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CGBSE Board 12th Physics Exam 2024 : Important Question with Answers

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छत्तीसगढ़ बोर्ड 12वीं की भौतिक विज्ञान परीक्षा 11 मार्च, 2024 को निर्धारित है। तो यह आर्टिकल आपके लिए काफी ज्यादा महत्वपूर्ण साबित होने वाला है क्योंकि इस आर्टिकल में आपको बोर्ड परीक्षा के लिए वो ही प्रश्न दिए गए है जो बोर्ड पेपर में आने जा रहे है।

इस पोस्ट में छत्तीसगढ़ बोर्ड 12th परीक्षा 2024 के लिए भौतिक विज्ञान के महत्वपूर्ण (CG Board 12th Physics Important Question 2024) प्रश्न दिये गये है जो आपके पेपर के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।

छात्रों को इन (CG Board 12 Physics Viral Question 2024) प्रश्नों को अच्छी तरह से याद रखना चाहिए, जिससे आपको तैयारी करने में आसानी होगी।

अब आपकी परीक्षा में कुछ ही घंटे बचे है I जिससे भौतिक विज्ञान के पेपर की तैयारी कर सकते हैं और अच्छे मार्क्स ला सकते है I

 CGBSE Board 12th Exam 2024 Physics Important Questions 

अति लघुत्तरीय प्रश्न (1 अंक)

1. विद्युत क्षेत्र का मात्रक एवं दिशा लिखिए |

Ans. विद्युत क्षेत्र का मात्रक न्यूटन/कूलॉम (N/C) है। विद्युत क्षेत्र की दिशा वह दिशा है, जिसमें रखे गए एकांक धनावेश पर लगने वाला बल कार्य करता है।

2. विद्युत धारिता का मात्रक एवं विमा लिखिए |

Ans. मात्रक: विद्युत धारिता का SI मात्रक फैरड (F) है।

विमा: विद्युत धारिता का विमा M^(-1) L^(-2) T^4 A^2 है।

3. पृथ्वी का विभव कितना होता है?

Ans. पृथ्वी का विभव शून्य

4. रेडियो सेट में किस प्रकार के संधारित्र का प्रयोग किया जाता है ?

Ans. रेडियो सेट में परिवर्ती समांतर पट्ट संधारित्र प्रयुक्त किया जाता है

5. फैराडे का विद्युत चुंबकीय प्रेरण नियम लिखिए ।

Ans. ε = -dΦ/dt

6. स्वप्रेरण को विद्युत जड़त्व क्यों कहते हैं ?

Ans. स्वप्रेरण को विद्युत जड़त्व इसलिए कहते हैं क्योंकि यह विद्युत परिपथ में धारा की वृद्धि या कमी का विरोध करता है।

7. भंवर धाराएं क्या हैं ?

Ans. भंवर धाराएं किसी चालक में परिवर्तनशील चुंबकीय क्षेत्र के कारण उत्पन्न होने वाली विद्युत धाराएं हैं।

8. अन्योन्य प्रेरण किसे कहते हैं?

Ans. अन्योन्य प्रेरण दो कुंडलियों के बीच होने वाली एक घटना है, जब एक कुंडली में धारा में परिवर्तन के कारण दूसरी कुंडली में विद्युत वाहक बल (EMF) उत्पन्न होता है।

9. लेंस की क्षमता का मात्रक लिखिए |

Ans. लेंस की क्षमता कामात्रक है डायोप्टर (D), जिसे संक्षेप में “D” कहा जाता है।

10. किस लेंस द्वारा बनाया गया प्रतिबिंब सदैव आभासी होता है और क्यों?

Ans. अवतल लेंस द्वारा बनाया गया प्रतिबिंब सदैव आभासी होता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि अवतल लेंस से गुजरने वाली प्रकाश किरणें लेंस के पीछे एक बिंदु पर अभिसरित नहीं होती हैं, बल्कि वे लेंस के पीछे की ओर फैलती हुई प्रतीत होती हैं।

11. तरंगों का अध्यारोपण सिद्धांत क्या है?

Ans. तरंगों का अध्यारोपण सिद्धांत बताता है कि जब दो या दो से ज़्यादा तरंगें मिलती हैं या ओवरलैप होती हैं, तो क्या होता है. इस सिद्धांत के मुताबिक, जब तरंगें संयोजित होती हैं, तो परिणामी तरंग हर बिंदु पर व्यक्तिगत तरंगों के विस्थापन के योग से तय होती है.

12. प्रिज्म किसे कहते हैं?

Ans. प्रिज्म एक त्रि-आयामी आकृति है जिसके दो समान और समांतर सिर होते हैं। इन सिरों को आधार कहते हैं। अन्य फलन (lateral faces) समतल भुजाएँ होती हैं।

13. प्रकाश के अपवर्तन का क्या कारण है?

Ans. प्रकाश के अपवर्तन का कारण प्रकाश की तरंग दैर्ध्य और माध्यम के अपवर्तनांक में परिवर्तन होता है।

14. एक इलेक्ट्रॉन वोल्ट का मान लिखिए |

Ans. एक इलेक्ट्रॉन वोल्ट (eV) का मान 1.602 × 10^-19 जूल होता है।

15. फोटोन की चाल वायु में कितनी होती है ?

Ans. फोटोन की चाल वायु में 3 x 10^8 मीटर प्रति सेकंड होती है

16. निरोधी विभव से आप क्या समझते हैं?

Ans. निरोधी विभव, प्रकाशविद्युत प्रभाव में, वह न्यूनतम ऋणात्मक विभव है जो एनोड पर लगाया जाना चाहिए ताकि प्रकाश से उत्सर्जित इलेक्ट्रॉन कैथोड तक न पहुंच सकें।

17. देहली आवृत्ति किसे कहते हैं?

Ans. देहली आवृत्ति प्रकाश की न्यूनतम आवृत्ति है जो किसी धातु से प्रकाशविद्युत प्रभाव उत्पन्न करने में सक्षम है।

18.द्रव्य का तरंग सिद्धांत दैनिक जीवन में दृष्टिगोचर नहीं होता क्यों ?

Ans. दैनिक जीवन में द्रव्य का तरंग-सिद्धांत दृष्टिगोचर नहीं होता क्योंकि द्रव्यमान अधिक होने से तरंगदैर्घ्य ( \lambda ) का मान काफी कम होता है

19. ताप बढ़ने पर अर्धचालक की चालकता पर क्या प्रभाव पड़ता है ?

Ans. ताप बढ़ने पर अर्धचालक की चालकता बढ़ जाती है।

20. फर्मी ऊर्जा स्तर किसे कहते हैं?

Ans. फर्मी ऊर्जा स्तर वह ऊर्जा स्तर होता है जिस पर 0°K तापमान पर एक इलेक्ट्रॉन का 50% संभावना होती है कि वह उस स्तर पर उपस्थित होगा।

लघुत्तरीय प्रश्न (2 अंक)

1. एक कूलाम आवेश में कितने इलेक्ट्रान होते है ?

Ans. एक कूलॉम आवेश में 6.25 × 10^18 इलेक्ट्रॉन होते हैं।

2. आवेश का क्वांटीकरण सिद्धांत क्या है ?

Ans. आवेश का क्वांटीकरण सिद्धांत कहता है कि किसी भी आवेशित वस्तु पर आवेश सदैव वैद्युत आवेश की मूल इकाई का पूर्ण गुणज होता है। यह इकाई एक इलेक्ट्रॉन के आवेश के परिमाण के बराबर है।

3. विद्युत फ्लक्स क्या है ? इसका विमीय सूत्र लिखिए |

Ans. विद्युत फ्लक्स क्या है?

विद्युत क्षेत्र में किसी क्षेत्रफल से गुजरने वाले विद्युत क्षेत्र रेखाओं की संख्या को विद्युत फ्लक्स (Electric Flux) कहते हैं। इसे Φ द्वारा दर्शाया जाता है।

विद्युत फ्लक्स का सूत्र:

Φ = E ∙ dA cosθ

4. समविभव पृष्ठ के कोई दो गुण लिखिए |

Ans. 

  1. विद्युत क्षेत्र सदैव समविभव पृष्ठ के लंबवत होता है: इसका मतलब है कि यदि आप समविभव पृष्ठ पर किसी बिंदु से गति करते हैं, तो विद्युत क्षेत्र के कारण आपका त्वरण हमेशा समविभव पृष्ठ के लंबवत होगा।
  2. दो समविभव पृष्ठ कभी भी प्रतिच्छेद नहीं कर सकते: यदि दो समविभव पृष्ठ प्रतिच्छेद करते हैं, तो इसका मतलब होगा कि उन पर स्थित बिंदुओं का विद्युत विभव समान होगा, जो कि संभव नहीं है।

5. समविभव पृष्ठ के कोई दो गुण लिखिए |

Ans. 

