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UP Board 12th Business Studies Exam 2024 : VVI Most Important Question with Answers

UP Board 12th Business Studies Exam 2024 : VVI Most Important Question with Answers

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UP बोर्ड 12वीं की बिजनेस स्टडीज परीक्षा 27 फरवरी, 2024 को निर्धारित है। तो यह आर्टिकल आपके लिए काफी ज्यादा महत्वपूर्ण साबित होने वाला है क्योंकि इस आर्टिकल में आपको बोर्ड परीक्षा के लिए वो ही प्रश्न दिए गए है जो बोर्ड पेपर में आने जा रहे है।

यहाँ पर UP Board क्लास 12th के बिजनेस स्टडीज (UP Board Class 12th Business Studies Exam 2024 VVI Most Important Question) से संबंधित महत्वपूर्ण प्रश्न दिए गए है। महत्वपूर्ण प्रश्नों का एक संग्रह है जो बहुत ही अनुभवी शिक्षकों के द्वारा तैयार किये गए है। इसमें प्रत्येक महत्वपूर्ण प्रश्नों को छांट कर एकत्रित किया गया है, जिससे कि विद्यार्थी कम समय में अच्छे अंक प्राप्त कर सके।

UP Board Class 12th Business Studies VVI Most Important Question

(बहुविकल्पीय प्रश्न)

सही उत्तर का चयन कीजिए तथा अपनी उत्तर पुस्तिका में लिखिए ।

1- प्रबन्ध का सामाजिक उत्तरदायित्व है-
अ- सभी के प्रति
ब- केवल कर्मचारियों के प्रति
स- सरकार के प्रति
द- केवल उपभोक्ता के प्रति

Ans: अ- सभी के प्रति

2- वैज्ञानिक प्रबन्ध के जन्मदाता थे-
अ- एच०एस० पर्सन
ब- डाइमर
स- एफ0डब्ल्यू0 टेलर
द- इनमें से कोई नही

Ans: स- एफ0डब्ल्यू0 टेलर

3 – जार्ज आर0 टेरी के अनुसार नियोजन के प्रकार हैं-
अ- आठ
ब- छ:
स- चार
द- दो

Ans: स- चार

4- गलत संगठन संरचना व्यवसायिक निश्पादन को रोकती है तथा यहां तक कि उसे नष्ट कर देती है, यह कथन है-
अ- ड्रकर
ब- जार्ज आर0 टेरी
स- एलन
द- ब्रीच

Ans: अ- ड्रकर

5- एक बड़े संगठन में नियुक्तिकरण उत्तरदायी है-
अ- उच्च प्रबन्ध
ब- मध्यम प्रबन्ध
स- निम्न प्रबन्ध
द- इनमें से कोई नही

Ans:

6- निर्देशन के तत्व हैं-
अ- पर्यवेक्षण
ब- नेतृत्व
स- अभिप्रेरण
द- इनमें से सभी

Ans: द- इनमें से सभी

7- नियोजन आवश्यक हैं-
अ- लघु उपक्रम के लिए
ब- मध्यम श्रेणी के उपक्रम के लिए
स- बड़े आकार के उपक्रम के लिए
द- उपर्युक्त सभी के लिए

Ans: द- उपर्युक्त सभी के लिए

8- वित्तीय प्रबन्धन की परम्परागत विचारधारा को त्याग दिया गया था—
अ- 1910-20 में
ब- 1920-30 में
स- 1030-40 में
द- 1040-50 में

Ans: ब- 1920-30 में

9- भारत में कुल स्टाक एक्सचेंज (शेयर बाजारों) की संख्या है—
अ- 21
ब- 22
स- 23
द- इनमें से कोई नही

Ans: स- 23

10- ए0एच0 मैस्लो निवासी थे-
अ- अमेरिका (संयुक्त राज्य अमेरिका)
ब- फ्रांस
स- जापान
द- इनमें से कोई नही

Ans: अ- अमेरिका (संयुक्त राज्य अमेरिका)


(अति लघुउत्तरीय प्रश्न)

11 - नियोजन की परिभाषा दीजिए ।

Ans: प्रो० हैरिस के अनुसार, “नियोजन मुख्य रूप से उपलब्ध साधनों के संगठन और उपयोग की ऐसी पद्धति है, जिसके द्वारा पूर्व निर्धारित उद्देश्यों के आधार पर अधिकतम लाभ प्राप्त किया जा सके।”

12- प्रबन्ध के कोई दो उद्देश्य लिखिए ।

Ans: 1. आपदाओं के समय मानवी समाज में होने वाली हानि दूर करना और इन से लोगों को मुक्त करना।
2. जीवनाश्यक वस्तु आपदाग्रस्त लोगों तक उचित रुप से पहुँचाकर आपदाओं की तीव्रता और आपदा के पश्चात आनेवाले दुख को कम करना।

