JAC Board 12th Economics Exam 2024 : Top 50 (3 Marks) Questions with Answers (Short Answer Questions)

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झारखंड बोर्ड 12वीं की Economics (अर्थशास्त्र) (I.Sc, I.Com & I.A) परीक्षा 10 और 17 फरवरी, 2024 को निर्धारित है। तो यह आर्टिकल आपके लिए काफी ज्यादा महत्वपूर्ण साबित होने वाला है क्योंकि इस आर्टिकल में आपको बोर्ड परीक्षा के लिए वो ही प्रश्न दिए गए है जो बोर्ड पेपर में आने जा रहे है।
JAC Jharkhand Board क्लास 12th के Economics (Top 50 Short Answer Questions) से संबंधित महत्वपूर्ण लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर प्रश्न दिए गए है। महत्वपूर्ण प्रश्नों का एक संग्रह है जो बहुत ही अनुभवी शिक्षकों के द्वारा तैयार किये गए है। इसमें प्रत्येक महत्वपूर्ण प्रश्नों को छांट कर एकत्रित किया गया है, जो आपके पेपर के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है, जिससे कि विद्यार्थी कम समय में अच्छे अंक प्राप्त कर सके। सभी प्रश्नों के उत्तर साथ में दिए गए हैं।
झारखंड बोर्ड के सभी विद्यार्थिय अब आपकी Economics (अर्थशास्त्र) परीक्षा में कुछ ही घंटे बचे है, विद्यार्थी यहां पर से अपने बोर्ड एग्जाम की तैयारी बहुत ही आसानी से कर सकते हैं।
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महत्वपूर्ण लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर (VVI Short Question Answer)
व्यष्टि अर्थशास्त्र
प्रश्न 1. सीमांत उत्पादन संभावना क्या है ?
उत्तर - सीमान्त उत्पादन संभावना दो वस्तुओं के उन संयोगों को दर्शाती है, जिनका उत्पादन अर्थव्यवस्था के संसाधनों का पूर्ण रूप से उपयोग करने पर किया जाता है। यह एक वस्तु की एक अतिरिक्त इकाई प्राप्त करने की अवसर लागत है।
प्रश्न 2. अवसर लागत से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर - किसी साधन की अवसर लागत का अर्थ उसके दूसरे सर्वश्रेष्ठ वैकल्पिक प्रयोग से है। इसका अर्थ यह है कि साधन सीमित होते हैं जिनके वैकल्पिक प्रयोग हो सकते हैं। जब साधन का प्रयोग किसी एक वस्तु के उत्पादन में बढ़ाया जाता है तो दूसरी वस्तु का उत्पादन कम करना पड़ता है। इस प्रकार किसी एक वस्तु की अवसर लागत दूसरी वस्तु की वह मात्रा होती है जिसका त्याग करना पड़ता है। अवसर लागत को आर्थिक लागत भी कहते हैं।
प्रश्न 3. स्थानापत्र वस्तु एवं पूरक वस्तु को परिभाषित कीजिए ? उदाहरण दीजिये ।'
उत्तर - स्थानापन्न वस्तु :- स्थानापन्न वस्तु ऐसी वस्तुएं होती है जो एक दूसरे के स्थान पर प्रयोग की जाती है। जैसे चाय और कॉफी, चावल और रोटी।
पूरक वस्तु :- पूरक वस्तु ऐसी वस्तु होती है जिनका प्रयोग एक साथ होता है। जैसे कार एवं पेट्रोल, पेन एवं स्याही ।
प्रश्न 4. उत्पादन फलन की संकल्पना को समझाइए ।
उत्तर - उत्पादन फलन, आगतों तथा निर्गतों के मध्य का संबंध है। उपयोग में लाये गये आगतों की विभिन्न मात्राओं के लिए यह निर्गत की अधिकतम मात्रा प्रदान कर सकता है, जिसका उत्पादन किया जा सकता है।
प्रश्न 5. अल्पकाल तथा दीर्घकाल के संकल्पनाओं को समझाइए |
उत्तर - उत्पादन की प्रक्रिया में अल्पकाल तथा दीर्घकाल सामान्यतः समय अंतराल की एक छोटी अवधि एवं बड़ी अवधि को बतलाता है। अल्पकाल में एक फर्म सभी आगतों मे सभी उत्पादन करने के लिए, दीर्घकाल में दोनों कारकों आगतों में साथ-साथ परिवर्तन ला सकती है। अतः दीर्घकाल में कोई भी स्थिर आगत नहीं होता है। इस प्रकार, अल्पावधि तथा दीर्घावधि सामान्यतः सभी आगत परिवर्तनशील नहीं हैं अथवा है से संबंधित है।
प्रश्न 6. संतुलन को परिभाषित करें। किस स्थिति में बाजार को संतुलन अवस्था में कहा जाता है ?
