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Bihar Board 12th Philosophy Exam 2024 : VVI Important दर्शनशास्त्र Top 20 सब्जेक्टिव प्रश्‍न (Subjective Question) उत्तर के साथ; रटलो 1 फरवरी के लिए

Bihar Board 12th Philosophy Exam 2024 : VVI Important दर्शनशास्त्र Top 20 सब्जेक्टिव प्रश्‍न (Subjective Question) उत्तर के साथ; रटलो 1 फरवरी के लिए

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बिहार विद्यालय परीक्षा समिति (BSEB) द्वारा आयोजित बिहार बोर्ड 12वीं की दर्शनशास्त्र परीक्षा 1 फरवरी, 2024 को निर्धारित है। तो यह आर्टिकल आपके लिए काफी ज्यादा महत्वपूर्ण साबित होने वाला है क्योंकि इस आर्टिकल में आपको बोर्ड परीक्षा में जो कल बोर्ड परीक्षा में आने जा रही है प्रश्न वह प्रश्न आज आपको मिलने जा रही है तो उसे प्रश्न पत्र को अवश्य अच्छा सा अच्छा मार्क्स लाएं।

इस लेख में, हम आपको बिहार बोर्ड 12वीं दर्शनशास्त्र परीक्षा के लिए सबसे महत्वपूर्ण Top 20 सब्जेक्टिव प्रश्न (Class 12th Philosophy Subjective Question) प्रदान कर रहे है जो आपके यहां पर हूबहू क्वेश्चन मिलेगी तो आप सभी लोग इस आर्टिकल को शुरू से अंत तक अवश्य पढ़े हैं. छात्रों को इन प्रश्नों को अच्छी तरह से याद रखना चाहिए, जिससे आपको तैयारी करने में आसानी होगी।

Bihar Board 12th Philosophy Important Questions Short Answer Type

प्रश्न 1. क्या राम संदेहवादी है ?

उत्तर: ह्यूम के दर्शन का अंत संदेहवाद में होता है, क्योंकि संदेहवाद अनुभववाद की तार्किक परिणाम है। ह्यूम एक संगत अनुभववादी होने के कारण इन्होंने उन सभी चीजों पर संदेह किया है जो अनुभव के विषय नहीं हैं। यही कारण है कि इन्होंने आत्मा, ईश्वर, कारणता आदि प्रत्ययों पर संदेह किया।

प्रश्न 2. सत्व गुण क्या है ?

उत्तर: सांख्य दर्शन प्रकृति को त्रिगुणमयी कहा है वह सत्त्व, रजस एवं तमस्। सत्व गुण ज्ञान का प्रतीक है। यह स्वयं प्रकाशपूर्ण है तथा अन्य वस्तुओं को भी प्रकाशित करता है। सत्व के कारण मन तथा बुद्धि विषयों को ग्रहण करते हैं। इसका रंग श्वेत है। सभी प्रकार की सुखात्मक – अनुभूति, जैसे-उल्लास, हर्ष, संतोष, तृप्ति आदि सत्व के कार्य हैं।

प्रश्न 3. स्वार्थानुमान एवं परार्थानुमान को स्पष्ट करें।

उत्तर: नैययिकों ने प्रयोजन की दृष्टि से अनुमान को दो वर्गों में विभाजित किये हैं। स्वार्थानुमान तथा परार्थानुमान। जब व्यक्ति स्वयं निजी ज्ञान की प्राप्ति के लिए अनुमान करता है तो उसे स्वार्थानुमान कहा जाता है इसमें तीन ही वाक्यों का प्रयोग किया जाता है लेकिन जब व्यक्ति दूसरों की शंका को दूर करने के लिए अनुमान का सहारा लेते हैं तो उस अनुमान को परार्थानुमान कहा जाता है। परार्थानुमान के लिए पाँच वाक्यों की आवश्यकता होती है। परार्थानुमान का आधार स्वार्थानुमान का होता है।

प्रश्न 4. अनुमान की परिभाषा दें।

उत्तर: अनुमान न्याय दर्शन का दूसरा प्रमाण है। अनुमान ‘अनु’ तथा मान के संयोग से बना है। अनु का अर्थ पश्चात् तथा मान का अर्थ ज्ञान से होता है अर्थात् प्रत्यक्ष के आधार पर अप्रत्यक्ष के ज्ञान को अनुमान कहते हैं। अनुमान को प्रत्यक्षमूलक ज्ञान कहा गया है। प्रत्यक्ष ज्ञान संदेहरहित तथा निश्चित होता है। परंतु अनुमानजन्य ज्ञान संशयपूर्ण एवं अनिश्चित होता है। अनुमानजन्य ज्ञान को परोक्ष ज्ञान कहा जाता है। अनुमान का आधार व्यक्ति होता है। अनुमान के तीन अवयव हैं-पक्ष साध्य तथा हेतु।

प्रश्न 5. व्यावसायिक नीतिशास्त्र की परिभाषा दें। अथवा, व्यावसायिक नीतिशास्त्र क्या है ?

