बिहार बोर्ड 10वी संस्कृत परीक्षा 2023 : Top 90 महत्वपूर्ण सब्जेक्टिव प्रश्न उत्तर के साथ; ये प्रश्न हर साल पूछता है रटलो परीक्षा से पहले

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बिहार बोर्ड 10वी संस्कृत परीक्षा 2023 : Top 90 महत्वपूर्ण सब्जेक्टिव प्रश्न उत्तर के साथ; ये प्रश्न हर साल पूछता है रटलो परीक्षा से पहले
यहां बिहार बोर्ड 10वी संस्कृत परीक्षा 2023 के लिए Top 90 महत्वपूर्ण सब्जेक्टिव प्रश्न उत्तर के साथ दिए गए है.
इसमें शिक्षकों द्वारा चयनित शीर्ष 90 महत्वपूर्ण सब्जेक्टिव प्रश्न दिए गए हैं जिनके साथ उत्तर भी शामिल हैं। यह एक गाइड है जो बिहार बोर्ड कक्षा 10 के छात्रों को परीक्षा से पहले उन प्रश्नों को मदद करेगा जो परीक्षा में हर साल पूछे जाते है।
आप नीचे दिए गए महत्वपूर्ण प्रश्न को अच्छी तरह से पढ़ सकते है। अब आपकी परीक्षा में कुछ ही घंटे बचे है, जिससे संस्कृत के पेपर की तैयारी कर सकते हैं और अच्छे मार्क्स ला सकते हैं।
VVI Sanskrit Subjective Question
1. उपनिषद् का क्या स्वरूप हैं ? पठित पाठ के आधार पर स्पष्ट करें।
उत्तर:- उपनिषद् वैदिक वाङ्मय का अभिन्न अंग है। जिसमें दर्शनशास्त्र के सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया गया है। सर्वत्र परमपुरुष परमात्मा का गुणगान किया गया है, परमात्मा के द्वारा ही यह संसार व्याप्त और अनुशंसित है। सत्य की पराकाष्ठा ही ईश्वर का मूर्तरूप है । ईश्वर ही सभी तपस्याओं का परम लक्ष्य है।
2. आत्मा का स्वरूप क्या है ? पठित पाठ के आधार पर स्पष्ट करें।
उत्तर:- कठोपनिषद में आत्मा के स्वरूप का बड़ा ही अपूर्व विश्लेषण किया गया है। आत्मा मनुष्य की हृदय रूपी गुफा में अवस्थित है। यह अणु से भी सूक्ष्म है। यह महान से भी महान है । इसका रहस्य समझने वाला सत्य का अन्वेषण करता है। वह शोकरहित होता है।
3. मङ्गलम् पाठ का पाँच वाक्यों में परिचय दें।
उत्तर:- मङ्गलम् पाठ में चार मन्त्र क्रमशः ईशावास्य, कठ, मुण्डक तथा श्वेताश्वतर नामक उपनिषदों में विशुद्ध आध्यात्मिक ग्रन्थों के रूप में उपनिषदों का महत्त्व है। इन्हें पढ़ने से परम सत्ता के प्रति श्रद्धा उत्पन्न होती है, सत्य के अन्वेषण की प्रवृत्ति होतो है तथा आध्यात्मिक खोज की उत्सुकता होती है। उपनिषदग्रन्थ विभिन्न वेदों से सम्बद्ध हैं।
4. महान लोग संसाररूपी सागर को कैसे पार करते हैं ?
उत्तर:- श्वेताश्वर उपनिषद् में ज्ञानी और अज्ञानी लोग में अंतर स्पष्ट करते हुए महर्षि वेदव्यास कहते हैं कि, अज्ञानी लोग अंधकारस्वरूप और ज्ञानी प्रकाशस्वरूप हैं। महान लोग इसे समझकर मृत्यु को पार कर जाते हैं, क्योंकि संसाररूपी सागर को पार करने का इससे बढ़कर अन्य कोई रास्ता नहीं है।
5. मंगलम् पाठ के आधार पर सत्य की महत्ता पर प्रकाश डालें।
उत्तर:- सत्य की महत्ता का वर्णन करते हुए महर्षि वेदव्यास कहते हैं कि हमेशा सत्य की ही जीत होती है, मिथ्या कदापि नहीं जीतता सत्य से ही देवलोक का रास्ता प्रशस्त है। मोक्ष प्राप्त करने वाले ऋषि लोग सत्य को प्राप्त करने के लिए ही देवलोक जाते हैं, क्योंकि देवलोक सत्य का खजाना है।
6. मंगलम् पाठ के आधार पर आत्मा की विशेषताएँ बतलाएँ ।
उत्तर:- मंगलम् पाठ में संकलित कठोपनिषद् से लिए गए मंत्र में महर्षि वेदव्यास कहते हैं कि प्राणियों की आत्मा हृदयरूपी गुफा में बंद है। यह सूक्ष्म से सूक्ष्म और महान से महान है। इस आत्मा को वश में नहीं किया जा सकता है। विद्वान लोग शोक-रहित होकर ईश्वर का दर्शन करते हैं।
7. प्राचीन संस्कृत ग्रंथों में पाटलिपुत्र की ख्याति किस रूप में थी ?
उत्तर:- प्राचीन संस्कृत ग्रंथों में और पुराणों में पाटलिपुत्र का नाम पुष्पपुर या कुसुमपुर माना जाता है। इस नगर के समीप पाटल पुष्पों का उत्पादन होता था । पाटलिपुत्र शब्द भी यहाँ पाटल पुष्पों के पल्लवित होने के कारण प्रचारित है । शरत काल में कौमुदी महोत्सव होता था। यह महोत्सव दुर्गापूजा के असवर सा दृष्टिगत होता था ।
8. पाटलिपुत्र नगर के वैभव का वर्णन करें।
उत्तर:- पाटलिपुत्र प्राचीनकाल से ही अपनी वैभव परम्परा के लिए विख्यात रहा है। विदेशी लोग आकर अपने संस्मरणों में यहाँ की अनेक उत्कृष्ट सम्पदाओं का वर्णन किया है। मेगास्थनीज ने लिखा है कि चन्द्रगुप्तमौर्य काल में यहाँ की शोभा और रक्षा व्यवस्था अति उत्कृष्ट थी, अशोक काल में यहाँ निरन्तर समृद्धि रही। कवि राजशेखर ने अपनी रचना काव्यमीमांसा में ऐसी ही बात लिखी है कि यहाँ बड़े-बड़े कवि- वैयाकरण-भाष्यकार यहाँ परीक्षित हुए। आज पाटलिपुत्र नगर 'पटना' नाम से जाना जाता है जहाँ संग्रहालय, गोलघर, जैविक उद्यान इत्यादि दर्शनीय स्थल हैं। इस प्रकार पाटलिपुत्र प्राचीनकाल से आज तक विभिन्न क्षेत्रों में वैभव धारण करता है जिसका संकलित रूप संग्रहालय में देखने योग्य है।
9. पाटलिपुत्र को शिक्षा का प्राचीन केंद्र क्यों माना जाता है ?
उत्तर:- राजशेखर-रचित काव्यमीमांसा 'काव्य' से हमें जानकारी मिलती है कि पाटलिपुत्र शिक्षा का एक प्राचीन केंद्र था। यहाँ संस्कृत के अनेक विद्वान हुए । पाणिनी, पिङ्गल, वररुचि तथा पतञ्जलि की परीक्षा यहीं ली गई थी और यहीं उन्होंने ख्याति प्राप्त की थी।
10. पाटलिपुत्र के प्राचीन महोत्सव का वर्णन करें।
उत्तर:- पाटलिपुत्र से शरतकाल में कौमुदी महोत्सव बड़ी धूम-धाम से मनाया जाता था। सभी नगरवासी आनंद मग्न हो जाते थे। इस समारोह का विशेष प्रचलन गुप्तवंश के शासनकाल में था। आजकल जिस तरह दुर्गापूजा मनाई जाती है, उसी प्रकार प्राचीनकाल में कौमुदी महोत्सव मनाया जाता था।
11. लेखक 'पाटलिपुत्र वैभवम्' पाठ से हमें क्या संदेश देना चाहते हैं ?