उत्तर - संतुलन उस स्थिति को कहते हैं जब किसी प्रकार के परिवर्तन होने की प्रवृत्ति नहीं होती। मांग तथा पूर्ति की दशा में किसी में न तो मांग में और न ही पूर्ति में परिवर्तन लाने की प्रवृत्ति होती है और न ही कीमत में परिवर्तन होने की प्रवृत्ति होती है। बाजार उस समय दशा में संतुलन अवस्था में होता है जब बाजार में कुल मांग कुल पूर्ति के बराबर होगी। संतुलन बाजार में शून्य आधिक्य शून्य आधिक्य पूर्ति की स्थिति होती है।
प्रश्न 7. एक बाजार में फर्म की संतुलन संख्या किस प्रकार निर्धारित होती है, जब उन्हें निर्बाध प्रवेश तथा वहिर्गमन की अनुमति हो।
उत्तर - बाजार में फर्मों की संख्या निर्धारित करने के लिए संतुलन कीमत पर मांगी गई तथा बेची गई मात्रा को प्रत्येक फर्म की पूर्ति की गई मात्रा से विभाजित किया जाता है। सूत्र के रूप में फर्म की संख्या = संतुलन कीमत पर बेची तथा खरीदी गई मात्रा : प्रत्येक फर्म द्वारा पूर्ति की गई मात्रा ।
प्रश्न 8. एक पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाजार में श्रम की इष्टतम मात्रा किस प्रकार निर्धारित होती है ?
उत्तर - श्रम बाजार में श्रम की मांग फर्म द्वारा की जाती है। फर्म से अभिप्राय श्रमिकों के कार्य के घंटों से है न कि श्रमिकों की संख्या से । प्रत्येक फर्म का मुख्य उद्देश्य अधिकतम लाभ प्राप्त करना है। फर्म को अधिकतम लाभ तभी प्राप्त होता है जब मजदूरी श्रम की सीमांत आगम उत्पादकता के बराबर होती है। पूर्ण प्रतियोगिता बाजार में सीमांत आगम कीमत के बराबर होती और कीमत सीमांत उत्पाद के मूल्य के बराबर होती है। अतः श्रम के इष्टतम चयन की शर्त मजदूरी दर तथा सीमांत उत्पाद के मूल्य में समानता है।
प्रश्न 9. वस्तु बाजार में तथा श्रम बाजार में मांग तथा पूर्ति वक्र किस प्रकार भिन्न होती हैं ?
उत्तर - श्रमिकों की मजदूरी तथा वस्तुओं की कीमतों का निर्धारण मांग तथा पूर्ति शक्तियों के अंतर्गत एक जैसी विधि से होता है। श्रम बाजार तथा वस्तु बाजार में मूल अंतर उनकी मांग तथा पूर्ति के स्रोतों से है। वस्तु बाजार में वस्तु की मांग परिवारों द्वारा की जाती है परंतु वस्तु की पूर्ति फर्म करती हैं। जबकि श्रम बाजार में श्रम की पूर्ति परिवारों द्वारा की जाती है और फर्म श्रम की मांग करती है। वस्तु बाजार में वस्तु का अभिप्राय वस्तु की मात्रा से है जबकि श्रम बाजार में श्रम का अभिप्राय श्रमिकों द्वारा किए गए काम करने की घंटों से है न कि श्रमिकों की संख्या से ।
प्रश्न 10. अपूर्ण प्रतियोगिता की कोई तीन विशेषताएं बताइए ।
उत्तर - अपूर्ण प्रतियोगिता की तीन विशेषताएं निम्नांकित हैं:
1. बिक्री को बढ़ाने के लिए बिक्री लागतों की आवश्यकता होती है।
2. इसमें क्रेता तथा विक्रेताओं की संख्या तुलनात्मक रूप में कम होती है जो विभिन्न कीमतों पर भेदात्मक वस्तुएं बेचती है
3. मांग वक्र ऋणात्मक ढाल वाली होती है।
प्रश्न 11. तीन विभिन्न विधियों की सूची बनाइए जिनमें अल्पाधिकार फर्म व्यवहार कर सकता है।
उत्तर - 1. एक दूसरे को सहयोग करती हैं तथा उनकी नीतियों का एक लिखित औपचारिक अनुबंध होता है।
2. एक दूसरे को सहयोग नहीं करती।
3. एक दूसरे का सहयोग करती हैं तथा औपचारिक रूप से जुड़ी रहती हैं।
प्रश्न 12. आय अनम्य कीमत का क्या अभिप्राय है ? अल्पाधिकार के व्यवहार से इस प्रकार का निष्कर्ष कैसे निकल सकता है ?
उत्तर - अनम्य कीमत का अर्थ कीमत कठोरता से है मांग अथवा लागत में परिवर्तन होने पर भी कीमत में कोई परिवर्तन नहीं होता। अल्पाधिकार बाजार संरचना में कीमत कठोरता की प्रवृति होता है, क्योंकि:
1. फर्म को प्रतियोगी फर्म की प्रतिक्रिया का डर होता है। फर्म दीर्घकालीन उद्देश्यों से निर्देश प्राप्त होते हैं हुए वर्तमान कीमतों को बदलना नहीं चाहते ।
2. नई कीमतें निर्धारित करते समय नई कीमत सूची की छपाई, विज्ञापन लागत उपभोक्ताओं को सूचना प्रदान करने आदि लागतों को वहन करना पड़ता है परिणाम स्वरूप फर्म को मिलने वाली लाभ कम हो जाती है।
प्रश्न 13. एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा में दीर्घकाल के लिए किसी फर्म का संतुलन शून्य लाभ पर होने का कारण बताऐ।
उत्तर - दीर्घकाल में एकाधिकारी प्रतियोगिता मे फर्मो का लाभ शून्य होने का कारण फर्मो का स्वतंत्र प्रवेश तथा बाहर जाना होता है। यदि फर्में अल्पकाल में अधिक लाभ कमाते हैं, तो दीर्घकाल में फर्म का प्रवेश होगा । यदि अल्पकाल में फर्म को हानि उठानी पड़ती है तो फर्म उद्योग से बाहर जाएंगी। इसी कारण दीर्घकाल में फर्म के लाभ शून्य होता है।
प्रश्न 14. एक अर्थव्यवस्था की तीन मुख्य केंद्रीय समस्याएं क्या है?
