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CGBSE Class 12 Hindi Exam 2024  : Most Important Question Answers - रटलो पेपर से पहले

CGBSE Class 12 Hindi Exam 2024  : Most Important Question Answers - रटलो पेपर से पहले

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छत्तीसगढ़ बोर्ड 12वीं की हिंदी परीक्षा 1 मार्च, 2024 को निर्धारित है। तो यह आर्टिकल आपके लिए काफी ज्यादा महत्वपूर्ण साबित होने वाला है क्योंकि इस आर्टिकल में आपको बोर्ड परीक्षा के लिए वो ही प्रश्न दिए गए है जो बोर्ड पेपर में आने जा रहे है।

इस पोस्ट में छत्तीसगढ़ बोर्ड 12th परीक्षा 2024 के लिए हिंदी के महत्वपूर्ण सब्जेक्टिव (CG Board 12th hindi Important Subjective Question 2024) प्रश्न दिये गये है जो आपके पेपर के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।

छात्रों को इन (CG Board 12 Hindi Viral Question 2024) प्रश्नों को अच्छी तरह से याद रखना चाहिए, जिससे आपको तैयारी करने में आसानी होगी।

अब आपकी परीक्षा में कुछ ही घंटे बचे है I जिससे  हिन्दी के पेपर की तैयारी कर सकते हैं और अच्छे मार्क्स ला सकते है I

फीचर लेखन

अति लघु उत्तरीय

1. बाजार का जादू चढ़ने पर मनुष्य पर क्या प्रभाव पड़ता है?

Ans: बाजार का जादू चढ़ने पर व्यक्ति अधिक से अधिक वस्तु खरीदना चाहता है। तब वह सोचता है कि बाजार में बहुत कुछ है और उसके पास कम चीजें हैं।

2. बाजार का जादू उतरने पर मनुष्य पर क्या प्रभाव पड़ता है ?

Ans: वह लालच में आकर गैर-जरूरी चीजों को भी खरीद लेता है। परन्तु जब बाजार का जादू उतर जाता है, तो उसे वे वस्तुएँ अर्थात् अपने द्वारा खरीदी गई वस्तुएँ अनावश्यक, निरर्थक एवं आराम में खलल डालने वाली लगती हैं। '

3. बाजारूपन से क्या तात्पर्य है?

Ans: बाज़ारूपन से लेखक का तात्पर्य है कि बाज़ार को अपनी आवश्यकता के अनुरूप नहीं बल्कि दिखाने के लिए प्रयोग में लाना। इस प्रकार हम अपने सामर्थ्य से अधिक खर्च करते हैं और अनावश्यक वस्तुएँ खरीद लाते हैं, तो हम बाज़ारूपन को बढ़ावा देते हैं।

4. इन्दर सेना कौन-सी जयकारा लगाती थी?

Ans: इन्दर सेना सबसे पहले "बोल गंगा मैया की जय" जयकारा लगाती थी।

5. मेढ़क-मंडली में लड़कों की उम्र क्या थी?

Ans: इंद्र सेना में 10 से 12 वर्ष और 16 से 18 वर्ष की आयु के लड़के शामिल थे।

6. गुड़धानी कैसे बनाई जाती है?

Ans: पाठ काले मेघा पानी दे के अनुसार, गुड़धानी का अर्थ है अनाज। आमतौर पर गुड़ में भुने हुए चावल या गेहूं मिलाकर लड्डू बनाए जाते हैं, इसे गुड़धानी कहते हैं l

7. लुट्टन के अनुसार उसका गुरू कौन है?

Ans: लुट्टन पहलवान जब पहली बार पहलवानी करने दंगल में जाता है, तो एकमात्र ढोल की आवाज़ होती है, जो उसे अपना साहस बढ़ाती नज़र आती है। ढोल की हर थाप में वह एक निर्देश सुनता है, जो उसे अगला दाँव खेलने के लिए प्रेरित करती है। यही कारण है कि लुट्टन पहलवान ढोल को अपना गुरु मानता है।

8. चाँद सिंह कौन था?

Ans: शेर के बच्चे' का असल नाम था चाँद सिंह।

9. 'शेर के बच्चे' की उपधि किसे दी गई थी ?

Ans: शेर के बच्चे' की उपधि ** चाँद सिंह को दी गई थी।

10. नज़रूल इस्लाम कौन थे?

Ans: बांग्ला साहित्य के एक महान कवि, लेखक, क्रांतिकारी और स्वतंत्रता सेनानी थे। उन्हें "विद्रोही कवि" के रूप में भी जाना जाता है।

11. कीनुओं की टोकरी की तह में क्या रखा गया है?

Ans: नमक की पुड़िया कीनुओं की टोकरी की तह में रखा है

12. कस्टम अफसर कहाँ के रहने वाले हैं?

Ans: कस्टम अफसर ने अपने बारे में यह बताया कि उसका वतन देहली है।

13. शिरीष के फूल को संस्कृत साहित्य में कैसा माना गया है ?

Ans: शिरीष के फूल को संस्कृत साहित्य में कोमल माना जाता है

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14. शिरीष के वृक्ष किस प्रकार के होते हैं?

Ans: यह पेड़ 16 से 20 मीटर तक ऊंचा होता है। यह वृक्ष बहुत ही घना होता है। शिरीष के फूल सफेद व पीला रंग के और काफी सुंगधित होता है। इसका फल 10 से 30 सेंटीमीटर लंबा, 2 से 4 या 5 सेंटमीटर तक चौड़ा होता है।

15. अवधूत का क्या अभिप्राय है?

Ans: अवधूत शब्द अनेक अर्थों को धारण करता है, जिनमें से कुछ प्रमुख अर्थ निम्नलिखित हैं:

  1. मुक्त
  2. संन्यासी
  3. योगी

16. समता काल्पनिक जगत की वस्तु कैसे है ?

Ans: प्रत्येक व्यक्ति शारीरिक क्षमता, वंश-परम्परा या जन्म से, सामाजिक उत्तराधिकार की परम्परा से तथा अपने प्रयत्नों के कारण दूसरों से भिन्न और असमान होता है। इस तरह समता पहले से ही स्वयं नहीं आती है। समता को आदर्श समाज के निर्माण हेतु अपनायी जाती है। अतः समाज-निर्माण में समता की सत्ता काल्पनिक है। 

17. दासता क्या है?

Ans: लेखक के मतानुसार .दासता. केवल कानूनी पराधीनता को ही नहीं कहा जा सकता बल्कि इसमें वह स्थिति भी सम्मिलित है जिससे कुछ व्यक्तियों को दूसरे लोगो के द्वारा निर्धारित व्यवहार एवं कर्तव्यों का पालन करने के लिए विवश होना पड़ता है | उदाहरणार्थ, जाति-प्रथा की तरह ऐसे वर्ग होना सम्भव है, जहाँ कुछ लोगो को अपनी इच्छा के विरुद्ध पेशे अपनाने पड़ते हैं |

18. न्याय का तकाजा क्या है?

Ans: न्याय का तकाजा एक नैतिक और सामाजिक अवधारणा है जो सभी के लिए समानता, निष्पक्षता और उचित व्यवहार का दावा करती है। यह एक ऐसा सिद्धांत है जो सभी व्यक्तियों को उनके सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक या धार्मिक स्थिति की परवाह किए बिना समान अधिकार और अवसर प्रदान करने का प्रयास करता है।

19. व्यवहार की एकमात्र कसौटी बताइये ।

Ans: व्यवहार की एकमात्र कसौटी नैतिकता है। नैतिकता ही वह आधार है जिसके आधार पर हम यह निर्णय लेते हैं कि क्या सही है और क्या गलत। नैतिकता ही हमें यह बताती है कि हमें दूसरों के साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए।

20. ए. जी. गार्डिनर कौन है ?