उत्तर:- लेखक का कहना है कि प्राचीन काल में पाटलिपुत्र एक महान नगर था, जहाँ शिक्षा, वैभव और समृद्धि थी। मध्यकाल में इसकी स्थिति ठीक नहीं थी। मुगलकाल में इस नगर का पुनः उद्धार हुआ तथा अंग्रेजों के शासन काल से लेकर वर्तमान में इस नगर का अत्यधिक विकास हो रहा है।
12. प्राचीन पाटलिपुत्र में शिक्षा के संबंध में लेखक के क्या विचार हैं ?
उत्तर:- प्रस्तुत पाठ में लेखक ने बताया है कि दामोदर नामक कवि से हमें जानकारी मिलती है कि सरस्वती के वंशज यहाँ रहते थे। राजशेखर कवि के अनुसार पाणिनी, पिंगल, वररुचि आदि महान विद्वानों की परीक्षा यहाँ ली जाती थी। इससे जात होता है कि प्राचीन पाटलिपुत्र शिक्षा का एक महान केंद्र था।
13. लेखक के विचार में प्राचीन काल से आज तक पाटलिपुत्र किस प्रकार का नगर रहा है ?
उत्तर:- लेखक के विचार से पाटलिपुत्र नगर प्राचीन काल से लेकर आज तक राजनैतिक, धार्मिक, औद्योगिक और शिक्षा जैसे विविध क्षेत्रों में वैभव धारण करता रहा है और यहाँ इनका संकलित रूप से दर्शन किया जा सकता है। यहाँ के लोग कई उत्सव मनाते आए हैं। पाटलिपुत्रवासी पटनदेवी की पूजा करते हैं। पाटलिपुत्र एक महान नगर रहा है।
14. अलसकथा का वर्णय विषय क्या है ?
उत्तर:- विद्यापति द्वारा रचित कथाग्रंथ 'पुरुष परीक्षा' नामक पुस्तक से लिया गया 'अलसकथा' मानव महत्व एवं दोषों के निराकरण की शिक्षा देता है। आलसियों को दान देने की इच्छा रखनेवाले बीरेश्वर ने यह | जानने की उत्कष्ठा प्रकट की थी कि आलसी जीवन जीने की कला का कैसे निर्वहन करते हैं। इष्ट लाभ के लिए मेहनती भी आलसी का रूप लेकर पहुँचने लगते हैं। उनकी परीक्षा के लिए दानगृह में अग्नि प्रज्वलित की जाती है। आलसी भागने के क्रम में गीले कपड़े से ढकने, घर में आग लगी है, यहाँ कोई धार्मिक नहीं है आदि की चर्चा करते हैं। आलसी केवल करुणा के पात्र होते हैं।
15. 'अलसकथा' से क्या शिक्षा मिलती है ?
उत्तर:- मैथिली कवि विद्यापति रचित 'अलसकथा' में आलसियों के माध्यम से शिक्षा दी गयी है कि उनका भरण-पोषण करुणाशीलों के बिना संभव नहीं है। आलसी काम नहीं करते, ऐसी स्थिति में कोई दयावान ही उनकी व्यवस्था कर सकता है। अतएव आत्मनिर्भर न होकर दूसरे पर वे निर्भर हो जाते हैं।
16. 'अलसकथा' का क्या संदेश है ?
उत्तर:- अलसकथा का संदेश है कि आलस्य एक महान रोग है। आलसी का सहायक प्रायः कोई भी नहीं होता । जीवन में विकास के लिए व्यक्ति का कर्मठ होना अत्यावश्यक है। आलस्य शरीर में रहनेवाला महान शत्रु है जिससे अपना परिवार का और समाज का विनाश अवश्य ही होता है। यदि जीवन में विकास की इच्छा रखते हैं तब आलस्य त्यागकर उद्यम को प्रेरित हों।
17. आलसी पुरुषों को आग से किसने निकाला ?
उत्तर:- जब चार आलसी परुष आग लगने पर भी घर से नहीं भागे तब एक योगी पुरुष ने आकर उनके केशों को पकड़कर उन्हें ढकेलते हुए बाहर किया। इस प्रकार आलसी पुरुष आग से बचे।
18. चारों आलसी पुरुष आग किस प्रकार बचना चाहते थे ?
उत्तर:- चारों आलसी पुरुष आग लगने पर भी घर से नहीं भागे। शोरगुल सुनकर वे जान गए थे कि घर में आग लगी हुई है। वे चाहते थे कि कोई धार्मिक एवं दयालु व्यक्ति आकर आग पर जल, वस्त्र या कंबल डाल दे, जिससे आग बुझ जाए और वे लोग बच जाएँ ।
19. 'अलसकथा' पाठ के आधार पर लेखक के विचार स्पष्ट करें।
उत्तर:- ‘अलसकथा' पाठ में लेखक विद्यापति ने अपने विचार को स्पष्ट करते हुए कहते हैं कि आलसी व्यक्ति बिना परिश्रम किए हुए जीवन व्यतीत करना चाहता है। कारुणिक व्यक्ति के बिना वह अपने को मौत से भी नहीं बचा पाता है। आलस्य शत्रु के समान है।
20. अलस कथा का सारांश लिखें।
उत्तर:- मिथिला में वीरेश्वर नामक मंत्री था। वह स्वभाव से दानशील और दयावान था। वह अनार्थों और निर्धनों को प्रतिदिन भोजन देता था। इससे आलसी भी लाभान्वित होते थे। आलसियों को इच्छित लाभ की प्राप्ति को जानकर बहुत से लोक बिना परिश्रम तोन्द बढ़ानेवाले वहाँ इकट्ठे हो गये। इसके पश्चात् आलसियों को ऐसा सुख देखकर धूर्त लोक भी बनावटी आलस्य दिखाकर भोजन प्राप्त करने लगे। इसके बाद अत्यधिक धन व्यय देखकर शाला चलाने वाले लोग विचार किये कि छल से कपटी आलसी भी भोजन प्राप्त करते हैं यह हमलोगों की गलती है। अतः उन आलसियों की परीक्षण करने हेतु उन्होंने आलसीशाला में आग लगाकर हल्ला कर दिया। इसके बाद घर में लगी आग को बढ़ती हुई देखकर सभी धूर्त भाग गये। लेकिन चार पुरुष अग्नि का आभास पाकर भी अपने स्थान पर यथावत बने रहकर बात करने लगे कि उन्हें कोई इस अग्नि से निकाल देता। अंततः व्यवस्थापक इस संबंध में उनकी आपस की वार्तालाप को सुनकर बढ़ी हुई अग्नि की ज्वाला से रक्षण हेतु उन्हें निकाल दिया। असली आलसियों की पहचान करते हुए उन्होंने पाया कि आलसी स्वयं अपना पोषण नहीं कर सकते। वे देव या दयावान लोगों की दया पर ही जीवित रह सकते हैं। अतः उन्हें मदद की पूर्ण जरूरत है। इसके बाद उन चारों आलसियों को पहन से अधिक चीजें मंत्री देने लगे।
21. सर्व शुक्ला सरस्वती किसे कहा गया है, और क्यों ?
