UP Board 12th Civics Exam 2024 : VVI Most Important Question with Answers

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UP बोर्ड 12वीं की नागरिक शास्त्र परीक्षा 23 फरवरी, 2024 को निर्धारित है। तो यह आर्टिकल आपके लिए काफी ज्यादा महत्वपूर्ण साबित होने वाला है क्योंकि इस आर्टिकल में आपको बोर्ड परीक्षा के लिए वो ही प्रश्न दिए गए है जो बोर्ड पेपर में आने जा रहे है।
यहाँ पर UP Board क्लास 12th के नागरिक शास्त्र (UP Board Class 12th Civics Exam 2024 VVI Most Important Question) से संबंधित महत्वपूर्ण प्रश्न दिए गए है। महत्वपूर्ण प्रश्नों का एक संग्रह है जो बहुत ही अनुभवी शिक्षकों के द्वारा तैयार किये गए है। इसमें प्रत्येक महत्वपूर्ण प्रश्नों को छांट कर एकत्रित किया गया है, जिससे कि विद्यार्थी कम समय में अच्छे अंक प्राप्त कर सके।
UP Board Class 12th Civics VVI Most Important Question
(बहुविकल्पीय प्रश्न)
निर्देशः निम्नलिखित प्रत्येक प्रश्न के लिये दिये गये चार विकल्पों में से सही उत्तर चुनकर अपनी उत्तर-पुस्तिका में लिखिये ।
1- निम्नलिखित में से कौन - सी संधि परमाणु निःशस्त्रीकरण से सम्बंधित है ?
(क) स्टार्ट
(ख) एनपीटी
(ग) साल्ट
(घ) नाटो
2- वैश्वीकरण किस प्रकार की अवधारणा है ?
(क) आर्थिक
(ख) राजनीतिक
(ग) सांस्कृतिक
(घ) बहुआयामी
3- निम्नलिखित में से कौन-सा कथन वायुमण्डल के सन्दर्भ में सही है ?
(क) वायुमण्डल में ओजोन गैस की मात्रा बढ़ रही है।
(ख) वायुमण्डल में ओजोन गैस की मात्रा घट रही है।
(ग) वायुमण्डल में नाइट्रोजन गैस की मात्रा लगभग 58 प्रतिशत है।
(घ) उपरोक्त में से काई नहीं
4- शॉक थेरेपी का क्या अर्थ है ?
(क) आघात पहुँचाकर उपचार करना
(ख) उपचार करके आघात पहुँचाना
(ग) निजीकरण को बढ़ावा देना
(घ) निजीकरण का विरोध करना
5- WSF का पूरा नाम है-
(क) 'वर्ल्ड सोशल फोरम (World Social Forum)
(ख) 'वर्ल्ड सिक्योरिटी फोरम (World Security Forum)
(ग) वर्ल्ड साइटिस्ट फोरम (World Scientist Forum)
(घ) उपरोक्त में से कोई नहीं ।
6- राज्य पुनर्गठन अधिनियम कब पास हुआ ?
(क) 1956 में
(ख) 1955 में
(ग) 1957 में
(घ) 1958 में
7- खाद्य संकट से सर्वाधिक प्रभावित राज्य था-
(क) उत्तर प्रदेश
(ख) पंजाब
(ग) प० बंगाल
(घ) बिहार
8 – 'बॉम्बे प्लान' का क्या उद्देश्य था ?
(क) भारत का राजनैतिक विकास करना
(ख) भारत का सांस्कृतिक विकास करना
(ग) भारत का आर्थिक विकास करना
(घ) भारत का सर्वांगीण विकास करना
9- 1975 ई0 में आपातकालीन घोषणा के समय भारत का प्रधानमंत्री कौन था ?
(क) जय प्रकाश नारायण
(ख) इन्दिरा गांधी
(ग) लाल बहादुर शास्त्री
(घ) मोरार जी देसाई
10- किस दशक को स्वायत्तता का दशक कहा जाता है?
(क) 1960
(ख) 1980
(ग) 1950
(घ) 1970
(अतिलघु उत्तरीय प्रश्न)
11- 'सुरक्षा' से क्या तात्पर्य है?
Ans - ‘सुरक्षा’ का तात्पर्य है सुरक्षित रहना और सुरक्षित रखना।
12- किन्हीं दो अस्त्र नियंत्रण संधियों का नामोल्लेख कीजिए ।
Ans - (1) परमाणु अप्रसार संधि (NPT)
(2) मध्यम दूरी की परमाणु मिसाइल संधि (INF)
13- वैश्वीकरण से क्या अभिप्राय है?
Ans - वैश्वीकरण से अभिप्राय है वैश्विक साझेदारी और अन्तर्राष्ट्रीय संबंध।
14- 'पृथ्वी सम्मेलन किस समस्या को लेकर आयोजित किया गया था ?
Ans - पर्यावरणीय समस्याओं को लेकर आयोजित किया गया था।
15- 'साझी सम्पदा' का क्या अर्थ है ?
Ans - ऐसी सम्पदा जिस पर किसी समूह के प्रत्येक सदस्य का स्वामित्व हो।
16- केन्द्र में प्रथम बार गठबंधन सरकार कब बनी ?
