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मध्य प्रदेश कक्षा-12वीं 2023 : जीवविज्ञान VVI महत्वपूर्ण प्रश्‍न उत्तर के साथ; देखलो परीक्षा से पहले

मध्य प्रदेश कक्षा-12वीं 2023 : जीवविज्ञान VVI महत्वपूर्ण  प्रश्‍न उत्तर के साथ; देखलो परीक्षा से पहले

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मध्य प्रदेश कक्षा-12वीं 2023 : जीवविज्ञान VVI महत्वपूर्ण  प्रश्‍न उत्तर के साथ; देखलो परीक्षा से पहले

यहां जीवविज्ञान 12वी Exam 2023 के लिए New Blue Print पर आधारित Most Important Subjective Questions-Answer  दिए गए है. ये प्रश्न (Question ) Study Material के रूप में तैयार किये गए. जो आपके Paper के लिए बहुत महत्वपूर्ण है और ये Most Important Question तैयारी को और बेहतर बना सकते है I

Most Important Question

Q.1: चिकित्सकीय गर्भ समापन क्या है?

Answer: चिकित्सकीय गर्भ समापन एक अधिनियम ( कानून ) है जिसके तहत अनचाहे गर्भ से छुटकारा पाया जा सकता है। कानून कुछ विशेष परिस्थितियों में इसकी इजाजत देता है। स्‍वास्‍थ्‍य कार्यकर्ताओं को चिकित्‍सकीय गर्भ समापन सेवाओं के बारे में जानना जरूरी है। वे जरूरतमन्‍द महिला को सही जानकारी दे सकते हैं इससे महिलाओं को नीम-हकीम के पास जाने से रोका जा सकता है।

गर्भ समापन कानून:- सरकार ने गर्भ समापन को आर्थिक, सामाजिक एवं मानवीय दृष्टिकोण से देखा है और इसे एक कल्‍याणकारी कदम माना है। इसलिये सन् 1971 में चिकित्‍सकीय गर्भ समापन कानून बनाया गया है तथा वर्ष 2002 में कानून में आवश्‍यक संशोधन किये गये हैं। इस कानून के अन्‍तर्गत महिलायें कुछ विशेष परिस्थितियों में सरकारी अस्‍पताल में या सरकार की ओर से अधिकृत किसी से भी चिकित्‍सा केन्‍द्र में अधिकृत व प्रशिक्षित डॉक्‍टर द्वारा गर्भपात करा सकती है। गर्भ-समापन के लिये घर के किसी सदस्‍य की लिखित इजाजत की जरूरत नहीं होती है, लेकिन 18 वर्ष से कम आयु की महिलाओं अथवा जिसने 18 वर्ष की आयु प्राप्‍त कर ली हो, लेकिन जो पागल हो, को माता-पिता या पति (यदि कोई नाबालिक लडकी की शादी हो गई हो) की लिखित इजाजत की जरूरत होती है। 18 वर्ष या उससे अधिक उम्र की महिलाओं का केवल स्‍वयं की लिखित स्‍वीकृति ही देनी जरूरी है।

Q.2: कायिक संकरण किसे कहते हैं ? एक उदाहरण दीजिए।

Answer:  कायिक संकरण वैज्ञानिकों ने पादपों से एकल कोशिकाएँ अलग की हैं तथा उनकी कोशिकाभित्ति का पाचन हो जाने से प्लाज्मा झिल्ली द्वारा घिरा नग्न प्रोटोप्लास्ट पृथक् किया जा सका है। प्रत्येक किस्म में वांछनीय लक्षण विद्यमान होते हैं। पादपों की दो विभिन्न किस्मों से अलग किया गया प्रोटोप्लास्ट युग्मित होकर संकर प्रोटोप्लास्ट उत्पन्न करता है जो आगे चलकर नए पादप को जन्म देता है। यह संकर कायिक संकर (somatic hybrid) कहलाता है तथा यह प्रक्रम कायिक संकरण (somatic hybridization) कहलाता है।

Q.3: स्पाइरुलिना का आर्थिक महत्व लिखिए।

Answer: सुपरफ़ूड के नाम से मशहूर स्पिरुलिना झीलों और प्रकृति झरनों आदि में पाया जाता है. इसलिए इस जलीय वनस्पति भी कहा जाता है. गहरे नीले-हरे रंग का स्पिरुलिना में कई आश्चर्यजनक रूप से सभी खाद्य पदार्थों से ज्यादा पोषक तत्व पाए जाते हैं.स्पिनरूलिना एक ऐसा तत्व है जो किसी भी प्रकार के पानी(साफ या खारा) में पैदा हो जाता है. इसका इस्तेमाल प्राचीन काल से होता आ रहा है लेकिन इसने सुर्खियां तब बटोरी जब पता लगा कि नासा द्वारा इसे अंतरिक्ष में भी उगाया जा सकता है.

वैसे तो स्पिनरूलिना कैप्सूल या पाउडर के रूप में आसानी से उपलब्ध हो जाता है. स्पिनरूलिना के एक चम्मच (7 ग्राम) में 4 ग्राम प्रोटीन, विटामिन बी1, विटामिन बी2, विटामिन बी3, कॉपर, और आयरन होते है.

कम लागत में अधिक फायदा देने के कारन इसका आर्थिक महत्त्व बहुत ज्यादा है | दिन प्रतिदिन इसका बाजार बढ़ते जा रहा है और किसान इसको कमी वाली फसल के रूप में देखने लगे हैं

शैवाल का उपयोग तीन क्षेत्रों कृषि, उद्योग और चिकित्सा में बड़ा ही महत्वपूर्ण है। पिछले २० वर्षों से कृषि में शैवाल के उपयोग पर अनेक महत्वपूर्ण बातें स्थिर की गई है। प्रयोगशालाओं में अनुसंधान करने से पता चला है कि शैवाल वायु से नाइट्रोजन लेकर, मिट्टी में नाइट्रोजन के यौगिकों में परिणत कर, उसे स्थिर करते हैं। पौधों के लिए नाइट्रोजन अत्यधिक उपयोगी पोषक तत्व है। इस कारण शैवाल की महत्ता बढ़ गई है। यह नाइट्रोजन को स्थिर करके मिट्टी की उर्वरा शक्ति को बढ़ाता है और फसल में वृद्धि करता है।

भारत में अनेक वैज्ञानिकों के अनुसंधान से यह ज्ञात हुआ है कि शैवाल द्वारा प्राय: २० से लेकर ३० पाउंड प्रति एकड़ तक नाइट्रोजन की वृद्धि मिट्टी में स्थिर नहीं करते। केवल मिक्सोफाइसिई (Myxophyceae) जाति के शैवाल ही इस कार्य में प्रवीण हैं।

इनमें नॉस्टक (Nostuc), टौलिपोअक्स (Tolypothrix), औलिसोरा फरटिलिसिमा (Aulisora Fertilissima) तथा एनाबीना (Anabaena) इत्यादि ही सबसे अधिक महत्व के स्थापक सिद्ध हुए हैं। कटक के धानअनुसंधान केंद्र के अनुसंधान से यह ज्ञात हुआ है कि टौलिपोअकस सबसे अधिक नाइट्रोजन स्थापित करता है। धान के पौधों के विश्लेषण से यह भी पता लगा है कि शैवाल की खादवाले खेतों के पौधे मिट्टी से अधिक मात्रा में नाइट्रोजन का अवशोषण करते हैं।

Q.4: जैव विविधता के जैविक संगठन के स्तर के नाम लिखिए।

Answer: जैव विविधता शब्द सामाजिक जीववैज्ञानिकएडवर्ड विलसन द्वारा जैविक संगठन के प्रत्येक स्तर पर उपस्थित विविधता को दर्शाने केलिए प्रचलित किया गया है। इसमें से अति महत्त्वपूर्ण निम्न है -

