MP Board 11th Biology Trimasik Exam 2023-24 : एमपी बोर्ड 11वीं जीव विज्ञान पेपर त्रैमासिक महत्वपूर्ण प्रश्न (VVI Most Important Question)

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MP Board 11th Biology Trimasik Exam 2023-24 : एमपी बोर्ड 11वीं जीव विज्ञान पेपर त्रैमासिक महत्वपूर्ण प्रश्न (VVI Most Important Question)
एमपी बोर्ड कक्षा 11वीं जीव विज्ञान त्रैमासिक पेपर की तैयारी के लिए हम आपको MPBSE 11th Biology Trimasik Paper 2023 Most Important Questions इस लेख के माध्यम से बता रहें हैं, जिनसे 15/09/2023 को होने वाला एमपी बोर्ड 11th जीव विज्ञान त्रैमासिक एक्जाम क्वेश्चन पेपर 2023 बनाया जाएगा। जिससे वे त्रैमासिक परीक्षा के जीव विज्ञान के पेपर में अच्छे अंकों से पास हो सकें।
प्रश्न 1. सही विकल्प चुनकर लिखिए-
1.निम्नलिखित में से जीवाणु जनित रोग है-
(क) हैजा (ख) टाइफाइड
(ग) गोनोरिया (घ) उपरोक्त सभी
उत्तर- हैजा
2. पादप जगत के उभयचर होते हैं-
(क) शैवाल (ख) ब्रायोफाइटा
(ग) थैलोफाइटा (घ) उत्प्लाबी पौधे
उत्तर- ब्रायोफाइटा
3. मूलरोम जड़ के किस भाग में पाए जाते हैं-
(क) दीर्घीकरण क्षेत्र में
(ख) परिपक्वन क्षेत्र में
(ग) मेरेस्टेमी क्षेत्र में
(घ) मूल गोप क्षेत्र
उत्तर- दीर्घीकरण क्षेत्र में
(क) कंगारू (ख) प्लैटीपस
(ग) व्हेल (घ) काओला
उत्तर- प्लैटीपस
5. पौधों की जड़ों से जल तथा खनिज रबड़ का परिवहन किस ऊतक द्वारा होता है-
(क) जाइलम द्वारा
(ख) पलायन द्वारा
(ग) पैरेनकाइमा द्वारा
(घ) कॉलेनकाइमा द्वारा
उत्तर- जाइलम द्वारा
6. रॉबर्ट ब्राउन ने निम्नलिखित में से किसकी खोज की-
(क) केंद्रक (ख) कोशिका द्रव्य
(ग) केंद्रिका (घ) प्लाज्मा झिल्ली
उत्तर- केंद्रक
7. ATP की खोज किसने की-
(क) कार्ल लोमीन (ख) लिपमेन
(ग) बॉन (घ) लेक मेन
उत्तर- कार्ल लोमीन
प्रश्न 2. रिक्त स्थानों के पूर्ति कीजिए-
1. पादप विषाणु का अनुवांशिक पदार्थ …… होता है।
उत्तर- सिंगल अथवा डबल स्टैंडेड RNA
2. पांच जगत वर्गीकरण के जनक …… हैं।
उत्तर- RH व्हिटेकर
3. स्टारफिश में प्रचलन …… नामक रचना द्वारा होता है।
उत्तर- नल पदो द्वारा
4. पौधों में भोजन का परिवहन …… के द्वारा होता है।
उत्तर- फ्लोयम
5. केंचुए में भोजन को पीसने का कार्य ….. होता है।
उत्तर- गिजर्ड
6. केंद्रक की खोज ….. ने की थी।
उत्तर- रॉबर्ट ब्राउन
7. DNA तथा RNA ….. के उदाहरण हैं।
उत्तर- न्युक्लिक अम्ल
प्रश्न 3. एक शब्द/वाक्य में उत्तर दीजिए-
1. जीवाणु शब्द का सबसे पहले प्रयोग किस वैज्ञानिक द्वारा किया गया?