Ans - भारत में पहली बार गठबंधन सरकार 24 मार्च, 1977 से 15 जुलाई, 1979 तक रही. इस सरकार का नेतृत्व जनता पार्टी ने किया था.
17- 'सिंडिकेट' से क्या अभिप्राय है?
Ans - एक समूह या संघ को दर्शाता है जो आमतौर पर किसी विशेष उद्योग, काम, या धंधे से जुड़ा होता है।
18- देश के विभाजन से प्रभावित होने वाले दो राज्यों के नाम लिखिए ।
Ans - पंजाब और बंगाल
19- अल्पमत सरकार किसे कहते हैं?
Ans - संसदीय प्रणाली में बनी सरकार को अल्पमत सरकार कहते हैं. यह तब बनती है, जब किसी राजनीतिक दल या दलों के गठबंधन के पास संसद में सभी सीटों का बहुमत न हो.
20- मध्यावधि चुनाव किसे कहते हैं ?
Ans - यदि किसी कारण से पांच साल का कार्यकाल पूरा नही हो पाता और वर्तमान पार्टी जो सत्ता मे है अपना त्यागपत्र दे देती है और कोई दूसरी पार्टी भी सरकार बनाने मे सक्षम नही है तो ऐसी हालत मे जो चुनाव होते हैं उसे मध्यावधि चुनाव कहते है।
(लघु उत्तरीय प्रश्न - 1)
21- संयुक्त राष्ट्र संघ का निर्माण कब किया गया? इसकी किन्हीं दो विशिष्ट संस्थाओं के नाम लिखिए तथा उनके कार्यों का उल्लेख कीजिए ।
Ans - संयुक्त राष्ट्र संघ का निर्माण 24 अक्टूबर 1945 को हुआ था। इसके कुछ विशिष्ट संस्थाएं निम्नलिखित हैं:
1. **सुरक्षा परिषद (Security Council):** यह संस्था संयुक्त राष्ट्र की सबसे महत्वपूर्ण संस्था है जो अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा के प्रबंधन के लिए जिम्मेदार है। इसमें स्थायी सदस्यों और स्थानीय सदस्यों की एक मिश्रित समझदारी है जो सुरक्षा समस्याओं पर निर्णय लेती है।
2. **महासभा (General Assembly):** यह संस्था संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्यों को सम्मिलित करती है और उन्हें सहमति से आपसी समस्याओं पर चर्चा करने का मौका प्रदान करती है। महासभा ने विभिन्न क्षेत्रों में विकास की प्रोत्साहना करने और अंतरराष्ट्रीय सम्बन्धों को सुधारने के लिए कई अहम निर्णय लिए हैं।
संयुक्त राष्ट्र संघ का मुख्य उद्देश्य विश्वशांति और सुरक्षा की रक्षा करना, सामाजिक-आर्थिक विकास को प्रोत्साहित करना, अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और एकता को बढ़ावा देना है।
22- भारत के नागरिक के रूप में भारत की राष्ट्र संघ में स्थाई सदस्यता क्यों होनी चाहिए? इसके पक्ष में दो तर्क दीजिए ।
Ans - भारत सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता का एक प्रबल दावेदार है। इसे प्रमुख देशों का समर्थन भी प्राप्त है लेकिन चीन सहित विश्व के कई देश इसका विरोध भी कर रहे हैं। स्थायी सदस्यता प्राप्त करने के लिये भारत को वैश्विक समुदाय में अपनी छवि और सुदृढ़ करनी होगी। देश का सामाजिक-आर्थिक विकास करना होगा। साथ ही समय-समय पर अपने दावे को भी प्रस्तुत करते रहना होगा।
23- आसियान का निर्माण क्यों किया गया? क्या यह अपने उद्देश्यों की पूर्ति में सफल है? इसके पक्ष में अपने विचार स्पष्ट कीजिए ।
Ans - आसियान का निर्माण क्षेत्रीय सहयोग, आर्थिक विकास, और शांति स्थापित करने के लिए किया गया था। यह अपने कुछ उद्देश्यों में सफल रहा है, जैसे कि व्यापार में वृद्धि और क्षेत्रीय स्थिरता।
हालांकि, मानवाधिकारों और लोकतंत्र को बढ़ावा देने में इसकी सफलता कम रही है।
मेरे विचार में, आसियान एक महत्वपूर्ण संगठन है जिसके पास क्षेत्र में सकारात्मक बदलाव लाने की क्षमता है।
यह मानवाधिकारों और लोकतंत्र को बढ़ावा देने के लिए अपनी भूमिका को मजबूत बनाकर अधिक प्रभावी बन सकता है।