उत्तर:- सर्वशक्ला सरस्वती, विजयाड़ा को कहा गया है। लौकिक संस्कृत में विजयाना की भूमिका सराहनीय है। उसके पदों की सौष्ठवता देखने में बनती है। एक असाधारण लेखिका की पराकाष्ठता से प्रभावित होकर ही दण्डी ने उसे सर्वशक्ला सरस्वती कहा है। विजयाना श्याम वर्ण की थी किन्तु उसका कृत्तिया ज्योतिर्मय थीं। नीलकमल की पंखुड़ियों की तरह विजयादा अपनी रचना में अद्भुत लेखन कला की आभा बिखेरती है।
22. इस पाठ से हमें क्या संदेश मिलता है ?
उत्तर:- इस पाठ के द्वारा संस्कृत साहित्य के विकास में महिलाओं के योगदान के बारे में ज्ञात होता है। वैदिक युग से आधुनिक समय तक ऋषिकाएँ, कवयित्री, लेखिकाएँ संस्कृतसाहित्य के संवर्धन में अतुलनीय सहभागिता प्रदान करती रही हैं। संस्कृत लेखिकाओं की सुदीर्घ परम्परा है। संस्कृत भाषा के उन्नयन एवं पल्लवन में पुरुषों के समतुल्य महिलाएँ भी चलती रही हैं।
23. संस्कृतसाहित्ये लेखिकाः पाठ का पाँच वाक्यों में परिचय दें।
उत्तर:- संस्कृत की सेवा जिस प्रकार पुरुषों ने की है उसी प्रकार महिलाओं ने भी वैदिक युग से आज तक इसमें भाग लिया है। प्रायः इस विषय की उपेक्षा हुई है। प्रस्तुत पाठ में संक्षिप्त रूप से संस्कृत की प्रमुख लेखिकाओं का उल्लेख किया गया है। उनके योगदान संस्कृत साहित्य के इतिहास में अमर है।
24. शास्त्र - लेखन एवं रचना संरक्षण में वैदिककालीन महिलाओं के योगदानों की चर्चा करें।
उत्तर:- वैदिककाल में शास्त्र - लेखन एवं रचना संरक्षण में पुरुषों की तरह महिलाओं ने भी काफी योगदान दिया है। ऋग्वेद में चौबीस और अथर्ववेद में पाँच महिलाओं का योगदान है। यमी, अपाला, उर्वशी, इन्द्राणी और वागाम्भृणी वैदिककालीन ऋषिकाएँ भी मंत्रों की दर्शिकाएँ थी।
25. संस्कृतसाहित्य में आधुनिक समय के लेखिकाओं के योगदानों की चर्चा करें।
उत्तर:- संस्कृतसाहित्य में आधुनिक समय की लेखिकाओं में पण्डिता क्षमाराव अति प्रसिद्ध हैं। उन्होंने शंकरचरितम्, सत्याग्रहगीता, मीरालहरी, कथामुक्तावली, विचित्र-परिषदयात्रा, ग्रामज्योति इत्यादि अनेक गद्य- पद्म ग्रन्थों की रचना की। वर्तमानकाल में लेखनरत कवियित्रों में पुष्पा दीक्षित, वनमाला भवालकर, मिथिलेश कुमारी मिश्र आदि प्रतिदिन संस्कृतसाहित्य को समृद्ध कर रही है।
26. संस्कृतसाहित्य में विजयनगर राज्य के योगदानों का वर्णन करें।
उत्तर:- विजयनगर राज्य के राजाओं ने संस्कृतसाहित्य के संरक्षण के लिए जो प्रयास किए थे वे सर्वविदित है । उनके अंत:पुर में भी संस्कृत रचना में कुशल रानियाँ हुई। इनमें कम्पणराय की रानी गंगादेवी था अच्युताराय की रानी तिरुमलाम्बा प्रसिद्ध हैं। इन दोनों रानियों की रचनाओं में समस्त पदावली और ललित पद-विन्यास के कारण संस्कृत गद्य शोभित होता है।
27. ‘संस्कृत साहित्ये लेखिकाः पाठ में लेखक ने क्या विचार व्यक्त किए हैं ?
उत्तर:- 'संस्कृतसाहित्ये लेखिका पाठ में लेखक का विचार है कि प्राचीन काल से लेकर आज तक महिलाओं ने संस्कृत साहित्य में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। दक्षिण भारत की महान साहित्यकार महिलाओं ने भी संस्कृत साहित्य को समृद्ध बनाया।
28. मातृभूमि का वर्णन किस रूप में किया गया है ? पठित पाठ के आधार पर लिखें।
उत्तर:- हिमालय की गोद में बसा हुआ भारत निश्चय ही स्वर्ग सा सुन्दर है। कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक एकता एवं समदर्शिता का भाव दृष्टिगत होता है। यह मातृभूमि निर्मल एवं ममतामयी है । यहाँ लोग धर्म, जाति के भेदों को भूलकर एक भाव से रहते हैं। विविध पर्व-त्योहार यहाँ की एकता को एकसूत्र में पिरोये रहते हैं। इसकी भूमि विशाल एवं रम्यरूपा है। यह सागरों, पर्वतों एवं झरनों को धारण करते हुए नदियों के द्वारा सदा सेवित है।
29. भारतमहिमा का वर्णन पठित पाठ के आधार पर करें। अथवा, 'भारत पहिमा पाठ का सारांश प्रस्तुत करें।
उत्तर:- भारत का प्राकृतिक सौन्दर्य स्वर्ग सा है। यह देवताओं, ऋषियों एवं महापुरुषों की अवतरण भूमि है। इसकी महिमा का वर्णन विष्णुपुराण एवं भागवतपुराण में देखने को मिलता है। भारतभूमि पर अवतरित होनेवाला मनुष्य निश्चय ही धन्य है। हमारी भारत भूमि विशाल, रम्यरूपा और कल्याणप्रद है। अत्यन्त शोभनीय और संसार का गौरव भारत हम सब के द्वारा सदैव पूजनीय है। यहाँ धर्म, जाति के भेदों को भूलकर एकता एवं सहिष्णुता का पाठ पढ़ाया जाता है। हम भारतीय सदैव कहते हैं-वसुधैव कुटुम्बकम् अर्थात् सम्पूर्ण पृथ्वी ही हमारा परिवार है।
30. भारत भूमि कैसी है तथा यहाँ किस प्रकार के लोग रहते हैं ?
उत्तर:- भारतवर्ष अति प्रसिद्ध देश है तथा यहाँ की भूमि सदैव पवित्र और ममतामयी है। यहाँ विभिन्न जातियों और धर्मों के लोग एकता भाव को धारण करते हुए निवास करते हैं।
31. भारतीयों की विशेषताओं का वर्णन करें।
उत्तर:- भारत में जन्म लेकर लोग धन्य होते हैं और हरि की सेवा करते हैं। उन्हें स्वर्ग और मोक्ष प्राप्त होता है। भारतीय धर्म और जाति के भेदभावों को न मानते हुए एकता के भाव से रहते हैं। सभी भारतीयों की देशभक्ति आकर्षक है और दूसरों के लिए आदर्श रूपी है।
32. भारतमहिमा पाठ का क्या उद्देश्य है ?
उत्तर:- भारतमहिमा पाठ में पौराणिक और आधुनिक पद्य संकलित हैं, इन सभी पद्यों का उद्देश्य भारत और भारतीयों की विशेषताओं का वर्णन करना है। इनमें भारत की सुंदरता एवं भव्यता और भारतीयों की देशभक्ति आदि की ओर पाठक का ध्यान आकर्षित किया गया है।
33. भारतमहिमा पाठ से हमें क्या संदेश मिलता है ? अथवा, 'भारतमहिमा' पाठ से क्या शिक्षा मिलती है ? पाँच वाक्यों में उत्तर दें।
उत्तर:- भारतमहिमा पाठ से यह संदेश मिलता है कि हमें भारतीय होने पर गर्व होना चाहिए। हम भारतीयों को हरि की सेवा करने का मौका मिला है, और मोक्ष की प्राप्ति का भी अवसर मिला है। हमें देशभक्त होना चाहिए और अन्य भारतीयों से मिल-जुलकर रहना चाहिए।
34. भारतीय संस्कार का वर्णन किस रूप में हुआ है ?