उत्तर- एण्टनी वॉन ल्यूवोनहुक
2. शैवालों में पाए जाने वाले वर्णक का नाम लिखिए।
उत्तर- क्लोरोफिल
3. मनुष्य के हृदय में कितने कोष्ठ होते हैं?
उत्तर- चार
4. एक बीजपत्री मूल में संवहन बंडल की संख्या लिखिए।
उत्तर- 6 से अधिक
5. मास्ट कोशिकाएं कहां पाई जाती हैं?
उत्तर- विशिष्ट संयोजित ऊतक
6. हरित लवक किन कोशिकाओं में उपस्थित होते हैं?
उत्तर- सुकेंद्रित पादप कोशिकाओं में और शैवालीय कोशिकाओं
7. घेंघा रोग किस तत्व की कमी से होता है?
उत्तर- आयोडीन
प्रश्न 4. सही जोड़ियां बनाइये-
(अ) (ब)
(क) प्रोटीन 1. वसीय अम्ल
(ख) कार्बोहाइड्रेट 2. न्यूक्लियोटाइड्स
(ग) वसा 3. अमीनो अम्ल
(घ) RNA 4. ग्लूकोस
(ड़) आयोडीन 5. कार्बोहाइड्रेट
(च) लौह तत्व 6. घेंघा
(छ) स्वद्धिगुणन 7. एनीमिया
उत्तर - (क) अमीनो अम्ल
उत्तर - (ख) ग्लूकोस
उत्तर - (ग) वसीय अम्ल
उत्तर - (घ) न्यूक्लियोटाइड्स
उत्तर - (ड़) घेंघा
उत्तर - (च) एनीमिया
उत्तर - (छ) कार्बोहाइड्रेट
MP Board VVI सब्जेक्टिव प्रश्न
प्रश्न : जिन लोगों से प्रायः आप मिलते रहते हैं, आप उन्हें किस आधार पर वर्गीकृत करना पसंद करेंगे?(संकेत-ड्रेस, मातृभाषा, प्रदेश जिसमें वे रहते हैं, आर्थिक स्तर आदि)।
उत्तर:
सबसे पहले हम मातृभाषा के आधार पर अपने से मिलने वाले लोगों का वर्गीकरण करते हैं, उसके पश्चात् प्रदेश जहाँ वह रहता है तथा अन्त में उसकी वेशभूषा, धर्म, जाति, शारीरिक रंगरूप की बनावट, आर्थिक स्थिति के आधार पर हम वर्गीकृत करना पसंद करेंगे।
प्रश्न : व्यष्टि तथा समष्टि की पहचान से हमें क्या शिक्षा मिलती है ?
उत्तर:
व्यष्टि (Individual) तथा समष्टि (Population) की पहचान से वर्तमान के सभी जीवों के परस्पर संबंधों के बारे में जानकारी मिलती है। इसमें हमें समान प्रकार के जीवों तथा अन्य प्रकार के जीवों में समानता तथा विभिन्नता को पहचानने में मदद मिलती है। उदाहरण-आलू की दो विभिन्न जातियाँ (Species) हैं –
प्रश्न : निम्नलिखित के बारे में आर्थिक दृष्टि से दो महत्वपूर्ण उपयोगों को लिखिए –
(1) परपोषी बैक्टीरिया
(2) आद्य बैक्टीरिया।
उत्तर:
(1) परपोषी बैक्टीरिया:
- नाइट्रोजन स्थिरीकरण – कुछ जीवाणु जैसे-ऐजोटोबॅक्टर तथा क्लॉस्ट्रिडियम नाइट्रोजन स्थिरीकरण द्वारा भूमि की उर्वरा शक्ति को बढ़ाते हैं।
- लैक्टिक अम्ल निर्माण – लैक्टोबैसिलस लैक्टाई जीवाणु दूध के लैक्टोज को लैक्टिक अम्ल (दही) में परिवर्तित कर देते हैं।
- ऐसीटिक अम्ल निर्माण – ऐसीटोबैक्टर ऐसीटाई जीवाणु सिरका का निर्माण करता है।
- रेशे की रेटिंग – कुछ जीवाणु, जैसे – क्लॉस्ट्रिडियम ब्यूटीरियम पादप रेशों के उत्पादन में सहायता करते हैं।