उत्तर: नैतिकता का सम्बन्ध हमारे व्यवहार, रीति-रिवाज या प्रचलन से है। व्यावसायिक नैतिकता का शाब्दिक अर्थ है-प्रत्येक व्यवसाय की अपनी एक नैतिकता है। व्यावसायिक नैतिकता का अर्थ किसी भी व्यवसाय के उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए अपने आचरण के औचित्य तथा अनौचित्य का मूल्यांकन है। व्यवसाय का संबंध कुछ ऐसे सीमित व्यक्तियों के उस समूह से होता है जिन्हें अपने व्यवसाय में विशेष योग्यता प्राप्त रहता है और समाज में वे अपने कार्यों को आम-लोगों की तुलना में ज्यादा अच्छी तरह करते हैं। यद्यपि व्यवसाय जीवन-यापन का एक साधन है।

प्रश्न 6. भारतीय दर्शन में पुरुषार्थ कितने हैं ?

उत्तर: दो शब्दों ‘पुरुष’ तथा ‘अर्थ के संयोग से पुरुषार्थ शब्द बना है। पुरुष विवेकशील प्राणी का सूचक है तथा अर्थ लक्ष्य का अर्थात् पुरुष के लक्ष्य को ही पुरुषार्थ कहते हैं। मनुष्य के चार पुरुषार्थ काम, अर्थ, धर्म तथा मोक्ष हैं, जिसे हिन्दू नीतिशास्त्र में चतु:वर्ग भी कहा गया है।

प्रश्न 7. प्रत्यक्ष की परिभाषा दें। अथवा, न्याय दर्शन के अनुसार प्रत्यक्ष का वर्णन करें।

उत्तर: न्याय दर्शन में प्रत्यक्ष को एक स्वतंत्र प्रमाण के रूप में स्वीकार किया गया है। प्रत्यक्ष की परिभाषा देते हुए कहा गया है कि “इन्द्रियार्थस-निष्कर्ष जन्य ज्ञानं प्रत्यक्षम्” अर्थात् जो ज्ञान इन्द्रिय और विषय के सन्निकर्ष से उत्पन्न हो उसे प्रत्यक्ष ज्ञान कहते हैं। न्याय के अनुसार प्रत्यक्ष के द्वारा प्राप्त ज्ञान निश्चित स्पष्ट तथा संदेशरहित होता है।

प्रश्न 8. अनुप्रयुक्त नीतिशास्त्र क्या है ?

उत्तर: अनुप्रयुक्त अथवा जैव नीतिशास्त्र को सही ढंग से परिभाषित करना थोड़ा कठिन है, क्योंकि अभी यह एक नयी विधा है। जैव नीतिशास्त्र के लिए अंग्रेजी में Bio ethics शब्द का प्रयोग होता है। Bio ग्रीक भाषा का शब्द है जिसका अर्थ Life अथवा ‘जीवन’ है और ‘Ethics’ का अर्थ आचारशास्त्र है। इस दृष्टि से यह जीवन का आधार है। अतः हम कह सकते हैं कि “स्वास्थ्य की देख-रेख और जीवन-विज्ञान के क्षेत्र में मानव आचरण का एक व्यवस्थित अध्ययन अनुप्रयुक्त नीतिशास्त्र कहलाता है।”

प्रश्न 9. पुरुषार्थ के रूप में मोक्ष की व्याख्या करें।

उत्तर: पुरुषार्थ के रूप में मोक्ष-परम पुरुषार्थ है चारों में तीन साधन मात्र है तथा मोक्ष : साध्य है। मोक्ष को भारतीय दर्शन में परम लक्ष्य माना गया है। जन्म मरण के चक्र में मुक्ति का नाम मोक्ष है। इसकी प्राप्ति विवेक ज्ञान में माप है। इस प्रकार भारतीय दर्शन में पुरुषार्थ को स्वीकार किया गया है।

प्रश्न 10. ऋत की व्याख्या करें। – अथवा, ऋत से आप क्या समझते हैं ?