उत्तर:- भारतीय संस्कृति अनूठी है। जन्म के पूर्व संस्कार से लेकर मृत्यु के बाद अन्त्येष्टि संस्कार का अनुपम उदाहरण संसार के अन्य देशों में नहीं है। यहाँ की संस्कृति की विशेषता है कि जीवन में यहाँ समय-समय पर संस्कार मनाये जाते हैं। आज संस्कार सीमित एवं व्यंग्य रूप में प्रयोग किये जा रहे हैं । संस्कार व्यक्तित्व की रचना करता है। प्राचीन संस्कृति का ज्ञान संस्कार से ही उत्पन्न होता है । संस्कार मानव में क्रमशः परिमार्जन दोषों को दूर करने और गुणों के समावेश करने में योगदान करते हैं ।
35. 'भारतीयसंस्काराः पाठ के आधार पर ऋषियों की कल्पना का वर्णन करें।
उत्तर:- ऋषियों की कल्पना थी कि जीवन के प्रायः सभी मुख्य अवसरों पर वेदमंत्रों का पाठ, बड़े लोगों का आशीर्वाद, हवन और परिवार के सदस्यों का सम्मेलन होना चाहिए। ऐसा करने से संस्कारों का पालन होता है।
36. संस्कार कितने प्रकार के हैं और कौन-कौन ?
उत्तर:- संस्कार सोलह प्रकार के हैं। इन सोलह संस्कारों को मुख्य पाँच प्रकारों में बाँटा गया है- तीन जन्म से पूर्ववाले संस्कार, छह शैशव संस्कार, पाँच शिक्षा संबंधी संस्कार, एक विवाह के रूप में गृहस्थ संस्कार तथा एक मृत्यु के बाद अंत्येष्टि संस्कार । कुल मिलाकर सोलह संस्कार हैं।
37. शिक्षासंस्कार का वर्णन करें।
उत्तर:- शिक्षासंस्कारों में अक्षरारंभ, उपनयन, वेदारंभ, मुण्डनसंस्कार और समापवर्तन संस्कार आदि आते हैं। अक्षरारंभ में बच्चा अक्षर - लेखन और अंक लेखन आरंभ करता है। उपनयनसंस्कार में गुरु के द्वारा शिष्य को अपने घर में लाना होता है। वहाँ शिष्य शिक्षा नियमों का पालन करते हुए अध्ययन करते थे । गुरु के घर में ही शिष्य वेदारंभ किया करते थे। केशान्त (मुण्डन) संस्कार में गुरु के घर में प्रथम क्षौरकर्म, अर्थात मुण्डन होता था। समापवर्तन संस्कार का उद्देश्य शिष्य का गुरु के घर से अलग होकर गृहस्थ जीवन में प्रवेश करना होता था।
38. विवाहसंस्कार का वर्णन करें।
उत्तर:- विवाहसंस्कार से ही लोग गृहस्थ जीवन में प्रवेश करता है। विवाह को एक पवित्र संस्कार माना गया है, जिसमें अनेक प्रकार के कर्मकाण्ड होते हैं । उनमें वाग्दान, मण्डप निर्माण, वधू के घर में वर पक्ष का स्वागत, वर-वधू का परस्पर निरीक्षण, कन्यादान, अग्निस्थापन, पाणिग्रहण, लाजाहोम, सिन्दूरदान इत्यादि कई कर्मकांड शामिल हैं। सभी क्षेत्रों में समान रूप से विवाहसंस्कार का आयोजन होता है।
39. 'भारतीयसंस्काराः पाठ में लेखक का क्या संदेश है ?
उत्तर:- भारतीयसंस्काराः पाठ में लेखक का संदेश है कि भारतीयों के व्यक्तित्व का निर्माण संस्कारों से होता है। जीवन में सही समय पर संस्कारों का अनुष्ठान होना चाहिए । विदेशी भी भारतीय संस्कारों के प्रति उन्मुख और जिज्ञासु है ।
40. 'भारतीयसंस्काराः पाठ में लेखक क्या शिक्षा देना चाहता है ?
उत्तर:- लेखक इस पाठ से हमें यह शिक्षा देना चाहता है कि संस्कारों के पालन से ही व्यक्तित्व का निर्माण होता है। संस्कारों का उचित समय पर पालन करने से गुण बढ़ते हैं और दोषों का नाश होता है। भारतीय संस्कृति की विशेषता संस्कारों के कारण ही है । लेखक हमें सुसंस्कारों का पालन करने का संदेश देते हैं।
42. पण्डित किसे कहा गया है ? पठित पाठ के आधार पर स्पष्ट करें।
उत्तर:- महात्मा विदुर ने पण्डित की व्याख्या बड़े ही रोचक ढंग से की है। उनके मतानुसार पण्डित का अभिप्राय ब्राह्मण या विद्वान से नहीं है। धर्म एवं कर्म प्रवचनीय पण्डित सर्वत्र नहीं होते हैं। जिसका कार्य शीत, ऊष्ण, भय, प्रेम समृद्धि अथवा असमृद्धि में बाधा नहीं पहुँचाता है वही पण्डित है। सभी जीवों के तत्व को जानने वाला, अपने कर्म को योग की तरह जानने वाला ही पण्डित है।
42. नीच मनुष्य कौन है ? पठित पाठ के आधार पर स्पष्ट करें।
उत्तर:- नीच मनुष्य का अभिप्राय निम्न जाति में जन्म लेने वाले से नहीं है। सत् और असत् कर्मों में संलग्न रहने वाला मनुष्य भी नीच की श्रेणी में नहीं आता है। जो बिना बुलाये हुए किसी सभा में प्रवेश करता है, बिना पूछे हुए बहुत बोलता है. नहीं विश्वास करने पर भी बहुत विश्वास करता है। ऐसा पुरुष ही नीच श्रेणी में आता है।
43. नीतिश्लोकाः पाठ का पाँच वाक्यों में परिचय दें।
उत्तर:- इस पाठ में व्यासरचित महाभारत के उद्योग पर्व के अन्तर्गत आठ अध्यायों की प्रसिद्ध विदुरनीति से संकलित दस श्लोक हैं । महाभारत युद्ध के आरंभ में धृतराष्ट्र ने अपनी चित्तशान्ति के लिए विदुर से परामर्श किया था । विदुर ने उन्हें स्वार्थपरक नीति त्याग कर राजनीति के शाश्वत पारमार्थिक उपदेश दिये थे । इन्हें "विदुरनीति” कहते हैं। इन श्लोकों में विदुर के अमूल्य उपदेश भरे हुए हैं।
44. उन्नति की इच्छा रखनेवाले मनुष्यों को क्या करना चाहिए ?
उत्तर:- उन्नति की इच्छा रखनेवाले मनुष्यों को निद्रा (अधिक सोना) तथा तंद्रा (ऊँघना) को त्याग देना चाहिए | इतना ही नहीं भय, क्रोध, आलस्य और काम को टालने की आदत को भी सदा के लिए छोड़ देना चाहिए । नीतिश्लोकाः पाठ में महात्मा विदुर का कथन है कि ये छः दोष अवश्य ही छोड़ देना चाहिए ।
45. 'नीतिश्लोकाः पाठ से हमें क्या शिक्षा मिलती है ?
उत्तर:- विदुर नीति ग्रंथ से नीतिश्लोकाः पाठ उद्धृत है। इसमें महात्मा विदुर मन को शांत करने के लिए कुछ श्लोक लिखे हैं । इन श्लोकों से हमें यह शिक्षा मिलती है कि सांसारिक सुख क्षणिक और आध्यात्मिक सुख स्थायी है। सुंदर आचरण से हम बुरे आचरण को समाप्त कर सकते हैं। काम, क्रोध, लोभ और मोह को नष्ट करके नरक गमन से बच सकते हैं।
46. 'नीति श्लोकाः पाठ 'मूढचेतानराधम किसे कहा गया है ?