(क) आनुवंशिक विविधता- एक जाति आनुवंशिक स्तर पर अपने वितरण क्षेत्र मेंबहुत विविधता दर्शा सकती है। हिमालय की विभिन्न श्रेणियों में उगने वालाऔषधीय पादप राऊवोल्फीया वोमिटोरिया की आनुवंशिक विविधता उसके द्वाराउत्पादित सक्रिय रसायन रेसरपिन की क्षमता तथा सांद्रता से संबंधित हो सकतीहै। भारत में 50 हजार से अधिक आनुवंशिक रूप में भिन्न धान की तथा 1000 से अधिक आम की जातियाँ हैं।

(ख) जातीय (स्पीशीज़) विविधता- यह भिन्नता जाति स्तर पर है।उदाहरणार्थ-पश्चिमी घाट की उभयचर जातियों की विविधता पूर्वी घाट सेअधिक है।

(ग) पारिस्थितिकीय (इकोलोजिकल) विविधता- यह विविधता पारितंत्र स्तरपर है, जैसे कि भारत के रेगिस्तान, वर्षा वन, गरान (मैग्रोव), प्रवात्व भित्ति(कोरल रीफ), आर्द्र भूमि, ज्वारनदमुख (एस्युएरी) तथा एल्पाइन शाद्वल(मीडोज) की पारितंत्र विभिन्नता स्कैंडीनेवियाई देश नार्वे से अधिक है।

Q.5: प्रसव किसे कहते हैं ? प्रसव को प्रेरित करने वाले हार्मोन का नाम लिखिए।

Answer: प्रसव गर्भवती मादाओं के गर्भस्थ शिशु के बाहर निकलने की क्रिया को शिशु जन्म या प्रसव कहा जाता है। प्रसव एक जटिल तंत्रि-अंत:स्रावी क्रियाविधि द्वारा प्रेरित होता है। प्रसव के लिए संकेत पूर्ण विकसित गर्भ एवं अपरा से उत्पन्न होते हैं, जो गर्भाशय में हल्के संकुचन को प्रेरित करते हैं। जिन्हें गर्भ उत्क्षेपन प्रतिवर्त (फीटल इंजेक्शन रिफ्लेक्स) कहते हैं । यह मातृ पीयूष ग्रंथि से ऑक्सीसीटोसीन गर्भाशय पेशी पर क्रिया करता है और इसके कारण गर्भाशय में तीव्र संकुचन प्रारंभ हो जाता है। गर्भाशय संकुचनों तथा ऑक्सीटोसीन स्राव के बीच लगातार उद्दीपक प्रतिवर्त के कारण यह संकुचन अत्यधिक तीव्र होता जाता है।

इसके परिणामस्वरूप शिशु माता के गर्भाशय से जनन नाल द्वारा बाहर आ जाता है, इस प्रकार प्रसव की क्रिया सम्पन्न होती है। प्रसव क्रिया को प्रेरित करने वाले प्रमुख हॉर्मोन्स हैं|

(i) कार्टिसॉल, (ii) एस्ट्रोजन, (iii) ऑक्सीटोसीन।

Q.6: एम्नियोसेन्टेसिस विधि को समझाइये।

Answer: एम्नियोसेन्टेसिस विधि (Amniocentesis)

उल्बबेधन या एम्नियोसेन्टेसिस  भ्रूणीय विकार जाँच करने की एक विधि है। इस विधि में एक सिरिंज की सहायता से भ्रूण के चारों ओर उपस्थित उल्ब द्रव (एम्नियोटिक फ्लुड) की कुछ मात्रा निकाली जाती है। इसमें उपस्थित कोशिकाओं के गुणसूत्रीय परीक्षण से भ्रूण के किसी आनुवंशिक विकार का पता लगाया जाता है। चूंकि गुणसूत्रीय जाँच से भ्रूण के लिंग के बारे में भी सहज जानकारी हो जाती है|

Q.7: बायोपाइरेसी को संक्षिप्त में लिखिए ।

Answer: बायोपाइरेसी : अनुबंधित जैव संसाधनों का बिना उचित अनुमति के उपयोग करना बायोपाइरेसी कहलाता है। बहुराष्ट्रीय कम्पनियां एवं दूसरे संगठनों द्वारा किसी राष्ट्र या उनसे संबंधित त्यागों की अनुमति के बिना जैव संसाधनों का उपयोग करना बायोपाइरेसी के अन्तर्गत आता है। जैसे- भारत वर्ष में हजारों वर्षों से नीम का उपयोग औषधि के रूप में होता रहा है। अमेरिका की एक कम्पनी ने नीम को अनुबंधित या पेटेन्ट करा लिया जिसका परिणाम यह था कि जितने समय तक उस कम्पनी से अनुबंध है। उतने समय तक प्रत्येक व्यक्ति को जो नीम का उपयोग करेगा उसे कुछ न कुछ भुगतान करना पड़ेगा। बायोपाइरेसी को देखते हुए भारत सरकार से इण्डियन पेटेन्ट कानून में संशोधन किया। जिसके अनुसार ऐसी समस्याओं को ध्यान में रखा जाएगा तथा इनकी पुनरावृत्ति को रोका जा सके।

Q.8: स्वस्थाने संरक्षण एवं बाह्यस्थाने संरक्षण क्या है ?

Answer: स्वस्थाने संरक्षण :- जैव विधिता को उसके प्राकृतिक पर्यावरण में संरक्षित करना स्वस्थाने संरक्षण कहलाता है। इसके लिए प्राकृतिक आवास स्थानों को सुरक्षित क्षेत्र घोषित कर दिया जाता है। स्वस्थाने संरक्षण के अन्तर्गत बायोस्फीयर रिर्जव राष्ट्रीय उद्यान एवं अभ्यारण, वेटलेण्ट्स, मेंग्रुव वनस्पति आदि आते हैं।

बहिस्थाने संरक्षण :- जीवों का संरक्षण स्वस्थाने संरक्षण सबसे अच्छा होता है। अतः प्राकृतिक रूप से किया गया संरक्षण अच्छा होता है। परन्तु जब कभी इस प्रकार का संरक्षण सम्भव नहीं होता हो तो वानस्पतिक उद्यानों एवं विशेष वृक्ष संग्रहण में बहि स्थाने संरक्षण सम्भव है। इस प्रकार का संरक्षण पौधों में उद्यानों के रूप में जबकि प्राणियों में चिड़ियाघरों के रूप में किया जाता है।

Q.9: ग्रीन हाउस प्रभाव के बारे में लिखिए।

Answer: ग्रीन हाउस प्रभाव ग्रीन हाउस गैसें वो गैसें हैं जो पृथ्वी से विकिरणित रेडिएशन जिनका तरंगदैर्ध्य 4 मिली मीटर से अधिक हो, का अवशोषण करके वायुमण्डल का तापमान बढ़ाने का काम करती हैं। ये विकिरण इन्फ्रा रेड रेन्ज में आती हैं जिनका तापन प्रभाव होता है। इन गैसों में कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन, जलवाष्प, नाइट्रस ऑक्साइड और क्लोरोफ्लोरोकार्बन आते हैं। ये ग्रीन हाउस गैसें वायुमण्डल के ऊपर एक छतरीनुमा आवरण का काम करती हैं जो पृथ्वी द्वारा अवरक्त विकिरण (ऊष्मा के रूप में) का अवशोषण कर तापमान में वृद्धि करते हैं इस प्रकिया को ग्रीन हाउस प्रभाव कहते हैं।

Q.10: DNA से mRNA के निर्माण की क्रिया विधि का वर्णन लिखिए ।

Answer: सिस्ट्रॉनी DNA से mRNA तक का आनुवंशिक सूचना प्रवाह ट्रांसक्रिप्शन (अनुलेख) कहलाता है। यह निम्न चरणों में होता है :

1. सिस्ट्रॉनी DNA, संश्लेषित किये जाने वाले प्रोटीन के लिये सूचना वहन करता है, यह हेलिकेस(Helicase) व टोपोआइसोमेरज़ प्रकिण्वों की उपस्थिति में होता है।