उत्तर: वैदिक संस्कृति के नैतिक कर्तव्य की धारणा को ऋत कहा जाता है। ऋत की संख्या तीन हैं–देव ऋत से मुक्ति शास्त्र के अनुसार यज्ञ करने से दैव ऋत से मुक्ति मिलती है। ब्रह्मचर्य का पालन, विद्या अध्ययन एवं ऋषि की सेवा करने से ऋषि ऋत से मुक्ति मिलती है और पुत्र की प्राप्ति से पितृ ऋत से मुक्ति मिलती है। शास्त्रार्थ पुरुषार्थ प्राप्ति हेतु इन तीनों प्रकार का ऋत से मुक्ति अनिवार्य है।

प्रश्न 11. नीतिशास्त्र की परिभाषा दें।

उत्तर: साधारण शब्दों में हम कह सकते हैं कि नीतिशास्त्र चरित्र का अध्ययन करने वाला विषय माना जाता है। भिन्न-भिन्न दार्शनिकों के द्वारा नौतिशास्त्रों को परिभाषा की कड़ी से बाँधने का प्रयास भी किया गया है। Mackenzie के अनुसार, “शुभ और उचित आचरण का अध्ययन माना जाता है।” विलियम लिली (William Lillie) के अनुसार, “नीतिशास्त्र एक आदर्श निर्धारक विज्ञान है। यह उन व्यक्तियों के आचरण का निर्धारण करता है जो समाज में रहते हैं।”

प्रश्न 12. बुद्धिवाद एवं अनुभववाद में क्या अंतर है ?

उत्तर: तर्कवाद या बुद्धिवाद और अनुभववाद दोनों ही ज्ञानमीमांसीय सिद्धांतों का सम्बन्ध ज्ञान प्राप्त करने के स्रोत अर्थात् साधन से है। दोनों दो भिन्न साधनों को ज्ञान के स्रोत के रूप में स्वीकार करते हैं। इतना ही नहीं दोनों एक-दूसरे के द्वारा बतलाए गये ज्ञान के स्रोत को अस्वीकार भी कर देते हैं। अनुभववाद के अनुसार ज्ञान की उत्पत्ति का साधन अनुभव है, बुद्धि नहीं। बुद्धिवाद ज्ञान की उत्पत्ति का साधन बुद्धि या तर्क को मानता है, अनुभव को नहीं।

अनुभववाद के अनुसार सभी ज्ञान अर्जित हैं, इसलिए कोई भी ज्ञान जन्मजात नहीं है। बुद्धि के अनुसार आधारभूत प्रत्यय जन्मजात होते हैं। उन्हें जन्मजात प्रत्ययों से अन्य ज्ञानों को बुद्धि तर्क के द्वारा निगमित करती है।

अनुभववाद के अनुसार बुद्धि अपने आप में निष्क्रिय है। क्योंकि पहले वह अनुभव से प्राप्त प्रत्ययों को ग्रहण करती है और उसके उपरान्त ही वह सक्रिय हो सकती है। बुद्धिवाद के अनुसार बुद्धि स्वभावतः क्रियाशील है क्योंकि अपने अन्दर से वह ज्ञान उत्पन्न करती है।

अनुभववाद के अनुसार विशेष वस्तुओं के ज्ञान के आधार पर आगमन विधि द्वारा सामान्य ज्ञान प्राप्त किया जाता है। अतः अनुभववाद तथ्यात्मक विज्ञान को आदर्श ज्ञान का स्रोत मानता है। बुद्धिवाद के अनुसार जन्मजात सहज प्रत्ययों से निगमन-विधि द्वारा सारा ज्ञान प्राप्त होता है। अतः ‘बुद्धिवाद गणित विज्ञान को आदर्श ज्ञान का स्रोत मानता है।

प्रश्न 13. अरस्तू के कार्य-कारण सिद्धांत की व्याख्या करें।

उत्तर: कार्य और कारण का सम्बन्ध जन-जीवन तथा वैज्ञानिक-तकनीकी अन्वेषणों से सम्बन्धित है। अन्य कई दार्शनिकों के साथ-साथ अरस्तू ने भी अपना कारणता सिद्धान्त दिया है लेकिन यह सिद्धान्त अत्यंत प्राचीन है तथा आज की तिथि में अधिक महत्त्वपूर्ण नहीं रह गया है। अरस्तू ने किसी कार्य के लिए चार तरह के कारणों की आवश्यकता बतायी है-1. उपादान कारण, 2. निमित्त कारण, 3. आकारिक कारण और 4. प्रयोजन कारण। उदाहरणस्वरूप घड़े के निर्माण में मिट्टी उपादान कारण है, कुम्भकार निमित्त कारण है, कुम्भकार के दिमाग में घड़े की शक्ल का होना आकारिक कारण है तो घड़े में जल का संचयन प्रयोजन कारण है, अरस्तू के बाद जे. एम. मल, ह्यूम आदि कई दार्शनिकों के कारणता संबंधी सिद्धान्त सामने आये।

प्रश्न 14. प्रत्ययवाद एवं भौतिकवाद में अंतर करें।

उत्तर: प्रत्ययवाद ज्ञान का एक सिद्धान्त है। प्रत्ययवाद के अनुसार ज्ञाता से स्वतंत्र ज्ञेय की कल्पना संभव नहीं है। यह सिद्धान्त ज्ञान को परमार्थ मानता है।
वस्तुवाद वस्तुओं का अस्तित्व ज्ञाता से स्वतंत्र मानता है। यह सिद्धान्त प्रत्ययवाद (idealism) का विरोधी माना जाता है।

