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MP Board 12th Accountancy Trimasik Exam 2023-24 : एमपी बोर्ड 12वीं लेखा शास्त्र पेपर त्रैमासिक महत्‍वपूर्ण प्रश्‍न (VVI Most Important Question)

MP Board 12th Accountancy Trimasik Exam 2023-24 : एमपी बोर्ड 12वीं लेखा शास्त्र पेपर त्रैमासिक महत्‍वपूर्ण प्रश्‍न (VVI Most Important Question)

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MP Board 12th Accountancy Trimasik Exam 2023-24 : एमपी बोर्ड 12वीं लेखा शास्त्र पेपर त्रैमासिक महत्‍वपूर्ण प्रश्‍न (VVI Most Important Question)

एमपी बोर्ड कक्षा 12वीं लेखा शास्त्र त्रैमासिक पेपर की तैयारी के लिए हम आपको MPBSE 12th Accountancy Trimasik Paper 2023 Most Important Questions इस लेख के माध्यम से बता रहें हैं, जो आपके Paper के लिए बहुत महत्वपूर्ण है और ये Most Important Question तैयारी को और बेहतर बना सकते है I

जिनसे 21/09/2023 को होने वाला एमपी बोर्ड 12th लेखा शास्त्र त्रैमासिक एक्जाम क्वेश्चन पेपर 2023 बनाया जाएगा। जिससे वे त्रैमासिक परीक्षा के लेखा शास्त्र के पेपर में अच्छे अंकों से पास हो सकें।

2 अंकीय महत्वपूर्ण प्रश्न

प्रश्न 1 : साझेदारी अधिनियम 1932 के अनुसार साझेदारी की परिभाषा दीजिए।

उत्तर : साझेदारी अधिनियम 1932 के अनुसार, साझेदारी उन व्यक्तियों के पारस्परिक सम्बन्ध को कहते है जिन्होंने एक ऐसे व्यवसाय के लाभ को आपस मे बाँटने का ठहराव किया हो जिसे वे सब अथवा सबकी ओर से कार्य करते हुए उनमें से कोई व्यक्ति चलाता है।

प्रश्न 2 : लाभ की गारंटी से क्‍या आशय है?

उत्तर : लाभ की गारंटी - कई बार ऐसा होता है जब साझेदारी फर्म में अद्वितीय कौशल वाले व्यक्ति को भागीदार बनाना फर्म के सर्वोत्तम हित में होता है। ऐसा साझेदार पूर्व साझेदारों से एक न्यूनतम लाभ की गारंटी माँगता है ताकि भविष्य में उसे हानि न उठानी पड़े।

प्रश्न 3 : यदि कोई साझेदार प्रत्‍येक माह के प्रथम दिन 1500 रु. वर्ष भर आहरित करता है तो 10 प्रतिशत वार्षिक दर से वर्ष का आहरण पर ब्‍याज ज्ञात कीजिए।

उत्तर : यदि कोई साझेदार प्रत्येक माह के प्रथम दिन 1500 रु. वर्ष भर आहरित करता है तो 10 प्रतिशत वार्षिक दर से वर्ष का आहरण पर ब्‍याज ज्ञात करने के लिए, आप निम्नलिखित सूत्र का उपयोग कर सकते हैं:
 
ब्याज = मूलधन × समय × ब्याज दर / 100
 
इस उदाहरण में, मूलधन 1500 है, समय 1 वर्ष है, और ब्याज दर 10% है। इसलिए, ब्याज 1500 × 1 × 10 / 100 = रु.150 है।
 
प्रश्न 4 : वसूली खाते से क्‍या आशय है?
 
उत्तर : वसूली खाता :- फर्म के विघटन पर समस्त सम्पत्तियों (रोकड़ एवं बैंक छोड़कर) तथा समस्त दायित्वों (संचय, आधिक्य, पूँजी, व्यक्तिगत ऋण को छोड़कर) को जिस खाते में हस्तांतरित किया जाता है उसे वसूली खाता कहते हैं। यह नाममात्र का खाता होता है।

वसूली खाते में सम्पत्तियों की बिक्री से प्राप्त रोकड़ तथा दायित्वों के भुगतान में देय रोकड़ का लेखा वसूली खाते में किया जाता है। वसूली खाते में वसूली व्ययों का लेखा करने के पश्चात् वसूली पर लाभ-हानि की गणना की जाती है तथा लाभ-हानि को पुराने साझेदारों के पुराने अनुपात में बांटकर साझेदारों के पूंजी खाते में हस्तांतरित किया जाता है।

प्रश्न 5 : साझेदारी फर्म के विघटन से क्‍या आशय है?