- तम्बाकू एवं चाय उद्योग-कुछ जीवाणु, जैसे – माइकोकॉकस कॉण्डीसेन्सतम्बाकू एवं चाय की सीजनिंग करते हैं।
- औषधि निर्माण – कुछ जीवाणुओं जैसे – स्ट्रेप्टोमाइसिस से प्रतिजैविक औषधियाँ प्राप्त होती हैं।
(2) आद्य बैक्टीरिया:
- मेथैनोजेन्स (Mathanogens) – इसके अन्दर वे अवायवीय जीवाणु आते हैं, जो CO2 या फॉर्मिक अम्ल से मेथेन बनाते हैं।
- हैलोफाइल्स (Halophyles) – ये बहुत नमक सान्द्रता में पाये जाते हैं। मेथैनोजेन्स तथा हैलोफाइल्स अनिवार्य रूप से अवायवीय होते हैं और आर्कीबैक्टीरिया का अवायवीय समूह बनाते हैं।
- थर्मोएसिडोफिल्स (Thermoacidophyles) – ये ऐसे वायवीय या अवायवीय आर्कीबैक्टीरिया हैं, जो गर्म तथा गन्धक युक्त झरनों में पाये जाते हैं। वायवीय परिस्थिति में ये गन्धक को H2SO4 में लेकिन अवायवीय परिस्थिति में H2S में बदल देते हैं।
प्रश्न : केन्द्रक छिद्र क्या है ? इसके कार्य बताइये।
उत्तर:
केन्द्रक के चारों तरफ के आवरण में निश्चित स्थानों पर केन्द्रक छिद्र (Nuclear pore) पाया जाता है। यह छिद्र केन्द्रक आवरण की दोनों झिल्लियों के संलयन (Fusion) से बनता है।
कार्य:
केन्द्रक छिद्र के द्वारा RNA एवं प्रोटीन के अणु केन्द्रक में कोशिकाद्रव्य से होकर अभिगमन करते है।
प्रश्न : लयनकाय व रसधानी दोनों अंतःझिल्लीमय संरचना है। फिर भी कार्य की दृष्टि से ये अलग होते हैं, इस पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
लयनकाय (Lysosome):
लाइसोसोम का निर्माण गॉल्जीकाय के द्वारा होता है। लाइसोसोम अनेक पुटिकाओं से बनी है जिनमें सभी प्रकार के जल-अपघटनी एंजाइम (हाइड्रोलेजेस, लाइपेजेस, प्रोटोएजेस आदि) मिलते हैं। सभी एंजाइम अम्लीय माध्यम में सक्रिय होकर कार्बोहाइड्रेट, लिपिड, न्यूक्लिक अम्लों का पाचन करते हैं।
रसधानी (Vacuole):
कोशिकाद्रव्य में झिल्ली द्वारा घिरे रिक्त स्थान को रसधानी कहा जाता है। रसधानी के अन्दर कोशिकाद्रव्य के अनुपयोगी पदार्थ जैसे-अतिरिक्त जल, उत्सर्जी पदार्थ एवं अन्य कोशिकीय उत्पाद भरे रहते हैं। रसधानी, एकल झिल्ली (Single membrane) से आवृत्त होती है जिसे टोनोप्लास्ट कहते हैं। पौधों की कोशिकाओं में आयन एवं दूसरे पदार्थ सांद्रता प्रवणता के विपरीत टोनोप्लास्ट से होकर रसधानी में अभिगमित होते हैं, इस कारण इनकी सांद्रता रसधानी में कोशिका द्रव्य की अपेक्षा काफी अधिक होती है।
प्रश्न : क्या आप प्रोटीन की अवधारणा के आधार पर वर्णन कर सकते हैं कि दूध का दही अथवा योगर्ट में परिवर्तन किस प्रकार होता है ?
