MP Board 12th समाज शास्त्र 2023 : VVI Important Question with Solution

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MP Board 12th समाज शास्त्र 2023 : VVI Important Question with Solution
यहां समाज शास्त्र 12वी Exam 2023 के लिए New Blue Print पर आधारित Most Important Subjective Questions-Answer दिए गए है. ये प्रश्न (Question ) Study Material के रूप में तैयार किये गए. जो आपके Paper के लिए बहुत महत्वपूर्ण है और ये Most Important Question तैयारी को और बेहतर बना सकते है I
Most Important Question
प्रश्न : 1. भारत में एकता स्थापित करने के कारण लिखिए।
उत्तर-
(1) तीर्थ स्थल-भारत में बद्रीनाथ, केदारनाथ, हरिद्वार, इलाहाबाद, द्वारिका, रामेश्वरम, अजमेर, अमृतसर, माउन्टआबू आदि तीर्थ स्थलों पर सम्पूर्ण भारत के लोग दर्शनार्थ आते हैं। नालन्दा, तक्षशिला एवं अवन्तिका की शिक्षण संस्थाओं एवं तीर्थ स्थानों में भारत ही नहीं वरन् विदेशों से अनेक लोग ज्ञान प्राप्ति के लिए आते रहे हैं। इसके फलस्वरूप भारत की सांस्कृतिक एकता संगठित हुई है।
(2) दिग्विजयी सम्राट तथा उदार शासन-चन्द्रगुप्त मौर्य, अशोक, समुद्रगुप्त, अलाउद्दीन खिलजी, अकबर, शेरशाह तथा राणाप्रताप जैसे वीर पुरुषों ने भारत में शासन किया है। इस प्रकार की एकसमान उदार शासन पद्धति की स्थापना मौलिक एकता की आधारशिला रही है।
(3) भाषा एवं धर्म-भारत में आर्यों के आगमन के पश्चात् वेदों, पुराणों, उपनिषदों एवं स्मृतियों आदि की रचना की गयी। इन समस्त ग्रन्थों में आत्मा के अस्तित्व, मोक्ष, पुनर्जन्म एवं कर्मफल की विशद् वैज्ञानिक व्याख्या की गयी, जिसे सभी धर्म स्वीकार करते हैं। इस प्रकार भाषा तथा धर्म ने भारत में एकता की भावना को । पर्याप्त प्रोत्साहन दिया है।
(4) समान ऐतिहासिक स्मृतियाँ और राष्ट्रीय भावना-प्राचीनकाल से लेकर आधुनिक काल तक भारतीयों की ऐतिहासिक स्मृतियाँ एक समान रही हैं। स्वतन्त्रता आन्दोलन में सभी क्षेत्रों के लोगों ने एक साथ मिल-जुलकर भाग लिया। विभिन्न कवियों, साहित्यकारों, लेखकों को ये ऐतिहासिक स्मृतियाँ विशेष रूप से प्रभावित करती रही हैं। इन्होंने देश में एकता स्थापित करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
प्रश्न : 2. भारतीय संस्कृति की चार विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-
(1) प्राचीनता-विश्व में मिस्र, सीरिया, बेबीलोनिया, नील आदि सभ्यताओं ने जन्म लिया और अपनी प्रतिभा दिखाकर काल के गाल में समाहित हो गये। भारत की सभ्यता इन सभी सभ्यताओं व संस्कृतियों से भी प्राचीन है, किन्तु भारत के प्राचीनतम सभ्यता काल से प्रभावित नहीं हुई और आज भी विद्यमान है।
(2) आध्यात्मिकता-भारतीय संस्कृति में आध्यात्मिकता की भावना प्रभावशाली है, जिसमें यह विश्वास किया जाता है कि इस संसार से परे भी एक सत्ता है और वही विश्वात्मा हम सब में व्याप्त है। यही कारण है कि विश्व-बन्धुत्व की भावना से ओत-प्रोत भारतीय संस्कृति आदर्शवादी संस्कृति मानी जाती है।
(3) समन्वयशीलता-भारतीय संस्कृति की विशेषता 'आत्मवत् सर्वभूतेषु' सिद्धान्त में निहित है। इसी कारण भारत ने सभी आक्रमणकारियों को अपने में विलीन कर लिया। यहाँ अनेक हिन्दू, मुसलमान, सिक्ख तथा ईसाई, जैन एवं बौद्ध सन्त हुए, जिन्होंने विभिन्न धर्मों की समन्वयता को सम्भव बना दिया है।
(4) आदर्शवादिता- भारतीय संस्कृति आदर्शवादी प्रवृत्ति पर जोर देती है, इसमें सत्य, अहिंसा, सत्याग्रह, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह तथा त्याग पर विशेष बल दिया गया है। इन्हीं आदर्शों को लेकर सम्राट अशोक, हर्षवर्धन, कनिष्क तथा अकबर ने समानतावादी साम्राज्य की स्थापना की थी।
प्रश्न : 3. संजातीयता का क्या अर्थ है ?
उत्तर- संजातोयता की अवधारणा प्रजाति से अलग है। प्रजाति उस बड़े मानव समूह को कहा जाता है। जिसमें समान शारीरिक विशेषताएँ होती हैं। दूसरी ओर, संजातीयता एक ऐसी भावना है जो संस्कृति, धर्म, क्षेत्र, भाषा, वेशभूषा अथवा जीवन-शैली के आधार पर किसी विशेष समुदाय को अपनी अलग पहचान बनाए रखने को प्रोत्साहन देती है। संजातीयता का संबंध उन पूर्वाग्रहों से है जिनके आधार पर एक संजातीय समूह अपने से भिन्न संजातीय समूह से पृथक्ता महसूस करने लगता है और कभी-कभी दूसरे की तुलना में अपने को अधिक श्रेष्ठ या उच्च दिखाने की कोशिश करता है। समाजशास्त्र में इस दशा को “संजातीयता की प्रवृत्ति” कहा जाता है।
प्रश्न : 4. जनांकिकी का अर्थ बताते हुए उसकी कोई दो परिभाषाएँ बताइये।
उत्तर- जनांकिकी (जनसंख्या शास्त्र) का अर्थ-जनांकिकी अंग्रेजी शब्द “Demography” का हिन्दी रूपान्तर है। शाब्दिक रूप से डेमोग्राफी दो शब्दों से मिलकर बना है।
पहला शब्द 'डेमस' (Demas) तथा दूसरा शब्द ‘ग्राफो’ (Grapho) है। पहले शब्द का तात्पर्य जनसंख्या” से है जबकि दूसरे शब्द का अर्थ “विवरण देने वाले विज्ञान से है। इस प्रकार शाब्दिक रूप से डेमोग्राफी वह विज्ञान है, जो एक विवरण के रूप में जनसंख्या सम्बन्धी विशेषताओं को स्पष्ट करता है।
जनांकिकी शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम 1855 ई. में गुइलार्ड ने किया था, किन्तु विधिवत् रूप से जॉन ग्राण्ट ने 1862 ई. से जनांकिकी के अध्ययन का शुभारम्भ किया था, परन्तु इसे एक सामाजिक विज्ञान के रूप में स्थापित करने का कार्य प्रमुख रूप से थॉमस रॉबर्ट माल्थस द्वारा किया गया। अत: माल्थस को जनांकिकी का पिता माना जाता है।
‘जनसंख्या समाज का अनिवार्य भाग है। जनसंख्या के कम या अधिक या असंतुलित होने का प्रभाव सम्पूर्ण समाज पर पड़ता है। लोगों के जीवन निर्वाह के उपक्रम, उनकी जीवन शैली, सम्बन्धों का स्वरूप, परिवर्तन, अपराध आदि अनेक सामाजिक कारक जनसंख्या से प्रत्यक्षतः जुड़े हुए हैं। इसीलिए जनसंख्या शास्त्र (जनांकिकी) समाजशास्त्र की एक शाखा के रूप में जनसंख्या उससे जुड़े सामाजिक, आर्थिक पक्ष और उनके प्रभावों का अध्ययन करता है।
जनांकिकी की परिभाषा-
1. ए. गुइलार्ड के शब्दों में- “जनांकिकी जनसंख्या की गतिशीलता तथा उससे सम्बन्धित शारीरिक, सामाजिक, नैतिक एवं बौद्धिक दशाओं का गणितीय अध्ययन है।”
2. पी. एम. हाउजर एवं ओ. डी. डंकन के शब्दों में- “जनांकिकी जनसंख्या के आकार, क्षेत्रीय वितरण तथा संरचना, उसमें होने वाले परिवर्तनों तथा इन परिवर्तनों के तत्वों, जो जन्म-दर, मृत्यु-दर, क्षेत्रीय गतिशीलता और सामाजिक गतिशीलता (स्थिति में परिवर्तन) के रूप में हो सकते हैं, का अध्ययन करता है।”
प्रश्न : 5. भारत में जनसंख्या वृद्धि के कोई पाँच कारण लिखिए।
उत्तर-भारत में जनसंख्या वृद्धि के कारण भारत में जनसंख्या वृद्धि के प्रमुख कारण निम्नलिखित -
(1) उष्ण जलवायु- भारत की जलवायु उष्ण होने के कारण व्यक्ति शीघ्र परिपक्वता की अवस्था प्राप्त कर लेता है जिससे भारत में अन्य राष्ट्रों की तुलना में विवाह शीघ्र किया जाता है। देश की जलवायु गर्म होने के कारण स्त्रियों को प्रजनन शक्ति अधिक होने से जन्म दर बढ़ी है।
(2) बाल-विवाह-देश के अधिकांश ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी कम उम्र में विवाह होते हैं जिससे कम उम्र से ही संतान होना प्रारंभ हो जाती है।
(3) शिक्षा का अभाव- भारत में साक्षरता दर केवल 65% है अत: अशिक्षा की अधिकता के कारण सामान्य व्यक्ति भविष्य के प्रति सचेत नहीं होता है और परिवार अकारण ही बड़ा हो जाता है।
(4) विवाह की अनिवार्यता- भारत में विवाह को एक धार्मिक कार्य माना जाता है परिणामस्वरूप माता-पिता अपने बच्चों का शीघ्र विवाह करना अपना कर्त्तव्य समझते हैं अत: भारत में विवाह ऐच्छिक न होकर अनिवार्य है जिससे जनसंख्या वृद्धि स्वाभाविक है।
(5) जीवन प्रत्याशा का बढ़ना (Increase in Life Expectancy)- भारत में विगत वर्षों में भरणपोषण की सुविधाएँ बढ़ी हैं। स्वास्थ्य सेवाओं में पर्याप्त सुधार हुआ है। जीवन प्रत्याशा में भी वृद्धि हुई है और इस वृद्धि से जनसंख्या वृद्धि दर भी बढ़ी है। सन् 1921 में जीवन प्रत्याशा 20 वर्ष थी, जो बढ़कर सन् 1999 में 63 वर्ष हो गयी।
(6) बच्चों की मृत्यु दर में कमी- भारत में सन् 1951 में बच्चों की मृत्यु-दर 148 प्रति हजार थी। सन् 1999 में यह घटकर 70 प्रति हजार रह गयी। यह चिकित्सा सुविधाओं की सुलभता के कारण सम्भव हो सका। इससे भारत की जनसंख्या में तीव्र वृद्धि हुई है।
प्रश्न : 6. जाति प्रथा की प्रमुख विशेषताएँ बताइए।
उत्तर- जाति प्रथा की विशेषताएँ- एन. के. दत्ता ने जाति-प्रथा की निम्नलिखित संरचनात्मक एवं सांस्कृतिक विशेषताओं का उल्लेख किया है
(1) एक जाति के सदस्य अपनी जाति से बाहर विवाह नहीं कर सकते।
(2) विभिन्न जातियों के बीच खानपान सम्बन्धी प्रतिबन्ध पाये जाते हैं।
(3) अधिकतर जातियों के व्यवसाय निश्चित होते हैं।
(4) जातियों में ऊँच-नीच का संस्तरण पाया जाता है।
(5) जन्म ही मनुष्य की जाति को निर्धारित करता है। जाति के नियमों को। तोड़ने पर ही जाति से बहिष्कृत किया जाता है। अन्यथा एक जाति से दूसरी जाति में जाना सम्भव नहीं है।
(6) सम्पूर्ण जाति व्यवस्था ब्राह्मणों की प्रतिष्ठा पर आधारित है।
प्रश्न : 7. राष्ट्रीय जनसंख्या नीति 2000 के उद्देश्य लिखिए।
उत्तर- राष्ट्रीय जनसंख्या नीति- सन् 1976 को केन्द्र प्रथम सरकार ने प्रथम राष्ट्रीय जनसंख्या नीति की घोषणा की। राष्ट्रीय जनसंख्या नीति में जनसंख्या को ऐसे स्तर पर स्थिर बनाने की बात कही गयी है, जो आर्थिक वृद्धि, सामाजिक विकास एवं पर्यावरण संरक्षण की आवश्यकताओं के अनुरूप हो।
इस नीति के उद्देश्य निम्नलिखित हैं-
(1) तात्कालिक उद्देश्य-आपूरित क्षेत्रों में पर्याप्त मात्रा में गर्भ निरोधकों, स्वास्थ्य सुरक्षा ढाँचा एवं स्वास्थ्य कर्मियों की आपूर्ति करना।
(2) मध्यमकालीन उद्देश्य-सन् 2010 तक कुल प्रजनन दर को 2: 1 के प्रतिस्थापन स्तर तक लाना।
(3) दीर्घकालीन उद्देश्य-सन् 2045 तक स्थिर जनसंख्या के लक्ष्य को प्राप्त करना। नई जनसंख्या नीति के अन्य महत्वपूर्ण बिन्दु -
(1) नई जनसंख्या नीति में राज्यों की निर्भय सहभागिता सुनिश्चित करने के लिए लोकसभा की संरचना को 2001 के पश्चात् 25 वर्ष तक और आगे अपरिवर्तित रखने की घोषणा की गयी है।
(2) छोटे परिवार (प्रति दम्पति दो बच्चे) को अपनाने के लिए प्रोत्साहन एवं प्रेरणा प्रदान करने के लिए नई नीति में 16 उपायों को सम्मिलित किया गया है।
(3) पंचायतों/जिला परिषदों को जनसंख्या नियन्त्रण हेतु प्रेरित करने पर पुरस्कृत करने की घोषणा की गयी है।
(4) बाल-विवाह निरोधन अधिनियम एवं प्रसव पूर्व लिंग परीक्षण तकनीकी निरोधक अधिनियम को कठोरता से लागू करने पर बल दिया गया है।
11 मई, सन् 2000 को केन्द्र सरकार ने राष्ट्रीय जनसंख्या नीति के क्रियान्वयन, निगरानी तथा समीक्षा के लिए प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में 100 सदस्यीय राष्ट्रीय जनसंख्या आयोग गठित किया है।
प्रश्न : 8. ईसाइयों में विवाह के प्रकार (स्वरूप) का वर्णन कीजिए।
उत्तर-ईसाइयों में विवाह के प्रकार (स्वरूप)- ईसाइयों में विवाह पति-पत्नी के बीच एक संस्थायी सम्बन्ध है, जिसे इच्छानुसार भंग नहीं किया जा सकता। ईसाइयों की धार्मिक मान्यताएँ उन्हें बहु-विवाह की आज्ञा नहीं देतीं, उनमें एक विवाह का ही सर्वमान्य सामाजिक नियम पाया जाता है। एक पुरुष और एक स्त्री को ही वैवाहिक जीवन के सच्चे साथी के रूप में स्वीकार किया गया है। विवाह की दृष्टि से ईसाइयों में विवाह के दो प्रकार प्रचलित हैं
(1) धार्मिक विवाह- इस प्रकार के विवाह का निर्धारण सामान्यतया लड़के-लड़की के माता-पिता या परिजनों द्वारा होता है। ये विवाह चर्च में सम्पन्न किये जाते हैं।
(2) सिविल मैरिज- ऐसे विवाह के लिए लड़के-लड़की को मैरिज रजिस्ट्रार के कार्यालय में उपस्थित होकर आवश्यक कानूनी कार्यवाही करानी पड़ती है। ईसाइयों में सिविल मैरिज की अपेक्षा आज भी धार्मिक विवाह ही अधिक होते हैं।
प्रश्न : 9. हिन्दू धर्म के प्रमुख सिद्धांतों पर प्रकाश डालिये।
उत्तर-हिन्दू धर्म के महत्वपूर्ण सिद्धांत- धर्म का उद्देश्य व्यक्ति का नैतिक, आध्यात्मिक और सांसारिक विकास करना है। इसके लिए हिन्दू धर्म में कुछ सिद्धान्तों को विशेष महत्व दिया गया है कुछ महत्वपूर्ण सिद्धान्त निम्नलिखित है -
(1) पुरुषार्थ- हिन्दू धर्म में व्यक्ति के चार मुख्य कर्तव्य होते हैं।
(1) धर्म, (2) अर्थ, (3) काम और (4) मोक्ष ।
इन्हीं चारों को सम्मिलित रूप से पुरुषार्थ कहा जाता है। यहाँ धर्म का अर्थ कर्तव्यों की पूर्ति से है। अर्थ का सम्बन्ध ईमानदारी से जीविका उपार्जन करना है। काम का सम्बन्ध सन्तान को जन्म देकर उनका पालन-पोषण से है तथा माता-पिता के ऋणों को पूरा करने से है। मोक्ष का तात्पर्य सभी कर्तव्यों को पूरा करके पुनर्जन्म से मुक्ति प्राप्त करना है।
(2) कर्म का सिद्धान्त- कर्म से अभिप्राय उन समस्त आचरणों या कार्यों से है जिन्हें मनुष्य जानबूझकर या अनजाने में सम्पादित करता है। गीता में कहा गया है कि मन, वाणी तथा शरीर से की गयी सभी क्रियायें कर्म हैं। मनुष्य अपने कर्मों के प्रति इसलिए सचेत रहता है कि प्रत्येक कर्म का उसे फल अवश्य मिलता है। गीता में बिना किसी इच्छा और स्वार्थ के कर्तव्यों के पालन को ही व्यक्ति का सबसे बड़ा धर्म बताया गया है, किन्तु इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि अच्छे कर्मों का फल अच्छा और बुरे कर्मों का फल बुरा होता है। कर्म का परिणाम कर्ता को अवश्य भोगना पड़ता है।
(3) पंचऋण- हिन्दू धर्म व्यक्तिवाद को महत्व न देकर सामूहिकता को अधिक महत्व देता है
(1) देवऋण, (2) ऋषिऋण, (3) पितृऋण, (4) अतिथि ऋण तथा (5) जीव ऋण।
एक सिद्धांत के रूप में यह माना गया है कि उपर्युक्त ऋणों को चुकाने के लिए हम जो कर्तव्य करते हैं कि उसी को तप या यज्ञ कहा जाता है।
(4) आध्यात्मवाद- यह हिन्दू धर्म का एक मौलिक सिद्धांत कहा जा सकता है। आध्यात्मवाद का अभिप्राय सांसारिक कर्तव्यों को छोड़कर साधु संन्यासी बन जाने से नहीं होता बल्कि जिस व्यक्ति के विचार, कार्य और व्यवहार जितने अधिक पवित्र होते हैं वह आध्यात्मवाद के उतने समीप होता है।
(5) आत्मा की अमरता- हिन्दू धर्म आत्मा की अमरता में विश्वास करता है उसका मानना है कि शरीर नाशवान है लेकिन आत्मा अमर होती है। आत्मा ही शरीर को जीवन देती है व्यक्ति को उसके कर्मों के अनुसार पुनर्जन्म मिलता है लेकिन आत्मा इन कर्मों से प्रभावित नहीं होती है।
प्रश्न : 10. राज्य के कोई चार कार्यों का वर्णन कीजिये।
उत्तर- राज्य के कार्य (Functions of State)-फेयरचाइल्ड ने लिखा है, “राज्य समाज की वह एजेंसी है जिसके पास शक्ति का उपयोग करने और नियन्त्रण स्थापित करने की पूर्ण सत्ता होती है।” व्यक्ति और सम्पूर्ण समाज के लिए राज्य के कार्यों को निम्नांकित रूप से समझा जा सकता है
(1) आन्तरिक और बाह्य सुरक्षा- राज्य ही एक ऐसी शक्ति है जो बाह्य आक्रमणों से समाज की रक्षा करके लोगों को अपनी स्वतन्त्रता बनाये रखने का अवसर देती है। कानून-विरोधी कार्य करने वालों को दण्डित कर व्यवस्था स्थापित करती है।
(2) मौलिक अधिकारों की रक्षा- मौलिक अधिकार राज्य में नागरिकों को प्राप्त वे अधिकार होते हैं जो उनके विकास के लिए आवश्यक होते हैं। इनकी रक्षा का दायित्व राज्य का होता है। इस प्रकार राज्य समूहों के बीच आवश्यक सन्तुलन स्थापित करता है।
(3) कानूनों का निर्माण- राज्य की सबसे महत्वपूर्ण संस्था सरकार व व्यवस्थापिका है। राज्य अपने व्यवस्थापिका के द्वारा ऐसे कानून बनाते हैं जिससे लोगों के हितों की रक्षा की जा सके तथा उनका विकास किया जा सके।
(4) दण्ड द्वारा नियन्त्रण- राज्य का अन्य कार्य अपराधियों एवं कानून तोड़ने वालों को दण्डित करना है, जिससे सामान्य जन-जीवन अनुशासित एवं सुरक्षित बना रहे।
प्रश्न : 11. विधवा-पुनर्विवाह को समझाइए।
उत्तर-विधवा पुनर्विवाह - अतीत में हिन्दू विधवा स्त्रियों को अत्यन्त नारकीय जीवन का निर्वाह करना पड़ता था। उन्हें पुनर्विवाह करने की अनुमति प्राप्त नहीं थी। उन्हें किसी प्रकार की साम्पत्तिक अधिकार भी नहीं था। उनका दर्शन तक अशुभ माना जाता था उन्हें घर के अन्धेरे कोने में सुख-सुविधाहीन, उपेक्षित और नारकीय जीवन का निर्वाह करना पड़ता था। अब उन्हें न केवल पुनर्विवाह की अनुमति प्राप्त है बल्कि हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 के माध्यम से मृत पति की सम्पत्ति में उनके उत्तराधिकार की व्यवस्था कर दी गई है। विधवा स्त्री का पति यदि शासकीय सेवा में रहा हो तो विधवा को उसकी शैक्षणिक योग्यता के अनुकूल अनुकम्पा नियुक्ति का भी प्रावधान है। इस प्रकार अब परिवारों में विधवा स्त्रियों को अतीत के समान नारकीय जीवन नहीं भोगना पड़ता है।
प्रश्न : 12. अन्तर्जातीय विवाह को समझाइए।
