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UP Board Hindi Class 12th Exam 2024 : VVI Most Important Question Answers- रटलो पेपर से पहले, इस से बाहर कुछ नहीं

UP Board Hindi Class 12th Exam 2024 : VVI Most Important Question Answers- रटलो पेपर से पहले, इस से बाहर कुछ नहीं

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UP बोर्ड 12वीं की सामान्य हिंदी परीक्षा 22 फरवरी, 2024 को निर्धारित है। तो यह आर्टिकल आपके लिए काफी ज्यादा महत्वपूर्ण साबित होने वाला है क्योंकि इस आर्टिकल में आपको बोर्ड परीक्षा के लिए वो ही प्रश्न दिए गए है जो बोर्ड पेपर में आने जा रहे है।

यहाँ पर UP Board क्लास 12th के सामान्य हिंदी (UP Board Hindi Class 12th Exam 2024 VVI Most Important Question) से संबंधित महत्वपूर्ण प्रश्न दिए गए है। महत्वपूर्ण प्रश्नों का एक संग्रह है जो बहुत ही अनुभवी शिक्षकों के द्वारा तैयार किये गए है। इसमें प्रत्येक महत्वपूर्ण प्रश्नों को छांट कर एकत्रित किया गया है, जिससे कि विद्यार्थी कम समय में अच्छे अंक प्राप्त कर सके।

UP Board Hindi Class 12th Exam 2024 VVI Most Important Question

गद्य

1. पृथिवी के विशाल प्रांगण में सब जातियों के लिए समान क्षेत्र है। समन्वय के मार्ग से भरपूर प्रगति और उन्नति करने का सबको एक जैसा अधिकार है। किसी जन को पीछे छोड़कर राष्ट्र आगे नहीं बढ़ सकता। अतएव राष्ट्र के प्रत्येक अंग की सुध हमें लेनी होगी। राष्ट्र के शरीर के एक भाग में यदि अंधकार और निर्बलता का निवास है तो समग्र राष्ट्र का स्वास्थ्य उतने अंश में असमर्थ रहेगा। [2023 (ZH)]
(क) पाठ का शीर्षक एवं लेखक का नाम लिखिए।
(ख) राष्ट्र के प्रत्येक अंग की सुध हमें क्यों लेनी चाहिए?
(ग) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(घ) राष्ट्र किसे पीछे छोड़कर आगे नहीं बढ़ सकता है?
(ङ) समन्वय के मार्ग से क्या प्राप्त हो सकता है?

उत्तर-  (क) प्रस्तुत गद्यांश 'राष्ट्र का स्वरूप' पाठ से लिया गया है, तथा इसके लेखक 'वासुदेव शरण अग्रवाल' हैं।
(ख) किसी जन को पीछे छोड़कर राष्ट्र आगे नहीं बढ़ सकता, इसलिए राष्ट्र के प्रत्येक अंग की सुध हमें लेनी चाहिए।
(ग) वासुदेव शरण अग्रवाल जी अपने निबन्ध 'राष्ट्र के स्वरूप' के माध्यम से कहते हैं कि संसार के समस्त प्राणियों को प्रगति व उन्नति करने के लिए मातृभूमि समान अवसर प्रदान करती है।
तथा इनकी समन्वय की भावना ही राष्ट्र की उन्नति व प्रगति का आधार होती है।
(घ) राष्ट्र किसी जन को छोड़कर आगे नहीं बढ़ सकता है।
(ङ) समन्वय के मार्ग से भरपूर प्रगति और उन्नति प्राप्त हो सकती है। जिससे राष्ट्र के विकास में योगदान मिलता है।

2. यह प्रणाम-भाव ही भूमि और जन का दृढ़ बन्धन है। इसी दृढ़भित्ति पर राष्ट्र का भवन तैयार किया जाता है। इसी दृढ़ चट्टान पर राष्ट्र का चिर जीवन आश्रित रहता है। इसी मर्यादा को मानकर राष्ट्र के प्रति मनुष्यों के कर्त्तव्य और अधिकारों का उदय होता है। जो जन पृथिवी के
साथ माता और पुत्र के संबंध को स्वीकार करता है, उसे ही पृथिवी के वरदानों में भाग पाने का अधिकार है। माता के प्रति अनुराग और सेवाभाव पुत्र का स्वाभाविक कर्तव्य है । वह एक निष्कारण धर्म है। स्वार्थ के लिए पुत्र का माता के प्रति प्रेम, पुत्र के अधःपतन को सूचित
करता है। [2023(ZM)]
(क) उपर्युक्त गद्यांश के पाठ और उसके लेखक का नाम लिखिए।
(ख) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए ।
(ग) स्वार्थ के लिए पुत्र का माता के प्रति प्रेम क्या सूचित करता है?
(घ) भूमि और जन का दृढ़-बंधन क्या है?
(ङ) 'दृढ़भित्ति' और 'निष्कारण' शब्दों का अर्थ लिखिए।

उत्तर - (क) उक्त गद्यांश का शीर्षक है, 'राष्ट्र का स्वरूप' और इसके लेखक वासुदेव शरण अग्रवाल हैं। 'राष्ट्र का स्वरूप' निबन्ध वासुदेवशरण अग्रवाल द्वारा रचित 'पृथिवी पुत्र' नामक निबन्ध संग्रह में संकलित है।
(ख) रेखांकित अंश के आधार पर लेखक का कहना है कि जो मनुष्य (जन) इस धरा को अपनी माता मानकर उसका सत्कार करते हैं, उन्हें ही उसक सम्पत्ति अर्थात पृथ्वी के गर्भ में संचित कोष को पाने का अधिकार होता है। वही जन पृथ्वी के वरदानों में भाग पाने अधिकारी है।
(ग) स्वार्थ के लिए पुत्र का माता के प्रति प्रेम, पुत्र सूचित करता है। के अधःपतन को
(घ) यह प्रणाम - भाव ही भूमि और जन का दृढ़-बन्धन है।
(ङ) 'दृढभित्ति' का अर्थ है, मजबूत दीवार तथा निष्कारण' का अर्थ है, बिना किसी कारण के ।

3. राष्ट्र का तीसरा अंग जन की संस्कृति है। मनुष्यों ने युगों-युगों में जिस सभ्यता का निर्माण किया है वही उसके जीवन की श्वास-प्रश्वास है। बिना संस्कृति के जन की कल्पना कबंध मात्र है; संस्कृति ही जन का मस्तिष्क है। संस्कृति के विकास और अभ्युदय के द्वारा ही राष्ट्र की वृद्धि संभव है। राष्ट्र के समग्र रूप में भूमि और जन के साथ-साथ जन की संस्कृति का महत्वपूर्ण स्थान है। [2022(DR)]
(क) राष्ट्र की वृद्धि कैसे संभव है?
(ख) संस्कृति जन का मस्तिष्क किस प्रकार है?
(ग) 'जन की संस्कृति' से आप क्या समझते हैं?
(घ) 'विकास' और 'अभ्युदय' का अर्थ स्पष्ट कीजिए ।
(ड़) दिये गये गद्यांश का शीर्षक एवं लेखक का नाम लिखिए।

उत्तर:(क) संस्कृति के विकास और अभ्युदय के द्वारा राष्ट्र की वृद्धि सम्भव है।
(ख) राष्ट्र की उन्नति एवं विकास में संस्कृति का महत्वपूर्ण स्थान है। क्योंकि संस्कृति के विकास एवं अभ्युदय के फलस्वरूप राष्ट्र के लोगों के मस्तिष्क का विकास होता है, इसीलिए इसे जन का मस्तिष्क कहा जाता है।
(ग) जन की संस्कृति से आशय पारस्परिक सहिष्णुता एवं समन्वय की भावना से है। यही हमारे बीच पारस्परिक प्रेम एवं भाईचारे का स्रोत है और इसी से राष्ट्रीयता की भावना को बल मिलता है।
(घ) विकास - विकास का अर्थ 'बढ़ना' है। यह समग्र, क्रमिक एवं प्रगतिशील होता है। शाब्दिक अर्थ में कहा जाए तो विकास एक प्रगतिशील परिवर्तन है। अभ्युदय - अभ्युदय का अर्थ उत्तरोत्तर वृद्धि या लाभ होता है।
(ड़) उपर्युक्त गद्यांश 'राष्ट्र का स्वरूप' शीर्षक निबंध से अवतरित है, इसके लेखक 'डा. वासुदेवशरण अग्रवाल' हैं।