2. RNA पॉलिमरेस (Polymerse) mRNA के संश्लेषण को उत्प्रेरित करना आरम्भ करता है जो एक प्रोटीन सिग्मा कारक (Sigma factor) द्वारा संकेतित होता है।

3. mRNA, सिस्ट्रॉनी DNA के पूरक के रूप में संश्लेषित होता है। ये कारक Rho factor (कारक) RNA पोलिमरेज को अनुलेखन को संकेत पूर्ण करने की ओर करता है।

4. DNA का तंतु जिसमें विशेष प्रोटीन के अनुलेखन के लिये कोड विद्यमान होता है उसे संवेदी रज्जु (Sense Strand) कहते हैं, विपरीत तंतु पूरक को प्रतिसंवेदी रज्जु कहते हैं जिसका अनुलेखन नहीं होता है।

यूकेरियोटों में hnRNA सिस्ट्रॉनी DNA के अकुंडलित होने के पश्चात् न्यूक्लिअस के अन्दर संश्लेषित होता है। यह hnRNA नामक एक बड़ा RNA अणु है जोकि RNA पॉलिमरेज की उपस्थिति में संश्लेषित होता है। hnRNA संवेदी रज्जु के अनुलेखन से बनता है।

Q.11: समजात एवं समवृत्ति अंग में अंतर लिखिए ।

Answer: समजात एवं समवृत्ति अंग में अन्तर :

समजात अंग :

समवृत्ति अंग :

(1) वे अंग जिनकी संरचना एवं समवृत्ति समान हो परन्तु कार्य भिन्न-भिन्न ही समजात अंग कहलाते है।

(1) वे अंग जिनकी संरचना एवं समवृत्ति भिन्न-भिन्न हो परन्तु कार्य समान हो, समवृत्ति अंग कहलाते है।

(2) ये संरचनाएं इस बात को प्रमाणित करती है कि इनको धारित करने वाले जीव विकासीय दष्टि से जुड़े है।

(2) ये संरचनाएं इस बात को प्रमाणित करती है। कि इनको धारित करने वाले जीव विकासीय दृष्टि से अलग-अलग है।

(3) यह संरचना बाहर से देखने पर अलग-अलग दिखाई देती है।

(3) यह संरचनाएं बाहर से देखने पर समानता प्रदर्शित करती है।

(4) आन्तरिक संरचना समानता प्रदर्शित करती है।

(4) आन्तरिक संरचना भिन्नता प्रदर्शित करती है।

उदाहरण : घोड़े के अग्र पैर, मनुष्य के हाथ आदि समजात अंग है।

उदाहरण: पक्षी के पंख, कीट के पंख, चमगादड़ के पंख समवृत्ति अंग है।

Q.12: लेमार्कवाद एवं नवलेमार्कवाद में अंतर लिखिए । लैमार्कवाद एवं नव-लैमार्कवाद में अंतर लिखिए ।

Answer: लैमार्कवाद : फ्रांस के जीववैज्ञानिक लैमार्क द्वारा प्रतिपादित विकासका सिद्धान्त था जो किसी समय बहुत मान्य हुआ था किन्तु बाद में इसे अस्वीकार कर दिया गया। संक्षेप में लामार्क का विकासवाद है वातावरण के परिवर्तन के कारण जीव की उत्पत्ति, अंगों का व्यवहार या अव्यवहार, जीवनकाल में अर्जित गुणों का जीवों द्वारा अपनी संतति में पारेषण। इस मत और डार्विन के मत में यह अंतर है कि इस मत में डारविन के प्राकृतिक वरण के सिद्धांत का अभाव है।

नव-लैमार्कवाद की परिभाषा : लैमार्किज्म पर आधारित विकास का एक आधुनिक सिद्धांत और प्राप्त की गई मूल अवधारणा को बनाए रखना, जो विरासत में मिले हैं: जैसे

a: सिद्धांत है कि विकास प्राप्त पात्रों पर प्राकृतिक चयन की कार्रवाई से उत्पन्न होता है

b: सिद्धांत है कि विकासवादी परिवर्तन जीव और पर्यावरण की बातचीत का प्रत्यक्ष उत्पाद है जीन बैप्टिस्ट डी लैमार्क ने सन् 1809 में जैव विकास के सम्बन्ध में उपार्जित लक्षणों की वंशागति का सिद्धान्त प्रस्तुत किया। इसे लैमार्कवाद भी कहते हैं।

यह सिद्धान्त निम्नलिखित तथ्यों पर आधारित है

(1) आकार में वृद्धि की प्रवृत्ति इनके अनुसार जीव व उनके अंगों में आकार वृद्धि की स्वाभाविक प्रवृत्ति होती है।

(2) वातावरण का सीधा प्रभाव प्रत्येक जीवधारी पर वातावरण में होने वाले परिवर्तनों का प्रभाव पड़ता है और यह प्रभाव उसकी रचना और स्वभाव में परिवर्तन कर देता है।

(3) अंगों का उपयोग तथा अनुपयोग वातावरण के अनुसार अधिक उपयोग में आने वाले अंग अधिक विकसित होने लगते हैं। इसके विपरीत उपयोग में न आने वाले अंग धीरे-धीरे ह्रासित होने लगते हैं। कभी-कभी अंग अवशेषी अंगों के रूप में रह जाते हैं।

(4) उपार्जित लक्षणों की वंशागति अंगों के अधिक उपयोग अथवा अनुपयोग से जो भिन्नताएँ उत्पन्न होती हैं, उपार्जित लक्षण कहलाते हैं। ये लक्षण पीढ़ी-दर-पीढ़ी वंशागत होते हैं। अनेक पीढ़ियों के बाद की सन्तानें अपने पूर्वजों से भिन्न हो जाती हैं तथा नई जाति बन जाती है। अंगों के अधिक उपयोग का उदाहरण आधुनिक जिराफ है।

अंगों का उपयोग न होने से वे अंग कई पीढ़ी के बाद लुप्त हो जाते हैं; जैसे-सर्षों के पूर्वजों को झाड़ियों के मध्य रेंगने और बिल में घुसने में टाँगें बाधा डालती थीं, इसलिए उन्होंने टाँगों का प्रयोग करना कम कर दिया, जो धीरे-धीरे पीढ़ी-दर-पीढ़ी कम होकर अन्त में लुप्त हो गई।

लैमार्कवाद की आलोचना सन् 1809 में लैमार्कवाद के प्रकाशित होने के बाद अनेक वैज्ञानिकों ने इसकी आलोचना की। वीजमान (जर्मन वैज्ञानिक, 1892) ने चूहों पर अनुसन्धान किया। वीजमान चूहों की पूंछ को निरन्तर 80 पीढ़ियों तक काटते रहे, लेकिन चूहों की पूँछ की लम्बाई कम नहीं हुई। लैमार्क के अनुसार इतनी पीढ़ियों के बाद पूँछ को गायब हो जाना चाहिए था।

इसी प्रकार लोहार के हाथ की पेशियाँ बराबर लोहे को पीटते रहने से मजबूत हो जाती हैं, किन्तु यह लक्षण उसकी सन्तानों में नहीं आ पाताः इससे यह सिद्ध होता है कि वातावरण के प्रभाव से शरीर में उत्पन्न हुए उपार्जित लक्षण वंशागत नहीं होते। केवल वे ही लक्षण वंशागत होते हैं। जो जननिक कोशिकाओं को प्रभावित करते हैं।

नव-लैमार्कवाद मुलर तथा अन्य वैज्ञानिकों ने बताया कि अनेक भौतिक व रासायनिक शक्तियों आदि के कारण युग्म कोशिकाओं की जीन्स में परिवर्तन आ सकते हैं जो सन्तान में पहुँचकर विभिन्नता उत्पन्न करते हैं। इन्हीं लक्षणों के सन्तान में वंशागत होने के कारण नई जातियाँ उत्पन्न होती हैं।