उत्तर - अन्तर्जातीय विवाह- हिन्दू समाज में अपनी ही जाति में विवाह करने की अनिवार्यता रहती है। इस नियम का उल्लंघन कर विजातीय से विवाह करने पर ऐसे व्यक्ति को जाति से निष्कासित कर दिया जाता था। न केवल अन्य लोग बल्कि उनके नाते-रिश्तेदार और माता-पिता भी उनका बहिष्कार करते थे। ऐसे युगल को अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता था हिन्दू विवाह तथा विवाह-विच्छेद अधिनियम, 1955 के द्वारा अन्तर्जातीय विवाहों को विधि सम्मत घोषित कर इस प्रकार का विवाह करने वालों को वैधानिक सुरक्षा प्रदान की गई।
प्रश्न : 13. सरकार का अर्थ लिखिए एवं परिभाषित कीजिए।
उत्तर-सरकार की परिभाषा एवं अर्थ-
(1) जॉनसन (H.M. Johnson) के अनुसार, “सरकार एक निश्चित क्षेत्र के भीतर आदेशात्मक नियन्त्रण रखती है तथा उस क्षेत्र के भीतर बल प्रयोग करने का उसे सफलतापूर्वक एकाधिकार मिला रहता है।''
(2) बीरस्टीड (R. Bierstedt) के अनुसार, “एक सरकार वह समिति हैं, जिसके माध्यम से राजनीतिक रूप से संगठित समाज कार्य करता है।”
(3) किंग्सले डेविस के अनुसार, “सरकार एक समूह के नाम पर कार्य करती है। अपनी एकाधिक शक्ति का प्रयोग करती है किसी एक निश्चित भू-भाग पर शासन करती है तथा उसमें प्रभुसम्पन्नता का गुण है।”
उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर जॉनसन ने सरकार की निम्न विशेषताओं का उल्लेख किया है
(i) शासन हमेशा अल्पजनों (कुछ लोगों) का होता है, चाहे वह प्रजातंत्रीय सरकार क्यों न हो। जनता के चुने हुए प्रतिनिधि ही सरकार बनाते हैं।
(ii) प्रत्येक सरकार में एक मुख्य अधिकारी तथा उसके नीचे कार्य करने वाले कर्मचारी होते हैं।
(iii) प्रत्येक सरकार वैध होने का दावा करती है तथा उसके आदेशों का पालन जनता का कर्तव्य होता है।
(iv) सभी सरकारें अपनी जनता के कल्याण के लिए कुछ न कुछ कार्य करती हैं।
(v) सरकार को आदेश जारी करने एवं नियन्त्रण रखने का अधिकार होता है।
(vi) सभी सरकारों को अपने राज्य में निवास करने वाले लोगों पर बल प्रयोग करने का अधिकार होता है।
प्रश्न : 14. अन्तर्विवाह को समझाइए।
उत्तर- अन्तःविवाह (अन्तर्विवाह) सम्बन्धी नियम (निषेध)- अन्त:विवाह जिसे कि त्रुटि से अन्तर्विवाह भी कहा जाता है, विवाह का श्रेष्ठतम रूप माना जाता रहा है। याज्ञवल्क्य स्मृति, मनुस्मृति तथा कामसूत्र में भी अन्त: विवाह को प्रधानता दी गई हैं। पी.एन. प्रभु ने कामसूत्र को उद्धृत करते हुए कहा है कि शास्त्रों के अनुसार जो व्यक्ति अपने वर्ण में विवाह करता है वही उचित संतान प्राप्त करता है।” जब जातियों एवं उपजातियों का विकास हुआ तब अपनी ही जाति या उपजाति में विवाह अनिवार्य बना दिया गया।
एक ही जाति की उपजातियों में परस्पर विवाह भी निषिद्ध कर दिया गया। इस तरह अन्तर्विवाह का अर्थ हुआ कि एक व्यक्ति अपने जीवन साथी का चुनाव अपने ही समूह में से करें ।
प्रश्न : 15. परिवार का अर्थ, परिभाषा एवं विशेषतायें बताइये।
उत्तर- परिवार का अर्थ एवं परिभाषा (Meaning and definition of family)- हिन्दी का परिवार शब्द अंग्रेजी के ‘Family' शब्द का पर्याय है। Family शब्द की उत्पत्ति लेटिन के ‘Famulus' शब्द से हुई है, ‘जिसका तात्पर्य माता-पिता, बच्चे, नौकर व दास से निर्मित समूह’ से होता है, लेकिन समाजशास्त्रीय अर्थ अधिक व्यापक है। विभिन्न विद्वानों ने परिवार को अग्रलिखित ढंग से परिभाषित किया है
1. मैकाइवर एवं पेज के अनुसार- “परिवार पर्याप्त निश्चित यौन सम्बन्ध द्वारा परिभाषित एक ऐसा समूह है जो बच्चों के जनन एवं लालन-पालन की व्यवस्था करता है।”
2. लूसीमेयर के अनुसार– “परिवार एक गृहस्थ समूह है, जिसमें माता-पिता और सन्तान साथ-साथ रहते हैं, इसके मूलरूप में दम्पत्ति और उनकी सन्तान रहती है।
3. डॉ. मार्डक के अनुसार- “परिवार एक ऐसा समूह है, जिसके लक्षण सामान्य निवास, आर्थिक सहयोग और जनन है। इनमें दो लिंगों के बालिग शामिल हैं, जिनमें कम-से-कम दो व्यक्तियों में स्वीकृत यौन सम्बन्ध होता है और जिन बालिग व्यक्तियों में यौन सम्बन्ध होता है, उनके अपने या गोद लिये हुए एक या अधिक बच्चे होते हैं।”
परिवार की विशेषताएँ-
(1) सार्वभौमिकता (Universality)- सामाजिक इकाइयों में परिवार सबसे मौलिक एवं छोटी इकाई हैं। इसलिए यह सामाजिक विकास के सभी स्तरों में सभी समाजों में पायी गई है। भले ही इसके स्वरूप भिन्न-भिन्न रहे हों।
(2) भावात्मक आधार (Emotional basis)-परिवार के सभी सदस्य भावात्मक आधार पर एक-दूसरे से बन्धे होते हैं, इन सदस्यों के बीच घनिष्ठ सम्बन्ध पाया जाता है, जिसका आधार त्याग एवं वात्सल्य होता है, स्वार्थ नहीं ये भावनाएँ सम्बन्धों को अधिक स्थायित्व एवं दृढ़ता प्रदान करती है।
(3) रचनात्मक प्रभाव (Formative influence)-रचनात्मक का तात्पर्य सामाजिक सन्तुलन एवं विकास में सहायक है, परिवार के छोटे बच्चों पर सदस्यों का सीधा प्रभाव पड़ता है, जिसके कारण बच्चा परिवार में विद्यमान सांस्कृतिक गुणों को आत्मसात कर अपना सामाजिक व्यक्तित्व निर्मित करता है। इसलिए कूले ने परिवार को ‘मानव स्वभाव की पोषिका' कहा है।
(4) छोटा आकार (Small size)-समाज के द्वैतीयक इकाइयों के समान परिवार की सदस्य संख्या अधिक नहीं होती, इसलिए आकार छोटा होता है। प्राणीशास्त्रीय आधार पर व्यक्तियों की मृत्यु एवं परिवार विभाजन भी परिवार के आकार के छोटे होने का कारण है।
(5) सामाजिक संरचना में केन्द्रीय स्थिति (Nuclear position in the social structure)-सामाजिक संरचना मूलत: अनेक परिवारों के योग से ही बनता है। आदिम समाजों में तो कई संगठन, जैसे-गोत्र, भ्रातृदल, वंश आदि की सदस्यता परिवार के आधार पर ही प्राप्त होती है। :
(6) असीमित उत्तरदायित्व (Unlimited-responsibility)-परिवार समाज की प्रारम्भिक इकाई है, जिसमें व्यक्ति पैदा होता है, बड़ा होता है तथा मृत्यु को प्राप्त करता है, इसलिए परिवार के सदस्यों के असीमित उत्तरदायित्व होते हैं, जो व्यक्ति की अधिकाधिक आवश्यकताओं को पूरा करने का प्रयास करती है।।
(7) सामाजिक नियन्त्रण (Social regulation)- प्रत्येक समाज अपने लिए जीवन के कुछ मूल्यों का विकास करती है, जो व्यक्ति एवं परिवार को नियमित करने का प्रयास करती है। विवाह एवं परिवार से सम्बन्धित प्रथाएँ एवं रुढ़ियाँ परिवार को बनाये रखने एवं उस पर नियन्त्रण रखने में योग देती है।
प्रश्न : 16. राजनीतिक दल का अर्थ, परिभाषा बताते हुए उसके कार्यों पर प्रकाश डालिये।
उत्तर- राजनीतिक दल (Political Parties)–लोकतांत्रिक राज्य-व्यवस्था में सरकार का निर्माण करने, सरकार के निर्णयों को प्रभावित करने तथा जनता और व्यक्तियों के पारस्परिक सम्बन्धों का निर्धारण करने में आज राजनीतिक दलों की भूमिका महत्वपूर्ण है। प्रत्येक राजनीतिक दल के अपने कार्यक्रम एवं नीतियाँ होती है। इस आधार पर वे जनमत को प्रभावित करते हैं, एवं अभिव्यक्ति प्रदान करते हैं।
सामान्यत: राजनीतिक दल का अर्थ लोगों के एक ऐसे संगठन से लिया जाता है, जिसका एक विशेष उद्देश्य, सिद्धान्त व राजनीतिक ध्येय पर मतैक्यता होती है।
राजनीतिक दल की परिभाषा (Definition of Political parties)
1. गिलक्राइस्ट के अनुसार, “राजनैतिक दल उन व्यक्तियों का एक संगठित समूह हैं, जो राजनैतिक रूप से समान विचार के हो तथा राजनैतिक इकाई के रूप में सरकार पर नियंत्रण करना चाहते हों।”
2. प्रो. लीकॉक के शब्दों में, “राजनीतिक दल से हमारा तात्पर्य नागरिकों के उस संगठित समूह से होता है जो एक राजनीतिक इकाई के रूप में कार्य करते है।”
राजनीतिक दलों का महत्व एवं उनके कार्य (Importance and Functions of Political Parties)-राजनीतिक दल प्रजातंत्र की आधारशिला होते हैं, इसीलिए कहा जाता है, “दल नहीं तो जनतंत्र नहीं” राजनीतिक दल प्रजातंत्रीय शासन की आधारशिला माने जाते हैं, क्योंकि ये पंक्ति एवं सरकार के बीच आधारशिला माने जाते हैं, राजनीतिक दल के महत्व या कार्य को निम्नांकित प्रकार से देख सकते हैं
(i) प्रत्याशियों का चयन एवं कार्यक्रम का निर्धारण,
(ii) कार्यक्रमों के क्रियान्वयन में उत्तरदायित्व का निर्वाह,
(iii) सरकार का निर्माण एवं शासन संचालन,
(iv) सरकार पर नियंत्रण,
(v) जनमत निर्माण में सहायक,
(vi) राजनीतिक शिक्षण,
(vii) सरकार का विकल्प।
उपर्युक्त सभी कार्यों के कारण ही प्रजातंत्र में राजनीतिक दलों का महत्व होता है। यह प्रजातंत्र की सहायक है। एवं दृढ़ सरकार की प्रतीक है। इन्हीं के प्रभाव से समाज में राजनैतिक शक्ति को संतुलन बना रहता है।
प्रश्न : 17. “मध्याह्न भोजन” कार्यक्रम को समझाइए।
उत्तर- “मध्याह्न भोजन” कार्यक्रम- नामांकन बढ़ाने, उन्हें बनाए रखने और उपस्थिति के साथ-साथ बच्चों के बीच पोषण स्तर सुधारने के दृष्टिकोण के साथ प्राथमिक शिक्षा के लिए राष्ट्रीय पोषण सहयोग कार्यक्रम 15 अगस्त, 1995 से शुरू किया गया । केन्द्र द्वारा प्रायोजित इस योजना को पहले देश के 2408 ब्लॉकों में शुरू किया गया। वर्ष 1997-98 के अंत तक एनपी-एनएसपीई को देश के सभी ब्लॉकों में लागू कर दिया गया। 2002 में इसे बढ़ाकर न केवल सरकारी, सरकारी सहायता प्राप्त और स्थानीय निकायों के स्कूलों के कक्षा एक से पाँच तक के बच्चों तक किया गया बल्कि ईजीएस और एआईई केन्द्रों में पढ़ रहे बच्चों को भी इसके अंतर्गत शामिल कर लिया गया। इस योजना के अंतर्गत शामिल है—प्रत्येक स्कूल दिवस प्रति बालक 100 ग्राम खाद्यान्न तथा खाद्यान्न सामग्री को लाने ले जाने के लिए प्रति क्विटल 50 रुपये की अनुदान।
उद्देश्य-वर्ष 1995 से प्रदेश के प्राथमिक विद्यालयों (कक्षा 1 से 5 तक) में बच्चों को मध्यान्ह भोजन लिये जाने का निर्णय राज्य सरकार द्वारा लिया गया, जिसके अन्तर्गत पूर्वी जनपदों में से खाद्यान्न भेजा जायेगा उसमें चावल की मात्रा 2/3 तथा गेहूँ की मात्रा 1/3 रखी जाय। इसी प्रकार पश्चिमी जनपदों में गेहूँ की मात्रा 2/3 तथा चावल की मात्रा 1/3 की होगी। उक्त खाद्यान्न वर्ष के 10 माह (मई तथा जून को छोड़कर) में प्रत्येक छात्र को 100 ग्राम प्रतिदिन अर्थात् प्रति माह 3 कि.ग्रा. की दर निःशुल्क उपलब्ध कराया जाता है।
मध्याह्न भोजन योजना हमारे देश की महत्वपूर्ण योजना है जिसके तहत् स्कूली बच्चों को सभी कार्य दिवसों पर मुफ्त भोजन प्रदान की जाती है। इस योजना के सफल कार्यान्वयन से जहाँ एक ओर बच्चों में कुपोषण की। समस्या कम हुई है, वहीं दूसरी ओर यह विभिन्न सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि में सामाजिक संतुलन स्थापित करने में मदद कर रही है तथा रोजगार के प्रावधान के माध्यम से महिलाओं और वंचित सामाजिक के सशक्तिकरण में भी सार्थक साबित हो रही है।
(1) 1995 से 2002 प्रति बच्चा 3 कि. ग्रा. अन्न प्रतिमाह वितरित किया गया था।
(2) 2003 से 2004, 10 जिलों के (30 प्रखण्डों) 2532 विद्यालयों में प्रयोग के तौर पर तैयार भोजन का वितरण।
(3) 1 जून, 2005 से तैयार भोजन व्यवस्था का सर्वव्यापीकरण एवं वर्ग के सभी बच्चों के लिए लागू।
(4) 1 मार्च, 2008 से वर्ग VI से वर्ग VIII के बच्चों के लिए भी मध्याह्न भोजन की व्यवस्था।
प्रश्न : 18. अनुसूचित जनजाति की परिभाषा देते हुए कोई पाँच विशेषतायें लिखिये। तथा अनुसूचित जनजाति कि पाँच मुख्य समस्याएँ लिखिए
उत्तर- अनुसूचित जनजाति की परिभाषा
डॉ. रिवर्स (Rivers) के अनुसार, “जनजाति एक ऐसे प्रकार का सामाजिक समूह है जिसके सदस्य एक सामान्य भाषा का प्रयोग करते हैं तथा युद्ध आदि सामान्य उद्देश्यों के लिए सम्मिलित रूप से कार्य करते हैं।”
हॉबेल के अनुसार, “एक जनजाति एक सामाजिक समूह का प्रतिनिधित्व करती है, जो एक सामान्य भाषा बोलता है तथा एक संस्कृति विशेष में रहता है।”
अतः स्पष्ट है कि जनजाति वह सामाजिक समूह है जो वन्य या दुर्गम स्थानों में रहते हुए सामाजिक तथा सांस्कृतिक पक्षों में समानता प्रदर्शित करते हुए सामान्यतः परम्परागत संस्कृति के अनुसार जीवनयापन करता है।
अनुसूचित जनजाति के लक्षण (विशेषताएँ)- अनुसूचित जनजातियों के लक्षण या विशेषताएँ निम्नलिखित हैं -
(1) सामान्य भू-भाग-एक जनजाति एक निश्चित भू-भाग में ही निवास करती है। इसके परिणामस्वरूप उसका उस भू-भाग से लगाव एवं उसके सदस्यों में सुदृढ़ सामुदायिक भावना का विकास हो जाता है। सामान्य भूभाग में रहने के कारण ही उनमें सामान्य जीवन की अन्य विशेषताएँ विकसित हो जाती हैं।
(2) सामान्य भाषा - एक जनजाति के लोग अपने विचारों का आदान-प्रदान करने के लिए सामान्य भाषा का प्रयोग करते हैं। भाषा के माध्यम से ही वे अपनी संस्कृति का हस्तान्तरण एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को करते हैं, किन्तु सभ्यता के सम्पर्क के कारण अनेक जातियाँ द्विभाषी हो गई हैं।
(3) विस्तृत आकार- एक जनजाति कई परिवारों का संकलन होता है। इसमें कई वंश, समूह एवं गोत्र तथा मातृ दल होते हैं। यही कारण है कि इनकी सदस्य संख्या अन्य क्षेत्रीय समूहों से अधिक होती है।
(4) अन्तर्विवाह-एक जनजाति के सदस्य अपनी ही जनजाति में विवाह करते हैं।
(5) एक नाम- प्रत्येक जनजाति का कोई नाम अवश्य होता है, जिसके द्वारा वह पहचानी जाती है। उसके सदस्य अपना परिचय जनजाति के नाम के आधार पर ही देते हैं।
अनुसूचित जनजाति कि मुख्य समस्याएँ
प्रश्न : 19. भारत में महिलाओं की कोई पाँच प्रमुख समस्याएँ लिखिए।
उत्तर-भारत की महिलाओं की समस्याओं को निम्नानुसार स्पष्ट किया जा सकता है
(1) शैक्षणिक समस्यायें- भारत में नगरों की तुलना में गाँवों में स्त्री साक्षरता बहुत कम है। डॉक्टरी, इंजीनियरिंग, वकालत एवं अन्य तकनीकी शिक्षा प्राप्त करने वाली लड़कियों की संख्या तो और भी कम है। स्त्रियों को शिक्षा न दिलाने का कारण पर्दाप्रथा और स्त्रियों की पुरुषों पर निर्भरता एवं उनका कार्यक्षेत्र घर तक ही सीमित होना है।
(2) सामाजिक समस्या-परिवार एवं विवाह से सम्बन्धित समस्या–परम्परावादी भारतीय समाज महिलाओं के साथ परिवार में दोयम दर्जे के नागरिक की भाँति व्यवहार का पक्षधर है। संयुक्त परिवार व्यवस्था में स्त्रियों की बड़ी दुर्दशा होती है। वे दासी की तरह जीवन व्यतीत करती हैं। उसे सास, ननद के उलाहने, गालियों एवं प्रताड़ना का शिकार बनना पड़ता है। परिवार की भाँति ही भारतीय स्त्रियों की वैवाहिक समस्यायें भी गम्भीर है। विवाह से सम्बन्धी उनकी प्रमुख समस्यायें निम्नलिखित हैं
(अ) बाल-विवाह-प्राचीन समय से भारत में बाल-विवाह का प्रचलन रहा है। कम आयु में ही लड़की का विवाह कर देना माता-पिता का धार्मिक कर्तव्य माना गया है। आज भी ग्रामों में ऐसे विवाह बहुत सम्पन्न होते हैं। बाल विवाह के दुष्परिणाम बुरे स्वास्थ्य, अकाल मृत्यु, वैधव्य के रूप में महिलाओं को ही भुगतने पड़ते हैं।
(ब) विधवा-पुनर्विवाह का अभाव-हिन्दुओं में पत्नी की मृत्यु के बाद पति को तो दूसरा विवाह करने की छूट दी गई है किन्तु स्त्रियों को पति की मृत्यु के बाद दूसरा विवाह करने की मनाही है। विधवा स्त्री अच्छा भोजन नहीं कर सकती। उसके भोजन में मीठे, चटपटे, स्वादिष्ट एवं पौष्टिक तत्वों के स्थान पर सादी वस्तुएँ मात्र होनी चाहिए। शुभ कार्यों में विधवाओं की उपस्थिति अपशकुन मानी जाती है। विधवा महिला को शारीरिक, मानसिक यातनायें, कठोर जीवन, समाज की उपेक्षा, कटुवचन भी सहने पड़ते हैं।
(स) दहेज-वर्तमान में दहेज एक गम्भीर समस्या बनी हुई है दहेज की समस्या के कारण ही अनेक क्षेत्रों में बच्चियों को जन्म लेते ही मार दिया जाता है। जलाने, मार डालने की घटनायें होती हैं दहेज के कारण लड़कों के मोल भाव होते हैं और जो ऊँची बोली लगाता है उसे ही अच्छा वर मिल जाता है। दहेज ने ही बालिका वध, पारिवारिक विघटन, ऋणग्रस्तता, निम्न जीवन स्तर, बहुपत्नी प्रथा, बेमेल विवाह, अपराध, अनैतिकता, भ्रष्टाचार एवं अनेक मानसिक बीमारियों को जन्म दिया है।
(द) तलाक की समस्या–परम्परागत हिन्दू समाज में जन्म-जन्मांतर के वैवाहिक बंधन में विश्वास के कारण महिलाओं को पुरुष द्वारा अन्याय और अत्याचार सहन करने के बाद भी तलाक न लेने की नसीहत दी जाती है। तलाक किन्हीं भी कारणों से हो तलाकशुदा स्त्री को तलाक के बाद उपेक्षा की नजर से देखा जाता है। तलाक के बाद उससे आसानी से कोई विवाह भी नहीं करता। वह अकेलेपन का जीवन जीने, समाज में कुदृष्टि से देखे जाने तथा अनावश्यक छींटाकशी का शिकार होती है।
(इ) वेश्यावृत्ति-गरीबी, धन की लालसा, दहेज, बाल-विवाह, विधवा पुनर्विवाह पर मनाही इत्यादि कारणों से भारत में वेश्यावृत्ति और कालगर्ल्स की समस्या महिलाओं के लिए बंद समाज की मानसिकता के कारण गम्भीर होती जा रही है।
(उ) पर्दा प्रथा-भारतीय स्त्रियों की एक बड़ी समस्या पर्दा प्रथा भी है। स्त्रियों से यह अपेक्षा की जाती है कि वे घूघट निकाले और अन्य पुरुषों से दूरी बरते। उनके सामने खुले मुंह बात न करें। पर्दा प्रथा के कारण स्त्रियों के व्यक्तित्व का विकास नहीं हो पाता है, वे शिक्षा ग्रहण करने एवं अर्जन करने से वंचित रह जाती हैं तथा स्वास्थ्य पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है।