13 - प्रबन्ध की परिभाषा लिखिए ।

Ans: 1. एफ. डब्ल्यू. टेलर के अनुसार— "प्रबंध यह‌ ज्ञान करने की कला है कि आप क्या करना चाहते हैं तत्पश्चात यहां देखना की सर्वश्रेष्ठ एवं मितव्ययिता पूर्ण ढंग से कैसे किया जाता है।"

2. हेनरी फयोल के अनुसार— "प्रबंध का आशय पूर्व अनुमान लगाना या योजना बनाना आदेश देना समन्वय करना तथा नियंत्रण करना है।"

14 - संगठन की कोई दो विशेषताएं लिखिए ।

Ans: (i) संगठनशीलता (Organization): संगठन की पहचान इसी में है कि वह किस प्रकार से अपने उद्देश्यों तक पहुंचने के लिए अपनी संसाधनों का उपयोग करता है। एक अच्छे संगठन में संगठनशीलता की भावना होती है जिससे कर्मचारियों के काम को सुचारु रूप से व्यवस्थित किया जा सकता है।

(ii) पुनरावृत्ति (Repetition): संगठनों के लिए महत्वपूर्ण है कि वे अपनी प्रक्रियाओं और गतिविधियों को स्थिरता के साथ दोहराएं। यह मानव संसाधनों, संसाधनों के उपयोग, निर्माण की प्रक्रिया, उत्पादन और सेवा प्रदान के लिए लागू हो सकता है।

15- नियुक्तिकरण का अर्थ लिखिए ।

Ans: नियुक्तिकरण एक प्रक्रिया है जो मानवीय तत्त्वों से संबंधित है। यह कार्यबल नियोजन से प्रारंभ होता है एवं संगठन द्वारा नियुक्त किए गए प्रत्येक व्यक्ति को व्यक्तिगत रूप से मान्यता प्रदान करता है, जो कि अंततः कार्य निष्पादित करता है।

16- अभिप्रेरण की क्या अवधारणा है लिखिए ।

Ans: अभिप्रेरणा एक ऐसी शक्ति या प्रेरणा है जो हमें किसी कार्य को करने के लिए प्रेरित करती है। यह उस ऊर्जा को कहते हैं जो हमें किसी उद्देश्य की ओर आगे बढ़ने के लिए मजबूर करती है। अभिप्रेरणा हमें काम में निरंतरता और प्रेरित करने में मदद करती है। यह हमें उस सोच और कार्य की दिशा में ले जाती है जो हमें सफलता की ओर ले जाता है।

17 - वित्तीय प्रबंधन की परिभाषा लिखिए ।

Ans: वित्तीय प्रबंधन एक प्रक्रिया है जिसमें एक संगठन या व्यक्ति द्वारा वित्तीय संसाधनों का प्रबंधन किया जाता है ताकि संगठन या व्यक्ति के लक्ष्य और उद्देश्यों को पूरा करने में सहायता मिले। इसमें वित्तीय संसाधनों का निर्धारण, प्राप्ति, उपयोग, नियंत्रण और प्रबंधन शामिल होता है। वित्तीय प्रबंधन का उद्देश्य संगठन या व्यक्ति की वित्तीय स्थिति को सुधारना और सुनिश्चित करना होता है कि संगठन या व्यक्ति के वित्तीय संसाधनों का उपयोग सही और प्रभावी ढंग से किया जा रहा है।

18 - व्यावसायिक वित्त के दो महत्व लिखिए ।

Ans: (i)अच्छी मात्रा में व्यावसायिक वित्त वाली फर्म को व्यवसाय उद्यम शुरू करने के लिए कम समय और परेशानियों की आवश्यकता होगी।

(ii) व्यावसायिक वित्त हाथ में होने से, मालिक उत्पादन के लिए आवश्यकतानुसार कच्चा माल खरीद सकते हैं।

(iii) बिजनेस फाइनेंस की मदद से बिजनेस फर्म आसानी से अपना बकाया और अन्य भुगतान कर सकती है।

19- कार्यशील पूंजी का क्या अर्थ है । लिखिए ।

Ans: "कार्यशील पूंजी" एक वित्तीय मापदंड है जो किसी कंपनी या व्यावसायिक संगठन की कार्यक्षमता और व्यापारिक सफलता की मापदंडिता को दर्शाता है। इसका मुख्य उद्देश्य यह दिखाना है कि कंपनी कैसे अपने पूंजी का प्रयोग करके अच्छे प्रदर्शन कर सकती है और निवेशकों को अच्छे रिटर्न प्रदान कर सकती है।