उत्तर:
दूध में दुग्ध प्रोटीन केसीन (Casein) पाया जाता है, जिसके कारण दूध का रंग सफेद रहता है। कैसीन का पोषण महत्वपूर्ण होता है, इसमें मनुष्य के शरीर के लिए आवश्यक अमीनो अम्ल पाये जाते हैं। दूध को दही में बदलना रासायनिक परिवर्तन के कारण होता है। लैक्टोबेसीलस बैक्टीरिया दूध की लैक्टोज शुगर को लैक्टिक अम्ल में बदल देता है तथा प्रोटीन को जमाने में सहायता करता है। जमे हुए केसीन प्रोटीन को दही या योगर्ट कहा जाता है।
प्रश्न : क्या आप व्यापारिक दृष्टि से उपलब्ध परमाणु मॉडल (वाल एवं स्टिक नमूना) का प्रयोग करते हुए जैव-अणुओं के प्रारूपों को बना सकते है ?
उत्तर:
जी हाँ, व्यापारिक दृष्टि से उपलब्ध परमाणु मॉडल का प्रयोग करते हुए जैव-अणुओं के प्रारूपों को बना सकते हैं।
प्रश्न : एक ही पौधे की पत्ती का छाया वाला (उल्टा) भाग देखें और उसके चमक वाले (सीधे) भाग से तुलना करें अथवा गमले में लगे धूप में रखे हुए तथा छाया में रखे हुए पौधों के बीच तुलना करें, कौन-सा गहरे रंग का होता है, और क्यों ?
उत्तर:
पौधे की पत्ती के चमक वाले (सीधे) भाग में क्लोरोफिल ‘ए’ की मात्रा पत्ती के छाया वाले (उल्टे) भाग की तुलना में ज्यादा होती है। जिस क्षेत्र में क्लोरोफिल ‘ए’ तरंगदैर्घ्य का अवशोषण करता है उस क्षेत्र में प्रकाश-संश्लेषण की दर भी अधिकतम होती है। क्लोरोफिल ‘ए’ की अधिक मात्रा के कारण ही पत्तियों का रंग हरा-चमकीला दिखाई देता है, जबकि छाया वाला भाग हरा दिखाई देता है।
प्रश्न : ऑक्सीकारी फॉस्फोरिलीकरण क्या है ?
उत्तर:
ऑक्सीकारी फॉस्फोरिलीकरण: ग्लाइकोलिसिस, क्रेब्स चक्र और इलेक्ट्रॉन स्थानान्तरण श्रृंखला ऐसी क्रियाएँ हैं, जिनके द्वारा भोज्य पदार्थों का ऑक्सीकरण होता है और ऊर्जा मुक्त होती है, ये क्रियाएँ श्रृंखलाबद्ध क्रियाओं के रूप में होती हैं। श्रृंखला में कुछ स्थानों पर इतनी अधिक ऊर्जा मुक्त होती है कि यह ADP को अकार्बनिक फॉस्फेट से क्रिया कराके ATP में बदल देती हैं चूँकि यह क्रिया पदार्थों के ऑक्सीकरण के कारण होती है और इसमें फॉस्फेट अणु ADP से जुड़ता है। इस कारण इसे ऑक्सीकारी फॉस्फोरिलीकरण (Oxidative phosphorelation) कहते हैं।
प्रश्न : साँस के प्रत्येक चरण में मुक्त होने वाली ऊर्जा का क्या महत्व है ?
उत्तर:
कोशिका के अन्दर ऑक्सीकरण के दौरान श्वसनी क्रियाधार (Respiratory substrate) में स्थित संपूर्ण ऊर्जा कोशिका में एक साथ मुक्त नहीं होती है। यह एन्जाइम द्वारा नियंत्रित चरणबद्ध अभिक्रिया के रूप में मुक्त होती है तथा रासायनिक ऊर्जा के A.T.P. के रूप में संचित हो जाती है। इस ऊर्जा की जब भी शरीर को आवश्यकता पड़ती है, तब ये विघटित होकर जैव-रासायनिक क्रिया में ऊर्जा प्रदान करती है। इसीलिए A.T.P. को ऊर्जा मुद्रा (Energy currency) कहा जाता है। A.T.P. में संचित ऊर्जा जीवधारियों की विभिन्न ऊर्जा आवश्यक प्रक्रियाओं में उपयोग की जाती है।
प्रश्न : जैव क्षमता क्या है ? इसका महत्व बताइए।
उत्तर:
यह वायु का वह अधिकतम आयतन है, जिसे व्यक्ति एक बार में नि:श्वसन के दौरान ग्रहण और निःश्वसन के दौरान त्याग सकता है। यह नर में 4,500 मिली. तथा मादा में 3,000 मिली. के बराबर होता है। महत्व-चिकित्सकों के द्वारा फेफड़ों की जैव क्षमता के आधार पर फेफड़ों में असामान्यता या बीमारी का पता लगाया जाता है।
प्रश्न : सामान्य निःश्वसन के उपरांत फेफड़ों में शेष वायु के आयतन को बताइए।
उत्तर:
सामान्य निःश्वसन के उपरांत फेफड़ों में शेष वायु लगभग 2200 मिली. होती है।
प्रश्न : रक्त को एक संयोजी ऊतक क्यों मानते हैं ?