(3) समानता और सामंजस्य की समस्या- भारतीय समाज में पुरुष प्रधान मानसिकता के कारण महिलाओं को अनेक वैधानिक प्रयत्नों के बावजूद समानता का दर्जा नहीं मिल पाया। घर-परिवार, कार्य की दशाओं, दैनिक मजदूरी इत्यादि के अनेक क्षेत्रों में उन्हें पुरुषों के बराबर नहीं माना जाता । शिक्षित स्त्रियों में घर एवं बाहर के कार्यों में सामंजस्य नहीं हो पा रहा है। वह भूमिका द्वन्द्व में फँसी हुई है। घर की परम्परागत भूमिका तथा कार्यालय की समये की पाबंदी और कार्यालयीन कार्य की भूमिका से सामंजस्य नहीं बैठा पाती।
(4) स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्या-भारत में यद्यपि स्त्री एवं पुरुष दोनों की औसत आयु में वृद्धि हुई है फिर भी पुरुषों की तुलना में स्त्रियों की जीवन अवधि सदैव ही कम रही है। असमान लिंगानुपात, स्त्रियों की औसत आयु में कमी एवं मृत्यु-दर की अधिकता के लिए बाल विवाह, प्रसवकाल में स्त्रियों की मृत्यु, स्त्रियों की आर्थिक परनिर्भरता, लड़कियों की अपेक्षा लड़कों को अधिक महत्व देना, कुपोषण एवं स्वास्थ्य सेवाओं का अभाव आदि उत्तरदायी है।
(5) आर्थिक समस्यायें- भारतीय नारियों की समस्यायें उनकी गरीबी, आर्थिक पराश्रितता एवं शोषण से जुड़ी हुई हैं। अधिकांशत: महिलायें कृषि कार्य से ही सम्बन्धित हैं। इसके अतिरिक्त वे खनन, पशुपालन एवं श्रमिक कार्य में लगी हुई हैं। उच्च पदों पर आसीन स्त्रियाँ तो गिनती की हैं। संयुक्त परिवार प्रणाली, पुरुषों पर निर्भरता, अज्ञानता, पर्दा प्रथा, रूढ़िवादिता आदि कारणों से स्त्रियों का कार्य क्षेत्र घर तक ही सीमित है और वे अक्सर कमाने के लिये बाहर नहीं जाती । फलस्वरूप उन्हें अपने भरण-पोषण तक के लिये पुरुष की ओर देखना होता है। वह स्वावलम्बी नहीं हो पाती है।
प्रश्न : 20. सांस्कृतिक उपागम से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-सांस्कृतिक उपागम से आशय- सांस्कृतिक उपागम वह उपागम है जो सामाजिक सम्बन्धों और सामाजिक संगठन की तुलना में किसी समाज की सांस्कृतिक विशेषताओं के आधार पर उसकी संरचना को स्पष्ट करता है। सांस्कृतिक उपागम कुछ सांस्कृतिक तथ्यों की तुलना में उनके प्रति लोगों के विचारों और विश्वासों को अधिक महत्व देता है।
दूसरे शब्दों में, संस्कृति के संदर्भ में सामाजिक सम्बन्धों और सामाजिक घटनाओं का विश्लेषण करने के कारण ही इसे अध्ययन का सांस्कृतिक उपागम अथवा सांस्कृतिक दृष्टिकोण कहा जाता है। अनेक मानव शास्त्रियों और समाज शास्त्रियों द्वारा अध्ययन के रूप में सांस्कृतिक दृष्टिकोण का उपयोग जरूर किया है लेकिन इससे सम्बन्धित प्रामाणिक तकनीकों के विकास में कठिनाई बनी हुई है।
प्रश्न : 21. संस्कृतिकरण की प्रक्रिया से सामाजिक परिवर्तन को समझाइए।
उत्तर- संस्कृतिकरण की प्रक्रिया तथा सामाजिक सांस्कृतिक परिवर्तन-संस्कृतिकरण की प्रक्रिया सामाजिक परिवर्तन की दिशा को समझने में बहुत सहायक हुई। भारतीय समाज में जहाँ सवर्ण तथा अस्पृश्यों के बीच व्यापक सामाजिक दूरी दिखायी देती थी। यह प्रक्रिया स्पष्ट परिलक्षित होती है। सामाजिक परिवर्तन में इसके योगदान को निम्नानुसार देख सकते हैं-
1. इस प्रक्रिया के द्वारा निम्न जांतियों में व्यापक सामाजिक सांस्कृतिक परिवर्तन हुए, क्योंकि उन्होंने अपनी प्रभु जातियों के मूल्यों, कर्मकाण्डों, भाषा साहित्य, अर्थव्यवस्था एवं जीवन शैली को धीरे-धीरे अपना लिया।
2. इस प्रक्रिया से पूरे वर्ग के सदस्यों में पदमूलक परिवर्तन हैं, जिसमें व्यक्ति निम्न स्थान से उच्च सामाजिक स्थिति को प्राप्त कर लेता है। यद्यपि यह धीरे-धीरे होता है।
3. जाति व्यवस्था एक कठोर व्यवस्था रही है, जिसमें गतिशीलता संभव नहीं रहा, लेकिन संस्कृतिकरण की प्रक्रिया ने इसे अधिक गतिशील स्वरूप दिया।
4. संस्कृतिकरण से किसी एक इकाई व्यक्ति या परिवार में ही परिवर्तन नहीं होता, बल्कि पूरा समूह ही बदल जाता है। इसलिये इसे सामूहिक गतिशीलता कहा जा सकता है।
5. इस प्रक्रिया के द्वारा अस्पृश्य अथवा जनजातियों सवर्ण हिन्दुओं में सम्मिलित हो जाती हैं, ऐसा करने के लिये वह उच्च जातियों के जीवन शैली को आत्मसात कर लेती है।
6. संस्कृतिकरण जाति व्यवस्था में होने वाले परिवर्तनों को स्पष्ट करती है।
7. निम्न जातियों में परिवर्तन ढाँचागत प्रक्रियाओं में भी परिवर्तनों को जन्म देता है।
प्रश्न : 22. भारत में आधुनिकीकरण के चार परिणाम लिखिए।
उत्तर- भारतीय समाज पर आधुनिकीकरण के प्रभाव- आधुनिकीकरण की प्रक्रिया का भारतीय समाज पर जो प्रभाव पड़ा और उसके परिणामस्वरूप जो परिवर्तन हुआ उनका विवेचन निम्न प्रकार किया जा सकता है-
1. सामाजिक परिवर्तन-आधुनिकीकरण से सामाजिक परिवर्तन की प्रक्रिया तीव्र गति से बढ़ती जा रही है। परिवर्तन, आधुनिकीकरण का लक्षण होने के साथ-साथ उसका लक्ष्य भी है। परिवर्तन एक सांस्कृतिक लक्ष्य है जिसकी ओर प्रत्येक आधुनिक समाज बढ़ता जा रहा है। इस सामाजिक परिवर्तन में मानव का सम्मान और सामाजिक समानता को अधिकाधिक महत्व दिया जा रहा है। इसमें ग्रामीण समाज में भी जनतन्त्रीय मूल्यों की ओर प्रगति दिखलाई पड़ती है। यह सामाजिक परिवर्तन अनेक क्षेत्रों में दिखलाई पड़ता है। एक ओर विभिन्न समाज सुधार आन्दोलन ने विभिन्न क्षेत्रों में व्यापक सामाजिक परिवर्तन उत्पन्न किये हैं, दूसरी ओर युवा आन्दोलन नई पीढ़ी में व्यापक परिवर्तन उत्पन्न कर रहे हैं। आजकल देश में विभिन्न प्रकार के युवा आन्दोलन दिखलायी पड़ते हैं जिसमें विश्वविद्यालय युवा आन्दोलन विशेष महत्वपूर्ण हैं। युवा आन्दोलन आधुनिकीकरण का लक्षण है। ये आन्दोलन आधुनिकीकरण की गति को तीव्र करते हैं। जहाँ एक ओर ये वर्तमान सामाजिक परम्पराओं के विरुद्ध विद्रोह के प्रतीक हैं, वहाँ नये समाज के अग्रदूत भी हैं। इसीलिये आजकल विश्वविद्यालय स्तर पर युवा आन्दोलनों को प्रोत्साहित करने की ओर विशेष ध्यान दिया जा रहा है।
2. नये सामाजिक वर्गों का विकास-अनेक नये सामाजिक वर्गों का विकास हो रहा है। आधुनिक काल में गाँवों और नगरों में अधिकतर सामाजिक वर्ग जाति के आधार पर नहीं, बल्कि आर्थिक स्थिति और राजनीतिक सत्ता के आधार पर बनते हैं। निम्न, मध्य और उच्च वर्गों का अन्तर अधिकतर आर्थिक हैसियत के आधार पर किया जाता है। ये आर्थिक वर्ग मुक्त वर्ग हैं, अर्थात् कोई भी व्यक्ति अपनी आर्थिक हैसियत ऊँची करके उच्च वर्ग में प्रवेश पा सकता है। धन का महत्व बढ़ने के साथ-साथ आर्थिक वर्गों का महत्व बढ़ता जा रहा है और अन्य सभी बातें आर्थिक हैसियत से निर्धारित होने लगी हैं। देश में राजनीतिकरण बढ़ते जाने से राजनीतिक वर्गों का महत्व बढ़ गया है। अब राजनीतिक दृष्टि से सत्ताधारी वर्ग अन्य वर्गों से अलग देखे जा सकते हैं। अधिकतर आर्थिक दृष्टि से उच्च वर्ग ही राजनीतिक सत्ता में भी उच्च वर्ग होता है। भारत में राजनीतिक सत्ताधारी वर्ग धनिक वर्ग से अलग है यद्यपि धनिक वर्ग उसे बराबर आर्थिक सहायता देकर उससे अपने हितों की साधन पूर्ति करवाता रहता है। औद्योगीकरण से देश में श्रमिक वर्ग का संगठन बढ़ता जा रहा है और साम्यवादी विचारों के प्रचार से उनमें राजनीतिक चेतना जाग्रत हो रही हैं। श्रमिक वर्ग के संगठित होने से पूँजीपति वर्ग भी संगठित हो रहा है और विभिन्न व्यवसायों के लोग अपने-अपने हितों की रक्षा करने के लिये नये-नये संगठन बना रहे हैं। एक ओर देश में अनेक अखिल भारतीय मजदूर संघ है और दूसरी ओर मिल मालिकों, व्यापारियों और व्यवसायी वर्गों के भी संघ देखे जा सकते हैं। इनकी संख्या बढ़ती जा रही है। आजकल छोटे-छोटे व्यवसाय से लेकर बड़े-बड़े व्यवसायों तक के लोग संगठित होकर अपने हितों की रक्षा करने की ओर प्रवृत्त दिखलाई पड़ते हैं।
प्रश्न : 23. भारतीय नागरिकों के मौलिक कर्तव्य लिखिए।
उत्तर-भारतीय संविधान में उल्लेखित मौलिक कर्त्तव्य निम्न हैं-
(1) संविधान का पालन करे और उसके आदर्शों, संस्थानों, राष्ट्र ध्वज और राष्ट्रगान का आदर करे ।
(2) स्वतन्त्रता के लिए हमारे राष्ट्रीय आन्दोलन को प्रेरित करने वाले उच्च आदर्शों को हृदय में संजोए रखे और उनका पालन करें।
(3) भारत की सम्प्रभुता, एकता और अखण्डता की रक्षा करे और उसे अक्षुण्ण रखे ।
(4) देश की रक्षा करे और आव्हान किए जाने पर राष्ट्र की सेवा करे।
(5) भारत के सभी लोगों में समरसता और समान भ्रातृत्व की भावना का निर्माण करे जो धर्म, भाषा और प्रदेश या वर्ग पर आधारित सभी भेदभाव से परे हो, ऐसी प्रथाओं का त्याग करे जो स्त्रियों के सम्मान के विरुद्ध हैं।
(6) हमारी सामाजिक संस्कृति की गौरवशाली परम्परा का महत्व समझे और इसका परिरक्षण करे।
(7) प्राकृतिक पर्यावरण की जिसके अन्तर्गत वन, झील, नदी और वन्य जीव हैं, रक्षा करे और उनका संवर्धन करे तथा प्राणी मात्र के प्रति दया रखे ।
(8) वैज्ञानिक दृष्टिकोण, मानववाद और ज्ञानार्जन तथा सुधार की भावना का विकास करे।
(9) सार्वजनिक सम्पत्ति को सुरक्षित रखे और हिंसा से दूर रहे।
(10) व्यक्तिगत और सामूहिक गतिविधियों के सभी क्षेत्रों में उत्कर्ष की ओर बढ़ने का प्रयास करे जिससे राष्ट्र निरन्तर बढ़ते हुए प्रयत्न और उपलब्धि की नई ऊँचाइयों को छू ले ।
प्रश्न : 24. हरित क्रांति का अर्थ समझाइए।
उत्तर-हरित क्रांति से अभिप्राय सिंचित और असिंचित कृषि क्षेत्रों में अधिक उपज देने वाली किस्मों को आधुनिक कृषि पद्धति से उगाकर कृषि उपज में यथा संभव अधिक वृद्धि करने से है।
जॉर्ज हरार के अनुसार- “हरित क्रांति शब्द का प्रयोग पिछले दशक में विभिन्न देशों (यथा भारत, फिलीपीन्स, श्रीलंका, पाकिस्तान, थाईलैण्ड आदि) में खाद्यान्नों के उत्पादन में होने वाली आश्चर्यजनक वृद्धि के लिए किया जाता है। इस क्रांति का मुख्य आधार नवीन उच्च उत्पादन वाले बीजों का प्रयोग है जिससे कृषक तीन से चार गुने तक उत्पादन कर सकता है।”
प्रश्न : 25. व्यावसायिक अभिजात वर्ग से क्या समझते हैं ? इस वर्ग की दो विशेषतायें बताइये।
उत्तर - व्यावसायिक अभिजात वर्ग से तात्पर्य-पाश्चात्य शिक्षा प्रणाली, ब्रिटिश शासन व्यवस्था और नवीन अर्थव्यवस्था के फलस्वरूप भारत में भी विभिन्न उद्योगों की स्थापना होने लगी तो धीरे-धीरे यहाँ उच्च वर्ग से सम्बन्धित उद्योगपति और व्यापारी इंग्लैण्ड में बनी वस्तुओं से प्रतिस्पर्धा करने लगे। ऐसे भारतीय उद्योगपति और व्यापारियों में मारवाड़ी, गुजराती, बनिया और पारसी समुदाय मुख्य हैं। ये लोग प्रभावशाली नये वर्गों के रूप में उभरने लगे। उसके बाद भी उच्च वर्ग का संबंध परम्परागत व्यवसायों तक ही सीमित रहा। आजादी के पश्चात् भारत सरकार ने आर्थिक एवं नियोजन औद्योगिकीकरण को प्रोत्साहन दिया। आर्थिक क्षेत्र में परम्परागत आर्थिक क्रियाओं की जगह नए प्रौद्योगिंक ज्ञान और प्रबंध की क्षमता पर जोर दिया। जिसके फलस्वरूप ही उच्च वर्ग के अंदर ही एक ऐसा अभिजात वर्ग उभरने लगा जिसे हम व्यावसायिक अभिजात वर्ग कहते हैं।
व्यावसायिक अभिजात वर्ग की विशेषतायें-
(1) उच्च प्रतिभावाली एवं योग्यतावाली बहुत-सी जातियों का समावेश-व्यावसायिक अभिजात वर्ग का संबंध परम्परागत व्यापारी, जातियों से नहीं बल्कि उच्च प्रतिभावाली बहुत से जातियों के लोगों के समावेश से है।
(2) उद्योगों एवं कारखानों के मालिक तक सीमित नहीं- एक नये वर्ग के रूप में व्यावसायिक अभिजात वर्ग की मुख्य विशेषता उद्योगों एवं कारखानों के मालिक तक ही सीमित रहना नहीं है। इस वर्ग में उन व्यवसायों के लोग भी सम्मिलित होते जा रहे हैं जो उद्योगपति नहीं हैं। उदाहरणस्वरूप-देश में ऐसे बहुत से फिल्म अभिनेता, खिलाड़ी, वकील, डॉक्टर, प्रबंधक हैं जो अपनी योग्यता से करोड़ों रुपये वार्षिक की आय प्राप्त कर लेते हैं। इन लोगों का संबंध किसी जाति या क्षेत्र के लोगों से नहीं है।
प्रश्न : 26. नवमध्यम वर्ग से आप क्या समझते हैं ? नवमध्यम वर्ग की कोई तीन विशेषताएँ बताइये।
उत्तर- नवमध्यम वर्ग- स्वतंत्रता के पश्चात् आधुनिकीकरण एवं औद्योगिकीकरण के फलस्वरूप आर्थिक विकास की गति तेज हो जाने से भारत में व्यवसाय के बहुत से अवसर पैदा हो जाने से मध्यम वर्ग के अंदर ही बहुत से लोगों की आर्थिक स्थिति में अचानक तेजी से वृद्धि होने लगी। तकनीकी शिक्षा का ज्ञान प्राप्त कर एवं आधुनिक ढंग की शिक्षा प्राप्त कर मध्यम वर्ग के लोगों में से ही सॉफ्टवेयर इंजीनियर, शिक्षाविद, डॉक्टर, चार्टर्ड एकाउण्टेण्ट बनने लगे। उन्होंने अपने बाप-दादाओं की तुलना में अधिक सम्पत्ति इकट्ठी कर ली, इस तरह इस वर्ग में इनके रूप में एक नये धनी वर्ग का प्रादुर्भाव हुआ, जिसे हम समाजशास्त्र की भाषा में नवमध्यम वर्ग कहते है।
नवमध्यम वर्ग की विशेषतायें-
(1) उपभोक्तावादी संस्कृति को महत्व देना-यह वर्ग उपभोक्तावादी संस्कृति को महत्व देता है। अर्थात् यह वर्ग प्रत्येक उस चीज को अच्छा समझता है जो अधिक महँगी और आधुनिक होती है। बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की निगाहें सबसे अधिक इसी वर्ग पर रहती है। आकर्षक विज्ञापनों से प्रभावित यह वर्ग महँगी से महँगी वस्तुओं को खरीदता है फलस्वरूप इनकी आय का एक बड़ा हिस्सा कम्पनियों के पास चला जाता है।
(2) आत्मकेन्द्रित-यह वर्ग आत्मकेन्द्रित होता है। इस वर्ग के लोगों में नातेदारी मानवीय मूल्यों एवं सामाजिक समस्याओं और राष्ट्रवादी विचारों का कोई खास मूल्य नहीं होता। ये लोग व्यक्तिगत हितों एवं आर्थिक साधनों पर ही ज्यादा ध्यान देते हैं।
(3) पश्चिमी संस्कृति एवं व्यवहार से प्रभावित-यह वर्ग पश्चिमी संस्कृति एवं व्यवहारों से ज्यादा प्रभावित लगते हैं। वास्तविकता यह होती है न तो यह पूरी तरह पश्चिमी व्यवहार को जानते हैं और न ही भारतीय संस्कृति एवं परम्परा को साधारणतया सांस्कृतिक मूल्यों का उल्लंघन करने को ही इस वर्ग के द्वारा आधुनिकता के रूप में देखा जाता है
प्रश्न : 27. उदारीकरण के कोई तीन लाभ लिखिए।
उत्तर-उदारीकरण के प्रमुख लाभ निम्नांकित हैं-
(1) आयात-निर्यात नीति से लाभ-भारतीय अर्थव्यवस्था के उदारीकरण एवं विश्वव्यापीकरण नीतिगत श्रृंखला के अन्तर्गत आयात-निर्यात की निषिद्ध सूचियों के भार में कटौती की तथा अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार का सरलीकरण किया।
(2) कर संरचना से लाभ- डॉ. राजा चलैया की सिफारिशों को स्वीकार करते हुए सरकार ने वर्ष 199394 के बजट प्रस्तावों में सीमा शुल्कों एवं उत्पाद शुल्कों में व्यापक कटौती की । सरकार ने प्रत्यक्ष करों, विशेषकर व्यक्तिगत आयकर में अनेक रियायतें प्रदान करके कर ढाँचे को सरल बनाया है।
(3) विदेशी निवेश नीति से लाभ-इसमें औद्योगिक नीतिगत सुधारों द्वारा आंतरिक स्तर पर उद्योगों का नियमन करने के साथ-साथ सरकार ने विदेशी मुद्रा विनिमय अधिनियम (FERA) में संशोधन करके विदेशी निवेशी संबंधी प्रतिबंधों को यथासंभव समाप्त किया है। ‘फेरा' के स्थान पर 'फेमा’ लागू किया है। अनिवासी भारतीय और उनके स्वामित्व वाले विदेशी निगमित निकायों को उच्च प्राथमिकता वाले क्षेत्रों एवं उद्योगों में शतप्रतिशत विदेशी निवेश की अनुमति सरकार ने प्रदान की है। साथ ही विदेशी पूँजी निवेश को बढ़ावा देने के लिए सरकार द्वारा विदेशी संस्थागत निवेशकों को भारतीय पूँजी बाजार में प्रत्यक्ष निवेश करने की छूट प्रदान की गई।
प्रश्न : 28. शिक्षा का अर्थ बताते हुए उसकी दो परिभाषायें दीजिए। तथा शिक्षा के कोई दो उद्देश्य लिखिए।
उत्तर-शिक्षा का अर्थ- शाब्दिक रूप से शिक्षा अथवा अंग्रेजी के शब्द “Education” की उत्पत्ति लैटिन शब्द “Educare” से हुई हैं जिसका अर्थ है प्रशिक्षण देना अथवा पालन-पोषण करना। इससे स्पष्ट होता है कि शिक्षा वह व्यवस्था है जो समय की आवश्यकता के अनुसार नयी पीढ़ी को व्यक्तित्व विकास का प्रशिक्षण देती है साथ ही ऐसी मनोवृत्तियों और व्यवहार के-ढंग को प्रोत्साहन देती है, जिनकी सहायता से लोग बदलती हुई दशाओं से अपना अनुकूलन कर सकें।
शिक्षा के अर्थ को स्पष्ट करते हुए मैकेन्जी ने लिखा है-
शिक्षा एक ऐसी प्रक्रिया है जो आजीवन चलती रहती है, जीवन के प्रायः प्रत्येक अनुभव से उसके भण्डार में वृद्धि होती है।
पेस्टालाजी के अनुसार- “शिक्षा मनुष्य की जन्मजात शक्तियों का स्वाभाविक, सामंजस्यपूर्ण और प्रगतिशील विकास है।”
रेमन्ट के अनुसार- “शिक्षा को विकास की वह प्रक्रिया कहकर परिभाषित किया जा सकता है जिसमें मनुष्य बचपन से प्रौढावस्था तक अनेक तरीकों से अपने भौतिक, सामाजिक और आध्यात्मिक पर्यावरण से अनुकूलन करना सीखता है।”
थॉमसन के अनुसार, “शिक्षा बाहरी वातावरण के प्रशिक्षण का एक विशेष रूप है। जिसके द्वारा मनुष्य के आचार-विचारों, आदतों और व्यवहारों में परिवर्तन होता है तथा जिसके द्वारा व्यक्ति में उत्तम गुणों का विकास होता है।"