Ans: ए. जी. गार्डिनर (1865-1946) अंग्रेजी भाषा के एक प्रसिद्ध निबंधकार और पत्रकार थे।

21. सेक्सपियर ने अपने नाटक का नाम क्या रखा ?

Ans: सेक्सपियर ने अपने नाटक का नाम रोमियो एंड जूलियट रखा।

22. अंग्रेजी के निबंधकारों की दूसरी पीढ़ी के साहित्यकार कौन है?

Ans: दूसरी पीढ़ी – विद्यानिवास मिश्र।

23. तरूण भविष्य को कहाँ लाना चाहते हैं?

Ans: तरुण भविष्य को वर्तमान में लाना चाहते हैं।

24. वृद्ध अतीत को खींचकर कहाँ देखना चाहते हैं?

Ans: वृद्ध अतीत को खींचकर अपनी स्मृतियों में देखना चाहते हैं। उनके लिए अतीत एक ऐसा समय होता है जो उन्हें सुख, प्रेम, और संतुष्टि देता है। वे अपनी युवावस्था, अपने प्रियजनों, और अपने अनुभवों को याद करते हैं। वे अतीत में वापस जाना चाहते हैं और उन पलों को फिर से जीना चाहते हैं।

25. किस प्रकार के लोग प्रतियोगिता में बाजी मार लेंगे।

Ans: उत्तम व्यवहार के हक की प्रतियोगिता में वे लोग निश्चय ही बाजी मार ले जाएँगे, जिन्हें उत्तम कुल, शिक्षा, पारिवारिक ख्याति, पैतृक संपदा तथा व्यवसायिक प्रतिष्ठा का लाभ प्राप्त है।

लघु उत्तरीय प्रश्न

1. बाजार दर्शन पाठ के आधार पर पैसे की व्यंग्य शक्ति को स्पष्ट कीजिए ।

Ans: लेखक ने पैसे की व्यंग्य-शक्ति को दारुण तथा मन में दुर्भावना बढ़ाने वाली बताया है। पैसे की अधिकता से व्यक्ति स्वयं को श्रेष्ठ मानने लगता है और स्वार्थी बन जाता है। पैसे के अभाव में व्यक्ति सोचता है कि मैं मोटरवालों के, धनपतियों और वैभवशालियों के घर में क्यों पैदा नहीं हुआ। इस तरह पैसे की व्यंग्य-शक्ति व्यक्ति में ईर्ष्या-द्वेष एवं हीन-भावना बढ़ाती है। इस तरह दोनों ही परिस्थितियों में पैसे की व्यंग्य शक्ति मनुष्य के लिए अहितकर होती है।

2. बाजार दर्शन के विद्वान पाठक से चूरन बेचने वाले भगत जी श्रेष्ठ है । अपना विचार स्पष्ट कीजिए ।

Ans: 'बाजार दर्शन’ पाठ में चूरन वाले भगत जी का उल्लेख एक शांत, संतुष्ट और सुखी मनुष्य के रूप में हुआ है। भगत जी के चरित्र की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

संतोषी – भगत जी संतोषी हैं। वह अपनी कम कमाई से भी संतुष्ट रहते हैं। छ: आने की कमाई होते ही वह चूरन बेचना बन्द कर देते हैं। वह पच्चीसवाँ पैसा भी स्वीकार नहीं करते। शेष चूरन वह बच्चों में मुफ्त बाँट देते हैं।

लोभहीन – भगत जी को लोभ नहीं है। वह व्यापार को शोषण का जरिया नहीं मानते।

तृष्णा से मुक्त – भगत जी में तृष्णा-भाव नहीं है। उनमें संग्रह की भावना नहीं है। जीवनयापन के लिए जितना पैसा जरूरी है, वह उतना ही कमाना चाहते हैं। भगत जी को जरूरत का ज्ञान है। वह चौक बाजार से जीरा और काला नमक खरीदते हैं। वह एक पंसारी की दुकान से मिल जाता है। शेष बाजार उनको आकर्षित नहीं कर पाता।

सम्माननीय – भगत जी धनवान तथा बहुत पढ़े-लिखे नहीं हैं किन्तु अपने संतोषपूर्ण स्वभाव के कारण वह सभी के सम्माननीय हैं। बाजार में लोग उनका अभिवादन करते हैं।

3. बाजार किसी का लिंग, जाति, धर्म या क्षेत्र नहीं देखता, वह देखता है सिर्फ क्रय शक्ति को । इस रूप में वह एक प्रकार से सामाजिक समता की भी रचना कर रहा है। आप इसमें कहाँ तक सहमत हैं?

Ans: बाजार का कार्य है- वस्तुओं का विक्रय करना। बाजार को अपनी वस्तुओं को बेचने को ग्राहक की जरूरत है। उसे किसी के लिंग, जाति, धर्म या क्षेत्र से कोई मतलब नहीं है। उसे सिर्फ क्रय-शक्ति को देखना है। इस मत से देखा जाये तो लेखक का कथन सत्य है कि बाजार का यह व्यवहार सामाजिक समता की रचना करता है।

लेकिन इसमें भी क्रेता की सम दृष्टि साबित होती है, विक्रेता की नहीं। क्योंकि क्रय-शक्ति से हीन व्यक्ति स्वयं को औरों के समक्ष कमजोर व दुर्बल समझता है। हीनता की भावना उसकी गरीबी का मजाक उड़ाती-सी प्रतीत होती है इसलिए यह बात सिर्फ एक ही पक्ष पर लागू होती है। दूसरे पक्ष को इस अन्तर की वेदना व असमानता सदैव भोगनी पड़ती है।

4. किस कारण व्यक्ति कोरे गाहक व बेचक बन जाते हैं?

Ans: बाज़ारवाद के बढ़ते प्रभाव के कारण व्यक्ति कोरे गाहक व बेचक बन जाते हैं। बाज़ारवाद एक सामाजिक-आर्थिक व्यवस्था है जिसमें वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन और वितरण बाज़ार में प्रतिस्पर्धा के आधार पर होता है। बाज़ारवाद के कुछ मुख्य कारणों में शामिल हैं:

1. उपभोक्तावाद: बाज़ारवाद लोगों को उपभोक्ता बनने के लिए प्रेरित करता है। यह लोगों को लगातार नई वस्तुओं और सेवाओं को खरीदने के लिए प्रोत्साहित करता है, भले ही वे उन वस्तुओं और सेवाओं की वास्तव में आवश्यकता न हो।

2. भौतिकवाद: बाज़ारवाद लोगों को भौतिकवादी बनने के लिए प्रेरित करता है। भौतिकवाद एक ऐसी विचारधारा है जो भौतिक संपत्ति को सबसे महत्वपूर्ण मानती है। भौतिकवादी लोग अपनी सफलता और खुशी को भौतिक वस्तुओं के अधिग्रहण से जोड़ते हैं।

3. व्यक्तिवाद: बाज़ारवाद लोगों को व्यक्तिवादी बनने के लिए प्रेरित करता है। व्यक्तिवाद एक ऐसी विचारधारा है जो व्यक्ति के हितों को समाज के हितों से ऊपर रखती है। व्यक्तिवादी लोग दूसरों की मदद करने की तुलना में अपने स्वयं के हितों को आगे बढ़ाने पर अधिक ध्यान केंद्रित करते हैं।

4. प्रतिस्पर्धा: बाज़ारवाद लोगों को प्रतिस्पर्धी बनने के लिए प्रेरित करता है। बाज़ार में सफल होने के लिए, लोगों को दूसरों से बेहतर प्रदर्शन करना होता है। यह प्रतिस्पर्धा लोगों को तनाव और चिंता का अनुभव करा सकती है।

5. असमानता: बाज़ारवाद अक्सर धन और अवसरों की असमानता को बढ़ा देता है। बाज़ार में सफल होने के लिए लोगों के पास आवश्यक संसाधन और कौशल होने चाहिए। जो लोग इन संसाधनों और कौशल का अभाव रखते हैं, वे गरीबी और वंचित रह जाते हैं।

5. फैंसी चीजों के विषय में लेखक का क्या मानना है?