Q.13: प्लाज्मोडियम के जीवन चक्र को चित्र सहित लिखिए ।

Answer:

Q.14: प्रतिरक्षी पदार्थ की संरचना का सचित्र वर्णन करो ।

Answer:  प्रतिरक्षी प्रतिजन से लड़ने के लिए शरीर में बनने वाले जैव रसायनिक पदार्थ होते है। हमारे शरीर में B तथा T कोशिकाए प्रतिरक्षिओ का निर्माण करती है। प्रतिरक्षी प्लाज्मा कोशिकाओं की सतह पर मुक्त होती है। प्लाज्मा कोशिका की जीवन अवधिक काफी कम होती है। परन्तु इस दौरान यह असंख्य प्रतिरक्षियों का स्त्रावण करती है।

T- लिम्फोसाइट्स की सतह पर एक अनन्य प्रतिजन बंधन ग्राही पाया जाता है। परन्तु यह B-लिम्फोसाइट की तरह अकेले प्रतिजन की पहचान नहीं कर सकते है, बल्कि यह उन्हीं प्रतिजनो की पहचान कर सकते है। जो MHC अणु से युग्मित है।

प्रतिरक्षी निम्न है।

IgM, IgA, IgE आदि

इनमें से IgM प्रसव क्रिया के पश्चात् मादा की स्तन ग्रन्थियो द्वारा स्त्रावित कोलेस्ट्रम में होती है। जो शिशु के पोषण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है। तथा उसे रोगो से लड़ने में मदद करती है।

Q.15: वाहित मल क्या है ? यह हमारे लिए किस प्रकार हानिप्रद है ?

Answer: वाहित मल

म्यूनिसिपल अपशिष्ट जल अर्थात् नगर व शहरों में दैनिक कार्यों के बाद का बचा गन्दा जल, जिसमें मानव मल-मूत्र प्रमुख घटक होता है, वाहित मल कहलाता है। कुल 0.1 प्रतिशत अशुद्धियों के कारण वाहित मल मनुष्य के प्रयोग योग्य नहीं रह जाता। वाहित मल में निम्न प्रकार की अशुद्धियाँ पायी जाती हैं

• निलम्बित ठोस - बालू, गाद व चिकनी मिट्टी |

• कोलॉइडी पदार्थ - मल पदार्थ, जीवाणु, कागज, कपड़े के रेशे।

• विलेय पदार्थ नाइट्रेज, फॉस्फेट, अमोनिया, कैल्शियम, सोडियम।

हानिकारक प्रभाव

(i) मानव मल की उपस्थिति के कारण यह अनेक प्रकार के रोगजनकों का स्रोत होता है। पीने के पानी की पाइप लाइन के सीवेज द्वारा संदूषित होने पर जल जन्यरोगों का खतरा रहता है।

(ii) खुला सीवेज रोगवाहकों के प्रजनन स्थल का कार्य करता है।

(iii) बिना उपचारित सीवेज के नदियों में छोड़ देने पर खतरनाक जल प्रदूषण होता है।

(iv) सीवेज के रूप में जल जैसे महत्वपूर्ण संसाधन का अपव्यय होता है।

Q.16: प्राथमिक तथा द्वितीयक वाहित मल उपचार के बीच पाए जाने वाले मुख्य अंतर लिखिए।

Answer: वाहित मल का उपचार वाहित मल संयन्त्र में किया जाता है जिससे यह प्रदूषण मुक्त हो सके। यह उपचार दो चरणों में सम्पन्न होता है – 

1. प्राथमिक उपचार (Primary treatment) – प्राथमिक उपचार में मुख्यत: बड़े-छोटे कणों को भौतिक क्रियाओं; जैसे- अवसादन (sedimentation), निस्यंदन (filtration), प्लवन आदि द्वारा अलग किया जाता है। सबसे पहले तैरते हुए कूड़े-करकट को नियंदन द्वारा हटा दिया जाता है। इसके बाद ग्रिट (grit) मृदा तथा छोटे कणों को अवसादन द्वारा पृथक् किया जाता है। बारीक कण प्राथमिक स्लज (primary sludge) के रूप में नीचे बैठ जाते हैं और प्लावी बहिःस्राव (supernatant effluent) का निर्माण होता है। बहि:स्राव को प्राथमिक उपचार टैंक से द्वितीयक उपचार के लिए ले जाया जाता है।

2. द्वितीयक उपचार (Secondary treatment) – द्वितीयक उपचार में सूक्ष्मजीवधारियों का उपयोग किया जाता है। जैसे-ऑक्सीकरण ताल एक उथला जलाशय होता है जिसमें वाहित मल एकत्रित किया जाता है। इसमें कार्बनिक पदार्थ अधिक होने के कारण शैवाल और जीवाणुओं की अच्छी वृद्धि होने लगती है।

जीवाणु अपघटन करते हैं और शैवाल उनसे उत्पन्न कार्बन डाइ ऑक्साइड का प्रकाश संश्लेषण में उपयोग करते हैं। प्रकाश संश्लेषण में विमोचित ऑक्सीजन जल को दूषित होने से बचाती है। इस प्रकार ऑक्सीकरण ताल, शैवाल और जीवाणुओं के बीच सहजीविता का उदाहरण है। ऑक्सीजन ताल में होने वाली क्रियाओं द्वारा संक्रामक जीवाणु नष्ट हो जाते हैं और कार्बनिक पदार्थों के अपघटन के पश्चात् केवल नुकसान न देने वाले पदार्थ ही रह जाते हैं। द्वितीयक उपचार के पश्चात् प्लान्ट से बहि:स्राव सामान्यत: जल के प्राकृतिक स्रोतों जैसे-नदियों, झरनों आदि में छोड़ दिया जाता है अथवा तृतीयक उपचार हेतु रासायनिक क्रियाविधियों द्वारा इससे नाइट्रोजन एवं फॉस्फोरस लवणों को पृथक् करने के पश्चात् बहि:स्राव को जलाशयों में मुक्त कर दिया जाती है।

Q.17: पी.सी.आर. का संक्षिप्त वर्णन चित्र सहित कीजिए ।

Answer: PCR का पूरा नाम पॉलीमर श्रृंखला अभिक्रिया है। यह जीन प्रवर्धन की एक प्रयोगशाला तकनीक है। PCR की सहायता से अति अल्प समय में वांछित DNA खण्ड की अरबो प्रतिपिया संश्लेषित की जा सकती है। इसलिए इस अभिक्रिया पीपुल्स ऑफ च्वॉइस के नाम से भी जाना जाता है। इस तकनीक के विकास के उपरान्त उसे जीन प्रवर्धन हेतु वेक्टर DNA की सहायता से किसी कोशिका में क्लोन कराने की आवश्यकता नहीं होती है। PCR को सर्वप्रथम कैरी मुलिस ने विकसित किया।

PCR के उपयोग :-

(1) इसकी सहायता से अति अल्प समय में वांछित DNA खण्ड की अरवो प्रतिया संश्लेषित की जा सकती है।

(2) इसका उपयोग DNA अनुक्रमण में किया जाता है।

(3) PCR द्वारा मानव एवं अनेक पालतू जानवरों के पात्रे निषेचित भ्रुणों के लिंग का पता लगाया जाता है। तथा पात्रे निषेचित भ्रुण में उपस्थित लिंग सहलग्न व्यतिक्रमों की पहचान की PCR द्वारा ही की जाती है।

(4) PCR तकनीक द्वारा दो जीवों के जीनोम में अन्तर जाना जा सकता है।

(5) PCR तकनीक का उपयोग मानव की अनेक व्याधियों में किया जाता है। जैसे- विषाणु एवं जीवाणु संक्रमण में PCR का उपयोग किया जाता है।

Q.18: अनुप्रवाह संसाधन का चित्र सहित संक्षिप्त वर्णन कीजिए ।

Answer: अनुप्रवाह संसाधन :जैव संश्लेषित अवस्था के पूर्ण होने के बाद परिष्कृत तैयार होने व विपणन के लिए भेजे जाने से पहले कई प्रक्रमों से होकर गजरता है। इन प्रक्रमों में पथक्करण व शोधन सम्मिलित है और इसे सामूहिक रूप से अनुप्रवाह संसाधन कहते हैं। उत्पाद को उचित परिरक्षक के साथ संरूपित करते हैं। औषधि के मामले में ऐसे संरूपण (फार्मुलेशन) को चिकित्सीय परीक्षण से गुजारते हैं। प्रत्येक उत्पाद के लिए सुनिश्चित गुणवत्ता नियंत्रण परीक्षण की भी आवश्यकता होती है। अनुप्रवाह संसाधन व गुणवत्ता नियंत्रण परीक्षण प्रत्येक उत्पाद के लिए भिन्न-भिन्न होता है।

Q.19: अलैंगिक एवं लैंगिक प्रजनन में अंतर लिखिए ।

Answer:

क्रं

 अलैंगिक प्रजनन

लैंगिक प्रजनन

1.