20- मुद्रा बाजार का क्या अर्थ है । लिखिए ।

Ans: (i) मुद्रा बाज़ार का तात्पर्य अल्पकालिक उधार लेने और धन उधार देने के मंच से है, आमतौर पर एक वर्ष तक की अवधि के लिए।

(ii) मुद्रा बाजार वित्तीय बाजार का एक हिस्सा है जहां ट्रेजरी बिल, वाणिज्यिक पत्र, जमा प्रमाणपत्र और पुनर्खरीद समझौते जैसे वित्तीय उपकरणों का कारोबार किया जाता है। मुद्रा बाजार निवेशकों को तरलता प्रदान करता है और अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों के बीच धन के कुशल आवंटन में मदद करता है।

(iii) यह वित्तीय प्रणाली का एक महत्वपूर्ण खंड है क्योंकि यह बैंकों, निगमों और सरकारों को अल्पकालिक वित्तपोषण प्रदान करता है।

(लघुउत्तरीय प्रश्न)

21- प्रबन्ध विज्ञान एवं कला दोनो है। व्याख्या कीजिए ।

Ans: कला वांछित लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए मौजूदा ज्ञान का कुशल और व्यक्तिगत अनुप्रयोग है। प्रबंधन को एक कला कहा जाता है क्योंकि, यह एक कला की निम्नलिखित विशेषताओं को संतुष्ट करता है:

(i) प्रबंधक अध्ययन, अवलोकन और अनुभव के आधार पर प्रबंधन और उद्यम के दैनिक कार्य में प्रबंधन की कला का अभ्यास करता है।
(ii) प्रबंधन के सैद्धांतिक ज्ञान की उपलब्धता के कारण, एक प्रबंधक इसे व्यक्तिगत तरीके से लागू करने में सक्षम है।
(iii) कला के लिए रचनात्मकता की आवश्यकता होती है, उसी प्रकार प्रबंधक को भी अर्जित ज्ञान को वास्तविक परिस्थितियों में व्यक्तिगत और कुशल तरीके से लागू करने के लिए रचनात्मकता की आवश्यकता होती है।

एक विज्ञान के रूप में प्रबंधन: ज्ञान का व्यवस्थित निकाय है जो कारणों और उनके प्रभावों के बीच संबंध स्थापित करता है।

प्रबंधन की निम्नलिखित विशेषताओं के कारण प्रबंधन को एक विज्ञान माना जाता है:
(i) ज्ञान के व्यवस्थित निकाय का अस्तित्व: विज्ञान की तरह, प्रबंधन के अपने सिद्धांत और सिद्धांत हैं जो समय के साथ विकसित हुए हैं। इस प्रकार, हम कह सकते हैं, प्रबंधन में ज्ञान का एक व्यवस्थित निकाय है।
(ii) अवलोकन के वैज्ञानिक तरीके: कुछ प्रबंधन सिद्धांत अवलोकन के वैज्ञानिक तरीकों से विकसित हुए हैं। कारण और प्रभाव संबंध विज्ञान की कला है लेकिन यह प्रबंधन में भी लागू होता है। इसलिए, प्रबंधन सिद्धांत सटीक और विश्वसनीय हैं।
(iii) सार्वभौमिक रूप से स्वीकृत सिद्धांत: कुछ प्रबंधन सिद्धांत सार्वभौमिक रूप से मान्य हैं। आधुनिक प्रबंधन के स्थापित सिद्धांत सार्वभौमिक प्रयोज्य हैं। श्रम विभाजन और विशेषज्ञता, आदेश की एकता आदि का सिद्धांत हर जगह स्वीकार किया जाता है।

22- नियोजन की सीमाएं लिखिए ।

Ans: (i) सामर्थ्य सीमा: यह नियोजन की सीमा है जिसमें किसी परियोजना या कार्य की क्षमता या सीमितता का निर्धारण किया जाता है।
(ii) समय सीमा: यह नियोजन की सीमा है जिसमें किसी कार्य को पूरा करने के लिए निर्धारित समय की अवधि का निर्धारण किया जाता है।
(iii) वित्तीय सीमा: यह नियोजन की सीमा है जिसमें किसी परियोजना या कार्य के लिए निर्धारित वित्तीय संसाधनों की सीमा का निर्धारण किया जाता है।
(iv) तकनीकी सीमा: यह नियोजन की सीमा है जिसमें किसी कार्य के लिए उपयोग की जा सकने वाली तकनीकों या साधनों की सीमा का निर्धारण किया जाता है।
(v) संगठनात्मक सीमा: यह नियोजन की सीमा है जिसमें किसी कार्य को प्राप्त करने या पूरा करने के लिए संगठनात्मक प्रणाली की सीमा का निर्धारण किया जाता है।

23- पूँजी एवं पूँजी संरचना में अन्तर लिखिए ।

Ans: पूँजी और पूँजी संरचना में अंतर:

पूँजी:

  • यह एक व्यापक शब्द है जो किसी व्यवसाय, परियोजना या व्यक्ति के स्वामित्व में मौजूद धन या संपत्ति को दर्शाता है।
  • यह व्यवसाय को चलाने, विकास करने और विस्तार करने के लिए आवश्यक वित्तीय संसाधनों को प्रदान करता है।
  • पूँजी विभिन्न रूपों में हो सकती है, जैसे कि नकदी, मशीनरी, उपकरण, भवन, आदि।
  •  

पूँजी संरचना:

  • यह ऋण और इक्विटी के विभिन्न स्रोतों के अनुपात को दर्शाता है जो किसी व्यवसाय द्वारा अपनी पूँजी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए उपयोग किए जाते हैं।
  • यह व्यवसाय के वित्तीय जोखिम और लाभप्रदता को प्रभावित करता है।
  • पूँजी संरचना में ऋण, इक्विटी, डिबेंचर, आदि जैसे स्रोत शामिल होते हैं।

अंतर:

विशेषता पूँजी पूँजी संरचना
परिभाषा धन या संपत्ति ऋण और इक्विटी का अनुपात
उद्देश्य व्यवसाय को चलाने और विकास करने के लिए वित्तीय जोखिम और लाभप्रदता को प्रबंधित करने के लिए
प्रभाव व्यवसाय के आकार और गतिविधियों पर प्रभाव डालता है व्यवसाय के मूल्य और शेयर की कीमत पर प्रभाव डालता है
प्रकार नकदी, मशीनरी, उपकरण, भवन ऋण, इक्विटी, डिबेंचर, आदि
उदाहरण ₹10 लाख की पूँजी 50% ऋण और 50% इक्विटी

24- चयन प्रक्रिया में साक्षात्कार के महत्व की व्याख्या कीजिए ।

Ans: चयन प्रक्रिया में साक्षात्कार एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह एक ऐसा औपचारिक तरीका है जिसके माध्यम से नियोक्ता किसी उम्मीदवार की योग्यता, अनुभव, और व्यक्तित्व का मूल्यांकन करते हैं।

साक्षात्कार के कुछ महत्वपूर्ण पहलू:

(i) योग्यता का मूल्यांकन: साक्षात्कार के माध्यम से नियोक्ता यह जान सकते हैं कि उम्मीदवार के पास आवश्यक ज्ञान, कौशल और अनुभव है या नहीं।
(ii) व्यक्तित्व का मूल्यांकन: साक्षात्कार नियोक्ता को उम्मीदवार के व्यक्तित्व, आत्मविश्वास, और संवाद कौशल को समझने में मदद करता है।
(iii) संगठनात्मक संस्कृति: साक्षात्कार उम्मीदवार को यह समझने का मौका देता है कि क्या संगठनात्मक संस्कृति उनके लिए उपयुक्त है या नहीं।
(iv) अंतिम निर्णय: साक्षात्कार नियोक्ता को यह निर्णय लेने में मदद करता है कि क्या उम्मीदवार को नौकरी के लिए चुना जाना चाहिए या नहीं।

25- प्रबन्ध के सिद्धान्तों की आवश्यकता किन कारणों से है व्याख्या कीजिए ।

Ans: प्रबन्ध के सिद्धांतों की आवश्यकता कई कारणों से होती है। ये कारण निम्नलिखित हो सकते हैं:

(i) संगठन की सुविधा: प्रबन्ध सिद्धांतों की मदद से लोगों को एक संरचित तरीके से काम करने में मदद मिलती है। ये सिद्धांत संगठन को अधिक अनुकूलता और उत्पादकता की दिशा में ले जाते हैं।

(ii) समय और उत्पादकता की बढ़ोतरी: सिद्धांतों के अनुसार काम करने से समय की बचत होती है और उत्पादकता में वृद्धि होती है। ये सिद्धांत असंगठितता और अनियमितता को कम करने में मदद करते हैं।

(iii) कार्य की योजना: प्रबन्ध सिद्धांतों के बिना कोई भी कार्य विफल हो सकता है। ये सिद्धांत कार्य की योजना बनाने में मदद करते हैं जिससे कि समस्याओं का समाधान सरल हो जाता है।

(iv) उचित संगठन: सिद्धांतों की मदद से किसी भी संगठन को उचित संगठन बनाए रखना संभव होता है। ये सिद्धांत संगठन के कार्यों को निरंतरता से चलाने में मदद करते हैं।

(v) समस्याओं का समाधान: प्रबन्ध सिद्धांतों की मदद से संगठन में आने वाली समस्याओं का समाधान आसान हो जाता है। ये सिद्धांत समस्याओं को पहचानने और समाधान करने में मदद करते हैं।