यह क्षेत्रीय मुद्दों पर एक मजबूत आवाज बन सकता है और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अपनी उपस्थिति दर्ज कर सकता है।
24- स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात एकदलीय प्रभुत्व प्रणाली का भारतीय राजनीति पर क्या प्रभाव पड़ा ? स्पष्ट कीजिए ।
Ans - स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात भारत में एकदलीय प्रभुत्व प्रणाली का भारतीय राजनीति पर गहरा प्रभाव पड़ा।
सकारात्मक प्रभाव:
- स्थिरता: कांग्रेस पार्टी के नेतृत्व में एक मजबूत और स्थिर सरकार बनी, जिसने देश के पुनर्निर्माण और विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- राष्ट्रीय एकता: एकदलीय प्रणाली ने राष्ट्रीय एकता और अखंडता को मजबूत करने में मदद की, जो कि विभाजन के बाद महत्वपूर्ण था।
- विकास: सरकार ने शिक्षा, स्वास्थ्य, और कृषि जैसे क्षेत्रों में महत्वपूर्ण विकास कार्य किए।
नकारात्मक प्रभाव:
- विपक्ष का कमजोर होना: विपक्षी दल कमजोर थे और कांग्रेस पार्टी को चुनौती देने में असमर्थ थे।
- लोकतंत्र का कमजोर होना: एकदलीय प्रणाली ने लोकतंत्र को कमजोर किया और राजनीतिक भागीदारी को कम कर दिया।
- भ्रष्टाचार: सत्ता में एकाधिकार के कारण भ्रष्टाचार बढ़ गया।
25- 1975 ई0 में आपातकाल लागू होने से हमें क्या सीख मिलती है? स्पष्ट कीजिए ।
Ans - 1975 में आपातकाल लागू होने से हमें कई महत्वपूर्ण सीख मिलती हैं:
लोकतंत्र का महत्व: आपातकाल ने हमें लोकतंत्र के महत्व को याद दिलाया। लोकतंत्र में, नागरिकों को अपनी सरकार चुनने और अपनी आवाज उठाने का अधिकार होता है।
अधिकारों का महत्व: आपातकाल ने हमें नागरिक अधिकारों के महत्व को याद दिलाया। आपातकाल के दौरान, कई नागरिक अधिकारों को छीन लिया गया था।
सत्ता का दुरुपयोग: आपातकाल ने हमें सत्ता के दुरुपयोग के खतरों को याद दिलाया। आपातकाल के दौरान, सरकार ने अपनी शक्तियों का दुरुपयोग किया और कई लोगों को प्रताड़ित किया।
संविधान का महत्व: आपातकाल ने हमें संविधान के महत्व को याद दिलाया। संविधान नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करता है और सरकार को जवाबदेह बनाता है।
विरोध का महत्व: आपातकाल ने हमें विरोध के महत्व को याद दिलाया। आपातकाल के दौरान, कई लोगों ने सरकार के खिलाफ आवाज उठाई और लोकतंत्र की बहाली के लिए लड़ाई लड़ी।
26- असम आंदोलन सांस्कृतिक अभियान और आर्थिक पिछड़ेपन की मिली-जुली अभिव्यक्ति था । तथ्य सहित उदाहरण देकर स्पष्ट कीजिए ।
Ans - असम आन्दोलन-असम पूर्वोत्तर भारत का एक महत्त्वपूर्ण राज्य है। सन् 1979 से सन् 1985 तक असम में बाहरी लोगों के खिलाफ जो आन्दोलन चला, उसे ‘असम आन्दोलन’ के नाम से जाना जाता है। यह आन्दोलन असम के सांस्कृतिक अभियान और आर्थिक पिछड़ेपन की मिली-जुली अभिव्यक्ति था क्योंकि-
(1) असमी लोगों को सन्देह था कि बंगलादेश से आकर बहुत-सी मुस्लिम आबादी असम में बसी हुई है। लोगों के मन में यह भावना घर कर गई थी कि इन विदेशी लोगों को पहचानकर उन्हें अपने देश नहीं भेजा गया तो स्थानीय असमी जनता अल्पसंख्यक हो जाएगी। या उन्हें ‘असमी संस्कति’ पर खतरा दिखाई दे रहा था। अतः सन् 1979 में ऑल असम स्टूडेण्ट यूनियन ने जब विदेशियों के विरोध में आन्दोलन चलाया, जिससे यह माँग की गई कि सन् 1951 के बाद जितने भी लोग असम में आकर बसे हैं उन्हें असम से बाहर भेजा जाए, तो असमी जनता के हर तबके ने इसका समर्थन किया तथा इस आन्दोलन को पूरे असम में समर्थन मिला।