उत्तर - अर्थव्यस्था की तीन केन्द्रीय समस्याएँ इस प्रकार हैं :-
(i) किन वस्तुओं का उत्पादन किया जाए और कितनी मात्रा में ? - इस समस्या का संबंध विभिन्न वस्तुओं के उत्पादन के बीच चुनाव की है, एक अर्थव्यवस्था में यह निश्चित करना होता है कि वह किन वस्तुओं का उत्पादन करें। जैसे उपभोग वस्तु या पूंजीगत वस्तु, युद्ध की वस्तु या सार्वजनिक वस्तु, शिक्षा पर व्यय या सैन्य सेवाओं पर व्यय।
(ii) वस्तुओं का उत्पादन कैसे करें ? - इस समस्या का संबंध उत्पादन की तकनीक के चुनाव से है। एक अर्थव्यवस्था को यह तय करना होता है कि वह उत्पादन की किस विधि का चुनाव करें- पूंजीगत तकनीक या श्रमगहन तकनीक। यहां तक कि कृषि कार्यों भी तकनीक के चुनाव की समस्या आती है विस्तृत खेती करें या गहन खेती करें। एक उत्पादक उसी उत्पादन विधि का चुनाव करता है जिसमें उसे न्यूनतम औसत उत्पादन लागत वहन करना पड़ता है।
(iii) उत्पादन किसके लिए करें ? अर्थव्यवस्था में उत्पादित वस्तुओं की कितनी मात्रा किसे प्राप्त होगी, अर्थव्यवस्था के उत्पादन को व्यक्ति विशेष में किस प्रकार विभाजित किया जाए। यह आय के वितरण पर निर्भर करता है। यदि आय समान रूप से विभाजित होगी, तो वस्तुएँ और सेवायें भी समान रूप से विभाजित होंगी। निर्णायक सिद्धान्त यह है कि वस्तुओं और सेवाओं को इस प्रकार वितरित करें कि बिना किसी को बदतर बनाये किसी अन्य को बेहतर बनाया जा सके।
प्रश्न 15. व्यष्टि अर्थशास्त्र तथा समष्टि अर्थशास्त्र में अंतर स्पष्ट करें।
उत्तर -
व्यष्टि अर्थशास्त्र | समष्टि अर्थशास्त्र |
i. व्यष्टि अर्थशास्त्र में व्यक्तिगत स्तर पर आर्थिक समस्या का अध्ययन किया जाता है, जैसे- एक उपभोक्ता, एक उत्पादक तथा एक फर्म आदि । | i. समष्टि अर्थशास्त्र में संपूर्ण अर्थव्यवस्था की आर्थिक इकाइयों का अध्ययन होता है, जैसे- राष्ट्रीय आय, कीमत स्तर, समग्र मांग तथा समग्र पूर्ति आदि । |
ii. व्यष्टि अर्थशास्त्र में व्यक्ति और व्यक्ति के व्यवहार का अध्ययन होता है। |
ii. समष्टि अर्थशास्त्र में समाज और समाज के व्यवहार का अध्ययन होता है। |
iii. इसका उद्देश्य साधनों के कुशल बंटवारे से संबंधित सिद्धांतों, समस्याओं एवं नीतियों का अध्ययन करना है। | iii. इसका उद्देश्य साधनों के पूर्ण रोजगार तथा उनके विकास से संबंधित सिद्धांतों, समस्याओं तथा नीतियों का अध्ययन करना है। |
iv. इसे कीमत सिद्धांत के नाम से भी जाना जाता है। | iv. इसे आय एवं रोजगार सिद्धांत के नाम से भी जाना जाता है। |
प्रश्न 16. अवसर लागत से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर - किसी साधन की अवसर लागत का अर्थ उसके दूसरे सर्वश्रेष्ठ वैकल्पिक प्रयोग से है। इसका अर्थ यह है कि साधन सीमित होते हैं जिनके वैकल्पिक प्रयोग हो सकते हैं। जब साधन का प्रयोग किसी एक वस्तु के उत्पादन में बढ़ाया जाता है तो दूसरी वस्तु का उत्पादन कम करना पड़ता है। इस प्रकार किसी एक वस्तु की अवसर लागत दूसरी वस्तु की वह मात्रा होती है जिसका त्याग करना पड़ता है। अवसर लागत को आर्थिक लागत भी कहते हैं।
प्रश्न 17. बाजार की परिभाषा दीजिए। उन चार तत्वों को लिखें जिनके आधार पर विभिन्न बाजारों को परिभाषित किया जाता है।
उत्तर - साधारण भाषा में बाजार एक विशेष स्थान को संबोधित करता है, जहां पर क्रेता तथा विक्रेता प्रत्यक्ष रूप में वस्तुएं खरीदने तथा बेचने के लिए मिलते हैं। किंतु, अर्थशास्त्र में बाजार किसी विशेष स्थान तक सीमित नहीं बल्कि उस संपूर्ण क्षेत्र में संबंध रखता है, जहां क्रेता तथा विक्रेता आपस में मिलते हैं उनका यह संबंध भौतिक रूप में अथवा संचार के विभिन्न साधनों जैसे ईमेल, इंटरनेट, मध्यस्थों आदि हो सकता है।
बाजार को निम्नांकित चार तत्वों के आधार पर परिभाषित किया जाता है -
1. क्षेत्र (Area) :- अर्थशास्त्र में बाजार उस सारे क्षेत्र से संबंध रखता है, जहां क्रेता तथा विक्रेता एक दूसरे से भौतिक रूप में अथवा संचार के किसी साधन से संबंध स्थापित कर सकते हैं।
2. वस्तु (Commodity) :- बाजार में किसी वस्तु का विनिमय होना आवश्यक है।
3. क्रेता तथा विक्रेता (Buyers and sellers) :- बाजार एक वस्तु के क्रेता तथा विक्रेताओं को संबोधित करता है यदि इनमें से एक भी पक्ष की अनुपस्थिति हो तो इसे बाजार नहीं कहा जा सकता ।
4. स्वतंत्र प्रतियोगिता (Free Competition) :- बाजार में क्रेता तथा विक्रेताओं में स्वतंत्र प्रतियोगिता होनी चाहिए। इनमें जब वस्तु का विनिमय होता है तो एक कीमत निर्धारित होती है।
प्रश्न 18. एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा में फर्म की मांग वक्र ऋणात्मक ढाल वाली क्यों होती है ?