4. जन का प्रवाह अनन्त होता है। सहस्रों वर्षों से भूमि के साथ राष्ट्रीय जन ने तादात्म्य प्राप्त किया है। जब तक सूर्य की रश्मियाँ नित्य प्रातः काल भुवन को अमृत से भर देती हैं, तब तक राष्ट्रीय जन का जीवन भी अमर है। इतिहास के अनेक उतार-चढ़ाव पार करने के बाद भी राष्ट्र निवासी जन नयी उठती लहरों से आगे बढ़ने के लिए अजर-अमर हैं। जन का संततवाही जीवन नदी के प्रवाह की तरह है, जिसमें कर्म और श्रम के द्वारा उत्थान के अनेक घाटों का निर्माण करना होता है। [2022 (DU)]
(क) पाठ का शीर्षक और लेखक का नाम लिखिए।
(ख) जन का प्रवाह का आशय लिखिए।
(ग) भूमि के साथ किसने तादात्म्य प्राप्त किया है?
(घ) जन का जीवन किस तरह है?
(ङ) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।

उत्तर : (क) प्रस्तुत गद्यांश राष्ट्र का स्वरूप' नामक शीर्षक से उद्धृत है। इसके लेखक डॉ. वासुदेवशरण अग्रवाल हैं।
(ख) जन प्रवाह का आशय मानव सभ्यता के अस्तित्व से है।
(ग) भूमि के साथ राष्ट्रीय जन ने तादात्म्य स्थापित किया ।
(घ) जन का जीवन नदी के प्रवाह की तरह है, जिसमें कर्म और श्रम के द्वारा उत्थान के अनेक घाटों का निर्माण करना होता है।
(ङ) रेखांकित अंश की व्याख्या- रेखांकित अंश में लेखक का कथन है कि जन का प्रवाह अनन्त है नदी के प्रवाह के समान राष्ट्र के निवासी भी अनन्त काल से भूमि अथवा राष्ट्र में आते रहते हैं और अनन्तकाल तक आते रहेगें। यह कारण है कि हजारों वर्षों से भूमि के साथ वहाँ के जन का भी सम्बन्ध बना हुआ है।

5. मातृभूमि पर निवास करने वाले मनुष्य राष्ट्र का दूसरा अंग हैं। पृथ्वी हो और मनुष्य न हों तो राष्ट्र की कल्पना असंभव है। पृथ्वी और जन दोनों के सम्मिलन से ही राष्ट्र का स्वरूप संपादित होता है। जन के कारण ही पृथ्वी मातृभूमि की संज्ञा प्राप्त करती है। पृथ्वी माता है और जन सच्चे अर्थों में पृथ्वी के पुत्र हैं। [2019 (CV)]
(क) राष्ट्र की कल्पना कब असंभव है?
(ख) पृथिवी और जन दोनों मिलकर क्या बनाते हैं?
(ग) पृथ्वी कब मातृभूमि की संज्ञा प्राप्त करती है?
(घ) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(ङ) पाठ का शीर्षक और लेखक का नाम लिखिए।

उत्तर- (क) राष्ट्र की कल्पना पृथ्वी पर निवास करने वाले लोगों के बिना असंभव है क्योंकि पृथ्वी पर निवास करने वाले मनुष्य राष्ट्र का दूसरा महत्वपूर्ण अंग माने जाते हैं।
(ख) पृथ्वी और जन दोनों के मिलने से ही राष्ट्र के स्वरूप का निर्माण होता है।
(ग) पृथ्वी पर निवास करने वाले मनुष्य के कारण ही पृथ्वी मातृभूमि की संज्ञा प्राप्त करती है।
(घ) लेखक के अनुसार पृथ्वी को माता के समान बताया गया है। और उस पर निवास करने वाले जन को उसका पुत्र बताया गया है । पृथ्वी और जन के मध्य माता और पुत्र का सम्बन्ध बताया गया है।
(ङ) उपर्युक्त गद्यांश राष्ट्र का स्वरूप' पाठ से लिया गया है जिसके लेखक डॉ. वासुदेवशरण अग्रवाल हैं।

6. कहते हैं दुनिया बड़ी भुलक्कड़ है। केवल उतना ही याद रखती है, जितने से उसका स्वार्थ सधता है। बाकी को फेंककर आगे बढ़ जाती है। शायद अशोक से उसका स्वार्थ नहीं सधा। क्यों उसे वह याद रखती ? सारा संसार स्वार्थ का अखाड़ा ही तो है। [2023 (ZH)]
(क) उपर्युक्त गद्यांश के पाठ और लेखक का नाम लिखिए।
(ख) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए ।
(ग) अशोक को विस्मृत करने का आधार किसे माना गया है?
(घ) लेखक ने दुनिया का किस तरह का व्यवहार बताया है?
(ङ) स्वार्थ का अखाड़ा किसे कहा गया है?

उत्तर : (क) प्रस्तुत गद्यावतरण हमारी पाठ्य पुस्तक 'हिन्दी' के 'अशोक के फूल' नामक शीर्षक से अवतरित है जिसके लेखक 'हजारी प्रसाद द्विवेदी' हैं।
(ख) द्विवेदी जी कहते है कि यह संसार उन्हीं वस्तुओं को याद रखता है जो उसके दैनिक जीवन की स्वार्थ पूर्ति में सहायता पहुँचाती है। बदलते समय की दृष्टि में अनुपयोगी होने पर यदि कोई वस्तु उपेक्षित हो जाती है तो यह उसे भूलकर आगे बढ़ जाता है ।
(ग) अशोक को विस्मृत करने का आधार स्वार्थवृत्ति को माना गया है।
(घ) यह दुनिया केवल उतना ही याद रखती है जितने से उसका स्वार्थ सधता है, बाकी का फेंककर आगे बढ़ जाती है।
(ङ) सारे संसार का स्वार्थ का अखाड़ा कहा गया है।

7. भगवान् बुद्ध ने मार विजय के बाद वैरागियों की पलटन खड़ी की थी। असल में 'मार' मदन का भी नामांतर है। कैसा मधुर और मोहक साहित्य उन्होंने दिया । पर न जाने कब यक्षों के वज्रपाणि नामक देवता इस वैराग्यप्रवण धर्म में घुसे और बोधिसत्त्वों के शिरोमणि बन गये फिर वज्रयान का अपूर्व धर्म मार्ग प्रचलित हुआ। त्रिरत्नों में मदन देवता ने आसन पाया। वह एक अजीब आँधी थी। इसमें बौद्ध बह गये, शैव बह गये, शाक्त बह गये। उन दिनों 'श्रीसुन्दरीसाधनतत्पराणां योगश्च भोगश्च करस्थ एव' की महिमा प्रतिष्ठित हुई। काव्य और शिल्प के मोहक अशोक ने अभिचार में सहायता दी। [2022(DQ)]
(क) भगवान् बुद्ध ने मार विजय के बाद क्या किया?
(ख) बोधिसत्त्वों का शिरोमणि कौन बन गया ?
(ग) बोधिसत्त्व' और 'अभिसार' शब्दों का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
(घ) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए ।
(ड़) उपर्युक्त गद्यांश के पाठ का शीर्षक और लेखक का नाम लिखिए।