26- औपचारिक एवं अनौपचारिक संगठन में अन्तर लिखिए |

Ans: 

अंतर का आधार औपचारिक संगठन अनौपचारिक संगठन
अर्थ 'औपचारिक संगठन' प्रबंधन द्वारा परिभाषित अधिकारियों के बीच संबंध को संदर्भित करता है। कर्मचारियों के बीच व्यक्तिगत और अनौपचारिक संबंधों पर आधारित संबंध को संदर्भित करता है।
मूल संरचना प्रबंधन के नियमों और नीतियों से उत्पन्न होती है। संरचना कर्मचारियों के बीच सामाजिक संपर्क से उत्पन्न होती है।
अधिकार प्राधिकरण को प्रोफ़ाइल और प्रबंधकीय पदों द्वारा परिभाषित किया गया है। प्राधिकार को कर्मचारियों के व्यक्तिगत गुणों से परिभाषित किया जाता है।
संचार का प्रवाह संचार अदिश श्रृंखला के माध्यम से प्रवाहित होता है। संचार का कोई नियोजित मार्ग नहीं अपनाया जाता है।
प्रकृति औपचारिक संगठन कठोर होते हैं अनौपचारिक संगठन लचीले होते हैं

 

(विस्तत उत्तरीय प्रश्न)

27 - हेनरी फेयाल के अनुसार प्रबन्ध का अर्थ पूर्वानुमान लगाना, और योजना बनाना, संगठन करना, आदेश देना, समन्वय करना और नियन्त्रण रखना । इस कथन की व्याख्या लिखिए ।

Ans: हेनरी फेयाल, जो 20वीं सदी के शुरुआती दौर के एक प्रसिद्ध फ्रांसीसी प्रबंधन सिद्धांतकार थे, ने प्रबंधन को 6 प्रमुख कार्यों के रूप में परिभाषित किया:

1. पूर्वानुमान लगाना: भविष्य के परिदृश्यों का अनुमान लगाना और संभावित चुनौतियों और अवसरों को पहचानना।
2. योजना बनाना: लक्ष्यों को निर्धारित करना और उन्हें प्राप्त करने के लिए रणनीति और कार्य योजना बनाना।
3. संगठन करना: संसाधनों और कर्मियों को लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए व्यवस्थित करना।
4. आदेश देना: कर्मियों को निर्देश देना और उन्हें कार्यों को पूरा करने के लिए प्रेरित करना।
5. समन्वय करना: विभिन्न विभागों और कर्मियों के बीच तालमेल और सहयोग स्थापित करना।
6. नियंत्रण रखना: प्रगति की निगरानी करना, परिणामों का मूल्यांकन करना और आवश्यक सुधार करना।

इन कार्यों का विस्तृत विवरण:

(i) पूर्वानुमान लगाना: यह प्रबंधन का पहला और महत्वपूर्ण कार्य है। इसमें भविष्य के रुझानों, बाजार की स्थितियों, प्रतिस्पर्धात्मक परिदृश्य, और तकनीकी परिवर्तनों का अनुमान लगाना शामिल होता है।

(ii) योजना बनाना: पूर्वानुमान के आधार पर, प्रबंधक लक्ष्यों को निर्धारित करते हैं और उन्हें प्राप्त करने के लिए रणनीति और कार्य योजना बनाते हैं। योजना में समयसीमा, बजट, और संसाधनों का आवंटन शामिल होता है।

(iii) संगठन करना: योजना को क्रियान्वित करने के लिए, प्रबंधक संसाधनों और कर्मियों को व्यवस्थित करते हैं। इसमें विभागों का निर्माण, कर्मियों की नियुक्ति, और जिम्मेदारियों का वितरण शामिल होता है।

(iv) आदेश देना: प्रबंधक कर्मियों को निर्देश देते हैं और उन्हें कार्यों को पूरा करने के लिए प्रेरित करते हैं। इसमें स्पष्ट और संक्षिप्त निर्देश देना, प्रतिक्रिया प्रदान करना, और प्रेरणादायक वातावरण बनाना शामिल होता है।

(v) समन्वय करना: विभिन्न विभागों और कर्मियों के बीच तालमेल और सहयोग स्थापित करना प्रबंधन का एक महत्वपूर्ण कार्य है। इसमें संचार को बढ़ावा देना, बैठकों का आयोजन करना, और संघर्षों को हल करना शामिल होता है।

(vi) नियंत्रण रखना: प्रबंधक प्रगति की निगरानी करते हैं, परिणामों का मूल्यांकन करते हैं, और आवश्यक सुधार करते हैं। इसमें डेटा का विश्लेषण करना, मानकों को निर्धारित करना, और प्रदर्शन समीक्षा करना शामिल होता है।