Ans: लेखक का मानना है कि फैंसी चीजें अनावश्यक और भ्रामक होती हैं। वे हमारी इच्छाओं को बढ़ाती हैं और हमें ज़रूरत से ज्यादा खर्च करने के लिए प्रेरित करती हैं। लेखक का कहना है कि हमें अपनी ज़रूरतों पर ध्यान देना चाहिए और फैंसी चीजों के चक्कर में नहीं आना चाहिए।

लेखक ने "बाजार दर्शन" नामक निबंध में फैंसी चीजों के बारे में अपनी राय व्यक्त की है। इस निबंध में, लेखक बाजार के आकर्षण और उसकी चकाचौंध पर चर्चा करता है। लेखक का कहना है कि बाजार हमें फैंसी चीजों के लिए लालची बनाता है और हमें अपनी ज़रूरतों से दूर ले जाता है।

लेखक ने भगत जी नामक एक पात्र का वर्णन किया है जो फैंसी चीजों में कोई दिलचस्पी नहीं रखता है। भगत जी केवल उतनी ही चीजें खरीदते हैं जिनकी उन्हें ज़रूरत होती है। वे बाजार के आकर्षण में नहीं फंसते हैं।

लेखक का कहना है कि हमें भगत जी से प्रेरणा लेनी चाहिए और फैंसी चीजों से दूर रहना चाहिए। हमें अपनी ज़रूरतों पर ध्यान देना चाहिए और अपनी जेब के अनुसार खर्च करना चाहिए।

6. "काले मेघा पानी दे" पाठ का उद्देश्य स्पष्ट कीजिए ।

Ans: "काले मेघा पानी दे" पाठ का उद्देश्य अनेक स्तरों पर समझा जा सकता है।

1. लोक-विश्वास और विज्ञान का द्वंद्व: यह पाठ लोक-विश्वास और विज्ञान के बीच द्वंद्व को दर्शाता है। कहानी का नायक, जो कि एक किशोर है, इंद्र सेना के माध्यम से वर्षा की कामना को अंधविश्वास मानता है। वहीं, उसकी दादी इंद्र सेना को लोक-आस्था और त्याग की भावना का प्रतीक मानती हैं।
2. प्रकृति के प्रति कृतज्ञता: यह पाठ प्रकृति के प्रति कृतज्ञता और सम्मान व्यक्त करता है। कहानी में, इंद्र सेना के माध्यम से बच्चों द्वारा पानी की कामना प्रकृति के प्रति कृतज्ञता और प्रार्थना का प्रतीक है।
3. सामाजिक समरसता: यह पाठ सामाजिक समरसता का भी संदेश देता है। कहानी में, विभिन्न जाति और धर्म के बच्चे इंद्र सेना में शामिल होते हैं और वर्षा की कामना करते हैं।
4. बाल मनोविज्ञान: यह पाठ बाल मनोविज्ञान को भी दर्शाता है। कहानी में, किशोर नायक का द्वंद्वग्रस्त मन, जिज्ञासा और तर्कशीलता को दर्शाता है।
5. सांस्कृतिक मूल्य: यह पाठ भारतीय संस्कृति और परंपराओं को भी दर्शाता है। कहानी में, इंद्र सेना का आयोजन वर्षा ऋतु से जुड़ी एक लोक-परंपरा है।

7. पानी दे गुड़धानी दे मेघों से पानी के साथ - साथ गुड़धानी की माँग क्यों की जा रही है?

Ans: पानी से गुड़धानी का बहुत गहरा संबंध है। पानी मात्र पीने की आवश्यकता को पूरा नहीं करता है। वह अनाज उगाने के लिए भी उतना ही महत्त्वपूर्ण होता है। किसान जब खेतों में धान, गेहूँ, ज्वार, गन्ना, बाज़रा इत्यादि के बीज डालता है, तो वह मेघों से पानी की आस लगाता है। खेतों में जब वर्षा होती है, तो फसल लहलहाती है। इसी फसल से हमें विभिन्न प्रकार की फसलें प्राप्त होती हैं। गुड़धानी चावल तथा गुड़ से बनता है। अतः पानी के साथ-साथ गुड़धानी भी खाने को मिलती है। इसलिए पानी के साथ-साथ गुड़धानी की माँग की गई है।

8. इंदर सेना पर पानी फेंकने के बारे में जीजी और लेखक के विचारों की तुलना कीजिए ?

Ans: इंदर सेना पर पानी डालने को लेकर लेखक का तर्क था कि गर्मी के इस मौसम में जहाँ पानी की बहुत किल्लत है ऐसे समय में व्यर्थ में पानी फेंकना, पानी की बर्बादी है। लोगों को पीने के लिए, जीवन यापन के लिए पानी नहीं मिल रहा वहाँ मंडली पर झूठे विश्वास के तहत पानी फेंकना गलत है।

इसके विपरीत, जीजी इंद्र सेना पर पानी फेंकना, पानी की बुवाई मानती थी। वे कहती हैं कि जिस तरह ढेर सारे गेहूँ प्राप्त करने के लिए कुछ मुट्ठी गेहूँ पहले बुवाई के लिए डाले जाते हैं वैसे ही वर्षा प्राप्त करने हेतु कुछ बाल्टी पानी फेंका जाता है। उनका यह तर्क कि सीमित में से ही दिया जाना त्याग कहलाता है और त्याग करने से ही सच्चा लोक-कल्याण होता है।

9. कहानी के किस किस मोड़ पर लुट्टन के जीवन में क्या-क्या परिवर्तन हुए?

Ans: कहानी में लुट्टन के जीवन में निम्नलिखित परिवर्तन आये - 

  1. बचपन में माता-पिता की मृत्यु हो गई, तब उसका पालन-पोषण विधवा सास ने किया। शादी बचपन में हो गई थी।
  2. श्यामनगर के दंगल में पंजाब के नामी पहलवान चाँदसिंह को पछाड़कर राज-दरबार क्ला आश्रय पाया।
  3. लुट्टन के दोनों बेटे भी पहलवानी के क्षेत्र में उतरे।
  4. राजा की मृत्यु के बाद राजकुमार ने लुट्टन को राज-दरबार से हटा दिया। तब वह अपने गाँव लौट आया।
  5. गाँव में महामारी फैलने पर दोनों पुत्रों की मृत्यु हो गई।
  6. कुछ दिनों पश्चात् लुट्टन की भी मृत्यु हो गई।

10. गाँव में महामारी फैलने और अपने बेटे के देहान्त के बावजूद लुट्टन पहलवान ढोल क्यों बजाता रहा?