  1. समविभव पृष्ठ के प्रत्येक बिंदु पर विभव समान होता है।
  2. दो समविभव पृष्ठ एक-दूसरे को कभी नहीं काटते।

6. प्रमाणिक प्रतिरोध बनाने के लिए मिश्रधातुओं का उपयोग किया जाता है,क्यो?

Ans. 

प्रमाणिक प्रतिरोध बनाने के लिए मिश्रधातुओं का उपयोग किया जाता है, क्योंकि:

1) उच्च प्रतिरोधकता: मिश्रधातुओं की प्रतिरोधकता शुद्ध धातुओं की तुलना में अधिक होती है।
2) कम ताप गुणांक: मिश्रधातुओं का ताप गुणांक कम होता है, जिसका अर्थ है कि तापमान में परिवर्तन के साथ उनके प्रतिरोध में बहुत कम परिवर्तन होता है।
3) यांत्रिक स्थिरता: मिश्रधातुएं यांत्रिक रूप से अधिक स्थिर होती हैं, जिससे उन्हें संभालना और उपयोग करना आसान हो जाता है।
4) जंग प्रतिरोध: मिश्रधातुएं जंग के प्रति अधिक प्रतिरोधी होती हैं, जिससे वे लंबे समय तक चलती हैं।

उदाहरण: मेंगनीन, कंस्टेन्टन, नाइक्रोम आदि मिश्रधातुओं का उपयोग प्रमाणिक प्रतिरोध बनाने के लिए किया जाता है।

7. ओमीय प्रतिरोध और अनओमीय प्रतिरोध में दो अंतर लिखिए |

Ans. 

ओमीय प्रतिरोध और अनओमीय प्रतिरोध में दो अंतर:

1) वोल्टेज-धारा संबंध:

  • ओमीय प्रतिरोध में, वोल्टेज और धारा के बीच एक सीधा (रेखीय) संबंध होता है। ओम का नियम (V = IR) लागू होता है।
  • अनओमीय प्रतिरोध में, वोल्टेज और धारा के बीच एक गैर-रेखीय संबंध होता है। ओम का नियम लागू नहीं होता है।

2) प्रतिरोध का मान:

  • ओमीय प्रतिरोध में, प्रतिरोध का मान निश्चित होता है और वोल्टेज या धारा के साथ नहीं बदलता है।
  • अनओमीय प्रतिरोध में, प्रतिरोध का मान वोल्टेज या धारा के साथ बदलता रहता है।

उदाहरण:

  • ओमीय प्रतिरोध: तार, प्रतिरोधक
  • अनओमीय प्रतिरोध: डायोड, ट्रांजिस्टर, थर्मिस्टर

8. विद्युत परिपथो में उपयोग में लाये जाने वाले तार तांबे या एल्यूमीनियम के बनाये जाते है, क्यों ?

Ans. 

विद्युत परिपथों में उपयोग में लाए जाने वाले तार तांबे या एल्यूमीनियम के बने होते हैं, क्योंकि:

1) उच्च विद्युत चालकता: तांबा और एल्यूमीनियम दोनों ही उच्च विद्युत चालकता वाले धातु हैं, जिसका अर्थ है कि वे बिजली को आसानी से प्रवाहित करते हैं।
2) कम प्रतिरोध: इन धातुओं का प्रतिरोध कम होता है, जिससे ऊर्जा का कम नुकसान होता है।
3) लचीलापन: तांबा और एल्यूमीनियम दोनों ही लचीले धातु हैं, जिससे उन्हें आसानी से मोड़ा और आकार दिया जा सकता है।
4) टिकाऊ: ये धातुएं जंग प्रतिरोधी होती हैं और लंबे समय तक चलती हैं।
5) अपेक्षाकृत सस्ते: तांबा और एल्यूमीनियम अपेक्षाकृत सस्ते धातु हैं, जिससे वे विद्युत तारों के लिए किफायती विकल्प बन जाते हैं।

9. गतिशीलता से क्या तात्पर्य है इसका मात्रक लिखिए?

Ans. गतिशीलता से तात्पर्य किसी आवेश वाहक के प्रति एकांक विद्युत क्षेत्र की तीव्रता के लिए अनुगमन वेग से है।

मात्रक: मीटर^2 वोल्ट^-1 सेकंड^-1 (m^2 V^-1 s^-1)

10. कला संबंध स्रोत के लिए दो शर्ते लिखिए |

Ans. 1. दो कला संबंध स्रोतों के बीच का कलान्तर नियत होना चाहिए।
2. दो कला संबंध स्रोतों के बीच का कला अंतर नियत होना चाहिए।

11. कला संबद्ध स्रोत किसे कहते हैं ?

Ans. कला सम्बन्ध स्रोत और कला असम्बन्ध स्रोत जब दो प्रकाश स्रोत समान आवृत्ति की तरंग उत्पन्न करे और दोनों तरंगों के मध्य समय के साथ समान कलान्तर रहे अर्थात कलांतर का मान समय के साथ परिवर्तित न हो तो ऐसे स्रोत जिनसे ये तरंगे उत्पन्न हो रही है उन्हें कला सम्बंध स्रोत कहते है।

12. क्या दो स्वतंत्र प्रकाश स्रोत व्यतिकरण कर सकते हैं? कारण दीजिए|

Ans. 

नहीं, दो स्वतंत्र प्रकाश स्रोत व्यतिकरण नहीं कर सकते हैं। इसका कारण यह है कि स्वतंत्र प्रकाश स्रोतों के बीच कला संबंध (phase relationship) स्थापित नहीं होता है। कला संबंध स्थापित होने के लिए, दो स्रोतों द्वारा उत्सर्जित तरंगों के बीच कला अंतर (phase difference) और कलान्तर (time difference) नियत (constant) होना आवश्यक है।

कारण:

  1. अनियमित कलान्तर: स्वतंत्र प्रकाश स्रोतों द्वारा उत्सर्जित प्रकाश के फोटॉन स्वतंत्र रूप से उत्सर्जित होते हैं। इसलिए, उनके उत्सर्जन के बीच का कलान्तर अनियमित (random) होता है।
  2. अनियमित कला अंतर: स्वतंत्र प्रकाश स्रोतों द्वारा उत्सर्जित प्रकाश के फोटॉन की ऊर्जा में भिन्नता होती है। इसलिए, उनके उत्सर्जन के बीच का कला अंतर भी अनियमित (random) होता है।

13. श्रव्य तरंगो का आवृति परास लिखिए |

Ans. श्रव्य तरंगों का आवृत्ति परास

मानव कान 20 हर्ट्ज से 20,000 हर्ट्ज (Hz) तक की आवृत्ति वाली ध्वनि तरंगों को सुन सकता है। 20 हर्ट्ज से कम आवृत्ति वाली ध्वनि तरंगों को अश्रव्य तरंगें (infrasound) और 20,000 हर्ट्ज से अधिक आवृत्ति वाली ध्वनि तरंगों को पराश्रव्य तरंगें (ultrasound) कहा जाता है।

14. माडूलन का उद्देश्य क्या है ?

Ans. माडूलन का उद्देश्य

माडुलन का उद्देश्य निम्नलिखित है:

1. सूचना प्रसारण:

  • सूचना (जैसे आवाज, वीडियो, डेटा) को एक उच्च आवृत्ति तरंग (वाहक तरंग) पर अध्यारोपित करके लंबी दूरी तक प्रेषित किया जा सकता है।
  • वाहक तरंग वायुमंडल, जल या किसी अन्य माध्यम से आसानी से यात्रा कर सकती है।
  • सूचना को वाहक तरंग से अलग करके प्राप्त किया जा सकता है।

2. शोर में कमी:

  • वाहक तरंग उच्च आवृत्ति वाली होती है, जो शोर के प्रति कम संवेदनशील होती है।
  • सूचना वाहक तरंग पर अध्यारोपित होने से शोर में कमी आती है।

3. बैंडविड्थ कुशलता:

  • विभिन्न सूचनाओं को एक ही वाहक तरंग पर अध्यारोपित करके बैंडविड्थ का कुशल उपयोग किया जा सकता है।
  • यह कई संकेतों को एक साथ प्रसारित करने की अनुमति देता है।

4. सुरक्षा:

  • सूचना को वाहक तरंग पर अध्यारोपित करके अनधिकृत पहुंच से सुरक्षित किया जा सकता है।
  • वाहक तरंग को डिक्रिप्ट करने के लिए एक विशेष कुंजी की आवश्यकता होती है।

15. संचार उपग्रह की दो हानियां लिखिए |

Ans. संचार उपग्रह की दो हानियां:

1. उच्च लागत:

  • संचार उपग्रहों को विकसित, प्रक्षेपित और संचालित करने में बहुत अधिक खर्च होता है।
  • यह उन्हें छोटे व्यवसायों और व्यक्तियों के लिए पहुंच से बाहर कर सकता है।

2. विलंब:

  • उपग्रह से संकेतों को पृथ्वी पर वापस आने में समय लगता है।
  • यह वास्तविक समय संचार के लिए एक समस्या हो सकती है, जैसे कि वीडियो कॉलिंग।

16. विमाडुलन से क्या तात्पर्य है?