एण्डरसन के अनुसार, "शिक्षा एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा व्यक्ति वह प्रशिक्षण प्राप्त करता है जो उसे समाज से अपना अनुकूलन करने के योग्य बना सके।''
शिक्षा के उद्देश्य-
दुर्णीम के अनुसार, ''शिक्षा का उद्देश्य बच्चे में उन भौतिक, बौद्धिक और नैतिक विशेषताओं का विकास करना है जो उसके लिए अपने पूरे समाज और पर्यावरण के अनुकूलन करने के लिए आवश्यक होती हैं।"
शिक्षा के प्रमुख उद्देश्य निम्नांकित हैं
(1) शिक्षा का सर्वप्रमुख उद्देश्य व्यक्ति का समाजीकरण करना है। समाजीकरण की प्रक्रिया से व्यक्ति यह सीखता है कि उसे अपनी स्थिति के अनुसार समाज में किस प्रकार भूमिकाएँ करनी चाहिए।
(2) शिक्षा का एक उद्देश्य व्यक्ति में ऐसी कुशलता विकसित करना है जिससे व्यक्ति अपनी आजीविका का अर्जन कर सके।
(3) वर्तमान शिक्षा का एक प्रमुख उद्देश्य व्यक्ति में ऐसी कुशलताएँ विकसित करना है। ताकि वह श्रम विभाजन के इस युग में अपना एक अलग स्थान बना सके।
(4) शिक्षा ही व्यक्ति में स्वस्थ प्रतिस्पर्धा की भावना उत्पन्न करती है।
(5) शिक्षा का एक उद्देश्य व्यक्ति का नैतिक विकास करना भी है।
(6) शिक्षा से ही किसी समाज के लोगों की मनोवृत्तियों का निर्माण होता है।
(7) शिक्षा का एक उद्देश्य जनसामान्य की मनोवृत्तियों और विचारों को इस प्रकार से अनुशासित करना है ताकि वे अपने जीवन पर स्वयं नियन्त्रण रखना सीख सके।
प्रश्न : 29. स्थानीय संस्कृति पर वैश्वीकरण का प्रभाव 150 शब्दों में लिखिए।
उत्तर–स्थानीय संस्कृति पर वैश्वीकरण का प्रभाव- वर्तमान में जनसंचार के साधनों में वृद्धि के फलस्वरूप वैश्वीकरण में वृद्धि हो रही हैं। वैश्वीकरण के फलस्वरूप विभिन्न समाजों की स्थानीय संस्कृति में भी परिवर्तन के तत्व स्पष्ट रूप से दिखाई देने लगे हैं। जब विभिन्न संस्कृतियों वाले देश प्रायः एक-दूसरे के सम्पर्क में आने लगते हैं तो उनकी सांस्कृतिक विशेषताओं में भी मिश्रण होने लगता है। इस प्रक्रिया में साधारणतया विकसित देशों की सांस्कृतिक विशेषताओं का कम विकसित देशों की संस्कृति पर अधिक प्रभाव पड़ने लगता है। जहाँ तक भारत का सम्बन्ध है वर्तमान समय में वैश्वीकरण के कारण भारत की स्थानीय संस्कृति में अनेक परिवर्तन दृष्टिगोचर हो रहे हैं जिनमें से कुछ महत्वपूर्ण परिवर्तन निम्नलिखित हैं-
1. वेश-भूषा, खान-पान एवं रहन-सहन के क्षेत्र में प्रभाव-वैश्वीकरण के फलस्वरूप पश्चिमी देशों की संस्कृति का प्रभाव हमारे वेश-भूषा, खान-पान एवं रहन-सहन के क्षेत्र में पड़ने लगा है। भारतीयों के शिष्टता के प्रदर्शन, नैतिक मूल्यों एवं सम्मान प्रदर्शन करने के तरीकों में भी पाश्चात्य संस्कृति हावी है। पहले यह प्रभाव नगरों तक ही सीमित था लेकिन अब ग्रामीण समाज में भी पश्चिमी ढुंग के व्यवहार स्पष्ट होने लगे हैं। अब इस बात का भय होने लगा हैं कि कहीं व्यक्ति के जीवन पर कुछ समय बाद भारतीय संस्कृति की मौलिक विशेषताओं का प्रभाव कम न हो जाये।
2. सार्वभौमिक संस्कृति की जरूरत पर जोर- वैश्वीकरण स्थानीय संस्कृतियों की भिन्नताओं की जगह एक सार्वभौमिक संस्कृति की जरूरत पर जोर देती है। सार्वभौमिक संस्कृति के नाम पर विकसित एवं प्रभावशील देशों की संस्कृति का प्रभाव अल्पविकसित एवं विकासशील देशों की संस्कृति पर पड़ने से है। इससे इस बात की आशंका होने लगी है कि अनेक देश अपनी मूल सांस्कृतिक पहचान को ही न खो दें।
3. कला, संगीत एवं सौन्दर्य प्रसाधन के क्षेत्र में प्रभाव- वैश्वीकरण का प्रभाव कला, संगीत, सौन्दर्य प्रसाधन एवं त्यौहारों के क्षेत्र में भी पड़ा है। इन पर संसार की अन्य दूसरी संस्कृतियों का स्पष्ट प्रभाव दिखने लगा है। अब संगीत एवं कला का भी इस तरह से बाजारीकरण होने लगा है कि जिससे लोग अधिक-से-अधिक आर्थिक लाभ प्राप्त कर सकें।
4. सांस्कृतिक मूल्यों पर प्रभाव- वैश्वीकरण का प्रभाव सांस्कृतिक मूल्यों पर भी दिखाई दे रहा है। किसी देश की संस्कृति को स्थायी बनाने में सांस्कृतिक मूल्यों की भूमिका बहुत अधिक महत्वपूर्ण होती है। अब परिवार में माता-पिता के द्वारा बच्चों को अपने सांस्कृतिक मूल्यों की शिक्षा न देकर व्यवहार के उन तरीकों का प्रशिक्षण दिया जाने लगा है जिनका भारत की मौलिक संस्कृति से कोई सम्बन्ध नहीं है। सांस्कृतिक जीवन में इस परिवर्तन के दूरगामी परिणाम हो सकते हैं।
प्रश्न : 30. सामाजिक आन्दोलन की एक परिभाषा लिखते हुए प्रकारों का वर्णन कीजिए तथा विशेषताएँ लिखिए । or सामाजिक आन्दोलन के कोई दो प्रकार लिखिए।
उत्तर-
एण्डरसन तथा पार्कर ने सामाजिक आन्दोलन के चार प्रकार बताये हैं। ये चार प्रकार निम्नलिखित हैं-
1. सुधारवादी आन्दोलन- ऐसे आन्दोलन सम्पूर्ण सामाजिक व्यवस्था का विरोध नहीं करते। इनका उद्देश्य समाज में फैली कुरीतियों को दूर करके व्यवस्था में सुधार लाना होता है।
2. क्रान्तिकारी आन्दोलन- ऐसे आन्दोलन का क्षेत्र बहुत व्यापक होता है। इस आन्दोलन के द्वारा सम्पूर्ण सामाजिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक व्यवस्था में इस तरह परिवर्तन लाना होता है, जिसमें लोगों को बेहतर सुविधायें मिल सके।
3. खण्डनात्मक आन्दोलन- ये वे आन्दोलन होते हैं, जिनका मुख्य उद्देश्य समाज के किसी एक वर्ग अथवा समुदाय के जीवन में परिवर्तन लाकर उसे अधिक जागरूक बनाया जाता है।
4. सम्पूर्णतावादी आन्दोलन- सम्पूर्णतावादी आन्दोलने की प्रकृति साधारणतया सांस्कृतिक और राजनैतिक होती है। परम्परागत समाज की जगह लोगों ने जीवन को आधुनिक बनाना अथवा राजतंत्र को समाप्त करके लोकतंत्र की स्थापना के लिए किया जाने वाला आन्दोलन इसका उदाहरण है। भारत में समय-समय पर जो भी आन्दोलन हुए, उनमें से कोई भी आन्दोलन उपर्युक्त प्रकारों की श्रेणी में नहीं आते। वास्तव में, विभिन्न प्रकार के आन्दोलनों की प्रकृति और उद्देश्य एक-दूसरे से इतने भिन्न होते हैं कि किसी एक वर्गीकरण में ही उन सभी का समावेश नहीं किया जा सकता। वास्तव में सामाजिक आन्दोलन का क्षेत्र बहुत विस्तृत एवं व्यापक हैं। यही कारण है कि सामाजिक आन्दोलनों को सामाजिक परिवर्तन के एक प्रमुख स्रोत के रूप में देखा जाता
प्रश्न : 31. भारत में अपराध के प्रमुख कारण लिखिए। or भारत में अपराध के सामान्य कारण लिखिए ।
उत्तर- भारत में अपराध के कारण-
1. प्राणीशास्त्रीय या जैविकीय कारक- लोम्ब्रोसो ने अपराध के लिए निम्नलिखित जैविकीय या प्राणीशास्त्रीय कारकों को उत्तरदायी माना है-
(i) वंशानुक्रम- कई विद्वानों ने अपने अध्ययनों में यह पाया कि अपराधी माता-पिता की सन्ताने भी अपराधी थीं।
(ii) शारीरिक अयोग्यता- शारीरिक स्थिति या बनावट भी अपराध को जन्म देती है।
(iii) बीमारी- अधिक समय तक बीमार रहने से व्यक्ति में चिड़चिड़ापन एवं निराशा पैदा हो जाती है, जो कि आगे चलकर अपराध को जन्म देती है।
(iv) आयु- सामान्यत: 20 से 24 वर्ष की आयु में ही अपराध अधिक किये जाते हैं, जबकि बचपन एवं वृद्धावस्था में कम होते हैं।
(v) लिंग- स्त्री और पुरुषों में भी अपराध की दर भिन्न-भिन्न पायी जाती है। भारत में भी स्त्रियों की तुलना में पुरुष अधिक अपराध करते हैं।
(vi) अन्तःस्रावी ग्रन्थियाँ- शरीर में कुछ ग्रन्थियाँ ऐसी होती हैं, जिसका प्रभाव शारीरिक क्रियाओं पर पड़ता है। व्यक्ति के संवेग की मात्रा इसी से तय होती है, जो अपराध के लिए उत्तरदायी होती है।
2. मानसिक कारक- मानसिक कारक भी अपराध के लिए उत्तरदायी हैं
(i) मन्द बुद्धि- गोडाई का मत है कि मन्द बुद्धि वाले व्यक्तियों में अपने कार्यों के बुरे प्रभावों को समझने की क्षमता नहीं होती, अत: वे अपराध करते हैं।
(ii) भावात्मक अस्थिरता- अत्यधिक भावुक होने पर व्यक्ति शीघ्र ही उत्तेजित हो जाता है और उसमें व्याकुलता पैदा होती है, जिसके फलस्वरूप वह अपराध से जुड़ जाता है।
3. सामाजिक कारक- अपराध के लिए उत्तरदायी सामाजिक कारक निम्नलिखित हैं
(i) पारिवारिक दशाएँ- तलाक, मृत्यु एवं कलह के कारण जब परिवार का विघटन होता है, तो व्यक्ति पर परिवार का नियन्त्रण कमजोर हो जाता है, ऐसी स्थिति में बच्चे बिगड़ जाते हैं और अनैतिक कार्यों से जुड़कर अपराध की ओर प्रवृत्त होते हैं।
(ii) मनोरंजन- आज मनोरंजन का व्यवसायीकरण होने के कारण हिंसा, अपराध, सेक्स एवं बुरे साहित्य का प्रचलन बढ़ा है, जो व्यक्ति को मानसिक रूप से विद्वेलित करते हैं।
(iii) युद्ध- कालाबाजारी, मुनाफाखोरी, तस्करी आदि की प्रवृत्ति युद्ध के दिनों में अधिक बढ़ जाती है, जो अपराध की श्रेणी में आते हैं।
(iv) समाचार-पत्र- समाचार-पत्र भी अपराधों को बढ़ा-चढ़ाकर लिखते हैं, जिससे अपराधी प्रवृत्ति को प्रोत्साहन मिलता है।
(v) मद्यपान– शराबखोरी की प्रवृत्ति व्यक्ति को मानसिक उत्तेजना से जोड़ती है, जिससे असंतुलित होकर व्यक्ति अपराध करता है।
(vi) धर्म- धार्मिक कट्टरता लोगों को हिंसा से जोड़ती है, जिससे साम्प्रदायिक दंगे एवं संघर्ष जैसे अपराधों का जन्म होता है।
(vii) राजनीतिक दल- आजकल विभिन्न राजनीतिक दल अपराधियों को अपने स्वार्थ के लिए संरक्षण देते हैं, जो अपराध करते रहते हैं।
(viii) गतिशीलता
(ix) पुलिस एवं न्याय व्यवस्था
(x) अशिक्षा
(xi) चरित्र एवं नैतिकता का ह्रास
(xii) सामाजिक बुराइयाँ एवं कुरीतियाँ।
प्रश्न 32. भारत की भौगोलिक विविधता पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए ।
उत्तर- भारत देश की भौगोलिक बनावट और उसकी जलवायु में बहुत भिन्नता है। इन भौगोलिक दशाओं की भिन्नता के कारण ही पूरे भारतीय समाज में तरह-तरह के विश्वासों और व्यवहारों के नियमों का विकास हुआ। एशिया महाद्वीप का एक हिस्सा होते हुए भी समुद्रों और पर्वतों से घिरा होने के कारण भारत को संसार के सात महाद्वीपों में से एक पृथक और स्वतन्त्र महाद्वीप के रूप में देखा जाता है। इसके उत्तर में हिमालय पर्वत, दक्षिण में हिन्द महासागर, पूरब में बंगाल की खाड़ी और पश्चिम में अरब सागर व कच्छ का रेगिस्तान है। उत्तर से दक्षिण तक भारतीय भूमि की लम्बाई 3,214 किलोमीटर और पूरब से पश्चिम तक लम्बाई 2,933 किलोमीटर है। इस तरह भारत का कुल क्षेत्रफल 32,87,263 वर्ग किलोमीटर है। क्षेत्रफल के आधार पर भारत संसार का सातवाँ सबसे बड़ा देश है, जबकि जनसंख्या की दृष्टि से इसका स्थान संसार में दूसरा है।
प्रश्न 33. भारत की भाषायी भिन्नता का वर्णन कीजिए।
उत्तर- भारत की भाषायी भिन्नता- भाषाओं का अध्ययन करने वाले विद्वानों ने भारत में 179 भाषाओं तथा 544 बोलियों की पहचान की है। यह सभी भाषाएँ तीन मुख्य भागों में विभाजित हैं- (1) इण्डो-आयर्न भाषाएँ, (2) द्रविड़ भाषाएँ, (3) मुंडारी भाषाएँ। मुंडारी भाषा परिवार को ऑस्ट्रिक भाषाएँ' भी कहा जाता है। भारतीय संविधान में आज 22 भाषाओं को मान्यता दी गई है। यह भाषाएँ हिन्दी, बंगला, तेलगू, मराठी, तमिल, उर्दू, गुजराती, मलयालम, कन्नड़, उड़िया, पंजाबी, असमी, सिन्धी, कश्मीरी, संस्कृत, मणिपुरी, कोंकणी तथा नेपाली हैं। इनमें से सभी भाषाओं के अपने उपभाग हैं। उदाहरण के लिए हिन्दी भाषा में खड़ी बोली, अवधी, ब्रज, भोजपुरी, मगधी, बुन्देली, मालवी तथा पहाड़ी कुछ प्रमुख उप-भाषाएँ हैं । भारत में किसी एक भाषा को राष्ट्रभाषा के रूप में मान्यता प्राप्त नहीं है। देश में हिन्दी भाषा का प्रचलन सबसे अधिक होने के कारण स्वतन्त्रता आन्दोलन के 'समय से ही इसे राष्ट्रभाषा के रूप में देखा जाता रहा।
प्रश्न 34. भारत में विभिन्नता के परिणामों को समझाइए ।
उतर- भारत में विभिन्नता के परिणाम निम्नलिखित है-
1. साम्प्रदायिक संघर्षों में वृद्धि- भारत में स्वतन्त्रता के पहले भी साम्प्रदायिक संघर्ष चलते रहते थे, इसका मुख्य कारण अंग्रेजों की फूट डालने की नीति थी । स्वतन्त्रता के बाद जन समाज को बहुसंख्यक एवं अल्पसंख्यक जैसे वर्गों में बाँट दिया गया तो अल्पसंख्यक समुदायों ने अपने आपको एक अलग रूप में देखना शुरु कर दिया । इससे साम्प्रदायिक संघर्ष और बढ़ने लगे। विशेषकर धार्मिक आधार पर बनने वाले राजनीतिक दलों ने भी साम्प्रदायिक संघर्षों को बढ़ाने में वृद्धि की ।
2. क्षेत्रवाद तथा भाषावाद- विभिन्न क्षेत्रों के प्राकृतिक साधनों. रीति-रिवाजों, व्यवहार के तरीकों और अलग-अलग विश्वासों के कारण सभी क्षेत्र सिर्फ अपने लिए अधिक से अधिक अधिकारों की माँग करने लगे । क्षेत्रीयता के आधार पर नए-नए राज्यों की माँग को लेकर कई हिंसक आन्दोलन हुए है । भाषा के आधार पर भी नए राज्यों की माँग ने जोर पकड़ना आरम्भ कर लिया। इसी तरह क्षेत्र और भाषा के आधार पर हमारे समाज की सांस्कृतिक एकता कमजोर होने लगी है।
3. अपराधों में अधिक वृद्धि- विकासशील समाज में यदि सामाजिक-सांस्कृतिक विविधता अधिक होती है तो अक्सर विभिन्न धर्मों के लोगों के लिए बनाए जाने वाले सामाजिक कानूनों में भिन्नता आ जाती है। हमारे देश में राजनीतिक भ्रष्टाचार के फलस्वरूप शासन-तन्त्र और अधिक कमजोर पड़ने लगा है। इसके फलस्वरूप संगठित अपराधों में वृद्धि होने लगती है और अपने क्षेत्रीय और राजनीतिक प्रभाव के कारण बड़े-बड़े अपराधियों को कोई सजा नहीं मिल पाती है ।
4. भ्रष्टाचार- सामाजिक-सांस्कृतिक विविधता के परिणामस्वरूप कोई समाज अधिकटुकड़ों में बँट जाता है तो वहाँ की राजनीति सिद्धान्तों पर आधारित नहीं रह पाती । ऐसी स्थिति में कई नेता और बड़े से बड़े अधिकारी भ्रष्ट साधनों के द्वारा अधिकाधिक पूँजी का संचय करने लगते हैं। धीरे-धीरे यह भ्रष्टाचार नौकरशाही के सबसे निचले स्तर पर पहुँच जाता है । आज भारतीय समाज में पूरा जनमानस इस समस्या से अधिक ग्रस्त है। स्पष्ट यह है कि सामाजिक-सांस्कृतिक विविधता राष्ट्रीयता की भावना को कमजोर करके कई समस्याओं को जन्म दे देती है।
5. नैतिकता का अभाव- भारत के लोगों के नैतिक स्तर का निरन्तर पतन हो रहा है और हिंसा एवं उपद्रवों में निरन्तर वृद्धि हो रही है। हिंसात्मक आन्दोलनो में असंवैधानिक साधनों के प्रयोग तथा राजनीतिक अवसरवादिता से नैतिकता का ही पतन नहीं होता, अपितु राष्ट्र-निर्माण एवं राष्ट्रीय एकीकरण के प्रयासों में भी बाधा पहुँचती है।
6. अत्यधिक आर्थिक असमानता- भारत एक कृषि प्रधान देश है तथा इसकी अधिकांश जनसंख्या का आर्थिक स्तर काफी निम्न है। निर्धन लोगों को मेहनत करने पर भी भर-पेंट भोजन नहीं मिल पाता है। निर्धनता, बेरोजगारी तथा आर्थिक संकट से भी राष्ट्रनिर्माण की प्रक्रिया को ठेस पहुँचती हैं, क्योंकि आर्थिक असमानता के कारण विभिन्न वर्गो में द्वेष बढता है तथा इससे वर्ग संघर्ष, अशान्ति एवं अमीरों के प्रति घृणा बढती है। यह वातावरण राष्ट्र-निर्माण एवं राष्ट्रीय विकास के लिए उचित नहीं है।
प्रश्न 35. भारत की जनांकिकीय विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर- भारत की प्रमुख जनांकिकीय विशेषताएँ निम्न हैं-
(1) भारत में स्वतन्त्रता के बाद जन्म- दर और मृत्यु-दर दोनों में कमी होने के बाद भी हमारी जनसंख्या का आकार बहुत तेजी से बढ़ा है। इस समय भारत से अधिक जनसंख्या केवल चीन में है।
(2) भारतीय जनसंख्या में विभिन्न धर्मों और सम्प्रदायों से सम्बन्धित लोगों का समावेश है। अनेक जनजातियों के लोग परिवार नियोजन में विश्वास नहीं करते ।
(3) भारत में आज भी लगभग 72 प्रतिशत लोग गाँवों में निवास करते हैं। गाँवों मे साक्षरता की कमी होने के साथ ही संयुक्त परिवारों का प्रचलन अधिक है। इसके फलस्वरूप बढ़ती हुई जनसंख्या के प्रति ग्रामीणों में कोई जागरूकता नहीं है ।
(4) आज भी पुरुषों की तुलना में स्त्रियों का अनुपात कम होने और उन्हें स्वास्थ्य की कम सुविधाएँ मिलने के कारण सामाजिक संरचना में पुरुषों की अपेक्षा स्त्रियों की स्थिति आज भी कमजोर है।
प्रश्न 36. जनसंख्या का आदर्श सिद्धान्त समझाइए ।
उत्तर- आदर्श जनसंख्या सिद्धान्त को अनुकूलतम जनसंख्या सिद्धान्त भी कहते हैं। आदर्श जनसंख्या सिद्धान्त का तात्पर्य है कि समाज में प्रजनन दर इतनी हो कि जनसंख्या आदर्श स्तर पर बनी रहे। इस सिद्धान्त की मान्यता है कि देश की अनुकूलतम जनसंख्यावह आदर्श जनसंख्या है जिसके फलस्वरूप देश में प्रति व्यक्ति आय अधिकतम होती है। किसी भी राष्ट की आदर्श जनसंख्या के निर्धारण में प्रति व्यक्ति आय, सम्पत्ति, व्यक्तिगत कल्याण, रोजगार, जन्ममृत्यु दर, सुविधाएँ आदि को आधार माना जा सकता है। किसी भी राष्ट की अनुकूलतम जनसंख्या कभी स्थिर नहीं रहती, वह लगातार परिवर्तित होती रहती है। देश के उत्पादन के साधनों में कमी और अधिकता के साथ-साथ यह भी कम ज्यादा होती रहती है। उत्पादन के तरीकों में नये आविष्कारों, राजनीतिक स्थितियों एवं संसाधनों की उपलब्धि में परिवर्तन के साथ-साथ देश की आदर्श जनसंख्या का बिन्दु बदलता रहता है। आदर्श जनसंख्या का सिद्धान्त केवल आर्थिक तत्वों पर जोर देता है, जबकि सामाजिक एवं राजनीतिक तत्व भी जनसंख्या निर्धारण में महत्वपूर्ण होते हैं।
प्रश्न 37. जाति व्यवस्था विकास में किस प्रकार बाधक है?