Ans: लुट्टन पहलवान का ढोल से गहरा रिश्ता था। ढोल की आवाज़ उसे जीने तथा संघर्ष करने की प्रेरणा देती थी। गाँव में महामारी फैली थी। चारों तरफ सन्नाटा और उदासी थी। ढोल की आवाज़ ही इस सन्नाटे को तोड़ती थी। मृत्यु की ओर बढ़ते रोगियों को हिम्मत बँधाती थी। जब लुट्टन के दोनों जवान बेटे मरे तो अपने मन की उदासी और सूनापन दूर करने के लिए वह रातभर ढोलक बजाता रहा।

11. ढोलक की आवाज का पूरे गाँव पर क्या असर पड़ा ?

Ans: महामारी फैलने तथा कई लोगों की मौत होने से गाँव का वातावरण निराशा-वेदना से भरा था। रात के समय गाँव में सन्नाटा और भय बना रहता था। ढोलक की आवाज रात में उस सन्नाटे और भय को कम करती थी। महामारी से पीड़ित लोगों को ढोलक की ध्वनि से संघर्ष करने की शक्ति एवं उत्तेजना मिलती थी। इस प्रकार ढोलक की आवाज का पूरे गाँव पर अतीव प्रेरणादायी असर होता था। 

12. लेखक ने चार्ली का भारतीयकरण किसे कहा और क्यों ? गाँधी और नेहरू ने भी उनका सान्निध्य क्यों चाहा ?

Ans: लेखक ने राजकूपर को चार्ली का भारतीयकरण कहा है। राजकूपर ने चार्ली से प्रभावित होकर मेरा नाम जोकर, आवारा जैसी फ़िल्में बनाईं। इन्होंने न केवल चार्ली जैसे किरदार को परदे पर पुनः जीवंत किया बल्कि उसे सफल भी बनाया। भारतीय दर्शकों द्वारा इसे प्रसन्नता से स्वीकार किया गया। चार्ली ऐसे व्यक्ति थे, जिनमें लोगों को हँसाने और प्रसन्न रखने का गुण विद्यमान था। यही कारण था कि नेहरू तथा महात्मा गाँधी जैसे लोग भी उनका सान्निध्य चाहते थे।

13. जीवन की जद्दोजहद ने चार्ली के व्यक्तित्व को कैसे संपन्न बनाया?

Ans: चार्ली का जीवन बचपन से ही विषमताओं और कष्टों से भरा हुआ था। उनके पिता ने उन्हें बहुत ही छोटी उम्र में छोड़ दिया था। माँ मानसिक रोगी थीं। उनके पागलपन ने उन्हें अचानक ही कष्टों के मध्य ला खड़ा किया। एक तरफ़ गरीबी तथा दूसरी तरफ़ पागल माँ। शीघ्र ही उन्हें उस समय व्याप्त पूंजीपति वर्ग द्वारा किए गए शोषण का भी शिकार होना पड़ा। उनकी नानी खानाबदोश थी और पिता यहूदी थे। इन विशेषताओं के कारण वह घुमंतू स्वभाव के बने थे और जीवन को नजदकी से देखा। जीवन में जटिलता बचपन से ही थी, जो आगे चलकर बढ़ती चली गई। लेकिन इनसे चार्ली पर बुरा असर नहीं पड़ा और उनका व्यक्तित्व ऐसे ही निखरता गया जैसे सोना घिसकर चमक जाता है। कष्टों ने उन्हें जीवन की बहुत अच्छी समझ दी। इसका यह प्रभाव पड़ा कि उनमें जीवन मूल्य कूट-कूटकर विद्यमान हो गए। आगे चलकर इन्हीं जीवन मूल्यों ने उनके व्यक्तित्व को संपन्न बनाया।

14. लेखक ने ऐसा क्यों कहा है कि अभी चैप्लिन पर करीब 50 वर्षों तक काफी कुछ कहा जाएगा?

Ans: चार्ली चैप्लिन के विषय में अभी पचास वर्षों तक काफी कुछ कहा जायेगा। क्योंकि चार्ली ने भारतीय जन-जीवन पर कितना प्रभाव छोड़ा है, इसका अभी तक मूल्यांकन नहीं हुआ है तथा चार्ली की कुछ फिल्में या रीलें ऐसी मिली हैं, जो अभी तक प्रदर्शित नहीं हुई हैं। इस कारण उनकी भी चर्चा होगी।

15. चार्ली के जीवन पर प्रभाव डालने वाली घटनाओं को लिखिए ।

Ans: चार्ली के जीवन में प्रथम घटना उस समय की है जब चार्ली बीमार थे और उसकी माँ उन्हें ईसा मसीह की जीवनी पढ़कर सुना रही थी। ईसा के सूली पर चढ़ने के प्रसंग तक आते-आते माँ-बेटा दोनों रोने लगे। इस घटना ने चार्ली को स्नेह, करुणा और मानवता जैसे उच्च जीवन मूल्य दिए। दूसरी घटना बालक चार्ली कसाईखाने में रोज सैकड़ों जानवरों को कटते देखता था।

एक दिन एक भेड़ कसाई की पकड़ से छूट भागी। उसे पकड़ने की कोशिश में कसाई कई बार फिसला, जिसे देखकर लोग हँसने लगे, ठहाके लगाने लगे। जब भेड़ को कसाई ने पकड़ लिया तब उसके मरने की सोच कर बालक चार्ली रोने लगा। इन्हीं दो घटनाओं ने उसकी भावी फिल्मों में त्रासदी और हास्योत्पादक तत्त्वों की भूमिका तय कर दी।

16. सफ़िया के भाई ने नमक की पुड़िया ले जाने से मना क्यों कर दिया?

Ans: सफिया के भाई ने नमक की पुड़िया ले जाने से इसलिए मना कर दिया क्योंकि पाकिस्तान से भारत में नमक ले जाना गैर-कानूनी है तथा कस्टम के अधिकारी नमक की पुड़िया मिलने पर उसके सामान की चिंदी-चिंदी कर डालेंगे और पकड़े जाने पर उनकी बदनामी भी होगी।

17. नमक की पुड़िया ले जाने के संबंध में सफ़िया के मन में क्या द्वन्द्व था?

Ans: नमक की पुड़िया ले जाने के सम्बन्ध में सफिया के मन में यह द्वन्द्व था कि वह उसे चोरी-छिपे ले जाये अथवा कस्टम अधिकारियों को दिखाकर ले जाये। सौगात एवं मुहब्बत का तोहफा चोरी से ले जाना ठीक नहीं है। 

18. "लाहौर अभी उनका वतन है और देहली मेरा या मेरा वतन ढाका है” जैसे उदगार किस सामाजिक यथार्थ का संकेत करते हैं?

Ans: इस तरह के उद्गारों से इस सामाजिक यथार्थ की ओर संकेत किया गया है कि विस्थापन का दर्द व्यक्ति को जीवन-भर सालता है। राजनैतिक कारणों से बँटवारा हो जाने पर भी सीमा-रेखाएँ लोगों के मनों को विभाजित नहीं कर पाती हैं। जन्म-भूमि का लगाव सदा बना रहता है। विभाजन हुए काफी वर्ष हो जाने पर भी लोगों को भारत-पाक का विभाजन अस्वाभाविक और कृत्रिम लगता है।

19. लेखक ने शिरीष को कालजयी अवधूत (संन्यासी) की तरह क्यों माना है?