(2) असम आन्दोलन के पीछे आर्थिक मसले भी जुड़े थे। असम में तेल, चाय और कोयले जैसे प्राकृतिक संसाधनों की मौजूदगी के बावजूद व्यापक गरीबी थी। यहाँ की जनता ने माना कि असम के प्राकृतिक संसाधन बाहर भेजे जा रहे हैं और असमी लोगों को कोई फायदा नहीं हो रहा है। अत: इस आन्दोलन के पीछे सांस्कृतिक स्वाभिमान के साथ-साथ असम के आर्थिक पिछड़ेपन की पीड़ा की भी अभिव्यक्ति थी।
(लघु उत्तरीय प्रश्न -2)
27- भारत और चीन की उभरती अर्थव्यवस्थाओं में वर्तमान की एक ध्रुवीय व्यवस्था को चुनौती देने की क्षमता है। वर्तमान परिस्थितियों की दृष्टि से क्या आप इससे सहमत है? अपने मत की पुष्टि में तर्क भी दीजिए ।
Ans - हाँ, हम इस कथन से सहमत हैं। चीन और भारत की उभरती अर्थव्यवस्थाओ में मौजूदा एक ध्रुवीय विश्व व्यवस्था को चुनौती दे सकने की पूरी क्षमता है। हम इस विचार की पुष्टि के समर्थन में निम्न तर्क दे सकते हैं -
- चीन और भारत दोनों एशिया के दो प्राचीन, महान शक्तिशाली एवं साधन संपन्न देश है। दोनों में परस्पर सुदॄढ़ मित्रता और सहयोग अमरीका के लिए चिंता का कारण बन सकता है। दोनों देश अंतर्राष्टीय राजनैतिक और आर्थिक मंचो पर एक सी निति और दृष्टिकोण अपनाकर एकध्रुवीय विश्वव्यवस्था के संचालन करने वाले राष्ट अमरीका और उसके मित्रों को चुनौती देने में समक्ष हैं।
- चीन और भारत दोनों की जनसंख्या 200 करोड़ से भी अधिक है। इतना विशाल जनमानस अमरीका के निर्मित माल के लिए एक विशाल बाजार प्रदान कर सकता है। पश्चिमी देशों एवं अन्य देशों को कुशल और अकुशल सस्ते श्रमिक दे सकते हैं।
- दोनों देशों नई अर्थव्यवस्था, मुक्त व्यापार निति, उदारीकरण, वैश्वीकरण, और अंतर्राष्टीय सहयोग के पक्षधर हैं। दोनों देश विदेश पूंजी निवेश का स्वागत कर एकध्रुवीय महाशक्ति अमरीका और अन्य बहुराष्ट्रीय निगम समर्थक कम्पनियाँ स्थापित और संचालन करने वाले राष्टों को लुभाने, आंतरिक आवश्यकता सुविधाएँ प्रदान करके अपने यहाँ आर्थिक विकास की गति को बहुत ज्यादा बढ़ा सकते हैं।
- दोनों ही राष्ट वैज्ञानिक अनुसंधान कार्यो में परस्पर सहयोग करके प्रौद्योगिक के क्षेत्र में आश्चर्यजनक प्रगति कर सकते है।
- दोनों देश विश्व बैंक, अंतर्राष्टीय मुद्रा कोष से त्रृण लेते समय अमरीका और अन्य बड़ी शक्तियों की मनमानी शर्ते थोपने पर नियंत्रण रख सकते हैं।
- चीन और भारत तस्करी रोकने, नशीली दवाओं के उत्पादन, वितरण, प्रदूषण फैलाने वाले कारको और आतंकवादियों की गतिविधियों को रोकने में पूर्ण सहयोग देकर भी विश्व व्यवस्था की चुनौतियों को कम कर सकते हैं क्योंकि इन क्षेत्रों में सहयोग से न केवल कीमतों के बढ़ने की प्रवृत्ति को रोका जा सकता है बल्कि लोगों का स्वास्थ्य और सुरक्षा बढ़ेगी। दोनों में आंतरिक सद्भाव, शांति, औद्योगिक विकास के अनुकूल वातावरण से निःसंदेह विदेशी पूंजी, उधमियों, व्यापारियों, नवीनतम प्रोद्योगिक आदि के आने और नई - नई औद्योगिक इकाइयों की स्थापना, विभिन्न प्रकार की सेवाओं की वृद्धि और विस्तार में मदद मिलेगी।
- दोनों ही देश सीमाओं पर स्थित या प्रवाहित होने वाली दनियों और जल भंडारों और बाँधों द्वारा बाढ़ नियंत्रिण, जल विद्युत्त निर्माण, जलआपूर्ति, मत्स्य उद्योग, पर्यटन उद्योग आदि को बढ़ा सकते हैं। दोनों ही देश सड़क निर्माण, रेल लाइन विस्तार, वायुयान और जल मार्ग संबंधी सुविधओं के क्षेत्रों में पारस्परिक आदान - प्रदान और असहयोग की नीतियाँ अपनाकर अपने को शीघ्र ही महाशक्तियों की श्रेणी में ला सकते हैं। खनिज संपदा, कृषि उत्पाद, प्राकृतिक संसाधनों (जैसे - वन उत्पादों, पशुधन) सॉफ्टवेयर इंजीनियरिंग आदि के क्षेत्र में यथा क्षमता तथा आवश्यकता की निति अपनाकर निःसंदेह एवध्रुवीय विश्वव्यवस्था को मजबूत चुनौती दे सकते हैं।