उत्तर - एकाधिकारी प्रतियोगिता के अंतर्गत फर्म भेदात्मक उत्पाद बेचती है यह निकट प्रतिस्थापन वस्तु होती है, यह फर्म कीमत को कुछ सीमा तक प्रभावित कर सकती है ऐसी अवस्था में वह अपने उत्पाद का कम कीमत निर्धारित कर अधिक मात्रा में बेच सकती हैं और अधिक कीमत पर कम वस्तुएं अतः एकाधिकारी प्रतियोगिता में मांग वक्र ऋणात्मक ढाल वाली होती हैं।
प्रश्न 19. एकाधिकार के अंतर्गत "निकट प्रतिस्थापन का अभाव' विशेषता की प्रभाव को समझाइए ।
उत्तर - एकाधिकारी द्वारा वस्तु के उत्पादन के लिए कोई निकट प्रतिस्थापन नहीं होता है। एक एकाधिकारी एक निश्चित बाजार में सभी उत्पादों का उत्पादन करता है। एकाधिकारी ही कीमत निर्धारक होता है परंतु एकाधिकारी कीमत तथा मांगी गई मात्रा दोनों को एक साथ नियंत्रण नहीं कर सकता। यदि वह ऊंची कीमत का निर्धारण करता है, तो कम मात्रा की मांग की जाती है। इसके विपरीत कम कीमत पर अधिक मात्रा मांग की जाती है। एकाधिकार में बेलोचदार मांग वक्र होती है । औसत आगम वक्र ही मांग वक्र होता है। औसत आगम वक्र नीचे की ओर ढालू होता है सीमांत आगम वक्र, औसत आगम वक्र के नीचे होता है तथा इसकी ढाल औसत आगम वक्र से दोगुनी होता है।
प्रश्न 20. एकाधिकार तथा एकाधिकारी प्रतियोगिता में अंतर स्पष्ट करें ।
उत्तर - एकाधिकार :-
1. एक विक्रेता होता है।
2. फर्म के प्रवेश तथा बहिर्गमन पर प्रतिबंध होता है।
3. कीमत पर नियंत्रण होता है।
4. समरूप या विभेदीकृत वस्तुओं का उत्पादन किया जाता है।
एकाधिकारी प्रतियोगिता :-
1. एक से अधिक विक्रेता होते हैं।
2. फर्मों के प्रवेश तथा बहिर्गमन पर कोई प्रतिबंध नहीं होता।
3. कीमत पर सीमित नियंत्रण होता है।
4. निकट प्रतिस्थापन वस्तु का उत्पादन किया जाता है।
21. मुद्रा विनिमय का माध्यम है ? स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर - मुद्रा के माध्यम से एक वस्तु का दूसरी वस्तु में सरलतापूर्वक विनिमय किया जा सकता है। वस्तु विनिमय प्रणाली में आवश्यकता के दोहरे संयोग का अभाव पाया जाता था । मुद्रा इस कठिनाई को दूर कर दिया। आज किसी भी वस्तु को बेचकर मुद्रा प्राप्त की जा सकती है तथा आवश्यकतानुसार वस्तुओं को खरीद सकते हैं। इस प्रकार, मुद्रा विनिमय के माध्यम का कार्य करती है।
22. अल्पकालीन उत्पादन फलन और दीर्घकालीन उत्पादन फलन में अंतर स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर - अल्पकालीन उत्पादन फलन और दीर्घकालीन उत्पादन फलन में अंतर निम्नांकित बिंदुओं के आधार पर दर्शाया जा सकता है -
(i) समय अवधि अल्पकालीन उत्पादन फलन समय की एक छोटी अवधि से संबंधित होता है, जबकि दीर्घकालीन उत्पादन फलन समय की एक लंबी अवधि से संबंधित होता है।
(ii) परिवर्तनशील साधनों की संख्या अल्पकालीन उत्पादन फलन में केवल एक साधन परिवर्तनशील होता है तथा अन्य स्थिर होते हैं जबकि दीर्घकालीन उत्पादन फलन में उत्पादन के सभी साधन परिवर्तनशील होते हैं।
(iii) उत्पादन का पैमाना अल्पकालीन उत्पादन फलन में उत्पादन के पैमाने में कोई परिवर्तन नहीं होता जबकि दीर्घकालीन उत्पादन फलन में उत्पादन के पैमाने में परिवर्तन होता है।
23. मांग के नियम से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर - अन्य बातों के समान रहने पर, यदि किसी वस्तु की कीमत में कमी होती है तो उसकी मांग में वृद्धि होती है एवं कीमत में वृद्धि होने पर मांग में कमी आती है अर्थात कीमत तथा मांग में विपरीत संबंध होता है।
D=f(P)
जहां, D = वस्तु की मांग, f = फलन तथा P = वस्तु की कीमत ।
मांग के नियम की मान्यता
(i) उपभोक्ता की आय में कोई परिवर्तन न हो
(ii) संबंधित वस्तुओं की कीमतों में कोई परिवर्तन न हो
(iii) उपभोक्ता की रूचि स्थिर हो
(iv) सरकार की नीति में कोई परिवर्तन नहीं हो ।
24. सकल घरेलू उत्पाद (GDP) और सकल राष्ट्रीय उत्पाद (GNP) में क्या अंतर है ?