उत्तर:- जिन व्यक्तियों का स्वाभिमान मरा हुआ होता है, जो बिना बुलाए किसी के यहाँ जाता है, बिना कुछ पूछे बक-बक करता है। जो अविश्वसनीय पर विश्वास करता है ऐसा मूर्ख हृदयवाला मनुष्यों में नीच होता है। अर्थात् ऐसी ही व्यक्ति को 'नीतिश्लोकाः पाठ में मूढचेतानराधम कहा गया है।
47. 'नीति श्लोका' पाठ के आधार पर मनुष्य के षड् दोषों का हिन्दी में वर्णन करें।
उत्तर:- मनुष्य के छः प्रकार के दोष निद्रा, तन्द्रा, भय, क्रोध, आलस्य तथा दीर्घसूत्रता ऐश्वर्य प्राप्ति में बाधक बनने वाले होते हैं। नीतिकार का कहना है कि जिसमें ये दोष पाए जाते हैं वह चाहते हुए भी सुख की प्राप्ति नहीं कर सकता है, क्योंकि अधिक निद्रा के कारण वह कोई काम समय पर नहीं कर पाता है तो तन्द्रावश हर काम में पीछे रह जाता है। भय अर्थात डर के कारण काम आरंभ नहीं करता है तो क्रोध के कारण बना काम भी बिगड़ता है। इसी प्रकार आलस्य के कारण समय का दुरुपयोग होता है तो दीर्घसूत्रता अथवा काम को कल पर छोड़ने के कारण काम का बोझ बढ़ जाता है। फलतः वह जीवन के हर क्षेत्र में पीछे रह जाता है।
48. कर्मवीर कथा से हमें क्या शिक्षा मिलती है ?
उत्तर:- कर्मवीर शब्द से ही आभास होने लगता है कि निश्चय ही कोई ऐसा कर्मवीर है जो अपनी निष्ठा, उद्यम, सेवाभाव आदि के द्वारा उत्तम पद को प्राप्त किये हुए है। प्रस्तुत पाठ में एक ऐसे ही कर्मवीर की चर्चा है जो अभावग्रस्त जीवन-यापन करते हुए भी स्नेहिल शिक्षक का सान्निध्य पाकर विविध बाधाओं से लड़ता हुआ एक दिन शीर्ष पद को प्राप्त कर लेता है। मनुष्य की जीवटता, निष्ठा, सच्चरित्रता आदि गुण उसे निश्चय ही सफलता की सीढ़ियों पर अग्रसारित करते हैं। अतः हमें भी जीवटता, 'निष्ठा आदि को आधार बनाकर सत्कर्म पर बने रहना चाहिए।
49. रामप्रवेश राम का चरित्र चित्रण करें।
उत्तर:- रामप्रवेश राम 'कर्मवीरकथा' का प्रमुख पात्र है। इनका जन्म बिहार राज्य अन्तर्गत भीखनटोला में हुआ है । कभी खेलों में संलग्न रहनेवाले रामप्रवेश राम अध्यापक का सान्निध्य पाकर, विद्याध्ययन में जुट गये। गुरु का आशीर्वाद और मेहनत उनकी सफलता की सीढ़ी बनते गये। धनाभाव के बीच भी उन्होंने अपना अध्ययन जारी रखा। विद्यालय स्तर से लेकर प्रतियोगिता परीक्षाओं में प्रथम स्थान प्राप्त करते गये | केन्द्रीय लोक सेवा आयोग परीक्षा में उत्तीर्ण होकर उन्होंने समाज के समक्ष अपना आदर्श प्रस्तुत कर दिया । उनकी प्रशासन क्षमता और संकट काल में निर्णायक सामर्थ्य सभी को आकर्षित करते हैं।
50. भीखनटोला कैसा गाँव है ?
उत्तर:- भीखनटोला बिहार प्रांत के दुर्गम क्षेत्र में अवस्थित है। यहाँ के लोग प्रायः निर्धन और अशिक्षित हैं तथा कष्टमय जीवन बिताते हैं। कुछ अत्यंत निर्धन परिवार गाँव के बाहर टूटी कुटियाओं में रहते हैं। भीखनटोला से लगभग एक कोश की दूरी पर एक प्राथमिक विद्यालय है।
51. रामप्रवेशराम की प्रारंभिक शिक्षा के विषय में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर:- रामप्रवेशराम भीखनटोला गाँव का रहनेवाला एक दलित बालक था। उस बालक को एक शिक्षक अपने विद्यालय में लाकर शिक्षा देना प्रारंभ किए। बालक रामप्रवेशराम शिक्षक की शिक्षणशैली से आकष्ट हुआ और शिक्षा को जीवन का परम गति माना । विद्या अध्ययन में रात-दिन लग गया और अपने वर्ग में प्रथम स्थान प्राप्त करने लगा।
52. रामप्रवेशराम किस प्रकार केंद्रीय प्रशासनिक सेवा की परीक्षा में सफल हुआ?
उत्तरः- रामप्रवेशराम एक कर्मवीर एवं निर्धन छात्र था। वह कष्टकारक जीवन जीते हुए अध्ययनशील था । वह पुस्तकालयों में अध्ययन किया करता था । वह अपने से नीचे वर्ग के छात्रों को ट्यूशन पढ़ाकर जीवनयापन करता था । परिणामस्वरूप केंद्रीय प्रशासनिक सेवा की परीक्षा में सर्वोच्च स्थान प्राप्त करने में सफल रहा।
53. 'कर्मवीर कथा' पाठ से हमें क्या शिक्षा मिलती है ?
उत्तर:- कर्मवीर कथा पाठ से हमें शिक्षा मिलती है कि गाँव में रहनेवाले दलित एवं निर्धन छात्र भी मेहनत के बल पर सर्वोच्च शिखर पर पहुँच सकते हैं। लगन उत्साह और धैर्य से मनुष्य किसी भी कठिनाई पर विजय प्राप्त कर सकता है।
54. आधनिक भारत को स्वामी दयानंद का क्या योगदान है ?
उत्तर:- आधुनिक भारत के समाज और शिक्षा के महान उद्धारक स्वामी दयानंद हैं। उन्होंने भारतीय समाज में व्याप्त रूढ़िवादिता को दूर कर एक नये समाज की स्थापना की है। जातिवाद, अस्पृश्यता, धर्मकार्यों में आडम्बर आदि अनेक विषमताएँ थीं जिनसे समाज ग्रसित था । कर्मकांडी परिवार में जन्म लेने वाले स्वामी दयानंद को शिवरात्रि पर्व की रात्रि में अपने ज्ञान का उद्बोधन हुआ । बहन के निधन के बाद इनमें वैराग्य भाव उत्पन्न हो गया । विरजानन्द का सान्निध्य पाकर वैदिक धर्मप्रचार एवं सत्य के प्रसार में अपने जीवन को अर्पित कर दिया। भारतवर्ष में इन्होंने राष्ट्रीयता को लक्ष्य बनाकर भारतवासियों के लिए पथप्रदर्शक का काम किया । दूषित प्रथा को खत्म कर शुद्ध तत्वज्ञान का प्रचार-प्रसार किया । वैदिक धर्म एवं सत्यार्थ प्रकाश नामक ग्रंथ की रचना कर भारतवासियों को एक नई शिक्षा नीति की ओर अभिप्रेत किया।
55. कौन-सी घटना ने स्वामी दयानंद की जीवन दिशा को निर्धारित कर दिया ?