28- वैश्विक पर्यावरण की सुरक्षा से जुड़े मुद्दे 1990 के दशक से विभिन्न देशों के लिए प्राथमिक सरोकार क्यों बन गये ? किन्हीं तीन कारणों का उल्लेख कीजिए ।
Ans -
- पर्यावरण से जुड़े सरोकारों का लम्बा इतिहास है लेकिन आर्थिक विकास के कारण पर्यावरण पर होने वाले असर की चिंता ने 1960 के दशक के बाद से राजनितिक चरित्र ग्रहण किया। वैश्विक मामलों से सरोकार रखने वाले एक विद्व्त समूह 'क्लय ऑफ रोम' ने 1972 में 'लिमिट्स टू ग्रोथ' शीर्षक से एक पुस्कत प्रकाशित की। यह पुस्तक दुनिया की बढ़ती जनसंख्या के आलोक में प्राकृतिक संसाधनों के विनाश के अंदेशे को बड़ी खूबी से बताती है।
- दुनिया भर में कृषि - योग्य भूमि में अब कोई बढ़ोतरी नहीं हो रही जबकि उपजाऊ जमीन के एक बड़े हिस्से की उर्वरता कम हो रही है।
- चरागाहों के चारे खत्म होने को हैं। मत्स्य - भंडार घट रहा है।
- जलाशयों की जलराशि बड़ी तेजी से कम हुई है। इससे खाद्य उत्पादन में कमी आ रही हैं।
- संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम सहित अनेक अंतररष्ट्रीय संगठनों ने पर्यावरण की समस्याओं पर ज्यादा कारगर और सुलझी हुई पहलकदमियों की शुरुआत करना था। तभी से पर्यावरण वैश्विक राजनीती का एक महत्त्वपूर्ण मसला बन गया।
29- नियोजन से क्या अभिप्राय है? नियोजित अर्थव्यवस्था की राह में प्रथम एवं द्वितीय पंचवर्षीय योजनाओं की भूमिका का उल्लेख कीजिए ।
Ans - नियोजन से तात्पर्य है कि देश के संसाधनों का कुशल एवं संतुलित उपयोग करके, निश्चित लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए एक योजनाबद्ध तरीके से कार्य करना।
प्रथम पंचवर्षीय योजना (1951-56):
- उद्देश्य: कृषि और उद्योग दोनों क्षेत्रों में विकास।
- प्रमुख उपलब्धियां:
- भारी उद्योगों की स्थापना।
- सिंचाई सुविधाओं में वृद्धि।
- कृषि उत्पादन में वृद्धि।
द्वितीय पंचवर्षीय योजना (1956-61):
- उद्देश्य: प्रथम योजना की सफलता को आगे बढ़ाना और औद्योगिक विकास पर ध्यान केंद्रित करना।
- प्रमुख उपलब्धियां:
- भारी उद्योगों का विस्तार।
- वैज्ञानिक और तकनीकी शिक्षा को बढ़ावा।
- राष्ट्रीय आय में वृद्धि।
दोनों योजनाओं की भूमिका:
- आर्थिक विकास: इन योजनाओं ने भारत की अर्थव्यवस्था को गति प्रदान की और आर्थिक विकास की नींव रखी।
- आत्मनिर्भरता: इन योजनाओं ने भारत को आत्मनिर्भर बनने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाए।
- रोजगार: इन योजनाओं ने लाखों लोगों को रोजगार के अवसर प्रदान किए।
- सामाजिक न्याय: इन योजनाओं ने सामाजिक न्याय और समानता को बढ़ावा देने के लिए भी कार्य किया।
30- अयोध्या विवाद क्या था? इसका समाधान कैसे हुआ ?
Ans - अयोध्या विवाद एक राजनीतिक, ऐतिहासिक और सामाजिक-धार्मिक विवाद था, जो नब्बे के दशक में सबसे ज्यादा उभार पर था। इस विवाद का मूल मुद्दा राम जन्मभूमि और बाबरी मस्जिद की स्थिति को लेकर था। बाबरी मस्जिद को एक राजनीतिक रैली के दौरान नष्ट कर दिया गया था, जो 6 दिसंबर 1992 को एक दंगे में बदल गया था। इसके बाद, इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने भूमि का स्वामित्व निर्धारित करने के लिए फैसला सुनाया, जिसमें भूमि को तीन भागों में विभाजित किया गया: 1/3 राम लला या हिन्दू महासभा, 1/3 सुन्नी वक्फ बोर्ड, और शेष 1/3 निर्मोही अखाड़ा को दिया गया।
(दीर्घ उत्तरीय प्रश्न)
31 - 'दक्षेस ' क्या है? इसका गठन कैसे हुआ? दक्षिण एशिया की प्रगति में 'दक्षेस (सार्क) ज्यादा बड़ी भूमिका निभा सके इसके लिए आप क्या सुझाव देंगे?