उत्तर : (क) भगवान बुद्ध ने मार-विजय के बाद वैरागियों की एक पलटन खड़ी की।
(ख) बोधिसत्त्वों का शिरोमणि 'यक्षों के वज्रपाणि' नामक देवता बन गए।
(ग) बोधिसत्व - सत्त्व के लिए प्रबुद्ध / शिक्षित
अभिसार - आगे बढना/ प्रिय से मिलने जाना ।
(घ) रेखांकित अंश की व्याख्या - प्रस्तुत पंक्तियों में लेखक कहता है कि योग और भोग उन लोगों के हाथ में है जो श्री सुन्दरी के साधनों के प्रति समर्पित हैं।
(ङ) उपर्युक्त गद्यांश 'अशोक के फूल' शीर्षक से लिया गया है। जिसके लेखक 'डॉ० हजारी प्रसाद द्विवेदी' हैं।

8. मुझे मानव जाति की दुर्दम निर्मम धारा के हजारों वर्ष का रूप साफ दिखाई दे रहा है। मनुष्य की जीवनी शक्ति बड़ी निर्मम है। वह सभ्यता और संस्कृति के वृथा मोहों को रौंदती चली आ रही है। न जाने कितने धर्माचारों, विश्वासों, उत्सवों और व्रतों को धोती बहाती यह जीवन धारा आगे बढ़ी है। संघर्षो से मनुष्य ने नई शक्ति पाई है। [2019 (CU)]
(क) लेखक को क्या स्पष्ट दिखाई दे रहा है?
(ख) मनुष्य ने नई शक्ति किससे पाई है?
(ग) 'धर्माचारों' और 'विश्वासों' का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
(घ) रेखांकित अंशों की व्याख्या कीजिए।
(ङ) पाठ का शीर्षक और लेखक का नाम बताइये ।

उत्तर : (क) प्रस्तुत गद्यांश में लेखक को सभ्यता और संस्कृति का मिला- जुला रूप तथा सभ्यता और संस्कृति में मनुष्य की जीने की इच्छा प्रबल दिखाई दे रही हैं।
(ख) मनुष्य ने नई शक्ति अपने द्वारा दैनिक रूप से किये गये संघर्षों से पाई है।
(ग) धर्माचारों- किसी विशेष धर्म का प्रचार करने वाले । विश्वासों किसी मनुष्य के प्रति निश्चित धारणा रखना ।
(घ) लेखक ने मनुष्य के जीवन के इतिहास के बारे में बताते हुए कहा है कि मनुष्य का जो जीवन जीने का तरीका है वह बड़ा ही ममताहीन, निष्ठुर (कठोरतापूर्ण किया जाने वाला) है।
(ङ) उपर्युक्त गद्यांश 'अशोक के फूल' पाठ से लिया गया है, जिसके लेखक डॉ. हजारी प्रसाद द्विवेदी हैं।

9. यदि यह नवीनीकरण सिर्फ कुछ पंडितों की व आचार्यों की दिमागी कसरत ही बनी रहे तो भाषा गतिशील नहीं होती । भाषा का सीधा संबंध प्रयोग से है और जनता से है। यदि नए शब्द अपने उद्गम स्थान में ही अड़े रहें और कहीं भी उनका प्रयोग किया नहीं जाए तो उसके पीछे के
उद्देश्य पर ही कुठाराघात होगा । [2023(ZL)]
(क) उपर्युक्त गद्यांश के पाठ और लेखक का नाम लिखिए।
(ख) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए ।
(ग) 'कुठाराघात' का आशय स्पष्ट कीजिए ।
(घ) भाषा का सीधा सम्बन्ध किससे है?
(ङ) लेखक के अनुसार नए शब्दों के प्रयोग न किए जाने पर क्या परिणाम होगा?

उत्तर : (क) उक्त गद्यांश का शीर्षक 'भाषा और आधुनिकता' और इसके लेखक प्रो० जी० सुन्दर रेड्डी हैं। प्रोसेफर रेड्डी का जन्म सन् 1919 ई0 में आन्ध्र प्रदेश में हुआ था।
(ख) रेखांकित अंश के आधार पर लेखक का कहना है कि भाषा का सीधा सम्बन्ध जनता से व जनता द्वारा किये जाने वाले प्रयोग से है, जो भाषा जितनी अधिक जनता द्वारा स्वीकृत एवं परिवर्तित की जाती है, वह उतनी ही अधिक जीवन्त एवं चिरस्थायी होती है। भाषा गतिशील होती है, वह अभिव्यक्ति का एक माध्यम है जिससे लोगों के बीच संवाद स्थापित होता है।
(ग) 'कुठाराघात' का आशय बहुत हानि पहुचाने वाला कार्य होता है।
(घ) भाषा का सीधा सम्बन्ध जनता से व जनता द्वारा किये जाने वाले प्रयोग से है क्योंकि जो भाषा जितनी अधिक जनता द्वारा स्वीकृत एवं परिवर्तित की जाती है वह उतनी ही अधिक जीवन्त और चिरस्थायी होती है।
(ङ) नए शब्दों के प्रयोग न किये जाने पर उसके पीछे के उद्देश्य पर कुठाराघात होगा।

10. भाषा का सीधा सम्बन्ध प्रयोग से है और जनता से है। यदि नए शब्द अपने उद्गम स्थान में ही अड़े रहें और कहीं भी उनका प्रयोग किया नहीं जाए तो उसके पीछे के उद्देश्य पर ही कुठाराघात होगा। इसके लिए यूरोपीय देशों में प्रेषण के कई माध्यम हैं: श्रव्य दृश्य विधान, वैज्ञानिक कथा साहित्य आदि। हमारी भारतीय भाषाओं में वैज्ञानिक कथा - साहित्य प्रायः नहीं के बराबर है। किसी भी नए विधान की सफलता अन्ततः जनता की सम्मति व असम्मति के आधार पर निर्भर करती है और जनता में इस चेतना को उजागर करने का उत्तरदायित्त्व शिक्षित समुदाय एवं सरकार का होना चाहिए। [2019 (CY)]
(क) भाषा का सीधा सम्बन्ध किससे है?
(ख) यूरोपीय देशों में शब्द-प्रेषण के माध्यम कौन-कौन से हैं?
(ग) 'कुठाराघात' और 'प्रेषण' का अर्थ स्पष्ट कीजिए ।
(घ) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(ङ) पाठ का शीर्षक और लेखक का नाम लिखिए।

उत्तर- (क) भाषा का सीधा सम्बन्ध प्रयोग और जनता से है।
(ख) यूरोपीय देशों में शब्द-प्रेषण के कई माध्यम हैं - श्रव्य-दृश्य विधान, वैज्ञानिक कथा - साहित्य आदि ।
(ग) कुठाराघात घातक चोट । प्रेषण-भेजना।
(घ) लेखक कहता है कि राष्ट्र के व्यक्तियों के द्वारा समाज दिया गया। नया विचार या सिद्धांत समाज के स्वीकृति या अस्वीकृति पर निर्भर करता है। इस प्रकार समाज के लोगों में जागरूकता फैलाने का उत्तरादायित्व सरकार एवं समाज के शिक्षित समुदाय का है।
(ङ) उपर्युक्त गद्यांश 'भाषा और आधुनिकता' पाठ से लिया गया है, जिसके लेखक प्रो. जी. सुन्दर रेड्डी हैं।