उत्तर- जाति व्यवस्था निम्नानुसार विकास में बाधक है-
(1) इस व्यवस्था ने कर्मकाण्डों और धार्मिक कुरीतियों को प्रोत्साहन देकर समाज में एक बड़े अनुत्पादक वर्ग का निर्माण किया जो भिक्षा-वृत्ति में ही अपना पूरा जीवन बिता देता है।
(2) यह व्यवस्था व्यक्ति को अपना पैतृक स्थान छोड़ने की अनुमति नहीं देती। इससे स्थानीय गतिशीलता में बाधा पहुँचती है।
(3) पवित्रता और अपवित्रता के आधार पर यह व्यवस्था बहुत से व्यवसायों को अपवित्र मानती है। इसके फलस्वरूप उर्वरकों, चमड़े और हड्डी से सम्बन्धित व्यवसायों के क्षेत्र में हमारा समाज बहुत पिछड़ गया है।
(4) उद्योगों में जातियों के आधार पर श्रमिकों के बँट जाने से संघर्षपूर्ण गुटों का निर्माण होता है, जिसका उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
प्रश्न 38. 'वर्ग व्यवस्था' पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर- वर्ग का तात्पर्य लोगों के ऐसे समूहों से होता है जिन्हें सम्पत्ति, आय, व्यवसाय, शिक्षा और प्रभाव के आधार पर दूसरे समूहों से पृथक् किया जा सकता है। वर्ग व्यवस्था समाज में आर्थिक विभेदीकरण का मुख्य आधार है। वर्ग व्यवस्था उन समाजों में सबसे अधिक स्पष्ट रूप से देखने को मिलती है जो औद्योगिक और आधुनिक हैं। आज के विकासशील समाजों में भी विभिन्न समूहों के बीच विभेदीकरण का आधार सामाजिक न होकर मुख्य रूप से आर्थिक है। वर्तमान समाजों में जब औद्योगीकरण और नगरीकरण में वृद्धि होने लगी, तब जो व्यक्ति जितना योग्य था उसका उत्पादन के साधनों पर उतना ही अधिक अधिकार बढ़ता गया। धीरे-धीरे व्यक्ति की आर्थिक स्थिति को ही उसकी योग्यता की कसौटी माना जाने लगा । फलस्वरूप एक ऐसी व्यवस्था विकसित हुई जिसमें समाज का विभाजन अनेक वर्गो के रूप में होने लगा।
प्रश्न 39. भारत में जनसंख्या की वृद्धि के कारणों को बताइए।
उत्तर-1. विवाह अनिवार्यता- भारत में माता-पिता अपनी संतान का विवाह अनिवार्य समझते हैं और इस कर्तव्य से शीघ्र उऋण होना चाहते हैं। फलस्वरूप जनसंख्या में वृद्धि होती है ।
2. छोटी उम्र में विवाह- भारत में विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में विवाह छोटी उम्र में हो जाते हैं, जिसके कारण संतानोत्पत्ति अवधि लम्बी हो जाती है तथा अधिक बच्चे होते हैं ।
3. अशिक्षा व अंधविश्वास- भारत की अधिकांश जनसंख्या अशिक्षित है। बच्चों का जन्म भगवान की देन मानते हैं और यह समझते हैं कि पुत्र के बिना नरक की प्राप्ति होती है, जिसके परिणामस्वरूप जनसंख्या बढ़ती है ।
4. जलवायु- भारत एक उष्ण जलवायु वाला देश है। ऐसी जलवायु में जनन क्षमता अपेक्षाकृत अधिक होती है तथा संतानोत्पत्ति की अवधि भी लम्बी होती है ।
5. संयुक्त परिवार प्रणाली- भारत में अब भी ग्रामीण क्षेत्रों में संयुक्त परिवार प्रणाली प्रचलित है। अतः बच्चों के जन्म से लेकर बड़े होने तक उनका पालन-पोषण करना बहुत कठिन नहीं होता है। फलस्वरूप कम बच्चे पैदा करने के प्रति मोह कम होता है।
प्रश्न 40. भारत में जनसंख्या की वृद्धि के कारणों को बताइए।
उत्तर-1. विवाह अनिवार्यता- भारत में माता-पिता अपनी संतान का विवाह अनिवार्य समझते हैं और इस कर्तव्य से शीघ्र उऋण होना चाहते हैं। फलस्वरूप जनसंख्या में वृद्धि होती है ।
2. छोटी उम्र में विवाह- भारत में विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में विवाह छोटी उम्र में हो जाते हैं, जिसके कारण संतानोत्पत्ति अवधि लम्बी हो जाती है तथा अधिक बच्चे होते हैं ।
3. अशिक्षा व अंधविश्वास- भारत की अधिकांश जनसंख्या अशिक्षित है। बच्चों का जन्म भगवान की देन मानते हैं और यह समझते हैं कि पुत्र के बिना नरक की प्राप्ति होती है, जिसके परिणामस्वरूप जनसंख्या बढ़ती है ।
4. जलवायु- भारत एक उष्ण जलवायु वाला देश है। ऐसी जलवायु में जनन क्षमता अपेक्षाकृत अधिक होती है तथा संतानोत्पत्ति की अवधि भी लम्बी होती है ।
5. संयुक्त परिवार प्रणाली- भारत में अब भी ग्रामीण क्षेत्रों में संयुक्त परिवार प्रणाली प्रचलित है। अतः बच्चों के जन्म से लेकर बड़े होने तक उनका पालन-पोषण करना बहुत कठिन नहीं होता है। फलस्वरूप कम बच्चे पैदा करने के प्रति मोह कम होता है।
प्रश्न 41. 'जनजाति' का क्या अर्थ है? इसकी विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर-
जनजाति का अर्थ- जनजाति परिवारों का एक ऐसा समूह है जिसका एक सामान्य नाम होता है, जिसके सदस्य एक निश्चित क्षेत्र में निवास करते हैं, एक सामान्य भाषा बोलते हैं तथा विवाह और व्यवसाय के बारे में कुछ खास नियमों का पालन करते हैं। गिलिन और गिलिन के अनुसार, “जनजाति उन विभिन्न समूहों से बनने वाला एक बड़ा समुदाय है जो एक सामान्य क्षेत्र में निवास करता है, एक सामान्य भाषा का प्रयोग करता है तथा जिसकी एक सामान्य संस्कृति होती है ।
भारत में जनजातियों की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
1. सामान्य नाम- प्रत्येक जनजाति का अपना एक विशेष नाम होता है तथा इसी के आधार पर एक जनजाति के सभी लोग समानता की चेतना द्वारा बँधे रहते हैं. उदाहरण के लिए, गोंड, मुण्डा, संथाल, भील, टोडा आदि भारत की बड़ी जनजातियाँ हैं।
2. एक क्षेत्रीय समुदाय- प्रत्येक जनजाति एक निश्चित भू-भाग में निवास करती है। साधारणतया इनके निवास का क्षेत्र कोई जंगली, पहाड़ी अथवा सीमांत प्रदेश होता है। इसके फलस्वरूप जनजातीय समुदाय का निवास कुछ अलग-थलग हो जाता है ।
3. पृथक् भाषा- प्रत्येक जनजाति की एक अलग भाषा होती है। एक जनजाति के सभी लोग अपनी भाषा या बोली में ही विचारों का आदान-प्रदान करते हैं। भाषा की यह समानता ही जनजाति के लोगों को आपस में बाँधे रखती है ।
4. आत्मनिर्भरता-जनजाति एक आत्मनिर्भर समुदाय है। आज बहुत-सी जनजातियाँ परम्परागत व्यवसाय और दस्तकारी की जगह खेती और श्रम के द्वारा भी अपनी जरूरतों को पूरा करने लगी हैं। इसके बाद भी दूसरे समुदायों की तुलना में जनजातियाँ आर्थिक और सांस्कृतिक रूप से बाहरी समूहों पर बहुत कम निर्भर हैं।
5. अन्तर्विवाही समुदाय- एक जनजाति के सभी सदस्य अपनी जनजाति में ही विवाह सम्बन्ध स्थापित करते हैं। जनजाति से बाहर विवाह करने वाले व्यक्ति को उनकी पंचायत द्वारा दण्डित करने का प्रचलन है।
प्रश्न 42. इबादत का अर्थ लिखिए एवं इस्लाम के प्रमुख तत्व लिखिए।
उत्तर- कुरान, पैगम्बर, शरीयत तथा तारिकात इस्लाम के प्रमुख तत्व हैं । इस्लाम की नैतिक शिक्षाओं में ईमान, इबादत और एहसान का प्रमुख स्थान है । इबादत अल्लाह पाक की अनुभूति का वह जरिया है जिसमें इबादत अल्लाह (ईश्वर) और बन्दे के बीच सम्बन्ध बनता है । इसमें बन्दा सांसारिक जीवन से अपना ध्यान हटाकर पूरी तरह से अल्लाह की ओर ध्यान लगाता है । इसमें बन्दा इतना खो जाता है कि वह सोचता है कि अल्लाह उसे देख रहा है या अल्लाह को वह देख रहा है।
इस्लाम के तत्व- (1) कलमा, (2) नमाज, (3) रोजा, (4) जकात, (5) हज।
प्रश्न 43. मुस्लिम विवाह की कोई तीन विशेषताएं लिखिए ।
उत्तर- मुस्लिम विवाह की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
1. समझौता- एक समझौते के रूप में मुस्लिम विवाह तभी वैध होता है जब यह दोनों पक्षों की स्वतन्त्र सहमति से हो रहा हो । यदि पति-पत्नी में से किसी एक की आयु 15 वर्ष से कम हो तो विवाह के लिए उसके संरक्षक (वली) की अनुमति आवश्यक है ।
2. पक्ष- मुस्लिम विवाह में चार पक्षों का होना आवश्यक है-
(1) दूल्हा, (2) दुल्हन, (3) काजी तथा (4) दो पुरुष गवाह। मुसलमानों में विवाह को निकाह कहा जाता है। किसी भी निकाह को काजी और गवाहों के बिना वैध नहीं माना जाता ।
3. मेहर- मुस्लिम विवाह की एक मुख्य विशेषता 'मेहर' का प्रचलन होना है। मेहर का तात्पर्य उस धनराशि से हैं जो विवाह के समय एक समझौते के रूप में पति द्वारा पत्नी को दी जाती है अथवा भविष्य में देने का वायदा किया जाता है। वर्तमान में मुसलमानों में मेहर के इस दूसरे रूप का प्रचलन अधिक है।
4. विवाह प्रतिबन्ध- एक मुस्लिम पुरुष को यह अधिकार है कि वह मूर्तिपूजक स्त्री को छोड़कर किसी भी दूसरे धर्म को मानने वाली स्त्री से विवाह कर ले, लेकिन एक मुसलमान स्त्री केवल मुस्लिम पुरुष से ही विवाह कर सकती है।
प्रश्न 44. उत्तर भारत तथा दक्षिण भारत की नातेदारी व्यवस्था में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- उत्तर भारत तथा दक्षिण भारत की नातेदारी व्यवस्था में निम्न अन्तर हैं-
(1) उत्तर भारत में अधिकांश विवाह सम्बन्धी नियम इस तरह के हैं, जो व्यक्ति को यह बताते हैं कि किस समूह में विवाह सम्बन्ध स्थापित नहीं किये जा सकते । जबकि दक्षिण भारत में विवाह से सम्बन्धित नियम इस बात पर अधिक बल देते हैं कि किस परिवार या किस समूह में विवाह करना अधिक अच्छा होता है।
(2) उत्तर भारत में विवाह के बाद एक लड़की ऐसे घर में आती है जो उसके लिए पूरी तरह से नया होता है । जबकि दक्षिण भारत में लड़की के जन्म के परिवार और विवाह के परिवार के बीच बहुत कम अन्तर होता है। लड़की विवाह के द्वारा जिस परिवार में आती है, उस परिवार के सदस्य और उस परिवार से जुड़े सभी नातेदार उसके लिए अजनबी नहीं होते ।
(3) दक्षिण भारत में विवाह सम्बन्ध एक ही गाँव या पहले से ही नातेदारी सम्बन्धों से बँधे हुए लोगों के बीच स्थापित होते हैं। इससे विवाह से सम्बन्धित नातेदारों के सम्बन्ध अधिक व्यवस्थित और अधिक मधुर रहते हैं। जबकि उत्तर भारत में सम्बन्ध दूर होते हैं ।
प्रश्न 45. भारत में प्रजातंत्र की सफलता में बाधक तत्वों को बतलाते हुए उन्हें दूर करने के उपायों का वर्णन कीजिए ।
उत्तर- भारत में प्रजातंत्र की सफलता में बाधक तत्व एवं उन्हें दूर करने के उपाय निम्नलिखित हैं-
1. गरीबी और बेरोजगारी की बढ़ती संख्या- देश की आबादी का करीबन 26 प्रतिशत भाग गरीबी रेखा के नीचे जीवन निर्वाह कर रहा है। देश में शिक्षित और अशिक्षित करोड़ों नागरिकों को नियमित रोजगार का कोई साधन नहीं है। नागरिकों के उसी बड़े वर्ग के कारण लोकतन्त्र के संचालन में कठिनाई उत्पन्न है। अतः गरीबी और बेरोजगारों की संख्या कम करने हेतु सरकार को रोजगार के नवीन अवसर उपलब्ध कराने चाहिए ।
2. जातीयता और क्षेत्रीयता- देश में प्रचलित जातिवाद और क्षेत्रवाद स्वतन्त्रता और समानता के अधिकार को वास्तविक नहीं बनने दे रहे हैं। भारतीय प्रजातन्त्र में विश्वास करने वाले यह मानते थे कि भारत में धीरे-धीरे जातिवाद स्वतः समाप्त हो जायेगा। लेकिन व्यक्ति जब जाति को प्राथमिकता देकर राजनीतिक कार्य और व्यवहार निर्धारित करता है, तब लोकतन्त्र के संचालन में अवरोध उत्पन्न हो जाता है । अतः लोगों को जागरूक होकर जातीयता व क्षेत्रीयता से ऊपर उठकर राष्ट्र के प्रति अपना योगदान देना चाहिए, जिससे प्रजातंत्र को सफल बनाया जा सके ।
3. निरक्षरता- लोकतांत्रिक पद्धति का सफल क्रियान्वयन नागरिकों की शिक्षा पर निर्भर है। 2001 की जनगणना के अनुसार भारत में साक्षरता का प्रतिशत 64.8 है, जबकि महिला साक्षरता केवल 53.7 प्रतिशत है। स्त्री-पुरुषों के समान राजनीतिक अधिकार होते हुए भी शिक्षा की कमी के कारण लोकतंत्र के कार्यान्वयन में कठिनाई आती है। शिक्षा की कमी के कारण नागरिकों में राजनीतिक सक्रियता और सहभागिता की कमी रहती है। अतः लोकतंत्र की सफलता के लिए शिक्षा स्तर में वृद्धि के साथसाथ साक्षरता दर में भी वृद्धि करना चाहिए ।
4. सामाजिक कुरीतियाँ- भारतीय समाज परम्परागत समाज है। यहाँ प्रजातंत्र की भावना के अनुकूल लोकमत की कम अभिव्यक्ति होती है। अभी भी हमारे समाज में अस्पृश्यता की भावना, महिलाओं के प्रति भेदभाव, जातीय श्रेष्ठता के भाव, सामन्तवादी मानसिकता, सामाजिक कुरीतियाँ व अन्धविश्वास आदि की भावना व्याप्त है। इस प्रकार के विचार लोकतंत्र को जीवन का अभिन्न अंग नहीं बनने दे रहे हैं। सामाजिक कुरीतियाँ व देश की सामाजिक समस्याएँ भी बाधक हैं। अतः लोकतंत्र की सफलता हेतु इन सामाजिक कुरीतियों को नष्ट करने के प्रयास किये जाने चाहिए एवं इन कुरीतियों से बँधे लोगों को जागरूक करना चाहिए। उन्हें यह बताया जाना चाहिए कि इन कुरीतियों ने सामाजिक विकास को किस तरह अवरुद्ध कर रखा है।
प्रश्न 46. भारतीय संस्कृति की परम्परागत विशेषताएँ लिखिए ।
उत्तर- भारतीय संस्कृति विभिन्न संस्कृतियों को एक बहुत ही खूबसूरत महकता हुआ एवं सभी को अपनी ओर आकर्षित करता हुआ 'गुलदस्ता है। भारत में गुजराती, राजस्थानी, मराठी, बंगाली, उड़िया, मद्रासी, पंजाबी, हरियाणवी, बिहारी, ब्रजवासी, अवधवासी, मालवी, निमाड़ी, बुन्देली आदि एक साथ हिलमिलकर सदियों से निवास करते हैं।
(1) इन सभी की अपनी भाषा है । सदियों से इन सभी की भाषाएँ फलती-फूलती चली आ रही हैं। ये जब आपस में मिलते हैं, विचार व्यक्त करते हैं तो इनकी अपनी-अपनी भाषा के स्थान पर सम्पर्क भाषा अर्थात् राष्ट्रभाषा हिन्दी प्रकट होकर इनके मन के तारों को जोड़कर एक अद्भुत नया प्रकाश फैला देती है।
(2) इन सभी का पहनावा सदियों से परम्परागत.रूप से चला आ रहा है । वर्तमान युग में आधुनिक वस्त्रों का महासमुद्र लहरा रहा है, किन्तु शादी-ब्याह, त्योहार, उत्सव, पूजा-पाठ में हमें वही परम्परागत पोषाखें दिखाई देती हैं।
(3) रीति-रिवाज- सभी के सदियों से एक समान चले आ रहे हैं । जन्म, मरण, विवाह आदि क्रिया-कलापों पर सभी अपने परम्परागत नियमों का पालन करते हैं । सबके अपने-अपने तौर-तरीके हैं । अपने-अपने अन्दाज अलग है, पर सब एक है ।
(4) जैन, बौद्ध, सिक्ख, हिन्दू सभी अपने-अपने धर्मों में डूबे हुए हैं। अपने-अपने धर्मों की भिन्न शाखा, उपशाखा में मस्त है । फिर भी सभी जब मिलते हैं तो ऐसा लगता है, ये एक ही विशाल परिवार के सदस्य हैं।
(5) सभी के भोजन की सामग्री के तत्व एक ही हैं लेकिन उनके बनाने के तौर-तरीके अलग हैं, स्वाद अलग हैं सुगन्ध अलग हैं । यह सब सदियों से चला आ रहा है।
प्रश्न 47. अल्पसंख्यकों की प्रमुख समस्याएँ लिखिए।
उत्तर- भारत में अल्पसंख्यकों की समस्याएँ निम्न हैं
(1) मनोवैज्ञानिक रूप से अल्पसंख्यक समुदाय के लोग यह समझते हैं कि संख्या में कम होने के कारण उन्हें अधिक राजनैतिक अधिकार नहीं मिल सकेंगे। इसी के फलस्वरूप अक्सर मुस्लिम और ईसाई समुदायों द्वारा विधायिका में अपने लिए आरक्षण की माँग की जाती रही है।
(2) मुस्लिम समुदाय आर्थिक और शैक्षणिक पिछड़ेपन को अपनी एक प्रमुख समस्या मानता है। वास्तव में दूसरे धर्मों को मानने वालों की तुलना में मुस्लिम अल्पसंख्यकों में शैक्षणिक पिछड़ापन अधिक जरूर है लेकिन इसका कारण मुस्लिम परिवारों का आकार में तुलनात्मक रूप से बड़ा होना है। इसके कारण अधिकांश परिवारों में बच्चों को पठन-पाठन की बजाय आजीविका कमाने के लिए बाध्य होना पड़ता है।
(3) भारत में पूर्वोत्तर राज्यों में जहाँ ईसाई अल्पसंख्यकों की जनसंख्या काफी अधिक है, उनमें भी असुरक्षा की भावना के कारण आन्दोलनकारी प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है ।
(4) जहाँ तक सिक्ख अल्पसंख्यकों का प्रश्न है, उनका उद्योगों, राजनीति, सरकारी सेवाओं और शिक्षा में अच्छा प्रतिनिधित्व है। इसके बाद भी लगभग 25 वर्ष पहले सिक्खों के एक विशेष वर्ग ने खालिस्तान के रूप में एक अलग राज्य की माँग करना आरम्भ कर दी। इससे कुछ समय के लिए पृथकतावाद को प्रोत्साहन मिला लेकिन जल्दी ही पंजाब में सभी लोग यह समझने लगे कि यह उनके खिलाफ होने वाली एक विदेशी साजिश है ।
प्रश्न 48. अन्य पिछड़े वर्ग को समझाइए ।
उत्तर- संविधान द्वारा अछूत कही जाने वाली जातियों को अनुसूचित जातियाँ मानकर उनके विकास के लिए अनेक प्रावधान किये गये। इसके बाद भी उच्च जातियों को विभिन्न प्रकार की सेवाएँ देने वाली जो बहुत-सी जातियाँ सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक क्षेत्र में बहुत पिछड़ी हुई रह गई थीं उनके लिए संविधान के द्वारा कोई सुरक्षाएँ नहीं दी जा सकीं। इसी कारण स्वतन्त्रता के बाद ऐसी जातियों ने भी आरक्षण और विकास की विभिन्न सुविधाओं की माँग करना आरम्भ कर दी। इस सम्बन्ध में सुझाव देने के लिए सन् 1953 में काका कालेलकर आयोग नियुक्त हुआ। दूसरा आयोग सन् 1979 में नियुक्त हुआ जिसे मण्डल आयोग कहा जाता है। इसकी सिफारिशों के आधार पर सर्वोच्च न्यायालय ने सन् 1992 में अन्य पिछड़े वर्गों को 27 प्रतिशत आरक्षण देना स्वीकार किया। आरक्षण और शिक्षा सम्बन्धी विकास की सुविधाएँ मिलने के बाद भी अन्य पिछड़े वर्गों की सबसे बड़ी समस्या सुविधाओं के हकदार वास्तविक जाति समूहों की निष्पक्ष पहचान करने से सम्बन्धित है। भारत के . विभिन्न राज्यों में अन्य पिछड़े वर्गों के बारे में एक सामान्य नीति का अभाव है। अन्य पिछड़े वर्गों का विषय आरम्भ से ही राजनीति से प्रभावित रहने के कारण अधिक संख्या शक्ति वाली जातियों को सारा लाभ प्राप्त हो जाता है। सरकार द्वारा अब अनेक ऐसे प्रयत्न किये जा रहे हैं जिनके द्वारा अन्य पिछड़े वर्गों की सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक दशा में सुधार किया जा सके।
प्रश्न 49. भारत में महिलाओं की सामाजिक समस्याएँ क्या हैं? लिखिए।
उत्तर- (1) सामाजिक जीवन के सभी क्षेत्रों में स्त्रियों को स्वतन्त्र रूप से निर्णय लेने का कोई व्यावहारिक अधिकार नहीं मिल पाता। उन्हें दूसरे लोगों से केवल उतना ही सम्पर्क रखने की अनुमति मिलती है जिस पर उनके पति, पिता या भाई को कोई आपत्ति न हो।
(2) ग्रामीण और शहरी दोनों तरह के क्षेत्रों में स्त्रियों के नैतिक शोषण में कोई कमी नहीं हुई है। रेलों, बसों और बाजारों में महिलाओं के साथ छेड़छाड़ पर सामान्य लोग ध्यान भी नहीं देते। गाँवों में विधवाओं को आज भी अपमानित जीवन जीना पड़ता है।
(3) अधिकांश माता-पिता आज भी लड़कियों की तुलना में लड़कों की शिक्षा पर अधिक ध्यान देते हैं। लड़कियों को सामान्य और गैर-व्यावसायिक शिक्षा देना ही काफी समझ लिया जाता है। गाँवों के परम्परावादी लोग अभी भी लड़कियों को अधिक पढ़ाना-लिखाना अपनी सामाजिक मर्यादा के विरुद्ध मानते हैं ।
(4) सामाजिक और पारिवारिक हिंसा में आज भी कोई उल्लेखनीय कमी नहीं हुई। एक बड़ी संख्या में कन्याओं की गर्भ में ही हत्या कर दी जाती है । सामाजिक हिंसा का सबसे भयावह रूप दहेज हत्याओं के रूप में देखने को मिलता है।
प्रश्न 50. भारत में महिलाओं की आर्थिक समस्याओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर- भारत में महिलाओं की आर्थिक समस्याएँ निम्न हैं-
(1) आर्थिक परतन्त्रता महिलाओं की विवशता है। जो महिलाएँ व्यवसाय या नौकरी के द्वारा धनोपार्जन करती हैं, उस पर विवाह से पहले साधारणतया माता-पिता का और विवाह के बाद पति का अधिकार बना रहता है ।
(2) कानून द्वारा महिलाओं को पुरुषों के समान सम्पत्ति अधिकार दिये गये हैं लेकिन व्यवहार में अधिकांश महिलाएँ सम्पत्ति अधिकार से वंचित हैं।
(3) पुरुषों की तुलना में कामकाजी महिलाओं को मिलने वाले आर्थिक पुरस्कार में असमानता सभी उद्योगों और प्रतिष्ठानों में देखी जा सकती है। बेरोजगारी के कारण सामान्य महिलाएँ इसका खुलकर विरोध भी नहीं कर पातीं।