उत्तर:
लगभग एक ही परिमाण तथा आकार की कोशिकाओं का समूह जो उत्पत्ति, विकास, रचना तथा कार्य के विचार से एक समान हो, ऊतक कहलाता है। संरचना तथा कार्य की दृष्टि से रुधिर संयोजी ऊतकों के ही समान होता है। इसमें संयोजी ऊतकों के ही समान एक आधात्री होती है जिसमें रुधिर कोशिकाएँ बिखरी होती हैं, लेकिन यह आधात्री संयोजी ऊतकों के विपरीत तरल रूप में होती है। कार्य की दृष्टि से भी शरीर के सभी अंगों में सम्बन्ध स्थापित करता है। रुधिर की संयोजी ऊतकों से इसी कार्यात्मक तथा रचनात्मक समानता के कारण इसे ‘तरल संयोजी’ ऊतक कहते हैं।
प्रश्न : दोहरे परिसंचरण तन्त्र से क्या समझते हैं ? इससे क्या लाभ हैं ?
उत्तर:
वह परिसंचरण जिसमें रक्त हृदय से दो बार होकर बहता है, वह दोहरा परिसंचरण तन्त्र कहलाता है। पहले शरीर का O2 विहीन रुधिर महाशिराओं द्वारा हृदय में लाया जाता है। वहाँ से यह फेफड़े में जाता है, वहाँ O2 युक्त रक्त पुनः हृदय में आता है, तब इसे सम्पूर्ण शरीर में वितरित किया जाता है। लाभ-इस परिसंचरण तन्त्र में O2 युक्त तथा O2 विहीन रुधिर अलग-अलग रहता है।
प्रश्न : गुच्छीय निस्यंद-दर (GFR) को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
वृक्कों के द्वारा प्रति मिनट निस्पंदित (Filter) की गई मात्रा गुच्छीय निस्यंद-दर (GFR,Glomerulus Filterate Rate) कहलाती है। एक स्वस्थ व्यक्ति में यह दर 125 मिली प्रति मिनट होती है।
प्रश्न : गुच्छीय निस्यंद दर (GFR) की स्वनियमन क्रियाविधि को समझाइए।
उत्तर:
गुच्छीय निस्वंद दर के नियमन (Regulation) के लिए वृक्कों के गुच्छीय आसन्न तंत्र द्वारा एक अतिसूक्ष्म छनन (Ultrafiltration) की क्रिया संपन्न की जाती है। यह विशेष तंत्र अभिवाही (Afferent) एवं अपवाही (Efferent) धमनिकाओं (Arterioles) के संपर्क स्थल पर दूरस्थ कुण्डलित नलिका (Distal convoluted tubules) के रूपान्तरण से बनता है। गुच्छीय निस्यंद – दर (GFR) में गिरावट के इन आसन्न गुच्छ केशिकाओं (Glomerular capillaries) को रेनिन (Renin) के स्रावण के लिए सक्रिय करती है, जो वृक्कीय रुधिर का प्रवाह, बढ़ाकर गुच्छ निस्यंद-दर को पुनः सामान्य कर देती है।
प्रश्न : मूत्रण की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
मूत्र उत्सर्जन की क्रिया मूत्रण (Urination) कहलाती है और इसे संपन्न करने वाली क्रियाविधि मूत्र-प्रतिवर्त कहलाती है। एक वयस्क मनुष्य प्रतिदिन औसतन 1-1.5 लीटर मूत्र उत्सर्जित करता है। मूत्र एक विशेष गन्ध वाला जलीय तरल है, जो रंग में हल्का पीला तथा थोड़ा अम्लीय (pH-6) होता है औसतन प्रतिदिन 25-30 ग्राम यूरिया का उत्सर्जन होता है। विभिन्न अवस्थाएँ मूत्र की विशेषताओं को प्रभावित करती हैं।