11. जो कुछ भी हम इस संसार में देखते हैं, वह ऊर्जा का ही स्वरूप है। जैसा कि महर्षि अरविन्द ने कहा है कि हम भी ऊर्जा के ही अंश हैं। इसलिए जब हमने यह जान लिया है कि आत्मा और पदार्थ; दोनों ही अस्तित्व का हिस्सा हैं, वे एक-दूसरे से पूरा तादात्म्य रखे हुए हैं हमें यह अहसास भी होगा कि भौतिक पदार्थों की इच्छा रखना किसी भी दृष्टिकोण से शर्मनाक या गैर-आध्यात्मिक बात नहीं है। [2023(ZK)]
(क) उपर्युक्त गद्यांश का सन्दर्भ लिखिए।
(ख) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(ग) महर्षि अरविन्द ने क्या कहा है?
(घ) हम इस संसार में जो कुछ देखते हैं, वह क्या है?
(ङ)'अस्तित्व' और 'तादात्म्य' शब्दों के अर्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- (क) उक्त गद्यांश के पाठ का शीर्षक 'तेजस्वी मन के सम्पादित अंश' और इसके लेखक डॉ. कलाम जी है । कालान्तर में इन्होंने भारत के राष्ट्रपति के पद को सुशोभित किया।
(ख) डॉ. कलाम कहते हैं की जब आत्मा व भौतिक पदार्थ दोनों का ही अस्तित्व विद्यमान होतो तो भौतिक पदार्थ की प्राप्त की इच्छा रखना किसी भी दिष्टिकोण से गलत अथवा शर्मनाक या गैर - आध्यात्मिक नहीं हो सकता।
(ग) महर्षि अरविन्द ने मानव को भी ऊर्जा का ही अंश बताया है।
(घ) हम इस संसार में जो कुछ देखते हैं, वह ऊर्जा का ही स्वरूप है।
(ङ)अस्तित्व - शब्द का अर्थ किसी व्यक्ति / वस्तु / स्थान इत्यादि, के विद्यमानता से है। तादात्म्य का अर्थ किन्हीं दो वस्तुओं को के मध्य सामन्जस्य से है ।

12. 'क' कई महीने बाद आए थे। सुबह चाय पीकर अखबार देख रहा था कि वे तूफान की तरह कमरे में घुसे, 'साइक्लोन' की तरह मुझे अपनी भुजाओं में जकड़ा तो मुझे धृतराष्ट्र की भुजाओं में जकड़े भीम के पुतले की याद आ गयी। यह धृतराष्ट्र की ही जकड़ थी। अंधे धृतराष्ट्र ने टटोलते हुए पूछा, "कहाँ हैं भीम? आ बेटा, तुझे कलेजे से लगा लूँ।" और जब भीम का पुतला उनकी पकड़ में आ गया तो उन्होंने प्राणाघाती स्नेह से उसे जकड़ कर चूर कर डाला। [2020 (ZH)]
(क) 'क' किस तरह कमरे में घुसे और उन्होंने किस तरह मुझे भुजाओं में जकड़ा?
(ख) मुझे किसके पुतले की याद आ गई?
(ग) रेखांकित अंशों की व्याख्या कीजिए।
(घ) धृतराष्ट्र ने भीम के पुतले के साथ क्या किया?
(ङ) दिए गए गद्यांश के पाठ का शीर्षक एवं लेखक का नाम लिखिए। 

उत्तर : (क) 'क' तूफान की तरह कमरे में घुसे, 'साइक्लोन' की तरह उन्होंने मुझे भुजाओं में जकड़ा।
(ख) 'क' के इस व्यवहार पर मुझे धृतराष्ट्र की भुजाओं में जकड़े भीम के पुतले की याद आ गयी।
(ग) रेखांकित अंश की व्याख्या- मिस्टर 'क', जो कल तक लेखक की निन्दा में लगे हुए थे, आज इस प्रकार की सहृदयता और खुलूस से लेखक से मिले, उससे लेखक को उनके दिखावे से भरे व्यवहार पर बहुत आश्चर्य हुआ तथा लेखक को धृतराष्ट्र के कपटपूर्ण कृत्य की याद हो आई ।
(घ) धृतराष्ट्र ने भीम के पुतले को जकड़कर अपने प्राणघाती स्नेह से चूर-चूर कर डाला।
(ङ) प्रस्तुत गद्यांश के पाठ का शीर्षक 'निन्दा रस' है तथा इसके लेखक हरिशंकर परसाई हैं।

13. दिये गये गद्यांश पर आधारित निम्नलिखत प्रश्नों के
उत्तर दीजिए:
निन्दा का उद्गम ही हीनता और कमजोरी से होता है। मनुष्य अपनी हीनता से दबता है। वह दूसरों की निन्दा करके ऐसा अनुभव करता है कि वे सब निकृष्ट हैं और वह उनसे अच्छा है। उसके अहं की इससे तुष्टि होती है। बड़ी लकीर को कुछ मिटाकर छोटी लकीर बड़ी बनती है। ज्यों-ज्यों कर्म क्षीण होता जाता है, त्यों-त्यों निन्दा की प्रवृत्ति बढ़ती जाती है। कठिन कर्म ही ईर्ष्या-द्वेष और इससे उत्पन्न निन्दा को मारता है। इन्द्र बड़ा ईष्यालु माना जाता है; क्योंकि वह निठल्ला है। स्वर्ग में देवताओं को बिना उगाये अन्न, बे बनाया महल और बिन-बोये फल मिलते हैं। अकर्मण्यता में उन्हें अप्रतिष्ठित होने का भय बना रहता है, इसलिए कर्मी मनुष्यों से उन्हें ईर्ष्या होती है। [2019 (CX)]
(क) निन्दा का उद्गम किससे होता है?
(ख) देवताओं को कर्मी मनुष्यों से क्यों ईर्ष्या होती है ?
(ग) कर्म के क्षीण होने पर किसकी प्रवृत्ति बढ़ जाती है?
(घ) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए ।
(ङ) पाठ का शीर्षक एवं लेखक का नाम लिखिए ।

उत्तर : (क) निन्दा का उद्गम मनुष्य के हीन भाव और उनकी कर्महीनता से होता है।
(ख) देवताओं को कर्मी मनुष्यों से ईर्ष्या इसलिए होती है क्योंकि स्वर्ग में उन्हें परिश्रम किये बिना ही सब कुछ प्राप्त हो जाता है। उन्हें परिश्रम करने की आवश्यकता ही नहीं होती है। उन्हें अकर्मण्यता के कारण अप्रतिष्ठित होने का भय बना रहता है। इसलिये उन्हें कर्मी मनुष्यों को देखकर ईर्ष्या होती है।
(ग) कर्म के क्षीण होने पर निन्दा की प्रवृत्ति बढ़ जाती है।
(घ) लेखक का आशय है कि जब मनुष्य हीनभावना से ग्रस्त हो जाता है तो वह निन्दा को अपने उन्नयन का साधन बनाकर अन्य को निकृष्ट एवं स्वयं को श्रेष्ठ साबित करने का प्रयास करता है और इस क्रम में वह अपने अहं की तुष्टि करता है।
(ङ) प्रस्तुत गद्यांश 'हरिशंकर परसाई' द्वारा लिखित 'निन्दा रस' पाठ्य से लिया गया है।

14. भाषा स्वयं संस्कृति का एक अटूट अंग है। संस्कृति परम्परा से निःसृत होने पर भी परिवर्तनशील और गतिशील है। उसकी गति विज्ञान की प्रगति के साथ जोड़ी जाती है। वैज्ञानिक आविष्कारों के प्रभाव के कारण उद्भूत नयी सांस्कृतिक हलचलों को शाब्दिक रूप देने के लिए भाषा के परम्परागत प्रयोग पर्याप्त नहीं है। इसके लिए नये प्रयोगों की नयी भाव योजनाओं को व्यक्त करने के लिए नये शब्दों की खोज की महती आवश्यकता है।
[2020 (ZJ)]
(क) संस्कृति की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए ।
(ख) नए शब्दों की खोज की आवश्यकता क्यों होती है?
(ग) 'उद्भूत' और 'परम्परागत' का अर्थ लिखिए।
(घ) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए ।
(ङ) उपर्युक्त गद्यांश के पाठ का शीर्षक और लेखक का नाम लिखिए।