(4) महिलाओं की प्रतिभा का शोषण एक सामान्य बात है। बहुत-सी महिलाएँ जो विवाह से पहले इंजीनियरिंग, प्रबन्धन, कम्प्यूटर अथवा किसी दूसरी व्यावसायिक शिक्षा को ग्रहण करती हैं, उन्हें विवाह के बाद नौकरी करके अपनी प्रतिभा को बढ़ाने का अवसर नहीं दिया जाता ।
प्रश्न 51. 'सांस्कृतिक उपागम' पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर- इस उपागम में सामाजिक सम्बन्धों और सामाजिक संगठन की तुलना में किसी समाज की सांस्कृतिक विशेषताओं के आधार पर उसकी संरचना को स्पष्ट किया जाता है। सांस्कृतिक उपागम की प्रमुख मान्यता यह है कि मानव की विभिन्न सांस्कृतिक विशेषताएँ जैसे- सामाजिक मूल्य, सामाजिक संगठन का प्रकार, भाषा, धार्मिक, विश्वास, गाथाएँ और कार्य करने के परम्परागत तरीके ही व्यक्ति के व्यवहारों का निर्धारण करते हैं। अनेक पश्चिमी विद्वानों जैसे- मैकिम मैरिएट, डेविड स्नाइडरं, मिल्टन सिंगर तथा लुई ड्यूमाँ ने भारतीय समाज के अध्ययन के लिए इस उपागम को महत्वपूर्ण माना।
प्रश्न 52. भारत की नगरीय समस्याओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर- 1. आवास की समस्या- नगरों में जिस घनत्व के आधार पर विभिन्न सुविधाओं की व्यवस्था की जाती है उसकी तुलना में नगरों की आबादी बहुत अधिक है। फलस्वरूप बड़ी संख्या में लोगों के पास अपने मकान नहीं होते। मुम्बई, दिल्ली, कोलकाता, चेन्नई, हैदराबाद, अहमदाबाद, कानपुर और अनेक ऐसे नगर हैं, जिनमें लाखों लोग रात में फुटपाथ पर सोने के लिए विवश हैं।
2. मलिन बस्तियाँ- मलिन बस्तियाँ हम ऐसे इलाकों को कहते हैं जिनमें टूटे-फूटे मकानों के अलावा टीन के टुकड़ों, पॉलीथिन और कच्ची दीवारों की सहायता से झुग्गी-झोपड़ियाँ बना ली जाती हैं। ऐसे क्षेत्रों में शौचालय, पानी या बिजली की कोई सुविधाएँ नहीं होती। जो नगर जितना बड़ा है उसमें रेल लाइनों के दोनों ओर तथा खाली पड़ी हुई जमीनों पर इस तरह की बस्तियों की संख्या उतनी ही अधिक है ।
3. प्रदूषण की समस्या- नगरीकरण में वृद्धि होने के साथ प्रदूषण की समस्या जनसाधारण के स्वास्थ्य के लिए एक गम्भीर खतरा बन गई है। नगरों में कूड़े-कचरे और गन्दगी के ढेर हर जगह देखने को मिल सकते हैं। सीवर लाइनों की सही व्यवस्था न होने के कारण बहुत दूषित और विषाक्त पानी सड़कों पर फैलता रहता है। उद्योगों की चिमनियों और मोटर वाहनों से निकलने वाला धुआँ वातावरण को अधिक प्रदूषित कर रहा है ।
4. बुनियादी सुविधाओं की कमी- अधिकांश राज्यों के नगरों में लोगों को कुछ घण्टे ही पानी और बिजली की सुविधा मिल पाती है। नगरों में टूटी हुई सड़कों के कारण चलना भी कठिन है। स्वास्थ्य विभाग के कर्मचारी स्वच्छता के प्रति पूरी तरह उदासीन हैं।
5. अपराधों में वृद्धि- नगरों में बढ़ते हुए संगठित अपराधों के कारण सामान्य लोग अपने जीवन को बहुत असुरक्षित मानने लगे हैं। अपहरण, चोरियाँ, बलात्कार और लूटमार जैसी घटनाएँ बढ़ती जा रही हैं। बड़े-बड़े भू-माफिया जबरदस्ती लोगों की सम्पत्ति को हड़प रहे हैं। जालसाजी, शराबखोरी और मादक पदार्थों का सेवन नगरीकरण के घातक परिणाम हैं।
प्रश्न 52. पश्चिमीकरण की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर- पश्चिमीकरण की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं-
1. एक तटस्थ अवधारणा- पश्चिमीकरण की प्रक्रिया केवल भारतीय समाज पर पश्चिमी जीवन पद्धति के प्रभाव को स्पष्ट करती है। यह प्रक्रिया नैतिक रूप से इसलिए तटस्थ है कि इसके अनुसार किसी परिवर्तन को पहले की तुलना में अच्छा या बुरा नहीं कहा जा सकता।
2. एक व्यापक अवधारणा- पश्चिमीकरण की प्रक्रिया का क्षेत्र बहुत व्यापक है। इसमें अनेक प्रकार के परिवर्तनों का समावेश है। जैसे- खान-पान, वेशभूषा, शिष्टाचार के तरीकों तथा व्यवहार के ढंगों में परिवर्तन ज्ञान विज्ञान, प्रौद्योगिकी और साहित्य में परिवर्तन, तथा सामाजिक मूल्यों और विचारों में परिवर्तन आदि।
3. एक निश्चित आदर्श का अभाव- भारतीय संस्कृति के विभिन्न पक्षों पर इंग्लैण्ड के अतिरिक्त अमरीका, रूस तथा इटली की सांस्कृतिक विशेषताओं का भी प्रभाव पड़ा है। स्पष्ट है कि भारत में पश्चिमीकरण की प्रक्रिया किसी एक देश को आदर्श मानकर नहीं चलती।
4. नये मूल्यों का समावेश- पश्चिमी देशों की संस्कृति जिन मूल्यों पर आधारित है, उसकी प्रकृति भारतीय संस्कृति के परम्परागत मूल्यों से काफी भिन्न है। पश्चिमी संस्कृति में सामाजिक समानता, सामाजिक न्याय, व्यक्तिगत स्वतन्त्रता, मानवीय अधिकारों के प्रति चेतना, तार्किकता तथा भौतिक विकास आदि प्रमुख मूल्य है।
5. एक जटिल प्रक्रिया- पश्चिमीकरण को इस कारण एक जटिल प्रक्रिया कहा जाता है कि पश्चिमी मूल्यों ने दशाओं में परिवर्तन करके तर्क और समानता पर आधारित एक नयी सामाजिक व्यवस्था को प्रोत्साहन दिया।
प्रश्न 53. भारतीय समाज पर पश्चिमीकरण के प्रभावों का वर्णन कीजिए।
उत्तर- 1. धार्मिक जीवन में परिवर्तन- पश्चिमीकरण के प्रभाव से भारत में 19वीं शताब्दी में एक व्यापक समाज सुधार आरम्भ हुआ। पश्चिमी संस्कृति के मानवतावाद और सामाजिक समानता से प्रभावित होकर यहाँ आर्य समाज, ब्रह्म समाज और रामकृष्ण मिशन जैसी सुधार संस्थाओं की स्थापना हुई। पश्चिमी जीवन के अनुसार ही यहाँ. भूत-प्रेत, शकुन-अपशकुन, भाग्य सम्बन्धी विचारों, बेकार के कर्मकाण्डों तथा धार्मिक विश्वासों पर आधारित अस्पृश्यता, सती प्रथा, बाल-विवाह और देव-दासी प्रथा जैसी कुरीतियों का विरोध बढ़ने लगा। मानव सेवा को ईश्वर की सच्ची सेवा के रूप में देखा जाने लगा है ।
2. जाति व्यवस्था में परिवर्तन- पश्चिमीकरण की प्रक्रिया सामाजिक समानता और व्यक्तिगत स्वतन्त्रता को अधिक महत्व देती है। इसके प्रभाव से जाति से सम्बन्धित सामाजिक सम्पर्क, छुआछूत, खान-पान, व्यवसाय तथा विवाह से सम्बन्धित बहुतसी कुरीतियों का प्रभाव समाप्त होने लगा।
3. सांस्कृतिक व्यवहारों में परिवर्तन- पश्चिमीकरण के प्रभाव से हमारे खान-पान, वेशभूषा, व्यवहार के तरीकों तथा उत्सवों के आयोजनों में व्यापक परिवर्तन हुआ है। परम्परागत उत्सवों की जगह अब ऐसी पार्टियों को अधिक महत्व दिया जाता है जिनमें धर्म पर आधारित किसी तरह के आडम्बर का समावेश नहीं होता।
4. शिक्षा-प्रणाली में परिवर्तन- स्वतन्त्रता के बाद परम्परागत शिक्षा व्यवस्था की जगह वैज्ञानिक और व्यावसायिक शिक्षा को अधिक महत्व दिया जाने लगा। इसके फलस्वरूप नयी पीढ़ी की मनोवृत्तियों और विचारों में परिवर्तन हो जाने से मनुस्मृति में दिये गये धर्म और संस्कृति सम्बन्धी व्यवहारों का विरोध बढ़ने लगा।
5. विवाह संस्था में परिवर्तन- पश्चिमी संस्कृति के प्रभाव से समाज में विलम्ब विवाह का प्रचलन बढ़ा, बहुपत्नी विवाह का विरोध बढ़ने के कारण इसे कानून के द्वारा समाप्त कर दिया गया, सम्भ्रान्त परिवारों में दहेज की प्रथा समाप्त हो गयी, अन्तर्जातीय विवाहों में वृद्धि होने लगी, बहिर्विवाह और कुलीन विवाह के नियम कमजोर पड़ गये तथा स्त्री को किसी भी तरह के उत्पीड़न की दशा में अपने पति से विवाह-विच्छेद कर लेने का अधिकार मिल गया।
प्रश्न 54. औद्योगीकरण के अर्थ को स्पष्ट कीजिये? तथा भारतीय समाज पर औद्योगीकरण के दो प्रभावों को समझाइए।
उत्तर- औद्योगीकरण का अर्थ -
औद्योगीकरण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके अंतर्गत मशीनों द्वारा बड़ी मात्रा में उत्पादन करके अधिक से अधिक लाभ प्राप्त करने का प्रयत्न किया जाता है। इस प्रक्रिया के फलस्परूप आज हमारे सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक और ग्रामीण जीवन में व्यापक परिवर्तन हुए हैं। भारतीय समाज पर औद्योगीकरण के प्रभाव -
भारत में औद्योगिकीकरण के मुख्यतः प्रभाव निम्न हैं :
1. सामाजिक जीवन में परिवर्तन- औद्योगिक स्थानों पर बड़ेबड़े नगरों का विकास हुआ । नगरीय समुदाय के सदस्य विभिन्न गाँवों से सम्बन्धित होते हैं, जिनमें 'हम' भावना का अभाव रहता है । क्योंकि एक स्थान पर रहते हुए भी इनकी पृष्ठभूमि अलगअलग होती है । समूह बड़ा होने के कारण सब वैयक्तिक होते हैं। ग्रामीण समुदाय की आत्मीयता का यहाँ अभाव पाया जाता है । नगरों में अत्यधिक व्यक्तिवादिता पायी जाती है । प्रत्येक व्यक्ति समाज में अपनी स्थिति अर्जित कर सकता है । गुणों के आधार पर वह अपना स्थानान्तर भी कर सकता है । व्यक्ति की सामाजिक पहचान उसके अपने गुणों पर निर्भर है । लेकिन कृषि प्रधान समाजों में प्रत्येक व्यक्ति अपने लिए नहीं सोचता था । उसकी स्थिति पारिवारिक स्थिति पर निर्भर थी । परिवार के सभी सदस्य एक साथ मिलकर कार्य करते थे, जिससे किसी को भी पृथक् श्रम का मूल्य नहीं मिलता है । परन्तु औद्योगिक केन्द्रों में परिवारों के प्रत्येक सदस्य भिन्न-भिन्न कार्य करते हैं और उनके वेतन में भी भिन्नता पाई जाती है । वे जो भी कमाते हैं, स्वयं पर व्यय करना चाहते हैं।
2. धार्मिक जीवन पर प्रभाव - औद्योगीकरण का सम्बन्ध वैज्ञानिक आविष्कारों से है, इसलिए उद्योगीकरण के साथ-साथ धर्म का महत्व घटता है । वैज्ञानिक विचार धार्मिक अन्धविश्वासों को पनपने नहीं देते । औद्योगिक केन्द्रों में विभिन्न धर्मों, प्रजातियों के लोग इकट्ठे कार्य करते हैं जिससे उनमें एक दूसरे के धर्म के प्रति सहनशीलता का विकास होना स्वाभाविक है । इसके परिणामस्वरूप धर्म सम्बन्धी संकीर्णता स्वयंमेव दूर हो जाती है । बड़े-बड़े कारखानों में लोग मशीन और पूँजी को भगवान के समान पूजते हैं, क्योंकि उनकी सहायता मशीनों सम्बन्धी ज्ञान और धनोपार्जन की योग्यता पर निर्भर है ।
3. राज्य के कार्यों में परिवर्तन- औद्योगीकरण के कारण आर्थिक व्यवस्था जटिल होती जाती है जिससे राज्य का उत्तरदायित्व भी बढ़ता जाता है । उदाहरणार्थ, औद्योगीकरण से एक नया श्रमिक वर्ग उत्पन्न हुआ है। यह वर्ग अत्यधिक दयनीय अवस्था में है। इनके अधिकारों की रक्षा करना राज्य का उत्तरदायित्व है । श्रमिक कल्याण, वेतन, छुट्टी, काम के घण्टे, नियुक्ति आदि से सम्बन्धित अनेक अधिनियमों को आज सरकार को पास करना पड़ता है । केवल इतना ही नहीं, जनता के आर्थिक हित की अधिकतम रक्षा के लिए राज्य अनेक उद्योगों का राष्ट्रीकरण कर रहा है । राज्य का एक नियन्त्रक की एजेंसी के रूप में भी कार्य-क्षेत्र बढ़ गया है । औद्योगिक केन्द्रों में विभिन्न सांस्कृतिक पृष्ठभूमि के लोग इकट्ठे कार्य करते हैं । उनके अपने रहन-सहन के ढंग है जो अन्तर्वर्गीय सम्बन्धों को नियन्त्रित नहीं कर पाते । ऐसी अवस्था में कानून, न्यायालयों, पुलिस और सेना के द्वारा सामाजिक सम्बन्धों को व्यवस्थित किया जाता है ।
4. आर्थिक जीवन पर प्रभाव- औद्योगीकरण के फलस्वरूप भारतीय आर्थिक व्यवस्था में मूलभूत परिवर्तन हुए हैं । आदि काल से भारत एक कृषि प्रधान देश रहा है, उसकी आर्थिक संस्थाएँ कृषि व्यवसाय के अनुकूल ही विकसित हुई है। यह आर्थिक व्यवस्था औद्योगिक व्यवसाय के अनुकूल नहीं है जिससे औद्योगीकरण के साथ-साथ उनमें परिवर्तन होना आवश्यक है।
प्रश्न 55. कानून का क्या अर्थ है ?
उत्तर- संसद में प्रस्तुत कोई भी साधारण विधेयक जिस पर संसद में विचार-विमर्श एवं बहस हो चुकी है और मतदान के पश्चात् दो तिहाई या साधारण बहुमत से पारित हो चुका है तथा राष्ट्रपति द्वारा स्वीकृत किया जा चुका है, कानून कहलाता है।
1. सामाजिक न्याय- भारत के संविधान में दी गई व्यवस्था के अनुसार यह जरूरी हो गया है कि समाज में जाति, लिंग और धर्म से सम्बन्धित भेदभाव को दूर करके सभी को विकास के समान अवसर दिये जायें। इस प्रकार सामाजिक विधानों का उद्देश्य समाज में सभी वर्गों के साथ न्याय करना और दुर्बल वर्गों की दशा में सुधार करना है।
2. व्यवहार के नियमों में समानता- स्वतन्त्रता से पहले तक देश के विभिन्न हिस्सों में विवाह और उत्तराधिकार से सम्बन्धित सामाजिक कानून अलग-अलग थे। एक ही अपराध के लिए विभिन्न जातियों को एक-दूसरे से भिन्न दण्ड देने का प्रचलन था। आज सामाजिक विधानों का उद्देश्य सभी लोगों पर समान तरह के कानून लागू करना है जिससे उनके व्यवहारों में समानता आ सके।
3. दुर्बल वर्गों की दशा में सुधार- सामाजिक विधान एक ऐसा साधन है जिनकी सहायता से अनुसूचित जातियों, आदिवासियों और महिलाओं की दशा में सुधार किया जा सकता है। सामाजिक विधानों का उद्देश्य सभी वर्गों को समान अधिकार देना तथा दुर्बल वर्गों की दशा में सुधार करने के लिए उन्हें विशेष सुविधाएँ देना है।
4. सामाजिक जागरूकता- भारतीय समाज में स्मृतिकाल से लेकर स्वतन्त्रता से पहले तक रूढ़ियों, कुरीतियों, अन्धविश्वासों और बुढ़िया पुराण में इतनी वृद्धि होती रही कि पूरा समाज जड़ और विवेकशून्य हो गया। सामाजिक विधानों का उद्देश्य सभी लोगों को उपयोगी व्यवहार करने की प्रेरणा देना और स्वतन्त्र निर्णय की आदत को बढ़ाकर उनमें सामाजिक जागरूकता पैदा करना है ।
प्रश्न 56. भारतीय संविधान में उल्लेखित मौलिक कर्तव्यों का वर्णन कीजिए।
उत्तर- भारतीय संविधान में उल्लेखित मौलिक कर्त्तव्य निम्न हैं-
(1) संविधान का पालन करे और उसके आदर्शों, संस्थानों, राष्ट्र ध्वज और राष्ट्रगान का आदर करे ।
(2) स्वतन्त्रता के लिए हमारे राष्ट्रीय आन्दोलन को प्रेरित करने वाले उच्च आदर्शों को हृदय में संजोए रखे और उनका पालन करें।
(3) भारत की सम्प्रभुता, एकता और अखण्डता की रक्षा करे और उसे अक्षुण्ण रखे ।
(4) देश की रक्षा करे और आव्हान किए जाने पर राष्ट्र की सेवा करे।
(5) भारत के सभी लोगों में समरसता और समान भ्रातृत्व की भावना का निर्माण करे जो धर्म, भाषा और प्रदेश या वर्ग पर आधारित सभी भेदभाव से परे हो, ऐसी प्रथाओं का त्याग करे जो स्त्रियों के सम्मान के विरुद्ध हैं।
(6) हमारी सामाजिक संस्कृति की गौरवशाली परम्परा का महत्व समझे और इसका परिरक्षण करे।
(7) प्राकृतिक पर्यावरण की जिसके अन्तर्गत वन, झील, नदी और वन्य जीव हैं, रक्षा करे और उनका संवर्धन करे तथा प्राणी मात्र के प्रति दया रखे ।
(8) वैज्ञानिक दृष्टिकोण, मानववाद और ज्ञानार्जन तथा सुधार की भावना का विकास करे।
(9) सार्वजनिक सम्पत्ति को सुरक्षित रखे और हिंसा से दूर रहे।
(10) व्यक्तिगत और सामूहिक गतिविधियों के सभी क्षेत्रों में उत्कर्ष की ओर बढ़ने का प्रयास करे जिससे राष्ट्र निरन्तर बढ़ते हुए प्रयत्न और उपलब्धि की नई ऊँचाइयों को छू ले ।
प्रश्न 57. सामाजिक परिवर्तन में विधानों की भूमिका स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- भारत में सामाजिक विधानों के फलस्वरूप निम्नलिखित सामाजिक परिवर्तन हुए हैं-
1. विवाह संस्थाओं में परिवर्तन- विवाह में धार्मिक कर्मकाण्डों के महत्व में कमी दिखाई दे रही है । सामाजिक विधानों के कारण दहेज प्रथा पर नियन्त्रण लग जाने से बेमेल विवाहों की संख्या मंक कमी हो रही है। बहुपति-विवाह एवं बहुपत्नी-विवाह के स्थान पर एकविवाह का प्रचलन बढ़ा है । बाल-विवाह प्रथा में कमी होने लगी है । अन्तर्जातीय विवाहों का प्रचलन बढ़ रहा है।
2. जातिगत संरचना में परिवर्तन- नये सामाजिक विधानों के फलस्वरूप. जाति व्यवस्था के नियम प्रभावित हुए हैं । अब जो व्यक्ति योग्य एवं कुशल है वह किसी भी व्यवसाय को अपनी इच्छा से कर सकता है उस पर अब कोई प्रतिबंध नहीं है । वर्तमान में सभी जातियों के लिए देश में समान कानून हैं । विशेष विवाह अधिनियम के प्रभाव से अन्तर्जातीय विवाहों में तेजी से वृद्धि हो रही है । आज राजनीति, प्रशासन, उद्योग एवं व्यापार के क्षेत्र में निम्न जातियों ने अपनी योग्यता को प्रमाणित कर समाज में सम्मानजनक स्थान प्राप्त किये हुए हैं ।
3. पारिवारिक संरचनाओं में परिवर्तन- सामाजिक विधानों के फलस्वरूप पारिवारिक संरचनाओं में भी परिवर्तन होने लगा है । वर्तमान में संयुक्त परिवारों का विघटन होने लगा है तथा एकल परिवारों में वृद्धि हो रही है । परिवार में आजीविका उपार्जित करने वाले सदस्यों और स्त्रियों के अधिकारों में वृद्धि हुई है । बच्चों में परम्परावादी शिक्षा के स्थान पर नयी शिक्षा प्राप्त करने और व्यवहार के नये ढंगों को प्रोत्साहन मिला है।
4. महिलाओं की स्थिति में सुधार- सामाजिक विधानों के फलस्वरूप महिलाओं की स्थिति में महत्वपूर्ण सुधार हुए हैं । स्त्रियों को अब विवाह-विच्छेद एवं पुनर्विवाह के अधिकार मिल गये हैं । विधवाओं को पुनर्विवाह का अधिकार है । स्त्रियों को सम्पत्ति सम्बन्धी अधिकार मिल गये हैं । स्त्रियाँ अपने हिस्से की सम्पत्ति का स्वतन्त्रतापूर्वक उपभोग कर सकती हैं । अब वर्तमान परिवारों में स्त्रियों की स्थिति अधिक मजबूत हुई है तथा उन्हें परिवार एवं समाज में सम्मानपूर्ण स्थान मिला हुआ है।
5. छुआछूत एवं भेदभाव की समाप्ति- नये सामाजिक कानूनों के फलस्वरूप भारत में छुआछूत एवं जातिगत आधार पर भेदभाव।
प्रश्न 58. भूमि सुधार का अर्थ लिखिए-
उत्तर- भूमि सुधार का अर्थ- भूमि गाँवों की सामाजिक और आर्थिक संरचना का प्रमुख आधार है। यदि हम ग्रामीण जीवन के पिछड़ेपन और ग्रामीण असंतोष का गहराई से अध्ययन करें तो स्पष्ट होता है कि इनसे सम्बन्धित सभी पक्ष किसी न किसी रूप में सम्बन्धित दशाओं से ही जुड़े होते हैं। भूमि सुधार का तात्पर्य कृषि भूमि की एक ऐसी व्यवस्था करना है, जिससे छोटे और भूमिहीन किसानों की आर्थिक दशा में सुधार हो सके। अनेक लेखक यह मानते हैं, कि भूमि सुधार का तात्पर्य उन सभी प्रयत्नों से है, जिनके द्वारा पूरे कृषि संगठन में सुधार किया जाता है ।
प्रश्न 59. स्त्री-पुरुष लिंगानुपात क्या है ? 30 शब्दों में लिखिए।
उत्तर– प्रति हजार पुरुषों के पीछे स्त्रियों की संख्या, स्त्री-पुरुष लिंगानुपात कहलाता है। जनसंख्या लिंगानुपात के विकास के लिए अति महत्वपूर्ण है। सन् 2011 की जनगणना के अनुसार, एक हजार पुरुषों पर स्त्रियों की संख्या 943 है।
प्रश्न 60. बाल विवाह को 30 शब्दों में समझाइये।
उत्तर- बाल-विवाह- प्राचीन समय से भारत में बाल-विवाह का प्रचलन रहा है। कम आयु में ही लड़की का विवाह कर देना माता-पिता का धार्मिक कर्तव्य माना गया है। आज भी ग्रामों में ऐसे विवाह बहुत सम्पन्न होते हैं। बाल विवाह के दुष्परिणाम बुरे स्वास्थ्य, अकाल मृत्यु, वैधव्य के रूप में महिलाओं को ही भुगतने पड़ते हैं।
प्रश्न 61. नव मध्यम वर्ग से आप क्या समझते हैं? नवमध्यम वर्ग की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर- नव मध्यम वर्ग- स्वतंत्रता के पश्चात् आधुनिकीकरण एवं औद्योगिकीकरण के फलस्वरूप आर्थिक विकास की गति तेज हो जाने से भारत में व्यवसाय के बहुत से अवसर पैदा हो जाने से मध्यम वर्ग के अंदर ही बहुत से लोगों की आर्थिक स्थिति में अचानक तेजी से वृद्धि होने लगी। तकनीकी शिक्षा का ज्ञान प्राप्त कर एवं आधुनिक ढंग की शिक्षा प्राप्त कर मध्यम वर्ग के लोगों में से ही सॉफ्टवेयर इंजीनियर, शिक्षाविद, डॉक्टर, चार्टर्ड एकाउण्टेण्ट बनने लगे। उन्होंने अपने बाप-दादाओं की तुलना में अधिक सम्पत्ति इकट्ठी कर ली, इस तरह इस वर्ग में इनके रूप में एक नये धनी वर्ग का प्रादुर्भाव हुआ जिसे हम समाजशास्त्र की भाषा में नवमध्यम वर्ग कहते हैं।
नव-मध्यम वर्ग की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं–
(1) भारत में नव- मध्यम वर्ग के व्यवहार और जीवनशैली पश्चिमी ढंग के व्यवहारों से अधिक प्रभावित हैं साधारणतया सांस्कृतिक मूल्यों का उल्लंघन करने को ही इस वर्ग द्वारा आधुनिकता के रूप में देखा जाता है ।