उत्तर:- स्वामी दयानंद सरस्वती का जन्म एक ब्राह्मण कुल में हुआ था। पिताजी स्वयं संस्कृत के उत्कट विद्वान् थे। परिवार में कर्मकाण्ड के प्रति आस्था थी। एक दिन शिवरात्रि के शुभ अवसर पर रात्रि जागरण का महोत्सव हुआ। शिव की मूर्ति पर इन्होंने एक चूहे को चहलकदमी करते हुए देखा। इनके मन में तरह- तरह के प्रश्न उठने लगे। उसी समय इनके मन में मूर्ति पूजा के प्रति अनास्था उत्पन्न हो गई। कुछ दिनों के बाद उनकी प्रिय बहन का निधन हो गया। इन घटनाओं ने ही उनकी जीवन दिशा को बदल दिया। उनमें वैराग्य भाव उत्पन्न हो गया।
56. स्वामी दयानन्द कौन थे तथा उन्होंने किस तरह के सामाजिक कार्य किए ?
उत्तर:- स्वामी दयानन्द एक महान समाज सुधारक संत थे। मध्यकाल में भारत में छुआछूत, अशिक्षा, जातिभेद, धर्म में आडम्बर आदि अनेक कुप्रथाएँ फैली हुई थीं। विधवाओं को काफी कष्ट दिया जाता था। स्वामी दयानन्द ने इन सभी कुरीतियों को दूर करने के लिए आम लोगों के बीच जाकर इन कुरीतियों के खिलाफ जागरण पैदा किया। उन्होंने अपने सिद्धांतों का संकलन 'सत्यार्थप्रकाश' नामक ग्रंथ में किया । शिक्षा-पद्धति के दोषों को दूर करने में उनका बहुत बड़ा योगदान रहा। इन सभी कार्यों को करने के लिए उन्होंने 'आर्यसमाज' नामक संस्था की स्थापना की।
57. स्वामी दयानन्द मूर्तिपूजा के विरोधी कैसे बने ?
उत्तर:- स्वामी दयानन्द के माता-पिता भगवान शिव के उपासक थे। महाशिवरात्रि के दिन शिव-पार्वती की पूजा इनके परिवार में विशेष रूप में मनाई जाती थी। एक बार महाशिवरात्रि के दिन इन्होंने देखा कि एक चूहा भगवान शंकर की मूर्ति के ऊपर चढ़कर उनपर चढ़ाए हुए प्रसाद को खा रहा है। इससे उन्हें विश्वास हो गया कि मूर्ति में भगवान नहीं होते । इस प्रकार वे मूर्तिपूजा के विरोधी हो गए।
58. आर्यसमाज की स्थापना किसने की और कब की ? आर्य समाज के बारे में लिखें।
उत्तर:- आर्यसमाज की स्थापना स्वामी दयानन्द सरस्वती ने 1885 में मुंबई नगर में की। आर्यसमाज वैदिक धर्म और सत्य के प्रचार पर बल देता है । यह संस्था मूर्तिपूजा का विरोध करती है। आर्यसमाज में नवीन शिक्षा पद्धति को अपनाया । डी०ए०वी० नामक विद्यालयों की समूह की स्थापना की। आज इस संस्था की शाखाएँ-प्रशाखाएँ देश-विदेश के प्रायः हरेक प्रमुख नगर में अवस्थित है।
59. स्वामी दयानन्द ने समाज के उद्धार के लिए क्या किया ?
उत्तर:- स्वामी दयानन्द ने समाज के उद्धार के लिए स्त्री शिक्षा पर बल दिया और विधवा विवाह हेतु समाज को प्रोत्साहित किया। उन्होंने बाल विवाह समाप्त करवाने, मूर्तिपूजा का विरोध और छुआछूत समाप्त कराने का प्रयत्न किया।
60. वैदिक धर्म के प्रचार के लिए स्वामी दयानन्द ने क्या किया ?
उत्तर:- वैदिक धर्म और सत्य के प्रचार के लिए स्वामी दयानन्द ने अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया । वेदों के प्रति सभी अनुयायियों का ध्यान आकर्षित करने के लिए उन्होंने वेदों के उपदेशों को संस्कृत एवं हिंदी में लिखा ।
61. मंदाकिनी की शोभा का वर्णन किस रूप में किया गया है ?
उत्तर:- वनवास काल में जब राम सीता और लक्ष्मण के साथ चित्रकूट जाते हैं तब मंदाकिनी की प्राकृतिक सुषमा से प्रभावित हो जाते हैं। वे सीता से कहते हैं कि यह नदी प्राकृतिक उपादानों से संवलित चित्त को आकर्षित कर रही है। रंग-बिरंगी छटा वाली यह हंसों द्वारा सुशोभित है। ऋषिगण इसके निर्मल जल में स्नान कर रहे हैं। ऊँची कछारों वाली यह नदी अत्यन्त रमणीय लगती है।
62. मंदाकिनी का वर्णन करने में 'राम' सीता को किन-किन रूपों में संबोधित करते हैं ?
उत्तर:- परमपावनी गंगा' अनायास मन को आकर्षित करनेवाली है। निर्मल जल, रंग-बिरंगी छटा, ऊँची कछारें आदि राम को आह्लादित करती रहती हैं। इसकी शोभा से वशीभूत राम सीता को इसकी सुन्दरता का निरीक्षण करने के लिए अपने भाव प्रकट करते हैं; हे सीते। प्रिये । विशालाक्षि ! शोभने ! आदि संबोधन से संबोधित करते हैं।
63. मन्दाकिनी-वर्णनम् पाठ का पाँच वाक्यों में परिचय दें।
उत्तर:- वाल्मीकीय रामायण के अयोध्याकाण्ड की सर्ग संख्या-95 से संकलित इस पाठ में चित्रकूट के निकट बहने वाली मन्दाकिनी नामक छोटी नदी का वर्णन है। इस पाठ में आदिकवि वाल्मीकि को काव्यशैली तथा वर्णनक्षमता अभिव्यक्त हुई है। श्री राम सीता को मन्दाकिनी का वर्णन सुनाते हैं ।
64. मंदाकिनीवर्णनम् से हमें क्या संदेश मिलता है ?
उत्तर:- मंदाकिनीवर्णनम् महर्षि वाल्मिकी- कृत रामायण के अयोध्याकांड के 95 सर्ग से संकलित है। इससे हमें यह संदेश मिलता है कि प्रकृति हमारे चित्त को हर लेती है तथा इससे पर्यावरण सुरक्षित रहता है। प्रकृति की शुद्धता के प्रति हमें हमेशा ध्यान देना चाहिए।
65. मनुष्य को प्रकृति से क्यों लगाव रखना चाहिए ?
उत्तर:- प्रकृति ही मनुष्य को पालती है, अतएव प्रकृति को शुद्ध होना चाहिए । यहाँ महर्षि वाल्मीकि प्रकृति के यथार्थ रूप का वर्णन करके मनुष्य को लगाव रखने का संदेश देते हैं। इससे हमारा जीवन सुखमय एवं आनंदमय होगा ।
66. व्याघ्रपथिक कथा से क्या शिक्षा मिलती है ? अथवा, व्याघ्नपथिक कथा में मूल संदेश क्या है ?