उत्तर- (क) संस्कृति परम्परा से निःसृत होने पर भी परिवर्तनशील और गतिशील है। उसकी गति विज्ञान की प्रगति के साथ जोड़ी जाती है।
(ख) वैज्ञानिक आविष्कारों के प्रभाव के कारण उद्भूत नयी सांस्कृतिक हलचलों को शाब्दिक रूप देने के लिए भाषा को नये शब्दों की खोज की महती आवश्यकता होती है।
(ग) शब्द - अर्थ
उद्भूत - उत्पन्न हुई
परम्परागत - परम्परा से प्राप्त होने वाला
(घ) रेखांकित अंश की व्याख्या - लेखक सम्बन्धित पंक्तियों में कहना चाहता है कि भाषा को नये वैज्ञानिक सांस्कृतिक मानकों के अनुरूप होना होगा तथा परम्परागत प्रयोग के साथ नयी शब्दावलियों को अपने शब्दकोश में स्थान देना होगा यही आधुनिक समय की आवश्यकता है।

15. मगर उदास होना बेकार है। अशोक आज भी उसी मौज में है, जिसमें आज से दो हजार वर्ष पहले था। कहीं भी तो कुछ नहीं बिगड़ा है, कुछ भी तो नहीं बदला है। बदली है मनुष्य की मनोवृत्ति । यदि बदले बिना वह आगे बढ़ सकती तो शायद वह भी नहीं बदलती और यदि वह न बदलती, और व्यावसायिक संघर्ष आरम्भ हो जाता मशीन का रथ घर्घर चल पड़ता विज्ञान का सावेग धावन चल निकलता तो बड़ा बुरा होता । [ 2022 (DS ) ]
(क) लेखक के अनुसार किसमें परिवर्तन हुआ है?
(ख) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए ।
(ग) 'मनोवृत्ति' और 'धावन' शब्दों का आशय लिखिए।
(घ) अशोक आज भी उसी मौज में क्यों है?
(ड़) उपर्युक्त गद्यांश के पाठ का शीर्षक और उसके लेखक का नाम लिखिए।

उत्तर-(क) लेखक के अनुसार मनुष्य की मनोवृत्ति में परिवर्तन हुआ है।
(ख) रेखांकित अंश की व्याख्या प्रस्तुत पंक्तियों में द्विवेदी जी कहते हैं कि अगर मनुष्य की मनोवृत्ति बिना परिवर्तन के विकास कर पाती तो शायद वह भी नहीं बदलती। अगर मनुष्य की मनोवृत्ति परिवर्तनशील न होती तो केवल भौतिकता में ही डूबती-उतराती रहती, विज्ञान के परिष्करण और आविष्कारों में संलग्न रहती और आत्मिक शान्ति को कभी नहीं प्राप्त कर पाती।
(ग) शब्द - अर्थ
मनोवृत्ति - मानसिक शक्ति या स्थिति
धावन - दौड़ लगाना
(घ) अशोक आज भी उसी मौज में है क्योंकि वह सभी परिवर्तनों से तटस्थ है। उसकी स्थिति में न ही कोई परिवर्तन आया है और न ही वह परिवर्तन का आकांक्षी है।
(ड़) गद्यांश के पाठ का शीर्षक 'अशोक के फूल' है तथा इसके लेखक आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी हैं।

पध 

1. मेरे प्यारे नव जलद से कंज से नेत्र वाले । जाके आये न मधुवन से औ न भेजा संदेसा । मैं रो-रो के प्रिय विरह से बावली हो रही हूँ । जाके मेरी सब दुःख कथा श्याम को तू सुना दे ॥ ज्यों ही मेरा भवन तज तू अल्प आगे बढ़ेगी । शोभावाली सुखद कितनी मंजू कुंजे मिलेंगी । प्यारी छाया मृदुल स्वर से मोह लेंगी तुझे वे । तो भी मेरा दुःख लख वहाँ जा न विश्राम लेना ॥ [2022(DQ)]
(क) संदेश प्रेषिका ने 'नव जलद से कंज से नेत्र वाले ' शब्द किसके लिए प्रयोग किया है?
(ख) मधुवन जाकर किसने कोई सन्देश नहीं भेजा ?
(ग) 'बावली' और 'अल्प' शब्दों का अर्थ लिखिए ।
(घ) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(ड़) उपर्युक्त पद्यांश से सम्बन्धित कविता का शीर्षक तथा उसके रचयिता का नाम लिखिए।

उत्तर :(क) संदेश प्रेषिका ने 'नव जलद से कंज से नेत्र वाले शब्द श्रीकृष्ण के लिए प्रयोग किया है।
(ख) मधुवन को छोड़कर जाने के पश्चात कृष्ण ने कोई संदेश नहीं भेजा ।
(ग) बावली - पागल
अल्प - थोड़ा।
(घ) रेखांकित अंश की व्याख्या- राधा पवन रूपी दूती को अपनी विरह व्यथा सुनाते हुए कहती है जब से मेरे प्राण प्रिय नये बादलों के समान (जल से भरे) श्याम वर्ण, कमल से नेत्र वाले कृष्ण मथुरा गये तब से न ही वे मधुबन लौटकर आये और न ही कोई संदेश भेजा ।
(ङ) उपर्युक्त पद्यांश का शीर्षक 'पवन दूतिका' है तथा रचयिता अयोध्या सिंह उपाध्याय 'हरिऔध' हैं।

2. फूले कलम दल-सी गात की श्यामता है। पीला प्यारा वसन कटि में पैन्हते हैं फबीला । छूटी काली अलक मुख की कान्ति को है बढ़ाती । सद्वस्त्रों में नवल तन की फूटती-सी प्रभा हैं। साँचे ढाला सकल वपु है दिव्य सौन्दर्यशाली | सत्पुष्पों सी सुरभि उसकी प्राण-संपोषिका है। दोनों कंधे वृषभ - वर से हैं बड़े ही सजीले । लम्बी बाँहें कलभ-कर-सी शक्ति की पेटिका है। [ 2019 (CT) |
(क) राधा पवन से कृष्ण को पहचानने का क्या उपाय बताती है ?
(ख) 'अलक' तथा 'सकल' शब्द का अर्थ लिखिए।
(ग) 'कलभ कर सी' में कौन-सा अलंकार है?
(घ) रेखांकित अंश का भावार्थ लिखिए।
(ङ) पाठ का शीर्षक और कवि का नाम लिखिए।

उत्तर- (क) राधा, पवन से कहती है, हे पवन! कृष्ण साँवले रंग के हैं और वे अपनी कमर पर पीला वस्त्र धारण किये रहते हैं उनके माथे पर लटकती बालों की एक लट उनके मुख की शोभा में वृद्धि करती है ये सभी गुण आप को कृष्ण की ओर आकर्षित करेगा।
(ख) 'अलक' का अर्थ निराकार से है और 'सकल' का अर्थ समस्त याकुल होता है।
(ग) कलभ-कर-सी में उपमा अलंकार है ।
(घ) राधिका कहती है कि हे पवन! कृष्ण के दोनों कन्धे श्रेष्ठ साँड़ के कन्धे के समान विशाल और बलिष्ठ हैं, उनकी दोनों भुजाएँ हाथी की सुंड के समान शक्ति की पिटारी हैं।
(ङ) प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ अयोध्यासिंह उपाध्याय 'हरिऔध' जी द्वारा 'पवन दूतिका' में लिखी गयी है।

3. निज जन्म जन्म से सुने जीव यह मेरा धिक्कार ! उसे था महास्वार्थ ने घेरा- सौ बार धन्य वह एक लाल की माई जिस जननी ने है जना भरत-सा भाई।" पागल सी प्रभु के साथ सभा चिल्लाई "सौ बार धन्य वह एक लाल की माई ॥ [2023(ZJ)]
(क) उपर्युक्त पद्यांश का सन्दर्भ लिखिए।
(ख) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(ग) कैकेयी स्वयं को धिक्कारती हुई क्या कहती है ?
(घ) कैकेयी के प्रायश्चित के उपरान्त श्रीराम उनसे क्या कहते है ?
(ङ) प्रभु राम के साथ कैकेयी के अपराध का अपमार्जन करती हुई सभा क्या चिल्ला उठी?