(2) इस वर्ग की एक मुख्य विशेषता जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में स्वतन्त्र तरह के आचरण करना है। इस वर्ग द्वारा सामाजिक कुरीतियों, कर्मकाण्डों और जाति सम्बन्धी नियमों का विरोध करना एक अच्छी बात है।
(3) यह वर्ग एक तरह से आत्मकेन्द्रित वर्ग है जिसका जीवन भागदौड़, व्यक्तिगत हितों और अधिक से अधिक आर्थिक साधन प्राप्त कर लेने की चुनौतियों से घिरा हुआ है। इसके सामने नातेदारी सम्बन्धों, मानवीय मूल्यों, सामाजिक समस्याओं और राष्ट्रवादी विचारों का साधारणतया कोई महत्व नहीं होता।
(4) एक अन्य विशेषता, इस वर्ग में उपभोक्तावादी संस्कृति का बहुत तेजी से बढ़ना है। यह वह संस्कृति है जिसमें हम प्रत्येक उस चीज को अच्छा समझते हैं जो अधिक महंगी और आधुनिक होती है।
प्रश्न 62. वैश्वीकरण की तीन विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर-
वैश्वीकरण का अर्थ -
वैश्वीकरण के अर्थ को दो आधारों पर स्पष्ट किया है। अधिकांश विद्वानों के अनुसार वैश्वीकरण का तात्पर्य विश्व की अर्थव्यवस्था में एकीकरण की प्रक्रिया से है। जब विभिन्न देशों के बीच व्यापारिक प्रतिबंध कम या समाप्त होने लगते हैं तथा सभी देश एक दूसरे की प्रौद्योगिकी और अनुभवों का लाभ उठाकर अपना आर्थिक विकास करने लगते हैं। इस दशा को वैश्वीकरण कहते हैं।
वैश्वीकरण की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
1. सार्वभौमीकरण- वैश्वीकरण की मुख्य विशेषता सभी देशों के सामाजिक और आर्थिक जीवन में सार्वभौमीकरण विकसित होना है। इसका तात्पर्य है कि एक देश में बनने वाली जो वस्तुएँ अधिक उपयोगी होती हैं, उन्हें दुनिया के सभी बाजारों में खरीदा जाने लगता है। डिब्बाबन्द खाने योग्य वस्तुओं, फास्टफूड और दैनिक उपयोग में आने वाली वस्तुओं का बढ़ता हुआ उपभोग सार्वभौमीकरण का उदाहरण है।
2. एकीकरण- वैश्वीकरण की एक विशेषता विश्व स्तर के विभिन्न संगठनों का विकास होना है। इनका उद्देश्य पर्यावरण को स्वस्थ बनाना, पुरुषों और महिलाओं के विभेद को कम करना, सामान्य लोगों को ऋण की सुविधाएँ उपलब्ध कराना, आतंकवाद की रोकथाम करना तथा दुर्बल वर्गों की दशा में सुधार करना होता है।
3. सजातीयता- वैश्वीकरण का सम्बन्ध एक ऐसी दशा से है जिसमें विभिन्न देशों के लोगों के व्यवहारों में समानता पैदा होने लगती है। अधिक से अधिक आय प्राप्त करने के लिए भागदौड़ होटल और रेस्टोरेन्ट की संस्कृति, सौन्दर्य प्रसाधनों का बढ़ता हुआ उपयोग, विभिन्न सजातीय समूहों के बीच कम होती हुई दूरी, विलासितापूर्ण जीवन तथा आधुनिकता की मनोवृत्तियाँ वैश्वीकरण से पैदा होने वाली सजातीयता के उदाहरण हैं।
प्रश्न 63. भारत के प्रमुख दबाव समूहों के प्रकार लिखिए। भूमिका भी बताइए।
उत्तर- भारत के प्रमुख दबाव समूह एवं उनकी भूमिका निम्न है-
1. साम्प्रदायिक एवं धार्मिक दबाव समूह- साम्प्रदायिक एवं धार्मिक गुटों में से अधिकांश गुट राजनीति में सक्रिय रूप से शामिल हो गए हैं और कुछ दलों के रूप में संगठित हो गए। भएतीय ईसाईयों का अखिल भारतीय संघ, आर्य प्रतिनिधि सभा, लातन धर्मरक्षिणी सभा आदि धार्मिक समूहों के प्रकार हैं।
2. क्षेत्रीयवादी दबाव समूह- इस वर्ग में वे दबाव समूह आते हैं, से संकीर्णता तथा प्रान्तीयता की भावना पर आधारित हैं। विद्यार्थी संगठन, प्रादेशिक संगठन, प्रादेशिक, क्षेत्रीय एवं स्थानीय आधार पर संगठित है। प्रादेशिक संगठन के रूप में शिवसेना का नाम लिया जा सकता है ।
3. जातिवाद पर आधारित दबाव समूह- देश में जाति के आधार पर भी दबाव समूह पाए जाते हैं। जैसे- कायस्थ, ब्राह्मण समाज सभा, जाट सभा, बंगाली समाज, अग्रवाल समाज, वैश्य समाज आदि । निर्वाचन के समय जातिवाद की भावना को खुलकर उभारा जाता है और कई प्रत्याशी जातीयता का लाभ लेकर निर्वाचन में जीत सकते हैं।
प्रश्न 64. उदारीकरण के लाभ लिखिए।
उत्तर- आर्थिक उदारीकरण की नीति को अपनाने से प्राप्त लाभ निम्नानुसार हैं-
1. विदेशी मुद्रा कोष में वृद्धि- आर्थिक सुधार हेतु किये गये प्रयत्नों के अच्छे परिणाम बेहतर निर्यात और बेहतर विदेशी निवेश में भारतीय विदेशी मुद्रा के कोष को 18 बिलियन डॉलर तक पहुँचा दिया और स्वर्ण भण्डार को 5 विलियन डॉलर तक पहुँचा दिया।
2. विदेशी पूँजी निवेश में वृद्धि- विदेशी निवेश में अमेरिका तथा ब्रिटेन के साथ जर्मनी, स्विटजरलैण्ड, जापान, फ्रांस, हॉलैण्ड और सिंगापुर की भागीदारी भी बढ़ी है। भारत को भारी मात्रा में प्रत्यक्ष पूँजी निवेश के प्रस्ताव भी प्राप्त हुए हैं।
3. निजी क्षेत्र को बढ़ावा- निजी क्षेत्र को विनिमय और नियंत्रण में ढील मिलने के कारण निजी क्षेत्र अपनी इच्छानुसार विनियोग, उत्पादन, निर्यात आदि कर सका, जिसके अनुकूल परिणाम हमारे समक्ष आ रहे हैं।
4. उत्पादन की गुणवत्ता में सुधार- सार्वजनिक क्षेत्र की प्राथमिकता को समाप्त कर निजी क्षेत्र को बढ़ावा देने से उत्पादन की गुणवत्ता में सुधार आया और कुप्रबन्ध जैसे दोषों में कमी आई।
5. भारतीय संसाधनों का कुशल विदोहन- नई आर्थिक नीति के कारण देश के सीमित और बहुमूल्य आर्थिक संसाधनों का अधिक कुशलतापूर्वक विदोहन सम्भव हो सका है, जिससे देश में उत्पादकता और आर्थिक विकास पर अनुकूल प्रभाव पड़ा है।
प्रश्न 65. शिक्षा के उद्देश्य का वर्णन कीजिए।
उत्तर- शिक्षा के निम्नलिखित उद्देश्य हैं-
(1) शिक्षा का सबसे प्रमुख उद्देश्य व्यक्ति का समाजीकरण करना है। समाजीकरण वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा एक व्यक्ति यह सीखता है कि अपनी स्थिति के अनुसार समाज में उसे किस तरह की भूमिकाएँ अथवा व्यवहार करना चाहिए ।
(2) शिक्षा का दूसरा उद्देश्य लोगों की मनोवृत्तियों और उनके विचारों को इस तरह अनुशासित बनाना है, जिससे वे अपने जीवन पर स्वयं नियन्त्रण रखना सीख सकें। इसी से व्यक्ति को अपने देश, समाज और दूसरे व्यक्तियों के प्रति कर्त्तव्यों को पूरा करने की प्रेरणा मिलती है।
(3) शिक्षा का एक उद्देश्य व्यक्ति में ऐसी कुशलता विकसित करना है जिससे व्यक्ति आजीविका उपार्जित करने के योग्य बन सके। इसी कारण वर्तमान युग में परम्परागत शिक्षा की जगह व्यावसायिक शिक्षा को अधिक महत्व दिया जाता है।
(4) आज शिक्षा का एक मुख्य उद्देश्य व्यक्ति में ऐसी क्षमताएँ विकसित करना है जिससे वह श्रम-विभाजन और विशेषीकरण के युग में अपने लिए एक अलग स्थान बना सके। वैज्ञानिक शिक्षा इसी उददेश्य को पूरा करन का एक साधन है। विचारा को स्पष्ट करने के लिए भाषा की जरूरत होती है जो संचार के साधनों के कारण दिनोंदिन कमजोर होती जा रही है ।
प्रश्न 66. वैश्वीकरण का स्थानीय संस्कृति पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर- (1) भारत की अनेक सांस्कृतिक विशेषताओं जैसे-वेशभूषा, खानपान, शिष्टता के तरीकों, सम्मान प्रदर्शन और नैतिक मूल्यों आदि पर धीरे-धीरे पश्चिमी देशों की संस्कृति का प्रभाव बढ़ने लगा।
(2) संगीत, कला, सौन्दर्य प्रसाधन और त्यौहारों को मनाने के तरीके स्थानीय संस्कृति से सम्बधित होते हैं। धीरे-धीरे वैश्वीकरण के प्रभाव से इन पर संसार की अनेक दूसरी संस्कृतियों का स्पष्ट प्रभाव दिखायी देने लगा है।
(3) संस्कृति का बाजारीकरण वैश्वीकरण का एक अन्य प्रभाव है। कुछ समय पहले तक जिस हस्तकला, मूर्तिकला और लोककला का सम्बन्ध पूरी तरह स्थानीय संस्कृति से था, उसमें आज इस तरह परिवर्तन होने लगा है, जिससे लोगों को अधिक से अधिक लाभ मिल सके । जिन पर्यटन केन्द्रों में बड़ी संख्या में विदेशी पर्यटक आते रहते हैं वहाँ यह प्रवृत्ति सरलता से देखी जा सकती है।
(4) वैश्वीकरण के प्रभाव से अब बच्चों को अपने सांस्कृतिक मूल्यों की शिक्षा न देकर व्यवहार के उन तरीकों का प्रशिक्षण दिया जाने लगा है जिनका भारत की मौलिक संस्कृति से कोई सम्बन्ध नहीं है।
(5) वैश्वीकरण स्थानीय संस्कृतियों की भिन्नताओं की जगह एक सार्वभौमिक संस्कृति की जरूरत पर बल देती है। निश्चय ही सार्वभौमिक संस्कृति के नाम पर संस्कृति की उन विशेषताओं का प्रभाव बढ़ने लगता है जिनका सम्बन्ध विकसित और प्रभावशाली देशों से होता है ।
प्रश्न 67. बाल अपराध क्या है? समझाइए ।
उत्तर- बच्चों द्वारा किए गए सामान्य अपराधों को हम बाल अपराध कहते हैं। इसका तात्पर्य है कि बाल अपराध में दो मुख्य तत्व शामिल होते हैं- बच्चे की उम्र तथा उसके द्वारा किए जाने वाले अपराध की प्रकृति। भारत में साधारणतया 16 वर्ष तक के बालकों और 18 वर्ष तक की बालिकाओं द्वारा किए जाने वाले अपराधों को बाल अपराध कहा जाता है। मुख्य बात यह है कि बाल अपराध की बहुत कम घटनाएँ ही पुलिस के रिकार्ड में आ पाती हैं। अधिकांश बच्चे चोरी, जेब काटना, सेंधमारी और धोखाधड़ी जैसे आर्थिक अपराध करते हैं । बाल अपराध को दो मुख्य कराणों के आधार पर समझा जा सकता है। इन्हें हम व्यक्तिगत कारण तथा परिस्थिति से पैदा होने वाले कारण कहते हैं। बच्चों में भय, संवेगात्मक तनाव, असुरक्षा की भावना और बदले की भावना कुछ व्यक्तिगत कारण हैं। परिस्थिति सम्बन्धी दशाओं में बुरी संगति, परिवार का दोषपूर्ण वातावरण और अपराधी फिल्मों का प्रभाव मुख्य है। आज की फिल्में बच्चों में संवेगात्मक तनाव पैदा करने के साथ ही उन्हें हिंसा और अपराध के नए-नए तरीके सिखाती हैं। झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाले बच्चे अपने चारों ओर के वातावरण के प्रभाव से अपराधी व्यवहार सीखने लगते हैं।
प्रश्न 68. सामाजिक आन्दोलन के प्रकारों का वर्णन कीजिए।
उत्तर- सामाजिक आन्दोलन के निम्नलिखित प्रकार हैं-
1. विरोधपूर्ण आन्दोलन- यह वे आन्दोलन हैं जिनका उद्देश्य शोषण के विरुद्ध अपने विरोध को स्पष्ट करके किसी समुदाय द्वारा अपनी स्थिति में सुधार करना होता है। ऐसे आन्दोलन सम्पूर्ण सामाजिक और सांस्कृतिक व्यवस्था में परिवर्तन लाने के लिए नहीं किए जाते ।
2. सुधारवादी आन्दोलन- ऐसे आन्दोलनों का उद्देश्य लोगों के परम्परागत विश्वासों, मनोवृत्तियों और जीवन-शैली में परिवर्तन लाना होता है। मध्यकाल में भक्ति आन्दोलन और 19वीं शताब्दी में ब्रह्म समाज तथा आर्य समाज द्वारा सामाजिक कुरीतियों को दूर करने के लिए चलाए गए आन्दोलन इसका उदाहरण है ।
3. रूपान्तकारी आन्दोलन- यह आन्दोलन वे हैं जिनका उद्देश्य एक विशेष व्यवस्था को बदलना होता है। भारत में एक लम्बे समय तक निम्न जातियाँ सभी तरह की सुविधाओं और अधिकारों से वंचित रहीं। इसके फलस्वरूप दलित जातियों और पिछड़ी जातियों ने उच्च जातियों के एकाधिकार को चुनौती देकर सामाजिक व्यवस्था को एक नया रूप देने के लिए आन्दोलन किए। दक्षिण भारत में 'द्रविड़ मुन्नेत्र कड़घम' निम्न जातियों द्वारा ब्राह्मण व्यवस्था के विरुद्ध किया जाने वाला एक आन्दोलन था जिसने बाद में राजनैतिक रूप ले लिया ।
4. क्रान्तिकारी आन्दोलन- ऐसे आन्दोलनों द्वारा समाज की सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक व्यवस्था में आमूलचूल परिवर्तन लाने की कोशिश की जाती है। इसमें हिंसा और संघर्ष के द्वारा परिवर्तन को भी बुरा नहीं समझा जाता। इस तरह के आन्दोलन अक्सर मार्क्सवादी विचारधारा पर आधारित होते हैं। भारत में नक्सलवादी आन्दोलन तथा तेभागा आन्दोलन इसके उदाहरण हैं।
प्रश्न 69. सामाजिक विचलन के कारणों का वर्णन कीजिए।
उत्तर- सामाजिक विचलन का अर्थ- विचलन अनुरूपता की विपरीत दशा है, इसका अर्थ यह है कि जो नियम और व्यवहार के तरीके समाज में लोगों के बीच एकरूपता बनाए रखने के लिए निर्धारित किए जाते हैं, उनका उल्लंघन करने को ही हम विचलन कहते हैं। परिभाषा- जॉन्सन के अनुसार “विचलित व्यवहार केवल वह व्यवहार नहीं है, जिसके द्वारा किसी मानदण्ड अथवा आदर्श नियम का उल्लंघन किया जाता हो, यह एक ऐसा व्यवहार है जिसमें नियमों का उल्लंघन जानबूझकर किया जाता है।" सामाजिक विचलन के निम्नलिखित कारण हैं-
1. समाजीकरण की कमी- समाजीकरण करने वाले सभी अभिकरण जैसे-परिवार, विद्यालय तथा कानून आदि। वे अक्सर सामाजिक मूल्यों का पालन करने वाले व्यक्तियों को समुचित पुरस्कार नहीं दे पाते हैं। अतः व्यक्ति समाज के नियमों का उल्लंघन करके अपने उद्देश्यों को पूरा करने का प्रयत्न करने लगता है।
2. दुर्बल स्वीकृतियाँ- यदि समाज के नियमों के अनुसार व्यवहार करने वाले लोगों को समुचित पुरस्कार न मिले अथवा नियमों का उल्लंघन करने पर लोगों को समुचित दण्ड न मिले, तो समाज द्वारा स्वीकृत व्यवहारों की ताकत कमजोर पड़ जाती है। इससे विचलित व्यवहार को प्रोत्साहन मिलता है ।
3. कानूनों को लागू करने की दुर्बलता- कानूनों को लागू करने वाले लोगों की कमी, उनकी निष्क्रियता या स्वयं कानूनों की कमी के कारण अक्सर कानून प्रभावपूर्ण ढंग से लागू नहीं हो पाते।
4. सामाजिक मानदण्डों की अनिश्चितता- कभी-कभी समाज द्वारा निर्धारित मानदण्ड सुपरिभाषित नहीं होते। उदाहरण के लिए, देश-भक्ति, स्वतन्त्रता तथा समाज सुधार आदि कुछ विशेष सामाजिक मानदण्ड हैं। समाज सुधार के नाम पर अनेक व्यक्ति दुर्बल वर्गों का शोषण करने लगते हैं। इस प्रकार सामाजिक मानदण्डों की अनिश्चितता से भी सामाजिक विचलन उत्पन्न होता है।
5. कानूनों का भ्रष्ट उपयोग- माफिया गिरोहों को या तो पुलिस नियन्त्रित नहीं कर पाती अथवा उनसे पुलिस के भ्रष्ट सम्बन्ध होते हैं। अधिकारी वर्ग में भी कानूनों का भ्रष्ट उपयोग करने की प्रवृत्ति बढ़ी है। इससे भी लोगों को विचलित व्यवहार करने का प्रोत्साहन मिलता है।
प्रश्न 70. भारत में राष्ट्रीय एकता को प्रोत्साहित करने के सुझाव दीजिए।
उत्तर- 1. स्वस्थ राजनीति- राष्ट्रीय एकीकरण के लिए आवश्यक है कि ऐसे राजनैतिक दलों और राजनीतिक संगठनों की गतिविधियों पर नियन्त्रण लगाया जाये जो विभिन्न क्षेत्रों, धर्मों वर्गों, जातियों और भाषाओं के लोगों के बीच अविश्वास और विरोध की भावनाएँ भडकाते हैं।
2. शिक्षा का प्रसार- राष्ट्रीय एकीकरण से सम्बन्धित समस्याएँ सामान्य रूप से उन्हीं वर्गों से सम्बन्धित हैं जो निरक्षर होने के कारण देश के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को नहीं समझ पाते। शिक्षा लोगों को जागरूक बनाती है, उन्हें देश की समस्याओं से परिचित कराती है तथा एक ऐसी विवेक-बुद्धि देती है जिससे इन समस्याओं को दूर किया जा सके।
3. भाषा की एकता- राष्ट्रीय एकीकरण के लिए भाषात्मक एकीकरण आवश्यक है । आज आवश्यकता इस बात की है कि सम्पूर्ण देश के लिए किसी एक भाषा को राष्ट्रभाषा के रूप में घोषित करके उसे शिक्षा का अनिवार्य माध्यम बनाया जाये। आरम्भ में इसका कुछ विरोध अवश्य होगा लेकिन अन्ततः इससे भावात्मक एकता बढ़ने लगेगी।
4. साम्प्रदायिक तत्वों पर नियन्त्रण- ऐसे सभी संगठनों और व्यक्तियों पर कड़ी निगाह रखने की आवश्यकता है, जो धर्म, जाति अथवा क्षेत्र के आधार पर लोगों को संगठित होने का प्रोत्साहन देते हैं। इन आधारों पर बनने वाले राजनैतिक दलों को भी मान्यता नहीं मिलनी चाहिए ।
प्रश्न : 71. जनांकिकी की कोई एक परिभाषा लिखिए ।
उत्तर- जनांकिकी की एक परिभाषा:
सोरोकिन के शब्दों में:- जनांकिकी वह विज्ञान है, जो किसी समाज के जनसंख्या के आकार, घनत्व तथा उसमे होने वाली कमी अथवा वृद्धि से सम्बंधित परिवर्तनों को स्पष्ट करती है।
प्रश्न : 72. जनजाति की एक परिभाषा लिखिए ।
उत्तर- डी.एन. मजूमदार- जनजाति परिवारों का एक ऐसा समूह है जिसका एक सामान्य नाम होता है जिसके सदस्य एक निश्चित क्षेत्र में निवास करते है एक सामान्य भाषा बोलते है तथा विवाह और व्यवस्था के बारे में कुछ खास नियमों का पालन करते है।
प्रश्न : 73. भारतीय समाज के अध्ययन के चार उपागमों के नाम लिखिए ।
उत्तर- भारतीय समाज के अध्ययन हेतु प्रोफेसर योगेन्द्र सिंह ने उपयोग में लाये जाने वाले चार मुख्य उपागमों का उल्लोख किया है -
(1) भारतीय विद्याशास्त्रीय उपागम
(2) सांस्कृतिक उपागम
(3) संरचनात्मक उपागम
(4) ऐतिहासिक उपागम।
प्रश्न : 74. शिक्षा के कोई दो उद्देश्य लिखिए ।
उत्तर- शिक्षा के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित है :
(1) शिक्षा का सबसे प्रमुख उद्देश्य व्यक्ति के सामाजिकरण के द्वारा उसके व्यक्तित्व का विकास करना है।
(2) शिक्षा हि व्यक्ति में ऐसी कुशलता विकसित करती है, जिससे व्यक्ति आजीविका उपार्जित करने के योग्य बन सके।
प्रश्न : 75. हिंसा के कोई दो कारण लिखिए ।
उत्तर- हिंसा के दो कारण :
(1) कुण्ठा :- व्यक्ति में जो तरह-तरह की असफलताएं मिलती है, उससे हीनता व निराशा की भावना पैदा हो जाती है, इसी से व्यक्ति कुण्ठा के कारण उसमें हिंसात्मक प्रवृत्ति बढ़ने लगती है।
(2) आतंकवाद :- वर्तमान युग में दुनिया के विभिन्न हिस्सों में आतंकवादी गतिविधियों में होने वाली वृद्धि हिंसा का प्रमुख कारण है।
प्रश्न : 91. हिन्दु विवाह के कोई तीन उद्देश्य लिखिए ।
उत्तर- हिन्दू विवाह के तीन प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित है :
(1) धार्मिक कर्तव्यों की पूर्ति :- हिन्दू विवाह का सबसे प्रमुख उद्देश्य पति तथा पत्नी द्वारा अपने धार्मिक कर्तव्यों की पूर्ति करना होता है।
(2) पुत्र जन्म :- हिन्दू विवाह का दूसरा उद्देश्य कम से कम एक पुत्र को जन्म देना। पुत्र ही अपने पूर्वजों को पिण्ड दान दे सकता है।
(3) रति :- पी.एच. प्रभु ने लिखा है कि- हिन्दू विवाह में रति का अर्थ पति-पत्नी द्वारा इस उद्देश्य से एक-दूसरे के सम्पर्क में आना है, जिससे वे एक संस्कारवान सन्तान को जन्म दे सके।
प्रश्न : 76. जनजातियों में जीवन साथी के चुनाव के कोई तीन तरीके लिखिए ।
उत्तर- जनजातियों में जीवन साथी के चुनाव के तीन तरीके निम्न है :
(1) हरण विवाह :- यह विवाह का वह तरीका है, जिसमे किसी पुरूष द्वारा लड़की को बलपूर्वक उठा लिया है और उससे विवाह कर लिया जाता है।
(2) परीक्षा विवाह :- अनेक जनजातियों में युवक को विवाह करने के लिए अपनी शक्ति और साहस का परिचय देना पड़ता है। परीक्षा विवाह का सबसे स्पष्ट रूप गुजराती भीलो' में देखने को मिलती है।
(3) परिवीक्षा विवाह :- इस प्रथा के अनुसार विवाह के इच्छुक युवक को लड़की के माता-पिता के घर में जाकर कुछ दिन रहना पड़ता है। विवाह का यह तरीका ‘मणिपुर की कूकी' जनजाति में पाया जाता है।
प्रश्न : 77. भूमि सुधार के कोई तीन उद्देश्य लिखिए ।
उत्तर- भूमि सुधार के तीन उद्देश्य निम्नलिखित है :
(1) समान्ता और सामाजिक न्याय पर आधारित कृषि व्यवस्था का पुनर्गठन करना : यह भूमि सुधार कार्यक्रम सबसे मुख्य उद्देश्य है। क्योंकि दुनिया के अधिकांश देश एक लम्बे समय तक उपनिवेशवादी और सामान्तवादी व्यवस्था के दोषों से पैदा होने वाली बुराइयों के शिकार रहे है।
(2) उपनिवेशवादी शोषण को दूर करना : उपनिवेशवादी तथा सामान्तवाद का उद्देश्य कृषकों की आय के एक बड़े हिस्से को अपने अधिकार में कर लेना था जिससे कृषको को आर्थिक शोषण अपने चरम सीमा पर पहुंच गया।
(3) कृषि बिचौलियों का उन्मूलन : एक अन्य कृषि बिचौलियो का उन्मूलन करके कृषकों का अपनी भूमि का स्वतन्त्र मालिक बनाना था। क्योंकि निजि सम्पत्ति की धारणा अधिक श्रम करने को प्रोत्साहन देती है।
प्रश्न : 78. हरित क्रान्ति के कोई तीन विशेष कार्यक्रम लिखिए ।
उत्तर- हरित क्रांति के विशेष कार्यक्रम :
1. सर्वप्रथम अधिक उपज देने वाली फसलों के कार्यक्रम लागू किये जिनसे कृषि उत्पादन में वृद्धि की जा सकती थी।