Ans: कालजयी उसे कहते हैं जो समय के परिवर्तन से अप्रभावी रहता है। जीवन में आने वाले सुख-दु:ख, उत्थान-पतन, हार-जीत उसे प्रभावित नहीं कर पाते। वह इनमें संतुलन बनाकर जीवित रहता है। यह गुण अवधूत अर्थात् संन्यासी में होते हैं। शिरीष का वृक्ष भी भीषण गर्मी और लू में हरा-भरा और फूलों से लदा रहता है। इस कारण इसे कालजयी अवधूत की तरह माना गया है।

20. हृदय की कोमलता बचाने के लिए व्यवहार की कठोरता भी कभी-कभी जरूरी हो जाती है? शिरीष के फूल पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए ।

Ans: हृदय की कोमलता को बचाने के लिए कभी-कभी व्यवहार की कठोरता जरूरी हो जाती है। शिरीष के फूल अतीव कोमल होते हैं, परन्तु वे अपने वृन्त से इतने मजबूत जुड़े रहते हैं कि नये फूलों के आ जाने पर भी अपना स्थान नहीं छोड़ते हैं। वे अपने अन्दर की कोमलता को बचाने के लिए ऐसे कठोर बन जाते हैं।

21. कर्णाट-राज की प्रिया विज्जिका देवी ने किन्हें कवि माना है और क्यों?

Ans: कर्णाट-राज की प्रिया विज्जिका देवी ने ब्रह्मा, वाल्मीकि और व्यास को ही कवि माना है। उन्होंने यह इसलिए माना क्योंकि इन तीनों ने ही क्रमशः वेद, रामायण और महाभारत जैसे महान ग्रंथों की रचना की थी, जो कि मानव सभ्यता के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। विज्जिका देवी का मानना था कि इन ग्रंथों में जीवन के सभी पहलुओं का वर्णन है और ये मानव जीवन को सही दिशा प्रदान करते हैं।

विज्जिका देवी के अनुसार, कवि का अर्थ है वह व्यक्ति जो जीवन के रहस्यों को जानता है और उन्हें अपनी रचनाओं के माध्यम से व्यक्त करता है। उन्होंने कहा कि केवल वे ही लोग कवि हो सकते हैं जो त्याग, तपस्या और आत्म-साक्षात्कार के मार्ग पर चलते हैं। इन तीनों कवियों ने भी अपने जीवन में इन गुणों का प्रदर्शन किया था।

विज्जिका देवी ने कालिदास को कवि नहीं माना क्योंकि उन्होंने राजाओं और रानियों की प्रशंसा में कविताएं लिखी थीं। उनका मानना था कि कालिदास ने अपनी कविताओं में भौतिक सुखों को महत्व दिया था, जो कि आध्यात्मिक जीवन के लिए हानिकारक है।

22. जाति -प्रथा में लेखक ने क्या दोष देखा ।

Ans: जाती प्रथा में लेखक ने निम्न दोष बताए हैं-

  • जाति प्रथा पेशे का पूर्वनिर्धारण करती है |
  • जीवनभर के लिए मनुष्य को एक पेशे से बाँध देती है |
  • पेशा अनुपयुक्त या अपर्याप्त होने पर भूखा मरना पड़ता है |

23. जाति - प्रथा में लेखक ने किन गंभीर दोषों का वर्णन किया है।

Ans: लेखक ने जाति-प्रथा के अनेक कारणों जैसे - अस्वाभाविक श्रम-विभाजन, श्रमिक-वर्ग में भेदभाव, ऊँच नीच की भावना, वंशानुगत कार्य होने से रुचि और क्षमता का ध्यान न रखना, अपर्याप्त व्यवसाय से बेरोजगार रहना, स्वतन्त्रता-समता एवं बन्धुता की भावना में कमी आना। जिनके परिणामस्वरूप आदर्श समाज का निर्माण रुक जाता है। 

24. आदर्श समाज की तीन विशेषताएँ बताइये ।

Ans: आदर्श की संकल्पना को इसकी निम्नलिखित विशेषताओं द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है-

 संस्कृति के प्रतिनिधि–सामाजिक आदर्शों को संबंधित संस्कृति अथवा समूह का प्रतिनिधि माना जाता है। इन आदर्शों की प्रकृति से हम उस समाज या समूह की प्रकृति के बारे में अनुमान लगा सकते हैं।
सामाजिक अनुमोदन–सामाजिक आदर्शों की दूसरी विशेषता समाज अथवा संबंधित समूह द्वारा इनको प्राप्त स्वीकृति है। सामूहिक स्वीकृति के कारण ही इनमें स्थायित्व का गुण पाया जाता है। अतः आदर्श में वे व्यवहार नियम नहीं आते जिनको सामूहिक अनुमोदन प्राप्त नहीं है।
स्थायी प्रकृति-सामाजिक आदर्शों की सबसे प्रमुख विशेषता यह है कि इनमें स्थायित्व पाया जाता है, क्योंकि इनका विकास शनैःशनैः होता है और ये एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में हस्तांतरित होते रहते हैं। इसलिए इनमें परिवर्तन लाना कठिन है। इस स्थायी प्रकृति के कारण ही आदर्श समूह के सदस्यों का अंग बन जाते हैं।
लिखित व अलिखित स्वरूप-सामाजिक आदर्शों का स्वरूप लिखित एवं अलिखित दोनों प्रकार का हो सकता है। अधिकांशतः आदर्श दोनों ही रूपों में समाज में विद्यमान होते हैं तथा व्यक्ति के व्यवहार को नियंत्रित करते हैं।
 कर्तव्य की भावना–सामाजिक आदर्शों का पालन इसलिए किया जाता है क्योंकि इनके साथ । कर्त्तव्य की भावना जुड़ी होती है। सामान्यतः इनका पालन करना सदस्य अपना गौरव समझते

25. डॉ. अम्बेडकर के जीवन का क्या उददेश्य था ।

Ans: डॉ. अम्बेडकर के जीवन का मुख्य उद्देश्य जातिवाद और अस्पृश्यता जैसी सामाजिक बुराइयों को मिटाना और दलित वर्गों के उत्थान के लिए कार्य करना था।

उनके जीवन के कुछ प्रमुख उद्देश्यों में शामिल थे:

  • जाति प्रथा का उन्मूलन: उन्होंने जाति प्रथा को भारतीय समाज के लिए एक अभिशाप माना और इसे पूरी तरह से मिटाने के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया। उन्होंने जातिवाद के खिलाफ आवाज उठाई, सामाजिक न्याय और समानता की वकालत की, और दलितों को शिक्षा और रोजगार के अवसर प्रदान करने के लिए काम किया।

  • अस्पृश्यता का अंत: अस्पृश्यता को भारतीय समाज का एक कलंक मानते हुए, उन्होंने इसे समाप्त करने के लिए अथक प्रयास किए। उन्होंने दलितों को मंदिरों में प्रवेश करने का अधिकार दिलाने के लिए आंदोलन चलाया और उन्हें सामाजिक स्वीकृति दिलाने के लिए काम किया।

  • दलित वर्गों का उत्थान: उन्होंने दलित वर्गों को शिक्षा, राजनीतिक भागीदारी और आर्थिक स्वतंत्रता के लिए प्रेरित किया। उन्होंने दलितों के लिए शिक्षा संस्थानों की स्थापना की, उन्हें राजनीतिक प्रतिनिधित्व दिलाने के लिए काम किया, और उनकी आर्थिक स्थिति को बेहतर बनाने के लिए योजनाएँ बनाईं।

26. मानव समाज में निरंतर सुधार प्रक्रिया क्यों जारी रहती है?