उत्तर- (क) प्रस्तुत पद्यांश पठित पाठ्य पुस्तक हिन्दी के 'साकेत' महाकाव्य के 'कैकेयी का अनुताप' शीर्षक से अवतरित है, जिसके रचयिता मैथिलीशरण गुप्त जी है।
(ख) कैकेयी स्वयं को धिक्कारती हुई कहती है कि मैं सद्गति न पाऊँ और जन्म जन्मान्तरों में मेरे प्राण यही सुनते रहे कि रघुकुल की उस रानी को धिक्कार है, जिसे घोर स्वार्थ ने घेरकर ऐसा अनुचित कार्य कराया।
(ग) कैकेयी स्वयं को धिक्कारती हुई कहती है कि जन्म-जन्मांतरों में मेरे प्राण यही सुनते रहे कि उसे घोर स्वार्थ ने घेरकर ऐसा अनुचित कार्य कराया।
(घ) श्रीराम् कैकेयी से कहते हैं कि तुम अभागिन नहीं हो, वरन् वह माता तो सौ-सौ बार धन्य है, जिसने भरत जैसे भाई को जन्म दिया ।
(ङ) प्रभु राम के साथ कैकेयी के अपराध का अपमार्जन करती हुईं सभा चिल्ला उठी की भरत जैसे महान् धर्मशील पुत्र को जन्म देने वाली माता धन्य है, सैकड़ों बार धन्य है।

4. जल पंजर गत अब अरे अधीर अभागे वे ज्वलित भाव थे स्वयं तुझी में जागे पर था केवल क्या ज्वलित भाव ही मन में? क्या शेष बचा था कुछ न और इस मन में? कुछ मूल्य नहीं वात्सल्य मात्र क्या तेरा? पर आज अन्य सा हुआ वत्स भी मेरा थूके, मुझ पर त्रैलोक्य भले ही थूके जो कोई जो कह सके, कहे क्यों चूके ? [2022(DT)]
(क) उपर्युक्त पद्यांश का शीर्षक एवं लिखिए। कवि का नाम
(ख) उपर्युक्त पद्यांश में किससे किसका संवाद हो रहा है?
(ग) वे ज्वलित भाव किसमें जगे थे?
(घ) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए ।
(ङ) पश्चाताप की अग्नि में कौन जल रहा है?

उत्तर : (क) उपर्युक्त पद्यांश 'कैकेयी का अनुताप शीर्षक से अवतरित है। इसके कवि मैथिलीशरण गुप्त हैं।
(ख) कैकेयी का राम से संवाद हो रहा है।
(ग) वे ज्वलित भाव कैकेयी में जगे थे।
(घ) इन पंक्तियों में कैकेयी की विवशता व पश्चाताप का वर्णन है। कैकेयी अपना अधीर मन लिए प्रश्न पूछती है 'क्या मेरे मन के वात्सल्य भाव अर्थात पुत्र स्नेह का कुछ भी मूल्य नहीं किन्तु हाय आज स्वयं मेरा पुत्र ही मुझसे पराए की तरह व्यवहार करता है।'
(ङ) पश्चाताप की अग्नि में 'कैकेयी' जल रही है।

5. बस मैंने इसका बाह्य मात्र ही देखा दृढ़ हृदय न देखा, मृदुल गात्र ही देखा परमार्थं न देखा, पूर्ण स्वार्थ ही साधा इस कारण ही तो हाय आज यह बाधा युग-युग तक चलती रहे कठोर कहानी 'रघुकुल में भी थी एक अभागिन रानी' । निज जन्म-जन्म में सुने जीव यह मेरा "। " धिक्कार ! उसे था महास्वार्थ ने घेरा " । [2020 (ZK)]
(क) प्रस्तुत पद्यांश में किन-किन पात्रों के बीच संवाद हो रहा है?
(ख) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए ।
(ग) पाठ के शीर्षक एवं रचयिता के नाम का उल्लेख कीजिए।
(घ) दृढ़ हृदय और मृदुल गात्र शब्द से किसकी ओर संकेत है?
(ङ) किस पात्र को महास्वार्थ ने घेर लिया था?

उत्तर- (क) प्रस्तुत पद्यांश में अयोध्या की रानी व भरत की माता कैकेयी तथा कौशल्या नन्दन राम के बीच हो रहे संवाद का वर्णन है।
(ख) रेखांकित पंक्तियों का अर्थ प्रस्तुत पंक्तियों में रानी कैकेयी पश्चाताप करते हुए राम से क्षमा याचना करती है - तुम्हें वनवास देते हुए मैंने क्षणभर भी जनता के कल्याण के विषय में विचार नहीं किया अपितु केवल स्वयं के कल्याण पर ही केन्द्रित रही । इस कारण आज ये सारी बाधाएँ उत्पन्न हो रही हैं। मैं ही इस विषम परिस्थिति का कारण हूँ।
(ग) प्रस्तुत पद्यांश कैकेयी का अनुताप' नामक शीर्षक से उद्धृत है और इसके रचयिता प्रसिद्ध राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त हैं।
(घ) दृढ़ हृदय और मृदुल गात्र शब्द से भरत की ओर संकेत है।
(ङ) कैकेयी को महास्वार्थ ने घेर लिया था जो वह राम के लिए वनवास माँगने को उद्यत हुई।

6. शक्ति के विद्युत्कण जो व्यस्त विकल बिखरे हैं, जो निरुपाय;
समन्वय उसका करे समस्त
विजयिनी मानवता हो जाय। [2023(ZK)]
(क) उपर्युक्त पद्यांश का सन्दर्भ लिखिए।
(ख) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(ग) इन पंक्तियों में श्रद्धा ने मनु से कौन-सी बात बताई ?
(घ) समस्त सृष्टि की रचना किनसे हुई है ?
(ड़) श्रद्धा ने मनु को किस प्रकार मानवता का साम्राज्य स्थापित करने के लिए प्रेरित किया है?

उत्तर :(क) सन्दर्भ - प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक हिन्दी के 'कामायनी' महाकाव्य से अवतरित है जिसके कवि जयशंकर प्रसाद है।
(ख) श्रद्धा - मनु से कहती है कि जीवन के प्रति हताशा औरनिराशा को त्यागकर आपको लोक मंगल के कार्यों में लगना चाहिए। विश्व की विद्युत कणों के समान जो भी करोड़ों- करोड़ शक्तियाँ है, वे सब बिखरी पड़ी हैं, जिस कारण जीवन में उनका कोई भी उपयोग नहीं हो पा रहा है। उन सब शक्तियों को एकत्रित कीजिए और उनमें समन्वय स्थापित कीजिए। इसी में मानवता का कल्याण निहित है।
(ग) इन पंक्तियों में श्रद्धा ने मनु को उसकी आत्म शक्तियों पर विजय प्राप्त करके उन्हें एकत्रित करके मानव सेवा में लगाने की बात कही हैं।
(घ) डुस सृष्टि की रचना शक्तिशाली विद्युतकणों (मनुष्यों) से हुई है।
(ड़) श्रद्धा ने मनु को बिखरी पड़ी समस्त शक्तियों को एकत्रित करके उनके उपयोग द्वारा मानवता का साम्राज्य स्थापित करने के लिए प्रेरित किया है।

7. तपस्वी! क्यों इतने हो क्लांत, वेदना का यह कैसा वेग ? आह! तुम कितने अधिक हताश, बताओ यह कैसा उद्वेग? दुःख की पिछली रजनी बीच, विकसता सुख का नवल प्रभात; एक परदा यह झीना नील, छिपाये है जिसमें सुख गात। [2022 (DR)]
(क) तपस्वी सम्बोधन किसके लिए किया गया है।
(ख) 'आह!' शब्द से किस भाव को व्यक्त किया गया है?
(ग) दुःख को रात्रि तथा सुख को नवल प्रभात क्यों कहा गया है?
(घ) 'एक परदा यह झीना नील' का भाव स्पष्ट कीजिए।
(ङ) पाठ का शीर्षक तथा कवि का नाम लिखिए।