उत्तर : भारतीय साझेदारी अधिनियम, 1932 के अनुसार जब एक फर्म (सार्थ) के सभी साझेदार आपस में, पूर्व स्थापित सम्बन्ध विच्छेद कर लें तो इसे साझेदारी फर्म का विघट कहते हैं। एक फर्म के विघटन के बाद फर्म का व्यवसाय अनिवार्यतः समाप्त हो जाता है क्योंकि व्यवसाय समाप्त हुए बिना फर्म का विघटन नहीं हो सकता।

प्रश्न 6 : फर्म के संयोगिक विघटन की दशाऍं लिखिए।

उत्तर : फर्म के संयोगिक विघटन की दशाऍं :

  • यदि कोई साझेदार अपने कर्तव्यों का पालन करने में स्थायी रूप से अक्षम हो जाता है।
  • यदि किसी निश्चित घटना के घटित होने से कंपनी का संचालन गैरकानूनी हो जाता है।

 3 अंकीय महत्वपूर्ण प्रश्न 

प्रश्न 1 : नये साझेदार के प्रमुख अधिकारों को समझाइए।

उत्तर : नए साझेदार को दो अधिकार मिलते हैं:
  • संपत्ति में अधिकार
  • भविष्य के मुनाफे में हिस्सेदारी
संपत्ति में अधिकार के लिए, नया साझेदार पूंजी लाता है। भविष्य के मुनाफे में हिस्सेदारी के लिए, नया साझेदार सद्भावना प्रीमियम लाता है।
नए साझेदार को फर्म के भावी लाभों में भाग लेने का अधिकार भी होता है। प्रत्येक साझेदार कंपनी के मुनाफे में बराबर हिस्सेदारी का हकदार है।
नए साझेदार को सभी मौजूदा साझेदारों की सहमति से ही फर्म में शामिल किया जा सकता है। नए साझेदार के प्रवेश के साथ, साझेदारी फर्म का पुनर्गठन किया जाता है और फर्म के व्यवसाय को आगे बढ़ाने के लिए एक नया समझौता किया जाता है।

प्रश्न 2 : ख्‍याति के मूल्‍यांकन की आवश्‍यकता क्‍यों है? समझाइए।
 
उत्तर : ख्याति का मूल्यांकन आवश्यक है क्योंकि यह भविष्य में सामान्य लाभों से अधिक लाभ प्राप्त करने की उम्मीद पर आधारित है। ख्याति का मूल्यांकन निम्नलिखित परिस्थितियों में आवश्यक हो सकता है:
  • साझेदारी में प्रवेश, सेवानिवृत्ति, मृत्यु या समामेलन
  • लाभ साझा करने के अनुपात में परिवर्तन
  • एकमात्र स्वामित्व फर्म को किसी अन्य व्यक्ति को बेचना
  • किसी व्यक्ति को भागीदार के रूप में लेना
ख्याति का मूल्यांकन अधिलाभ के आधार पर किया जाना चाहिए, जो सामान्य लाभ पर वास्तविक लाभ का अधिशेष है। ख्याति का मूल्यांकन प्रभावित करने वाले कारकों में शामिल हैं:
  • स्थान
  • प्रबंध निपुणता
  • पूंजी की आवश्यकता

प्रश्न 3 : एक फर्म का औसत शुद्ध लाभ 60,000 रु. है। औसत लाभ के तीन वर्षों के क्रय के आधार पर ख्‍याति का मूल्‍य क्‍या होगा?

उत्तर : यदि किसी फर्म का औसत शुद्ध लाभ ₹60,000 है, तो औसत लाभ के तीन वर्षों के क्रय के आधार पर ख्याति का मूल्य ₹60,000 होगा।
ख्याति एक कंपनी की प्रतिष्ठा का मूल्य है जिसे विशिष्ट लाभों के ऊपर और उससे अधिक संभावित भविष्य के लाभों के संदर्भ में अर्जित किया जाता है।
ख्याति का मूल्य गणना करने के लिए, आप भारित औसत लाभ की गणना कर सकते हैं। भारित औसत लाभ की गणना करने के लिए, आप कुल लाभों के उत्पाद को कुल वजन से विभाजित करते हैं। उदाहरण के लिए, यदि कुल लाभों का उत्पाद 3,00,000 है और कुल वजन 15 है, तो भारित औसत लाभ ₹20,000 है। फिर, आप ख्याति की गणना करने के लिए भारित औसत लाभ को तीन से गुणा करते हैं।
 