Ans. विमाडुलन से तात्पर्य:

विमाडुलन (Demodulation) मॉडुलन (Modulation) की विपरीत प्रक्रिया है।

मॉडुलन में, सूचना (जैसे आवाज, वीडियो, डेटा) को एक उच्च आवृत्ति तरंग (वाहक तरंग) पर अध्यारोपित किया जाता है।

विमाडुलन में, वाहक तरंग से सूचना को अलग किया जाता है।

विमाडुलन के कार्य करने वाले इलेक्ट्रॉनिक परिपथ को विमाडुलक (Demodulator) कहा जाता है।

17. अंकीय संकेत क्या है ? उदाहरण दीजिए |

Ans. अंकीय संकेत क्या है?

अंकीय संकेत (Digital Signal) एक ऐसा संकेत है जो असतत मानों का उपयोग करके जानकारी को दर्शाता है।

उदाहरण:

  • बाइनरी अंकीय संकेत: 0 और 1 का उपयोग करके जानकारी को दर्शाता है। उदाहरण के लिए, "1001" बाइनरी संख्या दशमलव संख्या 9 का प्रतिनिधित्व करती है।
  • दशमलव अंकीय संकेत: 0 से 9 तक की संख्याओं का उपयोग करके जानकारी को दर्शाता है। उदाहरण के लिए, "3.14" दशमलव संख्या पाई का प्रतिनिधित्व करती है।

18. व्योम तरंग संचार क्या है? इसकी दो विशेषताएँ लिखिए |

Ans. व्योम तरंग संचार:

व्योम तरंग संचार एक प्रकार का रेडियो संचार है जिसमें रेडियो तरंगें आयनमंडल से परावर्तित होकर लंबी दूरी तक यात्रा करती हैं।

विशेषताएं:

1. लंबी दूरी: व्योम तरंगें पृथ्वी की वक्रता का अनुसरण कर सकती हैं, जिससे वे लंबी दूरी तक यात्रा कर सकती हैं।

2. कम शक्ति: व्योम तरंग संचार के लिए कम शक्ति की आवश्यकता होती है क्योंकि रेडियो तरंगें आयनमंडल से परावर्तित होती हैं।

19. डिजिटल संचार की तीन विशेषताएं लिखिए |

Ans. डिजिटल संचार की तीन विशेषताएं:

1. डेटा: डिजिटल संचार में, जानकारी को डेटा के रूप में दर्शाया जाता है, जो 0 और 1 जैसे असतत मानों का उपयोग करता है।
2. त्रुटि सुधार: डिजिटल संचार में, त्रुटि सुधार तकनीकों का उपयोग किया जाता है जो डेटा में त्रुटियों को ठीक करने में मदद करते हैं।
3. सुरक्षा: डिजिटल संचार में, डेटा को एन्क्रिप्ट किया जा सकता है, जो इसे अनधिकृत पहुंच से बचाता है।

20. माडूलन क्या है? इसके प्रकारों को स्पष्ट कीजिये |

Ans. माडुलन क्या है?

माडुलन एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें एक सूचना संकेत, जिसे आधारभूत संकेत (baseband signal) भी कहा जाता है, को एक उच्च आवृत्ति वाले वाहक संकेत (carrier signal) के साथ संयोजित किया जाता है। इसका उद्देश्य सूचना संकेत को लंबी दूरी तक प्रभावी ढंग से संचारित करना है।

माडुलन के प्रकार:

1. आयाम मॉडुलन (AM): इस प्रकार में, वाहक संकेत के आयाम को आधारभूत संकेत के अनुसार बदल दिया जाता है।

2. आवृत्ति मॉडुलन (FM): इस प्रकार में, वाहक संकेत की आवृत्ति को आधारभूत संकेत के अनुसार बदल दिया जाता है।

3. चरण मॉडुलन (PM): इस प्रकार में, वाहक संकेत के चरण को आधारभूत संकेत के अनुसार बदल दिया जाता है।

4. डिजिटल मॉडुलन: इस प्रकार में, आधारभूत संकेत को डिजिटल डेटा में परिवर्तित किया जाता है और फिर वाहक संकेत के साथ संयोजित किया जाता है।

लघुत्तरीय प्रश्न (3 अंक)

1. निम्न का अर्थ समझाइए:-
1. प्रतिरोधकता 2. चालकत्व 3. विभव प्रवणता

Ans. 1. प्रतिरोधकता:

प्रतिरोधकता किसी पदार्थ की विद्युत धारा का विरोध करने की क्षमता है। यह ओम (Ω) में मापी जाती है।

2. चालकत्व:

चालकत्व किसी पदार्थ की विद्युत धारा का संचालन करने की क्षमता है। यह सीमेंस (S) में मापी जाती है।

3. विभव प्रवणता:

विभव प्रवणता किसी विद्युत क्षेत्र में प्रति इकाई दूरी पर विभव में परिवर्तन की दर है। यह वोल्ट प्रति मीटर (V/m) में मापी जाती है।

2. किरचॉफ के प्रथम नियम व द्वितीय नियम लिखकर समझाइए |

Ans. किरचॉफ के नियम:

किरचॉफ के नियम विद्युत परिपथों में धाराओं और विभवान्तरों का विश्लेषण करने के लिए दो महत्वपूर्ण नियम हैं।

1. किरचॉफ का प्रथम नियम (वर्तमान का संरक्षण):

किसी भी जंक्शन में प्रवेश करने वाली धाराओं का योग जंक्शन से बाहर निकलने वाली धाराओं के योग के बराबर होता है।

Σi = Σo

जहां:

  • Σi = जंक्शन में प्रवेश करने वाली धाराओं का योग
  • Σo = जंक्शन से बाहर निकलने वाली धाराओं का योग

2. किरचॉफ का द्वितीय नियम (विभव का संरक्षण):

किसी भी बंद लूप में, विद्युत क्षेत्रीय बल (E) द्वारा किए गए कार्य का कुल योग शून्य होता है।

ΣEd = 0

जहां:

  • ΣEd = लूप में विद्युत क्षेत्रीय बल द्वारा किए गए कार्य का कुल योग

3. विद्युत वाहक बल और विभवांतर में तीन अंतर लिखिए ||

Ans. विद्युत वाहक बल और विभवांतर में तीन अंतर:

  1. प्रकृति:
  • विद्युत वाहक बल (EMF): यह एक कारण है जो विद्युत परिपथ में धारा प्रवाहित करता है। इसे वोल्ट (V) में मापा जाता है।
  • विभवांतर (PD): यह एक परिणाम है जो विद्युत परिपथ में दो बिंदुओं के बीच विद्युत ऊर्जा के अंतर को दर्शाता है। इसे वोल्ट (V) में भी मापा जाता है।
  1. मापन:
  • EMF: इसे एक वोल्टमीटर द्वारा मापा जाता है जो परिपथ को खोलकर दो बिंदुओं के बीच वोल्टेज को मापता है।
  • PD: इसे एक वोल्टमीटर द्वारा मापा जाता है जो परिपथ को खोले बिना दो बिंदुओं के बीच वोल्टेज को मापता है।
  1. स्रोत:
  • EMF: यह एक विद्युत स्रोत जैसे कि बैटरी, जनरेटर, या सेल द्वारा प्रदान किया जाता है।
  • PD: यह विद्युत क्षेत्र द्वारा प्रदान किया जाता है।

4. प्रतिरोध व प्रतिरोधकता में 3 अंतर लिखिए |

Ans. प्रतिरोध और प्रतिरोधकता में 3 अंतर:

1. परिभाषा:

  • प्रतिरोध: यह किसी विद्युत अवयव की विद्युत धारा का विरोध करने की क्षमता है। इसे ओम (Ω) में मापा जाता है।
  • प्रतिरोधकता: यह किसी पदार्थ की विद्युत धारा का विरोध करने की क्षमता है। इसे ओम-मीटर (Ωm) में मापा जाता है।

2. सूत्र:

  • प्रतिरोध: R = V/I
  • प्रतिरोधकता: ρ = RΑ/l

जहां:

  • R = प्रतिरोध
  • ρ = प्रतिरोधकता
  • V = विभवांतर
  • I = धारा
  • A = पदार्थ का अनुप्रस्थ काट क्षेत्रफल
  • l = पदार्थ की लंबाई

3. अनुप्रयोग:

  • प्रतिरोध: इसका उपयोग विभिन्न प्रकार के विद्युत अवयवों जैसे कि प्रतिरोधक, तार, और हीटर में किया जाता है।
  • प्रतिरोधकता: इसका उपयोग विभिन्न प्रकार के पदार्थों जैसे कि धातु, अर्धचालक, और इन्सुलेटर की विद्युत चालकता को वर्गीकृत करने के लिए किया जाता है।

5. विभवमापी और वोल्टमीटर में 3 अंतर लिखिए |

Ans. विभवमापी और वोल्टमीटर में 3 अंतर:

1. कार्य:

  • विभवमापी: यह किसी विद्युत परिपथ में दो बिंदुओं के बीच विभवांतर (PD) को मापने के लिए उपयोग किया जाता है।
  • वोल्टमीटर: यह किसी विद्युत परिपथ में दो बिंदुओं के बीच विभव (V) को मापने के लिए उपयोग किया जाता है।

2. मापन विधि:

  • विभवमापी: यह शून्य संतुलन विधि का उपयोग करके PD को मापता है।
  • वोल्टमीटर: यह गतिमान-कुंडल या डिजिटल विधि का उपयोग करके V को मापता है।

3. सटीकता:

  • विभवमापी: यह वोल्टमीटर की तुलना में अधिक सटीक होता है।
  • वोल्टमीटर: यह विभवमापी की तुलना में कम सटीक होता है।

6. चुंबकीय द्विध्रुव आघूर्ण को परिभाषित कर मात्रक लिखिए |

Ans. चुंबकीय द्विध्रुव आघूर्ण:

परिभाषा:

चुंबकीय द्विध्रुव आघूर्ण एक सदिश राशि है जो किसी चुंबकीय द्विध्रुव की दिक् और तीव्रता दोनों को दर्शाता है। यह धारावाही लूप या स्थायी चुंबक द्वारा उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्र के प्रभाव को मापता है।

सूत्र:

m = NIA

जहां:

  • m = चुंबकीय द्विध्रुव आघूर्ण (एम्पीयर-मीटर^2)
  • N = लूप में घुमावों की संख्या
  • I = लूप में प्रवाहित धारा (एम्पीयर)
  • A = लूप का क्षेत्रफल (मीटर^2)

मात्रक:

चुंबकीय द्विध्रुव आघूर्ण का SI मात्रक एम्पीयर-मीटर^2 (A-m^2) है। इसे एम्पीयर-वर्ग मीटर (A⋅m^2) या वेबर-मीटर (Wb⋅m) भी लिखा जाता है।

7. चल कुंडल धारामापी का सिद्धांत लिखिए |

Ans. चल कुंडल धारामापी का सिद्धांत:

चल कुंडल धारामापी एक विद्युत उपकरण है जिसका उपयोग विद्युत धारा को मापने के लिए किया जाता है। यह फ्लेमिंग के बाएं हाथ के नियम पर आधारित है।

8. चुंबकीय बल रेखा किसे कहते हैं ? चार विशेषताएं लिखिए |

Ans. चुंबकीय बल रेखा:

परिभाषा:

चुंबकीय बल रेखा एक काल्पनिक रेखा है जो चुंबकीय क्षेत्र में किसी बिंदु पर चुंबकीय बल की दिशा और तीव्रता को दर्शाती है।

विशेषताएं:

  1. दिशा: चुंबकीय बल रेखाएं चुंबकीय क्षेत्र में चुंबकीय बल की दिशा को दर्शाती हैं।
  2. तीव्रता: चुंबकीय बल रेखाओं की घनता चुंबकीय क्षेत्र की तीव्रता को दर्शाती है।
  3. बंद वक्र: चुंबकीय बल रेखाएं हमेशा बंद वक्र बनाती हैं।
  4. एक दूसरे को नहीं काटती: चुंबकीय बल रेखाएं एक दूसरे को नहीं काटती

9. चल कुंडल धारामापी में त्रिज्यीय चुंबकीय क्षेत्र का क्या महत्व है?

Ans. चल कुंडल धारामापी में त्रिज्यीय चुंबकीय क्षेत्र का महत्व:

चल कुंडल धारामापी में त्रिज्यीय चुंबकीय क्षेत्र का महत्वपूर्ण योगदान है। यह निम्नलिखित 3 कारणों से महत्वपूर्ण है:

1. सरलता और सटीकता:

  • त्रिज्यीय चुंबकीय क्षेत्र में, कुंडली पर बल का मान धारा के मान के समानुपाती होता है।
  • यह सरलता और सटीकता के साथ धारा को मापना संभव बनाता है।

2. समान बल:

  • त्रिज्यीय चुंबकीय क्षेत्र में, कुंडली के सभी भागों पर समान बल कार्य करता है।
  • यह समान और स्थिर रीडिंग सुनिश्चित करता है।

3. अधिकतम टोक़:

  • त्रिज्यीय चुंबकीय क्षेत्र में, कुंडली पर अधिकतम टोक़ उत्पन्न होता है।
  • यह संवेदनशीलता और सटीकता को बढ़ाता है।

10. धारावाही लम्बी परिनालिका के स्वप्रेकत्व का सूत्र स्थापित कीजिए |

Ans. धारावाही लम्बी परिनालिका के स्वप्रेरकत्व का सूत्र:

स्वप्रेरकत्व:

स्वप्रेरकत्व एक भौतिक गुण है जो किसी परिनालिका में विद्युत धारा में परिवर्तन के कारण प्रेरित विद्युत वाहक बल (emf) के विरोध का प्रतिनिधित्व करता है।

सूत्र:

L = μ₀N²Al/l

जहां:

  • L = स्वप्रेरकत्व (हेनरी)
  • μ₀ = निर्वात की चुंबकीय पारगम्यता (4π × 10⁻⁷ H/m)
  • N = परिनालिका में घुमावों की संख्या
  • A = परिनालिका का अनुप्रस्थ काट क्षेत्रफल (मीटर²)
  • l = परिनालिका की लंबाई (मीटर)

11. भंवर धाराएं क्या है ? इसके उपयोग लिखिए |

Ans. भंवर धाराएं:

परिभाषा:

भंवर धाराएं विद्युत धाराएं होती हैं जो किसी विद्युत चालक पदार्थ में परिवर्तनशील चुंबकीय क्षेत्र के कारण उत्पन्न होती हैं।

उपयोग:

  • विद्युत मोटर: भंवर धाराओं का उपयोग विद्युत मोटर में घूर्णन बल उत्पन्न करने के लिए किया जाता है।
  • विद्युत जनरेटर: भंवर धाराओं का उपयोग विद्युत जनरेटर में विद्युत ऊर्जा उत्पन्न करने के लिए किया जाता है।
  • विद्युत ट्रांसफार्मर: भंवर धाराओं का उपयोग विद्युत ट्रांसफार्मर में चुंबकीय प्रवाह को नियंत्रित करने के लिए किया जाता है।
  • भंवर धारा तापन: भंवर धाराओं का उपयोग धातुओं को गर्म करने के लिए किया जाता है।

12. प्रतिघात और प्रतिबाधा में तीन अंतर लिखिए |

Ans. प्रतिघात और प्रतिबाधा में तीन अंतर:

1. परिभाषा:

  • प्रतिघात: प्रत्यावर्ती धारा (AC) परिपथ में केवल प्रेरक कुंडली अथवा केवल संधारित्र के द्वार AC के मार्ग में उत्पन्न अवरोध को प्रतिघात कहते हैं।
  • प्रतिबाधा: AC परिपथ में ओमीय प्रतिरोध, प्रेरक कुंडली और संधारित्र में से दो या दो से अधिक अवयवों के द्वारा डाले गये अवरोध को प्रतिबाधा कहते हैं।

2. सूत्र:

  • प्रतिघात: X = 2πfL (प्रेरक कुंडली के लिए)
  • प्रतिघात: X = 1/2πfC (संधारित्र के लिए)
  • प्रतिबाधा: Z = √(R² + X²)

3. प्रभाव:

  • प्रतिघात: AC परिपथ में धारा और वोल्टेज के बीच फेज अंतर उत्पन्न करता है।
  • प्रतिबाधा: AC परिपथ में धारा को सीमित करता है।

13. विद्युत चुंबकीय तरंग को परिभाषित कीजिए | इनकी 3 विशेषताएं लिखिए |

Ans. परिभाषा:

विद्युत चुंबकीय तरंग एक अनुप्रस्थ तरंग है जो विद्युत क्षेत्र और चुंबकीय क्षेत्र के दोलन से उत्पन्न होती है।

विशेषताएं:

  1. विद्युत और चुंबकीय क्षेत्र: विद्युत चुंबकीय तरंग में विद्युत क्षेत्र और चुंबकीय क्षेत्र दोनों होते हैं।
  2. अनुप्रस्थ तरंग: विद्युत चुंबकीय तरंग अनुप्रस्थ तरंग होती है, जिसका अर्थ है कि विद्युत क्षेत्र और चुंबकीय क्षेत्र तरंग की गति की दिशा के लंबवत होते हैं।
  3. निर्वात में गति: विद्युत चुंबकीय तरंग निर्वात में प्रकाश की गति से गति करती है।

14.ध्वनि तरंगों एवं विद्युत चुंबकीय तरंगों में तीन अंतर लिखिए |

Ans. ध्वनि तरंगों एवं विद्युत चुंबकीय तरंगों में तीन अंतर:

1. माध्यम:

  • ध्वनि तरंगें: ध्वनि तरंगें यांत्रिक तरंगें होती हैं जो किसी माध्यम (जैसे हवा, पानी, ठोस) में गति करती हैं।
  • विद्युत चुंबकीय तरंगें: विद्युत चुंबकीय तरंगें गैर-यांत्रिक तरंगें होती हैं जो निर्वात और माध्यम दोनों में गति कर सकती हैं।

2. प्रकृति:

  • ध्वनि तरंगें: ध्वनि तरंगें अनुदैर्ध्य तरंगें होती हैं, जिसका अर्थ है कि कणों का कंपन तरंग की गति की दिशा में होता है।
  • विद्युत चुंबकीय तरंगें: विद्युत चुंबकीय तरंगें अनुप्रस्थ तरंगें होती हैं, जिसका अर्थ है कि विद्युत क्षेत्र और चुंबकीय क्षेत्र का कंपन तरंग की गति की दिशा के लंबवत होता है।

3. गति:

  • ध्वनि तरंगें: ध्वनि तरंगों की गति माध्यम और तापमान पर निर्भर करती है।
  • विद्युत चुंबकीय तरंगें: विद्युत चुंबकीय तरंगें निर्वात में प्रकाश की गति से गति करती हैं।

15. विस्थापन धारा किसे कहते हैं व्यंजक लिखकर समझाइए ।

Ans. परिभाषा:

विस्थापन धारा एक काल्पनिक धारा है जो विद्युत क्षेत्र में परिवर्तन के कारण उत्पन्न होती है। यह वास्तविक धारा नहीं है, बल्कि गणितीय अवधारणा है।

व्यंजक:

J_d = ε₀ ∂E/∂t

जहां:

  • J_d = विस्थापन धारा (A/m²)
  • ε₀ = निर्वात की पारगम्यता (8.85 × 10⁻¹² C²/Nm²)
  • E = विद्युत क्षेत्र (V/m)
  • t = समय (s)

समझाना:

  • फैराडे के विद्युत चुम्बकीय प्रेरण के नियम के अनुसार, किसी बंद पाश में प्रेरित emf पाश से गुजरने वाले चुंबकीय प्रवाह के परिवर्तन की दर के समानुपाती होता है।
  • विद्युत क्षेत्र में परिवर्तन चुंबकीय प्रवाह में परिवर्तन उत्पन्न करता है।
  • विस्थापन धारा को गणितीय रूप से चुंबकीय प्रवाह में परिवर्तन की दर के रूप में परिभाषित किया जाता है।

16. संपोषी व विनाशी व्यतीकरण को परिभाषित कर शर्त लिखिए |

Ans. परिभाषा:

  • संपोषी व्यतिकरण: जब दो या दो से अधिक तरंगें एक ही स्थान पर मिलती हैं और उनकी तरींगों का शीर्ष एक ही बिंदु पर आता है, तो वे एक दूसरे को मजबूत करते हैं और प्रकाश की तीव्रता अधिकतम हो जाती है। इसे संपोषी व्यतिकरण कहते हैं।
  • विनाशी व्यतिकरण: जब दो या दो से अधिक तरंगें एक ही स्थान पर मिलती हैं और उनकी तरींगों का शीर्ष एक दूसरे के विपरीत दिशा में होता है, तो वे एक दूसरे को कमजोर करते हैं और प्रकाश की तीव्रता न्यूनतम हो जाती है। इसे विनाशी व्यतिकरण कहते हैं।

शर्त:

संपोषी व्यतिकरण:

  • तरंगों की आवृत्ति समान होनी चाहिए।
  • तरंगों का तरंग दैर्ध्य समान होनी चाहिए।
  • तरंगों का कला समान होना चाहिए।
  • तरंगों का पथ अंतर तरंग दैर्ध्य का पूर्णांक गुणज होना चाहिए।

विनाशी व्यतिकरण:

  • तरंगों की आवृत्ति समान होनी चाहिए।
  • तरंगों का तरंग दैर्ध्य समान होनी चाहिए।
  • तरंगों का कला विपरीत होना चाहिए।
  • तरंगों का पथ अंतर तरंग दैर्ध्य का अर्ध-पूर्णांक गुणज होना चाहिए।

17. क्रांतिक कोण किसे कहते हैं? यह किन किन कारकों पर निर्भर करता है ?

Ans. क्रांतिक कोण:

परिभाषा:

क्रांतिक कोण वह आपतन कोण है जिसके लिए अपवर्तन कोण 90° होता है।

कारक:

  • प्रकाश की प्रकृति: क्रांतिक कोण प्रकाश की प्रकृति पर निर्भर करता है। विभिन्न माध्यमों के लिए क्रांतिक कोण अलग-अलग होता है।
  • माध्यमों का अपवर्तनांक: क्रांतिक कोण माध्यमों के अपवर्तनांक पर निर्भर करता है। जिस माध्यम से प्रकाश अधिक घन होता है, उस माध्यम के लिए क्रांतिक कोण अधिक होता है।

18. न्यूनतम विचलन कोण को परिभाषित कीजिए |

Ans. न्यूनतम विचलन कोण:

परिभाषा:

न्यूनतम विचलन कोण वह विचलन कोण है जिसके लिए प्रकाश की किरण प्रिज्म से निकलने के बाद अपनी मूल दिशा में सबसे कम विचलित होती है।

विशेषताएं:

  • न्यूनतम विचलन कोण प्रिज्म के पदार्थ और प्रकाश की तरंग दैर्ध्य पर निर्भर करता है।
  • न्यूनतम विचलन कोण के लिए आपतन कोण और अपवर्तन कोण समान होते हैं।
  • न्यूनतम विचलन कोण का उपयोग प्रिज्म के पदार्थ का अपवर्तनांक ज्ञात करने के लिए किया जाता है।

19. द्रव्य तरंग क्या है ? द्रव्य तरंगों की विशेषताएं लिखिए ।

Ans. द्रव्य तरंग:

परिभाषा:

द्रव्य तरंग एक ऐसी तरंग है जो द्रव्य कणों द्वारा प्रदर्शित की जाती है। यह तरंग दैर्ध्य और आवृत्ति जैसी तरंगों के समान गुणों को प्रदर्शित करता है।

विशेषताएं:

  • द्रव्य तरंगों की तरंग दैर्ध्य कण के द्रव्यमान और वेग पर निर्भर करती है।
  • द्रव्य तरंगों की आवृत्ति कण के ऊर्जा पर निर्भर करती है।
  • द्रव्य तरंगों का प्रसार निर्वात में भी हो सकता है।
  • द्रव्य तरंगों का प्रसार माध्यम में भी हो सकता है।
  • द्रव्य तरंगों का उपयोग इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी में किया जाता है.