उत्तर -
सकल घरेलू उत्पाद (GDP) :-
(i) एक लेखा वर्ष में देश की घरेलू सीमा के अंदर उत्पादित सभी वस्तुओं तथा सेवाओं के मौद्रिक मूल्य को सकल घरेलू उत्पाद कहते हैं।
(ii) GDP = GNP विदेशों से प्राप्त शुद्ध साधन आय
(iii) यह संकीर्ण अवधारणा है।
सकल राष्ट्रीय उत्पाद (GNP) :-
(i) सकल राष्ट्रीय उत्पाद देश में सामान्य निवासियों द्वारा उत्पादित सभी वस्तुओं तथा सेवाओं का मूल्य होता है
(ii) GNP = GDP + विदेशों से प्राप्त शुद्ध साधन आय
(iii) यह विस्तृत अवधारणा है।
25. निम्नलिखित को परिभाषित कीजिए : a. रेपो दर b. वैधानिक तरलता अनुपात (SLR)
उत्तर -
a. रेपो दर :- ब्याज की वह दर, जिस पर वाणिज्य बैंक केंद्रीय बैंक से अल्पकालीन ऋण ले सकते हैं रेपो दर कहलाती है।
b. वैधानिक तरलता अनुपात (SLR) :- वैधानिक तरलता अनुपात के अंतर्गत प्रत्येक व्यापारिक बैंकों को अपनी कुल जमा का एक निश्चित प्रतिशत अपने पास तरल रूप में रखना पड़ता है।
समष्टि अर्थशास्त्र
प्रश्न 1. व्यष्टि और समष्टि अर्थशास्त्र में अंतर स्पष्ट करें।
उत्तर - व्यष्टि अर्थशास्त्र :-
1. इसका संबंध व्यक्तिगत आर्थिक इकाई से है। जैसे एक उपभोक्ता का अध्ययन, एक फर्म, एक उद्योग आदि ।
2. इसके मुख्य उपकरण मांग तथा पूर्ति हैं।
3. इसे कीमत - सिद्धांत के नाम से भी जाना जाता है।
4. इसके सिद्धांत तथा नियम के लिए पूर्ण रोजगार, पूर्ण प्रतियोगिता, सरकारी हस्तक्षेप की अनुपस्थिति आदि मान्यताएं स्वीकार की जाती है।
समष्टि अर्थशास्त्र :-
1. यह उन सिद्धांतों, समस्याओं तथा नीतियों का अध्ययन करता है जो पूर्ण रोजगार प्राप्त करने में सहायक होते हैं।
2. इसके मुख्य उकरण सामूहिक मांग, सामूहिक पूर्ति, सामूहिक बचत तथा निवेश आदी हैं।
3. इसे आय तथा रोजगार सिद्धांत के नाम से भी जाना जाता है।
4. इसमें साधनों का आवंटन, आय का वितरण को दी हुई माना जाता है।
प्रश्न 2. समष्टि अर्थशास्त्र के महत्व को लिखें।
उत्तर -
समष्टि अर्थशास्त्र के महत्व :-
1. आर्थिक सिद्धांतों के निर्माण में सहायक - 1929 के महामंदी के पहले के आर्थिक सिद्धांत व्यष्टि अर्थशास्त्र से संबंधित था। परंतु, आर्थिक महामंदी के पश्चात जब नए सिद्धांत प्रचलन में आए तो व्यक्तिगत आर्थिक सिद्धांतों का महत्व कम हो गया। मंदी, बेरोजगारी, राष्ट्रीय आय सामान्य मजदूरी स्तर, आदि के अध्ययन के लिए समष्टि अर्थशास्त्र की भूमिका बढ़ गई।
2. आर्थिक नीतियों के निर्माण में सहायक: प्रत्येक अर्थव्यवस्था में ऐसी समस्याएं पाई जाती है जिनका संबंध संपूर्ण अर्थव्यवस्था साथ होता है। जैसे बेरोजगारी की समस्या, मुद्रास्फीति का नियंत्रण, राष्ट्रीय आय के स्तर में वृद्धि आदि। इस प्रकार की समस्याओं क अध्ययन तथा नीति निर्माण समष्टि अर्थशास्त्र में किया जाता है।
प्रश्न 3. पूंजीवादी अर्थव्यवस्था की महत्वपूर्ण विशेषताएं क्या हैं ?