Ans - दक्षेस (साऊथ एशिया एसोसिएशन फॉर रीजनल कोऑपरेशन) दक्षिण एशियाई देशों द्वारा बहुस्तरीय साधनों से आपस में सहयोग करने की दिशा में उठाया गया बड़ा कदम है। इसकी शुरुआत 1985 में हुई। दुर्भाग्य से सदस्यों के मध्य विभेदों की मौजूदगी के कारण दक्षेस को ज्यादा सफलता नहीं मिली है। दक्षेस के सदस्य देशों ने सन 2002 में 'दक्षिण एशियाई मुक्त व्यापार - क्षेत्र समझौते' (साऊथ एशियन फ्री ट्रेड एरिया SAFTA) पर दस्तखत किये। इसमें पुरे दक्षिण एशिया के लिए मुक्त व्यापार क्षेत्र बनाने का वायदा है। यदि दक्षिण एशिया के सभी देश अपनी सीमारेखा के आर - पार मुक्त - व्यापार पर सहमत हो जाएँ तो इस क्षेत्र में शांति और सहयोग के एक नए अध्यय की शुरुआत हो सकती है। दक्षिण एशिया मुक्त व्यापार क्षेत्र समझौते (SAFTA) के पीछे यही भावना काम कर रही है। इस समझौते पर 2004 में हस्ताक्षर हुए और यह समझौता १ जनवरी, 2006 से प्रभावी हो गया। इस समझौते का लक्ष्य है की इन देशों के बीच आपसी व्यापार में लगने वाली सिमा शुल्क को 2007 तक बीस प्रतिशत कम कर दिए जाए। दक्षेस की सीमाएँ -
- कुछ छोटे देश मानते हैं की 'सॉफ्ट' की आड़ लेकर भारत उनके बाजार में सेंध मारना चाहता है और व्यावसायिक अघम तथा व्यावसायिक मौजूदगी के जरिये उनके समाज और राजनितिक पर असर डालना चाहता है। दूसरी ओर भारत सोचता है की 'साफ्ट' से क्षेत्र के हर देश को फायदा होगा और क्षेत्र में मुक्त व्यापार बढ़ाने से राजनितिक मामलों पर सहयोग ज्यादा बेहतर होगा।
- दक्षेस के सदस्य देशों में आपसी मतभेद बहुत अधिक हैं। कहि सिमा विवाद तो कही पानी के बंटवारे को लेकर आपसी मनमुटाव बना रहता हैं। भारत पाकिस्तान द्वारा आयोजित आतंकवाद से परेशान है जबकि पाकिस्तान कश्मीर मुद्दे पर भारत से दुश्मनी रखता हैं। इसी सब कारणों से सदस्य देशों के हाथ अवश्य मिलते हैं लेकिन दिल नहीं मिलते। दक्षेस को अपेक्षित सफलता न मिलने के यही कारण हैं। दक्षेस या दक्षिण एशियाई देशों को मजबूत बनाने के सुझाव - दक्षेस की सफलता उसके सदस्य देशों की राजनितिक सहमति पर आधारित है सभी देशों को आपसी मतभेद भूलकर दक्षेस को मजबूत बनाना चाहिए ताकि अंतर्राष्टीय स्तर पर इस संगठन को महत्व मिले तथा उसकी आवाज सुनी जाए। आपसी मतभेद की छाया दक्षेस के कार्यन्वत्न पर नहीं पड़नी चाहिए दक्षेस के मंच पर बड़े देश या छोटे देश का कोई भेदभाव नहीं होना चाहिए। सभी उसकी सफलता के लिए बराबर जिम्मेदार हों। द्विपक्षीय मुद्दें को दक्षेस से दूर रखना चाहिए। इस क्षेत्र का सबसे बड़ा तथा ताकतवर देश होने के कारण भारत को अपने पड़ोसियों की यथानुसार सहायता करनी चाहिए। इस दक्षेस की मजबूती ही इस क्षेत्र की मजबूती हैं।
32- गुट-निरपेक्षता की नीति के प्रमुख तत्त्वों का वर्णन कीजिए।
Ans - गुट-निरपेक्षता
द्वितीय महायुद्ध के पश्चात् सम्पूर्ण विश्व दो गुटों में बँट गया। एक गुट का नेतृत्व अमेरिका ने किया और दूसरे गुट का सोवियत संघ (रूस) ने। दोनों गुटों में अनेक कारणों को लेकर भीषण शीतयुद्ध प्रारम्भ हो गया। यूरोप और एशिया के अधिकांश देश इस गुटबन्दी में फंस गये और वे किसी-न-किसी गुट में सम्मिलित हो गये। 15 अगस्त, 1947 को जब भारत स्वतन्त्रं हुआ तो भारत के नेताओं को अपनी विदेश नीति का निर्माण करने का अवसर प्राप्त हुआ। भारत की विदेश नीति के निर्माता पं० जवाहरलाल नेहरू थे। उन्होंने अपनी विदेश-नीति का आधार गुट-निरपेक्षता (Non-Alignment) को बनाया। उन्होंने स्पष्ट किया कि “हम किसी गुट में सम्मिलित नहीं हो सकते, क्योकि हमारे देश में आन्तरिक समस्याएँ इतनी अधिक हैं कि हम दोनों गुटों से सम्बन्ध बनाये बिना उन्हें सुलझा नहीं सकते। धीरे-धीरे गुट-निरपेक्षता की नीति अपनाने वाले देशों की संख्या में वृद्धि होती गयी। सन् 1961 में बेलग्रेड में हुए गुट-निरपेक्ष देशों के प्रथम शिखर सम्मेलन में केवल 25 देशों ने भाग लिया था, किन्तु अब इनकी संख्या 120 हो गयी है।