20. एनालॉग तथा डिजिटल सिग्नल के बीच कोई 3 अंतर लिखिए |

Ans. एनालॉग और डिजिटल सिग्नल के बीच 3 अंतर:

  1. रूप: एनालॉग सिग्नल निरंतर होते हैं, जबकि डिजिटल सिग्नल असतत होते हैं।
  2. मान: एनालॉग सिग्नल किसी भी मान को धारण कर सकते हैं, जबकि डिजिटल सिग्नल केवल 0 और 1 मान धारण कर सकते हैं।
  3. प्रदूषण: एनालॉग सिग्नल शोर के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं, जबकि डिजिटल सिग्नल शोर के प्रति कम संवेदनशील होते हैं।

दीर्घउत्तरीय प्रश्न (5 अंक)

1. गाउस प्रमेय लिखिए एवं गाउस प्रमेय से कूलाम के नियम का निगमन कीजिए |

Ans. गाउस प्रमेय और कूलॉम के नियम का संबंध

1. गाउस प्रमेय:

गॉस का प्रमेय विद्युत क्षेत्र (Electric Field) से संबंधित एक मूलभूत प्रमेय है। यह बताता है कि किसी बंद सतह से गुजरने वाला कुल विद्युत फ्लक्स (Electric Flux), उस सतह के अंदर संलग्न कुल आवेश (Total Charge) के समानुपाती होता है, निर्वात की पारगम्यता (Permittivity of Free Space) से विभाजित होकर।

गणितीय रूप से, गाउस प्रमेय को निम्न प्रकार से व्यक्त किया जाता है:

∮ S • E ⋅ dA = Q / ε₀

जहां:

  • ∮ - बंद सतह पर समाकलन (Integral)
  • S - बंद सतह का क्षेत्रफल वेक्टर (Area Vector)
  • E - विद्युत क्षेत्र (Electric Field)
  • dA - क्षेत्रफल का微-तत्व (Infinitesimal Area Element)
  • Q - बंद सतह के अंदर संलग्न कुल आवेश (Total Enclosed Charge)
  • ε₀ - निर्वात की पारगम्यता (Permittivity of Free Space) (8.85 × 10⁻¹² C²/Nm²)

2. गाउस प्रमेय से कूलॉम के नियम का निगमन:

कूलॉम का नियम दो बिंदु आवेशों के बीच लगने वाले बल का मात्रात्मक संबंध बताता है। हम गाउस प्रमेय का उपयोग करके कूलॉम के नियम को प्राप्त कर सकते हैं।

निम्नलिखित चरणों का पालन करके गाउस प्रमेय से कूलॉम के नियम को प्राप्त किया जा सकता है:

  • एक बिंदु आवेश Q को एक गोलाकार सतह के केंद्र में रखें।
  • गाउस प्रमेय को इस गोलाकार सतह पर लागू करें।
  • चूंकि आवेश Q केवल सतह के अंदर संलग्न है, इसलिए कुल आवेश (Q) होगा।
  • गोलाकार सतह के लिए, विद्युत क्षेत्र (E) हर बिंदु पर सतह के लंबवत होगा और परिमाण में समान होगा।
  • गोलाकार सतह के क्षेत्रफल को समाकलन करना सरल ज्यामितीय संबंधों का उपयोग करके किया जा सकता है, जिसके परिणामस्वरूप 4πε² आता है।

इन चरणों का पालन करने पर, हमें निम्न समीकरण प्राप्त होता है:

4πε² • E = Q / ε₀

इस समीकरण को पुनर्व्यवस्थित करने पर, हमें कूलॉम के नियम का परिचित रूप प्राप्त होता है:

F = k * Q₁ * Q₂ / r²

जहां:

  • F - आवेशों के बीच लगने वाला बल (Force)
  • k - कूलॉम नियतांक (Coulomb's Constant) (8.99 × 10⁹ Nm²/C²)
  • Q₁ और Q₂ - बिंदु आवेश (Point Charges)
  • r - आवेशों के बीच की दूरी (Distance)

2. संधारित्र में संचित ऊर्जा को परिभाषित कर व्यंजक प्राप्त कीजिए |

Ans. संधारित्र में संचित ऊर्जा:

परिभाषा:

संधारित्र में संचित ऊर्जा वह ऊर्जा है जो विद्युत क्षेत्र में संचित होती है जब संधारित्र को आवेशित किया जाता है।

व्यंजक:

संधारित्र में संचित ऊर्जा (U) का व्यंजक निम्न प्रकार है:

U = 1/2 * C * V²

जहां:

  • U - संधारित्र में संचित ऊर्जा (Joules)
  • C - संधारित्र की धारिता (Farads)
  • V - संधारित्र के टर्मिनलों के बीच का विभवांतर (Volts)

व्युत्पत्ति:

संधारित्र को चार्ज करने के लिए, हमें विद्युत क्षेत्र को बनाना होता है। यह ऊर्जा की आवश्यकता होती है।

ऊर्जा की मात्रा विद्युत क्षेत्र की तीव्रता और क्षेत्रफल पर निर्भर करती है।

संधारित्र के लिए, विद्युत क्षेत्र संधारित्र की प्लेटों के बीच समान होता है।

विद्युत क्षेत्र की तीव्रता (E) निम्न प्रकार है:

E = V / d

जहां:

  • E - विद्युत क्षेत्र की तीव्रता (Volts/meter)
  • V - संधारित्र के टर्मिनलों के बीच का विभवांतर (Volts)
  • d - प्लेटों के बीच की दूरी (meters)

विद्युत क्षेत्र में संचित ऊर्जा (U) निम्न प्रकार है:

U = 1/2 * ε₀ * E² * A

जहां:

  • U - विद्युत क्षेत्र में संचित ऊर्जा (Joules)
  • ε₀ - निर्वात की पारगम्यता (Permittivity of Free Space) (8.85 × 10⁻¹² C²/Nm²)
  • E - विद्युत क्षेत्र की तीव्रता (Volts/meter)
  • A - प्लेटों का क्षेत्रफल (Area)

संधारित्र की धारिता (C) निम्न प्रकार है:

C = ε₀ * A / d

C और E के लिए समीकरणों को U के समीकरण में प्रतिस्थापित करने पर, हमें U = 1/2 * C * V² प्राप्त होता है।

3. गॉस प्रमेय लिखिए तथा सिद्ध कीजिए।

Ans. गॉस प्रमेय:

गॉस प्रमेय विद्युत क्षेत्र (Electric Field) से संबंधित एक मूलभूत प्रमेय है। यह बताता है कि किसी बंद सतह से गुजरने वाला कुल विद्युत फ्लक्स (Electric Flux), उस सतह के अंदर संलग्न कुल आवेश (Total Charge) के समानुपाती होता है, निर्वात की पारगम्यता (Permittivity of Free Space) से विभाजित होकर।

गणितीय रूप से, गॉस प्रमेय को निम्न प्रकार से व्यक्त किया जाता है:

∮ S • E ⋅ dA = Q / ε₀

जहां:

  • ∮ - बंद सतह पर समाकलन (Integral)
  • S - बंद सतह का क्षेत्रफल वेक्टर (Area Vector)
  • E - विद्युत क्षेत्र (Electric Field)
  • dA - क्षेत्रफल का微-तत्व (Infinitesimal Area Element)
  • Q - बंद सतह के अंदर संलग्न कुल आवेश (Total Enclosed Charge)
  • ε₀ - निर्वात की पारगम्यता (Permittivity of Free Space) (8.85 × 10⁻¹² C²/Nm²)

सिद्धांत:

गॉस प्रमेय को सिद्ध करने के लिए, हम निम्नलिखित चरणों का पालन करते हैं:

  1. एक बंद सतह S पर विचार करें।
  2. सतह S को N छोटे क्षेत्रफलों dA₁ में विभाजित करें।
  3. प्रत्येक क्षेत्रफल dAᵢ पर विद्युत क्षेत्र Eᵢ का मान ज्ञात करें।
  4. प्रत्येक क्षेत्रफल dAᵢ से गुजरने वाले विद्युत फ्लक्स dΦᵢ को ज्ञात करें:

dΦᵢ = Eᵢ • dAᵢ

  1. कुल विद्युत फ्लक्स Φ को ज्ञात करें:

Φ = Σ dΦᵢ

  1. सतह S के अंदर संलग्न कुल आवेश Q को ज्ञात करें।
  2. गॉस प्रमेय के अनुसार:

Φ = Q / ε₀

  1. चरण 5, 6 और 7 से, हमें प्राप्त होता है:

Σ Eᵢ • dAᵢ = Q / ε₀

  1. यह समीकरण सभी बंद सतहों S के लिए सत्य है।
  2. इसलिए, गॉस प्रमेय सिद्ध होता है।

4. A और B के बीच तुल्य धारिता हेतु ज्ञात कीजिये |

Ans. 