उत्तर -
1. उत्पादन के साधनों पर निजी स्वामित्व होता है।
2. बाजार में निर्गत को बेचने के लिए ही उत्पादन किया जाता है।
3. श्रम सेवाओं का क्रय विक्रय एक कीमत पर होता है। इस कीमत को मजदूरी दर कहा जाता है।
4. उत्पादन का एकमात्र उद्देश्य लाभ अर्जित करना होता है।
5. उत्पत्ति के साधनों पर जिन व्यक्तियों का अधिकार होता है वे सरकारी नियंत्रण से पूर्णतः मुक्त होते हैं।
प्रश्न 4. राष्ट्रीय आय लेखा से आप क्या समझते हैं ? इसका महत्व बताइए |
उत्तर - सभी देश अपनी राष्ट्रीय आय से संबंधित आंकड़ों का जो व्यवस्थित हिसाब-किताब रखता है उसे राष्ट्रीय आय लेखा कहा जाता है। यह व्यवसाय लेखा की तरह ही दोहरी अंकन प्रणाली के आधार पर तैयार किया जाता है। राष्ट्रीय आय की तीन पहलुओं (1) उत्पादित अंतिम वस्तुओं और सेवाओं का मूल्य (2) साधन आय का योग तथा (3) कुल अंतिम व्यय संबंधित विवरणों को राष्ट्रीय आय लेखा कहा जाता है। राष्ट्रीय आय लेखांकन के महत्व - राष्ट्रीय आय लेखांकन का उपयोग सामान्यतः निम्नांकित कार्यों में किया जाता है :-
1. देश की राष्ट्रीय आय का अनुमान लगाने में।
2. राष्ट्रीय आय में प्रत्येक क्षेत्र के अंश का अनुमान लगाने में।
3. विभिन्न देशों की राष्ट्रीय आय की तुलना करने में।
4. देश की आर्थिक विकास के स्तर की व्याख्या तथा वर्णन करने में।
5. राष्ट्रीय आय में उत्पादन के प्रत्येक साधन के योगदान का अनुमान लगाने में।
प्रश्न 5. राष्ट्रीय आय तथा निजी आय में अंतर बतायें।
उत्तर -
राष्ट्रीय आय (National Income) :-
1. यह एक देश के सामान्य निवासियों की आय है।
2. इसमें निजी एवं सार्वजनिक क्षेत्रों में उपार्जित आय को शामिल किया जाता है।
3. इसमें राष्ट्रीय ऋण पर ब्याज शामिल नहीं किया जाता।
निजी आय (Private Income) :-
1. यह एक देश के निजी क्षेत्र की आय है।
2. इसमें केवल निजी क्षेत्र की आय शामिल की जाती है।
3. इसमें राष्ट्रीय ऋण पर ब्याज शामिल किया जाता है।
प्रश्न 6. वैयक्तिक आय क्या है ?
उत्तर - सभी व्यक्तियों की सभी स्रोतों से प्राप्त आय को वैयक्तिक आय कहते हैं। इसमें साधन आय और हस्तांतरण आय दोनों प्रकार की आय शामिल होती हैं। चाहे देश की घरेलू सीमाओं में रहकर प्राप्त हुई हो या विदेशों से । इसमें निगम कर तथा अवितरित लाभ शामिल नहीं किया जाता। इसकी गणना निम्न सूत्रों की सहायता से की जाती है - वैयक्तिक आय = राष्ट्रीय आय निजी आय - निगम कर- अवितरित लाभ ।
प्रश्न 7. प्रवाह तथा स्टॉक (Stock) में क्या अंतर है ?
उत्तर -
प्रवाह (Flow) :-
1. प्रवाह को समय की एक निश्चित अवधि के संदर्भ में मापा जाता है।
2. प्रवाह में समय की अवधि होती है।
3. यह एक गतिशील अवधारणा है।
स्टॉक (Stock) :-
1. स्टॉक को निश्चित बिंदु पर मापा जाता है।
2. स्टॉक की समय अवधि नहीं होती।
3. यह एक स्थिर अवधारणा है।
प्रश्न 8. चालू कीमतों पर राष्ट्रीय आय तथा स्थिर कीमतों पर राष्ट्रीय आय में अंतर स्पष्ट करें।
उत्तर -
चालू कीमतों पर राष्ट्रीय आय :-
1. चालू कीमतों पर राष्ट्रीय आय को मौद्रिक राष्ट्रीय आय कहा जाता है।
2. इसमें राष्ट्रीय आय की गणना प्रचलित कीमतों पर की जाती है।
3. यह राष्ट्रीय आय दो कारकों से प्रभावित होती है (क) कीमतों में परिवर्तन तथा (ख) वस्तुओं एवं सेवाओं के उत्पाद में परिवर्तन |
स्थिर कीमतों पर राष्ट्रीय आय :-
1. स्थिर कीमतों पर राष्ट्रीय आय को वास्तविक राष्ट्रीय आय कहा जाता है।
2. इसमें राष्ट्रीय आय की गणना आधार वर्ष की प्रचलित कीमतों पर की जाती है।
3. यह राष्ट्रीय आय केवल वस्तुओं तथा सेवाओं के उत्पादन में परिवर्तन से प्रभावित होती हैं।
प्रश्न 9. आदेश मुद्रा (Fiat money) तथा न्यास मुद्रा (Fiduciary money) क्या है ?