उत्तर :(क) तपस्वी सम्बोधन मनु के लिए किया गया है।
(ख) आह ! शब्द से वेदना युक्त पीड़ा की अत्यधिक गहराई को व्यक्त किया गया है।
(ग) दुःख को रात्रि तथा सुख को नवल प्रभात इसलिए कहा गया है कि जिस प्रकार रात्रि के पश्चात सूर्योदय होता है और सम्पूर्ण जगत प्रकाशमय हो जाता है, उसी प्रकार मनुष्य के जीवन में व्याप्त दुःखों के पश्चात सुख का सूर्य भी उदित होता हैं।
(घ) 'एक परदा यह झीना नील' का भाव 'दुःख की रात के मध्य ही सुख का नया सवेरा उदित होने से है। जिस प्रकार प्रभात का प्रकाश अंधकार के महीन आवरण में छिपा रहता है उसी प्रकार सुख भी दुःख के महीन परदें में छिपा रहता है।
(ङ)' प्रस्तुत पद्यांश कामायनी के 'श्रद्धा सर्ग' शीर्षक से अवतरित है। इसके रचनाकार छायावादी कवि 'जयशंकर प्रसाद' हैं।

8. दुःख की पिछली रजनी बीच
विकसता सुख का नवल प्रभात
एक परदा यह झीना नील
छिपाये हैं जिसमें सुखगात
जिसे तुम समझे हो अभिशाप
जगत की ज्वालाओं का मूल
ईश का वह रहस्य वरदान
कभी मत जाओ इसको भूल । [2022(DU)|
(क) कवि और कविता का नाम लिखिए।
(ख) श्रद्धा किसके हताश मन को प्रेरणा दे रही है?
(ग) रजनी किसका प्रतीक है?
(घ) सुख का नवल प्रभात कब आता है?
(ङ) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए ।

उत्तर : (क) उपर्युक्त पद्यांश के कवि 'जयशंकर प्रसाद' हैं। यह प्रसाद की रचना 'कामायनी' के 'श्रद्धा मनु' शीर्षक से अवतरित है।
(ख) श्रद्धा 'मनु' के हताश मन को प्रेरणा दे रही है।
(ग) रजनी दुःख का प्रतीक है।
(घ) मनुष्य जीवन में व्याप्त दुःखों के पश्चात सुख का नवल प्रभात आता है।
(ङ) रेखांकित अंश की व्याख्या- प्रस्तुत पद्यांश में हताश मनु को श्रद्धा समझाते हुए कहती है- जिस प्रकार रात्रि के पश्चात सूर्योदय होता है और सम्पूर्ण जगत प्रकाशमय हो जाता है, उसी प्रकार मनुष्य के जीवन में व्याप्त दुःखों के पश्चात सुख का सूर्य उदित होता है।

9. 'कौन हो तुम बसंत के दूत
बिरस पतझड़ में अति सुकुमार
घन तिमिर में चपला की रेख
तपन में शीतल मंद बयार
लगा कहने आगन्तुक व्यक्ति
मिटाता उत्कंठा सविशेष
दे रहा हो कोकिल सानन्द
सुमन को ज्यों मधुमय सन्देश । [2020 (ZK)]
(क) पाठ का शीर्षक एवं कवि का नाम लिखिए ।
(ख) आगन्तुक व्यक्ति से किसी ओर संकेत किया गया है?
(ग) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(घ) पद्यांश में किस पात्र की उत्कंठा मिटाने की बात कही गई है?
(ङ) पद्यांश में किन पात्रों के बीच संवाद हो रहा है?

उत्तर-(क) प्रस्तुत पद्यांश 'श्रद्धा मनु' नामक शीर्षक से अवतरित है। इसके रचयिता जयशंकर प्रसाद हैं।
(ख) आगन्तुक व्यक्ति से श्रद्धा व है। की ओर संकेत किया गया।
(ग) रेखांकित अंश की व्याख्या प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने मनु के श्रद्धा के प्रति आकर्षण का वर्णन किया है। श्रद्धा से उसका परिचय पूछते हुए मनु कहते है- निर्जन में सुकुमार पुष्प की तरह, घने अंधकार में बिजली की तरह, तपती धूप में शीतल मन्द बयार की तरह शान्ति देने वाली हे बसन्त की दूतिका! तुम कौन हो ?
(घ) पद्यांश में मनु की उत्कंठा मिटाने की बात कही गयी है । पद्यांश में जलप्रलय के बाद जीवित बचे मनु तथा ललित कला का ज्ञान प्राप्त करने आयी गन्धर्व कन्या श्रद्धा के बीच संवाद हो रहा है।

10. तुम मांसहीन, तुम रक्तहीन
हे अस्थिशेष, हे अस्थिहीन,
तुम शुद्ध बुद्ध आत्मा केवल,
हे चिरपुराण! हे चिर नवीन ।
तुम पूर्ण इकाई जीवन की,
जिसमें असार भव- शून्य लीन,
आधार अमर, होगी जिस पर
भावी की संस्कृति समासीन । [2023(ZH)]
(क) उपर्युक्त पद्यांश का शीर्षक और कवि का नाम लिखिए।
(ख) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए ।
(ग) कौन हड्डियों का ढाँचा मात्र प्रतीत होते हैं?
(घ) गाँधीजी को कवि ने चिरपुराण तथा चिर नवीन क्यों कहा है?
(ङ) गाँधीजी के आदर्शों पर भविष्य में किसे खड़ा होना पड़ेगा ?

उत्तर- (क) प्रस्तुत पद्यांश हमारी पठित पाठ्य पुस्तक हिन्दी के 'बापू के प्रति' शीर्षक कविता से ली गयी है जिसके रचयिता सुमित्रानन्दन पन्त हैं।
(ख) हे बापू! संसार तुम्हारे मार्ग पर चलकर अपना खोखलापन दूर करके मानव जीवन की चरम सार्थकता को प्राप्त करेगा । तुम जिन सिद्धान्तों के आधार पर खड़े हो । वे अमर हैं, शाश्वत है, इसलिए भविष्य की मानव संस्कृति को तुम्हारे ही आदर्शों पर खड़ होना पड़ेगा।
(ग) गाँधी जी देखने पर वे मात्र हड्डियों का ढाँचा प्रतीत होते हैं।
(घ) गाँधी जी को शुद्ध ज्ञानस्वरूप अर्थात् आत्मस्वरूप होने के कारण कवि ने चिर पुराण तथा चिर नवीन कहा है।
(ङ) गाँधीजी के आदर्शों पर भविष्य की मानव संस्कृति को खड़ा होना पड़ेगा ।

11. मैं नीर भरी दुख की बदली
स्पन्दन में चिर निस्पन्द बसा,
क्रन्दन में आहत विश्व हँसा,
नयनों में दीपक से जलते,
पलकों में निर्झरिणी मचली। [2022(DV)]
(क) कविता का शीर्षक और कवि का नाम लिखिए।
(ख) कवयित्री ने स्वयं को क्या बताया है?
(ग) किससे आहत होकर विश्व हँसा?
(घ) पलकों में क्या मचली?
(ङ) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए ।

उत्तर: (क) प्रस्तुत पद्यांश 'सांध्य गीत' काव्य संग्रह के गीत - 3 शीर्षक से अवतरित है। यह कविता 'महादेवी वर्मा' द्वारा रचित है।
(ख) कवयित्री स्वयं को 'नीर भरी दुःख की बदली' अर्थात दुःख की बदलियों से घिरा हुआ बताया है।
(ग) 'क्रंदन' से आहत होकर विश्व हँसा है।
(घ) पलकों में निर्झरिणी मचली है।
(ङ) प्रस्तुत रेखांकित पंक्तियों में कवयित्री अपने जीवन की तुलना बदली से करते हुए कहती हैं कि मैं नीर भरी दुःख की बदली हूँ अर्थात मेरा जीवन दुःख की बदलियों से भरा हुआ है, जिस प्रकार बदली पानी से भरी हुई रहती है उसी प्रकार अथाह विरह की वेदना के कारण मेरी आँखों में आँसू भरे रहते हैं।