A और B के बीच तुल्य धारिता ज्ञात करने के लिए, हमें निम्नलिखित चरणों का पालन करना होगा:
  1. संधारित्रों का प्रकार निर्धारित करें:

    • यदि A और B समान्तर प्लेट संधारित्र हैं, तो उनका तुल्य धारिता व्यवस्थित रूप से जोड़कर प्राप्त किया जा सकता है।
    • यदि A और B श्रृंखला में जुड़े संधारित्र हैं, तो उनका तुल्य धारिता व्यवस्थित रूप से व्यस्त करके प्राप्त किया जा सकता है।
  2. संधारित्रों के मान ज्ञात करें:

    • A और B की धारिता (C) ज्ञात करें।
  3. संधारित्रों के प्रकार के आधार पर, तुल्य धारिता (C_eq) ज्ञात करें:

समान्तर प्लेट संधारित्र:

C_eq = C_A + C_B

श्रृंखला में जुड़े संधारित्र:

1/C_eq = 1/C_A + 1/C_B

उदाहरण:

मान लीजिए कि A और B दोनों 10 μF के समान्तर प्लेट संधारित्र हैं।

तुल्य धारिता (C_eq) ज्ञात करने के लिए:

C_eq = C_A + C_B C_eq = 10 μF + 10 μF C_eq = 20 μF

5. बायो सेवर्ट नियम की सहायता से धारावाही वृत्ताकार कुंडली के केंद्र पर चुंबकीय क्षेत्र की तीव्रता हेतु व्यंजक प्राप्त कीजिए |

Ans. बायो सेवर्ट नियम से धारावाही वृत्ताकार कुंडली के केंद्र पर चुंबकीय क्षेत्र की तीव्रता:

बायो सेवर्ट नियम किसी धारावाही तार द्वारा उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्र की तीव्रता ज्ञात करने के लिए उपयोग किया जाता है।

धारावाही वृत्ताकार कुंडली के केंद्र पर चुंबकीय क्षेत्र की तीव्रता (B) ज्ञात करने के लिए, हमें निम्नलिखित चरणों का पालन करना होगा:

  1. बायो सेवर्ट नियम का सूत्र लिखिए:

B = μ₀ * I / 4π * d

जहां:

  • B - चुंबकीय क्षेत्र की तीव्रता (Tesla)
  • μ₀ - निर्वात की पारगम्यता (4π × 10⁻⁷ Tm/A)
  • I - कुंडली में बहने वाली धारा (Ampere)
  • d - कुंडली के केंद्र से तार की दूरी (meter)
  1. कुंडली के केंद्र पर d = R/2 होता है:

B = μ₀ * I / 4π * (R/2)

  1. R/2 को 2R/4 से बदलें:

B = μ₀ * I / 4π * (2R/4)

  1. 2πR को कुंडली की परिधि (2πr) से बदलें:

B = μ₀ * I / 4π * (2πr/4)

  1. 4π को 2π से विभाजित करें:

B = μ₀ * I / 2π * (r/2)

6. दो लेंसों को संयुक्त करने पर संयुक्त लेंस की फोकस दूरी हेतु व्यंजक प्राप्त कीजिए व प्राप्त परिणाम की विवेचना कीजिए |

Ans. दो लेंसों को संयुक्त करने पर संयुक्त लेंस की फोकस दूरी:

1. सूत्र:

दो पतले लेंसों को संयुक्त करने पर संयुक्त लेंस की फोकस दूरी (f) ज्ञात करने के लिए, हमें निम्नलिखित सूत्र का उपयोग करना होगा:

1/f = 1/f1 + 1/f2

जहां:

  • f - संयुक्त लेंस की फोकस दूरी
  • f1 - पहले लेंस की फोकस दूरी
  • f2 - दूसरे लेंस की फोकस दूरी

2. प्राप्त परिणाम की विवेचना:

  • संयुक्त लेंस की फोकस दूरी दोनों लेंसों की फोकस दूरी के व्यस्त योग के व्यस्त के बराबर होती है।
  • यदि दोनों लेंस उत्तल हैं:
    • संयुक्त लेंस की फोकस दूरी दोनों लेंसों की फोकस दूरी से छोटी होगी।
    • संयुक्त लेंस की फोकस दूरी धनात्मक होगी।
  • यदि दोनों लेंस अवतल हैं:
    • संयुक्त लेंस की फोकस दूरी दोनों लेंसों की फोकस दूरी से बड़ी होगी।
    • संयुक्त लेंस की फोकस दूरी ऋणात्मक होगी।
  • यदि एक लेंस उत्तल और दूसरा अवतल है:
    • संयुक्त लेंस की फोकस दूरी दोनों लेंसों की फोकस दूरी के अंतर के व्यस्त के बराबर होगी।
    • संयुक्त लेंस की फोकस दूरी धनात्मक या ऋणात्मक हो सकती है, यह दोनों लेंसों की फोकस दूरी के मान पर निर्भर करता है।

3. उदाहरण:

मान लीजिए कि पहले लेंस की फोकस दूरी 10 सेमी और दूसरे लेंस की फोकस दूरी 20 सेमी है।

संयुक्त लेंस की फोकस दूरी (f) ज्ञात करने के लिए:

1/f = 1/10 + 1/20 1/f = 3/20 f = 20/3 cm

इस उदाहरण में, संयुक्त लेंस की फोकस दूरी 6.67 सेमी है।

7. भू चुम्बकीय तत्व कौन कौन से है ? नाम लिखकर परिभाषित कीजिए |

Ans. भू-चुंबकीय तत्व:

भू-चुंबकीय तत्व वे भौतिक मात्राएँ हैं जो पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र का वर्णन करते हैं। इन तत्वों का उपयोग पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र का अध्ययन करने और विभिन्न स्थानों पर चुंबकीय क्षेत्र की दिशा और तीव्रता को निर्धारित करने के लिए किया जाता है।

भू-चुंबकीय तत्वों के नाम और परिभाषाएं:

  1. क्षैतिज घटक (Horizontal Component): यह पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र का क्षैतिज दिशा में घटक है। इसे H से दर्शाया जाता है।
  2. ऊर्ध्वाधर घटक (Vertical Component): यह पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र का ऊर्ध्वाधर दिशा में घटक है। इसे Z से दर्शाया जाता है।
  3. कुल तीव्रता (Total Intensity): यह पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र की कुल तीव्रता है। इसे F से दर्शाया जाता है।
  4. नमन कोण (Dip Angle): यह क्षैतिज घटक और कुल तीव्रता के बीच का कोण है। इसे I से दर्शाया जाता है।
  5. अक्षांशीय घटक (Latitudinal Component): यह पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र का उत्तर-दक्षिण दिशा में घटक है। इसे X से दर्शाया जाता है।
  6. देशांतरिक घटक (Longitudinal Component): यह पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र का पूर्व-पश्चिम दिशा में घटक है। इसे Y से दर्शाया जाता है।

इन तत्वों का उपयोग:

  • दिशा-निर्देश: भू-चुंबकीय तत्वों का उपयोग दिशा-निर्देश (compass) बनाने के लिए किया जाता है।
  • खनिज अन्वेषण: भू-चुंबकीय तत्वों का उपयोग खनिज अन्वेषण में किया जाता है।
  • अंतरिक्ष विज्ञान: भू-चुंबकीय तत्वों का उपयोग अंतरिक्ष विज्ञान में किया जाता है।
  • भूभौतिकी: भू-चुंबकीय तत्वों का उपयोग भूभौतिकी में किया जाता है।

8. यंग के द्विस्लिट प्रयोग में फ्रिंज की चौड़ाई हेतु व्यंजक प्राप्त कीजिए |

Ans. यंग के द्विस्लिट प्रयोग में फ्रिंज की चौड़ाई:

यंग के द्विस्लिट प्रयोग में, जब एकवर्णी प्रकाश दो संकीर्ण स्लिटों से गुजरता है, तो एक स्क्रीन पर हस्तक्षेप पैटर्न बनता है। इस पैटर्न में, उज्ज्वल और अंधेरे बैंड वैकल्पिक रूप से दिखाई देते हैं, जिन्हें फ्रिंज कहा जाता है।

फ्रिंज की चौड़ाई (β):

β = λD/d

जहां:

  • λ - प्रकाश की तरंग दैर्ध्य
  • D - स्लिट से स्क्रीन की दूरी
  • d - स्लिटों के बीच की दूरी

व्युत्पत्ति:

  1. दो स्लिटों से निकलने वाली तरंगों को बिंदु स्रोतों के रूप में मानें।
  2. Huygens-Fresnel सिद्धांत का उपयोग करते हुए, स्क्रीन पर प्रत्येक बिंदु पर तरंगों के योगफल की गणना करें।
  3. उज्ज्वल फ्रिंज तब बनते हैं जब तरंगें सुसंगत होती हैं, यानी उनके शिखर और गर्त एक दूसरे के ऊपर होते हैं।
  4. अंधेरे फ्रिंज तब बनते हैं जब तरंगें विसंगत होती हैं, यानी उनके शिखर और गर्त एक दूसरे के विपरीत होते हैं।
  5. फ्रिंज की चौड़ाई उस दूरी से निर्धारित होती है जिस पर तरंगों का योगफल शून्य हो जाता है।

9. साधारण कांच के बजाय पोलेराइड द्वारा निर्मित धूप के चश्मो की क्या विशेषता होती है?