उत्तर -
आदेश मुद्रा :- वह मुद्रा जो सरकार के आदेश द्वारा जारी की जाती है आदेश मुद्रा कहलाती है। इसमें सभी नोट तथा सिक्के सम्मिलित होते हैं ।
न्यास मुद्रा :- वह मुद्रा होती है जो विनिमय के माध्यम के रूप में स्वीकार की जाती है क्योंकि यह प्राप्तकर्ता तथा अदाकर्ता के बीच परस्पर विश्वास पर आधारित होती है। जैसे- चेक एक न्यास मुद्रा है।
प्रश्न 10. पूर्ण- काय मुद्रा (Full Bodied Money) तथा साख मुद्रा (Credit Money) क्या है ?
उत्तर -
पूर्ण - काय मुद्रा :- इससे अभिप्राय उस मुद्रा से है जो सिक्कों के रूप में होती है जब यह मुद्रा जारी की जाती है तो इनका वस्तु मूल्य मौद्रिक मूल्य के बराबर होता है।
साख मुद्रा :- इससे अभिप्राय उस मुद्रा से है जिसका मौद्रिक मूल्य वस्तु मूल्य से अधिक होता है।
प्रश्न 11. अंतिम ऋण दाता के रूप में केंद्रीय बैंक का कार्य समझाएं ?
उत्तर - केंद्रीय बैंक देश के अन्य बैंकों का अंतिम ऋण दाता के रूप में कार्य करता है । इसका अर्थ है कि जब एक बैंक पर वित्तीय संकट आते हैं और सहायता के अन्य रास्ते बंद हो जाते हैं, तब केंद्रीय बैंक उस बैंक को ऋण देकर उसे वित्तीय संकट से बाहर निकालते हैं। अंतिम ऋणदाता के रूप में केंद्रीय बैंक, एक देश की संपूर्ण बैंकिंग प्रणाली को नियंत्रित करता है। इस कार्य का मुख्य उद्देश्य यह है कि धन के अभाव में किसी लेनदेन में रुकावट उत्पन्न न हो ।
प्रश्न 12. 'खुले बाजार की क्रियायें पर टिप्पणी लिखें ?
उत्तर - खुले बाजार की क्रियाओं के अंतर्गत केंद्रीय बैंक बाजार में सरकारी प्रतिभूतियों का क्रय विक्रय करता है । जब केंद्रीय बैंक प्रतिभूतियों को बेचता है तो मुद्रा बाजार में मुद्रा की मात्रा कम होने लगती है, और जब बाजार से केंद्रीय बैंक प्रतिभूतियों को खरीदता है तो मुद्रा बाजार में मुद्रा की मात्रा बढ़ जाती है। जब मुद्रा बाजार में मुद्रा की अधिकता (अर्थात मुद्रास्फीति) होती है, तब केंद्रीय बैंक खुले बाजार में प्रतिभूतियां बेचना प्रारंभ कर देता है। जनता अपनी नकदी अथवा बचत कोषों से केंद्रीय बैंक द्वारा बेचे जाने वाली प्रतिभूतियों का क्रय करना शुरू कर देती है। इस प्रकार नकदी केंद्रीय बैंक को लौट जाती है और प्रचलित मुद्रा की मात्रा कम हो जाती है जिससे बैंकों के नकद कोषों में कमी आ जाती है।
प्रश्न 13. ऐच्छिक एवं अनैच्छिक बेरोजगारी में अंतर स्पष्ट करें ।
उत्तर -
ऐच्छिक एवं अनैच्छिक बेरोजगारी में अंतर :-
ऐच्छिक बेरोजगारी :- यह बेरोजगारी की वह स्थिति होती है जिसमें बाजार में प्रचलित मजदूरी दर पर काम उपलब्ध होता है किंतु काम करने योग्य व्यक्ति काम करने के लिए तैयार नहीं होते हैं।
अनैच्छिक बेरोजगारी :- बेरोजगारी की ऐसी स्थिति होती है जिसमें लोग काम करने के योग्य होते हैं और प्रचलित मजदूरी दर पर काम करने के लिए तैयार होते हैं किंतु उन्हें काम नहीं मिलता है।
प्रश्न 14. राजस्व प्राप्तियाँ क्या हैं ?
उत्तर - सरकार की वे मौदिक प्राप्तियाँ जो न तो देयताओं का निर्माण करती है और न ही परिसंपत्तियों को कम करती है, राजस्व प्राप्तियाँ कहलाती हैं। राजस्व प्राप्तियाँ सरकार की बजट प्राप्तियों का एक मुख्य भाग है। राजस्व प्राप्तियों से सरकार को कोई देयता उत्पन्न नहीं होती है। उदा० - कर अर्थात् सरकार कर के बदले कुछ देने के लिए बाध्य नहीं होती है। राजस्व प्राप्तियों से सरकार की परिसंपत्तियों में कोई कमी नहीं होती है। उदा० - कर प्राप्तियाँ तथा गैर-कर प्राप्तियाँ। इस प्रकार राजस्व प्राप्तियाँ सरकार की वे मौदिक प्राप्तियाँ जो न तो देयताओं का निर्माण करती है और न ही परिसंपत्तियों को कम करती है।
प्रश्न 15. पूंजीगत प्राप्तियाँ क्या हैं ?