अथवा

टेलर के वैज्ञानिक प्रबन्ध के सिद्वान्तों की व्याख्या कीजिए ।

Ans: एफडब्ल्यू टेलर के वैज्ञानिक प्रबंधन के मूलभूत सिद्धांत निम्नलिखित हैं -

(i) कार्य का विश्लेषण करने और उन्हें कुशलतापूर्वक निष्पादित करने का सर्वोत्तम तरीका निर्धारित करने के लिए कार्य में 'अंगूठे के नियम' को वैज्ञानिक पद्धति से बदलना।

(ii) श्रमिकों की क्षमता और प्रेरणा के आधार पर कार्य सौंपना। इसके अतिरिक्त, उनकी कार्यकुशलता को अधिकतम करने के लिए उन्हें आवश्यक प्रशिक्षण प्रदान करना।

(iii) प्रबंधक और श्रमिकों दोनों को कार्य का आवंटन, जिसमें प्रबंधकों को कार्य कार्यक्रम की योजना बनाने और श्रमिकों को प्रशिक्षण देने का काम सौंपा जाएगा।

(iv) श्रमिकों के प्रदर्शन का मूल्यांकन और पर्यवेक्षण। साथ ही, उन्हें उनके प्रदर्शन को अधिकतम करने के लिए उपयुक्त निर्देश भी प्रदान करना।

इसके साथ, आइए एफडब्ल्यू टेलर द्वारा वैज्ञानिक प्रबंधन की तकनीकों का पता लगाने के लिए आगे बढ़ें और इसके साथ ही संबंधित अवधारणाओं की भी जांच करें। यह न केवल अवधारणा को बेहतर ढंग से समझने में मदद करेगा बल्कि हमें संगठनात्मक सेटअप में उनकी व्यावहारिकता और दक्षता का आकलन करने में भी सक्षम करेगा।

28- नियोजन के प्रकारों का वर्णन कीजिए ।

Ans: नियोजन के कई प्रकार होते हैं, जिनमें से कुछ मुख्य प्रकार निम्नलिखित हैं:

(i) सामान्य नियोजन (General Arrangement): इसमें सामान्यत: संरचना की खाका, विस्तार, आकार और स्थिति का विवरण होता है।

(ii) समूह नियोजन (Group Arrangement): यह विशिष्ट क्षेत्र में किसी गठन की संरचना को व्यक्त करने के लिए उपयुक्त होता है।

(iii) स्थानांतरण नियोजन (Layout Arrangement): यह नियोजन संरचित क्षेत्र में संरचना के विविध घटकों की स्थानांतरण स्थिति को दिखाता है।

(iv) निर्माण नियोजन (Construction Arrangement): इसमें संरचना के निर्माण के लिए आवश्यक स्थान, सामग्री और कार्य का विवरण होता है।

(v) तकनीकी नियोजन (Technical Arrangement): यह विशेष तकनीकी पहलूओं और घटकों की संरचना को व्यक्त करता है।

(vi) पारिस्थितिकी नियोजन (Environmental Arrangement): इसमें पर्यावरणीय परिस्थितियों का ध्यान रखकर संरचना की स्थानांतरण की जाती है।

(vii) विस्तार नियोजन (Expansion Arrangement): यह संरचना के विस्तार की योजना को दर्शाता है।

अथवा

संगठन ढांचे के निर्माण के समय ध्यान देने योग्य बातों का उल्लेख कीजिए ।

Ans: संगठन ढांचे के निर्माण के समय ध्यान देने योग्य बातें:

1. उद्देश्य और लक्ष्य: संगठन ढांचे का निर्माण करने से पहले, यह महत्वपूर्ण है कि संगठन के उद्देश्य और लक्ष्य स्पष्ट रूप से परिभाषित किए जाएं। ढांचे को इन उद्देश्यों और लक्ष्यों को प्राप्त करने में सहायक होना चाहिए।

2. कार्य विभाजन: संगठन के कार्यों को विभिन्न विभागों और पदों में विभाजित करना आवश्यक है। यह कार्य विभाजन स्पष्ट और तार्किक होना चाहिए ताकि कर्मचारियों को अपनी जिम्मेदारियों और अधिकारों का स्पष्ट ज्ञान हो।

3. संचार और समन्वय: संगठन ढांचे में प्रभावी संचार और समन्वय के लिए व्यवस्था होनी चाहिए। विभिन्न विभागों और कर्मचारियों के बीच सूचना का आदान-प्रदान आसानी से और कुशलता से होना चाहिए।

4. लचीलापन: संगठन ढांचा लचीला होना चाहिए ताकि बदलती परिस्थितियों के अनुसार इसे अनुकूलित किया जा सके।

5. निर्णय लेने की प्रक्रिया: संगठन ढांचे में निर्णय लेने की प्रक्रिया स्पष्ट और कुशल होनी चाहिए।