Ans. पोलेराइड धूप के चश्मे की विशेषताएं:

पोलेराइड धूप के चश्मे साधारण कांच के चश्मे से कई तरह से भिन्न होते हैं:

1. ध्रुवीकरण:

  • पोलेराइड लेंस प्रकाश को ध्रुवीकृत करते हैं, यानी वे प्रकाश के कंपन को एक निश्चित दिशा में सीमित करते हैं।
  • यह क्षैतिज रूप से ध्रुवीकृत प्रकाश को रोकता है, जो पानी, सड़क, और अन्य सतहों से परावर्तित होता है।
  • इससे चकाचौंध कम होती है और दृष्टि में सुधार होता है।

2. बेहतर दृष्टि:

  • पोलेराइड लेंस रंगों को अधिक संतृप्त बनाते हैं और कंट्रास्ट बढ़ाते हैं।
  • यह वस्तुओं को अधिक स्पष्ट और विस्तृत रूप से देखने में मदद करता है।

3. आंखों की सुरक्षा:

  • पोलेराइड लेंस 100% UVA और UVB किरणों को रोकते हैं।
  • यह आंखों को सूरज की हानिकारक किरणों से बचाता है।

4. हल्के और आरामदायक:

  • पोलेराइड लेंस प्लास्टिक या पॉलीकार्बोनेट से बने होते हैं, जो उन्हें हल्का और आरामदायक बनाते हैं।
  • वे विभिन्न आकारों और रंगों में उपलब्ध हैं।

5. अन्य विशेषताएं:

  • कुछ पोलेराइड लेंस खरोंच-प्रतिरोधी, पानी-प्रतिरोधी और टिकाऊ होते हैं।
  • कुछ में विशेष कोटिंग्स भी होती हैं जो चकाचौंध को और भी कम करती हैं और दृश्यता में सुधार करती हैं।

10. समांत्तर पट्ट संधारित्र की प्लेटों के बीच t मोटाई का अन्य माध्यम रखने पर धारिता हेतु व्यंजक निकालिये।

Ans. समांतर पट्ट संधारित्र की प्लेटों के बीच t मोटाई का अन्य माध्यम रखने पर धारिता हेतु व्यंजक:

1. सूत्र:

जब समांतर पट्ट संधारित्र की प्लेटों के बीच t मोटाई का अन्य माध्यम रखा जाता है, तो संधारित्र की धारिता (C) ज्ञात करने के लिए निम्नलिखित सूत्र का उपयोग किया जाता है:

C = ε₀A/d

जहां:

  • C - धारिता (Farad)
  • ε₀ - निर्वात की पारगम्यता (8.85 × 10⁻¹² F/m)
  • A - प्लेटों का क्षेत्रफल (m²)
  • d - प्लेटों के बीच की दूरी (m)

2. माध्यम का प्रभाव:

  • जब प्लेटों के बीच निर्वात के स्थान पर अन्य माध्यम रखा जाता है, तो धारिता बढ़ जाती है।
  • धारिता में वृद्धि माध्यम के पारगम्यता (ε) के अनुपात में होती है।
  • माध्यम का पारगम्यता (ε) निर्वात की पारगम्यता (ε₀) से अधिक होता है।

3. व्यंजक:

C = ε₀A/(d - t) * ε

  • ε₀ - निर्वात की पारगम्यता (8.85 × 10⁻¹² F/m)
  • A - प्लेटों का क्षेत्रफल (m²)
  • d - प्लेटों के बीच की दूरी (m)
  • t - माध्यम की मोटाई (m)
  • ε - माध्यम का पारगम्यता

11. अक्षीय स्थिति में विद्युत क्षेत्र की तीव्रता हेतु व्यंजक निकालिए।

Ans. अक्षीय स्थिति में विद्युत क्षेत्र की तीव्रता:

1. सूत्र:

किसी एकसमान विद्युत क्षेत्र में, अक्षीय स्थिति (जिस बिंदु पर हम विद्युत क्षेत्र की तीव्रता ज्ञात करना चाहते हैं, वह विद्युत क्षेत्र रेखाओं के समान्तर स्थित होता है) में विद्युत क्षेत्र की तीव्रता (E) ज्ञात करने के लिए निम्नलिखित सूत्र का उपयोग किया जाता है:

E = Q / (4πε₀r²)

जहां:

  • E - विद्युत क्षेत्र की तीव्रता (N/C)
  • Q - विद्युत आवेश (C)
  • ε₀ - निर्वात की पारगम्यता (8.85 × 10⁻¹² C²/Nm²)
  • r - आवेश से बिंदु की दूरी (m)

2. व्युत्पत्ति:

  • गॉस के नियम का उपयोग करके अक्षीय स्थिति में विद्युत क्षेत्र की तीव्रता का व्यंजक प्राप्त किया जा सकता है।
  • गॉस के नियम के अनुसार, किसी बंद सतह से गुजरने वाला कुल विद्युत फ्लक्स (Φ) उस सतह से घिरे कुल विद्युत आवेश (Q) के ε₀ गुना के बराबर होता है।
  • Φ = E * A = Q / ε₀

जहां:

  • Φ - विद्युत फ्लक्स (Wb)

  • E - विद्युत क्षेत्र की तीव्रता (N/C)

  • A - बंद सतह का क्षेत्रफल (m²)

  • अक्षीय स्थिति में, बंद सतह एक बेलनाकार सतह होगी।

  • बेलनाकार सतह का क्षेत्रफल A = 2πrh

  • r - आवेश से बिंदु की दूरी

  • h - बेलनाकार सतह की ऊंचाई

  • गॉस के नियम का उपयोग करते हुए:

E * 2πrh = Q / ε₀

  • E = Q / (4πε₀r²)

12. प्रिज्म किसे कहते हैं ? आपतन कोण और विचलन कोण के मध्य ग्राफ खींचकर न्यूनतम विचलन कोण को परिभाषित कीजिए व निर्भरता लिखिए |

Ans. प्रिज्म, आपतन कोण, विचलन कोण और न्यूनतम विचलन कोण:

प्रिज्म:

प्रिज्म एक पारदर्शी पदार्थ (जैसे कांच) से बना त्रिकोणीय आकार का उपकरण होता है। इसका उपयोग प्रकाश को अपवर्तित करने और विभिन्न रंगों में विघटित करने के लिए किया जाता है।

आपतन कोण:

जब प्रकाश एक माध्यम से दूसरे माध्यम में प्रवेश करता है, तो यह किरण अपनी दिशा बदलता है। इस परिवर्तन का कोण आपतन कोण कहलाता है।

विचलन कोण:

जब प्रकाश एक प्रिज्म से गुजरता है, तो यह अपवर्तित होता है और अपनी दिशा बदलता है। इस परिवर्तन का कोण विचलन कोण कहलाता है।

न्यूनतम विचलन कोण:

जब प्रकाश एक प्रिज्म से गुजरता है, तो विचलन कोण आपतन कोण के साथ बदलता है। एक विशेष आपतन कोण पर, विचलन कोण न्यूनतम होता है। इस कोण को न्यूनतम विचलन कोण कहा जाता है।

न्यूनतम विचलन कोण पर:

  • प्रकाश किरण प्रिज्म के आधार के समानांतर होती है।
  • अपवर्तन कोण समान होता है, चाहे प्रकाश प्रिज्म में प्रवेश कर रहा हो या बाहर निकल रहा हो।

न्यूनतम विचलन कोण निर्भरता:

  • प्रिज्म के पदार्थ के अपवर्तनांक पर
  • प्रिज्म के शीर्ष कोण पर

ग्राफ:

 

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