उत्तर:- नारायण पण्डित विरचित हितोपदेश के नीतिकथाग्रन्थ के मित्रलाभखण्ड से ली गयी कथा ‘व्याघ्रपण्डित' है । इस कथा में एक पथिक वृद्ध व्याघ्र द्वारा दिये गये प्रलोभन में पड़ जाता है। वृद्ध व्याघ्र हाथ में सुवर्णकंकण लेकर पथिक को अपनी ओर आकृष्ट करता है। पथिक निर्धन होने के बावजूद व्याघ्र पर विश्वास नहीं करता । तब व्याघ्र द्वारा सटीक तर्क दिये जाने पर पथिक संतुष्ट होकर कंकण ले लेना उचित समझता है। व्याघ्र द्वारा स्नान कर ग्रहण करने की बात स्वीकार कर पथिक महाकीचड़ में गिर जाता है और व्याघ्र द्वारा मारा जाता है। इस कथा में संदेश और शिक्षा यही है कि नरमक्षी प्राणियों पर कभी विश्वास नहीं करना चाहिए और अपनी किसी भी समस्या का समाधान ऐसे व्यक्ति द्वारा नजर आये तब भी उसके लोभ में नहीं फँसना चाहिए।
67. वृद्ध बाघ ने पथिकों को फंसाने के लिए किस तरह का भेष रचाया ?
उत्तर:- वृद्ध बाघ ने पथिकों को फंसाने के लिए एक धार्मिक का भेष रचाया । उसने स्नान कर और हाथ में 'कुश कर तालाब के किनारे पथिकों से बात कर उन्हें दानस्वरूप सोने का कंगन पाने का लालच दिया।
68. पथिक वृद्ध बाघ की बातों में क्यों आ गया ?
उत्तर:- पथिक ने सोने के कंगन की बात सुनकर सोचा कि ऐसा भाग्य से ही मिल सकता है, किन्तु जिस कार्य में खतरा हो उसे नहीं करना चाहिए। फिर लोभवश उसने सोचा कि धन कमाने के कार्य में खतरा तो होता ही है। इस तरह वह लोभ से वशीभूत होकर बाघ की बातों में आ गया।
69. वृद्ध बाघ पथिक को पकड़ने में कैसे सफल हुआ था ? अथवा, बाघ ने पथिक को पकड़ने के लिए क्या चाल चली ?
उत्तर:- वृद्ध बाघ ने एक धार्मिक का भेष रचकर तालाब के किनारे पथिकों को सोने का कंगन लेने के लिए कहा। उस तालाब में अधिकाधिक कीचड़ था। एक लोभी पथिक उसकी बातों में आ गया। बाघ ने लोभी पथिक को स्वर्ण कंगन लेने से पहले तालाब में स्नान करने के लिए कहा। उस बाघ के बात पर विश्वास कर जब पथिक तालाब में घूसा, वह अधिकाधिक कीचड़ में धंस गया और बाघ ने उसे पकड़ लिया।
70. पथिक को फंसाने के लिए वृद्ध बाघ ने क्या तर्क दिया ?
उत्तर:- पथिक लोभी तथा चालाक था। उसे फंसाने के लिए वृद्ध बाघ ने कहा कि मैं युवावस्था में अ हिंसक था। अनेक गायों और मनुष्यों का वध किया करता था। परिणामस्वरूप मेरे पत्र और पत्नी मर गए और मैं अब वंशहीन हैं। किसी धार्मिक व्यक्ति का उपदेश का पालन कर अब मैं स्वच्छ हृदयवाला, दानी और ग हुए ख- दंतवाला वृद्ध हूँ। इसलिए मुझपर विश्वास किया जा सकता है ।
71. धार्मिक व्यक्ति ने वृद्ध बाघ को क्या उपदेश दिया ?
उत्तर:- वद्ध बाघ अतिदराचारी था। यवावस्था में अनेक गायों और मनष्यों के वध करने के पाप के कारण वह नि:संतान और पत्नीविहीन हो गया था। तब एक धार्मिक व्यक्ति ने पापमुक्त होने के लिए बाघ को उपदेश दिया कि आप दान-पुण्य करें।
72.नारायण पंडित रचित व्याघ्रपथिककथा पाठ का मल उद्देश्य क्या है ?
उत्तर:- व्याघ्रपथिककथा का मूल उद्देश्य यह है कि हिंसक जीव अपने स्वभाव को नहीं छोड़ सकता। इस कथा के द्वारा नारायणपंडित हमें यह शिक्षा देते हैं कि दुष्टों की बातों पर लोभ में आकर विश्वास नहीं करना चाहिए । सोच-समझकर ही काम करना चाहिए। इस कथा का उद्देश्य मनोरंजन के साथ व्यावहारिक ज्ञान देना है।
73. कर्ण की दानवीरता कैसे प्रकट होती है ? उत्तर दें।
उत्तर:- कर्ण ब्राह्मवेशधारी इन्द्र को विनम्रतापूर्वक सर्वप्रथम भौतिक वस्तुएँ प्रदान करना चाहते यथा - गौ, हाथी, पृथ्वी । यहाँ तक कि अपने अग्निष्टों फल भी देना चाहते हैं और अन्ततः अपना सिर तक अर्पित करने के लिए उद्यत हो उठते हैं। परन्तु ब्राह्मणवेशधारी शक्र (इन्द्र) तो दृढ़ संकल्पित कुछ अन्य वस्तु के प्रति थे । कर्ण उनकी मनोदशा को समझकर अपनी रक्षार्थ शरीर से जुड़े कवच - कुण्डल को दान दे देते हैं। इतना बड़ा दान कर्ण को सम्पूर्ण ब्राहमण्ड का दानवीर सिद्ध करता है।
74. कर्ण की दानवीरता का वर्णन अपने शब्दों में करें।
उत्तर:- कर्ण सूर्यपुत्र है। जन्म से ही उसे कवच और कुण्डल प्राप्त है। जबतक कर्ण के शरीर में कवच कुण्डल है तब तक वह अजेय है । उसे कोई मार नहीं सकता है। कर्ण महाभारत युद्ध में कौरवों के पक्ष में युद्ध करता है। अर्जुन इन्द्रपुत्र हैं । इन्द्र अपने पुत्र हेतु छलपूर्वक कर्ण से कवच और कुण्डल माँगने जाते हैं। दानवीर कर्ण सूर्योपासना के समय याचक को निराश नहीं लौटाता है। इन्द्र इसका लाभ उठाकर दान में कवच, कुण्डल माँग लेते हैं। सब कुछ जानते हुए भी इन्द्र को कर्ण अपना कवच कुंडल दे देता है।
75. कर्ण कौन था ? उसकी क्या विशेषता थी ?
उत्तर:- कर्ण कुंती का पुत्र था, परंतु महाभारत के युद्ध में उसने कौरव पक्ष से लड़ाई की। उसके शरीर पर जन्मजात कवच और कुंडल था । जब तक कवच और कुंडल उसके शरीर से अलग नहीं होता, तब तक कर्ण की मृत्यु असंभव थी ।
76. इन्द्र ने कर्ण से कौन-सी बड़ी भिक्षा माँगी, और क्यों ?
उत्तर:- इन्द्र ने कर्ण से बड़ी भिक्षा के रूप में कवच और कुंडल माँगी । अर्जुन की सहायता करने के लिए इन्द्र ने कर्ण से छलपूर्वक कवच और कुंडल माँगे, क्योंकि जब तक कवच और कुंडल उसके शरीर पर विद्यमान रहता, तब तक कर्ण की मृत्यु नहीं हो सकती थी। चूँकि कर्ण कौरव पक्ष से युद्ध कर रहे थे, अतः पांडवों को युद्ध में जिताने के लिए कर्ण से इन्द्र ने कवच और कुंडल की याचना की।
77. कर्ण की दानवीरता क्यों प्रसिद्ध है ?
उत्तर:- कर्ण महान दानवीर के रूप में प्रसिद्ध है, क्योंकि उसने अभेद्य कवच और कुंडल भी इन्द्र को दे दिया । कर्ण जानता था कि जब तक उसके पास कवच और कुंडल विद्यमान है, तब तक उसका कोई कुछ भी नहीं बिगाड़ सकता । कर्ण को यह आभास हो गया था कि कृष्ण ने इन्द्र के माध्यम से कवच और कुंडल माँगा है। कृष्ण चाहते थे कि पाण्डव विजयी हों । यह जानते हुए भी कर्ण ने कवच और कुंडल का दान किया । इसलिए उसकी दानवीरता विश्व-प्रसिद्ध है।
78. कर्ण के प्रणाम करने पर इन्द्र ने उसे दीर्घाय होने का आशीर्वाद क्यों नहीं दिया ?