प्रश्न 4 : ख्‍याति की विशेषताऍं लिखिए।
 
उत्तर : ख्याति की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

1. ख्याति एक सम्पत्ति है- व्यापार की अन्य सम्पत्तियों की भाँति ख्याति भी व्यापार की सम्पत्ति है। क्योंकि वह अन्य सम्पत्तियों की तरह व्यापार का लाभ बढ़ाने में सहायक होती है।

2. ख्याति एक स्थायी सम्पत्ति है- स्थायी सम्पत्तियाँ व्यापार में धनोपार्जन के लिए स्थायी रूप से लगाई जाती है। अत:विद्वानों का कथन है कि यदि ख्याति स्थानीय (बिल्ली के स्वाभाव वाली) है तो वह व्यापार में साथ स्थिर रूप से रहती है और साथ ही लाभ कमाने में भी सहायक है।

3. ख्याति अमूर्त सम्पत्ति है- कुछ विद्वानों का मत है कि ख्याति अमूर्त सम्पत्ति है, क्योंकि इसका कोई भौतिक स्वरूप नहीं होता है। वस्तुत: ख्याति का अन्य सम्पत्तियों जैसे- भवन यंत्र, उपस्कर आदि की भाँति कोई मूर्त सम्पत्ति नहीं है।

4. ख्याति एक विक्रय योग्य सम्पत्ति है- ख्याति का यदि व्यापार से सम्बद्ध है व्यापारी से नहीं तो व्यापार के साथ-साथ इसे भी बेचा जा सकता है, पृथक से नहीं। यदि ख्याति की उत्पत्ति व्यक्तिगत गुणों से होती है तो इसे बेचा नहीं जा सकता।
 
प्रश्न 5 : एक साझेदार के निवृत्‍त होन के कारण बताइए।

उत्तर :  साझेदारी निवृत्ति के कारण निम्नलिखित हो सकते हैं,
  • यदि किसी साझेदार की आयु अधिक हो गई हो और वह काम करने में असमर्थ हो।
  • यदि कोई साझेदार अस्वस्थ रहता हो और अस्वस्थता के कारण कार्य करने में असमर्थता जताता हो।
  • साझेदारों परस्पर मतभेद हो जाने से भी किसी साझेदार की निवृत्ति हो सकती है.
  • कोई साझेदार वर्तमान व्यापार नहीं करना चाहता और दूसरे व्यापार में जाने का इच्छुक हो।
  • किसी सरदार की मानसिक या कोई पारिवारिक समस्या के कारण में साझेदारी निवृत्ति चाहता हो।

 4 अंकीय महत्वपूर्ण प्रश्न 

प्रश्न 1 : साझेदारी की विशेषताओं को समझाइए।

उत्तर :  साझेदारी की मुख्य विशेषताएँ निम्न लिखित हैं -

(1) कम से कम 2 सदस्य :- साझेदारी व्यवसाय में कम से कम 2 सदस्य होना चाहिए। एक व्यक्ति साझेदार नहीं कहलाता है। तथा अधिकतम सदस्य संख्या 20 से ज्यादा नहीं होना चाहिए।

(2) वैद्य व्यवसाय :- साझेदारी अनुबंध किसी वैद्य व्यवसाय को चलाने के लिए किया गया हो। अवैद्य व्यवसाय की साझेदारी में शामिल नहीं है।

(3) फर्म का संचालन :- साझेदारी व्यवसाय का संचालन सभी साझेदारों द्वारा या सभी की सहमति से किसी एक साझेदार द्वारा किया जाना चाहिए।

(4) असीमित दायित्व :- साझेदारी व्यवसाय में सम्मिलित प्रत्येक साझेदार का दायित्व असीमित होता है।

(5) फर्म का एजेण्ट :- साझेदारी व्यवसाय में प्रत्येक साझेदार फर्म का एजेण्ट होता है।

प्रश्न 2 : साझेदारी संलेख के अभाव में लागू होन वाले नियमों को लिखिए।

उत्तर :  साझेदारी संलेख के अभाव मे लागू होने वाले नियम

जब कोई साझेदारी विलेख नहीं है तो निम्नलिखित नियम लागू होते हैं:

  1. साझेदार लाभ या हानि को समान रूप से साझा करने के हकदार हैं।
  2. साझेदार अपनी पूंजी पर ब्याज के हकदार नहीं हैं।
  3. फर्म के लिए किए गए किसी भी अतिरिक्त कार्य के लिए किसी भी भागीदार को वेतन या कोई अन्य पारिश्रमिक की अनुमति नहीं दी जाएगी।
  4. आहरण पर ब्याज देय नहीं होगा।
  5. समझौता प्रत्येक भागीदार के पास कंपनी और एक-दूसरे के अधिकारों, जिम्मेदारियों और कर्तव्यों की रूपरेखा तैयार करता है।

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