प्रश्न : परासरण नियमन का अर्थ बताइये।
उत्तर:
परासरण नियमन का अर्थ-जीव शरीर या कोशिका या रुधिर में उपस्थित जल की मात्रा का परासरण की क्रिया द्वारा नियन्त्रण परासरण नियन्त्रण (Osmoregulation) कहलाता है। हमारे शरीर में यह कार्य वृक्क द्वारा किया जाता है, शेष जन्तु भी इस कार्य को उत्सर्जी अंगों के द्वारा ही करते हैं।
प्रश्न : वर्गीकरण की पद्धतियों में समय के साथ आए परिवर्तनों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
1. लिनीयस:
कैरोलस लिनीयस (1707 – 1778) एक प्रमुख स्वीडिश जीव विज्ञानी थे, जिन्हें जीव विज्ञान विषय में उनके योगदान के कारण वर्गीकरण का जनक कहा जाता है। ये वर्गीकरण की द्वि – जगत वर्गीकरण पद्धति के जनकों में से एक हैं। आज भी हम इन्हीं के वर्गीकरण को आधार मानकर जीवों का आधुनिक वर्गीकरण करते हैं । इन्होंने सम्पूर्ण जीवों को दो जगत जन्तु एवं पादप में बाँटा है। जीवों के नामकरण की द्वि-नाम नामकरण पद्धति के भी जनक लिनीयस ही थे, जिसके कारण जीवों को पूरे विश्व में एक नाम मिला एवं जीव विज्ञान का अध्ययन आसान बना। इन्होंने अपनी पुस्तक ‘सिस्टेमा नेचुरी’ में 4378 जन्तुओं को वैज्ञानिक नाम दिया।
2. कृत्रिम वर्गीकरण:
कृत्रिम वर्गीकरण, वर्गीकरण की प्राचीनतम एवं अप्राकृतिक पद्धति है, जिसमें जीवों को, उनके एक या कुछ लक्षणों जैसे-आवास, बाह्य आकार, व्यवहार तथा आकृति की समानता आदि को आधार मानकर वर्गीकृत किया जाता है। वर्गीकरण की यह पद्धति 300 B.C. से सन् 1830 तक प्रचलित रही। अरस्तू, थियोफ्रास्टस तथा जॉन रे इस वर्गीकरण पद्धति के प्रमुख वैज्ञानिक थे। प्लाइनी इस पद्धति के प्रमुख समर्थक थे, जिन्होंने जन्तुओं को पहली शताब्दी में आवास के आधार पर वर्गीकृत किया।लिनीयस द्वारा पौधों के वर्गीकरण के लिए भी इस पद्धति का प्रयोग किया गया।
3. प्राकृतिक वर्गीकरण:
वह वर्गीकरण पद्धति है जिसमें जीवों के रचनात्मक आकृति, स्वभाव, व्यवहार आदि के गुणों के एक विस्तृत समूह तथा उनके बीच के प्राकृतिक सम्बन्धों को आधार मानकर जीवों का वर्गीकरण किया जाता है। इसकी शुरुआत कैरोलस लिनीयस ने की थी, लेकिन इसका प्रचलन बाद में शुरू हुआ।आधुनिक वर्गीकरण इसी पद्धति पर आधारित है । बेन्थम एवं हूकर (1862 एवं 1883) का पादप वर्गीकरण तथा हेनरी एवं यूसिन्जर का जन्तु वर्गीकरण इसी पद्धति पर आधारित है।
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