सजनन में केवल एक जनक भाग लेता है।

लैंगिक जनन प्राय: दो जनक प्रजनन में भाग लेते है। (केवल कुछ द्विलिंगी जन्तुओं में दोनों प्रकार के युग्मकों का निर्माण एक ही जनक द्वारा होता है।)

2.

युग्मकों का निर्माण व युग्मक संलयन नहीं होता।

युग्मक निर्माण व युग्मक संलयन लैंगिक जनन में आवश्यक होता है।

3.

अलैंगिक प्रजनन केवल समसूत्री विभाजन द्वारा सम्पन्न होता है।

लैंगिक प्रजनन में अर्द्धसूत्री विभाजन आवश्यक रूप से सम्पन्न होता है। साथ में समसूत्री विभाजन भी पाया जाता है।

4.

आनुवंशिक विभिन्नताएँ उत्पन्न नहीं होती।

अर्द्धसूत्रण तथा युग्मकों के सायोगिक संलयन के कारण संतति में आनुवंशिक विभिन्नताएँ उत्पन्न होती हैं।

5.

संतति आकारिकीय व आनुवंशिक रूप से जनक के व आपस में समान होती हैं।

संतति जनक के साथ-साथ आपस में भी आनुवंशिक भिन्नता प्रदर्शित करती हैं। 

6.

अपेक्षाकृत सरल, दुत प्रक्रिया है।

लैंगिक जनन जटिल व धीमी प्रक्रिया है।

7.

जैव विकास में सहायक नहीं है।

लैंगिक जनन आनुवंशिक भिन्नता पैदा कर जैव विकास में स्पष्ट भूमिका निभाता है।

8.

प्रजनन इकाई शरीर के भाग या कलिका आदि होते हैं।

प्रजनन इकाई युग्मक होते हैं।

9.

उदाहरण- शैवाल, कवक, अधिकांश पादप व निम्न कशेरुकी जन्तु

उदाहरण-उच्च श्रेणी के पादप व जन्तु ।

Q.20: एक संकट क्रास का प्रयोग करते हुए प्रभाविता नियम की व्याख्या कीजिए ।

Answer: प्रभाविता का नियम :- जब एक जोड़ी विपरीत लक्षणों को ध्यान में रखकर किन्हीं दो विशुद्ध जीवों में क्रॉस कराया जाता है। तो जोड़े का केवल एक ही लक्षण प्रथम पुत्री पीढ़ी में दिखाई देती है।

प्रथम पुत्री पीढ़ी में केवल एक ही लक्षण प्रारूप दिखाई देता है। इस प्रकार F1 पीढ़ी में दिखाई देने वाला लक्षण प्रभावी तथा न दिखाई देने वाला लक्षण अप्रभावी होता है। यह नियम उन सभी जगह लागू होता है। जहां एक लक्षण दूसरे पर प्रभावी है।

उदाहरण :- जब शुद्ध लाल एवं शुद्ध सफेद पुष्प वाले मटर के पौधों में क्रॉस कराया जाता है। तो 0 पीढ़ी में लाल पुष्प वाले पौधे उत्पन्न होते है। यद्यपि इन पौधो में दो लक्षणों के जीन्स Rr उपस्थित होते है। यहां लाल रंग प्रभावी लक्षण लबकि सफेद रंग अप्रभावी लक्षण है। एक संकर क्रॉस द्वारा प्रभाविता के नियम की व्याख्या :

अत: फीनोटाइप अनुपात : 3 : 1

3 = Red flower    1 = White flower

जीनोटाइप अनुपात : 1 : 2 : 1

1 = Pure Red

2 = Hybrid Red

3 = Pure White

Q.21: मरुद्भिद पौधों में पाए जाने वाले आकारकीय अनुकूलन को लिखिए । (कोई 6)

Answer: मरूद्भिद पौधों में पाए जाने वाले आकारकीय अनुकूलन :

(1) मरुद्भिद पौधों के तने कठोर काण्ठाय एवं बेलनाकार होते है। कुछ पौधों के तने आकार में छोटे होते है।

(2) जड़े गहराई तक फैली हुई लम्बी एवं शाश्वित होती है। मूलरोम अधिक संख्या में पाए जाते है। अर्थात् मूलतंत्र सुविकसित होता है।

(3) पत्तियां छोटी एवं शल्क की तरह होती है। जिनके ऊपर क्यूटिकल जमा होता है। कुछ पौधों की पत्तिया कांटो का रूप ले लेती है।

(4) अनेक मरुद्भिद् पौधों में ताप प्रघात प्रोटीन जिसे चेपरोनिन्स कहते है पाई जाती है। इस प्रोटीन की उपस्थिति में अन्य प्रादप प्रोटीन अपनी संरचना को बनाए रखती है। तथा उच्च ताप पर विकृत नहीं होती है।

(5) मरुद्भिद् पौधो पॉलीसेकेराइड, पेप्टॉन्स तथा अनेक कार्बनिक अम्ल मिलते है। जो पौधे की सूखे, लवणीय परिस्थितियों को सहने में सहायता करती है।

(6) बाह्यत्वचा के नीचे एक या अनेक हाइपोडर्मिस पाई जाती है। जो सूर्य ताप व वाष्पोत्सर्जन को कम करने में सहायक होती है।

जैसे- कनेर

Que : 22. अपरा किसे कहते हैं?

Answer: परिवर्धनशील भ्रूणीय ऊतक (जरायु अंकुरक) तथा गर्भाशयी ऊतक और मातृ रक्त वाहिकाओं के सामन्जस्य से बना एक ऐसा अंग जो भ्रूण एवं मातृ शरीर के बीच संरचनात्मक एवं क्रियात्मक सम्बन्ध स्थापित करता है, अपरा कहलाता है। इसी के माध्यम से भ्रूण एवं मातृ शरीर के बीच गैसों एवं भोज्य पदार्थों तथा अपशिष्ट पदार्थों का विनिमय होता है।

Que : 23. टेस्ट ट्यूब बेबी क्या है?

Answer: टेस्ट ट्यूब बेबी (Test Tube Baby) – इस विधि में दाता स्त्री के अण्डे को दाता पुरुष शुक्राणु से प्रयोगशाला में परखनली के भीतर (स्त्री शरीर के बाहर) निषेचन कराया जाता है तथा निश्चित समय तक अनुरूपी परिस्थितियों में परिवर्धन के बाद अग्रिम परिवर्धन हेतु स्त्री के गर्भाशय में स्थानान्तरित कर दिया जाता है। इस विधि द्वारा जन्मे बच्चे को “टेस्ट ट्यूब बेबी" कहते हैं।

Que : 24. खाद्य श्रृंखला एवं खाद्य जाल में कोई दो अन्तर बताइए।

Answer: खाद्य श्रृंखला व खाद्य जाल में अन्तर

 

खाद्य श्रृंखला (Food chain) खाद्य जाल (Food web)

1.