प्रश्न 15. काण्ट के अनुसार ज्ञान की परिभाषा दें।

उत्तर: काण्ट के अनुसार बुद्धि के बारह आकार हैं। वे हैं-अनेकता, एकता, सम्पूर्णता, भाव, अभाव, सीमित भाव, कारण-कार्यभाव, गुणभाव, अन्योन्याश्रय भाव, संभावना, वास्तविकता एवं अनिवार्यता ।

प्रश्न 16. अनुभववाद की परिभाषा दें। अथवा, अनुभववाद से आप क्या समझते हैं ?

उत्तर: अनुभववाद ज्ञान प्राप्ति का एकमात्र साधन इन्द्रियानुभूति को मानता है। अनुभववादियों के अनुसार सम्पूर्ण अनुभव की ही उपज है तथा बिना अनुभव से प्राप्त कोई भी ज्ञान मन में नहीं होता है। वस्तुतः अनुभववाद, बुद्धिवाद का विरोधी सिद्धान्त है। अनुभववादियों के अनुसार जन्म के समय मन साफ पट्टी के समान है और जो कुछ ज्ञान होता है उसके सभी अंग अनुभव से ही प्राप्त होते हैं। इसमें मन को निष्क्रिय माना जाता है। अनुभववाद के अनुसार आनुभविक अंग पृथक्-पृथक् संवेदनाओं के रूप में पाए जाते हैं। यदि इनके बीच कोई सम्बन्ध स्थापित किया जाय तो सहचार के नियमों पर आधारित यह सम्बन्ध बाहरी ही हो सकता है। अंततः अनुभववाद में पूरी गवेषणा न करने के कारण इसमें सदा यह दृढ़ विचार बना रहता है कि ज्ञान के सभी अंग आनुभविक हैं जब यह बात सिद्ध नहीं हो पाती, तब संदेहवाद इसका अंतिम परिणाम होता है।

प्रश्न 17. प्रमाण से आप क्या समझते हैं ?

उत्तर: ‘प्रमा’ को प्राप्त करने के जितने साधन हैं, उन्हें ही ‘प्रमाण’ कहा गया है। गौतम के अनुसार प्रमाण के चार साधन हैं।

प्रश्न 18. पुरुषार्थ के रूप में धर्म की व्याख्या करें।

उत्तर: धर्म शब्द का प्रयोग भी भिन्न-भिन्न अर्थों में किया जाता है। सामान्यतः धर्म से हमारा तात्पर्य यह होता है जिसे हम धारण कर सकें। जीवन में सामाजिक व्यवस्था कायम रखने के लिए यह अनिवार्य माना जाता है कि प्रत्येक व्यक्ति जीवन स्तर पर कुछ-न-कुछ क्रियाओं का सम्पादन करें। इसी उद्देश्य से वर्णाश्रम धर्म की चर्चा भी की गयी है। भारतीय जीवन व्यवस्था में चार वर्ण माने गये हैं-ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य तथा शूद्र। प्रत्येक वर्ण के लिए कुछ सामान्य धर्म माने गये हैं। किन्तु कुछ ऐसे धर्म भी हैं जिनका पालन किया जाना किसी वर्ग (वर्ण) विशेष के सदस्यों के लिए भी वांछनीय माना जाता है। इसी प्रकार आश्रम की संख्या चार है। यहाँ आदर्श जीवन 100 वर्षों का माना जाता है और इसे चार आश्रम में बाँटा गया है। इन्हें हम क्रमशः ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ तथा संन्यास के नाम से पुकारते हैं।

प्रश्न 19. प्रमेय क्या है ?

उत्तर: न्याय दर्शन में प्रमेय को प्रमाण का रूप बताया गया है। उपमान का होना, सादृश्यता या समानता के साथ संज्ञा-संज्ञि संबंध का ज्ञान प्रमेय कहलाता है।

प्रश्न 20. निर्विकल्पक प्रत्यक्ष की व्याख्या करें।

उत्तर: कभी-कभी पदार्थों का प्रत्यक्ष ज्ञान तो होता है, लेकिन उसका स्पष्ट ज्ञान नहीं हो पाता है। उसका सिर्फ आभास मात्र होता है। उदाहरण के लिए, गंभीर चिंतन या अध्ययन में मग्न होने पर सामने की वस्तुओं का स्पष्ट ज्ञान नहीं हो पाता है। हमें सिर्फ यह ज्ञान होता है कि कुछ है, लेकिन क्या है, इसको नहीं जानते हैं। निर्विकल्पक प्रत्यक्ष को मनोविज्ञान में संवेदना के नाम से भी जानते हैं।

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