6. नियंत्रण और निगरानी: संगठन ढांचे में कार्यों और गतिविधियों पर नियंत्रण और निगरानी के लिए व्यवस्था होनी चाहिए।

7. मानव संसाधन: संगठन ढांचे को संगठन के मानव संसाधनों के अनुरूप होना चाहिए।

8. तकनीकी: संगठन ढांचे को संगठन द्वारा उपयोग की जाने वाली तकनीक के अनुरूप होना चाहिए।

9. लागत: संगठन ढांचे को लागत प्रभावी होना चाहिए।

10. कानूनी और नियामक आवश्यकताएं: संगठन ढांचे को सभी कानूनी और नियामक आवश्यकताओं का पालन करना चाहिए।

29- नियुक्तिकरण प्रक्रिया पर प्रकाश डालिए ।

Ans: नियुक्तिकरण प्रक्रिया: नियुक्तिकरण प्रक्रिया, किसी पद के लिए उम्मीदवारों की खोज, मूल्यांकन और चयन की एक व्यवस्थित योजना है। यह प्रक्रिया विभिन्न प्रकार के पदों के लिए भिन्न हो सकती है, लेकिन इसमें आमतौर पर निम्नलिखित चरण शामिल होते हैं:

1. रिक्ति की पहचान: सबसे पहले, यह निर्धारित किया जाता है कि क्या कोई पद रिक्त है और उसे भरने की आवश्यकता है।

2. विज्ञापन: रिक्त पद के लिए विज्ञापन दिया जाता है, जिसमें पद के बारे में आवश्यक जानकारी, जैसे कि योग्यता, अनुभव, वेतन, आदि शामिल होती है।

3. आवेदन: इच्छुक उम्मीदवार विज्ञापन में दिए गए निर्देशों के अनुसार आवेदन करते हैं।

4. प्रारंभिक छंटाई: आवेदनों की प्रारंभिक छंटाई की जाती है, जिसमें अयोग्य या अधूरे आवेदनों को हटा दिया जाता है।

5. लिखित परीक्षा: चयनित उम्मीदवारों को लिखित परीक्षा के लिए बुलाया जाता है।

6. साक्षात्कार: लिखित परीक्षा में सफल उम्मीदवारों को साक्षात्कार के लिए बुलाया जाता है।

7. चयन: साक्षात्कार के आधार पर, उम्मीदवारों का चयन किया जाता है।

8. नियुक्ति: चयनित उम्मीदवारों को नियुक्ति पत्र जारी किया जाता है।

अथवा

पर्यवेक्षण की परिभाषा दीजिए। किसी आधौगिक उपक्रम में पर्यवेक्षण के महत्व का वर्णन कीजिए ।

Ans: पर्यवेक्षण एक निरंतर प्रक्रिया है जिसमें किसी कार्य, गतिविधि या घटना को ध्यान से देखना, समझना और उसका विश्लेषण करना शामिल होता है। यह किसी कार्य को बेहतर ढंग से करने, त्रुटियों को कम करने, दक्षता बढ़ाने और लक्ष्यों को प्राप्त करने में सहायता करता है।

किसी आधौगिक उपक्रम में पर्यवेक्षण का महत्व:

(i) कार्यक्षमता में वृद्धि: पर्यवेक्षण से कार्य की प्रगति का निरीक्षण किया जाता है और त्रुटियों को पहचाना जाता है। इससे कार्यक्षमता में वृद्धि होती है और उत्पादन लागत कम होती है।
(ii) गुणवत्ता में सुधार: पर्यवेक्षण से उत्पादों की गुणवत्ता में सुधार होता है। त्रुटियों को कम करके और मानकों को लागू करके उच्च गुणवत्ता वाले उत्पादों का उत्पादन किया जाता है।
(iii) सुरक्षा में वृद्धि: पर्यवेक्षण से कार्यस्थल में सुरक्षा में वृद्धि होती है। खतरों को पहचानकर और सुरक्षा उपायों को लागू करके दुर्घटनाओं को रोका जा सकता है।
(iv) कर्मचारियों का मनोबल: पर्यवेक्षण से कर्मचारियों का मनोबल बढ़ता है। उन्हें मार्गदर्शन और प्रशिक्षण प्रदान करके उन्हें बेहतर प्रदर्शन करने के लिए प्रेरित किया जाता है।
(v) समस्याओं का समाधान: पर्यवेक्षण से समस्याओं का शीघ्र समाधान होता है। त्रुटियों और कमियों को पहचानकर और सुधारात्मक उपायों को लागू करके समस्याओं को जल्दी से हल किया जा सकता है।

30– किसी कम्पनी में स्थायी पूँजी आवश्यकताओं के निर्धारित करने वाले कारकों का वर्णन कीजिए ।