पारितन्त्र में खाद्य पदार्थों के स्थानान्तरण पथ को खाद्य श्रृंखला कहते हैं। पारितन्त्र में खाद्य श्रृंखला के संयुक्त पथों  को  खाद्य जाल  कहते हैं।

2.

 

इसमें ऊर्जा का प्रवाह पथ सरल रेखा में होता है। इसमें ऊर्जा का प्रवाह पथ अनियमित होता है।
3. प्रवाह पथ एकदिशीय होता है। प्रवाह पथ कई दिशाओं में होता है।

Que : 25. जैविक ऑक्सीजन माँग किसे कहते हैं?

Answer: जैविक आक्सीजन मांग, एक विशिष्ट समय अवधि पर किसी निश्चित तापमान पर दिए गए पानी के नमूने में कार्बनिक पदार्थों को तोड़ने के लिए वायवीय जैविक जीवों द्वारा आक्सीजन की  आवश्यकता होती है। जीवाणु जैसे सूक्ष्मजीव कार्बनिक कचरे को विघटित करने के लिए जिम्मेदार हैं। जब कार्बनिक पदार्थ जैसे—मृत पौधे, घास की कतरन, खाद, सीवेज पानी में मौजूद होते हैं ते बैक्टीरिया इस कचरे को तोड़ने की प्रक्रिया शुरू कर देते हैं। जब ऐसा होता है, तब उपलब्ध विघटित आक्सीजन का अधिकांश भाग एरोबिक जीवाणुओं द्वारा ग्रहण किया जाता है जिसे जैविक ऑक्सीजन मांग कहा जाता है।

Que : 26. किन्हीं तीन प्रकाश संश्लेषी वर्णकों के नाम लिखिए।

Answer: क्लोरोफिल, कैरोटीनॉयड और फाइकोबिलिन।

Que : 27. इण्टरफेरॉन क्या हैं? इसका महत्व बताइये।

Answer: इन्टरफेरॉन—हमारी कोशाओं से बने ऐसे प्रोटीन जो विषाणुओं तथा कुछ दूसरे पदार्थों के कोशिका में प्रवेश करने से बनते हैं, इन्टरफेरॉन कहलाते हैं। ये रोगाणुओं व विषाणुओं के प्रभाव को नष्ट कर रोगों से बचाते हैं।

Que : 28. पुरुषों में वृषण उदर गुहा के बाहर क्यों पाये जाते हैं ?

Answer: नर में वृषण का उदरगुहा से बाहर पाये जाने का कारण -

नर में एक जोड़ी वृषण उदर गुहा के बाहर पाये जाते हैं जो स्क्रॉटम में बंद रहते हैं। शुक्राणु निर्माण के लिये तापक्रम शरीर के तापक्रम 2°C कम होना आवश्यक है अन्यथा स्पर्मेटोजेनेसिस द्वारा शुक्राणु के निर्माण की क्रिया पूर्ण नहीं हो पायेगी। इसी कारण वृषण का उदरगुहा से बाहर होना आवश्यक है।

Que : 29. निम्नलिखित में से प्रत्येक का एक शब्द/एक वाक्य में उत्तर लिखिए-

(1) ऑक्सी श्वसन एवं अनॉक्सी श्वसन में एक मोल ग्लूकोज के ऑक्सीकरण से कुल कितनी ऊर्जा प्राप्त होगी ?

(2) पेरीकार्डियल द्रव का एक कार्य लिखिए।

(3) किसी ऐसे पौधे का नाम लिखिए जिसमें तना पत्तीनुमा संरचना में तथा पत्तियों काँटों में रूपान्तरित होती हैं।

(4) रानीखेत रोग किनका प्रमुख रोग है ?

(5) एक कारण दीजिए जिससे जनसंख्या अनियमित रूप से बढ़ती है।

Answer: (1) क्रमश: 673 कि. कै. तथा 28 कि कै. (2) हृदय को बाहरी आघातों से बचाना (3) नागफनी (4) मुर्गी (5) अनुकूल वातावरण तथा रोगों एवं महामारियों पर नियन्त्रण।

Que : 30. ध्वनि प्रदूषण के चार कारणों को लिखिए एवं उसके रोकथाम के उपायों को समझाइए।

Answer: ध्वनि प्रदूषण के स्त्रोत निम्नलिखित हैं -

  1. विभिन्न प्रकार के वाहनों से उत्पन्न ध्वनि :मोटरकार, स्कूटर, टेंपो, हेलीकॉप्टर, जेट आदि।
  2. घरेलू मनोरंजन के साधन -रेडियो, टेप, टेलीवीजन, लाउड स्पीकर, आतिशबाजी, बैंड-बाजे इत्यादि।

ध्वनि प्रदूषण नियंत्रण करने के उपाय निम्नानुसार हैं -

  1. इमारतों एवं भवनों में ध्वनि रोधन का प्रयोग करना।
  2. स्वचलित वाहनों में हार्न की तीव्रता शोर उत्पन्न करने वाली नहीं होना चाहिये।
  3. शोर उत्पन्न करने वाले उपकरणों पर कानूनी प्रतिबंध होना चाहिये।

Que : 31. सेरिब्रोस्पाइनल द्रव के कार्य लिखिये ?

Answer: सेरिब्रोस्पाइनल द्रव के कार्य -

1. ये मेरुरज्जु और मस्तिष्क को बाहरी तीव्र झटकों और आघात से बचाता है।
2. तंत्रिका तंत्र को निश्चित आकार देता है।
3. पदार्थों के आवागमन में सहायता करता है।
4. मस्तिष्क के दाब को बनाए रखता है।

Que : 32. नॉर-एड्रीनेलिन हार्मोन के कार्य लिखिये ?

Answer: नॉर एड्रीनेलिन हार्मोन के कार्य -

  1. कार्बोहाइड्रेट उपापचय को प्रेरित करता है।
  2. हृदय स्पन्दन का नियंत्रण करता है।
  3. परिसंचरण क्रिया का नियंत्रण करता है।
  4. एडीपोज ऊतकों को वसीय अम्लों से पृथक होने की क्रिया को प्रेरित करता है।

Que : 33. जंतुओं में अलैंगिक जनन से होने वाली हानियाँ लिखिये ?

Answer: अलैंगिक जनन से हानियाँ -

  1. इससे विकसित जीवों में वातावरणीय परिवर्तनों के प्रति अनुकूलन क्षमता नहीं होती है।
  2. इससे नर और मादा युग्मकों का संलयन नहीं होता अतः संततियों में विभिन्नता नहीं होती है।

Que : 34. जंतुओं में वृद्धि को परिभाषित कीजिये ?

Answer: वृद्धि की परिभाषा –

“वृद्धि वह क्रिया है जिसके कारण किसी जीव या उसके विभिन्न अंगों के भार, आकार, रूप, आयतन, लंबाई आदि में स्थायी एवं अनुक्रमणीय (Irreversible) बढ़ाव या परिवर्तन होता है।"

Que : 35. जंतुओं में वयता को परिभाषित कीजिये ?

Answer: जन्तुओं में वयता - “जीवों में बढ़ती आयु के साथ उसके जैविक क्षमता में धीमे-धीमे आने वाले हास को काल प्रभावन या वयता कहते हैं। जीवन की नियति मृत्यु होती है।”

Que : 36. जैव निम्नीकरणीय एवं अनिम्नीकरण प्रदूषकों की परिभाषा उदाहरण सहित लिखिये ?

Answer: जैव निम्नीकरणीय प्रदूषक - वे प्रदूषक जिनका अपघटन सूक्ष्म जीवों (जीवाणुओं और कवकों) के द्वारा सरल पदार्थों में किया जाता है। जैसे- मलमूत्र, गोबर।

अनिम्नीकरण : वे प्रदूषक जिनका सूक्ष्म जीवों द्वारा अपघटन नहीं किया जा सकता है जैसे : प्लास्टिक, पॉलीथीन, काँच इत्यादि।

Que : 37. मनुष्य के रूधिर में प्लाज्मा के कार्य लिखिये ?