12. मर्त्य मानव की विजय का तूर्य हूँ मैं,
उर्वशी! अपने समय का सूर्य हूँ मैं,
अंध तम के भाल पर पावक जलाता हूँ
बादलों के सीस पर स्यन्दन चलाता हूँ।
पर, न जाने, बात क्या है!
इन्द्र का आयुध पुरुष जो झेल सकता है,
सिंह से बातें मिलाकर खेल सकता है,
फूल के आगे वही असहाय हो जाता,
शक्ति के रहते हुए निरूपाय हो जाता।
विद्ध हो जाता सहज बंकिम नयन के बाण से,
जीत लेती रूपसी नारी उसे मुस्कान से | 2019 (CS)]
(क) पुरूरवा उर्वशी को अपना परिचय किस रूप में देता है?
(ख) पुरुष फूल जैसी कोमल नारी के सामने क्यों असहाय हो जाता है?
(ग) स्यन्दन' और 'आयुध' शब्दों का क्या अर्थ है ?
(घ) रेखांकित अंशों की व्याख्या कीजिए।
(ङ) उपर्युक्त पद्यांश के पाठ का शीर्षक और उसके कवि का नाम लिखिए।

उत्तर- (क) पुरूरवा उर्वशी को अपना परिचय देते हुए कहता है । मेरी शक्ति मानव जाति की वीरता का परिचायक है। मैं एक तेजस्वी पुरुष हूँ। अन्धकार के मस्तक पर अग्निशिखा जलाने की शक्ति मेरे पास है। मेरा रथ जमीन पर नहीं बादलों के ऊपर चलता है।
(ख) पुरूष फूल जैसी नारी के सामने उसकी मुस्कान और सुन्दरता से हार जाता है और वह उस सुन्दरी का सेवक बन जाता है।
(ग) स्यन्दन का अर्थ रथ होता है, आयुध का अर्थ इन्द्र का वज्र है।
(घ) सुन्दरी नारी की तिरछी चितवन का बाण शक्ति सम्पन्न पुरूष को घायल कर देता है। इस प्रकार स्त्री अपनी एक मुस्कान से उसे शक्तिशाली पुरूष को अपना दास बना लेती है। पुरूष नारी की मुस्कान से अपना हृदय हार बैठता है और सुन्दरी का सेवक बन जाता है।
(ङ) इस पद्यांश का शीर्षक 'उर्वशी' और इसके लेखक रामधारी सिंह दिनकर हैं।

13. मैं कब कहता हूँ जग मेरी दुर्धर गति के अनुकूल बने,
मैं कब कहता हूँ जीवन मरु नन्दन कानन का फूल बने?
काँटा कठोर है, तीखा है, उसमें उसकी मर्यादा है,
मैं कब कहता हूँ वह घटकर प्रान्तर का ओछा फूल [2023 (ZK)]
(क) उपर्युक्त पद्यांश का सन्दर्भ लिखिए।
(ख) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए। बने ?
(ग) 'काँटा कठोर है, तीखा है, उसमें उसकी मर्यादा है' का आशय स्पष्ट कीजिए ।
(घ) 'जीवन मरु' में कौन-सा अलंकार है?
(ङ) कवि किसकी कामना करता है?

उत्तर : (क) प्रस्तुत पद्यांश " मैने आहुति बनकर देखा" से अवतरित है । जिसके रचयिता 'अज्ञेय' जी हैं।
(ख) कवि कहता है कि मैं यह नहीं चाहता कि मेरी अपनी विशिष्ट गति जो अपनाने योग्य भी नहीं है उसका अनुसरण संसार करे। मैं कब चाहता हूँ की मेरा मरूस्थल रूपी जीवन स्वर्ग के उपवन के समान हो जाये ।
(ग) काँटे की सार्थकता और उसका स्वभाव ही उसकी मर्यादा है।
(घ) 'जीवन-मरु' में उपमा अलंकार है।
(ङ) कवि ऐसे जीवन की कामना करता है। जो परिहित के लिए व्याकुल हो, चिन्तनशील हो ।

14. छायाएँ मानव-जन की दिशाहीन
सब ओर पड़ीं - वह सूरज
नहीं उगा था पूरब में, वह
बरसा सहसा
बीचों-बीच नगर के;
न सूर्य के रथ के
काल-
पहियों के ज्यों अरे टूट कर
बिखर गये हों
दसों दिशा में [2019(CV)]
(क) मानव-जन की छायाएं किस दिशा में पड़ी?
(ख) वह सूरज किस दिशा में उगा था ?
(ग) 'काल सूर्य' के रथ पंक्ति में कौन-सा अलंकार है?
(घ) दस दिशाएँ कौन-कौन सी हैं।
(ङ) इस पद्यांश के पाठ तथा उसके रचयिता का नामोल्लेख कीजिए।

उत्तर- (क) मानव जन की छायाएँ दिशाहीन होकर चारों ओर पड़ी हुई थी।
(ख) वह सूरज पूर्व दिशा में उदित नहीं हुआ था, वरन् वह नगर के बीच में अणु बम के रूप में बरस पड़ा था। नगर के बीचोंबीच फटने वाले अणु बम से सैकड़ों सूर्यों का प्रकाश और ताप निकलकर चारों ओर फैल गया था।
(ग) काल सूर्य के रथ पंक्ति में रूपक अलंकार है ।
(घ) दस दिशा से आशय है समस्त दिशाएँ ये हैं- पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण, ईशान, नैऋत्य, वायव्य, आग्नेय, ऊपर एवं नीचे।
(ङ) प्रस्तुत पद्यांश 'हिरोशिमा' नामक कविता से लिया गया है, जिसके रचयिता सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन 'अज्ञेय' द्वारा रचित हैं।

15. सावधान मनुष्य ! यदि विज्ञान है तलवार,
तो इसे दे फेंक, तजकर मोह, स्मृति के पार ।
हो चुका है सिद्ध, है तू शिशु अभी अज्ञान;
फूल काँटों की तुझे कुछ भी नहीं पहचान,
खेल सकता तू नहीं ले हाथ में तलवार,
काट लेगा अंग, तीखी है बड़ी यह धार ॥ [ 2022 (DR) |
(क) कवि ने मनुष्य को सावधान क्यों किया है?
(ख) कवि ने किसे फेंक देने के लिए कहा है?
(ग) मनुष्य को शिशु और अज्ञानी क्यों कहा गया है?
(घ) विज्ञान को तलवार क्यों कहा गया है?
(ङ) यह पद्यांश किस महाकाव्य का अंश है?

उत्तर: (क) कवि ने मनुष्य को भौतिकवादी और वैज्ञानिक युग में विज्ञान के दुष्परिणामों के प्रति अगाह करते हुए सावधान किया कि यदि तू अभी सावधान नहीं हुआ तो तुझे विज्ञान के दुष्परिणाम भोगनें पड़ेगें ।
(ख) यदि 'विज्ञान' तलवार बन जाए तो कवि इसे फेक देने के लिए कहता है।
(ग) कवि मनुष्य को अज्ञानी और शिशु इसलिए कहता है कि मनुष्य विज्ञान को क्रीडा का माध्यम बनाकर अपने ही हाथों अपना सर्वनाश करने पर तुला हुआ है।
(घ) विज्ञान को तलवार इसलिए कहा गया है कि यदि विज्ञान का सही से प्रयोग न किया जाए तो यह स्वयं को नुकसान पहुँचाती है । जिस प्रकार तलवार का इस्तेमाल सावधानीपूर्वक करना चाहिए उसी प्रकार विज्ञान का भी ।
(ङ) यह पद्यांश रामधारी सिंह 'दिनकर' द्वारा रचित 'कुरुक्षेत्र' | काव्य संग्रह के 'अभिनव मनुष्य' शीर्षक का अंश है।

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