Ans: मानव समाज में निरंतर सुधार प्रक्रिया जारी रहने के अनेक कारण हैं, जिनमें से कुछ प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं:

1. मानवीय असंतोष: मनुष्य स्वभाविक रूप से असंतुष्ट प्राणी है। चाहे वह कितनी भी उन्नति कर ले, हमेशा कुछ न कुछ ऐसा होता है जो उसे बेहतर बनाने की इच्छा जगाता है। यह असंतोष ही उसे आगे बढ़ने और समाज में सुधार लाने के लिए प्रेरित करता है।

2. जिज्ञासा और खोज की भावना: मनुष्य में जन्मजात जिज्ञासा और खोज की भावना होती है। वह हमेशा नई चीजें जानना और सीखना चाहता है। यह जिज्ञासा उसे नए आविष्कारों और खोजों के लिए प्रेरित करती है, जो समाज में सुधार लाते हैं।

3. समस्याओं का समाधान: मानव जीवन में अनेक समस्याएं और चुनौतियां होती हैं। इन समस्याओं का समाधान खोजने के लिए मनुष्य लगातार प्रयास करता रहता है। इन प्रयासों के फलस्वरूप नई तकनीकों और विचारों का जन्म होता है, जो समाज को बेहतर बनाते हैं।

4. सामाजिक न्याय और समानता की भावना: मनुष्य में सामाजिक न्याय और समानता की भावना होती है। वह चाहता है कि समाज में सभी लोगों के साथ समान व्यवहार हो और सभी को समान अवसर प्राप्त हों। यह भावना उसे सामाजिक सुधारों के लिए प्रेरित करती है।

5. शिक्षा और ज्ञान का प्रसार: शिक्षा और ज्ञान का प्रसार लोगों को जागरूक बनाता है और उन्हें अपने अधिकारों और कर्तव्यों के प्रति सचेत करता है। यह उन्हें समाज में सुधार लाने के लिए प्रेरित करता है।

6. वैश्वीकरण: वैश्वीकरण के कारण दुनिया के विभिन्न देशों के बीच संपर्क और सहयोग बढ़ रहा है। यह विभिन्न संस्कृतियों और विचारों के आदान-प्रदान को बढ़ावा देता है, जो समाज में सुधार लाने में सहायक होता है।

वितान

1. सिल्वर वैडिंग कहानी के आधार पर बदलते भारतीय जीवन मूल्यो का वर्णन कीजिए | क्या बदलाव उचित है?

Ans: पुरानी पीढ़ी:

  • यशोधर बाबू:
    • पारंपरिक मूल्यों का पालन करते हैं।
    • सादगी, संयम, और त्याग में विश्वास रखते हैं।
    • परिवार के प्रति समर्पित हैं।
    • सामाजिक रीति-रिवाजों का सम्मान करते हैं।

नई पीढ़ी:

  • यशोधर बाबू के बच्चे:
    • आधुनिक विचारों वाले हैं।
    • भौतिकवाद और व्यक्तिगत स्वतंत्रता को महत्व देते हैं।
    • पाश्चात्य संस्कृति से प्रभावित हैं।
    • सामाजिक बंधनों से मुक्त रहना चाहते हैं।

क्या बदलाव उचित है-

  • यह कहना मुश्किल है कि बदलाव उचित है या नहीं।
  • हर युग में बदलाव आते हैं, और यह स्वाभाविक है।
  • कुछ बदलाव सकारात्मक होते हैं, जबकि कुछ नकारात्मक।
  • हमें सकारात्मक बदलावों को स्वीकार करना चाहिए और नकारात्मक बदलावों को रोकने का प्रयास करना चाहिए।

2. "घर में पार्टी के दिन पूजा समय को बढ़ाना", यशोधर बाबू के जीवन के द्वंद्व का चित्रण कीजिए?

Ans: "घर में पार्टी के दिन पूजा समय को बढ़ाना" - यशोधर बाबू के जीवन का द्वंद्व

यशोधर बाबू, "घर में पार्टी के दिन पूजा समय को बढ़ाना" कहानी के मुख्य पात्र हैं, जो संस्कारों और आधुनिकता के बीच फंसे हुए हैं।

पार्टी का आयोजन उनके पुत्र जयंत के जन्मदिन पर किया जाता है, जो आधुनिकता का प्रतीक है। जयंत पश्चिमी संस्कृति से प्रभावित है और पार्टी में डांस, संगीत और अन्य मनोरंजक गतिविधियों का इंतजाम करता है।

पूजा का समय यशोधर बाबू के लिए महत्वपूर्ण है, जो संस्कारों का प्रतीक हैं। वे पारंपरिक मूल्यों को मानते हैं और नियमित रूप से पूजा करते हैं।

द्वंद्व तब उत्पन्न होता है जब यशोधर बाबू पार्टी के दिन पूजा समय को बढ़ाना चाहते हैं। वे जयंत को समझाते हैं कि पूजा परिवार के लिए महत्वपूर्ण है और इसे पार्टी से पहले ही कर लेना चाहिए।

जयंत inicialmente अनिच्छुक होता है, लेकिन अंततः वह अपने पिता की बात मानता है।

यह द्वंद्व यशोधर बाबू के जीवन के कई पहलुओं को दर्शाता है:

  • परंपरा और आधुनिकता के बीच संघर्ष: यशोधर बाबू दोनों मूल्यों को महत्व देते हैं, लेकिन उन्हें संतुलित करना मुश्किल लगता है।
  • पीढ़ीगत अंतर: यशोधर बाबू और जयंत के विचारों और मूल्यों में अंतर है, जो उन्हें समझने में मुश्किल पैदा करता है।
  • व्यक्तिगत स्वतंत्रता और पारिवारिक जिम्मेदारी के बीच संतुलन: यशोधर बाबू जयंत को स्वतंत्रता देना चाहते हैं, लेकिन वे पारिवारिक परंपराओं को भी बनाए रखना चाहते हैं।

3. महिलाओं की स्थिति में हो रहे बदलाव को डायरी के पन्ने के आधार पर बताइये ।

Ans: अब महिलाओं की स्थिति में इसलिए अनेक बदलाव आ रहे हैं क्योंकि:

1. शिक्षा, काम और प्रगति ने औरतों की आँखें खोली हैं।
2. उन्हें पुरुषों की बराबरी का हक दिया रजा रहा है।
3. वे पूरी तरह स्वतंत्र आत्मनिर्भर बन रही हैं।

4. वाई.डी. पंत के आदर्श कौन थे और क्यों?

Ans: वाई.डी. पंत, जिनका पूरा नाम यशोधर बाबू पंत है, "सिल्वर वैडिंग" कहानी के मुख्य पात्र हैं।

Ans: -----------

5. लेखक की पढ़ाई के लिए माँ के द्वारा दिया गये योगदान को बताइये ?