Answer: प्लाज्मा के कार्य -

  1. यह शरीर की सभी कोशिकाओं एवं ऊतकों में भोजन पदार्थों को पहुंचाता एवं उत्सर्जी वर्ण्य पदार्थो को इन अंगों से एकत्रित करके अलग करता है।
  2. यहO2 को श्वसन सतहों से विभिन्न ऊतकों में पहुंचाता तथा CO2 को वहां से एकत्रित करके श्वसन सतहों तक लाता है।
  3. यह विटामिनों,हार्मोन्स, प्रतिरक्षियों, प्रतिविषों आदि का संवहन करता है।  
  4. यह शारीरिक ताप का नियंत्रण और नियमन करता है।

5. यह शरीर में जल की मात्रा को समन्वयित करता है।

Que : 38. मनुष्य के शरीर में वृक्क के कार्यों को लिखिये ?

Answer: वृक्क के कार्य -

  1. वृक्क शरीर के जल की अतिरिक्त मात्रा को मूत्र के रूप में छानकर शरीर से बाहर निकालता है।
  2. रक्त में उपस्थित अतिरिक्त लवणों को छानकर इनकी मात्रा को नियंत्रित करता है।
  3. रक्त शरीर में अम्ल और क्षार का संतुलन बनाए रखता है।
  4. उत्सर्जी वर्ण्य हानिकारक पदार्थो को छानकर मूत्र के रूप में शरीर से निष्कासित करता है।
  5. रूधिर दाब पर नियंत्रण रखता है।
  6. विटामिनD का सक्रियण करता है।
  7. हाइपोक्सिया अवस्था मेंRBCs का निर्माण करता है।
  8. शरीर को होमियोस्टैसिस बनाए रखता है।

Que : 39. केंचुए में प्रचलन विधि को समझाईये ?

Answer: प्रचलन के लिये केंचुआ अपनी देहभित्तीय पेशियों तथा शरीर के प्रत्येक खण्ड में स्थित शूकों (Setae) का उपयोग करता है। सर्वप्रथम यह अग्र भाग की वर्तुल पेशियों को संकुचित करके अग्र भाग को लंबा करता है। इस भाग के सीटी सतह को पकड़ते हैं। अब इस भाग की लंबवत पेशियां संकुचित होकर पूरे शरीर को आगे खींच लेती है। इस प्रकार पेशी संकुचन शिथिलन लहर के रूप में केंचुआ प्रचलन करता है।

Que : 40. पौधों में बहुभ्रूणता क्रिया को समझाईये ?

Answer: पौधों में बहुभ्रूणता –

जब एक ही बीज में एक युग्मनज (Zygote) से अनेक युग्मनज (जाइगोट) या भ्रूण उत्पन्न होते हैं तब ऐसी अवस्था को बहुभ्रूणता (Polyembryony) कहते हैं। जब बीजाण्ड में एक से अधिक भ्रूणकोष या अण्ड बनते हैं और सभी निषेचित हो जाते या जाइगोट विभाजित हो जाते हैं तब ऐसी अवस्था बहुभ्रूणता कहलाती है।

उदाहरण : नग्नबीजियों कॉनीफर्स का यह सामान्य लक्षण है। तम्बाकू में भ्रूण की बाह्यत्वचा के मुकुलन से बहुभ्रूणता उत्पन्न होती है। नीबू, धान, गेहूँ में भी बहुभ्रूणता मिलती है।

Que : 41. साइटोकाइनिन हार्मोन के कार्य लिखिये ?

Answer: साइटोकाइनिन हार्मोन के कार्य -

  1. कोशिका विभाजन :इसका प्रमुख कार्य कोशिका द्रव्य के विभाजन द्वारा कोशिका विभाजन को प्रेरित करना है।
  2. कोशिका का दीर्धीकरण :यह बीजपत्र एवं पत्ती डिस्क की कोशिकाओं का दीर्धीकरण करता है।
  3. बीजों की प्रसुप्ति को दूर करता है।
  4. जीर्णता में विलम्ब : इसके प्रभाव से पर्णहरिम का विलोपन तथा प्रोटीन का नष्ट होना रूक जाता है।5. यह शीर्ष प्रमुखता को रोकता है।
  5. रोग प्रतिरोधक क्षमता का विकास करता है।
  6. पुष्पन का समारंभन करता है। (लघु दिवसीय पौधों में)
  7. पादप ऊतक संवर्धन में उपयोगी है।

Que : 42. खाद्य श्रृंखला की परिभाषा लिखिये एवं घास पारितंत्र की एक खाद्य श्रृंखला का उदाहरण सहित समझाईये ?

Answer: खाद्य श्रृंखला की परिभाषा - “किसी पारितंत्र में उत्पादक से उच्च उपभोक्ता तक खाद्य पदार्थो या खाद्य ऊर्जा के स्थानान्तरण के क्रमबद्ध प्रवाह पथ को खाद्य श्रृंखला (Food Chain) कहते हैं।"

घास पारितंत्र की खाद्य श्रृंखला –

अ. उत्पादक : हरी घासें प्रकाश संश्लेषण करके भोज्य पदार्थ बनाती हैं, यह उत्पादक है।

  1. प्राथमिक उपभोक्ता : टिड्डे इन्हें खाते हैं ये प्राथमिक उपभोक्ता है।
  2. द्वितीयक उपभोक्ता : इन टिड्डों को मेंढक खाते हैं।
  3. तृतीयक उपभोक्ता : मेंढक को सर्प खाते हैं।
  4. चतुर्थ उपभोक्ता : सर्प को मोर खाते हैं।

(स). अपघटनकर्ता : बैक्टीरिया, फन्जाई - इनके मृत होने पर इनके शरीर का अपघटन करते हैं।

यह एक सरल सीधी खाद्य श्रृंखला है।

Que : 43. स्थल के आधार पर अनुक्रमण के विभिन्न प्रकारों का वर्णन कीजिये ?

Answer: स्थल के आधार पर अनुक्रमण के प्रकार –

स्थल के आधार पर अनुक्रमण के निम्नलिखित प्रकार हैं –

  1. जलक्रमक2. मरूक्रमक
  2. जलक्रमक (Hydrosere) :पोखरों, तालाबों, झीलों, झरनों आदि जलकायों (Waterbodies) से प्रारंभ होकर उनमें सम्पन्न होने वाले क्रमक (Sere) को जलक्रमक कहते हैं।
  3. मरुक्रमक (Xerosere) :जल की कमी वाले क्षेत्र, शुष्क क्षेत्र, नग्न चट्टानों से प्रारंभ होने वाले क्रमक (Sere) को मरूक्रमक कहते हैं।

यह दो प्रकार का होता है।

अ. शैलक्रमक (Lithosere) : यह अनुक्रमक नग्न चट्टानों से प्रारंभ होता है।

ब. बालूक्रमक (Psamosere) : यह अनुक्रमक मरूस्थल या बालू वाले क्षेत्रों से प्रारंभ होता है।

Que : 44. वर्मी कम्पोस्ट खाद का अर्थ लिखिये एवं उसके महत्वों को समझाईये ?

