख भोजन के नाम लिखिए।

Answer:

भोजन – इस काल में मानव अपना भोजन कन्दमूल, फल-फूल, पशुओं का मांस आदि से प्राप्त करता था। कन्दमूल, फलों आदि को मुनष्य वनों से खाने योग्य जड़ों और कीड़े मकोड़ों को घरौंदों में एकत्रित करता था। इन के अतिरिक्त झुण्ड बनाकर जैसे सुअरों, हिरणों, बकरों आदि का शिकार करता था। इस काल का मानव झीलों व नदियों से मछली भी पकड़कर भोजन में उपयोग में लाता था।

Q.20: भारत में पुर्तगालियों के पतन के दो कारण लिखिये।

Answer:

भारत में पुर्तगालियों के पतन के निम्न कारण थे:

(1) धार्मिक असहिष्णुता-पुर्तगाली व्यापार में स्थापित होते ही ईसाई धर्म के प्रचार में संलग्न हो गये। उन्होंने हिन्दुओं तथा मुसलमानों को जबरदस्ती ईसाई बनाना आरम्भ कर दिया। इससे लोगों की उनके प्रति सहानुभूति समाप्त हो गई।

(2) व्यापारिक हितों के विपरीत कार्य-पुर्तगालियों ने अपने व्यापारिक हितों के लिए सभी प्रकार के अनैतिक कार्य किये। इससे देशी राजा तथा आम जनता उनके विरुद्ध हो गयी।

(3) अधिकारियों की अदूरदर्शिता-अल्बुकर्क के पश्चात् जितने भी अधिकारी नियुक्त किये गये वे अदूरदर्शी निकले। उन्होंने व्यक्तिगत स्वार्थ को सर्वोपरि समझा।

(4) यूरोपीय शक्तियों से संघर्ष-पुर्तगालियों की देखा-देखी डच, अंग्रेज और फ्रांसीसियों ने भी भारत में व्यापारिक कम्पनियाँ स्थापित कर लीं। अत: आगे चलकर पुर्तगाली डच, अंग्रेजों तथा फ्रांसीसियों से प्रतिस्पर्धा में टिक नहीं सके।

(5) ब्राज़ील को बसाने पर ध्यान-जब दक्षिण अमेरिका में ब्राजील की खोज हो गई, तो पुर्तगालियों का सारा ध्यान उसको बसाने में लग गया। इससे पूर्वी देशों में उन्होंने रुचि लेना कम कर दिया।

Q.21: शिवाजी की कोई चार राज्य व्यवस्थाओं को लिखिए।

Answer:

अर्थव्यवस्था (राजस्व) - शिवाजी के आय स्त्रोत को मजबूत बनाने के लिए भूमि प्रबंध पर बड़ा जोर दिया था। अर्थ व्यवस्था के सुधार हेतु उन्होंने निम्न कार्य किए –

1. जमींदारी प्रथा की समाप्ति - शिवाजी ने जागीरदारी प्रथा समाप्त कर दी थी क्योंकि जागीरदार शक्ति बढ़ाकर विद्रोह कर देते थे।

2. ईमानदार अधिकारियों की नियुक्ति – लगान वसूल के लिए ईमानदार अधिकारी नियुक्त किये गये थे। घूसखोर तथा बेईमान अधिकारियों पर कड़ी कार्यवाही का प्रावधान था।

3. जमीन की पैदाइश - जमीन की पैदाइश पर उसकी उन्होंने श्रेणियां बनवाई तथा लगान सुनिश्चित किया गया।

4. ऋण व्यवस्था - अकाल के समय किसानों को ऋण सुविधाएं प्राप्त थी वे उसे आसान किश्तों में अदा कर सकते थे।

5. ठेके की व्यवस्था - लगान वसूल करने वाले अधिकारियों पर कठोर नजर रखी जाती थी

Q.22: प्लासी युद्ध के कोई पाँच परिणाम लिखिए।

Answer:

प्लासी के युद्ध के निम्न परिणाम निकले :

1. प्लासी के युद्ध के पश्चात बंगाल पर अंग्रेजों का पूर्ण नियंत्रण स्थापित हो गया।

2. प्लासी के युद्ध के पश्चात बंगाल में ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कंपनी के गौरव में वृद्धि हुई।

3. प्लासी के युद्ध ने अंग्रेजों को भारत विजय के लिए और अधिक प्रोत्साहित किया।

4. प्लासी के युद्ध के पश्चात कंपनी को बंगाल, बिहार और उड़ीसा में स्वतंत्र व्यापार करने की छूट मिल गई।

Que : 23. पुर्तगालीयों के पतन के दो कारण लिखिए ।

Answer:

भारत में पुर्तगालियों के पतन के निम्न कारण थे:

(1) धार्मिक असहिष्णुता-पुर्तगाली व्यापार में स्थापित होते ही ईसाई धर्म के प्रचार में संलग्न हो गये। उन्होंने हिन्दुओं तथा मुसलमानों को जबरदस्ती ईसाई बनाना आरम्भ कर दिया। इससे लोगों की उनके प्रति सहानुभूति समाप्त हो गई।

(2) व्यापारिक हितों के विपरीत कार्य-पुर्तगालियों ने अपने व्यापारिक हितों के लिए सभी प्रकार के अनैतिक कार्य किये। इससे देशी राजा तथा आम जनता उनके विरुद्ध हो गयी।

(3) अधिकारियों की अदूरदर्शिता-अल्बुकर्क के पश्चात् जितने भी अधिकारी नियुक्त किये गये वे अदूरदर्शी निकले। उन्होंने व्यक्तिगत स्वार्थ को सर्वोपरि समझा।

(4) यूरोपीय शक्तियों से संघर्ष-पुर्तगालियों की देखा-देखी डच, अंग्रेज और फ्रांसीसियों ने भी भारत में व्यापारिक कम्पनियाँ स्थापित कर लीं। अत: आगे चलकर पुर्तगाली डच, अंग्रेजों तथा फ्रांसीसियों से प्रतिस्पर्धा में टिक नहीं सके।

(5) ब्राज़ील को बसाने पर ध्यान-जब दक्षिण अमेरिका में ब्राजील की खोज हो गई, तो पुर्तगालियों का सारा ध्यान उसको बसाने में लग गया। इससे पूर्वी देशों में उन्होंने रुचि लेना कम कर दिया।

Que : 24. अशोक के धर्म ( धम्म) की पाँच विशेषताएँ लिखिए ।

Answer:

अशोक के धर्म (धम्म) की विशेषताएं –

  1. अशोक का धम्म पूर्णतः उदार था जिसमें धर्मान्धता और कट्टरता नहीं थी।
     
  2. अशोक का धर्म सार्वभौम था। जिसमें प्रचलित सभी धर्मों की बातें समाहित थी | इसमें संकीर्णता को कोई भी स्थान नहीं दिया गया था।
     
  3. धम्मअहिंसा पर विशेष जोर देता है और सभी प्राणियों के प्रति दया का भाव जगाता है।
     
  4. आडम्बर पूर्ण अनुष्ठानों के स्थान पर मूल धार्मिक स्वभाव पर बल दिया गया है।
     
  5. धम्मकिसी भी धर्म को स्वीकार करने की अनुमति प्रदान करता है। यह किसी भी देवी देवता के अपमान की अनुमति नहीं देता।
     
  6. धम्मका प्रचलन शान्तिप्रिय, अहिंसा तथा प्रेम के आधार पर ही किया गया।

Que : 25. पूरन्दर की संधि की पाँच शर्ते लिखिए ।

Answer:

पुरन्दर की संधि – 22 जून सन् 1665 को की गई पुरन्दर की संधि की प्रमुख शर्ते निम्नलिखित थी –

  1. शिवाजी ने बीजापुर के विरूद्ध मुगलों को सैनिक सहायता देने और उनसे युद्ध न करने का वचन दिया।
     
  2. रायगढ़ के दुर्ग सहित 12दुर्गों और एक लाख हूण की वार्षिक आय के प्रदेश शिवाजी के पास ही रहने दिया गया।
     
  3. शिवाजी ने अपने 23दुर्ग और उसके आस-पास का प्रदेश जिसकी आय लगभग साढ़े चार लाख हूण वार्षिक थी, मुगलों को दे दिये।
     
  4. शिवाजी ने मुगल सम्राट औरंगजेब की अधीनता स्वीकार कर ली।
     
  5. अपने पुत्र शम्भाजी को 5000अश्वारोहियों की सेना सहित मुगलों की सेवा में भेजना स्वीकार कर लिया।
     
  6. मुगल सम्राट ने शिवाजी को बीजापुर विजय के बाद कोंकण में चार लाख हूण वार्षिक आय का प्रदेश देना स्वीकार किया।

MP Board Class 12 Study Material

MP Board Class 12 Study Material
MP Board Class 12 Books MP Board Class 12 Syllabus
MP Board Class 12 Model Paper  MP Board Class 12 Previous Year Question Paper

 

Self Studies Home Quiz Quiz Self Studies Short News Self Studies Web Story
Self Studies Get latest Exam Updates
& Study Material Alerts!
No, Thanks
Self Studies
Click on Allow to receive notifications
Allow Notification
Self Studies
Self Studies Self Studies
To enable notifications follow this 2 steps:
  • First Click on Secure Icon Self Studies
  • Second click on the toggle icon
Allow Notification
Get latest Exam Updates & FREE Study Material Alerts!
Self Studies ×
Open Now