Ans: लेखक की पढ़ाई में माँ का योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण रहा है। उन्होंने लेखक को शिक्षा के महत्व को समझाया और उन्हें पढ़ने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने लेखक के लिए एक अनुकूल वातावरण प्रदान किया और उन्हें अपनी पढ़ाई पर ध्यान केंद्रित करने में मदद की।

यहाँ कुछ विशिष्ट तरीके दिए गए हैं जिनसे लेखक की माँ ने उनकी पढ़ाई में योगदान दिया:

  • शिक्षा के महत्व को समझाना: लेखक की माँ ने उन्हें शिक्षा के महत्व को समझाया और उन्हें जीवन में सफल होने के लिए शिक्षा की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने लेखक को बताया कि शिक्षा उन्हें ज्ञान और कौशल प्रदान करेगी जो उन्हें अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने में मदद करेंगे।
  • पढ़ने के लिए प्रेरित करना: लेखक की माँ ने उन्हें पढ़ने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने उन्हें कहानियाँ सुनाईं और उन्हें किताबें पढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया। उन्होंने लेखक को एक पुस्तकालय का सदस्य बनवाया और उन्हें नियमित रूप से किताबें पढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया।
  • अनुकूल वातावरण प्रदान करना: लेखक की माँ ने उनके लिए एक अनुकूल वातावरण प्रदान किया। उन्होंने लेखक को एक शांत जगह दी जहाँ वे अध्ययन कर सकें और उन्हें पढ़ाई में ध्यान केंद्रित करने में मदद की। उन्होंने लेखक को आवश्यक अध्ययन सामग्री भी प्रदान की।
  • पढ़ाई पर ध्यान केंद्रित करने में मदद करना: लेखक की माँ ने उन्हें अपनी पढ़ाई पर ध्यान केंद्रित करने में मदद की। उन्होंने लेखक को टीवी देखने और वीडियो गेम खेलने जैसे विकर्षणों से दूर रहने के लिए प्रोत्साहित किया। उन्होंने लेखक को एक अध्ययन अनुसूची बनाने में भी मदद की और उन्हें अपनी पढ़ाई में अनुशासित रहने के लिए प्रोत्साहित किया।

6. सिंधु सभ्यता ताकत से शासित होने की अपेक्षा समझ से अनुशासित सभ्यता थी पुरातात्विक चिन्हों के आधार पर बताइये?

Ans: मुअनजो-दड़ो की खुदाई से मिली चीजों को वहाँ के अजायबघर में रखा गया है। वहाँ पर प्रदर्शित चीजों में औजार तो हैं, पर हथियार कोई नहीं है। मुअनजो-दड़ो क्या, हड़प्पा से लेकर हरियाणा तक समूची सिन्धु सभ्यता में हथियार उस तरह कहीं नहीं मिले हैं, जैसे किसी राजतन्त्र में होते हैं। इस बात को लेकर पुरातत्त्वविदों का कहना है कि वहाँ पर कोई राजमहल या मन्दिर नहीं हैं, राजाओं की समाधियाँ भी नहीं हैं।

यदि वहाँ पर राजसत्ता का कोई केन्द्र होता अर्थात् शक्ति का शासन होता, तो ये सब चीजें वहाँ पर होतीं। वहाँ पर नरेश के सिर का जो मुकुट मिला है, वह भी एकदम छोटा-सा है। इससे यह अर्थ निकलता है कि सिन्धु सभ्यता में अनुशासन जरूर था, परन्तु ताकत के बल पर नहीं था, अर्थात् वहाँ राजसत्ता का कोई केन्द्र नहीं था। सभी नागरिक स्वयं अनुशासित थे और नगर-योजना, साफ-सफाई जैसी सामाजिक व्यवस्थाओं में एकरूपता थी।

7. खेती का उन्नत रूप व पशु पालक सभ्यता के रूप में सिंधु सभ्यता के अवशेषों का वर्णन कीजिए ।

Ans: सिंधु सभ्यता: खेती का उन्नत रूप और पशु पालक सभ्यता

सिंधु सभ्यता, जो 3300-1300 ईसा पूर्व के बीच पनपी, न केवल भारत की सबसे पुरानी शहरी सभ्यता थी, बल्कि यह एक बेहद उन्नत खेती और पशु पालन वाली सभ्यता भी थी।

खेती का उन्नत रूप:

  • जौ, गेहूं, चना, और कपास जैसी फसलों का उत्पादन।
  • सिंचाई के लिए नहरों और कुओं का इस्तेमाल।
  • भंडारण के लिए अनाज के भंडार।
  • कृषि उपकरणों का उपयोग, जैसे कि हल, हार्वेस्टर, और चक्की।
  • कृषि के वैज्ञानिक ज्ञान का उपयोग, जैसे कि फसल चक्र और मिट्टी की उर्वरता।

पशु पालन:

  • गाय, बैल, भैंस, भेड़, और बकरी जैसे पशुओं का पालन।
  • दूध, मांस, और ऊन जैसे पशु उत्पादों का उपयोग।
  • चमड़े का उपयोग कपड़े और जूते बनाने के लिए।
  • पशुओं का उपयोग खेती, परिवहन, और युद्ध में किया जाता था।

8. टूटे फूटे खंडहर, सभ्यता और संस्कृति के इतिहास के साथ-साथ धड़कती जिंदगियों के अनछुए समयों का दस्तावेज होते हैं भावार्थ स्पष्ट कीजिए ?

Ans: जब कोई सभ्यता या संस्कृति काल के ग्रास में समा जाए तो पीछे टूटे-फूटे खंडहर छोड़ जाती है। इन्हीं टूटे-फूटे खंडहरों की खोज के आधार पर अमुक सभ्यता और संस्कृति के बारे में जानने का प्रयास किया जाता है। सिंधु घाटी की सभ्यता विश्व की प्राचीनतम सभ्यता थी किंतु वह भी एक दिन समाप्त हो गई। अपने पीछे छोड़ गई टूटी-फूटी इमारतों के आधार पर पुरातत्ववेत्ता कहते हैं कि वह एक सुसंस्कृत और विकसित संस्कृति थी, उस समय का समाज उसमें रहने वाले लोग कैसे थे इन सभी के बारे में खंडहरों के अध्ययन से ही जाना जा सकता है। कोई भी खंडहर और नगर में मिले अन्य अवशेषों और चीज़ों के आधार पर उस युग के लोगों के आचार-व्यवहार के बारे में पता चल जाता है। उस समय के लोगों का खान-पान भी यही वस्तुएँ बता देती हैं। इसलिए कहा गया है कि टूटे-फूटे खंडहर सभ्यता और संस्कृति के इतिहास के साथ-साथ धड़कती जिंदगियों के अनछुए समयों का भी दस्तावेज होते हैं।

9. डायरी ऐन की भावात्मक उथल पुथल का दस्तावेज है स्पष्ट कीजिए ।

Ans: ऐन फ्रैंक की डायरी से हमें उसके जीवन व तत्कालीन परिवेश का परिचय मिलता है। इसमें ऐतिहासिक दूब्रितीय विश्व युदृध की घटनाओ, नाजियों के अत्याचारों आदि का वर्णन मिलता है, साथ ही ऐन के निजी सुरद्र-दुख व भावनात्मक क्षण भी व्यक्त हुए हैं। ऐन ने यहूदी परिवारों की अकथनीय यंत्रणाआँ व पीडाओं का चित्रण किया है। लये अरसे तक गुप्त स्थानों पर छिपे रहना, गोलीबारी का आतंक, भूख, गरीबी, बीमारी, मानसिक तनाव, जानवरों जैसा जीवन, चारी का भय, नाजियों का आतंक आरि अमानवीय दृश्य मिलते हैं।

साथ ही ऐन का अपने परिवार, विशेषता माँ और सहयोगियों से मतभेद, डाँट फटकार, खीझ, निराशा, एकांत का दुख, दूसरों दवारा स्वय पर किए गए आक्षेप, प्रकृति के लिए बेचैनी, पीटर के साथ सबंध आदि का वर्णन मिलता है। उसके व्यक्तिगत सुख-दुख भी इन पृष्ठों में युदृध की विभीषिका में एकमेक हो गए हैँ। इस प्रकार यह डायरी एक ऐतिहासिक दस्तावेज होते हुए भी ऐन के व्यक्तिगत सुख-दुख और भावनात्मक उथल-पुथल को व्यक्त करती है।

10. अज्ञातवास के समय फ्रैंक तथा वान परिवार क्या क्या करते थे?