उत्तर - सरकार की वे मौद्रिक प्राप्तियाँ जो देयताओं का निर्माण करती है, और जो परिसंपत्तियों को कम करती है, पूँजीगत प्राप्तियाँ कहलाती है। पूँजीगत प्राप्तियाँ सरकार की बजेट प्राप्तियों का एक मुख्य भाग है। पूँजीगत प्राप्तियों से सरकार की देयता उत्पन्न होती है। उदा० - सरकार द्वारा लिये जाने वाले ऋण देयता हैं। इन्हें वापस किया जाता है। इसके अतिरिक्त पूँजीगत प्राप्तियों से सरकार की परिसंपत्ति कम होती है।उदा० सरकार द्वारा किसी सार्वजनिक उद्योग के शेयर बेचने से सरकार की परिसंपत्ति कम हो जाती है। इस प्रकार पूंजीगत प्राप्तियाँ सरकार की वे मौद्रिक प्राप्तियाँ जो देयताओं का निर्माण करती है और जो परिसंपत्तियों को कम करती है।
प्रश्न 16. व्यापार शेष तथा चालु खाता शेष में अंतर बतायें।
उत्तर - एक देश के निर्यात तथा आयात के मूल्य में अन्तर को व्यापार शेष कहते हैं। व्यापार शेष में केवल दृश्य मदों का निर्यात तथा आयात शामिल किया जाता है। परन्तु, भुगतान शेष का चालु खाता अल्पकालीन वास्तविक सौदों को दर्शाता है। व्यापार शेष में अदृश्य दें तथा शुद्ध हस्तांतरण जोड़ कर चालु खाता शेष प्राप्त किया जाता है। समीकरण के रूप में चालू खाते का शेष = व्यापार शेष + अदृश्य व्यापार शेष + शुद्ध हस्तान्तरण ।
प्रश्न 17. मुद्रा का अवमूल्यन और मूल्यहास में अन्तर स्पष्ट करें।
उत्तर -
मुद्रा का अवमूल्यन और मूल्यहास में अन्तर :-
अवमूल्यन :- जब एक देश द्वारा अपने देश की मुद्रा का मूल्य दूसरे देश की मुद्रा के मूल्य से कम कर दिया जाता है, तो उसे अवमूल्यन कहते हैं । ऐसा प्रायः देश के मौद्रिक प्राधिकार के द्वारा किया जाता है। एक देश द्वारा अवमूल्यन निर्यात को बढ़ाने तथा आयात को कम करने के उद्देश्य से किया जाता है।
मूल्यहास :- जब किसी देश की मुद्रा का सापेक्ष मूल्य घट जाता है, तो उसे मूल्यहास कहा जाता है। यह बाजार की शक्ति पर निर्भर करता है। इसमें सरकार की भूमिका नहीं होती हैं।
प्रश्न 18. पूँजी खाते की मुख्य मदों को लिखें।
उत्तर -
1. निजी ऋण
2. बैंक पूँजी का प्रवाह
3. सोने का प्रवाह
4. सरकारी पूँजी
5. मौद्रिक सोने का सुरक्षित भण्डार आदि ।
प्रश्न 19. चालू खाते पर भुगतान शेष की मुख्य तीन मदों को लिखें।
उत्तर - 1. वस्तुएँ (दृश्य) 2. सेवाएँ (अदृश्य) 3. हस्तान्तरण (उपहार, दान)।
प्रश्न 20. व्यापार शेष क्या है ?
उत्तर - वस्तुओं के निर्यात मूल्य तथा आयात मूल्य का अन्तर व्यापार शेष कहलाता है। सूत्र के रूप में, व्यापार शेष = दृश्य वस्तुओं का निर्यात मूल्य- दृश्य वस्तुओं का आयात मूल्य ।
प्रश्न 21. व्यापार शेष कब आधिक्य को दर्शाता है ?
उत्तर - व्यापार शेष आधिक्य उस स्थिति में पाया जाता है जब निर्यात वस्तुओं का मूल्य, आयात वस्तुओं के मूल्य से अधिक होता है। इसे अनुकूल व्यापार शेष भी कहा जाता है।
प्रश्न 22. असंतुलित भुगतान शेष को ठीक करने के उपाय बताइए।
उत्तर -
असंतुलित भुगतान शेष को ठीक करने के उपाय निम्न है :-
1. स्वर्ण का निर्यात करके।
2. विदेशों से ऋण या अनुदान लेकर।
3. देश में संचित कोष से मुद्रा निकालकर ।
4. विदेशों में स्थित संपत्ति का बिक्री करके ।
प्रश्न 23. विदेशी मुद्रा की मांग के दो स्रोत तथा पूर्ति के दो स्रोत लिखिए।
उत्तर -
मांग के स्रोत :-
1. विदेशों से वस्तुओं तथा सेवाओं का आयात ।
2 दूसरे देशों में उपहार, दान आदि के रूप में हस्तांतरण भुगतान करना।
पूर्ति के स्रोत :-
1. विदेशों को वस्तुओं तथा सेवाओं का निर्यात तथा
2. विदेशों से दान, उपहार आदि के रूप में हस्तांतरण प्राप्तियां ।
प्रश्न 24. विदेशी मुद्रा की मांग क्यों की जाती है ?
उत्तर -
निम्न कारणों से विदेशी मुद्रा की मांग की जाती है :-
1. अन्य देशों से वस्तुएं और सेवाएं खरीदने के लिए ।
2. किसी देश में वित्तीय परिसंपत्तियों खरीदने के लिए ।
3. विदेशों को उपहार भेजने के लिए।
प्रश्न 25. विदेशी मुद्रा बाजार की परिभाषा दें ।
उत्तर - जिस बाजार में विदेशी मुद्राओं का लेन-देन होता है, उसे विदेशी विनिमय बाजार कहते हैं। इसमें विदेशी विनिमय दर विदेशी विनिमय की मांग तथा पूर्ति द्वारा निर्धारित होती है।
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