गुट-निरपेक्षता का अर्थ व परिभाषा
गुट-निरपेक्षता की कोई सर्वमान्य व सर्वसम्मत परिभाषा उपलब्ध नहीं है, फिर भी गुटनिरपेक्षता की प्रकृति, तत्त्व तथा अर्थ के आधार पर इसकी परिभाषा इस प्रकार दी जा सकती है-“किसी भी राजनीतिक अथवा सैनिक गुट से संलग्न हुए बिना स्वतन्त्रता, शान्ति तथा सामाजिक न्याय के कार्य में योगदान देना ही गुट-निरपेक्षता है।” गुट-निरपेक्षता की नीति से अभिप्राय है। विभिन्न शक्तियों या गुटों से अप्रभावित रहते हुए अपनी स्वतन्त्र नीति अपनाना और राष्ट्रीय हितों के अनुसार न्याय का समर्थन देना।
कुछ लोग गुट-निरपेक्षता की नीति को, ‘तटस्थता’ की संज्ञा देते हैं, जो उचित नहीं है। इस सम्बन्ध में 1949 ई० में पण्डित जवाहरलाल नेहरू ने अमेरिकी जनता के समक्ष स्पष्ट रूप से कहा था-“जब स्वतन्त्रता के लिए संकट उत्पन्न हो, न्याय पर आघात पहुँचे या आक्रमण की घटना घटित हो, तब हम तटस्थ नहीं रह सकते और न ही हम तटस्थ रहेंगे।”
जॉर्ज लिस्का ने लिखा है कि “किसी विवाद के सन्दर्भ में यह जानते हुए कि कौन सही है। और कौन गलत, किसी का पक्ष न लेना ‘तटस्थता’ है, किन्तु गुट-निरपेक्षता का अर्थ है सही और गलत में भेद करना तथा सदैव सही नीति का समर्थन करना।
गुट-निरपेक्षता की नीति के प्रमुख तत्त्व
गुट-निरपेक्षता की नीति के प्रमुख तत्त्व निम्नवत् हैं-
1. राष्ट्रवाद की भावना – एशियाई-अफ्रीकी देशों ने राष्ट्रवाद की भावना के आधार पर एक लम्बे संघर्ष के बाद यूरोपियन साम्राज्यवाद से मुक्ति प्राप्त की थी। ऐसी स्थिति में सबसे पहले भारत और बाद में अन्य देशों ने स्वाभाविक रूप से सोचा कि किसी शक्ति गुट की सदस्यता को स्वीकार कर लेने पर अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में वे उसके पिछलग्गू बन जायेंगे, जिससे उनके आत्म-सम्मान, राष्ट्रवाद और सम्प्रभुता को आघात पहुँचेगा। इस प्रकार राष्ट्रवाद की भावना ने उन्हें अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में स्वतन्त्र मार्ग अपनाने के लिए प्रेरित किया।
2. साम्राज्यवाद और उपनिवेशवाद का विरोध – भारत और अन्य एशियाई-अफ्रीकी देशों ने लम्बे समय तक साम्राज्यवाद और उपनिवेशवाद के अत्याचार भोगे थे और साम्राज्यवाद तथा उपनिवेशवाद के प्रति उनकी विरोध भावना बहुत अधिक तीव्र थी। उन्होंने सही रूप में यह महसूस किया कि दोनों ही शक्ति गुटों के प्रमुख नव-साम्राज्यवादी हैं। तथा साम्राज्यवाद और उपनिवेशवाद का विरोध करने के लिए शक्ति गुटों से अलग रहना बहुत अधिक आवश्यक है।
3. शान्ति के लिए तीव्र इच्छा – लम्बे संघर्ष के बाद स्वतन्त्रता प्राप्त करने वाले एशियाई अफ्रीकी देशों ने सत्य रूप में महसूस किया कि यूरोपीय देशों की तुलना में उनके लिए शान्ति बहुत अधिक आवश्यक है। उन्होंने यह भी सोचा कि उनके लिए युद्ध और तनाव की सम्भावना बहुत कम हो जायेगी, यदि वे अपने आपको शक्ति गुटों से अलग रखें।
4. आर्थिक विकास की लालसा – नवोदित राज्य शस्त्रास्त्रों की प्रतियोगिता से बचकर अपने देश का आर्थिक पुनर्निर्माण करना चाहते हैं। आर्थिक पुनर्निर्माण तीव्र गति से हो सके, इसके लिए विकसित राष्ट्रों से आर्थिक और तकनीकी सहयोग प्राप्त करना जरूरी है। गुट-निरपेक्षता का मार्ग अपनाकर ही कोई राष्ट्र बिना शर्त विश्व की दोनों महाशक्तियों-साम्यवादी और पूँजीवादी गुटों से आर्थिक एवं तकनीकी सहायता प्राप्त कर सकता था।
5. जातीय एवं सांस्कृतिक पक्ष – गुट-निरपेक्षता की नीति की एक प्रेरक तत्त्व जातीय एवं सांस्कृतिक पक्ष’ भी है। गुट-निरपेक्षता की नीति के अधिकांश समर्थक यूरोपियन राष्ट्रों का शोषण भुगत चुके हैं और अश्वेत जाति के हैं। इनमें सांस्कृतिक एवं जातीय समानताएँ भी विद्यमान हैं और कमजोर ही सही, लेकिन समानताओं ने उन्हें शक्ति गुटों से अलग रहने के लिए प्रेरित किया है।