2. सन् 1967-68 से देश में बहुफसल कार्यक्रम आरंभ किया गया। यह साधन खेती के कार्यक्रम का अंग है।
3. हरित क्रांति के लिये जरूरी था कि खेती वर्षा पर निर्भर न रहे। इसके लिये बड़ी छोटी सिंचाई की योजना बनाई गई।
4. कृषि उत्पादन को बढ़ाने के लिये नई तकनीकों और सिंचाई की सुविधाओं के साथ कृषकों को प्रशिक्षण देना भी जरूरी समझा गया।
प्रश्न : 79. नव मध्यम वर्ग की कोई तीन विशेषताएँ लिखिए ।
उत्तर- नव मध्यम वर्ग की तीन विशेषताएं निम्नलिखित है :
(1) पश्चिमी विचारों से अधिक प्रभावित :- प्रसिद्ध समाजशास्त्री डी.पी. मुखर्जी ने लिखा है भारत में नव मध्यम के व्यवहार और जीवन शैली-पश्चिमी विचारो से अधिक प्रभावित है।
(2) आत्मकेन्द्रीय वर्ग :- यह वर्ग एक तरह से आत्मकेन्द्रीत वर्ग है। जिसका जीवन भाग दौड़ व्यक्तिगत हितो और अधिक से अधिक आर्थिक साधन प्राप्त कर लेने की चुनौतियो से घिरा रहता है।
(3) उपभोक्तावादी संस्कृति :- यह वह संस्कृति है जिससे हम प्रत्येक उस चीज को अच्छा मानते है जो अधिक आधुनिक और महंगी होती है।
प्रश्न : 80. मध्यकालीन भारत में एकता के कोई चार तत्व लिखिए ।
उत्तर- मध्यकालीन भारत में एकता के तत्व निम्नलिखित है :
(1) हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच आपसी सद्भावना :- इस काल में भारत के अधिकांश हिस्से पर मुसलमानों का अधिकार होने के बाद भी दोनों में आपसी सद्भाव बना रहा।
(2) अकबर की भूमिका :- मध्यकालीन भारत में सामाजिक सांस्कृतिक एकता को बनाये रखने में अकबर की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण हैं।
अकबर ने दीन-ए-इलाही नाम का एक नया धर्म चलाया था।
(3) भक्ति आन्दोलन :- मध्यकाल में सांस्कृतिक एकता का एक अन्य आधार तत्व इस समय आरम्भ होने वाले भक्ति आन्दोलन भी थे।
यह भक्ति आन्दोलन दक्षिण भारत के नवनार सन्तों ने चलाया था।
(4) चित्रकला : भवन निर्माण कला :- यदि हम चित्रकला और भवन निर्माण कला के दृष्टि से देखे तो भी एकता का महत्वपूर्ण तत्व कहा जा सकता है।
प्रश्न : 81. भारत में जनसंख्या वृद्धि के कोई चार कारण लिखिए ।
उत्तर- भारत में बढ़ती जनसंख्या वृद्धि के कारण निम्नलिखित है :
(1) अशिक्षा :- अशिक्षा के कारण अधिकांश व्यक्ति परिवार में अधिक बच्चों के जन्म से होने वाली हानियों को नहीं समझ पाते।
(2) निम्न जीवन स्तर :- निम्न जीवन स्तर और जनसंख्या वृद्धि के बीच एक प्रत्यक्ष सम्बन्ध है। जीवन स्तर नीचा होने के फलस्वरूप लोगों के मनोरंजन की समुचित सुविधाएं नहीं मिल पाती। फलस्वरूप स्त्रीयों में गर्भधारण की सम्भावनाएँ बढ़ जाती है।
(3) बाल विवाह :- बाल विवाह में कुछ कमी हुयी है, लेकिन आज में ग्रामीण समुदायो में बाल विवाह की प्रथा है। बाल विवाह के फलस्वरूप माता-पिता को बच्चों को जन्म देने के कही ज्यादा समय मिल जाता है।
(4) बहुपत्नी विवाह :- मुसलमानों तथा कुछ जनजातियो में बहुपत्नी विवाह की प्रथा होने के फलस्वरूप परिवार का आकार बड़ा होने की सम्भावना बढ़ जाती है।
प्रश्न : 82. भारत में ग्रामीण समुदाय की कोई चार विशेषताएँ लिखिए ।
उत्तर- ग्रामीण समुदाय की चार विशेषताएँ निम्नलिखित है :
(1) कृषि मुख्य व्यवसाय :- ग्रामीण समुदाय का मुख्य व्यवसाय खेती होती है। तथा यहां खेती ही लोगों के जीवन को प्रभाति करती है।
(2) छोटा आकार :- साधारणतया गाँव में रहने वाले सभी लोग एक-दूसरे के नातेदार होते है। यही कारण है कि धर्म और जाति के आधार पर गाँव बंटे होते है। जिससे इनका आकार छोटो होता है।
(3) प्राकृतिक पर्यावरण :- ग्रामीण समुदाय का जीवन अपने पर्यावरण से अधिक प्रभावित होते है। यहां फसलों के लिए वर्षा पर निर्भर रहना पड़ता है।
(4) सादा जीवन :- ग्रामीण समुदाय की अन्य प्रमुख विशेषता यह है, कि इनका जीवन सादा और परम्परावादी होता है, बहुत सी विकास योजनाओं के बाद भी गरीबी और अशिक्षा अच्छा भी ग्रामीण जीवन का अनिवार्य हिस्सा बना हुआ है।
(5) प्राथमिक सम्बन्धों की प्रधानता :- गाँव में सभी लोग एक दूसरे को व्यक्तिगत रूप से जानते है। उनके पारस्परिक सम्बन्ध वैयक्तिक होते है, किसी स्वार्थ पर आधारित नहीं होते है।
(6) परम्परागत नियंत्रण :- गाँवों में कानून और राज्यों के नियमों का व्यक्तियों के व्यवहार पर उतना प्रभाव नहीं पड़ता जितना परिवार जाति और धर्म का।
प्रश्न : 83. संयुक्त परिवार की कोई चार विशेषताएँ लिखिए ।
उत्तर-
संयुक्त परिवार की चार समस्याएं निम्नलिखित है :
(1) बड़ा आकार :- एक संयुक्त परिवार में तीन-चार पीढ़ियों के रक्त सम्बन्धियों और विवाह के द्वारा इसमें सम्मिलित होने वाले सदस्यों का समावेश रहता है। इसलिए इसका आकार बहुत बड़ा होता है।
(2) सामान्य निवास :- एक संयुक्त परिवार के सदस्य सभी मिलकर एक ही मकान में रहते है। आज रहने के तरीकों में कुछ परिवर्तन हो जाने के कारण दो-तीन घरों में मिल कर एक साथ रहने लगे हैं।
(3) सामान्य रसोई :- एक संयुक्त परिवार के सभी सदस्य एक ही रसोई में बना भोजन करते है।
(4) संयुक्त सम्पत्ति :- कानूनी और सामाजिक तौर पर हम उसी परिवार एक संयुक्त परिवार कहते है। जिनके सदस्यों के बीच सम्पत्ति का बटवारा न हुआ हो। परिवार का सबसे वयोवृद्ध पुरूष सभी को एक सामान्य कोष से धन देता है।
(5) कर्ता की प्रधानता :- संयुक्त परिवार के मुखिया को कर्ता कहा जाता है। कर्ता ही अपने सभी सदस्यों को अपने रीति-रिवाजों के अनुसार काम सोपता है। तथा उन सभी को एक दूसरे को आपस में बांधे रखता है।
प्रश्न : 84. संयुक्त परिवार की कोई चार समस्याएँ (दोष) लिखिए ।
उत्तर- संयुक्त परिवार के दोष:
- व्यक्तित्व विकास में बाधक।
- सदस्यों में द्वेष और कलह।
- सामाजिक समस्याओं का पोषण।
- पीढ़ियों के बीच तनाव।
- गतिशीलता में बाधक।
प्रश्न :85. नगरीकरण के सामाजिक परिणाम लिखिए । (कोई चार)
उत्तर- नगरीकरण के सामाजिक परिणाम निम्नलिखित है :
(1) परिवार पर प्रभाव :- डॉ. ए.आर. देसाई तथा कापड़ियाँ जैसे प्रमुख विद्यानों ने केन्द्रक परिवारों में होने वाली वृद्धि तथा संयुक्त परिवारों के विघटन को नगरीकरण का ही परिणाम माना है।
(2) जाति व्यवस्था में परिवर्तन :- भारतीय समाज की परम्परागत संरचना जाति व्यवस्था के सिद्धान्तों पर ही आधारित थी, नगरीकरण की प्रक्रिया ने इन प्रभावों को लगभग पूरी तरह समाप्त कर दिया।
(3) स्त्रियों की स्थिति में सुधार :- नगरीकरण ने शिक्षा व्यक्तिगत स्वतंत्रता तथा समतकारी दृष्टिकोण को प्रोत्साहन देकर स्त्रियों की प्रस्थिति को ऊँचा उठाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
(4) धार्मिक जीवन में परिवर्तन :- नगरी जीवन शैली में धार्मिक रूढ़ियां अन्धविश्वासों होकार के कर्मकाण्डों तथा पुरोहित वर्ग के अलौकिक अधिकारों का कोई महत्व नहीं होता है।
प्रश्न : 86. सांस्कृतिक परिवर्तन में जनसंचार की भूमिका को समझाइये । (कोई चार)
उत्तर- जनसंचार के चार दुष्प्रभाव निम्नलिखित है :
(1) व्यापारिक प्रतिस्पर्धा :- जनसंचार के साधन विशेषकर, रेडियों तथा टेलीविजन पर निजी कम्पनियों का प्रभाव बहुत अधिक बढ़ जाने से इनके द्वारा प्रयोजित कार्यक्रम व्यापारिक प्रतिस्पर्धा पर अधिक आधारित होने लगते है।
(2) अनुशासन हीनता की समस्या :- टेलीविजन में दिखाये जाने वाले कार्यक्रम बच्चों में शुरू से ही मारधातु कामूकता तथा विरोध की भावनाए विकसित करने लगती है। फलस्वरूप नयी पीढ़ी के लोगों में अनुशासन हीनता में वृद्धि होने लगती है।
(3) कर्तव्यों के प्रति उदासीनता :- जनसंचार के साधनों का नैतिक और आध्यात्मिक सम्बन्धों से कोई सम्बन्ध नहीं होता इसका सम्बन्ध जीवन के केवल भौतिक पक्षों से होता है फलस्वरूप देश समाज और परिवार के प्रति हमारी उदासीनता बढ़ती जाती है।
(4) सस्ती लोकप्रियता :- जनसंचार के साधनों की नींव जन आर्थिक लाभ पर आधारित होने लगती है, तब इसके सामने जनसाधारण के हितो का कोई महत्व नहीं रह जाता है।
प्रश्न : 87. भारत में जनजातियों की कोई पाँच विशेषताएँ लिखिए ।
उत्तर- जनजातियो की पांच प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित है :
(1) सामान्य नाम :- प्रत्येक जनजाति का अपना एक विशेष नाम होता है। तथा इसी कारण एक जनजाती के सभी लोग समानता की भावना से एक दूसरे से जुड़े रहते है उदाहरण के लिए गोड़, मुण्डा, टोडा, भील और संथाल आदि भारत की कुछ बड़ी जनजाति है।
(2) एक क्षेत्रीय समुदाय :- प्रत्येक जनजाति एक निश्चित भू–भाग में निवास करता है। समान्यता इनके निवास का कोई जंगली पहाड़ी अथवा सीमान्त प्रदेश होते है।
(3) पृथक भाषा :- प्रत्येक जनजाति का अपना एक अलग भाषा होती है। एक जनजाति के सभी लोग अपनी ही भाषा या बोली में विचारों का आदान-प्रदान करते है।
(4) आत्मनिर्भरता :- जनजाति एक आत्मनिर्भर समुदाय है। तथा यह सामाजिक और आर्थिक तुलना में दूसरे सभी समुदायो पर बहुत कम निर्भर है।
(5) समानता की चेतना :- प्रत्येक जनजाति अपनी उत्पत्ती किसी काल्पनिक पूर्वज या टोटम में मानती है। इस कारण सभी जनजातिया अपने आपको एक बड़े वंशज के रूप में देखती है।
प्रश्न : 88. भारतीय संस्कृति की परंपरागत विशेषताएँ लिखिए । (कोई पाँच)
उत्तर- भारत की परम्परागत संस्कृति की मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित है :
(1) आध्यात्मवाद :- डॉ. राधाकृष्णन ने लिखा है कि भारत की परम्परागत संस्कृति में आध्यात्मवाद उसकी आत्मा है। आध्यात्मवाद का तात्पर्य सांसारिक कर्तव्यों को छोड़कर साधु संयासी बन जाने से नहीं है।
(2) कर्तव्यों पर बल :- भारतीय संस्कृति में व्यक्ति के सभी कर्तव्यों को चार मुख्य भागों में विभाजित किया गया है इन्हीं को हम पुरूषार्थ भी कहते है।
(3) सामूहिकता :- भारतीय संस्कृति व्यक्तिवाद को महत्व न देकर सामूहिकता को अधिक महत्व देता है। इस आधार पर यह स्पष्ट किया गया की सभी व्यक्तियों पर पांच तरह के ऋण होते है।
(4) कर्मफल में विश्वास :- सभी जातियो तथा व्यक्तियों को अपने कर्तव्यों को पूरा करने की प्रेरणा देने के लिए भारतीय संस्कृति में कहा गया है कि कोई भी व्यक्ति अपने कर्मो का फल भोगने से नहीं बच सकता है।
(5) सहिष्णुता और सामंजस्य :- भारतीय संस्कृति की एक प्रमुख विशेषता यह है कि इसके अन्तर्गत सांस्कृति और धार्मिक एकता को बनाये रखने के लिए व्यक्ति के स्वतंत्रता का दमन नहीं किया गया है।
प्रश्न : 89. भारत में महिला सशक्तिकरण के कार्यक्रम लिखिए । (कोई पाँच)
उत्तर- भारत में महिला सशक्तिकरण को कार्यक्रम निम्नलिखित है :
(1) स्वयंसिद्धा कार्यक्रम :- ग्रामीण तथा नगरीय महिलाओं को सन् 1995 में महिला समृद्धि योजना के अन्तर्गत अपने स्वयं सहायता बनाकर किसी विशेष गृह उद्योग खोलने को प्रोत्साहन दिया गया।
सन् 2001 से इस कार्यक्रम को स्वयंसिद्धा कार्यक्रम में मिला दिया गया।
(2) जननी सुरक्षा योजना :- भारत में जब सन् 2005 में भारतीय राष्ट्रीय स्वस्थ्य मिशन आरम्भ हुआ तो यह कार्यक्रम माताओं और शिशुओं के लिए बनायी गयी। इसके लिए बच्चों को जन्म देने की दशा में महिलाओं को 1400 रूपये की आर्थिक सहायता देना था।
(3) बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओं योजना :- देश में कन्या भ्रूण हत्या को रोकने तथा स्त्रियो और पुरूषों के अनुपात में बढ़ते अन्तर को कम करने के लिए वर्ष 2015 से आरम्भ की गयी।
(4) सुकन्या समृद्धि योजना :- यह योजना भारत सरकार द्वारा जनवरी 2015 से आरम्भ की गयी। इस योजना का उद्देश्य माता-पिता को अपनी लड़की के भावी शिक्षा और विवाह के लिए एक पृथक खाता खुलवाने को प्रोत्साहन देना था।
(5) प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना :- निर्धन महिलाओं को स्वास्थ्य की देख-रेख तथा उन्हें धुएं भरे रसोई के प्रदूषण से बचाने के लिए वर्ष 2016 से आरम्भ की गयी।
प्रश्न : 90. अनुसूचित जनजातियों की कोई पाँच मुख्य समस्याएँ लिखिए ।
उत्तर- अनुसूचित जनजातियों की समस्याऐं -
1. सामाजिक समस्या - मजूमदार तथा मदान नें यह स्पष्ट किया है कि बाहरी समूहों के संपर्क में आने के कारण जनजातियों के परम्परागत सामाजिक संगठन में अनेक परिवर्तन आये हैं।
2. आर्थिक समस्याऐं - जनजातियों की आज एक प्रमुख समस्या गरीबी और बेरोजगारी की है।
3. सांस्कृतिक समस्याऐं - जनजातियों की सांस्कृतिक समस्याओं का मुख्य संबंध ईसाई एवं हिन्दू धर्म को मानने वाले समूहों के संपर्क में आने से है।
4. स्वास्थ्य और पोषण की समस्या - नई शासन व्यवस्था के द्वारा जनजातियों को जड़ी बूटियों के संग्रह पर रोक दिया गया तो उनके सामने पौष्टिक आहार की समस्या पैदा हो गई।
5. शिक्षा संबंधी समस्याएं:- निर्धनता के कारण अधिकांश लोग अपने बच्चे स्कूल भेजने की अपेक्षा उन्हें खेती या मजदूरी के काम में लगाना पसंद करते है।
प्रश्न : 91. संविधान द्वारा दिए गए नागरिकों के मौलिक अधिकारों को समझाइये । (किन्हीं पाँच)
उत्तर- मौलिक अधिकार -
1. समानता का अधिकार - संविधान के द्वारा यह प्रावधान किया गया है कि कानून के सामने सभी लोग समान हैं।
2. स्वतंत्रता का अधिकार - इसके अंतर्गत अनेक ऐसे अधिकारों का उल्लेख है जिनकी सहायता से लोग एक स्वतंत्र जीवन बिता सकें।
3. शोषण से रक्षा का अधिकार - यह व्यवस्था की गई कि किसी व्यक्ति से बेगार नहीं ली जा सकती। बाल श्रमिकों का शोषण नहीं किया जा सकता।
4. धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार - प्रत्येक व्यक्ति बिना किसी दबाब के किसी भी धर्म के अनुसार व्यवहार कर सकता है।
5. संस्कृति और शिक्षा का अधिकार - देश के प्रत्येक वर्ग के नागरिक का यह अधिकार है।
6. संवैधानिक उपचार का अधिकार - किसी व्यक्ति को अपने मौलिक अधिकारों से वंचित है।
प्रश्न : 92. भारत में सामाजिक विधानों के कोई पाँच मुख्य उद्देश्य लिखिए ।
उत्तर- भारत में सामाजिक विधानो को पाँच प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित है :
(1) सामाजिक नियंत्रण है :- सामाजिक विधानों का सबसे मुख्य उद्देश्य सामाजिक नियंत्रण की व्यवस्था की व्यवस्था को प्रभावपूर्ण बनाना है। यह तभी सम्भव होगा जब लोग बदलती हुयी जरूरतों के अनुसार व्यवहार के तरीकों में परिवर्तन करे।
(2) सामाजिक न्याय :- संविधान में दी गयी व्यवस्था के अनुसार यह जरूरी हो गया कि समाज में जाति धर्म और लिंग पर ध्यान दिये बिने सभी जातियों के लोगों को अपने विकास के समान अवसर दिये जाये।
(3) दुर्बल वर्गो की दिशा में सुधार :- सामाजिक विधान एक ऐसी साधन है। जिसकी सहायता से, आदिवासियो, दुर्बल और महिलाओ की दशा में सुधार किया जा सकता है।
(4) सामाजिक जागरूकता :- भारतीय समाज में स्वतंत्रता से पहले स्मृतिकाल काल तक रूढ़ियों अंधविश्वासो और पुराणों में इतनी वृद्धि होती रही की पूरा समाज जड़ और विवेश शून्य हो गया। इसके फलस्वरूप इन रूढ़ियों को सामाजिक कानूनों के द्वारा ही दूर किया गया।
(5) सामाजिक समस्याओं का समाधान :- भारतीय समाज में स्वतंत्रता से पहले तक बहुत सी सामाजिक समस्याएं समाज को विघटित कर रही थी। इस दशा में यह जरूरी हो गया की सामाजिक विधानों के द्वारा इन समस्याओं को दूर किया जाए।
प्रश्न : 93. सामाजिक विचलन के कोई पाँच कारणों को समझाइये ।
उत्तर- सामाजिक विचलन के प्रमुख पाँच कारण निम्नलिखित है।
(1) सामाजिकरण की कमी :- यह सच है कि व्यक्ति का सामाजिकरण करने वाले सभी अभिकरण विचलित व्यवहारों का विरोध करते है। लेकिन वे अक्सर सामाजिक मूल्यों के अनुसार व्यवहार करने वालों को समुचित पुरस्कार नहीं दे पाते है।
(2) दुर्बल स्वीकृतियाँ :- समाज लोगों में एकरूपता बनाये रखने के लिए अनेक सकारात्मक और नकारात्मक साधनों की व्यवस्था करता है इसके बाद में सामाजिक नियमो को उल्लंघन करने वाले को समुचित दण्ड न मिले तो इससे भी विचलित व्यवहार बढ़ता है।
(3) कानूनों को लागू करने में दुर्बलता :- कानून को लागू करने वाले लोगों की कमी के कारण अक्सर कानून प्रभावपूर्ण ढंग से लागू नहीं हो पाता है।
(4) भ्रान्त तर्को का प्रचलन :- भ्रान्त तर्कों की सहायता से लोग अपने व्यवहार को सही दिखाने की कोशिश करने लगते है।
(5) कानूनों का भ्रष्ट उपयोग :- दुनिया के अधिकांश देशों में कानून के द्वारा नियंत्रण स्थापित करने की जगह उनका भ्रष्ट और मनमाना उपयोग करना आम बात हो गयी है।
प्रश्न : 94. भौगोलिक विविधता के आधार पर भारत के चार मुख्य भागों के नाम लिखिए ।
उत्तर- भौगोलिक विविधता के आधार पर भारत के चार मुख्य भाग निम्न हैं ।
1. विस्तृत पर्वतीय प्रदेश।
2. गंगा यमुना व गोदावरी के मैदान ।
3. रेगिस्तानी क्षेत्र तथा।
4. दक्षिणी प्रायद्वीप का पठार।
प्रश्न : 95. उपागम से आप क्या समझते हैं? तथा चार उपागमों के नाम लिखिए।
उत्तर- उपागम अध्ययन का वह तरीका या दृष्टिकोण है जिसके आधार पर किसी विशेष सामाजिक तथ्य की विवेचना की जाती है।
- भारतीय विद्याशास्त्रीय उपागम
- सांस्कृतिक उपागम
- संरचनात्मक उपागम
- ऐतिहासिक उपागम।
प्रश्न :96. भारतीय शिक्षा की कोई दो समस्याएँ लिखिए ।
उत्तर- भारत में शिक्षा की समस्या –
- भारत में शिक्षा की सबसे बड़ी समस्या इसमें व्यावहारिक नियोजन का अभाव है।
- दोषपूर्ण परीक्षा प्रणाली हमारी शिक्षा व्यवस्था की एक अन्य समस्या है।
- शिक्षा में प्रबन्ध और साधनों की कमी के कारण विद्यार्थियों को वे सुविधाएं नहीं मिल पाती जो उनके व्यक्तित्व के विकास के लिये जरूरी हैं।
- एक अन्य समस्या शिक्षा में राजनैतिक हस्तक्षेप बढ़ना है।
- वर्तमान शिक्षा व्यवस्था पर समाज के सम्पन्न लोगों का प्रभाव बढ़ता जा रहा है।
प्रश्न : 97. ग्रामीण समुदाय की विशेषताएँ लिखिए ।
उत्तर- ग्रामीण समुदाय की विशेषताऐं -
1. कृषि मुख्य व्यवसाय - ग्रामीण समुदाय में अधिकांश व्यक्ति खेती से जुडे़ हुए व्यवसायों द्वारा आजीविका उपार्जित करते हैं।
2. छोटा आकार - साधारणतया गांवों में रहने वाले अधिकांश व्यक्ति एक दूसरे के नातेदार होते हैं। अतः समुदाय का आकार छोटा होता है।
3. प्राकृतिक पर्यावरण - ग्रामीण समुदाय का जीवन प्राकृतिक दशाओं से अधिक प्रभावित होता है।
4. परिवार - समाजीकरण का मुख्य आधार।
5. सादा जीवन - ग्रामीण जीवन की एक प्रमुख विशेषता यह है कि इनका जीवन सादा और परंपरावादी होता है।
प्रश्न : 98. नगरीय समुदाय की विशेषताएँ लिखिए ।
उत्तर- नगरीय समुदाय की विशेषताऐं -
1. जनसंख्या की अधिकता - नगर की एक प्रमुख विशेषता दूसरे समुदाय की तुलना में इसका आकार और जनसंख्या का घनत्व बहुत अधिक होना है।
2. सामाजिक विभिन्नता।
3. विकसित प्रौद्योगिकी।
4. श्रम विभाजन और विशेषीकरण।
5. व्यावसायिक भिन्नता।
प्रश्न : 99. अष्टांगिक मार्ग क्या है ?
उत्तर- अष्टांगिक मार्ग –
1. आर्य शक्तियों का समुचित ज्ञान ।
2. दृढ़ निश्चय ।
3. सच बोलना।
4. हिंसा और दुराचार से बचना।
5. ईमानदारी से आजीविका चलाना ।
6. अच्छे कामों के लिये लगातार प्रयत्न करना। 1
7. लालच और संताप से बचना।
8. राग और द्वेष से अपने आपको अलग रखना ।
प्रश्न : 100. हिन्दू विवाह के उद्देश्य लिखिए ।
उत्तर- हिन्दु विवाह के प्रमुख उद्देश्य -
1. धार्मिक कर्तव्यों की पूर्ति।
2. पुत्र जन्म।
3. रति।
4. गृहस्थ धर्म का पालन
5. व्यक्ति के जीवन को संगठित रखना।
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