उत्तर:- इन्द्र जानते थे कि कर्ण को युद्ध में मरना अवश्यंभावी है । कर्ण को दीर्घायु होने का आशीर्वाद दे देते, तो कर्ण की मृत्यु युद्ध में संभव नहीं थी। वह दीर्घायु हो जाता । कुछ नहीं बोलने पर कर्ण उन्हें मूर्ख समझता । इसलिए इन्द्र ने उसे दीर्घायु होने का आशीर्वाद न देकर सूर्य, चंद्रमा, हिमालय और समुद्र की तरह यशस्वी होने का आशीर्वाद दिया।
79. ‘कर्णस्य दानवीरता' पाठ कहाँ से उद्धत है ? इसके विषय में लिखें।
उत्तर:- ‘कर्णस्य दानवीरता पाठ भास-रचित कर्णभार नामक रूपक से उद्धृत है। इस रूपक का कथानक महाभारत से लिया गया है । महाभारत युद्ध में कुंतीपुत्र कर्ण कौरव पक्ष से युद्ध करता है। कर्ण के शरीर में स्थित जन्मजात कवच और कुंडल उसकी रक्षा करते हैं। इसलिए इन्द्र छलपूर्वक कर्ण से कवच और कुंडल माँगकर पांडवों की सहायता करते हैं
80. 'कर्णस्य दानवीरता पाठ के आधार पर दान की महिमा का वर्णन करें।
उत्तर:- कर्ण जब कवच और कुंडल इन्द्र को देने लगते हैं तब शल्य उन्हें रोकते हैं । इसपर कर्ण दान की महिमा बतलाते हुए कहते हैं कि समय के परिवर्तन से शिक्षा नष्ट हो जाता है। बड़े-बड़े वृक्ष उखड़ जाते हैं, जलाशय सूख जाते हैं, परंतु दिया गया दान सदैव स्थिर रहते हैं, अर्थात दान कदापि नष्ट नहीं होता है।
81. ‘कर्णस्य दानवीरता पाठ से हमें क्या शिक्षा मिलती है ?
उत्तर:- ‘कर्णस्य दानवीरता पाठ में कर्ण ने इन्द्र को जन्मजात कवच और कुंडल दान किया। इस पाठ से हमें यह शिक्षा मिलती है कि दान ही मनुष्य का सर्वश्रेष्ठ गुण है, क्योंकि केवल दान ही स्थिर रहता है। शिक्षा समय-परिवर्तन के साथ समाप्त हो जाती है। वृक्ष भी समय के साथ नष्ट हो जाता है। इतना ही नहीं. जलाशय भी सूखकर समाप्त हो जाता है । इसलिए शरीर का मोह किए बिना दान अवश्य करना चाहिए।
82. दानवीर कर्ण ने इन्द्र को दान में क्या दिया ?
उत्तर:- दानवीर कर्ण ने इन्द्र को अपना कवच और कुण्डल दान में दिया । कर्ण को ज्ञात था कि यह कवच और कुण्डल उसका प्राण-रक्षक है लेकिन दानी स्वभाव होने के कारण उसने इन्द्ररूपी याचक को खाली लौटने नहीं दिया ।
83. ‘विश्वशान्तिः’ पाठ का मुख्य उद्देश्य क्या है ?
उत्तर:- विश्वशान्तिः शब्द का शाब्दिक अर्थ विश्व की शान्ति है। आज सर्वत्र ईर्ष्या, द्वेष, असहिष्णुता, अविश्वास, असंतोष आदि जैसे दुर्गुण विद्यमान हैं। ये दुर्गुण जहाँ विद्यमान हो वहाँ की शान्ति की कल्पना कैसे की जा सकती है। शान्ति भारतीय दर्शन का मूल तत्व है। यह शान्ति धर्ममूलक है। धर्मों रक्षित
रक्षित-: ऐसा प्राचीन संदेश विश्व का अस्तित्व और रक्षा के लिए ही प्रेरित है। इस पाठ का मुख्य उद्देश्य, व्यक्ति, समाज और राष्ट्रों को आपसी द्वेष, असंतोष आदि से दूर कर शान्ति, सहिष्णुता आदि का पाठ पढ़ाना है।
84. अशान्ति का प्रमुख कारण कौन-कौन है ? तथा इसका निदान क्या है ?
उत्तर:- अशान्ति का प्रमुख कारण द्वेष और असहिष्णुता है। आज हर देश दुसरे देश की उन्नति को देखकर ईर्ष्या की अग्नि से जल रहा है। उसकी उन्नति को नष्ट करने के लिए छल-प्रपंच आदि का सहारा ले रहा है। आयुधों की होड़ में आज मानवता विनष्ट हो रही है। निर्वैर से शान्ति की कल्पना की जा सकती है। अतः परोपकार, सहिष्णुता आदि को धारण कर ही अशान्ति को दूर किया जा सकता है।
85. वर्तमान में विश्व की स्थिति का वर्णन करें।
उत्तर:- वर्तमान में प्रायः विश्व के सभी देशों में अशांति और कलह छाए हुए हैं। कुछ देशों में आंतरिक समस्याएँ हैं तो कुछ देशों में परस्पर शीतयुद्ध चल रहे हैं। संपूर्ण संसार में अशांति के कारण मानवता विनाश हो रहा है । विध्वंसकारी अस्त्रों द्वारा मानवता के विनाश का भय सर्वत्र व्याप्त है।
86. अशांति के मूल कारण क्या हैं ?
उत्तर:- वास्तव में अशांति के दो मूल कारण हैं-द्वेष और असहिष्णुता । एक देश दूसरे देश की उन्नति देख जलते हैं, और इससे असहिष्णुता पैदा होती है। ये दोनों दोष आपसी वैर और अशांति के मूल कारण हैं।
87. संसार में अशांति कैसे नष्ट हो सकती है ?
उत्तर:- अशांति के मूल कारण हैं-द्वेष और असहिष्णुता । स्वार्थ से यह अशांति बढ़ती है। इस अशांति को वैर से नहीं रोका जा सकता । करुणा और मित्रता से ही वैर नष्ट कर संसार में शांति लाई जा सकती है।
88. विश्व शांति के लिए हमें क्या करना चाहिए ?
उत्तर:- केवल उपदेश से विश्व शांति नहीं होगी। हमें उपदेशों के अनुसार आचरण करना होगा । हमलोग जानते हैं कि क्रिया के बिना, अर्थात व्यवहार के बिना ज्ञान भार - स्वरूप है, वैर कभी भी वैर से शांत नहीं होता। हमें दया, परोपकार, सहिष्णुता और मित्रता का भाव दूसरों के प्रति रखनी होगी, तभी विश्वशांति हो सकती है।
89. विश्व में शांति कैसे स्थापित हो सकती है ?
उत्तर:- विश्व में शांति का आधार एकमात्र परोपकार है। परोपकार की भावना मानवीय गुण है । संकटकाल में सहयोग की भावना रखना ही लक्ष्य हो तभी हम सहिष्णुता और परोपकार से शांति स्थापित कर सकते हैं।
90. ‘विश्वशांति’ पाठ के आधार पर भारतीय दर्शन का मूल तत्त्व बतलाएँ ।
उत्तर:- भारतीय दर्शन का मूल तत्त्व शांति है, क्योंकि धर्म का आधार भी शांति ही है। इसी भाव से विश्व की रक्षा तथा कल्याण संभव है इसलिए हमें जन जागरण द्वारा सहिष्णुता, परोपकार के महत्त्व पर प्रकाश डालना चाहिए।
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