Answer: वर्मी कम्पोस्ट खाद का अर्थ -

केंचुए, ह्यूमस युक्त मृदा, गोबर, घास-फूंस, मक्का बाजरा के डण्ठल, धान के पुआल, कुक्कुट, अवशेष आदि को खाकर उसे मल के रूप में उत्सर्जित करते हैं, इसे ही वर्मी कम्पोस्ट खाद कहते हैं।

वर्मी कम्पोस्ट खाद का महत्व -

  1. लोम तथा चिकनी मिट्टी की वातायनता बढ़ जाती है।
  2. रेतीली मिट्टी सघन हो जाती है।
  3. लाभदायक सूक्ष्मजीवियों की वृद्धि दर बढ़ जाती है।
  4. मृदा जल को उड़ने से रोकती है।
  5. मिट्टी की जलधारण क्षमता बढ़ाती है।
  6. दीर्घ और लघु पोषक तत्वों की उपस्थिति सुनिश्चित करती है।

Que : 45. एड्स का प्रसारण किस प्रकार होता है ? समझाईये।

Answer: एड्स प्रसारण के तरीके -

  1. अनैतिक यौन संबंध :एड्स से ग्रसित स्त्री या पुरुष जब किसी स्वस्थ स्त्री या पुरुष से यौन संबंध स्थापित करता या करती है तब स्वस्थ व्यक्ति को एड्स का संक्रमण हो जाता है।
  2. रक्त आधान :एड्स से पीड़ित व्यक्ति का रक्त आधान स्वस्थ व्यक्ति में करने से उसे एड्स का संक्रमण हो जाता है।
  3. एड्स से पीड़ित गर्भवती महिला से उसके गर्भस्थ शिशु को एड्स हो जाता है।
  4. एच.आई.वी. से संक्रमित इन्जेक्शन की सुई से स्वस्थ को इन्जेक्शन लगाने पर।

Que : 46. जल के सक्रिय और निष्क्रिय अवशोषण में अंतर लिखिये।

Answer: जल के सक्रिय और निष्क्रिय अवशोषण में अंतर –

क्र.

जल का सक्रिय अवशोषण

जल का निष्क्रिय अवशोषण

1

ऊर्जा की आवश्यकता होती है।

ऊर्जा की आवश्यकता नहीं होती

2

जड़ों की अनुपस्थिति में यह संभव नहीं है।

जड़ों की अनुपस्थिति में भी यह संभव है।

3

वाष्पोत्सर्जन का प्रभाव पड़ता है।

वाष्पोत्सर्जन पर निर्भर रहता है।

4

जाइलम में धनात्मक दाब उत्पन्न होता है।

जाइलम में ऋणात्मक दाब उत्पन्न होता है।

5

जड़ों की कोशिकाएं जल के अवशोषण में सक्रिय भाग लेती हैं।

जड़ों की कोशिकाएं जल के अवशोषण में बिल्कुल भी भाग नहीं लेती हैं।

Que : 47. जैविक समुदाय से आप क्या समझते हैं। किसी जैव समुदाय के कोई चार विशिष्ट लक्षण लिखिये ?

Answer: जैविक समुदाय - किसी निश्चित भौगोलिक क्षेत्र में निवास करने वाली विभिन्न समष्टियों के समूह को जैविक समुदाय कहते हैं।

जैविक समुदाय के विशिष्ट लक्षण -

  1. जाति विविधता: प्रत्येक जीव समुदाय में अनेक प्रकार के जीव साथ रहते हैं। वे किसी न किसी रूप से एक दूसरे से जुड़े रहते हैं।
  2. आत्मनिर्भरता :प्रत्येक जीव समुदाय में स्वपोषी व परपोषी जीव होते हैं जो भोजन व अन्य आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये एक दूसरे पर निर्भर करते हैं।
  3. जीवों के बीच अंर्तसंबंध :जीविय समुदाय के सभी जीव एक दूसरे से घनिष्टतापूर्वक हुड़े होते हैं।
  4. जाति प्रभाविता :प्रत्येक जीविय समुदाय में एक जाति प्रभावी रूप में पाई जाती है।

Que : 48. मृदाजल क्या है? मृदाजल के विभिन्न प्रकार (कोई तीन प्रकार) लिखिये ? पौधों द्वारा किस मृदा जल का उपयोग किया जाता है ?

Answer: मृदा में पाया जाने वाला जल मृदा जल कहलाता है। इसका प्रमुख स्त्रोत वर्षा है। मृदा कणों का आकार, स्थिति, समुच्चय जल की मात्रा को नियंत्रित करता है।

मृदा जल के प्रकार निम्नलिखित हैं -

  1. अपवाहित जल- तेज बारिश के बाद वर्षा का वह जल जो मृदा में ऊपर बहता है अपवाहित जल कहलाता है।
  2. गुरुत्वीय जल :वर्षा का वह जल जो गुरूत्वीय बल के कारण भूमि में गहराई तक चला जाता है। जल गहराई में होने से पौधे की जड़ें इस जल तक नहीं पहुंच पाती।
  3. आर्द्रताग्राही जल :मृदा में उपस्थित जल मृदा कणों के चारों ओर प्रबलता पूर्वक पतली फिल्म के रूप में चिपका रहता है इसे आर्द्रताग्राही जल कहते हैं।

पौधों के लिये केशिका जल ही उपयोगी होता है यह वह जल है जो मृदा कणों के बीच छिद्रों तथा नलिकाओं में भर जाता है।

Que : 49. तीव्र वेग से बढ़ती जनसंख्या मानव समाज की एक भयंकर समस्या है, व्याख्या कीजिये ? जनसंख्या वृद्धि के कारण एवं नियंत्रण लिखिये।

Answer: प्राकृतिक संसाधन निश्चित मात्रा में उपलब्ध हैं यदि मानव जनसंख्या दिन प्रतिदिन इसी तरह से बढ़ती गई तो इन संसाधनों की कमी होकर वे समाप्त होते जावेंगे तब इनसे भयावह स्थिति उत्पन्न हो जावेगी ये समस्यायें निम्नलिखित हैं -

  1. जीवन उपयोगी वस्तुओं में कमी होगी।
  2. प्राकृतिक संसाधन जैसे पेट्रोल,डीजल, मिट्टी का तेल, कोयला, खाद्य पदार्थ व वनों में कमी हो जावेगी।
  3. पर्यावरण प्रदूषित होगा।
  4. पारिस्थितिक संतुलन बिगड़ जावेगा।
  5. जीवन स्तर में गिरावट होगी : नैतिक मूल्य तथा सामाजिक स्तर में गिरावट होगी।

वृद्धि के कारण :

  1. जन्मदर वृद्धि व मृत्यु दर में कमी।
  2. कम उम्र में विवाह।
  3. निरक्षरता।
  4. सामाजिक कुरूतियां व अंधविश्वास को मान्यता देना।

नियंत्रण :

  1. विवाह की आयु में वृद्धि ।
  2. शिक्षा का प्रसार व लोकव्यापीकरण।
  3. धर्मान्धता हटाकर।
  4. छोटे परिवार की महत्ता की समझाकर।
  5. जन्मदर को नियंत्रित करने के उपायों को अपनाकर।

Que : 50. व्यसन संबंधी रोगों की जानकारी दीजिये एवं इनके रोकथाम के उपायों का विवरण दीजिये?

Answer: व्यसन संबंधी रोग –

  1. तंबाकू के सेवन से -अल्सर, फेंफड़ों का कैंसर, मुंह का कैंसर।
  2. धूम्रपान से होने वाले रोग -फेंफड़ों का कैंसर, नपुंसकता, मोतियाबिन्द ।
  3. शराब के सेवन से –

अ. यकृत का सिरोसिस : इस रोग में यकृत कठोर, शुष्क व सिकुड़ कर छोटा हो जाता है।

ब.  शोध व घाव उत्पन्न होना : ग्रसनी ग्रहणी व आमाशय की झिल्ली में खराश व घाव होना।

स. हृदय पेशी में सूजन व वाहिकाओं में वसा के जमाव से रूधिर प्रवाह में रूकावट होती है।

द. किडनी, मूत्राशय भी प्रभावित होते हैं।

इ. मस्तिष्क के कार्य करने की क्षमता भी प्रभावित होती है।

रोकथाम के उपाय -

  1. व्यसन के दुष्प्रभावों की जानकारी देकर।
  2. लोगों को जागरूक करके।
  3. पुर्नवसन एवं उचित वातावरण देकर।
  4. दीर्घकालिक उपचार एवं व्यवहारिक शिक्षा से।
  5. मनोवैज्ञानिक एवं सामाजिक उपचार द्वारा।
  6. भोजन संतुलन एवं विटामिन युक्त देकर।
  7. योगाभ्यास करने के लिये प्रेरित कर।

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