Ans: स्थायी पूँजी आवश्यकताओं के निर्धारित करने वाले कारक:

(i) प्रतिस्पर्धा का स्तर: उच्च प्रतिस्पर्धा वाले उद्योग में, कंपनियों को ग्राहकों को आकर्षित करने के लिए अधिक स्टॉक रखने, त्वरित वितरण प्रदान करने और लंबी अवधि के लिए ऋण सुविधाएं प्रदान करने की आवश्यकता होती है।
(ii) ऋण की उपलब्धता: यदि कंपनी को आसानी से ऋण प्राप्त होता है, तो स्थायी पूँजी की आवश्यकता कम हो सकती है।
(iii) मौसमी उतार-चढ़ाव: यदि कंपनी के व्यवसाय में मौसमी उतार-चढ़ाव होते हैं, तो उसे मौसम के अनुसार स्टॉक और अन्य परिसंपत्तियों को बढ़ाने या घटाने की आवश्यकता हो सकती है।
(iv) उत्पादन चक्र: यदि कंपनी का उत्पादन चक्र लंबा है, तो उसे अधिक कच्चे माल, अर्द्ध-तैयार माल और तैयार माल के स्टॉक रखने की आवश्यकता होगी।
(v) वितरण प्रणाली: यदि कंपनी का वितरण प्रणाली जटिल है, तो उसे अधिक वितरण केंद्रों और गोदामों की आवश्यकता होगी।
(vi) सरकारी नीतियां: सरकारी नीतियां, जैसे कि कर नीतियां, स्थायी पूँजी आवश्यकताओं को प्रभावित कर सकती हैं।
(vii) अनिश्चितता: भविष्य की अनिश्चितता, जैसे कि आर्थिक मंदी की संभावना, स्थायी पूँजी आवश्यकताओं को बढ़ा सकती है।
(viii)निवेश नीति: कंपनी की निवेश नीति, जैसे कि नए उत्पादों या परियोजनाओं में निवेश, स्थायी पूँजी आवश्यकताओं को प्रभावित कर सकती है।
(ix) वृद्धि की योजना: यदि कंपनी तेजी से बढ़ने की योजना बना रही है, तो उसे अधिक स्थायी पूँजी की आवश्यकता होगी।
(x) प्रौद्योगिकी: यदि कंपनी नई तकनीकों का उपयोग करती है, तो उसे कम स्थायी पूँजी की आवश्यकता हो सकती है।

अथवा

भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) के उददेश्यों एंव कार्यों की व्याख्या कीजिए |

Ans: भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) के उद्देश्य और कार्य:

उद्देश्य:

(i) निवेशकों के हितों की रक्षा करना: सेबी का मुख्य उद्देश्य प्रतिभूति बाजार में निवेश करने वाले लोगों के हितों की रक्षा करना है। इसमें धोखाधड़ी और हेराफेरी से बचाना, उचित व्यापारिक प्रथाओं को बढ़ावा देना और निवेशकों को शिक्षित करना शामिल है।
(ii) बाजार का विकास करना: सेबी का दूसरा महत्वपूर्ण उद्देश्य प्रतिभूति बाजार के विकास को बढ़ावा देना है। इसमें बाजार को अधिक कुशल और पारदर्शी बनाना, नवाचार को प्रोत्साहित करना और विदेशी निवेश को आकर्षित करना शामिल है।
(iii) बाजार को विनियमित करना: सेबी प्रतिभूति बाजार को विनियमित करने के लिए भी जिम्मेदार है। इसमें नियमों और विनियमों को लागू करना, मध्यस्थों की निगरानी करना और उल्लंघन के लिए दंड देना शामिल है।

कार्य:
(i) पंजीकरण: सेबी स्टॉक एक्सचेंजों, ब्रोकर्स, डीलरों, मर्चेंट बैंकर्स और अन्य मध्यस्थों के पंजीकरण और विनियमन के लिए जिम्मेदार है।
(ii) नियमों और विनियमों का निर्माण: सेबी प्रतिभूति बाजार के संचालन के लिए नियमों और विनियमों का निर्माण करता है। इनमें जारी करने, व्यापार, निपटान और निवेशकों के संरक्षण से संबंधित नियम शामिल हैं।
(iii) निगरानी और प्रवर्तन: सेबी मध्यस्थों और बाजार गतिविधियों की निगरानी करता है। यह उल्लंघन के लिए जांच करता है और दंड लगाता है।
(iv) निवेशक शिक्षा: सेबी निवेशकों को शिक्षित करने और जागरूक बनाने के लिए कार्यक्रम आयोजित करता है। यह निवेशकों को धोखाधड़ी से बचाने और उन्हें बेहतर निवेश निर्णय लेने में मदद करने के लिए जानकारी और संसाधन प्रदान करता है।

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