Ans: अज्ञातवास के समय फ्रैंक तथा वान परिवार की गतिविधियाँ-

फ्रैंक परिवार:

  • छिपे रहना: सबसे महत्वपूर्ण कार्य था नाजियों से छिपे रहना। वे दिन भर एक गुप्त स्थान में रहते थे, जो उनके कार्यालय के पीछे एक सीढ़ी से जुड़ा हुआ था।
  • समय बिताना: वे समय बिताने के लिए किताबें पढ़ते, लिखते, खेल खेलते, और आपस में बातें करते थे। ऐन फ्रैंक अपनी डायरी लिखती थी।
  • भोजन: उन्हें भोजन बाहरी लोगों से मिलता था, जो उन्हें चुपके से लाकर देते थे।
  • अध्ययन: ऐन और मार्गोट अपनी शिक्षा जारी रखने के लिए अध्ययन करती थीं।
  • आशावाद बनाए रखना: वे युद्ध समाप्त होने और अपनी सामान्य ज़िंदगी वापस पाने की आशा बनाए रखते थे।

वान परिवार:

  • सुरक्षा प्रदान करना: वान परिवार फ्रैंक परिवार को सुरक्षा प्रदान करता था। उन्होंने उन्हें अपने घर में छुपने की जगह दी और उन्हें भोजन और अन्य आवश्यक वस्तुएं प्रदान कीं।
  • सहानुभूति: वान परिवार फ्रैंक परिवार के प्रति सहानुभूति रखता था और उन्हें नाजियों से बचाने के लिए अपना सब कुछ करने को तैयार थे।
  • जोखिम: वान परिवार फ्रैंक परिवार को छुपाकर खुद को भी खतरे में डाल रहा था। यदि नाजियों को पता चल जाता, तो उन्हें भी गिरफ्तार कर लिया जाता।
  • आशावाद: वान परिवार भी युद्ध समाप्त होने और फ्रैंक परिवार के सुरक्षित रहने की आशा रखता था।

11. ऐन के डायरी लिखने के कारणों को लिखिए ।

Ans: ऐन के डायरी लिखने के कारण:

1. अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के लिए:

  • ऐन एक भावुक और संवेदनशील लड़की थी। डायरी में वह अपने विचारों, भावनाओं, और अनुभवों को खुलकर व्यक्त करती थी।
  • डायरी उसके लिए एक ऐसा माध्यम था जिसके जरिए वह अपने डर, अकेलापन, और उम्मीदों को साझा कर सकती थी।

2. एकांतवास के दौरान मनोरंजन के लिए:

  • ऐन और उसका परिवार द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान दो साल तक एक गुप्त आवास में छिपे हुए थे।
  • डायरी लिखना ऐन के लिए एकांतवास के दौरान मनोरंजन का एक साधन था।
  • यह उसे व्यस्त रखने और समय को गुजारने में मदद करता था।

3. अपने अनुभवों को दस्तावेजित करने के लिए:

  • ऐन एक बुद्धिमान लड़की थी और उसे इतिहास में रुचि थी।
  • वह जानती थी कि द्वितीय विश्व युद्ध एक महत्वपूर्ण घटना है और वह अपने अनुभवों को दस्तावेजित करना चाहती थी।
  • डायरी में उसने युद्ध के दौरान लोगों के जीवन पर पड़ने वाले प्रभावों का वर्णन किया है।

4. भविष्य के लिए एक रिकॉर्ड बनाने के लिए:

  • ऐन को उम्मीद थी कि युद्ध खत्म होने के बाद वह अपनी डायरी प्रकाशित करेगी।
  • वह चाहती थी कि लोग उसके अनुभवों से सीखें और भविष्य में ऐसी घटनाओं को दोहराने से बचें।

12. ग्रामीण जीवन शैली का चित्रण जूझ कहानी के आधार पर कीजिए ।

Ans: जूझ कहानी में ग्रामीण जीवन शैली का चित्रण-

जूझ कहानी जयशंकर प्रसाद द्वारा लिखित एक प्रसिद्ध कहानी है जो ग्रामीण जीवन शैली का ज्वलंत चित्रण प्रस्तुत करती है। इस कहानी में ग्रामीण जीवन के विभिन्न पहलुओं को बारीकी से दर्शाया गया है।

प्राकृतिक वातावरण: कहानी की शुरुआत ही प्राकृतिक वातावरण के सुंदर वर्णन से होती है। हरे-भरे खेत, खिलते हुए फूल, और मधुर पक्षियों की चहचहाहट ग्रामीण जीवन की शांति और सुंदरता को दर्शाते हैं।

सामाजिक जीवन: कहानी में ग्रामीणों के सामाजिक जीवन को भी दर्शाया गया है। वे एक दूसरे के प्रति सहानुभूति और सद्भाव रखते हैं। वे मिल-जुलकर रहते हैं और एक दूसरे की मदद करते हैं।

आर्थिक जीवन: कहानी में ग्रामीणों के आर्थिक जीवन का भी चित्रण किया गया है। वे कृषि पर निर्भर हैं और अपनी आजीविका के लिए खेती करते हैं। वे कठोर परिश्रमी और ईमानदार हैं।

सांस्कृतिक जीवन: कहानी में ग्रामीणों के सांस्कृतिक जीवन को भी दर्शाया गया है। वे त्योहारों और उत्सवों को बड़ी धूमधाम से मनाते हैं। वे लोकगीत गाते हैं और लोकनृत्य करते हैं।

शिक्षा: कहानी में ग्रामीण शिक्षा की स्थिति का भी चित्रण किया गया है। शिक्षा का प्रसार कम है और अधिकांश लोग निरक्षर हैं।

राजनीतिक जीवन: कहानी में ग्रामीण राजनीतिक जीवन का भी चित्रण किया गया है। गाँव का मुखिया एक शक्तिशाली व्यक्ति होता है और उसकी बात सभी मानते हैं।

14. "अतीत के दबे पाँव' के आधार पर चार दृश्यों का चित्रण कीजिए ।

Ans: 'अतीत के दबे पाँव' के आधार पर चार दृश्यों का चित्रण:

1. मुअनजोदड़ो का स्तूप:

  • 25 फुट ऊँचे चबूतरे पर स्थित विशाल स्तूप
  • ईंटों से निर्मित, समय के साथ क्षतिग्रस्त
  • स्तूप के चारों ओर भिक्षुओं के रहने के कमरे
  • स्तूप की भव्यता दर्शाती प्राचीन सभ्यता का गौरव

2. सिंधु घाटी सभ्यता का स्नानागार:

  • 40 फुट लंबा और 25 फुट चौड़ा विशाल कुंड
  • सात फुट गहरे कुंड में उतरने के लिए सीढ़ियाँ
  • उत्तर में आठ स्नानागारों की पंक्ति
  • स्नानागार की सफाई और व्यवस्था दर्शाती सभ्यता का स्वच्छता प्रेम

3. मुअनजोदड़ो का अजायबघर:

  • काला पड़ गया गेहूँ, तांबे और कांस्य के बर्तन
  • मुहरें, वाद्य, चाक पर बने विशाल मृद्भांड
  • दीये, तांबे का आईना, दो पाटन वाली चक्की
  • प्राचीन जीवनशैली और कला-कौशल का प्रदर्शन

4. खुदाई में मिले अवशेष:

  • मिट्टी के बर्तन, पत्थर के औजार, गहने
  • मूर्तियाँ, मुद्राएँ, हड्डियाँ, खिलौने
  • सिंधु घाटी सभ्यता के सामाजिक, आर्थिक और धार्मिक जीवन का चित्रण

 

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