गुट-निरपेक्षता का महत्त्व
वर्तमान विश्व के सन्दर्भ में गुट-निरपेक्षता का व्यापक महत्त्व है, जिसे निम्नलिखित प्रकार से स्पष्ट किया जा सकता है-
⦁ गुट-निरपेक्षता ने तृतीय विश्वयुद्ध की सम्भावना को समाप्त करने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया
⦁ गुट-निरपेक्ष राष्ट्रों ने साम्राज्यवाद का अन्त करने और विश्व में शान्ति व सुरक्षा बनाए रखने के लिए महत्त्वपूर्ण प्रयास किए हैं।
⦁ गुट-निरपेक्षता के कारण ही विश्व की महाशक्तियों के मध्य शक्ति सन्तुलन बना रहा।
⦁ गुट-निरपेक्ष सम्मेलनों ने सदस्य राष्ट्रों के मध्य होने वाले युद्धों एवं विवादों का शान्तिपूर्ण ढंग से समाधान किया है।
⦁ गुट-निरपेक्ष राष्ट्रों ने विज्ञान व तकनीकी के क्षेत्र में एक-दूसरे को पर्याप्त सहयोग दिया है।
⦁ गुट निरपेक्षता ने अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति को व्यापक रूप से प्रभावित किया है।
⦁ गुट-निरपेक्ष आन्दोलन ने विश्व के परतन्त्र राष्ट्रों को स्वतन्त्र कराने और रंग-भेद की नीति का विरोध करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
⦁ यह आन्दोलन निर्धन तथा पिछड़े हुए देशों के आर्थिक विकास पर बहुत बल दे रहा है।
⦁ गुट-निरपेक्ष आन्दोलन राष्ट्रवाद को अन्तर्राष्ट्रवाद में परिवर्तित करने तथा द्विध्रुवीकरण को बहु-केन्द्रवाद में परिवर्तित करने का उपकरण बना।
⦁ इसने सफलतापूर्वक यह दावा किया कि मानव जाति की आवश्यकता पूँजीवाद तथा साम्यवाद के मध्य विचारधारा सम्बन्धी विरोध से दूर है।
⦁ इसने सार्वभौमिक व्यवस्था की तरफ ध्यान आकर्षित किया तथा अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों में शीत युद्ध की भूमिका को कम करने तथा इसकी समाप्ति में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
⦁ गुट-निरपेक्षता नए राष्ट्रों के सम्बन्धों में स्वतन्त्रापूर्वक विदेशों से सम्बन्ध स्थापित करके तथा सदस्यता प्रदान करके उनकी सम्प्रभुता की सुरक्षा का साधन बनी है।
गुट-निरपेक्षता का मूल्यांकन
गुटनिरपेक्षता पर आधारित विचारधारा का उदय उन परिस्थितियों में हुआ जब सम्पूर्ण विश्व दो गुटों में विभक्त हो गया था। इस प्रकार की स्थिति, सम्पूर्ण विश्व के लिए किसी भी समय खतरनाक सिद्ध हो सकती थी। यह गुटनिरपेक्षता पर आधारित नीति का ही परिणाम है कि वर्तमान विश्व तीसरे विश्वयुद्ध की आशंका को कम करने में काफी सीमा तक सफल हो सका है। गुटनिरपेक्ष आन्दोलन के माध्यम से, विश्वयुद्ध को आमन्त्रित करने वाली प्रत्येक स्थिति की प्रबल विरोध किया जाता रहा है और विश्व-शान्ति की दिशा में अनेक सराहनीय प्रयास किए गए हैं। साम्राज्यवादी प्रवृत्ति के उन्मूलन, विभिन्न देशों में स्वतन्त्रता के लिए किए गए संघर्ष को सफल बनाने, रंगभेद की नीति का अन्त करने, विश्व में शक्ति सन्तुलन बनाए रखने तथा पिछड़े देशों की प्रगति हेतु समन्वित रूप से प्रयास करने की दिशा में गुटनिरपेक्ष आन्दोलन की अनेक महत्त्वपूर्ण उपलब्धियाँ रही हैं। यही नहीं, पारस्परिक निर्भरता के आधुनिक युग में एक-दूसरे की प्रगति हेतु सहयोग प्राप्त करने तथा विश्व को भावी उपनिवेशवादी शक्तियों के ध्रुवीकरण से बचाए रखने की दृष्टि से भी गुटनिरपेक्षता का अस्तित्व बने रहना परम आवश्यक है। सोवियत संघ के विघटन के पश्चात् यद्यपि गुटनिरपेक्षता की नीति पर प्रश्न-चिह्न लग गया है परन्तु वर्तमान समय में भी इसके सदस्य राष्ट्रों में सहयोगात्मक की भावना प्रफुल्लित हो रही है। इसके सदस्य राष्ट्रों की संख्या कम होने के स्थान पर निरन्तर बढ़ती जा रही है।
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